Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-12-21 03:04:09
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
A |
Article Rating
|
Participate in Rating,
See Result
|
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- ) |
B | Quiz( Create, Edit, Delete ) |
Participate in Quiz,
See Result
|
Created/ Edited Time:- 19-12-2018 02:03:55 |
C | Survey( Create, Edit, Delete) | Participate in Survey, See Result | Created Time:- |
D |
Page No | Photo | Page Name | Count of Characters | Date of Last Creation/Edit |
---|---|---|---|---|
1 | Murali 1st Nov 2018 | 107807 | 2018-12-19 02:03:55 | |
2 | Murali 02-Nov-2018 | 132943 | 2018-12-19 02:03:55 | |
3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
16 | Murali 16-Nov-2018 | 118921 | 2018-12-19 02:03:55 | |
17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
22 | Murali 22-Nov-2018 | 124513 | 2018-12-19 02:03:56 | |
23 | Murali 23-Nov-2018 | 114180 | 2018-12-19 02:03:56 | |
24 | Murali 24-Nov-2018 | 127754 | 2018-12-19 02:03:56 | |
25 | Murali 25-Nov-2018 | 119742 | 2018-12-19 02:03:56 | |
26 | Murali 26-Nov-2018 | 128983 | 2018-12-19 02:03:56 | |
27 | Murali 27-Nov-2018 | 118467 | 2018-12-19 02:03:56 | |
28 | Murali 28-Nov-2018 | 132336 | 2018-12-19 02:03:56 | |
29 | Murali 29-Nov-2018 | 119739 | 2018-12-19 02:03:56 | |
30 | Murali 30- Nov 2018 | 133585 | 2018-12-19 02:03:56 |
Rating for Article:– Prajapita Brahma kumaris Murali - Nov - 2018 ( UID: 181218144032 )
Rating Module ( How to get good rate? See Tips )
If an article has achieved following standard than it is accepted as a good article to promote. Article Grade will be automatically promoted to A grade. (1) Count of characters: >= 2500
(2) Writing Originality Grand total score: >= 75%
(3) Grand Total score: >= 75%
(4) Count of raters: >= 5 (including all group member (mandatory) of specific group)
(5) Language of Article = English
(6) Posted/ Edited date of Article <= 15 Days
(7) Article Heading score: >=50%
(8) Article Information Score: >50%
If the article scored above rate than A grade and also if it belongs to any of the below category of article than it is specially to made Dotted underlined "A Grade". This Article Will be chosen for Web Award.
Category of Article: Finance & banking, Insurance, Technology, Appliance, Vehicle related, Gadgets, software, IT, Income, Earning, Trading, Sale & purchase, Affiliate, Marketing, Medicine, Pharmaceuticals, Hospital, Money, Fashion, Electronics & Electricals, Jobs & Job work, Real estate, Rent Related, Advertising, Travel, Matrimonial, Marriage, Doctor, Food & beverages, Dining, Furniture & assets, Jewellery, ornaments, Gold, Diamond, Silver, Computer, Men Wear, Women’s wear, Dress, style, movie, film, entertainment.
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN | Name Parameters For Grading | Achievement (Score) | Minimum Limit for A grade | Calculation of Mark |
---|---|---|---|---|
1 | Count of Raters ( Auto Calculated ) | 0 | 5 | 0 |
2 | Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) | 3768939 | 2500 | 1 |
3 | Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) | 2166 | 15 | 0 |
4 | Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 40% | 0 |
5 | Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 60% | 0 |
6 | Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 50% | 0 |
7 | Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 55% | 0 |
Grand Total Score & Article Grade | --- |
SI | Score Rated by Viewers | Rating given by (0) Users |
---|---|---|
(a) | Topic Information:- | NAN% |
(b) | Writing Skill:- | NAN% |
(c) | Grammer:- | NAN% |
(d) | Vocabulary Strength:- | NAN% |
(e) | Choice of Photo:- | NAN% |
(f) | Choice of Topic Heading:- | NAN% |
(g) | Keyword or summary:- | NAN% |
(h) | Material copied - Originality:- | NAN% |
Your Total Rating & % | NAN% |
Show/ Hide Rating Result
Details ( Page:- Murali 20-Nov-2018 )
20-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - याद रूपी दवाई से स्वयं को एवर निरोगी बनाओ, याद और स्वदर्शन चक्र फिराने की आदत डालो तो विकर्माजीत बन जायेंगे"
प्रश्नः-
जिन बच्चों को अपनी उन्नति का सदा ख्याल रहता है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
उनकी हर एक्ट सदा श्रीमत के आधार पर होगी। बाप की श्रीमत है - बच्चे, देह-अभिमान में न आओ, याद की यात्रा का चार्ट रखो। अपने हिसाब-किताब का पोतामेल रखो। चेक करो - कितना समय हम बाबा की याद में रहे, कितना समय किसको समझाया?
गीत:-
तू प्यार का सागर है........
ओम् शान्ति।
यहाँ जब बैठते हो तो बाप की याद में बैठना है। माया बहुतों को याद करने नहीं देती क्योंकि देह-अभिमानी हैं। कोई को मित्र-सम्बन्धी, कोई को खान-पान आदि याद आता रहता है। यहाँ जब आते हो तो बाप का आह्वान करना चाहिए। जैसे लक्ष्मी की पूजा होती है तो लक्ष्मी का आह्वान करते हैं, लक्ष्मी कोई आती नहीं है। यह सिर्फ कहा जाता है तो तुम भी बाप को याद करो अथवा आह्वान करो, बात एक ही है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। धारणा नहीं होती है क्योंकि विकर्म बहुत किये हुए हैं, जिस कारण बाप को भी याद नहीं कर सकते हैं। जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे, हेल्थ मिलेगी। है बहुत सहज, परन्तु माया अथवा पास्ट के विकर्म रूकावट डालते हैं। बाप कहते हैं तुमने आधाकल्प अयथार्थ याद किया है। अभी तो प्रैक्टिकल में आह्वान करते हो क्योंकि जानते हो आने वाला है, मुरली सुनाने वाला है। परन्तु यह याद की आदत पड़ जानी चाहिए। एवर निरोगी बनाने लिए सर्जन दवाई देते हैं कि मुझे याद करो। फिर तुम मेरे से आकर मिलेंगे। मुझे याद करने से ही वर्सा पायेंगे। बाप और स्वीटहोम को याद करना है। जहाँ जाना है, वह बुद्धि में रखना है। बाप ही यहाँ आकर सच्चा पैगाम देते हैं, और कोई भी ईश्वर का पैगाम नहीं देते हैं। वह तो यहाँ स्टेज पर पार्ट बजाने आते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं। ईश्वर का पता नहीं रहता है। उनको वास्तव में पैगम्बर, मैसेन्जर कह नहीं सकते। यह तो मनुष्यों ने नाम लगाये हैं। वह तो यहाँ आते हैं, उनको अपना पार्ट बजाना है। तो याद फिर कैसे करेंगे? पार्ट बजाते पतित बनना ही है। फिर अन्त में पावन बनना है। पावन तो बाप ही आकर बनाते हैं। बाप की याद से ही पावन बनना है। बाप कहते हैं पावन बनने का एक ही उपाय है - देह सहित जो भी देह के सम्बन्ध हैं, उनको भूल जाना है।
