Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-12-21 03:04:09
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
Rating for Article:– Prajapita Brahma kumaris Murali - Nov - 2018 ( UID: 181218144032 )
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN |
Name Parameters For Grading |
Achievement (Score) |
Minimum Limit for A grade |
Calculation of Mark |
1 |
Count of Raters ( Auto Calculated ) |
0 |
5 |
0 |
2 |
Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) |
3768939 |
2500 |
1 |
3 |
Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) |
2164 |
15 |
0 |
4 |
Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
40% |
0 |
5 |
Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
60% |
0 |
6 |
Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
50% |
0 |
7 |
Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
55% |
0 |
|
Grand Total Score & Article Grade |
|
|
---
|
SI |
Score Rated by Viewers |
Rating given by (0) Users |
(a) |
Topic Information:- |
NAN% |
(b) |
Writing Skill:- |
NAN% |
(c) |
Grammer:- |
NAN% |
(d) |
Vocabulary Strength:- |
NAN% |
(e) |
Choice of Photo:- |
NAN% |
(f) |
Choice of Topic Heading:- |
NAN% |
(g) |
Keyword or summary:- |
NAN% |
(h) |
Material copied - Originality:- |
NAN% |
|
Your Total Rating & % |
NAN% |
Details ( Page:- Murali 25-Nov-2018 )
25-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 01-03-84 मधुबन
एक का हिसाब
आज सर्व सहजयोगी, सदा सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। सर्व तरफ से आये हुए बाप के बच्चे एक बल एक भरोसा, एक मत, एकरस, एक ही के गुण गाने वाले, एक ही के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने वाले, एक के साथ सदा रहने वाले, एक ही प्रभु परिवार के एक लक्ष्य, एक ही लक्षण, सर्व को एक ही शुभ और श्रेष्ठ भावना से देखने वाले, सर्व को एक ही श्रेष्ठ शुभ कामना से सदा ऊंचा उड़ाने वाले, एक ही संसार, एक ही संसार में सर्व प्राप्ति का अनुभव करने वाले, आंख खोलते ही एक बाबा! हर एक काम करते एक साथी बाबा, दिन समाप्त करते, कर्मयोग वा सेवा का कार्य समाप्त करते एक के लव में लीन हो जाते, एक के साथ लवलीन बन जाते अर्थात् एक के स्नेह रूपी गोदी में समा जाते। दिन रात एक ही के साथ दिनचर्या बिताते। सेवा के सम्बन्ध में आते, परिवार के सम्बन्ध में आते फिर भी अनेक में एक देखते। एक बाप का परिवार है, एक बाप ने सेवा प्रति निमित्त बनाया है। इसी विधि से अनेकों के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते, अनेक में भी एक देखते। ब्राह्मण जीवन में, हीरो पार्टधारी बनने की जीवन में, पास विद् आनर बनने की जीवन में, सिर्फ सीखना है तो क्या? एक का हिसाब। बस एक को जाना तो सब कुछ जाना। सब कुछ पाया। एक लिखना, सीखना, याद करना, सबसे सरल सहज है।
