Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 28-Nov-2018 )
28-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस का तुम्हें बहुत-बहुत शौक होना चाहिए लेकिन इस सर्विस के लिए स्वयं में हड्डी धारणा चाहिए''

 

प्रश्नः-

 

आत्मा मैली कैसे बनती है? आत्मा पर कौन सी मैल चढ़ती है?

 

उत्तर:-

 

मित्र-सम्बन्धियों की याद से आत्मा मैली बन जाती है। पहले नम्बर का किचड़ा है देह-अभिमान का, फिर लोभ मोह का किचड़ा शुरू होता है, यह विकारों की मैल आत्मा पर चढ़ती है। फिर बाप की याद भूल जाती है, सर्विस नहीं कर सकते हैं।

 

गीत:-

 

तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है....... 

 

ओम् शान्ति।

 

यह गीत बड़ा अच्छा है। बच्चे गैरन्टी भी करते हैं कि आपका सुन करके फिर यह ज्ञान सुनाने की दिल होती है। याद तो बच्चे करते हैं, यह भी जरूर है, कोई याद करते होंगे और मिले भी होंगे। कहा जाता है कोटों में कोई आकरके यह वर्सा लेते हैं। अभी तो बुद्धि बहुत विशाल हो गई है। जरूर पांच हजार वर्ष पहले भी बाप राजयोग सिखाने आया होगा। पहले-पहले तो यह समझाना है कि नॉलेज किसने सुनाई थी क्योंकि यही बड़ी भूल है। बाप ने समझाया है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी गीता है भारतवासियों का शास्त्र। सिर्फ मनुष्य यह भूल गए हैं सर्व शास्त्रमई गीता किसने गाई और उससे कौन-सा धर्म स्थापन हुआ? बाकी गाते जरूर हैं - हे भगवान् आप आओ। भगवान् तो जरूर आते ही हैं - नई पावन दुनिया की रचना रचने। दुनिया का ही तो फादर है ना। भक्त गाते भी हैं - आप आओ तो सुख मिले या शान्ति मिले। सुख और शान्ति दो चीजें हैं। सतयुग में जरूर सुख भी है बाकी सब आत्माएं शान्ति देश में हैं। यह परिचय देना पड़े। नई दुनिया में नया भारत, राम राज्य था। उसमें सुख है, तब तो राम राज्य की महिमा है। उसको राम राज्य कहते हैं तो इनको रावण राज्य कहना पड़े क्योंकि यहाँ दु: है। वहाँ सुख है, बाप आकर सुख देते हैं। बाकी सबको शान्तिधाम में शान्ति मिल जाती है। शान्ति और सुख का दाता तो बाप है ना। यहाँ है अशान्ति, दु:ख। तो बुद्धि में यह ज्ञान टपकना चाहिए, इसमें अवस्था बड़ी अच्छी चाहिए। ऐसे तो छोटे बच्चों को भी सिखलाया जाता है परन्तु अर्थ तो समझा ना सकें, इसमें हड्डी धारणा चाहिए। जो कोई फिर प्रश्न पूछे तो समझा भी सकें। अवस्था अच्छी चाहिए। नहीं तो कभी देह-अभिमान में, कभी क्रोध, मोह में गिरते रहते हैं। लिखते भी हैं - बाबा, आज हम क्रोध में गिरा, आज हम लोभ में गिरा। अवस्था मजबूत हो जाती है तो गिरने की बात ही नहीं रहती। बहुत शौक रहता है - मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस करें। गीत भी बड़ा अच्छा है - बाबा, आप आयेंगे तो हम बहुत सुखी हो जायेंगे। बाप को आना तो जरूर है। नहीं तो पतित सृष्टि को पावन कौन बनाए? कृष्ण तो देहधारी है। उनका वा ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का नाम नहीं ले सकते। गाते भी हैं पतित-पावन आओ तो उनसे पूछना चाहिए यह तुमने किसके लिए कहा? पतित-पावन कौन है और वह कब आयेगा? पतित-पावन वह है, उनको बुलाते हो तो जरूर यह पतित दुनिया है। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। पतित दुनिया को पावन कौन बनायेंगे? गीता में भी है बरोबर भगवान् ने ही राजयोग सिखाया और इन विकारों पर ही जीत पाई। काम महाशत्रु है। पूछना पड़ता है कि यह किसने कहा कि मैं राजयोग सिखाता हूँ, काम महाशत्रु है? यह किसने कहा कि मैं सर्वव्यापी हूँ? किस शास्त्र में लिखा हुआ है? किसके लिए कहा जाता है पतित-पावन? क्या पतित-पावनी गंगा है या और कोई है? गांधी जी भी कहते थे पतित-पावन आओ, गंगा तो हमेशा है ही। वह कोई नई नहीं है। गंगा को तो अविनाशी कहेंगे बाकी सिर्फ तमोगुणी तत्व बन जाते हैं तो उनमें चंचलता जाती है। बाढ़ कर देते हैं, अपना रास्ता छोड़ देते हैं। सतयुग में तो बड़ा रेग्युलर सब चलता है। कम जास्ती बारिश आदि नहीं पड़ सकती। वहाँ दु: की बात नहीं। तो बुद्धि में यह रहना चाहिए कि पतित-पावन हमारा बाबा ही है। पतित-पावन को जब याद करते हैं तो कहते हैं - हे भगवान्, हे बाबा। यह किसने कहा? आत्मा ने। तुम जानते हो पतित-पावन शिवबाबा आया हुआ है। निराकार अक्षर जरूर डालना है। नहीं तो साकार को मान लेते हैं। आत्मा पतित बनी हुई है, यह कह नहीं सकते कि सब ईश्वर हैं। अहम् ब्रह्मस्मि या शिवोहम् कहना बात एक ही है। लेकिन रचना का मालिक तो एक ही रचता है। भल मनुष्य और कोई लम्बा-चौड़ा अर्थ करेंगे, हमारी बात तो है ही सेकेण्ड की। सेकेण्ड में बाप का वर्सा मिलता है। बाप का वर्सा है स्वर्ग की राजाई। उनको जीवनमुक्ति कहा जाता है। यह है जीवनबंध। समझाना चाहिए - बरोबर जब आप आयेंगे तो जरूर हमको स्वर्ग का, मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा देंगे। तब ही लिखते हैं मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता एक है। यह भी समझाना पड़े। सतयुग में है ही एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म। वहाँ दु: का नाम नहीं। वह है ही सुखधाम। सूर्यवंशी राज्य चलता है। फिर त्रेता में है चन्द्रवंशी राज्य। फिर द्वापर में ही इस्लामी, बौद्धी आयेंगे। सारा पार्ट नूंधा हुआ है। एक बिन्दी जैसी आत्मा में और परमात्मा में कितना पार्ट नूंधा हुआ है। शिव के चित्र में भी यह लिखना पड़ता है कि मैं ज्योतिर्लिंगम जितना बड़ा नहीं हूँ। मैं तो स्टॉर मिसल हूँ। आत्मा भी स्टॉर है, गाते भी हैं भृकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा........ तो वह आत्मा ही ठहरी। मैं भी परमपिता परम आत्मा हूँ। परन्तु मैं सुप्रीम, पतित-पावन हूँ। मेरे गुण अलग हैं। तो गुण भी सब लिखने पड़ें। एक तरफ शिव की महिमा, दूसरे तरफ श्रीकृष्ण की महिमा। अपोजिट बातें हैं, अक्षर अच्छी रीति लिखना पड़े। जो मनुष्य अच्छी रीति से पढ़कर समझ सकें। स्वर्ग और नर्क, सुख और दु:, चाहे कृष्ण का दिन और रात कहो, चाहे ब्रह्मा का कहो। सुख और दु: कैसे चलता - यह तो तुम जानते हो। सूर्यवंशी हैं 16 कला, चन्द्रवंशी हैं 14 कला। वह सम्पूर्ण सतोप्रधान, वह सतो। सूर्यवंशी ही फिर चन्द्रवंशी बन जाते हैं। सूर्यवंशी फिर त्रेता में आयेंगे तो जरूर चन्द्रवंशी कुल में जन्म लेंगे। भल राजाई पद लेते हैं। यह बातें बुद्धि में अच्छी रीति बैठानी चाहिए। जो जितना याद में रहेगा, देही-अभिमानी होगा तो धारणा होगी। वह सर्विस भी अच्छी करेंगे। स्पष्ट कर किसको सुनायेंगे हम ऐसे बैठते हैं, ऐसे धारणा करते हैं, ऐसे समझाते हैं, ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करते हैं - औरों को समझाने के लिए। सारा समय विचार सागर मंथन चलता रहेगा। जिनमें ज्ञान नहीं उनकी बात तो अलग है, धारणा नहीं होगी। धारणा होती है तो सर्विस करनी पड़े। अभी तो सर्विस बहुत बढ़ती जाती है। दिन-प्रतिदिन महिमा बढ़ती जायेगी। फिर तुम्हारी प्रदर्शनी में भी कितने आयेंगे। कितने चित्र बनाने पड़ेंगे। बहुत बड़ा मंडप बनाना पड़े। यूँ तो इसमें समझाने के लिए एकान्त चाहिए। हमारे मुख्य चित्र हैं ही झाड़, गोला और यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र। राधे-कृष्ण के चित्र से इतना समझ नहीं सकते कि यह कौन हैं? इस समय तुम जानते हो कि हमको अब बाप ऐसा पावन बना रहे हैं। सब तो एक जैसे सम्पूर्ण नहीं बनेंगे। आत्मा पवित्र होगी बाकी ज्ञान थोड़ेही सब धारण करेंगे। धारणा नहीं होती तो समझा जाता है यह कम पद पायेंगे।

