Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 1st Oct 2018 | 113370 | 2018-11-13 01:33:45 | |
2 | Murali 02- Oct 2018 | 132948 | 2018-11-13 01:33:45 | |
3 | Murali 03-Oct-2018 | 125177 | 2018-11-13 01:33:45 | |
4 | Murali 04-Oct-2018 | 118934 | 2018-11-13 01:33:45 | |
5 | Murali 05-Oct-2018 | 133374 | 2018-11-13 01:33:45 | |
6 | Murali 06-Oct-2018 | 133043 | 2018-11-13 01:33:45 | |
7 | Murali 07-Oct-2018 | 135426 | 2018-11-13 01:33:45 | |
8 | Murali 08-Oct-2018 | 118475 | 2018-11-13 01:33:45 | |
9 | Murali 09-Oct-2018 | 113426 | 2018-11-13 01:33:46 | |
10 | Murali 10-Oct-2018 | 123819 | 2018-11-13 01:33:46 | |
11 | Murali 11-Oct-2018 | 133485 | 2018-11-13 01:33:46 | |
12 | Murali 12th Oct 2018 | 12264 | 2018-11-13 01:33:46 | |
13 | Murali 13th Oct 2018 | 120124 | 2018-11-13 01:33:46 | |
14 | Murali 14th Oct 2018 | 132308 | 2018-11-13 01:33:46 | |
15 | Murali 15th Oct 2018 | 124161 | 2018-11-13 01:33:46 | |
16 | Murali 16th Oct 2018 | 128293 | 2018-11-13 01:33:46 | |
17 | Murali 17th Oct 2018 | 120298 | 2018-11-13 01:33:46 | |
18 | Murali 18th Oct 2018 | 118916 | 2018-11-13 01:33:46 | |
19 | Murali 19th Oct 2018 | 117510 | 2018-11-13 01:33:46 | |
20 | Murali 20th Oct 2018 | 117518 | 2018-11-13 01:33:46 | |
21 | Murali 21st Oct 2018 | 130603 | 2018-11-13 01:33:46 | |
22 | Murali 22nd Oct 2018 | 135192 | 2018-11-13 01:33:46 | |
23 | Murali 23rd Oct 2018 | 113654 | 2018-11-13 01:33:46 | |
24 | Murali 24th Oct 2018 | 128826 | 2018-11-13 01:33:46 | |
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26 | Murali 26th Oct 2018 | 117905 | 2018-11-13 01:33:46 | |
27 | Murali 27th Oct 2018 | 125168 | 2018-11-13 01:33:46 | |
28 | Murali 28th Oct 2018 | 105833 | 2018-11-13 01:33:46 | |
29 | Murali 29th Oct 2018 | 124953 | 2018-11-13 01:33:46 | |
30 | Murali 30th Oct 2018 | 235865 | 2018-11-13 01:33:46 |
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Details ( Page:- Murali 14th Oct 2018 )
14-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 18-02-84 मधुबन
ब्राह्मण जीवन - अमूल्य जीवन
आज सदा स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों से स्नेह के सागर मिलन मनाने आये हैं। जैसे स्नेह से बाप को याद करते हैं वैसे बाप भी स्नेही बच्चों को पदमगुणा रिटर्न देने के लिए, साकारी सृष्टि में मिलने के लिए आते हैं। बाप बच्चों को आप समान अशरीरी निराकार बनाते और बच्चे स्नेह से निराकारी और आकारी बाप को आप समान साकारी बना देते हैं। यह है बच्चों के स्नेह की कमाल। बच्चों के ऐसे स्नेह की कमाल देख बापदादा हर्षित होते हैं। बच्चों के गुणों के गीत गाते हैं कि कैसे सदा बाप के संग के रंग में बाप समान बनते जा रहे हैं। बापदादा ऐसे फालो फादर करने वाले बच्चों को आज्ञाकारी, वफादार, फरमानबरदार सच्चे-सच्चे अमूल्य रत्न कहते हैं। आप बच्चों के आगे यह स्थूल हीरे जवाहरात भी मिट्टी के समान हैं। इतने अमूल्य हो। ऐसे अपने को अनुभव करते हो कि बापदादा के गले की माला के विजयी अमूल्य रत्न मैं हूँ। ऐसा स्वमान रहता है?
डबल विदेशी बच्चों को नशा और खुशी रहती है कि हमें बापदादा ने इतना दूर होते हुए भी दूरदेश से चुनकर अपना बना लिया है। दुनिया बाप को ढूँढती और बाप ने हमें ढूँढा। ऐसे अपने को समझते हो? दुनिया पुकार रही है कि आ जाओ और आप सभी नम्बरवार क्या गीत गाते हो? तुम्हीं से बैठूँ, तुम्ही से खाऊं, तुम्हीं से सदा साथ रहूँ। कहाँ पुकार और कहाँ सदा साथ! रात दिन का अन्तर हो गया ना। कहाँ एक सेकण्ड की सच्ची अविनाशी प्राप्ति के प्यासी आत्मायें और कहाँ आप सभी प्राप्ति स्वरूप आत्मायें! वह गायन करने वाली और आप सभी बाप की गोदी में बैठने वाले। वह चिल्लाने वाली और आप हर कदम उनकी मत पर चलने वाले। वह दर्शन की प्यासी और आप बाप द्वारा स्वयं दर्शनीय मूर्त बन गये। थोड़ा सा दु:ख दर्द का अनुभव और बढ़ने दो फिर देखना आपके सेकण्ड के दर्शन, सेकण्ड की दृष्टि के लिए कितना प्यासे बन आपके सामने आते हैं।
अभी आप निमंत्रण देते हो, बुलाते हो। फिर आपसे सेकण्ड के मिलने के लिए बहुत मेहनत करेंगे कि हमें मिलने दो। ऐसा साक्षात साक्षात्कार स्वरूप आप सभी का होगा। ऐसे समय पर अपनी श्रेष्ठ जीवन और श्रेष्ठ प्राप्ति का महत्व आप बच्चों में से भी उस समय ज्यादा पहचानेंगे। अभी अलबेलेपन और साधारणता के कारण अपनी श्रेष्ठता और विशेषता को भूल भी जाते हो। लेकिन जब अप्राप्ति वाली आत्मायें प्राप्ति की प्यास से आपके सामने आयेंगी तब ज्यादा अनुभव करेंगे कि हम कौन और यह कौन! अभी बापदादा द्वारा सहज और बहुत खजाना मिलने के कारण कभी-कभी स्वयं की और खजाने की वैल्यू को साधारण समझ लेते हो - लेकिन एक-एक महावाक्य, एक-एक सेकण्ड, एक-एक ब्राह्मण जीवन का श्वास कितना श्रेष्ठ है। वह आगे चल ज्यादा अनुभव करेंगे। ब्राह्मण जीवन का हर सेकण्ड, एक जन्म नहीं लेकिन जन्म-जन्म की प्रालब्ध बनाने वाला है। सेकण्ड गया अर्थात् अनेक जन्मों की प्रालब्ध गई। ऐसी अमूल्य जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसी श्रेष्ठ तकदीरवान विशेष आत्मायें हो। समझा कौन हो? ऐसे श्रेष्ठ बच्चों से बाप मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों को यह सदा याद रहता है ना! वा कभी भूलता, कभी याद रहता है? याद स्वरूप बने हो ना! जो स्वरूप बन जाते हैं वह कभी भूल नहीं सकते। याद करने वाले नहीं याद स्वरूप बनना है। अच्छा!
