Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 09-Oct-2018 )
09-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अब मनुष्यों द्वारा मिले हुए मंत्र-जंत्र काम में नहीं आने हैं, इसलिए तुम सबसे अपना बुद्धियोग तोड़ एक बाप को याद करो''
प्रश्नः-भक्ति की कौन-सी बात ज्ञान मार्ग में नहीं चल सकती है?
उत्तर:-भक्ति में भगवान् से कृपा अथवा आशीर्वाद मांगते हैं, ज्ञान मार्ग में आशीर्वाद वा कृपा की बात नहीं। यह पढ़ाई है, बाप टीचर बनकर तुमको पढ़ा रहे हैं। तकदीर का आधार पढ़ाई पर है। अगर बाप कृपा करे तो सारा क्लास ही पास हो जाए इसलिए ज्ञान मार्ग में कृपा वा आशीर्वाद की बात नहीं। हरेक को अपना-अपना पुरुषार्थ जरूर करना है।
गीत:-
मैं एक नन्हा सा बच्चा हूँ.......
ओम् शान्ति।
यह है भक्ति मार्ग के लिए पुकार, छोटे और बड़े की क्योंकि समझाया गया है भक्त तो यज्ञ, जप, तप आदि करते हैं, समझते हैं इनसे परमात्मा से मिलने का रास्ता मिलेगा। फिर ईश्वर को सर्वव्यापी कहना, मैं भी उनका रूप हूँ, मेरे में भी भगवान् है, यह कहना तो झूठ है ना। वह कोई दु:ख सहन नहीं करता। भगवान् तो अलग चीज़ है ना। यही मनुष्यों की भूल है जिस कारण दु:ख भोग रहे हैं। तुम्हारे में भी कोई विरले बाप को जानते हैं। माया घड़ी-घड़ी भुला देती है। बाप तो बार-बार कहते हैं, तुमको श्रीमत देते हैं कि अपने को आत्मा समझो और मुझ बाप को याद करो। यह है श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत। बाप की श्रीमत से मनुष्य नर से नारायण, पतित से पावन बनते हैं। इस समय के जो यह पतित मनुष्य हैं उन्हों की श्रेष्ठ मत नहीं है। भगवान् ने भी कहा है कि यह भ्रष्टाचारी आसुरी सम्प्रदाय है। बाप कहते हैं तुम्हारा देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। तुमने बहुत सुख पाया है, यह बना-बनाया ड्रामा है। ऐसे नहीं कि भगवान् ने क्यों बनाया है? यह तो अनादि ड्रामा है ना। ज्ञान माना दिन, भक्ति माना रात। ज्ञान से अब तुम स्वर्गवासी बन रहे हो, भक्ति से नर्कवासी बने हो। परन्तु मनुष्य पत्थरबुद्धि होने कारण समझते नहीं। क्रोध कितना भारी है। कितने बाम्ब्स बनाते रहते हैं, समझते हैं विनाश जरूर होगा। तो यह भ्रष्टाचारी बुद्धि हुई ना। कलियुग को कहा जाता है रावण राज्य। रावण ही भ्रष्टाचारी बनाते हैं। बाप आकर आर्डीनेन्स निकालते हैं कि अब भ्रष्टाचार बन्द करो। नम्बरवन भ्रष्टाचार है एक-दो को पतित बनाना। यह है वेश्यालय। कलियुगी भारत को वेश्यालय कहा जाता है। सब विष से पैदा होने वाले हैं। सतयुग को कहा जाता है शिवालय। शिवबाबा का स्थापन किया हुआ पवित्र भारत। लक्ष्मी-नारायण आदि को कहा जाता है सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी...... फिर यह प्रश्न नहीं उठ सकता कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं? जबकि तुम बच्चे योगबल से विश्व के मालिक बन सकते हो तो योगबल से क्या नहीं हो सकता है! बाबा कहते हैं तुम योगबल से श्रीमत पर स्वर्ग के मालिक बन सकते हो तो वहाँ योगबल से बच्चे भी पैदा होंगे। बाहुबल से सारी सृष्टि पर राज्य नहीं कर सकते। उन्हों का है बाहुबल, तुम्हारा है योगबल। तुम सर्वशक्तिमान बाप से योग लगाते हो। सर्वशक्तिमान बाप खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। परन्तु कोई की बुद्धि में ठहरता नहीं। उसी समय हाँ-हाँ कहते हैं फिर भूल जाते हैं।