वैसे भी भारत में कहावत है तीन-पाँच की बातें नहीं करो। एक की बात करो। तीन-पाँच की बातें मुश्किल होती हैं, एक को याद करना, एक को जानना अति सहज है। तो यहाँ क्या सीखते हो? एक ही सीखते हो ना। एक में ही पदम समाए हुए हैं। इसीलिए बापदादा सहज रास्ता एक का ही बताते हैं। एक का महत्व जानो और महान बनो। सारा विस्तार एक में समाया हुआ है। सब ज्ञान आ गया ना। डबल फारेनर्स तो एक को अच्छी तरह जान गये हैं ना। अच्छा- आज सिर्फ आये हुए बच्चों को रिगार्ड देने के लिए, स्वागत करने के लिए एक का हिसाब सुना दिया।
बापदादा आज सिर्फ मिलने के लिए आये हैं। फिर भी सिकीलधे बच्चे जो आज वा कल आये हैं उन्हों के निमित्त कुछ न कुछ सुना लिया। बापदादा जानते हैं कि स्नेह के कारण कैसे मेहनत कर आने के साधन जुटाते हैं। मेहनत के ऊपर बाप की मुहब्बत पदमगुणा बच्चों के साथ है इसीलिए बाप भी स्नेह और गोल्डन वरशन्स से सभी बच्चों का स्वागत कर रहे हैं। अच्छा-
सर्व चारों ओर के स्नेह में लवलीन बच्चों को, सर्व लगन में मगन रहने वाले मन के मीत बच्चों को, सदा एक बाप के गीत गाने वाले बच्चों को, सदा प्रीति की रीति निभाने वाले साथी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
डबल विदेशी बच्चों से बापदादा की रुह-रिहान - 3-3-84
डबल विदेशी अर्थात् सदा स्वदेश, स्वीट होम का अनुभव करने वाले। सदा मैं स्वदेशी, स्वीट होम का रहने वाला, परदेश में, परराज्य में स्वराज्य अर्थात् आत्मिक राज्य और सुख का राज्य स्थापन करने गुप्त रूप से प्रकृति का आधार ले पार्ट बजाने के लिए आये हैं। हैं स्वदेशी, पार्ट परदेश में बजा रहे हैं। यह प्रकृति का देश है। स्व-देश आत्मा का देश है। अभी प्रकृति माया के वश में है, माया का राज्य है, इसलिए परदेश हो गया। यही प्रकृति आपके मायाजीत होने से आपकी सुखमय सेवाधारी बन जायेगी। माया-जीत, प्रकृतिजीत होने से अपना सुख का राज्य, सतोप्रधान राज्य, सुनहरी दुनिया बन जायेगी। यह स्पष्ट स्मृति आती है ना? सिर्फ सेकण्ड में चोला बदली करना है। पुराना छोड़ नया चोला धारण करना है। कितनी देर लगेगी? फरिश्ता सो देवता बनने में सिर्फ चोला बदली करने की देरी लगेगी। वाया स्वीट होम भी करेंगे लेकिन स्मृति अन्त में फरिश्ता सो देवता बने कि बने, यही रहेगी। देवताई शरीर की, देवताई जीवन की, देवताओं के दुनिया की, सतोप्रधान प्रकृति के समय की स्मृति रहती है? भरे हुए संस्कार अनेक बार के राज्य के, देवताई जीवन के इमर्ज होते हैं? क्योंकि जब तक आप होवनहार देवताओं के संस्कार इमर्ज नहीं होंगे तो साकार रूप में सुनहरी दुनिया इमर्ज कैसे होगी। आपके इमर्ज संकल्प से देवताई सृष्टि इस भूमि पर प्रत्यक्ष होगी। संकल्प स्वत: ही इमर्ज होता है या अभी समझते हो बहुत देरी है? देवताई शरीर आप देव आत्माओं का आह्वान कर रहे हैं। दिखाई दे रहे हैं अपने देवताई शरीर? कब धारण करेंगे? पुराने शरीर से दिल तो नहीं लग गई है? पुराना टाइट वस्त्र तो नहीं पहना हुआ है? पुराना शरीर, पुराना चोला पड़ा हुआ है, जो समय पर सेकण्ड में छोड़ नहीं सकते। निर्बन्धन अर्थात् लूज़ ड्रेस पहनना। तो डबल विदेशियों को क्या पसन्द होता है - लूज वा टाइट? टाइट तो पसन्द नहीं है ना! बन्धन तो नहीं है?