ऐसे सदा मिलन मनाने वाले, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले, सदा स्वयं के समय के सर्व प्राप्ति के महत्व को जानने वाले, सदा हर कदम में फालो फादर करने वाले, ऐसे सिकीलधे सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पोलैण्ड तथा अन्य देशों से आये हुए नये-नये बच्चों से:- सभी अपने को भाग्यवान समझते हो, कौन सा भाग्य है? इस श्रेष्ठ भूमि पर आना - यही सबसे बड़ा भाग्य है। यह भूमि महान् तीर्थ की भूमि है। तो यहाँ पहुँचे यह तो भाग्य है ही। लेकिन अभी आगे क्या करेंगे? याद में रहना, याद के अभ्यास को सदा आगे बढ़ाते रहना। जो जितना भी सीखे उसको आगे बढ़ाते रहना। अगर सदा सम्बन्ध में रहते रहेंगे तो सम्बन्ध द्वारा बहुत प्राप्ति करते रहेंगे। क्यों? आज के विश्व में सभी को खुशी और शान्ति दोनों चाहिए। तो यह दोनों ही इस राजयोग के अभ्यास द्वारा सदा के लिए प्राप्त हो जायेंगी। यह प्राप्ति चाहते हो तो सहज साधन यह है, इसको छोड़ना नहीं। साथ रखना। बहुत खुशी मिलेगी। जैसे खुशी की खान मिल जायेगी, जिससे औरों को भी सच्ची खुशी बांट सकेंगे। औरों को भी सुनाना, औरों को भी यह रास्ता बताना। विश्व में इतनी आत्मायें हैं लेकिन उन आत्माओं में से आप थोड़ी आत्मायें यहाँ पहुँची हो। यह भी बहुत तकदीर की निशानी है। शान्ति कुण्ड में पहुँच गये। शान्ति तो सभी को आवश्यक है ना। स्वयं भी शान्त और सर्व को भी शान्ति देते रहें, यही मानव की विशेषता है। अगर शान्ति नहीं तो मानव जीवन ही क्या है। आत्मिक, अविनाशी शान्ति। स्वयं को और अनेकों को भी सच्ची शान्ति प्राप्त करने का रास्ता बता सकते हो। पुण्य आत्मा बन जायेंगे। किसी अशान्त आत्मा को शान्ति दे दो तो कितना बड़ा पुण्य है। स्वयं पहले भरपूर बनो फिर औरों के प्रति भी पुण्यात्मा बन सकते हो। इस जैसा पुण्य और कोई नहीं। दु:खी आत्माओं को सुख शान्ति की झलक दिखा सकते हो। जहाँ लगन है वहाँ दिल का संकल्प पूरा हो जाता है। अभी बाप द्वारा जो सन्देश मिला है वह सन्देश सुनाने वाले सन्देशी बनकर चलते रहो।
सेवाधारियों से:- सेवा की लाटरी भी सदाकाल के लिए सम्पन्न बना देती है। सेवा से सदाकाल के लिए खजाने से भरपूर हो जाते हैं। सभी ने नम्बरवन सेवा की। सब फर्स्ट प्राइज लेने वाले हो ना! फर्स्ट प्राइज़ है सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना। तो क्या समझते हो, जितने दिन सेवा की उतने दिन स्वयं भी सन्तुष्ट रहे और दूसरों को भी किया या कोई नाराज़ हुआ? सन्तुष्ट रहे और सन्तुष्ट किया तो नम्बरवन हो गये। हर कार्य में विजयी बनना अर्थात् नम्बरवन होना। यही सफलता है। न स्वयं डिस्टर्ब हो और न दूसरों को करो, यही विजय है। तो ऐसे सदा के विजयी रत्न। विजय संगमयुग का अधिकार है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो ना!
सच्चे सेवाधारी वह जो सदा रूहानी दृष्टि से, रूहानी वृत्ति से रूहे गुलाब बन रूहों को खुश करने वाले हों। तो जितना समय भी सेवा की उतना समय रूहानी गुलाब बन सेवा की? कोई बीच में कांटा तो नहीं आया। सदा ही रूहानी स्मृति में रहे अर्थात् रूहानी गुलाब स्थिति में रहे। जैसे यहाँ यह अभ्यास किया वैसे अपने-अपने स्थानों पर भी ऐसे ही श्रेष्ठ स्थिति में रहना। नीचे नहीं आना। कुछ भी हो, कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन जैसे गुलाब का पुष्प कांटों में रहते भी स्वयं सदा खुशबू देता, कांटों के साथ स्वयं कांटा नहीं बनता। ऐसे रूहानी गुलाब सदा वातावरण के प्रभाव से न्यारे और प्यारे। वहाँ जाकर यह नहीं लिखना कि क्या करें माया आ गई। सदा मायाजीत बनकर जा रहे हो ना। माया को आने की छुट्टी नहीं देना। दरवाजा सदा बन्द कर देना। डबल लाक है याद और सेवा, जहाँ डबल लाक है। वहाँ माया नहीं आ सकती है।
दादी जी तथा अन्य बड़ी बहनों से:- जैसे बाप सदा बच्चों का उमंग-उत्साह बढ़ाते रहते वैसे फालो फादर करने वाले बच्चे हैं। विशेष सभी टीचर्स को देश-विदेश से जो भी आई, सबको बापदादा सेवा की मुबारक देते हैं। हरेक अपने को नाम सहित बाप के याद और प्यार के अधिकारी समझकर अपने आपको ही प्यार कर लेना। एक-एक के गुण गायें तो कितने के गुण गायें। सभी ने बहुत मेहनत की है। अगले वर्ष से अभी उन्नति को प्राप्त किया है और आगे भी इससे ज्यादा से ज्यादा स्वयं और सेवा से उन्नति को पाते रहेंगे। समझा - ऐसे नहीं समझना कि हमको बापदादा ने नहीं कहा, सभी को कह रहे हैं। भक्त बाप का नाम लेने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं, सोचते हैं बाप का नाम मुख पर रहे लेकिन बाप के मुख पर किसका नाम रहता? आप बच्चों का नाम बाप के मुख पर है, समझा। अच्छा।
डबल विदेशी भाई बहिनों के प्रश्न - बापदादा के उत्तर
प्रश्न:- इस वर्ष की सेवा के लिए नया प्लैन क्या है?
