Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 08-Nov-2018 )
08-11-2018       प्रात:मुरली       ओम्  शान्ति     "बापदादा"     मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हारी सच्ची-सच्ची दीपावली तो नई दुनिया में होगी, इसलिए इस पुरानी दुनिया के झूठे उत्सव आदि देखने की दिल तुम्हें नहीं हो सकती''

 

प्रश्नः-तुम होलीहंस हो, तुम्हारा कर्तव्य क्या है?

 

उत्तर:-हमारा मुख्य कर्तव्य है एक बाप की याद में रहना और सबका बुद्धियोग एक बाप के साथ जुड़ाना। हम पवित्र बनते और सबको बनाते हैं। हमें मनुष्य को देवता बनाने के कर्तव्य में सदा तत्पर रहना है। सबको दु:खों से लिबरेट कर, गाइड बन मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है।

 

गीत:-तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है........ 

 

ओम् शान्ति।

 

बच्चों ने गीत सुना। बच्चे कहते हैं हम स्वर्ग की राजाई का वर्सा पाते हैं। उसे कभी कोई जला सके, कोई छीन सके, वह वर्सा हमसे कोई जीत सके। आत्मा को बाप से वर्सा मिलता है और ऐसे बाप को बरोबर मात-पिता भी कहते हैं। मात-पिता को पहचानने वाला ही इस संस्था में सकता है। बाप भी कहते हैं मैं बच्चों के सम्मुख प्रत्यक्ष हो पढ़ाता हूँ, राजयोग सिखाता हूँ। बच्चे आकर बेहद के बाप को अपना बनाते हैं, जीते जी। धर्म के बच्चे जीते जी लिए जाते हैं। आप हमारे हैं, हम आपके हैं। तुम हमारे क्यों बने हो? कहते हो - बाबा, आपसे स्वर्ग का वर्सा लेने हम आपके बने हैं। अच्छा बच्चे, ऐसे बाप को कभी फारकती नहीं देना। नहीं तो नतीजा क्या होगा? स्वर्ग की राजाई का पूरा वर्सा तुम पा नहीं सकेंगे। बाबा-मम्मा महाराजा-महारानी बनते हैं ना, तो पुरुषार्थ कर इतना वर्सा पाना है। परन्तु बच्चे पुरुषार्थ करते-करते फिर फारकती दे देते हैं। फिर जाकर विकारों में फँसते हैं वा हेल में गिरते हैं। हेल नर्क को, हेविन स्वर्ग को कहा जाता है। कहते हैं हम सदा स्वर्ग के मालिक बनने के लिए बाप को अपना बनाते हैं क्योंकि अभी हम नर्क में हैं। हेविनली गॉड फादर, जो स्वर्ग का रचयिता है वह जब तक आये तब तक कोई हेविन जा सके। उसका नाम ही है हेविनली गॉड फादर। यह भी तुम अभी जानते हो। बाप कह रहे हैं - बच्चे, तुम समझते हो, बरोबर बाप से वर्सा पाने के लिए हम बाप के पास आये हैं, 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक। परन्तु फिर भी चलते-चलते माया के तूफान एकदम बरबाद कर देते हैं। फिर पढ़ाई को छोड़ देते हैं, गोया मर गये। ईश्वर का बनकर फिर अगर हाथ छोड़ दिया तो गोया नई दुनिया से मरकर पुरानी दुनिया में चला गया। हेविनली गॉड फादर ही नर्क के दु: से लिबरेट कर फिर गाइड बन स्वीट साइलेन्स होम में ले जाते हैं, जहाँ से हम आत्मायें आई हैं। फिर स्वीट हेविन की राजाई देते हैं। दो चीज़ देने बाप आते हैं - गति और सद्गति। सतयुग है सुखधाम, कलियुग है दु:खधाम और जहाँ से हम आत्मायें आती हैं वह है शान्तिधाम। यह बाप है ही शान्तिदाता, सुखदाता फार फ्युचर। इस अशान्त देश से पहले शान्ति देश में जायेंगे। उसको स्वीट साइलेन्स होम कहा जाता है, हम रहते ही वहाँ हैं। यह आत्मा कहती है कि हमारा स्वीट होम वह है फिर हम जो इस समय नॉलेज पढ़ते हैं, उससे हमको स्वर्ग की राजधानी मिलेगी। बाप का नाम ही है हेविनली गॉड फादर, लिबरेटर, गाइड, नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, ज्ञान का सागर। रहमदिल भी है। सब पर रहम करते हैं। तत्वों पर भी रहम करते हैं। सभी दु: से छूट जाते हैं। दु: तो जानवर आदि सबको होता है ना। कोई को मारो तो दु: होगा ना। बाप कहते हैं मनुष्य मात्र तो क्या, सभी को दु: से लिबरेट करता हूँ। परन्तु जानवरों को तो नहीं ले जायेंगे। यह मनुष्यों की बात है। ऐसा बेहद का बाप एक ही है बाकी तो सब दुर्गति में ले जाते हैं। तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप ही स्वर्ग की वा मुक्तिधाम की गिफ्ट देने वाला है। वर्सा देते हैं ना। ऊंच ते ऊंच एक बाप है। सभी भक्त उस भगवान् बाप को याद करते हैं। क्रिश्चियन भी गॉड को याद करते हैं। हेविनली गॉड फादर है शिव। वही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। इसका अर्थ भी तुम बच्चे जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई तो बिल्कुल ऐसे हैं जो कितना भी ज्ञान का श्रृंगार करो फिर भी विकारों में गिरेंगे, गन्दी दुनिया देखेंगे।

