Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 1st Oct 2018 | 113370 | 2018-11-13 01:33:45 | |
2 | Murali 02- Oct 2018 | 132948 | 2018-11-13 01:33:45 | |
3 | Murali 03-Oct-2018 | 125177 | 2018-11-13 01:33:45 | |
4 | Murali 04-Oct-2018 | 118934 | 2018-11-13 01:33:45 | |
5 | Murali 05-Oct-2018 | 133374 | 2018-11-13 01:33:45 | |
6 | Murali 06-Oct-2018 | 133043 | 2018-11-13 01:33:45 | |
7 | Murali 07-Oct-2018 | 135426 | 2018-11-13 01:33:45 | |
8 | Murali 08-Oct-2018 | 118475 | 2018-11-13 01:33:45 | |
9 | Murali 09-Oct-2018 | 113426 | 2018-11-13 01:33:46 | |
10 | Murali 10-Oct-2018 | 123819 | 2018-11-13 01:33:46 | |
11 | Murali 11-Oct-2018 | 133485 | 2018-11-13 01:33:46 | |
12 | Murali 12th Oct 2018 | 12264 | 2018-11-13 01:33:46 | |
13 | Murali 13th Oct 2018 | 120124 | 2018-11-13 01:33:46 | |
14 | Murali 14th Oct 2018 | 132308 | 2018-11-13 01:33:46 | |
15 | Murali 15th Oct 2018 | 124161 | 2018-11-13 01:33:46 | |
16 | Murali 16th Oct 2018 | 128293 | 2018-11-13 01:33:46 | |
17 | Murali 17th Oct 2018 | 120298 | 2018-11-13 01:33:46 | |
18 | Murali 18th Oct 2018 | 118916 | 2018-11-13 01:33:46 | |
19 | Murali 19th Oct 2018 | 117510 | 2018-11-13 01:33:46 | |
20 | Murali 20th Oct 2018 | 117518 | 2018-11-13 01:33:46 | |
21 | Murali 21st Oct 2018 | 130603 | 2018-11-13 01:33:46 | |
22 | Murali 22nd Oct 2018 | 135192 | 2018-11-13 01:33:46 | |
23 | Murali 23rd Oct 2018 | 113654 | 2018-11-13 01:33:46 | |
24 | Murali 24th Oct 2018 | 128826 | 2018-11-13 01:33:46 | |
25 | Murali 25th Oct 2018 | 124802 | 2018-11-13 01:33:46 | |
26 | Murali 26th Oct 2018 | 117905 | 2018-11-13 01:33:46 | |
27 | Murali 27th Oct 2018 | 125168 | 2018-11-13 01:33:46 | |
28 | Murali 28th Oct 2018 | 105833 | 2018-11-13 01:33:46 | |
29 | Murali 29th Oct 2018 | 124953 | 2018-11-13 01:33:46 | |
30 | Murali 30th Oct 2018 | 235865 | 2018-11-13 01:33:46 |
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Details ( Page:- Murali 17th Oct 2018 )
17-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - गृहस्थ व्यवहार में रहते सबसे तोड़ निभाना है, ऩफरत नहीं करनी है लेकिन कमल फूल के समान पवित्र जरूर बनना है''
प्रश्नः-तुम्हारी विजय का डंका कब बजेगा? वाह-वाह कैसे निकलेगी?
उत्तर:-अन्त समय जब तुम बच्चों पर माया की ग्रहचारी बैठना बन्द हो जायेगी, सदा लाइन क्लीयर रहेगी तब वाह-वाह निकलेगी, विजय का डंका बजेगा। अभी तो बच्चों पर ग्रहचारी बैठ जाती है। विघ्न पड़ते रहते हैं। 3 पैर पृथ्वी के भी सेवा के लिए मुश्किल मिलते हैं लेकिन वह भी समय आयेगा जब तुम बच्चे सारे विश्व के मालिक होंगे।
गीत:-धीरज धर मनुवा ........... ओम् शान्ति।
बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं कि अभी पुराना नाटक पूरा हुआ है। दु:ख के दिन बाकी कुछ घड़ियां हैं और फिर सदा सुख ही सुख होगा। जब सुख का पता पड़ता है तो समझा जाता है यह दु:खधाम है, वास्ट डिफरेन्ट है। अभी सुख के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। समझते हो यह दु:ख का पुराना नाटक पूरा हुआ। सुख के लिए अब बापदादा की श्रीमत पर चल रहे हैं। कोई को भी समझाना बहुत सहज है। अभी बाबा के पास जाना है। बाबा लेने लिए आया है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र हो रहना है। तोड़ जरूर निभाना है। अगर तोड़ नहीं निभाते हो तो जैसे सन्यासियों मिसल हो जाते। वह तोड़ नहीं निभाते हैं तो उनको निवृत्ति मार्ग, हठयोग कहा जाता है। सन्यासियों द्वारा जो सिखलाया जाता है वह है हठयोग। हम राजयोग सीखते हैं, जो भगवान् सिखलाते हैं। भारत का धर्म शास्त्र है ही गीता। दूसरों का धर्म शास्त्र क्या है उनसे अपना कोई तैलुक नहीं। सन्यासी कोई प्रवृत्ति मार्ग वाले नहीं हैं, उन्हों का है हठयोग। घरबार छोड़ जंगल में बैठना, उनको जन्म बाई जन्म सन्यास करना पड़ता है। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बार सन्यास करते हो फिर 21 जन्म उसकी प्रालब्ध पाते हो। उनका है हद का सन्यास और हठयोग, तुम्हारा है बेहद का सन्यास और राजयोग। वह तो गृहस्थ व्यवहार छोड़ देते हैं। राजयोग का तो बहुत गायन है। भगवान् ने राजयोग सिखलाया तो भगवान् जरूर ऊंच ते ऊंच को ही कहेंगे। श्रीकृष्ण तो भगवान हो न सके। बेहद का बाप है ही वह निराकार। बेहद की बादशाही वही दे सकते हैं। यहाँ गृहस्थ व्यवहार से ऩफरत नहीं की जाती। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। पतित-पावन किसी सन्यासी को नहीं कहा जाता। सन्यासी खुद भी गाते हैं पतित-पावन........ उनको याद करते हैं, वह भी पावन दुनिया चाहते हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि वह दुनिया ही एक और है। जबकि वह गृहस्थ व्यवहार में ही नहीं हैं तो देवताओं को भी नहीं मानेंगे। वह कभी राजयोग सिखला न सकें। न बाप कभी हठयोग सिखला सकते, न सन्यासी कभी राजयोग सिखला सकते। यह समझने की बात है।