उत्तर:- समय को समीप लाने के लिए एक तो वृत्ति से वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करनी है। इसके लिए स्व की वृत्ति पर विशेष अटेन्शन देना है और दूसरा औरों की सेवा करने के लिए विशेष ऐसी आत्मायें निकालो जो समझें कि सचमुच शान्ति की विधि यहाँ से ही मिल सकती है। यह आवाज इस वर्ष में हो कि अगर शान्ति होगी तो इसी विधि से होगी। एक ही विधि है यह, जो विश्व को आवश्यकता है - वह इस विधि के सिवाए नहीं है। यह वातावरण चारों ओर इकट्ठा बनना चाहिए। भारत में चाहे विदेश में शान्ति की झलक प्रसिद्ध रूप में होनी चाहिए। चारों ओर से यह सभी को टच हो, आकर्षण हो कि यथार्थ स्थान है तो यही है। जैसे गवर्मेन्ट की तरफ से यू.एन.ओ. बनी हुई है तो जब भी कुछ होता है तो सभी का अटेन्शन उसी तरफ जाता है। ऐसे जब भी कोई अशान्ति का वातावरण हो तो सबका अटेन्शन शान्ति का सन्देश देने वाली यह आत्मायें हैं, इस तरफ जावे। अनुभव करें कि अशान्ति से बचने का यही एक स्थान है, जहाँ पनाह ली जा सकती है। इस वर्ष यह वायुमण्डल बनना चाहिए। ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छी है, राजयोग अच्छा है, यह तो सब कहते हैं लेकिन असली प्राप्ति यहाँ से ही होनी है, विश्व का कल्याण इसी स्थान और विधि से होना है, यह आवाज बुलन्द हो। समझा- इसके लिए विशेष शान्ति की एडवरटाइज करो, किसको शान्ति चाहिए तो यहाँ से विधि मिल सकती है। शान्ति सप्ताह रखो, शान्ति के समागम रखो, शान्ति अनुभूति के शिविर रखो, ऐसे शान्ति का वायब्रेशन फैलाओ।
सर्विस में जैसे स्टूडेन्ट बनाते हो वह तो बहुत अच्छा है, वह तो जरूर वृद्धि को प्राप्त करना ही है। लेकिन अभी हर वैरायटी के लोग जैसे काले गोरे भिन्न-भिन्न धर्म की आत्मायें हैं, वैसे भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले हर स्थान पर होने चाहिए। कोई कहाँ भी जावे तो हर आक्यूपेशन वाला अपनी रीति से उन्हें अनुभव सुनाये। जैसे यहाँ वर्कशाप रखाते हैं - कभी डाक्टर की, कभी वकील की तो भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले एक ही शान्ति की बात अपने आक्यूपेशन के आधार से बोलते हैं तो अच्छा लगता है। ऐसे कोई भी सेन्टर पर आवें तो हर आक्यूपेशन वाले अपना शान्ति का अनुभव सुनायें, इसका प्रभाव पड़ता है। सभी आक्यूपेशन वालों के लिए यह सहज विधि है, यह अनुभव हो। जैसे कुछ समय के अन्दर यह एडवरटाइज अच्छी हो गई है कि सब धर्म वालों के लिए यही एक विधि है, यह आवाज हो। इसी रीति से अभी आवाज फैलाओ। जो सम्पर्क में आते हैं या स्टूडेन्ट हैं उन्हों तक तो यह आवाज होता है लेकिन अभी थोड़ा और चारों ओर फैले इसका अभी और अटेन्शन। ब्राह्मण भी अभी बहुत थोड़े बने हैं। नम्बरवार ब्राह्मण बनने की जो यह गति है, उसको फास्ट नहीं कहेंगे ना। अभी तो कम से कम नौ लाख तो चाहिए। कम से कम सतयुग की आदि में नौ लाख के ऊपर तो राज्य करेंगे ना! उसमें प्रजा भी होगी लेकिन सम्पर्क में अच्छे आयेंगे तब तो प्रजा बनेंगे। तो इस हिसाब से गति कैसी होनी चाहिए! अभी तो संख्या बहुत कम है। अभी टोटल विदेश की संख्या कितनी होगी? कम से कम विदेश की संख्या दो-तीन लाख तो होनी चाहिए। मेहनत तो अच्छी कर रहे हो, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन थोड़ी स्पीड और तेज होनी चाहिए। स्पीट तेज होगी - जनरल वातावरण से। अच्छा।
प्रश्न:- ऐसा पावरफुल वातावरण बनाने की युक्ति क्या है?
उत्तर:- स्वयं पावरफुल बनो। उसके लिए अमृतवेले से लेकर हर कर्म में अपनी स्टेज शक्तिशाली है या नहीं, उसकी चेकिंग के ऊपर और थोड़ा विशेष अटेन्शन दो। दूसरों की सेवा में या सेवा के प्लैन्स में बिजी होने से अपनी स्थिति में कहाँ-कहाँ हल्कापन आ जाता है इसलिए यह वातावरण शक्तिशाली नहीं होता। सेवा होती है लेकिन वातावरण शक्तिशाली नहीं होता है। इसके लिए अपने ऊपर विशेष अटेन्शन रखना पड़े। कर्म और योग, कर्म के साथ शक्तिशाली स्टेज, इस बैलेन्स की थोड़ी कमी है। सिर्फ सेवा में बिजी होने के कारण स्व की स्थिति शक्तिशाली नहीं रहती। जितना समय सेवा में देते हो, जितना तन-मन-धन सेवा में लगाते हो, उसी प्रमाण एक का लाख गुणा जो मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है। इसका कारण है, कर्म और योग का बैलेन्स नहीं है। जैसे सेवा के प्लैन बनाते हो, पर्चे छपाते हो, टी.वी., रेडियो में करना है। जैसे वह बाहर के साधन बनाते हो वैसे पहले अपनी मंसा शक्तिशाली बनाने का साधन विशेष होना चाहिए। यह अटेन्शन कम है। फिर कह देते हो, बिजी रहे इसलिए थोड़ा-सा मिस हो गया। फिर डबल फायदा नहीं हो सकता। अच्छा।
वरदान:-
सेवा द्वारा प्राप्त मान मर्तबे का त्याग कर अविनाशी भाग्य बनाने वाले महात्यागी भव
आप बच्चे जो श्रेष्ठ कर्म करते हो-इस श्रेष्ठ कर्म अथवा सेवा का प्रत्यक्षफल है-सर्व द्वारा महिमा होना। सेवाधारी को श्रेष्ठ गायन की सीट मिलती है। मान, मर्तबे की सीट मिलती है, यह सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। लेकिन यह सिद्धियां रास्ते की चट्टियाँ हैं, यह कोई फाइनल मंजिल नहीं है इसलिए इसके त्यागवान, भाग्यवान बनो, इसको ही कहा जाता है महात्यागी बनना। गुप्त महादानी की विशेषता ही है त्याग के भी त्यागी।
स्लोगन:-
फरिश्ता बनना है तो साक्षी हो हर आत्मा का पार्ट देखो और सकाश दो।
14/10/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 18/02/84
Brahmin life is the invaluable life.
Today, the Ocean of Love has come to celebrate a meeting with the children who are always absorbed in love. Just as you remember the Father with love, in the same way, in order to give multi-million fold return to the loving children, the Father comes into the corporeal world to celebrate a meeting. The Father makes you children bodiless and incorporeal, the same as He is, and the children, with love, make the incorporeal and subtle fathers corporeal, the same as they are. This is the wonder of the children's love. Seeing the wonder of the children's love, BapDada is pleased. The Father sings songs of the children's virtues, of how they are becoming equal to the Father by being constantly coloured by the Father's company. BapDada calls such children who follow the Father obedient, faithful, trustworthy, true invaluable jewels. Compared to you children even physical diamonds and jewels are like dust. You are invaluable. Do you experience yourselves to be the victorious invaluable jewels of the garland around BapDada's neck? Do you have such self-respect?
Double-foreign children have the intoxication and happiness that although they are very far away, BapDada has selected them from a faraway land and made them belong to Him. The world is looking for the Father whereas the Father has found you. Do you think of yourselves in this way? The world is calling out to Him to come here, and what song do all of you sing, numberwise? “I sit with You, I eat with You and I am constantly in your company.” There is such a big difference between calling out and being constantly in someone’s company. It is the difference of day and night, is it not? There is such a difference between souls who are thirsty for imperishable attainment even for a second and you souls who are embodiments of attainment. Those souls constantly sing songs whereas you are those who constantly sit in the Father's lap. They are those who cry out and you are those who follow His directions at every step. They are thirsty for just a glimpse (vision) and you are those whom the Father has made an image that grants visions. Let them experience a bit more pain and sorrow and then see how they come in front of you thirsting for a second's glimpse or a second's drishti from all of you.
