Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 19th Oct 2018 )
19-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - बाप से सर्व सम्बन्ध रखो तो बन्धन ख़लास हो जायेंगे, माया बन्धन में बांधती और बाप बन्धनों से मुक्त कर देते हैं''
प्रश्नः-निर्बन्धन किसे कहा जाता है? निर्बन्धन बनने का उपाय क्या है?
उत्तर:-
निर्बन्धन अर्थात् अशरीरी। देह सहित देह का कोई भी सम्बन्ध बुद्धि को अपनी तरफ न खींचे। देह-अभिमान में ही बन्धन है। देही-अभिमानी बनो तो सब बन्धन समाप्त हो जायेंगे। जीते जी मर जाना ही निर्बन्धन बनना है। बुद्धि में रहे अब अन्त का समय है, नाटक पूरा हुआ, हम बाप के पास जाते हैं तो निर्बन्धन बन जायेंगे।
गीत:-जिसका साथी है भगवान ........
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अब इतने बच्चे हैं तो जरूर बेहद का बाप होगा। बाप समझाते हैं - कहते भी हैं निराकार शिवबाबा। ब्रह्मा को भी बाबा कहते हैं, विष्णु वा शंकर को बाबा नहीं कहेंगे। शिव को हमेशा बाबा कहते हैं। शिव का चित्र अलग, शंकर का चित्र अलग है। गीत भी है शिवाए नम:। फिर कहा जाता है तुम मात-पिता........ यह भी समझाना बहुत सहज है कि बरोबर निराकार शिव को ही बाप कहते हैं। वह है सभी आत्माओं का बाप। शंकर वा विष्णु निराकार तो नहीं हैं। शिव को निराकार कहेंगे। मन्दिरों में उन सबके चित्र हैं। भक्ति मार्ग में कितने चित्र हैं। ऊंच ते ऊंच चित्र दिखाते हैं शिवबाबा का, फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का चित्र दिखाते हैं। उनका भी रूप है। जगत अम्बा, जगत पिता का भी रूप है। लक्ष्मी-नारायण का भी साकारी रूप है। बाकी एक ही भगवान् है निराकार। परन्तु उनको सिर्फ गॉड कहने से मनुष्य मूँझते हैं। पूछो - गॉड तुम्हारा क्या लगता है, कहेंगे फादर। तो यह सिद्ध कर बतलाना है गॉड फादर है। फादर रचता है तो मदर भी चाहिए। मदर बिगर फादर कैसे सृष्टि रचेंगे। वह फादर कब आयेंगे? सब बुलाते हैं - हे पतितों को पावन बनाने वाले आओ। अभी तो सारी दुनिया पतित है। पतित हो तब तो आकर पावन बनायेंगे ना। इससे सिद्ध होता है बाप को पतित दुनिया में आना जरूर है। परन्तु ड्रामा अनुसार यह किसी को भी समझ में नहीं आयेगा। न समझें तब तो बाप आकर समझाये। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। भारत में ही गाया जाता है ज्ञान और भक्ति, फिर कहते हैं ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। रात में घोर अन्धियारा होता है। गाया भी जाता है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अंधेर विनाश। मनुष्यों में इतना तो अज्ञान है जो फादर को भी नहीं जानते। इन जैसा अज्ञान और कोई होता नहीं। परमपिता, ओ गॉड फादर अक्षर कहकर अगर उसको न जानें तो उन जैसा अज्ञान कोई नहीं। बच्चे बाबा कहें और फिर कहें हम उनके आक्यूपेशन, नाम, रूप आदि को नहीं जानते हैं तो उनको अनाड़ी कहा जाए ना। यही भारतवासियों की भूल है जो फादर कहते हुए फिर उनको जानते नहीं। गाते हैं - ओ गॉड फादर, आकर पतितों को पावन बनाओ, दु:ख से छुड़ाओ, दु:ख हरकर सुख दो। बाप एक ही बार आते हैं। यह तुम जानते हो नम्बरवार। कोई तो समझते नहीं कि हमको बाप से पूरा वर्सा लेना है।
