Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - FEBRUARY 2018 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 11-Feb-2018 )
HINGLISH SUMMARY - 11.02.18 Pratah Murli
Om Shanti Avyakt Babdada Madhuban (Rev - 30-04-83 )
Param Pujya Banne ka adhar
Vardan – Sneh ki lift dwara udti kala ka anubhav karnewale abinashi snehi bhav.
Slogan – Subh sankalp aur divya buddhi key antra dwara tibraati ki udaan bharte raho
English Summary -11-02-2018 ( Rev - 30-04-83 )
The basis of becoming supremely worthy of worship.
Blessing:May you have imperishable love and experience the flying stage in the lift of love.
In order to become free from labouring, be loving to the Father. This imperishable love becomes an imperishable lift and enables you to experience the flying stage. However, if there is carelessness in your love, you will not then receive any current from the Father nor will the lift work. Just as you cannot experience the convenience of a lift if there is no electricity or connection, similarly, when there is less love, you experience having to labour. Therefore, be one who has imperishable love.
Slogan:With the tools of pure thoughts and a divine intellect, continue to fly at a fast speed.
HINDI DETAIL MURALI
11/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
" अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 30-04-83 मधुबन
“परम पूज्य बनने का आधार”
सभी मधुबन महान तीर्थ पर मेला मनाने के लिए चारों ओर से पहुँच गये हैं। इसी महान तीर्थ के मेले की यादगार अभी भी तीर्थ स्थानों पर मेले लगते रहते हैं। इसी समय का हर श्रेष्ठ कर्म का यादगार चरित्रों के रूप में, गीतों के रूप में अभी भी देख और सुन रहे हो। चैतन्य श्रेष्ठ आत्मायें अपना चित्र और चरित्र देख सुन रही हैं। ऐसे समय पर बुद्धि में क्या श्रेष्ठ संकल्प चलता है? समझते हो ना कि हम ही थे, हम ही अब हैं और कल्प-कल्प हम ही फिर होंगे। यह ‘फिर से' की स्मृति और नॉलेज और किसी भी आत्मा को, महान आत्मा को, धर्म आत्मा को वा धर्म पिता को भी नहीं है। लेकिन आप सब ब्राह्मण आत्माओं को इतनी स्पष्ट स्मृति है वा स्पष्ट नॉलेज है जैसे 5000 वर्ष की बात कल की बात है। कल थे आज हैं फिर कल होंगे। तो आज और कल इन दोनों शब्दों मे 5000 वर्ष का इतिहास समाया हुआ है। इतना सहज और स्पष्ट अनुभव करते हो! कोई होंगे वा हम ही थे, हम ही हैं! जड़ चित्रों में अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षात्कार होता है? वा समझते हो कि यह महारथियों के चित्र हैं, वा आप सबके हैं? भारत में 33 करोड़ देवताओं को नमस्कार करते हैं अर्थात् आप श्रेष्ठ ब्राह्मण सो देवताओं के वंश के भी वंश, उनके भी वंश, सभी का पूजन नहीं तो गायन तो करते ही हैं। तो सोचो जो स्वयं पूर्वज हैं उन्हों का नाम कितना श्रेष्ठ होगा! और पूजन भी पूर्वजों का कितना श्रेष्ठ होगा। 