Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 23-Nov-2018 )
23-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - सावधान हो पढ़ाई पर पूरा ध्यान दो, ऐसे नहीं कि हमारा तो डायरेक्ट शिवबाबा से कनेक्शन है, यह कहना भी देह-अभिमान है''
प्रश्नः-
भारत अविनाशी तीर्थ स्थान है - कैसे?
उत्तर:-
भारत बाप का बर्थ प्लेस होने के कारण अविनाशी खण्ड है, इस अविनाशी खण्ड में सतयुग और त्रेतायुग में चैतन्य देवी-देवता राज्य करते हैं, उस समय के भारत को शिवालय कहा जाता है। फिर भक्तिमार्ग में जड़ प्रतिमायें बनाकर पूजा करते, शिवालय भी अनेक बनाते तो उस समय भी तीर्थ है इसलिए भारत को अविनाशी तीर्थ कह सकते हैं।
गीत:-
रात के राही, थक मत जाना........
ओम् शान्ति।
यह कौन सावधानी दे रहे हैं कि थक मत जाना - ओ रात के राही? यह शिवबाबा कहते हैं। कई बच्चे ऐसे भी हैं जो समझते हैं कि हमारा तो शिवबाबा ही है, उनसे हमारा कनेक्शन है। परन्तु वह भी सुनायेंगे तो जरूर ब्रह्मा मुख से ना। कई समझते हैं शिवबाबा हमको डायरेक्ट प्रेरणा करते हैं। परन्तु यह समझना रांग है। शिवबाबा शिक्षा तो जरूर ब्रह्मा द्वारा ही देंगे। तुमको समझा रहे हैं कि बच्चे थक मत जाना। भल तुम्हारा शिवबाबा से कनेक्शन है। शिवबाबा भी कहते हैं मनमनाभव। ब्रह्मा भी कहते हैं मन-मनाभव। तो ब्रह्माकुमार-कुमारियां भी कहती हैं मनमनाभव। परन्तु सावधानी देने लिए तो मुख चाहिए ना। कई बच्चे समझते हैं हमारा तो उनसे कनेक्शन है। परन्तु डायरेक्शन तो ब्रह्मा द्वारा देंगे ना। अगर डायरेक्शन आदि डायरेक्ट मिलते रहें तो फिर उनको यहाँ आने की दरकार ही क्या है? ऐसे-ऐसे बच्चे भी हैं जिनको यह ख्यालात आते हैं - शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा कहते हैं तो हमारे द्वारा भी कह सकते हैं। लेकिन ब्रह्मा बिना तो कनेक्शन हो नहीं सकता। कई ब्रह्मा वा ब्रहमाकुमार-कुमारियों से रूठते हैं तो ऐसे कहने लग पड़ते हैं। योग तो शिवबाबा से रखना ही है। बाप को बच्चों को शिक्षा सावधानी देने लिए कहना भी पड़े। बाप समझाते हैं तुम टाइम पर क्लास में नहीं आते हो, किसने कहा? शिवबाबा और ब्रह्मा दादा दोनों ने कहा, दोनों का शरीर एक है। तो कहते हैं सावधान होकर पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दो। ऊंच ते ऊंच बाप पढ़ाते हैं। पहले-पहले महिमा ही शिवबाबा की करनी है। उनकी महिमा बड़ी भारी है। बेअन्त महिमा है। उनकी महिमा के बहुत अच्छे-अच्छे अक्षर हैं परन्तु बच्चे कभी-कभी भूल जाते हैं। विचार सागर मंथन कर शिवबाबा की पूरी महिमा लिखनी चाहिए।
न्यू मैन किसको कहें? यूँ तो हेविनली न्यू मैन कृष्ण है। परन्तु इस समय ब्राह्मणों की चोटी गाई हुई है। बच्चों को रचा जाता है तो शिक्षा दी जाती है। अगर लक्ष्मी-नारायण को न्यू मैन कहें तो उनको शिक्षा देने की दरकार नहीं है। तो अब न्यू मैन कौन? यह बड़ी समझने और समझाने की बातें हैं। वह बाप है सर्वशक्तिमान, वर्ल्ड ऑलमाइटी। यह ‘वर्ल्ड ऑलमाइटी' अक्षर बाबा की महिमा में लिखना भूल जाते हैं। भारत की