Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 29-Nov-2018 )
29-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - ज्ञान है मक्खन, भक्ति है छांछ, बाप तुम्हें ज्ञान रूपी मक्खन देकर विश्व का मालिक बना देते हैं, इसलिए कृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं''

 

प्रश्नः-

 

निश्चयबुद्धि की परख क्या है? निश्चय के आधार पर क्या प्राप्ति होती है?

 

उत्तर:-

 

1. निश्चयबुद्धि बच्चे शमा पर फिदा होने वाले सच्चे परवाने होंगे, फेरी लगाने वाले नहीं। जो शमा पर फिदा हो जाते हैं वही राजाई में आते हैं, फेरी लगाने वाले प्रजा में चले जाते। 2. धरत परिये धर्म छोड़िये - यह प्रतिज्ञा निश्चयबुद्धि बच्चों की है। वे सच्चे प्रीत बुद्धि बन देह सहित देह के सब धर्मों को भूल बाप की याद में रहते हैं।

 

गीत:-

 

छोड़ भी दे आकाश सिंहासन.... 

 

ओम् शान्ति।

 

भगवानुवाच। भगवान् कहा जाता है निराकार परमपिता को। भगवानुवाच किसने कहा? उस निराकार परमपिता परमात्मा ने। निराकार बाप निराकार आत्माओं को बैठ समझाते हैं। निराकार आत्मा इस शरीर रूपी कर्मेन्द्रियों से सुनती है। आत्मा को मेल, फीमेल कहा जाता है। उनको आत्मा ही कहा जाता है। आत्मा स्वयं इन आरगन्स द्वारा कहती है - मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ। जो भी मनुष्य मात्र हैं वह सब ब्रदर्स हैं। जब निराकार परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं तो आपस में सब भाई-भाई हैं, जब प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान हैं तो भाई-बहन हैं। यह हमेशा सबको समझाते रहो। भगवान् रक्षक है, भक्तों को भक्ति का फल देने वाला है।

 

बाप समझाते हैं सर्व का सद्गति दाता एक मैं हूँ। सर्व का शिक्षक बन श्रीमत देता हूँ और फिर सर्व का सतगुरू भी हूँ। उनको कोई बाप, टीचर, गुरू नहीं। वही बाप प्राचीन भारत का राजयोग सिखलाने वाला है, कृष्ण नहीं। कृष्ण को बाप नहीं कह सकते। उनको दैवीगुणधारी स्वर्ग का प्रिन्स कहा जाता है। पतित-पावन सद्गति दाता एक को कहा जाता है। अभी सब दु:खी, पाप आत्मा, भ्रष्टाचारी हैं। भारत ही सतयुग में दैवी श्रेष्ठाचारी था। फिर वह भ्रष्टाचारी आसुरी राज्य होता है। सब कहते हैं पतित-पावन आओ, आकर रामराज्य स्थापन करो। तो अब रावण राज्य है। रावण को जलाते भी हैं लेकिन रावण को कोई भी विद्वान, आचार्य, पण्डित नहीं जानते। सतयुग से त्रेता तक रामराज्य, द्वापर से कलियुग तक रावणराज्य। ब्रह्मा का दिन सो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का दिन। ब्रह्मा की रात सो बी.के. की रात। अभी रात पूरी हो दिन आना है। गाया हुआ है विनाश काले विपरीत बुद्धि। तीन सेनायें भी हैं। परमपिता को कहा जाता है बीलव्ड मोस्ट गॉड फादर, ओशन ऑफ नॉलेज। तो जरूर नॉलेज देते होंगे ना। सृष्टि का चैतन्य बीजरूप है। सुप्रीम सोल है अर्थात् ऊंच से ऊंच भगवान् है। ऐसे नहीं कि सर्वव्यापी है। सर्वव्यापी कहना यह तो बाप को डिफेम करना है। बाप कहते हैं ग्लानि करते-करते धर्म ग्लानि हो गई है, भारत कंगाल, भ्रष्टाचारी बन गया है। ऐसे समय पर ही मुझे आना पड़ता है। भारत ही मेरा बर्थप्लेस है। सोमनाथ का मन्दिर, शिव का मन्दिर भी यहाँ है। मैं अपने बर्थ प्लेस को ही स्वर्ग बनाता हूँ, फिर रावण नर्क बनाता है अर्थात् रावण की मत पर चल नर्कवासी, आसुरी सम्प्रदाय बन पड़ते हैं। फिर उन्हों को बदलकर मैं दैवी सम्प्रदाय, श्रेष्ठाचारी बनाता हूँ। यह विषय सागर है। वह है क्षीर सागर। वहाँ घी की नदियाँ बहती हैं। सतयुग-त्रेता में भारत सदा सुखी सालवेन्ट था, हीरे जवाहरों के महल थे। अभी तो भारत 100 परसेन्ट इनसालवेन्ट है। मैं ही आकर 100 परसेन्ट सालवेन्ट, श्रेष्ठाचारी बनाता हूँ। अब तो ऐसे भ्रष्टाचारी बन गये हैं जो अपने दैवी धर्म को भूल गये हैं।

