Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 02-Nov-2018 )
02-11-2018       प्रात:मुरली       ओम्  शान्ति     "बापदादा"     मधुबन

"मीठे बच्चे - मनुष्य को देवता बनाने की सर्विस में विघ्न जरूर पड़ेंगे। तुम्हें तकलीफ सहन करके भी इस सर्विस पर तत्पर रहना है, रहमदिल बनना है''

 

प्रश्नः-जिसे अन्तिम जन्म की स्मृति रहती है उसकी निशानी क्या होगी?

 

उत्तर:-उनकी बुद्धि में रहेगा कि अब इस दुनिया में दूसरा जन्म हमें नहीं लेना है और तो दूसरों को जन्म देना है। यह पाप आत्माओं की दुनिया है, इसकी वृद्धि अब नहीं चाहिए। इसे विनाश होना है। हम इन पुराने वस्त्रों को उतार अपने घर जायेंगे। अब नाटक पूरा हुआ।

 

गीत:-नई उमर की कलियां........  - ओम् शान्ति।

 

बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं कि तुम बच्चों को हरेक की ज्योति जगानी है। यह तुम्हारी बुद्धि में है। बाप को भी बेहद का ख्याल रहता है कि जो भी मनुष्य मात्र हैं, उनको मुक्ति का रास्ता बतायें। बाप आते ही हैं - बच्चों की सर्विस करने, दु: से लिबरेट करने। मनुष्य समझते नहीं हैं कि यह दु: है तो सुख का भी कोई स्थान है। यह जानते नहीं। शास्त्रों में सुख के स्थान को भी दु: का स्थान बना दिया है। अब बाप है रहमदिल। मनुष्य तो यह भी नहीं जानते कि हम दु:खी हैं क्योंकि सुख का और सुख देने वाले का पता ही नहीं है। यह भी ड्रामा की भावी। सुख किसको कहते हैं, दु: किसको कहते - यह जानते नहीं। ईश्वर के लिए कह देते कि वही सुख-दु: देते हैं। गोया उस पर कलंक लगाते हैं। ईश्वर, जिनको बाप कहते हैं, उनको जानते ही नहीं। बाप कहते हैं कि मैं बच्चों को सुख ही देता हूँ। तुम अब जानते हो बाबा आया है पतितों को पावन बनाने। कहते हैं मैं सबको ले जाऊंगा स्वीट होम। वह स्वीट होम भी पावन है। वहाँ कोई पतित आत्मा रहती नहीं। उस ठिकाने को कोई जानते नहीं। कहते हैं कि फलाना पार निर्वाण गया। परन्तु समझते नहीं। बुद्ध पार निर्वाण गया तो जरूर वहाँ का रहने वाला था। वहाँ ही गया। अच्छा, वह तो गया बाकी दूसरे कैसे जायें? साथ तो कोई को ले नहीं गया। वास्तव में वह जाते नहीं इसलिए सब पतित-पावन बाप को याद करते हैं। पावन दुनिया दो हैं, एक मुक्तिधाम, दूसरा जीवनमुक्तिधाम। शिवपुरी और विष्णुपुरी। यह है रावण पुरी। परमपिता परमात्मा को राम भी कहते हैं। रामराज्य कहा जाता है, तो बुद्धि परमात्मा की तरफ चली जाती है। मनुष्य को तो सब परमात्मा मानेंगे नहीं। तो तुमको तरस पड़ता है। तकलीफ तो सहन करनी पड़े।

 

