Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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Details ( Page:- Murali 30th Sep 2018 )
30-09-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 20-01-84 मधुबन
महादानी बनो, वरदानी बनो
आज बापदादा सर्व बच्चों के प्युरिटी की पर्सनैलिटी और सर्व प्राप्ति स्वरूप की रॉयल्टी, रूहानी स्मृति-स्वरूप की रीयल्टी देख रहे हैं। सभी बच्चों को प्युरिटी की पर्सनैलिटी से चमकते हुए लाइट के क्राउनधारी देख रहे हैं। एक तरफ सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चों का संगठन देख रहे हैं। दूसरी तरफ विश्व की अप्राप्त आत्मायें जो सदा अल्पकाल की प्राप्ति होते हुए भी प्राप्ति स्वरूप नहीं हैं। सन्तुष्ट नहीं हैं। सदा कुछ न कुछ पाने की इच्छा बनी रहती है। सदा यह चाहिए, यह चाहिए की धुन लगी हुई है। भाग दौड़ कर रहे हैं। प्यासे बन यहाँ वहाँ तन से, मन से, धन से, जन से कुछ प्राप्त हो जाए, इसी इच्छा से भटक रहे हैं। विशेष तीन बातों की तरफ इच्छा रख अनेक प्रकार के प्रयत्न कर रहे हैं। एक तो शक्ति चाहिए तन की, फिर धन की, पद की, बुद्धि की और दूसरा भक्ति चाहिए। दो घड़ी सच्ची दिल से भक्ति कर पावें, ऐसे भक्ति की इच्छा भी भक्त आत्मायें रखती हैं। तीसरा-अनेक आत्मायें द्वापर से दु:ख और पुकार की दुनिया देख-देख दु:ख और अशान्ति के कारण अल्पकाल की प्राप्ति मृगतृष्णा समझते हुए दु:ख की दुनिया से, इस विकारी दु:खों के बन्धनों से मुक्ति चाहती हैं। भक्त, भक्ति चाहते हैं और अन्य कोई शक्ति चाहते, कोई मुक्ति चाहते। ऐसी असन्तुष्ट आत्माओं को सुख और शान्ति की, पवित्रता की, ज्ञान की अंचली देने वाले वा प्राप्ति कराने वाली सन्तुष्ट मणियां कौन हैं? आप हो? रहमदिल बाप के बच्चे जैसे बाप को रहम आता है कि दाता के बच्चे और अल्पकाल की प्राप्ति के लिए चाहिए - चाहिए-चाहिए के नारे लगा रहे हैं। ऐसे आप मास्टर दाता प्राप्ति स्वरूप बच्चों को विश्व की आत्माओं प्रति रहम आता है, उमंग आता है कि हमारे भाई अल्प-काल की इच्छा में कितने भटक रहे हैं? दाता के बच्चे अपने भाईयों के ऊपर दया और रहम की दृष्टि डालो। महादानी बनो, वरदानी बनो। चमकती हुई सन्तुष्ट मणियां बन सर्व को सन्तोष दो। आजकल सन्तोषी माँ को बहुत पुकारते हैं क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्ति का अभाव है। सन्तुष्टता के आधार पर स्थूल धन में भी बरक्कत अनुभव करते हैं। सन्तुष्टता वाले का धन दो रूपया भी दो लाख समान है। करोड़पति हो लेकिन सन्तुष्टता नहीं तो करोड़ करोड़ नहीं, इच्छाओं के भिखारी हैं। इच्छा अर्थात् परेशानी। इच्छा कभी अच्छा बना नहीं सकती क्योंकि विनाशी इच्छा पूर्ण होने के साथ-साथ और अनेक इच्छाओं को जन्म देती हैं इसलिए इच्छाओं के चक्र में मकड़ी की जाल मुआफिक फँस जाते हैं। छूटने चाहते भी छूट नहीं सकते इसलिए ऐसे जाल में फँसे हुए अपने भाईयों को विनाशी इच्छा मात्रम् अविद्या बनाओ। परेशान अर्थात् शान से परे। हम सभी ईश्वरीय बच्चे हैं, दाता के बच्चे हैं, सर्व प्राप्तियां जन्म सिद्ध अधिकार हैं। इस शान से परे होने के कारण परेशान हैं। ऐसी आत्माओं को अपना श्रेष्ठ शान बताओ। समझा क्या करना है?
सभी डबल विदेशी बच्चे अपने-अपने स्थानों पर जा रहे हैं ना। क्या जाकर करेंगे? महादानी-वरदानी बन सर्व आत्माओं की सुख-शान्ति की प्राप्तियों द्वारा झोली भर देना। यही संकल्प लेकर जा रहे हो ना। बापदादा बच्चों की हिम्मत और स्नेह को देख बच्चों को सदा स्नेह के रिटर्न में पदमगुणा स्नेह देते हैं। दूर देश वाले पहचान और प्राप्ति से समीप बन गये और देश वाले पहचान और प्राप्ति से दूर रह गये हैं इसलिए सदा डबल विदेशी बच्चे प्राप्ति स्वरूप की दृढ़ता और सन्तुष्टता के उमंग में आगे बढ़ते चलो। भाग्य विधाता सर्व प्राप्तियों का दाता सदा आपके साथ है। अच्छा।
ऐसे रहमदिल बाप के रहमदिल बच्चों को, सर्व को सन्तुष्टता के खजाने से सम्पन्न बनाने वाले सन्तुष्ट मणी बच्चों को, सदा प्राप्ति स्वरूप बन सर्व को प्राप्ति कराने की शुभ भावना में रहने वाले शुभ चिन्तक बच्चों को, सर्व को विनाशी इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनाने वाले, सर्व समर्थ बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
विदेशी बच्चों को देखते हुए बापदादा बोले:-
