Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 16-Nov-2018 )
16-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हें रूहानी पण्डा बन यात्रा करनी और करानी है, याद ही तुम्हारी यात्रा है, याद करते रहो तो खुशी का पारा चढ़े''

 

प्रश्नः-निराकारी दुनिया में जाते ही कौन-से संस्कार समाप्त हो जाते और कौन से संस्कार रह जाते हैं?

 

उत्तर:-

 

वहाँ नॉलेज के संस्कार समाप्त हो जाते, प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं। जिन संस्कारों के आधार पर तुम बच्चे सतयुग में प्रालब्ध भोगते हो, वहाँ फिर पढ़ाई का वा पुरुषार्थ का संस्कार नहीं रहता है। प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म हो जाता है।

 

गीत:-रात के राही थक मत जाना........ 

 

ओम् शान्ति।

 

यहाँ सम्मुख शिव भगवानुवाच है। गीता में दिखाते हैं - श्रीकृष्ण भगवानुवाच परन्तु कृष्ण तो उस नाम-रूप से सम्मुख हो सके। यह तो सम्मुख कहते हैं, निराकार भगवानुवाच। कृष्णवाच कहें तो वह साकार हो जाता है। जो भी वेद-शास्त्र आदि सुनाते हैं, वह ऐसे नहीं कहेंगे कि भगवानुवाच क्योंकि वह साधू, सन्त, महात्मा आदि सब साकार में बैठे हैं। और फिर बाप कहते हैं - हे रूहानी राही। रूहानी बाप जरूर रूहों को ही कहेंगे कि बच्चे, थक मत जाना। यात्रा पर कई थक जाते हैं तो फिर वापस जाते हैं। वह है जिस्मानी यात्रा। भिन्न-भिन्न मन्दिरों में जिस्मानी तीर्थ यात्रा करने जाते हैं। कोई शिव के मन्दिर में जाते हैं, वहाँ सब जिस्मानी चित्र रखे हैं भक्ति मार्ग के। यह तो सुप्रीम रूह परमपिता परमात्मा आत्माओं को कहते हैं कि हे बच्चे, अब मुझ एक के साथ बुद्धि का योग लगाओ और ज्ञान भी देते हैं। तीर्थों पर जाते हैं तो वहाँ भी ब्राह्मण लोग बैठे हैं, कथा-कीर्तन करते हैं। तुम्हारी तो एक ही सत्य नारायण की कथा है, नर से नारायण बनने की। तुम जानते हो पहले स्वीट होम में जायेंगे फिर विष्णुपुरी में आयेंगे। इस समय तुम हो ब्रह्मापुरी में, इसको पियरघर कहा जाता है। तुमको जेवर आदि कुछ नहीं हैं क्योंकि तुम पियरघर में हो। तुम जानते हो ससुरघर में हमको अपार सुख मिलने हैं। यहाँ कलियुगी ससुरघर में तो अपार दु: हैं। तुमको तो जाना है उस पार सुखधाम में। यहाँ से ट्रांसफर होना है। बाप सभी को नयनों पर बिठाकर ले जाते हैं। दिखाते हैं ना कृष्ण का बाप उनको टोकरी में बिठाकर उस पार ले गया तो यह बेहद का बाप तुम बच्चों को उस पार ससुरघर ले जाते हैं। पहले अपने निराकारी घर में ले जायेंगे फिर ससुरघर भेज देंगे। तो वहाँ यह सब पियरघर, ससुरघर की बातें भूल जायेंगी। वह है निराकारी पियरघर, वहाँ यह नॉलेज भूल जाती है, नॉलेज के संस्कार निकल जाते हैं, बाकी प्रालब्ध के संस्कार रह जाते हैं। फिर तुम बच्चों को प्रालब्ध ही ध्यान में रहती है। प्रालब्ध अनुसार जाकर सुख के जन्म लेंगे। सुखधाम जाना है। प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान ख़त्म। तुम जानते हो प्रालब्ध में हमारी फिर वही एक्ट चलेगी। तुम्हारे संस्कार ही प्रालब्ध के हो जायेंगे। अभी हैं पुरुषार्थ के संस्कार। ऐसे नहीं कि पुरुषार्थ और प्रालब्ध दोनों संस्कार वहाँ रहेंगे। नहीं, वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता। तो यह तुम्हारी