बाबा कहते - मीठे बच्चे, मनुष्य को देवता बनाने में इस ज्ञान यज्ञ में विघ्न बहुत ही पड़ेंगे। गीता के भगवान् ने गाली खाई थी ना। गालियाँ उनको भी और तुमको भी मिलती हैं। कहते हैं ना कि इसने शायद चौथ का चन्द्रमा देखा होगा। यह सब हैं दन्त कथायें। दुनिया में तो कितना गन्द है। मनुष्य क्या-क्या खाते हैं, जानवरों को मारते हैं, क्या-क्या करते हैं! बाप आकर इन सब बातों से छुड़ा देते हैं। दुनिया में मारामारी कितनी है। तुम्हारे लिए बाप कितना सहज कर देते हैं। बाप कहते हैं कि तुम सिर्फ मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। सबको एक ही बात समझाओ। बाप कहते हैं अपने शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो। तुम असुल वहाँ के रहवासी हो। सन्यासी लोग भी वहाँ के लिए ही रास्ता बताते हैं। अगर एक निर्वाणधाम चला गया तो फिर दूसरे को कैसे ले जायेंगे? उनको कौन ले जायेगा? समझो, बुद्ध निर्वाणधाम में गया, उनके बौद्धी तो यहाँ बैठे हैं। उनको वापिस ले जाये ना। गाते भी हैं जो पैगम्बर हैं सबकी रूह यहाँ है, यानी किस किस शरीर में है फिर भी महिमा गाते रहते। अच्छा, धर्म स्थापन करके गये फिर क्या हुआ? मुक्ति में जाने लिए मनुष्य कितना माथा मारते हैं। उसने तो यह जप तप तीर्थ आदि नहीं सिखाया। बाप कहते हैं मैं आता ही हूँ सबकी गति-सद्गति करने। सबको ले जाता हूँ। सतयुग में जीवनमुक्ति है। एक ही धर्म है, बाकी सब आत्माओं को वापिस ले जाते हैं। तुम जानते हो वह बाबा है बागवान, हम सब माली हैं। मम्मा बाबा और सब बच्चे माली बन बीज बोते रहते हैं। कलम निकलती है फिर माया के तूफान लग पड़ते हैं। अनेक प्रकार के तूफान लगते हैं। यह हैं माया के विघ्न। तूफान लगते हैं तो पूछना चाहिए - बाबा, इसके लिए क्या करना चाहिए? श्रीमत देने वाला बाप है। तूफान तो लगेंगे ही। नम्बरवन है देह-अभिमान। यह नहीं समझते कि मैं आत्मा अविनाशी हूँ, यह शरीर विनाशी है। हमारे 84 जन्म पूरे हुए। आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है। घड़ी-घड़ी एक शरीर छोड़ दूसरा लेना आत्मा का ही काम है। अब बाप कहते हैं - तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है। इस दुनिया में दूसरा जन्म नहीं लेना है, किसको देना है। पूछते हैं कि फिर सृष्टि की वृद्धि कैसे होगी? अरे, इस समय सृष्टि की वृद्धि नहीं चाहिए। यह तो भ्रष्टाचार की वृद्धि है। यह रस्म-रावण से शुरू हुई है। दुनिया को भ्रष्टाचारी बनाने वाला रावण ठहरा। श्रेष्ठाचारी राम बनाते हैं। इसमें भी तुमको कितनी मेहनत करनी पड़ती है। घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में जाते हैं। अगर देह-अभिमान में आये तो अपने को आत्मा समझें। सतयुग में भी अपने को आत्मा तो समझते हैं ना। जानते हैं अभी यह हमारा शरीर वृद्ध हुआ है, इनको छोड़ कर नया लेंगे। यहाँ तो आत्मा का भी ज्ञान नहीं है। अपने को देह समझ बैठे हैं इस दुनिया से जाने की दिल उनकी होती है जो दु:खी होते हैं। वहाँ तो है ही सुख। बाकी आत्मा का ज्ञान वहाँ रहता है। एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं इसलिए दु: नहीं होता। वह सुख की प्रालब्घ है। यहाँ भी आत्मा तो कहते हैं, फिर भल कोई आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं। आत्मा है, यह तो ज्ञान है ना। परन्तु यह नहीं जानते कि हम इस पार्ट से वापिस जा नहीं सकते। एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेना जरूर है। पुनर्जन्म तो सब मानेंगे। कर्म तो सब कूटते हैं ना। माया के राज्य में कर्म, विकर्म ही बनते हैं, तो कर्म कूटते रहते हैं। वहाँ ऐसे कर्म नहीं, जो कूटने पड़ें।

 