इस ग्रुप में किसी को भी कहें कि यहाँ बैठ जाओ तो एवररेडी हो? कोई का पीछे का कोई बन्धन तो नहीं है? ऐसे भी होगा, जब समय आयेगा सभी की टिकेट कैन्सिल कराके यहाँ बिठा देंगे। ऐसे समय पर कोई सैलवेशन भी नहीं लेंगे। सभी को याद है - जब ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए तो वह 4 दिन कैसे बिताये? मकान बड़ा था? खाना बनाया था? फिर 4 दिन कैसे बीता था! विनाश के दिन भी ऐसे ही बीत जायेंगे। उस समय लवलीन थे ना। ऐसे ही लवलीन स्थिति में समाप्ति होगी। फिर यहाँ की पहाड़ियों पर रहकर तपस्या करेंगे। तीसरी ऑख से सारा विनाश देखेंगे। ऐसे निश्चिंत हो ना। कोई चिंता नहीं। न मकान की, न परिवार की, न काम की। सदा निश्चिंत, क्या होगा यह क्वेश्चन नहीं। जो होगा अच्छा होगा। इसको कहा जाता है निश्चिंत। सेन्टर का मकान याद आ जाए, बैंक बैलन्स याद आ जाए... कुछ भी याद न आये क्योंकि आपका सच्चा धन है ना। चाहे मकान में लगा है, चाहे बैंक में रहा हुआ है। लेकिन आपका तो पदमगुणा होकर आपको मिलेगा। आपने तो इनश्योर कर लिया ना। मिट्टी, मिट्टी हो जायेगी और आपका हक आपको पदमगुणा होकर मिल जायेगा और क्या चाहिए। सच्चा धन कभी भी वेस्ट नहीं जा सकता। समझा! ऐसे सदा निश्चिंत रहो। पता नहीं पीछे सेन्टर का क्या होगा? घर का क्या होगा? यह क्वेश्चन नहीं। सफल हुआ ही पड़ा है। सफल होगा या नहीं, यह क्वेश्चन नहीं। पहले से ही विल कर दिया है ना। जैसे कोई विल करके जाता है, पहले से ही निश्चिन्त होता है ना। तो आप सबने अपना हर श्वांस, संकल्प, सेकण्ड, सम्पत्ति, शरीर सब विल कर दिया है ना। बिल की हुई चीज कभी भी स्व के प्रति यूज नहीं कर सकते।
बिना श्रीमत के एक सेकण्ड या एक पैसा भी यूज़ नहीं कर सकते। परमात्मा का सब हो गया तो आत्मायें अपने प्रति या आत्माओं के प्रति यूज़ नहीं कर सकती हैं। डायरेक्शन प्रमाण कर सकती हैं। नहीं तो अमानत में ख्यानत हो जायेगी ना। थोड़ा भी धन बिना डायरेक्शन के कहाँ भी कार्य में लगाया, तो वह धन आपको भी उस तरफ खींच लेगा। धन, मन को खींच लेगा। और मन तन को खींच लेगा और परेशान करेगा। तो विल कर लिया है ना। डायरेक्शन प्रमाण करते हो तो कोई भी पाप नहीं। कोई बोझ नहीं। उसके लिए फ्री हो। डायरेक्शन तो समझते हो ना। सब डायरेक्शन मिले हुए हैं! क्लीयर हैं ना! कभी मूँझते तो नहीं? इस कार्य में यह करें या नहीं करें, ऐसे मूँझते तो नहीं? जहाँ भी कुछ मूँझ हो तो जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों से वेरीफाय कराओ या फिर स्व स्थिति शक्तिशाली है तो अमृतवेले की टचिंग सदा यथार्थ होगी। अमृतवेले मन का भाव मिक्स करके नहीं बैठो लेकिन प्लेन बुद्धि होकर बैठो फिर टचिंग यथार्थ होगी।
कई बच्चे जब कोई प्राबलम आती है तो अपने ही मन का भाव भर करके बैठते हैं। करना तो यही चाहिए, होना तो यही चाहिए, मेरे विचार से यह ठीक है... तो टचिंग भी यथार्थ नहीं होती। अपने मन के संकल्प का ही रेसपान्ड में आता है इसलिए कहाँ न कहाँ सफलता नहीं होती। फिर मूंझते हैं कि अमृतवेले डायरेक्शन तो यही मिला था फिर पता नहीं ऐसा क्यों हुआ, सफलता क्यों नहीं मिली! लेकिन मन का भाव जो मिक्स किया, उस भाव का ही फल मिल जाता है। मनमत का फल क्या मिलेगा? मूंझेगा ना! इसको कहा जाता है अपने मन के संकल्प को भी विल करना। मेरा संकल्प यह कहता है लेकिन बाबा क्या कहता। अच्छा!
टीचर्स से:- बापदादा का टीचर्स से विशेष प्यार है क्योंकि समान हैं। बाप भी टीचर और आप मास्टर टीचर। वैसे भी समान प्यारे लगते हैं। बहुत अच्छा उमंग-उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रही हो। सभी चक्रवर्ती हो। चक्र लगाते अनेक आत्माओं के सम्बन्ध में आए, अनेक आत्माओं को समीप लाने का कार्य कर रही हो। बापदादा खुश हैं। ऐसा लगता है ना कि बापदादा हमारे पर खुश हैं, या समझती हो कि अभी थोड़ा सा कुछ करना है। खुश हैं और भी खुश करना है। मेहनत अच्छी करती हो, मेहनत मुहब्बत से करती हो इसलिए मेहनत नहीं लगती। बापदादा सर्विसएबुल बच्चों को सदा ही सिर का ताज कहते हैं। सिरताज हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख और आगे उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहयोग देते हैं। एक कदम बच्चों का, पदम कदम बाप के। जहाँ हिम्मत है वहाँ उल्लास की प्राप्ति स्वत: होती है। हिम्मत है तो बाप की मदद है, इसलिए बेपरवाह बादशाह हो, सेवा करते चलो। सफलता मिलती रहेगी। अच्छा -
आबू सम्मेलन में आये हुए मेहमानों से मुलाकात(13-2-84)
1-(डा.जोन्हा) असिस्टेन्ट पोट्री जनरल, यू.एन.ओ.)
