Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 27-Nov-2018 )
27-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान मुरलीधर जरूर बनना है, मुरलीधर बच्चे ही बाप के मददगार हैं, बाप उन पर ही राज़ी होता है"
प्रश्नः-
किन बच्चों की बुद्धि बहुत-बहुत निर्मान हो जाती है?
उत्तर:-
जो अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर सच्चे फ्लैन्थ्रोफिस्ट बनते हैं, होशियार सेल्समैन बन जाते हैं उनकी बुद्धि बहुत-बहुत निर्मान हो जाती है। सर्विस करते-करते बुद्धि रिफाइन हो जाती है। दान करने में कभी भी अभिमान नहीं आना चाहिए। हमेशा बुद्धि में रहे कि शिवबाबा का दिया हुआ दे रहे हैं। शिवबाबा की याद रहने से कल्याण हो जायेगा।
गीत:-
तुम्हीं हो माता........
ओम् शान्ति।
सिर्फ मात-पिता वाला गीत सुनाने से नाम सिद्ध नहीं होता है। पहले शिवाए नम: का गीत सुनकर फिर मात-पिता वाला सुनाने से नॉलेज का पता पड़ता है। मनुष्य तो मन्दिरों में जाते हैं, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जायेंगे, कृष्ण के मन्दिर में जायेंगे, सबके आगे तुम मात-पिता........ कह देते हैं, बिगर अर्थ। पहले शिवाए नम: वाला गीत सुनाए फिर मात-पिता वाला सुनाने से महिमा का पता पड़ता है। नया कोई भी आये तो यह गीत अच्छे हैं। समझाने में सहज होता है। बाप का नाम ही है शिव, ऐसे तो नहीं कहेंगे शिव सर्वव्यापी है। फिर तो सबकी महिमा एक हो जाए। उनका नाम ही है शिव। दूसरा कोई अपने पर शिवाए नम: नाम रखा न सके। उनकी मत और गत सब मनुष्य मात्र से न्यारी है। देवताओं से भी न्यारी है। यह नॉलेज सिखलाने वाला मात-पिता ही है। सन्यासियों में तो माता है नहीं इसलिए वह राजयोग सिखला न सकें। शिवाए नम: तो कोई को भी कह नहीं सकते। देहधारी को शिवाए नम: थोड़ेही कहेंगे। यह समझाने का है। परन्तु तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं। कहाँ अच्छे-अच्छे बच्चे भी प्वाइन्ट्स मिस कर देते हैं। मियां मिट्ठू तो अपने को बहुत समझते हैं। इसमें दिल की सफाई चाहिए। हर बात में सच बोलना, सच होकर रहना है - टाइम लगता है। देह-अभिमान में आने से फिर फैमिलियरटी आदि सब बातें आ जाती हैं। अभी ऐसे कोई कह नहीं सकता कि हम देही-अभिमानी हैं, फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जाए। नम्बरवार हैं। कोई तो बहुत कपूत बच्चे हैं। मालूम पड़ जाता है, कौन बाबा की सर्विस करते हैं। जब शिवबाबा की दिल पर चढ़ें तब रुद्र माला के नजदीक हों और तख्त के लायक बनें। लौकिक बाप की दिल पर भी सपूत बच्चे ही चढ़ते हैं, जो बाप के साथ मददगार बन जाते हैं। यह भी बेहद के बाप का अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन्धा है। तो धन्धे में मदद देने वाले पर बाप भी राज़ी रहेगा। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर और धारण कराने हैं। कोई समझते हैं हमने इन्श्योर किया है। उसका तो तुमको मिल जायेगा। यहाँ तो बहुतों को दान करना है, बाप मुआफिक अविनाशी ज्ञान रत्नों का फ्लैन्थ्रोफिस्ट बनना है। बाप आते ही हैं ज्ञान रत्नों से झोली भरने, धन की बात नहीं। बाप को सपूत बच्चे ही पसन्द होते हैं। व्यापार करना नहीं जानते तो वह मुरलीधर, सौदागर का बच्चा कहला कैसे सकते? लज्जा आनी चाहिए, मैं धन्धा तो करता नहीं हूँ। सेल्समैन जब होशियार देखा जाता है तो फिर उनको भागीदार बनाया जाता है। ऐसे ही थोड़ेही भागीदारी मिल जाती है। इस धन्धे में लग जाने से फिर बहुत निर्मान बुद्धि हो जाती है। सर्विस करते-करते बुद्धि रिफाइन होती है। बाबा-मम्मा अपना अनुभव सुनाते हैं। बाबा है सिखलाने वाला, यह तो जानते हो यह बाबा