Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - FEBRUARY 2018 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 12-Feb-2018 )
HINGLISH SUMMARY - 12.02.18      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Tumhara farz hai ek do ko Baap aur varshe ki yaad dilakar savdhan karna,isme he sabka kalyan samaya hua hai.
Q-Tum bacche kis ek guhya raaz ko samajhte ho jo koi sciencedaan bhi nahi samajh sakte?
A-Tum samajhte ho ki aatma ati sukshm star hai,usme he sab sanskar bhare huye hain.Wohi sarir dwara apna-apna part baja rahi hai.Sarir jad hai,aatma chaitanya hai.Aise he fir Paramatma bhi star hai,usme sari knowledge hai.Woh manushya shristi ka beejroop hai,sat hai,chaitanya hai.Woh koi hazaaro surya se tezomaye nahi hai.Yah guhya raaz tum bacche samajhte ho.Sciencedaan in baaton ko nahi samajh sakte.Tumhe sabko aatma aur Paramatma ki pehechan pehle-pehle deni hai.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Raat ko jaagkar gyan ka bichaar sagar manthan karna hai.Gyan sagar me doobki lagani hai.Baap ko yaad karte neend ko jeetne wala banna hai.
2)Swadarshan chakra firate rehna hai.Aapas me Baap aur varshe ki yaad dilate ek do ko savdhan kar unnati ko pana hai.
Vardan:-Apne sahayog ke stock dwara har karya me safalta prapt karne wale Master Data bhava.
Slogan:-Sada harshit rehna hai to Biswa drama ki har scene ko sakshi hokar dekho.
 
English Summary -12-02-2018-

Sweet children, your duty is to caution one another by reminding them of the Father and the inheritance. Benefit for everyone is merged in this.
Question:What deep secret that even scientists cannot understand do you children understand?
Answer:You understand that a soul is an extremely subtle star and that all the sanskars are in the soul. It is the soul that plays his own part through the body. The body is non-living whereas the soul is living. In the same way, the Supreme Soul is also a star. He has all the knowledge. He is the Seed of the human world. He is the Truth and the Living Being. He is not brighter than a thousand suns. Only you children understand this deep secret. Scientists cannot understand these things. First of all, you children have to give everyone recognition of souls and the Supreme Soul.
 
Song:Mother, o Mother, you are the Bestower of Fortune for All.  Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. Stay awake at night and churn the ocean of knowledge. Take a dip in the Ocean of Knowledge.Become conquerors of sleep by remembering the Father.
2. Continue to spin the discus of self-realisation. Remind one another of the Father and your inheritance. Caution one another and continue to make progress.
 
Blessing:May you be a master bestower who attains success in every task with your stock of co-operation.
 
For the eternal success of service, be a master bestower and give everyone your co-operation. Be constantly co-operative with everyone and put right with good wishes any task that has gone wrong; to put right any spoilt sanskar or spoilt mood is the biggest of all gifts. “This one said this, this one did that”: while seeing, hearing and understanding all of that transform it with your stock of co-operation. Even if you feel someone lack a particular power, then use your co-operation to fill that gap. This is to become a master bestower.
 
Slogan:To remain constantly cheerful, watch every scene of the drama as a detached observer.
 
 
 
HINDI DETAIL MURALI

12/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम्हारा फ़र्ज है एक दो को बाप और वर्से की याद दिलाकर सावधान करना, इसमें ही सबका कल्याण समाया हुआ है''
प्रश्न:तुम बच्चे किस एक गुह्य राज़ को समझते हो जो कोई साइन्सदान भी नहीं समझ सकते?
उत्तर:तुम समझते हो कि आत्मा अति सूक्ष्म स्टार है, उसमें ही सब संस्कार भरे हुए हैं। वही शरीर द्वारा अपना-अपना पार्ट बजा रही है। शरीर जड़ है, आत्मा चैतन्य है। ऐसे ही फिर परमात्मा भी स्टार है, उसमें सारी नॉलेज है। वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, सत है, चैतन्य है। वह कोई हजारों सूर्यों से तेजोमय नहीं है। यह गुह्य राज़ तुम बच्चे समझते हो। साइन्सदान इन बातों को नहीं समझ सकते। तुम्हें सबको आत्मा और परमात्मा की पहचान पहले-पहले देनी है।
 
