Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 1st Oct 2018 | 113370 | 2018-11-13 01:33:45 | |
2 | Murali 02- Oct 2018 | 132948 | 2018-11-13 01:33:45 | |
3 | Murali 03-Oct-2018 | 125177 | 2018-11-13 01:33:45 | |
4 | Murali 04-Oct-2018 | 118934 | 2018-11-13 01:33:45 | |
5 | Murali 05-Oct-2018 | 133374 | 2018-11-13 01:33:45 | |
6 | Murali 06-Oct-2018 | 133043 | 2018-11-13 01:33:45 | |
7 | Murali 07-Oct-2018 | 135426 | 2018-11-13 01:33:45 | |
8 | Murali 08-Oct-2018 | 118475 | 2018-11-13 01:33:45 | |
9 | Murali 09-Oct-2018 | 113426 | 2018-11-13 01:33:46 | |
10 | Murali 10-Oct-2018 | 123819 | 2018-11-13 01:33:46 | |
11 | Murali 11-Oct-2018 | 133485 | 2018-11-13 01:33:46 | |
12 | Murali 12th Oct 2018 | 12264 | 2018-11-13 01:33:46 | |
13 | Murali 13th Oct 2018 | 120124 | 2018-11-13 01:33:46 | |
14 | Murali 14th Oct 2018 | 132308 | 2018-11-13 01:33:46 | |
15 | Murali 15th Oct 2018 | 124161 | 2018-11-13 01:33:46 | |
16 | Murali 16th Oct 2018 | 128293 | 2018-11-13 01:33:46 | |
17 | Murali 17th Oct 2018 | 120298 | 2018-11-13 01:33:46 | |
18 | Murali 18th Oct 2018 | 118916 | 2018-11-13 01:33:46 | |
19 | Murali 19th Oct 2018 | 117510 | 2018-11-13 01:33:46 | |
20 | Murali 20th Oct 2018 | 117518 | 2018-11-13 01:33:46 | |
21 | Murali 21st Oct 2018 | 130603 | 2018-11-13 01:33:46 | |
22 | Murali 22nd Oct 2018 | 135192 | 2018-11-13 01:33:46 | |
23 | Murali 23rd Oct 2018 | 113654 | 2018-11-13 01:33:46 | |
24 | Murali 24th Oct 2018 | 128826 | 2018-11-13 01:33:46 | |
25 | Murali 25th Oct 2018 | 124802 | 2018-11-13 01:33:46 | |
26 | Murali 26th Oct 2018 | 117905 | 2018-11-13 01:33:46 | |
27 | Murali 27th Oct 2018 | 125168 | 2018-11-13 01:33:46 | |
28 | Murali 28th Oct 2018 | 105833 | 2018-11-13 01:33:46 | |
29 | Murali 29th Oct 2018 | 124953 | 2018-11-13 01:33:46 | |
30 | Murali 30th Oct 2018 | 235865 | 2018-11-13 01:33:46 |
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Details ( Page:- Murali 27th Oct 2018 )
27-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - धीरज रखो अब तुम्हारे दु:ख के दिन पूरे हुए, सुख के दिन आ रहे हैं, निश्चय बुद्धि बच्चों की अवस्था धैर्यवत रहती है''
प्रश्नः-किसी भी हालत में मुरझाइस न आये इसकी सहज विधि क्या है?
उत्तर:-
ब्रह्मा बाप का सैम्पुल सदा सामने रखो। इतने ढेर बच्चों का बाप, कोई सपूत बच्चे हैं तो कोई कपूत, कोई सर्विस करते, कोई डिससर्विस, फिर भी बाबा कभी मुरझाते नहीं, घबराते नहीं फिर तुम बच्चे क्यों मुरझा जाते हो? तुम्हें तो किसी भी हालत में मुरझाना नहीं है।
गीत:-धीरज धर मनुआ........
ओम् शान्ति।
धीरज धर मनुआ मनुष्य को नहीं कहा जाता। मन-बुद्धि आत्मा में हैं। यह आत्मा को कहा जाता है। आत्मा को सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई कह न सके कि धैर्य धरो क्योंकि अधीर्य को ही धैर्य दिया जाता है। अगर ईश्वर सर्वव्यापी है तो उसको अधीर्य कहा नहीं जा सकता। मनुष्य इस समय सब अधीर्य हैं, दु:खी हैं इसलिए धैर्य देने के लिए, सुख देने के लिए बाप आये हैं। कहते हैं अब धैर्य धरो। बाप के महावाक्य सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं हैं, वास्तव में सारी दुनिया के लिए हैं। सारी दुनिया आहिस्ते-आहिस्ते सुनती रहेगी। जो सुनते हैं वह आते रहते हैं। सबका सद्गति दाता, दु:ख हर्ता एक बाप ही है। यह है ही दु:ख की दुनिया। बच्चे समझते हैं अभी हमारे मुक्ति-जीवनमुक्ति के दिन वा कलियुग पतित दुनिया से छुटकारा पाने के दिन हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह है, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सबको यह धैर्य नहीं है कि अभी हम इस दु:ख की दुनिया से छुटकारा पाए अपने सुखधाम जायेंगे। तुम बच्चों को भी स्थाई निश्चय रहना चाहिए। हमारे सुख के दिन अब आ रहे हैं, अगर श्रीमत पर चलते रहेंगे तो। इसमें आशीर्वाद वा कृपा आदि की बात नहीं है। बाप बैठ पढ़ाते हैं, सहज स्वराज्य योग सिखलाते हैं। पढ़ाई को नॉलेज भी कहा जाता है। तुम बच्चों को श्रेष्ठ मत दे रहे हैं। पहले-पहले तो अटल निश्चय चाहिए, फिर कभी वह नीचे-ऊपर नहीं हो सकते। गाते हैं परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले की, वह पा लिया तो बाकी क्या चाहिए। यह तो निश्चय है - उस बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलना है। तो धैर्य पहले ही स्थाई मिल जाता है। यह है अविनाशी धैर्य। सर्टेन है हम श्रीमत पर श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ, श्रेष्ठाचारी राज्य भाग्य स्थापन कर रहे हैं, बिगर कोई लड़ाई-झगड़े। तो फिर मुरझाने की क्या दरकार। भल घर में 10-12 बच्चे हों। बाबा को तो देखो, हजारों-लाखों बच्चे हैं। कई बच्चे हंगामा भी मचाते हैं। कोई सपूत बच्चे हैं, कोई कपूत हैं, कोई सर्विस करते हैं, कोई तो डिस सर्विस भी करते हैं। फिर बाबा कभी घबराता है क्या? तो बच्चों को भी घबराना नहीं चाहिए। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। एक तरफ है हठयोग कर्म सन्यास। तुम्हारा है बेहद का सन्यास। यह है राजयोग। तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप से वर्सा पाना है। बहुत सहज है। अभी तो अपने सुखधाम के झाड़ दिखाई पड़ रहे हैं। परोक्ष-अपरोक्ष बुद्धि से जानते हैं। साक्षात्कार हो, न हो। पुरुषार्थ करते हैं भविष्य स्व-राजधानी के लिए। एम ऑब्जेक्ट सामने है ना। लक्ष्मी-नारायण का चित्र देख रहे हो ना। ऐसे नहीं कि हमको साक्षात्कार हो तो मानें। यह तो बुद्धि से समझने की बात है। इन आंखों से चित्र देख रहे हो ना। इन आंखों से फिर भी यही देखेंगे। राजयोग है ना। बुद्धि भी कहती है बरोबर चित्र रखे हैं फिर साक्षात्कार क्या करायें? श्रीकृष्ण सतयुग का मालिक है ना। शिव परमधाम में रहने वाला है। तुम लक्ष्मी-नारायण बन सकते हो, यह है तुम्हारी एम आबजेक्ट। तो आइने में देखो कि वह दैवीगुण हमारे में कहाँ तक आये हैं? बाप धैर्य तो बहुत अच्छा देते हैं।
अब पढ़ना है। राजाई के लिए ज्ञान चाहिए। वह बाप दे रहे हैं। आई.सी.एस. वालों को सबसे जास्ती नशा रहता है - हम बड़े से बड़ा ऑफीसर बनेंगे। यूँ तो धन्धे-व्यवहार में भी करोड़पति बन जाते हैं। बाबा फिर तुमको यह धन्धा सिखलाते हैं - सट्टा मट्टा का। तुम बाप को कौड़ियां देते हो, उनके एवज में 21 जन्मों के लिए बाबा तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। यह सौदागरी भी है तो पढ़ाई भी है। सिर्फ सौदागरी से काम नहीं, वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी का भी नॉलेज चाहिए ना। स्वदर्शन चक्रधारी भी बनना है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। स्वर्ग का मालिक तो प्रजा, नौकर-चाकर भी होगी। अभी भी सब कहते हैं ना - भारत हमारा देश है। परन्तु राजा और प्रजा में तो बहुत फ़र्क है। बाप कहते हैं जितना हो सके - ऊंच ते ऊंच पद पाओ, मात-पिता समान पुरुषार्थ करो। समझा जाता है सब तो गद्दी पर नहीं बैठेंगे। फिर भी रेस करानी पड़ती है। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार ही राजाई पायेंगे। जिनका जो पुरुषार्थ कल्प पहले वाला है वह साक्षी हो देखते हैं। फिर किसी का पुरुषार्थ ठण्डा देखते हैं तो तीव्र बनाया जाता है। तुम्हारा तो पुरुषार्थ बहुत ठण्डा दिखाई पड़ता है। तुम्हारा ममत्व लगा हुआ है। ट्रस्टी बनाया फिर ममत्व क्यों? तुम श्रीमत पर चलो। पूछते हैं - बाबा, मकान बनाऊ? हाँ, क्यों नहीं बनाओ, भल आराम से बैठो। बाकी थोड़े रोज़ यह छी-छी दुनिया है, भल आराम करो, बच्चों आदि की शादी कराओ। बाप कोई पैसा नहीं लेते हैं। वह तो दाता है। शिवबाबा ने इस समय बच्चों के रहने लिए यह मकान बनाया है। अपने रहने लिए तो यह शरीर निमित्त बनाया है, जीव आत्माओं को तो जरूर रहने के लिए मकान चाहिए। तो तुम बच्चों के लिए बना रहे हैं। बाबा भी इस मकान में बैठे हैं ना। यह तुम जानते हो - हमारा वह है आत्माओं का बाप और यह है शरीर का बाप। तुमको एडाप्ट किया है। तुम हमारे बच्चे हो। मम्मा-बाबा कहते हो ना, इसको गोद लेना कहा जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा को इतने बच्चे हैं तो जरूर गोद के ही बच्चे होंगे। तुम बच्चों को एडाप्ट करते हैं। सरस्वती भी बेटी है ना। यह है बड़ी गुह्य बातें समझने की। गीता-भागवत आदि तो तुम भी पढ़े हो, यह बाबा भी पढ़ा है। परन्तु अब तो श्रीमत मिलती है, ड्रामा अनुसार। जो कुछ कहा सो ड्रामा अनुसार। उसमें जरूर कल्याण ही होगा। नुकसान होता है, उसमें भी कल्याण ही है। हर बात में कल्याण है। शिवबाबा है ही कल्याणकारी। उनकी मत अच्छी है। अगर उस पर कोई शंका रही तो श्रीमत पर न चल अपनी मत पर चलते हैं, इससे धोखा खायेंगे। फिर शिवबाबा क्या करे। क़दम-क़दम पर राय पूछना है। सुप्रीम पण्डा तो बैठा है ना। बहुत बच्चे यह बात भूल जाते हैं क्योंकि योग में नहीं रहते हैं। योग अथवा याद को ही यात्रा कहा जाता है। याद नहीं करते तो समझें हम रेस्ट ले रहे हैं। यात्रा पर जाकर कोई रेस्ट लेते हैं। तुम भी अगर रेस्ट लेते हो, याद नहीं करते हो तो विकर्म भी विनाश नहीं होंगे और आगे भी नहीं बढ़ेंगे। याद नहीं करते तो नज़दीक नहीं जाते। आत्मा थक जाती है। बाप को भूल जाती है। बाप कहते हैं तुम यात्रा पर चल रहे हो। रात को तो तुम रेस्ट लेते ही हो। ऐसे नहीं कि रात को तुम नींद में हो तो यात्रा पर हो। नहीं, वह रेस्ट है। जब जागते हो तब यात्रा पर हो। नींद में कोई विकर्म विनाश नहीं होंगे। बाकी हाँ, दूसरे कोई विकर्म होते नहीं हैं। तो बाप सभी बातें समझाते हैं परन्तु कोई अमल में भी जब लाये। ढेर प्वाइन्ट बतलाते रहते हैं। बैरिस्टरी की प्वाइन्ट्स तब बुद्धि में आती हैं जब वह बैरिस्टरी पढ़ते हैं। डॉक्टरी वा इन्जीनियरिंग पढ़ते हैं फिर वह डॉक्टर अथवा इन्जीनियर आदि बनते हैं। जो जैसा कोर्स करते हैं, वैसा बनते हैं।
