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Rating for Article:– BRAHMA KUMARIS MURALI - FEB- 2018 ( UID: 180210164338 )
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HINGLISH SUMMARY - 10.02.18 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Tumhe gyan ki secrin mili hai,secrin ki woh boond hai Manmana Bhava,yahi khurak sabko khilate raho.
Q-Sachchi-sachchi khush khairafat kaun si hai?Tumhe sabki kaun si roohani khatiri karni hai?
A- Har ek ko Baap ka parichay dena,yahi hai sachchi-sahchi khush khairafat.Tum Shrimat par sabko khushi ki khurak khilate raho.Behad ke Baap dwara jeevanmukti ki khurak jo tumhe mili hai,woh sabko dete chalo.Atindriya sukh me rah sabko gyan yog ki first class khurak khilana,yahi sabse achchi roohani khatiri hai.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Aatma bhai-bhai ko dekhne ka abhyas karna hai.Apne ko aatma samajh bhai bhai ko gyan dena hai.Mahaveer ban is farman ko palan karna hai.
2)Tumhe koi oolti-soolti baat bole to tum chup raho.Tali do haath se bajti hai,ek ne mukh ki tali bajayi,dusra chup kar de to woh apehi chup ho jayenge.
Vardan:-Mansa-vacha aur karmana tino sevaon ke khaate zama karne wale Yagyan Snehi Bhava
Slogan:-Apne upar rajya karne wale Swarajya adhikari bano,sathiyon par rajya karne wale nahi.
English Summary -10-02-2018-
Sweet children, you have received the saccharine of knowledge. A drop of that saccharine is “Manmanabhav”. Continue to serve everyone this nourishment.
Question:What is the real hospitality and welfare? What spiritual hospitality must you offer everyone?
Answer:
To give each one the Father’s introduction is true welfare and hospitality. You have to continue to feed everyone the nourishment of happiness according to shrimat. Continue to give everyone the nourishment of a life of liberation that you have received from the unlimited Father. Stay in supersensuous joy and serve everyone the first-class nourishment of knowledge and yoga: this is the best spiritual hospitality.
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Practise seeing souls as brothers. Consider yourself to be a soul and give knowledge to your brothers. Become a mahavir and obey this order.
2. If anyone says anything wrong, just remain silent. You need two hands to clap. If one says something and the other one remains silent, the first one will then automatically quieten down.If anyone says anything wrong, just remain silent. You need two hands to clap. If one says something and the other one remains silent, the first one will then automatically quieten down.
Blessing:May you have love for the yagya and accumulate in all your three accounts of service in your thoughts, words and deeds.
BapDada has accumulated with Himself every child’s account of three types of service. Those who have love for the yagya are always co-operative in service through their thoughts, words and deeds and body, mind and wealth. There are 100 marks for each account. If someone has the duty of serving through words, let the percentage of serving through thoughts and deeds be no less. Serving through words is easy, but it is a matter of paying attention when serving through your thoughts. Serving through your deeds is not just doing physical service, you also come into connections and relationships in a gathering. This too is accumulated in the account of deeds.
Slogan:To be a self-sovereign is to be one who is able to rule oneself, not one who rules his companions.
HINDI DETAIL MURALI
10/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“
“मीठे बच्चे - तुम्हें ज्ञान की सैक्रीन मिली है, सैक्रीन की वह बूंद है मनमनाभव, यही खुराक सबको खिलाते रहो”
प्रश्न:सच्ची-सच्ची खुशखैराफत कौन सी है? तुम्हें सबकी कौन सी रूहानी खातिरी करनी है?
