Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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3 | Murali 03-Nov-2018 | 128264 | 2018-12-19 02:03:55 | |
4 | Murali 04-Nov-2018 | 144078 | 2018-12-19 02:03:55 | |
5 | Murali 05-Nov-2018 | 130306 | 2018-12-19 02:03:55 | |
6 | Murali 06-Nov-2018 | 127941 | 2018-12-19 02:03:55 | |
7 | Murali 07-Nov-2018 | 126732 | 2018-12-19 02:03:55 | |
8 | Murali 08-Nov-2018 | 119781 | 2018-12-19 02:03:55 | |
9 | Murali 09-Nov-2018 | 119694 | 2018-12-19 02:03:55 | |
10 | Murali 10-Nov-2018 | 132633 | 2018-12-19 02:03:55 | |
11 | Murali 11-Nov-2018 | 135035 | 2018-12-19 02:03:55 | |
12 | Murali 12-Nov-2018 | 125277 | 2018-12-19 02:03:55 | |
13 | Murali 13-Nov-2018 | 126007 | 2018-12-19 02:03:55 | |
14 | Murali 14-Nov-2018 | 105753 | 2018-12-19 02:03:55 | |
15 | Murali 15-Nov-2018 | 114187 | 2018-12-19 02:03:55 | |
16 | Murali 16-Nov-2018 | 118921 | 2018-12-19 02:03:55 | |
17 | Murali 17-Nov-2018 | 129415 | 2018-12-19 02:03:55 | |
18 | Murali 18-Nov-2018 | 138287 | 2018-12-19 02:03:55 | |
19 | Murali 19-Nov-2018 | 127282 | 2018-12-19 02:03:56 | |
20 | Murali 20-Nov-2018 | 132762 | 2018-12-19 02:03:56 | |
21 | Murali 21-Nov-2018 | 126535 | 2018-12-19 02:03:56 | |
22 | Murali 22-Nov-2018 | 124513 | 2018-12-19 02:03:56 | |
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Details ( Page:- Murali 06-Nov-2018 )
06-11-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप के गले का हार बनने के लिए ज्ञान-योग की रेस करो, तुम्हारा फ़र्ज है सारी दुनिया को बाप का परिचय देना''
प्रश्नः-किस मस्ती में सदा रहो तो बीमारी भी ठीक होती जायेगी?
उत्तर:-ज्ञान और योग की मस्ती में रहो, इस पुराने शरीर का चिन्तन नहीं करो। जितना शरीर में बुद्धि जायेगी, लोभ रखेंगे उतना और ही बीमारियां आती जायेंगी। इस शरीर को श्रृंगारना, पाउडर, क्रीम आदि लगाना - यह सब फालतू श्रृंगार है, तुम्हें अपने को ज्ञान-योग से सजाना है। यही तुम्हारा सच्चा-सच्चा श्रृंगार है।
गीत:-जो पिया के साथ है......
ओम् शान्ति।
जो बाप के साथ है..., अब दुनिया में बाप तो बहुत हैं परन्तु उन सभी का बाप रचयिता एक है। वही ज्ञान का सागर है। यह जरूर समझना पड़े कि परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, ज्ञान से ही सद्गति होती है। सद्गति मनुष्य की तब हो जब सतयुग की स्थापना होती है। बाप को ही सद्गति दाता कहा जाता है। जब संगम का समय हो तब तो ज्ञान का सागर आकर दुर्गति से सद्गति में ले जाए। सबसे प्राचीन भारत है। भारतवासियों के नाम पर ही 84 जन्म गाये हुए हैं। जरूर जो मनुष्य पहले-पहले हुए होंगे वही 84 जन्म लेते होंगे। देवताओं के 84 जन्म कहेंगे तो ब्राह्मणों के भी 84 जन्म ठहरे। मुख्य को ही उठाया जाता है। इन बातों का किसी को भी पता नहीं है। जरूर ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचते हैं। पहले-पहले सूक्ष्म लोक रचना है फिर यह स्थूल लोक। यह बच्चे जानते हैं - सूक्ष्म लोक कहाँ है, मूल लोक कहाँ है? मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन - इसको ही त्रिलोक कहा जाता है। जब त्रिलोकीनाथ कहते हैं तो उसका अर्थ भी चाहिए ना। कोई त्रिलोक होगा ना। वास्तव में त्रिलोकीनाथ एक बाप ही कहला सकते हैं और उनके बच्चे कहला सकते हैं। यहाँ तो कई मनुष्यों के नाम हैं त्रिलोकीनाथ, शिव, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि........ यह सब नाम भारतवासियों ने अपने ऊपर रखा दिये हैं। डबल नाम भी रखाते हैं - राधेकृष्ण, लक्ष्मी-नारायण। अब यह तो किसको पता नहीं, राधे और कृष्ण अलग-अलग थे। वह एक राजाई का प्रिन्स था, वह दूसरी राजाई की प्रिन्सेज थी। यह अभी तुम जानते हो। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं उन्हों की बुद्धि में अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स धारण रहती हैं। जैसे डॉक्टर जो अच्छा होशियार होगा उनके पास तो बहुत दवाइयों के नाम रहते हैं। यहाँ भी यह नई-नई प्वाइन्ट्स बहुत निकलती रहती हैं। दिन-प्रतिदिन इन्वेन्शन होती रहती है। जिन्हों की अच्छी प्रैक्टिस होगी वह नई-नई प्वाइन्ट्स धारण करते होंगे। धारण नहीं करते हैं तो महारथियों की लाइन में नहीं लाया जा सकता। सारा मदार बुद्धि पर है और तकदीर की भी बात है। यह भी ड्रामा में है ना। ड्रामा को भी कोई नहीं जानते हैं। यह भी समझते हैं कर्मक्षेत्र पर हम पार्ट बजाते हैं। परन्तु ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते तो गोया कुछ भी नहीं जानते। तुमको तो सब कुछ जानना है।
बाप आये हैं बच्चों को मालूम पड़ा तो बच्चों का फ़र्ज है औरों को भी परिचय देना। सारी दुनिया को बतलाना फर्ज़ है। जो फिर ऐसे ना कहें कि हमको मालूम नहीं था। तुम्हारे पास बहुत आयेंगे। लिटरेचर आदि बहुत लेंगे। बच्चों ने शुरू में साक्षात्कार भी बहुत किया है। यह क्राइस्ट, इब्राहम भारत में आते हैं। बरोबर भारत सबको खींचता रहता है। असुल तो भारत ही बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है ना। परन्तु वे लोग इतना कुछ जानते नहीं हैं कि यह भारत भगवान् का बर्थप्लेस है। भल कहते भी हैं शिव परमात्मा परन्तु फिर सबको परमात्मा कह देने से बेहद के बाप का महत्व गुम कर दिया है। अभी तुम बच्चे समझाते हो - भारत खण्ड सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। बाकी और सब जो भी पैगम्बर आदि आते हैं, वह आते ही हैं अपना-अपना धर्म स्थापन करने। उनके पिछाड़ी फिर सब धर्मों वाले आते-जाते हैं। अभी है अन्त। कोशिश करते है वापिस जायें। परन्तु तुमको यहाँ लाया किसने? क्राइस्ट ने आकर क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया, उसने तुमको खींच कर लाया। अभी सब तंग हुए हैं वापस जाने के लिए। यह तुमको समझाना है, सब आते हैं अपना-अपना पार्ट बजाने। पार्ट बजाते-बजाते दु:ख में आना ही है। फिर उस दु:ख से छुड़ाकर सुख में ले जाना - बाप का ही काम है। बाप का यह बर्थप्लेस भारत है, इतना महत्व तुम बच्चों में भी सभी नहीं जानते। थोड़े हैं जो समझते हैं और नशा चढ़ा हुआ है। कल्प-कल्प बाप भारत में ही आते हैं। यह सबको बताना है। निमंत्रण देना है। पहले तो यह सर्विस करनी पड़े। लिटरेचर तैयार करना पड़े। निमंत्रण तो सबको देना है ना। रचयिता और रचना की नॉलेज कोई भी नहीं जानते। सर्विसएबुल बनकर अपना नाम बाला करना चाहिए। जो तीखे बच्चे हैं, जिनकी बुद्धि में बहुत प्वाइन्ट्स हैं, उनकी मदद सब मांगते हैं। उनके नाम ही जपते रहते। एक तो शिवबाबा को जपेंगे फिर ब्रह्मा बाबा को फिर नम्बरवार बच्चों को। भक्तिमार्ग में हाथ से माला फेरते हैं, अभी फिर मुख से नाम जपते हैं - फलाने बहुत अच्छे सर्विसएबुल हैं, निरहंकारी हैं, बड़े मीठे हैं, उनको देह-अभिमान नहीं है। कहते हैं ना मिठरा घुर त घुराय (मीठे बनो तो सब मीठा व्यवहार करेंगे)। बाप कहते तुम दु:खी बने हो, अब तुम बच्चे मुझे याद करेंगे तो मैं भी मदद करूँगा। तुम ऩफरत करेंगे तो मैं क्या करूँगा। यह तो गोया अपने ऊपर ऩफरत करते हैं। पद नहीं मिलेगा। धन कितना अथाह मिलता है। किसको लॉटरी मिलती है तो कितना खुश होते हैं। उनमें भी कितने इनाम आते हैं। फर्स्ट प्राइज़, फिर सेकेण्ड प्राइज़, थर्ड प्राइज़ होती है। हूबहू यह भी ईश्वरीय रेस है। ज्ञान और योग बल की रेस है। जो इनमें तीखे जाते हैं वही गले का हार बनेंगे और तख्त पर नज़दीक बैठेंगे। समझाया तो बहुत सहज जाता है। अपने घर को भी सम्भालो क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। क्लास में एक घण्टा पढ़ना है फिर घर में जाकर उस पर विचार करना है। स्कूल में भी ऐसे करते हैं ना। पढ़कर फिर घर में जाकर होम वर्क करते हैं। बाप कहते एक घड़ी, आधी घड़ी........ दिन में 8 घड़ियाँ होती हैं। उनसे भी बाप कहते एक घड़ी, अच्छा आधी घड़ी। 15-20 मिनट भी क्लास अटेन्ड कर, धारणा कर फिर अपने धन्धेधोरी में जाकर लगो। आगे बाबा तुमको बिठाते भी थे कि याद में बैठो, स्वदर्शन चक्र फिराओ। याद का नाम तो था ना। बाप और वर्से को याद करते-करते स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते जब देखो नींद आती है तो सो जाओ। फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। फिर सवेरे उठेंगे तो वही प्वाइन्ट्स याद आती रहेंगी। ऐसे अभ्यास करते-करते तुम नींद को जीतने वाले बन जायेंगे।