9 लाख का भी गायन है। उससे आगे 16 हजार का गायन है फिर 108 का है फिर 8 का है। उससे आगे युगल दाने का है। नम्बरवार हैं ना। गायन तो सभी का है क्योंकि जो भाग्य विधाता बाप के बच्चे बने, इस भाग्य के कारण उन्हों का गायन और पूजन दोनों होता है लेकिन पूजन में दो प्रकार का पूजन है। एक है प्रेम की विधि पूर्वक पूजन और दूसरा है सिर्फ नियम पूर्वक पूजन। दोनों में अन्तर है ना। तो अपने से पूछो मैं कौन सी पूज्य आत्मा हूँ। पहले भी सुनाया था कि कोई-कोई भक्त, देवता नाराज न हो जाए इस भय से पूजा करते हैं। और कोई-कोई भक्त दिखावा मात्र भी पूजा करते हैं। और कोई-कोई समझते हैं भक्ति का नियम वा फर्ज निभाना है। चाहे दिल हो या न हो लेकिन निभाना है। ऐसे फर्ज समझ करते हैं। चारों ही प्रकार के भक्त किसी न किसी प्रकार से बनते हैं। यहाँ भी देखो देव आत्मा बनने वाले, ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ना। नम्बरवन पूज्य सदा सहज स्नेह से और विधि पूर्वक याद और सेवा वा योगी आत्मा, दिव्यगुण धारण करने वाली आत्मा बन चल रहे हैं। चार सबजेक्ट विधि और सिद्धि प्राप्त किये हुए हैं। दूसरे नम्बर के पूज्य विधि पूर्वक नहीं लेकिन नियम समझ करके करेंगे, चार ही सबजेक्ट पूरे लेकिन विधि सिद्धि के प्राप्ति स्वरूप हो करके नहीं। लेकिन नियम समझकर चलना ही है, करना ही है, इसी लक्ष्य से जितना कायदा उतना फायदा प्राप्त करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। वह दिल का स्नेह स्वत: और सहज बनाता है और नियम पूर्वक वालों को कभी सहज कभी मुश्किल लगता। कभी मेहनत करनी पड़ती और कभी मुहब्बत की अनुभूति होती। नम्बरवन लवलीन रहते, नम्बर दो लव में रहते। नम्बर तीसरा - मैजारटी समय चारों ही सबजेक्ट दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र करते हैं। याद में भी बैठेंगे - नामीग्रामी बनने के भाव से। ऐसे दिखावा मात्र सेवा भी खूब करेंगे। जैसा समय वैसा अल्पकाल का रूप भी धारण कर लेंगे लेकिन दिमाग तेज़ और दिल खाली। नम्बर चौथा - सिर्फ डर के मारे कोई कुछ कह न दे कि यह तो है ही लास्ट नम्बर का वा यह आगे चल नहीं सकता, ऐसे कोई इस नज़र से नहीं देखे। ब्राह्मण तो बन ही गये और शूद्र जीवन भी छोड़ ही चले। ऐसा न हो कि दोनों तरफ से छूट जाएं। शूद्र जीवन भी पसन्द नहीं और ब्राह्मण जीवन में विधि पूर्वक चलने की हिम्मत नहीं इसलिए मजबूरी मजधार में आ गये। ऐसे मजबूरी वा डर के मारे चलते ही रहते। ऐसे कभी-कभी अपने श्रेष्ठ जीवन का अनुभव भी करते हैं इसलिए इस जीवन को छोड़ भी नहीं सकते। ऐसे को कहेंगे चौथे नम्बर की पूज्य आत्मा। तो उन्हों की पूजा कभी-कभी और डर के मारे, मजबूरी भक्त बन निभाना है, इसी प्रमाण चलती रहती। और दिखावा वाले की भी पूजा दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र होती। इसी प्रमाण चलते रहते। तो चार ही प्रकार के पूज्य देखे हैं ना। जैसा अभी स्वयं बनेंगे वैसे ही सतयुग त्रेता की रॉयल फैमली