 

बाप बैठ समझाते हैं कि भक्ति मार्ग है छांछ, ज्ञान मार्ग है मक्खन। कृष्ण के मुख में मक्खन दिखलाते हैं यानि विश्व का राज्य था, लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे। बाप ही आकर बेहद का वर्सा देते हैं अर्थात् विश्व का मालिक बनाते हैं। कहते हैं मैं विश्व का मालिक नहीं बनता हूँ। अगर मालिक बनूँ तो फिर माया से हार भी खानी पड़े। माया से हार तुम खाते हो। फिर जीत भी तुमको पानी है। यह 5 विकारों में फँसे हुए हैं। अभी मैं तुमको मन्दिर में रहने लायक बनाता हूँ। सतयुग बड़ा मन्दिर है, उसको शिवालय कहा जाता है, शिव का स्थापन किया हुआ। कलियुग को वेश्यालय कहा जाता है, सब विकारी हैं। अब बाप कहते हैं देह के धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। तुम बच्चों की अब बाप से प्रीत है। तुम और कोई को याद नहीं करते हो। तुम हो विनाश काले प्रीत बुद्धि। तुम जानते हो कि श्री श्री 108 परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। 108 की माला फेरते हैं। ऊपर में है शिवबाबा फिर मात-पिता ब्रह्मा-सरस्वती, फिर उनके बच्चे जो भारत को पावन बनाते हैं। रुद्राक्ष की माला गाई हुई है, उसको रूद्र यज्ञ भी कहा जाता है। कितना बड़ा राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ है। कितने वर्षों से चला आता है। जो भी अनेक धर्म आदि हैं, सब इस यज्ञ में खत्म हो जाने हैं तब यह यज्ञ पूरा होगा। यह है अविनाशी बाबा का अविनाशी यज्ञ। सब सामग्री इसमें स्वाहा हो जानी है। पूछते हैं विनाश कब होगा? अरे, जो स्थापना करते हैं, उनको ही फिर पालना करनी होती है। यह है शिवबाबा का रथ। शिवबाबा इसमें रथी है। बाकी कोई घोड़े-गाड़ी आदि नहीं हैं। वह तो भक्तिमार्ग की सामग्री बैठ बनाई है। बाबा कहते हैं मैं इस प्रकृति का आधार लेता हूँ।

 

बाप समझाते हैं - पहले अव्यभिचारी भक्ति है फिर कलियुग अन्त में पूरी व्यभिचारी बन जाती है। फिर बाप आकर भारत को मक्खन देते हैं। तुम विश्व के मालिक बनने लिए पढ़ रहे हो। बाप आकर मक्खन खिलाते हैं। रावण राज्य में छांछ शुरू हो जाती है। ये सब समझने की बातें हैं। नये बच्चे तो इन बातों को समझ सकें। परमपिता परमात्मा को ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। बाप कहते हैं मैं इस भक्ति मार्ग से किसी को भी नहीं मिलता हूँ। मैं जब आता हूँ तब ही आकर भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ। मैं लिबरेटर बनता हूँ, दु: से छुड़ाकर सबको शान्तिधाम, सुखधाम ले जाता हूँ। निश्चय बुद्धि विजयन्ति, संशय बुद्धि विनशन्ति।

 