अपने आप से एवररेडी हो! समय को छोड़ो, समय नहीं गिनती करो। अभी यह होना है, यह होना है, वह समय जाने बाप जाने। सेवा जाने बाप जाने। स्व की सेवा से सन्तुष्ट हो? विश्व सेवा को किनारे रखो, स्व को देखो। स्व की स्थिति में, स्व के स्वतंत्र राज्य में, स्वयं से सन्तुष्ट हो? स्व की राजधानी ठीक चला सकते हो? यह सभी कर्मचारी, मंत्री, महामंत्री सभी आपके अधिकार में हैं? कहाँ अधीनता तो नहीं है? कभी आपके ही मंत्री, महामंत्री धोखा तो नहीं देते? कहाँ अन्दर ही अन्दर गुप्त अपने ही कर्मचारी माया के साथी तो नहीं बन जाते हैं? स्व के राज्य में आप राजाओं की रूलिंग पावर कन्ट्रोलिंग पावर यथार्थ रूप से कार्य कर रही है? ऐसे तो नहीं कि आर्डर करो शुभ संकल्प में चलना है और चलें व्यर्थ संकल्प। आर्डर करो सहनशीलता के गुण को और आवे हलचल का अवगुण। सभी शक्तियां, सभी गुण, हे स्व राजे, आपके आर्डर में हैं? यही तो आपके राज्य के साथी हैं। तो सभी आर्डर में हैं? जैसे राजे लोग आर्डर करते और सभी सेकण्ड में जी हजूर कर सलाम करते हैं, ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर है? इसमें एवररेडी हो? स्व की कमजोरी, स्व का बन्धन धोखा तो नहीं देगा?
आज बापदादा स्वराज्य अधिकारियों से स्व के राज्य का हाल-चाल पूछ रहे हैं! राजे बैठे हो ना? प्रजा तो नहीं हो ना? किसी के अधीन अर्थात् प्रजा, अधिकारी अर्थात् राजा। तो सभी कौन हो? राजे। राजयोगी या प्रजा योगी? सभी राजाओं की दरबार लगी हुई है ना? सतयुग के राज्य सभा में तो भूल जायेंगे, एक दो को पहचानेंगे नहीं कि हम वही संगमयुगी हैं। अभी त्रिकालदर्शी बन एक दो को जानते हो, देखते हो। अभी का यह राज्य दरबार सतयुग से भी श्रेष्ठ है। ऐसी राज्य दरबार सिर्फ संगमयुग पर ही लगती है। तो सबके राज्य का हालचाल ठीक है ना? बड़े आवाज से नहीं बोला कि ठीक है!
बापदादा को भी यह राज्य सभा प्रिय लगती है। फिर भी रोज़ चेक करना, अपनी राज्य दरबार रोज़ लगाकर देखना अगर कोई भी कर्मचारी थोड़ा भी अलबेला बने तो क्या करेंगे? छोड़ देंगे उसको? आप सबने शुरू के चरित्र सुने हैं ना! अगर कोई छोटे बच्चे चंचलता करते थे, तो उनको क्या सजा देते थे? उसका खाना बन्द कर देना या रस्सी से बांध देना - यह तो कामन बात है लेकिन उसको एकान्त में बैठने की ज्यादा घण्टा बैठने की सजा देते थे। बच्चे हैं ना, बच्चे तो बैठ नहीं सकते। तो एक ही स्थान पर बिना हलचल के 4-5 घण्टा बैठना उसकी कितनी सज़ा है। तो ऐसी रॉयल सज़ा देते थे। तो यहाँ भी कोई कर्मेन्द्रिय ऐसे वैसे करे तो अन्तर्मुखता की भट्ठी में उसको बिठा दो। बाहरमुखता में आना ही नहीं है, यही उसको सजा दो। आये फिर अन्दर कर दो। बच्चे भी करते हैं ना। बच्चों को बिठाओ फिर ऐसे करते हैं, फिर बिठा देते हैं। तो ऐसे बाहरमुखता से अन्तर्मुखता की आदत पड़ जायेगी। जैसे छोटे बच्चों की आदत डालते हैं ना - बैठो, याद करो। वह आसन नहीं लगायेंगे फिर-फिर आप लगाकर बिठायेंगे। कितनी भी वह टाँगे हिलावे तो भी उसको कहेंगे नहीं, ऐसे बैठो। ऐसे ही अन्तर्मुखता के अभ्यास की भट्ठी में अच्छी तरह से दृढ़ता के संकल्प से बाँधकर बिठा दो। और रस्सी नहीं बाँधनी है लेकिन दृढ़ संकल्प की रस्सी, अन्तर्मुखता के अभ्यास की भट्ठी में बिठा दो। अपने आपको ही सजा दो। दूसरा देगा तो फिर क्या होगा? दूसरे अगर आपको कहें यह आपके कर्मचारी ठीक नहीं हैं, इसको सजा दो। तो क्या करेंगे? थोड़ा-सा आयेगा ना - यह क्यों कहता! लेकिन अपने आपको देंगे तो सदाकाल रहेंगे। दूसरे के कहने से सदाकाल नहीं होगा। दूसरे के इशारे को भी जब तक अपना नहीं बनाया है तब तक सदाकाल नहीं होता, समझा!
