Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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2 | Murali 02-Nov-2018 | 132943 | 2018-12-19 02:03:55 | |
3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
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17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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Details ( Page:- Murali 18-Nov-2018 )
18-11-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 04-04-84 मधुबन
संगमयुग की श्रेष्ठ वेला, श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाने की वेला
आज बापदादा हरेक ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मा के श्रेष्ठ जीवन के जन्म की वेला, तकदीर की रेखा देख रहे थे। जन्म की वेला सभी बच्चों की श्रेष्ठ हैं क्योंकि अभी युग ही पुरुषोत्तम श्रेष्ठ है। श्रेष्ठ संगमयुग पर अर्थात् श्रेष्ठ वेला में सभी का श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म हुआ। जन्म, वेला सभी की श्रेष्ठ है। तकदीर की रेखा, तकदीर भी सभी ब्राह्मणों की श्रेष्ठ है क्योंकि श्रेष्ठ बाप के शिव वंशी ब्रह्माकुमार वा कुमारी हैं। तो श्रेष्ठ बाप, श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ वर्सा, श्रेष्ठ परिवार, श्रेष्ठ खजाने - यह तकदीर की लकीर जन्म से सभी की श्रेष्ठ है। वेला भी श्रेष्ठ और प्राप्ति के कारण तकदीर की लकीर भी श्रेष्ठ है। यह तकदीर सभी बच्चों को एक बाप द्वारा एक जैसी प्राप्त है, इसमें अन्तर नहीं है। फिर भी एक जैसी तकदीर प्राप्त होते भी नम्बरवार क्यों? बाप एक, जन्म एक, वर्सा एक, परिवार एक, वेला भी एक संगमयुग, फिर नम्बर क्यों? सर्व प्राप्ति अर्थात् तकदीर सभी को बेहद की मिली है। अन्तर क्या हुआ? बेहद की तकदीर को जीवन के कर्म की तस्वीर में लाना इसमें यथाशक्ति होने के कारण अन्तर पड़ जाता है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् तकदीर को तस्वीर में लाना, जीवन में लाना। हर कर्म में लाना, हर संकल्प से, बोल से, कर्म से तकदीरवान को तकदीर अनुभव हो अर्थात् दिखाई दे। ब्राह्मण अर्थात् तकदीरवान आत्मा के नयन, मस्तक, मुख की मुस्कराहट हर कदम सभी को श्रेष्ठ तकदीर की अनुभूति करावे, इसको कहा जाता है तकदीर की तस्वीर बनाना। तकदीर को अनुभव की कलम से, कर्म के कागज की तस्वीर में लाना। तकदीर के तस्वीर की चित्र रेखा बनाना। तस्वीर तो सभी बना रहे हो लेकिन किसकी तस्वीर सम्पन्न है और किसकी तस्वीर कुछ न कुछ किसी बात में कम रह जाती है अर्थात् प्रैक्टिकल जीवन में लाने में किसकी मस्तक रेखा अर्थात् मन्सा, नयन रेखा अर्थात् रुहानी दृष्टि, मुख की मुस्कराहट की रेखा अर्थात् सदा सर्व प्राप्ति स्वरुप सन्तुष्ट आत्मा। सन्तुष्टता ही मुस्कराहट की रेखा है। हाथों की रेखा अर्थात् श्रेष्ठ कर्म की रेखा। पांव की रेखा अर्थात् हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने की शक्ति। इसी प्रकार तकदीर की तस्वीर बनाने में किसका किसमें, किसका किसमें अन्तर पड़ जाता है। जैसे स्थूल तस्वीर भी बनाते हैं तो कोई को नैन नहीं बनाने आते, कोई को टांग नहीं बनाने आती। कोई मुस्कराहट नहीं बना सकते। तो फर्क पड़ जाता है ना। जितना सम्पन्न चित्र उतना मूल्यवान होता है। वो ही एक चित्र लाखों का मूल्य कमाता और कोई 100 भी कमाता। तो अन्तर किस बात का हुआ? सम्पन्नता का। ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें भी सर्व रेखाओं में सम्पन्न न होने कारण किसी एक रेखा, दो रेखा की सम्पूर्णता न होने कारण नम्बरवार हो जाते हैं।
तो आज तकदीरवान बच्चों की तस्वीर देख रहे थे। जैसे स्थूल तकदीर में भी भिन्न-भिन्न तकदीर होती है। वैसे यहाँ तकदीर की भिन्न-भिन्न तस्वीरें देखी। हर तस्वीर में मुख्य मस्तक और नयन तस्वीर की वैल्यु बढ़ाते हैं। वैसे यहाँ भी मंसा वृत्ति की शक्ति और नयन रुहानी दृष्टि की शक्ति, इसका ही महत्व होता है। यही तस्वीर का फाउन्डेशन है। सभी अपनी तस्वीर को देखो कि हमारी तस्वीर कितनी सम्पन्न बनी है। ऐसी तस्वीर बनी है जो तस्वीर में तकदीर बनाने वाला दिखाई दे। हर एक रेखा को चेक करो। इसी कारण नम्बर हो जाता है। समझा।
दाता एक है, देता भी एक जैसा है। लेकिन बनने वाले, बनने में नम्बरवार हो जाते। कोई अष्ट और ईष्ट देव बन जाते, कोई देव बन जाते। कोई देवों को देख-देख हर्षित होने वाले हो जाते। अपना चित्र देख लिया ना। अच्छा!
साकार रुप में मिलने में तो समय और संख्या को देखना पड़ता और अव्यक्त मिलन में समय और संख्या की बात नहीं है। अव्यक्त मिलन के अनुभवी बन जायेंगे तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव सदा करते रहेंगे। बापदादा बच्चों के सदा आज्ञाकारी हैं इसलिए अव्यक्त होते भी व्यक्त में आना पड़ता है। लेकिन बनना क्या है? अव्यक्त बनना है ना या व्यक्त में आना है? अव्यक्त बनो। अव्यक्त बनने से बाप के साथ निराकार बन घर में चलेंगे। अभी वाया की स्टेज तक नहीं पहुँचे हो। फरिश्ता स्वरुप से निराकार बन घर जा सकेंगे। तो अभी फरिश्ता स्वरुप बने हो! तकदीर की तस्वीर सम्पन्न की है? सम्पन्न तस्वीर ही फरिश्ता है। अच्छा!