बाप का पूरा परिचय नहीं इसलिए कहते हैं क्या करें, बन्धन है। जीते जी मरना आ जाए तो तुम्हारा बन्धन ख़लास हो जाए। मनुष्य अचानक मर जाते हैं तो बन्धन छूट जाते हैं। अभी तो सबके बन्धन छूटने वाले हैं। तुम्हें जीते जी निर्बन्धन अर्थात् अशरीरी बनना है। बाप कहते हैं इन शरीर के बन्धनों आदि को भूल जाओ। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। बाकी बन्धन तब लगता है जब तुम देह-अभिमानी बनते हो फिर कहते हो - कैसे छूटें? बाप कहते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो परन्तु बुद्धि में रहे - हमको वापिस जाना है। जैसे नाटक का जब अन्त होता है तो एक्टर्स नाटक से जैसे उपराम हो जाते हैं। पार्ट बजाते-बजाते बुद्धि में रहता है - बाकी थोड़ा टाइम है, यह पार्ट बजाकर फिर घर जायेंगे। तुमको भी यह बुद्धि में रखना है - अभी अन्त है, हम दैवी सम्बन्ध में जाते हैं। इस पुरानी दुनिया में रहते यह बुद्धि में रहना चाहिए कि हम बाप के पास जाते हैं। गाते भी हैं हम तुम पर बलिहार जायेंगे। जीते जी तुम्हारा बनेंगे। बाकी जो देह सहित देह के सम्बन्ध हैं उनको भूल हम आपके साथ ही सम्बन्ध रखेंगे। सम्बन्ध है तो याद करो, प्यार करो। बाप से अथवा अपने प्रीतम से बुद्धि का योग लगाओ। तो तुम पर जो जंक लगी है वह उतर जायेगी। योग तो गाया हुआ है ना। और सब जिस्मानी योग हैं - मामा, चाचा, काका, गुरू गोसाई आदि सबसे योग रखते हैं। बाप कहते हैं इन सबसे योग हटाए मुझ एक को याद करो। योग मुझ एक के साथ लगाओ। देह-अभिमान में नहीं आओ। देह से कर्म करते हुए भी यह निश्चय करो कि हम पार्ट बजा रहे हैं। इस पुरानी दुनिया का अब अन्त है, अभी हमको वापिस जाना है, देह सहित देह के सब सम्बन्धों से उपराम होना है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी है। अब तो बाप के पास जाना है। किसी को स्त्री का बन्धन है, किसी को पति का बन्धन है, किसी को कोई का बन्धन है। बाबा तो युक्तियां बहुत बतलाते हैं। बोल दो - हमको पवित्र बन भारत को पवित्र जरूर बनाना है। हम पवित्र बन तन-मन-धन से सेवा करते हैं। परन्तु पहले नष्टोमोहा चाहिए। मोह नष्ट हो तो गवर्मेन्ट को चिट्ठी लिखो, तो वह भी तुमको सहयोग देंगे। भगवानुवाच - काम महाशत्रु है, हम उन पर जीत पाकर पवित्र रहना चाहते हैं। बाप का फ़रमान है पवित्र बनो तो स्वर्ग का मालिक बनोगे। हमको विनाश और स्थापना का साक्षात्कार हुआ है, अभी पवित्र बनने में हमको यह विघ्न डालते हैं, मारते हैं। मैं तो भारत की सच्ची सेवा में हूँ। अब मुझे एशलम दो। परन्तु पक्का नष्टोमोहा चाहिए। सन्यासी तो घरबार छोड़ जाते हैं। यहाँ तो साथ रहते नष्टोमोहा बनना है। सन्यासियों का मार्ग अलग है। मनुष्य कहते भी हैं कि गृहस्थ व्यवहार में रहते हमको ऐसा ज्ञान दो जो हम राजा जनक मुआफिक मुक्ति, जीवन-मुक्ति को पा लें। वही तो अब तुमको मिलता है ना।