 

कई बच्चे दीपमाला देखने जाते हैं। वास्तव में हमारे बच्चे यह झूठी दीपमाला देख नहीं सकते। परन्तु ज्ञान नहीं है तो दिल होगी। तुम्हारी दीवाली तो है सतयुग में, जबकि तुम पवित्र बन जाते हो। तुम बच्चों को समझाना है कि बाप आते ही हैं स्वीट होम वा स्वीट हेविन में ले जाने। जो अच्छी रीति पढ़ेंगे, धारणा करेंगे, वही स्वर्ग की राजधानी में आयेंगे। परन्तु तकदीर भी चाहिए ना। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ नहीं बनेंगे। यह है श्री शिव भगवानुवाच। जब तक मनुष्यों को बाप की पहचान नहीं मिली है तब तक भक्ति करते रहेंगे। जब निश्चय पक्का हो जायेगा तो फिर भक्ति आपेही छोड़ेंगे। तुम हो होलीनेस। गॉड फादर के डायरेक्शन अनुसार सभी को पवित्र बनाते हो। वह तो सिर्फ हिन्दुओं को वा मुसलमानों को क्रिश्चियन बनायेंगे। तुम तो आसुरी मनुष्यों को पवित्र बनाते हो। जब पवित्र बनें तब हेविन वा स्वीट होम में जा सकें। नन बट वन, तुम सिवाए एक बाप के और कोई को याद नहीं करते हो। एक बाप से ही वर्सा मिलना है तो जरूर उस एक बाप को ही याद करेंगे। तुम पवित्र बन औरों को पवित्र बनाने की मदद करते हो। वह नन्स कोई पवित्र नहीं बनाती हैं, आप समान नन्स बनाती हैं। सिर्फ हिन्दू से क्रिश्चियन बनाती हैं। तुम होली नन्स पवित्र भी बनाती हो और सभी आत्माओं का एक गॉड फादर से बुद्धियोग जुटाती हो। गीता में भी है ना - देह सहित देह के सभी सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। फिर नॉलेज को धारण करने से ही राजाई मिलेगी। बाप की याद से ही एवरहेल्दी बनेंगे और नॉलेज से एवरवेल्दी बनेंगे। बाप तो है ही ज्ञान सागर। सभी वेदों-शास्त्रों का सार बतलाते हैं। ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दिखाते हैं ना। तो यह ब्रह्मा है। शिवबाबा इनके द्वारा सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं। वह है ज्ञान का सागर। इनके द्वारा तुमको नॉलेज मिलती रहती है। तुम्हारे द्वारा फिर औरों को मिलती रहती है।

 