जो करेगा वो पायेगा। करने वाले का देखने में आता है। उसकी चलन ही प्रत्यक्ष होती है। ना करने वाले की चलन ही और होती। देखा जाता है यह बच्चे विचार सागर मंथन करते हैं, धारणा करते हैं। कोई लोभ आदि तो नहीं है। यह तो पुराना शरीर है। यह शरीर ठीक भी तब रहेगा जब ज्ञान और योग की धारणा होगी। धारणा नहीं होगी तो शरीर और ही सड़ता जायेगा। नया शरीर फिर भविष्य में मिलना है। आत्मा को प्योर बनाना है। यह तो पुराना शरीर है, इनको कितना भी पाउडर, लिपिस्टिक आदि लगाओ, श्रृंगार करो तो भी वर्थ नाट ए पेनी है। यह श्रृंगार सब फालतू है।
अब तुम सबकी सगाई शिवबाबा से हुई है। जब शादी होती है तो उस दिन पुराने कपड़े पहनते हैं। अब इस शरीर को श्रृंगारना नहीं है। ज्ञान और योग से अपने को सजायेंगे तो फिर भविष्य में प्रिंस-प्रिंसेज बनेंगे। यह है ज्ञान मान सरोवर। इसमें ज्ञान की डुबकी मारते रहो तो स्वर्ग की परी बनेंगे। प्रजा को तो परी नहीं कहेंगे। कहते भी हंै कृष्ण ने भगाया, फिर महारानी, पटरानी बनाया। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि भगाकर फिर प्रजा में चण्डाल आदि बनाया। भगाया ही महाराजा-महारानी बनाने के लिए। तुमको भी यह पुरुषार्थ करना चाहिए। ऐसा नहीं जो पद मिले सो ठीक......। यहाँ मुख्य है पढ़ाई। यह पाठशाला है ना। गीता पाठशाला बहुत खोलते हैं। वह बैठ सिर्फ गीता सुनाते हैं, कण्ठ कराते हैं। कोई एक श्लोक उठाकर फिर आधा पौना घण्टा उस पर बोलते हैं। इससे फ़ायदा तो कुछ भी नहीं। यहाँ तो बाप बैठ पढ़ाते हैं। एम-ऑब्जेक्ट क्लीयर है। और कोई भी वेद-शास्त्र, जप-तप आदि करने में कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। बस, पुरुषार्थ करते रहो। परन्तु मिलेगा क्या? जब बहुत भक्ति करते हैं तब भगवान् मिलते हैं सो भी रात के बाद दिन जरूर आना है। समय पर होगा ना। कल्प की आयु कोई क्या बतलाते, कोई क्या बतलाते हैं। समझाओ तो कहते हैं शास्त्र कैसे झूठे होंगे? भगवान् थोड़ेही झूठ बोल सकता। समझाने की सिर्फ ताकत चाहिए।
तुम बच्चों में योग का बल चाहिए। योगबल से सब काम सहज हो जाते हैं। कोई काम नहीं कर सकते हैं तो गोया ताकत नहीं है, योग नहीं है। कहाँ-कहाँ बाबा भी मदद करते हैं। ड्रामा में जो नूंध है वह रिपीट होता है। यह भी हम समझते हैं और कोई ड्रामा को समझते ही नहीं। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो पास होता जाता, टिक-टिक होता जाता है, हम श्रीमत पर एक्ट में आते हैं। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ कैसे बनेंगे। सब एक जैसे बन नहीं सकते। यह लोग समझते हैं हम एक हो जाएं। एक का अर्थ नहीं समझते। एक क्या हो जाएं? क्या एक फादर हो जाना चाहिए वा एक ब्रदर हो जाना चाहिए? ब्रदर कहें तो भी ठीक है। श्रीमत पर बरोबर हम एक हो सकते हैं। तुम सब एक मत पर चलते हो। तुम्हारा बाप, टीचर, गुरू एक ही है। जो पूरा श्रीमत पर नहीं चलते तो वह श्रेष्ठ भी नहीं बनेंगे। एकदम नहीं चलेंगे तो ख़त्म हो जायेंगे। रेस में उनको ही निकालते हैं जो लायक होते हैं। जब कोई बड़ी रेस होती है तो घोड़े भी अच्छे फर्स्टक्लास निकालते हैं क्योंकि लॉटरी बड़ी रखते हैं। यह भी अश्व रेस है। हुसैन का घोड़ा कहते हो ना। उन्होंने हुसैन को घोड़े पर लड़ाई में दिखाया है। अभी तुम बच्चे तो डबल अहिंसक हो। काम की हिंसा है नम्बरवन। इस हिंसा को कोई जानते ही नहीं। सन्यासी भी ऐसे नहीं समझते हैं। सिर्फ कहते हैं यह विकार है। बाप कहते हैं - काम महाशत्रु है, यही आदि, मध्य, अन्त तुमको दु:ख देता है। तुमको यह सिद्ध कर बताना है कि हमारा प्रवृत्ति मार्ग का राजयोग है। तुम्हारा हठयोग है। तुम शंकराचार्य से हठयोग सीखते हो, हम शिवाचार्य से राजयोग सीखते हैं। ऐसी-ऐसी बातें समय पर सुनाना चाहिए।
कोई तुमसे पूछे कि देवताओं के 84 जन्म हैं तो भला इन क्रिश्चियन आदि के कितने जन्म है? बोलो, यह तो तुम हिसाब करो ना। पांच हजार वर्ष में 84 जन्म हुए। क्राइस्ट को 2 हजार वर्ष हुए। हिसाब करो - एवरेज कितने जन्म हुए? 30-32 जन्म होंगे। यह तो क्लीयर है। जो बहुत सुख देखते हैं, वह दु:ख भी बहुत देखते हैं। उन्हों को कम सुख, कम दु:ख मिलता है। एवरेज का हिसाब निकालना है। पीछे जो आते हैं वह थोड़े-थोड़े जन्म लेते हैं। बुद्ध का, इब्राहम का भी हिसाब निकाल सकते हैं। करके एक-दो जन्म का फ़र्क पड़ेगा। तो यह सब बातें विचार सागर मंथन करना चाहिए। कोई पूछे तो क्या समझायें? फिर भी बोलो - पहले तो बाप से वर्सा लेना है ना। तुम बाप को तो याद करो। जन्म जितने लेने होंगे उतने लेंगे। बाप से वर्सा तो ले लो। अच्छी रीति समझाना है। मेहनत का काम है। मेहनत से ही सक्सेसफुल होंगे। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा से और बाबा के धन से बहुत लव चाहिए। कोई तो धन ही नहीं लेते। अरे, ज्ञान रत्न तो धारण करो। तो कहते हैं हम क्या करें? हम समझते नहीं। नहीं समझते हो तो तुम्हारी भावी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी ऩफरत नहीं करनी है। सबसे मीठा व्यवहार करना है। ज्ञान-योग में रेस करके बाप के गले का हार बन जाना है।
2) नींद को जीतने वाला बन सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। जो सुनते हैं उस पर विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी है।
वरदान:-सदा सेफ्टी की लकीर के अन्दर परमात्म छत्रछाया का अनुभव करने वाले मायाजीत भव
"बाप और आप'' यही सेफ्टी की लकीर है, यह लकीर ही परमात्म छत्रछाया है। जो इस छत्रछाया की लकीर के अन्दर है उसके पास माया आने की हिम्मत भी नहीं रख सकती। फिर मेहनत क्या होती, रूकावट क्या होती, विघ्न क्या होता - इन शब्दों से अविद्या हो जायेगी। सदा सेफ रहेंगे, बाप की दिल में समाये रहेंगे - यही सबसे सहज और तीव्रगति में जाने का वा मायाजीत बनने का पुरुषार्थ है।
स्लोगन:-दिव्य गुणों के सर्व अलंकारों से सज़े सजाये रहो तो अहंकार आ नहीं सकता।
06/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, in order to become the garland around the Father’s neck, race in knowledge and yoga. Your duty is to give the whole world the Father’s introduction.
Question:Which intoxication should you constantly maintain so that your illness is cured?
