Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-12-21 03:04:09
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
A |
Article Rating
|
Participate in Rating,
See Result
|
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- ) |
B | Quiz( Create, Edit, Delete ) |
Participate in Quiz,
See Result
|
Created/ Edited Time:- 19-12-2018 02:03:55 |
C | Survey( Create, Edit, Delete) | Participate in Survey, See Result | Created Time:- |
D |
Page No | Photo | Page Name | Count of Characters | Date of Last Creation/Edit |
---|---|---|---|---|
1 | Murali 1st Nov 2018 | 107807 | 2018-12-19 02:03:55 | |
2 | Murali 02-Nov-2018 | 132943 | 2018-12-19 02:03:55 | |
3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
16 | Murali 16-Nov-2018 | 118921 | 2018-12-19 02:03:55 | |
17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
22 | Murali 22-Nov-2018 | 124513 | 2018-12-19 02:03:56 | |
23 | Murali 23-Nov-2018 | 114180 | 2018-12-19 02:03:56 | |
24 | Murali 24-Nov-2018 | 127754 | 2018-12-19 02:03:56 | |
25 | Murali 25-Nov-2018 | 119742 | 2018-12-19 02:03:56 | |
26 | Murali 26-Nov-2018 | 128983 | 2018-12-19 02:03:56 | |
27 | Murali 27-Nov-2018 | 118467 | 2018-12-19 02:03:56 | |
28 | Murali 28-Nov-2018 | 132336 | 2018-12-19 02:03:56 | |
29 | Murali 29-Nov-2018 | 119739 | 2018-12-19 02:03:56 | |
30 | Murali 30- Nov 2018 | 133585 | 2018-12-19 02:03:56 |
Rating for Article:– Prajapita Brahma kumaris Murali - Nov - 2018 ( UID: 181218144032 )
Rating Module ( How to get good rate? See Tips )
If an article has achieved following standard than it is accepted as a good article to promote. Article Grade will be automatically promoted to A grade. (1) Count of characters: >= 2500
(2) Writing Originality Grand total score: >= 75%
(3) Grand Total score: >= 75%
(4) Count of raters: >= 5 (including all group member (mandatory) of specific group)
(5) Language of Article = English
(6) Posted/ Edited date of Article <= 15 Days
(7) Article Heading score: >=50%
(8) Article Information Score: >50%
If the article scored above rate than A grade and also if it belongs to any of the below category of article than it is specially to made Dotted underlined "A Grade". This Article Will be chosen for Web Award.
Category of Article: Finance & banking, Insurance, Technology, Appliance, Vehicle related, Gadgets, software, IT, Income, Earning, Trading, Sale & purchase, Affiliate, Marketing, Medicine, Pharmaceuticals, Hospital, Money, Fashion, Electronics & Electricals, Jobs & Job work, Real estate, Rent Related, Advertising, Travel, Matrimonial, Marriage, Doctor, Food & beverages, Dining, Furniture & assets, Jewellery, ornaments, Gold, Diamond, Silver, Computer, Men Wear, Women’s wear, Dress, style, movie, film, entertainment.
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN | Name Parameters For Grading | Achievement (Score) | Minimum Limit for A grade | Calculation of Mark |
---|---|---|---|---|
1 | Count of Raters ( Auto Calculated ) | 0 | 5 | 0 |
2 | Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) | 3768939 | 2500 | 1 |
3 | Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) | 2164 | 15 | 0 |
4 | Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 40% | 0 |
5 | Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 60% | 0 |
6 | Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 50% | 0 |
7 | Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 55% | 0 |
Grand Total Score & Article Grade | --- |
SI | Score Rated by Viewers | Rating given by (0) Users |
---|---|---|
(a) | Topic Information:- | NAN% |
(b) | Writing Skill:- | NAN% |
(c) | Grammer:- | NAN% |
(d) | Vocabulary Strength:- | NAN% |
(e) | Choice of Photo:- | NAN% |
(f) | Choice of Topic Heading:- | NAN% |
(g) | Keyword or summary:- | NAN% |
(h) | Material copied - Originality:- | NAN% |
Your Total Rating & % | NAN% |
Show/ Hide Rating Result
Details ( Page:- Murali 26-Nov-2018 )
26-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - देह-अभिमान में आने से ही माया की चमाट लगती है, देही-अभिमानी रहो तो बाप की हर श्रीमत का पालन कर सकेंगे''
प्रश्नः-
बाप के पास दो प्रकार के पुरुषार्थी बच्चे हैं, वह कौन से?
उत्तर:-
एक बच्चे हैं जो बाप से वर्सा लेने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करते हैं, हर क़दम पर बाप की राय लेते हैं। दूसरे फिर ऐसे भी बच्चे हैं जो बाप को फ़ारकती देने का पुरुषार्थ करते हैं। कोई हैं जो दु:ख से छूटने के लिए बाप को बहुत-बहुत याद करते हैं, कोई फिर दु:ख में फँसना चाहते हैं, यह भी वन्डर है ना।