गीत:-माता ओ माता तू सबकी भाग्य विधाता...  ओम् शान्ति।
 
बाप बच्चों प्रति कहे कि बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी भव। यह बाप ने बच्चों को सावधानी दी। बच्चों को भी एक दो को सावधानी देनी है। बाप को याद करने से झट वह नशा चढ़ जाता है। स्मृति दिलाने के लिए एक दो को सावधान करना है। जैसे आपस में मिलते हैं तो नमस्ते आदि करते हैं ना। परन्तु उनसे कोई कल्याण नहीं होता है। कल्याण तब होगा जब तुम बच्चे एक दो को सावधानी देंगे। स्वदर्शन चक्रधारी अक्षर में सब कुछ आ जाता है। बाप का परिचय, मर्तबे का परिचय, चक्र का भी परिचय आ गया। तो एक दो को सावधानी देना पहला फ़र्ज है। याद कराने से खबरदार हो जायेंगे। घड़ी-घड़ी एक दो को सावधान करना है। बाप और वर्से को याद करते रहो। स्वदर्शन चक्रधारी हो, अपने को अशरीरी समझ, अशरीरी बाप को याद करते हो। याद अर्थात् योग। योग से ही तुम्हारी निरोगी काया बनती है। यह अभी का पुरुषार्थ है। अन्त में जब एकदम कर्मातीत अवस्था हो जायेगी तब निरोगी बनेंगे। अभी तो पुरुषार्थी हैं। अभी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं क्योंकि जानते हैं सभी बेसमझ हैं। जब देवताओं आदि की पूजा करते हैं, उन्हों के आक्यूपेशन का कोई को पता नहीं है, तो तुमको समझाना है - हम सबकी बायोग्राफी बता सकते हैं। पहले तो मुख्य परमपिता परमात्मा को जानना है। उसमें भी बहुत मनुष्य मूँझते हैं। कहते हैं परमात्मा का कोई नाम रूप नहीं है। तो पहली-पहली मुख्य बात है आत्मा परमात्मा का भेद और ज्ञान बताना। यह तो जानते हैं सब आत्मा हैं। पुण्य आत्मा, पाप आत्मा कहा जाता है। पाप परमात्मा नहीं कहेंगे। पतित दुनिया है ना। परमात्मा तो पतित नहीं होता, इसलिए मनुष्य को पहले-पहले आत्मा को जानना है क्योंकि आत्मा का ज्ञान कोई भी मनुष्य में नहीं है। आत्मा ही सुनती है, आत्मायें खाती-पीती, सब कुछ करती हैं इन आरगन्स द्वारा। आत्मा का रूप क्या है? कहते हैं चमकता है भ्रकुटी के बीज में अजब सितारा। तो आत्मा का रूप समझाना पड़े ना। आत्मा का रूप कोई इतना बड़ा तो नहीं है। आत्मा अति सूक्ष्म है। आत्मा का रूप है जीरो अथवा बुरी (बिन्दी) भी कहते हैं। अब इस पर भी विचार करना चाहिए कि आत्मा कितनी सूक्ष्म है। मनुष्य पूछते हैं आत्मा शरीर से कैसे निकलती है? कहाँ से निकलती है? कोई कहते हैं कि खोपड़ी से निकलती, कोई कहते आंखों से निकलती.... क्योंकि दरवाजे तो बहुत हैं ना। परन्तु आत्मा है क्या चीज़, यह जानना बड़ा वन्डरफुल है। तो पूछते हैं आत्मा निकलती कैसे है, यह नहीं कहते आत्मा आती कैसे है। परन्तु पहले तो मालूम होना चाहिए कि आत्मा क्या चीज़ है। कितनी छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। यह बातें मोस्ट वण्डरफुल हैं। आत्मा है तो बरोबर स्टार मुआफिक। उसको बड़ा नहीं कहेंगे। एरोप्लेन ऊपर जाने से बहुत छोटा दिखाई पड़ता है। परन्तु आत्मा बड़ी नहीं होती। उनका तो एक ही रूप है। तो पहले-पहले आत्मा को जानना चाहिए। मैं आत्मा कैसे इस शरीर में प्रवेश करता हूँ। भल कोई-कोई को साक्षात्कार