Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 1st Oct 2018 )
01-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - बाप की आश है बच्चे पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनें, जब पक्का वायदा करें - बाबा, आप हमारे, हम आपके, तब सच्ची प्रीत जुटे''
 
प्रश्नः-रूद्र शिवबाबा द्वारा रचे हुए यज्ञ और मनुष्यों द्वारा रचे जा रहे यज्ञों में मुख्य अन्तर क्या है?
 
उत्तर:-मनुष्य जो भी यज्ञ रचते, उसमें जौ-तिल आदि स्वाहा करते, वह मैटेरियल यज्ञ हैं। बाप ने जो यज्ञ रचा है यह अविनाशी ज्ञान यज्ञ है, इसमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हो जाती है। 2- वह यज्ञ थोड़े समय तक चलते, यह यज्ञ जब तक विनाश हो तब तक चलता रहेगा। जब तुम बच्चे कर्मातीत अवस्था तक पहुँचेंगे तब यज्ञ की समाप्ति होगी।
 
गीत:-निर्बल से लड़ाई बलवान की........ 
 
ओम् शान्ति।
 
अभी यह बच्चे जानते हैं कि इनको पाठशाला भी कहेंगे और ज्ञान यज्ञ भी कहेंगे। पाठशाला के हिसाब से एम आब्जेक्ट तो जरूर चाहिए। अभी यह यज्ञ का यज्ञ भी है और पाठशाला भी है। यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, वे लोग इनकी कॉपी करते हैं। मैटेरियल यज्ञ रचते हैं। उनमें जौ-तिल आदि की आहुति डालते हैं और दूसरा फिर बहुत बड़ा यज्ञ भी रचते हैं जहाँ चारों तरफ शास्त्रों को रखते हैं। बहुत बड़ी जमीन ले लेते हैं। फिर एक तरफ चावल, घी, आटा आदि सब रखते हैं और दूसरे तरफ शास्त्र भी सब रखते हैं। जो शास्त्र मांगो वह सुनायेंगे फिर वहाँ यज्ञ में स्वाहा भी करते रहते। बाप कहते हैं यह रूद्र तो मेरा नाम है। कहते भी हैं रूद्र भगवान् ने ज्ञान यज्ञ रचा था। इसका नाम पड़ गया रूद्र ज्ञान यज्ञ। जैसे नेहरू के बाद नाम रखते हैं - नेहरू मार्ग, नेहरू पार्क आदि। अब रूद्र तो है भगवान् शिव। उसने ही रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। इस यज्ञ में सारी पुरानी सृष्टि की आहुति पड़ती है। यह कोई की बुद्धि में थोड़ेही होगा। कितनी बड़ी सृष्टि है। कितना दूर-दूर शहर हैं। सब इस अविनाशी ज्ञान यज्ञ में आहुति पड़ जायेंगे। पुरानी दुनिया का विनाश तो जरूर होना है, फिर नई दुनिया बनेगी। विनाश होने में नैचुरल कैलेमिटीज़ भी मदद करती है, तो यह है रूद्र राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ। अविनाशी माना जब तक विनाश हो तब तक चलता रहे। ऐसा यज्ञ किसका चलता नहीं है। बहुत में बहुत एक मास चलायेंगे। गीता भी एक मास सुनाते हैं। अब बाप समझाते हैं मैंने यह ज्ञान यज्ञ रचा है। यह है राजस्व अश्वमेध यानी तुम्हारा जो रथ है, उनको स्वाहा करना है, बलि चढ़ाना है। उन्होंने नाम दूसरा रख दिया है। दक्ष्य प्रजापति का यज्ञ दिखाते हैं, उसमें घोड़े को जलाते हैं। बड़ी कहानी है। बाप समझाते हैं यह है मेरा अविनाशी ज्ञान यज्ञ। अविनाशी द्वारा अविनाशी यज्ञ। ऐसे नहीं कि सदैव चलता रहेगा। जब सारी दुनिया के स्वाहा होने का समय आये तब तक यह यज्ञ चलना है क्योंकि बाप है ज्ञान का सागर। भक्ति के तो ढेर शास्त्र हैं। ज्ञान का सागर बाप है तो जरूर उनके पास नया ज्ञान होगा। बाप अपना पूरा परिचय देते हैं और फिर सृष्टि चक्र कैसे फिरता है यह भी समझाते हैं, जिससे आत्मा त्रिकालदर्शी बनती है। त्रिकालदर्शीपने का ज्ञान और कोई दे सके। एक तो ज्ञान को धारण करना है, दूसरा तुम बच्चों को योगबल से विकर्माजीत बनना है। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा जो सिर पर है, वह जलने में टाइम लगता है। कितने वर्ष हुए हैं तो भी कर्मातीत नहीं हुए हैं। कर्मातीत अवस्था जब आती है तब यज्ञ भी समाप्त होता है। यह बहुत बड़ा भारी यज्ञ है। आसार भी देखते हो, तैयारियाँ हो रही हैं। आगे चलकर तुम देखेंगे नैचुरल कैलेमिटीज की भी तैयारी हो रही हैं। कभी जोर से फ्लड्स होंगे, कभी अर्थक्वेक, कभी फैमन (अकाल) होगा। वो लोग तो गपोड़े मारते हैं कि 4 वर्ष का प्लैन बनाया है फिर अनाज बहुत हो जायेगा। अरे, खाने वाले मनुष्य भी तो बहुत जास्ती हैं। सिर्फ मनुष्य थोड़ेही, टिड्डियां, मक्कड़ आदि भी तो खा जाते हैं। फ्लड्स आते हैं, बहुत नुकसान कर देते हैं। यह बिचारों को पता नहीं पड़ता। तुम जानते हो फैमन आदि पड़ना जरूर है। आसार दिखाई पड़ते हैं। थोड़ी लड़ाई लग जाए तो अनाज आना ही बन्द हो जाए। आगे लड़ाई में कितने स्टीमर्स डूबे थे। एक-दो का बहुत नुकसान किया था।
 
बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले भी यह यज्ञ रचा था और तुम राजयोग सीखे थे। यज्ञ रचा जाता है ब्राह्मणों द्वारा। गीता में तो लड़ाई आदि की बातें लिख दी हैं। संजय आदि भी हैं। यह सब है भक्तिमार्ग की सामग्री। यह भी अविनाशी है। फिर से भक्तिमार्ग में वही सामग्री निकलेगी। रामायण आदि जो भी शास्त्र निकले हैं, फिर निकलेंगे। जिन्हों की राजधानी चली है, अंग्रेज आये, मुसलमान आये, यह सब होकर गये, फिर आयेंगे। फिर भी पार्टीशन होगा। इन बातों को तुम जान सकते हो, तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। कोई तो कुछ भी नहीं जानते। तो बाप समझाते हैं कितने यज्ञ रचते हैं। उन्हों को समझाना है - वास्तव में है अश्वमेध अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ, जो रूद्र शिव भगवान् ने ही रचा था, कृष्ण ने नहीं रचा। कृष्ण का वही चित्र तो सतयुग में मिलेगा, फिर कभी मिल सके क्योंकि वह नाम, रूप, देश, काल तो सब बदलता जाता है। ऐसे तो हो नहीं सकता कि कृष्ण आकर अपने को पतित-पावन कहलाये। पतित-पावन एक ही परमात्मा है। ऐसे नहीं कि तुम कहेंगे पहले से ही क्यों नहीं रूप दिखाया? नहीं, ऐसे थोड़ेही कि सब पहले से ही बता देंगे। तुम कहेंगे पहले से यह ज्ञान क्यों नहीं देते थे, एक ही रोज़ में क्यों नहीं ज्ञान देते? परन्तु नहीं, यह तो ज्ञान सागर है सो जरूर आहिस्ते-आहिस्ते सुनाते रहेंगे। ऐसे थोड़ेही कि सब एक ही टाइम पढ़ लेंगे। नम्बरवार पढ़ेंगे और पढ़ाई में टाइम लगता है। इसका नाम ही है अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ। अब यह तो कहाँ भी लिखा हुआ नहीं है। शास्त्रों में निमित्त मात्र सिर्फ अक्षर हैं भारत का प्राचीन सहज राजयोग। अच्छा, प्राचीन कब? शुरूआत में। तो जरूर इस अविनाशी ज्ञान यज्ञ से ही स्वर्ग बनाया होगा। बाप कहते हैं मैं आता हूँ कल्प-कल्प संगमयुगे। उन्होंने भूल कर दी है, टाइम भी बदल दिया है। फिर सतयुग की आयु लाखों वर्ष लिख दी है, गपोड़े लगा दिये हैं। यह तो हैं 4 भाग। स्वास्तिका में भी 4 हिस्से कर देते हैं - ज्ञान और भक्ति। आधाकल्प ज्ञान दिन, आधाकल्प भक्ति रात। ज्ञान की प्रालब्ध मक्खन मिलता है, भक्ति की प्रालब्ध छांछ मिलती है। गिरते-गिरते एकदम ख़त्म हो जाते हैं। नई दुनिया को फिर पुराना जरूर बनना है। कलायें कम होती जाती हैं इसलिए अब इनको भ्रष्टाचारी, विशश कहा जाता है। आसुरी दुनिया है ना। तुम जानते हो इन भक्ति आदि करने से कभी भगवान् नहीं मिल सकता। भक्ति तो करते ही आये हैं, बन्द होती नहीं। अगर भगवान् मिल जाए तो भक्ति बन्द हो जाए ना। आधाकल्प भक्ति को चलना है। यह सब बातें मनुष्यों को समझानी पड़ती हैं। दुनिया नई कैसे बनती है, इसका चित्रों से साक्षात्कार कराना है। पुरानी दुनिया खत्म हो फिर नई स्थापन होती है। अब एक्जीवीशन (प्रदर्शनी) आदि की, किसी बड़े से ओपनिंग करानी होती है। मदद तो लेनी पड़ती है ना। उनको फिर थैंक्स दी जाती है। बधाई देने लिए तार दी जाती है। कितने बड़े-बड़े टाइटिल अपने ऊपर रखवा दिये हैं। श्री श्री का टाइटिल भी रखा लिया है। श्री श्री बाप समझाते हैं - श्रेष्ठाचारी दुनिया थी, अब भ्रष्टाचारी है। फिर बाप श्रेष्ठाचारी बनाने आये हैं। वह फिर पहले से ही अपने ऊपर श्री नाम रख देते हैं। वास्तव में श्री लक्ष्मी, श्री नारायण सतयुग में ही कहा जाता है। राजाओं को श्री का टाइटिल कभी नहीं देते थे। उनको फिर हिज़ हाइनेस कहते हैं। सबसे बड़े हिज होलीनेस लक्ष्मी-नारायण की राजायें भी पूजा करते हैं क्योंकि वह पवित्र हैं। खुद पतित हैं। पावन राजाओं को हिज होलीनेस कहा जाता है। अभी तो हिज हाइनेस के बदले बहुत टाइटिल सबको दे देते हैं। श्री श्री कहते रहते हैं। अभी बेहद का बाप तुमको श्री बना रहे हैं। नई दुनिया कैसे स्थापन होती है, चित्रों पर ही समझा सकते हैं। हम भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाने की सेवा करते हैं, आप ओपनिंग करो। उन्हें समझाना चाहिए कि सेकेण्ड में जीवनमुक्ति गाया हुआ है ना। समझाने वाला बड़ा एक्टिव होना चाहिए, फुर्त होना चाहिए। मिलेट्री वाले कितने टिपटॉप रहते हैं। तुम बच्चों का नाम कितना बड़ा है शिव शक्ति सेना! यह ज्ञान मिलता ही है अबलाओं, अहिल्याओं को। यहाँ की बातें ही वन्डरफुल हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् और पढ़ाते देखो किन्हों को हैं! अहिल्याओं, कुब्जाओं को। भगवानुवाच - उन्हों को राजयोग सिखलाता हूँ, ड्रामा में ऐसी नूँध है। परन्तु अपने को सब पाप आत्मायें समझते थोड़ेही हैं। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म पवित्र बनेंगे तो एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति पा सकते हो। आते तो बहुत हैं। आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती, बाबा का बनन्ती फिर भी गिरन्ती और भागन्ती हो जाते हैं। यह शुरू से लेकर होता रहता है। सुबह को कहेंगे हमको पक्का निश्चय है, शाम को कहेंगे मुझे संशय है, मैं जाता हूँ, मैं चल नहीं सकता। मंजिल ऊंची है, मैं छुट्टी लेता हूँ। ड्रामा की भावी। बाप को फ़ारकती दे देते हैं। माया इतनी प्रबल है जो चलते-चलते थप्पड़ लगा देती है। बच्चे कहते हैं - बाबा, माया को कहो थोड़ी नर्म हो जाए। बाबा कहते - मैं तो माया को कहता हूँ खूब गर्म हो। बाप कहते हैं ख़बरदार रहना, ऐसे नहीं कि माया थप्पड़ मार दे और तुम फँस पड़ो। तुम मांगते ही हो जनक मिसल गृहस्थ व्यवहार में रहते जीवनमुक्ति पायें।
 