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत तो बहुत बार सुना है। नये बच्चे फिर नयेसिर सुनते होंगे जबकि बाप आते हैं तो आकर अपना परिचय देते हैं। बच्चों को परिचय मिला हुआ है। जानते हैं अभी हम बेहद के मात-पिता की सन्तान बने हैं। जरूर मनुष्य सृष्टि का रचयिता मात-पिता होगा। परन्तु माया ने मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल डेड कर दी है। इतनी साधारण बात बुद्धि में नहीं बैठती। कहते तो सभी हैं कि हमको भगवान् ने पैदा किया है। तो जरूर मात-पिता होंगे! भक्ति मार्ग में याद भी करते हैं। हर धर्म वाले गॉड फादर को जरूर याद करते हैं। भक्त खुद तो भगवान् हो नहीं सकते। भक्त भगवान् की बन्दगी (साधना) करते हैं। गॉड फादर तो जरूर सबका एक ही होगा अर्थात् सभी आत्माओं का फादर एक है। सभी जिस्मों का फादर एक हो नहीं सकता। वह तो अनेक फादर हैं। वह जिस्मानी फादर होते हुए भी ‘हे ईश्वर' कहकर याद करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं - मनुष्य बेसमझ हैं जो बाप का परिचय ही भूल जाते हैं। तुम जानते हो स्वर्ग का रचयिता जरूर एक ही बाप है। अभी कलियुग है। जरूर कलियुग का विनाश होगा। ‘प्राय:लोप' अक्षर तो हर बात में आता है। बच्चे जानते हैं - सतयुग अभी प्राय:लोप है। अच्छा, फिर प्रश्न उठता है सतयुग में उन्हों को यह पता होगा कि यह सतयुग प्राय:लोप हो जायेगा फिर त्रेता होगा? नहीं, वहाँ तो इस नॉलेज की दरकार ही नहीं। यह बातें किसकी भी बुद्धि में नहीं हैं - सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, हमारा पारलौकिक बाप कौन है? यह तुम बच्चे ही जानते हो। मनुष्य गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे........ परन्तु जानते नहीं। तो कहना भी न कहने के बराबर हो जाता है। बाप को भूल गये हैं इसलिए आरफन बन पड़े हैं। बाप हर बात समझाते हैं। श्रीमत पर क़दम-क़दम चलो। नहीं तो कोई समय माया बड़ा धोखा देगी। माया है ही धोखेबाज़। माया से लिबरेट करना - यह बाप का ही काम है। रावण तो है ही दु:ख देने वाला। बाप है सुख देने वाला। मनुष्य इन बातों को समझ नहीं सकते। वह तो समझते हैं दु:ख सुख भगवान् ही देते हैं। बाप समझाते हैं - मनुष्य दु:खी बनने के लिए शादियों में कितना खर्चा करते हैं! जो पवित्र पौधे हैं उनको अपवित्र बनाने का पुरुषार्थ किया जाता है। यह भी तुम समझ सकते हो, दुनिया नहीं समझती। यह विषय सागर में डूबने लिए कितनी सेरीमनी करते हैं। उन्हों को यह पता नहीं है कि सतयुग में यह विष (विकार) होता नहीं। वह है ही क्षीरसागर। इसको विषय सागर कहा जाता है। वह है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। भल त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं, तो भी उनको निर्विकारी दुनिया कहा जाता है। वहाँ विकार हो नहीं सकते क्योंकि रावण का राज्य द्वापर से ही शुरू होता है। आधा-आधा है ना। ज्ञान सागर और अज्ञान सागर। अज्ञान का भी सागर है ना।
मनुष्य कितने अज्ञानी हैं। बाप को भी नहीं जानते। सिर्फ कहते रहते हैं कि यह करने से भगवान मिलेगा। मिलता कुछ भी नहीं। माथा मारते-मारते दु:खी, निधनके बन जाते हैं तब ही फिर मैं धनी आता हूँ। धनी बिगर माया अजगर ने सबको खा लिया है। बाप समझाते हैं माया बड़ी दुश्तर है। बहुतों को धोखा मिलता है। कोई को काम की चमाट, कोई को मोह की चमाट लग जाती है। देह-अभिमान में आने से ही चमाट लगती है। मेहनत है ही देही-अभिमानी बनने में इसलिए बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं सावधान, मनमनाभव। बाप को याद नहीं करेंगे तो माया थप्पड़ लगा देगी इसलिए निरन्तर याद करने का अभ्यास करो। नहीं तो माया उल्टा कर्तव्य करा देगी। रांग-राइट की बुद्धि तो मिली ही है। कहाँ भी मूंझो तो बाप से पूछो। तार में, चिट्ठी में अथवा फोन पर पूछ सकते हो। फोन सवेरे-सवेरे झट मिल सकता है क्योंकि उस समय सिवाए तुम्हारे बाकी सब सोये रहते हैं। तो फोन पर तुम पूछ सकते हो। दिन-प्रतिदिन फोन आदि की आवाज भी सुधारते रहते हैं। परन्तु गवर्मेन्ट है गरीब, तो खर्चा भी ऐसे ही करती है। इस समय तो सब जड़जड़ीभूत अवस्था वाले तमोप्रधान हैं फिर भी ख़ास भारतवासियों को रजो-तमोगुणी क्यों कहा जाता है? क्योंकि यही सबसे ज्यादा सतोप्रधान थे। दूसरे धर्म वालों ने न तो इतना सुख देखा है, न दु:ख देखना है। वह अभी सुखी हैं तब तो इतना अनाज आदि भेजते रहते हैं। उन्हों की बुद्धि रजोप्रधान है। विनाश के लिए कितनी इन्वेन्शन करते हैं। परन्तु उन्हों को यह पता नहीं पड़ता है इसलिए उन्हों को बहुत चित्र आदि भेजने पड़े, तो उन्हों को भी पता पड़ेगा, आखरीन समझेंगे यह चीज़ तो बड़ी अच्छी है। इन पर लिखा हुआ है गॉड फादरली गिफ्ट। जब आफत का समय होगा तो आवाज़ निकलेगा फिर समझेंगे बरोबर यह हमको मिला था। इन चित्रों से बहुत काम निकलेगा। बाप को विचारे जानते ही नहीं। सुखदाता तो वह एक ही बाप है। सब उनको याद करते हैं। चित्रों से अच्छी रीति समझ सकते हैं। अभी देखो 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते हैं और फिर तुम सारे विश्व के मालिक बन जाते हो! यह चित्र विलायत में भी बहुत सर्विस करेंगे। बच्चों को इन चित्रों का इतना कदर नहीं है। खर्चा तो होना ही है। राजधानी स्थापन करने में उस गवर्मेन्ट का करोड़ों रुपया खर्च हुआ होगा और लाखों मरे। यहाँ तो मरने की बात ही नहीं। श्रीमत पर पूरा पुरुषार्थ करना है, तब ही श्रेष्ठ पद पा सकेंगे। नहीं तो पीछे सजा खाने समय बहुत पछतायेंगे। यह बाप भी है तो धर्मराज भी है। पतित दुनिया में आकर बच्चों को 21 जन्मों के लिए स्वराज्य देता हूँ। अगर फिर कोई विनाशकारी कर्तव्य किया तो पूरी सजा खायेंगे। ऐसे नहीं, जो होगा वह देखा जायेगा, दूसरे जन्म का कौन बैठ विचार करे। मनुष्य दान पुण्य भी दूसरे जन्म के लिए करते हैं। तुम अभी जो करते हो वह 21 जन्मों के लिए। वह जो कुछ करते हैं, अल्पकाल के लिए। एवज़ा फिर भी नर्क में ही मिलेगा। तुमको तो स्वर्ग में एवज़ा मिलना है। रात-दिन का फ़र्क है। तुम स्वर्ग में 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पाते हो। हर बात में श्रीमत पर चलने से बेड़ा पार है। बाप कहते हैं तुम बच्चों को नयनों पर बिठाकर बड़े आराम से ले जाता हूँ। तुमने बहुत दु:ख उठाये हैं। अब कहता हूँ तुम मुझे याद करो। तुम नंगे आये थे, यह पार्ट बजाया, अब फिर वापिस जाना है। यह तुम्हारा अविनाशी पार्ट है। इन बातों को कोई भी साइन्स घमन्डी समझ नहीं सकते। आत्मा इतना छोटा स्टार है, उनमें अविनाशी पार्ट सदैव के लिए भरा हुआ है, यह कभी समाप्त नहीं होता। बाप भी कहते हैं मैं भी तो क्रियेटर और एक्टर हूँ। मैं कल्प-कल्प आता हूँ पार्ट बजाने। कहते हैं परमात्मा मन-बुद्धि सहित चैतन्य, नॉलेजफुल है, लेकिन क्या चीज़ है, यह कोई नहीं जानते। जैसे तुम आत्मा स्टार मिसल हो, मैं भी स्टार हूँ। भक्ति मार्ग में भी मुझे याद करते हैं क्योंकि दु:खी हैं, मैं आकर तुम बच्चों को अपने साथ ले जाता हूँ। मैं भी पण्डा हूँ। मैं परमात्मा तुम आत्माओं को ले जाता हूँ। आत्मा मच्छर से भी छोटी है। यह समझ भी तुम बच्चों को अभी मिलती है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बाप कहते हैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, बाकी दिव्य दृष्टि की चाबी मैं अपने पास ही रखता हूँ। यह किसको नहीं देता हूँ। यह भक्ति मार्ग में मेरे ही काम में आती है। बाप कहते हैं मैं तुमको पावन, पूज्य बनाता हूँ, माया पतित, पुजारी बनाती है। समझाते तो बहुत हैं परन्तु कोई बुद्धिवान समझे।