वा प्रजा उसी नम्बर प्रमाण बनेगी और द्वापर कलियुग में ऐसे ही भक्त माला बनेगी। अभी अपने आप से पूछो मैं कौन! वा चारों में ही कभी कहाँ, कभी कहाँ चक्र लगाते हो। फिर भी भाग्य विधाता के बच्चे बने, पूज्य तो जरूर बनेंगे। नामीग्रामी अर्थात् श्रेष्ठ पूज्य 16 हजार तक नम्बरवार बन जाते हैं। बाकी 9 लाख लास्ट समय तक अर्थात् कलियुग के पिछाड़ी के समय तक थोड़े बहुत पूज्य बन जाते हैं। तो समझा गायन तो सबका होता है। गायन का आधार है भाग्य विधाता बाप का बनना और पूजन का आधार है चारों सबजेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई, सफाई। ऐसे पर बापदादा भी सदा स्नेह के फूलों से पूजन अर्थात् श्रेष्ठ मानते हैं। परिवार भी श्रेष्ठ मानते हैं और और विश्व भी वाह-वाह के नगाड़े बजाए उन्हों की मन से पूजा करेगा। और भक्त तो अपना ईष्ट समझ दिल में समायेंगे। तो ऐसे पूज्य बने हो? जब है ही परमपिता। सिर्फ पिता नहीं है लेकिन परम है तो बनायेंगे भी परम ना! पूज्य बनना बड़ी बात नहीं है लेकिन परम पूज्य बनना है।
बापदादा भी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। मुहब्बत में मेहनत को महसूस न कर पहुँच जाते हैं। अभी तो रेस्ट हाउस में आ गये ना! तन-मन दोनों के लिए रेस्ट है ना! रेस्ट माना सोना नहीं। सोना बनने की रेस्ट में आये हैं। पारसपुरी में आ गये हो ना। जहाँ संग ही पारस आत्माओं का है, वायुमण्डल ही सोना बनाने वाला है। बातें ही दिन रात सोना बनने की हैं। अच्छा -
ऐसे सदा परम पूज्य आत्माओं को, सदा विधि द्वारा श्रेष्ठ सिद्धि को पाने वाले, सदा महान बन महान आत्मायें बनाने वाले, स्वयं को सदा सहज और स्वत: योगी, निरन्तर योगी, स्नेह सम्पन्न योगी, अनुभव करने वाले, ऐसी सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के आकारी रूपधारी समीप बच्चों को, ऐसे साकारी आकारी सर्व सम्मुख उपस्थित हुए बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दीदी-दादी जी से:- सभी परमपूज्य हो ना! पूजा अच्छी हो रही है ना! बापदादा को तो अनन्य बच्चों पर नाज़ है। बाप को नाज़ है और बच्चों में राज़ हैं। जो राज़युक्त हैं उन बच्चों पर बाप को सदा नाज़ है। राज़युक्त, योगयुक्त, गुण युक्त... सबका बैलेन्स रखने वाले सदा बाप की ब्लैसिंग की छाया में रहने वाले। ब्लैसिंग की सदा ही वर्षा होती रहती है। जन्मते ही यह ब्लैसिंग की वर्षा शुरू हुई है और अन्त तक इसी छत्रछाया के अन्दर गोल्डन फूलों की वर्षा होती रहेगी। इसी छाया के अन्दर चले हैं, पले हैं और अन्त तक चलते रहेंगे। सदा ब्लैसिंग के गोल्डन के फूलों की वर्षा। हर कदम बाप साथ है अर्थात् ब्लैसिंग साथ है। इसी छाया में सदा रहे हो (दादी से) शुरू से अथक हो, अथक भव का वरदान है इसलिए करते भी नहीं करते, यह बहुत अच्छा। फिर भी अव्यक्त होते समय जिम्मेवारी का ताज तो डाला है ना। इनको (दीदी को) साकार के साथ-साथ सिखाया और आपको अव्यक्त होने समय सेकेण्ड में सिखाया। दोनों को अपने-अपने तरीके से सिखाया। यह भी ड्रामा का पार्ट है। अच्छा!