अच्छी धारणा कर अच्छी मुरली सुनाते हैं। अच्छा, समझो इसमें शिवबाबा है, वह तो है ही मुरलीधर परन्तु यह बाबा भी तो जानता है ना। नहीं तो इतना पद कैसे पाते? बाबा ने समझाया है कि हमेशा समझो शिवबाबा सुनाते हैं। शिवबाबा की याद रहने से तुम्हारा भी कल्याण हो जायेगा। इनमें तो शिवबाबा आते हैं। वह मम्मा अलग बोलती है, मम्मा की हैंसियत में। उनका नाम बाला करना है क्योंकि फीमेल को लिफ्ट दी जाती है। कहते हैं ना जैसी है, वैसी है, मेरी है, सम्भालना ही है। पुरुष लोग ही ऐसे कहते हैं। स्त्री ऐसे नहीं कहती, जैसे हैं, वैसे हैं........। बाप भी कहते बच्चे जैसे हो, वैसे हो, सम्भालना ही है। नाम भी बाला बाप का ही होता है। यहाँ बाप का नाम तो बाला है ही। फिर शक्तियों का नाम बाला होता है। उन्हों को सर्विस का अच्छा चांस मिलता है। दिन-प्रतिदिन सर्विस बहुत सहज हो जानी है। ज्ञान और भक्ति, दिन और रात, सतयुग-त्रेता दिन, वहाँ है सुख, द्वापर-कलियुग है रात, दु:ख। सतयुग में भक्ति होती नहीं। कितना सहज है। परन्तु तकदीर में नहीं है तो धारणा नहीं कर सकते। प्वाइन्ट्स तो बहुत सहज मिलती हैं। मित्र-सम्बन्धियों के पास जाकरके समझाओ, अपने घर को उठाओ। तुम तो गृहस्थ व्यवहार में रहने वाले हो, तो बहुत सहज रीति से कोई को भी समझा सकते हो। सद्गति दाता तो एक ही पारलौकिक बाप है। वही शिक्षक भी है, सद्गुरू भी है। बाकी सब बरोबर दुर्गति करते आये हैं, द्वापर से लेकर। भ्रष्टाचारी, पाप आत्मायें कलियुग में हैं। सतयुग में पाप आत्मा का नाम नहीं, यहाँ ही अजामिल, गणिकायें, अहिल्यायें, पाप आत्मायें हैं। आधाकल्प स्वर्ग कहा जाता है। फिर भक्ति शुरू होती है तो गिरना शुरू हो जाता है। गिरना भी है जरूर। सूर्यवंशी गिरकर चन्द्रवंशी बनते हैं। फिर गिरते ही आयेंगे। द्वापर से सब गिराने वाले ही मिलते आये हैं। यह भी तुम अभी जानते हो। दिन-प्रतिदिन तुम्हारे में ताकत आती जायेगी। साधुओं आदि को समझाने के लिए भी युक्तियाँ निकालते रहते हैं। आखरीन समझेंगे जरूर कि बरोबर परमपिता परमात्मा सर्वव्यापी कैसे हो सकता है? समझाने लिए प्वाइन्ट्स बहुत हैं। भक्ति पहले अव्यभिचारी फिर व्यभिचारी बनती है। कलायें कम होती हैं। अभी कोई कला नहीं रही है। झाड़ व गोले में भी दिखाया है कि कलायें कैसे कम होती हैं? मोस्ट इज़ी है समझाना, परन्तु तकदीर में नहीं है तो समझा नहीं सकते। देही-अभिमानी बनते नहीं हैं। पुरानी देह में अटके रहते हैं। बाप कहते हैं - इस पुरानी देह से ममत्व तोड़ अपने का आत्मा समझो। देही-अभिमानी नहीं बनेंगे तो पद भी ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। स्टूडेन्ट ऐसे थोड़ेही चाहेंगे कि लास्ट में बैठे रहें। मित्र-सम्बन्धी, टीचर, स्टूडेन्ट आदि सब समझ जायेंगे, इनका पढ़ाई में ध्यान नहीं है। यहाँ भी समझते हैं श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो फिर यही हाल होगा। कौन प्रजा बनेंगे, कौन दास दासी, सब समझ जाते हैं। बाप समझाते हैं अपने मित्र-सम्बन्धियों का कल्याण करो। यह कायदा होता है। घर में बड़ा भाई होता है तो छोटे भाई को मदद देना उनका फ़र्ज है - इसको कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। बाप कहते हैं धन दिये धन ना खुटे........ धन देंगे नहीं तो मिलेगा भी नहीं, पद पा नहीं सकेंगे। चांस बहुत अच्छा मिलता है। रहमदिल बनना है। तुम सन्यासियों, साधुओं पर भी रहमदिल बनते हो। कहते हो आकर समझो। तुम अपने पारलौकिक बाप को नहीं जानते हो, जो बाप भारत को हर कल्प सदा सुख का वर्सा देते हैं। कोई भी जानते नहीं। कहते हैं ऑफीसर्स भी भ्रष्टाचारी हैं, तो फिर श्रेष्ठाचारी कौन बनायेंगे?