सभी आये हुए भिन्न-भिन्न ज़ोन के बच्चों को हर एक ज़ोन की विशेषता सहित बापदादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। कोई भाषा भले नहीं जानते लेकिन प्रेम और भावना की भाषा जानने में होशियार हैं और कुछ नहीं जानते लेकिन मुरली की भाषा जानते हैं। प्रेम और भावना से न समझने वाले भी समझ जाते हैं। बंगाल बिहार तो सदा बहारी मौसम में रहते। सदा बहार है।
पंजाब है ही सदा सभी को हराभरा करने वाला। पंजाब में खेती अच्छी होती है। हरियाणा तो है ही हरा भरा। पंजाब, हरियाणा सदा हरियाली से हरा भरा है। जहाँ हरियाली होती है उस स्थान को सदा कुशल, श्रेष्ठ स्थान कहा जाता है। पंजाब हरियाणा सदा खुशी में हरा भरा है इसलिए बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। राजस्थान की क्या विशेषता है? राजस्थान चित्र रेखा में प्रसिद्ध है। राजस्थान की तस्वीरें बहुत मूल्यवान होती हैं क्योंकि राज़े बहुत हुए हैं ना। तो राजस्थान तकदीर की तस्वीरें सबसे ज्यादा मूल्यवान बनाने वाले हैं। चित्रों की रेखा में सदा श्रेष्ठ हैं। गुजरात की क्या विशेषता है? वहाँ आइनों का श्रृंगार ज्यादा होता है। तो गुजरात दर्पण है। दर्पण कहो, आइना कहो, जिसमें बाप की मूर्त देखी जाए। आइने में शक्ल देखते हैं ना। तो गुजरात के दर्पण द्वारा बाप की तस्वीर फरिश्ता स्वरुप की तस्वीर सभी को दिखाने की विशेषता है। तो गुजरात की विशेषता है - बाप को प्रत्यक्ष करने वाले दर्पण। बाकी छोटा-सा तामिलनाडु रह गया। छोटा ही कमाल करता है। बड़ा कार्य करके दिखाता है। तामिलनाडु क्या करेंगे? वहाँ मन्दिर बहुत हैं। मन्दिरों में नाद बजाते हैं। तामिलनाडु की विशेषता है - नगाड़ा बजाए बाप की प्रत्यक्षता का आवाज बुलन्द करना। अच्छी विशेषता है। छोटे-पन में भी नाद बजाते हैं। भक्त लोग भी बड़े प्यार से नाद बजाते हैं और बच्चे भी प्यार से बजाते हैं। अब हरेक स्थान अपनी विशेषता को प्रत्यक्ष स्वरुप में लाओ। सभी ज़ोन वालों से मिल लिया ना! आखिर तो ऐसा ही मिलना होगा। पुराने बच्चे कहते हैं हमको क्यों नहीं बुलाते। प्रजा भी बनाते, बढ़ाते भी रहते। तो पुरानों को नये-नये को चांस देना पड़े तब तो संख्या बढ़े। पुराने भी पुरानी चाल से चलते रहें तो नयों का क्या होगा। पुराने हैं दाता देने वाले और नये हैं लेने वाले। तो चांस देना हैं इसमें दाता बनना पड़े। साकार मिलन में सब हद आ जाती हैं। अव्यक्त मिलन में कोई हद नहीं। कई कहते हैं संख्या बढ़ेगी फिर क्या होगा! साकार मिलन की विधि भी तो बदलेगी। जब संख्या बढ़ती है तो कुछ दान पुण्य भी करना होता है। अच्छा!
सभी देश विदेश के चारों ओर के स्नेही बच्चों के स्नेह के दिल के आवाज, खुशी के गीत और दिल के समाचार के पत्रों के रेसपान्ड में बापदादा सभी बच्चों को पदमगुणा यादप्यार के साथ रेसपान्ड दे रहे हैं कि सदा याद से अमर भर के वरदानी बन बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। सभी उमंग उत्साह में रहने वाले बच्चों को बापदादा स्व उन्न्ति और सेवा की उन्नति के लिए मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो। सदा साथ हो। सदा सम्पन्न और सम्पूर्ण हो, ऐसे सर्व वरदानी बच्चों को बापदादा फिर से यादप्यार दे रहे हैं। यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों से:- सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न आत्मा समझते हो! जो सम्पन्न है वह सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सम्पन्नता नहीं तो आगे नहीं बढ़ सकते। तो जैसे बाप वैसे बच्चे। बाप सागर है बच्चे मास्टर सागर हैं। हर गुण को चेक करो-जैसे बाप ज्ञान का सागर है तो हम मास्टर ज्ञान सागर हैं। बाप प्रेम का सागर है तो हम मास्टर प्रेम के सागर हैं। ऐसे समानता को चेक करो तब बाप समान सम्पन्न बन सदा आगे बढ़ते जायेंगे। समझा-सदा ऐसी चेकिग करते चलो। सदा इसी खुशी में रहो कि जिसको विश्व ढूंढता है। उसने हमको अपना बनाया है। अच्छा।
अव्यक्त महावाक्य - विश्व कल्याणकारी बनो
बापदादा ने आप बच्चों को विश्व सेवा के लिए निमित्त बनाया है। विश्व के आगे बाप को दिखाने वाले आप बच्चे हो। बच्चों द्वारा ही बाप दिखाई देगा। बैकबोन तो बाप है ही। अगर बाप बैकबोन न बने तो आप अकेले थक जायेंगे इसलिए बाप को बैकबोन समझ विश्व कल्याण की सेवा में तन-मन-धन, मन्सा-वाचा-कर्मणा से बिजी रहो तो सहज ही मायाजीत बन जायेंगे।
वर्तमान समय सारे विश्व में अल्पकाल के प्राप्ति रुपी फल-फूल सूखे हुए हैं। सभी मन से, मुख से चिल्ला रहे हैं और कैसे भी मजबूरी से जीवन को, देश को चला रहे हैं। खुशी-खुशी से चलना समाप्त हो गया है। तो ऐसे मजबूरी से चलने वालों को प्राप्ति के पंख देकर उड़ाओ। लेकिन उड़ा तब सकेंगे जब स्वयं उड़ती कला में होंगे। इसके लिए बाप समान विश्व कल्याणकारी की बेहद की स्टेज पर स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं को सकाश दो, विश्व परिक्रमा लगाओ। जैसे चित्रों में दिखाते हैं ग्लोब के ऊपर श्रीकृष्ण बैठा हुआ है, ऐसे विश्व के ग्लोब पर बैठ चारों ओर नज़र घुमाओ तो आटोमेटिक विश्व का चक्र लग जायेगा। वैसे भी जब बहुत ऊंचे स्थान पर चले जाते हैं तो चक्कर लगाना नहीं पड़ता लेकिन एक स्थान पर रहते सारा दिखाई देता है। जो जब आप अपनी ऊंची स्टेज पर, बीजरुप स्टेज पर, विश्व कल्याणकारी स्थिति में स्थित होंगे तो सारा विश्व ऐसे दिखाई देगा जैसे छोटा बाल है। तो सेकण्ड में चक्कर लगाकर आयेंगे।
आप सर्व आत्माओं के पिता के बच्चे हो, सर्व आत्मायें आपके भाई हैं। तो अपने भाईयों के तरफ संकल्प की नज़र दौड़ाओ। विशाल बुद्धि, दूरांदेशी बनो। छोटी-छोटी बातों में अपना समय नहीं गँवाओ। ऊंची स्टेज पर स्थित हो अब विशाल कार्य के निमित्त बनो। हे विश्व कल्याणकारी आत्मायें - सदा विशाल कार्य का प्लान इमर्ज रखो। सर्व की विशेषताओं द्वारा ही विश्व कल्याण का बेहद कार्य सम्पन्न होना है। जैसे कोई स्थूल चीज़ भी बनाते हैं, तो उसमें अगर सब चीजें न डाली जाएं, साधारण मीठा या नमक भी न हो तो चाहे कितनी भी बढ़िया चीज़ बनाओ लेकिन वह खाने योग्य नहीं बन सकती। ऐसे ही विश्व के इतने श्रेष्ठ कार्य के लिए हरेक रत्न की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। हर एक की अंगुली से ही विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होना है।
बापदादा की दिल है कि विश्व पर सदा के लिए सुख और शान्ति का झण्डा लहर जाए। सदा चैन की बांसुरी बजती रहे। इस लक्ष्य को लेकर सर्व के सहयोग की अंगुली से विशाल कार्य को सम्पन्न करो। आप ब्राह्मण बच्चों का अब विशेष कर्तव्य है - मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देना। तो सभी विश्व कल्याणकारी बन विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें दो। जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है। ऐसे आप मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्वशक्तियों की किरणें विश्व में फैलाओ तब सर्व आत्माओं को आपकी सकाश मिले सकेगी।
आप विश्व के दीपक, अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार दीपमाला मनाई जाती है। अभी तक आपकी माला सिमरण करते हैं क्योंकि अधंकार को रोशन करने वाले बने हो। तो स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक। ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं। जैसे बाप सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे आप बच्चे भी सदा अमरज्योति बनकर विश्व को अंधकार से निकालने की सेवा करो। विश्व की आत्मायें आप जगे हुए दीपकों की तरफ बहुत स्नेह से देख रही हैं। आप रात से दिन बनाने वाले चैतन्य दीपक हो। कितनी आत्मायें अधंकार में भटकती हुई रोशनी के लिए तड़फ रही हैं। अगर आप दीपकों की रोशनी टिमटिमाती रहेगी, अभी-अभी जगी, अभी-अभी बुझी तो भटकी हुई आत्माओं का क्या हाल होगा! बुझती-जगती हुई लाइट पसन्द नहीं करेंगे इसलिए जागती ज्योत बन अंधकार को मिटाने की जिम्मेवार आत्मा समझकर चलो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।