कई बच्चे कहते हैं - बाबा, हम यह रूहानी हॉस्पिटल खोलते हैं, जहाँ रोगी मनुष्य आकर निरोगी बनेंगे और स्वर्ग का वर्सा लेंगे, अपना जीवन सफल करेंगे, बहुत सुख पायेंगे। तो इतने सबकी आशीर्वाद जरूर उनको मिलेगी। बाबा ने उस दिन भी समझाया था कि गीता, भागवत, वेद, उपनिषद आदि सब जो भी भारत के शास्त्र हैं, यह शास्त्र अध्ययन करना, यज्ञ, तप, व्रत, नेम, तीर्थ आदि करना यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री रूपी छांछ है। एक ही श्रीमत भगवत गीता के भगवान् से भारत को मक्खन मिलता है। श्रीमत भगवत गीता को भी खण्डन किया हुआ है, जो ज्ञान सागर पतित-पावन निराकार परमपिता परमात्मा के बदले श्री कृष्ण का नाम डालकर छांछ बना दिया है। एक ही कितनी बड़ी भारी भूल है। अभी तुम बच्चों को ज्ञान सागर डायरेक्ट ज्ञान दे रहे हैं। अभी तुम जानते हो कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, यह सृष्टि रूपी झाड़ की वृद्धि कैसे होती है? तुम ब्राह्मण हो चोटी, शिवबाबा है ब्राह्मणों का बाप। फिर ब्राह्मण से देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह हो गई बाजोली। इसको 84 जन्मों का चक्र कहा जाता है। वेद सम्मेलन करने वालों को भी तुम समझा सकते हो। भक्ति है छांछ, ज्ञान है मक्खन। जिससे मुक्ति-जीवनमुक्ति मिलती है। अब अगर तुमको विस्तार से ज्ञान समझना है तो धैर्यवत होकर सुनो। ब्रह्माकुमारियां तुमको समझा सकती हैं। शास्त्रों में भी लिखा हुआ है भीष्मपितामह, अश्वस्थामा आदि को पिछाड़ी में इन बच्चों ने ज्ञान दिया है। अन्त में यह सब समझ जायेंगे कि यह तो ठीक कहते हैं, अन्त में आयेंगे जरूर। तुम प्रदर्शनी करते हो, कितने हजार मनुष्य आते हैं परन्तु निश्चयबुद्धि सब थोड़ेही बन जाते। कोटों में कोई ही निकलते हैं जो अच्छी रीति समझकर निश्चय करते हैं। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे लकी ज्ञान सितारों प्रति, मात-पिता बापदादा का नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) पवित्र बन आप समान पवित्र बनाना है। एक बाप के सिवाए किसी को भी याद नहीं करना है।

2) अनेक आत्माओं की आशीर्वाद लेने के लिए रूहानी हॉस्पिटल खोलनी है। सबको गति-सद्गति की राह बतानी है।

 

वरदान:-निश्चयबुद्धि बन लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले डबल सेवाधारी ट्रस्टी भव

 

कई बच्चे सेवा करते-करते थक जाते हैं, सोचते हैं यह तो कभी बदलना ही नहीं है। ऐसे दिलशिकस्त नहीं बनो। निश्चयबुद्धि बन, मेरेपन के संबंध से न्यारे हो चलते चलो। कोई कोई आत्माओं का भक्ति का हिसाब चुक्तू होने में थोड़ा समय लगता है इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, शान्त और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। लौकिक में अलौकिक भावना रखो। डबल सेवाधारी, ट्रस्टी बनो।

 

स्लोगन:-अपनी श्रेष्ठ वृत्ति से वायुमण्डल को श्रेष्ठ बनाना यही सच्ची सेवा है।

 

मातेश्वरी जी के महावाक्य:- "यह ईश्वरीय सतसंग कॉमन सतसंग नहीं है''

 