Now you invite them and call them. When the time comes, they will make a lot of effort to meet you for even a second: “Please let us meet you!” All of you will have the practical form of being an image that grants visions. Amongst you children too, you will recognise the importance of your elevated life and elevated attainment a lot more at such a time. Now, because of carelessness and being ordinary, you even forget your greatness and your speciality. However, when souls who lack attainment come in front of you thirsting for attainment, you will experience more who you are and who they are. At the moment, because you receive many treasures easily from BapDada, you sometimes consider your value and even the treasures to be ordinary. However, every elevated version, every second, and every breath of Brahmin life is so elevated. You will experience this a lot more as you progress further. Every second of Brahmin life creates not just a reward for one birth, but for birth after birth. A second gone means a reward for many births gone. You are the elevated souls with such an invaluable life. You are such special souls with an elevated fortune. Do you understand who you are? Baba has come to meet such elevated children. You double-foreign children constantly remember this, do you not? Or is it that you sometimes forget and sometimes remember? You have become embodiments of remembrance, have you not? Those who have become an embodiment can never forget. Don't become those who have to remember, but become embodiments of remembrance. Achcha.
To those who constantly celebrate a meeting, to those who are constantly coloured by the Father's company, to those who understand the importance of all attainments of the self and of time, to those who constantly follow the Father at every step; to such long-lost and now-found obedient children, BapDada's love, remembrance and namaste.
BapDada meeting new children who have come from Poland and other countries:
Do all of you consider yourselves to be fortunate? What fortune do you have? To come to this elevated land is the greatest fortune of all. This land is the land of the great pilgrimage. To have arrived here is fortune anyway. So what more will you now do? Stay in remembrance; constantly continue to increase the practice of remembrance. However much each of you learns, continue to increase that. If you constantly continue to maintain a relationship, then with that relationship you will continue to attain a great deal. Why? In today's world, everyone wants both happiness and peace. So, both of these can be attained for all time through the practice of this Raja Yoga. If you want this attainment, this is the easy method. Don't let go of it. Keep it with you. You will receive a lot of happiness. It will be as though you have received a mine of happiness, through which you will be able to distribute true happiness to others. Relate this to others and also show this path to others. There are so many souls in the world, but out of all of those souls, it is you few souls who have reached here. This is also a sign of great fortune. You have reached the shanti-kund (power house). Peace is essential for everyone. To be peaceful themselves and continue to give everyone peace is the speciality of humans. If there is no peace, what is the life of a human being? You have spiritual, imperishable peace. You can show yourself and many others the way to attain real peace. You will become charitable souls. It is such great charity to give peace to a peaceless soul. First of all, become full yourself and then you can become charitable souls with others. There is no other charity like this. You can show unhappy souls the sparkle of peace and happiness. Where there is deep love, the thought of the heart is fulfilled. Continue to move along as messengers who give the message that you have just received from the Father.
BapDada meeting servers:
The lottery of service makes you full for all time. By doing service, you become full of treasures for all time. All of you did number one service. All of you are those who claim the first prize, are you not? The first prize is to remain content and to make everyone content. So, what do you think? For the number of days that you did service, did you remain content for all of that time and also make others content or did some of you become upset? If you remained content and made others content, you are number one. To be victorious in every task means to be number one. This is success. Don’t allow yourselves to be disturbed and don't disturb others. This is victory. Therefore, you are such victorious jewels for all time. Victory is the right of the confluence age because you are master almighty authorities.
True serviceable souls are those who constantly have spiritual vision, a spiritual attitude and, as spiritual roses, make all spirits happy. So, for however long you served, did you serve as a spiritual rose? There weren't any thorns in between, were there? Did you always maintain spiritual awareness, that is, did you always stay in the stage of a spiritual rose? Just as you practised this here, in the same way, maintain such an elevated stage at your own places. Don’t come down, no matter what happens or what the atmosphere is like. Roses live amidst thorns and yet constantly continue to give fragrance; they don't become thorns whilst living amidst thorns. In the same way, spiritual roses always stay beyond the influence of the atmosphere and remain loving and detached. When you get back, don't write: What can I do? Maya came! You are going back as those who are constant conquerors of Maya, are you not? Don't give Maya permission to come. Keep the door closed for all time. The double lock is remembrance and service. Maya cannot come where there is a double lock.
BapDada meeting Dadiji and other senior sisters:
Just as the Father constantly increases the zeal and enthusiasm of you children, in the same way, it is you children who follow the Father. BapDada is especially congratulating all of you teachers who have come from this land and abroad for service. Each one of you, consider yourself to have a right to love and remembrance personally by name and give yourself love in that way. If Baba were to sing each one's praise individually, how many people's praise could He sing? All of you have made a lot of effort. You have progressed well since last year and, in the future too, you will continue to progress the maximum for yourself and also in service. Do you understand? Don't think that BapDada hasn't spoken to you. He is speaking to all of you. Devotees are making effort to remember the Father's name and are thinking that the Father's name should remain on their lips, whereas whose name is on the Father's lips? The names of you children are on the Father's lips. Do you understand? Achcha.
Questions from double foreign brothers and sisters and BapDada's answers:
Question: What is the new plan for this year’s service?
Answer: In order to bring time close, you first have to do the service of making the atmosphere powerful through your attitude. For this, pay special attention to your attitude. Secondly, in order to serve others, especially make those souls emerge; who truly believe that the method for peace can only be found here. Let the sound emerge this year that, if there is to be peace, it will only be through this method. This is the only method. What the world needs is nothing else but this method. Let this atmosphere be created everywhere simultaneously. In Bharat or abroad, let the sparkle of peace be very visible way. Let everyone everywhere be touched and be attracted and say that if there is a right place, it is here. Just as the Government has the UNO, so that, when anything happens, everyone's attention is drawn there, in the same way, whenever something happens and it creates peacelessness, let everyone's attention be drawn to you as the souls who give the message of peace. Let them experience that this is the only place where they can remain safe from peacelessness and where they can seek refuge. Let this atmosphere be created this year. "The knowledge is good, your life is good, Raja Yoga is good." Everyone says this, but now let the sound be heard that real attainment can be attained here, that the world will benefit at this place with this method. Do you understand? For this, especially advertise peace: If anyone wants peace, you can find the method here. Have a Peace Week. Have a gathering for peace. Have yoga camps for giving them the experience of peace. Spread vibrations of peace in this way.
Creating students through service is very good. That expansion definitely has to happen. However, now, just as you have a variety of nationalities and souls of different religions, let there be souls of all different occupations at every place. Anyone who goes to a centre should be able to find someone of his own occupation at that centre who can share his experience, just as you have workshops here, sometimes with doctors, sometimes with lawyers etc. When people of different occupations speak of the one subject of peace on the basis of their own occupation, they enjoy that. So, in this way, let people of every occupation relate their experience of peace to anyone who comes to the centre and this will have an impact on them. Let them experience that this is an easy method for people of all occupations. For instance, for some time now, there has been good advertising about this being the only method for those of all religions. Let there be this sound. So, now spread the sound in this way. This sound reaches those who are in contact with you and the students but, now, let there be a bit more attention paid to enable this sound to be spread in all directions. Only a few Brahmins have been created so far. The speed of becoming Brahmins numberwise cannot be said to be fast. There needs to be at least 900,000 now. At the beginning of the golden age you will rule over at least 900,000, will you not? There will be subjects in that number too, but only when they come into close contact with you now will they then become subjects. So, bearing this figure in mind, how fast should the speed be? As yet, the number is very small. What is the total number of those abroad? At the very least, the number of those abroad should be two to three hundred thousand. You are making very good effort. There isn't anything wrong but, now, let the speed be a little faster. The speed will increase through the general atmosphere. Achcha.
Question: What is the way to create a very powerful atmosphere?