आजकल तो साधू समाज का बड़ा मान है। तुम लिखते हो - बाप इन सब पर भी रहम करते हैं, तो वह वन्डर खायेंगे। आगे चल तुम्हारा नाम बाला होगा। तुम्हारे पास बहुत आते रहेंगे। प्रदर्शनी भी होती रहेगी। आखरीन कोई जागेंगे जरूर। सन्यासी लोग भी जागेंगे। जायेंगे कहाँ, एक ही हट्टी है। बड़ी इप्रूवमेंट होती रहेगी। अच्छे-अच्छे चित्र निकलेंगे समझाने के लिए, जो कोई भी आकर पढ़े। जब भंभोर को आग लगेगी तब मनुष्य जागेंगे, परन्तु टू लेट। बच्चों के लिए भी ऐसा है। पिछाड़ी में कितना दौड़ सकेंगे। रेस में भी कोई पहले आहिस्ते-आहिस्ते दौड़ते हैं। विन की प्राइज थोड़ों को ही मिलती है। यह तुम्हारी भी घुड़दौड़ है। रूहानी यात्रा की दौड़ी पहनाने के लिए भी ज्ञानी तू आत्मा चाहिए। बाप को याद करो, यह भी ज्ञान है ना। यह ज्ञान और किसको नहीं है। ज्ञान से मनुष्य हीरे जैसे बनते हैं। अज्ञान से कौड़ी जैसे बनते हैं। बाप आकर सतोप्रधान प्रालब्ध बनाते हैं। फिर वह थोड़ी-थोड़ी होकर कमती होती जाती है। यह सब प्वाइन्ट्स धारण कर एक्ट में आना है। तुम बच्चों को महादानी बनना है। भारत को महादानी कहते हैं क्योंकि यहाँ ही तुम बाप के आगे तन-मन-धन सब अर्पण करते हो। तो बाप भी फिर सब कुछ अर्पण कर देते हैं। भारत में बहुत ही महादानी हैं। बाकी मनुष्य सब अन्धश्रधा में फँसे हुए रहते हैं। यहाँ तो तुम ईश्वर की शरणागति में आये हो। रावण से दु:खी हो आकर राम की एशलम ली है। तुम सब शोक वाटिका में थे। अब फिर अशोक वाटिका में अर्थात् स्वर्ग में चलना है। स्वर्ग स्थापन करने वाले बाप की शरणागति ली है। कोई तो छोटेपन में ही जबरदस्ती आ गये हैं, तो उन्हों को यहाँ शरणागति में सुख नहीं आता। तकदीर में नहीं है, उन्हों को माया रावण की शरण चाहिए। ईश्वर की शरणागति से निकल कर माया की शरण में जाना चाहते हैं। आश्चर्य की बात है ना।
यह शिवाए नम: वाला गीत अच्छा है। तुम बजा सकते हो। मनुष्य तो इसका अर्थ समझ न सकें। तुम कहेंगे हम श्रीमत पर यथार्थ अर्थ समझा सकते हैं। वह तो गुड़ियों का खेल करते हैं। ड्रामा अनुसार इन गीतों की भी मदद मिलती है। बाप का बनकर और सर्विसएबुल न बना तो दिल पर कैसे चढ़ सकते हैं। कई बच्चे कपूत बन पड़ते हैं तो कितना न दु:ख देते हैं। यहाँ तो अम्मा मरे तो हलुआ खाओ, बीबी मरे तो भी हलुआ खाओ, रोयेंगे पीटेंगे नहीं। ड्रामा पर मजबूत रहना चाहिए। मम्मा-बाबा भी जायेंगे, अनन्य बच्चे भी एडवान्स में जायेंगे। पार्ट तो बजाना ही है। इसमें फिक्र की क्या बात है? साक्षी होकर हम खेल देखते हैं। अवस्था सदैव हर्षित रहनी चाहिए। बाबा को भी ख्यालात आते हैं, लॉ कहता है आयेंगे जरूर। ऐसे नहीं कि मम्मा-बाबा कोई परिपूर्ण हो गये हैं। परिपूर्ण अवस्था अन्त में होगी। इस समय कोई भी अपने को परिपूर्ण कह न सके। यह नुकसान हुआ, कोई खिटपिट हुई, अखबार में बी.