आप पूर्वज आत्मायें हो, आप की वृत्ति विश्व के वातावरण को परिवर्तन करने वाली हो। आप पूर्वजों की दृष्टि सर्व वंशावली को ब्रदरहुड की स्मृति दिलाने वाली हो। आप पूर्वज बाप की स्मृति में रह सर्व वंशावली को स्मृति दिला दो कि सभी का बाप आ गया है। आप पूर्वजों के श्रेष्ठ कर्म वंशावली को श्रेष्ठ चरित्र अर्थात् चरित्र निर्माण की शुभ आशा उत्पन्न कर दें। सबकी नज़र आप पूर्वजों को ढूंढ रही है तो अब बेहद के स्मृति स्वरुप बनो। जैसे बाप की महिमा में गायन करते हैं-"निर्बल को बल देने वाला''। ऐसे आप सभी भी चाहे ब्राह्मण परिवार में, चाहे विश्व की आत्माओं में हर आत्मा को, निर्बल को बल देने वाले महाबलवान बनो। जैसे वह लोग नारा लगाते हैं गरीबी हटाओ, वैसे आप निर्बलता को हटाओ। ऐसे निमित्त बन विश्व की हर आत्मा को बाप से हिम्मत और मदद दिलाओ। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:-लगन की अग्नि में सब चिंताओं को समाप्त करने वाले निश्चयबुद्धि निश्चिंत भव
जो बच्चे निश्चयबुद्धि हैं वह सभी बातों में निश्चिंत रहते हैं। चिंतायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओं की चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया। बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर, लगन की अग्नि में सब चिंतायें समाप्त हो गई, जैसे थी ही नहीं। न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता। क्या होगा......ज्ञान की शक्ति से सब जान गये इसलिए सब चिंताओं से परे निश्चिंत जीवन हो गई।
स्लोगन:-ऐसे अचल अडोल बनो जो किसी भी प्रकार की समस्या बुद्धि रुपी पांव को हिला न सके।
18/11/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 04/04/84
The elevated period of the confluence age is the time to draw the portrait of your elevated fortune.
Today, BapDada was seeing the moment of birth of the elevated life and the line of fortune of every elevated Brahmin soul. The moment of birth of every child is elevated because it is now the most auspicious elevated confluence age. All of you have taken elevated Brahmin birth at the elevated confluence age, that is, in the most elevated period. The moment of birth of all of you is elevated. The line of fortune, the fortune of all of you Brahmins, is elevated because you are the Shiv dynasty Brahma Kumars and Kumaris who belong to the elevated Father. The elevated Father, elevated birth, elevated inheritance, elevated family and elevated treasures: this line of fortune of all of you is elevated from birth. The period is elevated and, because of the attainment, the line of fortune is also elevated. All of you children have attained the same fortune from the one Father, there is no difference in this. Even though you attain the same fortune, why does it become numberwise? The Father is the same, the birth is the same, the inheritance is the same, the family is the same, the period is the same one of the confluence age, so why is there a number? All of you have received unlimited attainments, that is, unlimited fortune. So, why is there a difference? The difference is created in how you put the unlimited fortune into the picture of actions in your life, according to your capacity. Brahmin life means to paint a picture of your fortune, to put it into your life; to put it into every action. A fortunate one should experience fortune in every thought, every word and every deed, that is, fortune should be visible. A Brahmin means a fortunate soul, whose eyes, forehead and smile on the face give everyone the experience of elevated fortune at every step. This is known as drawing a picture of fortune. Draw the picture of your fortune with the pen of experience on the paper of actions. Make a line drawing of the portrait of your fortune. All of you are creating your portraits, but the portraits of some are complete, whereas the portraits of others still lack something or other. When you put this into your practical life, the line of the forehead means your thoughts, the line of the eyes means spiritual vision, the lines of the smile on your face means to be a constantly contented soul and an embodiment of all attainments. Contentment itself is the line of the smile. The lines of the hands mean the lines of elevated deeds. The lines of the feet mean the power to take every step according to shrimat. In this way, there is a difference in the way you draw the portrait of your fortune. In some, one thing is missing and in others, something else is missingWhen painting a physical painting, some don't know how to paint eyes, some don't know how to paint legs. Some don't know how to paint a smile and so this makes a difference. To the extent that a portrait is perfect, to that extent it is valuable. The pictures of some earn them hundreds of thousands of rupees, whereas the pictures of others scarcely earn them a hundred rupees. So, what was it that made the difference? Perfection. In the same way, because you Brahmin souls are not perfect in all lines, because there isn’t perfection in one or two lines, you become numberwise.
Therefore, today, Baba was looking at the portraits of the fortunate children. Just as in a physical fortune, there are different types of fortune, in the same way, here, too, Baba saw many types of portraits of fortune. In every picture, the main features - the eyes and the forehead - increase the value of the portrait. Similarly, here, the power of the attitude of the mind and the power of spiritual vision of the eyes also have a lot of importance. These are the foundation of the picture. Do all of you look at your own picture? To what extent has your picture been completed? Have you painted such a portrait that the One who creates your fortune is visible in that portrait? Check every line. It becomes numberwise because of this. Do you understand?
The Bestower is One and He gives everyone the same, yet those creating the picture become numberwise in how they create it. Some become one of the special eight and a special beloved deity. Some become deities. Some become those who are happy simply observing other deities. You have seen your own picture, have you not? Achcha.
For a meeting in the corporeal form, the time and the number of people have to be considered, whereas with an avyakt meeting, there is no question of the time or the number of people. If you become experienced in avyakt meetings, you will constantly continue to have to unique experiences in avyakt meetings. BapDada is constantly obedient to all the children. This is why, although He is avyakt He has to come into the corporeal (vyakt) form. However, what do you have to become? You have to become avyakt, do you not? Or, do you want to come in the corporeal form? Become avyakt. By becoming avyakt, you will become incorporeal and go home with the Father. You have not yet reached the stage of going via. Through the angelic form, you will be able to become incorporeal and go back home. So, have you now become the angelic form? Have you completed the portrait of your fortune? Only a completed portrait is an angel. Achcha.
All you children who have come from all the different zones, BapDada is pleased to see each one of you with the speciality of each zone. Some of you may not know the language, but you are clever when it come to knowing the language of love and devotion. You don't know anything else, but you do know the language of the murli. With their love and devotion, even those who are unable to understand anything are able to understand. Those from Bengal and Bihar constantly live in the weather of Spring (Bahar). They have constant Spring.
