Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 1st Oct 2018 | 113370 | 2018-11-13 01:33:45 | |
2 | Murali 02- Oct 2018 | 132948 | 2018-11-13 01:33:45 | |
3 | Murali 03-Oct-2018 | 125177 | 2018-11-13 01:33:45 | |
4 | Murali 04-Oct-2018 | 118934 | 2018-11-13 01:33:45 | |
5 | Murali 05-Oct-2018 | 133374 | 2018-11-13 01:33:45 | |
6 | Murali 06-Oct-2018 | 133043 | 2018-11-13 01:33:45 | |
7 | Murali 07-Oct-2018 | 135426 | 2018-11-13 01:33:45 | |
8 | Murali 08-Oct-2018 | 118475 | 2018-11-13 01:33:45 | |
9 | Murali 09-Oct-2018 | 113426 | 2018-11-13 01:33:46 | |
10 | Murali 10-Oct-2018 | 123819 | 2018-11-13 01:33:46 | |
11 | Murali 11-Oct-2018 | 133485 | 2018-11-13 01:33:46 | |
12 | Murali 12th Oct 2018 | 12264 | 2018-11-13 01:33:46 | |
13 | Murali 13th Oct 2018 | 120124 | 2018-11-13 01:33:46 | |
14 | Murali 14th Oct 2018 | 132308 | 2018-11-13 01:33:46 | |
15 | Murali 15th Oct 2018 | 124161 | 2018-11-13 01:33:46 | |
16 | Murali 16th Oct 2018 | 128293 | 2018-11-13 01:33:46 | |
17 | Murali 17th Oct 2018 | 120298 | 2018-11-13 01:33:46 | |
18 | Murali 18th Oct 2018 | 118916 | 2018-11-13 01:33:46 | |
19 | Murali 19th Oct 2018 | 117510 | 2018-11-13 01:33:46 | |
20 | Murali 20th Oct 2018 | 117518 | 2018-11-13 01:33:46 | |
21 | Murali 21st Oct 2018 | 130603 | 2018-11-13 01:33:46 | |
22 | Murali 22nd Oct 2018 | 135192 | 2018-11-13 01:33:46 | |
23 | Murali 23rd Oct 2018 | 113654 | 2018-11-13 01:33:46 | |
24 | Murali 24th Oct 2018 | 128826 | 2018-11-13 01:33:46 | |
25 | Murali 25th Oct 2018 | 124802 | 2018-11-13 01:33:46 | |
26 | Murali 26th Oct 2018 | 117905 | 2018-11-13 01:33:46 | |
27 | Murali 27th Oct 2018 | 125168 | 2018-11-13 01:33:46 | |
28 | Murali 28th Oct 2018 | 105833 | 2018-11-13 01:33:46 | |
29 | Murali 29th Oct 2018 | 124953 | 2018-11-13 01:33:46 | |
30 | Murali 30th Oct 2018 | 235865 | 2018-11-13 01:33:46 |
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Details ( Page:- Murali 05-Oct-2018 )
05-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - पढ़ाई कभी भी मिस नहीं करना, पढ़ाई का शौक तब रहेगा जब पढ़ाने वाले बाप में अटूट निश्चय होगा, निश्चय बुद्धि बच्चे ही सर्विस कर सकेंगे''
प्रश्नः-बापदादा को बच्चों की कौन-सी बात सुनकर बहुत खुशी होती है?
उत्तर:-जब बच्चे सर्विस समाचार का पत्र लिखते हैं - बाबा, आज हमने फलाने को समझाया, उसको दो बाप का परिचय दिया.... ऐसे-ऐसे सेवा की। तो बाबा उन पत्रों को पढ़कर बहुत खुश होते हैं। याद-प्यार वा खुश ख़ैराफत का पत्र लिखने से बाबा का पेट नहीं भरता। बाबा अपने मददगार बच्चों को देख खुश होते हैं इसलिए सर्विस करके समाचार लिखना है।
गीत:-चलो चले माँ......
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कांटों से फूलों की दुनिया में जाना है। सतयुगी दुनिया को दैवी फूल ही कहेंगे। कलियुग में मनुष्य हैं कांटें मिसल। एक-दो को तंग करते, दु:ख देते रहते हैं। तुम बच्चे अब खुश होते हो कि चलो, अब हम अपने उस दैवी फूलों के सुखधाम में चलें। चलने का भी राज़ समझना है। चलेंगे तब, जब अच्छी रीति पढ़ेंगे। पहले तो निश्चय चाहिए - पढ़ाने वाला कौन है? यह बातें कोई वेद-शास्त्र आदि में लिखी हुई नहीं हैं। भल गीता में राजयोग लिखा हुआ है, राजाई के लिए पढ़ाई है तो जरूर राजाई सतयुग में देंगे। पहले तो पढ़ाने वाले का निश्चय चाहिए। यह कोई साधू, सन्त, मनुष्य तो है नहीं। यह तो है निराकार। सब आत्माओं का बाप है - परमपिता परमात्मा। जिन्हों को कल्प पहले मुआफिक निश्चय होना होगा, उन्हों को ही होगा। तुम देखते हो फूलों की दुनिया स्वर्ग में चलने के लिए हरेक का अपना-अपना पुरुषार्थ है। पहले जब निश्चय हो तो झट पढ़ाई में लग पड़े। शास्त्रों में कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है - साथ-साथ लिखा भी है रुद्र ज्ञान यज्ञ। अब यह तो ज्ञान की बातें हो गई। मनुष्यों ने फिर कृष्ण को काठ की मुरली दे दी है। गायन भी है ना तेरी मुरली में जादू है खुदाई। अब काठ की मुरली में तो खुदाई जादू हो न सके। वह तो मुख से मुरली बजा सकते हैं। कृष्ण का बचपन ही दिखाते हैं, आपस में खेलते-कूदते रहते हैं। यह बातें बड़ी समझने लायक हैं। यह तो बच्चे समझ गये हैं कि यह बरोबर राजयोग है अर्थात् राजाई प्राप्त करने की पढ़ाई कराने वाले के साथ योग। वह सम्मुख आकर पढ़ाते हैं। इसमें काठ के मुरली की कोई बात नहीं। यह बातें ही निराली हैं। यह किसको भी पता नहीं है कि निराकार भगवान् स्वयं आकर पढ़ाते हैं। कृष्ण के लिए भी कहते हैं, उनकी मुरली में खुदाई जादू है। तो खुदा और हो गया ना। कृष्ण को खुदा नहीं कहेंगे। खुदा तो खुदा ही है, उनको ही जादूगर कहते हैं। जादूगर स्वयं आकर जादूगरी दिखलाते हैं, साक्षात्कार कराते हैं। फिर भी ऊंच पद प्राप्त कराने लिए पढ़ाते हैं। मीरा ने भी वैकुण्ठ देखा और डांस की, परन्तु वह राजयोग नहीं सीखी। राजयोग की बात कोई भी शास्त्र में नहीं है। मीरा को पढ़ाने वाला तो कोई नहीं था। मीरा का नाम भी भक्त माला में है। यह है ज्ञान माला। रात-दिन का फ़र्क है। तुम समझ गये हो - हम जितना ज्ञान उठायेंगे, उतना ऊंच बनेंगे। बरोबर भक्त माला भी है, उनमें भी नम्बरवार हैं। उन्हों के नाम तो मशहूर हैं। यह ज्ञान कोई में भी नहीं है। तो समझाना चाहिए - यह ज्ञान देने