 

अभी तुम्हारी बुद्धि कितनी तीक्ष्ण हो गई है, नम्बरवार तो हर क्लास में होते ही हैं। कोई तीखे, कोई ढीले, यह भी नम्बरवार हैं। अगर कोई अच्छे आदमी को थर्ड ग्रेड समझाने वाले मिल जाएं तो वह समझेंगे यहाँ तो कुछ है ही नहीं इसलिए पुरुषार्थ किया जाता है कि अच्छे आदमी को समझाने वाला भी अच्छा दिया जाए। सब तो एक जैसे पास नहीं होंगे। बाबा के पास तो लिमिट है। कल्प-कल्प इस पढ़ाई की भी रिजल्ट निकलती है। मुख्य 8 पास होते हैं, फिर 100, फिर हैं 16 हजार, फिर प्रजा। उनमें भी साहूकार, गरीब, सब होते हैं। समझा जाता है - इस समय यह किस पुरुषार्थ में है? किस पद को पाने लायक है? टीचर को पता तो पड़ता है। टीचर्स में भी नम्बरवार होते हैं। कोई टीचर अच्छा है तो सब खुश हो जाते हैं कि यह पढ़ाते भी अच्छा हैं, प्यार भी अच्छा करते हैं। छोटे सेन्टर को बड़ा तो कोई बड़ा टीचर ही बनायेगा ना। कितना बुद्धि से काम लेना पड़ता है। ज्ञान मार्ग में अति मीठा बनना है। स्वीट तब बनेंगे, जब मीठे बाप के साथ पूरा योग होगा तो धारणा भी होगी। ऐसे मीठे बाबा से बहुतों का योग नहीं है। समझते ही नहीं - गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप से पूरा योग लगाना है। माया के तूफान तो आयेंगे ही। कोई को पुराने मित्र-सम्बन्धी याद आयेंगे, कोई को क्या याद पड़ता रहेगा। तो मित्र-सम्बन्धियों आदि की याद आत्मा को मैला कर देती है। किचड़ा पड़ने से फिर घबरा जाते हैं, इसमें घबराना नहीं है। यह तो माया करेगी, किचड़ा पड़ेगा ही हमारे ऊपर। होली में किचड़ा पड़ता है ना। हम बाबा की याद में रहें तो किचड़ा नहीं रहेगा। बाप को भूले तो पहला नम्बर देह-अभिमान का किचड़ा पड़ेगा। फिर लोभ, मोह आदि सब आयेंगे। अपने लिए मेहनत करनी है, कमाई करनी है और फिर आप समान बनाने की मेहनत करनी है। सेन्टर्स पर सर्विस अच्छी होती है। यहाँ आते हैं तो कहते हैं हम जाकर प्रबन्ध करेंगे, सेन्टर खोलेंगे, यहाँ से गये ख़लास। बाबा खुद भी कह देते हैं तुम यह सब बातें भूल जायेंगे। यहाँ तो भट्टी में रहना पड़े, जब तक समझाने लायक हो जाएं। शिवबाबा का तो सबसे मीठा कनेक्शन है ना। समझ सकते हैं, किस प्रकार की सर्विस करते हैं। स्थूल सर्विस का इज़ाफा मिलता अवश्य है। बहुत हड्डी सर्विस करते हैं। परन्तु सब्जेक्ट तो हैं ना। उस पढ़ाई में भी सब्जेक्ट होते हैं। तो इस रूहानी पढ़ाई के भी सब्जेक्ट हैं। पहले नम्बर की सब्जेक्ट है याद, पीछे पढ़ाई। बाकी सब है गुप्त। इस ड्रामा को भी समझना पड़ता है। यह भी कोई को पता नहीं