बाबा कहते हैं यह मेरी वन्नी (युगल) है, इनके मुख से मैं प्रजा रचता हूँ। प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा ही कहते हैं। शिवबाबा तुमको कहते हैं तुम मेरे पोत्रे हो। यह फिर कहते तुम मेरे बच्चे बन शिवबाबा के पोत्रे बनते हो। वर्सा उनसे मिलता है। स्वर्ग का वर्सा कोई मनुष्य दे न सके। निराकार ही देते हैं। तो भक्ति अलग चीज़ है और ज्ञान अलग है। भक्ति में तो वेद-शास्त्र पढ़ते, यज्ञ-तप, दान-पुण्य आदि करते बहुत खर्चा होता है, यह है सारी भक्ति की सामग्री। भक्ति शुरू होती है द्वापर से। देवी-देवता जब वाम मार्ग में आकर पतित बनते हैं तो फिर देवी-देवता नाम कहला न सके क्योंकि देवतायें तो सम्पूर्ण निर्विकारी थे। वाम मार्ग में जाने से विकारी बन जाते हैं। तो कहेंगे देवता धर्म वाले वाम मार्ग में आकर पतित बने हैं। पतित को देवता कह नहीं सकते, इसलिए फिर हिन्दू नाम रखा है। वेदों-शास्त्रों में आर्य नाम रख दिया है। आर्य नाम इस भारतखण्ड के लिए है। अभी यह अक्षर आया कहाँ से? सतयुग में तो आर्य अक्षर है नहीं। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत में देवी-देवता बड़े समझदार थे फिर वही देवता जब द्वापर में विकारी बनते हैं तो अन-आर्य कहा जाता है। एक ने आर्य कहा तो बस, नाम चल पड़ता। जैसे एक ने कृष्ण भगवानुवाच कहा अथवा लिखा तो बस, वह मानने लग पड़ते। गाते भल हैं शिवाए नम:, तुम मात-पिता........परन्तु वह कैसे मात-पिता बनते हैं, कब रचना रचते हैं यह नहीं जानते। जरूर सृष्टि के आदि में रचते होंगे। अब सृष्टि का आदि किसको कहा जाए? सतयुग को या संगमयुग को? सतयुग में तो बाप आते नहीं हैं। सतयुग आदि में तो आते हैं लक्ष्मी-नारायण। उन्हों को सतयुग का मालिक किसने बनाया? कलियुग में भी नहीं आते। यह है कल्प का संगमयुग। बाप कहते हैं मैं हर कल्प के संगमयुगे आता हूँ जबकि सब आत्मायें पतित बन जाती हैं अथवा सृष्टि पुरानी हो जाती है। ड्रामा का चक्र पूरा हो तब तो बाप आयेंगे ना। तुम बच्चों में बड़ी होशियारी चाहिए, धारणा चाहिए। अब कान्फ्रेन्स करते हैं कि वेद पढ़ने से फ़ायदा क्या होता है? वेद पढ़ना चाहिए तो क्यों? फैंसला कुछ भी कर नहीं सकेंगे। फिर वही कान्फ्रेन्स दूसरे वर्ष करेंगे। फैंसला करने बैठते हैं परन्तु होता कुछ भी नहीं है। विनाश की तैयारियां भी होती रहती हैं। बाम्ब्स बनाते रहते। अभी है ही कलियुग। यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो। तुम्हारी बातें ही निराली हैं। तुम जानते हो मनुष्य, मनुष्य को गति-सद्गति दे न सके। गाते भी हैं पतित-पावन, तो अपने को पतित क्यों नहीं समझते? यह है पतित दुनिया, विषय सागर। सब थोड़ेही खिवैया बन सकते हैं।
अभी तुम बच्चों में वह ताकत आई नहीं है जो पूरा समझा सको। अभी तुम इतना होशियार नहीं बने हो। योग भी नहीं है। अब तक छोटे बच्चों मुआफिक रोते रहते हैं। माया के तूफान में ठहर नहीं सकते हैं। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी बनते नहीं। बाबा तो बार-बार कहते हैं - अपने को आत्मा समझो। अभी हमको वापिस जाना है। सभी एक्टर्स जो अपना-अपना पार्ट बजाते हैं। सब शरीर छोड़कर वापिस घर जायेंगे। तुम साक्षी होकर देखो। देहधारी सम्बन्धों में, देह में मोह क्यों रखते हो? विदेही बनते नहीं। फिर विकर्म विनाश नहीं होते। बाप को याद करते रहें तो खुशी का पारा चढ़े। हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं फिर हम देवी-देवता बनेंगे तो अपार खुशी होनी चाहिए ना।