उत्तर: हर एक को बाप का परिचय देना, यही है सच्ची-सच्ची खुश खैराफत। तुम श्रीमत पर सबको खुशी की खुराक खिलाते रहो। बेहद के बाप द्वारा जीवनमुक्ति की खुराक जो तुम्हें मिली है, वह सबको देते चलो। अतीन्द्रिय सुख में रह सबको ज्ञान योग की फर्स्टक्लास खुराक खिलाना, यही सबसे अच्छी रूहानी खातिरी है।
ओम् शान्ति।
ज्ञान का तीसरा नेत्र देने वाला रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र सिवाए बाप के और कोई दे नहीं सकता। अभी तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। अभी तुम जानते हो कि यह पुरानी दुनिया बदलने वाली है। बिचारे मनुष्य नहीं जानते कि कौन बदलाने वाला है और कैसे बदलाते हैं क्योंकि उन्हों को ज्ञान का तीसरा नेत्र ही नहीं है। तुम बच्चों को अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है जिससे तुम सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जान गये हो। यह है ज्ञान की सैक्रीन। सैक्रीन का एक बूंद भी कितना मीठा होता है। ज्ञान का भी एक ही अक्षर है मनमनाभव। सभी से कितना मीठा है। अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो। बाप शान्तिधाम और सुखधाम का रास्ता बता रहे हैं। बाप आये हैं बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देने। तो बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए। कहते भी हैं खुशी जैसी खुराक नहीं। जो सदैव खुशी मौज में रहते हैं उनके लिए वह जैसे खुराक होती है। 21 जन्म मौज में रहने की यह जबरदस्त खुराक है। यह खुराक सदैव एक दो को खिलाते रहो। एक दो की जबरदस्त खातिरी यह करनी है। ऐसी खातिरी और कोई मनुष्य, मनुष्य की कर न सके।
तुम बच्चे श्रीमत पर सभी की रूहानी खातिरी करते हो। सच्ची-सच्ची खुश खैऱाफत भी यह है किसको बाप का परिचय देना। मीठे बच्चे जानते हैं बेहद के बाप द्वारा हमको जीवनमुक्ति की खुराक मिलती है। सतयुग में भारत जीवनमुक्त था, पावन था। बाप बहुत बड़ी ऊंची खुराक देते हैं, तब तो गायन है अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो। यह ज्ञान और योग की कितना फर्स्ट क्लास वन्डरफुल खुराक है और यह खुराक एक ही रूहानी सर्जन के पास है और किसको इस खुराक का मालूम ही नहीं है। बाप कहते हैं मीठे बच्चों तुम्हारे लिए तिरी (हथेली) पर सौगात ले आया हूँ। मुक्ति, जीवनमुक्ति की यह सौगात मेरे पास ही रहती है। कल्प-कल्प मँ ही आकर तुमको देता हूँ। फिर रावण छीन लेता है। तो अभी तुम बच्चों को कितना खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए। तुम जानते हो हमारा एक ही बाप, टीचर और सच्चा-सच्चा सतगुरू है जो हमको साथ ले जाते हैं। मोस्ट बिलवेड बाप से विश्व की बादशाही मिलती है। यह कम बात है क्या! तो सदैव हर्षित रहना चाहिए। गाडली स्टूडेन्ट लाईफ इज दी बेस्ट। यह अभी का ही गायन है ना। फिर नई दुनिया में भी तुम सदैव खुशियाँ मनाते रहेंगे। दुनिया नहीं जानती कि सच्ची-सच्ची खुशियाँ कब मनाई जायेंगी। मनुष्यों को तो सतयुग का ज्ञान ही नहीं है। तो यहाँ ही मनाते रहते हैं। परन्तु इस पुरानी तमोप्रधान दुनिया में खुशी कहाँ से आई। यहाँ तो त्राहि-त्राहि करते रहते हैं। कितना दु:ख की दुनिया है।