वाला वह अथॉरिटी बाप है, जिसके लिए कहा जाता है ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण रच उन्हों को सभी वेदों-शास्त्रों का सार सुनाते हैं। शिवबाबा को तो शास्त्र दे न सकें, क्योंकि वह तो है निराकार। तो ब्रह्मा द्वारा समझाते हैं। यह युक्ति रची है। परन्तु यह सब बातें समझाने वाला वह एक है। दिखलाते भी हैं ब्रह्मा द्वारा सार बतलाते हैं तो जरूर समझाने वाला कोई दूसरा है ना। अभी तुम प्रैक्टिकल में देखते हो शिवबाबा जो ज्ञान सागर है, हमारा बाबा भी है, वह सम्मुख बैठे हैं। भारत में ही आते हैं और जरूर कोई के शरीर में आते हैं। यह ब्रह्मा का शरीर है। प्रजापिता ब्रह्मा होना भी जरूरी है। बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही बाप आकर ब्राह्मण धर्म रचते हैं। धर्म कैसे रचा जाता है? यह भी तुम जानते हो। तुम प्रैक्टिकल में ब्रह्मा की सन्तान हो। कहते हो हम ब्राह्मण ब्राह्मणियां हैं। बाप से वर्सा ले रहे हैं। फालोअर तो कभी वर्सा ले न सके। बच्चे ही बाप से वर्सा लेते हैं। तुम आकर बेहद के बच्चे बने हो। क्राइस्ट के फालोअर कहेंगे, बच्चे नहीं। बुद्ध के, गुरुनानक के फालोअर ही कहेंगे, बच्चे नहीं। यहाँ तुम बच्चे हो। प्रजापिता वह भी बाप ठहरा और शिवबाबा भी बाप हो गया। वह निराकार है, यह साकार अलग है। इस साकार द्वारा ही शिवबाबा ने बच्चों को रचा है। अब तुम्हारे में भी कोई को तो पक्का निश्चय है, कोई को नहीं है। लॉटरी है बहुत बड़ी।
तुमको अपने शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है और फिर यह ज्ञान भी सीखना है। उस पढ़ाई में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ भी बाप कहते हैं एक घड़ी, आधी घड़ी, पढ़ो जरूर। अच्छा, कोई कारण से रोज़ नहीं पढ़ सकते हो तो पहले 7 रोज़ पढ़कर फिर मुरली के आधार पर चल सकते हो। लक्ष्य पकड़ लिया, बाकी है टाल, डाल, पत्ते आदि को समझना, वह सब भी चक्र में आ जाता है। तुमको 84 जन्मों का राज़ भी समझाया है। झाड़ में डीटेल है, चक्र में नटशेल है। समझाया भी है यह वैराइटी मनुष्य सृष्टि के धर्म हैं। पहले एक धर्म रहता है फिर वृद्धि होती है। झाड़ भी दिखाया है - कैसे फाउन्डेशन निकलता है। कितना सहज राज़ है! ड्रामा और झाड़ को समझना है, बुद्धि में धारण करना है और दूसरों को समझाना है। दो बाप की प्वाइन्ट तो जरूर समझानी है। बेहद के बाप से स्वराज्य मिलता है इसलिए राजयोग जरूर सीखना पड़े। परमपिता परमात्मा ही स्वर्ग की स्थापना करते हैं, जिसको कृष्णपुरी भी कहते हैं। कंसपुरी में तो कृष्णपुरी स्थापन हो न सके, इसलिए संगम रखा हुआ है। तुम बच्चों के लिए यह संगमयुग है, बाकी और सबके लिए कलियुग है। तुम ही संगम से फिर सतयुग में जाने वाले हो, यह निश्चय चाहिए। अभी हम संगम पर हैं। संगमयुग याद रहे तो सतयुग भी याद रहे और सतयुग स्थापन करने वाला भी याद रहे। परन्तु घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। तुम समझते हो अभी हम संगम पर हैं, बेहद का बाप आते ही हैं कल्प के संगमयुगे। गीता में भूल कर दी है। गीता से तैलुक रखने वाले सिर्फ भागवत, महाभारत आदि हैं।
बाप समझाते हैं - तुम सब सीतायें हो, मैं राम हूँ। तुम रावण राज्य रूपी लंका में पड़े हो, वह लंका नहीं। ऐसे नहीं, वहाँ कोई रावण राज्य था। सतयुग में लंका आदि होती नहीं। उस तरफ बौद्ध धर्म है। अभी बौद्ध धर्म बहुत फैला हुआ है। अब यह तो बच्चों को समझाया गया है भारत पहले बिल्कुल पवित्र था, सुख-शान्ति थी, एक ही देवी-देवता धर्म था। पहले-पहले तो यह निश्चय पक्का रहना चाहिए कि यह हमारा बेहद का बाप है, उनसे वर्सा लेना है, पुरुषार्थ में कभी चूकना नहीं है। निश्चय बिगर पुरुषार्थ भी कैसे करेंगे? बाप पढ़ाते हैं, उनसे स्वर्ग का, सदा सुख का वर्सा मिल रहा है, यह तो सर्टेन है। स्कूल में बिगर निश्चय अथवा एम ऑब्जेक्ट थोड़ेही बैठेंगे। वहाँ तो सब्जेक्ट बहुत होती हैं, मार्जिन होती है। यहाँ तो एक ही सब्जेक्ट है। एक ही सब्जेक्ट से कितनी बड़ी राजधानी स्थापन हो जाती है। जो नहीं पढ़ते हैं तो पढ़े हुए के आगे भरी ढोयेंगे। प्रजा में भी जो अच्छी प्रजा होंगे उनके आगे कम दर्जे वाली प्रजा भरी ढोयेगी। प्रजा भी नम्बरवार तो है ना। कोई गरीब, कोई साहूकार, एक न मिले दूसरे से। कैसा यह ड्रामा है! सभी मनुष्यों के फीचर्स ड्रामा में नूँध हैं पार्ट बजाने के लिए। कितनी गुह्य बातें हैं जो धारण कर यथार्थ रीति समझाना है। सब तो नहीं समझा सकते। कितनी अच्छी बातें समझाते हैं। निश्चय में ही विजय है। निश्चय होगा तब ही पढ़ेंगे। कोई तो संशयबुद्धि हो पढ़ाई को छोड़ देते हैं। अहो माया, झट तूफान लगाए संशय में डाल देती है। संशयबुद्धि विनशयन्ती। चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। फ़र्क तो बहुत है। गिरे तो एकदम चण्डाल, चढ़े तो एकदम बादशाह। सारा पढ़ाई पर मदार है। आगे कभी सुना कि निराकार शिक्षक कैसे होता है! अभी शिवबाबा द्वारा तुम सुनते हो। तुमको निश्चय हुआ है - मैं तुम्हारा बाप हूँ, पतित-पावन भी हूँ, नॉलेजफुल भी कहते हो। नॉलेज से चक्रवर्ती राजा बनना है, यह निश्चय होना चाहिए ना। निश्चय में ही माया विघ्न डालती है। दुश्मन सामने खड़ा है। तुम जानते हो माया हमारी दुश्मन है, घड़ी-घड़ी धोखा देती है, पढ़ाई में संशय डाल देती है। संशय में आकर बहुत बच्चे पढ़ाई को छोड़ देते हैं। पढ़ाई को छोड़ा गोया बाप, टीचर, सतगुरू को भी छोड़ दिया। वह तो गुरू बदलते रहते हैं। अनेक गुरू करते हैं। यह तो एक ही सतगुरू है। यह अपनी महिमा नहीं करते हैं। बाप अपना परिचय देते हैं। भक्त लोग गाते हैं ना शिवाए नम:, तुम मात-पिता........ लेकिन जानते कुछ भी नहीं, सिर्फ कहते रहते हैं, पूजा करते रहते हैं। तुम अभी जान गये हो शिव कौन है? शिव के बाद फिर आते हैं ब्रह्मा-सरस्वती। लक्ष्मी-नारायण बाद में आते हैं। पहले शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। बाप कहते हैं मैं पहले-पहले ब्रह्मा में प्रवेश करता हूँ, इनको पहले रचता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना फिर ब्रह्मा ही विष्णु बन पालना करते हैं। यह सब प्वाइन्ट्स नोट करनी चाहिए। फिर किसको समझाने की कोशिश करनी चाहिए। कोई तो बहुत अच्छा समझाते हैं। बाबा की तो बात ही अलग है। कभी शिवबाबा समझाते, कभी यह भी समझाते हैं। तुम हमेशा समझो - शिवबाबा समझाते हैं। शिवबाबा को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। तुम समझो - शिवबाबा इन द्वारा नई-नई प्वाइन्ट्स सुनाते हैं, बड़ा युक्ति से समझाते हैं। तो बच्चों को समझना भी चाहिए। पहले तो निश्चय करना है। 7 रोज़ में भी रंग अच्छा लग सकता है। परन्तु माया भी बहुत तीखी है ना। पहले-पहले तो निश्चय बैठे कि बाप परमपिता परमात्मा स्वर्ग का रचयिता है, तो जरूर उसने ही राजयोग सिखाया होगा। कृष्ण सिखला न सके। उनका आना ही सतयुग में होता है। स्वर्ग का रचयिता शिवबाबा है। अगर कोई कहे कृष्ण के तन में आया परन्तु कृष्ण तो उस रूप में आ न सके। उनका आना ही सतयुग में होता है। बाबा किसी के गर्भ से तो जन्म नहीं लेता। इनके तन में प्रवेश कर इनका भी परिचय देता है कि इनका नाम ब्रह्मा हमने क्यों रखा? यही शुरू से लेकर अन्त तक पार्ट बजाते हैं। तुम्हारे भी बहुत अच्छे-अच्छे नाम रखे थे। कितने बच्चों के नाम आये। वन्डर है ना, फट से दो अढ़ाई सौ के नाम आ गये। इतने नाम तो यहाँ के ब्राह्मण लोग दे न सकें। सन्देशी फट से नाम ले आई। बेहद के बाप ने नाम रखे। वन्डर है। वन्डरफुल बाप, वन्डरफुल एम ऑब्जेक्ट।
तुम सो राजाओं के राजा बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बड़ा क्लीयर है। ऊपर में त्रिमूर्ति का चित्र बड़ा एक्यूरेट है। 84 जन्म भी जरूर लेने हैं। कलियुग का अन्त पतित, सतयुग की आदि पावन। बच्चों को सर्विस का सबूत देना चाहिए - बाबा, हमने भी यह छोटे-छोटे पर्चे छपवाये। ऊपर में शिव, त्रिमूर्ति और दो बाप का परिचय हो। यह प्वाइन्ट जरूर होनी चाहिए। ऐसे-ऐसे पर्चे छपवाकर खूब सर्विस करके समाचार देना चाहिए, तब बाप की दिल पर चढ़ेंगे। चिट्ठी सिर्फ खुश-ख़ैराफत की नहीं, सर्विस करके समाचार लिखना है कि बाबा यह-यह सर्विस की। सिर्फ याद-प्यार लिखने से बाबा का पेट क्या भरेगा। आज फलाने को समझाया, आज पति की सर्विस की, बहुत अच्छा खुश हुआ, ऐसे-ऐसे सर्विस की, समाचार बाबा को लिखना है। दो बाप की प्वाइन्ट मुख्य है। बेहद का बाप है ही स्वर्ग का राज्य-भाग्य देने वाला। तुम कितने मीठे-मीठे बच्चे हो। बाप समझाते हैं यह सब एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं। इतने सब तो धर्म के बच्चे ही हो सकते हैं। वह धर्म के फालोअर्स होते हैं। यहाँ तुम बच्चे हो, बाप भी ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। यह सब हमारे बच्चे हैं। अभी अन्त का पार्ट बजा रहे हैं। स्वर्ग की स्थापना में मदद करने लिए मेरे साथी बने हैं। यह है रुद्र शिवबाबा का राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ। शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना कैसे करते हैं? पहले ब्रह्मा और ब्राह्मणों द्वारा रुद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं जिससे स्वर्ग की स्थापना होती है। तो जरूर ब्राह्मणों को ही यज्ञ सम्भालना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) निश्चय बुद्धि बन पढ़ाई करनी है। कभी भी किसी बात में संशय नहीं उठाना है। निश्चय में ही विजय है।
2) बाप का साथी बन स्वर्ग की स्थापना में पूरा मददगार बनना है। यज्ञ की सम्भाल करने वाला पक्का ब्राह्मण बनना है।
वरदान:-
आने और जाने के अभ्यास द्वारा बन्धनमुक्त बनने वाले न्यारे, निर्लिप्त भव
सारे पढ़ाई अथवा ज्ञान का सार है - आना और जाना। बुद्धि में घर जाने और राज्य में आने की खुशी है। लेकिन खुशी से वही जायेगा जिसका सदा आने और जाने का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मातीत बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए। इसके लिए कोई भी बंधन अपनी तरफ आकर्षित न करे। बंधन ही आत्मा को टाइट कर देता है और टाइट वस्त्र को उतारने में खिंचावट होती है इसलिए सदा सदा न्यारे, निर्लिप्त रहने का पाठ पक्का करो।
स्लोगन:-
सुख के खाते से सम्पन्न रहो तो आपके हर कदम से सबको सुख की अनुभूति होती रहेगी।
05/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Essence:
Sweet children, never miss the study. There will be an interest in studying when there is unbroken faith in the Father who is teaching you. Only the children whose intellects have faith are able to do service.
Question:On hearing what news of the children does BapDada become very pleased?
Answer:
When children write their service news: “Baba, today I explained to so-and-so and gave him the introduction of the two fathers and did this type of service,” Baba becomes very pleased to read such letters. Baba’s stomach doesn't become full on receiving letters of just love and remembrance and your well-being. Baba is pleased to see His helper children. This is why you should do service and write that news to Baba.
Song:Come mother, let us go ....