अभी देहली में वर्ल्ड कान्फ्रेंस होती है, उनको समझाना है, लिखत में सभी को देना है। वहाँ तो मतभेद हो जाता है। लिखत में होगा तो सभी समझ जायेंगे इन्हों का उद्देश्य क्या है।
अभी तुम समझते हो हम हैं ब्राह्मण कुल के, हम शूद्र कुल के मेम्बर कैसे बन सकते हैं वा विकारी कुल में हम अपने को कैसे रजिस्टर्ड कर सकते हैं, इसलिए ना कर देते। हम हैं आस्तिक, वह हैं नास्तिक। वह हैं ईश्वर को न मानने वाले, हम हैं ईश्वर से योग रखने वाले। मतभेद हो जाता है। समझाया जाता है जो बाप को नहीं जानते वह नास्तिक हैं। तो बाप ही आकरके आस्तिक बनायेंगे। बाप का बनने से बाप का वर्सा मिल जाता है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। पहले-पहले तो बुद्धि में यह बिठाना है कि गीता का भगवान् परमपिता परमात्मा है। उसने ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन किया। भारत का देवी-देवता धर्म ही मुख्य है। भारत खण्ड का कोई तो धर्म चाहिए ना। अपने धर्म को भूल गये हैं। यह भी तुम जानते हो कि ड्रामानुसार भारतवासियों को अपना धर्म भूल जाना है तब तो फिर बाप आ करके स्थापन करे। नहीं तो फिर बाप आये कैसे? कहते हैं जब-जब देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है तब मैं आता हूँ। प्राय:लोप जरूर होना ही है। कहते हैं ना बैल की एक टांग टूट गई है, बाकी 3 टांग पर खड़ा है। तो मुख्य हैं ही 4 धर्म। अभी देवता धर्म की टांग टूट पड़ी है, यानी वह धर्म गुम हो गया है इसलिए बड़ के झाड़ का मिसाल देते हैं कि इसका फाउन्डेशन सड़ गया है। बाकी टाल-टालियाँ कितनी खड़ी हैं। तो इनमें भी फाउन्डेशन देवता धर्म है ही नहीं। बाकी सारी दुनिया में मठ-पंथ आदि कितने हैं! तुम्हारी बुद्धि में अभी सारी रोशनी है। बाप कहते हैं तुम बच्चे इस ड्रामा को जान गये हो। अब यह सारा झाड़ पुराना हो गया है। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आना है। चक्र को फिरना जरूर है। बुद्धि में यह रखना है - अब नाटक पूरा हुआ है, हम जा रहे हैं। चलते-फिरते उठते-बैठते भी याद रहे - अब हमको वापिस जाना है। मन्मनाभव, मध्याजी भव का यही अर्थ है। कोई भी बड़ी सभा में भाषण आदि करना है तो यही समझाना है - परमपिता परमात्मा फिर से कहते हैं कि हे बच्चे, देह सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप ख़त्म होंगे। मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बन मुझे याद करो, पवित्र रहो, नॉलेज को धारण करो। अभी सब दुर्गति में हैं। सतयुग में देवतायें सद्गति में थे। फिर बाप ही आकर सद्गति करते हैं। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण........ यह हैं सद्गति के लक्षण। यह कौन देते हैं? बाप। उनके फिर लक्षण क्या हैं? वह ज्ञान का सागर है, आनन्द का सागर है। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसे नहीं कि सब एक ही हैं। एक बाप के बच्चे सभी आत्मायें हैं। प्रजापिता के ही औलाद होते हैं। अब नई रचना रची जाती है। प्रजापिता की औलाद तो सब हैं परन्तु वे लोग इन बातों को जानते नहीं। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंच। भारत के ही वर्ण गाये जाते हैं। 84 जन्म लेने में इन वर्णों से पास करना होता है। ब्राह्मण वर्ण है ही संगमयुग पर।
तुम बच्चे अभी स्वीट साइलेन्स में रहते हो। यह साइलेन्स सबसे अच्छी है। वास्तव में शान्ति का हार तो गले में पड़ा हुआ है। चाहते तो सब हैं शान्ति घर में जायें। परन्तु यह रास्ता कौन बताये? शान्ति के सागर के सिवाए तो कोई बता न सके। टाइटिल अच्छा दिया हुआ है - शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर। श्रीकृष्ण तो स्वर्ग का प्रिन्स है। वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। कितना रात-दिन का फ़र्क है। कृष्ण को सृष्टि का बीज कह नहीं सकते। सर्वव्यापी का ज्ञान तो ठहर न सके। बाप की महिमा अपनी है। वह सदैव पूज्य है, कभी पुजारी नहीं बनता। ऊपर से पहले जो आते हैं वह पूज्य से पुजारी बनते हैं। प्वाइन्ट्स तो ढेर समझाई जाती हैं। एग्जीवीशन में कितने आते हैं, परन्तु कोटों में कोई ही निकलते हैं क्योंकि मंज़िल बड़ी भारी है। प्रजा तो ढेर बनती रहेगी। माला में आने वाले दाने कोटों में कोई ही निकलते हैं। नारद का भी मिसाल है, उनको कहा तुम अपनी शक्ल देखो - लक्ष्मी को वरने लायक हो? प्रजा तो बहुत बननी है। राजा फिर भी राजा है। एक-एक राजा को लाखों प्रजा रहती है। पुरुषार्थ तो ऊंच करना चाहिए। राजाओं में भी कोई बड़ा राजा, कोई छोटा राजा है। भारत में कितने राजायें थे! सतयुग में भी बहुत महाराजायें होते हैं। यह सतयुग से लेकर चला आया है। महाराजाओं को बहुत प्रापर्टी होती है, राजाओं को कम। यह है श्री लक्ष्मी-नारायण बनने की नॉलेज। उसके लिए ही पुरुषार्थ चलता है। पूछते हैं लक्ष्मी-नारायण का पद पायेंगे वा राम सीता का? तो कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण का ही पद पायेंगे, माँ-बाप से पूरा वर्सा लेंगे। यह तो वन्डरफुल बातें हैं ना, और कोई जगह यह बातें हैं नहीं, न कोई शास्त्रों में हैं। अब तुम्हारी बुद्धि का ताला खुल गया है। बाप समझाते हैं चलते-फिरते ऐसे समझो