Published by – Bk Ganapati
Category - History & Subcategory - Story
Summary - How Shubhrak ( Horse ) killed Qutubuddhin during polo
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Subhrak the Horse |
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2017-12-28 18:11:18 |
Rating for Article:– Subhrak The Loyal & Royal Horse ( UID: 171228071118 )
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Details ( Page:- Subhrak the Horse )
[font=Calibri]The Quṭb Mīnār in Delhi stands to commemorate victories of Quṭb al-Din Aibak. Aibak was sold as a slave and purchased by the local Qazi at Nishapur, Persia. Fortune helped Aibak to be Amir-i-Akhur, the Master of Slave & than military general of Muhammad of Ghor and than king / sultan. Aibak died of injuries received during an accident in a game of chaugan ( info as per wiki ) [/font]
[font=Calibri]This article is on the story of how Aibak was killed in the game of chaugan ( Polo).[/font]
कुतुबुद्दीन
घोड़े से गिर कर मरा, यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे?
यह आज हम आपको बताएंगे..
वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है, लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!
त आज सुनिए कहानी 'शुभ्रक' की......
कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।
कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,
जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।
एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.. और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..
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कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।
'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.. उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए! इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए..
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मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए। 'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.. लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में आकर ही रुका!
राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।
सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..
भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पया जाता क्योंकि ऐसी मौत बताने से हिचकिचाते हैं! जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।
नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..
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