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Rating for Article:– BRAHMA KUMARIS MURALI - FEB- 2018 ( UID: 180210164338 )
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HINGLISH SUMMARY - 16.02.18 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Baap ke gyan ki kamaal hai jo tum is gyan aur yogbal se bilkul pavitra ban jate ho,Baap aaye hain tumhe gyan se gyan pari banane.
Q-Baap ki kamaal par bacche Baap ko in advance kaun sa inaam dete hain?
A- Baap par bali chadhna he unhe in-advance inaam dena hai.Aise nahi Baba pehle beautiful banaye fir balihaar jayenge.Abhi poora bali chadhna hai.Sarir nirvah karte,baal-baccho ko sambhalte shrimat par chalna he balihaar jana hai.Is purani duniya me to thikkar-thobar hain inse buddhiyog nikaal Baap aur nayi duniya ko yaad karna hai.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Grihast ko ashram arthat pavitra banana hai.Pavitrata me he bal hai,pavitrata ka he maan hai isiliye yogbal aur pavitrata ka bal jama karna hai.
2)Most beloved ek Baba hai,us par poora-poora bali chadh purani duniya se buddhi nikaal deni hai.
Vardan:- Trusty pan ki smriti se har paristhiti me ekras sthiti ka anubhav karne wale Nyare Pyare bhava.
Slogan:- Santoosta aur saralta ka santoolan rakhna he shrest aatma ki nishaani hai.
English Summary -16-02-2018-
Sweet children, the wonder of the Father's knowledge is that, through this knowledge and the power of yoga, you become completely pure. The Father has come to make you into angels of knowledge with this knowledge.
Question:What prize do the children give the Father in advance for His wonders?
Answer:
To sacrifice yourselves to the Father is to give a prize in advance. It isn’t that Baba first makes you beautiful and that you then sacrifice yourselves. You have to sacrifice yourselves completely now. While doing everything for the livelihood of your body and looking after your children, you follow shrimat which means sacrifice yourselves. There are just pebbles and stones in this world and so you must remove your intellects’ yoga away from them and remember the Father and the new world.
Song:You are the Ocean of Love! We thirst for one drop. Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Make your household into an ashram, that is, make it pure. There is power in purity. There is respect for purity and this is why you accumulate the power of yoga and the power of purity.
2. Baba is the most beloved. Sacrifice yourself to Him totally and remove the old world from your intellect.
Blessing:May you be loving and detached and experience a constant and stable stage in every situation by having the awareness of being a trustee.
When you consider yourself to be a trustee, your stage will be constant and stable in every situation because a trustee means to be someone who is loving and detached. When you are a householder, you have a taste for many things and there is a lot of the consciousness of “mine”: sometimes, “my home”, sometimes, “my family”. A householder means one who wanders abound interested in many things. A trustee means one who is constant and stable. A trustee is always light and will constantly be in the ascending stage. Such souls will not have any attachment of “mine” nor will they have waves of sorrow.
Slogan:To keep a balance between contentment and easiness is a sign of an elevated soul.
HINDI DETAIL MURALI
16/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“
''मीठे बच्चे - बाप के ज्ञान की कमाल है जो तुम इस ज्ञान और योगबल से बिल्कुल पवित्र बन जाते हो, बाप आये हैं तुम्हें ज्ञान से ज्ञान परी बनाने''
प्रश्न:बाप की कमाल पर बच्चे बाप को इनएडवान्स कौन सा इनाम देते हैं?