राजे लोग कैसे हो? राज्य दरबार अच्छी लग रही है ना! सब बड़े राजे हो ना! छोटे राजे तो नहीं, बड़े राजे। अच्छा- आज ब्रह्मा बाप खास डबल विदेशियों को देख रूह-रूहान कर रहे थे। वह फिर सुनायेंगे। अच्छा - सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत, राज्य अधिकारी आत्मायें, गुणों और सर्व शक्तियों के खजानों को अपने अधिकार से कार्य में लगाने वाले, सदा स्वराज्य द्वारा सर्व कर्मचारियों को सदा के स्नेही साथी बनाने वाले, सदा निर्बन्धन, एवररेडी रहने वाले, सन्तुष्ट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
आस्ट्रेलिया ग्रुप से:- सदा याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले बापदादा और सर्व आत्माओं द्वारा ब्लैसिंग लेने वाली आत्मायें हो ना! यही ब्राह्मण जीवन की विशेषता है जो सदा पुरुषार्थ के साथ-साथ ब्लैसिंग लेते हुए बढ़ते रहें। ब्राह्मण जीवन में यह ब्लैसिंग एक लिफ्ट का काम करती है। इस द्वारा उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे।
आस्ट्रेलिया निवासियों से बापदादा का विशेष स्नेह हैं क्यों? क्योंकि सदा एक अनेकों को लाने की हिम्मत और उमंग में रहते हैं। यह विशेषता बाप को भी प्रिय है क्योंकि बाप का भी कार्य है - ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को वर्से का अधिकारी बनाना। तो फालो फादर करने वाले बच्चे विशेष प्रिय होते हैं ना। आने से ही उमंग अच्छा रहता है। यह एक आस्ट्रेलिया की धरनी को जैसे वरदान मिला हुआ है। एक अनेकों के निमित्त बन जाता है। बापदादा तो हर बच्चे के गुणों की माला सिमरण करते रहते हैं। आस्ट्रेलिया की विशेषता भी बहुत है लेकिन आस्ट्रेलिया वाले माया को भी थोड़ा ज्यादा प्रिय हैं। जो बाप को प्रिय होते हैं, वह माया को भी प्रिय हो जाते हैं। कितने अच्छे-अच्छे थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन माया के बन तो गये हैं ना। आप सब तो ऐसे कच्चे नहीं हो ना! कोई चक्र में आने वाले तो नहीं हो? बापदादा को अभी भी वह बच्चे याद हैं। सिर्फ क्या होता है - किसी भी बात को पूरा न समझने के कारण क्यों और क्या में आ जाते हैं, तो माया के आने का दरवाजा खुल जाता है। आप तो माया के दरवाजे को जान गये हो ना। तो न क्यों क्या में जाओ और न माया को आने का चांस मिले। सदा डबल लाक लगा रहे। याद और सेवा ही डबल लाक है। सिर्फ सेवा सिंगल लाक है। सिर्फ याद, सेवा नहीं तो भी सिंगल लाक है। दोनों का बैलेन्स - यह है डबल लाक। बापदादा की टी.वी. में आपका फोटो निकल रहा है, फिर बापदादा दिखायेंगे देखो इस फोटो में आप हो। अच्छा - फिर भी संख्या में हिम्मत से, निश्चय से अच्छा नम्बर है। बाप को ज्यादा प्रिय लगते हो इसलिए माया से बचने की युक्ति सुनाई। अच्छा- ओम् शान्ति।
वरदान:-समेटने की शक्ति द्वारा सेकण्ड में फुलस्टाप लगाने वाले नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप भव
लास्ट में फाइनल पेपर का क्वेश्चन होगा - सेकण्ड में फुलस्टाप। और कुछ भी याद न आये। बस बाप और मैं, तीसरी कोई बात नहीं..सेकण्ड में मेरा बाबा दूसरा न कोई ... यह सोचने में भी समय लगता है लेकिन टिक जाएं, हिलें नहीं। क्यों, क्या.. का कोई क्वेश्चन उत्पन्न न हो तब नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनेंगे। इसलिए अभ्यास करो जब चाहें विस्तार में आयें और जब चाहें समेट लें। ब्रेक पावरफुल हो।
स्लोगन:-जिसे स्वमान का अभिमान नहीं है वही सदा निर्माण है।
25/11/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 01/03/84
The Account of One.