है कि 1250 वर्ष हर एक युग में हैं। सतयुग कितना समय था, अच्छा वहाँ कौन सा धर्म था? सबसे जास्ती जन्म यहाँ किसके होने चाहिए? बौद्धी, इस्लामी आदि इतने जन्म थोड़ेही लेंगे। किसकी बुद्धि में यह बातें नहीं हैं। शास्त्रवादियों से पूछना चाहिए कि तुम भगवानुवाच किसको कहते हो? सर्व शास्त्रमई शिरोमणी तो गीता है। भारत में पहले-पहले तो देवी-देवता धर्म था। उनका शास्त्र कौन-सा? गीता किसने गाई? कृष्ण भगवानुवाच तो हो ना सके। स्थापना और विनाश कराना तो भगवान् का ही काम है। कृष्ण को भगवान् नहीं कहेंगे। वह भला कब आया? अभी किस रूप में है? शिवबाबा के अपोजिट कृष्ण की महिमा जरूर लिखनी पड़ेगी। शिव है गीता का भगवान, उनसे श्रीकृष्ण को पद मिला। कृष्ण के 84 जन्म भी दिखाते हैं। पिछाड़ी में फिर ब्रह्मा का एडाप्टेड चित्र भी दिखाना पड़े। हमारी बुद्धि में जैसे 84 जन्मों की माला पड़ी हुई है। लक्ष्मी-नारायण के भी 84 जन्म जरूर दिखाने पड़े। रात को विचार सागर मंथन कर और ख्याल चलाना पड़ता है। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है। इसके लिए हम क्या लिखें? जीवनमुक्ति माना स्वर्ग में जाना। सो तो जब बाप स्वर्ग का रचयिता आये, उनके बच्चे बनें तब स्वर्ग के मालिक बनें। सतयुग है पुण्य आत्माओं की दुनिया। यह कलियुग है पाप आत्माओं की दुनिया। वह है निर्विकारी दुनिया। वहाँ माया रावण का राज्य ही नहीं है। भल वहाँ यह सारा ज्ञान नहीं रहता लेकिन हम आत्मा हैं, यह शरीर बूढ़ा हुआ, इसको अब छोड़ना है - यह तो ख्यालात रहते हैं ना। यहाँ तो आत्मा का भी ज्ञान कोई में नहीं है। बाप से जीवनमुक्ति का वर्सा मिलता है। तो याद भी उनको करना चाहिए ना। बाप फ़रमान करते हैं मनमनाभव। गीता में यह किसने कहा कि मनमनाभव? मुझे याद करो और विष्णुपुरी को याद करो - यह कौन कह सकता है? कृष्ण को तो पतित-पावन कह सकें। 84 जन्मों का राज़ भी कोई थोड़ेही जानते हैं। तो तुम्हें सबको समझाना चाहिए। तुम इन बातों को समझकर अपना और सबका कल्याण करो तो तुम्हारा मान बहुत होगा। निडर हो जहाँ-तहाँ फिरते रहो। तुम हो बहुत गुप्त। भल ड्रेस बदल कर सर्विस करो। चित्र सदैव पास में हो। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) मीठे बाप से पूरा योग लगाकर अति मीठा और देही-अभिमानी बनना है। विचार सागर मंथन कर पहले स्वयं धारणा करनी है फिर दूसरों को समझाना है।

 

2) अपनी अवस्था मजबूत बनानी है। निडर बनना है। मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस का शौक रखना है।

 

