Published by – Bk Ganapati
Category - Philosophy & Subcategory - Karma
Summary - Karma philosophy
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Created/ Edited Time:- 28-12-2017 00:53:52 |
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Karma |
25694 |
2017-12-28 00:53:52 |
2 |
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KARMIC DEBTS SETTLEMENT |
3805 |
2017-12-28 00:53:52 |
3 |
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Lord Mahavira & Cow Herder |
2243 |
2017-12-28 00:53:52 |
Rating for Article:– Laws of Karma ( UID: 171207074615 )
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Details ( Page:- Karma )
एक बार एक धनी व्यक्ति मंदिर जाता है।
पैरों में महँगे और नये जूते होने पर सोचता है कि क्या करूँ?
यदि बाहर उतार कर जाता हूँ तो कोई उठा न ले जाये और अंदर पूजा में मन भी नहीं लगेगा; सारा ध्यान् जूतों पर ही रहेगा।
उसे मंदिर के बाहर एक भिखारी बैठा दिखाई देता है। वह धनी व्यक्ति भिखारी से कहता है " भाई मेरे जूतों का ध्यान रखोगे? जब तक मैं पूजा करके वापस न आ जाऊँ" भिखारी हाँ कर देता है।
अंदर पूजा करते समय धनी व्यक्ति सोचता है कि " हे प्रभु आपने यह कैसा असंतुलित संसार बनाया है?
किसी को इतना धन दिया है कि वह पैरों तक में महँगे जूते पहनता है तो किसी को अपना पेट भरने के लिये भीख तक माँगनी पड़ती है!
कितना अच्छा हो कि सभी एक समान हो जायें!!
"वह धनिक निश्चय करता है कि वह बाहर आकर उस भिखारी को 100 का एक नोट देगा।
बाहर आकर वह धनी व्यक्ति देखता है कि वहाँ न तो वह भिखारी है और न ही उसके जूते।
धनी व्यक्ति ठगा सा रह जाता है। वह कुछ देर भिखारी का इंतजार करता है कि शायद भिखारी किसी काम से कहीं चला गया हो, पर वह नहीं आया। धनी व्यक्ति दुखी मन से नंगे पैर घर के लिये चल देता है।
रास्ते में थोड़ी दूर फुटपाथ पर देखता है कि एक आदमी जूते चप्पल बेच रहा है।
धनी व्यक्ति चप्पल खरीदने के उद्देश्य से वहाँ पहुँचता है, पर क्या देखता है कि उसके जूते भी वहाँ बेचने के लिए रखे हैं।
तो वह अचरज में पड़ जाता है फिर वह उस फुटपाथ वाले पर दबाव डालकर उससे जूतों के बारे में पूछता हो वह आदमी बताता है कि एक भिखारी उन जूतों को 100 रु. में बेच गया है।
धनी व्यक्ति वहीं खड़े होकर कुछ सोचता है और मुस्कराते हुये नंगे पैर ही घर के लिये चल देता है। उस दिन धनी व्यक्ति को उसके सवालों के जवाब मिल गये थे----
समाज में कभी एकरूपता नहीं आ सकती, क्योंकि हमारे कर्म कभी भी एक समान नहीं हो सकते।
और जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन समाज-संसार की सारी विषमतायें समाप्त हो जायेंगी।
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*ईश्वर ने हर एक मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है कि किसको कब और कितना मिलेगा, पर यह नहीं लिखा कि वह कैसे मिलेगा। यह हमारे कर्म तय करते हैं। जैसे कि भिखारी के लिये उस दिन तय था कि उसे 100 रु. मिलेंगे, पर कैसे मिलेंगे यह उस भिखारी ने तय किया।*
*हमारे कर्म ही हमारा भाग्य, यश, अपयश, लाभ, हानि, जय, पराजय, दुःख, शोक, लोक, परलोक तय करते हैं।* हम इसके लिये ईश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं ।
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