Answer:Maintain the intoxication of knowledge and yoga. Don’t worry about those old bodies. The more your intellects are pulled towards your bodies, the more greed you have, the more illness there will be. To decorate your bodies, to put on powder and cream etc. is all useless. You have to decorate yourselves with knowledge and yoga. This is your true decoration.
Song:The rain of knowledge is for those who are with the Beloved. -- Om Shanti
Those who are with the Father… There are many fathers in the world, but the Father, the Creator of all of them, is One. He alone is the Ocean of Knowledge. You definitely have to understand that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. Only through knowledge is salvation received. Only when the golden age is established can human beings have salvation. The Father alone is called the Bestower of Salvation. Only when it is the confluence age does the Ocean of Knowledge come and take you from degradation to salvation. Bharat is the most ancient of all. Only for the people of Bharat has 84 births been remembered. Surely, the human beings who came first would take 84 births. You say 84 births of the deities and so there are also 84 births of Brahmins. It is the main ones that are mentioned. No one knows about these things. He definitely creates the world through Brahma. First of all, He has to create the subtle world and then this corporeal world. You children know where the subtle region is and where the incorporeal world is. The incorporeal world, the subtle region and the corporeal world are called Trilok (the three worlds). Since you speak of Trilokinath (the Lord of the Three Worlds), this has to have a meaning. There must be the three worlds, must there not? In fact, only the one Father and His children can be called Trilokinath. Here, some people are called Trilokinath, Shiva, Brahma, Vishnu, Shankar etc. The people of Bharat have given themselves these names. They even have double names – Radhe-Krishna, Lakshmi-Narayan. No one knows that Radhe and Krishna are from separate kingdoms. He was a prince of one kingdom and she was a princess from another kingdom. You know this at this time. These points are imbibed very well by the intellects of the good children. For instance, a clever doctor would be aware of the names of many types of medicine. Here, too, many new points continue to emerge. Inventions continue to take place day by day. Those who practise well would imbibe new points. If you don’t imbibe, you cannot be brought into the line of maharathis. Everything depends on the intellect, and it is also a matter of fortune. This is also in the drama , is it not? No one even knows the drama. You understand that you are playing your parts on the field of action. However, if you don’t know the beginning, the middle and the end of the drama, you don’t know anything. You have to know everything. You children know that the Father has come and so it is the duty of you children to give others His introduction. It is your duty to tell the whole world so that no one can say that they weren’t aware of this. Many will come to you. Many will also take the literature. Children had many visions at the beginning. Christ and Abraham came to Bharat. Truly Bharat continues to pull everyone. In reality, Bharat is the birthplace of the unlimited Father. However, those people don’t know that this Bharat is God’s birthplace. They speak of the Supreme Soul Shiva but, by saying that everyone is the Supreme Soul, they have lost the importance of the unlimited Father. You children now explain: The land of Bharat is the greatest pilgrimage place of all. All the messengers who come just come to establish their own religions. Those of all other religions continue to follow them down. It is now the end. People try to go back, but who brought you here? Christ came and established the Christian religion; he pulled them down here. Now, everyone is fed up and wants to go back home. You have to explain this. Everyone comes to play his or her own part. While playing your parts, you have to come into sorrow. Then it is the Father’s duty to liberate you from sorrow and to take you into happiness. Bharat is the Father’s birthplace . Among you children too, not all of you know the importance of this. There are a few who understand this and their intoxication remains high. Only in Bharat does the Father come every cycle. You have to tell this to everyone. You have to invite them. First of all, you have to do this service. You have to prepare literature. You have to give everyone an invitation. No one has the knowledge of the Creator or of creation. You should become serviceable and glorify your name. Everyone asks for the help of the clever children who have many points in their intellects. They continue to chant the names of these children. Firstly, they chant the name of Shiv Baba, then of Brahma Baba and then of the children, numberwise. On the path of devotion, they turn the beads of a rosary physically. Now, you chant the names through your lips: so-and-so is very serviceable. He is egoless, very sweet and doesn’t have any body consciousness. It is said: Become sweet and everyone will be very sweet to you. The Father says: You children have become very unhappy and if you now remember Me, I will help. What can I do if you have dislike? This is like disliking yourself. In that case, you won’t receive a status. You receive so much wealth. When someone wins a lottery, he becomes so happy. There are so many prizes there. First prize, second prize, third prize. In the same way, this is the spiritual race. This is the race of knowledge and the power of yoga. Those who go fast in this will become the garland around the Father’s neck and they will sit close to the throne. All of this is explained to you very easily. Also look after your homes because you are karma yogis. You have to study in class for an hour and then go home and think about these things. They do the same at school too. They study and then go home and do their homework. The Father says: Study for one hour, half an hour. There are eight hours in a day. Out of that too, the Father says: Study for one hour, if not that, then for half an hour. Attend class for even 15 to 20 minutes, imbibe that and then