अपना यह जो ईश्वरीय सतसंग है, कॉमन सतसंग नहीं है। यह है ईश्वरीय स्कूल, कॉलेज। जिस कॉलेज में अपने को रेग्युलर स्टडी करनी है, बाकी तो सिर्फ सतसंग करना, थोड़ा समय वहाँ सुना फिर तो जैसा है वैसा ही बन जाता है क्योंकि वहाँ कोई रेग्युलर पढ़ाई नहीं मिलती है, जहाँ से कोई प्रालब्ध बनें इसलिए अपना सतसंग कोई कॉमन सतसंग नहीं है। अपना तो ईश्वरीय कॉलेज है, जहाँ परमात्मा बैठ हमें पढ़ाता है और हम उस पढ़ाई को पूरी धारण कर ऊंच पद को प्राप्त करते हैं। जैसे रोज़ाना स्कूल में मास्टर पढ़ाए डिग्री देता है वैसे यहाँ भी स्वयं परमात्मा गुरू, पिता, टीचर के रूप में हमको पढ़ाए सर्वोत्तम देवी देवता पद प्राप्त कराते हैं इसलिए इस स्कूल में ज्वाइन्ट होना जरूरी है। यहाँ आने वाले को यह नॉलेज समझना जरूर है, यहाँ कौनसी शिक्षा मिलती है? इस शिक्षा को लेने से हमको क्या प्राप्ति होगी! हम तो जान चुके हैं कि हमको खुद परमात्मा आकर डिग्री पास कराते हैं और फिर एक ही जन्म में सारा कोर्स पूरा करना है। तो जो शुरू से लेकर अन्त तक इस ज्ञान के कोर्स को पूरी रीति उठाते हैं वो फुल पास होंगे, बाकी जो कोर्स के बीच में आयेंगे वो तो इतनी नॉलेज को उठायेंगे नहीं, उन्हों को क्या पता आगे का कोर्स क्या चला? इसलिए यहाँ रेग्युलर पढ़ना है, इस नॉलेज को जानने से ही आगे बढ़ेंगे इसलिए रेग्युलर स्टडी करनी है।

 

2- "परमात्मा का सच्चा बच्चा बनते कोई संशय में नहीं आना चाहिए''

 

जब परमात्मा खुद इस सृष्टि पर उतरा हुआ है, तो उस परमात्मा को हमें पक्का हाथ देना है लेकिन पक्का सच्चा बच्चा ही बाबा को हाथ दे सकता है। इस बाप का हाथ कभी नहीं छोड़ना, अगर छोड़ेंगे तो फिर निधण का बन कहाँ जायेंगे! जब परमात्मा का हाथ पकड़ लिया तो फिर सूक्ष्म में भी यह संकल्प नहीं चाहिए कि मैं छोड़ दूँ वा संशय नहीं होना चाहिए। पता नहीं हम पार करेंगे वा नहीं, कोई ऐसे भी बच्चे होते हैं जो पिता को पहचानने के कारण पिता के भी सामने पड़ते हैं और ऐसे भी कह देते हैं हमको कोई की भी परवाह नहीं है। अगर ऐसा ख्याल आया तो ऐसे लायक बच्चे की सम्भाल पिता कैसे करेगा फिर तो मानो कि गिरा कि गिरा क्योंकि माया तो गिराने की बहुत कोशिश करती है क्योंकि परीक्षा तो अवश्य लेगी कि कितने तक योद्धा रूसतम पहलवान है! अब यह भी जरूरी है, जितना जितना हम प्रभु के साथ रूसतम बनते जायेंगे उतना माया भी रूसतम बन हमको गिराने की कोशिश करेगी। जोड़ी पूरी बनेगी जितना प्रभु बलवान है तो माया भी उतनी बलवानी दिखलायेगी, परन्तु अपने को तो पक्का निश्चय है आखरीन भी परमात्मा महान बलवान है, आखरीन उनकी जीत है। श्वांसो श्वांस इस विश्वास में स्थित होना है, माया को अपनी बलवानी दिखलानी है, वह प्रभु के आगे अपनी कमजोरी नहीं दिखायेगी, बस एक बारी भी कमजोर बना तो खलास हुआ इसलिए भल माया अपना फोर्स दिखलाये, परन्तु अपने को मायापति का हाथ नहीं छोड़ना है, वो हाथ पूरा पकड़ा तो मानो उनकी विजय है, जब परमात्मा हमारा मालिक है तो हाथ छोड़ने का संकल्प नहीं आना चाहिए। परमात्मा कहता है, बच्चे जब मैं खुद समर्थ हूँ, तो मेरे साथ होते तुम भी समर्थ अवश्य बनेंगे। समझा बच्चे।

 

 

08/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada      Madhuban

Sweet children, your real Deepmala (festival of lights) will be in the new world. This is why you shouldn’t have any desire to see the false festivals of this old world.