Om Shanti
You children know that you have to go from the world of thorns to the world of flowers. The golden-aged world would be called one of divine flowers. In the iron age, human beings are like thorns. They distress and continue to cause sorrow for one another. You children are now happy: Come, let us now go to our land of happiness, of divine flowers. You also have to understand the secret of how you go there. You will go there when you study very well. First of all, you need to have faith as to who it is who is teaching you. These things are not written in the Vedas or scriptures, although Raja Yoga is mentioned in the Gita. There is the study for a kingdom and so, surely, the kingdom would be given in the golden age. First of all, there has to be faith in the One who is teaching you. That One is not a sage, holy man or human being. That One is the Incorporeal. The Father of all souls is the Supreme Father, the Supreme Soul. Only those who are to have faith as they did in the previous cycle will have that faith. You can see that, in order to go to the heavenly world of flowers, each one of you has to make your own effort. Only when you first have this faith will you engage yourselves immediately in the study. They have written in the scriptures: God Krishna speaks. Together with that, they have also written: The sacrificial fire of the knowledge of Rudra. These are matters of knowledge. People have then given a bamboo flute to Krishna. There is also the praise: There is Godly magic in your flute. There cannot be Godly magic in a bamboo flute. That murli can be played with the mouth. They only show the childhood of Krishna, and how they play games among themselves. These things are worth understanding. You children have understood that this truly is Raja Yoga, that is, it is yoga with the One who teaches you the study of how to claim the kingdom. He personally comes here and teaches you. There is no question of a bamboo flute in this. These things are unique. No one knows that incorporeal God, Himself, comes and teaches us. They say of Krishna too, that there is Godly magic in his flute. So Khuda (God) must be someone else. Krishna would not be called Khuda. Khuda is Khuda; He alone is called the Magician. The Magician Himself comes and shows you His magic and grants you visions. Even then, He teaches you to claim a high status. Meera too saw Paradise and danced there, but she didn't study Raja Yoga. The things of Raja Yoga are not mentioned in any of the scriptures. There was no one to teach Meera. Meera’s name is mentioned in the rosary of devotees. This is the rosary of knowledge; there is the difference of day and night. You have understood that you will become elevated to the extent that you take knowledge. There truly is also the rosary of devotees and that is numberwise. Their names are very well known. No one has this knowledge. So you should explain to them: It is the Father who is the Authority who gives you this knowledge. It is said of Him that He created Brahmins through the lotus mouth of Brahma and told them the essence of all the Vedas and scriptures. Because Shiv Baba is incorporeal, so He explains the scriptures through Brahma. This method has been created. However, it is only that One who explains all of these things. It is shown that all the essence is related through Brahma, and so there must surely be someone else who explains all of this. You are now seeing in a practical way that Shiv Baba, who is the Ocean of Knowledge, is also our Baba and that He is now personally sitting in front of you. He only comes in Bharat and He definitely enters someone's body. It is the body of Brahma. It is necessary for there to be Prajapita Brahma. The Father truly comes and establishes the Brahmin religion through Prajapita Brahma. How is the religion created? You know this too. You are the children of Brahma in a practical way. You say that you are Brahmins and that you are claiming your inheritance from the Father. Followers can never claim the inheritance. It is children who claim the inheritance from the Father. You have come and become His unlimited children. They are said to be followers of Christ, not his children. Buddha and Guru Nanak also have followers and not children. Here, you are children. Prajapita is the father and Shiv Baba is also the Father. That One is incorporeal and this one, the corporeal one, is separate. Shiv Baba has created you children through this corporeal one. Among you too, some have firm faith, whereas others don't. The lottery is very big. You have to act for the livelihood of your bodies and also study this knowledge. You have to make a lot of effort in those studies. Here, too, the Father says: Definitely study for an hour or half an hour. Achcha, if, for any reason, you cannot study every day, first study for seven days and then continue your studies on the basis of the murli. Once you have understood the aim, you then have to understand the branches, twigs, leaves etc. All of those are included in the cycle. The secret of 84 births has also been explained to you. The picture of the tree has the details whereas the picture of the cycle shows everything in a nutshell. It is also explained to you that these are the religions of the variety human world. At first there is one religion and then expansion takes place. How the foundation emerges is also shown in the tree. This is such an easy secret. You have to understand the drama and the tree. Your intellect should imbibe this and then you explain to others. You definitely have to explain the point of the two fathers. You receive self-sovereignty from the unlimited Father and you therefore definitely have to study Raja Yoga. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, establishes heaven, and that is also called the land of Krishna. The land of Krishna cannot be established in the land of Kans (the devil), and this is why there is the confluence age. This is the confluence age for you children whereas for everyone else it is the iron age. You are the only ones who will go from the confluence age to the golden age. You have to have this faith. We are now at the confluence age. If you remember the confluence age, you will also remember the golden age and also the Father who establishes the golden age. However, you repeatedly forget this. You understand that you are now at the confluence age. The unlimited Father comes at the confluence age of the cycle. They have made a mistake in the Gita. It is only the Bhagawad and the Mahabharata that have a connection with the Gita. The Father explains: All of you are Sitas and I am Rama. You are in the Lanka of the kingdom of Ravan, not the other Lanka. It isn't that there was the kingdom of Ravan there. There is no Lanka etc. in the golden age. Over there (in Shri Lanka), they have the Buddhist religion. The Buddhist religion has now spread a lot. It has been explained to you children that Bharat was totally pure; there was peace and happiness. There was just the one deity religion. First of all, there has to be the firm faith that He is our unlimited Father and that we have to claim our inheritance from Him. You must never miss out on making effort. How can you make effort if you don't have faith? It is certain that the Father is teaching us and that we are receiving our inheritance of heaven and constant happiness from Him. You would not sit in a school without faith or an aim and objective, would you? There are many subjects there and so there is a margin. Here, there is just the one subject. Such a big kingdom is established through just the one subject. Those who don't study will have to bow down in front of those who did study. Among the subjects too, those with a low status will have to bow down in front of the good subjects. The subjects are also numberwise. Some are poor and others are wealthy; one cannot be the same as another. Such is this drama! The features of all human beings are fixed in the drama for them to play their parts. These are such deep matters. They have to be imbibed and explained accurately. Not everyone can explain them. Such good things are explained to you. There is victory through faith. Only when there is faith will you study. The intellects of some develop doubt and they stop studying. Maya is so great that she immediately creates storms and brings doubts. Those whose intellects have doubt are led to destruction. Those who ascend taste the nectar of heaven, whereas those who fall are totally crushed to pieces. There is a lot of difference. If someone falls, he becomes a cremator whereas if he ascends, he becomes an emperor. Everything depends on how you study. Did you ever hear before how the Incorporeal becomes the Teacher? You are now listening to Shiv Baba. You have the faith that I am your Father, the Purifier, and also the Knowledge-full One. You have to have the faith that you have to become the rulers of the globe through this knowledge. It is in your having faith that Maya creates obstacles. Your enemy is standing in front of you. You know that Maya is your enemy. She repeatedly deceives you. She makes you have doubts in the study. Many children develop doubts and then stop studying. When you stop studying, it means that you leave the Father, Teacher and Satguru. Those gurus continue to change. They have many gurus. This One is the only Satguru. This One doesn't praise Himself. The Father gives His own introduction. Devotees sing: Salutations to Shiva. You are the Mother and Father. However, they don't know anything. They simply continue to say this and to worship Him. You now know who Shiva is. After Shiva, there is Brahma and Saraswati. Lakshmi and Narayan come after them. First is Shiv Baba and then Brahma, Vishnu and Shankar. The Father says: I first of all enter Brahma. I create him first. Establishment takes place through Brahma and then Brahma becomes Vishnu and sustains it. You should note down all of these points, and you should then try and explain them to others. Some explain very well. It is a completely different matter for Baba. Sometimes, Shiv Baba explains and sometimes this one explains. You must always think that it is Shiv Baba who is explaining to you. Your sins are absolved by remembering Shiv Baba. Just consider it to be Shiv Baba who is giving you new points through this one. He explains with great tact. So you children should also understand. First of all, you have to have faith. Even in seven days someone can be coloured very well. However, Maya too is very clever. First of all, there has to be the faith that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Creator of heaven, and so He would surely have taught us Raja Yoga. Krishna cannot teach it. He has to come in the golden age. Shiv Baba is the Creator of heaven. Someone may say that He entered the body of Krishna. However, Krishna cannot come in that form at this time. He has to come in the golden age. Baba doesn't take birth through anyone's womb. He enters the body of this one and gives his introduction as to why He named him Brahma. He plays his part from the beginning to the end. You too were given very good names. So many children's names came. It was a wonder that the names of 200 to 250 names came instantly. Even the Brahmins here cannot give that many names. The trance messenger instantly brought those names. The unlimited Father gave you those names. It was a wonder. The Father is wonderful and your aim and objective is wonderful. You will become the kings of kings. The picture of Lakshmi and Narayan is very clear. Above them, the picture of the Trimurti is very accurate. They definitely have to take 84 births. At the end of the iron age, they are impure and at the beginning of the golden age, they are pure. You children have to give the proof of your service: Baba, we have also had these small leaflets printed. At the top should be Shiva and then the introduction of the Trimurti and the two fathers. This point should definitely be there. Have such leaflets printed, do a lot of service and give Baba the news, for only then will you be able to climb into the Father's heart. Don't just write a letter about your well being to Baba, but do service and write that service news: Baba, I did this and this service. Baba's stomach will not become full by your just sending your love and remembrance. Today, I explained to so-and-so. Today, I served my husband and he became very happy. You should write news of such service to Baba. The point of the two fathers is the main one. The unlimited Father is the One who gives you your fortune of the kingdom of heaven. You are such sweet children. The Father explains: All of you are adopted children. All of you many children can only be adopted children. Those people are followers of that religion. Here, you are children. The Father is also pleased to see such children. All of you are My children. You are now playing the final part. You have become My companions to help Me establish heaven. This is Rudra Shiv Baba's sacrificial fire of knowledge in which the horse is sacrificed for receiving a kingdom. How does Shiv Baba carry out the establishment of heaven? First of all, He creates the sacrificial fire of the knowledge of Rudra through Brahma and the Brahmins and then heaven is established through them. So, it is surely you Brahmins who have to look after this sacrificial fire. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Have faith in the intellect and definitely study. Never have any doubts about any situation. Victory is guaranteed when there is faith.