बाप कहते हैं एक जन्म पवित्र बनो तो तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। मनुष्यों की ज़हर से (विकारों से) कितनी दिल है। चलते-चलते गिर पड़ते हैं। हम शादी करना नहीं चाहते तो गवर्मेन्ट कुछ नहीं कर सकती है। समझा सकते हैं कि हम पतित बने ही क्यों जो पुजारी बन सबके आगे सिर झुकाना पड़े। मैं कुमारी हूँ तो सब मेरे आगे सिर झुकाते हैं, तो हम क्यों पूज्य रहें। बेहद का बाप कहते हैं कि पवित्र पूज्य बनो। एक ही राजयोग का इम्तहान है। कितने चढ़ते और गिरते हैं। हर एक अपना-अपना पार्ट बजाता है। रिजल्ट फिर भी वही रहेगी जो कल्प पहले हुई होगी। यह ड्रामा है, हम एक्टर्स हैं। पूरा नष्टोमोहा बनें तब बाप से पूरी प्रीत जुटे। बाबा, बस हम तो आपको ही याद करेंगे, आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। ऐसी प्रतिज्ञा करनी पड़े, तब ही स्त्री-पुरूष दोनों पवित्र बन स्वर्गधाम जा सकें। दोनों ही ज्ञान चिता पर बैठ जायेंगे। ऐसे बहुत जोड़े बनेंगे। फिर जल्दी-जल्दी झाड़ बढ़ना शुरू हो जायेगा। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अविनाशी ज्ञान यज्ञ में अपने इस रथ सहित सब कुछ स्वाहा करना है। सर्विस के लिए बहुत-बहुत चुस्त और फुर्त बनना है।
2) माया कितनी भी गर्म हो, सावधान रह उसके थप्पड़ से स्वयं को बचाना है। घबराना नहीं है।
 