बापदादा बच्चे के दिल के संकल्प को सदा ही सहयोग देते पूर्ण करते रहेंगे। जो आपका संकल्प है उसी संकल्प को साकार में लाने के योग्य स्थान पर पहुँच गये हो। ऐसे समझते हो कि यह सब मेरे संकल्प को पूरा करने वाले साथी हैं। सदा शान्ति का अनुभव याद से करते रहेंगे। बहुत मीठी सुखमय शान्ति की अनुभूति होती रहेगी। शान्ति प्रिय परिवार में पहुँच गये हो इसलिए सेवा के निमित्त बने। सेवा के निमित्त बनने का रिटर्न जब भी बाप को याद करेंगे तो सहज सफलता का अनुभव करते रहेंगे। अपने को सदा ''मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ, शान्ति के सागर का बच्चा हूँ। शान्ति प्रिय आत्मा हूँ'' इस स्मृति में रहना और इसी अनुभव द्वारा जो भी सम्पर्क में आये उन्हों को सन्देशी बन सन्देश देते रहना। यही अलौकिक आक्यूपेशन सदा श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति कराता रहेगा। वर्तमान और भविष्य दोनों ही श्रेष्ठ रहेंगे। शान्ति का अनुभव करने वाली योग्य आत्मा हो। सदा शान्ति के सागर में लहराते रहना।
जब भी कोई कार्य में मुश्किल हो तो शान्ति के फरिश्तों से अपना सम्पर्क रखेंगे तो मुश्किल सहज हो जायेगी। समझा। फिर भी बहुत भाग्यवान हो। इस भाग्य विधाता की धरनी पर पहुँचने वाले कोटों में कोई, कोई में भी कोई होते हैं। भाग्यवान तो बन ही गये। अभी पद्मापदम भाग्यवान जरूर बनना है। ऐसा ही लक्ष्य है ना! जरूर बनेंगे सिर्फ शान्ति के फरिश्तों का साथ रखते रहना। विशेष आत्मायें, विशेष पार्ट बजाने वाली आत्मायें यहाँ पहुँचती हैं। आपका आगे भी विशेष पार्ट है जो आगे चल मालूम पड़ता जायेगा। यह कार्य तो सफल हुआ ही पड़ा है। सिर्फ जो भी श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली हैं उन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह सेवा का साधन है। यह तो हुआ ही पड़ा है, यह अनेक बार हुआ है। आपका संकल्प बहुत अच्छा है। और जो भी आपके साथी हैं, जो यहाँ से होकर गये हैं, स्नेही हैं, सहयोगी हैं। उन सबको भी विशेष स्नेह के पुष्पों के साथ-साथ बापदादा का याद-प्यार देना।
2- मैडम अनवर सादात से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - इजिप्ट के लिए सन्देश
अपने देश में जाकर धन की एकानामी का तरीका सिखलाना। मन की खुशी से धन की अनुभूति होती है। और धन की एकानामी ही मन की खुशी का आधार है। ऐसे धन की एकानामी और मन की खुशी का साधन बताना तो वे लोग आपको धन और मन की खुशी देने वाले - खुशी के फरिश्ते अनुभव करेंगे। तो अभी यहाँ से शान्ति और खुशी का फरिश्ता बनकर जाना। इस शान्ति कुण्ड के सदा अविनाशी के वरदान को साथ रखना। जब भी कोई बात सामने आये तो ''मेरा बाबा'' कहने से वह बात सहज हो जायेगी। सदा उठते ही पहले बाप से मीठी-मीठी बातें करना और दिन में भी बीच-बीच में अपने आपको चेक करना कि बाप के साथ हैं! और रात को बाप के साथ ही सोना, अकेला नहीं सोना। तो सदा बाप का साथ अनुभव करती रहेंगी। सभी को बाप का सन्देश देती रहेंगी। आप बहुत सेवा कर सकती हो क्योंकि इच्छा है सभी को खुशी मिले, शान्ति मिले, जो दिल की इच्छा है उससे जो कार्य करते हैं उसमें सफलता मिलती ही है। अच्छा! ओम शान्ति!
वरदान:-
सर्व संबंध एक बाप से जोड़कर माया को विदाई देने वाले सहजयोगी भव
जहाँ संबंध होता है वहाँ याद स्वत: सहज हो जाती है। सर्व संबंधी एक बाप को बनाना ही सहजयोगी बनना है। सहजयोगी बनने से माया को सहज विदाई मिल जाती है। जब माया विदाई ले लेती है तब बाप की बंधाईयां बहुत आगे बढ़ाती हैं। जो हर कदम में परमात्म दुआयें, ब्राह्मण परिवार की दुआयें प्राप्त करते रहते हैं वह सहज उड़ते रहते हैं।
स्लोगन:-
सदा बिजी रहने वाले बिजनेस मैन बनो तो कदम-कदम में पदमों की कमाई है।
30/09/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 20/01/84
Become a great donor and a bestower of blessings.
Today, BapDada is seeing in all the children the personality of purity, the royalty of being an embodiment of all attainments and the reality of being a spiritual embodiment of remembrance. He is seeing all the children crowned with the sparkling light of the personality of purity. On the one side He is seeing the gathering of the children who are embodiments of all attainments. On the other side are the souls of the world who always lack something and are never embodiments of attainment. Even though they constantly have all temporary attainments, they are never content; they are always want something or other. They constantly chant, "I want this, I want that." They are running around. They are thirsty and constantly wandering around here and there with the desire to attain something in terms of body, mind, wealth or other people. They especially want three things and make all sorts of effort for them. Firstly, they want power, of the body, of wealth, of status or of their intellect. Secondly, they also want devotion. They want to be able to perform devotion with an honest heart for a few moments. Devotee souls have the desire to perform such devotion. Thirdly, since the copper age, many souls have been seeing the world of sorrow and crying out in distress and, because of this sorrow and peacelessness, have been considering temporary attainment to be like a mirage. Therefore, they want liberation from the world of sorrow and the bondage of the sorrow of vices. Devotees want devotion, others want power and others want liberation. Who are the jewels of contentment who can give such discontented souls a drop of happiness, peace, purity and knowledge and enable them to attain something? Are you this? You are the children of the Merciful Father. The Father has compassion for you that, as the children of the Bestower, you still constantly cry out, "I want this! I want that! I want this!" for some temporary attainment. So, do you children, who are master bestowers and embodiments of attainment, feel mercy for the souls of the world? Do you have the enthusiasm to help your brothers who are wandering around so much chasing after temporary desires? Children of the Bestower, cast your vision of mercy and compassion on your brothers! Become great donors! Become bestowers of blessings! Become sparkling jewels of contentment and make everyone content. Nowadays, people call out to the goddess of contentment a great deal because where there is contentment, nothing is lacking. On the basis of contentment, one is also able to experience having plenty of physical wealth. If you give even just two rupees to someone who is content, that is equivalent to a hundred thousand. If someone is a millionaire and not content, then that million is not a million, for he is a beggar for desires. Desires mean distress. Desires (ichcha) can never make you become good (achcha) because, although your perishable desires may be fulfilled, they also give birth to many other desires. This is why you become trapped in circles of desires, as through you are trapped in a spider’s web. You cannot become free even though you want to. Therefore, make your brothers, who are trapped in such a web ignorant of even knowing about perishable desires. To be distressed (pareshaan) means to act beneath your dignity (shaan). All of you are children of God, children of the Bestower and all attainments are your birthright. When you lose your dignity, you become distressed. Show such souls their elevated dignity. Do you understand what you have to do?
All you double-foreign children are going back to your respective places. What will you do when you get back? Become great donors and bestowers of blessings and fill the aprons of all souls with the attainments of peace and happiness. This is the thought you are going back with, is it not? Seeing the children's courage and love, BapDada gives the children multimillion-fold return of their constant love. Those who live in faraway lands have come closer through their recognition and attainment, whereas those of this land have become distant through their recognition and attainment. Therefore, double-foreign children, with the determination to be embodiments of attainment and having the enthusiasm of contentment, constantly continue to move forward. The Bestower of Fortune, the Bestower of All Attainments, is always with you. Achcha.
To such merciful children of the Merciful Father, to the children who are jewels of contentment and who make everyone full of the treasure of contentment, to the children who are always embodiments of all attainments and who remain well-wishers for others with the good wishes to enable them to attain something, to those who make everyone ignorant of the knowledge of perishable desires, to the all-powerful children BapDada's love, remembrance and namaste.