के. के लिए हाहाकार हुआ, यह सब भी कल्प पहले हुआ था। फिक्र की क्या बात, 100 परसेन्ट अवस्था अन्त में होनी है। बाप की दिल पर तब चढ़ेंगे जब रहमदिल बनेंगे, आपसमान बनायेंगे। इन्श्योर किया वह बात अलग है। वह तो अपने लिए ही करते हैं। यह तो ज्ञान रत्नों का दान औरों को देना है। बाप को पूरा याद नहीं करेंगे तो विकर्मों का बोझा जो सिर पर है, वह खुल पड़ेगा। प्रदर्शनी में भी समझाने वाले लायक चाहिए। होशियार बनना चाहिए। मजा आता है रात को याद करने में। इस रूहानी साजन को फिर प्रभात में याद करना है। बाबा आप कितने मीठे हो, क्या से क्या बना रहे हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दिल से सदा सच्चा रहना है। सच बोलना है, सच होकर चलना है। देह-अभिमान के वश स्वयं को मियां मिट्ठू नहीं समझना है। अहंकार में नहीं आना है।
2) साक्षी होकर खेल देखना है। ड्रामा पर मजबूत रहना है। किसी भी बात का फिक्र नहीं करना है। अवस्था सदा हर्षित रखनी है।
वरदान:-वायदों की स्मृति द्वारा फ़ायदा उठाने वाले सदा बाप की ब्लैसिंग के पात्र भव
जो भी वायदे मन से, बोल से अथवा लिखकर करते हो, उन्हें स्मृति में रखो तो वायदे का पूरा फायदा उठा सकते हो। चेक करो कि कितने बार वायदा किया है और कितना निभाया है! वायदा और फ़ायदा - इन दोनों का बैलेन्स रहे तो वरदाता बाप द्वारा ब्लैसिंग मिलती रहेगी। जैसे संकल्प श्रेष्ठ करते हो ऐसे कर्म भी श्रेष्ठ हों तो सफलता मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:-स्वयं को ऐसा दिव्य आइना बनाओ जिसमें बाप ही दिखाई दे तब कहेंगे सच्ची सेवा।
27/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have to become murlidhars (flute-players) like the Father. Only murlidhar children become the Father’s helpers. The Father is pleased with such children.
Question:
Which children’s intellects become very humble?
Answer:
The intellects of those who donate the imperishable jewels of knowledge and become true philanthropists and those who become clever salesmen become very humble and very refined by doing service. You should never have any arrogance when making a donation. You should always remain aware that you are giving that which Shiv Baba has given you. There is benefit in staying in remembrance of Shiv Baba.
Song:
You are the Mother and the Father.
