Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 1st Oct 2018 | 113370 | 2018-11-13 01:33:45 | |
2 | Murali 02- Oct 2018 | 132948 | 2018-11-13 01:33:45 | |
3 | Murali 03-Oct-2018 | 125177 | 2018-11-13 01:33:45 | |
4 | Murali 04-Oct-2018 | 118934 | 2018-11-13 01:33:45 | |
5 | Murali 05-Oct-2018 | 133374 | 2018-11-13 01:33:45 | |
6 | Murali 06-Oct-2018 | 133043 | 2018-11-13 01:33:45 | |
7 | Murali 07-Oct-2018 | 135426 | 2018-11-13 01:33:45 | |
8 | Murali 08-Oct-2018 | 118475 | 2018-11-13 01:33:45 | |
9 | Murali 09-Oct-2018 | 113426 | 2018-11-13 01:33:46 | |
10 | Murali 10-Oct-2018 | 123819 | 2018-11-13 01:33:46 | |
11 | Murali 11-Oct-2018 | 133485 | 2018-11-13 01:33:46 | |
12 | Murali 12th Oct 2018 | 12264 | 2018-11-13 01:33:46 | |
13 | Murali 13th Oct 2018 | 120124 | 2018-11-13 01:33:46 | |
14 | Murali 14th Oct 2018 | 132308 | 2018-11-13 01:33:46 | |
15 | Murali 15th Oct 2018 | 124161 | 2018-11-13 01:33:46 | |
16 | Murali 16th Oct 2018 | 128293 | 2018-11-13 01:33:46 | |
17 | Murali 17th Oct 2018 | 120298 | 2018-11-13 01:33:46 | |
18 | Murali 18th Oct 2018 | 118916 | 2018-11-13 01:33:46 | |
19 | Murali 19th Oct 2018 | 117510 | 2018-11-13 01:33:46 | |
20 | Murali 20th Oct 2018 | 117518 | 2018-11-13 01:33:46 | |
21 | Murali 21st Oct 2018 | 130603 | 2018-11-13 01:33:46 | |
22 | Murali 22nd Oct 2018 | 135192 | 2018-11-13 01:33:46 | |
23 | Murali 23rd Oct 2018 | 113654 | 2018-11-13 01:33:46 | |
24 | Murali 24th Oct 2018 | 128826 | 2018-11-13 01:33:46 | |
25 | Murali 25th Oct 2018 | 124802 | 2018-11-13 01:33:46 | |
26 | Murali 26th Oct 2018 | 117905 | 2018-11-13 01:33:46 | |
27 | Murali 27th Oct 2018 | 125168 | 2018-11-13 01:33:46 | |
28 | Murali 28th Oct 2018 | 105833 | 2018-11-13 01:33:46 | |
29 | Murali 29th Oct 2018 | 124953 | 2018-11-13 01:33:46 | |
30 | Murali 30th Oct 2018 | 235865 | 2018-11-13 01:33:46 |
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Details ( Page:- Murali 02- Oct 2018 )
02-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम अभी पुजारी से पूज्य, बेगर से प्रिन्स बन रहे हो, इसलिए तुम्हें खुशी में खग्गियां मारनी है, कभी भी रोना नहीं है''
प्रश्नः-अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा से भारत को साहूकार बनाने के लिए बाप तुम्हें किस बात में आप समान बनाते हैं?
उत्तर:-
बाबा कहते - बच्चे, जैसे मैं रूप बसन्त हूँ, ऐसे तुम्हें भी रूप बसन्त बनाता हूँ। जो अविनाशी ज्ञान रत्न तुम्हें मिले हैं उन्हें धारण कर मुख से दान करो। इसी महादान से भारत साहूकार बनेगा। जैसे तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो ऐसे औरों को भी दो। तुम्हारा फर्ज है सबको रास्ता बताना, सुखदाई बनना।
गीत:-इन्साफ की डगर पर....... ओम् शान्ति।
यह गीत कांग्रेस से भी लगता है और तुम बच्चों से भी लगता है क्योंकि उन्होंने भी तो सहन करके अंग्रेजों से भारत को छुड़ाया। तो यह गीत उनकी खुशी में है। खुशियां तो मनाते रहते हैं, भल कितना भी किया परन्तु पुरानी दुनिया तो नहीं बदली ना। दुनिया तो वही पुरानी है। तुम बच्चे जानते हो श्रीमत पर हम इस दुनिया को बदल रहे हैं। वह श्रीमत नहीं कहेंगे। श्रीमत है ही एक भगवान् की। तुम हो अभी बाप की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ श्रीमत पर। उन्होंने फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है श्री शिवबाबा की मत। कृष्ण को बाबा कहना शोभता नहीं। श्री शिवबाबा की मत। श्री कृष्ण बाबा की मत तो नहीं कहेंगे। तुम इस भारत को फिर से पवित्र बना रहे हो। भारत खण्ड ही मुख्य है क्योंकि यह बेहद के बाप का बर्थप्लेस है। सारी दुनिया के मनुष्य-मात्र का जो बाप है अर्थात् सर्व का सद्गति दाता है, उनका यह बर्थ प्लेस है। इसको सर्वोत्तम तीर्थ कहा जाता है, इस जैसा ऊंच ते ऊंच तीर्थ कोई है नहीं। परन्तु गीता में नाम बदल दिया है। यह भारतवासी खुद नहीं जानते कि यह भारत बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है। भल शिवरात्रि मनाते हैं परन्तु यह पता नहीं है कि शिव कौन है? कब आया? उनका नाम-रूप क्या है? तुम अब जान गये हो। अभी शिवलिंग के चित्र में सफेद स्टॉर दिखाते हैं, जो मनुष्य क्लीयर समझें कि परमात्मा का यह रूप है। परन्तु पूजा आदि कैसे की जाए - इसलिए बड़ा रूप बनाया है। है वास्तव में स्टॉर। बाबा जौहरी भी है। बाबा को मालूम है एक पत्थर भी होता है जिसको स्टॉर रूबी, स्टॉर फाइन माणिक, स्टॉर नीलम आदि कहते हैं। वह मोस्ट वैल्युबुल होता है। अखबार में भी पड़ा था कि सबसे बड़ा स्टॉर फलाने ख़ज़ाने से चोरी हो गया है। तो यह शिवलिंग लाल तो है, इनमें बीच में है सफेद स्टॉर, स्टॉर लाइट। समझाने में बहुत सहज होगा। स्टॉर सफेद होता है ना। आत्मा का भी सफेद ही साक्षात्कार होता है। चीज़ तो यही है। सिर्फ स्टॉर लगाना है। और कुछ लिखने की दरकार नहीं रहेगी। समझाना बहुत सहज होगा। नीचे यह लिखत तो है ही - आपका जन्म सिद्ध अधिकार स्वर्ग की राजाई क्योंकि हेविनली गॉड फादर है। तो स्टॉर लाइट डालना है। अब बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं। झट काम कर लेना चाहिए। ऐसे पत्थर भी होते हैं जिसमें स्टॉर बड़ा फर्स्टक्लास दिखाई दे। यहाँ उनकी बहुत वैल्यु है। फिर सतयुग में तो इन चीज़ों की वैल्यु होती नहीं। वहाँ यह जवाहरात तो पत्थर गिने जाते हैं, महलों में लगाते रहते हैं। यह दुनिया अब बदल रही है। तुम बच्चे जानते हो हम स्वर्ग का मालिक बनने लिए बाप से वर्सा ले रहे हैं, पढ़ रहे हैं। जितना जो पढ़ेगा उतना ऊंच पद पायेगा। पढ़ना और फिर पढ़ाना भी है, यानी आप समान बनाना है तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। बच्चे समझते हैं हम ब्राह्मण हैं, हमको सच्ची यात्रा सिखलानी है। हरेक को बाप का परिचय देना है। कोई भी मनुष्यमात्र बाप को नहीं जानते। बाप तो एक ही है। बाकी सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक आत्मा का पार्ट न मिले दूसरे से। आत्मा तो अविनाशी है, उनके रूप में कोई फ़र्क नहीं हो सकता। शरीरों में फ़र्क है और हर एक आत्मा के पार्ट का फ़र्क है। हर एक आत्मा जो स्टॉर लाइट है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इम्पेरिसिबुल पार्ट है। यह बातें भी तुम ही जानते हो, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। जैसे आत्मा है, गाते भी हैं चमकता है भ्रकुटी के बीच अजब सितारा। अजब है ना। कितना छोटा-सा स्टॉर, उसमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। यह बातें जब सुनेंगे तो बहुत आ़फरीन देंगे कि बरोबर इन्हों को तो पढ़ाने वाला वह परमात्मा है। तुमको तो सबको पढ़ाना है। भल क्रिश्चियन लोग अंग्रेजी जानने वाले हैं, तुम हिन्दी में बोलो, फिर इन्टरप्रेटर इंगलिश में ट्रांसलेट कर सुनाता जायेगा। उनके पास इन्टरप्रेटर (अनुवाद करने वाले) होते हैं। बाप का परिचय तो देना है। जैसे बाप दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, वैसे तुम बच्चों को भी बनना है। हर एक को रास्ता बताना है। औरों को भी सुखदाई बनाना - यह तुम बच्चों का फ़र्ज है। तुम खुद बाप से इतना वर्सा ले रहे हो तो फिर औरों को भी देना पड़े। यह है महादान। यह एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों के वर्शन्स अगर लाखों रूपये के होते तो फिर भारत इतना कंगाल क्यों होता?
