Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 10-Nov-2018 )
10-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हारी सच्ची बात का तीर तब लगेगा जब दिल में सच्चाई सफाई होगी, तुम्हें सत्य बाप का संग मिला है इसलिए सच्चे बनो''
प्रश्नः-तुम सब स्टूडेन्ट हो, तुम्हें किस बात का ख्याल रखना जरूरी है?
उत्तर:-
कभी भी कोई ग़लती हो तो सच बोलना है, सच बोलने से ही उन्नति होगी। तुम्हें अपनी सेवा दूसरों से नहीं लेनी है। अगर यहाँ सेवा लेंगे तो वहाँ करनी पड़ेगी। तुम स्टूडेन्ट अच्छी तरह से पढ़कर दूसरों को पढ़ाओ तो बाप भी खुश होगा। बाप प्यार का सागर है, उनका प्यार ही यह है जो तुम बच्चों को पढ़ाकर ऊंच मर्तबा दिलाते हैं।
गीत:-किसने यह सब खेल रचाया........
ओम् शान्ति।
आजकल समाचार आते हैं कि हम गीता जयन्ती मना रहे हैं। अब गीता को जन्म किसने दिया है, यह है टॉपिक। जयन्ती कहते हैं तो जरूर जन्म भी हुआ ना। उनको जब कहते हैं श्रीमद् भगवत गीता जयन्ती तो जरूर उनको जन्म देने वाला भी चाहिए ना। सब कहते हैं श्रीकृष्ण भगवानुवाच। तो फिर श्रीकृष्ण पहले आता, गीता पीछे हो जाती। अब गीता का रचयिता जरूर चाहिए। अगर श्रीकृष्ण को कहते तो पहले श्रीकृष्ण, पीछे गीता आनी चाहिए। परन्तु श्रीकृष्ण छोटा बच्चा था वह गीता सुना न सके। यह सिद्ध करना होगा कि गीता को जन्म देने वाला कौन? यह है गुह्य बात। कृष्ण तो माता के गर्भ से जन्म लेता है, वह तो सतयुग का प्रिन्स है। उसने स्वयं प्रिन्स का पद पाया है गीता द्वारा राजयोग सीखकर। अब गीता को जन्म देने वाला कौन? परमपिता परमात्मा शिव या श्रीकृष्ण? श्रीकृष्ण को वास्तव में त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी भी नहीं कह सकते हैं। त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी एक को ही कहेंगे। त्रिलोकीनाथ माना तीनों लोकों पर राज्य करते हैं। मूल, सूक्ष्म, स्थूल इन तीनों को कहा जाता है त्रिलोकी, इनको जानने वाला त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी परमपिता परमात्मा शिव है, यह महिमा उनकी है, न कि श्रीकृष्ण की। कृष्ण की महिमा है - 16 कला सम्पूर्ण, सर्वगुण सम्पन्न....। उनकी भेंट करते हैं चन्द्रमा से। परमात्मा की भेंट चन्द्रमा से नहीं करेंगे। उनका कर्तव्य ही अलग है। वह है गीता को जन्म देने वाला रचयिता। गीता के ज्ञान वा राजयोग से ही देवतायें क्रियेट होते हैं। मनुष्य को देवता बनाने के लिए बाप को आकर नॉलेज देनी पड़ती है। अब यह समझानी देने वाले बड़े ही होशियार ब्रह्माकुमार-कुमारियां चाहिए। सभी एक जैसा समझा नहीं सकते। बच्चियां भी तो सब नम्बरवार हैं। टॉपिक भी ऐसी रखी जाए कि श्रीमत भगवत गीता को जन्म किसने दिया? इसके लिए कान्ट्रास्ट समझाना है। भगवान् तो एक ही है - परमपिता परमात्मा शिव। उस ज्ञान सागर द्वारा ज्ञान सुनकर कृष्ण ने यह पद पाया था। सहज राजयोग से यह पद कैसे पाया, यह