वरदान:-एक बाप को अपना संसार बनाकर सदा हंसने, गाने और उड़ने वाले प्रसन्नचित भव
 
कहा जाता है दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है तो आपकी रूहानी दृष्टि से सृष्टि बदल गई, अभी आपके लिए बाप ही संसार है। पहले के संसार और अभी के संस्कार में फ़र्क हो गया, पहले संसार में बुद्धि भटकती थी, अभी बाप ही संसार हो गया तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया। बेहद की प्राप्तियां कराने वाला बाप मिल गया तो और क्या चाहिए इसलिए हंसते गाते, उड़ते सदा प्रसन्नचित रहो।
 
स्लोगन:-दिल साफ हो तो मुराद हांसिल होती रहेगी, सर्व प्राप्तियां स्वत: आपके समाने आयेंगी।
 
 
01/10/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, the Father's desire is that you children become full destroyers of attachment. When you make this firm promise: Baba, You are mine and I am Yours, true love can be forged.
 
Question:What is the main difference between the sacrificial fire created by Rudra Shiv Baba and those being created by human beings?
 Answer:1) Whatever sacrificial fires human beings create are material sacrificial fires into which they put sesame seeds and other grains. This sacrificial fire that the Father has created is the imperishable sacrificial fire of knowledge into which the whole of the old world is to be sacrificed. 2) Those sacrificial fires continue for a short time whereas this sacrificial fire will continue until destruction takes place. When you children reach your karmateet stage, this sacrificial fire will end.