Seeing the double-foreign children, BapDada said:
If anyone in this group is told to stay here, are you ever ready? None of you has any bondage back home, do you? This will also happen. The time will come when everyone's ticket is cancelled and you will be made to stay here. At such a time, no one will want to take salvation (facilities). Do all of you remember how you spent those four days when Brahma Baba became avyakt? Was the building big enough? Did you cook anything? So, how did you spend those four days? The days of destruction will also be spent just like that. You were absorbed in love at that time, were you not? Completion will also take place in a stage just like that when you will be absorbed in love. You will then stay here on the mountains and do tapasya. You will see the whole of destruction with your third eye. You are carefree in this way, are you not? You don't have any worries about your house, your family or your work. You are always carefree. There is no question as to what will happen. Whatever happens will be good. This is called being carefree. You might remember the building of your centre or your bank balance. Nothing should be remembered. Yours is true wealth, whether it has been used for the building or is in the bank. You will receive your wealth multiplied multimillion-fold. You have insured everything, have you not? Dust will turn to dust and you will receive your wealth multiplied multimillion-fold. What else do you want? True wealth can never go to waste. Do you understand? Remain constantly carefree in this way. “I don't know what will happen to the centre afterwards? What will happen to our home?” Let there not be this question. All of it has already been used in a worthwhile way. You no longer have any question as to whether it will be used in a worthwhile way or not. You have already willed it in advance. When someone has made his will beforehand, he remains carefree. All of you have willed your every breath, thought, second, wealth and body, have you not? You cannot use anything for yourself that you have already willed.
You cannot use even a second or a penny without shrimat; it all belongs to God. Therefore, souls cannot use it for themselves or for other souls. You can use it according to the directions you receive. Otherwise, it is being dishonest with the treasures you have been entrusted with. If you use even a little of your wealth without a direction for any task, that wealth will then pull you to where it has been used. The wealth will pull the mind and the mind will pull the body and distress you. So, you have willed it all, have you not? If you use everything according to the directions you receive, there is no sin and no burden; you are free from that. You do understand the directions, do you not? You have received directions for everything. It is clear, is it not? You never become confused, do you? You never become confused as to whether you should do something or not for a particular task, do you? Whenever there is a little confusion, have it verified by the instruments. Or, if your stage is powerful, then the touchings you receive at amrit vela will always be accurate. Don't sit at amrit vela with mixed feelings in your mind, but sit with a plain intellect and the touchings will be accurate.
Whenever some children have problems, they sit with only their own feelings in their minds. “This is what I should do. That is what should happen. In my opinion, this is fine.” Therefore, the touchings too would not be accurate. They would then only receive a response of the thoughts of their own mind. This is why, somewhere or other, there is no success. They then become confused about the direction they received at amrit vela, and thereby don't understand why something happened or why they weren't successful. However, they had mixed feelings in their own minds and so they just received the fruit of those feelings. What fruit would you receive from the dictates of your own mind? There would only be confusion, would there not? This is called willing even the thoughts of your mind. This is my thought, but what does Baba say? Achcha.
Speaking to the teachers:
BapDada has special love for teachers because you are equal. The Father is the Teacher and you are master teachers. In any case, those who are equal are loved very much. You are moving forward in service with very good zeal and enthusiasm. All of you are rulers of the globe. You toured around and came into relationship with many souls and are carrying out the task of bringing many souls close. BapDada is pleased. You feel that BapDada is pleased with you, do you not? Or, do you feel that you still have to do a little more? He is pleased, but you have to please Him a little more. You are working very hard. You work hard with love and this is why it doesn't feel like hard work. BapDada always says that serviceable children are the crowns on the head. You are the crowns on the head. Seeing the zeal and enthusiasm of the children, BapDada gives further co-operation to increase the zeal and enthusiasm. One step of the children and multimillion steps of the Father. Where there is courage, there is automatically the attainment of enthusiasm. When you have courage, you receive the Father's help. This is why you are carefree emperors. Continue to serve and you will continue to receive success. Achcha.
BapDada meeting guests who have come for the Mt. Abu Conference (13/02/84)
Dr. James Jonah, Assistant Secretary General, United Nations
BapDada will always give co-operation and fulfil the child’s thoughts in his heart. Whatever your thoughts are, you have reached exactly the right place for you to put those thoughts into a practical form. Do you believe that all of these are your companions who will help you to fulfil your thoughts? By having remembrance you will constantly experience peace. You will continue to experience very sweet peace filled with happiness. You have reached the family that loves peace and so you have become an instrument for service. As a return for becoming an instrument, whenever you remember the Father, you will easily continue to experience success. Always keep yourself in the awareness, “I am a soul who is an embodiment of peace, I am a child of the Ocean of Peace, I am a soul who loves peace”. Use this experience to continue to give this message to whoever comes into connection with you. This alokik occupation will constantly enable you to perform elevated actions and those elevated actions will enable you to experience an elevated attainment. Then, both your present and your future will be elevated. You are a soul who is worthy of experiencing peace. Constantly continue to move along in the waves in the Ocean of Peace.
Whenever you find a task difficult, stay in connection with the angels of peace and the difficulties will become easy. Do you understand? Even so, you are very fortunate. It is only a handful out of multi-millions, and a few from that handful who reach this land of the Bestower of Fortune. So, you have become fortunate. Now, you definitely have to become multi-million times fortunate. You have this aim, do you not? You will definitely become this, simply continue to keep your connection with the angels of peace. It is special souls that play special parts who reach here. You have a special part in the future too, which you will come to know as you progress further. This task is already accomplished successfully. This is just a means of service to enable those who want to create their fortune to do so. However, otherwise, it is already accomplished and it has been accomplished many times before. Your thought is very good. Give all your companions who have gone from here, those who are loving and co-operative, special flowers of love together with BapDada’s love, remembrance and namaste.
Avyakt BapDada meeting Madam Anwar Sadat – A message for Egypt
Go back to your country and show them the method of economy of wealth. You experience wealth with happiness in the mind and economy of wealth is the basis of happiness in the mind. In this way, show them the way to be economical with wealth and the means of happiness of the mind and they will experience you to be an angel of happiness who gives them wealth (dhan) and the mind (man). So, go from here having become an angel of peace and happiness. Constantly keep with you the imperishable blessings from this sacrificial fire of peace. Whenever any situation arises, when you say, “My Baba”, that situation will become easy. When you wake up, first of all, always have a sweet conversation with the Father and, during the day, every now and then, check yourself as to whether you are with the Father. At night, go to sleep with the Father, do not sleep alone and you will constantly continue to experience the Father’s company. You will continue to give the Father’s message to everyone. You can do a lot of service because you have the desire that everyone should receive happiness and peace and when you do something from your heart’s desire you definitely have success in that. Achcha.
Blessing:May you be an easy yogi who forges all your relationships with the one Father and thereby bids farewell to Maya.
When there is a relationship, remembrance is automatically easy. To have all your relationships with the one Father is to be an easy yogi. By being an easy yogi, you can easily bid farewell to Maya. When Maya has taken leave, the greetings from the Father enable you to make a great deal of progress. Those who continue to receive blessings from God and from the Brahmin family at every step easily continue to fly.
Slogan:Become businessmen who remain constantly busy and you will have an income of multimillions at every step.