बाप शमा है। उस पर परवाने कोई तो एकदम फिदा हो जाते हैं, कोई फेरी पहनकर चले जाते हैं। समझते कुछ नहीं हैं। फिदा होने वाले बच्चे जानते हैं बरोबर बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है। जो सिर्फ फेरी पहनकर चले जाते हैं वह तो फिर प्रजा में ही नम्बरवार जायेंगे। जो फिदा होते हैं वह वर्सा लेते हैं नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। पुरुषार्थ से ही प्रालब्ध मिलती है। ज्ञान का सागर एक ही बाप है। फिर ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। तुम सद्गति को पा लेते हो। सतयुग-त्रेता में कोई गुरू-गोसाई आदि नहीं होते। अभी सब उस बाप को याद करते हैं क्योंकि वह है ओशन ऑफ नॉलेज। सबकी सद्गति कर देते हैं। फिर हाहाकार बन्द हो जयजयकार हो जाती है, तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुम अब त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बने हो। तुमको रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की सारी नॉलेज मिल रही है। यह कोई दन्त कथा नहीं है। गीता है भगवान् की गाई हुई परन्तु कृष्ण का नाम डाल खण्डन कर दिया है। तुम बच्चों को अब सबका कल्याण करना है। तुम हो शिव शक्ति सेना। वन्दे मातरम् गाया हुआ है। वन्दना पवित्र की ही की जाती है। कन्या पवित्र है तो सब उनकी वन्दना करते हैं। ससुर घर गई और विकारी बनी तो सबको माथा टेकती रहती है। सारा मदार पवित्रता पर है। भारत पवित्र गृहस्थ धर्म था। अभी अपवित्र गृहस्थ धर्म है। दु: ही दु: है। सतयुग में ऐसे नहीं होता। बाप बच्चों के लिए तिरी (हथेली) पर बहिश्त ले आते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप से जीवनमुक्ति का वर्सा ले सकते हो। घर-बार छोड़ने की कोई बात नहीं। सन्यासियों का निवृत्ति मार्ग अलग है। अब बाप से प्रतिज्ञा करते हैं - बाबा, हम पवित्र बन, पवित्र दुनिया के मालिक जरूर बनेंगे। फिर धरत परिये धर्म छोड़िये। 5 विकारों का दान दो तो माया का ग्रहण छूटे, तब 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे। सतयुग में हैं 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी...., अब श्रीमत पर चलकर फिर से ऐसा बनना है।

 

भगवान् है ही गरीब निवाज़। साहूकार इस ज्ञान को उठा नहीं सकते क्योंकि वह तो समझते हैं हमको धन आदि बहुत है, हम तो स्वर्ग में बैठे हैं इसलिए अबलायें, अहिल्यायें ही ज्ञान लेती हैं। भारत तो गरीब है। उनमें भी जो गरीब साधारण हैं, उन्हों को ही बाप अपना बनाते हैं। उन्हों की ही तकदीर में है। सुदामा का मिसाल गाया हुआ है ना। साहूकारों को समझने की फुर्सत नहीं। राजेन्द्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) के पास बच्चियाँ जाती थी, कहती थी बेहद के बाप को जानो तो तुम हीरे तुल्य बन जायेंगे। 7 रोज़ का कोर्स करो। कहता था - हाँ, बात तो बहुत अच्छी है, रिटायर होने के बाद कोर्स उठाऊंगा। रिटायर हुआ तो बोले, बीमार हूँ। बड़े-बड़े आदमियों को फुर्सत नहीं है। पहले जब 7 रोज़ का कोर्स पूरा करे तब नारायणी नशा चढ़े। ऐसे थोड़ेही रंग चढ़ेगा। 7 रोज के बाद पता चलता है - यह लायक है वा नहीं है? लायक होगा तो फिर पढ़ने के लिए पुरुषार्थ में लग जायेगा। जब तक भट्ठी में पक्का रंग नहीं लगा है तब तक बाहर जाने से रंग ही उड़ जाता है, इसलिए पहले पक्का रंग चढ़ाना है। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) शिव शक्ति बन विश्व कल्याण करना है। पवित्रता के आधार पर कौड़ी तुल्य मनुष्यों को हीरे तुल्य बनाना है।

 

2) श्रीमत पर विकारों का दान दे सम्पूर्ण निर्विकारी 16 कला सम्पूर्ण बनना है। शमा पर फिदा होने वाला परवाना बनना है।

 

वरदान:-सदा अपने को सारथी और साक्षी समझ देह-भान से न्यारे रहने वाले योगयुक्त भव

 

योगयुक्त रहने की सरल विधि है - सदा अपने को सारथी और साक्षी समझकर चलना। इस रथ को चलाने वाली हम आत्मा सारथी हैं, यह स्मृति स्वत: इस रथ अथवा देह से वा किसी भी प्रकार के देह-भान से न्यारा (साक्षी) बना देती है। देह-भान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म भी युक्तियुक्त होता है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियां अपने कन्ट्रोल में रहती हैं। वह किसी भी कर्मेन्द्रिय के वश नहीं हो सकते।