उत्तर:बाप पर बलि चढ़ना ही उन्हें इन-एडवांस इनाम देना है। ऐसे नहीं बाबा पहले ब्युटीफुल बनाये फिर बलिहार जायेंगे। अभी पूरा बलि चढ़ना है। शरीर निर्वाह करते, बाल-बच्चों को सम्भालते श्रीमत पर चलना ही बलिहार जाना है। इस पुरानी दुनिया में तो ठिक्कर-ठोबर हैं इनसे बुद्धियोग निकाल बाप और नई दुनिया को याद करना है।
गीत:-तू प्यार का सागर है... ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कि बाप सम्मुख बैठे हैं और जो दूर बैठे हैं, सभी के प्रति कहते हैं, सुनना तो उन्हों को भी है। बच्चे जानते हैं कि बाप ज्ञान का सागर है, तो जरूर उनमें ज्ञान होगा ना। जैसे सन्यासी विद्वान हैं तो वह समझते हैं हम विद्वान हैं। बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा, मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। वह ज्ञान सागर है। ज्ञान से सद्गति होती है। उस ज्ञान सागर से जैसेकि लोटा भर लेते हैं। सागर तो सदैव भरपूर है ना। सागर से कितना पानी सारी दुनिया को मिलता रहता है। कभी खुटता नहीं, अथाह पानी है। तो बाप भी है ज्ञान का सागर, जब तक जीते हैं उनसे ज्ञान सुनते ही रहते हैं। वह सदा भरपूर है। थोड़े से ज्ञान रत्न दे देते हैं, जिससे सारी सृष्टि सद्गति को पाती है। वह है ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर, सुख का सागर, उनके संग से पतित से पावन बनते हैं। तुम हो ज्ञान गंगायें, मानसरोवर होता है ना। सरोवर एक बड़ा तालाब है। वह भी कैलाश पर्वत पर दिखाते हैं। समझते हैं बड़ा सागर है, जिसमें डुबका मारने से मनुष्य परी बन जाते हैं। परियों का अर्थ तो समझ नहीं सकते। परियां बहुत शोभनिक होती हैं। अब तुम बच्चे जानते हो बाप हमको यह ज्ञान स्नान कराए ऐसा सुन्दर शोभनिक ज्ञान परी बनाते हैं। वहाँ तो नेचुरल ब्युटी होती है। यहाँ काजल क्रीम आदि लगाए श्रृंगार करते हैं। यह है आर्टीफिशल ब्युटी। तत्व ही तमोप्रधान हैं। वहाँ तत्व भी सतोप्रधान होते हैं। देवताओं जैसे शोभनिक कोई हो नहीं सकते। यहाँ की ब्युटी में हेल्थ तो नहीं रहती। वहाँ तुम्हारी हेल्थ भी अच्छी और ब्युटी भी रहती है। बच्चे समझते हैं बाबा तो कमाल कर देते हैं। मनुष्य बड़े-बड़े मार्बल की मूर्तियां बनाते हैं अथवा अच्छे आर्ट से चित्र बनाते हैं तो उनको बहुत इनाम मिलता है। अब विचार करो बाप ज्ञान और योगबल से हमको क्या से क्या बना देते हैं। यह तो बाप कमाल करते हैं। ज्ञान और योग की कितनी बड़ी बलिहारी है। कमाल है बाबा के ज्ञान बल से आत्मा बिल्कुल ही पवित्र हो जाती है। 5 तत्व भी प्योर हो जाते हैं, जिससे नैचुरल ब्युटी रहती है। कृष्ण गोरा था ना। माया फिर काला बना देती है। नई दुनिया और पुरानी दुनिया में फ़र्क तो रहता है ना। हर एक चीज़ सतोप्रधान, सतो रजो तमो होती है। दुनिया भी ऐसे होती है। जैसे-जैसे मनुष्य ऐसे फिर उनके लिए वैभव रहते हैं। साहूकार के लिए वैभव भी अच्छे होते हैं ना। गरीब के पास ठिक्कर-ठोबर होते हैं। तो इस पुरानी दुनिया में भी ठिक्कर ठोबर हैं। नई दुनिया में सब कुछ नया होगा। तो कितना मोस्ट बीलवेड बाबा है, उनकी हम महिमा