Punjab is such that it always makes everything fresh and green (makes everyone full). There is good harvest in Punjab. Hariyana is always full and green (hara bhara). Punjab and Hariyana are always full and green. Where there is greenery, that place is always said to be happy and content and an elevated place. Punjab and Hariyana are always full of happiness. This is why BapDada is pleased to see all of you. What is the speciality of Rajasthan? Rajasthan is very well known for its art. The pictures of Rajasthan are very valuable because there have been many kings there. Therefore, those from Rajasthan are the ones who will make the most valuable portraits of fortune. In the line of art, you are always elevated. What is the speciality of Gujarat? There is a lot of decoration of glass mirrors there. So, Gujarat is a mirror. It is a mirror in which the Father's image can be seen. You look at your face in the mirror, don’t you? So, the mirror of Gujarat has the speciality of showing everyone the image of the Father and the image of an angel. The speciality of Gujarat is the mirror that will reveal the Father. Finally, little Tamil Nadu is still left. Smaller ones work wonders. They carry out huge tasks. What will those from Tamil Nadu do? There are many temples there. They play music in temples. The speciality of Tamil Nadu is to beat the drums and make a very loud sound of the Father's revelation. You have a good speciality. Some play music even in their childhood. Even devotees play music with a lot of love. You children also play it with love. Now, each of your places has to put your own speciality into a practical form. Baba has now met those from all zones, has He not? Eventually, this is how the meetings will take place. The older children say: Why don't you invite us? You create subjects and you also increase the number of subjects, and so the older ones have to give a chance to the newer ones. It is only then that the number can increase. If the older ones continue to move along in the same old way, what would happen to the newer ones? The older ones are bestowers who give and the newer ones are those who receive. Therefore, you have to give a chance to others. You have to become bestowers in this. There are many limitations in meeting through the corporeal form. In the avyakt meeting, there are no limitations. Some ask: What will happen when the number increases? The method of corporeal meetings will also change. When the number increases, you also have to donate something and perform some charity. Achcha.
To all the children from this land and abroad, in response to the sound of their loving hearts, songs of happiness and letters of news of their hearts, together with giving multi-million fold love and remembrance to all the children, BapDada is also giving a response to their letters. By having constant remembrance be one who receives the blessing of immortality and continue to move forward and also make others move forward. To all the children who maintain their zeal and enthusiasm, BapDada congratulates you for your own progress and for the progress of service. Congratulations! You are always with the Father. You are always complete and perfect. To the children who have received all such blessings, BapDada is once again giving you love and remembrance. Love, remembrance and namaste.
BapDada meeting groups:
Do you always consider yourselves to be souls who are complete, equal to the Father? Those who are complete will always continue to move forward. If there isn't completion, you won't be able to move forward. Therefore, as is the Father, so are the children. The Father is the Ocean and the children are master oceans. Check every virtue. Just as the Father is the Ocean of Knowledge, so you are master oceans of knowledge. The Father is the Ocean of Love and so you are master oceans of love. Check your similarity in this way. Only then will you always be equal and complete like the Father and continue to move forward. Do you understand? Constantly continue to check yourself in this way. Always maintain the happiness that the One the world is searching for has made you belong to Him. Achcha.
Avyakt Elevated Versions - Become a World Benefactor
BapDada has made you children instruments for world service. You are the children who will reveal the Father to the whole world. Only the Father’s children can reveal Him. The Father is the Backbone. If the Father were not the Backbone, you would be on your own and soon get tired. Therefore, consider the Father to be the Backbone and keep busy serving the world through your thoughts, words, deeds with your body, mind and wealth and you will easily be able to conquer Maya.
At present, all the fruits and flowers on the tree have dried up because they only received temporary sustenance. Although everyone is still having to run the world and live their lives, they are all crying in their thoughts or words. No one lives a life of happiness any longer. Therefore, give wings of attainment to those who are moving along under desperate circumstances and enable them to fly. However, it is only when you yourself are in the flying stage that you can make others fly. In order to do this, remain stable in the unlimited stage of a world benefactor, like the Father. Tour the world and send currents of powerful rays to all souls. They show the picture of Shri Krishna sitting on the globe of the world. You too should sit above the globe of the world and by looking all the way round the whole world, you will automatically have toured everywhere. When you go to a very high place, you don’t need to tour around, because you are able to see everything from that high place. Similarly, when you remain stable in your elevated seed stage , in your stage of a world benefactor, the whole world seems like a small globe for you to tour around within a second.
You are the children of the Father of all souls, and all souls are your brothers. Therefore, let your thoughts dwell on your brothers and make your intellect broad and far-sighted. Do not waste time over trivial matters, but stabilise in an elevated stage and become an instrument for an unlimited task. O, world benefactor souls, constantly remain aware of the plan to benefit the world. Only when everyone’s speciality is used for world benefit will the unlimited task be accomplished. When you cook something but forget to put in all the ingredients - even if you miss out something as ordinary as salt or sugar – then, no matter how beautiful the dish may look, it won’t be worth eating. In the same way, each and every jewel is essential for the elevated task of world benefit. Everyone’s finger of co-operation is needed. The task of world transformation will only be accomplished with each one’s finger of co-operation.
BapDada’s desire is for the flag of peace and happiness to be constantly flying high over the whole world and for the flute of comfort to be constantly playing. Keep this aim and complete this unlimited task with everyone’s finger of co-operation. The special duty of each Brahmin is to become a master sun of knowledge and shine rays of all powers over whole world. So, each of you, become a world transformer who shines the rays of all powers over the world. The sun lights up the whole world with its rays, so you now become master suns of knowledge and spread the rays of all powers over the world. Only then will all souls receive the current of your powerful rays.
Deepmala is celebrated as a memorial of all of you lamps of the world who are imperishable. Even now, people are still turning the beads of your rosary, because of the time when you became those who dispelled darkness and brought light. So, constantly experience yourselves to be ignited lamps. No matter how many storms come, you must constantly remain in front of the Eternal Light like an ignited lamp that never flickers. The world bows down to such lamps and even the Father constantly stays with such lamps. Just as the Father is the constantly ignited Light, just as He is the eternal and immortal Light, so, you children too must constantly be immortal lights to serve the world by removing all the darkness from it. Souls of the world regard you ignited lamps with a lot of love. You are the living lamps who transform night into day. So many souls are wandering around in darkness and are desperate for some light. If the lights of you lamps are flickering, if your lights are ignited one moment and extinguished the next, what would the condition of wandering souls become? No one likes a light that goes on and off. Therefore, become a constantly ignited light and move along considering yourself to be a soul who is responsible for dispelling the darkness. Only then would you be called a world benefactor.
Let the attitude of all of you ancestor souls be such that it transforms the atmosphere of whole world. Let the whole lineage of you ancestor souls be reminded of their brotherhood by your vision. You ancestor souls have to remain aware of the Father and remind your whole lineage that the Father of all souls has now come. Let the elevated acts and elevated character of humility of you ancestor souls create pure hopes in your whole lineage. Everyone’s eyes are searching for you ancestor souls. So, now become those who always have unlimited awareness. Just as Baba’s praise is sung as, “The One who gives power to the weak”, so you too need to become powerful ones who give power to the weak ones in the Brahmin family and to all the souls of the world. Just as people beat drums to remove poverty, so, you too now remove their powerless state. Become such instruments and give all the souls of the world the Father’s help and courage.
Blessing:May your intellect have faith and you remain carefree and finish all worries in the fire of love.
The children whose intellects have faith remain carefree in all situations. All their worries have finished. The Father lifted them off the pyre of worry and sat them on His heart throne. You had love for the Father and, on the basis of this love, all your worries finished in the fire of love as though they never existed. There is no worry about the body, no worry about any waste in the mind and no worry about wealth, such as “What will happen?” With the power of knowledge you now know everything and so you have gone beyond all worries and your life has become carefree.
Slogan:Become so unshakeable and immovable that no type of problem can shake the foot of your intellect.