 

स्लोगन:-विजयी आत्मा बनना है तो अटेन्शन और अभ्यास - इसे निज़ी संस्कार बना लो।

 

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य

 

"सिर्फ ओम् के शब्द के उच्चारण से कोई फायदा नहीं''

 

ओम् रटो माना ओम् जपो, जिस समय हम ओम् शब्द कहते हैं तो ओम् कहने का मतलब यह नहीं कि ओम् शब्द का उच्चारण करना है सिर्फ ओम् कहने से कोई जीवन में फायदा नहीं। परन्तु ओम् के अर्थ स्वरूप में स्थित होना, उस ओम् के अर्थ को जानने से मनुष्य को वो शान्ति प्राप्त होती है। अब मनुष्य चाहते तो अवश्य हैं कि हमें शान्ति प्राप्त होवे। उस शान्ति स्थापन के लिये बहुत सम्मेलन करते हैं परन्तु रिजल्ट ऐसे ही दिखाई दे रही है जो और अशान्ति दु: का कारण बनता रहता है क्योंकि मुख्य कारण है कि मनुष्यात्मा ने जब तक 5 विकारों को नष्ट नहीं किया है तब तक दुनिया पर शान्ति कदाचित हो नहीं सकती। तो पहले हरेक मनुष्य को अपने 5 विकारों को वश करना है और अपनी आत्मा की डोर परमात्मा के साथ जोड़नी है तब ही शान्ति स्थापन होगी। तो मनुष्य अपने आपसे पूछें मैंने अपने 5 विकारों को नष्ट किया है? उन्हों को जीतने का प्रयत्न किया है? अगर कोई पूछे तो हम अपने 5 विकारों को वश कैसे करें, तो उन्हों को यह तरीका बताया जाता है कि पहले उन्हों को ज्ञान और योग का वास धूप लगाओ और साथ में परमपिता परमात्मा के महावाक्य हैं - मेरे साथ बुद्धियोग लगाए मेरे बल को लेकर मुझ सर्वशक्तिवान प्रभु को याद करने से विकार हटते रहेंगे। अब इतनी चाहिए साधना, जो खुद परमात्मा आकर हमें सिखाता है। अच्छा - ओम् शान्ति।

 

 

29/11/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban

Sweet children, knowledge is butter and devotion is buttermilk. The Father gives you butter in the form of knowledge and makes you into the masters of the world. This is why they show butter in the mouth of Shri Krishna.

 

Question:

 

How can you recognize someone whose intellect has faith? What attainment is there on the basis of faith?

 

Answer:

 

1. The children whose intellects have faith are the true moths who surrender themselves to the Flame, not those who simply circle around. Only those who surrender themselves to the Flame come into the kingdom. Those who simply circle around become part of the subjects. 2. The promise of the children whose intellects have faith is: “Even in the most adverse situations, I will not let go of my religion.” Their intellects have true love and so they forget all their bodily religions and their bodies and stay in remembrance of the Father.

 

Song:

 

Leave Your throne of the sky and come down to earth. 

 

Om Shanti

 