 
Song:This is a battle of the strong with the weak. 
 Om Shanti

 You children now know that this is called a school as well as the sacrificial fire of knowledge. In terms of a school, an aim and objective is definitely needed. This is a sacrificial fire and also a school. This is the sacrificial fire of knowledge of Rudra which those people copy. They create material sacrificial fires. They pour offerings of sesame seeds and other grains into those. They also have another type of very big sacrificial fire which they surround with the scriptures. They do this on a very big piece of land. On one side, they keep the rice, ghee, flour etc. and, on the other side, they place all the scriptures. Whatever scripture you ask for, they will relate something from that, and then they will continue to pour offerings into the sacrificial fire. The Father says: Rudra is My name. They say that God Rudra created the sacrificial fire of knowledge. So, that was called the sacrificial fire of the knowledge of Rudra, just as, they named a street Nehru Marg (road), and Nehru Park etc. after Nehru. Rudra is God Shiva. The sacrificial fire of the knowledge of Rudra was created by Him. The whole of the old world is to be sacrificed into this sacrificial fire. This would not be in anyone's intellect. It is such a big world and the cities are so far apart. Everything will be sacrificed into this imperishable sacrificial fire of knowledge. The old world is definitely to be destroyed and then the new world created. Natural calamities also help destruction take place. So this is the imperishable sacrificial fire of knowledge of Rudra in which the horse is sacrificed for receiving sovereignty. “Imperishable” means that it will continue until destruction takes place. No one else has such a sacrificial fire that continues all the time. At the most, they would make it continue for a month. They also relate the Gita for a month. The Father explains: I have created this sacrificial fire of knowledge. This is the horse that is sacrificed for sovereignty, that is, your chariot has to be sacrificed; it has to be surrendered. They have given it another name. They show the sacrificial fire of Daksh Prajapita in which they burn a horse. That is a long story. The Father explains: This is My imperishable sacrificial fire of knowledge. It is an imperishable sacrificial fire created by the imperishable One. It isn’t that it will continue all the time. This sacrificial fire will continue until the time comes when the whole of the old world is to be sacrificed. The Father is the Ocean of Knowledge. There are so many scriptures of the path of devotion. The Father is the Ocean of Knowledge and so He would surely have new knowledge. The Father gives His full introduction and He also explains how the world cycle turns through which souls become trikaldarshi. No one else can give the knowledge of being trikaldarshi. Firstly, you children have to imbibe this knowledge and secondly, with the power of yoga, you also have to become conquerors of sinful actions. It takes time for the burdens of sin of many births that are on your heads to be burnt. It has been so many years and you still haven't become karmateet. When you reach your karmateet stage, the sacrificial fire will also end. This is a very important sacrificial fire. You can see signs of how preparations are being made. As you progress further, you will see that even the natural calamities are making their preparations. Sometimes, there will be very strong floods, sometimes earthquakes and sometimes there will be famine. Those people continue to tell lies about how they have made four-year plans and that there will then be a lot of grain available. Ah, but there will also be so many people eating all of that. It wouldn't be just human beings eating it; there will also be locusts and insects etc. When there are floods, they cause a lot of damage. Those poor people don't know anything. You know that there will definitely be famine etc. The signs of that are visible. If even a small war takes place, food stops coming in. In the earlier wars, so many steamers were sunk. They caused a lot of damage to one another. The Father says: This sacrificial fire was also created 5000 years ago and you also studied Raja Yoga. A sacrificial fire is created by brahmin priests. They have written stories of war in the Gita. They have also mentioned Sanjay. All of that is the paraphernalia of the path of devotion. That too is imperishable. The same paraphernalia will emerge once again on the path of devotion. The Ramayana etc. and the scriptures that have emerged will emerge again. All the kingdoms that have continued – the British, the Muslim etc., those who have come and gone, will come again. Partition will take place again. You can understand these things. You are numberwise too; some don't understand anything at all. The Father explains how many sacrificial fires are created. You have to explain to them: In fact, the sacrificial fire of the knowledge of Rudra, in which the horse was sacrificed for attaining sovereignty, was created by Rudra God Shiva, not Krishna. Krishna will receive that same form in the golden age. He cannot receive it at any other time because his name, form, place and time all continue to change. It is not possible that Krishna would come and call Himself the Purifier. Only the one Supreme Soul is the Purifier. You cannot ask: Why did He not reveal His form earlier? No; He would not tell you everything at the beginning. You would ask: Why did He not give us this knowledge earlier? Why does He not give us the knowledge in just one day? No; He is the Ocean of Knowledge, and so He will definitely continue to speak it little by little. It isn't that you would study all of that at the same time. You would study, numberwise, and the study takes time. This is called the imperishable sacrificial fire of the knowledge of Rudra. This is not written anywhere. In the scriptures these words are mentioned just for the sake of it. Ancient easy Raja Yoga of Bharat. Achcha, ancient means from when? From the beginning. So, surely, heaven