बरोबर भगवान् बेहद का बाप राजयोग सिखलाकर ज्ञान से हमारा श्रृंगार कर रहे हैं। फिर भी बुद्धि में नहीं बैठता है तो कहेंगे उसकी तकदीर में नहीं है इसलिए तदबीर नहीं करते। टीचर तो सबको पढ़ाते हैं फिर कोई कितना पढ़ते हैं, कोई नापास हो जाते हैं। टीचर को थोड़ेही कहेंगे आशीर्वाद करो। पढ़ाई में आशीर्वाद, कृपा आदि नहीं चलती है। ज्ञान मार्ग में तो बाप तुमको नमस्ते करते हैं। कृपा वा आशीर्वाद नहीं मांगनी है। बाप के पास बच्चा आया तो वह मालिक ही बन जाता है। बाप कहते हैं यह तो मालिक है, कृपा की बात नहीं। बाप की मिलकियत सो बच्चे की हो गई। हाँ, बाकी बच्चों को सुधारना, वह फिर टीचर का काम है। टीचर कहेंगे पढ़ो। पढ़ना तुम्हारा काम है। कृपा क्या करेंगे? गुरू का भी फ़र्ज है रास्ता बताना, सद्गति मार्ग का। आशीर्वाद की बात नहीं। यह तो एक ही बाप, टीचर, गुरू है। तीनों से कृपा मांगने की बात नहीं। बेसमझ मनुष्यों को बाप बैठ समझ देते हैं। यह तो उनकी आशीर्वाद है ही। बाकी उस पर चलना बच्चों का काम है। गाया हुआ है - श्रीमत भगवानुवाच। वह है ऊंच ते ऊंच तो उनकी मत भी ऊंच होगी ना। श्रीमत से तुम श्रेष्ठ देवी-देवता बन रहे हो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। तुम भी समझ सकते हो हम कितनी मार्क्स से पास होंगे। स्कूल में स्टूडेंट समझ तो सकते हैं ना - हमने पूरा पढ़ा नहीं है इसलिए हम नापास होंगे। बाप भी रजिस्टर से समझ जाते हैं यह नापास होगा। यह भी बेहद का बाप, टीचर, गुरू एक ही है। यह भी जानते हैं, बच्चे भी जानते हैं हम पढ़ते नहीं। पढ़ते नहीं तो जरूर कम पद होगा। यह भी पुरुषार्थ नहीं करते कि अच्छा हम तीखा पढ़ें। भल कितना भी माथा मारते है, समझाते हैं तो भी कुछ करते नहीं। श्रीमत पर न चलने से नीच पद पायेंगे। जो बच्चे बनते हैं वह डिनायस्टी में तो आ जायेंगे। उनमें भी बहुत पद हैं ना। दास-दासी भी बनते हैं। बच्चे जानते हैं पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे नहीं तो दास-दासी बनेंगे। परन्तु वह भी रॉयल रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण के हीरे जवाहरों के महल होंगे, तो दास-दासियां भी वहाँ रहेंगी ना। फिर नम्बरवार आगे चल पद पा सकते हैं। प्रजा में भी नम्बरवार हैं। भक्ति मार्ग में मनुष्य इन्श्योर करते हैं ना। ईश्वर अर्थ दान देते हैं। समझो कोई ने हॉस्पिटल बनाई होगी तो दूसरे जन्म में अच्छी निरोगी काया मिलेगी। अल्पकाल के लिए फल तो मिलता है ना। कोई ने पाठशाला खोली होगी तो दूसरे जन्म में अच्छा पढ़ेंगे। धर्मशाला खोली होगी तो दूसरे जन्म में रहने के लिए अच्छा मकान मिलेगा। तो यह इन्श्योर करना हुआ ना। हर एक अपने को इन्श्योर करते हैं। अभी तुम्हारा है डायरेक्ट ईश्वर के साथ। वह है इनडायरेक्ट, यह है डायरेक्ट इन्श्योर करना। बाबा यह सब कुछ आपका ही है, हम ट्रस्टी हैं। इनके बदले में आप हमें 21 जन्म