2. Become a companion of the Father and a complete helper in establishing heaven. Become a true Brahmin who looks after the sacrificial fire.
Blessing:May you be detached and become immune to bondage with the practice of “coming and going”.
The essence of the whole study and of knowledge is “coming and going”. Your intellects have the happiness of going home and then going into your kingdom. However, only those who constantly practise “coming and going” will go with happiness. Stabilise yourself in the bodiless stage whenever you want and become karmateet whenever you want. The practice of this has to be very strong. For this, let no bondage attract you. It is bondage that makes the soul tight and there is a great pull when trying to take off tight clothes. So, always remain detached, and learn the lesson of being immune to bondage.
Slogan:Keep your account of happiness full and everyone will continue to experience happiness from your every step.
''मीठे बच्चे - पढ़ाई कभी भी मिस नहीं करना, पढ़ाई का शौक तब रहेगा जब पढ़ाने वाले बाप में अटूट निश्चय होगा, निश्चय बुद्धि बच्चे ही सर्विस कर सकेंगे''
प्रश्नः-बापदादा को बच्चों की कौन-सी बात सुनकर बहुत खुशी होती है?
उत्तर:-जब बच्चे सर्विस समाचार का पत्र लिखते हैं - बाबा, आज हमने फलाने को समझाया, उसको दो बाप का परिचय दिया.... ऐसे-ऐसे सेवा की। तो बाबा उन पत्रों को पढ़कर बहुत खुश होते हैं। याद-प्यार वा खुश ख़ैराफत का पत्र लिखने से बाबा का पेट नहीं भरता। बाबा अपने मददगार बच्चों को देख खुश होते हैं इसलिए सर्विस करके समाचार लिखना है।
गीत:-चलो चले माँ......
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कांटों से फूलों की दुनिया में जाना है। सतयुगी दुनिया को दैवी फूल ही कहेंगे। कलियुग में मनुष्य हैं कांटें मिसल। एक-दो को तंग करते, दु:ख देते रहते हैं। तुम बच्चे अब खुश होते हो कि चलो, अब हम अपने उस दैवी फूलों के सुखधाम में चलें। चलने का भी राज़ समझना है। चलेंगे तब, जब अच्छी रीति पढ़ेंगे। पहले तो निश्चय चाहिए - पढ़ाने वाला कौन है? यह बातें कोई वेद-शास्त्र आदि में लिखी हुई नहीं हैं। भल गीता में राजयोग लिखा हुआ है, राजाई के लिए पढ़ाई है तो जरूर राजाई सतयुग में देंगे। पहले तो पढ़ाने वाले का निश्चय चाहिए। यह कोई साधू, सन्त, मनुष्य तो है नहीं। यह तो है निराकार। सब आत्माओं का बाप है - परमपिता परमात्मा। जिन्हों को कल्प पहले मुआफिक निश्चय होना होगा, उन्हों को ही होगा। तुम देखते हो फूलों की दुनिया स्वर्ग में चलने के लिए हरेक का अपना-अपना पुरुषार्थ है। पहले जब निश्चय हो तो झट पढ़ाई में लग पड़े। शास्त्रों में कृष्ण भगवानुवाच लिख दिया है - साथ-साथ लिखा भी है रुद्र ज्ञान यज्ञ। अब यह तो ज्ञान की बातें हो गई। मनुष्यों ने फिर कृष्ण को काठ की मुरली दे दी है। गायन भी है ना तेरी मुरली में जादू है खुदाई। अब काठ की मुरली में तो खुदाई जादू हो न सके। वह तो मुख से मुरली बजा सकते हैं। कृष्ण का बचपन ही दिखाते हैं, आपस में खेलते-कूदते रहते हैं। यह बातें बड़ी समझने लायक हैं। यह तो बच्चे समझ गये हैं कि यह बरोबर राजयोग है अर्थात् राजाई प्राप्त करने की पढ़ाई कराने वाले के साथ योग। वह सम्मुख आकर पढ़ाते हैं। इसमें काठ के मुरली की कोई बात नहीं। यह बातें ही निराली हैं। यह किसको भी पता नहीं है कि निराकार भगवान् स्वयं आकर पढ़ाते हैं। कृष्ण के लिए भी कहते हैं, उनकी मुरली में खुदाई जादू है। तो खुदा और हो गया ना। कृष्ण को खुदा नहीं कहेंगे। खुदा तो खुदा ही है, उनको ही जादूगर कहते हैं। जादूगर स्वयं आकर जादूगरी दिखलाते हैं, साक्षात्कार कराते हैं। फिर भी ऊंच पद प्राप्त कराने लिए पढ़ाते हैं। मीरा ने भी वैकुण्ठ देखा और डांस की, परन्तु वह राजयोग नहीं सीखी। राजयोग की बात कोई भी शास्त्र में नहीं है। मीरा को पढ़ाने वाला तो कोई नहीं था। मीरा का नाम भी भक्त माला में है। यह है ज्ञान माला। रात-दिन का फ़र्क है। तुम समझ गये हो - हम जितना ज्ञान उठायेंगे, उतना ऊंच बनेंगे। बरोबर भक्त माला भी है, उनमें भी नम्बरवार हैं। उन्हों के नाम तो मशहूर हैं। यह ज्ञान कोई में भी नहीं है। तो समझाना चाहिए - यह ज्ञान देने वाला वह अथॉरिटी बाप है, जिसके लिए कहा जाता है ब्रह्मा मुख कमल से ब्राह्मण रच उन्हों को सभी वेदों-शास्त्रों का सार सुनाते हैं। शिवबाबा को तो शास्त्र दे न सकें, क्योंकि वह तो है निराकार। तो ब्रह्मा द्वारा समझाते हैं। यह युक्ति रची है। परन्तु यह सब बातें समझाने वाला वह एक है। दिखलाते भी हैं ब्रह्मा द्वारा सार बतलाते हैं तो जरूर समझाने वाला कोई दूसरा है ना। अभी तुम प्रैक्टिकल में देखते हो शिवबाबा जो ज्ञान सागर है, हमारा बाबा भी है, वह सम्मुख बैठे हैं। भारत में ही आते हैं और जरूर कोई के शरीर में आते हैं। यह ब्रह्मा का शरीर है। प्रजापिता ब्रह्मा होना भी जरूरी है। बरोबर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही बाप आकर ब्राह्मण धर्म रचते हैं। धर्म कैसे रचा जाता है? यह भी तुम जानते हो। तुम प्रैक्टिकल में ब्रह्मा की सन्तान हो। कहते हो हम ब्राह्मण ब्राह्मणियां हैं। बाप से वर्सा ले रहे हैं। फालोअर तो कभी वर्सा ले न सके। बच्चे ही बाप से वर्सा लेते हैं। तुम आकर बेहद के बच्चे बने हो। क्राइस्ट के फालोअर कहेंगे, बच्चे नहीं। बुद्ध के, गुरुनानक के फालोअर ही कहेंगे, बच्चे नहीं। यहाँ तुम बच्चे हो। प्रजापिता वह भी बाप ठहरा और शिवबाबा भी बाप हो गया। वह निराकार है, यह साकार अलग है। इस साकार द्वारा ही शिवबाबा ने बच्चों को रचा है। अब तुम्हारे में भी कोई को तो पक्का निश्चय है, कोई को नहीं है। लॉटरी है बहुत बड़ी।
तुमको अपने शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है और फिर यह ज्ञान भी सीखना है। उस पढ़ाई में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ भी बाप कहते हैं एक घड़ी, आधी घड़ी, पढ़ो जरूर। अच्छा, कोई कारण से रोज़ नहीं पढ़ सकते हो तो पहले 7 रोज़ पढ़कर फिर मुरली के आधार पर चल सकते हो। लक्ष्य पकड़ लिया, बाकी है टाल, डाल, पत्ते आदि को समझना, वह सब भी चक्र में आ जाता है। तुमको 84 जन्मों का राज़ भी समझाया है। झाड़ में डीटेल है, चक्र में नटशेल है। समझाया भी है यह वैराइटी मनुष्य सृष्टि के धर्म हैं। पहले एक धर्म रहता है फिर वृद्धि होती है। झाड़ भी दिखाया है - कैसे फाउन्डेशन निकलता है। कितना सहज राज़ है! ड्रामा और झाड़ को समझना है, बुद्धि में धारण करना है और दूसरों को समझाना है। दो बाप की प्वाइन्ट तो जरूर समझानी है। बेहद के बाप से स्वराज्य मिलता है इसलिए राजयोग जरूर सीखना पड़े। परमपिता परमात्मा ही स्वर्ग की स्थापना करते हैं, जिसको कृष्णपुरी भी कहते हैं। कंसपुरी में तो कृष्णपुरी स्थापन हो न सके, इसलिए संगम रखा हुआ है। तुम बच्चों के लिए यह संगमयुग है, बाकी और सबके लिए कलियुग है। तुम ही संगम से फिर सतयुग में जाने वाले हो, यह निश्चय चाहिए। अभी हम संगम पर हैं। संगमयुग याद रहे तो सतयुग भी याद रहे और सतयुग स्थापन करने वाला भी याद रहे। परन्तु घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। तुम समझते हो अभी हम संगम पर हैं, बेहद का बाप आते ही हैं कल्प के संगमयुगे। गीता में भूल कर दी है। गीता से तैलुक रखने वाले सिर्फ भागवत, महाभारत आदि हैं।