समझानी देनी पड़े। ब्रह्मा द्वारा ही पहले बाप ब्राह्मण रचते हैं। सभी वेदों-शास्त्रों का सार सुनाते हैं। ब्रह्मा के साथ ब्रह्मा मुख वंशावली भी चाहिए। ब्रह्मा को ही त्रिकालदर्शीपने का ज्ञान मिलता है। त्रिलोकी अर्थात् तीनों लोकों का भी ज्ञान मिलता है। तीनों काल आदि, मध्य, अन्त को मिलाकर कहा जाता है और तीनों लोक अर्थात् मूल, सूक्ष्म, स्थूलवतन। यह अक्षर याद करने हैं। बहुत बच्चे भूल जाते हैं। भुलाया है देह अहंकार रूपी माया ने। तो गीता का रचयिता परमपिता परमात्मा शिव है, न कि श्रीकृष्ण। परमपिता परमात्मा ही त्रिकालदर्शी तथा त्रिलोकीनाथ हैं। कृष्ण में वा लक्ष्मी-नारायण में यह नॉलेज है ही नहीं। हाँ, जिन्होंने यह नॉलेज बाप से पाई वह विश्व के मालिक बन गये। जब सद्गति मिल गई फिर यह नॉलेज बुद्धि से गुम हो जाती है। सबका सद्गति दाता वह एक ही है। वह पुनर्जन्म लेने वाला नहीं है। पुनर्जन्म शुरू हुआ सतयुग आदि से। कलियुग अन्त तक 84 जन्म लेते हैं। यह समझानी देनी पड़ती है। सब तो 84 जन्म नहीं लेते। जिसने यह गीता लिखी उसको त्रिकालदर्शी नहीं कहेंगे। पहले ही लिखा कि श्रीकृष्ण भगवानुवाच। यह एकदम रांग है। रांग भी होना ही है जरूर। जब सब शास्त्र रांग हों तब ही बाप आकर राइट सुनाये। बरोबर ब्रह्मा द्वारा वेदों-शास्त्रों का सच्चा सार सुनाते हैं इसलिए उन्हें सत कहा जाता है। अब तुम्हारा है सत के साथ संग, जो तुमको सत बनाते हैं।
प्रजापिता ब्रह्मा और उनकी मुख वंशावली यह जगदम्बा सरस्वती। प्रजापिता ब्रह्मा के सभी बच्चे आपस में भाई-बहन ठहरे। कहाँ भी मन्दिरों में जाकर भाषण करना चाहिए। घूमने-फिरने भी वहाँ बहुत आते हैं। एक को समझाया तो सतसंग लग जायेगा। शमशान में भी जाना चाहिए। वहाँ मनुष्यों को वैराग्य होता है। परन्तु बाबा कहते मेरे भक्तों को समझाने से वह फट से समझेंगे। तो शिवबाबा के मन्दिर, लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाना पड़े। लक्ष्मी-नारायण को बाबा मम्मा नहीं कहते। शिव को बाबा कहते हैं जरूर मम्मा भी होगी, वह है गुप्त। शिवबाबा जो रचयिता है, उनको मात-पिता कैसे कहते हैं, यह गुप्त बात कोई भी जान न सके। लक्ष्मी-नारायण को एक ही अपना बच्चा होगा। बाकी इनका नाम है प्रजापिता ब्रह्मा। विष्णु और शंकर को ऊंच नहीं रखते। ऊंच त्रिमूर्ति ब्रह्मा को रखते हैं। जैसे रचता शिव परमात्मा को कहते हैं, ऐसे ही ब्रह्मा को भी रचता कहा जाता है। वह तो अविनाशी है ही। रचता अक्षर कहेंगे तो पूछेंगे - कैसे रचा? वह तो रचता है ही। बाकी रचना होती है ब्रह्मा द्वारा। अब ब्रह्मा द्वारा परमात्मा सब आत्माओं को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं। वेद-शास्त्र आदि सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। भक्ति मार्ग आधाकल्प चलता है, यह है ज्ञान काण्ड। जब भक्ति मार्ग पूरा होता है तब सब पतित तमोप्रधान बन जाते हैं, तब मैं बाप