महादानी बनो, वरदानी बनो
आज बापदादा सर्व बच्चों के प्युरिटी की पर्सनैलिटी और सर्व प्राप्ति स्वरूप की रॉयल्टी, रूहानी स्मृति-स्वरूप की रीयल्टी देख रहे हैं। सभी बच्चों को प्युरिटी की पर्सनैलिटी से चमकते हुए लाइट के क्राउनधारी देख रहे हैं। एक तरफ सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चों का संगठन देख रहे हैं। दूसरी तरफ विश्व की अप्राप्त आत्मायें जो सदा अल्पकाल की प्राप्ति होते हुए भी प्राप्ति स्वरूप नहीं हैं। सन्तुष्ट नहीं हैं। सदा कुछ न कुछ पाने की इच्छा बनी रहती है। सदा यह चाहिए, यह चाहिए की धुन लगी हुई है। भाग दौड़ कर रहे हैं। प्यासे बन यहाँ वहाँ तन से, मन से, धन से, जन से कुछ प्राप्त हो जाए, इसी इच्छा से भटक रहे हैं। विशेष तीन बातों की तरफ इच्छा रख अनेक प्रकार के प्रयत्न कर रहे हैं। एक तो शक्ति चाहिए तन की, फिर धन की, पद की, बुद्धि की और दूसरा भक्ति चाहिए। दो घड़ी सच्ची दिल से भक्ति कर पावें, ऐसे भक्ति की इच्छा भी भक्त आत्मायें रखती हैं। तीसरा-अनेक आत्मायें द्वापर से दु:ख और पुकार की दुनिया देख-देख दु:ख और अशान्ति के कारण अल्पकाल की प्राप्ति मृगतृष्णा समझते हुए दु:ख की दुनिया से, इस विकारी दु:खों के बन्धनों से मुक्ति चाहती हैं। भक्त, भक्ति चाहते हैं और अन्य कोई शक्ति चाहते, कोई मुक्ति चाहते। ऐसी असन्तुष्ट आत्माओं को सुख और शान्ति की, पवित्रता की, ज्ञान की अंचली देने वाले वा प्राप्ति कराने वाली सन्तुष्ट मणियां कौन हैं? आप हो? रहमदिल बाप के बच्चे जैसे बाप को रहम आता है कि दाता के बच्चे और अल्पकाल की प्राप्ति के लिए चाहिए - चाहिए-चाहिए के नारे लगा रहे हैं। ऐसे आप मास्टर दाता प्राप्ति स्वरूप बच्चों को विश्व की आत्माओं प्रति रहम आता है, उमंग आता है कि हमारे भाई अल्प-काल की इच्छा में कितने भटक रहे हैं? दाता के बच्चे अपने भाईयों के ऊपर दया और रहम की दृष्टि डालो। महादानी बनो, वरदानी बनो। चमकती हुई सन्तुष्ट मणियां बन सर्व को सन्तोष दो। आजकल सन्तोषी माँ को बहुत पुकारते हैं क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ अप्राप्ति का अभाव है। सन्तुष्टता के आधार पर स्थूल धन में भी बरक्कत अनुभव करते हैं। सन्तुष्टता वाले का धन दो रूपया भी दो लाख समान है। करोड़पति हो लेकिन सन्तुष्टता नहीं तो करोड़ करोड़ नहीं, इच्छाओं के भिखारी हैं। इच्छा अर्थात् परेशानी। इच्छा कभी अच्छा बना नहीं सकती क्योंकि विनाशी इच्छा पूर्ण होने के साथ-साथ और अनेक इच्छाओं को जन्म देती हैं इसलिए इच्छाओं के चक्र में मकड़ी की जाल मुआफिक फँस जाते हैं। छूटने चाहते भी छूट नहीं सकते इसलिए ऐसे जाल में फँसे हुए अपने भाईयों को विनाशी इच्छा मात्रम् अविद्या बनाओ। परेशान अर्थात् शान से परे। हम सभी ईश्वरीय बच्चे हैं, दाता के बच्चे हैं, सर्व प्राप्तियां जन्म सिद्ध अधिकार हैं। इस शान से परे होने के कारण परेशान हैं। ऐसी आत्माओं को अपना श्रेष्ठ शान बताओ। समझा क्या करना है?
सभी डबल विदेशी बच्चे अपने-अपने स्थानों पर जा रहे हैं ना। क्या जाकर करेंगे? महादानी-वरदानी बन सर्व आत्माओं की सुख-शान्ति की प्राप्तियों द्वारा झोली भर देना। यही संकल्प लेकर जा रहे हो ना। बापदादा बच्चों की हिम्मत और स्नेह को देख बच्चों को सदा स्नेह के रिटर्न में पदमगुणा स्नेह देते हैं। दूर देश वाले पहचान और प्राप्ति से समीप बन गये और देश वाले पहचान और प्राप्ति से दूर रह गये हैं इसलिए सदा डबल विदेशी बच्चे प्राप्ति स्वरूप की दृढ़ता और सन्तुष्टता के उमंग में आगे बढ़ते चलो। भाग्य विधाता सर्व प्राप्तियों का दाता सदा आपके साथ है। अच्छा।
ऐसे रहमदिल बाप के रहमदिल बच्चों को, सर्व को सन्तुष्टता के खजाने से सम्पन्न बनाने वाले सन्तुष्ट मणी बच्चों को, सदा प्राप्ति स्वरूप बन सर्व को प्राप्ति कराने की शुभ भावना में रहने वाले शुभ चिन्तक बच्चों को, सर्व को विनाशी इच्छाओं से इच्छा मात्रम् अविद्या बनाने वाले, सर्व समर्थ बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
विदेशी बच्चों को देखते हुए बापदादा बोले:-