 

Question:You are holy swans. What is your duty?

 

Answer:Your main duty is to stay in remembrance of the one Father and to connect the intellect of everyone in yoga to the one Father. You become pure and make everyone pure. You have to remain constantly engaged in the task of changing human beings into deities. You have to liberate everyone from sorrow, become guides and show them the path to liberation and liberation-in-life.

 

Song:Having found You, we have found the whole world. The earth and sky all belong to us.        

 

Om Shanti

 

You children heard the song. You children say that you are claiming your inheritance of the kingdom of heaven. No one can ever burn that; no one can snatch that away from us; no one can win that inheritance from us. Souls receive the inheritance from the Father and such a Father is truly called the Mother and Father. Only those who recognise the Mother and Father can come to this institution. The Father also says: I reveal Myself personally in front of the children and teach them Raja Yoga. Children come and make the unlimited Father belong to them while alive. Children are adopted while alive. You belong to Me and I belong to you. Why do you belong to Me? You say: Baba, we have become Yours to claim the inheritance of heaven from You. OK child; never divorce such a Father. Otherwise, what would be the result? You would not be able to claim the full inheritance of the kingdom of heaven. Baba and Mama become the emperor and empress. Therefore, you have to make effort and claim such an inheritance. However, while making effort, some children divorce the Father and then go and become trapped in the vices and fall into hell. Hell is hell and heaven is heaven. You say: We make the Father belong to us in order to become the masters of heaven for all time because we are at present in hell. Until Heavenly God, the Father, who is the Creator of Heaven, comes, no one can go to heaven. His very name is Heavenly God, the Father. You know that at this time. The Father says: Children, you understand that you have truly come to the Father to claim your inheritance from Him as you did 5000 years ago. However, while you are moving along, the storms of Maya completely ruin you. You then stop studying, that is, you die. If, after belonging to God, you let go of His hand, it means you have died from the new world and gone back to the old world. It is only Heavenly God, the Father, who liberates you from the sorrow of hell, becomes your Guide and takes you back to the sweet silence home from where we souls came. He then gives us the kingdom of sweet heaven. The Father comes to give two things: liberation and salvation. The golden age is the land of happiness and the iron age is the land of sorrow and the land from where we souls come is the land of peace. That Father is the Bestower of Peace and the Bestower of Happiness for the future. From this peaceless land, we will first go to the land of peace. That is called the sweet silence home. We reside there. It is the soul that says: That is our sweet home and then, by studying the knowledge at this time, we will receive the kingdom of heaven. The name of the Father is Heavenly God, the Father, the Liberator, the Guide, the knowledge-full, blissful, Ocean of Knowledge. He is also merciful. He has mercy for everyone. He also has mercy for the elements. Everyone becomes liberated from sorrow. Even animals etc. experience sorrow. If you killed one, it would experience sorrow, would it not? The Father says: I liberate everyone, not just human beings from sorrow. However, I will not take animals back with Me. This refers to human beings. There is only one such unlimited Father; all the rest take you into degradation. You children know that only the unlimited Father will give you the gift of heaven, the land of liberation. He gives you the inheritance. The Highest on High is the one Father. All devotees remember that God, the Father. Christians also remember God. Shiva is Heavenly God, the Father. He alone is knowledge-full and blissful. You children understand the meaning of this. You are also numberwise. Some are such that, no matter how much you decorate them with knowledge, they still fall into vice and are attracted towards the dirty world. Some children go to see Deepmala. In fact, My children shouldn’t look at that false Deepmala but, because they don't have knowledge, they have that desire. Your Diwali is in the golden age when you become pure. You children have to explain that the Father just comes to take you to the sweet home and sweet heaven. Those who study well and imbibe knowledge will go to the kingdom of heaven. However, it has to be in your fortune. If you don't follow shrimat, you won't become elevated. These are the versions of Shri Shri God Shiva. Until human beings receive the recognition of God, they will continue to perform