हम एक्टर्स हैं, अब हमको वापिस जाना है। यह याद रहे, इनको ही मन्मनाभव, मध्याजी भव कहा जाता है। बाप घड़ी-घड़ी याद दिलाते हैं - मैं तुमको वापिस ले जाने आया हूँ। यह है रूहानी यात्रा। यह यात्रा बाप के सिवाए कोई करा न सके। भारत की महिमा भी बहुत करनी है। यह भारत होलीएस्ट लैण्ड है। सर्व का दु:ख हर्ता और सुख कर्ता, सबका सद्गति दाता एक ही बाप है। भारत उनका बर्थ प्लेस है। वह बाप सबका लिबरेटर है। उनका यहाँ (भारत में) बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। भारतवासी भल शिव के मन्दिर में जाते हैं परन्तु उनको पता नहीं है। गांधी को जानते हैं, समझते हैं वह बहुत अच्छा था इसलिए जाकर उन पर फूल आदि चढ़ाते हैं, लाखों खर्च करते हैं। अब इस समय है ही उन्हों का राज्य। जो चाहे सो कर सकते हैं। यह तो बाप बैठ गुप्त धर्म की स्थापना करते हैं, यह राज्य ही अलग है। भारत में पहले-पहले देवताओं का राज्य था। दिखाते हैं असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी। परन्तु ऐसी बातें तो हैं नहीं। यहाँ तो युद्ध के मैदान में माया पर जीत पाई जाती है, माया पर जीत तो जरूर सर्वशक्तिमान ही पहनायेंगे। कृष्ण को सर्वशक्तिमान नहीं कहा जाता। बाबा ही रावण राज्य से छुड़ाकर रामराज्य की स्थापना करा रहे हैं। बाकी वहाँ लड़ाई आदि की बात होती नहीं। अभी देखेंगे तो सृष्टि में सर्वशक्तिमान इस समय क्रिश्चियन लोग हैं। वह चाहें तो सब पर जीत पा सकते हैं परन्तु वह विश्व के मालिक बनें, यह कायदा नहीं। इस राज़ को तुम ही जानते हो। इस समय सर्वशक्तिवान राजधानी क्रिश्चियन की है। नहीं तो उन्हों की संख्या कम होनी चाहिए क्योंकि लास्ट में आये हैं। परन्तु 3 धर्मों में यह धर्म सबसे तीखा है। सबको हाथकर बैठे हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। इनके द्वारा ही फिर हमको राजधानी मिलनी है। कहानी भी है 2 बिल्ले लड़े, मक्खन बीच में तीसरे को मिल जाता है। तो वह आपस में लड़ते हैं, मक्खन बीच में भारतवासियों को ही मिलना है। कहानी तो पाई पैसे की है, अर्थ कितना बड़ा है। मनुष्य कितने बेसमझ हैं। एक्टर होते हुए भी ड्रामा को नहीं जानते, बेसमझ हो पड़े हैं। समझते भी गरीब हैं। साहूकार लोग कुछ भी नहीं समझते। गरीब निवाज़ पतित-पावन बाप गाया हुआ है। अब प्रैक्टिकल में पार्ट बजा रहे हैं। बड़ी-बड़ी सभाओं में तुमको समझाना है। विवेक कहता है कि धीरे-धीरे वाह-वाह निकलेगी, लास्ट मूवमेंट में डंका बजना है। अभी तो बच्चों पर ग्रहचारी बैठती है। लाइन क्लीयर नहीं। विघ्न पड़ते रहते हैं। यह भी ड्रामा अनुसार पड़ते रहेंगे। जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे। अभी का यह गायन है। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि वही फिर प्रैक्टिकल में विश्व के मालिक बनें। तुम बच्चे अब जानते हो, इसमें अफसोस नहीं किया जाता। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। ड्रामा के पट्टे पर खड़ा रहना चाहिए, हिलना नहीं चाहिए। अब नाटक पूरा होता है, चलते हैं सुखधाम। पढ़ाई ऐसी पढ़नी है जो ऊंच पद पा लेवें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) चलते-फिरते अपने को एक्टर समझना है, ड्रामा के पट्टे पर अचल रहना है। बुद्धि में रहे कि अभी हम वापस घर जाते हैं, हम यात्रा पर हैं।
2) सद्गति के सर्व लक्षण स्वयं में धारण करने हैं। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनना है।
वरदान:-सहयोग की शुभ भावना द्वारा रूहानी वायुमण्डल बनाने वाले मास्टर दाता भव
जैसे प्रकृति अपने वायुमण्डल के प्रभाव का अनुभव कराती है, कभी गर्मी, कभी सर्दी..ऐसे आप प्रकृतिजीत सदा सहयोगी, सहजयोगी आत्मायें अपनी शुभ भावनाओं द्वारा रूहानी वायुमण्डल बनाने में सहयोगी बनो। वह ऐसा है वा ऐसा करता है, यह नहीं सोचो। कैसा भी वायुमण्डल है, व्यक्ति है, मुझे सहयोग देना है। दाता के बच्चे सदा देते हैं। तो चाहे मन्सा से सहयोगी बनो, चाहे वाचा से, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क के द्वारा लेकिन लक्ष्य हो सहयोगी जरूर बनना है।
स्लोगन:-इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति द्वारा सर्व की इच्छाओं को पूर्ण करना ही कामधेनु बनना है।
17/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, while living at home with your families, fulfil your responsibilities to everyone. You should not dislike anyone, but you definitely do have to become as pure as a lotus flower.
Question:When will the bells of victory chime? When will you be praised?
Answer:At the end, when the bad omens of Maya stop influencing you, when your line is constantly clear, the bells of victory will then chime and you children will be praised. As yet, you children are still experiencing the bad omens of Maya and obstacles continue to come. You find it difficult to find even three feet of land to do service. However, the time will come when you children will be the masters of the whole world.
Song:Be patient, o mind! Your days of happiness are about to come!