आता हूँ। पहले सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आते हैं। ऊपर से जो पवित्र आत्मायें आती हैं उन्होंने कोई ऐसा कर्म नहीं किया है जो उनको दु:ख भोगना पड़े। क्राइस्ट के लिए कहते हैं उनको क्रा@स पर चढ़ाया परन्तु यह तो हो न सके। नई आत्मा जो धर्म स्थापन करने अर्थ आती है उनको दु:ख मिल नहीं सकता क्योंकि वह तो कर्मातीत अवस्था वाला मैसेन्जर धर्म स्थापन करने आया। लड़ाई में भी जब कोई मैसेन्जर भेजते हैं तो वह सफेद झण्डी ले आते हैं जिससे वे लोग समझ जाते कि यह कोई मैसेज ले आया है, उनको कोई तकल़ीफ नहीं देते हैं। तो मैसेन्जर जो आते हैं, उनको कोई क्रॉस पर चढ़ा न सके। दु:ख आत्मा ही भोगती है। आत्मा निर्लेप नहीं है, यह लिखना चाहिए। आत्मा को निर्लेप कहना रांग है। यह किसने कहा? शिव भगवानुवाच। यह प्वाइन्ट तुमको नोट करनी चाहिए, लिखने के लिए बड़ी ही विशाल बुद्धि चाहिए। समझो प्रदर्शनी में क्रिश्चियन लोग आते हैं तो उनको भी बता सकते हैं कि क्राइस्ट की सोल को क्रॉस पर नहीं चढ़ाया गया। बाकी जिसमें उसने प्रवेश किया, उस आत्मा को दु:ख हुआ। तो ऐसी बातें सुनकर वन्डर खायेंगे। उस पवित्र आत्मा ने आकर धर्म स्थापन किया। गॉड फादर के डायरेक्शन अनुसार। यह भी ड्रामा। ड्रामा को भी कई लोग समझते हैं परन्तु उसके आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते। ऐसी-ऐसी बातें सुन वह लोग कुछ समझने की कोशिश करते हैं। कृष्ण को भी कोई गाली दे न सके। बरोबर गालियां अभी ही मिल रही हैं किसको? शिवबाबा को नहीं, इस साकार को। टीचर तो बाबा है प्योर सोल और यह है इमप्योर, जो प्योर बन रहा है। जो समझ गये हैं वह बित-बित नहीं करेंगे। नहीं तो समझेंगे कि यह तो सिखाया हुआ है। फिर वह बात कोई को जंचती नहीं। तीर नहीं लगता। सच्चाई-सफाई बहुत चाहिए। जो खुद विकारी होगा वह औरों को कहे काम महाशत्रु है तो तीर लग नहीं सकता। जैसे पण्डित का मिसाल - राम-राम कहने से नदी वा सागर पार कर जायेंगे। यह अभी की बात है। शिवबाबा कहते हैं मुझे याद करने से तुम इस विषय सागर से पार हो जायेंगे। कौन-सा सागर? यह पण्डित नहीं जानते। वेश्यालय से शिवालय में चले जायेंगे। बड़ी अच्छी रीति से श्रीमत पर चलना है। कहते हैं ना कि बाबा चाहे प्यार करो, चाहे ठुकराओ.......। यहाँ तो सिर्फ समझानी दी जाती है, तो भी कई मुर्दे बन जाते हैं। बच्चों को तो लिखना-पढ़ना पड़ता है। बाप प्यार का सागर है अर्थात् पढ़ाकर ऊंच मर्तबा दिलाते हैं। यही प्यार है। बाप जब पढ़ाता है तो पढ़कर औरों को भी पढ़ाना है। बाप को खुश करना है। बाप की सर्विस में तत्पर रहना है। बाप की यही सर्विस है कि अपने तन-मन-धन से भारत की सच्ची सेवा करो। तुम्हें तो बुलन्द आवाज़ से समझाना चाहिए। सभी नम्बरवार हैं, राजधानी में भी नम्बरवार होंगे। टीचर समझ जाते हैं कि यह दैवी राजधानी में क्या नम्बर लेंगे। सर्विस से समझ सकते हैं, कौन-कौन मुख्य