संगमयुग की श्रेष्ठ वेला, श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर बनाने की वेला
आज बापदादा हरेक ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मा के श्रेष्ठ जीवन के जन्म की वेला, तकदीर की रेखा देख रहे थे। जन्म की वेला सभी बच्चों की श्रेष्ठ हैं क्योंकि अभी युग ही पुरुषोत्तम श्रेष्ठ है। श्रेष्ठ संगमयुग पर अर्थात् श्रेष्ठ वेला में सभी का श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म हुआ। जन्म, वेला सभी की श्रेष्ठ है। तकदीर की रेखा, तकदीर भी सभी ब्राह्मणों की श्रेष्ठ है क्योंकि श्रेष्ठ बाप के शिव वंशी ब्रह्माकुमार वा कुमारी हैं। तो श्रेष्ठ बाप, श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ वर्सा, श्रेष्ठ परिवार, श्रेष्ठ खजाने - यह तकदीर की लकीर जन्म से सभी की श्रेष्ठ है। वेला भी श्रेष्ठ और प्राप्ति के कारण तकदीर की लकीर भी श्रेष्ठ है। यह तकदीर सभी बच्चों को एक बाप द्वारा एक जैसी प्राप्त है, इसमें अन्तर नहीं है। फिर भी एक जैसी तकदीर प्राप्त होते भी नम्बरवार क्यों? बाप एक, जन्म एक, वर्सा एक, परिवार एक, वेला भी एक संगमयुग, फिर नम्बर क्यों? सर्व प्राप्ति अर्थात् तकदीर सभी को बेहद की मिली है। अन्तर क्या हुआ? बेहद की तकदीर को जीवन के कर्म की तस्वीर में लाना इसमें यथाशक्ति होने के कारण अन्तर पड़ जाता है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् तकदीर को तस्वीर में लाना, जीवन में लाना। हर कर्म में लाना, हर संकल्प से, बोल से, कर्म से तकदीरवान को तकदीर अनुभव हो अर्थात् दिखाई दे। ब्राह्मण अर्थात् तकदीरवान आत्मा के नयन, मस्तक, मुख की मुस्कराहट हर कदम सभी को श्रेष्ठ तकदीर की अनुभूति करावे, इसको कहा जाता है तकदीर की तस्वीर बनाना। तकदीर को अनुभव की कलम से, कर्म के कागज की तस्वीर में लाना। तकदीर के तस्वीर की चित्र रेखा बनाना। तस्वीर तो सभी बना रहे हो लेकिन किसकी तस्वीर सम्पन्न है और किसकी तस्वीर कुछ न कुछ किसी बात में कम रह जाती है अर्थात् प्रैक्टिकल जीवन में लाने में किसकी मस्तक रेखा अर्थात् मन्सा, नयन रेखा अर्थात् रुहानी दृष्टि, मुख की मुस्कराहट की रेखा अर्थात् सदा सर्व प्राप्ति स्वरुप सन्तुष्ट आत्मा। सन्तुष्टता ही मुस्कराहट की रेखा है। हाथों की रेखा अर्थात् श्रेष्ठ कर्म की रेखा। पांव की रेखा अर्थात् हर कदम श्रीमत प्रमाण चलने की शक्ति। इसी प्रकार तकदीर की तस्वीर बनाने में किसका किसमें, किसका किसमें अन्तर पड़ जाता है। जैसे स्थूल तस्वीर भी बनाते हैं तो कोई को नैन नहीं बनाने आते, कोई को टांग नहीं बनाने आती। कोई मुस्कराहट नहीं बना सकते। तो फर्क पड़ जाता है ना। जितना सम्पन्न चित्र उतना मूल्यवान होता है। वो ही एक चित्र लाखों का मूल्य कमाता और कोई 100 भी कमाता। तो अन्तर किस बात का हुआ? सम्पन्नता का। ऐसे ही ब्राह्मण आत्मायें भी सर्व रेखाओं में सम्पन्न न होने कारण किसी एक रेखा, दो रेखा की सम्पूर्णता न होने कारण नम्बरवार हो जाते हैं।
तो आज तकदीरवान बच्चों की तस्वीर देख रहे थे। जैसे स्थूल तकदीर में भी भिन्न-भिन्न तकदीर होती है। वैसे यहाँ तकदीर की भिन्न-भिन्न तस्वीरें देखी। हर तस्वीर में मुख्य मस्तक और नयन तस्वीर की वैल्यु बढ़ाते हैं। वैसे यहाँ भी मंसा वृत्ति की शक्ति और नयन रुहानी दृष्टि की शक्ति, इसका ही महत्व होता है। यही तस्वीर का फाउन्डेशन है। सभी अपनी तस्वीर को देखो कि हमारी तस्वीर कितनी सम्पन्न बनी है। ऐसी तस्वीर बनी है जो तस्वीर में तकदीर बनाने वाला दिखाई दे। हर एक रेखा को चेक करो। इसी कारण नम्बर हो जाता है। समझा।
दाता एक है, देता भी एक जैसा है। लेकिन बनने वाले, बनने में नम्बरवार हो जाते। कोई अष्ट और ईष्ट देव बन जाते, कोई देव बन जाते। कोई देवों को देख-देख हर्षित होने वाले हो जाते। अपना चित्र देख लिया ना। अच्छा!
साकार रुप में मिलने में तो समय और संख्या को देखना पड़ता और अव्यक्त मिलन में समय और संख्या की बात नहीं है। अव्यक्त मिलन के अनुभवी बन जायेंगे तो अव्यक्त मिलन के विचित्र अनुभव सदा करते रहेंगे। बापदादा बच्चों के सदा आज्ञाकारी हैं इसलिए अव्यक्त होते भी व्यक्त में आना पड़ता है। लेकिन बनना क्या है? अव्यक्त बनना है ना या व्यक्त में आना है? अव्यक्त बनो। अव्यक्त बनने से बाप के साथ निराकार बन घर में चलेंगे। अभी वाया की स्टेज तक नहीं पहुँचे हो। फरिश्ता स्वरुप से निराकार बन घर जा सकेंगे। तो अभी फरिश्ता स्वरुप बने हो! तकदीर की तस्वीर सम्पन्न की है? सम्पन्न तस्वीर ही फरिश्ता है। अच्छा!
सभी आये हुए भिन्न-भिन्न ज़ोन के बच्चों को हर एक ज़ोन की विशेषता सहित बापदादा देख-देख हर्षित हो रहे हैं। कोई भाषा भले नहीं जानते लेकिन प्रेम और भावना की भाषा जानने में होशियार हैं और कुछ नहीं जानते लेकिन मुरली की भाषा जानते हैं। प्रेम और भावना से न समझने वाले भी समझ जाते हैं। बंगाल बिहार तो सदा बहारी मौसम में रहते। सदा बहार है।
पंजाब है ही सदा सभी को हराभरा करने वाला। पंजाब में खेती अच्छी होती है। हरियाणा तो है ही हरा भरा। पंजाब, हरियाणा सदा हरियाली से हरा भरा है। जहाँ हरियाली होती है उस स्थान को सदा कुशल, श्रेष्ठ स्थान कहा जाता है। पंजाब हरियाणा सदा खुशी में हरा भरा है इसलिए बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। राजस्थान की क्या विशेषता है? राजस्थान चित्र रेखा में प्रसिद्ध है। राजस्थान की तस्वीरें बहुत मूल्यवान होती हैं क्योंकि राज़े बहुत हुए हैं ना। तो राजस्थान तकदीर की तस्वीरें सबसे ज्यादा मूल्यवान बनाने वाले हैं। चित्रों की रेखा में सदा श्रेष्ठ हैं। गुजरात की क्या विशेषता है? वहाँ आइनों का श्रृंगार ज्यादा होता है। तो गुजरात दर्पण है। दर्पण कहो, आइना कहो, जिसमें बाप की मूर्त देखी जाए। आइने में शक्ल देखते हैं ना। तो गुजरात के दर्पण द्वारा बाप की तस्वीर फरिश्ता स्वरुप की तस्वीर सभी को दिखाने की विशेषता है। तो गुजरात की विशेषता है - बाप को प्रत्यक्ष करने वाले दर्पण। बाकी छोटा-सा तामिलनाडु रह गया। छोटा ही कमाल करता है। बड़ा कार्य करके दिखाता है। तामिलनाडु क्या करेंगे? वहाँ मन्दिर बहुत हैं। मन्दिरों में नाद बजाते हैं। तामिलनाडु की विशेषता है - नगाड़ा बजाए बाप की प्रत्यक्षता का आवाज बुलन्द करना। अच्छी विशेषता है। छोटे-पन में भी नाद बजाते हैं। भक्त लोग भी बड़े प्यार से नाद बजाते हैं और बच्चे भी प्यार से बजाते हैं। अब हरेक स्थान अपनी विशेषता को प्रत्यक्ष स्वरुप में लाओ। सभी ज़ोन वालों से मिल लिया ना! आखिर तो ऐसा ही मिलना होगा। पुराने बच्चे कहते हैं हमको क्यों नहीं बुलाते। प्रजा भी बनाते, बढ़ाते भी रहते। तो पुरानों को नये-नये को चांस देना पड़े तब तो संख्या बढ़े। पुराने भी पुरानी चाल से चलते रहें तो नयों का क्या होगा। पुराने हैं दाता देने वाले और नये हैं लेने वाले। तो चांस देना हैं इसमें दाता बनना पड़े। साकार मिलन में सब हद आ जाती हैं। अव्यक्त मिलन में कोई हद नहीं। कई कहते हैं संख्या बढ़ेगी फिर क्या होगा! साकार मिलन की विधि भी तो बदलेगी। जब संख्या बढ़ती है तो कुछ दान पुण्य भी करना होता है। अच्छा!