करेंगे। बाबा खुद तो नहीं कहेंगे - मैं कितना मोस्ट बिलवेड हूँ। बच्चे बाबा की महिमा करते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको ज्ञान योग से क्या बनाता हूँ। बाबा को फिर क्या इनाम मिलता है। इनएडवान्स ही बाबा को इनाम देते हैं अर्थात् उन पर बलि चढ़ते हैं। गाते भी हैं तुम पर बलिहार जाऊं, तो जरूर इनएडवांस बलिहार जायेंगे ना। ऐसे थोड़ेही पहले बाबा ब्युटीफुल बनावे फिर बाद में तुम बलिहार जायेंगे। बलिहारी भी पूरी चाहिए। वह भी राज़ समझाया है। ऐसे नहीं कि सभी बाबा के पास ले आकर बैठ जाना है। तुमको श्रीमत पर चलना है। वह है सर्व आत्माओं का बाप। उनको आत्माओं का रचयिता नहीं कहेंगे। सृष्टि का रचयिता वा स्वर्ग का रचयिता कहेंगे। बाकी आत्मा और यह खेल तो अनादि है। परन्तु इस समय पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं। चेन्ज करते हैं। शरीर तो विनाशी है। बाबा अब हमारी कितनी आयु बढ़ाते हैं। बेहद की आयु बन जाती है। वहाँ एवरेज 150 वर्ष आयु रहती है। यहाँ तो कोई की एक वर्ष भी आयु रहती है। कोई की एक मास भी नहीं चलती। जन्मा और मरा। वहाँ ऐसे नहीं होता। सबकी आयु बड़ी रहती है। कायदे-अनुसार जल्दी से बर्तन टूट नहीं सकता। तो बाप समझाते हैं अब बहुत मेहनत करनी है। तुम शिव शक्ति सेना बाप के मददगार हो। तुम समझते हो इस समय रावण राज्य है, सब विकारी हैं। उन विकारियों से सन्यासी अलग हो जाते हैं फिर सृष्टि रची नहीं जाती। सन्यासी सन्यास सृष्टि ही रचेंगे अर्थात् मुख से आप समान सन्यासी बनायेंगे। उनको वंशावली नहीं कहेंगे। वंशावली गृहस्थ आश्रम में रहते हैं। सतयुग में वंशावली फूल जैसी होती है। सन्यासियों की वंशावली नहीं हो सकती। लिमिटेड हैं। यह तो अनलिमिटेड हैं ना। गृहस्थ आश्रम कहते हैं। वास्तव में आश्रम तो बहुत ऊंचा ठहरा। आश्रम पवित्र होता है। विकारी गृहस्थ को आश्रम नहीं कह सकते। बाप पवित्र गृहस्थ आश्रम धर्मी बनाते हैं, माया रावण अधर्मी बना देती है। मनुष्य अधर्मी बन पड़े हैं। धर्मी, अधर्मी मनुष्य को ही कहेंगे। जानवर को थोड़ेही कहेंगे। तो बाप आकर धर्मी बनाते हैं, माया अधर्मी बना देती है। परन्तु उनको जानते नहीं हैं। जैसे ईश्वर को नहीं जानते वैसे माया को भी नहीं जानते। परमात्मा के लिए कह देते सर्वव्यापी है। परन्तु सर्वव्यापी तो 5 विकार हैं। इस समय भक्त सब बाप को याद करते हैं अर्थात् सब में भगवान की याद है। ऐसे नहीं कि वह सर्वव्यापी है। 5 विकार ही दु:ख देते हैं। तो भक्त भगवान को याद करते हैं, बहुत दु:खी हैं। फिर कह देते हैं दु:ख सुख भगवान ही देते हैं। रावण का नाम ही भूल जाते हैं और माया फिर सम्पत्ति को समझ लेते हैं। सम्पत्ति तो धन को कहा जाता है। इस समय सभी मनुष्य माया रावण के मुरीद हैं। तुम आकर ईश्वर के मुरीद बने हो। वह रावण के दु:ख का वर्सा लेते हैं। तुम बाप से सुख का वर्सा लेते हो। बाप आकरके माताओं को गुरू पद देते हैं। यहाँ कहते हैं पति स्त्री का गुरू है, परन्तु वह तो और ही पतित बना देते हैं। द्रोपदी ने भी कहा ना हमारी लाज रखो। अब बाप कहते हैं इन कन्याओं द्वारा ही