बनेंगे। खुद भी समझते हैं कि हम बाबा-मम्मा जितनी सर्विस नहीं करते तो दास-दासियां बनना पड़ेगा। आगे चलकर तुम सबको सारा ही मालूम पड़ेगा। हम श्रीमत पर न चले, सब क्लीयर हो जायेगा। तुम बच्चे इस समय स्टूडेन्ट हो, इस समय तुम अपनी दासियां बनायेंगे तो खुद भी दासी बनना पड़ेगा। यहाँ महारानी बनना देह-अभिमान है। सच कहना चाहिए कि बाबा यह भूल हुई। अभी सम्पूर्ण तो सभी बने नहीं हैं। इम्तहान में जब नापास होते हैं तो शर्माते भी हैं।
बाबा का रात्रि में ख्याल चला कि मनुष्य 21 जन्म कहते, गायन भी करते, अभी यह ईश्वरीय जन्म एक अलग है। 8 जन्म सतयुग में, 12 जन्म त्रेता में, 21 जन्म द्वापर में, 42 जन्म कलियुग में। यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सबसे ऊंच जन्म है जो एडाप्टेड है। तुम ब्राह्मणों का ही यह सौभाग्यशाली जन्म है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) प्यार के सागर बाप के प्यार का रिटर्न करना है, अच्छी तरह पढ़कर फिर पढ़ाना है। श्रीमत पर चलना है।
2) सच्चाई और सफाई से पहले स्वयं में धारणा कर फिर दूसरों को धारणा करानी है। एक बाप के संग में रहना है।
वरदान:-हदों से पार रह सबको अपने पन की महूसता कराने वाले अनुभवी मूर्त भव
जैसे हर एक के मन से निकलता है मेरा बाबा। ऐसे सभी के मन से निकले कि यह मेरा है, बेहद का भाई है या बहन है, दीदी है, दादी है। कहाँ भी रहते हो लेकिन बेहद सेवा के निमित्त हो। हदों से पार रहकर बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना रखना - यही है फालो फादर करना। अभी इसका प्रैक्टिकल अनुभव करो और कराओ। वैसे भी अनुभवी बुजुर्ग को पिता जी, काका जी कहते हैं, ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको अपनापन महसूस हो।
स्लोगन:-उपराम स्थिति द्वारा उड़ती कला में उड़ते रहो तो कर्म रूपी डाली के बंधन में फँसेंगे नहीं।
मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य -"मनुष्य का 84 जन्म है, न कि 84 लाख योनियाँ''
अब यह जो हम कहते हैं कि प्रभु हम बच्चों को उस पार ले चलो, उस पार का मतलब क्या है? लोग समझते हैं उस पार का मतलब है जन्म मरण के चक्र में न आना अर्थात् मुक्त हो जाना। अब यह तो हुआ मनुष्यों का कहना परन्तु वो कहता है बच्चों, सचमुच जहाँ सुख शान्ति है, दु:ख अशान्ति से दूर है उसको कोई दुनिया नहीं कहते। जब मनुष्य सुख चाहते हैं तो वो भी इस जीवन में होना चाहिए, अब वो तो सतयुगी वैकुण्ठ देवताओं की दुनिया थी जहाँ सर्वदा सुखी जीवन थी, उसी देवताओं को अमर कहते थे। अब अमर का भी कोई अर्थ नहीं है, ऐसे तो नहीं देवताओं की आयु इतनी बड़ी थी जो कभी मरते नहीं थे, अब यह कहना उन्हों का रांग है क्योंकि ऐसे है नहीं। उनकी आयु कोई सतयुग त्रेता तक नहीं चलती है, परन्तु देवी देवताओं के जन्म सतयुग त्रेता में बहुत हुए हैं, 21 जन्म तो उन्होंने अच्छा राज्य चलाया है और फिर 63 जन्म