तुम जानते हो मुझ आत्मा को याद करने का फ़रमान मिला है। उस पर चलने से ही फ़रमानबरदार कहा जायेगा। जो जितना पुरुषार्थ करते हैं उतना फ़रमानबरदार है। याद कम करते तो कम फ़रमानबरदार हैं। फ़रमानबरदार पद भी ऊंच पाते हैं। बाप का फ़रमान है - एक तो मुझ बाप को याद करो, दूसरा नॉलेज को धारण करो। याद नहीं करते तो सजायें बहुत खानी पड़ती। स्वदर्शन चक्र फिराते रहेंगे तो बहुत धन मिलेगा। भगवानुवाच - मुझे याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ अर्थात् ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानो। मेरे द्वारा मुझे भी जानो और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का चक्र भी जानो। दो बातें मुख्य हैं। इस पर अटेन्शन देना है। श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देंगे तो ऊंच पद पायेंगे। रहमदिल बनना है, सबको रास्ता बताना है, कल्याण करना है। मित्र-सम्बन्धियों आदि को सच्ची यात्रा पर ले जाने की युक्ति रचनी है। वह हैं जिस्मानी यात्रायें, यह है रूहानी यात्रा। यह प्रीचुअल नॉलेज कोई के पास नहीं है। वह है सब शास्त्रों की फिलॉसाफी। यह है प्रीचुअल रूहानी नॉलेज। सुप्रीम रूह यह नॉलेज देते ही हैं रूहों को समझाकर वापस ले जाने के लिए।
कई बच्चे यहाँ आकर बैठते हैं तो कोई लाचारी बैठते हैं। अपनी स्व-उन्नति का कुछ भी ख्याल नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी हो तो रहमदिल बनें, श्रीमत पर चलें। फ़रमानबरदार नहीं हैं। बाप कहते हैं अपना चार्ट लिखो - कितना समय याद करते हैं? किस-किस समय याद करते हैं? आगे चार्ट रखते थे। अच्छा बाबा को न भेजो, अपने पास तो चार्ट रखो। अपनी शक्ल देखनी है - हम लक्ष्मी को वरने लायक बनें हैं? व्यापारी लोग अपने पास पोतामेल रखते हैं, कोई-कोई मनुष्य अपनी सारे दिन की दिनचर्या लिखते हैं। एक हॉबी रहती है लिखने की। यह हिसाब-किताब रखना तो बहुत अच्छी बात है कि कितना समय हम बाबा की याद में रहे? कितना समय किसको समझाया? ऐसा चार्ट रखें तो बहुत उन्नति हो जाए। बाप राय देते हैं ऐसे-ऐसे करो। बच्चों को अपनी उन्नति करनी है। माला का दाना जो बनते हैं उनको पुरुषार्थ बहुत करना है। बाबा ने कहा था - ब्राह्मणों की माला अभी नहीं बन सकती है, अन्त में बनेगी, जब रूद्र की माला बनेगी। ब्राह्मणों की माला के दाने बदलते रहते हैं। आज जो 3-4 नम्बर में हैं, कल वह लास्ट में चले जाते हैं। कितना फ़र्क हो जाता। कोई गिरते हैं तो दुर्गति को पा लेते। माला से तो गये, प्रजा में भी बिल्कुल चण्डाल जाकर बनते हैं। अगर माला में पिरोना है तो उसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़े। बाबा बहुत अच्छी राय देते हैं - अपनी उन्नति कैसे करो? सबके लिए कहते हैं। भल कोई गूँगा होते भी इशारे से कोई को बाप की याद दिला सकते हैं। बोलने वाले से ऊंचा जा सकते हैं। अंधे लूले कैसे भी हों तन्दरूस्त से भी जास्ती पद पा सकते हैं। सेकेण्ड में इशारा दिया जाता है। सेकेण्ड में जीवन-मुक्ति गाई हुई है ना। बाप का बना और वर्सा तो मिल ही जायेगा। फिर उसमें नम्बरवार पद जरूर हैं। बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बन जाता है। यहाँ तुम आत्मा तो हो ही मेल्स। तो फादर से वर्से का हक लेना है। सारा मदार पुरुषार्थ के ऊपर है। फिर कहेंगे कल्प पहले भी ऐसे पुरुषार्थ किया था। माया के साथ बॉक्सिंग है। पाण्डवों की थी ही माया रावण से लड़ाई। कोई तो पुरुषार्थ कर विश्व के मालिक डबल सिरताज बनते हैं, कोई फिर प्रजा में भी नौकर चाकर बनते हैं। सभी यहाँ पढ़ रहे हैं। राजधानी स्थापन हो रही है, अटेन्शन जरूर आगे वाले दानों तरफ जायेगा। 8 दाने कैसे चल रहे हैं, पुरुषार्थ से मालूम पड़ता है। ऐसे नहीं, अन्तर्यामी हैं, सबके अन्दर को रीड करते हैं। नहीं, अन्तर्यामी माना जानी जाननहार। ऐसे नहीं कि हर एक के दिल की बात बैठकर जानते हैं। जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। एक-एक की दिल को थोड़ेही बैठ रीड करेंगे। मुझे थॉट रीडर समझा है क्या? मै जानीजाननहार हूँ अर्थात् नॉलेजफुल हूँ। पास्ट, प्रेजन्ट, फ्यूचर को ही सृष्टि का आदि, मध्य, अन्त कहा जाता है। यह चक्र कैसे रिपीट होता है, उसकी रिपीटेशन को जानता हूँ। वह नॉलेज तुम बच्चों को पढ़ाने आता हूँ। हर एक समझ सकते हैं कि कौन कितनी सर्विस करते हैं, क्या पढ़ते हैं? ऐसे नहीं कि बाबा एक-एक को बैठ जानते हैं। बाबा सिर्फ यह धन्धा थोड़ेही बैठ करेंगे। वह तो जानी जाननहार मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, नॉलेजफुल है। कहते हैं मनुष्य सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त और जो मुख्य एक्टर्स हैं उनको जानता हूँ। बाकी तो अथाह रचना है। यह जानी-जाननहार अक्षर तो पुराना है। हम तो जो नॉलेज जानता हूँ वह तुमको पढ़ाता हूँ। बाकी तुम क्या-क्या करते हो वह सारा दिन बैठकर देखूँगा क्या? मैं तो सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाने आता हूँ। बाप कहेंगे बच्चे तो बहुत हैं, मैं बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हुआ हूँ। सारी कारोबार बच्चों से है। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनका मैं बाप हूँ। फिर वह सगा है वा लगा है सो मैं समझ सकता हूँ। हर एक की पढ़ाई है। श्रीमत पर एक्ट में आना है। कल्याणकारी बनना है। तुम बच्चे जानते हो बृह्स्पति को वृक्षपति डे कहा जाता है। वृक्षपति भी ठहरा, शिव भी ठहरा। है तो एक ही। गुरूवार के दिन स्कूल में बैठते हैं तो गुरू करते हैं। जैसे सोमनाथ का दिन सोमवार है, शिवबाबा सोमरस पिलाते हैं। यूँ नाम तो उनका शिव है परन्तु पढ़ाते हैं इसलिए सोमनाथ कह दिया है। रूद्र भी सोमनाथ को कहा जाता है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो ज्ञान सुनाने वाला हो गया। नाम बहुत रख दिये हैं। तो उसकी समझानी दी जाती है। शुरू से यह एक ही यज्ञ चलता है, किसी को भी पता नहीं है कि सारी पुरानी सृष्टि की सामग्री इस यज्ञ में स्वाहा होनी है। जो भी मनुष्य हैं, जो कुछ भी है, तत्वों सहित सब परिवर्तन होना है। यह भी बच्चों को देखना है, देखने वाले बड़े महावीर चाहिए। कुछ हो जाए, भूलना नहीं है। मनुष्य तो हाय-हाय, त्राहि-त्राहि करते रहेंगे। पहले-पहले तो समझाना है थोड़ा ख्याल करो, सतयुग में एक ही भारत था, मनुष्य बहुत थोड़े थे, एक धर्म था, अभी कलियुग अन्त तक कितने धर्म हैं! यह कहाँ तक चलेंगे? कलियुग के बाद जरूर सतयुग होगा। अभी सतयुग की स्थापना कौन करेगा? रचता तो बाप ही है। सतयुग की स्थापना और कलियुग का विनाश होता है। यह विनाश सामने खड़ा है। अभी तुम्हें बाप द्वारा पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर का नॉलेज मिला है। यह स्वदर्शन चक्र फिराना है। बाप और बाप की रचना को याद करना है। कितनी सहज बात है।
चित्रों में ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन ऑफ ब्लिस लिखते हैं, उसमें ओशन ऑफ लव अक्षर जरूर आना चाहिए। बाप की महिमा बिल्कुल अलग है। सर्वव्यापी कहने से महिमा को ही ख़त्म कर देते हैं। तो ओशन ऑफ लव अक्षर जरूर लिखना है, यह बेहद के माँ-बाप का प्यार है, जिसके लिए ही गाते हैं तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे, परन्तु जानते नहीं हैं। अब बाप कहते हैं तुम मेरे को जानने से सब कुछ जान जायेगे। मैं ही सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान समझाऊंगा। एक जन्म की बात नहीं, सारे सृष्टि के पास्ट, प्रेजन्ट, फ्यूचर को जानते हैं, तो कितना बुद्धि में आना चाहिए। जो देही-अभिमानी नहीं बनते हैं उन्हें धारणा भी नहीं होती है। सारा कल्प देह-अभिमान चला है। सतयुग में भी परमात्मा का ज्ञान नहीं रहता। यहाँ पार्ट बजाने आये और परमात्मा का ज्ञान भूल गये। यह तो समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु वहाँ दु:ख की बात नहीं है। यह बाप की महिमा है, ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। एक बूँद है मन्मनाभव, मध्याजी भव........ यह मिलने से हम विषय सागर से क्षीरसागर में चले जाते हैं। कहते हैं ना - स्वर्ग में दूध-घी की नदियाँ बहती हैं। यह सब महिमा है। बाकी नदी कोई दूध-घी की थोड़ेही हो सकती है। बरसात में तो पानी निकलेगा। घी कहाँ से निकलेगा! यह बड़ाई दी हुई है। यह भी तुम जानते हो स्वर्ग किसको कहा जाता है। भल अजमेर में मॉडल है परन्तु समझते कुछ भी नहीं। तुम कोई को भी समझाओ तो झट समझ जायेंगे। जैसे बाप को आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है वैसे तुम बच्चों की बुद्धि में भी फिरना चाहिए। बाप का परिचय देना है, एक्यूरेट महिमा सुनानी है, उनकी महिमा अपरमपार है। सब एक समान नहीं हो सकते। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। आगे चल देखेंगे, दिव्य दृष्टि में जो बाबा ने दिखाया है वह फिर प्रैक्टिकल होना है। स्थापना और विनाश का साक्षात्कार कराते रहते हैं। अर्जुन को भी दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार कराया था फिर प्रैक्टिकल में देखा। तुम भी इन ऑखों से विनाश देखेंगे। वैकुण्ठ का साक्षात्कार किया है, वह भी जब प्रैक्टिकल में जायेंगे तो फिर साक्षात्कार बन्द हो जायेगा। कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं, जो फिर बच्चों को औरों को समझानी है - बहनों-भाइयों आकर ऐसे बाबा से वर्सा लो, इस ज्ञान और योग के द्वारा।
बाबा निमंत्रण पत्र को करेक्ट कर रहे हैं। नीचे सही करते हैं तन-मन-धन से ईश्वरीय सेवा पर उपस्थित हैं, इस कार्य के लिए। आगे चल महिमा तो निकलनी है। कल्प पहले जिन्होंने वर्सा लिया है, उनको आना ही है। मेहनत करनी है। फिर खुशी का पारा चढ़ते-चढ़ते स्थाई बन जायेगा। फिर घड़ी-घड़ी मुरझायेंगे नहीं। त़ूफान तो बहुत आयेंगे, उनको पार करना है। श्रीमत पर चलते रहो। व्यवहार भी करना है। जब तक सर्विस का सबूत नहीं देते तब तक बाबा इस सर्विस में लगा नहीं सकते। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देकर अपना और दूसरों का कल्याण करना है। सबको सच्ची यात्रा करानी है, रहमदिल बनना है।
2) बाप के हर फ़रमान को पालन करना है। याद वा सेवा का चार्ट जरूर रखना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है।
वरदान:-सच्ची दिल से साहेब को राज़ी करने वाले राज़युक्त, युक्तियुक्त, योगयुक्त भव
बापदादा का टाइटल दिलवाला, दिलाराम है। जो सच्ची दिल वाले बच्चे हैं उन पर साहेब राज़ी हो जाता है। दिल से बाप को याद करने वाले सहज ही बिन्दु रूप बन सकते हैं। वह बाप की विशेष दुआओं के पात्र बन जाते हैं। सच्चाई की शक्ति से समय प्रमाण उनका दिमाग युक्तियुक्त, यथार्थ कार्य स्वत: ही करता है। भगवान को राज़ी किया हुआ है इसलिए हर संकल्प, बोल और कर्म यथार्थ होता है। वह राजयुक्त, युक्तियुक्त, योगयुक्त बन जाते हैं।
स्लोगन:-बाप के लव में सदा लीन रहो तो अनेक प्रकार के दुख और धोखे से बच जायेंगे।
20/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, make yourselves ever free from disease with the medicine of remembrance. Instil the habit of remembrance and of spinning the discus of self-realization and you will become conquerors of sinful actions.
Question:
What is the sign of the children who are constantly concerned about their progress?
Answer:
Their every act will always be on the basis of shrimat. The Father’s shrimat is: Children, don’t come into body consciousness. Keep a chart of your pilgrimage of remembrance. Keep a record of your account of profit and loss. Check for how long you stayed in remembrance of Baba and for how long you explained to others.
Song:
You are the Ocean of Love. We thirst for one drop from You.