become engaged in your business etc. In the early days, Baba used to make you sit in remembrance and tell you to spin the discus of self-realisation. There was the mention of remembrance. Remember the Father and the inheritance and spin the discus of self-realisation, and then, when you feel sleepy, go to sleep. Then your final thoughts will lead you to your destination, and when you wake up in the morning, you will remember those points. By having this practice, you will become conquerors of sleep. Those who do something will receive the reward of it. When you do something, it is visible. Your behaviour reveals it. The behaviour of those who don’t do anything is completely different. It is seen that this child churns the ocean of knowledge and imbibes knowledge and doesn’t have any greed etc. Those are old bodies. Those bodies will be fine when you imbibe knowledge and yoga. If you don’t imbibe this, the body will continue to decay even more. You are to receive new bodies in the future. You souls have to make your souls pure. Those are old bodies. No matter how much powder and lipstick etc. you put on, how much you decorate them, they are not worth a penny. All of that decoration is useless. All of you are engaged to Shiv Baba. When a marriage takes place, the bride first wears old clothes on that day. You must not now decorate your body. If you decorate yourself with knowledge and yoga, you will become princes and princesses in the future. This is the lake of knowledge (Mansarovar) . Continue to take a dip in knowledge and you will become an angel of heaven. The subjects would not be called angels. They say: Krishna abducted women and made them into empresses. It would not be said that he abducted them and then made them into cremators of the subjects. He abducted them to make them into emperors and empresses. You should also make this effort. Don’t be happy with whatever status you receive. The main thing here is the study. This is a school. Many people open Gita Pathshalas. Those people simply sit and relate the Gita and make you learn it by heart. Some people select a verse and then speak on that for half or three quarters of an hour. There is no benefit in that. The Father sits here and teaches you. Your aim and objective is clear. There is no aim or objective in reading the Vedas and the scriptures or in chanting or doing tapasya. Continue to make effort, that’s all! However, what will you receive? It is said that when people do a lot of devotion they find God; the day definitely has to come after the night. It will all happen at the right time. Some say the duration of the cycle is one thing and others say it is something else. When you explain to them, they would say: How could the scriptures be wrong? God would not tell lies. You need to have the power to explain. So, you children need to have the power of yoga. Everything becomes easy with the power of yoga. If you aren’t able to do certain things, it means that you don’t have power, that you don’t have yoga. In some cases, Baba also helps. Whatever is fixed in the drama continues to repeat . We understand this. No one else understands the drama. Second by second, every second that passes continues to tick away. We act according to shrimat. How would you become elevated if you don’t follow shrimat? Not everyone can become the same. Those people think that they will all become one. They don’t understand the meaning of becoming one. What should they become one of? Should they all become the one Father or should they all become one brother? If they were to say that they will become brothers, that’s fine. By following shrimat, we truly can become one. All of you are following the one direction. Your Father, Teacher and Guru are One. Those who don’t follow shrimat fully will not be able to become elevated. If you don’t follow shrimat at all, you will be completely finished. In a race, they only enter those who are worthy. When it is a big race, they have very good, first- class horses because they have a big lottery at stake. This too is a horse race . They speak of the horse of Hussain. They have shown Hussain on a horse in a battle. You children are doubly non-violent. The violence of lust is number one. No one knows about this type of violence. Even sannyasis don’t consider it as such. They simply say that it is a vice. The Father says: Lust is the greatest enemy. It is this that causes you sorrow from its beginning through the middle to its end. You have to prove to them that this is your Raja Yoga of the family path, whereas theirs is hatha yoga. They learn hatha yoga from Shankaracharya and we learn Raja Yoga from Shiva, the Teacher. You should tell them these things at the right time. If someone asks you, “If the deities take 84 births, how many births would Christians take?” tell them: You can calculate this yourself. There are 84 births in 5000 years. It is 2000 years since Christ came. Now, calculate how many births they would take on average. They would perhaps take 30 to 32 births. This is clear. Those who see a lot of happiness will also see a lot of sorrow. Those people see less happiness and so they also receive less sorrow. You have to calculate the average. Those who come later take fewer births. You can also calculate how many births Buddha and Abraham take. Perhaps, there would be a difference of one or two births. So, you should churn the ocean of knowledge about all of these things. What should we explain if anyone asks us? You should tell them: First of all, you have to claim your inheritance from the Father. At least remember the Father! You will take as many births as you are to take. At least claim your inheritance from the Father. You have to explain this very well. This is something that requires effort. You will become successful by making effort. A very broad and unlimited intellect is required. There has to be a lot of love for Baba and Baba’s wealth. Some don’t take this wealth at all. Oh! At least imbibe the jewels of knowledge! They say: What can I do? I can’t understand it. If you don’t understand, that is your destiny. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual children say namaste to the spiritual Father.