के लिए स्वराज्य दे देना। यह हुआ डायरेक्ट बाप को इन्श्योर करना, 21जन्म लिए। बाप कहते हैं अपना बैग-बैगेज सब सतयुग में ट्रान्सफर कर दो। जैसे लड़ाई लगती है तो फिर छोटे-छोटे राजायें बड़े राजाओं के पास अपनी मिलकियत रखते हैं। फिर लड़ाई जब पूरी हो जाती है तो फिर बड़ों से वापिस ले लेते हैं। बाबा तो इन बातों का अनुभवी है ना। बाप भी जानते हैं, यह दादा भी जानते हैं। समझना चाहिए हमको दादा द्वारा बाबा से वर्सा मिलता है। बाप पढ़ाते हैं। हेविनली गॉड फादर वह बाप है, यह नहीं, यह है दादा। पहले जरूर दादे का बनना पड़े। बाबा, हम आपके हैं, आपसे हम वर्सा लेंगे। और सब तरफ से बुद्धियोग तोड़ना इसमें मेहनत है।
बाप कहते हैं अभी और गुरू आदि के मंत्र कोई भी काम में नहीं आयेंगे। कोई भी मनुष्य मात्र का मंत्र अभी काम नहीं आयेगा। मैं तुमको कहता हूँ मुझे याद करो तो तुम्हारी विजय है। तुम्हारे सिर पर पापों का बोझा बहुत है। अब मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। फिर तुमको स्वर्ग में भेज दूँगा। पहले तो यह निश्चय चाहिए ना। निश्चय नहीं है तो बाबा बुद्धि का ताला भी नहीं खोलता, धारणा नहीं होती। बाप का बने तो वर्से का भी हकदार बने। बुद्धि में बैठता नहीं है। कोई-कोई नये भी पुरानों से तीखे चले जाते हैं। बाप तो अच्छी रीति समझाते हैं। जितना जो पढ़ेंगे उतनी कमाई है। यह गॉड फादरली नॉलेज सोर्स आफ इनकम है। तुम विश्व का मालिक बनते हो, नॉलेज से। मनुष्यों में यह ज्ञान थोड़ेही है। अब तुम मेरे बच्चे आसुरी सम्प्रदाय से दैवी सम्प्रदाय, भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बन रहे हो। सिवाए श्रीमत के कोई भी श्रेष्ठाचारी बन नहीं सकता। नहीं तो फिर अन्त में सजायें खाकर वापिस जायेंगे। भल थोड़ा-बहुत जो सुनते हैं वो स्वर्ग में आयेंगे परन्तु बिल्कुल ही साधारण प्रजा में। मर्तबे तो नम्बरवार होते हैं ना। वहाँ ऐसे गरीब नहीं होंगे जो किसको रोटी नहीं मिले। यहाँ जैसे गरीब वहाँ नहीं होते। सुख सबको रहता है। परन्तु ऐसे नहीं समझना है - अच्छा, प्रजा तो प्रजा ही सही। यह तो कमजोरी हुई ना। पहले तो पक्का निश्चय चाहिए। यह निराकार भगवानुवाच है। भगवान् कहते हैं मुझे मनुष्य चोला तो नहीं है। मेरा नाम है शिव। बाकी जो भी देवतायें या मनुष्य हैं, सबके शरीर पर नाम हैं, मेरा नाम शरीर पर नहीं है। मुझे अपना शरीर ही नहीं है। शरीरधारी को भगवान् नहीं कहा जाता, मनुष्य कहा जाता है। मनुष्य को भगवान् मानने से ही भारतवासी बेसमझ बन गये हैं। नहीं तो भारतवासी बहुत सयाने थे। पहले भारत में कपड़ा आदि बहुत रिफाइन अच्छा बनता था। अभी तो वह चीज़ बन नहीं सकती। तो स्वर्ग में साइन्स भी सुख के लिए होती है। यहाँ तो साइन्स सुख-दु:ख दोनों के लिए है। अल्पकाल का सुख मिलता है। दु:ख तो अपार है। सारी दुनिया ख़त्म हो जायेगी तो दु:ख हुआ ना। सब त्राहि-त्राहि करेंगे। वहाँ तो साइन्स से सुख ही सुख होता है, दु:ख का नाम निशान नहीं। यह भी जिनकी तकदीर खुलती है वही समझ सकते हैं। तकदीर में सुख नहीं है तो समझ नहीं सकते। बैरिस्टर भी नम्बरवार होते हैं ना। कोई तो एक-एक केस का 10-20 हजार