Om Shanti
Children understand, numberwise, according to the effort they make, that this old play is now ending. Just a few moments of sorrow still remain and there will then be happiness and only happiness. When you know about happiness, you can understand that this is the land of sorrow. There is a vast difference. You now make effort for happiness. You understand that this old play of sorrow is ending. You now follow BapDada’s shrimat to attain happiness. It is very easy to explain to anyone. You now have to return home with Baba. Baba has come to take you back with Him. Remain as pure as a lotus flower while living at home with your families. You definitely have to fulfil your household responsibilities. If you do not fulfil your responsibilities you would be like sannyasis. Because they do not fulfil their household responsibilities, they are called those who belong to the path of isolation, those who practise hatha yoga. Whatever is taught by sannyasis is called hatha yoga, whereas you are studying Raja Yoga, which is taught by God. The religious scripture of Bharat is the Gita. You are not concerned with the religious scriptures of others. Sannyasis do not belong to the household path. Their path is hatha yoga. They abandon their families and go and live in the forests, and so they have to take birth as renunciates for birth after birth, whereas you live at home in your households and renounce everything for just one birth and you receive the reward of that for 21 births. Their renunciation is limited and they practise hatha yoga. Your renunciation is unlimited and you practise Raja Yoga. They renounce their households and businesses. Raja Yoga is praised a great deal. God taught Raja Yoga, and so He must surely be called the Highest on High. Shri Krishna cannot be God. The unlimited Father is the incorporeal One. Only He can give you the unlimited kingdom. Here, you don’t have dislike for family life. The Father says: In this last birth, remain pure while living at home with your families. No sannyasi can be called the Purifier. Sannyasis themselves call out: O Purifier! They remember that One. They also want a pure world, but they don’t know that that world is completely different. Since they don’t live in a household, they don’t believe in the deities. They cannot teach Raja Yoga. Neither does the Father teach hatha yoga nor do sannyasis teach Raja Yoga. This matter has to be understood. A world conference is going to be held in Delhi. Explain to them and give it to all of them in writing. There, there are many conflicting ideas. When you put it in writing, everyone will understand what your aim is. You understand that we are now part of the elevated Brahmin clan. How could we become members of the shudra clan or how could we register ourselves in a vicious clan? This is why we refuse to register. We are theists and they are atheists. They are those who don’t believe in God, whereas we are those who have yoga with God. Therefore, there is a conflict of ideas. It has been explained that those who do not know the Father are atheists. Therefore, only the Father can come and make them into theists. By belonging to the Father, you receive the inheritance from Him. This is a very deep matter. First of all, you have to instil in their intellects that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the God of the Gita. He is the One who established the original eternal deity religion. The deity religion is the main religion of Bharat. The land of Bharat has to have a religion. They have forgotten their religion. You also understand that, according to the drama, the people of Bharat had to forget their religion so that the Father could then come and establish it again. Otherwise, how could the Father come? He says: I come when the deity religion has disappeared. It definitely has to disappear. It is said that one leg of the bull that supports the world is broken and that it is standing on three legs. So, there are four main religions. The leg of the deity religion is now broken, that is, that religion has disappeared. This is why the example of the banyan tree is given: although its foundation has rotted away, its many branches and twigs still remain. So, here, too, the foundation of the deity religion no longer exists but there are many sects and cults all over the world. There is now total light in your intellect. The Father says: You children have now come to know this drama. This whole tree has now become old. The golden age will definitely come after the iron age; the cycle definitely has to turn. You have to keep it in your intellects that the play is now over and that we are to return home. As you walk, as you move around, remember: We now have to return home. This is the real meaning of “Manmanabhav and Madhyajibhav”. If you have to give a lecture to a large audience, explain that the Supreme Father, the Supreme Soul, is once again saying: O children, renounce the consciousness of your bodies and all bodily religions and consider yourselves to be souls; remember the Father and all your sins will finish. I am teaching you Raja Yoga. While living in your households, remain like a lotus flower and remember Me. Remain pure and imbibe this knowledge. Everyone is now degraded. In the golden age, the deities were in salvation. The Father comes again and grants salvation. The qualities of salvation are 16 celestial degrees completely pure and full of all divine virtues. Who gives you these qualities? The Father. What then are His qualities? He is the Ocean of Knowledge, the Ocean of Bliss. His praise is completely separate. Not everyone is the same. All souls are the children of the one Father. There are also the children of Prajapita Brahma. The new creation is now being created. All are the children of the Father of Humanity. However, those people don’t understand these things. The Brahmin caste is the highest of all. The castes of Bharat have been remembered. While taking 84 births you have to pass through these clan. The Brahmin clan exists at the confluence age. You children now remain in sweet silence. This silence is the best of all. In fact, the necklace of peace is around your neck. Everyone wants to go to the home of peace, but who can show them the way? No one, except the Ocean of Peace, can show you the way. He has been given good titles: Ocean of Peace, Ocean of Knowledge. Shri Krishna is the prince of heaven. Baba is the Seed of the human world tree; there is the difference of day and night. Krishna cannot be called the Seed of the human world tree. This proves that the knowledge of omnipresence is not valid. The Father has His own praise. He is eternally worthy of worship. He never becomes a worshipper. Those who come from up above first are the ones who become worshippers from being worthy of worship. Many points are explained to you. So many come to the exhibitions, but only a handful out of multimillions emerge, because the destination is very high. Countless subjects will continue to be created. Out of multimillions, only a handful emerge who become the beads of the rosary. There is the example of Narad. He was told to look at his face to see if he was worthy of claiming Lakshmi as his bride. Many subjects will be created, but a king is still a king! One king has hundreds of thousands of subjects. You have to make elevated effort. Among the kings as well, some are great kings and some are not as great. There were so many kings in Bharat. Even in the golden age there are many maharajas. This has continued since the beginning of the golden age. The maharajas have many properties and the kings have fewer. This is the knowledge to become Shri Lakshmi and Narayan. It is for this that you continue to make effort. When you are asked, “Will you claim the status of Lakshmi and Narayan or the status of Rama and Sita?”, you reply, “We will only claim the status of Lakshmi and Narayan. We will claim our full inheritance from the Mother and Father.” These are such wonderful matters. Such matters do not arise anywhere else, nor are they written in the scriptures. The locks on your intellects have now opened. The Father explains: As you walk and move around, maintain the consciousness of being actors and that you have to return home. To remember this is called being “Manmanabhav and Madhyajibhav”. The Father reminds you again and again: I have come to take you back home. This is your spiritual pilgrimage. No one except the Father can take you on this pilgrimage. You have to praise Bharat a great deal. This Bharat is the holiest land. Only the one Father is the Remover of Sorrow, the Bestower of Happiness and the Bestower of Salvation for all. Bharat is His birthplace. That Father is the Liberator of all. This is His most elevated pilgrimage place. Although people of Bharat go to a Shiva Temple, they do not know Him. They know Gandhi and believe that he was very good; this is why they go and offer him flowers etc. They spend hundreds of thousands of rupees on that. It is now their government, and so they can do whatever they want. The Father sits here and establishes this religion in an incognito way. This kingdom is now completely separate. In Bharat, in the beginning, it was the kingdom of deities. They show a battle taking place between the deities and the devils, but nothing like that happened. It is here, on the battlefield, that you conquer Maya. Surely, only the Almighty Authority can enable you to conquer Maya. Krishna cannot be called the Almighty Authority. Only Baba can liberate you from the kingdom of Ravan and establish the kingdom of Rama. However, there is no question of a battle etc. there. If you look around in the world, it is the Christians who are now ‘almighty authorities’. If they wanted to, they could conquer everyone. However, it is not the law for them to become the masters of the world. Only you understand this secret. At this time the kingdom of Christians is the most powerful authority. In fact, their population should be the least because they came last. However, out of the three religions, theirs is the strongest of all and they have everyone under their control. This too is fixed in the drama. It is through them that we will receive our kingdom again. There is a story of how two cats were fighting each other and a third one took the butter. While they wage war among themselves, the people of Bharat will take the butter from in between. The story itself is only worth pennies, but the meaning of it is so great! Human beings are so senseless. Even though they are actors in the drama, they do not understand the drama. They have become senseless. It is only the poor who will understand this. The wealthy don’t understand anything. The Father is remembered as the Lord of the Poor and the Purifier. He is now playing that part in a practical way. You have to explain this to large audiences. Common sense says that, little by little, His praise will be sung and the bells will chime at the last moment. As yet, children are still eclipsed by bad omens. Their lines are not clear. Obstacles continue to come. They will continue to come according to the drama. The more effort you make, the higher the status you will attain. It is remembered of this time that the Pandavas didn’t even have three feet of land. However, no one knows that they were the ones who later became the masters of the world in a practical form. You children now understand that you don’t need to be unhappy about this. The same thing happened in the previous cycle too. You have to stay on the rails of the drama; you must not waver. The play is now about to end, and you will go to the land of happiness. Study in such a way that you claim a high status. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. As you walk, as you move, maintain the consciousness that you are an actor and remain stable on the rails of the drama. Let it remain in your intellect that you are now on a pilgrimage and are returning home.