Today, Baba is pleased to see all the easy yogi and constantly co-operative children. All the Father’s children who have come from all directions constantly have one faith and one Support. They follow the directions of One and are constant and stable. They sing praise of the One alone. They fulfil the responsibility of all relationships with the One. They always remain with the One. They all belong to the one family of God and all have the same aim and the same qualifications. They see everyone with the same pure and elevated good wishes. They constantly enable everyone to fly high with the same elevated pure desire. They all belong to the one world and experience all attainment in this one world. As soon as they open their eyes, they only see the one Baba. Whilst performing every action, they only have one Baba as their Companion. When coming to the end of the day and ending their karma yoga and service, they become absorbed in the love of One; they become merged in the love of One, that is, they become merged in the lap of love of the One. Their whole timetable is around spending the day and the night with the One. Whilst coming into connection with others in terms of service or as a family, whilst seeing all the many, they see just the One. This is the family of the one Father and the one Father has made them instruments for service. They come into connections and relationships with others in this way and see the One in the many. In this Brahmin life, in the life of playing a hero part , in the life of passing with honours , what is the one thing that you have to learn? The account of One. That’s all! When you know the One, you know everything. You have then attained everything. To write One, to learn about the One and to remember the One is the easiest of all.
In Bharat, they have a saying: “Don't speak of three or five. Simply speak of One.” It becomes difficult to speak of three or five. To remember One and to know One is extremely easy. So, what do you learn here? You learn the lesson of One. Multimillions are merged in the One. This is why BapDada shows you the easy path of One. Know the importance of One and become great. All the expansion is merged in the One. All knowledge is included in this, is it not? You double foreigners now know the One very well, do you not? Achcha. Today, Baba has come just to give regard to you children. In welcoming you, Baba has told you the account of One.
Today, BapDada has just come to meet you all. Nevertheless, for the sake of the long-lost and now-found children who came yesterday and today, Baba has spoken something. BapDada knows how, out of love, you find so many different ways and make so much effort to come here. Because of your efforts, you children have with you the Father's multi-million fold love. This is why BapDada is welcoming all of you children with love and golden versions. Achcha.
To all the children everywhere who are merged in love, to all the children who are friends of the heart and who remain absorbed in love, to the children who always sing songs of the one Father, to the companion children who always fulfil the responsibility of love, BapDada's love, remembrance and namaste.