होता है, जैसे स्टार है। उस छोटी सी आत्मा में सब नॉलेज भरी हुई है। आत्मा है एक ही। यह बड़ा वन्डर है। परमात्मा के रूप का भी किसको पता नहीं है। वास्तव में जैसी आत्मा है, वैसे ही परमपिता परमात्मा है। वह भी बाप है। भल यहाँ बाप और बच्चा छोटा बड़ा होता है, परन्तु आत्मा छोटी-बड़ी नहीं हो सकती। आत्मा और परमात्मा के रूप में कोई भेद नहीं है। बाकी दोनों के पार्ट में, संस्कारों में भेद है। बाप समझाते हैं मेरे में क्या संस्कार हैं। तुम आत्माओं में क्या संस्कार हैं? मनुष्य आत्मा और परमात्मा के रूप को न जानने कारण आत्मा-परमात्मा एक कह देते हैं। बड़ा घोटाला कर दिया है। जानना बहुत जरूरी है। परमात्मा भी है, ब्रह्मा विष्णु शंकर भी हैं, इन सबमें आत्मा है। जगत अम्बा सरस्वती को गॉडेज आफ नॉलेज कहते हैं। तो जरूर सरस्वती की आत्मा में नॉलेज होगी। परन्तु उनमें कौन सी नॉलेज है, यह कोई को पता नहीं है। सिर्फ कह देते हैं गॉडेज ऑफ नॉलेज। अखबारों में आर्टिकल्स आदि पड़ते हैं तो उस पर समझाना चाहिए। तुम कहते हो सरस्वती गॉडेज ऑफ नॉलेज परन्तु उसने कौन सी नॉलेज दी? कब दी? उनको जरूर गॉड से नॉलेज मिली होगी ना। गॉड का रूप क्या है? गॉडेज ऑफ नॉलेज यह नाम कैसे पड़ा? नॉलेजफुल तो गॉड है। उसने सरस्वती को नॉलेजफुल कैसे बनाया? एक ही बात पर किसको संगम पर खड़ा कर देना चाहिए।
बाबा कहते हैं हम समझाते हैं, बाकी लिखने के लिए तो संजय (जगदीश भाई निमित्त रहे) है। यह है नम्बरवन मुख्य एक्टर। यह तो बाबा के साथ राइटहैण्ड होना चाहिए। परन्तु ड्रामा की भावी ऐसी है जो इनको देहली में भी रहना होता है। कल्प पहले वाला पार्ट है। अर्जुन का नाम मुख्य गाया हुआ है। अब तुम बच्चे हर बात का अर्थ समझते हो। पहले-पहले तो आत्मा और परमात्मा को समझना है।
बाप ने बच्चों को समझाया है - आत्मा स्टार है। उसमें सारी नॉलेज कैसे भरी हुई है। यह कोई साइन्स-दान भी समझ नहीं सकेंगे। आत्मा में ही सब संस्कार रहते हैं। अब आत्मा तो स्टार है। अच्छा परमात्मा का रूप क्या है? वह भी परम आत्मा ही है। फ़र्क नहीं है। यह जो महिमा गाते हैं वह हजारों सूर्यों से तीखा है, ऐसा नहीं है। बाप कहते हैं सिर्फ तुम्हारी आत्मा में नॉलेज नहीं है, मैं परमात्मा नॉलेजफुल हूँ - बस यह फ़र्क है। माया ने तुम्हारी आत्मा को पतित बना दिया है। बाकी कोई दीवा नहीं है, बुझा हुआ। सिर्फ आत्मा से नॉलेज निकल गई है - बाप और रचना की। सो अब तुमको नॉलेज मिल रही है। बाबा में नॉलेज है, वह भी आत्मा है। कोई बड़ी नहीं है। उनको भी नॉलेजफुल, सरस्वती को भी नॉलेजफुल कहा जाता है। अब उनको नॉलेज कब मिली? सरस्वती किसकी बच्ची है? यह कोई जानते नहीं हैं। तो दिल में आना चाहिए, उन्हों को कैसे समझायें। बाप परमात्मा कौन है, वह भी समझाना है कि वह स्टार है, उसमें सारी नॉलेज है। गॉड फादर मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। सबका बेहद का बाप है। वह सत है, चैतन्य है, उनमें सच्ची नॉलेज है। उनको ट्रुथ भी कहते हैं। और कोई में सच्ची नॉलेज है नहीं। रचयिता एक बाप है। तो सारी रचना की नॉलेज भी उनमें ही है। झाड़ का बीजरूप है ना। आत्मा तो चैतन्य हैं। शरीर तो जड़ है। जब आत्मा आती है तब यह चैतन्य होता है। तो बाप समझाते हैं मैं भी वही हूँ। आत्मा छोटी बड़ी हो नहीं सकती। जैसे तुम आत्मा हो वैसे परम आत्मा यानी परमात्मा है, फिर उनकी महिमा सबसे ऊंच हैं। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। मनुष्य ही उनको याद करते हैं। यह तो जानते हैं बाप ऊपर में रहते हैं। आत्मा इन आरगन्स द्वारा कहती है हे परमपिता परमात्मा। मनुष्य यह नहीं जानते हैं क्योंकि देह-अभिमानी हैं। तुम अब देही-अभिमानी बने हो। अपने को आत्मा निश्चय करते हो। तुम जानते हो गॉड तो निराकार को ही कहा जाता है। हम उनकी सन्तान हैं। वह गॉड ही आकर नॉलेज देते हैं। उनको नॉलेजफुल, ब्लिसफुल कहा जाता है। रहम का सागर, सुख का सागर, शान्ति का सागर.. यह महिमा दी गई है। तो जरूर बाप से बच्चों को वर्सा मिलना है। उन्होंने कोई समय आकर वर्सा दिया है तब महिमा गाई जाती है। देवताओं की महिमा अलग है। बाप की महिमा अलग है। सब आत्माओं का वह बाप है। क्रियेटर होने के कारण उनको बीजरूप कहा जाता है। पहले-पहले बाप का परिचय देना है। शास्त्रों में दिखाते हैं - अंगुष्ठे मिसल है। हम कहते हैं वह ज्योर्तिबिन्दू है। चित्र भी बनाया है। परन्तु इतना बड़ा तो वह है नहीं। वह तो अति सूक्ष्म है। तो क्या समझायें? तुमको कहेंगे चित्र में इतना बड़ा रूप क्यों दिखाया है? बोलो नहीं तो क्या रखें। वह तो एक बिन्दी है फिर उनकी पूजा कैसे करेंगे? उन पर दूध कैसे चढ़ायेंगे? पूजा के लिए यह रूप बनाया हुआ है। बाकी यह समझते हैं कि वह है परमपिता परम आत्मा परमधाम में रहने वाले। वह परमधाम है हमारा स्वीट होम। निराकारी दुनिया, मूलवतन, सूक्ष्मवतन फिर स्थूलवतन। बाप निराकारी दुनिया में रहते हैं। आत्मा कहती है हम निर्वाणधाम में जावें। जहाँ यह आरगन्स न हों। आत्मा ही आकर शरीर धारण करती है। अब यह कैसे समझायें कि आत्मा कहाँ से जाती है। यह तो जानते हैं पिण्ड में आत्मा प्रवेश होने से चैतन्य बन जाती है। चीज़ कितनी सूक्ष्म है। उसी में सारे संस्कार भरे हुए हैं। फिर एक-एक जन्म के संस्कार प्रगट होते जायेंगे। तो बाप समझाते हैं हर एक बात को अच्छी रीति समझना है। सरस्वती की बात पर भी समझा सकते हैं। वह किसकी बच्ची है? इस समय तुमको तो गॉडेज कह न सकें। सरस्वती है ब्रह्मा की बेटी। तो जरूर वह भी गॉड आफ नॉलेज ठहरा। ब्रह्मा के मुख कमल से दिखाते हैं ज्ञान दिया। तो ब्रह्मा का भी नाम है ना। इस समय तुम हो ब्राह्मण। भल आत्मा प्योर होती जाती है परन्तु शरीर तो प्योर हो नहीं सकता। यह तमोप्रधान शरीर है। तो बाप समझाते हैं - बच्चे एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है। बाप और वर्से को याद करते हो? स्वदर्शन चक्र को याद करते हो? बाबा कहते हैं एक भी ऐसे सावधानी नहीं देते होंगे। बाप को याद करते-करते नींद को जीतने वाला बनना है, इसमें तो बहुत कमाई है। कमाई में कभी थकावट नहीं होती है। परन्तु स्थूल काम भी करने पड़ते हैं इसलिए थकावट भी होती है।