भी महिमा की जाती है कि भारत अविनाशी तीर्थ है, कैसे? तीर्थ तो भक्ति मार्ग में होते हैं। तो इनको अविनाशी तीर्थ कैसे कह सकते हैं? अविनाशी तीर्थ कैसे है? सतयुग में हम इनको तीर्थ कह सकते हैं? अगर हम इनको अविनाशी तीर्थ लिखते हैं तो कैसे? क्लीयर कर समझाया जाए कि हाँ, सतयुग-त्रेता में भी यह तीर्थ है, द्वापर-कलियुग में भी तीर्थ है। अविनाशी कहते हैं तो चारों युगों में सिद्धकर बताना पड़े। तीर्थ आदि तो होते हैं द्वापर से। फिर हम लिख सकते हैं भारत अविनाशी तीर्थ है? सतयुग-त्रेता में भी तीर्थ है, जहाँ चैतन्य देवी-देवता रहते हैं। यहाँ है जड़ तीर्थ, वह है चैतन्य सच्चा-सच्चा तीर्थ, जब शिवालय है। यह बातें बाप ही बैठ समझाते हैं। भारत है अविनाशी खण्ड। बाकी सब विनाश हो जाते हैं। यह बातें कोई मनुष्य नहीं जानते हैं। पतित-पावन बाप यहाँ आते हैं, जिनको पावन देवी-देवता बनाते हैं वही फिर इस शिवालय में रहते हैं। यहाँ बद्रीनाथ, अमरनाथ पर जाना पड़ता है। वहाँ भारत ही तीर्थ है। ऐसे नहीं कि वहाँ शिवबाबा है। शिवबाबा तो अभी है। अभी की ही सारी महिमा है। शिवबाबा का यह बर्थप्लेस है। ब्रह्मा का भी बर्थप्लेस हो गया। शंकर का बर्थप्लेस नहीं कहेंगे। उनको तो यहाँ आने की दरकार ही नहीं। वह तो निमित्त बना हुआ है विनाश अर्थ। विष्णु आते हैं जबकि दो रूप से राज्य करते हैं, पालना करते हैं। विष्णु के दो रूप युगल दिखाये हैं। उनकी यह (विष्णु) प्रतिमा है। वह तो सतयुग में आते हैं। तो हमको महिमा एक बाप की करनी पड़ती है। वह सेवीयर (बचाने वाला) भी है। वह लोग तो धर्म स्थापकों को भी सेवीयर कह देते हैं। क्राइस्ट, बुद्ध आदि को भी सेवीयर कह देते हैं। समझते हैं वह पीस स्थापन करने आये थे। परन्तु वह कोई पीस करते नहीं, किसको दु:ख से छुड़ाते नहीं। उनको तो धर्म की स्थापना करनी है। उनके पिछाड़ी उनके धर्म वाले आते जाते हैं। यह सेवीयर अक्षर अच्छा है। यह भी जरूर डालना चाहिए। यह चित्र जब विलायत में प्रत्यक्ष होंगे तो सब भाषाओं में निकलेंगे। वो लोग पोप आदि की कितनी महिमा करते हैं। प्रेजीडेंट आदि मर जाते हैं तो कितनी महिमा करते हैं, जो जितने बड़े आदमी उतनी उनकी महिमा होती है। लेकिन इस समय सब एक जैसे हो गये हैं। भगवान् को सर्वव्यापी कह देते हैं। यह तो सब आत्मायें अपने बाप को गाली देती हैं कि हम सब भी बाप हैं। ऐसे तो लौकिक बच्चे भी कह न सकें कि हम ही बाप हैं। हाँ, वह तो जब अपनी रचना रचें तब उनका बाप बनें। यह हो सकता है। यहाँ तो हम सब आत्माओं का बाप एक है। हम उनके बाप बन ही नहीं सकते। उनको बच्चा कह नहीं सकते। हाँ, यह तो ज्ञान की रमत-गमत होती है जो कहते हैं शिव बालक को वारिस बनाते हैं। इन बातों को तो कोई विरला समझने वाला समझे। शिव बालक को वारिस बनाए उन पर बलिहार जाते हैं। शिवबाबा पर बच्चे बलिहार जाते हैं। यह एक्सचेंज होती है। वर्सा देने का कितना महत्व है। बाप कहते हैं देह सहित जो कुछ है, उन सबका मुझे वारिस बनाओ। परन्तु देह-अभिमान टूटना मुश्किल है। अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करें तब देह-अभिमान टूटे। देही-अभिमानी बनना बड़ी मेहनत है। हम आत्मा अविनाशी हैं। हम अपने को शरीर समझ बैठे हैं। अब फिर अपने को आत्मा समझना - इसमें है मेहनत। बड़े ते बड़ी बीमारी है देह-अभिमान की। अपने को आत्मा समझ, जो परमपिता परमात्मा को याद नहीं करते तो विकर्म नहीं कटते।