God speaks. The incorporeal Supreme Father is called God. Who said: God speaks? That incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. The incorporeal Father sits here and explains to you incorporeal souls. You incorporeal souls listen through the physical organs of your bodies. A soul is not called male or female; a soul is called a soul. The soul himself says through these organs: I leave one body and take another. All human beings are brothers. As children of the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, you are brothers and when you become the children of Prajapita Brahma, you are brothers and sisters. Always continue to explain this to everyone. God is the Protector, the One who gives devotees the fruit of their devotion. The Father explains: I alone am the Bestower of Salvation for All. I become the Teacher of all of you and give you shrimat and then I am also the Satguru of everyone. He doesn't have a Father, Teacher or Guru. That Father, not Krishna, is the One who teaches the ancient Raja Yoga of Bharat. Krishna cannot be called the Father. He is said to be the prince of heaven who has divine virtues. Only the One is called the Purifier and the Bestower of Salvation. All souls are now unhappy, impure and corrupt. Bharat itself is divine and elevated in the golden age. When it then becomes the corrupt, devilish kingdom, everyone says: O Purifier, come! Come and establish the kingdom of Rama. Therefore, it is now the kingdom of Ravan. People burn Ravan, but none of the scholars, teachers or pundits know what Ravan is. The golden age and the silver age are the kingdom of Rama whereas the copper age and the iron age are the kingdom of Ravan. The day of Brahma is the day of the Brahma Kumars and Kumaris. The night of Brahma is the night of the Brahma Kumars and Kumaris. The night is now to end and the day is to come. It is remembered: There are those who have non loving intellects at the time of destruction. There are also the three armies. The Supreme Father is called most beloved God, the Father, the Ocean of Knowledge. So He must surely be giving you knowledge. He is the Living Seed of the world. He is the Supreme Soul, that is, He is God, the Highest on High. It isn't that He is omnipresent. To say that He is omnipresent is to defame the Father. The Father says: By My being defamed, there has been defamation of religion and Bharat has become poverty-stricken and corrupt. I have to come at such a time. Bharat itself is My birthplace. The Somnath Temple and the temples to Shiva are here. I make My birthplace into heaven and then Ravan makes it into hell. This means that by following the dictates of Ravan, people have become residents of hell, the devilish community. Then, I change them and make them elevated and into the divine community. This is the ocean of poison and that is the ocean of milk; rivers of ghee flow there. In the golden and silver ages, Bharat was constantly happy and solvent and there were palaces of diamonds and jewels. Bharat is now 100% insolvent. I alone come and make it 100% solvent and elevated. People have now become so corrupt that they have forgotten their divine religion. The Father sits here and explains: The path of devotion is buttermilk and the path of knowledge is butter. They show butter in the mouth of Krishna. That means he had the kingdom of the world. Lakshmi and Narayan were the masters of the world. The Father Himself comes and gives you the unlimited inheritance, that is, He makes you into the masters of the world. He says: I do not become the Master of the world. If I were to become the Master, I would then also have to be defeated by Maya. You are the ones who are defeated by Maya. So, you then have to gain victory. You are trapped in the five vices. I am now making you worthy of living in a temple. The golden age is a big temple and it is called Shivalaya which is established by Shiva. The iron age is called the brothel; all are vicious. The Father now says: Renounce the religions of the body, consider yourself to be a soul and remember Me, your Father. You children now have love for the Father. You don't remember anyone else. You are those who have loving intellects at the time of destruction. You know that only the Supreme Father, the Supreme Soul, is called Shri Shri 108. They turn the beads of the rosary of 108. Up above is Shiv Baba, then the mother and father, Brahma and Saraswati, and then their children who make Bharat pure. The rosary of Rudraksh has also been remembered. This is called the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. This is also such a big imperishable sacrificial fire of knowledge in which the horse is sacrificed to receive self-sovereignty. It has been continuing for so many years. All the innumerable religions are to be sacrificed into this sacrificial fire because only then will this sacrificial fire end. This is the imperishable sacrificial fire of imperishable Baba. Everything material is to be sacrificed into this. Children ask: When will destruction take place? Oh, but those who establish something then have to sustain it. This is Shiv Baba's chariot. Shiv Baba is the Charioteer in this, but there aren't any horse chariots etc., here. They have just sat and made up paraphernalia for the path of devotion. Baba says: I take the support of this matter. The Father explains: At first, there is unadulterated devotion but it then becomes completely adulterated by the end of the iron age. Then the Father comes and gives the butter to Bharat. You are studying to become the masters of the world. The Father comes and feeds you butter. Buttermilk begins in Ravan’s kingdom. All of these matters have to be understood. New children cannot understand these things. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, is called the Ocean of Knowledge. The Father says: No one on this path of devotion can find Me. Only when I come do I give the devotees the fruit of their devotion. I become the Liberator, I remove their sorrow and take them to the land of peace and the land of happiness. Faith in the intellect leads to victory and doubt in the intellect leads to destruction. The Father is the Flame. Some moths completely surrender themselves whereas others simply circle around and go away; they don’t understand anything. Children who surrender themselves know that they truly receive the unlimited inheritance from the unlimited Father. Those who simply circle around and go away will then become part of the subjects, numberwise. Those who surrender themselves claim their inheritance, numberwise, according to the efforts they make. The reward received is according to the efforts made. Only the one Father is the Ocean of Knowledge. This knowledge then disappears. You would have received salvation then. There are no gurus etc. in the golden and silver ages. Everyone now remembers that Father because He is the Ocean of Knowledge. He grants salvation to everyone; the cries of distress end and there is the joy of victory. You know the beginning, middle and end of the world. You have now become trikaldarshi and trinetri. You are now receiving all the knowledge of the Creator and the beginning, the middle and the end of creation. This is not a tall story. The Gita is spoken by God, but they have falsified it by inserting Krishna’s name. You children now have to benefit everyone. You are the Shiv Shakti Army. It is remembered: Salutations to the mothers! Salutations are given to those who are pure. When a kumari is pure, everyone bows down to her. As soon as she goes to her in-laws and becomes impure, she continues to bow down to everyone. Everything depends on purity. Bharat had the pure household religion; it is now the impure household religion. There is nothing but sorrow. It is not like that in the golden age. The Father brings heaven on the palms of His hands for you children. While living at home, you can claim your inheritance of liberation-in-life from the Father. There is no question of leaving your home and family. The path of isolation of the sannyasis is separate. You now promise the Father: Baba, I will definitely become pure and become a master of the pure world and “Whatever happens I will never leave my religion.” Donate the five vices so that you are freed from the eclipse of Maya and you will then become sixteen celestial degrees full. In the golden age, they are sixteen celestial degrees full, fully viceless. You now have to follow shrimat and once again become like that. God is the Lord of the Poor. Wealthy ones are unable to take this knowledge because they think that they are now sitting in heaven because they have a lot of wealth etc. This is why only the innocent, the weak and those with stone intellects take this knowledge. Bharat is poor. Among them too, the Father only makes those who are ordinary and poor belong to Him. Only they have it in their fortune. The example of Sudama is remembered. The wealthy don't have time to understand these things. Some daughters used to go to Rajendra Prasad (former President of India). They told him: Know the unlimited Father and you will become worth a diamond. Do this seven days' course. He used to say: Yes, what you say is very good. I will take the course after I have retired. When he retired, he said: I am now ill. Eminent people don't have time. Only when they first complete the seven days' course can they have the intoxication of becoming Narayan. They cannot be coloured just like that. It is only after seven days that you can tell whether someone is worthy or not. If he is worthy, he will become busy making effort to study. Unless someone is very firmly coloured in the furnace (bhatthi), the colour fades as soon as he goes outside and this is why you first have to colour them very firmly. Achcha.