अब तुम समझते हो कि वापिस जाना है। विनाश होना ही है। बाम्ब्स की ट्रायल भी ले रहे हैं। गुस्से में आकर फिर ठोक देंगे। यह पॉवरफुल बाम्ब्स हैं। गायन भी है यूरोपवासी यादव। भल हम सब धर्म वालों को यूरोपवासी ही कहेंगे। भारत है एक तरफ। बाकी उन सबको मिला दिया है। अपने खण्ड लिए उन्हों को प्यार तो बहुत है। परन्तु भावी ऐसी है तो क्या करेंगे? त़ाकत सारी तुमको बाबा दे रहे हैं। योगबल से तुम राज्य ले लेते हो। तुमको कोई भी तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ बाप कहते हैं मुझे याद करो, देह-अभिमान छोड़ो। कहते हैं कि मैं राम को याद करता हूँ, श्रीकृष्ण को याद करता हूँ, तो वे अपने को आत्मा थोड़ेही समझते हैं। आत्मा समझते तो आत्मा के बाप को क्यों नहीं याद करते हैं? बाप कहते हैं मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। तुम जीव आत्मा को क्यों याद करते हो? तुमको देही-अभिमानी बनना है। मैं आत्मा हूँ, बाप को याद करता हूँ। बाबा ने फ़रमान किया है - याद करने से विकर्म विनाश होंगे और वर्सा भी बुद्धि में जायेगा। बाप और जायदाद अर्थात् मुक्ति और जीवनमुक्ति। इसके लिए ही धक्के खाते रहते हैं। यज्ञ, जप, तप आदि करते रहते हैं। पोप से भी आशीर्वाद लेने जाते हैं, यहाँ बाप सिर्फ कहते हैं कि देह-अभिमान छोड़ो, अपने को आत्मा निश्चय करो। यह नाटक पूरा हुआ है, हमारे 84 जन्म पूरे हुए हैं, अब जाना है। कितना सहज करके समझाते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धि में यह रखो। जैसे नाटक पूरा होने पर होता है तो समझते हैं कि बाकी 15 मिनट हैं। अभी यह सीन पूरी होगी। एक्टर्स समझते हैं हम यह कपड़ा उतार घर को जायेंगे। अभी सबको वापिस जाना है। ऐसी-ऐसी बातें अपने से करनी चाहिए। कितना समय हमने सुख-दु: का पार्ट बजाया है, यह जानते हैं। अभी बाप कहते हैं कि मुझे याद करो, दुनिया में क्या-क्या हो रहा है, इन सबको भूल जाओ - यह सब ख़त्म हो जाने वाले हैं, अब वापिस जाना है। वह समझते हैं कि कलियुग अभी 40 हजार वर्ष चलेगा। इसको घोर अन्धियारा कहा जाता है। बाप का परिचय नहीं है। ज्ञान माना बाप का परिचय, अज्ञान माना नो परिचय। तो गोया घोर अन्धियारे में हैं। अभी तुम घोर सोझरे में हो - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। अब रात पूरी होने वाली है, हम वापिस जाते हैं। आज ब्रह्मा की रात, कल ब्रह्मा का दिन होगा, बदलने में टाइम तो लगेगा ना। तुम जानते हो अब हम मृत्युलोक में हैं, कल अमरलोक में होंगे। पहले तो वापिस जाना होगा। ऐसे यह 84 जन्मों का चक्र फिरता है। यह फिरना बन्द नहीं होता है। बाबा कहते हैं तुम कितनी बार मेरे से मिले होंगे? बच्चे कहते कि अनेक बार मिले हैं। तुम्हारे 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है, तो सबका हो जायेगा। इसको कहा जाता है ज्ञान। ज्ञान देने वाला है ही ज्ञान सागर, परमपिता परमात्मा, पतित-पावन। तुम पूछ सकते हो पतित-पावन किसको कहा जाता है? भगवान् तो निराकार को कहा जाता है फिर तुम रघुपति राघव राजा राम क्यों कहते हो? आत्माओं का बाप तो वह निराकार ही है, समझाने की बड़ी ही युक्ति चाहिए।

 