बाप समझाते हैं अच्छी रीति पढ़ेंगे, लिखेंगे तो होंगे नवाब। श्रीमत पर चलना चाहिए, नहीं तो श्री श्री की दिल पर चढ़ना भी असम्भव है। दिल पर चढ़े तब तख्त पर बैठे। बहुत रहमदिल बनना है। मनुष्य बहुत दु:खी हैं। देखने में बहुत साहूकार हैं। पोप का देखो कितना मान है। बाप कहते हैं मैं कितना निरहंकारी हूँ। वह लोग थोड़ेही ऐसे कहेंगे कि मेरे स्वागत में इतना खर्चा न करो। बाबा तो कहाँ जाते हैं तो पहले से ही लिख देते हैं - कोई भी भभका आदि नहीं करना है, स्टेशन पर सबको नहीं आना है क्योंकि हम हैं ही गुप्त। यह भी करने की दरकार नहीं। कोई जानते थोड़ेही हैं कि यह कौन हैं। और सभी को जानते हैं। शिवबाबा को बिल्कुल नहीं जानते। तो गुप्त रहना अच्छा है। जितना निरहंकारी उतना अच्छा है। तुम्हारी नॉलेज ही है चुप रहने की। बाप की बैठ महिमा करनी है। उनसे ही समझ जायेंगे बाप पतित-पावन सर्वशक्तिमान है। बाप से ही वर्सा मिलता है। यह बच्चों के सिवाए और कोई कह न सके। तुम कहेंगे शिवबाबा से हमको नई दुनिया का वर्सा मिल रहा है। चित्र भी हैं। इन देवताओं जैसा हम बनते हैं। शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा वर्सा दे रहे हैं, इसलिए शिवबाबा की महिमा करते हैं। एम-आब्जेक्ट कितना क्लीयर है। देने वाला वह है। ब्रह्मा द्वारा सिखलाते हैं। चित्रों पर समझाना है। शिव के चित्र भी कितने बनाये हैं। बाप आकर पतित से पावन बनाए सबको मुक्ति, जीवन-मुक्ति में ले जाते हैं। चित्रों में भी क्लीयर है इसलिए बाबा जोर दे रहे हैं कि यह सबको दो तो वहाँ ले जाकर पढ़ेंगे। यहाँ से चीज़ ले जाते हैं वहाँ जाकर डेकोरेट कर रखते हैं। यह तो बहुत अच्छी चीज़ है। कपड़े के पर्दे तो बहुत काम की चीज़ हैं। इन चित्रों में भी करेक्शन होती रहती है। सेवीयर अक्षर भी जरूरी है। और कोई न सेवीयर है, न पतित-पावन है। भल पावन आत्मायें आती हैं, परन्तु वह कोई सबको पावन थोड़ेही बनाती हैं। उनके धर्म वालों को तो नीचे पार्ट में आना है। यह प्वाइंट्स हैं, सेन्सीबुल बच्चे जो हैं वही धारण करते हैं।
श्रीमत पर पूरा चलते नहीं तो पढ़ते नहीं, फिर फेल हो जाते हैं। स्कूल में मैनर्स भी देखे जाते हैं - इनकी चलन कैसी है? देह-अभिमान से सब विकार आ जाते हैं। फिर धारणा कुछ भी नहीं होती है। आज्ञाकारी बच्चों को ही बाप प्यार भी करेंगे। पुरुषार्थ बहुत करना है। किसको भी समझाना है तो पहले-पहले बाप की महिमा करनी है। बाप से वर्सा कैसे मिलता है? बाप की महिमा पूरी लिखनी है। चित्रों को तो बदली नहीं कर सकते। बाकी शिक्षा तो पूरी लिखनी पड़े। बाप की महिमा अलग है। बाप से कृष्ण को वर्सा मिला तो उनकी महिमा अलग है। बाप को न जानने कारण समझते नहीं कि भारत बड़ा तीर्थ है। यह सिद्ध कर बताना है कि भारत अविनाशी तीर्थ है। ऐसे-ऐसे तुम बच्चे बैठ समझाओ तो मनुष्य सुनकर चकित हो जायेंगे। भारत हीरे जैसा था फिर भारत को कौड़ी जैसा किसने बनाया? इसमें समझाने, विचार सागर मंथन करने की बड़ी दरकार है। बाबा तो झट बतलाते हैं, इसमें यह करेक्शन होनी चाहिए। बच्चे बतलाते नहीं हैं। बाबा करेक्शन तो चाहते हैं। एक इन्जीनियर था, वह मशीन की खराबी को समझ न सका तो दूसरा असिस्टेंट इन्जीनियर था उसने बैठ बताया, इसमें यह करने से यह ठीक हो जायेगा और सचमुच वह मशीन ठीक हो गई। तो वह बहुत खुश हो गया। बोला इसको तो इज़ाफा देना चाहिए। तो उनकी तनखा बढ़ा दी। बाप भी कहते हैं तुम करेक्ट करो तो हम वाह-वाह करेंगे। जैसे जगदीश संजय है, कभी अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स निकालते हैं तो बाबा खुश होते हैं। बच्चों को सर्विस का शौक चाहिए। यह प्रदर्शनी मेले तो सब होते रहेंगे। जहाँ-तहाँ किसका भी एग्जीवीशन होगा तो वहाँ यह भी करेंगे। यहाँ तो बुद्धि की कपाट खोलनी चाहिए। सबको सुख देना चाहिए। स्कूल में नम्बरवार पढ़ने वाले तो होते ही हैं। न पढ़ेंगे तो उनके मैनर्स भी खराब होंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी रूठकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। देह-अभिमान छोड़ स्वयं पर रहम करना है। बाप समान निरहंकारी बनना है।
2) अच्छे मैनर्स धारण करने हैं, सबको सुख देना है। आज्ञाकारी होकर रहना है।
वरदान:-आज्ञाकारी बन बाप की मदद वा दुआओं का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव
बाप की आज्ञा है "मुझ एक को याद करो''। एक बाप ही संसार है इसलिए दिल में सिवाए बाप के और कुछ भी समाया हुआ न हो। एक मत, एक बल, एक भरोसा.....जहाँ एक है वहाँ हर कार्य में सफलता है। उनके लिए कोई भी परिस्थिति को पार करना सहज है। आज्ञा पालन करने वाले बच्चों को बाप की दुआयें मिलती हैं इसलिए मुश्किल भी सहज हो जाता है।
स्लोगन:-नये ब्राह्मण जीवन की स्मृति में रहो तो कोई भी पुराना संस्कार इमर्ज नहीं हो सकता।
23/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, be cautious and pay full attention to the study. Don't think that you have a direct connection with Shiv Baba. Even to say this is body consciousness.
Question:
Why can Bharat be called an imperishable pilgrimage place?
Answer:
Because Bharat is the birthplace of the Father, it is an imperishable land. In the golden and silver ages, the living deities rule in the imperishable land. At that time, Bharat is called Shivalaya. Then, on the path of devotion, they make non-living images and worship them. They even make many Shivalayas (Shiva Temples) and so it is a pilgrimage place at that time too and this is why Bharat can be called an imperishable pilgrimage place.
Song:
O traveller of the night, do not become weary, the destination of dawn is not far off.