Om Shanti
When you sit here, sit in remembrance of the Father. Because you are body conscious, Maya prevents many of you from staying in remembrance. Some remember their friends and relatives whereas others remember food and drink etc. When you come here, you should invoke the Father, just as they invoke Lakshmi when they worship her. However, she doesn’t really come. Whether you say “Remember the Father” or “Invoke Him”, it is the same thing. It is by having remembrance that your sins will be absolved. You are not able to imbibe this knowledge because you have committed many sins. This is also why you are not able to remember the Father. The more you remember the Father, the more you will become conquerors of sinful actions and the more healthy you will become. It is very easy, yet Maya, the sins of the past, hinders you. The Father says: For half a cycle you have been remembering Me inaccurately. You are invoking Him in a practical way because you know that He is going to come and speak the murli. However, this habit of remembrance must be instilled. In order to make you free from disease, the Surgeon gives you medicine: Remember Me! Then, you will come to meet Me. You will attain your inheritance by remembering Me. Remember the Father and the sweet home. Keep in your intellects the place you are to return to. Only the Father comes here and gives you the true message. No one else can give you God’s message. Others come down here onto the stage to play their parts. They forget who God is; they don’t know God. In fact, they cannot be called messengers. It was human beings who gave them that name. They come down here to play their parts, so how would they remember Him? While playing their parts, they have to become impure. Then, at the end, they have to become pure. It is the Father who comes and makes them pure. You become pure by remembering the Father. The Father says: There is only one method for purification: forget all your bodily relations including your own body. You know: I, the soul, have been given the order to have remembrance. By following this order, you will be called obedient. The more effort you make in this, the more obedient you become. If you have less remembrance, it means that you are less obedient. It is the obedient ones who claim a high status. The Father’s first order is: Remember Me, your Father, and, secondly, imbibe this knowledge . If you do not stay in remembrance, you will have to endure a great deal of punishment. You will receive a great deal of wealth if you continue to spin the discus of self-realisation. God speaks: Remember Me and spin the discus of self-realisation, that is, understand the beginning, the middle and the end of the drama. Recognise Me and understand from Me the beginning, the middle and the end of the cycle. These are the two main aspects. You have to pay attention to these. If you pay full attention to shrimat, you will claim a high status. Become ones with merciful hearts and show the path to everyone; bring benefit to them. Create a method to take all your friends and relatives on this true pilgrimage. Those are physical pilgrimages whereas this is the spiritual pilgrimage. No one else has this spiritual knowledge. All of their knowledge is just the philosophy of the scriptures. This is spiritual knowledge . The supreme Spirit gives this knowledge in order to explain to the spirits and He then takes them back home. When some children come and sit here, it is just for the sake of it; they have no concern for their own progress. They have a great deal of body consciousness. If they were to become soul conscious, they would become merciful and follow shrimat. They are not obedient. The Father says: Keep a chart of how long you stayed in remembrance and at what times you stayed in remembrance. Previously, you used to keep a chart. Achcha, if you don’t send your chart to Baba, at least keep it with you. Look at your face and see if you have become worthy of claiming Lakshmi. Business people keep their accounts. Some people keep an account of their whole day’s activity. It is as though they have the hobby of writing it. It is very good to keep an account of how long you stayed in remembrance of Baba and for how long you explained to others. If you keep such a chart, you can make a lot of progress. The Father gives you advice about what you should do. You children have to make your own progress. Those who are to become the beads of the rosary have to make a great deal of effort. Baba has said that the rosary of Brahmins cannot be created now; it will only be created at the end when the rosary of Rudra is created. The beads of the rosary of Brahmins keep changing. Those who are in the third or fourth number today become the last ones tomorrow. There is such a difference! Some fall and become degraded. They don’t just fall out of the rosary; they go and become cremators for the subjects. If you want to be threaded in the rosary, you have to make a great deal of effort. Baba gives very good advice on how to make self-progress. Baba says this to everyone. Even someone who is dumb can remind others of Baba with a signal. He can go even higher than those who are able to speak. Someone who is blind or crippled can claim a status higher than those who are healthy. A signal is given in a second. “Liberation-in-life in a second” has been remembered. As soon as you belong to the Father, you certainly do receive the inheritance, but the status you receive is surely numberwise. As soon as a child is born, he receives the right to his inheritance. Here, all of you souls are males and so you have to claim from the Father the right to the inheritance. Everything depends on effort, but it would then also be said that you also made the same effort in the previous cycle. This is boxing with Maya. The Pandavas fight with Maya, Ravan. Some make effort and become the masters of the world with a double crown, whereas others become maids and servants of the subjects. All are studying here. A kingdom is being established. Baba’s attention is definitely drawn to the leading beads. It is understood from their efforts how much progress the eight beads are making. It is not that He knows the secrets of everyone’s heart or that He reads what’s happening inside everyone; no. To be “Janijananhar” means to know everything. It is not that He knows everything in each one’s heart. “Janijananhar” means to be knowledge-full . He knows the beginning, the middle and the end of the world. It is not that He would sit and read what is in the heart of each one. Do you think I am a thought reader? I am Janijananhar, that is, knowledge-full. The past, present and future are called the beginning, the middle and the end of the world. I know the repetition of this cycle, how it repeats. I come to teach you children this knowledge. Each one of you can understand how much service you do and to what extent you are studying. It is not that Baba sits and knows what is inside each one of you. Baba would not sit and do that business. He is the Knower of all Secrets. He is the knowledge-full Seed of the human world tree. He says that He knows the beginning, the middle and the end of the human world and its main actors. The rest of creation is limitless. The word ‘Janijananhar’ (One who knows all secrets) is very old. I teach you whatever knowledge I have. However I would not sit all day and watch what you do. I come to teach you easy knowledge and yoga. The Father says: I have many children. I reveal Myself to the children. All My business is with the children. I am the Father of those who become My children. Only then can I understand whether that child is a real one or a stepchild. Each one is studying. You should act on the basis of shrimat and become benefactors. You children understand the day of the Lord of the Tree as the day of the Lord of Jupiter. As well as being Shiva, He is the Lord of the Tree, the two are one and the same. Children start school on a Thursday (day of the Satguru), and so that is like adopting a guru (their teacher). For example, Monday is the day of Somnath (Lord of Nectar) and so Shiv Baba gives you nectar to drink. In fact, His name is Shiva but, because He teaches you, He is called Somnath. Somnath is also called Rudra. He creates the sacrificial fire of knowledge of Rudra and so He becomes the One who gives knowledge. He has been given many names and an explanation is given of each one. Only this one yagya has continued from the beginning. No one knows that everything of the whole old world is going to be sacrificed into this sacrificial fire. All human beings and everything else, including the elements, will be transformed. You children are going to see this. You have to become mahavirs (brave warriors) in order to see it. No matter what happens, you should not forget Baba. Human beings will continue to cry out in distress. First of all, explain to everyone: Just think, in the golden age, there was only one Bharat. There were very few human beings and there was only one religion. Now, at the end of the iron age, there are so many religions. For how long will this continue? The golden age will definitely come after the iron age. Now, who would establish heaven? Only the one Father is the Creator. There is establishment of the golden age and destruction of the iron age. That destruction is standing in front of you. You have now received the knowledge of the past, present and future from the Father. You have to spin the discus of self-realisation. Remember the Father and the Father’s creation. This is such an easy thing!
Song: You are the Ocean of Love.
On the picture it is written “Ocean of Knowledge, Ocean of Bliss”, but you must definitely add the words, “Ocean of Love”. The Father’s praise is totally unique. By saying that He is omnipresent, they finish His praise. Therefore, the words “Ocean of Love” must definitely be written. This is the love of the unlimited Mother and Father. It is of Him that they say: “Through Your mercy we receive limitless happiness”, but they don’t know this. Now the Father says: By knowing Me, you will come to know everything. Only I explain the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world. It is not just a question of one birth, because He knows the past, present and future of the whole world. So, how much should enter your intellects? Those who do not become soul conscious cannot imbibe this knowledge. Body consciousness has continued for the whole cycle. Even in the golden age, there is no knowledge of God. You forget the knowledge of God when you come down here to play your parts. You do understand that a soul sheds one body and takes another. However, there is no question of sorrow there. The Father’s praise is that He is the Ocean of Knowledge and the Ocean of Love. The one drop is: Manmanabhav and Madhyajibhav. By receiving this drop, you are able to go across the ocean of poison into the ocean of milk. People say that rivers of milk and ghee flow in heaven. All of that is just praise. How can there be rivers of milk and ghee? After a rainfall, only water would flow. Where would ghee come from? That is just an indication of the richness there. You also understand what is known as heaven. Although there is a model of heaven in Ajmer, no one knows anything. You can explain to anyone and they will understand very quickly. Just as the Father has the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world, in the same way, this should spin in the intellects of you children too. You have to give the Father’s introduction. You have to relate His praise accurately. His praise is limitless. Not everyone can be the same. Each one has received his own part. As you go further, you will see in a practical way whatever Baba showed you happening in divine visions. He continues to give you visions of establishment and destruction. Arjuna was also granted visions which he later saw in a practical way. You too will see destruction with your physical eyes. You have had visions of Paradise. Those visions will come to an end when you go there in a practical way. Very good things are being explained, which you children have to explain to others. Brothers and sisters: Come and claim your inheritance from Baba through this knowledge and yoga. Baba is correcting the invitation letter. At the bottom, He signed it: We are present on Godly service, using our minds, bodies and wealth for this task. As time goes by, there will be praise. Those who claimed their inheritance a cycle ago will definitely come. However, you do have to make effort. Then, your degree of happiness will gradually rise and that happiness will remain stable and you will not wilt again and again. Many storms will come but you have to overcome them. Continue to follow shrimat. Also stay in connection with others. Until you give Baba the proof of service, Baba cannot engage you fully in this service. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Pay full attention to shrimat and bring benefit to yourself and others. Become merciful and enable everyone to go on this true pilgrimage.