यह टेप मशीन बहुत अच्छी चीज़ है। बच्चों को मुरली तो जरूर सुननी है। बहुत सिकीलधे बच्चे हैं। बाबा को बांधेली गोपिकाओं पर बहुत तरस पड़ता है। बाबा की मुरली सुनकर बहुत खुश होंगे। बच्चों की खुशी के लिए क्या नहीं करना चाहिए। बाबा को तो रात-दिन गांव की गोपिकाओं का ख्याल रहता है। नींद भी फिट जाती है, क्या युक्ति रचें, कैसे बच्चे दु:ख से छूटें। कोई तो फिर दु:ख में फँसने लिए भी तैयारी करते हैं, कोई तो पुरुषार्थ करते हैं वर्सा लेने का, तो कोई फिर फारकती देने का भी पुरुषार्थ करते हैं। दुनिया तो आजकल बहुत खराब है। कोई बच्चे तो बाप को मारने में भी देरी नहीं करते हैं। बेहद का बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। मैं बच्चों को इतना धन दूँगा जो यह कभी दु:खी नहीं होंगे। तो बच्चों को भी इतना रहमदिल बनना चाहिए कि सबको सुख का रास्ता बतायें। आजकल तो सभी दु:ख देते हैं, बाकी टीचर कभी दु:ख का रास्ता नहीं बतायेंगे। वह पढ़ाते हैं। पढ़ाई सोर्स आफ इनकम है। पढ़ाई से शरीर निर्वाह करने लायक बनते हैं, माँ-बाप से भल वर्सा मिलता है परन्तु वह क्या काम का? जितना जास्ती धन, उतना पाप बहुत करते हैं। नहीं तो तीर्थ यात्रा करने बड़ी नम्रता से जाते हैं। परन्तु कोई-कोई तो तीर्थ यात्रा पर भी शराब ले जाते हैं, फिर छिपाकर पीते हैं। बाबा का देखा हुआ है - शराब बिगर रह नहीं सकते। बात मत पूछो। लड़ाई में जाने वाले भी शराब खूब पीते हैं। लड़ाई वालों को अपनी जान का ख्याल नहीं रहता है। समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा शरीर लेगी। तुम बच्चों को भी अभी ज्ञान मिलता है। यह छी-छी शरीर छोड़ना है। उन्हों को कोई ज्ञान नहीं। परन्तु आदत पड़ी हुई है - मरना और मारना। यहाँ तो हम आपेही बैठे-बैठे बाबा के पास जाना चाहते हैं। यह पुरानी खाल है। जैसे सर्प भी पुरानी खाल छोड़ देते हैं। ठण्डी में सूख जाती तो उतार देते हैं। तुम्हारी यह तो बहुत छी-छी पुरानी खाल है, पार्ट बजाते अब इनको छोड़ना है, बाबा के पास जाना है। बाबा ने युक्ति तो बताई है - मनमनाभव। मुझे याद करो बस, ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देंगे। सन्यासियों का भी ऐसे होता है - बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं क्योंकि वह समझते हैं आत्मा को ब्रह्म में लीन होना है, तो योग लगाकर बैठते हैं। परन्तु जा नहीं सकते। जैसे काशी कलवट खाते हैं, वह जीवघात हो जाता है। यह सन्यासी भी बैठे-बैठे ऐसे जाते हैं, बाबा का देखा हुआ है, वह हुआ हठयोग सन्यास।
बाप समझाते हैं तुमको 84 जन्म कैसे मिलते हैं? तुमको कितनी नॉलेज देते हैं, कोई बिरला ही श्रीमत पर चलता है। देह-अभिमान आने से फिर बाप को भी अपनी मत देने लग पड़ते हैं। बाप समझाते हैं देही-अभिमानी बनो। मैं आत्मा हूँ, बाबा आप ज्ञान के सागर हो। बस, बाबा आपकी राय पर ही चलूँगा। क़दम-क़दम पर बड़ी सावधानी चाहिए। भूलें तो होती रहती हैं फिर पुरुषार्थ करना पड़ता है। कहाँ भी जाओ बाप को याद करते रहो। विकर्मों का बोझ सिर पर बहुत है। कर्मभोग भी तो चुक्तू करना होता है ना। पिछाड़ी तक यह कर्मभोग छोड़ेगा नहीं। श्रीमत पर चलने से ही पारसबुद्धि बनना है। साथ में धर्मराज भी है। तो रेसपान्सिबुल वह हो गया। बाप बैठा है, तुम क्यों अपने पर बोझा रखते हो। पतित-पावन बाप को पतितों की महफिल में आना ही है। यह तो नई बात नहीं, अनेक बार पार्ट बजाया है, फिर बजाते रहेंगे। इसको ही वन्डर कहा जाता है। अच्छा!
पारलौकिक बापदादा का सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान सबको दु:खों से लिबरेट करने का रहम करना है। सुख का रास्ता बताना है।
2) कोई भी विनाशकारी (उल्टा) कर्तव्य नहीं करना है। श्रीमत पर 21 जन्मों के लिए अपनी प्रालब्ध बनानी है। क़दम-क़दम पर सावधानी से चलना है।
वरदान:-निंदक को भी अपना मित्र समझ सम्मान देने वाले ब्रह्मा बाप समान मास्टर रचयिता भव
जैसे ब्रह्मा बाप ने स्वयं को विश्व सेवाधारी समझ हर एक को सम्मान दिया, सदा मालेकम् सलाम किया। ऐसे कभी नहीं सोचा कि कोई सम्मान देवे तो मैं दूं। निंदक को भी अपना मित्र समझकर सम्मान दिया, ऐसे फालो फादर करो। सिर्फ सम्मान देने वाले को अपना नहीं समझो लेकिन गाली देने वाले को भी अपना समझ सम्मान दो क्योंकि सारी दुनिया ही आपका परिवार है। सर्व आत्माओं के तना आप ब्राह्मण हो इसलिए स्वयं को मास्टर रचयिता समझ सबको सम्मान दो तब देवता बनेंगे।
स्लोगन:-माया को सदा के लिए विदाई देने वाले ही बाप की बधाईयों के पात्र बनते हैं।
26/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, when you become body conscious, Maya slaps you. Remain soul conscious and you will be able to follow every shrimat of the Father.
Question:
The Father has two types of effort-making children. What are they?
Answer:
One type is of those who make complete effort to claim their full inheritance from the Father; they take the Father’s advice at every step. The other type is of those who make effort to divorce the Father. There are some who remember the Father a great deal in order to become free from sorrow, and there are others who want to become trapped in sorrow. This too is a wonder!
Song:
The Flame has ignited in the happy gathering of moths!