सभी देश विदेश के चारों ओर के स्नेही बच्चों के स्नेह के दिल के आवाज, खुशी के गीत और दिल के समाचार के पत्रों के रेसपान्ड में बापदादा सभी बच्चों को पदमगुणा यादप्यार के साथ रेसपान्ड दे रहे हैं कि सदा याद से अमर भर के वरदानी बन बढ़ते चलो और बढ़ाते चलो। सभी उमंग उत्साह में रहने वाले बच्चों को बापदादा स्व उन्न्ति और सेवा की उन्नति के लिए मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो। सदा साथ हो। सदा सम्पन्न और सम्पूर्ण हो, ऐसे सर्व वरदानी बच्चों को बापदादा फिर से यादप्यार दे रहे हैं। यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों से:- सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न आत्मा समझते हो! जो सम्पन्न है वह सदा आगे बढ़ते रहेंगे। सम्पन्नता नहीं तो आगे नहीं बढ़ सकते। तो जैसे बाप वैसे बच्चे। बाप सागर है बच्चे मास्टर सागर हैं। हर गुण को चेक करो-जैसे बाप ज्ञान का सागर है तो हम मास्टर ज्ञान सागर हैं। बाप प्रेम का सागर है तो हम मास्टर प्रेम के सागर हैं। ऐसे समानता को चेक करो तब बाप समान सम्पन्न बन सदा आगे बढ़ते जायेंगे। समझा-सदा ऐसी चेकिग करते चलो। सदा इसी खुशी में रहो कि जिसको विश्व ढूंढता है। उसने हमको अपना बनाया है। अच्छा।
अव्यक्त महावाक्य - विश्व कल्याणकारी बनो
बापदादा ने आप बच्चों को विश्व सेवा के लिए निमित्त बनाया है। विश्व के आगे बाप को दिखाने वाले आप बच्चे हो। बच्चों द्वारा ही बाप दिखाई देगा। बैकबोन तो बाप है ही। अगर बाप बैकबोन न बने तो आप अकेले थक जायेंगे इसलिए बाप को बैकबोन समझ विश्व कल्याण की सेवा में तन-मन-धन, मन्सा-वाचा-कर्मणा से बिजी रहो तो सहज ही मायाजीत बन जायेंगे।
वर्तमान समय सारे विश्व में अल्पकाल के प्राप्ति रुपी फल-फूल सूखे हुए हैं। सभी मन से, मुख से चिल्ला रहे हैं और कैसे भी मजबूरी से जीवन को, देश को चला रहे हैं। खुशी-खुशी से चलना समाप्त हो गया है। तो ऐसे मजबूरी से चलने वालों को प्राप्ति के पंख देकर उड़ाओ। लेकिन उड़ा तब सकेंगे जब स्वयं उड़ती कला में होंगे। इसके लिए बाप समान विश्व कल्याणकारी की बेहद की स्टेज पर स्थित हो विश्व की सर्व आत्माओं को सकाश दो, विश्व परिक्रमा लगाओ। जैसे चित्रों में दिखाते हैं ग्लोब के ऊपर श्रीकृष्ण बैठा हुआ है, ऐसे विश्व के ग्लोब पर बैठ चारों ओर नज़र घुमाओ तो आटोमेटिक विश्व का चक्र लग जायेगा। वैसे भी जब बहुत ऊंचे स्थान पर चले जाते हैं तो चक्कर लगाना नहीं पड़ता लेकिन एक स्थान पर रहते सारा दिखाई देता है। जो जब आप अपनी ऊंची स्टेज पर, बीजरुप स्टेज पर, विश्व कल्याणकारी स्थिति में स्थित होंगे तो सारा विश्व ऐसे दिखाई देगा जैसे छोटा बाल है। तो सेकण्ड में चक्कर लगाकर आयेंगे।
आप सर्व आत्माओं के पिता के बच्चे हो, सर्व आत्मायें आपके भाई हैं। तो अपने भाईयों के तरफ संकल्प की नज़र दौड़ाओ। विशाल बुद्धि, दूरांदेशी बनो। छोटी-छोटी बातों में अपना समय नहीं गँवाओ। ऊंची स्टेज पर स्थित हो अब विशाल कार्य के निमित्त बनो। हे विश्व कल्याणकारी आत्मायें - सदा विशाल कार्य का प्लान इमर्ज रखो। सर्व की विशेषताओं द्वारा ही विश्व कल्याण का बेहद कार्य सम्पन्न होना है। जैसे कोई स्थूल चीज़ भी बनाते हैं, तो उसमें अगर सब चीजें न डाली जाएं, साधारण मीठा या नमक भी न हो तो चाहे कितनी भी बढ़िया चीज़ बनाओ लेकिन वह खाने योग्य नहीं बन सकती। ऐसे ही विश्व के इतने श्रेष्ठ कार्य के लिए हरेक रत्न की आवश्यकता है। सबकी अंगुली चाहिए। हर एक की अंगुली से ही विश्व परिवर्तन का कार्य सम्पन्न होना है।
बापदादा की दिल है कि विश्व पर सदा के लिए सुख और शान्ति का झण्डा लहर जाए। सदा चैन की बांसुरी बजती रहे। इस लक्ष्य को लेकर सर्व के सहयोग की अंगुली से विशाल कार्य को सम्पन्न करो। आप ब्राह्मण बच्चों का अब विशेष कर्तव्य है - मास्टर ज्ञान सूर्य बन सारे विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें देना। तो सभी विश्व कल्याणकारी बन विश्व को सर्वशक्तियों की किरणें दो। जैसे सूर्य अपनी किरणों द्वारा विश्व को रोशन करता है। ऐसे आप मास्टर ज्ञान सूर्य बन सर्वशक्तियों की किरणें विश्व में फैलाओ तब सर्व आत्माओं को आपकी सकाश मिले सकेगी।
आप विश्व के दीपक, अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार दीपमाला मनाई जाती है। अभी तक आपकी माला सिमरण करते हैं क्योंकि अधंकार को रोशन करने वाले बने हो। तो स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक। ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं। जैसे बाप सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे आप बच्चे भी सदा अमरज्योति बनकर विश्व को अंधकार से निकालने की सेवा करो। विश्व की आत्मायें आप जगे हुए दीपकों की तरफ बहुत स्नेह से देख रही हैं। आप रात से दिन बनाने वाले चैतन्य दीपक हो। कितनी आत्मायें अधंकार में भटकती हुई रोशनी के लिए तड़फ रही हैं। अगर आप दीपकों की रोशनी टिमटिमाती रहेगी, अभी-अभी जगी, अभी-अभी बुझी तो भटकी हुई आत्माओं का क्या हाल होगा! बुझती-जगती हुई लाइट पसन्द नहीं करेंगे इसलिए जागती ज्योत बन अंधकार को मिटाने की जिम्मेवार आत्मा समझकर चलो तब कहेंगे विश्व कल्याणकारी।
आप पूर्वज आत्मायें हो, आप की वृत्ति विश्व के वातावरण को परिवर्तन करने वाली हो। आप पूर्वजों की दृष्टि सर्व वंशावली को ब्रदरहुड की स्मृति दिलाने वाली हो। आप पूर्वज बाप की स्मृति में रह सर्व वंशावली को स्मृति दिला दो कि सभी का बाप आ गया है। आप पूर्वजों के श्रेष्ठ कर्म वंशावली को श्रेष्ठ चरित्र अर्थात् चरित्र निर्माण की शुभ आशा उत्पन्न कर दें। सबकी नज़र आप पूर्वजों को ढूंढ रही है तो अब बेहद के स्मृति स्वरुप बनो। जैसे बाप की महिमा में गायन करते हैं-"निर्बल को बल देने वाला''। ऐसे आप सभी भी चाहे ब्राह्मण परिवार में, चाहे विश्व की आत्माओं में हर आत्मा को, निर्बल को बल देने वाले महाबलवान बनो। जैसे वह लोग नारा लगाते हैं गरीबी हटाओ, वैसे आप निर्बलता को हटाओ। ऐसे निमित्त बन विश्व की हर आत्मा को बाप से हिम्मत और मदद दिलाओ। अच्छा। ओम् शान्ति।
वरदान:-लगन की अग्नि में सब चिंताओं को समाप्त करने वाले निश्चयबुद्धि निश्चिंत भव
जो बच्चे निश्चयबुद्धि हैं वह सभी बातों में निश्चिंत रहते हैं। चिंतायें सारी मिट गई। बाप ने चिंताओं की चिता से उठाकर दिलतख्त पर बिठा दिया। बाप से लगन लगी और लगन के आधार पर, लगन की अग्नि में सब चिंतायें समाप्त हो गई, जैसे थी ही नहीं। न तन की चिंता, न मन में कोई व्यर्थ चिंता और न धन की चिंता। क्या होगा......ज्ञान की शक्ति से सब जान गये इसलिए सब चिंताओं से परे निश्चिंत जीवन हो गई।
स्लोगन:-ऐसे अचल अडोल बनो जो किसी भी प्रकार की समस्या बुद्धि रुपी पांव को हिला न सके।
18/11/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 04/04/84
The elevated period of the confluence age is the time to draw the portrait of your elevated fortune.