तो तुम बच्चों को समझाना है, बाप का परिचय देना है, वह भी परम आत्मा है। रूप भी है, बसन्त भी है। परन्तु अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा कैसे करें? जरूर शरीर चाहिए। तो बाप आकर तुम बच्चों को अर्थात् तुम्हारी आत्मा को रूप-बसन्त बनाते हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा करनी है। मुख द्वारा फिर यह दान देना चाहिए, जिन रत्नों का कोई मूल्य नहीं कर सकता। उस पर भी एक कहानी है। तो यह धारणा करनी चाहिए। कहते हैं ना शिवबाबा बम-बम भोलानाथ भर दे झोली। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरनी है। फिर वहाँ तो तुम्हारे महल हीरे जवाहरों के बन जायेंगे। तो यह हर एक को समझाना है। जहाँ बाप रहते हैं वह है निर्वाणधाम अथवा मुक्तिधाम। बुद्ध आदि के लिए कहते हैं पार निर्वाण गया। तो वह सभी का होम (घर) हुआ ना। वह बाप का भी होम है। बाप अभी आये हैं सबको ले जाने लिए। अथाह धन दे रहे हैं। तो बाप का परिचय तुम नहीं देंगे तो कौन देंगे? बाप कहते हैं यह सब देह के धर्म हैं कि मैं क्रिश्चियन हूँ, फलाना हूँ........ यह सब छोड़ अब मुझ बाप को याद करो। जिसको तुम भक्ति मार्ग में याद करते आये हो। गाया भी जाता है अन्त मती सो गति। ग्रंथ में भी है ना - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे........ अब कूकर, सूकर तो बन नहीं सकते। फिर भी जन्म तो मिलता है ना। यहाँ बाप कहते हैं - देही-अभिमानी बनो, मुझे याद करो। तुम अपने बाप को और घर को भूल गये हो। अब नाटक पूरा होता है फिर रिपीट होना है। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन सब अपना पार्ट रिपीट करते आये हैं। यह ड्रामा अनेक बार रिपीट होता आया है। उनका कोई आदि अन्त नहीं। ड्रामा का आदि, अन्त तो है। फिर-फिर रिपीट होता रहता है, आटोमेटिकली। यह बातें जिनकी समझी हुई हैं उनको औरों को समझाना पड़े कि आकर बाप को जानो। बाप को न जानने से मनुष्य आरफन बन गये हैं। अभी समझो, पोप कहते हैं कि लड़ाई न करो तो भी वह मानेंगे थोड़ेही। क्रिश्चियन लोगों का बड़ा है पोप। सबका गुरू है। फिर गुरू की मत पर क्यों नहीं चलते? यह कोई की भी बात मानने वाले नहीं हैं। बाप ही आकरके मत देते हैं तो सबको समझाना है। धीरे-धीरे सब धर्म वाले समझेंगे। पहले तुम सिर्फ सिन्धी थे, अभी सब आने लगे हैं। क्रिश्चियन्स को भी बाप का परिचय देना चाहिए जिससे वे भी बाप से वर्सा लेने के हकदार बनें। इसमें थकना नहीं चाहिए। यह प्रदर्शनी तो बहुत जोर से चलेगी। सर्विसएबुल बच्चों के ऊपर सर्विस की बड़ी जिम्मेवारी है। वही दिल पर चढ़ेंगे और फिर तख्त पर सवार होंगे। महादानी बनना है और फिर याद करना है बाप को। वह इन्श्योर करते हैं दूसरे जन्म लिए। ईश्वर अर्थ वा कृष्ण अर्थ दान करते हैं। वास्तव में कृष्ण तो है ही साहूकार, उनका तो दान लिया हुआ है, बाप से वर्सा लिया हुआ है। स्वर्ग का प्रिन्स बना तो स्वर्ग स्थापन करने वाले से वर्सा लिया ना। परन्तु कैसे लिया? यह किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। बाप ने ही कृष्ण को भी वर्सा दिया। वर्से को ही दान भी कहा जाता है। कन्या दान करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करने आया हूँ, इसके लिए प्रबन्ध रचना पड़े। भल खर्चा हो, हर्जा नहीं। हमारे पास बच्चों ने साक्षात्कार तो किया है। इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि सब बड़े-बड़े अन्त में आते हैं। जरूर सुनेंगे तब तो पद पायेंगे ना। बच्चों को तो खुश होना चाहिए। क्रिश्चियन का भारत से कनेक्शन बहुत है। राजाई भी ली फिर रिटर्न भी कर रहे हैं। उन्हों को तो भारत की बहुत सम्भाल करनी है। अगर भारत पर कोई चढ़ाई कर ले तो सब पैसे खत्म हो जाएं। उन्हों के पैसे तो बहुत दिये हुए हैं। सारी रकम ही खलास हो जाए इसलिए हर तरह से कोशिश करेंगे भारत को बचाने की। इन्हों को मदद तो चाहिए जरूर और रिटर्न भी चाहिए। उनको तो सम्भाल करनी ही है। बाबा जानते हैं भारत गरीब है तो वहाँ से भी मदद कराते हैं और खुद भी आकर मदद दे रहे हैं। अभी वह मदद देते हैं और भविष्य के लिए फिर बाप मदद देते हैं। तो बहुत अच्छा एक मण्डप बनाकर वहाँ सब क्रिश्चियन को निमंत्रण देना है। कितने अच्छे-अच्छे चित्र हैं, इनमें सारी नॉलेज है। दिन-प्रतिदिन बुद्धि का ताला खुलता जायेगा।
तुम जानते हो छोटी आत्मा में कितना भारी पार्ट भरा हुआ है! साइंसदान भी इस बात पर बड़ा वन्डर खायेंगे। साइंसदान भी समझते हैं कि कोई हमको प्रेरता है। विनाश तो होना है जरूर। यह ड्रामा में नूँध है। शंकर की कोई बात नहीं, यह तो निमित्त करके नाम रखा है। नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है। यह बातें सुनने से वह बड़े खुश होंगे, तुमको बहुत थैंक्स देंगे। बहुत फॉरेनर्स आयेंगे। घर बैठे आते हैं तो दान जरूर देना है। अपने लिए तो इस समय सब आरफन, कंगाल हैं। सारी दुनिया छोरे और छोरियां हैं क्योंकि फादर-मदर का ही परिचय नहीं है। तो तुम विश्व के मालिक बनते हो। तो बच्चों को सर्विस का भी नशा होना चाहिए। तार भी देंगे कि आकर समझो, बाप आये हुए हैं सब आत्माओं को ले जाने। आत्मा खुश होती है - बरोबर अब नाटक पूरा हुआ, अब बाबा आये हैं ले जाने। फिर हम सुखधाम में आयेंगे। आधा-कल्प पुजारी बन बाप को याद किया है। अब फिर पूज्य बनना है। तो खुशी में खग्गियां मारनी चाहिए। खुशी न होने से फिर रोते रहते। जो रोते हैं सो खोते हैं। हाँ, ऐसे सुख देने वाले बाप की याद में प्रेम के आंसू आये तो वह माला के दाने हैं। बाप की श्रीमत से श्रेष्ठ बनेंगे। यह बाप भी कहते हैं कदम-कदम पर शिवबाबा की मत पर चलना है। श्रीमत ही श्रेष्ठ है। बड़ी ऊंची पढ़ाई है। तीर्थों पर मनुष्य जाते हैं, बहुत कठिनाईयाँ सामने आती हैं। आगे तो पैदल जाते थे, अभी गवर्मेन्ट ने सहज कर दिया है। तो बाप समझाते हैं कदम-कदम पर श्रीमत पर चलना है। सावधानी से चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। कदम-कदम पर राय लेनी है। चिट्ठी लिखो शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा अथवा ब्रह्माकुमारियां, तो शिवबाबा याद पड़ेगा। परन्तु बहुत बच्चे लिखने में भूल जाते हैं। एक दिन सबकी बुद्धि का ताला जरूर खुलने का है। बच्चों को सर्विस का बहुत शौक चाहिए। सर्विस बहुत करनी है। यह भी ड्रामा में नूँध है। खर्चा आपेही आयेगा। अनायास ही सब कुछ होता जायेगा। बाप कहते हैं तुमको 3 पैर पृथ्वी का मिलना भी मुश्किल है। फिर भी तुमने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया ही है।
अच्छा, समझाते तो बहुत हैं, धारणा भी हो। जास्ती भारी माल खाने से फिर हज़म नहीं होता है। प्रदर्शनी में भल आते तो बहुत हैं परन्तु एक को भी यह निश्चय नहीं बैठता है कि इन्हों को पढ़ाने वाला अथवा राजयोग सिखलाने वाला बाप है। पहले-पहले यह निश्चय बिठाना है। तुम समझा सकते हो यह है प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां। रचयिता तो एक ही परमपिता परमात्मा है। बाप से ही वर्सा मिलना है। बाप का जब तक बच्चा न बनें तो वर्सा मिल न सके। भक्तों को फल देने वाला है बाप। इतने सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को भी क्रियेटर कहते हैं। अभी रचना होती है नई दुनिया की। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। अच्छा!
मीठे-मीठे लकी सितारों प्रति ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के दिलतख्त पर बैठने के लिए सर्विस की जवाबदारी लेनी है। महादानी जरूर बनना है। ज्ञान दान करने में कुछ खर्चा हो तो हर्जा नहीं।
2) ऊंची चढ़ाई है इसलिए बहुत सावधानी से चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेते रहना है।
वरदान:-भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव
जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है।
स्लोगन:-राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा हैं।
02/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, from being worshippers you are now becoming worthy of worship. From being beggars you are becoming prince s. Therefore, you should be dancing and jumping with joy. You should never cry.
Question:In order to make Bharat wealthy, in what aspect does the Father make you equal to Himself by showering the imperishable jewels of knowledge on you?