द्वापर से कलियुग के अन्त तक टोटल उन्हों के जन्म चढ़ती कला वाले 21 हुए और उतरती कला वाले 63 हुए, टोटल मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। बाकी यह जो मनुष्य समझते हैं कि मनुष्य 84 लाख योनियां भोगते हैं, यह कहना भूल है। अगर मनुष्य अपनी योनी में सुख दु:ख दोनों पार्ट भोग सकते हैं तो फिर जानवर योनी में भोगने की जरूरत ही क्या है। अब मनुष्यों को यह नॉलेज ही नहीं, मनुष्य तो 84 जन्म लेते हैं, बाकी टोटल सृष्टि पर जानवर पशु, पंछी आदि टोटल 84 लाख योनियां अवश्य हैं। अनेक किस्म की जैसे पैदाइश है, उसमें भी मनुष्य, मनुष्य योनी में ही अपना पाप पुण्य भोग रहे हैं। और जानवर अपनी योनियों में भोग रहे हैं। न मनुष्य जानवर की योनी लेता और न जानवर मनुष्य योनी में आता है। मनुष्य को अपनी योनी में (जन्म में) भोगना भोगनी पड़ती है तो दु:ख सुख की महसूसता आती है। ऐसे ही जानवर को भी अपनी योनी में सुख दु:ख भोगना है। मगर उन्हों में यह बुद्धि नहीं कि यह भोगना किस कर्म से हुई है? उन्हों की भोगना को भी मनुष्य फील करता है क्योंकि मनुष्य है बुद्धिवान, बाकी ऐसे नहीं मनुष्य कोई 84 लाख योनियां भोगते हैं। जड़ झाड़ भी योनी लेते हैं, यह तो सहज और विवेक की बात है कि जड़ झाड़ ने क्या कर्म अकर्म किया है जो उन्हों का हिसाब-किताब बनेगा, जैसे देखो गुरुनानक साहब ने ऐसे महावाक्य उच्चारण किये हैं - अन्तकाल में जो पुत्र सिमरे ऐसी चिंता में जो मरे सुअर की योनी में वल वल उतरे .. परन्तु इस कहने का मतलब यह नहीं है कि मनुष्य कोई सूकर की योनि लेता है परन्तु सूकर का मतलब यह है कि मनुष्यों का कार्य भी ऐसा होता है जैसे जानवरों का कार्य होता है। बाकी ऐसे नहीं कि मनुष्य कोई जानवर बनते हैं। अब यह तो मनुष्यों को डराने के लिये शिक्षा देते हैं। तो अपने को इस संगम समय पर अपनी जीवन को पलटाए पापात्मा से पुण्यात्मा बनना है। अच्छा - ओम् शान्ति।
10/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, only when there is cleanliness and honesty in your heart will the arrow of the true things you say strike the target. You have received the company of the true Father. Therefore, be honest and truthful.
Question:You are students and so what is it essential to be cautious about?
Answer:
Whenever you make a mistake, you have to tell the truth. It is only by telling the truth that you will make progress. You mustn’t take personal service from others. If you take service here, you will have to serve there. You students have to study well and teach others, because only then will the Father be pleased. The Father is the Ocean of Love and His love is that He educates you children and gives you a high status.
Song:Who created this play and hid Himself away?