Om Shanti
O travellers of the night, who is cautioning you not to become weary? Shiv Baba says this. Some children are such that they think that Shiv Baba is their everything because they have a connection with Him alone. However, He also only speaks through the mouth of Brahma, does He not? Some think that Shiv Baba is inspiring them directly, but it is wrong to think that. Shiv Baba would surely give teachings through Brahma. He explains to you: Children, don't become weary! Although you have a connection with Shiv Baba, Shiv Baba says: Manmanabhav! Brahma also says: Manmanabhav! Even the Brahma Kumars and Kumaris say: Manmanabhav! However, a mouth is needed in order for a caution to be given. Some children think that their connection is with that One. However, He would give directions through Brahma, would He not? If you continue to receive directions etc. from Him directly, what would be the need for Him to come here? There are some children who have such thoughts as: Since Shiv Baba can speak through the mouth of Brahma, He can also speak through my mouth. However, you cannot have a connection with Him without Brahma. Some sulk with Brahma and the Brahma Kumars and Kumaris and then begin to say such things. We have to have yoga with Shiv Baba alone. In order to give us children teachings and to caution us, the Father has to say something. The Father says: You don't come to class on time. Who said this? Both Shiv Baba and Brahma Dada said it. The body of both is one. So, they say: Be cautious and pay full attention to the study. The highest-on-high Father is teaching you. First of all, you should praise Shiv Baba. His praise is very important. His praise is infinite. The words of His praise are very good but children sometimes forget them. You should churn the ocean of knowledge and write the full praise of Shiv Baba. Who would be called the new man? In fact, the heavenly new man is Krishna. However, the topknot of the Brahmins of this time is remembered. Children are created and so they are given teachings. If Lakshmi and Narayan are called the new men, there is no need to give them teachings. So, who is the new man? These matters have to be understood and explained. That Father is the Almighty Authority, the World Almighty. You forget to write the words ‘World Almighty’ in the Father's praise. Bharat is also praised as being an imperishable pilgrimage place. How is this, since pilgrimages take place on the path of devotion? How can Bharat be called an imperishable pilgrimage place? How is it an imperishable pilgrimage place? Can we call it a pilgrimage place in the golden age? If we say that it is an imperishable pilgrimage place, how is it that? This has to be clearly explained: Yes, it is a pilgrimage place in the golden and silver ages and also in the copper and iron ages. Since you call it imperishable, you have to prove its existence in all four ages. Pilgrimages etc. begin to take place in the copper age. Then, we can write that Bharat is an imperishable pilgrimage place. Even in the golden and silver ages, it is a pilgrimage place where the living deities reside. Here, there are non-living pilgrimages whereas when it is Shivalaya it is a true, living pilgrimage place. Only the Father sits and explains all of these things here. Bharat is an imperishable land. All the rest are destroyed. No human beings know these things. The Purifier Father comes here. Those whom He makes into pure deities then go and reside in that Shivalaya. Here, people have to go to Badrinath and Amarnath etc. There, Bharat itself is the pilgrimage place. It isn't that Shiv Baba exists there. Shiv Baba is here now. All His praise is of this time. This is Shiv Baba's birthplace, so it is also the birthplace of Brahma. It cannot be called the birthplace of Shankar. There is no need for him to come here. He has become the instrument for destruction. Vishnu comes when he rules and sustains the kingdom through his dual-form. They have shown a couple as the dual-form of Vishnu. This (Vishnu) is his image. He exists in the golden age. So, we have to sing praise of the one Father. He is also our Saviour. Those people call the founders of religions their Saviours. They call Christ and Buddha etc. their Saviours. They believe that they come to establish peace. However, they don't bring any peace. They don't liberate anyone from sorrow. They have to establish their own religions. Those of their own religions begin to follow them down. The word ‘Saviour’ is very good. This word should definitely also be used. When these pictures are shown abroad, they will be printed in all languages. Those people sing so much praise of the Pope etc. They sing so much praise of a president etc. when he dies. The bigger the person is, the more praise there is of him. However, at this time, all have become the same. They say that God is omnipresent. By saying that they themselves are the Father, all souls insult the Father. Worldly children wouldn’t say that they are their father. Yes, when they create their own creation, they become fathers; that is possible. Here, the Father of all of us souls is the One. We cannot become His Father. He cannot be called the Child. Yes, it is a game of knowledge when we say that we make Shiv Baba our Child, the Heir. Scarcely a few people who can understand these things will understand them. They make Child Shiva their Heir and surrender themselves to Him. Children surrender themselves to Shiv Baba; this exchange takes place. There is so much importance given to an inheritance. The Father says: Whatever you have, including your body, make Me the Heir of it all. However, it is difficult for your body consciousness to break. Only when you have the faith that you are a soul and you remember the