बाप समझाते हैं - तुम सब सीतायें हो, मैं राम हूँ। तुम रावण राज्य रूपी लंका में पड़े हो, वह लंका नहीं। ऐसे नहीं, वहाँ कोई रावण राज्य था। सतयुग में लंका आदि होती नहीं। उस तरफ बौद्ध धर्म है। अभी बौद्ध धर्म बहुत फैला हुआ है। अब यह तो बच्चों को समझाया गया है भारत पहले बिल्कुल पवित्र था, सुख-शान्ति थी, एक ही देवी-देवता धर्म था। पहले-पहले तो यह निश्चय पक्का रहना चाहिए कि यह हमारा बेहद का बाप है, उनसे वर्सा लेना है, पुरुषार्थ में कभी चूकना नहीं है। निश्चय बिगर पुरुषार्थ भी कैसे करेंगे? बाप पढ़ाते हैं, उनसे स्वर्ग का, सदा सुख का वर्सा मिल रहा है, यह तो सर्टेन है। स्कूल में बिगर निश्चय अथवा एम ऑब्जेक्ट थोड़ेही बैठेंगे। वहाँ तो सब्जेक्ट बहुत होती हैं, मार्जिन होती है। यहाँ तो एक ही सब्जेक्ट है। एक ही सब्जेक्ट से कितनी बड़ी राजधानी स्थापन हो जाती है। जो नहीं पढ़ते हैं तो पढ़े हुए के आगे भरी ढोयेंगे। प्रजा में भी जो अच्छी प्रजा होंगे उनके आगे कम दर्जे वाली प्रजा भरी ढोयेगी। प्रजा भी नम्बरवार तो है ना। कोई गरीब, कोई साहूकार, एक न मिले दूसरे से। कैसा यह ड्रामा है! सभी मनुष्यों के फीचर्स ड्रामा में नूँध हैं पार्ट बजाने के लिए। कितनी गुह्य बातें हैं जो धारण कर यथार्थ रीति समझाना है। सब तो नहीं समझा सकते। कितनी अच्छी बातें समझाते हैं। निश्चय में ही विजय है। निश्चय होगा तब ही पढ़ेंगे। कोई तो संशयबुद्धि हो पढ़ाई को छोड़ देते हैं। अहो माया, झट तूफान लगाए संशय में डाल देती है। संशयबुद्धि विनशयन्ती। चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। फ़र्क तो बहुत है। गिरे तो एकदम चण्डाल, चढ़े तो एकदम बादशाह। सारा पढ़ाई पर मदार है। आगे कभी सुना कि निराकार शिक्षक कैसे होता है! अभी शिवबाबा द्वारा तुम सुनते हो। तुमको निश्चय हुआ है - मैं तुम्हारा बाप हूँ, पतित-पावन भी हूँ, नॉलेजफुल भी कहते हो। नॉलेज से चक्रवर्ती राजा बनना है, यह निश्चय होना चाहिए ना। निश्चय में ही माया विघ्न डालती है। दुश्मन सामने खड़ा है। तुम जानते हो माया हमारी दुश्मन है, घड़ी-घड़ी धोखा देती है, पढ़ाई में संशय डाल देती है। संशय में आकर बहुत बच्चे पढ़ाई को छोड़ देते हैं। पढ़ाई को छोड़ा गोया बाप, टीचर, सतगुरू को भी छोड़ दिया। वह तो गुरू बदलते रहते हैं। अनेक गुरू करते हैं। यह तो एक ही सतगुरू है। यह अपनी महिमा नहीं करते हैं। बाप अपना परिचय देते हैं। भक्त लोग गाते हैं ना शिवाए नम:, तुम मात-पिता........ लेकिन जानते कुछ भी नहीं, सिर्फ कहते रहते हैं, पूजा करते रहते हैं। तुम अभी जान गये हो शिव कौन है? शिव के बाद फिर आते हैं ब्रह्मा-सरस्वती। लक्ष्मी-नारायण बाद में आते हैं। पहले शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। बाप कहते हैं मैं पहले-पहले ब्रह्मा में प्रवेश करता हूँ, इनको पहले रचता हूँ। ब्रह्मा द्वारा स्थापना फिर ब्रह्मा ही विष्णु बन पालना करते हैं। यह सब प्वाइन्ट्स नोट करनी चाहिए। फिर किसको समझाने की कोशिश करनी चाहिए। कोई तो बहुत अच्छा समझाते हैं। बाबा की तो बात ही अलग है। कभी शिवबाबा समझाते, कभी यह भी समझाते हैं। तुम हमेशा समझो - शिवबाबा समझाते हैं। शिवबाबा को याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। तुम समझो - शिवबाबा इन द्वारा नई-नई प्वाइन्ट्स सुनाते हैं, बड़ा युक्ति से समझाते हैं। तो बच्चों को समझना भी चाहिए। पहले तो निश्चय करना है। 7 रोज़ में भी रंग अच्छा लग सकता है। परन्तु माया भी बहुत तीखी है ना। पहले-पहले तो निश्चय बैठे कि बाप परमपिता परमात्मा स्वर्ग का रचयिता है, तो जरूर उसने ही राजयोग सिखाया होगा। कृष्ण सिखला न सके। उनका आना ही सतयुग में होता है। स्वर्ग का रचयिता शिवबाबा है। अगर कोई कहे कृष्ण के तन में आया परन्तु कृष्ण तो उस रूप में आ न सके। उनका आना ही सतयुग में होता है। बाबा किसी के गर्भ से तो जन्म नहीं लेता। इनके तन में प्रवेश कर इनका भी परिचय देता है कि इनका नाम ब्रह्मा हमने क्यों रखा? यही शुरू से लेकर अन्त तक पार्ट बजाते हैं। तुम्हारे भी बहुत अच्छे-अच्छे नाम रखे थे। कितने बच्चों के नाम आये। वन्डर है ना, फट से दो अढ़ाई सौ के नाम आ गये। इतने नाम तो यहाँ के ब्राह्मण लोग दे न सकें। सन्देशी फट से नाम ले आई। बेहद के बाप ने नाम रखे। वन्डर है। वन्डरफुल बाप, वन्डरफुल एम ऑब्जेक्ट।
तुम सो राजाओं के राजा बनेंगे। लक्ष्मी-नारायण का चित्र बड़ा क्लीयर है। ऊपर में त्रिमूर्ति का चित्र बड़ा एक्यूरेट है। 84 जन्म भी जरूर लेने हैं। कलियुग का अन्त पतित, सतयुग की आदि पावन। बच्चों को सर्विस का सबूत देना चाहिए - बाबा, हमने भी यह छोटे-छोटे पर्चे छपवाये। ऊपर में शिव, त्रिमूर्ति और दो बाप का परिचय हो। यह प्वाइन्ट जरूर होनी चाहिए। ऐसे-ऐसे पर्चे छपवाकर खूब सर्विस करके समाचार देना चाहिए, तब बाप की दिल पर चढ़ेंगे। चिट्ठी सिर्फ खुश-ख़ैराफत की नहीं, सर्विस करके समाचार लिखना है कि बाबा यह-यह सर्विस की। सिर्फ याद-प्यार लिखने से बाबा का पेट क्या भरेगा। आज फलाने को समझाया, आज पति की सर्विस की, बहुत अच्छा खुश हुआ, ऐसे-ऐसे सर्विस की, समाचार बाबा को लिखना है। दो बाप की प्वाइन्ट मुख्य है। बेहद का बाप है ही स्वर्ग का राज्य-भाग्य देने वाला। तुम कितने मीठे-मीठे बच्चे हो। बाप समझाते हैं यह सब एडाप्टेड चिल्ड्रेन हैं। इतने सब तो धर्म के बच्चे ही हो सकते हैं। वह धर्म के फालोअर्स होते हैं। यहाँ तुम बच्चे हो, बाप भी ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। यह सब हमारे बच्चे हैं। अभी अन्त का पार्ट बजा रहे हैं। स्वर्ग की स्थापना में मदद करने लिए मेरे साथी बने हैं। यह है रुद्र शिवबाबा का राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ। शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना कैसे करते हैं? पहले ब्रह्मा और ब्राह्मणों द्वारा रुद्र ज्ञान यज्ञ रचते हैं जिससे स्वर्ग की स्थापना होती है। तो जरूर ब्राह्मणों को ही यज्ञ सम्भालना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) निश्चय बुद्धि बन पढ़ाई करनी है। कभी भी किसी बात में संशय नहीं उठाना है। निश्चय में ही विजय है।
2) बाप का साथी बन स्वर्ग की स्थापना में पूरा मददगार बनना है। यज्ञ की सम्भाल करने वाला पक्का ब्राह्मण बनना है।
वरदान:-
आने और जाने के अभ्यास द्वारा बन्धनमुक्त बनने वाले न्यारे, निर्लिप्त भव
सारे पढ़ाई अथवा ज्ञान का सार है - आना और जाना। बुद्धि में घर जाने और राज्य में आने की खुशी है। लेकिन खुशी से वही जायेगा जिसका सदा आने और जाने का अभ्यास होगा। जब चाहो तब अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ और जब चाहो तब कर्मातीत बन जाओ - यह अभ्यास बहुत पक्का चाहिए। इसके लिए कोई भी बंधन अपनी तरफ आकर्षित न करे। बंधन ही आत्मा को टाइट कर देता है और टाइट वस्त्र को उतारने में खिंचावट होती है इसलिए सदा सदा न्यारे, निर्लिप्त रहने का पाठ पक्का करो।
स्लोगन:-
सुख के खाते से सम्पन्न रहो तो आपके हर कदम से सबको सुख की अनुभूति होती रहेगी।
05/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Essence:
Sweet children, never miss the study. There will be an interest in studying when there is unbroken faith in the Father who is teaching you. Only the children whose intellects have faith are able to do service.
Question:On hearing what news of the children does BapDada become very pleased?
Answer:
When children write their service news: “Baba, today I explained to so-and-so and gave him the introduction of the two fathers and did this type of service,” Baba becomes very pleased to read such letters. Baba’s stomach doesn't become full on receiving letters of just love and remembrance and your well-being. Baba is pleased to see His helper children. This is why you should do service and write that news to Baba.
Song:Come mother, let us go ....
Om Shanti