उद्धार करूँगा। कन्या का गायन है, कुमारी वह जो पियर और ससुरघर का 21 जन्मों के लिए उद्धार करे। इस समय तुम कन्यायें बनती हो ना। मातायें भी कुमारी बन जाती हैं। ब्रह्माकुमारियां हो ना। तो इस समय की तुम्हारी महिमा चली आती है। कुमारियों ने कमाल की है। बाप ने ही कुमारियों को अपना बनाया है। तो नाम बाला करना है। मातायें भी ईश्वरीय गोद ले कुमारी बन जाती हैं। तो कन्याओं की महिमा वैसे तो सिर्फ गायन-मात्र है। अब फिर प्रैक्टिकल में तुमको बाप जगाते हैं। बाप ने कुमारियों को अपना बनाया है। सीढ़ी चढ़ फिर उतरना मुश्किलात हो जाती है। अभी भी देखते हैं तो कहते हैं ना - नाहेक शादी की। फिर बच्चे पैदा होने से मोह की रग जुट जाती है। तो बाप समझाते हैं आधाकल्प कन्या को शादी कराए विकारी बनाया है। अभी बाप आया हुआ है कहते हैं पवित्र बनो। देखते हो पवित्रता में सुख भी है तो मान भी है। सन्यासियों का कितना मान है। बन्धनमुक्त हो जाते हैं। वह है पवित्रता का बल, वह कोई योग का बल नहीं है। योगबल सिर्फ तुम्हारे पास है। उन्हों का तो है तत्व से योग, जहाँ रहते हैं। जैसे 5 तत्व हैं वैसे वह फिर छठा तत्व है, उनको ब्रह्म ईश्वर कह देते हैं इसलिए उनका योग आर्टीफिशल है। उस योग से विकर्म विनाश नहीं होते, इसलिए गंगा स्नान करने जाते हैं। अगर निश्चय होता कि योग से पावन बनते हैं तो फिर गंगा स्नान नहीं करते। इससे सिद्ध होता है कि उन्हों का योग कायदे के विरुद्ध है। जैसे हिन्दू कोई धर्म नहीं वैसे ब्रह्म भी ईश्वर नहीं। रहने के स्थान को ईश्वर समझ लेते हैं। यह बाप आकर समझाते हैं। तो कुमारियां समझा सकती हैं। हम बी.के. इस भारत को स्वर्ग बनाते हैं, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य बनाते हैं। बाप कहते हैं माताओं का नाम बहुत बाला करना है। पुरुषों को इसमें मदद करनी चाहिए। यह पवित्र रहना चाहती हैं तो पवित्र रहने दो। तो बाप आकर पहले माताओं और कुमारियों को ज्ञान देकर अपना बनाते हैं। शिव वंशी तो सब हैं ही, फिर ब्रह्माकुमार और कुमारियां बनते हैं। कुमार भी हैं परन्तु थोड़े। कुमारियां जास्ती हैं। तुम्हारे यादगार का मन्दिर भी यहाँ एक्यूरेट है। मनुष्य समझते हैं विकार बिगर सृष्टि कैसे पैदा होगी। बाप कहते हैं अभी यह दु:खदाई पतित सृष्टि नहीं चाहिए। तो जरूर पवित्र रहना पड़े। गवर्मेन्ट भी कहती है पैदाइस कम हो क्योंकि वह समझते हैं इतना अन्न कहाँ से आयेगा। वह पवित्रता की बात नहीं समझते। तुम जानते हो अभी शिवालय स्थापन होता है। बेहद की दुनिया शिवालय बन जाती है। उन्होंने तो एक मन्दिर का नाम रख दिया है शिवालय। वह हो गया हद का शिवालय। यह बनता है बेहद का शिवालय। सारा स्वर्ग शिवालय कहेंगे। शिव ने देवी-देवताओं की रचना की है। उनके मन्दिर बने हुए हैं। वह है चैतन्य शिवालय। फिर यह वेश्यालय बनता है। चैतन्य देवताओं के जड़ मन्दिर बनाकर उन्हों को फिर विकारी लोग पूजते हैं। शिवालय शिवबाबा बनाते हैं। मददगार हैं शिव शक्ति पाण्डव सेना। मैजारिटी शक्तियों की होने कारण उन्हों का नाम बाला हुआ है। कन्यायें जास्ती हैं। शिवबाबा तुम्हें अपना