यहाँ तो एक ही कोर्स है। चलते चलो, तुम्हारे सिर पर जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा बहुत है। उनको विनाश करने का उपाय एक ही है - बाप को याद करना। नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। माला बनी हुई है ना। 9 रत्नों का भी गायन है। यह कहाँ से आये, सो मनुष्य नहीं जानते हैं। 8 रत्न हैं जो रुद्र की माला बनते हैं। तो पुरुषार्थ अच्छा करना चाहिए। स्टूडेन्ट्स अच्छा पढ़ते हैं तो रजिस्टर से माँ-बाप को भी पता लगता है। यहाँ तो बाप ही टीचर भी हैं तो वही जाने। तुम पढ़ते ही हो बाप के पास। रजिस्टर का भी उनको पता पड़ता है। तुम भी अपने रजिस्टर को समझ सकते हो - कहाँ तक हमारे में गुण हैं, मैं औरों को कहाँ तक आप समान बनाता हूँ? इतनी ताकत है जो कोई सामने देखे उनको शरीर भुला दें? कहा जाता है हिम्मते मर्दा मददे खुदा। बाप बहुत मदद देते हैं। तुम भी मदद देते हो योग की। बाप को चाहिए ही पवित्रता की मदद। सारी पतित दुनिया को पावन बनाना है योगबल से। जितना-जितना जो योग की मदद देंगे उतना बाबा खुश होंगे। यह बाबा के लिए मदद है वा अपने लिए? तुम जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। जितना याद करेंगे उतना मुझे पवित्रता की मदद करेंगे। मैं आया हूँ पतित को पावन बनाने, पावन दुनिया के लिए। पतित और पावन यहाँ बनते हैं। वह तो है ही निराकारी दुनिया। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। समझते नहीं कि पावन दुनिया किसको कहा जाता है। सीता को रावण की जेल से, दु:ख से छुड़ाया तो फिर सुख चाहिए। औरों को शान्ति बहुत मिलती है, सुख थोड़ा मिलता है। तुमको सुख भी बहुत मिलता है तो दु:ख भी बहुत मिलता है। पिछाड़ी में जो आत्मायें आती हैं थोड़ा पार्ट बजाए वापिस चली जाती हैं। एक-दो जन्म भी लेते हैं, थोड़ा समय आया यह गया। तुम्हारे तो 84 जन्मों की बात है। उनकी एक-दो जन्म की बात है। तुम 84 जन्मों को जानते हो, चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। वह थोड़ेही बन सकेंगे। उनके लिए यह ज्ञान नहीं है। यह ज्ञान तुम्हारे लिए है, जिन्होंने कल्प पहले भी ज्ञान लिया है। अब तुमको पुरुषार्थ करना है। पुरुषार्थ का समय अभी है और तुम्हारे लिए ही पुरुषार्थ की बात है। देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है, इतना सुख और कोई दे न सके।
यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। सभी को तो हीरो-हीरोइन का पार्ट नहीं मिल सकता। किस्म-किस्म के मनुष्य हैं। उनमें भी अच्छे-बुरे अनेक प्रकार के हैं। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवी-देवता हैं। श्रेष्ठ उन्हों को ही कहा जाता है। वह तो सतयुग में ही होते हैं। उन्हों के चित्र भी हैं। परन्तु वह कैसे बने यह नहीं जानते हैं। कोई तो फिर कहते - कृष्ण हाज़िरा-हज़ूर है। भगवान् भी हाज़िरा-हज़ूर है। इन सब बातों को तुम बच्चे समझ गये हो। यह एम ऑब्जेक्ट बहुत अच्छी है - समझाने लिए। सबको निमंत्रण जरूर देना है। अखबार से सबको निमंत्रण मिल रहा है। अभी बाकी टाइम बहुत थोड़ा है। अब तक बच्चे यात्रा करते-करते थक जाते हैं तो बैठ जाते हैं। माया के तूफान सहन नहीं कर सकते हैं। युद्ध के मैदान में माया तो जरूर पकड़ेगी। रुसतम से रुसतम होकर लड़ेगी। ज़ोर से तूफान आयेंगे। फिर कहते हैं जब से ज्ञान में आया हूँ तो विघ्न बहुत पड़े हैं, धन्धे में भी घाटा हुआ है। बाबा कहते हैं ऐसे मत समझो - ज्ञान में आये हैं तब विघ्न पड़ते हैं। यह तो दुनिया में होता ही रहता है, इनसे डरना नहीं है। कभी चक्र की दशा, कभी राहू की, कभी किसकी दशा बैठती है। चलते-चलते फाँ हो जाते हैं। राहू की दशा कड़ी होती है। माया खा जाती है तो काले का काला बन जाते हैं। माया थप्पड़ लगाए एकदम काला मुँह कर देती है। माया की भी जीत होगी। सिर्फ बच्चों की जीत हो फिर तो झट राजधानी स्थापन हो जाए। उस्ताद को भूल जाते हैं तो माया थप्पड़ मारती है। ऐसे रूहानी साजन को सजनी भूल जाती है, यह भी वन्डर है ना! अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) योगबल से पतित दुनिया को पावन बनाने में बाप का मददगार बनना है। याद की यात्रा में रेस्ट नहीं लेनी है। ऐसी याद हो जो सामने वाला अपना शरीर भी भूल जाए।
2) श्रीमत में कभी भी शंका उठाकर अपनी मनमत नहीं चलानी है। हर बात में राय लेते उसमें अपना कल्याण समझकर चलना है।
वरदान:-अपनी सूक्ष्म शक्तियों को स्थापना के कार्य में लगाने वाले मास्टर रचयिता भव
जैसे आपकी रचना साइंस वाले विस्तार को सार में समा रहे हैं। अति सूक्ष्म और शक्तिशाली विनाश के साधन बना रहे हैं। ऐसे आप मास्टर रचयिता बन अपनी सूक्ष्म शक्तियाँ स्थापना के कार्य में लगाओ। आपके पास सबसे महान शक्ति है - श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति, शुभ वृत्ति की शक्ति, स्नेह और सहयोग की दृष्टि। तो इस सूक्ष्म शक्तियों द्वारा अपनी वंशावली की आशाओं के दीपक जलाए उन्हें यथार्थ मंजिल पर पहुँचाओ।
स्लोगन:-जहाँ स्वच्छता और मधुरता है वहाँ सेवा में सफलता है।
27/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, have patience. Your days of sorrow are now over and your days of happiness are about to come. The children’s intellects who have faith are patient.
Question:What is the easy way to prevent yourself from wilting under any circumstance?
Answer:Always keep the sample of Brahma Baba in front of you. He is the father of so many children. Some are worthy, some are unworthy, some do service and some do disservice , yet Baba never wilts or is ever afraid. So, why do you children wilt? You should not wilt under any circumstance.
Song:Have patience o mind. Your days of happiness are about to come.