You children know that you have to go from the world of thorns to the world of flowers. The golden-aged world would be called one of divine flowers. In the iron age, human beings are like thorns. They distress and continue to cause sorrow for one another. You children are now happy: Come, let us now go to our land of happiness, of divine flowers. You also have to understand the secret of how you go there. You will go there when you study very well. First of all, you need to have faith as to who it is who is teaching you. These things are not written in the Vedas or scriptures, although Raja Yoga is mentioned in the Gita. There is the study for a kingdom and so, surely, the kingdom would be given in the golden age. First of all, there has to be faith in the One who is teaching you. That One is not a sage, holy man or human being. That One is the Incorporeal. The Father of all souls is the Supreme Father, the Supreme Soul. Only those who are to have faith as they did in the previous cycle will have that faith. You can see that, in order to go to the heavenly world of flowers, each one of you has to make your own effort. Only when you first have this faith will you engage yourselves immediately in the study. They have written in the scriptures: God Krishna speaks. Together with that, they have also written: The sacrificial fire of the knowledge of Rudra. These are matters of knowledge. People have then given a bamboo flute to Krishna. There is also the praise: There is Godly magic in your flute. There cannot be Godly magic in a bamboo flute. That murli can be played with the mouth. They only show the childhood of Krishna, and how they play games among themselves. These things are worth understanding. You children have understood that this truly is Raja Yoga, that is, it is yoga with the One who teaches you the study of how to claim the kingdom. He personally comes here and teaches you. There is no question of a bamboo flute in this. These things are unique. No one knows that incorporeal God, Himself, comes and teaches us. They say of Krishna too, that there is Godly magic in his flute. So Khuda (God) must be someone else. Krishna would not be called Khuda. Khuda is Khuda; He alone is called the Magician. The Magician Himself comes and shows you His magic and grants you visions. Even then, He teaches you to claim a high status. Meera too saw Paradise and danced there, but she didn't study Raja Yoga. The things of Raja Yoga are not mentioned in any of the scriptures. There was no one to teach Meera. Meera’s name is mentioned in the rosary of devotees. This is the rosary of knowledge; there is the difference of day and night. You have understood that you will become elevated to the extent that you take knowledge. There truly is also the rosary of devotees and that is numberwise. Their names are very well known. No one has this knowledge. So you should explain to them: It is the Father who is the Authority who gives you this knowledge. It is said of Him that He created Brahmins through the lotus mouth of Brahma and told them the essence of all the Vedas and scriptures. Because Shiv Baba is incorporeal, so He explains the scriptures through Brahma. This method has been created. However, it is only that One who explains all of these things. It is shown that all the essence is related through Brahma, and so there must surely be someone else who explains all of this. You are now seeing in a practical way that Shiv Baba, who is the Ocean of Knowledge, is also our Baba and that He is now personally sitting in front of you. He only comes in Bharat and He definitely enters someone's body. It is the body of Brahma. It is necessary for there to be Prajapita Brahma. The Father truly comes and establishes the Brahmin religion through Prajapita Brahma. How is the religion created? You know this too. You are the children of Brahma in a practical way. You say that you are Brahmins and that you are claiming your inheritance from the Father. Followers can never claim the inheritance. It is children who claim the inheritance from the Father. You have come and become His unlimited children. They are said to be followers of Christ, not his children. Buddha and Guru Nanak also have followers and not children. Here, you are children. Prajapita is the father and Shiv Baba is also the Father. That One is incorporeal and this one, the corporeal one, is separate. Shiv Baba has created you children through this corporeal one. Among you too, some have firm faith, whereas others don't. The lottery is very big. You have to act for the livelihood of your bodies and also study this knowledge. You have to make a lot of effort in those studies. Here, too, the Father says: Definitely study for an hour or half an hour. Achcha, if, for any reason, you cannot study every day, first study for seven days and then continue your studies on the basis of the murli. Once you have understood the aim, you then have to understand the branches, twigs, leaves etc. All of those are included in the cycle. The secret of 84 births has also been explained to you. The picture of the tree has the details whereas the picture of the cycle shows everything in a nutshell. It is also explained to you that these are the religions of the variety human world. At first there is one religion and then expansion takes place. How the foundation emerges is also shown in the tree. This is such an easy secret. You have to understand the drama and the tree. Your intellect should imbibe this and then you explain to others. You definitely have to explain the point of the two fathers. You receive self-sovereignty from the unlimited Father and you therefore definitely have to study Raja Yoga. Only the Supreme Father, the Supreme Soul, establishes heaven, and that is also called the land of Krishna. The land of Krishna cannot be established in the land of Kans (the devil), and this is why there is the confluence age. This is the confluence age for you children whereas for everyone else it is the iron age. You are the only ones who will go from the confluence age to the golden age. You have to have this faith. We are now at the confluence age. If you remember the confluence age, you will also remember the golden age and also the Father who establishes the golden age. However, you repeatedly forget this. You understand that you are now at the confluence age. The unlimited Father comes at the confluence age of the cycle. They have made a mistake in the Gita. It is only the Bhagawad and the Mahabharata that have a connection with the Gita. The Father explains: All of you are Sitas and I am Rama. You are in the Lanka of the kingdom of Ravan, not the other Lanka. It isn't that there was the kingdom of Ravan there. There is no Lanka etc. in the golden age. Over there (in Shri Lanka), they have the Buddhist religion. The Buddhist religion has now spread a lot. It has been explained to you children that Bharat was totally pure; there was peace and happiness. There was just the one deity religion. First of all, there has to be the firm faith that He is our unlimited Father and that we have to claim our inheritance from Him. You must never miss out on making effort. How can you make effort if you don't have faith? It is certain that the Father is teaching us and that we are receiving our inheritance of heaven and constant happiness from Him. You would not sit in a school without faith or an aim and objective, would you? There are many subjects there and so there is a margin. Here, there is just the one subject. Such a big kingdom is established through just the one subject. Those who don't study will have to bow down in front of those who did study. Among the subjects too, those