Answer:Baba says: Children, just as I am Rup Basant, so I also make you rup basant. Imbibe the imperishable jewels of knowledge you have received and donate them through your mouths. It is by your making this great donation that Bharat will become wealthy. Just as you are claiming your inheritance from the Father, so you have to enable others to receive it in the same way. It is your duty to show the path to everyone and become those who bestow happiness.
Song:On the path of justice.... Om Shanti
This song applies to you children and it also applies to the Congress Party, because they too endured difficulties and liberated Bharat from the British. Therefore, this song was composed in that happiness. They continue to celebrate in happiness but, no matter what they have accomplished, the old world has not changed. The world is as old as it was before. You children know that we are changing this world by following shrimat. That cannot be called shrimat. Shrimat only comes from the one God. You are now following the Father’s most elevated shrimat, but those people have put Shri Krishna’s name. You children now know that these are Shri Shiv Baba’s directions. It does not seem right to call Krishna ‘Baba’. These directions are from Shri Shiv Baba. They cannot be called the directions of ‘Shri Krishna Baba’. You are making this Bharat pure again. The land of Bharat is important because it is the birthplace of the unlimited Father. This is the birthplace of the Father of all the human beings of the whole world, the One who is the Bestower of Salvation for All. This is called the highest and most elevated pilgrimage place of all. There is no other pilgrimage place as elevated as this one. However, they have changed the name in the Gita. The residents of Bharat themselves don’t know that Bharat is the birthplace of the unlimited Father. Although they celebrate Shiv Ratri, they don’t know who Shiva is, when He came or what His name and form are. You have now come to know this. You show a white star in the picture of the Shivalingam, so that people can clearly understand what the form of the Supreme Soul is. However, because they did not know how they could worship Him, they created a large form. In fact, He is a star. Baba was a jeweller. Baba knows that there are gems called ‘s tar r uby’, ‘fi ne s tar r uby’, sapphire etc. That is the most valuable one. It appeared in the newspaper that the largest star of all was stolen from a particular treasure. So this Shivalingam is red with a white star in the centre, a starlight. It is very easy to explain this. A star is white. Souls seen in divine visions also appear to be white. It is the same thing, but you just need to put a star. You don’t need to write anything else. It will be very easy to explain. In any case, there is an explanation at the bottom. The kingdom of heaven is your birthright because it is given by our Heavenly God the Father. Therefore, you should put a starlight. Baba is now giving you directions, so you must do the work quickly. There are some gems in which a first-class star can be seen. They have great value here, whereas in the golden age, these things have no value. Jewels there are considered to be stones; they are fixed to the palace walls. This world is now changing. You children know that you are now studying in order to claim your inheritance of becoming the masters of heaven from the Father. The more you study, the more elevated a status you will claim. You have to study and also teach others, that is, you have to make others similar to yourselves. Only then will you be able to claim a high status. You children know that you are Brahmins, and that you have to teach others this true pilgrimage. You have to give everyone the Father’s introduction. No human being knows the Father. There is only one Father. Everyone else has received their own individual parts. The part of one soul cannot be the same as another’s. Souls are imperishable and there cannot be any difference in their forms. Everyone’s body is different and there is a difference in the part of every soul. Each soul, which is like a starlight, is filled with an imperishable part ; it is an imperishable part. Only you understand these aspects, numberwise, according to your efforts. As for the soul, it has been praised as being a unique star sparkling in the centre of the forehead. It is amazing, is it not? It is such a tiny star and it is filled with a part of 84 births. When people hear these things, they will give you many thanks and say: It is truly the Supreme Soul who is teaching them. You have to teach everyone. Although Christians only know English, you can speak in Hindi and an interpreter can translate it into English simultaneously. They will have their own interpreters. You have to give the Father’s introduction. Just as the Father is the Bestower of Happiness and the Remover of Sorrow, so you children also have to become the same. You have to show the path to each and every one. It is the duty of you children to make others happy. Since you yourselves are claiming such a huge inheritance from the Father you also have to enable others to claim it. This is the greatest donation. Each version is worth hundreds of thousands of rupees. If the versions in the scriptures are worth hundreds or thousands of rupees, why is Bharat so poverty-stricken? Therefore, you children have to explain to others and introduce the Father as the Supreme Soul. He is Rup as well as Basant (the Embodiment of Yoga and the One who Showers Knowledge), but how can He shower these imperishable jewels of knowledge? He definitely needs a body. Therefore, the Father comes and makes you children, that is, you souls, rup basant. You have to imbibe these imperishable jewels of knowledge. Donate them through your lips. No one can place a value on such jewels. There is a story about this as well. So, you should imbibe this. People pray to Shiv Baba and say: Innocent Lord, fill everyone’s apron with jewels. You have to fill your aprons with these imperishable jewels of knowledge. Then, when you are there, the walls of your palaces will be embedded with diamonds and jewels. Therefore, you have to explain this to each and every one. The land of nirvana, that is, the land of liberation, is the place where the Father resides. For Buddha etc. they say they went beyond or that they went to Nirvana. That is everyone’s home. That is the Father’s home too. The Father has now come to take everyone back home. He is giving you limitless wealth. So, if you don’t give the Father’s introduction, who would? The Father says: When someone says: “I am a Christian”, or, “I am such-and-such”, all of those are bodily religions. You have to renounce all of those and remember Me, your Father, the One whom you have been remembering on the path of devotion. It is said: Your final thoughts will lead you to your destination. It is mentioned in the Granth too that if you remember your wife at the end, that will be your destination. Now, you cannot become a cockerel or something like that, but everyone does take rebirth. Here, the Father says: Become