Essence for Dharna:
1. Don’t dislike anyone. Be very sweet with everyone. Race in knowledge and yoga and become the garland around the Father’s neck.
2. Become a conqueror of sleep. Wake up early in the morning and remember the Father. Spin the discus of self-realisation. Instil the habit of churning the knowledge that you hear.
Blessing:May you constantly stay within the line of safety and experience God’s canopy of protection and thereby become a conqueror of Maya.
“The Father and you” is the line of safety. This line is God’s canopy of protection. Maya will not have the courage to come to those who stay within the line of this canopy. You will then be ignorant of what effort is, what an obstruction is or what an obstacle is. You will remain constantly safe and merged in the Father’s heart. This is the easiest way of making effort, of going at a fast speed and of becoming a conqueror of Maya.
Slogan:When you remain decorated with all the ornaments of divine virtues, there cannot then be any arrogance.
"मीठे बच्चे - बाप के गले का हार बनने के लिए ज्ञान-योग की रेस करो, तुम्हारा फ़र्ज है सारी दुनिया को बाप का परिचय देना''
प्रश्नः-किस मस्ती में सदा रहो तो बीमारी भी ठीक होती जायेगी?
उत्तर:-ज्ञान और योग की मस्ती में रहो, इस पुराने शरीर का चिन्तन नहीं करो। जितना शरीर में बुद्धि जायेगी, लोभ रखेंगे उतना और ही बीमारियां आती जायेंगी। इस शरीर को श्रृंगारना, पाउडर, क्रीम आदि लगाना - यह सब फालतू श्रृंगार है, तुम्हें अपने को ज्ञान-योग से सजाना है। यही तुम्हारा सच्चा-सच्चा श्रृंगार है।
गीत:-जो पिया के साथ है......
ओम् शान्ति।
जो बाप के साथ है..., अब दुनिया में बाप तो बहुत हैं परन्तु उन सभी का बाप रचयिता एक है। वही ज्ञान का सागर है। यह जरूर समझना पड़े कि परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, ज्ञान से ही सद्गति होती है। सद्गति मनुष्य की तब हो जब सतयुग की स्थापना होती है। बाप को ही सद्गति दाता कहा जाता है। जब संगम का समय हो तब तो ज्ञान का सागर आकर दुर्गति से सद्गति में ले जाए। सबसे प्राचीन भारत है। भारतवासियों के नाम पर ही 84 जन्म गाये हुए हैं। जरूर जो मनुष्य पहले-पहले हुए होंगे वही 84 जन्म लेते होंगे। देवताओं के 84 जन्म कहेंगे तो ब्राह्मणों के भी 84 जन्म ठहरे। मुख्य को ही उठाया जाता है। इन बातों का किसी को भी पता नहीं है। जरूर ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचते हैं। पहले-पहले सूक्ष्म लोक रचना है फिर यह स्थूल लोक। यह बच्चे जानते हैं - सूक्ष्म लोक कहाँ है, मूल लोक कहाँ है? मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन - इसको ही त्रिलोक कहा जाता है। जब त्रिलोकीनाथ कहते हैं तो उसका अर्थ भी चाहिए ना। कोई त्रिलोक होगा ना। वास्तव में त्रिलोकीनाथ एक बाप ही कहला सकते हैं और उनके बच्चे कहला सकते हैं। यहाँ तो कई मनुष्यों के नाम हैं त्रिलोकीनाथ, शिव, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि........ यह सब नाम भारतवासियों ने अपने ऊपर रखा दिये हैं। डबल नाम भी रखाते हैं - राधेकृष्ण, लक्ष्मी-नारायण। अब यह तो किसको पता नहीं, राधे और कृष्ण अलग-अलग थे। वह एक राजाई का प्रिन्स था, वह दूसरी राजाई की प्रिन्सेज थी। यह अभी तुम जानते हो। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं उन्हों की बुद्धि में अच्छी-अच्छी प्वाइन्ट्स धारण रहती हैं। जैसे डॉक्टर जो अच्छा होशियार होगा उनके पास तो बहुत दवाइयों के नाम रहते हैं। यहाँ भी यह नई-नई प्वाइन्ट्स बहुत निकलती रहती हैं। दिन-प्रतिदिन इन्वेन्शन होती रहती है। जिन्हों की अच्छी प्रैक्टिस होगी वह नई-नई प्वाइन्ट्स धारण करते होंगे। धारण नहीं करते हैं तो महारथियों की लाइन में नहीं लाया जा सकता। सारा मदार बुद्धि पर है और तकदीर की भी बात है। यह भी ड्रामा में है ना। ड्रामा को भी कोई नहीं जानते हैं। यह भी समझते हैं कर्मक्षेत्र पर हम पार्ट बजाते हैं। परन्तु ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते तो गोया कुछ भी नहीं जानते। तुमको तो सब कुछ जानना है।
बाप आये हैं बच्चों को मालूम पड़ा तो बच्चों का फ़र्ज है औरों को भी परिचय देना। सारी दुनिया को बतलाना फर्ज़ है। जो फिर ऐसे ना कहें कि हमको मालूम नहीं था। तुम्हारे पास बहुत आयेंगे। लिटरेचर आदि बहुत लेंगे। बच्चों ने शुरू में साक्षात्कार भी बहुत किया है। यह क्राइस्ट, इब्राहम भारत में आते हैं। बरोबर भारत सबको खींचता रहता है। असुल तो भारत ही बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है ना। परन्तु वे लोग इतना कुछ जानते नहीं हैं कि यह भारत भगवान् का बर्थप्लेस है। भल कहते भी हैं शिव परमात्मा परन्तु फिर सबको परमात्मा कह देने से बेहद के बाप का महत्व गुम कर दिया है। अभी तुम बच्चे समझाते हो - भारत खण्ड सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। बाकी और सब जो भी पैगम्बर आदि आते हैं, वह आते ही हैं अपना-अपना धर्म स्थापन करने। उनके पिछाड़ी फिर सब धर्मों वाले आते-जाते हैं। अभी है अन्त। कोशिश करते है वापिस जायें। परन्तु तुमको यहाँ लाया किसने? क्राइस्ट ने आकर क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया, उसने तुमको खींच कर लाया। अभी सब तंग हुए हैं वापस जाने के लिए। यह तुमको समझाना है, सब आते हैं अपना-अपना पार्ट बजाने। पार्ट बजाते-बजाते दु:ख में आना ही है। फिर उस दु:ख से छुड़ाकर सुख में ले जाना - बाप का ही काम है। बाप का यह बर्थप्लेस भारत है, इतना महत्व तुम बच्चों में भी सभी नहीं जानते। थोड़े हैं जो समझते हैं और नशा चढ़ा हुआ है। कल्प-कल्प बाप भारत में ही आते हैं। यह सबको बताना है। निमंत्रण देना है। पहले तो यह सर्विस करनी पड़े। लिटरेचर तैयार करना पड़े। निमंत्रण तो सबको देना है ना। रचयिता और रचना की नॉलेज कोई भी नहीं जानते। सर्विसएबुल बनकर अपना नाम बाला करना चाहिए। जो तीखे बच्चे हैं, जिनकी बुद्धि में बहुत प्वाइन्ट्स हैं, उनकी मदद सब मांगते हैं। उनके नाम ही जपते रहते। एक तो शिवबाबा को जपेंगे फिर ब्रह्मा बाबा को फिर नम्बरवार बच्चों को। भक्तिमार्ग में हाथ से माला फेरते हैं, अभी फिर मुख से नाम जपते हैं - फलाने बहुत अच्छे सर्विसएबुल हैं, निरहंकारी हैं, बड़े मीठे हैं, उनको देह-अभिमान नहीं है। कहते हैं ना मिठरा घुर त घुराय (मीठे बनो तो सब मीठा व्यवहार करेंगे)। बाप कहते तुम दु:खी बने हो, अब तुम बच्चे मुझे याद करेंगे तो मैं भी मदद करूँगा। तुम ऩफरत करेंगे तो मैं क्या करूँगा। यह तो गोया अपने ऊपर ऩफरत करते हैं। पद नहीं मिलेगा। धन कितना अथाह मिलता है। किसको लॉटरी मिलती है तो कितना खुश होते हैं। उनमें भी कितने इनाम आते हैं। फर्स्ट प्राइज़, फिर सेकेण्ड प्राइज़, थर्ड प्राइज़ होती है। हूबहू यह भी ईश्वरीय रेस है। ज्ञान और योग बल की रेस है। जो इनमें तीखे जाते हैं वही गले का हार बनेंगे और तख्त पर नज़दीक बैठेंगे। समझाया तो बहुत सहज जाता है। अपने घर को भी सम्भालो क्योंकि तुम कर्मयोगी हो। क्लास में एक घण्टा पढ़ना है फिर घर में जाकर उस पर विचार करना है। स्कूल में भी ऐसे करते हैं ना। पढ़कर फिर घर में जाकर होम वर्क करते हैं। बाप कहते एक घड़ी, आधी घड़ी........ दिन में 8 घड़ियाँ होती हैं। उनसे भी बाप कहते एक घड़ी, अच्छा आधी घड़ी। 15-20 मिनट भी क्लास अटेन्ड कर, धारणा कर फिर अपने धन्धेधोरी में जाकर लगो। आगे बाबा तुमको बिठाते भी थे कि याद में बैठो, स्वदर्शन चक्र फिराओ। याद का नाम तो था ना। बाप और वर्से को याद करते-करते स्वदर्शन चक्र फिराते-फिराते जब देखो नींद आती है तो सो जाओ। फिर अन्त मति सो गति हो जायेगी। फिर सवेरे उठेंगे तो वही प्वाइन्ट्स याद आती रहेंगी। ऐसे अभ्यास करते-करते तुम नींद को जीतने वाले बन जायेंगे।