with a low status will have to bow down in front of the good subjects. The subjects are also numberwise. Some are poor and others are wealthy; one cannot be the same as another. Such is this drama! The features of all human beings are fixed in the drama for them to play their parts. These are such deep matters. They have to be imbibed and explained accurately. Not everyone can explain them. Such good things are explained to you. There is victory through faith. Only when there is faith will you study. The intellects of some develop doubt and they stop studying. Maya is so great that she immediately creates storms and brings doubts. Those whose intellects have doubt are led to destruction. Those who ascend taste the nectar of heaven, whereas those who fall are totally crushed to pieces. There is a lot of difference. If someone falls, he becomes a cremator whereas if he ascends, he becomes an emperor. Everything depends on how you study. Did you ever hear before how the Incorporeal becomes the Teacher? You are now listening to Shiv Baba. You have the faith that I am your Father, the Purifier, and also the Knowledge-full One. You have to have the faith that you have to become the rulers of the globe through this knowledge. It is in your having faith that Maya creates obstacles. Your enemy is standing in front of you. You know that Maya is your enemy. She repeatedly deceives you. She makes you have doubts in the study. Many children develop doubts and then stop studying. When you stop studying, it means that you leave the Father, Teacher and Satguru. Those gurus continue to change. They have many gurus. This One is the only Satguru. This One doesn't praise Himself. The Father gives His own introduction. Devotees sing: Salutations to Shiva. You are the Mother and Father. However, they don't know anything. They simply continue to say this and to worship Him. You now know who Shiva is. After Shiva, there is Brahma and Saraswati. Lakshmi and Narayan come after them. First is Shiv Baba and then Brahma, Vishnu and Shankar. The Father says: I first of all enter Brahma. I create him first. Establishment takes place through Brahma and then Brahma becomes Vishnu and sustains it. You should note down all of these points, and you should then try and explain them to others. Some explain very well. It is a completely different matter for Baba. Sometimes, Shiv Baba explains and sometimes this one explains. You must always think that it is Shiv Baba who is explaining to you. Your sins are absolved by remembering Shiv Baba. Just consider it to be Shiv Baba who is giving you new points through this one. He explains with great tact. So you children should also understand. First of all, you have to have faith. Even in seven days someone can be coloured very well. However, Maya too is very clever. First of all, there has to be the faith that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Creator of heaven, and so He would surely have taught us Raja Yoga. Krishna cannot teach it. He has to come in the golden age. Shiv Baba is the Creator of heaven. Someone may say that He entered the body of Krishna. However, Krishna cannot come in that form at this time. He has to come in the golden age. Baba doesn't take birth through anyone's womb. He enters the body of this one and gives his introduction as to why He named him Brahma. He plays his part from the beginning to the end. You too were given very good names. So many children's names came. It was a wonder that the names of 200 to 250 names came instantly. Even the Brahmins here cannot give that many names. The trance messenger instantly brought those names. The unlimited Father gave you those names. It was a wonder. The Father is wonderful and your aim and objective is wonderful. You will become the kings of kings. The picture of Lakshmi and Narayan is very clear. Above them, the picture of the Trimurti is very accurate. They definitely have to take 84 births. At the end of the iron age, they are impure and at the beginning of the golden age, they are pure. You children have to give the proof of your service: Baba, we have also had these small leaflets printed. At the top should be Shiva and then the introduction of the Trimurti and the two fathers. This point should definitely be there. Have such leaflets printed, do a lot of service and give Baba the news, for only then will you be able to climb into the Father's heart. Don't just write a letter about your well being to Baba, but do service and write that service news: Baba, I did this and this service. Baba's stomach will not become full by your just sending your love and remembrance. Today, I explained to so-and-so. Today, I served my husband and he became very happy. You should write news of such service to Baba. The point of the two fathers is the main one. The unlimited Father is the One who gives you your fortune of the kingdom of heaven. You are such sweet children. The Father explains: All of you are adopted children. All of you many children can only be adopted children. Those people are followers of that religion. Here, you are children. The Father is also pleased to see such children. All of you are My children. You are now playing the final part. You have become My companions to help Me establish heaven. This is Rudra Shiv Baba's sacrificial fire of knowledge in which the horse is sacrificed for receiving a kingdom. How does Shiv Baba carry out the establishment of heaven? First of all, He creates the sacrificial fire of the knowledge of Rudra through Brahma and the Brahmins and then heaven is established through them. So, it is surely you Brahmins who have to look after this sacrificial fire. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Have faith in the intellect and definitely study. Never have any doubts about any situation. Victory is guaranteed when there is faith.
2. Become a companion of the Father and a complete helper in establishing heaven. Become a true Brahmin who looks after the sacrificial fire.
Blessing:May you be detached and become immune to bondage with the practice of “coming and going”.
The essence of the whole study and of knowledge is “coming and going”. Your intellects have the happiness of going home and then going into your kingdom. However, only those who constantly practise “coming and going” will go with happiness. Stabilise yourself in the bodiless stage whenever you want and become karmateet whenever you want. The practice of this has to be very strong. For this, let no bondage attract you. It is bondage that makes the soul tight and there is a great pull when trying to take off tight clothes. So, always remain detached, and learn the lesson of being immune to bondage.
Slogan:Keep your account of happiness full and everyone will continue to experience happiness from your every step.
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