Om Shanti
You children have heard this song many times. New children must be hearing it for the first time because, when the Father comes, He gives His introduction. Now, you children have received the introduction and you know that you have become children of the unlimited Mother and Father. The Mother and Father must surely be the Creator of the human world. However, Maya has made the intellects of human beings completely dead. Such a simple thing does not sit in their intellects. Everyone says that God created us. Therefore, He must surely be the Mother and Father. They remember God on the path of devotion. People of every religion definitely remember God the Father. Devotees of God cannot be God themselves. Devotees make spiritual endeavour and pray to God. Surely, there can only be one God, the Father of all, that is, One who is the Father of all souls. There cannot be one Father of all the bodies; there would have to be many different fathers. Although everyone has a physical father, they call out “O God!” and remember Him. The Father sits here and explains: Human beings are so senseless that they forget the Father’s introduction! You understand that the Creator of heaven is definitely the one Father. It is now the iron age. This iron age definitely has to be destroyed. The word ‘disappeared’ comes up in every aspect. You children know that the golden age has now disappeared. Achcha, now the question arises: Will they know in the golden age that the golden age will disappear and that there will then be the silver age? No! There is no need for this knowledge there. These aspects of how the cycle turns and who their parlokik Father is are not in anyone’s intellect. Only you children know this. People sing: “You are our Mother and Father and we are Your children”, yet they do not know Him. Therefore, it is useless even to say this. They have all forgotten the Father; this is why they have become orphans. The Father explains everything. Follow shrimat at every step, otherwise Maya can deceive you at any time. Maya is very deceitful. It is the Father’s task to liberate you from Maya. Ravan is in any case the one who causes you sorrow. The Father is the One who gives you happiness. Human beings cannot understand these things. They think that it is God who gives happiness and sorrow. The Father explains that people incur so much expense on weddings in order to become unhappy. They make effort to make pure saplings impure. Only you understand these aspects; the world does not understand them. They perform so many ceremonies to drown people in the ocean of poison. They don’t even know that this poison will not exist in the golden age. That is the ocean of milk, whereas this is called the ocean of poison. That world is completely viceless. Even though there are two degrees less in the silver age, it is still called the viceless world. There can be no sin there, because the kingdom of Ravan begins in the copper age. It is half and half: there is the ocean of knowledge and the ocean of ignorance. There is also the ocean of ignorance. Human beings are so ignorant that they don’t even know the Father. They just say that you will find God by doing this and that. However, they don’t find anything. After they have beaten their heads and become orphaned and unhappy, I, the Lord and Master, come. In the absence of the Lord and Master, Maya, the alligator, has completely swallowed everyone. The Father explains: Maya is very strong and many are deceived by her. Some are slapped by lust and some are slapped by attachment. It is by becoming body conscious that you get slapped. Effort lies in becoming soul conscious. This is why the Father repeatedly says: Be cautious, Manmanabhav! Maya slaps you if you don’t remember the Father. Therefore, practise staying in constant remembrance. Otherwise, Maya will make you do wrong things. You have received intellects to know the difference between right and wrong. If you get confused about anything, ask the Father. You can send a telegram, or write a letter or even phone and ask. You can get through on the phone straightaway early in the mornings because everyone, apart from you, is asleep at that time. Therefore, you can ask by phoning. Day by day, communication by phone is becoming refined. However, the Government is very poor, and so the expenditure is according to that. At this time everyone has reached the stage of total decay and become completely impure. However, even then, why are the people of Bharat especially called rajo and tamoguni? Because they were the most satopradhan. Those of other religions neither see as much happiness nor as much sorrow. They are now content, which is why they are able to send so much food. Their intellects are rajopradhan. They continue to invent many things for destruction, but they don’t understand this. This is why many pictures etc. have to be sent to them. Ultimately they will come to know and understand that these things are very good. It is written on them: A Godfatherly gift. When the time comes for calamities, this sound will be heard and they will understand that they definitely received these things. These pictures will do a lot of work. The poor people don’t know the Father. Only the one Father is the Bestower of Happiness. Everyone remembers Him. They can understand this very clearly from the pictures. Just see how, at this time, you can’t even get three feet of land and yet you become the masters of the whole world. These pictures will also do a lot of service abroad. However, children do not value these pictures that much. Expenditure will definitely be incurred. Millions of the Government’s rupees must have been spent and hundreds of thousands must have died in establishing that kingdom. Here, there is no question of anyone dying. You have to make full effort on the basis of shrimat. Only then will you be able to attain an elevated status. Otherwise, you will repent a great deal at the time you have to be punished. As well as being the Father, that One is also the Supreme Judge. I come into the impure world to give you children your kingdom of self-sovereignty for 21 births. If you do anything destructive, you will have to endure full punishment. You should not say: Let’s see what happens! Who wants to sit and think about the next birth now? Human beings give donations and perform charity for their next birth. Whatever you do now is also for 21 births. Whatever they do is temporary; they only receive the return of that in hell whereas you receive the return in the golden age. There is the difference of day and night. You claim your reward of heaven for 21 births. By following shrimat in every respect, your boat goes across. The Father says: I seat you children in My eyes and take you across in great comfort. You have experienced a great deal of sorrow. I now say to you: Remember Me! You came bodiless and played your parts and you now have to return. These parts of yours are eternal. Those who have the arrogance of science cannot understand these things. A soul is like a very tiny star and has an eternal, imperishable part recorded within it; it can never end. The Father says: I am the Creator and also the principal Actor. I come every cycle to play My part. It is said that the Supreme Soul has a mind and an intellect and that He is the Living Being and knowledge-full. However, no one knows what He is. Just as you souls are stars, I too am a star. You remembered Me on the path of devotion too because you were unhappy. I come and take you children back home with Me. I am also your Guide. I, the Supreme Soul, take you souls back home. A soul is even tinier than a mosquito. It is now that you children receive this understanding. He explains everything very clearly. The Father says: I make you into the masters of the world but I keep the key to divine visions with Myself. I do not give this to anyone. On the path of devotion this key is useful for only Me. The Father says: I make you pure and worthy of being worshipped. Maya makes you impure and a worshipper. A great deal of explanation is given to you all, but only those who are wise will understand. This tape machine is a very good thing. Children should definitely listen to the murli. You are long-lost and now-found children. Baba feels great compassion for the gopikas in bondage. They experience great happiness by listening to Baba’s murli. What would one not do for the sake of children’s happiness? Day and night, Baba is concerned about the gopikas in the villages. Sometimes, he can’t sleep for thinking about what methods can be adopted so that those children can become liberated from sorrow. However, some make preparations to become trapped in sorrow. Some make effort to claim their inheritance and others make effort to divorce Him. The world nowadays is very bad. Some children don’t even hesitate to kill their father. The unlimited Father explains everything very clearly. I will give you children so much wealth that you will never become unhappy. Therefore, you children should make your hearts merciful and show everyone this path to happiness. Nowadays, everyone continues to cause sorrow. A teacher, however, would never show a path to sorrow; he simply teaches. Study is the source of income. It is by studying that you become worthy of earning a livelihood. Although people receive an inheritance from their mother and father, of what use is it? The more wealth people have, the more sin they commit. Previously, when people went on pilgrimages, they had great humility, but now some even take alcohol with them and drink it secretly. Baba has seen this. Some can’t do without alcohol; don’t even ask! Some soldiers drink a lot of alcohol before they go to fight a battle. Those soldiers don’t worry about being killed. They think that the soul will leave one body and take another. You children now receive the knowledge that you have to renounce those dirty bodies, whereas they don’t have this knowledge. However, they have formed the habit of killing and being killed. We want to go to Baba with our own efforts while sitting here. This is an old skin. In the cold weather a snake’s skin becomes dry and so it sheds its old skin. While playing your parts your skins have become old and very dirty. You now have to renounce them. You have to return to Baba. Baba has shown you methods to do this: Manmanabhav! Remember Me, that’s all, and you will shed your bodies while sitting. This also happens to the sannyasis. They shed their bodies while just sitting. They think that the soul has to merge into the brahm element and so they sit and have yoga with the brahm element. However, they cannot go there. Similarly, people go and sacrifice themselves at Kashi. They are just committing suicide. Baba has also seen how sannyasis renounce their bodies while sitting in yoga, but that is hatha yoga renunciation. The Father explains how you take 84 births. He gives you so much knowledge, but scarcely any follow shrimat. By coming into body consciousness, some even start giving their own directions to the Father. The Father explains: Become soul conscious! I am a soul. Baba, You are the Ocean of Knowledge. Baba, I will now only follow Your instructions; that’s all! Great caution is needed at every step. Mistakes continue to be made, but you still have to make effort. Continue to remember the Father wherever you go. There is a great burden of sins on your heads. You also have to settle the suffering of karma. This suffering of karma will not leave you until the end. By following shrimat, you have to become those with pure intellects. Dharamraj is also with Him, and so He becomes responsible. Why do you carry burdens yourselves when the Father is sitting here? The Purifier Father has to come into the gathering of the impure ones. This is not a new thing. This part has been played innumerable times before and will continue to be played. This is called a wonder. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, parlokik BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become merciful just like the Father and liberate everyone from sorrow. Show them the path to happiness.