बनाते हैं। कृष्ण तो छोटा प्रिन्स था वह कैसे अपना बनायेगा। वह तो खुद ही स्वयंवर कर महाराजा बनते हैं। तो यहाँ शिवबाबा कंसपुरी से निकाल तुमको कृष्णपुरी सतयुग में ले चलते हैं। यह है कंसपुरी। अब सारी दुनिया है एक तरफ और तुम थोड़ी बच्चियां हो दूसरे तरफ। आधाकल्प मनुष्यों ने उल्टा समझाया है। बाप ने आकर सुल्टा समझाया है। आगे कान्ट्रास्ट का बहुत अच्छा किताब था। अभी तो प्वाइंट भी और-और अच्छी निकल रही हैं। बाप कहते हैं दिन-प्रतिदिन तुमको बहुत गुह्य बातें सुनाता हूँ। सब ज्ञान इकट्ठा तो नहीं देंगे। पहले हल्का सुनाते थे। दिन-प्रतिदिन गुह्य होता जाता है। सब गुह्य बातें एक समय कैसे सुनाऊंगा। जो कुछ समझाते वही कल्प पहले भी समझाया था, इसमें कोई संशय की बात नहीं। ऐसे नहीं कि आगे तो बाबा ऐसे कहते थे। अभी फिर ऐसे कहते हैं। अरे पहले तो पहला क्लास था। अजुन बहुत प्वाइंट्स हैं जो और निकलती रहेंगी। जब तक जियेंगे, बाबा सुनाते रहेंगे। बाबा ने कुछ गुह्य राज़ सुनाया तो फिर बतायेंगे। अभी हम पढ़ रहे हैं। उन शास्त्रवादियों को भी शास्त्र कण्ठ रहते हैं। अब 18 अध्याय तो हैं नहीं। यह तो ज्ञान सागर है। सुनाते ही रहते हैं। वह बाप ही ज्ञान का सागर, आनन्द का सागर, शान्ति का सागर है। इस दुनिया में तो कुछ भी नहीं है। न प्यार है, न सार है। वह तो सब बातों का सागर ही सागर है।
मनुष्य कहते हैं वह सर्वव्यापी है। हम भी वही हैं लेकिन उनकी तो महिमा बड़ी जबरदस्त है। सभी भक्त साधू आदि उनको याद करते हैं। दु:खी हैं तब तो कहते हैं वापिस निर्वाणधाम में जायें। सो तो जब निर्वाणधाम का मालिक आये तब ही ले जाये। स्वर्ग की सौगात बच्चों के लिए बाप ले आते हैं। खुद स्वर्ग का मालिक नहीं बनते हैं। बाप देते हैं स्वर्ग की सौगात। फिर रावण आकर दु:ख देते हैं। दु:ख को सौगात नहीं कहेंगे। स्वर्ग के सौगात की चाबी दी है कन्याओं को। कन्यायें भारत को स्वर्ग बनाती हैं। कन्यायें अपने मित्र-सम्बन्धियों को भी समझा सकती हैं - हमने पारलौकिक मात-पिता की गोद ली है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) गृहस्थ को आश्रम अर्थात् पवित्र बनाना है। पवित्रता में ही बल है, पवित्रता का ही मान है इसलिए योगबल और पवित्रता का बल जमा करना है।
2) मोस्ट बिलवेड एक बाबा है, उस पर पूरा-पूरा बलि चढ़ पुरानी दुनिया से बुद्धि निकाल देनी है।
वरदान:ट्रस्टी पन की स्मृति से हर परिस्थिति में एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले न्यारे प्यारे भव
जब स्वयं को ट्रस्टी समझकर रहेंगे तो हर परिस्थिति में स्थिति एकरस रहेगी क्योंकि ट्रस्टी अर्थात् न्यारे और प्यारे। गृहस्थी हैं तो अनेक रस हैं, मेरा-मेरा बहुत हो जाता है। कभी मेरा घर, कभी मेरा परिवार। गृहस्थीपन अर्थात् अनेक रसों में भटकना। ट्रस्टीपन अर्थात् एकरस। ट्रस्टी सदा हल्का और सदा चढ़ती कला में जायेगा। उसमें मेरेपन की ममता नहीं होगी, दु:ख की लहर भी नहीं आयेगी।
स्लोगन:सन्तुष्टता और सरलता का सन्तुलन रखना ही श्रेष्ठ आत्मा की निशानी है।
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