2. Imbibe all the qualities for salvation within yourself. Become full of all the divine virtues and 16 celestial degrees completely pure.
Blessing:May you be a master bestower and create a spiritual atmosphere with your good wishes of co-operation.
Matter makes you feel its impact on the climate; sometimes it is hot and sometimes cold. Similarly, you souls who conquer matter are co-operative (sahyogi) and easy yogis (sahaj yogis). You have to become co-operative in creating a spiritual atmosphere with your good wishes. Do not think “This one is like this” or “This one is doing this”. Think “No matter what the atmosphere or person is like, I have to give my co-operation”. The children of the Bestower constantly give. So, whether you are co-operative with your thoughts, your words, relationships or connections, your aim definitely has to be to be co-operative.
Slogan:To fulfil everyone’s desires with your stage of being ignorant of all desires is to be a Kamdhenu (the cow who fulfils everyone’s desires)
''मीठे बच्चे - गृहस्थ व्यवहार में रहते सबसे तोड़ निभाना है, ऩफरत नहीं करनी है लेकिन कमल फूल के समान पवित्र जरूर बनना है''
प्रश्नः-तुम्हारी विजय का डंका कब बजेगा? वाह-वाह कैसे निकलेगी?
उत्तर:-अन्त समय जब तुम बच्चों पर माया की ग्रहचारी बैठना बन्द हो जायेगी, सदा लाइन क्लीयर रहेगी तब वाह-वाह निकलेगी, विजय का डंका बजेगा। अभी तो बच्चों पर ग्रहचारी बैठ जाती है। विघ्न पड़ते रहते हैं। 3 पैर पृथ्वी के भी सेवा के लिए मुश्किल मिलते हैं लेकिन वह भी समय आयेगा जब तुम बच्चे सारे विश्व के मालिक होंगे।
गीत:-धीरज धर मनुवा ........... ओम् शान्ति।
बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं कि अभी पुराना नाटक पूरा हुआ है। दु:ख के दिन बाकी कुछ घड़ियां हैं और फिर सदा सुख ही सुख होगा। जब सुख का पता पड़ता है तो समझा जाता है यह दु:खधाम है, वास्ट डिफरेन्ट है। अभी सुख के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। समझते हो यह दु:ख का पुराना नाटक पूरा हुआ। सुख के लिए अब बापदादा की श्रीमत पर चल रहे हैं। कोई को भी समझाना बहुत सहज है। अभी बाबा के पास जाना है। बाबा लेने लिए आया है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र हो रहना है। तोड़ जरूर निभाना है। अगर तोड़ नहीं निभाते हो तो जैसे सन्यासियों मिसल हो जाते। वह तोड़ नहीं निभाते हैं तो उनको निवृत्ति मार्ग, हठयोग कहा जाता है। सन्यासियों द्वारा जो सिखलाया जाता है वह है हठयोग। हम राजयोग सीखते हैं, जो भगवान् सिखलाते हैं। भारत का धर्म शास्त्र है ही गीता। दूसरों का धर्म शास्त्र क्या है उनसे अपना कोई तैलुक नहीं। सन्यासी कोई प्रवृत्ति मार्ग वाले नहीं हैं, उन्हों का है हठयोग। घरबार छोड़ जंगल में बैठना, उनको जन्म बाई जन्म सन्यास करना पड़ता है। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बार सन्यास करते हो फिर 21 जन्म उसकी प्रालब्ध पाते हो। उनका है हद का सन्यास और हठयोग, तुम्हारा है बेहद का सन्यास और राजयोग। वह तो गृहस्थ व्यवहार छोड़ देते हैं। राजयोग का तो बहुत गायन है। भगवान् ने राजयोग सिखलाया तो भगवान् जरूर ऊंच ते ऊंच को ही कहेंगे। श्रीकृष्ण तो भगवान हो न सके। बेहद का बाप है ही वह निराकार। बेहद की बादशाही वही दे सकते हैं। यहाँ गृहस्थ व्यवहार से ऩफरत नहीं की जाती। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। पतित-पावन किसी सन्यासी को नहीं कहा जाता। सन्यासी खुद भी गाते हैं पतित-पावन........ उनको याद करते हैं, वह भी पावन दुनिया चाहते हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि वह दुनिया ही एक और है। जबकि वह गृहस्थ व्यवहार में ही नहीं हैं तो देवताओं को भी नहीं मानेंगे। वह कभी राजयोग सिखला न सकें। न बाप कभी हठयोग सिखला सकते, न सन्यासी कभी राजयोग सिखला सकते। यह समझने की बात है।
अभी देहली में वर्ल्ड कान्फ्रेंस होती है, उनको समझाना है, लिखत में सभी को देना है। वहाँ तो मतभेद हो जाता है। लिखत में होगा तो सभी समझ जायेंगे इन्हों का उद्देश्य क्या है।
अभी तुम समझते हो हम हैं ब्राह्मण कुल के, हम शूद्र कुल के मेम्बर कैसे बन सकते हैं वा विकारी कुल में हम अपने को कैसे रजिस्टर्ड कर सकते हैं, इसलिए ना कर देते। हम हैं आस्तिक, वह हैं नास्तिक। वह हैं ईश्वर को न मानने वाले, हम हैं ईश्वर से योग रखने वाले। मतभेद हो जाता है। समझाया जाता है जो बाप को नहीं जानते वह नास्तिक हैं। तो बाप ही आकरके आस्तिक बनायेंगे। बाप का बनने से बाप का वर्सा मिल जाता है। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। पहले-पहले तो बुद्धि में यह बिठाना है कि गीता का भगवान् परमपिता परमात्मा है। उसने ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन किया। भारत का देवी-देवता धर्म ही मुख्य है। भारत खण्ड का कोई तो धर्म चाहिए ना। अपने धर्म को भूल गये हैं। यह भी तुम जानते हो कि ड्रामानुसार भारतवासियों को अपना धर्म भूल जाना है तब तो फिर बाप आ करके स्थापन करे। नहीं तो फिर बाप आये कैसे? कहते हैं जब-जब देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है तब मैं आता हूँ। प्राय:लोप जरूर होना ही है। कहते हैं ना बैल की एक टांग टूट गई है, बाकी 3 टांग पर खड़ा है। तो मुख्य हैं ही 4 धर्म। अभी देवता धर्म की टांग टूट पड़ी है, यानी वह धर्म गुम हो गया है इसलिए बड़ के झाड़ का मिसाल देते हैं कि इसका फाउन्डेशन सड़ गया है। बाकी टाल-टालियाँ कितनी खड़ी हैं। तो इनमें भी फाउन्डेशन देवता धर्म है ही नहीं। बाकी सारी दुनिया में मठ-पंथ आदि कितने हैं! तुम्हारी बुद्धि में अभी सारी रोशनी है। बाप कहते हैं तुम बच्चे इस ड्रामा को जान गये हो। अब यह सारा झाड़ पुराना हो गया है। कलियुग के बाद सतयुग जरूर आना है। चक्र को फिरना जरूर है। बुद्धि में यह रखना है - अब नाटक पूरा हुआ है, हम जा रहे हैं। चलते-फिरते उठते-बैठते भी याद रहे - अब हमको वापिस जाना है। मन्मनाभव, मध्याजी भव का यही अर्थ है। कोई भी बड़ी सभा में भाषण आदि करना है तो यही समझाना है - परमपिता परमात्मा फिर से कहते हैं कि हे बच्चे, देह सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप ख़त्म होंगे। मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बन मुझे याद करो, पवित्र रहो, नॉलेज को धारण करो। अभी सब दुर्गति में हैं। सतयुग में देवतायें सद्गति में थे। फिर बाप ही आकर सद्गति करते हैं। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण........ यह हैं सद्गति के लक्षण। यह कौन देते हैं? बाप। उनके फिर लक्षण क्या हैं? वह ज्ञान का सागर है, आनन्द का सागर है। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसे नहीं कि सब एक ही हैं। एक बाप के बच्चे सभी आत्मायें हैं। प्रजापिता के ही औलाद होते हैं। अब नई रचना रची जाती है। प्रजापिता की औलाद तो सब हैं परन्तु वे लोग इन बातों को जानते नहीं। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंच। भारत के ही वर्ण गाये जाते हैं। 84 जन्म लेने में इन वर्णों से पास करना होता है। ब्राह्मण वर्ण है ही संगमयुग पर।