जो करेगा वो पायेगा। करने वाले का देखने में आता है। उसकी चलन ही प्रत्यक्ष होती है। ना करने वाले की चलन ही और होती। देखा जाता है यह बच्चे विचार सागर मंथन करते हैं, धारणा करते हैं। कोई लोभ आदि तो नहीं है। यह तो पुराना शरीर है। यह शरीर ठीक भी तब रहेगा जब ज्ञान और योग की धारणा होगी। धारणा नहीं होगी तो शरीर और ही सड़ता जायेगा। नया शरीर फिर भविष्य में मिलना है। आत्मा को प्योर बनाना है। यह तो पुराना शरीर है, इनको कितना भी पाउडर, लिपिस्टिक आदि लगाओ, श्रृंगार करो तो भी वर्थ नाट ए पेनी है। यह श्रृंगार सब फालतू है।
अब तुम सबकी सगाई शिवबाबा से हुई है। जब शादी होती है तो उस दिन पुराने कपड़े पहनते हैं। अब इस शरीर को श्रृंगारना नहीं है। ज्ञान और योग से अपने को सजायेंगे तो फिर भविष्य में प्रिंस-प्रिंसेज बनेंगे। यह है ज्ञान मान सरोवर। इसमें ज्ञान की डुबकी मारते रहो तो स्वर्ग की परी बनेंगे। प्रजा को तो परी नहीं कहेंगे। कहते भी हंै कृष्ण ने भगाया, फिर महारानी, पटरानी बनाया। ऐसे तो नहीं कहेंगे कि भगाकर फिर प्रजा में चण्डाल आदि बनाया। भगाया ही महाराजा-महारानी बनाने के लिए। तुमको भी यह पुरुषार्थ करना चाहिए। ऐसा नहीं जो पद मिले सो ठीक......। यहाँ मुख्य है पढ़ाई। यह पाठशाला है ना। गीता पाठशाला बहुत खोलते हैं। वह बैठ सिर्फ गीता सुनाते हैं, कण्ठ कराते हैं। कोई एक श्लोक उठाकर फिर आधा पौना घण्टा उस पर बोलते हैं। इससे फ़ायदा तो कुछ भी नहीं। यहाँ तो बाप बैठ पढ़ाते हैं। एम-ऑब्जेक्ट क्लीयर है। और कोई भी वेद-शास्त्र, जप-तप आदि करने में कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। बस, पुरुषार्थ करते रहो। परन्तु मिलेगा क्या? जब बहुत भक्ति करते हैं तब भगवान् मिलते हैं सो भी रात के बाद दिन जरूर आना है। समय पर होगा ना। कल्प की आयु कोई क्या बतलाते, कोई क्या बतलाते हैं। समझाओ तो कहते हैं शास्त्र कैसे झूठे होंगे? भगवान् थोड़ेही झूठ बोल सकता। समझाने की सिर्फ ताकत चाहिए।
तुम बच्चों में योग का बल चाहिए। योगबल से सब काम सहज हो जाते हैं। कोई काम नहीं कर सकते हैं तो गोया ताकत नहीं है, योग नहीं है। कहाँ-कहाँ बाबा भी मदद करते हैं। ड्रामा में जो नूंध है वह रिपीट होता है। यह भी हम समझते हैं और कोई ड्रामा को समझते ही नहीं। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो पास होता जाता, टिक-टिक होता जाता है, हम श्रीमत पर एक्ट में आते हैं। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो श्रेष्ठ कैसे बनेंगे। सब एक जैसे बन नहीं सकते। यह लोग समझते हैं हम एक हो जाएं। एक का अर्थ नहीं समझते। एक क्या हो जाएं? क्या एक फादर हो जाना चाहिए वा एक ब्रदर हो जाना चाहिए? ब्रदर कहें तो भी ठीक है। श्रीमत पर बरोबर हम एक हो सकते हैं। तुम सब एक मत पर चलते हो। तुम्हारा बाप, टीचर, गुरू एक ही है। जो पूरा श्रीमत पर नहीं चलते तो वह श्रेष्ठ भी नहीं बनेंगे। एकदम नहीं चलेंगे तो ख़त्म हो जायेंगे। रेस में उनको ही निकालते हैं जो लायक होते हैं। जब कोई बड़ी रेस होती है तो घोड़े भी अच्छे फर्स्टक्लास निकालते हैं क्योंकि लॉटरी बड़ी रखते हैं। यह भी अश्व रेस है। हुसैन का घोड़ा कहते हो ना। उन्होंने हुसैन को घोड़े पर लड़ाई में दिखाया है। अभी तुम बच्चे तो डबल अहिंसक हो। काम की हिंसा है नम्बरवन। इस हिंसा को कोई जानते ही नहीं। सन्यासी भी ऐसे नहीं समझते हैं। सिर्फ कहते हैं यह विकार है। बाप कहते हैं - काम महाशत्रु है, यही आदि, मध्य, अन्त तुमको दु:ख देता है। तुमको यह सिद्ध कर बताना है कि हमारा प्रवृत्ति मार्ग का राजयोग है। तुम्हारा हठयोग है। तुम शंकराचार्य से हठयोग सीखते हो, हम शिवाचार्य से राजयोग सीखते हैं। ऐसी-ऐसी बातें समय पर सुनाना चाहिए।
कोई तुमसे पूछे कि देवताओं के 84 जन्म हैं तो भला इन क्रिश्चियन आदि के कितने जन्म है? बोलो, यह तो तुम हिसाब करो ना। पांच हजार वर्ष में 84 जन्म हुए। क्राइस्ट को 2 हजार वर्ष हुए। हिसाब करो - एवरेज कितने जन्म हुए? 30-32 जन्म होंगे। यह तो क्लीयर है। जो बहुत सुख देखते हैं, वह दु:ख भी बहुत देखते हैं। उन्हों को कम सुख, कम दु:ख मिलता है। एवरेज का हिसाब निकालना है। पीछे जो आते हैं वह थोड़े-थोड़े जन्म लेते हैं। बुद्ध का, इब्राहम का भी हिसाब निकाल सकते हैं। करके एक-दो जन्म का फ़र्क पड़ेगा। तो यह सब बातें विचार सागर मंथन करना चाहिए। कोई पूछे तो क्या समझायें? फिर भी बोलो - पहले तो बाप से वर्सा लेना है ना। तुम बाप को तो याद करो। जन्म जितने लेने होंगे उतने लेंगे। बाप से वर्सा तो ले लो। अच्छी रीति समझाना है। मेहनत का काम है। मेहनत से ही सक्सेसफुल होंगे। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा से और बाबा के धन से बहुत लव चाहिए। कोई तो धन ही नहीं लेते। अरे, ज्ञान रत्न तो धारण करो। तो कहते हैं हम क्या करें? हम समझते नहीं। नहीं समझते हो तो तुम्हारी भावी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी ऩफरत नहीं करनी है। सबसे मीठा व्यवहार करना है। ज्ञान-योग में रेस करके बाप के गले का हार बन जाना है।
2) नींद को जीतने वाला बन सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। जो सुनते हैं उस पर विचार सागर मंथन करने की आदत डालनी है।
वरदान:-सदा सेफ्टी की लकीर के अन्दर परमात्म छत्रछाया का अनुभव करने वाले मायाजीत भव
"बाप और आप'' यही सेफ्टी की लकीर है, यह लकीर ही परमात्म छत्रछाया है। जो इस छत्रछाया की लकीर के अन्दर है उसके पास माया आने की हिम्मत भी नहीं रख सकती। फिर मेहनत क्या होती, रूकावट क्या होती, विघ्न क्या होता - इन शब्दों से अविद्या हो जायेगी। सदा सेफ रहेंगे, बाप की दिल में समाये रहेंगे - यही सबसे सहज और तीव्रगति में जाने का वा मायाजीत बनने का पुरुषार्थ है।
स्लोगन:-दिव्य गुणों के सर्व अलंकारों से सज़े सजाये रहो तो अहंकार आ नहीं सकता।
06/11/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, in order to become the garland around the Father’s neck, race in knowledge and yoga. Your duty is to give the whole world the Father’s introduction.
Question:Which intoxication should you constantly maintain so that your illness is cured?
Answer:Maintain the intoxication of knowledge and yoga. Don’t worry about those old bodies. The more your intellects are pulled towards your bodies, the more greed you have, the more illness there will be. To decorate your bodies, to put on powder and cream etc. is all useless. You have to decorate yourselves with knowledge and yoga. This is your true decoration.
Song:The rain of knowledge is for those who are with the Beloved. -- Om Shanti