Answer: You yourself become powerful. For this, pay special attention to checking whether in every action from amrit vela onwards your stage is powerful or not. When you are busy serving others and making plans for service, there is sometimes a little lightness (slackness) in your own stage. This is why the atmosphere doesn't become powerful. Service takes place, but the atmosphere doesn't become powerful. For this you have to pay special attention to yourself. Karma and yoga; together with karma, there has to be a powerful stage: this balance is lacking a little. When you are just being busy in service, your own stage doesn't remain powerful. Given the amount of time you give for service, and the extent to which you use your body, mind and wealth for service, you don't receive the hundred-thousandfold return of one that you should be receiving. The reason for this is that there isn't the balance of karma and yoga. Just as you make plans for service – you have leaflets printed, you have programmes on the TV and Radio – just as you use these external facilities, in the same way, first of all, have a special method to make the stage of your mind powerful. This attention is lacking. You then say that because you were busy, you missed out on this a little. There cannot then be double benefit.
Blessing:May you be a great renunciate who renounces the respect and status received through service and creates an imperishable fortune.
The practical fruit of the elevated actions that you perform and service that you children do is to be praised by everyone. A server receives a seat of elevated praise, he receives a seat of respect and status. Such a soul definitely receives this success. However, all of these forms of success are the steps of the journey and not the final destination. So, renounce this and become fortunate. This is known as being a great renunciate. The speciality of a great, incognito donor is to be a renunciate of even the renunciation.
Slogan:In order to be an angel, observe the part of every soul as a detached observer and give them sakaash.
ब्राह्मण जीवन - अमूल्य जीवन
आज सदा स्नेह में समाये हुए स्नेही बच्चों से स्नेह के सागर मिलन मनाने आये हैं। जैसे स्नेह से बाप को याद करते हैं वैसे बाप भी स्नेही बच्चों को पदमगुणा रिटर्न देने के लिए, साकारी सृष्टि में मिलने के लिए आते हैं। बाप बच्चों को आप समान अशरीरी निराकार बनाते और बच्चे स्नेह से निराकारी और आकारी बाप को आप समान साकारी बना देते हैं। यह है बच्चों के स्नेह की कमाल। बच्चों के ऐसे स्नेह की कमाल देख बापदादा हर्षित होते हैं। बच्चों के गुणों के गीत गाते हैं कि कैसे सदा बाप के संग के रंग में बाप समान बनते जा रहे हैं। बापदादा ऐसे फालो फादर करने वाले बच्चों को आज्ञाकारी, वफादार, फरमानबरदार सच्चे-सच्चे अमूल्य रत्न कहते हैं। आप बच्चों के आगे यह स्थूल हीरे जवाहरात भी मिट्टी के समान हैं। इतने अमूल्य हो। ऐसे अपने को अनुभव करते हो कि बापदादा के गले की माला के विजयी अमूल्य रत्न मैं हूँ। ऐसा स्वमान रहता है?
डबल विदेशी बच्चों को नशा और खुशी रहती है कि हमें बापदादा ने इतना दूर होते हुए भी दूरदेश से चुनकर अपना बना लिया है। दुनिया बाप को ढूँढती और बाप ने हमें ढूँढा। ऐसे अपने को समझते हो? दुनिया पुकार रही है कि आ जाओ और आप सभी नम्बरवार क्या गीत गाते हो? तुम्हीं से बैठूँ, तुम्ही से खाऊं, तुम्हीं से सदा साथ रहूँ। कहाँ पुकार और कहाँ सदा साथ! रात दिन का अन्तर हो गया ना। कहाँ एक सेकण्ड की सच्ची अविनाशी प्राप्ति के प्यासी आत्मायें और कहाँ आप सभी प्राप्ति स्वरूप आत्मायें! वह गायन करने वाली और आप सभी बाप की गोदी में बैठने वाले। वह चिल्लाने वाली और आप हर कदम उनकी मत पर चलने वाले। वह दर्शन की प्यासी और आप बाप द्वारा स्वयं दर्शनीय मूर्त बन गये। थोड़ा सा दु:ख दर्द का अनुभव और बढ़ने दो फिर देखना आपके सेकण्ड के दर्शन, सेकण्ड की दृष्टि के लिए कितना प्यासे बन आपके सामने आते हैं।
अभी आप निमंत्रण देते हो, बुलाते हो। फिर आपसे सेकण्ड के मिलने के लिए बहुत मेहनत करेंगे कि हमें मिलने दो। ऐसा साक्षात साक्षात्कार स्वरूप आप सभी का होगा। ऐसे समय पर अपनी श्रेष्ठ जीवन और श्रेष्ठ प्राप्ति का महत्व आप बच्चों में से भी उस समय ज्यादा पहचानेंगे। अभी अलबेलेपन और साधारणता के कारण अपनी श्रेष्ठता और विशेषता को भूल भी जाते हो। लेकिन जब अप्राप्ति वाली आत्मायें प्राप्ति की प्यास से आपके सामने आयेंगी तब ज्यादा अनुभव करेंगे कि हम कौन और यह कौन! अभी बापदादा द्वारा सहज और बहुत खजाना मिलने के कारण कभी-कभी स्वयं की और खजाने की वैल्यू को साधारण समझ लेते हो - लेकिन एक-एक महावाक्य, एक-एक सेकण्ड, एक-एक ब्राह्मण जीवन का श्वास कितना श्रेष्ठ है। वह आगे चल ज्यादा अनुभव करेंगे। ब्राह्मण जीवन का हर सेकण्ड, एक जन्म नहीं लेकिन जन्म-जन्म की प्रालब्ध बनाने वाला है। सेकण्ड गया अर्थात् अनेक जन्मों की प्रालब्ध गई। ऐसी अमूल्य जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसी श्रेष्ठ तकदीरवान विशेष आत्मायें हो। समझा कौन हो? ऐसे श्रेष्ठ बच्चों से बाप मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों को यह सदा याद रहता है ना! वा कभी भूलता, कभी याद रहता है? याद स्वरूप बने हो ना! जो स्वरूप बन जाते हैं वह कभी भूल नहीं सकते। याद करने वाले नहीं याद स्वरूप बनना है। अच्छा!