Om Shanti
It is not human beings who are told “Have patience o mind” because the mind and the intellect are in the soul and so it is souls that are told this. No one, except the Supreme Father, the Supreme Soul, can tell souls to have patience, because patience is only given to those who are impatient. If God is omnipresent, He can’t be called impatient. At this time, all human beings are impatient and unhappy. It is the Father who has come to give you patience and happiness. He says: Now have patience. The Father’s versions are not just for you but they are, in fact, for the whole world. The whole world will gradually begin to hear. Those who hear will continue to come. Only the one Father is the Bestower of Salvation and the Remover of Sorrow. This is the world of sorrow anyway. You children understand that these are the days when you attain liberation and liberation-in-life, that is, these are the days when you are liberated from this iron-aged impure world. This is in your intellects, but, numberwise, according to the effort you make. Not everyone has the assurance that we are now to be liberated from this world of sorrow and go to our land of happiness. You children should also have the firm faith that your days of happiness are now about to come, but that is only if you continue to follow shrimat. There is no question of blessings or mercy etc. in this. The Father sits here and teaches you easy yoga for self -sovereignty. This study is also called knowledge. He is giving you children elevated directions. First and foremost, your faith has to be unshakeable so that it can never fluctuate. There is a song: “I wanted to meet the One who lives beyond in the brahm element. Now, having found Him, what more could I want?” You have the faith that you will receive your inheritance of heaven from that Father. So, from the beginning, you receive lasting patience. This is imperishable patience. It is certain that you are establishing the most elevated of all kingdoms. You are receiving the elevated fortune of the kingdom by following shrimat, without fighting or quarrelling. Even if there are ten or twelve children at home, what need is there to wilt? Look at Baba. He has thousands, hundreds of thousands, of children. Some children even create upheaval. Some are worthy children whereas others are unworthy. Some do service whereas others do disservice . Does Baba become afraid then? So neither should you children become afraid. You also have to live at home with your family. On that side is hatha yoga, the renunciation of karma. Yours is unlimited renunciation. This is Raja Yoga. You have to live at home with the family and claim the inheritance from the Father. It is very easy. You can now see the trees of your land of happiness. You recognise the visible and the invisible with your intellect, whether you have visions or not. You are making effort for your own kingdom of the future. Your aim and objective is in front of you. You can see the picture of Lakshmi and Narayan. It shouldn't be that you would only believe this if you had a vision. This is something to be understood with your intellect. You can see that picture with your eyes. You will then see the same things with your eyes. This is Raja Yoga. Your intellect also says: The pictures are here, and so what need is there to be granted visions? Shri Krishna is the master of the golden age, is he not? Shiva is the Resident of the supreme abode. You can become Lakshmi or Narayan. This is your aim and objective. Therefore, look in the mirror and see to what extent you have those divine virtues in you. The Father gives you a lot of patience. You now have to study. Knowledge is needed for the kingdom and the Father is giving that to you. Those who study for the Indian Civil Service have the greatest intoxication that they will then become senior officers. In fact, people become millionaires by doing business. Baba is now teaching you this business of bartering. You give shells to the Father and, in return, Baba makes you into the masters of heaven for 21 births. This is a business as well as a study. You aren't concerned with just business. You also need to have the knowledge of world history and geography. You also have to become a spinner of the discus of self-realisation. The more you study, the higher the status you will claim. Even the subjects, maids and servants will be the masters of heaven. Everyone now says that Bharat is their land. However, there is a lot of difference between kings and subjects. The Father says: As much as possible, claim the highest status of all. Make effort like the mother and father. It is understood that not everyone will be seated on the throne, but you still have to be inspired to race. The kingdom will be claimed numberwise, according to the efforts made. Baba, as the detached Observer, observes the same effort that each one makes as was made in the previous cycle. Then, when Baba sees that someone’s effort is a little slack, He inspires him or her to make it intense: Your effort appears to be very slack. You still have attachment. Once you are made a trustee, why is there still attachment? You simply have to follow shrimat. Some ask: Baba, should I have a house built? Yes, why not? Build it! You may live comfortably. This dirty world is only for a few more days; you may live comfortably. You may get your children married. The Father doesn't take any money from you. He is the Bestower. Shiv Baba has had this building built at this time for the children to live in. He has made this body the instrument for Him to live in. However, human beings definitely need buildings to stay in. So, Baba is having them built for you children. Baba is also sitting in this building. You know that that One is the Father of souls and that this one is the father of the bodies. He has adopted you: You are My children. You say "Mama and Baba". This means to be adopted by us. Prajapita Brahma has so many children and so they would surely be adopted children. He adopts you children. Saraswati too is his daughter. These are very incognito matters and have to be understood. You have studied the Gita and the Bhagawad etc. and this Baba has also studied them. However, now, according to the drama, you are receiving shrimat. Whatever is said is according to the drama. There would definitely be benefit in that. Even if there is any loss, there is benefit in that. There is benefit in everything. Shiv Baba is the Benefactor. His directions are good. If you doubt it, then, instead of following shrimat, you follow your own dictates and you become deceived. What can Shiv Baba do then? You have to ask for advice at every step. The Supreme Guide is sitting here. Many children forget this because they do not stay in yoga. Yoga or remembrance is called the pilgrimage. If you are not in remembrance, then you must understand that you are taking a rest. Some go on a pilgrimage and take a rest. If you too are taking a rest and do not stay in remembrance, your sins will not be absolved and you won't move forward. You can’t come closer if you don't stay in remembrance. The soul becomes tired and forgets the Father. The Father says: You are moving along on the pilgrimage. You take a rest at night anyway. It isn't that when you are a sleep at night, you are on the pilgrimage. No; that is a rest. You are on the pilgrimage when you are awake. Sins are not absolved when you are asleep, but, yes, no further sins are committed. So the Father explains everything, but someone should still put them into practice. He continues to tell you many points. The points of a barrister enter your intellect when you are studying to become a barrister. When you study to become a doctor or an engineer, you then become a doctor or an engineer. Whatever course someone takes, that is what he would become. Here, there is just the one course. Continue to move along. There is a big burden of the sins of many births on your head. There is only one way to have those sins absolved. You have to remember the Father. Otherwise, your status will be destroyed. The rosary has been created. There is also the memorial of the nine jewels. People don't know where it came from. The eight jewels are those who become the rosary of Rudra. So you should make good effort. When students study well at school, their parents become aware of that from their register. Here, the Father Himself is also the Teacher and so He would know. You are studying with the Father. He is also aware of your register. You can also understand from your register to what extent you have those virtues in you. To what extent am I making others the same as myself? Do you have sufficient power that you are able to make anyone who sees you forget the body? It is said: When the child has courage, the Father helps. The Father gives a lot of help. You also give the help of yoga. The Father only wants the help of purity. The whole impure world has to be purified with the power of yoga. The more help someone gives with yoga, the more pleased Baba will be. Is this help for the Father or for yourself? The more you study, the higher the status you claim. The more you stay in remembrance, the more you help Me with purity. I have come to make impure ones pure for the pure world. It is here that you become pure and impure. That is the incorporeal world. It is sung: O Purifier, come! They don't understand what the pure world is. Sita was liberated from the jail of Ravan and from sorrow. Therefore, there has to be happiness after that. Others receive a lot of peace and a little happiness. You receive a lot of happiness as well as a lot of sorrow. Souls who come at the end will play their small parts and then leave. They take one or two births; they just come for a short while and depart. For you, it is a matter of 84 births. For them, it is a matter of one or two births. You know your 84 births. By knowing the cycle, you become the kings who are rulers of the globe. They would not be able to become that. This knowledge is not for them. This knowledge is for those of you who took this knowledge in the previous cycle too. You now have to make effort. The time for making effort is now. The question of making effort only applies to you. The deity religion is one that gives a lot of happiness. No one else can give as much happiness. This eternal drama is predestined. Not everyone can receive the part of a hero or heroine. There are all types of human being. There are many types of good and bad people. The most elevated of all are the deities. They are the only ones who can be called elevated. They only exist in the golden age. There are also their pictures, but no one knows how they became those. Some say that Krishna is present everywhere and that God is present everywhere too. You children have now understood all of these things. This aim and objective is very good for you to explain. You definitely have to invite everyone. Everyone can receive an invitation in the newspapers. There is now very little time left. Even now, some children still become tired on the pilgrimage and so they sit down. They are unable to tolerate the storms of Maya. Maya will definitely catch them on the battlefield. She will become powerful with the powerful ones and fight them. Storms will come very forcefully. They would then say: There have been many obstacles from the time I came into knowledge. There is also loss in business now. Baba says: Don't think that the obstacles have come because you have come into knowledge. This continues to happen in the world. You mustn't be afraid of this. Sometimes, there is one type of omen and sometimes another type. Some collapse while moving along. The omens of Rahu are very strong. Maya eats you and you then become very ugly. Maya slaps you and makes your face completely dirty. Maya will also be victorious. If only the children were to become victorious, the kingdom would very soon be established. When you forget the Master (Teacher), Maya slaps you. The brides forget the spiritual Bridegroom. This too is a wonder. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now -found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a helper of the Father in making the impure world pure with the power of yoga. Do not take a rest on the pilgrimage of remembrance. Let your remembrance be such that the person in front of you even forgets his body.