soul conscious and remember Me. You have forgotten your Father and your home. The play is now about to end and it will then have to repeat. Those of Islam, the Buddhists and the Christians have all been repeating their parts. This drama has repeated innumerable times; there is no beginning or end to it. There is the beginning and the end of the drama but it continues to repeat automatically. Those who have understood these aspects should tell others to come and know the Father. Because of not knowing the Father, they have become orphans. Now, imagine, if the Pope said, “Do not fight”, would they accept that? The Pope is the head of the Christians ; he is their guru. So, why do they not follow their guru’s directions? Those people are not likely to accept anything said by anyone. The Father comes and gives directions, and so you have to explain this to others. Gradually, people of all religions will come to understand this. At first, there were just a few of you Sindhis, and now many have started to come. You should even give the Father’s introduction to the Christians so that they too can claim a right to the Father’s inheritance. You must not tire of doing this. These exhibitions must continue with full force. There is a great responsibility for service on the serviceable children. They are the ones who will be seated on the heart-throne and then be seated on a physical throne. You have to become great donors and remember the Father. People insure themselves for their next birth; they donate in the name of God or in the name of Krishna. In fact, Krishna was already wealthy; he had already received the donation; he had claimed his inheritance from the Father. Since he became the p rince of heaven, he must have claimed his inheritance from the One who established heaven. Nevertheless, how he claimed it does not enter anyone’s intellect. It is the Father who gave Krishna his inheritance. An inheritance is also known as a donation. People donate their daughter (when she marries). The Father says: I have now come to give you the donation of the imperishable jewels of knowledge, and so arrangements have to be made for this. Even if it does incur expenditure, there is no harm in that. Some children have seen visions here. Abraham, Buddha and Christ etc., all of those important souls, come at the end. Surely, they will hear this knowledge; only then could they claim their status. You children should become happy. The Christians have a lot of connection with Bharat. They took this kingdom and they are also giving the return of that. They have to take great care of Bharat, because if Bharat were to be attacked, all the money invested by them would be lost. They have given a lot of money to Bharat and so all of their income from that would be lost. This is why they try to save Bharat in every possible way. They definitely need help. They also want a return. Therefore, they definitely have to look after Bharat. Baba knows that Bharat is poor and He therefore inspires those abroad to help and He also comes here to help. They are helping now and the Father gives help for the future. So, a very good marquee should be erected and all the Christians should be invited. There are very good pictures which contain the whole knowledge. Day by day, the locks on the intellects will continue to open. You know that such a huge part is recorded in such a tiny soul! Scientists too will be wonder struck by these things. Scientists understand that someone is inspiring them. Destruction will definitely take place. This is fixed in the drama. Destruction has nothing to do with Shankar; they have just used his name. Natural calamities too will take place. They will be very happy when they hear these things. They will give you many thanks. Many foreigners will come. They will come to you while you sit at home, and so you must definitely donate to them. To us, all of them are poverty-stricken orphans. People of the whole world have become orphans because they do not have the introduction of the Mother and Father. You children are becoming the masters of the world, and so you should have the intoxication of service. Send them telegrams that say: Come and learn how the Father has come to take all souls back home. Souls become happy that the play is now truly coming to an end, that Baba has come to take us back and that we will then go to the land of happiness. For half the cycle, as worshippers, we remembered the Father. We now have to become worthy of worship again. Therefore, you should be dancing and jumping with joy. By not having happiness you continue to weep. Those who weep, lose out. Yes, if you shed tears of love while in remembrance of the Father who gives you happiness, they are like the beads of a garland. By following the Father’s shrimat, you will become elevated. This father also tells you to follow Shiv Baba’s directions at every step. Shrimat is the most elevated of all directions. This is a very elevated study. When people go on pilgrimages, they have to face many difficulties. Previously, they used to go on foot. The Government has now made it easy for them. Therefore, the Father says: Follow shrimat at every step. If you climb carefully, you will taste the nectar of heaven, but if you fall, you will be totally crushed. You should take advice at every step. Write a letter to Shiv Baba, through Brahma and the Brahma Kumaris and you will truly then remember Shiv Baba. However, many children forget to write this. One day, the lock on everyone’s intellect will definitely open. Children should have a great deal of interest in doing service. You have to do a lot of service. This too is fixed in the drama. All the expenses will automatically be met. Everything will happen suddenly. The Father says: It is difficult for you to find even three feet of land. Nevertheless, you still made Bharat into heaven a cycle ago. Achcha, a great deal has been explained to you, but it also has to be imbibed. When you eat very rich food, it is difficult to digest it. Although many come to the exhibitions, none of them has the faith that the Father is the One who teaches you people Raja Yoga. First of all, inspire them to have this faith. You can explain that you are the Prajapita Brahma Kumars and Kumaris and that only the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Creator. The inheritance can only be received from the Father. Until you become a child of the Father, you cannot receive your inheritance. The Father is the One who gives the fruit to the devotees. There are so many Brahma Kumars and Brahma Kumaris. Prajapita Brahma is also called a creator. Creation of the new world is now taking place. God speaks: I teach you Raja Yoga. Achcha.
To the sweetest lucky stars, love, remembrance and good morning from the Sun and the Moon of Knowledge. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to sit on the Father's heart throne, take responsibility for service. You definitely have to become great donors. There is no harm if some expense is incurred in donating knowledge.