विदाई के समय 6.30 बजे सुबह :-
संगमयुग की सब घड़ियाँ गुडमार्निंग ही हैं क्योंकि संगमयुग पूरा ही अमृतवेला है। चक्र के हिसाब से संगमयुग अमृतवेला हुआ ना। तो संगमयुग का हर समय गुडमार्निंग ही है। तो बापदादा आते भी गुडमार्निंग में हैं, जाते भी गुडमार्निंग में हैं क्योंकि बाप आता है तो रात से अमृतवेला बन गया। तो आते भी अमृतवेले में हैं और जब जाते हैं तो दिन निकल आता है लेकिन रहता अमृतवेले में ही है, दिन निकलता तो चला जाता है। और आप लोग सवेरा अर्थात् सतयुग का दिन ब्रह्मा का दिन, उसमें राज्य करते हो। बाप तो न्यारे हो जायेंगे ना। तो पुरानी दुनिया के हिसाब से सदा ही गुडमार्निंग है। सदा ही शुभ है और सदा शुभ रहेगा इसलिए शुभ सवेरा कहें, शुभ रात्रि कहें शुभ दिन कहें सब शुभ ही शुभ है। तो सभी को कलियुग के हिसाब से गुडमार्निंग और संगमयुग के हिसाब से गुडमार्निंग तो डबल गुडमार्निंग। अच्छा -
अव्यक्त महावाक्य - याद को ज्वाला स्वरूप बनाओ
बाप समान पाप कटेश्वर वा पाप हरनी तब बन सकते हो, जब आपकी याद ज्वाला स्वरूप हो। ऐसी याद ही आपके दिव्य दर्शनीय मूर्त को प्रत्यक्ष करेगी। इसके लिए कोई भी समय साधारण याद न हो। सदा ज्वाला स्वरूप, शक्ति स्वरूप याद में रहो। स्नेह के साथ शक्ति रूप कम्बाइन्ड हो। वर्तमान समय संगठित रुप के ज्वाला स्वरुप की आवश्यकता है। ज्वाला स्वरूप की याद ही शक्तिशाली वायुमण्डल बनायेगी और निर्बल आत्मायें शक्ति सम्पन्न बनेंगी। सभी विघ्न सहज समाप्त हो जायेंगे और पुरानी दुनिया के विनाश की ज्वाला भड़केगी। जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है। ऐसे आप बच्चे अपने महान तपस्वी रुप द्वारा प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराओ। इसके लिए पहले जमा का खाता बढ़ाओ। जैसे सूर्य की किरणें चारों ओर फैलती हैं, ऐसे आप मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज पर रहो तो शक्तियों व विशेषताओं रुपी किरणें चारों ओर फैलती अनुभव करेंगे।
ज्वाला-रुप बनने का मुख्य और सहज पुरुषार्थ - सदा यही धुन रहे कि अब वापिस घर जाना है और सबको साथ ले जाना है। इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति की आकर्षण से उपराम अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी वा बाप-समान बन जायेंगे। ज्वाला स्वरुप याद अर्थात् लाइट हाउस और माइट हाउस स्थिति को समझते हुए इसी पुरुषार्थ में रहो। विशेष ज्ञान-स्वरुप के अनुभवी बन शक्तिशाली बनो। जिससे आप श्रेष्ठ आत्माओं की शुभ वृत्ति व कल्याण की वृत्ति और शक्तिशाली वातावरण द्वारा अनेक तड़पती हुई, भटकती हुई, पुकार करने वाली आत्माओं को आनन्द, शान्ति और शक्ति की अनुभूति हो। जैसे अग्नि में कोई भी चीज़ डालने से उसका नाम, रूप, गुण सब बदल जाता है, ऐसे जब बाप के याद की लगन की अग्नि में पड़ते हो तो परिवर्तन हो जाते हो! मनुष्य से ब्राह्मण बन जाते, फिर ब्राह्मण से फरिश्ता सो देवता बन जाते। जैसे कच्ची मिट्टी को साँचे में ढालकर आग में डालते हैं तो ईट बन जाती, ऐसे यह भी परिवर्तन हो जाता। इसलिए इस याद को ही ज्वाला रूप कहा जाता है। सेवाधारी हो, स्नेही हो, एक बल एक भरोसे वाले हो, यह तो सब ठीक है, लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज अर्थात् लाइट माइट हाउस की स्टेज, स्टेज पर आ जाए, याद ज्वाला रूप हो जाए तो सब आपके आगे परवाने के समान चक्र लगाने लग जाएं। ज्वाला स्वरूप याद के लिए मन और बुद्धि दोनों को एक तो पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए। इससे बुद्धि की शक्ति वा कोई भी एनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जायेगी। जितनी जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी। इसके लिए अब