 

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

 

Sweet elevated versions from Mateshwari

 

There is no benefit in just chanting the mantra of “om”.

 

To chant “om” means to sing this constantly. When we say the word “om”, it does not mean that we have to say it out loud. There is no benefit in life by simply saying “om”. However, by being stable in the meaning of “om” and by knowing the meaning of that word “om”, human beings can have peace in their lives. People definitely want to have peace, and they have many conferences to establish that peace. However, the result seen is that there is greater peacelessness and causes of sorrow. The main reason is that there cannot possibly be peace on earth until human beings have destroyed the five vices. So first, every human being has to control their five vices and connect the string of their souls with the Supreme Soul; only then can there be peace. So, let each person ask the self: Have I destroyed the five vices in me? Have I made the effort to conquer them? If they ask, “How can I control the five vices in me?” show them this method. First of all, give the dhoop (smoke from incense sticks) of knowledge and yoga. Then along with that tell them the elevated versions of the Supreme Soul: Connect the yoga of your intellect with Me, take power from Me and by remembering Me, Almighty Authority God, the vices will continue to be removed. We now have to make this much spiritual endeavour so that God Himself comes and teaches us. Achcha.

 

Essence for Dharna:

 

1. Become a Shiv Shakti and benefit the world. On the basis of purity, change human beings who are worth shells and make them worth diamonds.

 

2. According to shrimat, donate the vices and become fully viceless, 16 celestial degrees full. Become the moths who surrender themselves to the Flame.

 

Blessing:May you remain yogyukt and beyond any awareness of the body by always considering yourself to be a co-charioteer and a detached observer.

 [font=Calibri]The easy way to remain yogyukt is always to move around while considering yourself to be a co-charioteer and a detached observer. “I, the soul, am a co-charioteer who makes this chariot move.” This awareness automatically makes you detached from the chariot, that is, the body and any type of awareness of the body. When there isn’t any awareness of the body, you easily become yogyukt and every action is yuktiyukt. By considering yourself to be a co-charioteer, all your physical senses remain under your control. Such a soul cannot be influenced by any of the physical senses.[/font]

Slogan:In order to become a victorious soul, make attention and practise your natural sanskars.

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