ऐसे सदा मिलन मनाने वाले, सदा बाप के संग के रंग में रहने वाले, सदा स्वयं के समय के सर्व प्राप्ति के महत्व को जानने वाले, सदा हर कदम में फालो फादर करने वाले, ऐसे सिकीलधे सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पोलैण्ड तथा अन्य देशों से आये हुए नये-नये बच्चों से:- सभी अपने को भाग्यवान समझते हो, कौन सा भाग्य है? इस श्रेष्ठ भूमि पर आना - यही सबसे बड़ा भाग्य है। यह भूमि महान् तीर्थ की भूमि है। तो यहाँ पहुँचे यह तो भाग्य है ही। लेकिन अभी आगे क्या करेंगे? याद में रहना, याद के अभ्यास को सदा आगे बढ़ाते रहना। जो जितना भी सीखे उसको आगे बढ़ाते रहना। अगर सदा सम्बन्ध में रहते रहेंगे तो सम्बन्ध द्वारा बहुत प्राप्ति करते रहेंगे। क्यों? आज के विश्व में सभी को खुशी और शान्ति दोनों चाहिए। तो यह दोनों ही इस राजयोग के अभ्यास द्वारा सदा के लिए प्राप्त हो जायेंगी। यह प्राप्ति चाहते हो तो सहज साधन यह है, इसको छोड़ना नहीं। साथ रखना। बहुत खुशी मिलेगी। जैसे खुशी की खान मिल जायेगी, जिससे औरों को भी सच्ची खुशी बांट सकेंगे। औरों को भी सुनाना, औरों को भी यह रास्ता बताना। विश्व में इतनी आत्मायें हैं लेकिन उन आत्माओं में से आप थोड़ी आत्मायें यहाँ पहुँची हो। यह भी बहुत तकदीर की निशानी है। शान्ति कुण्ड में पहुँच गये। शान्ति तो सभी को आवश्यक है ना। स्वयं भी शान्त और सर्व को भी शान्ति देते रहें, यही मानव की विशेषता है। अगर शान्ति नहीं तो मानव जीवन ही क्या है। आत्मिक, अविनाशी शान्ति। स्वयं को और अनेकों को भी सच्ची शान्ति प्राप्त करने का रास्ता बता सकते हो। पुण्य आत्मा बन जायेंगे। किसी अशान्त आत्मा को शान्ति दे दो तो कितना बड़ा पुण्य है। स्वयं पहले भरपूर बनो फिर औरों के प्रति भी पुण्यात्मा बन सकते हो। इस जैसा पुण्य और कोई नहीं। दु:खी आत्माओं को सुख शान्ति की झलक दिखा सकते हो। जहाँ लगन है वहाँ दिल का संकल्प पूरा हो जाता है। अभी बाप द्वारा जो सन्देश मिला है वह सन्देश सुनाने वाले सन्देशी बनकर चलते रहो।
सेवाधारियों से:- सेवा की लाटरी भी सदाकाल के लिए सम्पन्न बना देती है। सेवा से सदाकाल के लिए खजाने से भरपूर हो जाते हैं। सभी ने नम्बरवन सेवा की। सब फर्स्ट प्राइज लेने वाले हो ना! फर्स्ट प्राइज़ है सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना। तो क्या समझते हो, जितने दिन सेवा की उतने दिन स्वयं भी सन्तुष्ट रहे और दूसरों को भी किया या कोई नाराज़ हुआ? सन्तुष्ट रहे और सन्तुष्ट किया तो नम्बरवन हो गये। हर कार्य में विजयी बनना अर्थात् नम्बरवन होना। यही सफलता है। न स्वयं डिस्टर्ब हो और न दूसरों को करो, यही विजय है। तो ऐसे सदा के विजयी रत्न। विजय संगमयुग का अधिकार है क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो ना!
सच्चे सेवाधारी वह जो सदा रूहानी दृष्टि से, रूहानी वृत्ति से रूहे गुलाब बन रूहों को खुश करने वाले हों। तो जितना समय भी सेवा की उतना समय रूहानी गुलाब बन सेवा की? कोई बीच में कांटा तो नहीं आया। सदा ही रूहानी स्मृति में रहे अर्थात् रूहानी गुलाब स्थिति में रहे। जैसे यहाँ यह अभ्यास किया वैसे अपने-अपने स्थानों पर भी ऐसे ही श्रेष्ठ स्थिति में रहना। नीचे नहीं आना। कुछ भी हो, कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन जैसे गुलाब का पुष्प कांटों में रहते भी स्वयं सदा खुशबू देता, कांटों के साथ स्वयं कांटा नहीं बनता। ऐसे रूहानी गुलाब सदा वातावरण के प्रभाव से न्यारे और प्यारे। वहाँ जाकर यह नहीं लिखना कि क्या करें माया आ गई। सदा मायाजीत बनकर जा रहे हो ना। माया को आने की छुट्टी नहीं देना। दरवाजा सदा बन्द कर देना। डबल लाक है याद और सेवा, जहाँ डबल लाक है। वहाँ माया नहीं आ सकती है।
दादी जी तथा अन्य बड़ी बहनों से:- जैसे बाप सदा बच्चों का उमंग-उत्साह बढ़ाते रहते वैसे फालो फादर करने वाले बच्चे हैं। विशेष सभी टीचर्स को देश-विदेश से जो भी आई, सबको बापदादा सेवा की मुबारक देते हैं। हरेक अपने को नाम सहित बाप के याद और प्यार के अधिकारी समझकर अपने आपको ही प्यार कर लेना। एक-एक के गुण गायें तो कितने के गुण गायें। सभी ने बहुत मेहनत की है। अगले वर्ष से अभी उन्नति को प्राप्त किया है और आगे भी इससे ज्यादा से ज्यादा स्वयं और सेवा से उन्नति को पाते रहेंगे। समझा - ऐसे नहीं समझना कि हमको बापदादा ने नहीं कहा, सभी को कह रहे हैं। भक्त बाप का नाम लेने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं, सोचते हैं बाप का नाम मुख पर रहे लेकिन बाप के मुख पर किसका नाम रहता? आप बच्चों का नाम बाप के मुख पर है, समझा। अच्छा।
डबल विदेशी भाई बहिनों के प्रश्न - बापदादा के उत्तर
प्रश्न:- इस वर्ष की सेवा के लिए नया प्लैन क्या है?
उत्तर:- समय को समीप लाने के लिए एक तो वृत्ति से वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करनी है। इसके लिए स्व की वृत्ति पर विशेष अटेन्शन देना है और दूसरा औरों की सेवा करने के लिए विशेष ऐसी आत्मायें निकालो जो समझें कि सचमुच शान्ति की विधि यहाँ से ही मिल सकती है। यह आवाज इस वर्ष में हो कि अगर शान्ति होगी तो इसी विधि से होगी। एक ही विधि है यह, जो विश्व को आवश्यकता है - वह इस विधि के सिवाए नहीं है। यह वातावरण चारों ओर इकट्ठा बनना चाहिए। भारत में चाहे विदेश में शान्ति की झलक प्रसिद्ध रूप में होनी चाहिए। चारों ओर से यह सभी को टच हो, आकर्षण हो कि यथार्थ स्थान है तो यही है। जैसे गवर्मेन्ट की तरफ से यू.एन.ओ. बनी हुई है तो जब भी कुछ होता है तो सभी का अटेन्शन उसी तरफ जाता है। ऐसे जब भी कोई अशान्ति का वातावरण हो तो सबका अटेन्शन शान्ति का सन्देश देने वाली यह आत्मायें हैं, इस तरफ जावे। अनुभव करें कि अशान्ति से बचने का यही एक स्थान है, जहाँ पनाह ली जा सकती है। इस वर्ष यह वायुमण्डल बनना चाहिए। ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छी है, राजयोग अच्छा है, यह तो सब कहते हैं लेकिन असली प्राप्ति यहाँ से ही होनी है, विश्व का कल्याण इसी स्थान और विधि से होना है, यह आवाज बुलन्द हो। समझा- इसके लिए विशेष शान्ति की एडवरटाइज करो, किसको शान्ति चाहिए तो यहाँ से विधि मिल सकती है। शान्ति सप्ताह रखो, शान्ति के समागम रखो, शान्ति अनुभूति के शिविर रखो, ऐसे शान्ति का वायब्रेशन फैलाओ।
सर्विस में जैसे स्टूडेन्ट बनाते हो वह तो बहुत अच्छा है, वह तो जरूर वृद्धि को प्राप्त करना ही है। लेकिन अभी हर वैरायटी के लोग जैसे काले गोरे भिन्न-भिन्न धर्म की आत्मायें हैं, वैसे भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले हर स्थान पर होने चाहिए। कोई कहाँ भी जावे तो हर आक्यूपेशन वाला अपनी रीति से उन्हें अनुभव सुनाये। जैसे यहाँ वर्कशाप रखाते हैं - कभी डाक्टर की, कभी वकील की तो भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले एक ही शान्ति की बात अपने आक्यूपेशन के आधार से बोलते हैं तो अच्छा लगता है। ऐसे कोई भी सेन्टर पर आवें तो हर आक्यूपेशन वाले अपना शान्ति का अनुभव सुनायें, इसका प्रभाव पड़ता है। सभी आक्यूपेशन वालों के लिए यह सहज विधि है, यह अनुभव हो। जैसे कुछ समय के अन्दर यह एडवरटाइज अच्छी हो गई है कि सब धर्म वालों के लिए यही एक विधि है, यह आवाज हो। इसी रीति से अभी आवाज फैलाओ। जो सम्पर्क में आते हैं या स्टूडेन्ट हैं उन्हों तक तो यह आवाज होता है लेकिन अभी थोड़ा और चारों ओर फैले इसका अभी और अटेन्शन। ब्राह्मण भी अभी बहुत थोड़े बने हैं। नम्बरवार ब्राह्मण बनने की जो यह गति है, उसको फास्ट नहीं कहेंगे ना। अभी तो कम से कम नौ लाख तो चाहिए। कम से कम सतयुग की आदि में नौ लाख के ऊपर तो राज्य करेंगे ना! उसमें प्रजा भी होगी लेकिन सम्पर्क में अच्छे आयेंगे तब तो प्रजा बनेंगे। तो इस हिसाब से गति कैसी होनी चाहिए! अभी तो संख्या बहुत कम है। अभी टोटल विदेश की संख्या कितनी होगी? कम से कम विदेश की संख्या दो-तीन लाख तो होनी चाहिए। मेहनत तो अच्छी कर रहे हो, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन थोड़ी स्पीड और तेज होनी चाहिए। स्पीट तेज होगी - जनरल वातावरण से। अच्छा।
प्रश्न:- ऐसा पावरफुल वातावरण बनाने की युक्ति क्या है?