बाप तुम बच्चों को कितना सहज रास्ता बताते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहो। धन्धा-धोरी आदि करते भी मुझे याद करते रहो। जैसे आशुक और माशुक होते हैं। वह तो एक दो को याद करते रहते हैं। वह उनका आशुक, वह उनका माशुक ओता है। यहाँ यह बात नहीं है, यहाँ तो तुम सभी एक माशुक के जन्म-जन्मान्तर से आशुक हो रहते हो। बाप कभी तुम्हारा आशिक नहीं बनता। तुम उस माशुक से मिलने के लिए याद करते आये हो। जब दु:ख जास्ती होता है तो जास्ती सुमिरण करते हैं। गायन भी है दु:ख में सुमिरण सब करें, सुख में करे न कोय। इस समय बाप भी सर्वशक्तिवान है, तो दिन-प्रतिदिन माया भी सर्वशक्तिवान-तमोप्रधान होती जाती है इसलिए अब बाप कहते हैं मीठे बच्चे देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो और साथ-साथ दैवीगुण भी धारण करो तुम ऐसे (लक्ष्मी-नारायण) बन जायेंगे। इस पढ़ाई में मुख्य बात है ही याद की। ऊंच ते ऊंच बाप को बहुत प्यार, स्नेह से याद करना चाहिए। वह ऊंच ते ऊंच बाप ही नई दुनिया स्थापन करने वाला है। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को विश्व का मालिक बनाने इसलिए अब मुझे याद करो तो तुम्हारे अनेक जन्मों के पाप कट जायें। पतित-पावन बाप कहते हैं तुम बहुत पतित बन गये हो इसलिए अब तुम मुझे याद करो तो तुम पावन बन और पावन दुनिया का मालिक बन जायेंगे। पतित-पावन बाप को ही बुलाते हैं ना। अब बाप आये हैं, तो जरूर पावन बनना पड़े। बाप दु:खहर्ता, सुखकर्ता है। बरोबर सतयुग में पावन दुनिया थी तो सभी सुखी थे। अब बाप फिर से कहते हैं बच्चे शान्तिधाम और सुखधाम को याद करते रहो। अभी है संगमयुग। खिवैया तुमको इस पार से उस पार ले जाते हैं। नईया कोई एक नहीं, सारी दुनिया जैसे एक बड़ा जहाज है, उनको पार ले जाते हैं।
तुम मीठे बच्चों को कितनी खुशियाँ होनी चाहिए। तुम्हारे लिए तो सदैव खुशी ही खुशी है। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं। वाह! यह तो कब न सुना, न पढ़ा। भगवानुवाच मैं तुम रूहानी बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ, तो पूरी रीति सीखना चाहिए। धारणा करनी चाहिए। पूरी रीति पढ़ना चाहिए। पढ़ाई में नम्बरवार तो सदैव होते ही हैं। अपने को देखना चाहिए मैं उत्तम हूँ, मध्यम हूँ वा कनिष्ट हूँ? बाप कहते हैं अपने को देखो मैं ऊंच पद पाने के लायक हूँ? रूहानी सर्विस करता हूँ? क्योंकि बाप कहते हैं बच्चे सर्विसएबुल बनो, फालो करो। मैं आया ही हूँ सर्विस के लिए। रोज़ सर्विस करता हूँ इसलिए ही तो यह रथ लिया है। इनका रथ बीमार पड़ जाता है तो भी मैं इनमें बैठ मुरली लिखता हूँ। मुख से तो बोल नहीं सकते तो मैं लिख देता हूँ, ताकि बच्चों के लिए मुरली मिस न हो तो मैं भी सर्विस पर हूँ ना। यह है रूहानी सर्विस। तुम भी बाप की सर्विस में लग जाओ। आन गॉड फादरली सर्विस। सारे विश्व का मालिक बाप ही तुमको विश्व का मालिक बनाने आये हैं। जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं उनको महावीर कहा जाता है। देखा जाता है कौन महावीर हैं जो बाबा के डायरेक्शन पर चलते हैं। बाप का फरमान है अपने को आत्मा समझ भाई-भाई देखो। इस शरीर को भूल जाओ। बाबा भी शरीर को नहीं देखते हैं। बाप कहते हैं मैं आत्माओं को देखता हूँ। बाकी यह तो ज्ञान है कि आत्मा शरीर बिगर बोल नहीं सकती। मैं भी इस शरीर में आया हूँ, लोन लिया हुआ है। शरीर