2. Do not perform any destructive (wrong) act. Create your reward for 21 births on the basis of shrimat. Remain very cautious at every step you take.
Blessing:May you consider anyone who defames you to be your friend and give him respect and become a master creator like Father Brahma.
[font=Calibri]Father Brahma considered himself to be a world server and gave respect to each and every one and always saluted each one. Similarly, he never thought that he will only give respect to someone when that one gives him respect. He considered someone who defamed him to be his friend and gave that one respect; so follow the father in the same way. Do not just consider those who respect you to belong to you, but even consider those who insult you to belong to you and give them respect because the whole world is your family. You Brahmins are the trunk for all souls and so consider yourselves to be master creators and give respect to everyone and you will become deities.[/font]
Slogan:Those who bid farewell to Maya for all time become worthy of receiving congratulations from the Father.
"मीठे बच्चे - देह-अभिमान में आने से ही माया की चमाट लगती है, देही-अभिमानी रहो तो बाप की हर श्रीमत का पालन कर सकेंगे''
प्रश्नः-
बाप के पास दो प्रकार के पुरुषार्थी बच्चे हैं, वह कौन से?
उत्तर:-
एक बच्चे हैं जो बाप से वर्सा लेने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करते हैं, हर क़दम पर बाप की राय लेते हैं। दूसरे फिर ऐसे भी बच्चे हैं जो बाप को फ़ारकती देने का पुरुषार्थ करते हैं। कोई हैं जो दु:ख से छूटने के लिए बाप को बहुत-बहुत याद करते हैं, कोई फिर दु:ख में फँसना चाहते हैं, यह भी वन्डर है ना।
गीत:-
महफिल में जल उठी शमा........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत तो बहुत बार सुना है। नये बच्चे फिर नयेसिर सुनते होंगे जबकि बाप आते हैं तो आकर अपना परिचय देते हैं। बच्चों को परिचय मिला हुआ है। जानते हैं अभी हम बेहद के मात-पिता की सन्तान बने हैं। जरूर मनुष्य सृष्टि का रचयिता मात-पिता होगा। परन्तु माया ने मनुष्यों की बुद्धि बिल्कुल डेड कर दी है। इतनी साधारण बात बुद्धि में नहीं बैठती। कहते तो सभी हैं कि हमको भगवान् ने पैदा किया है। तो जरूर मात-पिता होंगे! भक्ति मार्ग में याद भी करते हैं। हर धर्म वाले गॉड फादर को जरूर याद करते हैं। भक्त खुद तो भगवान् हो नहीं सकते। भक्त भगवान् की बन्दगी (साधना) करते हैं। गॉड फादर तो जरूर सबका एक ही होगा अर्थात् सभी आत्माओं का फादर एक है। सभी जिस्मों का फादर एक हो नहीं सकता। वह तो अनेक फादर हैं। वह जिस्मानी फादर होते हुए भी ‘हे ईश्वर' कहकर याद करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं - मनुष्य बेसमझ हैं जो बाप का परिचय ही भूल जाते हैं। तुम जानते हो स्वर्ग का रचयिता जरूर एक ही बाप है। अभी कलियुग है। जरूर कलियुग का विनाश होगा। ‘प्राय:लोप' अक्षर तो हर बात में आता है। बच्चे जानते हैं - सतयुग अभी प्राय:लोप है। अच्छा, फिर प्रश्न उठता है सतयुग में उन्हों को यह पता होगा कि यह सतयुग प्राय:लोप हो जायेगा फिर त्रेता होगा? नहीं, वहाँ तो इस नॉलेज की दरकार ही नहीं। यह बातें किसकी भी बुद्धि में नहीं हैं - सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, हमारा पारलौकिक बाप कौन है? यह तुम बच्चे ही जानते हो। मनुष्य गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे........ परन्तु जानते नहीं। तो कहना भी न कहने के बराबर हो जाता है। बाप को भूल गये हैं इसलिए आरफन बन पड़े हैं। बाप हर बात समझाते हैं। श्रीमत पर क़दम-क़दम चलो। नहीं तो कोई समय माया बड़ा धोखा देगी। माया है ही धोखेबाज़। माया से लिबरेट करना - यह बाप का ही काम है। रावण तो है ही दु:ख देने वाला। बाप है सुख देने वाला। मनुष्य इन बातों को समझ नहीं सकते। वह तो समझते हैं दु:ख सुख भगवान् ही देते हैं। बाप समझाते हैं - मनुष्य दु:खी बनने के लिए शादियों में कितना खर्चा करते हैं! जो पवित्र पौधे हैं उनको अपवित्र बनाने का पुरुषार्थ किया जाता है। यह भी तुम समझ सकते हो, दुनिया नहीं समझती। यह विषय सागर में डूबने लिए कितनी सेरीमनी करते हैं। उन्हों को यह पता नहीं है कि सतयुग में यह विष (विकार) होता नहीं। वह है ही क्षीरसागर। इसको विषय सागर कहा जाता है। वह है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। भल त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं, तो भी उनको निर्विकारी दुनिया कहा जाता है। वहाँ विकार हो नहीं सकते क्योंकि रावण का राज्य द्वापर से ही शुरू होता है। आधा-आधा है ना। ज्ञान सागर और अज्ञान सागर। अज्ञान का भी सागर है ना।
मनुष्य कितने अज्ञानी हैं। बाप को भी नहीं जानते। सिर्फ कहते रहते हैं कि यह करने से भगवान मिलेगा। मिलता कुछ भी नहीं। माथा मारते-मारते दु:खी, निधनके बन जाते हैं तब ही फिर मैं धनी आता हूँ। धनी बिगर माया अजगर ने सबको खा लिया है। बाप समझाते हैं माया बड़ी दुश्तर है। बहुतों को धोखा मिलता है। कोई को काम की चमाट, कोई को मोह की चमाट लग जाती है। देह-अभिमान में आने से ही चमाट लगती है। मेहनत है ही देही-अभिमानी बनने में इसलिए बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं सावधान, मनमनाभव। बाप को याद नहीं करेंगे तो माया थप्पड़ लगा देगी इसलिए निरन्तर याद करने का अभ्यास करो। नहीं तो माया उल्टा कर्तव्य करा देगी। रांग-राइट की बुद्धि तो मिली ही है। कहाँ भी मूंझो तो बाप से पूछो। तार में, चिट्ठी में अथवा फोन पर पूछ सकते हो। फोन सवेरे-सवेरे झट मिल सकता है क्योंकि उस समय सिवाए तुम्हारे बाकी सब सोये रहते हैं। तो फोन पर तुम पूछ सकते हो। दिन-प्रतिदिन फोन आदि की आवाज भी सुधारते रहते हैं। परन्तु गवर्मेन्ट है गरीब, तो खर्चा भी ऐसे ही करती है। इस समय तो सब जड़जड़ीभूत अवस्था वाले तमोप्रधान हैं फिर भी ख़ास भारतवासियों को रजो-तमोगुणी क्यों कहा जाता है? क्योंकि यही सबसे ज्यादा सतोप्रधान थे। दूसरे धर्म वालों ने न तो इतना सुख देखा है, न दु:ख देखना है। वह अभी सुखी हैं तब तो इतना अनाज आदि भेजते रहते हैं। उन्हों की बुद्धि रजोप्रधान है। विनाश के लिए कितनी इन्वेन्शन करते हैं। परन्तु उन्हों को यह पता नहीं पड़ता है इसलिए उन्हों को बहुत चित्र आदि भेजने पड़े, तो उन्हों को भी पता पड़ेगा, आखरीन समझेंगे यह चीज़ तो बड़ी अच्छी है। इन पर लिखा हुआ है गॉड फादरली गिफ्ट। जब आफत का समय होगा तो आवाज़ निकलेगा फिर समझेंगे बरोबर यह हमको मिला था। इन चित्रों से बहुत काम निकलेगा। बाप को विचारे जानते ही नहीं। सुखदाता तो वह एक ही बाप है। सब उनको याद करते हैं। चित्रों से अच्छी रीति समझ सकते हैं। अभी देखो 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते हैं और फिर तुम सारे विश्व के मालिक बन जाते हो! यह चित्र विलायत में भी बहुत सर्विस करेंगे। बच्चों को इन चित्रों का इतना कदर नहीं है। खर्चा तो होना ही है। राजधानी स्थापन करने में उस गवर्मेन्ट का करोड़ों रुपया खर्च हुआ होगा और लाखों मरे। यहाँ तो मरने की बात ही नहीं। श्रीमत पर पूरा पुरुषार्थ करना है, तब ही श्रेष्ठ पद पा सकेंगे। नहीं तो पीछे सजा खाने समय बहुत पछतायेंगे। यह बाप भी है तो धर्मराज भी है। पतित दुनिया में आकर बच्चों को 21 जन्मों के लिए स्वराज्य देता हूँ। अगर फिर कोई विनाशकारी कर्तव्य किया तो पूरी सजा खायेंगे। ऐसे नहीं, जो होगा वह देखा जायेगा, दूसरे जन्म का कौन बैठ विचार करे। मनुष्य दान पुण्य भी दूसरे जन्म के