devotion. When faith becomes firm, devotion is automatically renounced. You are ‘ holiness’. You make everyone pure according to the directions of God, the Father. Those people make Hindus and those of Islam into Christians. You make devilish human beings pure. Only when they become pure can they go to heaven or the sweet home . None but One. You don't remember anyone except the one Father. Only from the one Father are you to receive the inheritance and so you would surely only remember that one Father. You become pure and help to make others pure. Those nuns don't purify anyone or make others into nuns like themselves. They simply convert Hindus into Christians. You holy nuns purify everyone and enable all souls to forge a connection with their intellects in yoga to the one God, the Father. It says in the Gita: Renounce your body and all bodily relations, consider yourself to be a soul and remember the Father. Then, only by imbibing knowledge will you receive a kingdom. Only by having remembrance of the Father will you become ever healthy, and with knowledge become ever wealthy. The Father is the Ocean of Knowledge. He tells you the essence of all the Vedas and scriptures. They portray the scriptures in the hands of Brahma. This one is Brahma. Shiv Baba explains the essence of all the Vedas and scriptures to you through this one. He is the Ocean of Knowledge. You continue to receive knowledge through this one. Others then continue to receive it through you. Some children say: Baba, I am opening this spiritual hospital where diseased human beings can come and become free from disease and claim their inheritance of heaven. They can make their lives worthwhile and receive a lot of happiness. Therefore, they would definitely receive blessings from all those many people. Baba also explained the other day that to study the scriptures of Bharat such as the Gita, the Bhagawad, the Vedas and Upanishads etc., to hold sacrificial fires, to do tapasya, to fast, make certain vows and go on pilgrimages are all like buttermilk; they are the paraphernalia of the path of devotion. By following the one shrimat of the God of the one Bhagawad Gita, Bharat receives the butter. The Shrimad Bhagawad Gita has been falsified so that, instead of the name of the Ocean of Knowledge, the Purifier, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, they have inserted Shri Krishna’s name and turned it into buttermilk. This is the one big mistake. The Ocean of Knowledge is giving you children knowledge directly. You now know how this world cycle turns and how the world tree grows. You Brahmins are the topknot and Shiv Baba is the Father of Brahmins. You will then become deities from Brahmins, then warriors, merchants and shudras. This is the somersault. This is called the cycle of 84 births. You can also explain to those who hold gatherings where the Vedas are read: Devotion is buttermilk whereas knowledge is the butter through which you receive liberation and liberation-in-life. If you want to understand knowledge in depth, then listen with patience. The Brahma Kumaris can explain it to you. It is also mentioned in the scriptures that these children gave knowledge to Bhishampitamai and Ashwathama etc. (characters in Mahabharatha) at the end. At the end, everyone will understand that what you say is correct. They will definitely come at the end. When you hold exhibitions, so many thousands of people come, but not everyone becomes one who has full faith in the intellect. Out of multimillions, only a handful understand very well and have that faith. Achcha.

 

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, lucky stars of knowledge, love, remembrance and good morning, numberwise, according to your efforts, from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

 

Essence for Dharna:

1.            Become pure and make others pure like yourself. Don't remember anyone except the one Father.

2.            In order to receive blessings from many souls, open a spiritual hospital. Show everyone the path to liberation and salvation.

 

Blessing:May you be a double server and a trustee with a faithful intellect and have spiritual feelings for the your physical relatives.
Some children get tired while serving and think that so-and-so is never going to change. Do not become disheartened in this way. Have faith in the intellect, become detached from the consciousness of “mine” and continue to move on. It takes time for some souls for their account of the path of devotion to be settled. Therefore, have patience, become stable in the stage of a detached observer, and continue to give all souls your co-operation of peace and power. Have spiritual feelings for your physical relatives, become a double server and a trustee.

Slogan:To make the atmosphere elevated with your elevated attitude is true service.

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