रूहानी यात्रा है, तुम्हारा चीफ पण्डा है बाप। यूं तो तुम भी रूहानी पण्डे बन जाते हो, सबको साथ में ले जाते हो। वह हैं जिस्मानी पण्डे, तुम हो रूहानी पण्डे। वह लोग अमरनाथ पर बड़े धूमधाम से जाते हैं, झुण्ड के झुण्ड ख़ास अमरनाथ पर बहुत धूमधाम से जाते हैं। बाबा ने देखा है कितने साधू-सन्त बाजे गाजे ले जाते हैं। साथ में डॉक्टर आदि भी ले जाते हैं क्योंकि ठण्डी का समय होता है। कई बीमार पड़ जाते हैं। तुम्हारी यात्रा तो बहुत सहज है। बाप कहते हैं याद में रहना ही तुम्हारी यात्रा है। याद मुख्य है। बच्चे याद करते रहें तो खुशी का पारा चढ़ा रहे। साथ में औरों को भी यात्रा पर ले जाना है। यह यात्रा एक ही बार होती है। वह जिस्मानी यात्रायें तो भक्ति मार्ग से शुरू होती हैं। वह भी कोई शुरूआत में नहीं होती। ऐसे नहीं कि फट से मन्दिर, चित्र आदि बन जाते हैं। वह तो आहिस्ते-आहिस्ते बाद में बनते जाते हैं। पहले-पहले शिव का मन्दिर बनेगा। वह भी पहले घर में सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं तो फिर कहाँ जाने की दरकार नहीं रहती। यह मन्दिर आदि बाद में बनते हैं, समय लगता है। आहिस्ते-आहिस्ते नये शास्त्र, नये चित्र, नये मन्दिर आदि बनते रहते। टाइम लगता है क्योंकि पढ़ने वाले भी चाहिए ना। मठ आदि जब वृद्धि को पायेंगे, फिर विचार होगा शास्त्र बनायें। तो इतने तीर्थस्थान बनें, मन्दिर बनें, चित्र बनें, टाइम लगता है ना। भल कहा जाता है कि भक्ति मार्ग द्वापर से शुरू होता है परन्तु टाइम तो लगता है ना। फिर कलायें कमती होती जायेंगी। पहले अव्यभिचारी भक्ति, फिर व्यभिचारी भक्ति हो जाती है। यह सब बातें अच्छी रीति चित्रों पर सिद्ध कर बताई जाती हैं। समझाने वालों की बुद्धि में यही चलता रहेगा कि ऐसे-ऐसे चित्र बनायें, यह समझायें। सबकी बुद्धि में नहीं चलेगा। नम्बरवार है ना। कोई की बुद्धि बिल्कुल चलती नहीं, वह फिर पद भी ऐसे पायेंगे। मालूम पड़ जाता है - यह क्या बनेंगे? जितना आगे चलेंगे - तुम समझते जायेंगे। जब लड़ाई आदि लगेगी फिर प्रैक्टिकल देख लेंगे। फिर बहुत पछतायेंगे। उस समय पढ़ाई तो हो सके। लड़ाई के समय त्राहि-त्राहि होती रहेगी, सुन नहीं सकेंगे। पता नहीं क्या हो जायेगा। पार्टीशन हुआ तो क्या हो गया, देखा ना। यह विनाश का समय बहुत कड़ा है। हाँ, बाकी साक्षात्कार आदि बहुत होंगे, जिससे जान जायेंगे कि यह कितना पढ़ा है। बहुत पछतायेंगे भी और साक्षात्कार होंगे - देखो तुमने पढ़ाई छोड़ दी तब यह हाल हुआ है। धर्मराज साक्षात्कार कराने सिवाए सजायें कैसे देंगे? सब साक्षात्कार करायेंगे। फिर उस समय कर कुछ नहीं सकेंगे। कहेंगे हाय तकदीर। तदबीर का समय तो गया। तो बाप कहते हैं क्यों नहीं अभी पुरुषार्थ करते हो। सर्विस से ही दिल पर चढ़ेंगे। बाप कहेंगे यह बच्चे अच्छी सर्विस करते हैं। मिलेट्री का कोई मरता है तो उनके मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी इनाम देते हैं। यहाँ तुमको इनाम देने वाला है बेहद का बाप। बाप से भविष्य 21 जन्मों के लिए इनाम मिलता है। यह तो हरेक को अपनी दिल पर हाथ रख पूछना है कि मैं कितना पढ़ता हूँ। धारणा नहीं होती तो गोया तकदीर में नहीं है। कहेंगे कर्म ही ऐसे फूटे हुए हैं। बहुत खराब कर्म करने वाले कुछ उठा नहीं सकते हैं।