दिन-प्रतिदिन तुम्हारी उन्नति होती रहेगी क्योंकि गुह्य ज्ञान मिलता रहता है। समझाने के लिए है सिर्फ अल्फ की बात। अल्फ को भूले तो आऱफन हो गये, दु:खी होते रहते हैं। एक द्वारा, एक को जानने से तुम 21 जन्म सुखी हो जाते हो। यह है ज्ञान, वह है अज्ञान, जो कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है। अरे, वह तो बाप है। बाप कहते हैं तुम्हारे अन्दर भूत सर्वव्यापी हैं। 5 विकार रूपी रावण सर्वव्यापी है। यह बातें समझानी पड़ती हैं। हम ईश्वर की गोद में हैं - यह बड़ा भारी नशा होना चाहिए। फिर भविष्य में देवताई गोद में जायेंगे। वहाँ तो सदैव सुख है। शिवबाबा ने हमको एडाप्ट किया है। उनको याद करना है। अपना भी और दूसरों का भी कल्याण करना है तो राजाई मिलेगी। यह समझने की बड़ी अच्छी बात है। शिवबाबा है निराकार, हम आत्मा भी निराकार हैं। वहाँ हम अशरीरी नंगे रहते थे। बाबा तो सदैव अशरीरी ही है, बाबा कभी शरीर रूपी कपड़ा पहन पुनर्जन्म नहीं लेते हैं। बाबा एक बार रीइनकारनेट करते हैं। पहले-पहले ब्राह्मण रचते हैं तो उनको अपना बनाकर और नाम रखना पड़े ना। ब्रह्मा नहीं तो ब्राह्मण कहाँ से आये? तो यह वही है जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं, गोरा जो फिर सांवरा बना है, सुन्दर से श्याम, श्याम से सुन्दर बनता है। भारत का भी हम श्याम-सुन्दर नाम रख सकते हैं। भारत को ही श्याम, भारत को ही गोल्डन एज, सुन्दर कहते हैं। भारत ही काम चिता पर बैठ काला बनता है, भारत ही ज्ञान चिता पर बैठ गोरा बनता है। भारत से ही माथा मारना पड़ता है। भारतवासी फिर और और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। यूरोपियन और इन्डियन में फ़र्क नहीं दिखाई पड़ता है, वहाँ जाकर शादी करते हैं तो फिर क्रिश्चियन कहलाने लग पड़ते हैं। उनके बच्चे आदि भी उसी फीचर्स के होते हैं। अफ्रीका में भी शादी कर लेते हैं।

 

अब बाबा विशालबुद्धि देते हैं, चक्र को समझने की। यह भी लिखा हुआ है - विनाश काले विपरीत बुद्धि। यादवों और कौरवों ने प्रीत नहीं रखी। जिन्होंने प्रीत रखी उनकी विजय हुई। विपरीत बुद्धि कहा जाता है दुश्मन को। बाप कहते हैं इस समय सब एक-दो के दुश्मन हैं। बाप को ही सर्वव्यापी कह गाली देते हैं या तो फिर कह देते जन्म-मरण रहित है, उनको कोई भी नाम-रूप नहीं है। गॉड फादर भी कहते हैं, साक्षात्कार भी होता है आत्मा और परमात्मा का। उसमें और परमात्मा में फ़र्क नहीं रहता। बाकी नम्बरवार कम जास्ती ताकत तो होती ही है। मनुष्य भल मनुष्य हैं, उनमें भी तो मर्तबे होते हैं। बुद्धि का फ़र्क है। ज्ञान सागर ने तुमको ज्ञान दिया है तो उनको याद करते हो, वह अवस्था तुम्हारी अन्त में बनेगी।

 

अमृतवेले सिमर-सिमर सुख पाओ, भल लेटे रहो परन्तु नींद नहीं आनी चाहिए। अपना हठ कर बैठना चाहिए। मेहनत है। वैद्य लोग भी दवाई देते हैं अमृतवेले के लिए। यह भी दवाई है। रचता बाप ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचकर पढ़ाते हैं - यह बात सबको समझानी है। अच्छा!