के साथ ही आत्मा पढ़ सकती है। बाबा की बैठक यहाँ है। यह है अकाल तख्त। आत्मा अकालमूर्त है। आत्मा कब छोटी बड़ी नहीं होती है, शरीर छोटा बड़ा होता है। जो भी आत्मायें हैं उन सभी का तख्त यह भृकुटी का बीच है। शरीर तो सभी के भिन्न-भिन्न होते हैं। किसको अकाल तख्त पुरुष का है, किसका अकाल तख्त स्त्री का है। किसका अकाल तख्त बच्चे का है। बाप बैठ बच्चों को रूहानी ड्रिल सिखलाते हैं। जब कोई से बात करो तो पहले अपने को आत्मा समझो। हम आत्मा फलाने भाई से बात करते हैं। बाप का पैगाम देते हैं कि शिवबाबा को याद करो। याद से ही जंक उतरनी है। सोने में जब अलाय पड़ती है तो सोने की वैल्यु ही कम हो जाती है। तुम आत्माओं में भी जंक पड़ने से तुम वैल्युलेस हो गये हो। अब फिर पावन बनना है। तुम आत्माओं को अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। उस नेत्र से अपने भाईयों को देखो। भाई-भाई को देखने से कर्मेन्द्रियाँ कब चंचल नहीं होंगी। राज-भाग लेना है, विश्व का मालिक बनना है तो यह मेहनत करो। भाई-भाई समझ सभी को ज्ञान दो। तो फिर यह टेव (आदत) पक्की हो जायेगी। सच्चे-सच्चे ब्रदर्स तुम सभी हो। बाप भी ऊपर से आये हैं, तुम भी आये हो। बाप बच्चों सहित सर्विस कर रहे हैं। सर्विस करने की बाप हिम्मत देते हैं। हिम्मते मर्दा... तो यह प्रैक्टिस करनी है - मैं आत्मा भाई को पढ़ाता हूँ। आत्मा पढ़ती है ना। इसको प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है। जो रूहानी बाप से ही मिलती है। संगम पर ही बाप आकर यह नॉलेज देते हैं कि अपने को आत्मा समझो। तुम नंगे आये थे फिर यहाँ शरीर धारण कर तुमने 84 जन्म पार्ट बजाया है। अब फिर वापिस चलना है इसलिए अपने को आत्मा समझ भाई-भाई की दृष्टि से देखना है। यह मेहनत करनी है। अपनी मेहनत करनी है, दूसरे में हमारा क्या जाता। चैरिटी बिगेन्स एट होम अर्थात् पहले खुद को आत्मा समझ फिर भाईयों को समझाओ तो अच्छी रीति तीर लगेगा। यह जौहर भरना है। मेहनत करेंगे तब ही ऊंच फल पायेंगे। बाप आये ही हैं फल देने लिए तो मेहनत करनी पड़े। कुछ सहन भी करना पड़ता है।
तुम्हें कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो तुम चुप रहो। तुम चुप रहेंगे तो फिर दूसरा क्या करेगा। ताली दो हाथ से बजती है। एक ने मुख की ताली बजाई, दूसरा चुप कर दे तो वह आपेही चुप हो जायेंगे। ताली से ताली बजने से आवाज हो जाता है। बच्चों को एक दो का कल्याण करना है। बाप समझाते हैं बच्चे सदैव खुशी में रहने चाहते हो तो मनमनाभव। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। भाईयों (आत्माओं) तरफ देखो। भाईयों को भी यह नॉलेज दो। यह टेव पड़ जाने से फिर कभी क्रिमिनल आई धोखा नहीं देगी। ज्ञान के तीसरे नेत्र से तीसरे नेत्र को देखो। बाबा भी तुम्हारी आत्मा को ही देखते हैं। कोशिश यह करनी है सदैव आत्मा को ही देखें। शरीर को देखें ही नहीं। योग कराते हो तो भी अपने को आत्मा समझ भाईयों को देखते रहेंगे तो सर्विस अच्छी होगी। बाबा ने कहा है भाईयों को समझाओ। भाई सभी बाप से वर्सा लेते हैं। यह रूहानी नॉलेज एक ही बार तुम ब्राह्मण बच्चों को मिलती है। तुम ब्राह्मण हो फिर देवता बनने वाले हो। इस संगमयुग को थोड़ेही छोड़ेंगे, नहीं तो पार कैसे जायेंगे। कूदेंगे थोड़ेही। यह वन्डरफुल संगमयुग