उत्तर:- स्वयं पावरफुल बनो। उसके लिए अमृतवेले से लेकर हर कर्म में अपनी स्टेज शक्तिशाली है या नहीं, उसकी चेकिंग के ऊपर और थोड़ा विशेष अटेन्शन दो। दूसरों की सेवा में या सेवा के प्लैन्स में बिजी होने से अपनी स्थिति में कहाँ-कहाँ हल्कापन आ जाता है इसलिए यह वातावरण शक्तिशाली नहीं होता। सेवा होती है लेकिन वातावरण शक्तिशाली नहीं होता है। इसके लिए अपने ऊपर विशेष अटेन्शन रखना पड़े। कर्म और योग, कर्म के साथ शक्तिशाली स्टेज, इस बैलेन्स की थोड़ी कमी है। सिर्फ सेवा में बिजी होने के कारण स्व की स्थिति शक्तिशाली नहीं रहती। जितना समय सेवा में देते हो, जितना तन-मन-धन सेवा में लगाते हो, उसी प्रमाण एक का लाख गुणा जो मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है। इसका कारण है, कर्म और योग का बैलेन्स नहीं है। जैसे सेवा के प्लैन बनाते हो, पर्चे छपाते हो, टी.वी., रेडियो में करना है। जैसे वह बाहर के साधन बनाते हो वैसे पहले अपनी मंसा शक्तिशाली बनाने का साधन विशेष होना चाहिए। यह अटेन्शन कम है। फिर कह देते हो, बिजी रहे इसलिए थोड़ा-सा मिस हो गया। फिर डबल फायदा नहीं हो सकता। अच्छा।
वरदान:-
सेवा द्वारा प्राप्त मान मर्तबे का त्याग कर अविनाशी भाग्य बनाने वाले महात्यागी भव
आप बच्चे जो श्रेष्ठ कर्म करते हो-इस श्रेष्ठ कर्म अथवा सेवा का प्रत्यक्षफल है-सर्व द्वारा महिमा होना। सेवाधारी को श्रेष्ठ गायन की सीट मिलती है। मान, मर्तबे की सीट मिलती है, यह सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। लेकिन यह सिद्धियां रास्ते की चट्टियाँ हैं, यह कोई फाइनल मंजिल नहीं है इसलिए इसके त्यागवान, भाग्यवान बनो, इसको ही कहा जाता है महात्यागी बनना। गुप्त महादानी की विशेषता ही है त्याग के भी त्यागी।
स्लोगन:-
फरिश्ता बनना है तो साक्षी हो हर आत्मा का पार्ट देखो और सकाश दो।
14/10/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 18/02/84
Brahmin life is the invaluable life.
Today, the Ocean of Love has come to celebrate a meeting with the children who are always absorbed in love. Just as you remember the Father with love, in the same way, in order to give multi-million fold return to the loving children, the Father comes into the corporeal world to celebrate a meeting. The Father makes you children bodiless and incorporeal, the same as He is, and the children, with love, make the incorporeal and subtle fathers corporeal, the same as they are. This is the wonder of the children's love. Seeing the wonder of the children's love, BapDada is pleased. The Father sings songs of the children's virtues, of how they are becoming equal to the Father by being constantly coloured by the Father's company. BapDada calls such children who follow the Father obedient, faithful, trustworthy, true invaluable jewels. Compared to you children even physical diamonds and jewels are like dust. You are invaluable. Do you experience yourselves to be the victorious invaluable jewels of the garland around BapDada's neck? Do you have such self-respect?
Double-foreign children have the intoxication and happiness that although they are very far away, BapDada has selected them from a faraway land and made them belong to Him. The world is looking for the Father whereas the Father has found you. Do you think of yourselves in this way? The world is calling out to Him to come here, and what song do all of you sing, numberwise? “I sit with You, I eat with You and I am constantly in your company.” There is such a big difference between calling out and being constantly in someone’s company. It is the difference of day and night, is it not? There is such a difference between souls who are thirsty for imperishable attainment even for a second and you souls who are embodiments of attainment. Those souls constantly sing songs whereas you are those who constantly sit in the Father's lap. They are those who cry out and you are those who follow His directions at every step. They are thirsty for just a glimpse (vision) and you are those whom the Father has made an image that grants visions. Let them experience a bit more pain and sorrow and then see how they come in front of you thirsting for a second's glimpse or a second's drishti from all of you.
Now you invite them and call them. When the time comes, they will make a lot of effort to meet you for even a second: “Please let us meet you!” All of you will have the practical form of being an image that grants visions. Amongst you children too, you will recognise the importance of your elevated life and elevated attainment a lot more at such a time. Now, because of carelessness and being ordinary, you even forget your greatness and your speciality. However, when souls who lack attainment come in front of you thirsting for attainment, you will experience more who you are and who they are. At the moment, because you receive many treasures easily from BapDada, you sometimes consider your value and even the treasures to be ordinary. However, every elevated version, every second, and every breath of Brahmin life is so elevated. You will experience this a lot more as you progress further. Every second of Brahmin life creates not just a reward for one birth, but for birth after birth. A second gone means a reward for many births gone. You are the elevated souls with such an invaluable life. You are such special souls with an elevated fortune. Do you understand who you are? Baba has come to meet such elevated children. You double-foreign children constantly remember this, do you not? Or is it that you sometimes forget and sometimes remember? You have become embodiments of remembrance, have you not? Those who have become an embodiment can never forget. Don't become those who have to remember, but become embodiments of remembrance. Achcha.
To those who constantly celebrate a meeting, to those who are constantly coloured by the Father's company, to those who understand the importance of all attainments of the self and of time, to those who constantly follow the Father at every step; to such long-lost and now-found obedient children, BapDada's love, remembrance and namaste.