2. Do not doubt shrimat or use your own dictates. Take advice for every situation and follow it considering there to be benefit for you in it.
Blessing:May you be a master creator and use your subtle powers for the task of establishment.
Your creation is merging the expansion of science into its essence. They are creating extremely refined and powerful tools for destruction. In the same way, you become master creators and use your subtle powers for the task of establishment. You have the most elevated power: the power of elevated thoughts, the power of a pure attitude and the vision of love and co-operation. So, ignite the lamp of the hopes of your clan with these subtle powers and enable souls to reach their correct destination.
Slogan:Where there is cleanliness and sweetness, there is success in service.
''मीठे बच्चे - धीरज रखो अब तुम्हारे दु:ख के दिन पूरे हुए, सुख के दिन आ रहे हैं, निश्चय बुद्धि बच्चों की अवस्था धैर्यवत रहती है''
प्रश्नः-किसी भी हालत में मुरझाइस न आये इसकी सहज विधि क्या है?
उत्तर:-
ब्रह्मा बाप का सैम्पुल सदा सामने रखो। इतने ढेर बच्चों का बाप, कोई सपूत बच्चे हैं तो कोई कपूत, कोई सर्विस करते, कोई डिससर्विस, फिर भी बाबा कभी मुरझाते नहीं, घबराते नहीं फिर तुम बच्चे क्यों मुरझा जाते हो? तुम्हें तो किसी भी हालत में मुरझाना नहीं है।
गीत:-धीरज धर मनुआ........
ओम् शान्ति।
धीरज धर मनुआ मनुष्य को नहीं कहा जाता। मन-बुद्धि आत्मा में हैं। यह आत्मा को कहा जाता है। आत्मा को सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई कह न सके कि धैर्य धरो क्योंकि अधीर्य को ही धैर्य दिया जाता है। अगर ईश्वर सर्वव्यापी है तो उसको अधीर्य कहा नहीं जा सकता। मनुष्य इस समय सब अधीर्य हैं, दु:खी हैं इसलिए धैर्य देने के लिए, सुख देने के लिए बाप आये हैं। कहते हैं अब धैर्य धरो। बाप के महावाक्य सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं हैं, वास्तव में सारी दुनिया के लिए हैं। सारी दुनिया आहिस्ते-आहिस्ते सुनती रहेगी। जो सुनते हैं वह आते रहते हैं। सबका सद्गति दाता, दु:ख हर्ता एक बाप ही है। यह है ही दु:ख की दुनिया। बच्चे समझते हैं अभी हमारे मुक्ति-जीवनमुक्ति के दिन वा कलियुग पतित दुनिया से छुटकारा पाने के दिन हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह है, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सबको यह धैर्य नहीं है कि अभी हम इस दु:ख की दुनिया से छुटकारा पाए अपने सुखधाम जायेंगे। तुम बच्चों को भी स्थाई निश्चय रहना चाहिए। हमारे सुख के दिन अब आ रहे हैं, अगर श्रीमत पर चलते रहेंगे तो। इसमें आशीर्वाद वा कृपा आदि की बात नहीं है। बाप बैठ पढ़ाते हैं, सहज स्वराज्य योग सिखलाते हैं। पढ़ाई को नॉलेज भी कहा जाता है। तुम बच्चों को श्रेष्ठ मत दे रहे हैं। पहले-पहले तो अटल निश्चय चाहिए, फिर कभी वह नीचे-ऊपर नहीं हो सकते। गाते हैं परवाह थी पार ब्रह्म में रहने वाले की, वह पा लिया तो बाकी क्या चाहिए। यह तो निश्चय है - उस बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलना है। तो धैर्य पहले ही स्थाई मिल जाता है। यह है अविनाशी धैर्य। सर्टेन है हम श्रीमत पर श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ, श्रेष्ठाचारी राज्य भाग्य स्थापन कर रहे हैं, बिगर कोई लड़ाई-झगड़े। तो फिर मुरझाने की क्या दरकार। भल घर में 10-12 बच्चे हों। बाबा को तो देखो, हजारों-लाखों बच्चे हैं। कई बच्चे हंगामा भी मचाते हैं। कोई सपूत बच्चे हैं, कोई कपूत हैं, कोई सर्विस करते हैं, कोई तो डिस सर्विस भी करते हैं। फिर बाबा कभी घबराता है क्या? तो बच्चों को भी घबराना नहीं चाहिए। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। एक तरफ है हठयोग कर्म सन्यास। तुम्हारा है बेहद का सन्यास। यह है राजयोग। तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहते बाप से वर्सा पाना है। बहुत सहज है। अभी तो अपने सुखधाम के झाड़ दिखाई पड़ रहे हैं। परोक्ष-अपरोक्ष बुद्धि से जानते हैं। साक्षात्कार हो, न हो। पुरुषार्थ करते हैं भविष्य स्व-राजधानी के लिए। एम ऑब्जेक्ट सामने है ना। लक्ष्मी-नारायण का चित्र देख रहे हो ना। ऐसे नहीं कि हमको साक्षात्कार हो तो मानें। यह तो बुद्धि से समझने की बात है। इन आंखों से चित्र देख रहे हो ना। इन आंखों से फिर भी यही देखेंगे। राजयोग है ना। बुद्धि भी कहती है बरोबर चित्र रखे हैं फिर साक्षात्कार क्या करायें? श्रीकृष्ण सतयुग का मालिक है ना। शिव परमधाम में रहने वाला है। तुम लक्ष्मी-नारायण बन सकते हो, यह है तुम्हारी एम आबजेक्ट। तो आइने में देखो कि वह दैवीगुण हमारे में कहाँ तक आये हैं? बाप धैर्य तो बहुत अच्छा देते हैं।
अब पढ़ना है। राजाई के लिए ज्ञान चाहिए। वह बाप दे रहे हैं। आई.सी.एस. वालों को सबसे जास्ती नशा रहता है - हम बड़े से बड़ा ऑफीसर बनेंगे। यूँ तो धन्धे-व्यवहार में भी करोड़पति बन जाते हैं। बाबा फिर तुमको यह धन्धा सिखलाते हैं - सट्टा मट्टा का। तुम बाप को कौड़ियां देते हो, उनके एवज में 21 जन्मों के लिए बाबा तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। यह सौदागरी भी है तो पढ़ाई भी है। सिर्फ सौदागरी से काम नहीं, वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी का भी नॉलेज चाहिए ना। स्वदर्शन चक्रधारी भी बनना है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। स्वर्ग का मालिक तो प्रजा, नौकर-चाकर भी होगी। अभी भी सब कहते हैं ना - भारत हमारा देश है। परन्तु राजा और प्रजा में तो बहुत फ़र्क है। बाप कहते हैं जितना हो सके - ऊंच ते ऊंच पद पाओ, मात-पिता समान पुरुषार्थ करो। समझा जाता है सब तो गद्दी पर नहीं बैठेंगे। फिर भी रेस करानी पड़ती है। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार ही राजाई पायेंगे। जिनका जो पुरुषार्थ कल्प पहले वाला है वह साक्षी हो देखते हैं। फिर किसी का पुरुषार्थ ठण्डा देखते हैं तो तीव्र बनाया जाता है। तुम्हारा तो पुरुषार्थ बहुत ठण्डा दिखाई पड़ता है। तुम्हारा ममत्व लगा हुआ है। ट्रस्टी बनाया फिर ममत्व क्यों? तुम श्रीमत पर चलो। पूछते हैं - बाबा, मकान बनाऊ? हाँ, क्यों नहीं बनाओ, भल आराम से बैठो। बाकी थोड़े रोज़ यह छी-छी दुनिया है, भल आराम करो, बच्चों आदि की शादी कराओ। बाप कोई पैसा नहीं लेते हैं। वह तो दाता है। शिवबाबा ने इस समय बच्चों के रहने लिए यह मकान बनाया है। अपने रहने लिए तो यह शरीर निमित्त बनाया है, जीव आत्माओं को तो जरूर रहने के लिए मकान चाहिए। तो तुम बच्चों के लिए बना रहे हैं। बाबा भी इस मकान में बैठे हैं ना। यह तुम जानते हो - हमारा वह है आत्माओं का बाप और यह है शरीर का बाप। तुमको एडाप्ट किया है। तुम हमारे बच्चे हो। मम्मा-बाबा कहते हो ना, इसको गोद लेना कहा जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा को इतने बच्चे हैं तो जरूर गोद के ही बच्चे होंगे। तुम बच्चों को एडाप्ट करते हैं। सरस्वती भी बेटी है ना। यह है बड़ी गुह्य बातें समझने की। गीता-भागवत आदि तो तुम भी पढ़े हो, यह बाबा भी पढ़ा है। परन्तु अब तो श्रीमत मिलती है, ड्रामा अनुसार। जो कुछ कहा सो ड्रामा अनुसार। उसमें जरूर कल्याण ही होगा। नुकसान होता है, उसमें भी कल्याण ही है। हर बात में कल्याण है। शिवबाबा है ही कल्याणकारी। उनकी मत अच्छी है। अगर उस पर कोई शंका रही तो श्रीमत पर न चल अपनी मत पर चलते हैं, इससे धोखा खायेंगे। फिर शिवबाबा क्या करे। क़दम-क़दम पर राय पूछना है। सुप्रीम पण्डा तो बैठा है ना। बहुत बच्चे यह बात भूल जाते हैं क्योंकि योग में नहीं रहते हैं। योग अथवा याद को ही यात्रा कहा जाता है। याद नहीं करते तो समझें हम रेस्ट ले रहे हैं। यात्रा पर जाकर कोई रेस्ट लेते हैं। तुम भी अगर रेस्ट लेते हो, याद नहीं करते हो तो विकर्म भी विनाश नहीं होंगे और आगे भी नहीं बढ़ेंगे। याद नहीं करते तो नज़दीक नहीं जाते। आत्मा थक जाती है। बाप को भूल जाती है। बाप कहते हैं तुम यात्रा पर चल रहे हो। रात को तो तुम रेस्ट लेते ही हो। ऐसे नहीं कि रात को तुम नींद में हो तो यात्रा पर हो। नहीं, वह रेस्ट है। जब जागते हो तब यात्रा पर हो। नींद में कोई विकर्म विनाश नहीं होंगे। बाकी हाँ, दूसरे कोई विकर्म होते नहीं हैं। तो बाप सभी बातें समझाते हैं परन्तु कोई अमल में भी जब लाये। ढेर प्वाइन्ट बतलाते रहते हैं। बैरिस्टरी की प्वाइन्ट्स तब बुद्धि में आती हैं जब वह बैरिस्टरी पढ़ते हैं। डॉक्टरी वा इन्जीनियरिंग पढ़ते हैं फिर वह डॉक्टर अथवा इन्जीनियर आदि बनते हैं। जो जैसा कोर्स करते हैं, वैसा बनते हैं।