2. This is a very steep ascent and you must therefore be very cautious. Continue to take shrimat at every step.
Blessing:May you be a true embodiment of tapasya sitting in the cottage of the forehead and experience the sweetness of introspection.
The children who control their words and thereby save their energy and time automatically experience the sweetness of introspection. There is the difference of day and night between the sweetness of introspection and the sweetness of talking and moving around. Someone who is introverted constantly experiences himself to be an image of tapasya seated in the cottage of the forehead. Such a soul observes silence of the mind and does not have waste thoughts or speak words through the mouth. Therefore, there is the alokik experience of the sweetness of introspection.
Slogan:Those who understand all secrets and remain happy in all adverse situations are enlightened souls.
''मीठे बच्चे - तुम अभी पुजारी से पूज्य, बेगर से प्रिन्स बन रहे हो, इसलिए तुम्हें खुशी में खग्गियां मारनी है, कभी भी रोना नहीं है''
प्रश्नः-अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा से भारत को साहूकार बनाने के लिए बाप तुम्हें किस बात में आप समान बनाते हैं?
उत्तर:-
बाबा कहते - बच्चे, जैसे मैं रूप बसन्त हूँ, ऐसे तुम्हें भी रूप बसन्त बनाता हूँ। जो अविनाशी ज्ञान रत्न तुम्हें मिले हैं उन्हें धारण कर मुख से दान करो। इसी महादान से भारत साहूकार बनेगा। जैसे तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो ऐसे औरों को भी दो। तुम्हारा फर्ज है सबको रास्ता बताना, सुखदाई बनना।
गीत:-इन्साफ की डगर पर....... ओम् शान्ति।
यह गीत कांग्रेस से भी लगता है और तुम बच्चों से भी लगता है क्योंकि उन्होंने भी तो सहन करके अंग्रेजों से भारत को छुड़ाया। तो यह गीत उनकी खुशी में है। खुशियां तो मनाते रहते हैं, भल कितना भी किया परन्तु पुरानी दुनिया तो नहीं बदली ना। दुनिया तो वही पुरानी है। तुम बच्चे जानते हो श्रीमत पर हम इस दुनिया को बदल रहे हैं। वह श्रीमत नहीं कहेंगे। श्रीमत है ही एक भगवान् की। तुम हो अभी बाप की श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ श्रीमत पर। उन्होंने फिर श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। अभी तुम बच्चे जानते हो यह है श्री शिवबाबा की मत। कृष्ण को बाबा कहना शोभता नहीं। श्री शिवबाबा की मत। श्री कृष्ण बाबा की मत तो नहीं कहेंगे। तुम इस भारत को फिर से पवित्र बना रहे हो। भारत खण्ड ही मुख्य है क्योंकि यह बेहद के बाप का बर्थप्लेस है। सारी दुनिया के मनुष्य-मात्र का जो बाप है अर्थात् सर्व का सद्गति दाता है, उनका यह बर्थ प्लेस है। इसको सर्वोत्तम तीर्थ कहा जाता है, इस जैसा ऊंच ते ऊंच तीर्थ कोई है नहीं। परन्तु गीता में नाम बदल दिया है। यह भारतवासी खुद नहीं जानते कि यह भारत बेहद के बाप का बर्थ प्लेस है। भल शिवरात्रि मनाते हैं परन्तु यह पता नहीं है कि शिव कौन है? कब आया? उनका नाम-रूप क्या है? तुम अब जान गये हो। अभी शिवलिंग के चित्र में सफेद स्टॉर दिखाते हैं, जो मनुष्य क्लीयर समझें कि परमात्मा का यह रूप है। परन्तु पूजा आदि कैसे की जाए - इसलिए बड़ा रूप बनाया है। है वास्तव में स्टॉर। बाबा जौहरी भी है। बाबा को मालूम है एक पत्थर भी होता है जिसको स्टॉर रूबी, स्टॉर फाइन माणिक, स्टॉर नीलम आदि कहते हैं। वह मोस्ट वैल्युबुल होता है। अखबार में भी पड़ा था कि सबसे बड़ा स्टॉर फलाने ख़ज़ाने से चोरी हो गया है। तो यह शिवलिंग लाल तो है, इनमें बीच में है सफेद स्टॉर, स्टॉर लाइट। समझाने में बहुत सहज होगा। स्टॉर सफेद होता है ना। आत्मा का भी सफेद ही साक्षात्कार होता है। चीज़ तो यही है। सिर्फ स्टॉर लगाना है। और कुछ लिखने की दरकार नहीं रहेगी। समझाना बहुत सहज होगा। नीचे यह लिखत तो है ही - आपका जन्म सिद्ध अधिकार स्वर्ग की राजाई क्योंकि हेविनली गॉड फादर है। तो स्टॉर लाइट डालना है। अब बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं। झट काम कर लेना चाहिए। ऐसे पत्थर भी होते हैं जिसमें स्टॉर बड़ा फर्स्टक्लास दिखाई दे। यहाँ उनकी बहुत वैल्यु है। फिर सतयुग में तो इन चीज़ों की वैल्यु होती नहीं। वहाँ यह जवाहरात तो पत्थर गिने जाते हैं, महलों में लगाते रहते हैं। यह दुनिया अब बदल रही है। तुम बच्चे जानते हो हम स्वर्ग का मालिक बनने लिए बाप से वर्सा ले रहे हैं, पढ़ रहे हैं। जितना जो पढ़ेगा उतना ऊंच पद पायेगा। पढ़ना और फिर पढ़ाना भी है, यानी आप समान बनाना है तब ही ऊंच पद पा सकेंगे। बच्चे समझते हैं हम ब्राह्मण हैं, हमको सच्ची यात्रा सिखलानी है। हरेक को बाप का परिचय देना है। कोई भी मनुष्यमात्र बाप को नहीं जानते। बाप तो एक ही है। बाकी सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। एक आत्मा का पार्ट न मिले दूसरे से। आत्मा तो अविनाशी है, उनके रूप में कोई फ़र्क नहीं हो सकता। शरीरों में फ़र्क है और हर एक आत्मा के पार्ट का फ़र्क है। हर एक आत्मा जो स्टॉर लाइट है, उसमें अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इम्पेरिसिबुल पार्ट है। यह बातें भी तुम ही जानते हो, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। जैसे आत्मा है, गाते भी हैं चमकता है भ्रकुटी के बीच अजब सितारा। अजब है ना। कितना छोटा-सा स्टॉर, उसमें 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। यह बातें जब सुनेंगे तो बहुत आ़फरीन देंगे कि बरोबर इन्हों को तो पढ़ाने वाला वह परमात्मा है। तुमको तो सबको पढ़ाना है। भल क्रिश्चियन लोग अंग्रेजी जानने वाले हैं, तुम हिन्दी में बोलो, फिर इन्टरप्रेटर इंगलिश में ट्रांसलेट कर सुनाता जायेगा। उनके पास इन्टरप्रेटर (अनुवाद करने वाले) होते हैं। बाप का परिचय तो देना है। जैसे बाप दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, वैसे तुम बच्चों को भी बनना है। हर एक को रास्ता बताना है। औरों को भी सुखदाई बनाना - यह तुम बच्चों का फ़र्ज है। तुम खुद बाप से इतना वर्सा ले रहे हो तो फिर औरों को भी देना पड़े। यह है महादान। यह एक-एक वर्शन्स लाखों रूपयों का है। शास्त्रों के वर्शन्स अगर लाखों रूपये के होते तो फिर भारत इतना कंगाल क्यों होता?