Father can your body consciousness break. It requires a lot of effort for you to become soul conscious. We souls are imperishable. We began to consider ourselves to be bodies. It now requires effort for us to begin to consider ourselves to be souls once again. The biggest of all illnesses is body consciousness. The sins of those who don't consider themselves to be souls and who do not remember the Father are not cut away. The Father explains: If you study well, you will become a lord. You should follow shrimat. Otherwise, it will be impossible for you to climb into the heart of Shri Shri. Only when you climb into His heart can you then sit on the throne. You have to become very merciful. People are very unhappy. They are very wealthy to look at. Look how much regard the Pope receives! The Father says: I am so egoless. Those people would not tell you not to spend so much money on their welcome. Wherever Baba goes, he writes to them in advance: You mustn't have any type of splendour. Not everyone must come to the station, because I am incognito. There is even no need to do that. No one knows who that One is. They know everyone else. They don't know Shiv Baba at all. So it is good to remain incognito. The more egoless you remain, the better it is. Your knowledge is to remain silent. You have to sit and sing the praise of the Father. From that, people would understand that the Father is the Purifier and the Almighty Authority. Only from the Father do you receive the inheritance. No one, except the children, can say this. You would say that you are receiving the inheritance of the new world from Shiv Baba. There are the pictures. We are also becoming like those deities. Shiv Baba is giving us the inheritance through Brahma and this is why we praise Shiv Baba. Our aim and objective is so clear! He is the One who gives. He teaches us through Brahma. You have to explain using the pictures. So many images of Shiva have been created. The Father comes and makes you pure from impure and takes everyone into liberation and liberation-in-life. This is very clear in the pictures. Therefore, Baba emphasizes that you should give them to everyone so that they can take them and study them. When they take things from here, they use them to decorate their places there. This is something very good. Curtain material is very useful. These pictures continue to have corrections made to them. The word Saviour is also necessary. No one else is the Saviour or the Purifier. Although pure souls come down, they don’t make anyone pure. The souls of their religion have to come down and play their parts. These are points which only the sensible children will imbibe. When you don't follow shrimat fully, you are unable to study and then you fail . One’s manners too are noted at school. What is this one's behaviour like? All vices come due to body consciousness. Then, no dharna is able to take place. The Father only loves obedient children. You have to make a lot of effort. Whenever you explain to anyone, first of all, tell them the Father's praise and how you receive the inheritance from the Father. You have to write the Father's full praise. You cannot change the pictures, but you have to write the full teachings. The Father's praise is separate. Krishna received his inheritance from the Father and so his praise is separate. Because of not knowing the Father, they don't understand that Bharat is the greatest pilgrimage place. You have to tell them and prove that Bharat is an imperishable pilgrimage place. When you children sit and explain these things, people will be amazed when they hear them. Bharat was like a diamond, so who made it like a shell? A lot of explanation and churning of the ocean of knowledge is required. Baba instantly tells you: This correction should be made in this. Children don't show it to Baba, but Baba wants those corrections made. There was an engineer who couldn't understand why a machine was spoilt and then his assistant engineer sat and showed him that, by something being done, the machine would be all right. Then the machine truly did begin to work and that engineer became very pleased. He said that that person should be given a prize. So, his salary was increased. The Father also says: You do this accurately and I will praise you, just as when Jagdish (Sanjay) sometimes brings out good points, Baba is pleased. Children should be interested in doing service. Those exhibitions and melas all continue to take place. Wherever there is anyone's exhibition, he would also put up this exhibition. Here, the forehead of the intellect should open up completely. You should give everyone happiness. Those who study at school are numberwise. If they don't study, their manners remain bad. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found, children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. You mustn't sulk with anyone and thereby stop studying. Renounce body consciousness and have mercy for yourself. Become egoless, the same as the Father.
2. Imbibe good manners. Give everyone happiness. Remain obedient.
Blessing:May you experience the Father’s help and blessings by being obedient and thereby become an embodiment of success.
The Father’s order is “Remember Me alone”. The one Father is your world and so let there not be anything in your heart except the one Father. One direction, one strength and one support… Where there is One, there is success in every task. It is easy for that one to overcome any situation. The children who follow the Father’s instructions receive the Father’s blessings and this is why anything difficult becomes easy for them.
Slogan:Maintain the awareness of your new Brahmin life and no old sanskar will emerge.
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