Those who are with the Father… There are many fathers in the world, but the Father, the Creator of all of them, is One. He alone is the Ocean of Knowledge. You definitely have to understand that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge. Only through knowledge is salvation received. Only when the golden age is established can human beings have salvation. The Father alone is called the Bestower of Salvation. Only when it is the confluence age does the Ocean of Knowledge come and take you from degradation to salvation. Bharat is the most ancient of all. Only for the people of Bharat has 84 births been remembered. Surely, the human beings who came first would take 84 births. You say 84 births of the deities and so there are also 84 births of Brahmins. It is the main ones that are mentioned. No one knows about these things. He definitely creates the world through Brahma. First of all, He has to create the subtle world and then this corporeal world. You children know where the subtle region is and where the incorporeal world is. The incorporeal world, the subtle region and the corporeal world are called Trilok (the three worlds). Since you speak of Trilokinath (the Lord of the Three Worlds), this has to have a meaning. There must be the three worlds, must there not? In fact, only the one Father and His children can be called Trilokinath. Here, some people are called Trilokinath, Shiva, Brahma, Vishnu, Shankar etc. The people of Bharat have given themselves these names. They even have double names – Radhe-Krishna, Lakshmi-Narayan. No one knows that Radhe and Krishna are from separate kingdoms. He was a prince of one kingdom and she was a princess from another kingdom. You know this at this time. These points are imbibed very well by the intellects of the good children. For instance, a clever doctor would be aware of the names of many types of medicine. Here, too, many new points continue to emerge. Inventions continue to take place day by day. Those who practise well would imbibe new points. If you don’t imbibe, you cannot be brought into the line of maharathis. Everything depends on the intellect, and it is also a matter of fortune. This is also in the drama , is it not? No one even knows the drama. You understand that you are playing your parts on the field of action. However, if you don’t know the beginning, the middle and the end of the drama, you don’t know anything. You have to know everything. You children know that the Father has come and so it is the duty of you children to give others His introduction. It is your duty to tell the whole world so that no one can say that they weren’t aware of this. Many will come to you. Many will also take the literature. Children had many visions at the beginning. Christ and Abraham came to Bharat. Truly Bharat continues to pull everyone. In reality, Bharat is the birthplace of the unlimited Father. However, those people don’t know that this Bharat is God’s birthplace. They speak of the Supreme Soul Shiva but, by saying that everyone is the Supreme Soul, they have lost the importance of the unlimited Father. You children now explain: The land of Bharat is the greatest pilgrimage place of all. All the messengers who come just come to establish their own religions. Those of all other religions continue to follow them down. It is now the end. People try to go back, but who brought you here? Christ came and established the Christian religion; he pulled them down here. Now, everyone is fed up and wants to go back home. You have to explain this. Everyone comes to play his or her own part. While playing your parts, you have to come into sorrow. Then it is the Father’s duty to liberate you from sorrow and to take you into happiness. Bharat is the Father’s birthplace . Among you children too, not all of you know the importance of this. There are a few who understand this and their intoxication remains high. Only in Bharat does the Father come every cycle. You have to tell this to everyone. You have to invite them. First of all, you have to do this service. You have to prepare literature. You have to give everyone an invitation. No one has the knowledge of the Creator or of creation. You should become serviceable and glorify your name. Everyone asks for the help of the clever children who have many points in their intellects. They continue to chant the names of these children. Firstly, they chant the name of Shiv Baba, then of Brahma Baba and then of the children, numberwise. On the path of devotion, they turn the beads of a rosary physically. Now, you chant the names through your lips: so-and-so is very serviceable. He is egoless, very sweet and doesn’t have any body consciousness. It is said: Become sweet and everyone will be very sweet to you. The Father says: You children have become very unhappy and if you now remember Me, I will help. What can I do if you have dislike? This is like disliking yourself. In that case, you won’t receive a status. You receive so much wealth. When someone wins a lottery, he becomes so happy. There are so many prizes there. First prize, second prize, third prize. In the same way, this is the spiritual race. This is the race of knowledge and the power of yoga. Those who go fast in this will become the garland around the Father’s neck and they will sit close to the throne. All of this is explained to you very easily. Also look after your homes because you are karma yogis. You have to study in class for an hour and then go home and think about these things. They do the same at school too. They study and then go home and do their homework. The Father says: Study for one hour, half an hour. There are eight hours in a day. Out of that too, the Father says: Study for one hour, if not that, then for half an hour. Attend class for even 15 to 20 minutes, imbibe that and then become engaged in your business etc. In the early days, Baba used to make you sit in remembrance and tell you to spin the discus of self-realisation. There was the mention of remembrance. Remember the Father and the inheritance and spin the discus of self-realisation, and then, when you feel sleepy, go to sleep. Then your final thoughts will lead you to your destination, and when you wake up in the morning, you will remember those points. By having this practice, you will become conquerors of sleep. Those who do something will receive the reward of it. When you do something, it is visible. Your behaviour reveals it. The behaviour of those who don’t do anything is completely different. It is seen that this child churns the ocean of knowledge and imbibes knowledge and doesn’t have any greed etc. Those are old bodies. Those bodies will be fine when you imbibe knowledge and yoga. If you don’t imbibe this, the body will continue to decay