BapDada's chit-chat with brothers and sisters from abroad – 03/03/84:
“Double -foreign” means those who constantly experience the land of the self and the sweet home . You are constant residents of that land, the ones who reside in the sweet home and have come to this land abroad, to a foreign kingdom to establish self-sovereignty, that is, to establish the soul-conscious kingdom, the kingdom of happiness and have taken the support of nature (matter) in order to play your parts in an incognito way. You are residents of the land of the self, you are playing your parts in a foreign land. This is the land of matter. The original land is the land of souls. Matter is now under the influence of Maya. It is Maya's kingdom and this is why it has become a foreign land. When you become a conqueror of Maya, this matter will become your server and give you happiness. When you become a conqueror of Maya and a conqueror of matter, it will become your kingdom of happiness, the satopradhan kingdom and the golden world. Do you have this awareness clearly? You simply have to change your costume in a second. You have to renounce the old costume and adopt a new one. How long will it take? It takes just as long to become a deity from an angel as it does to change your costume. You will also do this via the sweet home. However, at the end, you will have the awareness that you are now about to change from an angel to a deity. Do you have any awareness of the deity body, the deity life, the deity world and the time of satopradhan matter? Do the sanskars of the kingdom you have had many times, and the deity life with which you are filled, emerge? Because, until the sanskars emerge in you who are to become deities, how would the golden world emerge in the corporeal form? By your thoughts emerging, the deity world will be revealed on this earth. Do these thoughts emerge automatically by themselves? Or, do you feel that there is still a lot more time? Your deity bodies are invoking you deity souls. Can you see your deity bodies? When will you adopt them? Your heart is not attached to the old body, is it? You aren't wearing your old tight costume, are you? You are still wearing your old body, your old costume, which you are unable to renounce in a second at the relevant time. To be free from bondage means to wear a loose dress. So what do the double-foreigners prefer: loose or tight? You don't like tight, do you? You don't have any bondage, do you?
Are you yourself ever ready? Put time aside. Don't look at the time: this is now to happen; this is yet to happen. Time knows and the Father knows. Service knows and the Father knows. Are you content with service of the self? Put aside world service; look at yourself. Are you content with yourself in your own stage and in your own independent kingdom? Are you able to rule your own kingdom well? Are all your workers, all your ministers and senior ministers under your control? There isn't any dependency, is there? Do your own ministers and senior ministers sometimes deceive you? Sometimes, internally, your own workers don't secretly become companions of Maya, do they? In your own kingdoms, is the ruling power and the controlling power of you kings working accurately? It isn’t that you order pure thoughts to come but waste thoughts come instead, is it? That you order the virtue of tolerance and the defect of upheaval comes instead, is it? O self-sovereigns, are all your powers and virtues under your control? They are companions in your kingdom. So, are they all under your control? When kings issue an order, everyone says, “Yes, my Lord” ("Ji hazoor") in a second and salutes the king. So, do you also have such controlling power and ruling power? Are you ever ready in this? Your own weaknesses and your own bondages do not deceive you, do they?
Today, BapDada is asking you self-sovereigns about the welfare of the kingdom of the self. All of you sitting here are kings, are you not? You are not subjects, are you? To be dependent on something means to be a subject. To have all rights means to be a king. So, who are all of you? Are you Raja Yogis or praja yogis (subjects)? The court of all kings is held now, is it not? In the court of the kingdom of the golden age, you will have forgotten everything. You won't recognise one another as the same confluence-aged souls. It is now that you become trikaldarshi and know and see one another. Each one's court of the kingdom now is even more elevated than that of the golden age. Only at the confluence age does such a royal court exist. So, the condition of everyone's kingdom is fine, is it not? You didn’t say loudly that everything is fine!