लिए करते हैं। तुम अभी जो करते हो वह 21 जन्मों के लिए। वह जो कुछ करते हैं, अल्पकाल के लिए। एवज़ा फिर भी नर्क में ही मिलेगा। तुमको तो स्वर्ग में एवज़ा मिलना है। रात-दिन का फ़र्क है। तुम स्वर्ग में 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध पाते हो। हर बात में श्रीमत पर चलने से बेड़ा पार है। बाप कहते हैं तुम बच्चों को नयनों पर बिठाकर बड़े आराम से ले जाता हूँ। तुमने बहुत दु:ख उठाये हैं। अब कहता हूँ तुम मुझे याद करो। तुम नंगे आये थे, यह पार्ट बजाया, अब फिर वापिस जाना है। यह तुम्हारा अविनाशी पार्ट है। इन बातों को कोई भी साइन्स घमन्डी समझ नहीं सकते। आत्मा इतना छोटा स्टार है, उनमें अविनाशी पार्ट सदैव के लिए भरा हुआ है, यह कभी समाप्त नहीं होता। बाप भी कहते हैं मैं भी तो क्रियेटर और एक्टर हूँ। मैं कल्प-कल्प आता हूँ पार्ट बजाने। कहते हैं परमात्मा मन-बुद्धि सहित चैतन्य, नॉलेजफुल है, लेकिन क्या चीज़ है, यह कोई नहीं जानते। जैसे तुम आत्मा स्टार मिसल हो, मैं भी स्टार हूँ। भक्ति मार्ग में भी मुझे याद करते हैं क्योंकि दु:खी हैं, मैं आकर तुम बच्चों को अपने साथ ले जाता हूँ। मैं भी पण्डा हूँ। मैं परमात्मा तुम आत्माओं को ले जाता हूँ। आत्मा मच्छर से भी छोटी है। यह समझ भी तुम बच्चों को अभी मिलती है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बाप कहते हैं तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, बाकी दिव्य दृष्टि की चाबी मैं अपने पास ही रखता हूँ। यह किसको नहीं देता हूँ। यह भक्ति मार्ग में मेरे ही काम में आती है। बाप कहते हैं मैं तुमको पावन, पूज्य बनाता हूँ, माया पतित, पुजारी बनाती है। समझाते तो बहुत हैं परन्तु कोई बुद्धिवान समझे।
यह टेप मशीन बहुत अच्छी चीज़ है। बच्चों को मुरली तो जरूर सुननी है। बहुत सिकीलधे बच्चे हैं। बाबा को बांधेली गोपिकाओं पर बहुत तरस पड़ता है। बाबा की मुरली सुनकर बहुत खुश होंगे। बच्चों की खुशी के लिए क्या नहीं करना चाहिए। बाबा को तो रात-दिन गांव की गोपिकाओं का ख्याल रहता है। नींद भी फिट जाती है, क्या युक्ति रचें, कैसे बच्चे दु:ख से छूटें। कोई तो फिर दु:ख में फँसने लिए भी तैयारी करते हैं, कोई तो पुरुषार्थ करते हैं वर्सा लेने का, तो कोई फिर फारकती देने का भी पुरुषार्थ करते हैं। दुनिया तो आजकल बहुत खराब है। कोई बच्चे तो बाप को मारने में भी देरी नहीं करते हैं। बेहद का बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। मैं बच्चों को इतना धन दूँगा जो यह कभी दु:खी नहीं होंगे। तो बच्चों को भी इतना रहमदिल बनना चाहिए कि सबको सुख का रास्ता बतायें। आजकल तो सभी दु:ख देते हैं, बाकी टीचर कभी दु:ख का रास्ता नहीं बतायेंगे। वह पढ़ाते हैं। पढ़ाई सोर्स आफ इनकम है। पढ़ाई से शरीर निर्वाह करने लायक बनते हैं, माँ-बाप से भल वर्सा मिलता है परन्तु वह क्या काम का? जितना जास्ती धन, उतना पाप बहुत करते हैं। नहीं तो तीर्थ यात्रा करने बड़ी नम्रता से जाते हैं। परन्तु कोई-कोई तो तीर्थ यात्रा पर भी शराब ले जाते हैं, फिर छिपाकर पीते हैं। बाबा का देखा हुआ है - शराब बिगर रह नहीं सकते। बात मत पूछो। लड़ाई में जाने वाले भी शराब खूब पीते हैं। लड़ाई वालों को अपनी जान का ख्याल नहीं रहता है। समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा शरीर लेगी। तुम बच्चों को भी अभी ज्ञान मिलता है। यह छी-छी शरीर छोड़ना है। उन्हों को कोई ज्ञान नहीं। परन्तु आदत पड़ी हुई है - मरना और मारना। यहाँ तो हम आपेही बैठे-बैठे बाबा के पास जाना चाहते हैं। यह पुरानी खाल है। जैसे सर्प भी पुरानी खाल छोड़ देते हैं। ठण्डी में सूख जाती तो उतार देते हैं। तुम्हारी यह तो बहुत छी-छी पुरानी खाल है, पार्ट बजाते अब इनको छोड़ना है, बाबा के पास जाना है। बाबा ने युक्ति तो बताई है - मनमनाभव। मुझे याद करो बस, ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देंगे। सन्यासियों का भी ऐसे होता है - बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते हैं क्योंकि वह समझते हैं आत्मा को ब्रह्म में लीन होना है, तो योग लगाकर बैठते हैं। परन्तु जा नहीं सकते। जैसे काशी कलवट खाते हैं, वह जीवघात हो जाता है। यह सन्यासी भी बैठे-बैठे ऐसे जाते हैं, बाबा का देखा हुआ है, वह हुआ हठयोग सन्यास।
बाप समझाते हैं तुमको 84 जन्म कैसे मिलते हैं? तुमको कितनी नॉलेज देते हैं, कोई बिरला ही श्रीमत पर चलता है। देह-अभिमान आने से फिर बाप को भी अपनी मत देने लग पड़ते हैं। बाप समझाते हैं देही-अभिमानी बनो। मैं आत्मा हूँ, बाबा आप ज्ञान के सागर हो। बस, बाबा आपकी राय पर ही चलूँगा। क़दम-क़दम पर बड़ी सावधानी चाहिए। भूलें तो होती रहती हैं फिर पुरुषार्थ करना पड़ता है। कहाँ भी जाओ बाप को याद करते रहो। विकर्मों का बोझ सिर पर बहुत है। कर्मभोग भी तो चुक्तू करना होता है ना। पिछाड़ी तक यह कर्मभोग छोड़ेगा नहीं। श्रीमत पर चलने से ही पारसबुद्धि बनना है। साथ में धर्मराज भी है। तो रेसपान्सिबुल वह हो गया। बाप बैठा है, तुम क्यों अपने पर बोझा रखते हो। पतित-पावन बाप को पतितों की महफिल में आना ही है। यह तो नई बात नहीं, अनेक बार पार्ट बजाया है, फिर बजाते रहेंगे। इसको ही वन्डर कहा जाता है। अच्छा!
पारलौकिक बापदादा का सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान सबको दु:खों से लिबरेट करने का रहम करना है। सुख का रास्ता बताना है।
2) कोई भी विनाशकारी (उल्टा) कर्तव्य नहीं करना है। श्रीमत पर 21 जन्मों के लिए अपनी प्रालब्ध बनानी है। क़दम-क़दम पर सावधानी से चलना है।
वरदान:-निंदक को भी अपना मित्र समझ सम्मान देने वाले ब्रह्मा बाप समान मास्टर रचयिता भव
जैसे ब्रह्मा बाप ने स्वयं को विश्व सेवाधारी समझ हर एक को सम्मान दिया, सदा मालेकम् सलाम किया। ऐसे कभी नहीं सोचा कि कोई सम्मान देवे तो मैं दूं। निंदक को भी अपना मित्र समझकर सम्मान दिया, ऐसे फालो फादर करो। सिर्फ सम्मान देने वाले को अपना नहीं समझो लेकिन गाली देने वाले को भी अपना समझ सम्मान दो क्योंकि सारी दुनिया ही आपका परिवार है। सर्व आत्माओं के तना आप ब्राह्मण हो इसलिए स्वयं को मास्टर रचयिता समझ सबको सम्मान दो तब देवता बनेंगे।
स्लोगन:-माया को सदा के लिए विदाई देने वाले ही बाप की बधाईयों के पात्र बनते हैं।
26/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, when you become body conscious, Maya slaps you. Remain soul conscious and you will be able to follow every shrimat of the Father.
Question:
The Father has two types of effort-making children. What are they?
Answer:
One type is of those who make complete effort to claim their full inheritance from the Father; they take the Father’s advice at every step. The other type is of those who make effort to divorce the Father. There are some who remember the Father a great deal in order to become free from sorrow, and there are others who want to become trapped in sorrow. This too is a wonder!
Song:
The Flame has ignited in the happy gathering of moths!
Om Shanti