रूपया लेते हैं। कोई बैरिस्टर को देखो तो कोट भी पहनने के लिए नहीं होगा। यहाँ भी ऐसे है ना, या तो राजाओं का राजा बनते या तो पाई पैसे की प्रजा बनते हैं। तो बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं भारत ही इस समय सबसे गरीब है, भारत ही फिर साहूकार बनता है। दान हमेशा गरीबों को दिया जाता है। धनवान इतना उठा नहीं सकते हैं। गरीब साधारण ही यह ज्ञान उठायेंगे। साहूकारों को दान देना यह लॉ नहीं है। तुम गरीब हो ना। तुम्हारी मम्मा सबसे गरीब, वह फिर विश्व की महारानी बनती है। ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। गरीब जास्ती उठाते हैं क्योंकि दु:खी हैं ना। साहूकार तो बहुत सुखी हैं। वह तो कहते हैं हमको तो यहाँ ही स्वर्ग है, मोटर-गाड़ियाँ, पैसा आदि है। जिनको पैसा नहीं है, नर्क में है उनको आप ज्ञान दो - ऐसे भी कहते हैं। तुम्हारी है अब गॉड फादरली सर्विस। तुम भारत के सच्चे सर्वेन्ट हो। वह सोशल वर्कर्स हैं जिस्मानी। मनुष्यों को थोड़ा सुख देते हैं। यह तो सारी सृष्टि को साफ कर पवित्र-सुखी बना देते हैं। यह तन-मन-धन से भारत की सेवा कर रहे हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बपदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना पुराना बैग-बैगेज 21 जन्मों के लिए ट्रान्सफर करना है, इनश्योर कर ट्रस्टी हो सम्भालना है।
2) निश्चयबुद्धि बन पढ़ाई करनी है। गरीबों को ज्ञान दान देना है। भारत को पवित्र बनाने की सच्ची रूहानी सेवा करनी है।
वरदान:-सर्व खजानों की सम्पन्नता द्वारा सम्पूर्णता का अनुभव करने वाले प्राप्ति स्वरूप भव
जैसे चन्द्रमा जब सम्पन्न होता है तो सम्पन्नता उसके सम्पूर्णता की निशानी होती है, इससे और आगे नहीं बढ़ेगा, बस इतनी ही सम्पूर्णता है, जरा भी किनारी कम नहीं होती है। ऐसे आप बच्चे जब ज्ञान, योग, धारणा और सेवा अर्थात् सभी खजानों से सम्पन्न होते हो, तो इस सम्पन्नता को ही सम्पूर्णता कहा जाता है। ऐसी सम्पन्न आत्मायें प्राप्ति स्वरूप होने के कारण स्थिति में भी सदा समीप रहती हैं।
स्लोगन:-दिव्य बुद्धि द्वारा सर्व सिद्धियों को प्राप्त करना ही सिद्धि स्वरूप बनना है।
09/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the mantras you have received from human beings are not going to be of any use. Therefore, remove your intellects’ yoga away from everything else and remember the one Father.
Question:What things of the path of devotion cannot continue on the path of knowledge?
Answer:On the path of devotion, they ask God for mercy and blessings. On the path of knowledge, it is not a question of blessings or mercy. This is a study. The Father becomes the Teacher and teaches you. The basis of your fortune is how you study. If the Father were to have mercy, the whole class would pass. This is why it is not a question of mercy or blessings on the path of knowledge. Each of you definitely has to make your own effort.
Song:I am a small child and You are the Almighty.