 

बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे, तुम्हें इस रूहानी यात्रा पर अपने साथियों को भी ले जाना है। फ़र्ज है हरेक को यह यात्रा की बात बताना। बोलो, हमारी यह रूहानी यात्रा है। वह है जिस्मानी। दिखाते हैं रंगून की तरफ एक छम-छम तलाव है, जहाँ स्नान करने से परी बन जाते हैं। लेकिन वह परी आदि तो बनते नहीं। यह है ज्ञान स्नान करने की बात, जिससे फिर तुम बहिश्त की बीबी बन जाते हो और ज्ञान-योगबल से वैकुण्ठ में आना-जाना तो तुम्हारे लिए कॉमन बात है। और ही तुमको रोका जाता है, घड़ी-घड़ी ध्यान में नहीं जाओ, आदत पड़ जायेगी। तो यह ज्ञान मान-सरोवर है, परमपिता परमात्मा आकर इस मनुष्य तन द्वारा ज्ञान सुनाते हैं, इसलिए इनको मान-सरोवर कहा जाता है। मान-सरोवर अक्षर सागर से निकला है। ज्ञान सागर में ज्ञान स्नान करना तो बहुत अच्छा है। बहिश्त की बीबी को महारानी कहा जाता है। बाप कहेंगे तुम भी बहिश्त के मालिक बनो। बच्चों पर लव रहता है। हरेक पर रहम पड़ता है, साधुओं पर भी रहम आता है। यह तो गीता में लिखा हुआ है कि साधुओं का भी उद्धार करते हैं। उद्धार होता है - ज्ञान योग से। तुम बच्चों में समझाने की बड़ी फुर्ती चाहिए। बोलो - तुम और तो सब जानते हो लेकिन छांछ जानते हो, बाकी मक्खन खिलाने वाले को तुम जानते ही नहीं हो। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु किसकी बुद्धि में भी बैठे ना। बाप को जानने से मनुष्य हीरे जैसा बनते हैं, जानने से मनुष्य कौड़ी मिसल, बिल्कुल पतित हैं। बाप को जानने से ही पावन बनते हैं। पतित दुनिया में कोई पावन हो सके। तो जो महारथी बच्चे हैं, वह अच्छी रीति समझा सकेंगे। कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा नाम भी मशहूर है। प्रजापिता ब्रह्मा के यह हैं मुख वंशावली। ब्रह्मा को ही 100 भुजा, 1000 भुजा दिखाते हैं। यह भी समझाया जाता है इतनी भुजायें तो हो नहीं सकती। बाकी ब्रहमा तो बहुत बचड़े वाला है। ब्रह्मा फिर किसका बच्चा? इनका तो बाप है ना। ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा। इनका और कौन बाप हो सकता? मनुष्य तो कोई हो नहीं सकता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर गाये जाते हैं सूक्ष्मवतन के। वह तो यहाँ सकें। प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ होगा ना। सूक्ष्मवतन में तो प्रजा नहीं रचेंगे। तो परमपिता परमात्मा आकर इस ब्रह्मा मुख द्वारा शक्ति सेना रचते हैं। पहले-पहले परिचय देना है हम ब्रह्मा मुख वंशावली हैं। तुम भी ब्रह्मा के बच्चे हो ना। प्रजापिता ब्रह्मा है सबका बाप। फिर उनसे और बिरादरियाँ निकलती हैं, नाम बदलते जाते हैं। अब तुम ब्राह्मण हो। प्रैक्टिकल में देखो प्रजापिता ब्रह्मा की कितनी औलाद हैं। जरूर औलाद को वर्सा मिलता होगा। ब्रह्मा के पास तो कोई प्रापर्टी है नहीं, प्रापर्टी है शिवबाबा के पास। ब्रह्मा वल्द शिव। बेहद के बाप से ही वर्सा मिलता है। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा बैठ पढ़ाते हैं। हमको दादे का वर्सा मिलता है। बाबा समझाते तो बहुत हैं, परन्तु योग नहीं। कायदे पर नहीं चलते तो बाप भी क्या करे। बाप कहते हैं इनकी तकदीर। अगर बाबा से पूछें तो बाबा बता सकते हैं - इस हालत में तुम्हारा क्या पद होगा? दिल भी गवाही देता है, मैं कितनी सर्विस करता हूँ? श्रीमत पर कहाँ तक चलता हूँ? श्रीमत कहती है मनमनाभव। सबको बाप और वर्से का परिचय देते रहते हैं, ढिंढोरा भी पीटते रहते हैं। बाबा ईशारा देते रहते हैं, तुम्हें गवर्मेन्ट को भी समझाना है। जो वह भी समझें बरोबर भारत की ताकत ही चली गई है। परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान से योग ही नहीं है। इनसे तुम योग लगाते हो तो एकदम विश्व के मालिक बनते हो, माया पर भी तुम जीत पहनते हो। गृहस्थ व्यवहार में रहते माया पर जीत पानी है। हमारा मददगार बाप है। कितना समझाया जाता है, धारणा करनी चाहिए। बाबा ने समझाया है धन दिये धन ना खुटे। सर्विस करेंगे तब बाबा की दिल पर चढ़ सकेंगे। नहीं तो इम्पासिबुल है। इसका मतलब यह नहीं कि बाबा प्यार नहीं करते। बाबा प्यार सर्विसएबुल को करेंगे। मेहनत करनी चाहिए। सबको यात्रा लायक बनाते हैं। मनमनाभव। यह है रूहानी यात्रा, मुझे याद करो तो तुम मेरे पास पहुँच जायेंगे। शिव पुरी में आकर फिर विष्णुपुरी में चले जायेंगे। यह बातें सिर्फ तुम बच्चे जानते हो। कोई और मनमनाभव का अर्थ समझते नहीं, पढ़ते तो बहुत हैं। बाप महामंत्र देते हैं, मुझे याद करो तो तुम विकर्माजीत बन जायेंगे। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) ज्ञान स्नान करना है। प्यार से सर्विस कर बाप के दिलतख्त पर बैठना है। पुरुषार्थ के समय में अलबेला नहीं बनना है।