तुम जानते हो भारतवासी जब सुख में थे तो बाकी सब मनुष्य निर्वाणधाम, शान्तिधाम में थे। अभी तो कितने करोड़ों मनुष्य हैं। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो, जीवनमुक्ति पाने का। बाकी सब वापिस चले जायेंगे। पुरानी दुनिया बदल नई दुनिया बननी है। नया तो बाप ही बनायेगा। सैपलिंग लग रही है। यह है दैवी फूलों का सैपलिंग। कांटे से तुम फूल बनते हो। बगीचा पूरा तैयार हो जायेगा तो यह कांटों का जंगल ख़त्म हो जायेगा। इनको आग लगनी है। फिर हम फूलों के बगीचे में चले जायेंगे। क्यों न मम्मा-बाबा को फालो करें। गाया हुआ है फालो फादर-मदर। जानते हो यह मम्मा-बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। इन्होंने ही 84 जन्म बिताये हैं। तुम्हारा भी ऐसे ही है। इनका मुख्य पार्ट है। लिखा भी जाता है बाप आकर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी स्वराज्य फिर से स्थापन कर रहे हैं। कितना समझाया जाता है, तो भी देह-अभिमान टूटता नहीं है। मेरा पति, मेरा बच्चा..... अरे, यह तो पुरानी दुनिया के पुराने सम्बन्ध हैं ना। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। सभी देहधारियों से ममत्व मिट जाना बड़ा मुश्किल होता है। बाप समझ जाते हैं, इनका ममत्व मिटना मुश्किल दिखता है। शक्ल ही ऐसे देखने में आती है। कुमारियां अच्छी मददगार बनती हैं।
अच्छा, मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह सहित सबसे मोह निकाल विदेही बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है। हर एक्टर का पार्ट साक्षी हो देखना है। बन्धन-मुक्त बनना है।
2) इस पुरानी दुनिया से उपराम होना है, अपने आपसे बातें करनी है कि हमें तो अब वापस जाना है। अब पुरानी दुनिया के अन्त का समय है, हमारा पार्ट पूरा हुआ।
वरदान:-डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले सर्व बन्धनमुक्त भव
चलते फिरते यही स्मृति रहे कि मैं डबल लाइट स्थिति में रहने वाला फरिश्ता हूँ। फरिश्ता अर्थात् उड़ने वाला, लाइट चीज़ सदा ऊपर जाती है, नीचे नहीं आती। आधाकल्प तो नीचे रहे अब उड़ने का समय है इसलिए चेक करो कि कोई भी बोझ वा बंधन तो नहीं है? अपने कमजोर संस्कार का, व्यर्थ संकल्प का, देहभान का बन्धन वा बोझ बहुत समय चलता रहा तो अन्त में नीचे ले आयेगा, इसलिए बन्धनमुक्त बन डबल लाइट स्थिति में रहने का अभ्यास करो।
स्लोगन:-मन्सा सेवा वही कर सकते जिनके पास शुद्ध संकल्पों की शक्ति जमा है।
19/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, have all relationships with the Father and your bondages will end. Maya ties you in bondage whereas the Father liberates you from bondage.
Question:Who is said to be free from bondage? What is the way to become free from bondage?
Answer:
“Free from bondage” means bodiless. Bodies or bodily relationships should not pull your intellects to them. There is bondage in body consciousness. Become soul conscious and all bondages will end. To die alive is to become free from bondage. It should remain in your intellects that it is now the final period and that the play is about to end. We are going to our Father's home and so we will become free from bondage.
Song:Storms and hurricanes can do nothing to those whose Companion is God.