तुम बच्चे अभी स्वीट साइलेन्स में रहते हो। यह साइलेन्स सबसे अच्छी है। वास्तव में शान्ति का हार तो गले में पड़ा हुआ है। चाहते तो सब हैं शान्ति घर में जायें। परन्तु यह रास्ता कौन बताये? शान्ति के सागर के सिवाए तो कोई बता न सके। टाइटिल अच्छा दिया हुआ है - शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर। श्रीकृष्ण तो स्वर्ग का प्रिन्स है। वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। कितना रात-दिन का फ़र्क है। कृष्ण को सृष्टि का बीज कह नहीं सकते। सर्वव्यापी का ज्ञान तो ठहर न सके। बाप की महिमा अपनी है। वह सदैव पूज्य है, कभी पुजारी नहीं बनता। ऊपर से पहले जो आते हैं वह पूज्य से पुजारी बनते हैं। प्वाइन्ट्स तो ढेर समझाई जाती हैं। एग्जीवीशन में कितने आते हैं, परन्तु कोटों में कोई ही निकलते हैं क्योंकि मंज़िल बड़ी भारी है। प्रजा तो ढेर बनती रहेगी। माला में आने वाले दाने कोटों में कोई ही निकलते हैं। नारद का भी मिसाल है, उनको कहा तुम अपनी शक्ल देखो - लक्ष्मी को वरने लायक हो? प्रजा तो बहुत बननी है। राजा फिर भी राजा है। एक-एक राजा को लाखों प्रजा रहती है। पुरुषार्थ तो ऊंच करना चाहिए। राजाओं में भी कोई बड़ा राजा, कोई छोटा राजा है। भारत में कितने राजायें थे! सतयुग में भी बहुत महाराजायें होते हैं। यह सतयुग से लेकर चला आया है। महाराजाओं को बहुत प्रापर्टी होती है, राजाओं को कम। यह है श्री लक्ष्मी-नारायण बनने की नॉलेज। उसके लिए ही पुरुषार्थ चलता है। पूछते हैं लक्ष्मी-नारायण का पद पायेंगे वा राम सीता का? तो कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण का ही पद पायेंगे, माँ-बाप से पूरा वर्सा लेंगे। यह तो वन्डरफुल बातें हैं ना, और कोई जगह यह बातें हैं नहीं, न कोई शास्त्रों में हैं। अब तुम्हारी बुद्धि का ताला खुल गया है। बाप समझाते हैं चलते-फिरते ऐसे समझो हम एक्टर्स हैं, अब हमको वापिस जाना है। यह याद रहे, इनको ही मन्मनाभव, मध्याजी भव कहा जाता है। बाप घड़ी-घड़ी याद दिलाते हैं - मैं तुमको वापिस ले जाने आया हूँ। यह है रूहानी यात्रा। यह यात्रा बाप के सिवाए कोई करा न सके। भारत की महिमा भी बहुत करनी है। यह भारत होलीएस्ट लैण्ड है। सर्व का दु:ख हर्ता और सुख कर्ता, सबका सद्गति दाता एक ही बाप है। भारत उनका बर्थ प्लेस है। वह बाप सबका लिबरेटर है। उनका यहाँ (भारत में) बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। भारतवासी भल शिव के मन्दिर में जाते हैं परन्तु उनको पता नहीं है। गांधी को जानते हैं, समझते हैं वह बहुत अच्छा था इसलिए जाकर उन पर फूल आदि चढ़ाते हैं, लाखों खर्च करते हैं। अब इस समय है ही उन्हों का राज्य। जो चाहे सो कर सकते हैं। यह तो बाप बैठ गुप्त धर्म की स्थापना करते हैं, यह राज्य ही अलग है। भारत में पहले-पहले देवताओं का राज्य था। दिखाते हैं असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी। परन्तु ऐसी बातें तो हैं नहीं। यहाँ तो युद्ध के मैदान में माया पर जीत पाई जाती है, माया पर जीत तो जरूर सर्वशक्तिमान ही पहनायेंगे। कृष्ण को सर्वशक्तिमान नहीं कहा जाता। बाबा ही रावण राज्य से छुड़ाकर रामराज्य की स्थापना करा रहे हैं। बाकी वहाँ लड़ाई आदि की बात होती नहीं। अभी देखेंगे तो सृष्टि में सर्वशक्तिमान इस समय क्रिश्चियन लोग हैं। वह चाहें तो सब पर जीत पा सकते हैं परन्तु वह विश्व के मालिक बनें, यह कायदा नहीं। इस राज़ को तुम ही जानते हो। इस समय सर्वशक्तिवान राजधानी क्रिश्चियन की है। नहीं तो उन्हों की संख्या कम होनी चाहिए क्योंकि लास्ट में आये हैं। परन्तु 3 धर्मों में यह धर्म सबसे तीखा है। सबको हाथकर बैठे हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। इनके द्वारा ही फिर हमको राजधानी मिलनी है। कहानी भी है 2 बिल्ले लड़े, मक्खन बीच में तीसरे को मिल जाता है। तो वह आपस में लड़ते हैं, मक्खन बीच में भारतवासियों को ही मिलना है। कहानी तो पाई पैसे की है, अर्थ कितना बड़ा है। मनुष्य कितने बेसमझ हैं। एक्टर होते हुए भी ड्रामा को नहीं जानते, बेसमझ हो पड़े हैं। समझते भी गरीब हैं। साहूकार लोग कुछ भी नहीं समझते। गरीब निवाज़ पतित-पावन बाप गाया हुआ है। अब प्रैक्टिकल में पार्ट बजा रहे हैं। बड़ी-बड़ी सभाओं में तुमको समझाना है। विवेक कहता है कि धीरे-धीरे वाह-वाह निकलेगी, लास्ट मूवमेंट में डंका बजना है। अभी तो बच्चों पर ग्रहचारी बैठती है। लाइन क्लीयर नहीं। विघ्न पड़ते रहते हैं। यह भी ड्रामा अनुसार पड़ते रहेंगे। जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे। पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे। अभी का यह गायन है। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि वही फिर प्रैक्टिकल में विश्व के मालिक बनें। तुम बच्चे अब जानते हो, इसमें अफसोस नहीं किया जाता। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। ड्रामा के पट्टे पर खड़ा रहना चाहिए, हिलना नहीं चाहिए। अब नाटक पूरा होता है, चलते हैं सुखधाम। पढ़ाई ऐसी पढ़नी है जो ऊंच पद पा लेवें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) चलते-फिरते अपने को एक्टर समझना है, ड्रामा के पट्टे पर अचल रहना है। बुद्धि में रहे कि अभी हम वापस घर जाते हैं, हम यात्रा पर हैं।
2) सद्गति के सर्व लक्षण स्वयं में धारण करने हैं। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनना है।
वरदान:-सहयोग की शुभ भावना द्वारा रूहानी वायुमण्डल बनाने वाले मास्टर दाता भव
जैसे प्रकृति अपने वायुमण्डल के प्रभाव का अनुभव कराती है, कभी गर्मी, कभी सर्दी..ऐसे आप प्रकृतिजीत सदा सहयोगी, सहजयोगी आत्मायें अपनी शुभ भावनाओं द्वारा रूहानी वायुमण्डल बनाने में सहयोगी बनो। वह ऐसा है वा ऐसा करता है, यह नहीं सोचो। कैसा भी वायुमण्डल है, व्यक्ति है, मुझे सहयोग देना है। दाता के बच्चे सदा देते हैं। तो चाहे मन्सा से सहयोगी बनो, चाहे वाचा से, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क के द्वारा लेकिन लक्ष्य हो सहयोगी जरूर बनना है।
स्लोगन:-इच्छा मात्रम् अविद्या की स्थिति द्वारा सर्व की इच्छाओं को पूर्ण करना ही कामधेनु बनना है।
17/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, while living at home with your families, fulfil your responsibilities to everyone. You should not dislike anyone, but you definitely do have to become as pure as a lotus flower.
Question:When will the bells of victory chime? When will you be praised?
Answer:At the end, when the bad omens of Maya stop influencing you, when your line is constantly clear, the bells of victory will then chime and you children will be praised. As yet, you children are still experiencing the bad omens of Maya and obstacles continue to come. You find it difficult to find even three feet of land to do service. However, the time will come when you children will be the masters of the whole world.
Song:Be patient, o mind! Your days of happiness are about to come!
Om Shanti