इस ग्रुप में किसी को भी कहें कि यहाँ बैठ जाओ तो एवररेडी हो? कोई का पीछे का कोई बन्धन तो नहीं है? ऐसे भी होगा, जब समय आयेगा सभी की टिकेट कैन्सिल कराके यहाँ बिठा देंगे। ऐसे समय पर कोई सैलवेशन भी नहीं लेंगे। सभी को याद है - जब ब्रह्मा बाप अव्यक्त हुए तो वह 4 दिन कैसे बिताये? मकान बड़ा था? खाना बनाया था? फिर 4 दिन कैसे बीता था! विनाश के दिन भी ऐसे ही बीत जायेंगे। उस समय लवलीन थे ना। ऐसे ही लवलीन स्थिति में समाप्ति होगी। फिर यहाँ की पहाड़ियों पर रहकर तपस्या करेंगे। तीसरी ऑख से सारा विनाश देखेंगे। ऐसे निश्चिंत हो ना। कोई चिंता नहीं। न मकान की, न परिवार की, न काम की। सदा निश्चिंत, क्या होगा यह क्वेश्चन नहीं। जो होगा अच्छा होगा। इसको कहा जाता है निश्चिंत। सेन्टर का मकान याद आ जाए, बैंक बैलन्स याद आ जाए... कुछ भी याद न आये क्योंकि आपका सच्चा धन है ना। चाहे मकान में लगा है, चाहे बैंक में रहा हुआ है। लेकिन आपका तो पदमगुणा होकर आपको मिलेगा। आपने तो इनश्योर कर लिया ना। मिट्टी, मिट्टी हो जायेगी और आपका हक आपको पदमगुणा होकर मिल जायेगा और क्या चाहिए। सच्चा धन कभी भी वेस्ट नहीं जा सकता। समझा! ऐसे सदा निश्चिंत रहो। पता नहीं पीछे सेन्टर का क्या होगा? घर का क्या होगा? यह क्वेश्चन नहीं। सफल हुआ ही पड़ा है। सफल होगा या नहीं, यह क्वेश्चन नहीं। पहले से ही विल कर दिया है ना। जैसे कोई विल करके जाता है, पहले से ही निश्चिन्त होता है ना। तो आप सबने अपना हर श्वांस, संकल्प, सेकण्ड, सम्पत्ति, शरीर सब विल कर दिया है ना। बिल की हुई चीज कभी भी स्व के प्रति यूज नहीं कर सकते।
बिना श्रीमत के एक सेकण्ड या एक पैसा भी यूज़ नहीं कर सकते। परमात्मा का सब हो गया तो आत्मायें अपने प्रति या आत्माओं के प्रति यूज़ नहीं कर सकती हैं। डायरेक्शन प्रमाण कर सकती हैं। नहीं तो अमानत में ख्यानत हो जायेगी ना। थोड़ा भी धन बिना डायरेक्शन के कहाँ भी कार्य में लगाया, तो वह धन आपको भी उस तरफ खींच लेगा। धन, मन को खींच लेगा। और मन तन को खींच लेगा और परेशान करेगा। तो विल कर लिया है ना। डायरेक्शन प्रमाण करते हो तो कोई भी पाप नहीं। कोई बोझ नहीं। उसके लिए फ्री हो। डायरेक्शन तो समझते हो ना। सब डायरेक्शन मिले हुए हैं! क्लीयर हैं ना! कभी मूँझते तो नहीं? इस कार्य में यह करें या नहीं करें, ऐसे मूँझते तो नहीं? जहाँ भी कुछ मूँझ हो तो जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों से वेरीफाय कराओ या फिर स्व स्थिति शक्तिशाली है तो अमृतवेले की टचिंग सदा यथार्थ होगी। अमृतवेले मन का भाव मिक्स करके नहीं बैठो लेकिन प्लेन बुद्धि होकर बैठो फिर टचिंग यथार्थ होगी।
कई बच्चे जब कोई प्राबलम आती है तो अपने ही मन का भाव भर करके बैठते हैं। करना तो यही चाहिए, होना तो यही चाहिए, मेरे विचार से यह ठीक है... तो टचिंग भी यथार्थ नहीं होती। अपने मन के संकल्प का ही रेसपान्ड में आता है इसलिए कहाँ न कहाँ सफलता नहीं होती। फिर मूंझते हैं कि अमृतवेले डायरेक्शन तो यही मिला था फिर पता नहीं ऐसा क्यों हुआ, सफलता क्यों नहीं मिली! लेकिन मन का भाव जो मिक्स किया, उस भाव का ही फल मिल जाता है। मनमत का फल क्या मिलेगा? मूंझेगा ना! इसको कहा जाता है अपने मन के संकल्प को भी विल करना। मेरा संकल्प यह कहता है लेकिन बाबा क्या कहता। अच्छा!
टीचर्स से:- बापदादा का टीचर्स से विशेष प्यार है क्योंकि समान हैं। बाप भी टीचर और आप मास्टर टीचर। वैसे भी समान प्यारे लगते हैं। बहुत अच्छा उमंग-उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रही हो। सभी चक्रवर्ती हो। चक्र लगाते अनेक आत्माओं के सम्बन्ध में आए, अनेक आत्माओं को समीप लाने का कार्य कर रही हो। बापदादा खुश हैं। ऐसा लगता है ना कि बापदादा हमारे पर खुश हैं, या समझती हो कि अभी थोड़ा सा कुछ करना है। खुश हैं और भी खुश करना है। मेहनत अच्छी करती हो, मेहनत मुहब्बत से करती हो इसलिए मेहनत नहीं लगती। बापदादा सर्विसएबुल बच्चों को सदा ही सिर का ताज कहते हैं। सिरताज हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख और आगे उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहयोग देते हैं। एक कदम बच्चों का, पदम कदम बाप के। जहाँ हिम्मत है वहाँ उल्लास की प्राप्ति स्वत: होती है। हिम्मत है तो बाप की मदद है, इसलिए बेपरवाह बादशाह हो, सेवा करते चलो। सफलता मिलती रहेगी। अच्छा -
आबू सम्मेलन में आये हुए मेहमानों से मुलाकात(13-2-84)
1-(डा.जोन्हा) असिस्टेन्ट पोट्री जनरल, यू.एन.ओ.)