Om Shanti
This call is from the path of devotion, of the young and the old, because it has been explained that devotees hold sacrificial fires, do chanting and tapasya etc. They believe that they will find a way to the Supreme Soul by doing all of that. To say that God is omnipresent, to say “I am a form of Him” or “God is also in me” are all lies. God doesn’t experience sorrow. God is something separate. This is the mistake of human beings due to which they are experiencing sorrow. Among you also, hardly anyone knows the Father. Maya repeatedly makes you forget. The Father repeatedly tells you: You are given the shrimat to consider yourself to be a soul and to remember Me, the Father. This is the most elevated direction of all. With the Father's shrimat, human beings change from ordinary humans to Narayan, from impure to pure. The directions that impure human beings of this time give are not elevated. God has also said that this is the corrupt, devilish community. The Father says: Your deity religion is one that gives a lot of happiness. You attained a lot of happiness. This drama is predestined. One shouldn’t ask: Why has God created this drama? This drama is eternal. Knowledge means the day and devotion means the night. With knowledge, you are now becoming residents of heaven whereas with devotion you have become residents of hell. However, because human beings have stone intellects, they don't understand. Anger is very bad. They continue to manufacture so many bombs. They understand that destruction will definitely take place. Therefore, their intellects are corrupt, are they not? The iron age is called the kingdom of Ravan. It is Ravan that makes you corrupt. The Father comes and issues an ordinance: Stop this corruption! The number one corruption is to make one another impure. This is a brothel. Iron-aged Bharat is called a brothel. Everyone is born through vice. The golden age is called Shivalaya. It was the pure Bharat that was established by Shiv Baba. Lakshmi and Narayan etc. are called full of all virtues, 16 celestial degrees full, completely viceless. In that case, the question of how children are born cannot arise. Since it is through the power of yoga that you children become the masters of the world, what is not possible through the power of yoga? Baba says: Through the power of yoga you can become the masters of heaven by following shrimat. Children there will be born through the power of yoga. You cannot rule the whole world with physical power. Theirs is physical power whereas yours is yoga power. You have yoga with the Almighty Authority Father. The Almighty Father Himself says: Remember Me and your sins will be absolved. However, this doesn't stay in anyone's intellect. They say, "Yes, yes", at that time and then forget. Truly God, the unlimited Father, is decorating you with knowledge by teaching you Raja Yoga. In spite of that, if it doesn't sit in your intellect, it would be said that it is not in your fortune, and that is why you do not make effort. A teacher teaches everyone and then some study to a certain extent and some fail. You wouldn't tell your teacher to give you blessings. In a study, there cannot be mercy or blessings etc. On the path of knowledge, the Father says namaste to you. You mustn't ask for mercy or blessings. When a child comes to the Father, the child becomes a master. The Father says: This one is a master; there is no question of mercy. The father's property becomes the child's property. However, yes, it is a teacher's duty to reform children. A teacher would ask you to study. It is your duty to study. What mercy would he have? It is a guru's duty to show you the path to salvation; there is no question of blessings. This is the only One who is the Father, Teacher and Guru. There is no question of asking for mercy from any of the three. The Father sits here and gives wisdom to senseless human beings. This is His blessings anyway. However, it is the children's duty to follow. It has been remembered: Shrimat spoken by God. He is the Highest on High and so His directions would also be elevated. By following shrimat, you become elevated deities, numberwise, according to your efforts. You can also understand how many marks you will pass with. At school, students can understand that they will fail because they haven't studied fully. Even a father can tell from the register that his child will fail. This One is the unlimited Father, Teacher and Guru. This One knows and the children know when they are not studying. If you don't study, your status will definitely be low. You are not even making effort to study well. No matter how much Baba beats His head and explains to you, you don't do anything. When shrimat is not followed, a low status is claimed. Those who become the children will become part of the dynasty. There are many levels of status in that too. There are those who even become maids and servants. You children know that if you don't study and teach others, you become maids and servants. However, they too remain royal. Lakshmi and Narayan will have palaces studded with jewels and diamonds, and the maids and servants will also reside there. They can then claim a higher status in the future, numberwise. The subjects too are numberwise. People insure everything on the path of devotion; they make donations in the name of God. For instance, if someone had a hospital built, he would receive a healthy body free from disease in his next birth. Temporary fruit is definitely received. If someone opened a school, he would study well in his next birth. If someone opened a dharamshala, he would have a good building to stay in his next birth. Therefore, this is insuring, is it not? Each one insures himself. Everything of yours is now