Children understand, numberwise, according to the effort they make, that this old play is now ending. Just a few moments of sorrow still remain and there will then be happiness and only happiness. When you know about happiness, you can understand that this is the land of sorrow. There is a vast difference. You now make effort for happiness. You understand that this old play of sorrow is ending. You now follow BapDada’s shrimat to attain happiness. It is very easy to explain to anyone. You now have to return home with Baba. Baba has come to take you back with Him. Remain as pure as a lotus flower while living at home with your families. You definitely have to fulfil your household responsibilities. If you do not fulfil your responsibilities you would be like sannyasis. Because they do not fulfil their household responsibilities, they are called those who belong to the path of isolation, those who practise hatha yoga. Whatever is taught by sannyasis is called hatha yoga, whereas you are studying Raja Yoga, which is taught by God. The religious scripture of Bharat is the Gita. You are not concerned with the religious scriptures of others. Sannyasis do not belong to the household path. Their path is hatha yoga. They abandon their families and go and live in the forests, and so they have to take birth as renunciates for birth after birth, whereas you live at home in your households and renounce everything for just one birth and you receive the reward of that for 21 births. Their renunciation is limited and they practise hatha yoga. Your renunciation is unlimited and you practise Raja Yoga. They renounce their households and businesses. Raja Yoga is praised a great deal. God taught Raja Yoga, and so He must surely be called the Highest on High. Shri Krishna cannot be God. The unlimited Father is the incorporeal One. Only He can give you the unlimited kingdom. Here, you don’t have dislike for family life. The Father says: In this last birth, remain pure while living at home with your families. No sannyasi can be called the Purifier. Sannyasis themselves call out: O Purifier! They remember that One. They also want a pure world, but they don’t know that that world is completely different. Since they don’t live in a household, they don’t believe in the deities. They cannot teach Raja Yoga. Neither does the Father teach hatha yoga nor do sannyasis teach Raja Yoga. This matter has to be understood. A world conference is going to be held in Delhi. Explain to them and give it to all of them in writing. There, there are many conflicting ideas. When you put it in writing, everyone will understand what your aim is. You understand that we are now part of the elevated Brahmin clan. How could we become members of the shudra clan or how could we register ourselves in a vicious clan? This is why we refuse to register. We are theists and they are atheists. They are those who don’t believe in God, whereas we are those who have yoga with God. Therefore, there is a conflict of ideas. It has been explained that those who do not know the Father are atheists. Therefore, only the Father can come and make them into theists. By belonging to the Father, you receive the inheritance from Him. This is a very deep matter. First of all, you have to instil in their intellects that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the God of the Gita. He is the One who established the original eternal deity religion. The deity religion is the main religion of Bharat. The land of Bharat has to have a religion. They have forgotten their religion. You also understand that, according to the drama, the people of Bharat had to forget their religion so that the Father could then come and establish it again. Otherwise, how could the Father come? He says: I come when the deity religion has disappeared. It definitely has to disappear. It is said that one leg of the bull that supports the world is broken and that it is standing on three legs. So, there are four main religions. The leg of the deity religion is now broken, that is, that religion has disappeared. This is why the example of the banyan tree is given: although its foundation has rotted away, its many branches and twigs still remain. So, here, too, the foundation of the deity religion no longer exists but there are many sects and cults all over the world. There is now total light in your intellect. The Father says: You children have now come to know this drama. This whole tree has now become old. The golden age will definitely come after the iron age; the cycle definitely has to turn. You have to keep it in your intellects that the play is now over and that we are to return home. As you walk, as you move around, remember: We now have to return home. This is the real meaning of “Manmanabhav and Madhyajibhav”. If you have to give a lecture to a large audience, explain that the Supreme Father, the Supreme Soul, is once again saying: O children, renounce the consciousness of your bodies and all bodily religions and consider yourselves to be souls; remember the Father and all your sins will finish. I am teaching you Raja Yoga. While living in your households, remain like a lotus flower and remember Me. Remain pure and imbibe this knowledge. Everyone is now degraded. In the golden age, the deities were in salvation. The Father comes again and grants salvation. The qualities of salvation are 16 celestial degrees completely pure and full of all divine virtues. Who gives you these qualities? The Father. What then are His qualities? He is the Ocean of Knowledge, the Ocean of Bliss. His praise is completely separate. Not everyone is the same. All souls are the children of the one Father. There are also the children of Prajapita Brahma. The new creation is now being created. All are the children of the Father of Humanity. However, those people don’t understand these things. The Brahmin caste is the highest of all. The castes of Bharat have been remembered. While taking 84 births you have to pass through these clan. The Brahmin clan exists at the confluence age. You children now remain in sweet silence. This silence is the best of all. In fact, the necklace of peace is around your neck. Everyone wants to go to the home of peace, but who can show them the way? No one, except the Ocean of Peace, can show you the way. He has been given good titles: Ocean of Peace, Ocean of Knowledge. Shri Krishna is the prince of heaven. Baba is the Seed of the human world tree; there is the difference of day and night. Krishna cannot be called the Seed of the human world tree. This proves that the knowledge of omnipresence is not valid. The Father has His own praise. He is eternally worthy of worship. He never becomes a worshipper. Those who come from up above first are the ones who become