है। तो बच्चों को रूहानी यात्रा पर रहने की टेव डालनी है। तुम्हारे ही फायदे की बात है। बाप की शिक्षा भाईयों को देनी है। बाप कहते हैं मैं तुम आत्माओं को ज्ञान दे रहा हूँ। आत्मा को ही देखता हूँ। मनुष्य-मनुष्य से बात करेगा तो उनके मुँह को देखेगा ना। तुम आत्मा से बात करते हो तो आत्मा को ही देखना है। भल शरीर द्वारा ज्ञान देते हो परन्तु इसमें शरीर का भान तोड़ना होता है। तुम्हारी आत्मा समझती है परमात्मा बाप हमको ज्ञान दे रहे हैं। बाप भी कहते हैं आत्माओं को देखता हूँ, आत्मायें भी कहती हैं हम परमात्मा बाप को देख रहे हैं। उनसे नॉलेज ले रहे हैं। इसको कहा जाता है प्रीचुअल ज्ञान की लेन-देन - आत्मा की आत्मा के साथ। आत्मा में ही ज्ञान है। आत्मा को ही ज्ञान देना है। यह जैसे जौहर है। तुम्हारे ज्ञान में यह जौहर भर जायेगा तो किसको भी समझाने से झट तीर लग जायेगा। बाप कहते हैं प्रैक्टिस करके देखो तीर लगता है या नहीं। यह नई टेव (आदत) डालनी है तो फिर शरीर का भान निकल जायेगा। माया के तूफान कम आयेंगे। बुरे संकल्प नहीं आयेंगे। क्रिमिनल आई भी नहीं रहेगी। हम आत्मा ने 84 का चक्र लगाया। अब नाटक पूरा होता है। अब बाबा की याद में रहना है। याद से ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बन, सतोप्रधान दुनिया के मालिक बन जायेंगे। कितना सहज है। बाप जानते हैं बच्चों को यह शिक्षा देना भी मेरा पार्ट है। कोई नई बात नहीं। हर 5000 वर्ष बाद हमको आना होता है। मैं बंधायमान हूँ, बच्चों को बैठ समझाता हूँ - मीठे बच्चे रूहानी याद की यात्रा में रहो तो अन्त मते सो गति हो जायेगी। यह अन्त काल है ना। मामेकम् याद करो तो तुम्हारी सद्गति हो जायेगी। याद की यात्रा से पाया (पिल्लर) मजबूत हो जायेगा। यह देही-अभिमानी बनने की शिक्षा एक ही बार तुम बच्चों को मिलती है। कितना वन्डरफुल ज्ञान है। बाबा वन्डरफुल है तो बाबा का ज्ञान भी वन्डरफुल है। कब कोई बता न सके। अभी वापस चलना है इसलिए बाप कहते हैं मीठे बच्चों यह प्रैक्टिस करो। अपने को आत्मा समझ आत्मा को ज्ञान दो। तीसरे नेत्र से भाई-भाई को देखना है। यही बड़ी मेहनत है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आत्मा भाई-भाई को देखने का अभ्यास करना है। अपने को आत्मा समझ भाई भाई को ज्ञान देना है। महावीर बन इस फरमान को पालन करना है।
2) तुम्हें कोई उल्टी-सुल्टी बात बोले तो तुम चुप रहो। ताली दो हाथ से बजती है, एक ने मुख की ताली बजाई, दूसरा चुप कर दे तो वह आपेही चुप हो जायेंगे।
वरदान:मन्सा-वाचा और कर्मणा तीनों सेवाओं के खाते जमा करने वाले यज्ञ स्नेही भव!
बापदादा के पास सभी बच्चों की सेवा के तीन प्रकार के खाते जमा हैं। जो यज्ञ स्नेही हैं वह मन्सा-वाचा-कर्मणा, तन मन और धन तीनों सेवा में सदा सहयोगी बनते हैं। हर खाते की 100 मार्क्स हैं। अगर किसी की वाचा सेवा की ड्युटी है तो उसमें मन्सा और कर्मणा की परसेन्टेज कम न हो। वाचा सेवा सहज है लेकिन मन्सा में अटेन्शन देने की बात है और कर्मणा सिर्फ स्थूल सेवा नहीं लेकिन संगठन में सम्पर्क-सम्बन्ध में आना - यह भी कर्म के खाते में जमा होता है।
स्लोगन:अपने ऊपर राज्य करने वाले स्वराज्य अधिकारी बनो, साथियों पर राज्य करने वाले नहीं।
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