तो तुम बच्चों को समझाना है, बाप का परिचय देना है, वह भी परम आत्मा है। रूप भी है, बसन्त भी है। परन्तु अविनाशी ज्ञान रत्नों की वर्षा कैसे करें? जरूर शरीर चाहिए। तो बाप आकर तुम बच्चों को अर्थात् तुम्हारी आत्मा को रूप-बसन्त बनाते हैं। अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा करनी है। मुख द्वारा फिर यह दान देना चाहिए, जिन रत्नों का कोई मूल्य नहीं कर सकता। उस पर भी एक कहानी है। तो यह धारणा करनी चाहिए। कहते हैं ना शिवबाबा बम-बम भोलानाथ भर दे झोली। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों से झोली भरनी है। फिर वहाँ तो तुम्हारे महल हीरे जवाहरों के बन जायेंगे। तो यह हर एक को समझाना है। जहाँ बाप रहते हैं वह है निर्वाणधाम अथवा मुक्तिधाम। बुद्ध आदि के लिए कहते हैं पार निर्वाण गया। तो वह सभी का होम (घर) हुआ ना। वह बाप का भी होम है। बाप अभी आये हैं सबको ले जाने लिए। अथाह धन दे रहे हैं। तो बाप का परिचय तुम नहीं देंगे तो कौन देंगे? बाप कहते हैं यह सब देह के धर्म हैं कि मैं क्रिश्चियन हूँ, फलाना हूँ........ यह सब छोड़ अब मुझ बाप को याद करो। जिसको तुम भक्ति मार्ग में याद करते आये हो। गाया भी जाता है अन्त मती सो गति। ग्रंथ में भी है ना - अन्तकाल जो स्त्री सिमरे........ अब कूकर, सूकर तो बन नहीं सकते। फिर भी जन्म तो मिलता है ना। यहाँ बाप कहते हैं - देही-अभिमानी बनो, मुझे याद करो। तुम अपने बाप को और घर को भूल गये हो। अब नाटक पूरा होता है फिर रिपीट होना है। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन सब अपना पार्ट रिपीट करते आये हैं। यह ड्रामा अनेक बार रिपीट होता आया है। उनका कोई आदि अन्त नहीं। ड्रामा का आदि, अन्त तो है। फिर-फिर रिपीट होता रहता है, आटोमेटिकली। यह बातें जिनकी समझी हुई हैं उनको औरों को समझाना पड़े कि आकर बाप को जानो। बाप को न जानने से मनुष्य आरफन बन गये हैं। अभी समझो, पोप कहते हैं कि लड़ाई न करो तो भी वह मानेंगे थोड़ेही। क्रिश्चियन लोगों का बड़ा है पोप। सबका गुरू है। फिर गुरू की मत पर क्यों नहीं चलते? यह कोई की भी बात मानने वाले नहीं हैं। बाप ही आकरके मत देते हैं तो सबको समझाना है। धीरे-धीरे सब धर्म वाले समझेंगे। पहले तुम सिर्फ सिन्धी थे, अभी सब आने लगे हैं। क्रिश्चियन्स को भी बाप का परिचय देना चाहिए जिससे वे भी बाप से वर्सा लेने के हकदार बनें। इसमें थकना नहीं चाहिए। यह प्रदर्शनी तो बहुत जोर से चलेगी। सर्विसएबुल बच्चों के ऊपर सर्विस की बड़ी जिम्मेवारी है। वही दिल पर चढ़ेंगे और फिर तख्त पर सवार होंगे। महादानी बनना है और फिर याद करना है बाप को। वह इन्श्योर करते हैं दूसरे जन्म लिए। ईश्वर अर्थ वा कृष्ण अर्थ दान करते हैं। वास्तव में कृष्ण तो है ही साहूकार, उनका तो दान लिया हुआ है, बाप से वर्सा लिया हुआ है। स्वर्ग का प्रिन्स बना तो स्वर्ग स्थापन करने वाले से वर्सा लिया ना। परन्तु कैसे लिया? यह किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। बाप ने ही कृष्ण को भी वर्सा दिया। वर्से को ही दान भी कहा जाता है। कन्या दान करते हैं ना। अभी बाप कहते हैं मैं तुमको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करने आया हूँ, इसके लिए प्रबन्ध रचना पड़े। भल खर्चा हो, हर्जा नहीं। हमारे पास बच्चों ने साक्षात्कार तो किया है। इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि सब बड़े-बड़े अन्त में आते हैं। जरूर सुनेंगे तब तो पद पायेंगे ना। बच्चों को तो खुश होना चाहिए। क्रिश्चियन का भारत से कनेक्शन बहुत है। राजाई भी ली फिर रिटर्न भी कर रहे हैं। उन्हों को तो भारत की बहुत सम्भाल करनी है। अगर भारत पर कोई चढ़ाई कर ले तो सब पैसे खत्म हो जाएं। उन्हों के पैसे तो बहुत दिये हुए हैं। सारी रकम ही खलास हो जाए इसलिए हर तरह से कोशिश करेंगे भारत को बचाने की। इन्हों को मदद तो चाहिए जरूर और रिटर्न भी चाहिए। उनको तो सम्भाल करनी ही है। बाबा जानते हैं भारत गरीब है तो वहाँ से भी मदद कराते हैं और खुद भी आकर मदद दे रहे हैं। अभी वह मदद देते हैं और भविष्य के लिए फिर बाप मदद देते हैं। तो बहुत अच्छा एक मण्डप बनाकर वहाँ सब क्रिश्चियन को निमंत्रण देना है। कितने अच्छे-अच्छे चित्र हैं, इनमें सारी नॉलेज है। दिन-प्रतिदिन बुद्धि का ताला खुलता जायेगा।
तुम जानते हो छोटी आत्मा में कितना भारी पार्ट भरा हुआ है! साइंसदान भी इस बात पर बड़ा वन्डर खायेंगे। साइंसदान भी समझते हैं कि कोई हमको प्रेरता है। विनाश तो होना है जरूर। यह ड्रामा में नूँध है। शंकर की कोई बात नहीं, यह तो निमित्त करके नाम रखा है। नैचुरल कैलेमिटीज भी होनी है। यह बातें सुनने से वह बड़े खुश होंगे, तुमको बहुत थैंक्स देंगे। बहुत फॉरेनर्स आयेंगे। घर बैठे आते हैं तो दान जरूर देना है। अपने लिए तो इस समय सब आरफन, कंगाल हैं। सारी दुनिया छोरे और छोरियां हैं क्योंकि फादर-मदर का ही परिचय नहीं है। तो तुम विश्व के मालिक बनते हो। तो बच्चों को सर्विस का भी नशा होना चाहिए। तार भी देंगे कि आकर समझो, बाप आये हुए हैं सब आत्माओं को ले जाने। आत्मा खुश होती है - बरोबर अब नाटक पूरा हुआ, अब बाबा आये हैं ले जाने। फिर हम सुखधाम में आयेंगे। आधा-कल्प पुजारी बन बाप को याद किया है। अब फिर पूज्य बनना है। तो खुशी में खग्गियां मारनी चाहिए। खुशी न होने से फिर रोते रहते। जो रोते हैं सो खोते हैं। हाँ, ऐसे सुख देने वाले बाप की याद में प्रेम के आंसू आये तो वह माला के दाने हैं। बाप की श्रीमत से श्रेष्ठ बनेंगे। यह बाप भी कहते हैं कदम-कदम पर शिवबाबा की मत पर चलना है। श्रीमत ही श्रेष्ठ है। बड़ी ऊंची पढ़ाई है। तीर्थों पर मनुष्य जाते हैं, बहुत कठिनाईयाँ सामने आती हैं। आगे तो पैदल जाते थे, अभी गवर्मेन्ट ने सहज कर दिया है। तो बाप समझाते हैं कदम-कदम पर श्रीमत पर चलना है। सावधानी से चढ़े तो चाखे वैकुण्ठ रस, गिरे तो चकनाचूर। कदम-कदम पर राय लेनी है। चिट्ठी लिखो शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा अथवा ब्रह्माकुमारियां, तो शिवबाबा याद पड़ेगा। परन्तु बहुत बच्चे लिखने में भूल जाते हैं। एक दिन सबकी बुद्धि का ताला जरूर खुलने का है। बच्चों को सर्विस का बहुत शौक चाहिए। सर्विस बहुत करनी है। यह भी ड्रामा में नूँध है। खर्चा आपेही आयेगा। अनायास ही सब कुछ होता जायेगा। बाप कहते हैं तुमको 3 पैर पृथ्वी का मिलना भी मुश्किल है। फिर भी तुमने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया ही है।
अच्छा, समझाते तो बहुत हैं, धारणा भी हो। जास्ती भारी माल खाने से फिर हज़म नहीं होता है। प्रदर्शनी में भल आते तो बहुत हैं परन्तु एक को भी यह निश्चय नहीं बैठता है कि इन्हों को पढ़ाने वाला अथवा राजयोग सिखलाने वाला बाप है। पहले-पहले यह निश्चय बिठाना है। तुम समझा सकते हो यह है प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां। रचयिता तो एक ही परमपिता परमात्मा है। बाप से ही वर्सा मिलना है। बाप का जब तक बच्चा न बनें तो वर्सा मिल न सके। भक्तों को फल देने वाला है बाप। इतने सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं। प्रजापिता ब्रह्मा को भी क्रियेटर कहते हैं। अभी रचना होती है नई दुनिया की। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। अच्छा!