संकल्पों का बिस्तर बन्द करते चलो अर्थात् समेटने की शक्ति धारण करो। कोई भी कार्य करते वा बात करते बीच-बीच में संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करो। एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को, चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर भी यह प्रैक्टिस करो तब बिन्दू रूप की पावरफुल स्टेज पर स्थित हो सकेंगे। जैसे अव्यक्त स्थिति में रह कार्य करना सरल होता जा रहा है वैसे ही यह बिन्दुरुप की स्थिति भी सहज हो जायेगी। जैसे कोई भी कीटाणु को मारने के लिए डॉक्टर लोग बिजली की रेज़ेस देते हैं। ऐसे याद की शक्तिशाली किरणें एक सेकेण्ड में अनेक विकर्मों रूपी कीटाणु भस्म कर देती हैं। विकर्म भस्म हो गये तो फिर अपने को हल्का और शक्तिशाली अनुभव करेंगे। निरन्तर सहजयोगी तो हो सिर्फ इस याद की स्टेज को बीच-बीच में पावरफुल बनाने के लिए अटेन्शन का फोर्स भरते रहो। पवित्रता की धारणा जब सम्पूर्ण रूप में होगी तब आपके श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति लगन की अग्नि प्रज्जवलित करेगी, उस अग्नि में सब किचड़ा भस्म हो जायेगा। फिर जो सोचेंगे वही होगा, विंहग मार्ग की सेवा स्वत: हो जायेगी। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से असुरों को भस्म कर दिया। असुर नहीं लेकिन आसुरी शक्तियों को खत्म कर दिया। यह अभी का यादगार है। अभी ज्वालामुखी बन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव सब-कुछ भस्म करो। प्रकृति और आत्माओं के अन्दर जो तमोगुण है उसे भस्म करने वाले बनो। यह बहुत बड़ा काम है, स्पीड से करेंगे तब पूरा होगा। कोई भी हिसाब-चाहे इस जन्म का, चाहे पिछले जन्म का, लग्न की अग्नि-स्वरूप स्थिति के बिना भस्म नहीं होता। सदा अग्नि-स्वरूप स्थिति अर्थात् ज्वालारूप की शक्तिशाली याद, बीजरूप, लाइट हाउस, माइट हाउस स्थिति में पुराने हिसाब-किताब भस्म हो जायेंगे और अपने आपको डबल लाइट अनुभव करेंगे। शक्तिशाली ज्वाला स्वरूप की याद तब रहेगी जब याद का लिंक सदा जुटा रहेगा। अगर बार-बार लिंक टूटता है, तो उसे जोड़ने में समय भी लगता, मेहनत भी लगती और शक्तिशाली के बजाए कमजोर हो जाते हो। याद को शक्तिशाली बनाने के लिए विस्तार में जाते सार की स्थिति का अभ्यास कम न हो, विस्तार में सार भूल न जाये। खाओ-पियो, सेवा करो लेकिन न्यारेपन को नहीं भूलो। साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। निरन्तर बाप के साथ दिल का सम्बन्ध। साधना इसको नहीं कहते कि सिर्फ योग में बैठ गये लेकिन जैसे शरीर से बैठते हो वैसे दिल, मन, बुद्धि एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए। ऐसी एकाग्रता ही ज्वाला को प्रज्जवलित करेगी। याद की यात्रा सहज भी हो और शक्तिशाली भी हो, पावरफुल याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है। एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी और हल्केपन का अनुभव कराती है। ऐसे विधिपूर्वक याद को ही यथार्थ और शक्तिशाली याद कहा जाता है।
वरदान:स्नेह की लिफ्ट द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले अविनाशी स्नेही भव !
मेहनत से मुक्त होने के लिए बाप के स्नेही बनो। यह अविनाशी स्नेह ही अविनाशी लिफ्ट बन उड़ती कला का अनुभव कराता है। लेकिन यदि स्नेह में अलबेलापन है तो बाप से करेन्ट नहीं मिलती और लिफ्ट काम नहीं करती। जैसे लाइट बन्द होने से, कनेक्शन खत्म होने से लिफ्ट द्वारा सुख की अनुभूति नहीं कर सकते, ऐसे स्नेह कम है तो मेहनत का अनुभव होता है, इसलिए अविनाशी स्नेही बनो।
स्लोगन:शुभ संकल्प और दिव्य बुद्धि के यंत्र द्वारा तीव्रगति की उड़ान भरते रहो।
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