Om Shanti
The Father sits here and explains to you children. There are so many children here and so the Father would surely be unlimited. The Father explains to you: It is said: Incorporeal Shiv Baba. Brahma is also called Baba. Vishnu and Shankar would not be called Baba. Shiva is always called Baba. The image of Shiva is separate from the image of Shankar. The song says: Salutations to Shiva. It is then said: You are the Mother and Father. It is easy to explain that only incorporeal Shiva can truly be called the Father. He is the Father of all souls. Shankar and Vishnu are not incorporeal. Shiva is called incorporeal. There are the images of all of them in the temples. There are so many images on the path of devotion. The highest-on-high image is of Shiv Baba. Then, there are the images of Brahma, Vishnu and Shankar. They each have a form. Jagadamba and Jagadpita also have forms. Lakshmi and Narayan too have corporeal forms whereas God alone is incorporeal. However, by calling Him just ‘God’, people have become confused. When you ask them what their relationship with God is, they would say that He is the Father. Therefore, you have to prove that He is God, the Father. The Father is the Creator and so the Mother is also needed. How can the Father create the world without the Mother? When will that Father come? Everyone calls out: O Purifier of the impure, come! The whole world is now impure. It is only when it is impure that He would come and purify it. This proves that the Father definitely has to come into the impure world but, according to the drama, no one is able to understand this. It is only when they don't understand that the Father comes and explains. The Father sits here and explains to you children. Knowledge and devotion are only remembered in Bharat. Then they also speak of the day of Brahma and the night of Brahma. There is extreme darkness at night. It is remembered that when the Satguru gave the ointment of knowledge, all the darkness of ignorance was dispelled. Human beings have so much ignorance that they don't even know the Father. There is no other ignorance such as this. Even after saying, “Supreme Father! O God, the Father!", if they don't know Him, there is no greater ignorance than this. When children say "Baba" and then say that they don't know His occupation, name or form, they are called foolish, senseless ones. The mistake of the people of Bharat is that they call Him the Father and yet they don't know Him. They sing: O God, the Father, come and purify the impure! Liberate us from sorrow! Remove our sorrow and give us happiness! The Father only comes once. You know this, numberwise. Some don't understand that they are to claim their full inheritance from the Father. They don't have the full introduction of the Father and they therefore ask: What can I do? I have bondages. If you know how to die alive, your bondages will end. When a person suddenly dies, he is liberated from his bondages. Now, everyone's bondages are going to end. You have to become free from bondage, that is, bodiless while alive. The Father says: Forget the bondages of your body etc. Consider yourself to be a soul and remember Me, your Father. However, you feel it to be a bondage when you become body conscious. You then say: How can I become free? The Father says: You may live at home, but it should remain in your intellects that you have to return home. When a play is about to end, the actors become detached from the play. While playing their parts, their intellects are aware that a short time remains and that, after playing their parts, they will return home. You too have to keep it in your intellects that it is now the end. We are now going into divine relationships. While living in this old world, it should remain in your intellects that you are going to the Father. You sing: We will surrender ourselves to You. We will belong to You while we are alive. We will forget our bodies and all bodily relationships and have a relationship with You alone. Since you have that relationship, remember Him and love Him. Connect your intellects in yoga to the Father, your Beloved, and the rust you are covered with will be removed. Yoga has been remembered. All other yoga are physical; you have yoga with your maternal and paternal uncles and gurus etc. The Father says: Remove your yoga from all of them and remember Me alone. Have yoga with Me alone. Do not become body conscious. While acting through your bodies, have the faith that you are playing your parts. It is now the end of this old world and we now have to return home. You have to go beyond the body and all bodily relationships. Talk to yourselves in this way. You now have to go to the Father. Some have the bondage of a wife, some have the bondage of a husband and some have a bondage of someone else. Baba shows you many methods. Tell them: We have to become pure and definitely make Bharat pure. We become pure and serve through our bodies, minds and wealth. However, first of all, you have to become destroyers of attachment. If you are a destroyer of attachment, write a letter to the Government and they will also help you. Tell them: God speaks: Lust is the greatest enemy. We want to conquer it and become pure. The Father's orders are: Become pure and you will become the masters of heaven. We have had visions of destruction and establishment. They are now causing obstacles to our becoming pure and beat us. We are doing true service of Bharat. Now, give us asylum. However, you have to be a true destroyer of attachment. Sannyasis leave their homes and families. Here, you have to live with your families and become destroyers of attachment. The path of the sannyasis is separate. Human beings say: While we live at home with our families, give us such knowledge that we can attain liberation and liberation-in-life just as King Janak did. You are now receiving that. Baba says: This one is My wife and I create people through his mouth. He says this through the mouth of Prajapita Brahma. Shiv Baba says to you: You are My grandchildren. This one then says: You become my children and then become Shiv Baba's grandchildren. You receive the inheritance from Him. No