Today, BapDada was seeing the moment of birth of the elevated life and the line of fortune of every elevated Brahmin soul. The moment of birth of every child is elevated because it is now the most auspicious elevated confluence age. All of you have taken elevated Brahmin birth at the elevated confluence age, that is, in the most elevated period. The moment of birth of all of you is elevated. The line of fortune, the fortune of all of you Brahmins, is elevated because you are the Shiv dynasty Brahma Kumars and Kumaris who belong to the elevated Father. The elevated Father, elevated birth, elevated inheritance, elevated family and elevated treasures: this line of fortune of all of you is elevated from birth. The period is elevated and, because of the attainment, the line of fortune is also elevated. All of you children have attained the same fortune from the one Father, there is no difference in this. Even though you attain the same fortune, why does it become numberwise? The Father is the same, the birth is the same, the inheritance is the same, the family is the same, the period is the same one of the confluence age, so why is there a number? All of you have received unlimited attainments, that is, unlimited fortune. So, why is there a difference? The difference is created in how you put the unlimited fortune into the picture of actions in your life, according to your capacity. Brahmin life means to paint a picture of your fortune, to put it into your life; to put it into every action. A fortunate one should experience fortune in every thought, every word and every deed, that is, fortune should be visible. A Brahmin means a fortunate soul, whose eyes, forehead and smile on the face give everyone the experience of elevated fortune at every step. This is known as drawing a picture of fortune. Draw the picture of your fortune with the pen of experience on the paper of actions. Make a line drawing of the portrait of your fortune. All of you are creating your portraits, but the portraits of some are complete, whereas the portraits of others still lack something or other. When you put this into your practical life, the line of the forehead means your thoughts, the line of the eyes means spiritual vision, the lines of the smile on your face means to be a constantly contented soul and an embodiment of all attainments. Contentment itself is the line of the smile. The lines of the hands mean the lines of elevated deeds. The lines of the feet mean the power to take every step according to shrimat. In this way, there is a difference in the way you draw the portrait of your fortune. In some, one thing is missing and in others, something else is missingWhen painting a physical painting, some don't know how to paint eyes, some don't know how to paint legs. Some don't know how to paint a smile and so this makes a difference. To the extent that a portrait is perfect, to that extent it is valuable. The pictures of some earn them hundreds of thousands of rupees, whereas the pictures of others scarcely earn them a hundred rupees. So, what was it that made the difference? Perfection. In the same way, because you Brahmin souls are not perfect in all lines, because there isn’t perfection in one or two lines, you become numberwise.
Therefore, today, Baba was looking at the portraits of the fortunate children. Just as in a physical fortune, there are different types of fortune, in the same way, here, too, Baba saw many types of portraits of fortune. In every picture, the main features - the eyes and the forehead - increase the value of the portrait. Similarly, here, the power of the attitude of the mind and the power of spiritual vision of the eyes also have a lot of importance. These are the foundation of the picture. Do all of you look at your own picture? To what extent has your picture been completed? Have you painted such a portrait that the One who creates your fortune is visible in that portrait? Check every line. It becomes numberwise because of this. Do you understand?
The Bestower is One and He gives everyone the same, yet those creating the picture become numberwise in how they create it. Some become one of the special eight and a special beloved deity. Some become deities. Some become those who are happy simply observing other deities. You have seen your own picture, have you not? Achcha.
For a meeting in the corporeal form, the time and the number of people have to be considered, whereas with an avyakt meeting, there is no question of the time or the number of people. If you become experienced in avyakt meetings, you will constantly continue to have to unique experiences in avyakt meetings. BapDada is constantly obedient to all the children. This is why, although He is avyakt He has to come into the corporeal (vyakt) form. However, what do you have to become? You have to become avyakt, do you not? Or, do you want to come in the corporeal form? Become avyakt. By becoming avyakt, you will become incorporeal and go home with the Father. You have not yet reached the stage of going via. Through the angelic form, you will be able to become incorporeal and go back home. So, have you now become the angelic form? Have you completed the portrait of your fortune? Only a completed portrait is an angel. Achcha.
All you children who have come from all the different zones, BapDada is pleased to see each one of you with the speciality of each zone. Some of you may not know the language, but you are clever when it come to knowing the language of love and devotion. You don't know anything else, but you do know the language of the murli. With their love and devotion, even those who are unable to understand anything are able to understand. Those from Bengal and Bihar constantly live in the weather of Spring (Bahar). They have constant Spring.