BapDada too loves this royal court. Nevertheless, check yourself every day. Hold your royal court every day. If any one of your workers became even a little careless, what would you do? Would you sack him? All of you have heard about the divine activities of the beginning, have you not? If a small child was being mischievous, what punishment was he given? To stop his food or tie him with string was a common thing, but the punishment given was for him to sit in solitude for many hours. He was a child and children can't sit still. Therefore, his punishment for him to sit in one place for four to five hours without moving at all was a big thing! So they were given such royal punishment! Therefore, here, too, if any of your workers cause mischief, make them sit in the furnace (bhatthi) of introversion. You mustn't become extroverted. Punish them in this way. If any come out, send them back in. Children do this, don't they? When you make children sit down, they still do whatever they want and you then make them sit down again. Therefore, in this way, you will develop the habit of becoming introverted from extroverted. A habit is instilled in little children: Sit down and remember Baba. That child will not want to sit down, but you will again and again make the child sit down. No matter how much the child moves his legs, you would still say: No, sit like this. In this way, make them sit in the bhatthi of the practice of introversion by tying them properly with thoughts of determination. You don't have to tie them with any other string, for the thought of determination is itself the string. Make them sit in the bhatthi of the practice of introversion. Punish yourself. What would happen when others give you punishment? If others tell you that these workers of yours are not good and you should therefore punish them, what would you do? You would feel a little like this: “What is this one talking about?” However, if you yourself give yourself punishment, it remains for all time. By others telling you, it won't remain for all time. Until you have made the signals from others your own, they won't last all the time. Do you understand?
How are you kings? You are enjoying the royal court, are you not? All of you are great kings, are you not? You are not small kings, you are great kings. Achcha. Today, seeing the double foreigners, Father Brahma especially had a chit-chat. Baba will tell you about that later. Achcha.
To the souls who are constantly conquerors of Maya, conquerors of matter and those who have a right to self-sovereignty, to those who always use the treasures of virtues and all powers by right, to those who, with self-sovereignty, make all their workers into their loving companions for all time, to those who are constantly free from bondage and remain ever ready, to the contented souls, BapDada's love, remembrance and namaste.
BapDada meeting a group from Australia:
You are souls who receive blessings from BapDada and all souls by constantly keeping a balance of remembrance and service, are you not? It is a speciality of Brahmin life that, together with making effort, you always receive blessings and also continue to make progress. These blessings work in Brahmin life like a lift. You will continue to experience the flying stage through these.
Why does BapDada have special love for the residents of Australia? Because each one of you always has the courage and enthusiasm to bring many others. The Father loves this speciality because it is also the Father's task to enable the maximum number of souls to receive their right to the inheritance. Therefore, the children who follow the Father are especially loved. As soon as you come, you have great enthusiasm. This is a blessing that the land of Australia has received. One becomes an instrument for many. BapDada continues to turn the beads of the rosary of the virtues of each child. Australia has a lot of specialities. However, Maya too loves those from Australia a lot more. Those who are loved by the Father also become loved by Maya. So many good ones, even if only for a short time, have become Maya's, have they not? None of you are weak like them, are you? You are not going to get caught in any spinning, are you? BapDada remembers those children even now. What happens is that, because of not understanding something fully, they have questions of "Why?" and "What?" So, the door for Maya to enter opens. You now know the door for Maya, do you not? So, don't get caught up in “Why?” or What?” and Maya won't then receive a chance to come in. Always put on the double lock. Remembrance and service is the double lock. Just service by itself is a single lock. If there is just remembrance and no service, that too is just a single lock. Let there be a balance of the two. This is the double lock. Your photograph is being taken on BapDada's TV. Later, BapDada will show you: Look, you are in this picture! Achcha. With your courage and your faith, there is still a good number. You are very much loved by the Father and this is why Baba told you the way to remain safe from Maya.
Blessing:May you be a destroyer of attachment and an embodiment of remembrance who puts a full stop in a second with the power to pack up.
[font=Calibri]At the end, the question in the final paper will be: Put a full stop in a second! Let nothing else be remembered, but just “The Father and me, and no third thing”. In a second, you belong to the Father, “My Baba and none other”. It takes time to think it, but you have to become stable in that stage and not fluctuate at all. Let there be no questions of “Why?” or “What?” for only then will you become a destroyer of attachment and an embodiment of remembrance. So, practise coming into expansion when you want and packing up everything when you want. Let your brake be powerful.[/font]
Slogan:Those who have no arrogance of their self-respect are always humble.
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.