 

2) बाप की पलकों पर बैठ कलियुगी दु:खधाम से सुखधाम चलना है इसलिए अपना सब कुछ ट्रांसफर कर देना है।

 

वरदान:-स्नेह के सागर में समाकर मेरे पन की मैल को समाप्त करने वाले पवित्र आत्मा भव

 

जो सदा स्नेह के सागर में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण वे सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दुनिया की स्मृति नहीं, मेरा-मेरा सब खत्म। अनेक मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता और आत्मा पवित्र बन जाती है।

 

स्लोगन:-बुद्धि में ज्ञान रत्नों को ग्रहण करना और कराना ही होलीहंस बनना है।

 

 

16/11/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban

Sweet children, you have to become spiritual guides and go on this pilgrimage and enable others to go on it. This remembrance is your pilgrimage. Continue to have remembrance and your mercury of happiness will rise.

 

Question:

 

Which sanskars disappear and which sanskars remain as soon as you go to the incorporeal world?

 

Answer:

 

There, the sanskars of knowledge disappear and only the sanskars of the reward remain. It is on the basis of these sanskars that you experience your reward in the golden age. The sanskars of studying and making effort do not remain there. Once you receive your reward, this knowledge ends.

 

Song:

 

O traveller of the night do not become weary. The destination of dawn is not far off. 

 

Om Shanti

 