even more. You are to receive new bodies in the future. You souls have to make your souls pure. Those are old bodies. No matter how much powder and lipstick etc. you put on, how much you decorate them, they are not worth a penny. All of that decoration is useless. All of you are engaged to Shiv Baba. When a marriage takes place, the bride first wears old clothes on that day. You must not now decorate your body. If you decorate yourself with knowledge and yoga, you will become princes and princesses in the future. This is the lake of knowledge (Mansarovar) . Continue to take a dip in knowledge and you will become an angel of heaven. The subjects would not be called angels. They say: Krishna abducted women and made them into empresses. It would not be said that he abducted them and then made them into cremators of the subjects. He abducted them to make them into emperors and empresses. You should also make this effort. Don’t be happy with whatever status you receive. The main thing here is the study. This is a school. Many people open Gita Pathshalas. Those people simply sit and relate the Gita and make you learn it by heart. Some people select a verse and then speak on that for half or three quarters of an hour. There is no benefit in that. The Father sits here and teaches you. Your aim and objective is clear. There is no aim or objective in reading the Vedas and the scriptures or in chanting or doing tapasya. Continue to make effort, that’s all! However, what will you receive? It is said that when people do a lot of devotion they find God; the day definitely has to come after the night. It will all happen at the right time. Some say the duration of the cycle is one thing and others say it is something else. When you explain to them, they would say: How could the scriptures be wrong? God would not tell lies. You need to have the power to explain. So, you children need to have the power of yoga. Everything becomes easy with the power of yoga. If you aren’t able to do certain things, it means that you don’t have power, that you don’t have yoga. In some cases, Baba also helps. Whatever is fixed in the drama continues to repeat . We understand this. No one else understands the drama. Second by second, every second that passes continues to tick away. We act according to shrimat. How would you become elevated if you don’t follow shrimat? Not everyone can become the same. Those people think that they will all become one. They don’t understand the meaning of becoming one. What should they become one of? Should they all become the one Father or should they all become one brother? If they were to say that they will become brothers, that’s fine. By following shrimat, we truly can become one. All of you are following the one direction. Your Father, Teacher and Guru are One. Those who don’t follow shrimat fully will not be able to become elevated. If you don’t follow shrimat at all, you will be completely finished. In a race, they only enter those who are worthy. When it is a big race, they have very good, first- class horses because they have a big lottery at stake. This too is a horse race . They speak of the horse of Hussain. They have shown Hussain on a horse in a battle. You children are doubly non-violent. The violence of lust is number one. No one knows about this type of violence. Even sannyasis don’t consider it as such. They simply say that it is a vice. The Father says: Lust is the greatest enemy. It is this that causes you sorrow from its beginning through the middle to its end. You have to prove to them that this is your Raja Yoga of the family path, whereas theirs is hatha yoga. They learn hatha yoga from Shankaracharya and we learn Raja Yoga from Shiva, the Teacher. You should tell them these things at the right time. If someone asks you, “If the deities take 84 births, how many births would Christians take?” tell them: You can calculate this yourself. There are 84 births in 5000 years. It is 2000 years since Christ came. Now, calculate how many births they would take on average. They would perhaps take 30 to 32 births. This is clear. Those who see a lot of happiness will also see a lot of sorrow. Those people see less happiness and so they also receive less sorrow. You have to calculate the average. Those who come later take fewer births. You can also calculate how many births Buddha and Abraham take. Perhaps, there would be a difference of one or two births. So, you should churn the ocean of knowledge about all of these things. What should we explain if anyone asks us? You should tell them: First of all, you have to claim your inheritance from the Father. At least remember the Father! You will take as many births as you are to take. At least claim your inheritance from the Father. You have to explain this very well. This is something that requires effort. You will become successful by making effort. A very broad and unlimited intellect is required. There has to be a lot of love for Baba and Baba’s wealth. Some don’t take this wealth at all. Oh! At least imbibe the jewels of knowledge! They say: What can I do? I can’t understand it. If you don’t understand, that is your destiny. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual children say namaste to the spiritual Father.
Essence for Dharna:
1. Don’t dislike anyone. Be very sweet with everyone. Race in knowledge and yoga and become the garland around the Father’s neck.
2. Become a conqueror of sleep. Wake up early in the morning and remember the Father. Spin the discus of self-realisation. Instil the habit of churning the knowledge that you hear.
Blessing:May you constantly stay within the line of safety and experience God’s canopy of protection and thereby become a conqueror of Maya.
“The Father and you” is the line of safety. This line is God’s canopy of protection. Maya will not have the courage to come to those who stay within the line of this canopy. You will then be ignorant of what effort is, what an obstruction is or what an obstacle is. You will remain constantly safe and merged in the Father’s heart. This is the easiest way of making effort, of going at a fast speed and of becoming a conqueror of Maya.
Slogan:When you remain decorated with all the ornaments of divine virtues, there cannot then be any arrogance.
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