मीठे-मीठे लकी सितारों प्रति ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप के दिलतख्त पर बैठने के लिए सर्विस की जवाबदारी लेनी है। महादानी जरूर बनना है। ज्ञान दान करने में कुछ खर्चा हो तो हर्जा नहीं।
2) ऊंची चढ़ाई है इसलिए बहुत सावधानी से चलना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेते रहना है।
वरदान:-भ्रकुटी की कुटिया में बैठ अन्तर्मुखता का रस लेने वाले सच्चे तपस्वीमूर्त भव
जो बच्चे अपने बोल पर कन्ट्रोल कर एनर्जी और समय जमा कर लेते हैं, उन्हें स्वत: अन्तर्मुखता के रस का अनुभव होता है। अन्तर्मुखता का रस और बोलचाल का रस - इसमें रात दिन का अन्तर है। अन्तर्मुखी सदा भ्रकुटी की कुटिया में तपस्वीमूर्त का अनुभव करता है। वो व्यर्थ संकल्पों से मन का मौन और व्यर्थ बोल से मुख का मौन रखता है इसलिए अन्तर्मुखता के रस की अलौकिक अनुभूति होती है।
स्लोगन:-राज़युक्त बन हर परिस्थिति में राज़ी रहने वाले ही ज्ञानी तू आत्मा हैं।
02/10/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, from being worshippers you are now becoming worthy of worship. From being beggars you are becoming prince s. Therefore, you should be dancing and jumping with joy. You should never cry.
Question:In order to make Bharat wealthy, in what aspect does the Father make you equal to Himself by showering the imperishable jewels of knowledge on you?
Answer:Baba says: Children, just as I am Rup Basant, so I also make you rup basant. Imbibe the imperishable jewels of knowledge you have received and donate them through your mouths. It is by your making this great donation that Bharat will become wealthy. Just as you are claiming your inheritance from the Father, so you have to enable others to receive it in the same way. It is your duty to show the path to everyone and become those who bestow happiness.
Song:On the path of justice.... Om Shanti
This song applies to you children and it also applies to the Congress Party, because they too endured difficulties and liberated Bharat from the British. Therefore, this song was composed in that happiness. They continue to celebrate in happiness but, no matter what they have accomplished, the old world has not changed. The world is as old as it was before. You children know that we are changing this world by following shrimat. That cannot be called shrimat. Shrimat only comes from the one God. You are now following the Father’s most elevated shrimat, but those people have put Shri Krishna’s name. You children now know that these are Shri Shiv Baba’s directions. It does not seem right to call Krishna ‘Baba’. These directions are from Shri Shiv Baba. They cannot be called the directions of ‘Shri Krishna Baba’. You are making this Bharat pure again. The land of Bharat is important because it is the birthplace of the unlimited Father. This is the birthplace of the Father of all the human beings of the whole world, the One who is the Bestower of Salvation for All. This is called the highest and most elevated pilgrimage place of all. There is no other pilgrimage place as elevated as this one. However, they have changed the name in the Gita. The residents of Bharat themselves don’t know that Bharat is the birthplace of the unlimited Father. Although they celebrate Shiv Ratri, they don’t know who Shiva is, when He came or what His name and form are. You have now come to know this. You show a white star in the picture of the Shivalingam, so that people can clearly understand what the form of the Supreme Soul is. However, because they did not know how they could worship Him, they created a large form. In fact, He is a star. Baba was a jeweller. Baba knows that there are gems called ‘s tar r uby’, ‘fi ne s tar r uby’, sapphire etc. That is the most valuable one. It appeared in the newspaper that the largest star of all was stolen from a particular treasure. So this Shivalingam is red with a white star in the centre, a starlight. It is very easy to explain this. A star is white. Souls seen in divine visions also appear to be white. It is the same thing, but you just need to put a star. You don’t need to write anything else. It will be very easy to explain. In any case, there is an explanation at the bottom. The kingdom of heaven is your birthright because it is given by our Heavenly God the Father. Therefore, you should put a starlight. Baba is now giving you directions, so you must do the work quickly. There are some gems in which a first-class star can be seen. They have great value here, whereas in the golden age, these things have no value. Jewels there are considered to be stones; they are fixed to the palace walls. This world is now changing. You children know that you are now studying in order to claim your inheritance of becoming the masters of heaven from the Father. The more you study, the more elevated a status you will claim. You have to study and also teach others, that is, you have to make others similar to yourselves. Only then will you be able to claim a high status. You children know that you are Brahmins, and that you have to teach others this true pilgrimage. You have to give everyone the Father’s introduction. No human being knows the Father. There is only one Father. Everyone else has received their own individual parts. The part of one soul cannot be the same as another’s. Souls are imperishable and there cannot be any difference in their forms. Everyone’s body is different and there is a difference in the part of every soul. Each soul, which is like a starlight, is filled with an imperishable part ; it is an imperishable part. Only you understand these aspects, numberwise, according to your efforts. As for the soul, it has been praised as being a unique star sparkling in the centre of the forehead. It is amazing, is it not? It is such a tiny star and it is filled with a part of 84 births. When people hear these things, they will give you many thanks and say: It is truly the Supreme Soul who is teaching them. You have to teach everyone. Although Christians only know English, you can speak in Hindi and an interpreter can translate it into English simultaneously. They will have their own interpreters. You have to give the Father’s introduction. Just as the Father is the Bestower of Happiness and the Remover of Sorrow, so you children also have to become the same. You have to show the path to each and every one. It is the duty of you children to make others happy. Since you yourselves are claiming such a huge inheritance from the Father you also have to enable others to claim it. This is the greatest donation. Each version is worth hundreds of thousands of rupees. If the versions in the scriptures are worth hundreds or thousands of rupees, why is Bharat so poverty-stricken? Therefore, you children have to explain to others and introduce the Father as the Supreme Soul. He is Rup as well as Basant (the Embodiment of Yoga and the One who Showers Knowledge), but how can He shower these imperishable jewels of knowledge? He definitely needs a body. Therefore, the Father comes and makes you children, that is, you souls, rup basant. You have to imbibe these imperishable jewels of knowledge. Donate them through your lips. No one can place a value on such jewels. There is a story about this as well. So, you should imbibe this. People pray to Shiv Baba and say: Innocent Lord, fill everyone’s apron with jewels. You have to fill your aprons with these imperishable jewels of knowledge. Then, when you are there, the walls of your palaces will be embedded with diamonds and jewels. Therefore, you have to explain this to each and every one. The land of nirvana, that is, the land of liberation, is the place where the Father resides. For Buddha etc. they say they went beyond or that they went to Nirvana. That is everyone’s home. That is the Father’s home too. The Father has now come to take everyone back home. He is giving you limitless wealth. So, if you don’t give the Father’s introduction, who would? The Father says: When someone says: “I am a Christian”, or, “I am such-and-such”, all of those are bodily religions. You have to renounce all of those and remember Me, your Father, the One whom you have been remembering on the path of devotion. It is said: Your final thoughts will lead you to your destination. It is mentioned in the Granth too that if you remember