Punjab is such that it always makes everything fresh and green (makes everyone full). There is good harvest in Punjab. Hariyana is always full and green (hara bhara). Punjab and Hariyana are always full and green. Where there is greenery, that place is always said to be happy and content and an elevated place. Punjab and Hariyana are always full of happiness. This is why BapDada is pleased to see all of you. What is the speciality of Rajasthan? Rajasthan is very well known for its art. The pictures of Rajasthan are very valuable because there have been many kings there. Therefore, those from Rajasthan are the ones who will make the most valuable portraits of fortune. In the line of art, you are always elevated. What is the speciality of Gujarat? There is a lot of decoration of glass mirrors there. So, Gujarat is a mirror. It is a mirror in which the Father's image can be seen. You look at your face in the mirror, don’t you? So, the mirror of Gujarat has the speciality of showing everyone the image of the Father and the image of an angel. The speciality of Gujarat is the mirror that will reveal the Father. Finally, little Tamil Nadu is still left. Smaller ones work wonders. They carry out huge tasks. What will those from Tamil Nadu do? There are many temples there. They play music in temples. The speciality of Tamil Nadu is to beat the drums and make a very loud sound of the Father's revelation. You have a good speciality. Some play music even in their childhood. Even devotees play music with a lot of love. You children also play it with love. Now, each of your places has to put your own speciality into a practical form. Baba has now met those from all zones, has He not? Eventually, this is how the meetings will take place. The older children say: Why don't you invite us? You create subjects and you also increase the number of subjects, and so the older ones have to give a chance to the newer ones. It is only then that the number can increase. If the older ones continue to move along in the same old way, what would happen to the newer ones? The older ones are bestowers who give and the newer ones are those who receive. Therefore, you have to give a chance to others. You have to become bestowers in this. There are many limitations in meeting through the corporeal form. In the avyakt meeting, there are no limitations. Some ask: What will happen when the number increases? The method of corporeal meetings will also change. When the number increases, you also have to donate something and perform some charity. Achcha.
To all the children from this land and abroad, in response to the sound of their loving hearts, songs of happiness and letters of news of their hearts, together with giving multi-million fold love and remembrance to all the children, BapDada is also giving a response to their letters. By having constant remembrance be one who receives the blessing of immortality and continue to move forward and also make others move forward. To all the children who maintain their zeal and enthusiasm, BapDada congratulates you for your own progress and for the progress of service. Congratulations! You are always with the Father. You are always complete and perfect. To the children who have received all such blessings, BapDada is once again giving you love and remembrance. Love, remembrance and namaste.
BapDada meeting groups:
Do you always consider yourselves to be souls who are complete, equal to the Father? Those who are complete will always continue to move forward. If there isn't completion, you won't be able to move forward. Therefore, as is the Father, so are the children. The Father is the Ocean and the children are master oceans. Check every virtue. Just as the Father is the Ocean of Knowledge, so you are master oceans of knowledge. The Father is the Ocean of Love and so you are master oceans of love. Check your similarity in this way. Only then will you always be equal and complete like the Father and continue to move forward. Do you understand? Constantly continue to check yourself in this way. Always maintain the happiness that the One the world is searching for has made you belong to Him. Achcha.
Avyakt Elevated Versions - Become a World Benefactor
BapDada has made you children instruments for world service. You are the children who will reveal the Father to the whole world. Only the Father’s children can reveal Him. The Father is the Backbone. If the Father were not the Backbone, you would be on your own and soon get tired. Therefore, consider the Father to be the Backbone and keep busy serving the world through your thoughts, words, deeds with your body, mind and wealth and you will easily be able to conquer Maya.
At present, all the fruits and flowers on the tree have dried up because they only received temporary sustenance. Although everyone is still having to run the world and live their lives, they are all crying in their thoughts or words. No one lives a life of happiness any longer. Therefore, give wings of attainment to those who are moving along under desperate circumstances and enable them to fly. However, it is only when you yourself are in the flying stage that you can make others fly. In order to do this, remain stable in the unlimited stage of a world benefactor, like the Father. Tour the world and send currents of powerful rays to all souls. They show the picture of Shri Krishna sitting on the globe of the world. You too should sit above the globe of the world and by looking all the way round the whole world, you will automatically have toured everywhere. When you go to a very high place, you don’t need to tour around, because you are able to see everything from that high place. Similarly, when you remain stable in your elevated seed stage , in your stage of a world benefactor, the whole world seems like a small globe for you to tour around within a second.
You are the children of the Father of all souls, and all souls are your brothers. Therefore, let your thoughts dwell on your brothers and make your intellect broad and far-sighted. Do not waste time over trivial matters, but stabilise in an elevated stage and become an instrument for an unlimited task. O, world benefactor souls, constantly remain aware of the plan to benefit the world. Only when everyone’s speciality is used for world benefit will the unlimited task be accomplished. When you cook something but forget to put in all the ingredients - even if you miss out something as ordinary as salt or sugar – then, no matter how beautiful the dish may look, it won’t be worth eating. In the same way, each and every jewel is essential for the elevated task of world benefit. Everyone’s finger of co-operation is needed. The task of world transformation will only be accomplished with each one’s finger of co-operation.
BapDada’s desire is for the flag of peace and happiness to be constantly flying high over the whole world and for the flute of comfort to be constantly playing. Keep this aim and complete this unlimited task with everyone’s finger of co-operation. The special duty of each Brahmin is to become a master sun of knowledge and shine rays of all powers over whole world. So, each of you, become a world transformer who shines the rays of all powers over the world. The sun lights up the whole world with its rays, so you now become master suns of knowledge and spread the rays of all powers over the world. Only then will all souls receive the current of your powerful rays.
Deepmala is celebrated as a memorial of all of you lamps of the world who are imperishable. Even now, people are still turning the beads of your rosary, because of the time when you became those who dispelled darkness and brought light. So, constantly experience yourselves to be ignited lamps. No matter how many storms come, you must constantly remain in front of the Eternal Light like an ignited lamp that never flickers. The world bows down to such lamps and even the Father constantly stays with such lamps. Just as the Father is the constantly ignited Light, just as He is the eternal and immortal Light, so, you children too must constantly be immortal lights to serve the world by removing all the darkness from it. Souls of the world regard you ignited lamps with a lot of love. You are the living lamps who transform night into day. So many souls are wandering around in darkness and are desperate for some light. If the lights of you lamps are flickering, if your lights are ignited one moment and extinguished the next, what would the condition of wandering souls become? No one likes a light that goes on and off. Therefore, become a constantly ignited light and move along considering yourself to be a soul who is responsible for dispelling the darkness. Only then would you be called a world benefactor.
Let the attitude of all of you ancestor souls be such that it transforms the atmosphere of whole world. Let the whole lineage of you ancestor souls be reminded of their brotherhood by your vision. You ancestor souls have to remain aware of the Father and remind your whole lineage that the Father of all souls has now come. Let the elevated acts and elevated character of humility of you ancestor souls create pure hopes in your whole lineage. Everyone’s eyes are searching for you ancestor souls. So, now become those who always have unlimited awareness. Just as Baba’s praise is sung as, “The One who gives power to the weak”, so you too need to become powerful ones who give power to the weak ones in the Brahmin family and to all the souls of the world. Just as people beat drums to remove poverty, so, you too now remove their powerless state. Become such instruments and give all the souls of the world the Father’s help and courage.
Blessing:May your intellect have faith and you remain carefree and finish all worries in the fire of love.
The children whose intellects have faith remain carefree in all situations. All their worries have finished. The Father lifted them off the pyre of worry and sat them on His heart throne. You had love for the Father and, on the basis of this love, all your worries finished in the fire of love as though they never existed. There is no worry about the body, no worry about any waste in the mind and no worry about wealth, such as “What will happen?” With the power of knowledge you now know everything and so you have gone beyond all worries and your life has become carefree.
Slogan:Become so unshakeable and immovable that no type of problem can shake the foot of your intellect.
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