 

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) हमने ईश्वर की गोद ली है फिर देवताई गोद में जायेंगे इसी रूहानी नशे में रहना है। अपना और दूसरों का कल्याण करना है।

2) अमृतवेले उठ ज्ञान सागर के ज्ञान का मनन करना है। एक की अव्यभिचारी याद में रहना है। देह-अभिमान छोड़ स्वयं को आत्मा निश्चय करना है।

 

वरदान:-हर आत्मा के संबंध-सम्पर्क में आते सब प्रश्नों से पार रहने वाले सदा प्रसन्नचित भव

हर आत्मा के संबंध-सम्पर्क में आते कभी चित के अन्दर यह प्रश्न उत्पन्न हो कि यह ऐसा क्यों करता वा क्यों कहता, यह बात ऐसे नहीं, ऐसे होनी चाहिए। जो इन प्रश्नों से पार रहते हैं वही सदा प्रसन्नचित रहते हैं। लेकिन जो इन प्रश्नों की क्यू में चले जाते, रचना रच लेते तो उन्हें पालना भी करनी पड़ती। समय और एनर्जी भी देनी पड़ती, इसलिए इस व्यर्थ रचना का बर्थ कन्ट्रोल करो।

 

स्लोगन:-अपने नयनों में बिन्दू रुप बाप को समा लो तो और कोई समा नहीं सकता।

 

 

 

02/11/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban

Sweet children, there will definitely be obstacles in the service of changing human beings into deities. You have to tolerate all difficulties and still remain engaged in this service. You have to become merciful.

 

Question:What are the signs of those who are aware of their final birth?

Answer:Their intellects are aware that they are neither going to take another birth in this world nor that they have to give birth to others. This is the world of sinful souls and we don't want it to increase any more; it has to be destroyed. We will shed these old clothes and return to our home. The play is now coming to an end.

 

Song:The buds of the new age…  -- Om Shanti

 