your wife at the end, that will be your destination. Now, you cannot become a cockerel or something like that, but everyone does take rebirth. Here, the Father says: Become soul conscious and remember Me. You have forgotten your Father and your home. The play is now about to end and it will then have to repeat. Those of Islam, the Buddhists and the Christians have all been repeating their parts. This drama has repeated innumerable times; there is no beginning or end to it. There is the beginning and the end of the drama but it continues to repeat automatically. Those who have understood these aspects should tell others to come and know the Father. Because of not knowing the Father, they have become orphans. Now, imagine, if the Pope said, “Do not fight”, would they accept that? The Pope is the head of the Christians ; he is their guru. So, why do they not follow their guru’s directions? Those people are not likely to accept anything said by anyone. The Father comes and gives directions, and so you have to explain this to others. Gradually, people of all religions will come to understand this. At first, there were just a few of you Sindhis, and now many have started to come. You should even give the Father’s introduction to the Christians so that they too can claim a right to the Father’s inheritance. You must not tire of doing this. These exhibitions must continue with full force. There is a great responsibility for service on the serviceable children. They are the ones who will be seated on the heart-throne and then be seated on a physical throne. You have to become great donors and remember the Father. People insure themselves for their next birth; they donate in the name of God or in the name of Krishna. In fact, Krishna was already wealthy; he had already received the donation; he had claimed his inheritance from the Father. Since he became the p rince of heaven, he must have claimed his inheritance from the One who established heaven. Nevertheless, how he claimed it does not enter anyone’s intellect. It is the Father who gave Krishna his inheritance. An inheritance is also known as a donation. People donate their daughter (when she marries). The Father says: I have now come to give you the donation of the imperishable jewels of knowledge, and so arrangements have to be made for this. Even if it does incur expenditure, there is no harm in that. Some children have seen visions here. Abraham, Buddha and Christ etc., all of those important souls, come at the end. Surely, they will hear this knowledge; only then could they claim their status. You children should become happy. The Christians have a lot of connection with Bharat. They took this kingdom and they are also giving the return of that. They have to take great care of Bharat, because if Bharat were to be attacked, all the money invested by them would be lost. They have given a lot of money to Bharat and so all of their income from that would be lost. This is why they try to save Bharat in every possible way. They definitely need help. They also want a return. Therefore, they definitely have to look after Bharat. Baba knows that Bharat is poor and He therefore inspires those abroad to help and He also comes here to help. They are helping now and the Father gives help for the future. So, a very good marquee should be erected and all the Christians should be invited. There are very good pictures which contain the whole knowledge. Day by day, the locks on the intellects will continue to open. You know that such a huge part is recorded in such a tiny soul! Scientists too will be wonder struck by these things. Scientists understand that someone is inspiring them. Destruction will definitely take place. This is fixed in the drama. Destruction has nothing to do with Shankar; they have just used his name. Natural calamities too will take place. They will be very happy when they hear these things. They will give you many thanks. Many foreigners will come. They will come to you while you sit at home, and so you must definitely donate to them. To us, all of them are poverty-stricken orphans. People of the whole world have become orphans because they do not have the introduction of the Mother and Father. You children are becoming the masters of the world, and so you should have the intoxication of service. Send them telegrams that say: Come and learn how the Father has come to take all souls back home. Souls become happy that the play is now truly coming to an end, that Baba has come to take us back and that we will then go to the land of happiness. For half the cycle, as worshippers, we remembered the Father. We now have to become worthy of worship again. Therefore, you should be dancing and jumping with joy. By not having happiness you continue to weep. Those who weep, lose out. Yes, if you shed tears of love while in remembrance of the Father who gives you happiness, they are like the beads of a garland. By following the Father’s shrimat, you will become elevated. This father also tells you to follow Shiv Baba’s directions at every step. Shrimat is the most elevated of all directions. This is a very elevated study. When people go on pilgrimages, they have to face many difficulties. Previously, they used to go on foot. The Government has now made it easy for them. Therefore, the Father says: Follow shrimat at every step. If you climb carefully, you will taste the nectar of heaven, but if you fall, you will be totally crushed. You should take advice at every step. Write a letter to Shiv Baba, through Brahma and the Brahma Kumaris and you will truly then remember Shiv Baba. However, many children forget to write this. One day, the lock on everyone’s intellect will definitely open. Children should have a great deal of interest in doing service. You have to do a lot of service. This too is fixed in the drama. All the expenses will automatically be met. Everything will happen suddenly. The Father says: It is difficult for you to find even three feet of land. Nevertheless, you still made Bharat into heaven a cycle ago. Achcha, a great deal has been explained to you, but it also has to be imbibed. When you eat very rich food, it is difficult to digest it. Although many come to the exhibitions, none of them has the faith that the Father is the One who teaches you people Raja Yoga. First of all, inspire them to have this faith. You can explain that you are the Prajapita Brahma Kumars and Kumaris and that only the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Creator. The inheritance can only be received from the Father. Until you become a child of the Father, you cannot receive your inheritance. The Father is the One who gives the fruit to the devotees. There are so many Brahma Kumars and Brahma Kumaris. Prajapita Brahma is also called a creator. Creation of the new world is now taking place. God speaks: I teach you Raja Yoga. Achcha.
To the sweetest lucky stars, love, remembrance and good morning from the Sun and the Moon of Knowledge. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to sit on the Father's heart throne, take responsibility for service. You definitely have to become great donors. There is no harm if some expense is incurred in donating knowledge.
2. This is a very steep ascent and you must therefore be very cautious. Continue to take shrimat at every step.
Blessing:May you be a true embodiment of tapasya sitting in the cottage of the forehead and experience the sweetness of introspection.
The children who control their words and thereby save their energy and time automatically experience the sweetness of introspection. There is the difference of day and night between the sweetness of introspection and the sweetness of talking and moving around. Someone who is introverted constantly experiences himself to be an image of tapasya seated in the cottage of the forehead. Such a soul observes silence of the mind and does not have waste thoughts or speak words through the mouth. Therefore, there is the alokik experience of the sweetness of introspection.
Slogan:Those who understand all secrets and remain happy in all adverse situations are enlightened souls.
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