Here, God Shiva speaks to you personally. It says in the Gita that God Shri Krishna speaks. However, Krishna cannot personally appear in front you with that same name and form. It is incorporeal God who speaks and He speaks to you personally. If they say: “God Krishna speaks”, it is as though they are referring to a corporeal being. Those who relate the Vedas and scriptures would never say “God speaks”, because those sages, holy men and mahatmas etc. are all corporeal. The Father says: O spiritual travellers. The spiritual Father would surely say to souls: Children, don’t become weary. Some become weary while on a pilgrimage, and so they turn back. Those are physical pilgrimages. They visit many different temples while going on a physical pilgrimage. Some visit the Shiva Temple where all the physical images of the path of devotion are kept. That Supreme Spirit, the Supreme Father, the Supreme Soul, gives you this knowledge and says to you souls: O children, connect your intellects in yoga to Me alone. When people go on those pilgrimages, there are brahmin priests sitting there who sing and relate stories from the scriptures to them. However, yours is only the one true story of becoming a true Narayan, that is, of becoming Narayan from an ordinary man. You understand that you will first go to the sweet home and that you will later come down to the land of Vishnu. At this time you are in the land of Brahma. This is called your parents’ home. You don’t have any jewellery etc. because you are in your parents’ home. You understand that you are to receive limitless happiness in your in- laws’ home. Here, in your iron-aged in-laws’ home, there is limitless sorrow. You have to go across to that land of happiness. You have to be transferred from here. The Father will seat you all in His eyes and take you home. Krishna’s father has been portrayed carrying him across the river in a basket. Here, the unlimited Father takes you children across to your in-laws’ home. First, He will take you to your incorporeal home and later send you to your in-laws’ home. You will forget all of these aspects of the in-laws’ home and the parents’ home. That is your incorporeal Parent’s home. There, you will have forgotten this knowledge. The sanskars of knowledge will have disappeared and only the sanskars of your reward will remain. Then the only awareness you children will have will be of your reward. You will go and take a birth of happiness according to your reward. You have to go to the land of happiness. Once you receive your reward, this knowledge finishes. You understand that the same acts of the reward will take place again. Your sanskars will become those of the reward. Your sanskars are now those of making effort. It is not that the sanskars of both effort and reward will remain there; no. This knowledge does not remain there. This is your spiritual pilgrimage and the Father is your Chief Guide. In fact, you also become spiritual guides and take everyone along with you. Those guides are physical, whereas you guides are spiritual. They go to Amarnath with great pomp and splendour. Large groups go especially to Amarnath with pomp and splendour. Baba has seen many sages and holy men etc. take musical instruments there. They also take a doctor along with them because the climate there is cold and some fall ill. Your pilgrimage is very easy. The Father says: Your pilgrimage is one of remembrance. The main thing is remembrance. The mercury of happiness of you children will remain high if you continue to have remembrance. You also have to take others along with you on this pilgrimage. This pilgrimage only takes place once. Those physical pilgrimages begin to take place on the path of devotion, but they don’t begin right at the beginning. It is not that the temples and images are made straightaway; they are made gradually later on. First, the temple to Shiva will be built. They first build a Somnath temple (image of Shiva) in their homes, so that there is no need to go anywhere. All of those temples etc. are built later on. It takes a great deal of time because the new scriptures, new pictures, new temples continue to be made very slowly. It takes time because there also have to be those who study the scriptures. It is when the cults etc. increase that the thought arises to create scriptures. It takes time to create so many pilgrimage places, so many temples and pictures. Although it is said that the path of devotion begins in the copper age, it still takes time. The degrees continue to decrease. Devotion is at first unadulterated and it then becomes adulterated later. The evidence of all these aspects has been shown very clearly in the pictures. Those who explain should use their intellects on how they should make such pictures to explain these various aspects. These ideas are not in everyone’s intellect; all are numberwise. Some are not able to use their intellects at all for this, and so they receive a status accordingly. It is understood what they will become. As you go further, you will understand this more. When war takes place you will see everything practically. You will then repent a great deal. You will not be able to study at that time. At the time of war, there will be cries of distress; you will not be able to listen to them. Who knows what will happen? You saw what happened at the time of partition. The time of destruction is very severe. Yes, you will receive many visions through which you will come to know how much each one has studied. There will be a great deal of repentance and you will also receive visions. You stopped studying and this is why your condition has become such. How can Dharamraj punish you without first giving you a vision? He will give visions of everything. You will not be able to do anything at that time. You will say: “Oh! my destiny! The time for making effort will have ended. Therefore, the Father says: Why not make effort now? It is by doing service that you will climb on to the Father’s heart throne. The Father would say: This child is doing good service. If a military person dies, his colleagues, friends and relatives are also given an award. Here, it is the unlimited Father who gives you the award. You receive the award for your future 21 births from the Father. Each one of you should place your hand on your heart and ask yourself how much you study. If you are unable to imbibe knowledge, it would be said that it is not in your fortune. It would be said that your karma is not so good. Those who have performed a lot of bad actions cannot take in any of this knowledge. The Father explains: Sweet children, you also have to take your companions with you on this spiritual pilgrimage. It is your duty to tell everyone about this pilgrimage. Tell them that this pilgrimage of ours is spiritual whereas other pilgrimages are physical. They show a magic lake near Rangoon. It is said that by bathing in it, you can become a fairy. However, no one becomes a fairy. It is a question of bathing in knowledge through which you become an empress of Paradise. It is a common thing for you to go and come from Paradise through the powers of knowledge and yoga. In fact, you are stopped from repeatedly going into trance, as that would become a habit. Therefore, this is the Mansarovar of knowledge. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes and gives you this knowledge through this human body. This is why it is called Mansarovar. The meaning of the word ‘Mansarovar’ comes from the ocean; it is very good to bathe in the ocean of knowledge. The wife (of an emperor) in Paradise is called an empress. The Father says: You too become the masters of Paradise. There is love for the children. There is mercy for all. There is also mercy for the holy men. It is written in the Gita that God also uplifts the holy men. Upliftment takes place through knowledge and yoga. You children need to be very alert and active in order to explain to others. Tell them: Everything you know is like buttermilk. You do not know the One who gives the butter. The Father explains everything to you very clearly, but it all depends on how much of it sits in your intellects. By recognizing the Father, human beings become like diamonds. By not knowing Him, human beings become like shells and completely impure. By knowing the Father, they become pure. There is no one pure in the impure world. The children who are maharathis will be able to explain these aspects very well. There are many Brahma Kumars and Kumaris. The name Prajapita Brahma is renowned. You are the mouth-born children of Prajapita Brahma. Brahma has been portrayed with 100 arms and 1000 arms. It has also been explained that Brahma cannot have that many arms. Brahma has many children. Whose child is Brahma? He too has a Father. Brahma is Shiv Baba’s child. Who else could be his father? It cannot be a human being. Brahma, Vishnu and Shankar are remembered as residents of the subtle region; they cannot come here. Brahma, the Father of People, would surely be here. He cannot create people in the subtle region. Therefore, the Supreme Father, the Supreme Soul, comes and creates the Shakti Army through the mouth of Brahma. You first have to introduce yourselves as the mouth-born children of Brahma. Tell them that they too are the children of Brahma. Prajapita Brahma is the father of all. Later, other generations emerge from him and then the names keep changing. You are now Brahmins. You can see how many children Prajapita Brahma has in a practical way. The children must surely receive the inheritance. Brahma does not have any property. It is Shiv Baba who has all the property. Brahma is Shiva’s son. You receive your inheritance from the unlimited Father. Shiv Baba sits here and teaches you through Brahma. You receive your inheritance from the Grandfather. Baba explains a great deal, but you don’t have yoga. What can the Father do if you do not do things according to the law? The Father says: That is your fortune! If you were to ask Baba, Baba could tell you what status you would receive from your present condition. Your heart is the witness to tell you how much service you do and to what extent you follow shrimat. Shrimat says: Manmanabhav! Continue to give everyone the introduction of the Father and the inheritance. Continue to beat these drums. Baba continues to give you a signal that you have to explain to the Government, so that they too can understand that the strength of Bharat has definitely been lost. There is no yoga with the Supreme Father, the Supreme Soul, the Almighty Authority. When you have yoga with Him, you are able to conquer Maya and thereby become the masters of the world. You have to conquer Maya while living at home with your families. The Father is our Helper. So much is explained to you, but you have to imbibe it. Baba has explained: Wealth is not reduced by donating it. Only when you do service will you climb on to Baba’s heart throne. Otherwise, it is impossible. This does not mean that Baba does not love you. Baba loves the serviceable ones. You have to make effort to make everyone worthy of going on the pilgrimage. Manmanabhav! This is a spiritual pilgrimage. Remember Me and you will come to Me. After going to the land of Shiva, you will go to the land of Vishnu. Only you children know these things. Although they study a great deal, none of them understands the meaning of “Manmanabhav”. The Father gives you this great mantra: Remember Me and you will become conquerors of sin. Achcha.

 

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

 

Essence for Dharna:

 

1.            Bathe in knowledge. Serve others with love and climb on to the Father's heart throne. Do not become careless at this time of making effort.

 

2.            You have to go across this iron-aged land of sorrow to the land of happiness by sitting on the Father's eyelids. Therefore, transfer everything you have.

 

Blessing:May you merge yourself in the Ocean of Love and remove the dirt of any consciousness of “I” and become a pure soul.

 [font=Calibri]Those who remain constantly merged in the Ocean of Love have no consciousness of anything of the world. Because of being merged in love, they easily go beyond all situations. It is said of devotees that they are lost in God, but children are constantly drowned (merged) in love. They have no awareness of the world, and all consciousness of “mine” finishes. All the many types of “mine” make you dirty, but when just the one Father is “mine”, the dirt is removed and the soul becomes pure.[/font]
Slogan:To instil and make others instil the jewels of knowledge into the intellect is to be a holy swan.

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