वरदान:-स्वराज्य की सत्ता द्वारा विश्व राज्य की सत्ता प्राप्त करने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव

 

जो इस समय स्वराज्य सत्ताधारी अर्थात् कर्मेन्द्रिय-जीत हैं वही विश्व की राज्य सत्ता प्राप्त करते हैं। स्वराज्य अधिकारी ही विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं। तो चेक करो मन-बुद्धि और संस्कार जो आत्मा की शक्तियां हैं, आत्मा इन तीनों की मालिक है? मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते हैं? कभी संस्कार अपनी तरफ खींच तो नहीं लेते हैं? स्वराज्य अधिकारी की स्थिति सदा मास्टर सर्वशक्तिमान है, जिसमें कोई भी शक्ति की कमी नहीं।

 

स्लोगन:-सर्व खजानों की चाबी - "मेरा बाबा'' साथ हो तो कोई भी आकर्षण आकर्षित कर नहीं सकती।

 

 

28/11/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban

Sweet children, you should have a great interest in doing the service of changing human beings into deities. However, in order to do this service, you need to have deep dharna yourselves.

 

Question:

 

How do souls become dirty? Which dirt are souls covered with?

 

Answer:

 

Souls become dirty by having remembrance of friends and relatives. The number one rubbish is body consciousness and then the rubbish of greed and attachment begins. Souls become covered with the dirt of the vices. Then they forget to have remembrance of the Father and are unable to do service.

 

Song:

 

My heart desires to call out to You. 

 

Om Shanti

 