यहाँ तो एक ही कोर्स है। चलते चलो, तुम्हारे सिर पर जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा बहुत है। उनको विनाश करने का उपाय एक ही है - बाप को याद करना। नहीं तो पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। माला बनी हुई है ना। 9 रत्नों का भी गायन है। यह कहाँ से आये, सो मनुष्य नहीं जानते हैं। 8 रत्न हैं जो रुद्र की माला बनते हैं। तो पुरुषार्थ अच्छा करना चाहिए। स्टूडेन्ट्स अच्छा पढ़ते हैं तो रजिस्टर से माँ-बाप को भी पता लगता है। यहाँ तो बाप ही टीचर भी हैं तो वही जाने। तुम पढ़ते ही हो बाप के पास। रजिस्टर का भी उनको पता पड़ता है। तुम भी अपने रजिस्टर को समझ सकते हो - कहाँ तक हमारे में गुण हैं, मैं औरों को कहाँ तक आप समान बनाता हूँ? इतनी ताकत है जो कोई सामने देखे उनको शरीर भुला दें? कहा जाता है हिम्मते मर्दा मददे खुदा। बाप बहुत मदद देते हैं। तुम भी मदद देते हो योग की। बाप को चाहिए ही पवित्रता की मदद। सारी पतित दुनिया को पावन बनाना है योगबल से। जितना-जितना जो योग की मदद देंगे उतना बाबा खुश होंगे। यह बाबा के लिए मदद है वा अपने लिए? तुम जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। जितना याद करेंगे उतना मुझे पवित्रता की मदद करेंगे। मैं आया हूँ पतित को पावन बनाने, पावन दुनिया के लिए। पतित और पावन यहाँ बनते हैं। वह तो है ही निराकारी दुनिया। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। समझते नहीं कि पावन दुनिया किसको कहा जाता है। सीता को रावण की जेल से, दु:ख से छुड़ाया तो फिर सुख चाहिए। औरों को शान्ति बहुत मिलती है, सुख थोड़ा मिलता है। तुमको सुख भी बहुत मिलता है तो दु:ख भी बहुत मिलता है। पिछाड़ी में जो आत्मायें आती हैं थोड़ा पार्ट बजाए वापिस चली जाती हैं। एक-दो जन्म भी लेते हैं, थोड़ा समय आया यह गया। तुम्हारे तो 84 जन्मों की बात है। उनकी एक-दो जन्म की बात है। तुम 84 जन्मों को जानते हो, चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। वह थोड़ेही बन सकेंगे। उनके लिए यह ज्ञान नहीं है। यह ज्ञान तुम्हारे लिए है, जिन्होंने कल्प पहले भी ज्ञान लिया है। अब तुमको पुरुषार्थ करना है। पुरुषार्थ का समय अभी है और तुम्हारे लिए ही पुरुषार्थ की बात है। देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है, इतना सुख और कोई दे न सके।
यह अनादि ड्रामा बना हुआ है। सभी को तो हीरो-हीरोइन का पार्ट नहीं मिल सकता। किस्म-किस्म के मनुष्य हैं। उनमें भी अच्छे-बुरे अनेक प्रकार के हैं। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ देवी-देवता हैं। श्रेष्ठ उन्हों को ही कहा जाता है। वह तो सतयुग में ही होते हैं। उन्हों के चित्र भी हैं। परन्तु वह कैसे बने यह नहीं जानते हैं। कोई तो फिर कहते - कृष्ण हाज़िरा-हज़ूर है। भगवान् भी हाज़िरा-हज़ूर है। इन सब बातों को तुम बच्चे समझ गये हो। यह एम ऑब्जेक्ट बहुत अच्छी है - समझाने लिए। सबको निमंत्रण जरूर देना है। अखबार से सबको निमंत्रण मिल रहा है। अभी बाकी टाइम बहुत थोड़ा है। अब तक बच्चे यात्रा करते-करते थक जाते हैं तो बैठ जाते हैं। माया के तूफान सहन नहीं कर सकते हैं। युद्ध के मैदान में माया तो जरूर पकड़ेगी। रुसतम से रुसतम होकर लड़ेगी। ज़ोर से तूफान आयेंगे। फिर कहते हैं जब से ज्ञान में आया हूँ तो विघ्न बहुत पड़े हैं, धन्धे में भी घाटा हुआ है। बाबा कहते हैं ऐसे मत समझो - ज्ञान में आये हैं तब विघ्न पड़ते हैं। यह तो दुनिया में होता ही रहता है, इनसे डरना नहीं है। कभी चक्र की दशा, कभी राहू की, कभी किसकी दशा बैठती है। चलते-चलते फाँ हो जाते हैं। राहू की दशा कड़ी होती है। माया खा जाती है तो काले का काला बन जाते हैं। माया थप्पड़ लगाए एकदम काला मुँह कर देती है। माया की भी जीत होगी। सिर्फ बच्चों की जीत हो फिर तो झट राजधानी स्थापन हो जाए। उस्ताद को भूल जाते हैं तो माया थप्पड़ मारती है। ऐसे रूहानी साजन को सजनी भूल जाती है, यह भी वन्डर है ना! अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) योगबल से पतित दुनिया को पावन बनाने में बाप का मददगार बनना है। याद की यात्रा में रेस्ट नहीं लेनी है। ऐसी याद हो जो सामने वाला अपना शरीर भी भूल जाए।
2) श्रीमत में कभी भी शंका उठाकर अपनी मनमत नहीं चलानी है। हर बात में राय लेते उसमें अपना कल्याण समझकर चलना है।
वरदान:-अपनी सूक्ष्म शक्तियों को स्थापना के कार्य में लगाने वाले मास्टर रचयिता भव
जैसे आपकी रचना साइंस वाले विस्तार को सार में समा रहे हैं। अति सूक्ष्म और शक्तिशाली विनाश के साधन बना रहे हैं। ऐसे आप मास्टर रचयिता बन अपनी सूक्ष्म शक्तियाँ स्थापना के कार्य में लगाओ। आपके पास सबसे महान शक्ति है - श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति, शुभ वृत्ति की शक्ति, स्नेह और सहयोग की दृष्टि। तो इस सूक्ष्म शक्तियों द्वारा अपनी वंशावली की आशाओं के दीपक जलाए उन्हें यथार्थ मंजिल पर पहुँचाओ।
स्लोगन:-जहाँ स्वच्छता और मधुरता है वहाँ सेवा में सफलता है।
27/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, have patience. Your days of sorrow are now over and your days of happiness are about to come. The children’s intellects who have faith are patient.
Question:What is the easy way to prevent yourself from wilting under any circumstance?
Answer:Always keep the sample of Brahma Baba in front of you. He is the father of so many children. Some are worthy, some are unworthy, some do service and some do disservice , yet Baba never wilts or is ever afraid. So, why do you children wilt? You should not wilt under any circumstance.
Song:Have patience o mind. Your days of happiness are about to come.
Om Shanti