Om Shanti
His name is not proved by simply playing the song, “You are the Mother and Father”. If you first play the song, “Salutations to Shiva” and then “You are the Mother and Father”, they would come to know the knowledge. People go to temples. When they go to a Lakshmi and Narayan Temple or a Krishna Temple, they go in front of the idols of the deities and, without understanding anything, they say: “You are the Mother and Father”. So, if you first play the song, “Salutations to Shiva” and then “You are the Mother and Father”, they can come to know His praise. These songs are good for newcomers. They make it easy to explain to them. The Father’s name is Shiva. It cannot be said that Shiva is omnipresent. Otherwise, everyone’s praise would then be the same. His very name is Shiva. No one else can give himself the name Shiva. His ways and means are unique. They are completely different from those of all human beings including the deities. Only the Mother and Father can teach this knowledge. There are no mothers among the sannyasis; this is why they (sannyasis) are not able to teach Raja Yoga. They cannot say “Salutations to Shiva” to anyone. You cannot say “Salutations to Shiva” referring to a bodily being. All of this has to be explained, but you children are all numberwise. Sometimes, even good children miss some points. They consider themselves to be very clever. There has to be cleanliness in the heart in this. It takes time to speak the truth about everything and to remain true in everything. By your coming into body consciousness, there is familiarity etc. and many other aspects are included in that. As yet, none of you can say that you have become soul conscious, otherwise you would have attained your karmateet stage. All are numberwise. Some children are very unworthy. It is understood who is doing Baba’s service. Only when they climb onto Shiv Baba’s heart throne can they come close in the rosary of Rudra and also become worthy of sitting on a throne. It is also the worthy children, those who become his helpers, who climb onto their physical father’s heart-throne. This is the unlimited Father’s business of the imperishable jewels of knowledge. So the Father would also be pleased with those who help Him in His business. You have to imbibe the imperishable jewels of knowledge and also inspire others to imbibe them. Some people think that they have insured themselves, that they will receive the reward of that. Here, you have to donate to many. Become philanthropists like the Father by donating the imperishable jewels of knowledge. The Father comes to fill your aprons with the jewels of knowledge. It isn’t a question of wealth. The Father only likes worthy children. If you don’t know how to do this business, how could you be called the children of Murlidhar, the Businessman? You should be ashamed of yourselves if you don’t do any business. When a businessman sees that a salesman is clever, he offers him a partnership. You cannot receive a partnership just like that. By doing this business, your intellects become very humble. By doing service your intellects become very refined. Baba and Mama relate their experience. Baba is the One who teaches you. You know that this Baba imbibes knowledge very well and also conducts the murli very well. Achcha, Shiv Baba is in this one, He is Murlidhar anyway, but this Baba also knows everything. Otherwise, how else would he claim such a high status? Baba has explained that you must always consider it to be Shiv Baba who speaks this knowledge. By remembering Shiv Baba, there is benefit for you. Shiv Baba comes in this one. Mama speaks separately, in the personality of Mama. Her name has to be glorified because females have to be given a lift. It is said: Whatever she is, she is mine and so I have to look after her. It is the husbands who say this. A wife would not say: “Whatever he is, he is mine.” The Father says: Whatever you children are, you are Mine and so I have to look after you. It is the Father’s name that is glorified. Here, the Father’s name is glorified anyway, and then the names of the Shaktis have to be glorified. They receive a very good chance to do service. Day by day, service will become very easy. There is knowledge and devotion, day and night. The golden and silver ages are the day of happiness; the copper and iron ages are the night of sorrow. There is no devotion in the golden age. It is very easy, but if it is not in your fortune, you are not able to imbibe it. You receive very easy points. Go and explain these to your friends and relatives. Uplift your home. You are the ones who live at home with your families and so you can explain these aspects very easily to them. Only the one parlokik Father is the Bestower of Salvation. He is also the Teacher and the Satguru. All the rest, from the copper age onwards, have been bringing everyone down into degradation. Degraded and sinful souls exist in the iron age. There is no mention of sinful souls in the golden age. It is now that hunchbacks and those with stone intellects and sinful souls such as Ajamil exist. For half a cycle it is called heaven and then devotion begins and your stage of descent begins. You definitely have to fall. From being those of the sun dynasty, you fall and become those of the moon dynasty. Then you continue to fall. Everyone you meet from the copper age onwards brings you down. Only now do you know this. Day by day, you will continue to gain strength. You also have to invent ways of explaining to the sages and holy men. Ultimately, they will definitely understand why the Supreme Father, the Supreme Soul, cannot be omnipresent. There are many points you can use to explain. At first, devotion is unadulterated and then it becomes adulterated; the degrees start to decrease. Now there are no degrees left. It has also been shown in the pictures of the tree and the cycle how the celestial degrees decrease. These are most easy to explain. However, if it is not in your fortune, you are not able to explain them. You do not become soul conscious. You remain trapped in your old bodies. The Father says: Remove all your attachment from your old bodies and consider yourselves to be souls. If you do not become soul conscious you will not be able to claim a high status. A