direct with God. That is indirect whereas this is insuring directly. “Baba, all of this is Yours; I am a trustee. In return for this, You give us self-sovereignty for 21 births.” This is insuring directly with the Father for 21 births. The Father says: Transfer your bags and baggage to the golden age. When war breaks out, the smaller kings place all their wealth with the bigger king, and then, when the war is over, they take all their wealth back. Baba is experienced in these things. The Father knows and Dada also knows. You should understand that you are receiving the inheritance from Baba through Dada. The Father is teaching you. That Father, not this one, is Heavenly God, the Father. This one is Dada (the elder brother). Firstly, you definitely have to belong to Dada (Grandfather): Baba, I belong to You, I will claim my inheritance from You. To break away your intellect’s yoga away from everyone else requires effort. The Father says: Now, all the mantras from the gurus etc. are not going to be of any use. None of the mantras from any of the human beings are going to be of use now. I tell you: Remember Me and victory is yours. You have big burdens of sins on your heads. Now remember Me and your sins will be absolved. Then I will send you to heaven. First of all, you have to have this faith. If there isn't faith, Baba doesn't open the locks on the intellects and you don’t imbibe anything. When you belong to the Father, you also claim a right to the inheritance. This doesn't sit in some intellects. Some new ones go ahead of the older ones. The Father explains very clearly. To the extent that someone studies, accordingly he earns an income. This Godfatherly knowledge is a source of income. Through knowledge you become the masters of the world. Human beings don't have this knowledge. You have now become My children. From the devilish community, you now belong to the deity community. From corrupt, you are becoming elevated. No one can become elevated without following shrimat. Otherwise, at the end, you will return home having experienced punishment. Although those who listen to a little knowledge will come to heaven, they will attain a completely ordinary status amongst the subjects. The status there is numberwise. There, people won't be so poor that they don't have chapattis to eat. Poor people there are not like the poor people here. Everyone has happiness there. Don't think: It’s OK even if I am one of the subjects. That is weakness. First of all, there has to be firm faith. These are the versions of incorporeal God. God says: I do not take a human costume. My name is Shiva. All deities and human beings have names given to their bodies. I do not have a bodily name. I do not have a body of My own. Bodily beings cannot be called God; they are called human beings. It is due to considering human beings to be God that the people of Bharat have become senseless. Otherwise, the people of Bharat were very wise and sensible. Earlier, the cloth etc. of Bharat was good, very refined. Now, they cannot make those same things. Science too exists in heaven for your happiness. Here, science is for both happiness and sorrow; you receive temporary happiness. There is limitless sorrow. When the whole world is destroyed, there will be sorrow, will there not? Everyone will cry out in distress. There, there is nothing but happiness through science; there is no mention of sorrow. Only those whose fortune has opened can understand this. If they don't have happiness in their fortune, they don’t understand. Barristers etc. are also numberwise. Some charge 10 to 20 thousand for a single case, whereas other barristers don't even have a coat to wear. It is the same here. One either becomes a king of kings or a subject worth a few pennies. The Father sits here and explains to you children. Bharat is the poorest of all at this time. It is Bharat that then becomes wealthy. Donations are always given to the poor. The wealthy are not able to take this knowledge as much as ordinary, poor people. Only they will take this knowledge. It is not the law to give donations to wealthy ones. You are poor, are you not? Your Mama was the poorest of all, but she will then become the empress of the world. The drama has been created in this way. The majority of those who take this knowledge are poor because they are unhappy. The wealthy are very happy anyway. They say that this is heaven for them. They have motorcars and money etc. They say: Give knowledge to those who don’t have money and are in hell. Yours is Godfatherly service. You are the true servants of Bharat. Those are physical social workers; they give a little happiness to human beings. You cleanse the whole world and make it pure and happy. You are serving Bharat with your bodies, minds and wealth. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Transfer your old bags and baggage for 21 births. Insure them and then look after them as a trustee.
2. Study with faith in your intellect. Donate the wealth of knowledge to the poor. Do the true spiritual service of making Bharat pure.
Blessing:May you be an embodiment of attainment and experience fullness and perfection by being full of all treasures.
When the moon is full, that fullness is a sign of its perfection. It will not grow any more, its perfection is only to that extent, there isn’t anything missing from its edge. In the same way, when you children are filled with knowledge, yoga, virtues and service, that is, all treasures, this fullness is said to be perfection. Because such full souls are embodiments of attainment, they are always close in their stage too.
Slogan:To attain total success with a divine intellect is to be an embodiment of success.
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