Om Shanti
Nowadays, we receive news that people are celebrating Gita Jayanti. The topic is: Who gave birth to the Gita? Since it is called jayanti, it surely means birth. Since “Shrimad Bhagawad Gita Jayanti” is said, there must surely be someone who gave birth to it. Everyone says: God Shri Krishna speaks. In that case, Shri Krishna comes first and the Gita comes after him. A creator of the Gita is definitely needed. If Shri Krishna is called that, then Shri Krishna should come first and then the Gita. However, Shri Krishna was a small child and so he couldn’t have spoken the Gita. You have to prove who it was who gave birth to the Gita. This is a deep matter. Krishna took birth from his mother’s womb; he was a prince of the golden age. He attained the status of a prince by studying Raja Yoga through the Gita. So, who was the One who gave birth to the Gita? Was it the Supreme Father, the Supreme Soul Shiva or Shri Krishna? In fact, Shri Krishna cannot even be called trilokinath or trikaldarshi. Only the One can be called Trilokinath and Trikaldarshi. Trilokinath means the One who rules the three worlds. The incorporeal world, the subtle region and the corporeal world are called triloki, and the One who knows these three is called Trilokinath, Trikaldarshi, the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. This is His praise, not Shri Krishna’s praise. The praise of Krishna is: Sixteen celestial degrees full, full of all virtues. He is compared to the moon. You would not compare the Supreme Soul to the moon. His task is separate. He is the Creator who gives birth to the Gita. Deities are created through the knowledge of the Gita and Raja Yoga. The Father has to come and give knowledge in order to change human beings into deities. Very clever Brahma Kumars and Kumaris who can give this explanation are needed. Not everyone can explain in the same way. All the daughters are also numberwise. The topic should also be: Who gave birth to the Shrimad Bhagawad Gita? For this, you have to explain the contrast. God is only one: the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. Krishna attained that status by listening to knowledge from the Ocean of Knowledge. You have to explain how he attained that status by studying easy Raja Yoga. First of all, the Father creates Brahmins through Brahma. He speaks the essence of all the Vedas and scriptures. Together with Brahma, the mouth-born creation of Brahma is also needed. Only Brahma receives the knowledge of trikaldarshi. Triloki means he also receives the knowledge of the three worlds. The three aspects of time are the beginning, the middle and the end, and the three worlds are the incorporeal world, the subtle region and the corporeal world. You have to remember these words. Many children forget these. It is Maya in the form of arrogance of the body that makes you forget. So, the Creator of the Gita is the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, and not Shri Krishna. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, is Trikaldarshi and Trilokinath. Neither Krishna nor Lakshmi or Narayan has this knowledge at all. Yes, those who received this knowledge from the Father became the masters of the world. When you have received salvation, your intellects lose this knowledge. The Bestower of Salvation for All is that One. He is not the one who takes rebirth. Rebirth begins at the beginning of the golden age. From then to the end of the iron age, you take 84 births. This explanation has to be given. Not everyone takes 84 births. The one who wrote that Gita cannot be called Trikaldarshi. First of all, it is totally wrong where it is written “God Shri Krishna speaks”. It definitely has to be wrong. Only when all the scriptures are wrong can the Father come and speak that which is right. Truly, He speaks the true essence of the Vedas and scriptures through Brahma and this is why He is called the Truth. You now have the company of the Truth, who makes you truthful. There is Prajapita Brahma and his mouth-born creation, Jagadamba Saraswati. All the children of Prajapita Brahma are brothers and sisters. You should go to the temples anywhere and give lectures. Many people go sightseeing there. When you explain to one, a whole spiritual gathering will gather there. You should also go to the cremation grounds. People have disinterest there. However, Baba says: When you explain to My devotees, they will quickly understand. So, you have to go to the temples of Shiv Baba and Lakshmi and Narayan. Lakshmi and Narayan are not called Mama and Baba. Shiva is called Baba and there must surely also be Mama; she is incognito. No one can know the incognito secret of how Shiv Baba, the Creator, is also called the Mother and Father. Lakshmi and Narayan would only have one son. However, this one's name is Prajapita Brahma. Vishnu and Shankar are not placed high. Trimurti Brahma is considered to be higher. Just as God Shiva is called the Creator, so Brahma too is called a creator. That One is imperishable anyway. If you use the word ‘Creator’, they will ask: How did He create? He is the Creator anyway. However, creation takes place through Brahma. God is now giving all souls the knowledge of the beginning, middle and end of the world through Brahma. The Vedas and scriptures etc. are all the paraphernalia of the path of devotion. The path of devotion continues for half the cycle. This is the activity of knowledge. When the path of devotion ends and everyone has become