worshippers from being worthy of worship. Many points are explained to you. So many come to the exhibitions, but only a handful out of multimillions emerge, because the destination is very high. Countless subjects will continue to be created. Out of multimillions, only a handful emerge who become the beads of the rosary. There is the example of Narad. He was told to look at his face to see if he was worthy of claiming Lakshmi as his bride. Many subjects will be created, but a king is still a king! One king has hundreds of thousands of subjects. You have to make elevated effort. Among the kings as well, some are great kings and some are not as great. There were so many kings in Bharat. Even in the golden age there are many maharajas. This has continued since the beginning of the golden age. The maharajas have many properties and the kings have fewer. This is the knowledge to become Shri Lakshmi and Narayan. It is for this that you continue to make effort. When you are asked, “Will you claim the status of Lakshmi and Narayan or the status of Rama and Sita?”, you reply, “We will only claim the status of Lakshmi and Narayan. We will claim our full inheritance from the Mother and Father.” These are such wonderful matters. Such matters do not arise anywhere else, nor are they written in the scriptures. The locks on your intellects have now opened. The Father explains: As you walk and move around, maintain the consciousness of being actors and that you have to return home. To remember this is called being “Manmanabhav and Madhyajibhav”. The Father reminds you again and again: I have come to take you back home. This is your spiritual pilgrimage. No one except the Father can take you on this pilgrimage. You have to praise Bharat a great deal. This Bharat is the holiest land. Only the one Father is the Remover of Sorrow, the Bestower of Happiness and the Bestower of Salvation for all. Bharat is His birthplace. That Father is the Liberator of all. This is His most elevated pilgrimage place. Although people of Bharat go to a Shiva Temple, they do not know Him. They know Gandhi and believe that he was very good; this is why they go and offer him flowers etc. They spend hundreds of thousands of rupees on that. It is now their government, and so they can do whatever they want. The Father sits here and establishes this religion in an incognito way. This kingdom is now completely separate. In Bharat, in the beginning, it was the kingdom of deities. They show a battle taking place between the deities and the devils, but nothing like that happened. It is here, on the battlefield, that you conquer Maya. Surely, only the Almighty Authority can enable you to conquer Maya. Krishna cannot be called the Almighty Authority. Only Baba can liberate you from the kingdom of Ravan and establish the kingdom of Rama. However, there is no question of a battle etc. there. If you look around in the world, it is the Christians who are now ‘almighty authorities’. If they wanted to, they could conquer everyone. However, it is not the law for them to become the masters of the world. Only you understand this secret. At this time the kingdom of Christians is the most powerful authority. In fact, their population should be the least because they came last. However, out of the three religions, theirs is the strongest of all and they have everyone under their control. This too is fixed in the drama. It is through them that we will receive our kingdom again. There is a story of how two cats were fighting each other and a third one took the butter. While they wage war among themselves, the people of Bharat will take the butter from in between. The story itself is only worth pennies, but the meaning of it is so great! Human beings are so senseless. Even though they are actors in the drama, they do not understand the drama. They have become senseless. It is only the poor who will understand this. The wealthy don’t understand anything. The Father is remembered as the Lord of the Poor and the Purifier. He is now playing that part in a practical way. You have to explain this to large audiences. Common sense says that, little by little, His praise will be sung and the bells will chime at the last moment. As yet, children are still eclipsed by bad omens. Their lines are not clear. Obstacles continue to come. They will continue to come according to the drama. The more effort you make, the higher the status you will attain. It is remembered of this time that the Pandavas didn’t even have three feet of land. However, no one knows that they were the ones who later became the masters of the world in a practical form. You children now understand that you don’t need to be unhappy about this. The same thing happened in the previous cycle too. You have to stay on the rails of the drama; you must not waver. The play is now about to end, and you will go to the land of happiness. Study in such a way that you claim a high status. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. As you walk, as you move, maintain the consciousness that you are an actor and remain stable on the rails of the drama. Let it remain in your intellect that you are now on a pilgrimage and are returning home.
2. Imbibe all the qualities for salvation within yourself. Become full of all the divine virtues and 16 celestial degrees completely pure.
Blessing:May you be a master bestower and create a spiritual atmosphere with your good wishes of co-operation.
Matter makes you feel its impact on the climate; sometimes it is hot and sometimes cold. Similarly, you souls who conquer matter are co-operative (sahyogi) and easy yogis (sahaj yogis). You have to become co-operative in creating a spiritual atmosphere with your good wishes. Do not think “This one is like this” or “This one is doing this”. Think “No matter what the atmosphere or person is like, I have to give my co-operation”. The children of the Bestower constantly give. So, whether you are co-operative with your thoughts, your words, relationships or connections, your aim definitely has to be to be co-operative.
Slogan:To fulfil everyone’s desires with your stage of being ignorant of all desires is to be a Kamdhenu (the cow who fulfils everyone’s desires)
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