बाप समझाते हैं रात को भी जागकर बाबा से बातें करते, ज्ञान सागर में डुबकी लगानी होती है। जैसे एक जानवर होता है, पानी में डुबकी लगाता है। तो ऐसे डुबकी मारने से, विचार सागर मंथन करने से देखते हैं कि बहुत प्वाइंट्स आती हैं। कहाँ-कहाँ से निकल आती हैं। इसको कहा जाता है रात को जागकर ज्ञान का विचार सागर मंथन करना। मनुष्य बिल्कुल ही नहीं जानते हैं, उन्हों को समझाना है। बाप ज्ञान का सागर है, उनसे वर्सा मिलना है। जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले सतयुग में थे, उन्हों को जरूर वर्सा मिला होगा ना। अब सारी राजधानी को वर्सा कैसे मिला? कलियुग से सतयुग होने में देरी तो नहीं लगती। रात पूरी हो दिन होता है। कहाँ आइरन एजेड वर्ल्ड दु:खधाम, कहाँ वह सुखधाम। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात - कितना फर्क है! अभी गॉड फादर से तुमको नॉलेज मिल रही है। सरस्वती क्या करती थी? किसको पता नहीं। बस गॉडेज ऑफ नॉलेज सरस्वती का चित्र मिला और खुश हो गये। तो उन्हों को सावधान करना पड़ता है। परमात्मा का परिचय देना पड़े। फिर ब्रह्मा विष्णु शंकर का भी परिचय देना है। बाप ने आकर यह नॉलेज दे नर से नारायण बनाया है। बड़ा युक्ति से हर एक का आक्यूपेशन बताना है। सरस्वती भी ब्रह्मा मुख वंशावली है। तो जरूर परमपिता परमात्मा आया उसने ब्रहमा द्वारा मुख वंशावली रची। पहले-पहले नॉलेज किसको दी? कहते हैं कलष सरस्वती को दिया। बीच से ब्रह्मा को गुम कर दिया है। यह किसको पता नहीं है कि ब्रह्मा तन में आकर माताओं को कलष दिया है तो जरूर ब्रह्मा भी सुनते होंगे ना। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र भी दिखाते हैं। ब्रह्मा की मत मशहूर है। तो वह भी सभी वेदों शास्त्रों के सार की मत देता होगा। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा समझाते हैं। ब्रह्मा कहाँ से आया? यह रथ कहाँ से निकला? कोई नहीं जानते। बाबा ने अभी बताया है जो तुम समझा सकते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रात को जागकर ज्ञान का विचार सागर मंथन करना है। ज्ञान सागर में डुबकी लगानी है। बाप को याद करते नींद को जीतने वाला बनना है।
2) स्वदर्शन चक्र फिराते रहना है। आपस में बाप और वर्से की याद दिलाते एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है।
 
वरदान:अपने सहयोग के स्टॉक द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले मास्टर दाता भव
सेवा की अविनाशी सफलता के लिए मास्टर दाता बन सर्व को सहयोग दो। बिगड़े हुए कार्य को, बिगड़े हुए संस्कारों को, बिगड़े हुए मूड को शुभ भावना से ठीक करने में सदा सर्व के सहयोगी बनना - यह है बड़े से बड़ी देन। इसने यह कहा, यह किया, यह देखते सुनते, समझते हुए भी अपने सहयोग के स्टॉक द्वारा परिवर्तन कर देना। किसी द्वारा कोई शक्ति की कमी भी महसूस हो तो अपने सहयोग से जगह भर देना - यही है मास्टर दाता बनना।
 स्लोगन:सदा हर्षित रहना है तो विश्व ड्रामा की हर सीन को साक्षी होकर देखो।

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