2. Follow every order Baba gives you. Definitely keep a chart of your remembrance and service. Spin the discus of self-realisation.
Blessing:May you be raazyukt, yuktiyukt and yogyukt and please the Lord with your honest heart.
BapDada’s titles are Dilwala (Conqueror of Hearts) and Dilaram (Comforter of Hearts). The children who have honest hearts please the Lord. Those who remember the Father in their hearts easily become the point form. They especially become worthy of the Father’s blessings. With the power of truth and according to the time, their brains automatically work accurately in a yuktiyukt manner. They please God and so their every thought, word and deed is accurate. They become raazyukt, yuktiyukt and yogyukt.
Slogan:Remain constantly merged in the Father’s love and you will be safe from all the many types of sorrow and deception.
"मीठे बच्चे - याद रूपी दवाई से स्वयं को एवर निरोगी बनाओ, याद और स्वदर्शन चक्र फिराने की आदत डालो तो विकर्माजीत बन जायेंगे"
प्रश्नः-
जिन बच्चों को अपनी उन्नति का सदा ख्याल रहता है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
उनकी हर एक्ट सदा श्रीमत के आधार पर होगी। बाप की श्रीमत है - बच्चे, देह-अभिमान में न आओ, याद की यात्रा का चार्ट रखो। अपने हिसाब-किताब का पोतामेल रखो। चेक करो - कितना समय हम बाबा की याद में रहे, कितना समय किसको समझाया?
गीत:-
तू प्यार का सागर है........
ओम् शान्ति।
यहाँ जब बैठते हो तो बाप की याद में बैठना है। माया बहुतों को याद करने नहीं देती क्योंकि देह-अभिमानी हैं। कोई को मित्र-सम्बन्धी, कोई को खान-पान आदि याद आता रहता है। यहाँ जब आते हो तो बाप का आह्वान करना चाहिए। जैसे लक्ष्मी की पूजा होती है तो लक्ष्मी का आह्वान करते हैं, लक्ष्मी कोई आती नहीं है। यह सिर्फ कहा जाता है तो तुम भी बाप को याद करो अथवा आह्वान करो, बात एक ही है। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। धारणा नहीं होती है क्योंकि विकर्म बहुत किये हुए हैं, जिस कारण बाप को भी याद नहीं कर सकते हैं। जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे, हेल्थ मिलेगी। है बहुत सहज, परन्तु माया अथवा पास्ट के विकर्म रूकावट डालते हैं। बाप कहते हैं तुमने आधाकल्प अयथार्थ याद किया है। अभी तो प्रैक्टिकल में आह्वान करते हो क्योंकि जानते हो आने वाला है, मुरली सुनाने वाला है। परन्तु यह याद की आदत पड़ जानी चाहिए। एवर निरोगी बनाने लिए सर्जन दवाई देते हैं कि मुझे याद करो। फिर तुम मेरे से आकर मिलेंगे। मुझे याद करने से ही वर्सा पायेंगे। बाप और स्वीटहोम को याद करना है। जहाँ जाना है, वह बुद्धि में रखना है। बाप ही यहाँ आकर सच्चा पैगाम देते हैं, और कोई भी ईश्वर का पैगाम नहीं देते हैं। वह तो यहाँ स्टेज पर पार्ट बजाने आते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं। ईश्वर का पता नहीं रहता है। उनको वास्तव में पैगम्बर, मैसेन्जर कह नहीं सकते। यह तो मनुष्यों ने नाम लगाये हैं। वह तो यहाँ आते हैं, उनको अपना पार्ट बजाना है। तो याद फिर कैसे करेंगे? पार्ट बजाते पतित बनना ही है। फिर अन्त में पावन बनना है। पावन तो बाप ही आकर बनाते हैं। बाप की याद से ही पावन बनना है। बाप कहते हैं पावन बनने का एक ही उपाय है - देह सहित जो भी देह के सम्बन्ध हैं, उनको भूल जाना है।
तुम जानते हो मुझ आत्मा को याद करने का फ़रमान मिला है। उस पर चलने से ही फ़रमानबरदार कहा जायेगा। जो जितना पुरुषार्थ करते हैं उतना फ़रमानबरदार है। याद कम करते तो कम फ़रमानबरदार हैं। फ़रमानबरदार पद भी ऊंच पाते हैं। बाप का फ़रमान है - एक तो मुझ बाप को याद करो, दूसरा नॉलेज को धारण करो। याद नहीं करते तो सजायें बहुत खानी पड़ती। स्वदर्शन चक्र फिराते रहेंगे तो बहुत धन मिलेगा। भगवानुवाच - मुझे याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ अर्थात् ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जानो। मेरे द्वारा मुझे भी जानो और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का चक्र भी जानो। दो बातें मुख्य हैं। इस पर अटेन्शन देना है। श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देंगे तो ऊंच पद पायेंगे। रहमदिल बनना है, सबको रास्ता बताना है, कल्याण करना है। मित्र-सम्बन्धियों आदि को सच्ची यात्रा पर ले जाने की युक्ति रचनी है। वह हैं जिस्मानी यात्रायें, यह है रूहानी यात्रा। यह प्रीचुअल नॉलेज कोई के पास नहीं है। वह है सब शास्त्रों की फिलॉसाफी। यह है प्रीचुअल रूहानी नॉलेज। सुप्रीम रूह यह नॉलेज देते ही हैं रूहों को समझाकर वापस ले जाने के लिए।
कई बच्चे यहाँ आकर बैठते हैं तो कोई लाचारी बैठते हैं। अपनी स्व-उन्नति का कुछ भी ख्याल नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी हो तो रहमदिल बनें, श्रीमत पर चलें। फ़रमानबरदार नहीं हैं। बाप कहते हैं अपना चार्ट लिखो - कितना समय याद करते हैं? किस-किस समय याद करते हैं? आगे चार्ट रखते थे। अच्छा बाबा को न भेजो, अपने पास तो चार्ट रखो। अपनी शक्ल देखनी है - हम लक्ष्मी को वरने लायक बनें हैं? व्यापारी लोग अपने पास पोतामेल रखते हैं, कोई-कोई मनुष्य अपनी सारे दिन की दिनचर्या लिखते हैं। एक हॉबी रहती है लिखने की। यह हिसाब-किताब रखना तो बहुत अच्छी बात है कि कितना समय हम बाबा की याद में रहे? कितना समय किसको समझाया? ऐसा चार्ट रखें तो बहुत उन्नति हो जाए। बाप राय देते हैं ऐसे-ऐसे करो। बच्चों को अपनी उन्नति करनी है। माला का दाना जो बनते हैं उनको पुरुषार्थ बहुत करना है। बाबा ने कहा था - ब्राह्मणों की माला अभी नहीं बन सकती है, अन्त में बनेगी, जब रूद्र की माला बनेगी। ब्राह्मणों की माला के दाने बदलते रहते हैं। आज जो 3-4 नम्बर में हैं, कल वह लास्ट में चले जाते हैं। कितना फ़र्क हो जाता। कोई गिरते हैं तो दुर्गति को पा लेते। माला से तो गये, प्रजा में भी बिल्कुल चण्डाल जाकर बनते हैं। अगर माला में पिरोना है तो उसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़े। बाबा बहुत अच्छी राय देते हैं - अपनी उन्नति कैसे करो? सबके लिए कहते हैं। भल कोई गूँगा होते भी इशारे से कोई को बाप की याद दिला सकते हैं। बोलने वाले से ऊंचा जा सकते हैं। अंधे लूले कैसे भी हों तन्दरूस्त से भी जास्ती पद पा सकते हैं। सेकेण्ड में इशारा दिया जाता है। सेकेण्ड में जीवन-मुक्ति गाई हुई है ना। बाप का बना और वर्सा तो मिल ही जायेगा। फिर उसमें नम्बरवार पद जरूर हैं। बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बन जाता है। यहाँ तुम आत्मा तो हो ही मेल्स। तो फादर से वर्से का हक लेना है। सारा मदार पुरुषार्थ के ऊपर है। फिर कहेंगे कल्प पहले भी ऐसे पुरुषार्थ किया था। माया के साथ बॉक्सिंग है। पाण्डवों की थी ही माया रावण से लड़ाई। कोई तो पुरुषार्थ कर विश्व के मालिक डबल सिरताज बनते हैं, कोई फिर प्रजा में भी नौकर चाकर बनते हैं। सभी यहाँ पढ़ रहे हैं। राजधानी स्थापन हो रही है, अटेन्शन जरूर आगे वाले दानों तरफ जायेगा। 8 दाने कैसे चल रहे हैं, पुरुषार्थ से मालूम पड़ता है। ऐसे नहीं, अन्तर्यामी हैं, सबके अन्दर को रीड करते हैं। नहीं, अन्तर्यामी माना जानी जाननहार। ऐसे नहीं कि हर एक के दिल की बात बैठकर जानते हैं। जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। एक-एक की दिल को थोड़ेही बैठ रीड करेंगे। मुझे थॉट रीडर समझा है क्या? मै जानीजाननहार हूँ अर्थात् नॉलेजफुल हूँ। पास्ट, प्रेजन्ट, फ्यूचर को ही सृष्टि का आदि, मध्य, अन्त कहा जाता है। यह चक्र कैसे रिपीट होता है, उसकी रिपीटेशन को जानता हूँ। वह नॉलेज तुम बच्चों को पढ़ाने आता हूँ। हर एक समझ सकते हैं कि कौन कितनी सर्विस करते हैं, क्या पढ़ते हैं? ऐसे नहीं कि बाबा एक-एक को बैठ जानते हैं। बाबा सिर्फ यह धन्धा थोड़ेही बैठ करेंगे। वह तो जानी जाननहार मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, नॉलेजफुल है। कहते हैं मनुष्य सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त और जो मुख्य एक्टर्स हैं उनको जानता हूँ। बाकी तो अथाह रचना है। यह जानी-जाननहार अक्षर तो पुराना है। हम तो जो नॉलेज जानता हूँ वह तुमको पढ़ाता हूँ। बाकी तुम क्या-क्या करते हो वह सारा दिन बैठकर देखूँगा क्या? मैं तो सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाने आता हूँ। बाप कहेंगे बच्चे तो बहुत हैं, मैं बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हुआ हूँ। सारी कारोबार बच्चों से है। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनका मैं बाप हूँ। फिर वह सगा है वा लगा है सो मैं समझ सकता हूँ। हर एक की पढ़ाई है। श्रीमत पर एक्ट में आना है। कल्याणकारी बनना है। तुम बच्चे जानते हो बृह्स्पति को वृक्षपति डे कहा जाता है। वृक्षपति भी ठहरा, शिव भी ठहरा। है तो एक ही। गुरूवार के दिन स्कूल में बैठते हैं तो गुरू करते हैं। जैसे सोमनाथ का दिन सोमवार है, शिवबाबा सोमरस पिलाते हैं। यूँ नाम तो उनका शिव है परन्तु पढ़ाते हैं इसलिए सोमनाथ कह दिया है। रूद्र भी सोमनाथ को कहा जाता है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो ज्ञान सुनाने वाला हो गया। नाम बहुत रख दिये हैं। तो उसकी समझानी दी जाती है। शुरू से यह एक ही यज्ञ चलता है, किसी को भी पता नहीं है कि सारी पुरानी सृष्टि की सामग्री इस यज्ञ में स्वाहा होनी है। जो भी मनुष्य हैं, जो कुछ भी है, तत्वों सहित सब परिवर्तन होना है। यह भी बच्चों को देखना है, देखने वाले बड़े महावीर चाहिए। कुछ हो जाए, भूलना नहीं है। मनुष्य तो हाय-हाय, त्राहि-त्राहि करते रहेंगे। पहले-पहले तो समझाना है थोड़ा ख्याल करो, सतयुग में एक ही भारत था, मनुष्य बहुत थोड़े थे, एक धर्म था, अभी कलियुग अन्त तक कितने धर्म हैं! यह कहाँ तक चलेंगे? कलियुग के बाद जरूर सतयुग होगा। अभी सतयुग की स्थापना कौन करेगा? रचता तो बाप ही है। सतयुग की स्थापना और कलियुग का विनाश होता है। यह विनाश सामने खड़ा है। अभी तुम्हें बाप द्वारा पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर का नॉलेज मिला है। यह स्वदर्शन चक्र फिराना है। बाप और बाप की रचना को याद करना है। कितनी सहज बात है।
चित्रों में ओशन ऑफ नॉलेज, ओशन ऑफ ब्लिस लिखते हैं, उसमें ओशन ऑफ लव अक्षर जरूर आना चाहिए। बाप की महिमा बिल्कुल अलग है। सर्वव्यापी कहने से महिमा को ही ख़त्म कर देते हैं। तो ओशन ऑफ लव अक्षर जरूर लिखना है, यह बेहद के माँ-बाप का प्यार है, जिसके लिए ही गाते हैं तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे, परन्तु जानते नहीं हैं। अब बाप कहते हैं तुम मेरे को जानने से सब कुछ जान जायेगे। मैं ही सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान समझाऊंगा। एक जन्म की बात नहीं, सारे सृष्टि के पास्ट, प्रेजन्ट, फ्यूचर को जानते हैं, तो कितना बुद्धि में आना चाहिए। जो देही-अभिमानी नहीं बनते हैं उन्हें धारणा भी नहीं होती है। सारा कल्प देह-अभिमान चला है। सतयुग में भी परमात्मा का ज्ञान नहीं रहता। यहाँ पार्ट बजाने आये और परमात्मा का ज्ञान भूल गये। यह तो समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु वहाँ दु:ख की बात नहीं है। यह बाप की महिमा है, ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। एक बूँद है मन्मनाभव, मध्याजी भव........ यह मिलने से हम विषय सागर से क्षीरसागर में चले जाते हैं। कहते हैं ना - स्वर्ग में दूध-घी की नदियाँ बहती हैं। यह सब महिमा है। बाकी नदी कोई दूध-घी की थोड़ेही हो सकती है। बरसात में तो पानी निकलेगा। घी कहाँ से निकलेगा! यह बड़ाई दी हुई है। यह भी तुम जानते हो स्वर्ग किसको कहा जाता है। भल अजमेर में मॉडल है परन्तु समझते कुछ भी नहीं। तुम कोई को भी समझाओ तो झट समझ जायेंगे। जैसे बाप को आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है वैसे तुम बच्चों की बुद्धि में भी फिरना चाहिए। बाप का परिचय देना है, एक्यूरेट महिमा सुनानी है, उनकी महिमा अपरमपार है। सब एक समान नहीं हो सकते। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। आगे चल देखेंगे, दिव्य दृष्टि में जो बाबा ने दिखाया है वह फिर प्रैक्टिकल होना है। स्थापना और विनाश का साक्षात्कार कराते रहते हैं। अर्जुन को भी दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार कराया था फिर प्रैक्टिकल में देखा। तुम भी इन ऑखों से विनाश देखेंगे। वैकुण्ठ का साक्षात्कार किया है, वह भी जब प्रैक्टिकल में जायेंगे तो फिर साक्षात्कार बन्द हो जायेगा। कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझाते हैं, जो फिर बच्चों को औरों को समझानी है - बहनों-भाइयों आकर ऐसे बाबा से वर्सा लो, इस ज्ञान और योग के द्वारा।
बाबा निमंत्रण पत्र को करेक्ट कर रहे हैं। नीचे सही करते हैं तन-मन-धन से ईश्वरीय सेवा पर उपस्थित हैं, इस कार्य के लिए। आगे चल महिमा तो निकलनी है। कल्प पहले जिन्होंने वर्सा लिया है, उनको आना ही है। मेहनत करनी है। फिर खुशी का पारा चढ़ते-चढ़ते स्थाई बन जायेगा। फिर घड़ी-घड़ी मुरझायेंगे नहीं। त़ूफान तो बहुत आयेंगे, उनको पार करना है। श्रीमत पर चलते रहो। व्यवहार भी करना है। जब तक सर्विस का सबूत नहीं देते तब तक बाबा इस सर्विस में लगा नहीं सकते। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) श्रीमत पर पूरा अटेन्शन देकर अपना और दूसरों का कल्याण करना है। सबको सच्ची यात्रा करानी है, रहमदिल बनना है।
2) बाप के हर फ़रमान को पालन करना है। याद वा सेवा का चार्ट जरूर रखना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है।
वरदान:-सच्ची दिल से साहेब को राज़ी करने वाले राज़युक्त, युक्तियुक्त, योगयुक्त भव
बापदादा का टाइटल दिलवाला, दिलाराम है। जो सच्ची दिल वाले बच्चे हैं उन पर साहेब राज़ी हो जाता है। दिल से बाप को याद करने वाले सहज ही बिन्दु रूप बन सकते हैं। वह बाप की विशेष दुआओं के पात्र बन जाते हैं। सच्चाई की शक्ति से समय प्रमाण उनका दिमाग युक्तियुक्त, यथार्थ कार्य स्वत: ही करता है। भगवान को राज़ी किया हुआ है इसलिए हर संकल्प, बोल और कर्म यथार्थ होता है। वह राजयुक्त, युक्तियुक्त, योगयुक्त बन जाते हैं।
स्लोगन:-बाप के लव में सदा लीन रहो तो अनेक प्रकार के दुख और धोखे से बच जायेंगे।
20/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, make yourselves ever free from disease with the medicine of remembrance. Instil the habit of remembrance and of spinning the discus of self-realization and you will become conquerors of sinful actions.
Question:
What is the sign of the children who are constantly concerned about their progress?
Answer:
Their every act will always be on the basis of shrimat. The Father’s shrimat is: Children, don’t come into body consciousness. Keep a chart of your pilgrimage of remembrance. Keep a record of your account of profit and loss. Check for how long you stayed in remembrance of Baba and for how long you explained to others.
Song:
You are the Ocean of Love. We thirst for one drop from You.
Om Shanti