BapDada meeting new children who have come from Poland and other countries:
Do all of you consider yourselves to be fortunate? What fortune do you have? To come to this elevated land is the greatest fortune of all. This land is the land of the great pilgrimage. To have arrived here is fortune anyway. So what more will you now do? Stay in remembrance; constantly continue to increase the practice of remembrance. However much each of you learns, continue to increase that. If you constantly continue to maintain a relationship, then with that relationship you will continue to attain a great deal. Why? In today's world, everyone wants both happiness and peace. So, both of these can be attained for all time through the practice of this Raja Yoga. If you want this attainment, this is the easy method. Don't let go of it. Keep it with you. You will receive a lot of happiness. It will be as though you have received a mine of happiness, through which you will be able to distribute true happiness to others. Relate this to others and also show this path to others. There are so many souls in the world, but out of all of those souls, it is you few souls who have reached here. This is also a sign of great fortune. You have reached the shanti-kund (power house). Peace is essential for everyone. To be peaceful themselves and continue to give everyone peace is the speciality of humans. If there is no peace, what is the life of a human being? You have spiritual, imperishable peace. You can show yourself and many others the way to attain real peace. You will become charitable souls. It is such great charity to give peace to a peaceless soul. First of all, become full yourself and then you can become charitable souls with others. There is no other charity like this. You can show unhappy souls the sparkle of peace and happiness. Where there is deep love, the thought of the heart is fulfilled. Continue to move along as messengers who give the message that you have just received from the Father.
BapDada meeting servers:
The lottery of service makes you full for all time. By doing service, you become full of treasures for all time. All of you did number one service. All of you are those who claim the first prize, are you not? The first prize is to remain content and to make everyone content. So, what do you think? For the number of days that you did service, did you remain content for all of that time and also make others content or did some of you become upset? If you remained content and made others content, you are number one. To be victorious in every task means to be number one. This is success. Don’t allow yourselves to be disturbed and don't disturb others. This is victory. Therefore, you are such victorious jewels for all time. Victory is the right of the confluence age because you are master almighty authorities.
True serviceable souls are those who constantly have spiritual vision, a spiritual attitude and, as spiritual roses, make all spirits happy. So, for however long you served, did you serve as a spiritual rose? There weren't any thorns in between, were there? Did you always maintain spiritual awareness, that is, did you always stay in the stage of a spiritual rose? Just as you practised this here, in the same way, maintain such an elevated stage at your own places. Don’t come down, no matter what happens or what the atmosphere is like. Roses live amidst thorns and yet constantly continue to give fragrance; they don't become thorns whilst living amidst thorns. In the same way, spiritual roses always stay beyond the influence of the atmosphere and remain loving and detached. When you get back, don't write: What can I do? Maya came! You are going back as those who are constant conquerors of Maya, are you not? Don't give Maya permission to come. Keep the door closed for all time. The double lock is remembrance and service. Maya cannot come where there is a double lock.
BapDada meeting Dadiji and other senior sisters:
Just as the Father constantly increases the zeal and enthusiasm of you children, in the same way, it is you children who follow the Father. BapDada is especially congratulating all of you teachers who have come from this land and abroad for service. Each one of you, consider yourself to have a right to love and remembrance personally by name and give yourself love in that way. If Baba were to sing each one's praise individually, how many people's praise could He sing? All of you have made a lot of effort. You have progressed well since last year and, in the future too, you will continue to progress the maximum for yourself and also in service. Do you understand? Don't think that BapDada hasn't spoken to you. He is speaking to all of you. Devotees are making effort to remember the Father's name and are thinking that the Father's name should remain on their lips, whereas whose name is on the Father's lips? The names of you children are on the Father's lips. Do you understand? Achcha.
Questions from double foreign brothers and sisters and BapDada's answers:
Question: What is the new plan for this year’s service?
Answer: In order to bring time close, you first have to do the service of making the atmosphere powerful through your attitude. For this, pay special attention to your attitude. Secondly, in order to serve others, especially make those souls emerge; who truly believe that the method for peace can only be found here. Let the sound emerge this year that, if there is to be peace, it will only be through this method. This is the only method. What the world needs is nothing else but this method. Let this atmosphere be created everywhere simultaneously. In Bharat or abroad, let the sparkle of peace be very visible way. Let everyone everywhere be touched and be attracted and say that if there is a right place, it is here. Just as the Government has the UNO, so that, when anything happens, everyone's attention is drawn there, in the same way, whenever something happens and it creates peacelessness, let everyone's attention be drawn to you as the souls who give the message of peace. Let them experience that this is the only place where they can remain safe from peacelessness and where they can seek refuge. Let this atmosphere be created this year. "The knowledge is good, your life is good, Raja Yoga is good." Everyone says this, but now let the sound be heard that real attainment can be attained here, that the world will benefit at this place with this method. Do you understand? For this, especially advertise peace: If anyone wants peace, you can find the method here. Have a Peace Week. Have a gathering for peace. Have yoga camps for giving them the experience of peace. Spread vibrations of peace in this way.
Creating students through service is very good. That expansion definitely has to happen. However, now, just as you have a variety of nationalities and souls of different religions, let there be souls of all different occupations at every place. Anyone who goes to a centre should be able to find someone of his own occupation at that centre who can share his experience, just as you have workshops here, sometimes with doctors, sometimes with lawyers etc. When people of different occupations speak of the one subject of peace on the basis of their own occupation, they enjoy that. So, in this way, let people of every occupation relate their experience of peace to anyone who comes to the centre and this will have an impact on them. Let them experience that this is an easy method for people of all occupations. For instance, for some time now, there has been good advertising about this being the only method for those of all religions. Let there be this sound. So, now spread the sound in this way. This sound reaches those who are in contact with you and the students but, now, let there be a bit more attention paid to enable this sound to be spread in all directions. Only a few Brahmins have been created so far. The speed of becoming Brahmins numberwise cannot be said to be fast. There needs to be at least 900,000 now. At the beginning of the golden age you will rule over at least 900,000, will you not? There will be subjects in that number too, but only when they come into close contact with you now will they then become subjects. So, bearing this figure in mind, how fast should the speed be? As yet, the number is very small. What is the total number of those abroad? At the very least, the number of those abroad should be two to three hundred thousand. You are making very good effort. There isn't anything wrong but, now, let the speed be a little faster. The speed will increase through the general atmosphere. Achcha.
Question: What is the way to create a very powerful atmosphere?
Answer: You yourself become powerful. For this, pay special attention to checking whether in every action from amrit vela onwards your stage is powerful or not. When you are busy serving others and making plans for service, there is sometimes a little lightness (slackness) in your own stage. This is why the atmosphere doesn't become powerful. Service takes place, but the atmosphere doesn't become powerful. For this you have to pay special attention to yourself. Karma and yoga; together with karma, there has to be a powerful stage: this balance is lacking a little. When you are just being busy in service, your own stage doesn't remain powerful. Given the amount of time you give for service, and the extent to which you use your body, mind and wealth for service, you don't receive the hundred-thousandfold return of one that you should be receiving. The reason for this is that there isn't the balance of karma and yoga. Just as you make plans for service – you have leaflets printed, you have programmes on the TV and Radio – just as you use these external facilities, in the same way, first of all, have a special method to make the stage of your mind powerful. This attention is lacking. You then say that because you were busy, you missed out on this a little. There cannot then be double benefit.
Blessing:May you be a great renunciate who renounces the respect and status received through service and creates an imperishable fortune.
The practical fruit of the elevated actions that you perform and service that you children do is to be praised by everyone. A server receives a seat of elevated praise, he receives a seat of respect and status. Such a soul definitely receives this success. However, all of these forms of success are the steps of the journey and not the final destination. So, renounce this and become fortunate. This is known as being a great renunciate. The speciality of a great, incognito donor is to be a renunciate of even the renunciation.
Slogan:In order to be an angel, observe the part of every soul as a detached observer and give them sakaash.
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