This song is very good. Children guarantee: After listening to You I feel like sharing this knowledge with others. Some children do have remembrance and that is also essential. Some would have remembrance and would also have met Baba. It is said that a handful out of multimillions come and claim this inheritance. Your intellects have now become very broad and unlimited. The Father would surely have also come 5000 years ago to teach you Raja Yoga. First of all, you have to explain who spoke this knowledge because that is the biggest mistake. The Father has explained that the Gita, the jewel, the mother of all the scriptures, is the scripture of Bharat. It is just that people have forgotten who spoke the Gita, the jewel, the mother of all scriptures, and which religion was established through that. However, they definitely sing: O God, come! God definitely does come to create the new, pure world. He is the Father of the world, is He not? Devotees sing: When You come, we can receive happiness and peace. Happiness and peace are two things. In the golden age, there is definitely also happiness there, but all the rest of the souls are in the land of peace. This introduction has to be given. In the new world, there is New Bharat, the kingdom of Rama. There is happiness in that world and this is why there is praise of the kingdom of Rama. If that is called the kingdom of Rama, this has to be called the kingdom of Ravan because there is sorrow here. There is happiness there. The Father comes and gives happiness. Everyone else receives peace in the land of peace. The Father is the Bestower of peace and happiness. Here, there is peacelessness and sorrow. So, this knowledge should trickle into your intellects. A very good stage is needed for that. Even little children are taught this, but they cannot explain the meaning. This has to be imbibed very deeply so that if anyone asks you any questions, you can explain to them. A very good stage is needed. Otherwise, due to body consciousness or anger or attachment, you sometimes continue to fall. Some even write: Baba, today, I fell due to anger. Today, I fell due to greed. When your stage becomes strong, there will be no question of falling. There will be a lot of interest in doing the service of changing human beings into deities. The song is very good: Baba, when You come, we will become very happy. The Father definitely has to come, otherwise, who would make the impure world pure? Krishna is a bodily being. You cannot mention his name or the names of Brahma, Vishnu or Shankar for this. People sing: O Purifier, come! So you should ask them: To whom did you say this? Who is the Purifier and when will He come? That One is the Purifier, and, since you call Him, this world must surely be impure. The golden age is called the pure world. Who would make the impure world pure? It is mentioned in the Gita that God Himself truly taught Raja Yoga and enabled you to gain victory over those vices. Lust is the greatest enemy. You have to ask them: Who said that He will teach you Raja Yoga and that lust is the greatest enemy? Who said that He is omnipresent? In which scripture is this written? Of whom is it said that He is the Purifier? Is the Ganges the Purifier or is it someone else? Even Gandhiji used to say: O Purifier, come! The Ganges has always existed. It is not new. The Ganges would be called imperishable; it is just that the elements become tamoguni and so they cause mischief. They make it overflow and bring floods. They then change the direction of its flow. In the golden age, everything works regularly. There cannot be too little or too much rainfall. There is no question of sorrow there. So it should remain in your intellects that the Purifier is our Baba alone. When people remember the Purifier, they say, “Oh God!” “Oh Baba!” Who said this? Souls said it. You know that the Purifier, Shiv Baba, has come. You definitely have to insert the word ‘Incorporeal’. Otherwise, they believe the corporeal one to be this. Souls have become impure and so you cannot say that all are God. To say "I am Brahma" or "I am Shiva" is the same thing. However, the Master of creation is only the one Creator. People give various, very long and complicated meanings; ours is one of just a second. You receive the Father's inheritance in just a second. The Father's inheritance is the kingdom of heaven. That is called liberation-in-life. This is bondage-in-life. You have to explain: Truly, when You come, You will come to give us the inheritance of heaven, liberation and liberation-in-life. This is why it is written that the Bestower of Liberation and Liberation-in-life is the One. This also has to be explained. In the golden age, there is just the one original, eternal, deity religion. There is no name or trace of sorrow there. That is the land of happiness. It is the sun-dynasty kingdom there. Then, in the silver age, it is the moon-dynasty kingdom. Then, in the copper age, those of Islam and the Buddhists come. Each whole part is fixed. Such big parts are fixed in tiny point-like souls and the Supreme Soul. You also have to write in the picture of Shiva: I am not as big as a jyotilingam (oval-shaped light). I am like a star. Souls too are stars. It is remembered: A wonderful star sparkles in the centre of the forehead. So, that is a soul. I am the Supreme Father, the Supreme Soul. However, I am the Supreme, the Purifier. My virtues are distinct. Therefore, all the virtues also have to be written. On one side, write the praise of Shiva and on the other side, write the praise of Shri Krishna. They are opposite things; you have to write this very clearly so that people can read and understand it very clearly. Heaven and hell, happiness and sorrow; whether you call it the day and night of Krishna or the day and night of Brahma, it is the same thing. You know how happiness and sorrow continue. The sun dynasty has 16 celestial degrees and the moon dynasty has 14 degrees. One is completely satopradhan and the other is sato. Those of the sun dynasty then become part of the moon dynasty. When those of the sun dynasty go into the silver age, they definitely take birth in the moon-dynasty clan although they do claim a royal status. These things should be made to sit in your intellects very well. To the extent that you stay in remembrance and become soul conscious, accordingly, you will be able to imbibe. You will also do service very well. You would very clearly tell others: I sit like this, I imbibe like this, I explain in this way and I churn the ocean of knowledge in this way in order to explain to others. Your churning would continue all the time. It is a different matter for those who don't have knowledge; they won’t imbibe anything. If they imbibe knowledge, they have to do service. Service is now continuing to increase a great deal. Day by day, your praise will increase. So many people will then come to your exhibitions. So many pictures will have to be made. A very big marquee will have to be put up. In fact, solitude