When you sit here, sit in remembrance of the Father. Because you are body conscious, Maya prevents many of you from staying in remembrance. Some remember their friends and relatives whereas others remember food and drink etc. When you come here, you should invoke the Father, just as they invoke Lakshmi when they worship her. However, she doesn’t really come. Whether you say “Remember the Father” or “Invoke Him”, it is the same thing. It is by having remembrance that your sins will be absolved. You are not able to imbibe this knowledge because you have committed many sins. This is also why you are not able to remember the Father. The more you remember the Father, the more you will become conquerors of sinful actions and the more healthy you will become. It is very easy, yet Maya, the sins of the past, hinders you. The Father says: For half a cycle you have been remembering Me inaccurately. You are invoking Him in a practical way because you know that He is going to come and speak the murli. However, this habit of remembrance must be instilled. In order to make you free from disease, the Surgeon gives you medicine: Remember Me! Then, you will come to meet Me. You will attain your inheritance by remembering Me. Remember the Father and the sweet home. Keep in your intellects the place you are to return to. Only the Father comes here and gives you the true message. No one else can give you God’s message. Others come down here onto the stage to play their parts. They forget who God is; they don’t know God. In fact, they cannot be called messengers. It was human beings who gave them that name. They come down here to play their parts, so how would they remember Him? While playing their parts, they have to become impure. Then, at the end, they have to become pure. It is the Father who comes and makes them pure. You become pure by remembering the Father. The Father says: There is only one method for purification: forget all your bodily relations including your own body. You know: I, the soul, have been given the order to have remembrance. By following this order, you will be called obedient. The more effort you make in this, the more obedient you become. If you have less remembrance, it means that you are less obedient. It is the obedient ones who claim a high status. The Father’s first order is: Remember Me, your Father, and, secondly, imbibe this knowledge . If you do not stay in remembrance, you will have to endure a great deal of punishment. You will receive a great deal of wealth if you continue to spin the discus of self-realisation. God speaks: Remember Me and spin the discus of self-realisation, that is, understand the beginning, the middle and the end of the drama. Recognise Me and understand from Me the beginning, the middle and the end of the cycle. These are the two main aspects. You have to pay attention to these. If you pay full attention to shrimat, you will claim a high status. Become ones with merciful hearts and show the path to everyone; bring benefit to them. Create a method to take all your friends and relatives on this true pilgrimage. Those are physical pilgrimages whereas this is the spiritual pilgrimage. No one else has this spiritual knowledge. All of their knowledge is just the philosophy of the scriptures. This is spiritual knowledge . The supreme Spirit gives this knowledge in order to explain to the spirits and He then takes them back home. When some children come and sit here, it is just for the sake of it; they have no concern for their own progress. They have a great deal of body consciousness. If they were to become soul conscious, they would become merciful and follow shrimat. They are not obedient. The Father says: Keep a chart of how long you stayed in remembrance and at what times you stayed in remembrance. Previously, you used to keep a chart. Achcha, if you don’t send your chart to Baba, at least keep it with you. Look at your face and see if you have become worthy of claiming Lakshmi. Business people keep their accounts. Some people keep an account of their whole day’s activity. It is as though they have the hobby of writing it. It is very good to keep an account of how long you stayed in remembrance of Baba and for how long you explained to others. If you keep such a chart, you can make a lot of progress. The Father gives you advice about what you should do. You children have to make your own progress. Those who are to become the beads of the rosary have to make a great deal of effort. Baba has said that the rosary of Brahmins cannot be created now; it will only be created at the end when the rosary of Rudra is created. The beads of the rosary of Brahmins keep changing. Those who are in the third or fourth number today become the last ones tomorrow. There is such a difference! Some fall and become degraded. They don’t just fall out of the rosary; they go and become cremators for the subjects. If you want to be threaded in the rosary, you have to make a great deal of effort. Baba gives very good advice on how to make self-progress. Baba says this to everyone. Even someone who is dumb can remind others of Baba with a signal. He can go even higher than those who are able to speak. Someone who is blind or crippled can claim a status higher than those who are healthy. A signal is given in a second. “Liberation-in-life in a second” has been remembered. As soon as you belong to the Father, you certainly do receive the inheritance, but the status you receive is surely numberwise. As soon as a child is born, he receives the right to his inheritance. Here, all of you souls are males and so you have to claim from the Father the right to the inheritance. Everything depends on effort, but it would then also be said that you also made the same effort in the previous cycle. This is boxing with Maya. The Pandavas fight with Maya, Ravan. Some make effort and become the masters of the world with a double crown, whereas others become maids and servants of the subjects. All are studying here. A kingdom is being established. Baba’s attention is definitely drawn to the leading beads. It is understood from their efforts how much progress the eight beads are making. It is not that He knows the secrets of everyone’s heart or that He reads what’s happening inside everyone; no. To be “Janijananhar” means to know everything. It is not that He knows everything in each one’s heart. “Janijananhar” means to be knowledge-full . He knows the beginning, the middle and the end of the world. It is not that He would sit and read what is in the heart of each one. Do you think I am a thought reader? I am Janijananhar, that is, knowledge-full. The past, present and future are called the beginning, the middle and the end of the world. I know the repetition of this cycle, how it repeats. I come to teach you children this knowledge. Each one of you can understand how much service you do and to what extent you are studying. It is not that Baba sits and knows what is inside each one of you. Baba would not sit and do that business. He is the Knower of all Secrets. He is the knowledge-full Seed of the human world tree. He says that He knows the beginning, the middle and the end of the human world and its main actors. The rest of creation is limitless. The word ‘Janijananhar’ (One who knows all secrets) is very old. I teach