It is not human beings who are told “Have patience o mind” because the mind and the intellect are in the soul and so it is souls that are told this. No one, except the Supreme Father, the Supreme Soul, can tell souls to have patience, because patience is only given to those who are impatient. If God is omnipresent, He can’t be called impatient. At this time, all human beings are impatient and unhappy. It is the Father who has come to give you patience and happiness. He says: Now have patience. The Father’s versions are not just for you but they are, in fact, for the whole world. The whole world will gradually begin to hear. Those who hear will continue to come. Only the one Father is the Bestower of Salvation and the Remover of Sorrow. This is the world of sorrow anyway. You children understand that these are the days when you attain liberation and liberation-in-life, that is, these are the days when you are liberated from this iron-aged impure world. This is in your intellects, but, numberwise, according to the effort you make. Not everyone has the assurance that we are now to be liberated from this world of sorrow and go to our land of happiness. You children should also have the firm faith that your days of happiness are now about to come, but that is only if you continue to follow shrimat. There is no question of blessings or mercy etc. in this. The Father sits here and teaches you easy yoga for self -sovereignty. This study is also called knowledge. He is giving you children elevated directions. First and foremost, your faith has to be unshakeable so that it can never fluctuate. There is a song: “I wanted to meet the One who lives beyond in the brahm element. Now, having found Him, what more could I want?” You have the faith that you will receive your inheritance of heaven from that Father. So, from the beginning, you receive lasting patience. This is imperishable patience. It is certain that you are establishing the most elevated of all kingdoms. You are receiving the elevated fortune of the kingdom by following shrimat, without fighting or quarrelling. Even if there are ten or twelve children at home, what need is there to wilt? Look at Baba. He has thousands, hundreds of thousands, of children. Some children even create upheaval. Some are worthy children whereas others are unworthy. Some do service whereas others do disservice . Does Baba become afraid then? So neither should you children become afraid. You also have to live at home with your family. On that side is hatha yoga, the renunciation of karma. Yours is unlimited renunciation. This is Raja Yoga. You have to live at home with the family and claim the inheritance from the Father. It is very easy. You can now see the trees of your land of happiness. You recognise the visible and the invisible with your intellect, whether you have visions or not. You are making effort for your own kingdom of the future. Your aim and objective is in front of you. You can see the picture of Lakshmi and Narayan. It shouldn't be that you would only believe this if you had a vision. This is something to be understood with your intellect. You can see that picture with your eyes. You will then see the same things with your eyes. This is Raja Yoga. Your intellect also says: The pictures are here, and so what need is there to be granted visions? Shri Krishna is the master of the golden age, is he not? Shiva is the Resident of the supreme abode. You can become Lakshmi or Narayan. This is your aim and objective. Therefore, look in the mirror and see to what extent you have those divine virtues in you. The Father gives you a lot of patience. You now have to study. Knowledge is needed for the kingdom and the Father is giving that to you. Those who study for the Indian Civil Service have the greatest intoxication that they will then become senior officers. In fact, people become millionaires by doing business. Baba is now teaching you this business of bartering. You give shells to the Father and, in return, Baba makes you into the masters of heaven for 21 births. This is a business as well as a study. You aren't concerned with just business. You also need to have the knowledge of world history and geography. You also have to become a spinner of the discus of self-realisation. The more you study, the higher the status you will claim. Even the subjects, maids and servants will be the masters of heaven. Everyone now says that Bharat is their land. However, there is a lot of difference between kings and subjects. The Father says: As much as possible, claim the highest status of all. Make effort like the mother and father. It is understood that not everyone will be seated on the throne, but you still have to be inspired to race. The kingdom will be claimed numberwise, according to the efforts made. Baba, as the detached Observer, observes the same effort that each one makes as was made in the previous cycle. Then, when Baba sees that someone’s effort is a little slack, He inspires him or her to make it intense: Your effort appears to be very slack. You still have attachment. Once you are made a trustee, why is there still attachment? You simply have to follow shrimat. Some ask: Baba, should I have a house built? Yes, why not? Build it! You may live comfortably. This dirty world is only for a few more days; you may live comfortably. You may get your children married. The Father doesn't take any money from you. He is the Bestower. Shiv Baba has had this building built at this time for the children to live in. He has made this body the instrument for Him to live in. However, human beings definitely need buildings to stay in. So, Baba is having them built for you children. Baba is also sitting in this building. You know that that One is the Father of souls and that this one is the father of the bodies. He has adopted you: You are My children. You say "Mama and Baba". This means to be adopted by us. Prajapita Brahma has so many children and so they would surely be adopted children. He adopts you children. Saraswati too is his daughter. These are very incognito matters and have to be understood. You have studied the Gita and the Bhagawad etc. and this Baba has also studied them. However, now, according to the drama, you are receiving shrimat. Whatever is said is according to the drama. There would definitely be benefit in that. Even if there is any loss, there is benefit in that. There is benefit in everything. Shiv Baba is the Benefactor. His directions are good. If you doubt it, then, instead of following shrimat, you follow your own dictates and you become deceived. What can Shiv Baba do then? You have to ask for advice at every step. The Supreme Guide is sitting here. Many children forget this because they do not stay in yoga. Yoga or remembrance is called the pilgrimage. If you are not in remembrance, then you must understand that you are taking a rest. Some go on a pilgrimage and