student would not want to remain last all the time. All his friends and relatives, his teacher and fellow students would understand that he does not pay attention to his studies. Here, too, it is understood when someone doesn’t follow shrimat what his condition would be. Everyone can understand who will become subjects and who will become maids and servants. The Father explains: Bring benefit to your friends and relatives. This is a law. When there is an older brother in a home, it is his duty to help the younger one. This is what is meant by “Charity begins at home”. The Father says: Your wealth will not be reduced by donating it. If you don’t donate wealth, you will not receive wealth and you won’t be able to claim a high status. You receive a very good chance. You have to become merciful. You also have to become merciful towards the sannyasis and sages. Say to them: Come and understand. You don’t know your parlokik Father, the One who gives the people of Bharat their inheritance of constant happiness every cycle. No one knows this. People say that even government officers are corrupt, and so who can make them elevated? Nowadays, there is a great deal of regard for the community of sages. When you write to them that the Father has mercy for even them (sages and holy men), they will be amazed. As you go further, your name will be glorified. Many will continue to come to you and there will be many exhibitions. Ultimately, some will definitely wake up. Even sannyasis will wake up. Where else would they go? There is only the one shop. A great deal of improvement will continue to take place. Many good pictures will be made for you to explain, so that anyone can come and study. When the haystack is set ablaze, people will wake up, but it will be too late. The same applies to the children. How far could you run at the end? Even in a race, some run slowly at first. Only a few win a prize. This is also your horse race. Knowledgeable souls are needed to run in this race of the spiritual pilgrimage. To remember the Father is also knowledge, is it not? No one else has this knowledge. It is by having knowledge that human beings become like diamonds and that through their ignorance they become like shells. The Father comes to create your satopradhan reward. Later, this reward will gradually decrease. You should imbibe all of these points and then act. You children have to become great donors. Bharat is called a great donor, because it is here that you surrender your bodies, minds and wealth to the Father. Then the Father also surrenders everything to you. There are many great donors in Bharat. All the rest of human beings are trapped in blind faith. You have come here into God’s asylum. Ravan made you unhappy and so you have taken asylum with Rama (God). All of you were in the cottage of sorrow. You are now to go to the cottage free from sorrow, that is, to heaven. You have taken asylum with the Father who is the Creator of heaven. Some were brought by force in their childhood. They do not experience any happiness in this refuge; it is not in their fortune. They want to take refuge with Maya, Ravan. It is a great wonder that they want to leave God’s asylum and go into the lap of Maya, Ravan. The song “Salutations to Shiva” is very good. You can play this. People don’t understand its meaning. You can say that you can explain its accurate meaning according to shrimat. They simply continue to play with dolls. According to the drama, you also receive help from these songs. If you belong to the Father but don’t become serviceable, how can you sit on His heart throne? Some children become unworthy and cause so much sorrow. Here, if your mother dies, eat halva. Even if your wife dies, eat halva. You would not weep and wail. You have to remain firm on the drama. Mama and Baba will go and the very special children will also go in advance. Each one has to play his part. What is there to worry about? We observe the play as detached observers. Your stage should always remain cheerful. Even Baba has thoughts of concern. The law says that they will definitely come. It is not that Mama and Baba have become complete. The complete stage will come at the end. At present, no one can call himself complete. There was this loss, there was conflict, there were rumours about BKs in the newspapers. All of that also happened a cycle ago. So, what is there to worry about? You will attain your 100% stage at the end. You will be able to climb onto the Father’s heart throne when you become merciful and make others become like yourself. If you insure yourself, that’s a different matter; you do that for yourself. You have to give the donation of these jewels of knowledge to others. If you do not remember the Father fully, the burden of sin on your head will increase. Worthy ones are needed in order to explain at the exhibitions. They have to be clever. There is great pleasure in having remembrance at night. You have to remember that spiritual Bridegroom in the early hours of the morning. Baba, You are so sweet! Just see what I was and what You are making me! Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Keep your heart constantly true. Always speak the truth and remain constantly true in everything. Do not become body conscious and consider yourself to be very clever. Never become arrogant.
2. Become a detached observer and observe the play. Remain firm on the drama. Never worry about anything. Keep your stage constantly cheerful.
Blessing:May you take benefit from remaining aware of your promises and be constantly worthy of receiving blessings.
[font=Calibri]Whatever promises you make in your mind, words or writing keep them in your awareness and you will be able to take full benefit of those promises. Check how many times you made a promise and how much you fulfilled it. Let there be a balance of both the promises and their benefit and you will continue to receive blessings from the Father, the Bestower of Blessings. Just as you have elevated thoughts, similarly, let your deeds also be elevated and you will become an embodiment of success.[/font]
Slogan:Make yourself into such a divine mirror that only the Father is visible and that will then be called true service.
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