you whatever knowledge I have. However I would not sit all day and watch what you do. I come to teach you easy knowledge and yoga. The Father says: I have many children. I reveal Myself to the children. All My business is with the children. I am the Father of those who become My children. Only then can I understand whether that child is a real one or a stepchild. Each one is studying. You should act on the basis of shrimat and become benefactors. You children understand the day of the Lord of the Tree as the day of the Lord of Jupiter. As well as being Shiva, He is the Lord of the Tree, the two are one and the same. Children start school on a Thursday (day of the Satguru), and so that is like adopting a guru (their teacher). For example, Monday is the day of Somnath (Lord of Nectar) and so Shiv Baba gives you nectar to drink. In fact, His name is Shiva but, because He teaches you, He is called Somnath. Somnath is also called Rudra. He creates the sacrificial fire of knowledge of Rudra and so He becomes the One who gives knowledge. He has been given many names and an explanation is given of each one. Only this one yagya has continued from the beginning. No one knows that everything of the whole old world is going to be sacrificed into this sacrificial fire. All human beings and everything else, including the elements, will be transformed. You children are going to see this. You have to become mahavirs (brave warriors) in order to see it. No matter what happens, you should not forget Baba. Human beings will continue to cry out in distress. First of all, explain to everyone: Just think, in the golden age, there was only one Bharat. There were very few human beings and there was only one religion. Now, at the end of the iron age, there are so many religions. For how long will this continue? The golden age will definitely come after the iron age. Now, who would establish heaven? Only the one Father is the Creator. There is establishment of the golden age and destruction of the iron age. That destruction is standing in front of you. You have now received the knowledge of the past, present and future from the Father. You have to spin the discus of self-realisation. Remember the Father and the Father’s creation. This is such an easy thing!
Song: You are the Ocean of Love.
On the picture it is written “Ocean of Knowledge, Ocean of Bliss”, but you must definitely add the words, “Ocean of Love”. The Father’s praise is totally unique. By saying that He is omnipresent, they finish His praise. Therefore, the words “Ocean of Love” must definitely be written. This is the love of the unlimited Mother and Father. It is of Him that they say: “Through Your mercy we receive limitless happiness”, but they don’t know this. Now the Father says: By knowing Me, you will come to know everything. Only I explain the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world. It is not just a question of one birth, because He knows the past, present and future of the whole world. So, how much should enter your intellects? Those who do not become soul conscious cannot imbibe this knowledge. Body consciousness has continued for the whole cycle. Even in the golden age, there is no knowledge of God. You forget the knowledge of God when you come down here to play your parts. You do understand that a soul sheds one body and takes another. However, there is no question of sorrow there. The Father’s praise is that He is the Ocean of Knowledge and the Ocean of Love. The one drop is: Manmanabhav and Madhyajibhav. By receiving this drop, you are able to go across the ocean of poison into the ocean of milk. People say that rivers of milk and ghee flow in heaven. All of that is just praise. How can there be rivers of milk and ghee? After a rainfall, only water would flow. Where would ghee come from? That is just an indication of the richness there. You also understand what is known as heaven. Although there is a model of heaven in Ajmer, no one knows anything. You can explain to anyone and they will understand very quickly. Just as the Father has the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world, in the same way, this should spin in the intellects of you children too. You have to give the Father’s introduction. You have to relate His praise accurately. His praise is limitless. Not everyone can be the same. Each one has received his own part. As you go further, you will see in a practical way whatever Baba showed you happening in divine visions. He continues to give you visions of establishment and destruction. Arjuna was also granted visions which he later saw in a practical way. You too will see destruction with your physical eyes. You have had visions of Paradise. Those visions will come to an end when you go there in a practical way. Very good things are being explained, which you children have to explain to others. Brothers and sisters: Come and claim your inheritance from Baba through this knowledge and yoga. Baba is correcting the invitation letter. At the bottom, He signed it: We are present on Godly service, using our minds, bodies and wealth for this task. As time goes by, there will be praise. Those who claimed their inheritance a cycle ago will definitely come. However, you do have to make effort. Then, your degree of happiness will gradually rise and that happiness will remain stable and you will not wilt again and again. Many storms will come but you have to overcome them. Continue to follow shrimat. Also stay in connection with others. Until you give Baba the proof of service, Baba cannot engage you fully in this service. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Pay full attention to shrimat and bring benefit to yourself and others. Become merciful and enable everyone to go on this true pilgrimage.
2. Follow every order Baba gives you. Definitely keep a chart of your remembrance and service. Spin the discus of self-realisation.
Blessing:May you be raazyukt, yuktiyukt and yogyukt and please the Lord with your honest heart.
BapDada’s titles are Dilwala (Conqueror of Hearts) and Dilaram (Comforter of Hearts). The children who have honest hearts please the Lord. Those who remember the Father in their hearts easily become the point form. They especially become worthy of the Father’s blessings. With the power of truth and according to the time, their brains automatically work accurately in a yuktiyukt manner. They please God and so their every thought, word and deed is accurate. They become raazyukt, yuktiyukt and yogyukt.
Slogan:Remain constantly merged in the Father’s love and you will be safe from all the many types of sorrow and deception.
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.