बापदादा बच्चे के दिल के संकल्प को सदा ही सहयोग देते पूर्ण करते रहेंगे। जो आपका संकल्प है उसी संकल्प को साकार में लाने के योग्य स्थान पर पहुँच गये हो। ऐसे समझते हो कि यह सब मेरे संकल्प को पूरा करने वाले साथी हैं। सदा शान्ति का अनुभव याद से करते रहेंगे। बहुत मीठी सुखमय शान्ति की अनुभूति होती रहेगी। शान्ति प्रिय परिवार में पहुँच गये हो इसलिए सेवा के निमित्त बने। सेवा के निमित्त बनने का रिटर्न जब भी बाप को याद करेंगे तो सहज सफलता का अनुभव करते रहेंगे। अपने को सदा ''मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ, शान्ति के सागर का बच्चा हूँ। शान्ति प्रिय आत्मा हूँ'' इस स्मृति में रहना और इसी अनुभव द्वारा जो भी सम्पर्क में आये उन्हों को सन्देशी बन सन्देश देते रहना। यही अलौकिक आक्यूपेशन सदा श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति कराता रहेगा। वर्तमान और भविष्य दोनों ही श्रेष्ठ रहेंगे। शान्ति का अनुभव करने वाली योग्य आत्मा हो। सदा शान्ति के सागर में लहराते रहना।
जब भी कोई कार्य में मुश्किल हो तो शान्ति के फरिश्तों से अपना सम्पर्क रखेंगे तो मुश्किल सहज हो जायेगी। समझा। फिर भी बहुत भाग्यवान हो। इस भाग्य विधाता की धरनी पर पहुँचने वाले कोटों में कोई, कोई में भी कोई होते हैं। भाग्यवान तो बन ही गये। अभी पद्मापदम भाग्यवान जरूर बनना है। ऐसा ही लक्ष्य है ना! जरूर बनेंगे सिर्फ शान्ति के फरिश्तों का साथ रखते रहना। विशेष आत्मायें, विशेष पार्ट बजाने वाली आत्मायें यहाँ पहुँचती हैं। आपका आगे भी विशेष पार्ट है जो आगे चल मालूम पड़ता जायेगा। यह कार्य तो सफल हुआ ही पड़ा है। सिर्फ जो भी श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली हैं उन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह सेवा का साधन है। यह तो हुआ ही पड़ा है, यह अनेक बार हुआ है। आपका संकल्प बहुत अच्छा है। और जो भी आपके साथी हैं, जो यहाँ से होकर गये हैं, स्नेही हैं, सहयोगी हैं। उन सबको भी विशेष स्नेह के पुष्पों के साथ-साथ बापदादा का याद-प्यार देना।
2- मैडम अनवर सादात से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात - इजिप्ट के लिए सन्देश
अपने देश में जाकर धन की एकानामी का तरीका सिखलाना। मन की खुशी से धन की अनुभूति होती है। और धन की एकानामी ही मन की खुशी का आधार है। ऐसे धन की एकानामी और मन की खुशी का साधन बताना तो वे लोग आपको धन और मन की खुशी देने वाले - खुशी के फरिश्ते अनुभव करेंगे। तो अभी यहाँ से शान्ति और खुशी का फरिश्ता बनकर जाना। इस शान्ति कुण्ड के सदा अविनाशी के वरदान को साथ रखना। जब भी कोई बात सामने आये तो ''मेरा बाबा'' कहने से वह बात सहज हो जायेगी। सदा उठते ही पहले बाप से मीठी-मीठी बातें करना और दिन में भी बीच-बीच में अपने आपको चेक करना कि बाप के साथ हैं! और रात को बाप के साथ ही सोना, अकेला नहीं सोना। तो सदा बाप का साथ अनुभव करती रहेंगी। सभी को बाप का सन्देश देती रहेंगी। आप बहुत सेवा कर सकती हो क्योंकि इच्छा है सभी को खुशी मिले, शान्ति मिले, जो दिल की इच्छा है उससे जो कार्य करते हैं उसमें सफलता मिलती ही है। अच्छा! ओम शान्ति!
वरदान:-
सर्व संबंध एक बाप से जोड़कर माया को विदाई देने वाले सहजयोगी भव
जहाँ संबंध होता है वहाँ याद स्वत: सहज हो जाती है। सर्व संबंधी एक बाप को बनाना ही सहजयोगी बनना है। सहजयोगी बनने से माया को सहज विदाई मिल जाती है। जब माया विदाई ले लेती है तब बाप की बंधाईयां बहुत आगे बढ़ाती हैं। जो हर कदम में परमात्म दुआयें, ब्राह्मण परिवार की दुआयें प्राप्त करते रहते हैं वह सहज उड़ते रहते हैं।
स्लोगन:-
सदा बिजी रहने वाले बिजनेस मैन बनो तो कदम-कदम में पदमों की कमाई है।
30/09/18 Madhuban Avyakt BapDada Om Shanti 20/01/84
Become a great donor and a bestower of blessings.
Today, BapDada is seeing in all the children the personality of purity, the royalty of being an embodiment of all attainments and the reality of being a spiritual embodiment of remembrance. He is seeing all the children crowned with the sparkling light of the personality of purity. On the one side He is seeing the gathering of the children who are embodiments of all attainments. On the other side are the souls of the world who always lack something and are never embodiments of attainment. Even though they constantly have all temporary attainments, they are never content; they are always want something or other. They constantly chant, "I want this, I want that." They are running around. They are thirsty and constantly wandering around here and there with the desire to attain something in terms of body, mind, wealth or other people. They especially want three things and make all sorts of effort for them. Firstly, they want power, of the body, of wealth, of status or of their intellect. Secondly, they also want devotion. They want to be able to perform devotion with an honest heart for a few moments. Devotee souls have the desire to perform such devotion. Thirdly, since the copper age, many souls have been seeing the world of sorrow and crying out in distress and, because of this sorrow and peacelessness, have been considering temporary attainment to be like a mirage. Therefore, they want liberation from the world of sorrow and the bondage of the sorrow of vices. Devotees want devotion, others want power and others want liberation. Who are the jewels of contentment who can give such discontented souls a drop of happiness, peace, purity and knowledge and enable them to attain something? Are you this? You are the children of the Merciful Father. The Father has compassion for you that, as the children of the Bestower, you still constantly cry out, "I want this! I want that! I want this!" for some temporary attainment. So, do you children, who are master bestowers and embodiments of attainment, feel mercy for the souls of the world? Do you have the enthusiasm to help your brothers who are wandering around so much chasing after temporary desires? Children of the Bestower, cast your vision of mercy and compassion on your brothers! Become great donors! Become bestowers of blessings! Become sparkling jewels of contentment and make everyone content. Nowadays, people call out to the goddess of contentment a great deal because where there is contentment, nothing is lacking. On the basis of contentment, one is also able to experience having plenty of physical wealth. If you give even just two rupees to someone who is content, that is equivalent to a hundred thousand. If someone is a millionaire and not content, then that million is not a million, for he is a beggar for desires. Desires mean distress. Desires (ichcha) can never make you become good (achcha) because, although your perishable desires may be fulfilled, they also give birth to many other desires. This is why you become trapped in circles of desires, as through you are trapped in a spider’s web. You cannot become free even though you want to. Therefore, make your brothers, who are trapped in such a web ignorant of even knowing about perishable desires. To be distressed (pareshaan) means to act beneath your dignity (shaan). All of you are children of God, children of the Bestower and all attainments are your birthright. When you lose your dignity, you become distressed. Show such souls their elevated dignity. Do you understand what you have to do?
All you double-foreign children are going back to your respective places. What will you do when you get back? Become great donors and bestowers of blessings and fill the aprons of all souls with the attainments of peace and happiness. This is the thought you are going back with, is it not? Seeing the children's courage and love, BapDada gives the children multimillion-fold return of their constant love. Those who live in faraway lands have come closer through their recognition and attainment, whereas those of this land have become distant through their recognition and attainment. Therefore, double-foreign children, with the determination to be embodiments of attainment and having the enthusiasm of contentment, constantly continue to move forward. The Bestower of Fortune, the Bestower of All Attainments, is always with you. Achcha.
To such merciful children of the Merciful Father, to the children who are jewels of contentment and who make everyone full of the treasure of contentment, to the children who are always embodiments of all attainments and who remain well-wishers for others with the good wishes to enable them to attain something, to those who make everyone ignorant of the knowledge of perishable desires, to the all-powerful children BapDada's love, remembrance and namaste.