The Father sits here and explains to you children: You children have to ignite each one's light. This is in your intellects. The Father too has the unlimited thought to show all human beings the path to liberation. The Father comes to serve you children and to liberate you from sorrow. People don't understand that this is a place of sorrow and that there must also be a place of happiness. They don't know this. In the scriptures, they have made the place of happiness into a place of sorrow. The Father is merciful. People don't even know that they are unhappy because they don't know about happiness and the One who gives that happiness. This too is destined in the drama. They don't know what is called happiness and what is called sorrow. They say of God that He is the One who gives happiness and sorrow, which means that they defame Him. They don't know God, the One they call the Father. The Father says: I only give happiness to you children. You know that Baba has now come to purify the impure. He says: I will take everyone back to the sweet home. That sweet home too is pure; no impure souls reside there. No one knows that place. They say: So-and-so went beyond to the land of nirvana, but they don't understand. If Buddha went to the land of nirvana, he must surely have been a resident of that place, and so he went back there. Achcha, he went there, but how could others go there? He didn't take anyone with him. In fact, he didn't go there for this is why everyone remembers the Purifier Father. There are two pure worlds: one is the land of liberation and the other is the land of liberation-in-life. There is the land of Shiva and the land of Vishnu and this is the land of Ravan. The Supreme Father, the Supreme Soul, is also called Rama. When "The kingdom of Rama" is said, your intellects go to God. Not everyone would accept a human being as God. So, you have to have mercy for them. You have to tolerate difficulties. Baba says: Sweet children, there will be many obstacles in this sacrificial fire of knowledge for changing human beings into deities. The God of the Gita also had to take insults. This one and you too are insulted. They say: Perhaps this one saw the moon on the fourth night. All of those are tall stories. There is so much dirt in the world. Look at what people eat; they even kill animals. Look at the things they do. The Father comes and liberates you from all of those things. There is so much violence in the world. The Father makes everything so easy for you. The Father says: Simply remember Me and your sins will be absolved. Explain just the one thing to everyone. The Father says: Remember your land of peace and your land of happiness. You are originally the residents of that place. Sannyasis also show you the path to that place. If someone went to the land of nirvana, how could he take others with him? Who would take them there? For instance, if Buddha went to the land of nirvana, his followers, the Buddhists, are sitting here. He should also take them back with him. It is remembered that the spirits (souls) of all the messengers are also here, that is, each of them is in one body or another and yet people continue to sing their praise. Achcha, they went, having established a religion. In that case, what happened afterwards? People beat their heads so much to go into liberation. Baba didn't teach you to do chanting, tapasya or to go on pilgrimages etc. The Father says: I come to grant everyone liberation and salvation. I take everyone back with Me. There is liberation-in-life in the golden age. There is just the one religion there. He takes all the souls back home. You know that Baba is the Master of the Garden and we all are the gardeners. As gardeners, Mama, Baba and all the children continue to sow seeds. The saplings emerge and then storms of Maya affect them. There are many types of storm that affect them. They are obstacles of Maya. When there are storms, you should ask: Baba, what should I do about this? The Father is the One who gives you shrimat. There will be storms. Number one is body consciousness. They don't understand: I, the soul, am imperishable and the body is perishable. We have now completed our 84 births. It is the soul that takes rebirth. It is the work of each soul to shed a body and take another again and again. The Father says: This is now your final birth. You are neither going to take another birth in this world, nor do you have to give birth to anyone. Some ask: In that case, how will the world continue? Ah, but we don't want the world to increase any more at this time. That is just increasing corruption. This system has continued since Ravan came. It is Ravan who makes the world corrupt. Rama makes it elevated. For that too, you have to make so much effort. You repeatedly become body conscious. If you didn't become body conscious, you would consider yourself to be souls. In the golden age too, they consider themselves to be souls. They know when their bodies have become old and that they will then renounce them and take new ones. Here, they don't even have any knowledge of souls. They simply consider themselves to be bodies. Those who are unhappy want to leave this world. There, there is just happiness, but they do have knowledge of souls there. Each one sheds a body and takes another and this is why they don't experience sorrow. That is the reward of happiness. Here, too, they speak of the soul, and some even say that the soul is the Supreme Soul. They do have knowledge of the existence of the soul, but they don't know that they cannot leave their parts and go back. You definitely have to shed a body and then take another. Everyone believes in rebirth. Everyone repents for his actions. In the kingdom of Maya, actions are always sinful and so they continue to repent for their actions. There, you won't perform any such action that you would then have to repent for it. You understand that you now have to return home and that destruction has to take place. They are still trying out the bombs. Out of anger, they would attack with bombs. They are powerful bombs. The Yadavas of Europe are remembered. We would call those of all religions the residents of Europe. On the one side is Bharat and they have then mixed all the others together. They have a lot of love for their own country. However, destiny is such and so what can they do? Baba is giving you all strength. You claim the kingdom with the power of yoga. Baba doesn't give you any difficulties. The Father simply says: Remember Me and renounce body consciousness. Some say: I remember Rama or I remember Shri Krishna. They do not consider themselves to be souls at that time. If they understand themselves to be souls, why do they not remember the Father of souls? The Father says: Remember Me, the Supreme Father, the Supreme Soul. Why do you remember human beings? You have to become soul conscious. I am a soul and I am remembering the Father. Baba has ordered you: By remembering Me, your sins will be absolved