human being can give you the inheritance of heaven. Only the Incorporeal gives you that. So, devotion is separate from knowledge. In devotion, they read the Vedas and scriptures, have sacrificial fires, do tapasya, make donations and perform charity. There is a lot of expense in that. All of that is the paraphernalia of the path of devotion. Devotion begins in the copper age. When deities go on to the path of sin and become impure, they can no longer have the name ‘deities’ because deities are completely viceless. When they go on to the path of sin, they become vicious. So, it would be said: Those of the deity religion became impure by going on to the path of sin. Impure ones cannot be called deities and this is why they are called Hindus. They have used the name ‘Arya’ (reformed ones) in the Vedas and scriptures. The name Arya refers to the land of Bharat. Now, where did that word come from? The word Arya doesn't exist in the golden age. They say: Three thousand years before Christ, the deities in Bharat were very sensible and then, when those same deities became vicious in the copper age, they were called un-Arya (unreformed ones). Someone said ‘Arya’ and the name continued, just as one person said or wrote “God Shri Krishna speaks” and everyone began to believe that. Although they sing, "Salutations to Shiva” and “You are the Mother and Father", they don’t know how He becomes the Mother and Father or when He creates creation. He must surely create it at the beginning of the world. When would be the beginning of the world? The golden age or the confluence age? The Father doesn't come in the golden age. Lakshmi and Narayan come at the beginning of the golden age. Who made them into the masters of the golden age? He doesn't even come in the iron age. This is the confluence age of the cycle. The Father says: I come at the confluence age of every cycle when all souls have become impure and the world has become old. The Father comes when the cycle of the drama comes to an end. You children have to be very clever and you also have to imbibe divine virtues. They are now holding a conference about the benefits of studying the Vedas and why one should study the Vedas. They won't be able to come to any solution and they will then have the same type of conference next year. They sit down to solve something, but nothing is solved. Preparations for destruction continue to be made. They also continue to manufacture bombs. It is now the iron age. Only you children know these things. The things you say are unique. You know that human beings cannot grant liberation or salvation to human beings. The Purifier is remembered, so why do they not consider themselves to be impure? This is the impure world, the ocean of poison. Not everyone can become the Boatman. You children have not yet received that power to be able to explain fully. You have not yet become that clever. You don't even have yoga. Even now, you continue to cry like little children. You are unable to tolerate the storms of Maya; there is a lot of body consciousness. You don't become soul conscious. Baba repeatedly tells you: Consider yourselves to be souls. We now have to return home. All the actors are playing their own parts; they will shed their bodies and return home. You just have to observe as detached observers. Why do you have attachment to bodily relationships and your bodies? You don't become bodiless, so your sins are not being absolved. If you continue to remember the Father, your mercury of happiness will rise. Shiv Baba is teaching us and then we will become deities and so there should be limitless happiness. You know that when the people of Bharat were in happiness, all the rest were in the land of nirvana, the land of peace. There are now so many millions of human beings. You are now making effort to attain liberation-in-life. All the rest will return home. The old world has to be made new. Only the Father would make it new. The sapling is being planted. This is the sapling of divine flowers. You are becoming flowers from thorns. When the garden is completely ready, this forest of thorns will be destroyed. It has to be set ablaze. We will then go to the garden of flowers. Why should you not follow Mama and Baba? It is remembered: Follow the Mother and Father. You know that Mama and Baba will become Lakshmi and Narayan. They are the ones who have taken 84 births. The same applies to you. Theirs parts are the main ones. It is written that the Father has come and is once again establishing the sun and moon dynasty sovereignties. It is explained to you so much and yet your body consciousness doesn't break: "My husband, my child" Ah, but they are old relationships of the old world. "Mine is one Shiv Baba and none other." It is very difficult to finish your attachment to all bodily beings. The Father understands when it appears to be very difficult for someone's attachment to break. His or her face is seen to be like that. Kumaris become very good helpers. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Remove your attachment from everything including your body and make full effort to become bodiless. Observe as a detached observer the part of every actor. Become free from bondage.
2. Go beyond this old world. Talk to yourself: I now have to return home. It is now the end of the old world. My part has now come to an end.
Blessing:May you become free from all bondages and experience the flying stage with the awareness of being double light.
While walking and moving around have the awareness: I am an angel stable in the double-light stage. An angel means one who flies. Something that is light remains constantly up above; it doesn’t come down. For half the cycle, you have stayed down and now it is time to fly and so, check: Do I have any burdens or bondages? If a bondage or burden of your weak sanskars, waste thoughts and body consciousness continues for a long time, it will bring you down at the end. Therefore, become free from bondage and practise staying in the double-light stage.
Slogan:Only those who have accumulated the power of pure thoughts can serve through their minds.
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