is needed to explain these things. Our main pictures are those of the tree, the cycle and this picture of Lakshmi and Narayan. People won't be able to understand as clearly from the picture of Radhe and Krishna who they are. At this time, you know that the Father is now making you pure like them. Not everyone will become complete to the same extent. Souls will become pure, but not everyone will imbibe knowledge. If someone doesn't imbibe knowledge, it is understood that he will claim a low status. Your intellects have now become so sharp. It is numberwise in every class. Some are clever and some are dull; this too is numberwise. If a good person is given someone who is third grade to explain knowledge to him, he would think that there is nothing here. This is why effort is made to find someone good at explaining to a good person. Not everyone will pass to the same extent. Baba has a limit. The result of this study is announced every cycle. There are eight main ones who pass, then 100, and then 16,000 and then the subjects. In that, too, there are the wealthy, the poor, all types. It is understood what type of effort each one makes at this time and what status he is worthy of receiving. A teacher would be aware of this. Teachers too are numberwise. Some teachers are good and everyone is pleased that they teach well and also give a lot of love. It would only be a good teacher who would make a small centre into a big centre. You have to do so much with your intellect. You have to become extremely sweet on the path of knowledge. Only when you have full yoga with the sweet Father will you become sweet and you will then also be able to imbibe. Many don't have yoga with such a sweet Baba. They don’t even understand that, while living at home with their family, they have to have full yoga with the Father. Storms of Maya will definitely come. Some would remember their old friends and relatives whereas others would remember something else. The remembrance of friends and relatives makes souls dirty. When there is rubbish in a soul, he becomes afraid. You mustn't be afraid here. Maya will do this. Rubbish will definitely fall on us. Rubbish is thrown in a fire at Holi. If we stay in remembrance of Baba, the rubbish doesn't remain. If you forget the Father, the number one rubbish of body consciousness will fall on you. Then, greed, attachment etc. will all come. You have to make effort for yourself and earn an income and then also make effort to make others the same as yourself. Very good service takes place at the centres. When they come here, they say that they will make arrangements to open centres but, as soon as they leave here, that finishes. Baba Himself tells them that they will forget all of these things. Here, you have to stay in the bhatti until you become worthy of explaining to others. The connection with Shiv Baba is the sweetest. It can be understood what type of service you do. You definitely do receive the reward of doing physical service. Many do a lot of hard work. However, there are the subjects. There are subjects in that study and also in this spiritual study. The number one subject is remembrance and then there is the study. All the rest is incognito. This drama has to be understood. No one knows that each age is 1250 years. For how long does the golden age continue? OK, which religion existed there? Who should have the maximum number of births here? Buddhists and those of Islam etc. will not take as many births. These things are not in the intellect of anyone. You should ask those who study the scriptures: What is it that you refer to as the Versions of God? The Gita is the jewel, the mother of all scriptures. In Bharat, there was first the deity religion. What is their scripture? Who spoke the Gita? They cannot be the versions of God Krishna. It is the task of God alone to carry out establishment and destruction. Krishna would not be called God. When did he come? In what form is he now? You definitely have to write the praise of Krishna opposite the praise of Shiv Baba. Shiva is the God of the Gita. Shri Krishna received his status through that. The 84 births of Shri Krishna are also shown. At the end, you also have to show the picture of adopted Brahma. It is as though we have a rosary of 84 births in our intellects. You also definitely have to show the 84 births of Lakshmi and Narayan. You have to churn the ocean of knowledge at night and think about these things further. Liberation-in-life is received in a second. What should we write for that? Liberation-in-life means to go to heaven. However, it is only when the Father, the Creator of heaven, comes that you become His children, because only then can you become the masters of heaven. The golden age is the world of pure and charitable souls. This iron age is the world of sinful souls. That is the viceless world; there is no kingdom of Maya, Ravan, there. Although we won't have any of this knowledge there, we will still have the thoughts: I am a soul and this body has now become old so I now have to shed it. Here, no one even has knowledge of souls. You receive the inheritance of liberation-in-life from the Father. So, you should also remember Him. The Father gives the order: Manmanabhav! Who said, “Manmanabhav” in the Gita? Who can say, “Remember Me and remember the land of Vishnu.”? Krishna cannot be called the Purifier. No one knows the secrets of 84 births. So, you should explain this to everyone. Understand these things and bring benefit to yourselves and to others and you will receive a lot of regard. Be fearless and continue to go here and there. You are very incognito. You can change your dress and go and do service. You should always have the pictures with you. Achcha.

 

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

 

Essence for Dharna:

 

1. Have full yoga with the sweet Father and become extremely sweet and soul conscious. Churn the ocean of knowledge, first imbibe it yourself and then explain to others.

 

2. Make your stage strong. Be fearless. Have an interest in doing the service of changing human beings into deities.

 

Blessing:May you be a master almighty authority and with the authority of self-sovereignty attain the authority of the kingdom of the world.

 [font=Calibri]Those who have the authority of self-sovereignty at this time, that is, who are conquerors of their senses can attain the authority of the kingdom of the world. Only those who have a right to self-sovereignty can become those who have a right to the kingdom of the world. So, check: Is the soul a master of the mind, intellect and sanskars, which are the powers of the soul? Does your mind control you or do you control your mind? Do your sanskars sometimes pull you? The stage of one with a right to self-sovereignty is constantly a master almighty authority, who lacks none of the powers.[/font]

Slogan:When you have the key to all treasures of, “My Baba”, with you, no attraction can then attract you.

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