would have been created from this imperishable sacrificial fire of knowledge. The Father says: I come at the confluence age of every cycle. They have then made a mistake and changed the time. They have given the golden age a duration of hundreds of thousands of years. They have told lies. There are four parts. There are also four equal parts in the swastika: knowledge and devotion. For half the cycle it is the day, knowledge, and for half the cycle it is the night, devotion. The reward of knowledge is butter and the reward of devotion is buttermilk. While gradually falling, some completely die. The new world definitely has to become old. The degrees continue to decrease. This is why this is called the corrupt, vicious world; it is the devilish world. You know that God cannot be found by your doing devotion etc. People have been doing devotion all the time; it never ends. If they were to find God, their devotion would end. Devotion has to last for half the cycle. All of these things have to be explained to human beings. You should use these pictures to make them see how the world becomes new. The new world is established and the old world is then destroyed. An exhibition etc. has to be inaugurated by an important person. You have to take their help. They are then also given thanks. Send them a telegram to convey your congratulations. They have such big titles given to them. They have even given themselves the title: Shri Shri. The Father, Shri Shri, explains: The world was elevated and it has now become corrupt. The Father has come to make it elevated once again. They give themselves the name, “Shri” in advance. In fact, Shri Lakshmi and Shri Narayan can only be said to be in the golden age. Kings never used to be given the title, “Shri”. They are called: His Highness. Even the kings worship the greatest His Holiness Lakshmi and Narayan because they are pure whereas they themselves are impure. Pure kings are called His Holiness. Now, instead of His Highness, they have given many other titles to everyone. They continue to say: Shri Shri. The unlimited Father is now making you Shri. By using the pictures, you can explain how the new world is established. “We are doing the service of making corrupt ones elevated, so please come and carry out the opening.” Explain to them that ‘Liberation-in-life in a second’ has been remembered. Those who explain to them should be very active; they should be very alert. Those of the military remain so tip-top. The name of you children is very great: Shiv Shakti Army. This knowledge is received by weak ones and those with stone intellects. The things here are very wonderful. Look, it is God, the Highest on High, and see whom He is teaching! Hunchbacks and stone intellects! God speaks: I teach them Raja Yoga. This is fixed in the drama. However, not everyone considers himself to be a sinful soul. The Father says: If you become pure in this final birth, you will receive liberation-in-life in a second. Many people come. They are amazed by knowledge, they listen to it, they speak about it, they belong to Baba. Then they fall and leave. This has been happening from the beginning. In the morning, they say that they have firm faith and, in the evening, they would say that they have doubt and that they are leaving because they are unable to continue. “The destination is too high, so I am taking leave now.” This is the destination of the drama. They then divorce the Father. Maya is so powerful that she slaps you while you are moving along. Children say: Baba, tell Maya to become a little gentle. Baba says: I tell Maya to become very hot. The Father says: Remain cautious. It should not be that Maya slaps you and you become trapped. You have been asking to live in a household and attain liberation-in-life like Janak. The Father says: Become pure for one birth and you will become the masters of heaven. People love poison (the vices) so much. While moving along, they fall. If the kumaris don't want to get married, the Government cannot do anything. They can explain: Why should we become impure that we would have to become worshippers and bow our heads in front of everyone? If I remain a kumari, everyone will bow down to me. So, why should I not remain worthy of worship? The unlimited Father says: Become pure and worthy of worship. There is just the one examination in Raja Yoga. So many ascend and then fall. Each one plays his or her own part. The results will still be the same as they were in the previous cycle. This is the drama and we are actors. When you become full destroyers of attachment, full love can be forged with the Father. “Baba, I will now remember You alone. I will definitely claim my inheritance from You.” You have to make such a promise. Only then will both husband and wife become pure and go to the ashram of heaven. Both will sit on the pyre of knowledge. Many couples will become like that. Then the tree will begin to grow very quickly. Achcha.

 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 Essence for Dharna:

1. You have to sacrifice everything you have, including your chariot, into this imperishable sacrificial fire of the knowledge. Remain very, very alert and active for service.
2. No matter how hot Maya is, remain cautious and save yourself from being slapped by her. Don't be afraid.
 
Blessing:May you be happy-hearted and constantly laugh, sing and fly by making the one Father your world.
 It is said that the world changes with your vision, and so your world has changed with your spiritual vision. The Father is now your world. There is a difference between your world before and your world now: Previously you had your intellect wandering the world and now, the Father has become your world and so your intellect has stopped wandering. You have found the Father who enables you to attain unlimited attainments and so what more could you want? So, just laugh, sing and fly and remain constantly happy.

 Slogan:When your heart is clean, your desires continue to be fulfilled. All attainments automatically come in front of you.

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