and the inheritance will also enter your intellects: the Father and the property, that is, liberation and liberation-in-life. People continue to stumble around for this. They continue to hold sacrificial fires, do tapasya and chanting etc. They even go to seek blessings from the Pope. Here, the Father just tells you to renounce body consciousness and have the faith that you are a soul. This play has ended, our 84 births have ended and we now have to return home. Baba has explained it so easily! While living at home with your family, keep this in your intellect. When a play is about to end, they understand that there are only 15 minutes to go and that the scene will then end. Actors understand that they will shed their costumes and return home. Everyone now has to return home. You should talk to yourself about these things. You know for how long you have played your parts of happiness and sorrow. The Father now says: Remember Me. Forget all the things that are happening in the world. All of them are going to be destroyed. You now have to return home. Those people believe that the iron age will still continue for another forty thousand years. That is called extreme darkness. They don't have the Father's introduction. Knowledge means to have the Father's introduction and ignorance means no introduction. So, that means that they are in extreme darkness. You are now in extreme light, numberwise, according to the effort you make. The night is about to end and we are to return home. Now, it is the night of Brahma, and tomorrow, it will be the day of Brahma. It takes time for it to change. You know that we are now in the land of death and that tomorrow we will be in the land of immortality. First of all, we will have to return home. The cycle of 84 births continues to turn in this way; it never stops turning. Baba says: How many times would you have met Me? Children say that they would have met Me many times. Your cycle of 84 births will come to an end, and so the cycle will also end for everyone else. This is called knowledge. It is only the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul, the Purifier, who gives you knowledge. You can ask: Who is called the Purifier? The incorporeal One is called God, so why do you say: The Lord of Raghu is King Rama? The Father of all souls is that incorporeal One. Great tact is needed to explain these things. Day by day, you will continue to progress because you continue to receive deep knowledge. It is just the matter of Alpha that you have to explain. If you forget Alpha, you become orphans and you continue to be unhappy. By coming to know the One from the One, you become happy for 21 births. This is knowledge whereas it is ignorance when they say that God is omnipresent. Oh! But, He is the Father. The Father says: The evil spirits in you are omnipresent. Ravan, in the form of five vices, is omnipresent. You have to explain these things. You should have great intoxication that you are in God's lap. Then, in the future, you will go into the lap of the deities. There is constant happiness there. Shiv Baba has adopted us. We have to remember Him. You have to bring benefit to yourself and to others and you will receive the kingdom. These are very good matters to understand. Shiv Baba is incorporeal and we souls are also incorporeal. We used to reside there, bodiless, naked. Baba is always bodiless. Baba never wears the costume of a body or takes rebirth. Baba reincarnates just once. First of all, He creates Brahma. Therefore, He makes this one belong to Him and gives him a different name. If it weren't for Brahma, where would Brahmins come from? So, this is the same one who has taken the full 84 births. He is the beautiful one who then becomes ugly: he becomes shyam from sundar and then he becomes sundar from shyam. We can also call Bharat, ‘Shyam-sundar’. Bharat itself is called Shyam and Bharat is called golden aged, sunder (beautiful). It is Bharat that sits on the pyre of lust and becomes ugly. It is Bharat itself that sits on the pyre of knowledge and becomes beautiful. Baba has to beat His head with Bharat. Some people of Bharat have been converted to other religions. There is no visible difference between Europeans and Indians. When they (Indians) go abroad and get married there, they are called Christians. Their children would have those same features. Some even go to Africa and get married. Baba now gives you broad and unlimited intellects to understand the cycle. It is written that there were those who had divorced intellects at the time of destruction. The Yadavas and Kauravas had no love. Those who had love were victorious. An enemy is said to be one with a divorced intellect. The Father says: At this time, all are enemies of one another. They call the Father omnipresent and insult Him in this way, or they say that He is beyond birth and death and that He doesn't have any name or form. They still say: O God, the Father! They even have visions of a soul and the Supreme Soul. There is no difference between souls and the Supreme Soul, but there is numberwise strength, less and more. Although human beings are human beings, there is also their status. There is a difference between their intellects. The Ocean of Knowledge gave you knowledge and this is why you remember Him. That stage of yours will be created at the end. At amrit vela, remember the Father and experience happiness. You may lie down, but you mustn't fall asleep. You should sit with your own determination; this requires effort. Herbalists give medicine of Amrit Vela. This too is a medicine. The Father, the Creator, creates Brahmins through Brahma and teaches this knowledge. Explain this to everyone. Achcha.

 

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.

 

Essence for Dharna:

1.            Maintain the spiritual intoxication that you have come into God's lap and that you will then go into the lap of the deities. Bring benefit to yourself and to others.

2.            Wake up at amrit vela and churn the knowledge of the Ocean of Knowledge. Stay in unadulterated remembrance of One. Renounce body consciousness and have the faith that you are a soul.

 

Blessing:May you be constantly happy in your heart and remain beyond all questions while having connections and relationships with all souls.

 

While having connections and relationships with all souls, never let there be any questions in your heart as to why someone is doing something in that way or saying something, or that something should not be like this, but like that. Those who remove all those types of questions remain constantly happy in their hearts. However, those who make a queue of questions create a creation and then also have to sustain it; they have to give time and energy to it. Therefore, now have birth control over this wasteful creation.[font=Calibri] [/font]

Slogan:Merge the Father, the Point, in your eyes and no one else can then merge into them.

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