Seeing the double-foreign children, BapDada said:
If anyone in this group is told to stay here, are you ever ready? None of you has any bondage back home, do you? This will also happen. The time will come when everyone's ticket is cancelled and you will be made to stay here. At such a time, no one will want to take salvation (facilities). Do all of you remember how you spent those four days when Brahma Baba became avyakt? Was the building big enough? Did you cook anything? So, how did you spend those four days? The days of destruction will also be spent just like that. You were absorbed in love at that time, were you not? Completion will also take place in a stage just like that when you will be absorbed in love. You will then stay here on the mountains and do tapasya. You will see the whole of destruction with your third eye. You are carefree in this way, are you not? You don't have any worries about your house, your family or your work. You are always carefree. There is no question as to what will happen. Whatever happens will be good. This is called being carefree. You might remember the building of your centre or your bank balance. Nothing should be remembered. Yours is true wealth, whether it has been used for the building or is in the bank. You will receive your wealth multiplied multimillion-fold. You have insured everything, have you not? Dust will turn to dust and you will receive your wealth multiplied multimillion-fold. What else do you want? True wealth can never go to waste. Do you understand? Remain constantly carefree in this way. “I don't know what will happen to the centre afterwards? What will happen to our home?” Let there not be this question. All of it has already been used in a worthwhile way. You no longer have any question as to whether it will be used in a worthwhile way or not. You have already willed it in advance. When someone has made his will beforehand, he remains carefree. All of you have willed your every breath, thought, second, wealth and body, have you not? You cannot use anything for yourself that you have already willed.
You cannot use even a second or a penny without shrimat; it all belongs to God. Therefore, souls cannot use it for themselves or for other souls. You can use it according to the directions you receive. Otherwise, it is being dishonest with the treasures you have been entrusted with. If you use even a little of your wealth without a direction for any task, that wealth will then pull you to where it has been used. The wealth will pull the mind and the mind will pull the body and distress you. So, you have willed it all, have you not? If you use everything according to the directions you receive, there is no sin and no burden; you are free from that. You do understand the directions, do you not? You have received directions for everything. It is clear, is it not? You never become confused, do you? You never become confused as to whether you should do something or not for a particular task, do you? Whenever there is a little confusion, have it verified by the instruments. Or, if your stage is powerful, then the touchings you receive at amrit vela will always be accurate. Don't sit at amrit vela with mixed feelings in your mind, but sit with a plain intellect and the touchings will be accurate.
Whenever some children have problems, they sit with only their own feelings in their minds. “This is what I should do. That is what should happen. In my opinion, this is fine.” Therefore, the touchings too would not be accurate. They would then only receive a response of the thoughts of their own mind. This is why, somewhere or other, there is no success. They then become confused about the direction they received at amrit vela, and thereby don't understand why something happened or why they weren't successful. However, they had mixed feelings in their own minds and so they just received the fruit of those feelings. What fruit would you receive from the dictates of your own mind? There would only be confusion, would there not? This is called willing even the thoughts of your mind. This is my thought, but what does Baba say? Achcha.
Speaking to the teachers:
BapDada has special love for teachers because you are equal. The Father is the Teacher and you are master teachers. In any case, those who are equal are loved very much. You are moving forward in service with very good zeal and enthusiasm. All of you are rulers of the globe. You toured around and came into relationship with many souls and are carrying out the task of bringing many souls close. BapDada is pleased. You feel that BapDada is pleased with you, do you not? Or, do you feel that you still have to do a little more? He is pleased, but you have to please Him a little more. You are working very hard. You work hard with love and this is why it doesn't feel like hard work. BapDada always says that serviceable children are the crowns on the head. You are the crowns on the head. Seeing the zeal and enthusiasm of the children, BapDada gives further co-operation to increase the zeal and enthusiasm. One step of the children and multimillion steps of the Father. Where there is courage, there is automatically the attainment of enthusiasm. When you have courage, you receive the Father's help. This is why you are carefree emperors. Continue to serve and you will continue to receive success. Achcha.
BapDada meeting guests who have come for the Mt. Abu Conference (13/02/84)
Dr. James Jonah, Assistant Secretary General, United Nations
BapDada will always give co-operation and fulfil the child’s thoughts in his heart. Whatever your thoughts are, you have reached exactly the right place for you to put those thoughts into a practical form. Do you believe that all of these are your companions who will help you to fulfil your thoughts? By having remembrance you will constantly experience peace. You will continue to experience very sweet peace filled with happiness. You have reached the family that loves peace and so you have become an instrument for service. As a return for becoming an instrument, whenever you remember the Father, you will easily continue to experience success. Always keep yourself in the awareness, “I am a soul who is an embodiment of peace, I am a child of the Ocean of Peace, I am a soul who loves peace”. Use this experience to continue to give this message to whoever comes into connection with you. This alokik occupation will constantly enable you to perform elevated actions and those elevated actions will enable you to experience an elevated attainment. Then, both your present and your future will be elevated. You are a soul who is worthy of experiencing peace. Constantly continue to move along in the waves in the Ocean of Peace.
Whenever you find a task difficult, stay in connection with the angels of peace and the difficulties will become easy. Do you understand? Even so, you are very fortunate. It is only a handful out of multi-millions, and a few from that handful who reach this land of the Bestower of Fortune. So, you have become fortunate. Now, you definitely have to become multi-million times fortunate. You have this aim, do you not? You will definitely become this, simply continue to keep your connection with the angels of peace. It is special souls that play special parts who reach here. You have a special part in the future too, which you will come to know as you progress further. This task is already accomplished successfully. This is just a means of service to enable those who want to create their fortune to do so. However, otherwise, it is already accomplished and it has been accomplished many times before. Your thought is very good. Give all your companions who have gone from here, those who are loving and co-operative, special flowers of love together with BapDada’s love, remembrance and namaste.
Avyakt BapDada meeting Madam Anwar Sadat – A message for Egypt
Go back to your country and show them the method of economy of wealth. You experience wealth with happiness in the mind and economy of wealth is the basis of happiness in the mind. In this way, show them the way to be economical with wealth and the means of happiness of the mind and they will experience you to be an angel of happiness who gives them wealth (dhan) and the mind (man). So, go from here having become an angel of peace and happiness. Constantly keep with you the imperishable blessings from this sacrificial fire of peace. Whenever any situation arises, when you say, “My Baba”, that situation will become easy. When you wake up, first of all, always have a sweet conversation with the Father and, during the day, every now and then, check yourself as to whether you are with the Father. At night, go to sleep with the Father, do not sleep alone and you will constantly continue to experience the Father’s company. You will continue to give the Father’s message to everyone. You can do a lot of service because you have the desire that everyone should receive happiness and peace and when you do something from your heart’s desire you definitely have success in that. Achcha.
Blessing:May you be an easy yogi who forges all your relationships with the one Father and thereby bids farewell to Maya.
When there is a relationship, remembrance is automatically easy. To have all your relationships with the one Father is to be an easy yogi. By being an easy yogi, you can easily bid farewell to Maya. When Maya has taken leave, the greetings from the Father enable you to make a great deal of progress. Those who continue to receive blessings from God and from the Brahmin family at every step easily continue to fly.
Slogan:Become businessmen who remain constantly busy and you will have an income of multimillions at every step.
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