You children have heard this song many times. New children must be hearing it for the first time because, when the Father comes, He gives His introduction. Now, you children have received the introduction and you know that you have become children of the unlimited Mother and Father. The Mother and Father must surely be the Creator of the human world. However, Maya has made the intellects of human beings completely dead. Such a simple thing does not sit in their intellects. Everyone says that God created us. Therefore, He must surely be the Mother and Father. They remember God on the path of devotion. People of every religion definitely remember God the Father. Devotees of God cannot be God themselves. Devotees make spiritual endeavour and pray to God. Surely, there can only be one God, the Father of all, that is, One who is the Father of all souls. There cannot be one Father of all the bodies; there would have to be many different fathers. Although everyone has a physical father, they call out “O God!” and remember Him. The Father sits here and explains: Human beings are so senseless that they forget the Father’s introduction! You understand that the Creator of heaven is definitely the one Father. It is now the iron age. This iron age definitely has to be destroyed. The word ‘disappeared’ comes up in every aspect. You children know that the golden age has now disappeared. Achcha, now the question arises: Will they know in the golden age that the golden age will disappear and that there will then be the silver age? No! There is no need for this knowledge there. These aspects of how the cycle turns and who their parlokik Father is are not in anyone’s intellect. Only you children know this. People sing: “You are our Mother and Father and we are Your children”, yet they do not know Him. Therefore, it is useless even to say this. They have all forgotten the Father; this is why they have become orphans. The Father explains everything. Follow shrimat at every step, otherwise Maya can deceive you at any time. Maya is very deceitful. It is the Father’s task to liberate you from Maya. Ravan is in any case the one who causes you sorrow. The Father is the One who gives you happiness. Human beings cannot understand these things. They think that it is God who gives happiness and sorrow. The Father explains that people incur so much expense on weddings in order to become unhappy. They make effort to make pure saplings impure. Only you understand these aspects; the world does not understand them. They perform so many ceremonies to drown people in the ocean of poison. They don’t even know that this poison will not exist in the golden age. That is the ocean of milk, whereas this is called the ocean of poison. That world is completely viceless. Even though there are two degrees less in the silver age, it is still called the viceless world. There can be no sin there, because the kingdom of Ravan begins in the copper age. It is half and half: there is the ocean of knowledge and the ocean of ignorance. There is also the ocean of ignorance. Human beings are so ignorant that they don’t even know the Father. They just say that you will find God by doing this and that. However, they don’t find anything. After they have beaten their heads and become orphaned and unhappy, I, the Lord and Master, come. In the absence of the Lord and Master, Maya, the alligator, has completely swallowed everyone. The Father explains: Maya is very strong and many are deceived by her. Some are slapped by lust and some are slapped by attachment. It is by becoming body conscious that you get slapped. Effort lies in becoming soul conscious. This is why the Father repeatedly says: Be cautious, Manmanabhav! Maya slaps you if you don’t remember the Father. Therefore, practise staying in constant remembrance. Otherwise, Maya will make you do wrong things. You have received intellects to know the difference between right and wrong. If you get confused about anything, ask the Father. You can send a telegram, or write a letter or even phone and ask. You can get through on the phone straightaway early in the mornings because everyone, apart from you, is asleep at that time. Therefore, you can ask by phoning. Day by day, communication by phone is becoming refined. However, the Government is very poor, and so the expenditure is according to that. At this time everyone has reached the stage of total decay and become completely impure. However, even then, why are the people of Bharat especially called rajo and tamoguni? Because they were the most satopradhan. Those of other religions neither see as much happiness nor as much sorrow. They are now content, which is why they are able to send so much food. Their intellects are rajopradhan. They continue to invent many things for destruction, but they don’t understand this. This is why many pictures etc. have to be sent to them. Ultimately they will come to know and understand that these things are very good. It is written on them: A Godfatherly gift. When the time comes for calamities, this sound will be heard and they will understand that they definitely received these things. These pictures will do a lot of work. The poor people don’t know the Father. Only the one Father is the Bestower of Happiness. Everyone remembers Him. They can understand this very clearly from the pictures. Just see how, at this time, you can’t even get three feet of land and yet you become the masters of the whole world. These pictures will also do a lot of service abroad. However, children do not value these pictures that much. Expenditure will definitely be incurred. Millions of the Government’s rupees must have been spent and hundreds of thousands must have died in establishing that kingdom. Here, there is no question of anyone dying. You have to make full effort on the basis of shrimat. Only then will you be able to attain an elevated status. Otherwise, you will repent a great deal at the time you have to be punished. As well as being the Father, that One is also the Supreme Judge. I come into the impure world to give you children your kingdom of self-sovereignty for 21 births. If you do anything destructive, you will have to endure full punishment. You should not say: Let’s see what happens! Who wants to sit and think about the next birth now? Human beings give donations and perform charity for their next birth. Whatever you do now is also for 21 births. Whatever they do is temporary; they only receive the return of that in hell whereas you receive the return in the golden age. There is the difference of day and night. You claim your reward of heaven for 21 births. By following shrimat in every respect, your boat goes across. The Father says: I seat you children in My eyes and take you across in great comfort. You have experienced a great deal of sorrow. I now say to you: Remember Me! You came bodiless and