take a rest. If you too are taking a rest and do not stay in remembrance, your sins will not be absolved and you won't move forward. You can’t come closer if you don't stay in remembrance. The soul becomes tired and forgets the Father. The Father says: You are moving along on the pilgrimage. You take a rest at night anyway. It isn't that when you are a sleep at night, you are on the pilgrimage. No; that is a rest. You are on the pilgrimage when you are awake. Sins are not absolved when you are asleep, but, yes, no further sins are committed. So the Father explains everything, but someone should still put them into practice. He continues to tell you many points. The points of a barrister enter your intellect when you are studying to become a barrister. When you study to become a doctor or an engineer, you then become a doctor or an engineer. Whatever course someone takes, that is what he would become. Here, there is just the one course. Continue to move along. There is a big burden of the sins of many births on your head. There is only one way to have those sins absolved. You have to remember the Father. Otherwise, your status will be destroyed. The rosary has been created. There is also the memorial of the nine jewels. People don't know where it came from. The eight jewels are those who become the rosary of Rudra. So you should make good effort. When students study well at school, their parents become aware of that from their register. Here, the Father Himself is also the Teacher and so He would know. You are studying with the Father. He is also aware of your register. You can also understand from your register to what extent you have those virtues in you. To what extent am I making others the same as myself? Do you have sufficient power that you are able to make anyone who sees you forget the body? It is said: When the child has courage, the Father helps. The Father gives a lot of help. You also give the help of yoga. The Father only wants the help of purity. The whole impure world has to be purified with the power of yoga. The more help someone gives with yoga, the more pleased Baba will be. Is this help for the Father or for yourself? The more you study, the higher the status you claim. The more you stay in remembrance, the more you help Me with purity. I have come to make impure ones pure for the pure world. It is here that you become pure and impure. That is the incorporeal world. It is sung: O Purifier, come! They don't understand what the pure world is. Sita was liberated from the jail of Ravan and from sorrow. Therefore, there has to be happiness after that. Others receive a lot of peace and a little happiness. You receive a lot of happiness as well as a lot of sorrow. Souls who come at the end will play their small parts and then leave. They take one or two births; they just come for a short while and depart. For you, it is a matter of 84 births. For them, it is a matter of one or two births. You know your 84 births. By knowing the cycle, you become the kings who are rulers of the globe. They would not be able to become that. This knowledge is not for them. This knowledge is for those of you who took this knowledge in the previous cycle too. You now have to make effort. The time for making effort is now. The question of making effort only applies to you. The deity religion is one that gives a lot of happiness. No one else can give as much happiness. This eternal drama is predestined. Not everyone can receive the part of a hero or heroine. There are all types of human being. There are many types of good and bad people. The most elevated of all are the deities. They are the only ones who can be called elevated. They only exist in the golden age. There are also their pictures, but no one knows how they became those. Some say that Krishna is present everywhere and that God is present everywhere too. You children have now understood all of these things. This aim and objective is very good for you to explain. You definitely have to invite everyone. Everyone can receive an invitation in the newspapers. There is now very little time left. Even now, some children still become tired on the pilgrimage and so they sit down. They are unable to tolerate the storms of Maya. Maya will definitely catch them on the battlefield. She will become powerful with the powerful ones and fight them. Storms will come very forcefully. They would then say: There have been many obstacles from the time I came into knowledge. There is also loss in business now. Baba says: Don't think that the obstacles have come because you have come into knowledge. This continues to happen in the world. You mustn't be afraid of this. Sometimes, there is one type of omen and sometimes another type. Some collapse while moving along. The omens of Rahu are very strong. Maya eats you and you then become very ugly. Maya slaps you and makes your face completely dirty. Maya will also be victorious. If only the children were to become victorious, the kingdom would very soon be established. When you forget the Master (Teacher), Maya slaps you. The brides forget the spiritual Bridegroom. This too is a wonder. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now -found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become a helper of the Father in making the impure world pure with the power of yoga. Do not take a rest on the pilgrimage of remembrance. Let your remembrance be such that the person in front of you even forgets his body.
2. Do not doubt shrimat or use your own dictates. Take advice for every situation and follow it considering there to be benefit for you in it.
Blessing:May you be a master creator and use your subtle powers for the task of establishment.
Your creation is merging the expansion of science into its essence. They are creating extremely refined and powerful tools for destruction. In the same way, you become master creators and use your subtle powers for the task of establishment. You have the most elevated power: the power of elevated thoughts, the power of a pure attitude and the vision of love and co-operation. So, ignite the lamp of the hopes of your clan with these subtle powers and enable souls to reach their correct destination.
Slogan:Where there is cleanliness and sweetness, there is success in service.
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