impure and tamopradhan, it is then that I, the Father, come. You are at first satopradhan and you then go through the stages of sato, rajo and tamo. Pure souls who come from up above haven't as yet performed any such actions for which they would have to experience suffering. They say of Christ that he was crucified on a cross, but that was not possible. A new soul that comes down to establish a religion cannot receive sorrow because that soul is a messenger in his karmateet stage who comes to establish a religion. When a messenger is sent onto a battlefield, he goes carrying a white flag through which the other side understands that he has come with a message. They don't cause him any difficulty at that time. So, no one can put a messenger on a cross. It is the soul that experiences sorrow. You should write that souls are not immune to the effect of action. It is wrong to say that souls are immune to the effect of action. Who said this? These are the versions of God Shiva. You should note down this point. You need very broad and unlimited intellects to write this. When Christians come to the exhibitions, you can tell them that it wasn’t the Christ soul that was crucified on the cross but that it was the soul of the body that the Christ soul entered who would have experienced suffering. When they hear such things they will be amazed. That pure soul came and established a religion according to the directions of God, the Father. This is also in the drama. Some people understand the drama, but they don't know its beginning, middle or end. When they hear such things, they will try to understand some of these things. No one can insult Krishna. Who is it that really receives insults at this time? Not Shiv Baba, but this corporeal one. Baba, the pure soul, is the Teacher whereas this one is impure and is becoming pure. Those who have understood clearly will speak without hesitation. Otherwise, people would understand that you have just memorized it, and they would then not be able to accept it and the arrow won’t strike the target. A lot of honesty and cleanliness is required. If someone who indulges in vice tells others that lust is the great enemy, the arrow will not strike the target. There is the example of the pundit who said: Chant the name of Rama and you will be able to go across the river or the ocean. This refers to this time. Shiv Baba says: By remembering Me, you will go across this ocean of poison. The pundits don't know which ocean. You will go from the brothel to Shivalaya. You have to follow shrimat very well. You say: Baba, whether You love me or reject me… The explanation is only given here and still some become like corpses. You children have to study well. The Father is the Ocean of Love, that is, He educates you and enables you to receive a high status. This is His love. Since the Father is teaching you, you have to study and then also teach others. You have to please the Father. You have to remain busy in the Father's service. The Father's service is for you to do the true service of Bharat with your body, mind and wealth. You have to explain with a loud and clear sound. All are numberwise. They would also be numberwise in a kingdom. The Teacher understands what number you will receive in the divine kingdom. He can understand from your service who will become the main ones. You yourself can understand that, if you don't do as much service as Mama and Baba, you will have to become maids or servants. As you progress further, all of you will come to know everything. It will all become clear that you didn't follow shrimat. At this time all of you children are students. If you make someone your servant at this time, you yourself will have to become a servant. To become an empress here is body consciousness. You should speak the truth: Baba, I made this mistake. No one has become perfect yet. When someone fails his examination, he is ashamed. Baba was thinking during the night that people speak of 21 births and this is also remembered, but that, this one Godly birth now is different. There are eight births in the golden age, 12 births in the silver age, 21 births in the copper age and 42 births in the iron age. This Godly birth in which you are adopted is the most elevated birth of all. This is the most fortunate birth of only you Brahmins. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Give the return of love of the Father, the Ocean of Love. Study well and teach others. You have to follow shrimat.
2. First of all, imbibe knowledge with honesty and a clean heart and then inspire others to imbibe it. Stay in the company of the one Father.
Blessing:May you become an image of experience who gives others the feeling of belonging by staying beyond all limits.
Just as it emerges in each one’s mind “My Baba”, so let it emerge in each one’s mind, “This one is mine”, for an unlimited brother or sister, Didi or Dadi. No matter where you stay, you are an instrument for unlimited service. To stay beyond all limits and to have unlimited feelings and unlimited good wishes is to follow the father. Now experience this practically and also give others the same experience. In any case, experienced mature ones are called “Pitaji” (father) or “Kakaji” (uncle). Become experienced in this way, in an unlimited way, that is, let everyone experience belonging.
Slogan:Continue to fly in the stage of being beyond and you will not get trapped in the bondage of a branch.
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