played your parts and you now have to return. These parts of yours are eternal. Those who have the arrogance of science cannot understand these things. A soul is like a very tiny star and has an eternal, imperishable part recorded within it; it can never end. The Father says: I am the Creator and also the principal Actor. I come every cycle to play My part. It is said that the Supreme Soul has a mind and an intellect and that He is the Living Being and knowledge-full. However, no one knows what He is. Just as you souls are stars, I too am a star. You remembered Me on the path of devotion too because you were unhappy. I come and take you children back home with Me. I am also your Guide. I, the Supreme Soul, take you souls back home. A soul is even tinier than a mosquito. It is now that you children receive this understanding. He explains everything very clearly. The Father says: I make you into the masters of the world but I keep the key to divine visions with Myself. I do not give this to anyone. On the path of devotion this key is useful for only Me. The Father says: I make you pure and worthy of being worshipped. Maya makes you impure and a worshipper. A great deal of explanation is given to you all, but only those who are wise will understand. This tape machine is a very good thing. Children should definitely listen to the murli. You are long-lost and now-found children. Baba feels great compassion for the gopikas in bondage. They experience great happiness by listening to Baba’s murli. What would one not do for the sake of children’s happiness? Day and night, Baba is concerned about the gopikas in the villages. Sometimes, he can’t sleep for thinking about what methods can be adopted so that those children can become liberated from sorrow. However, some make preparations to become trapped in sorrow. Some make effort to claim their inheritance and others make effort to divorce Him. The world nowadays is very bad. Some children don’t even hesitate to kill their father. The unlimited Father explains everything very clearly. I will give you children so much wealth that you will never become unhappy. Therefore, you children should make your hearts merciful and show everyone this path to happiness. Nowadays, everyone continues to cause sorrow. A teacher, however, would never show a path to sorrow; he simply teaches. Study is the source of income. It is by studying that you become worthy of earning a livelihood. Although people receive an inheritance from their mother and father, of what use is it? The more wealth people have, the more sin they commit. Previously, when people went on pilgrimages, they had great humility, but now some even take alcohol with them and drink it secretly. Baba has seen this. Some can’t do without alcohol; don’t even ask! Some soldiers drink a lot of alcohol before they go to fight a battle. Those soldiers don’t worry about being killed. They think that the soul will leave one body and take another. You children now receive the knowledge that you have to renounce those dirty bodies, whereas they don’t have this knowledge. However, they have formed the habit of killing and being killed. We want to go to Baba with our own efforts while sitting here. This is an old skin. In the cold weather a snake’s skin becomes dry and so it sheds its old skin. While playing your parts your skins have become old and very dirty. You now have to renounce them. You have to return to Baba. Baba has shown you methods to do this: Manmanabhav! Remember Me, that’s all, and you will shed your bodies while sitting. This also happens to the sannyasis. They shed their bodies while just sitting. They think that the soul has to merge into the brahm element and so they sit and have yoga with the brahm element. However, they cannot go there. Similarly, people go and sacrifice themselves at Kashi. They are just committing suicide. Baba has also seen how sannyasis renounce their bodies while sitting in yoga, but that is hatha yoga renunciation. The Father explains how you take 84 births. He gives you so much knowledge, but scarcely any follow shrimat. By coming into body consciousness, some even start giving their own directions to the Father. The Father explains: Become soul conscious! I am a soul. Baba, You are the Ocean of Knowledge. Baba, I will now only follow Your instructions; that’s all! Great caution is needed at every step. Mistakes continue to be made, but you still have to make effort. Continue to remember the Father wherever you go. There is a great burden of sins on your heads. You also have to settle the suffering of karma. This suffering of karma will not leave you until the end. By following shrimat, you have to become those with pure intellects. Dharamraj is also with Him, and so He becomes responsible. Why do you carry burdens yourselves when the Father is sitting here? The Purifier Father has to come into the gathering of the impure ones. This is not a new thing. This part has been played innumerable times before and will continue to be played. This is called a wonder. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, parlokik BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become merciful just like the Father and liberate everyone from sorrow. Show them the path to happiness.
2. Do not perform any destructive (wrong) act. Create your reward for 21 births on the basis of shrimat. Remain very cautious at every step you take.
Blessing:May you consider anyone who defames you to be your friend and give him respect and become a master creator like Father Brahma.
[font=Calibri]Father Brahma considered himself to be a world server and gave respect to each and every one and always saluted each one. Similarly, he never thought that he will only give respect to someone when that one gives him respect. He considered someone who defamed him to be his friend and gave that one respect; so follow the father in the same way. Do not just consider those who respect you to belong to you, but even consider those who insult you to belong to you and give them respect because the whole world is your family. You Brahmins are the trunk for all souls and so consider yourselves to be master creators and give respect to everyone and you will become deities.[/font]
Slogan:Those who bid farewell to Maya for all time become worthy of receiving congratulations from the Father.
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.