Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali 29th Sep 2018 )
29-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हें 100 परसेन्ट सर्वगुणों में सम्पन्न बनना है, दिल दर्पण में देखना है कि हम कहाँ तक पावन बने हैं''
प्रश्नः-
तुम बच्चे कौनसा उत्सव रोज़ मनाते हो और मनुष्य कौनसा उत्सव मनाते हैं?
उत्तर:-
तुम दैवी धर्म की स्थापना का अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाने का उत्सव रोज़ मनाते हो। रोज़ तुम्हें मनुष्य को देवता बनाने की सैपलिंग लगानी है। वे मनुष्य तो जंगल के कांटों की सैपलिंग लगाते और नाम देते हैं वनोत्सव। तुम कांटों से फूल बनाने का उत्सव रोज़ मनाते हो। तुम्हारे जैसा उत्सव और कोई मना नहीं सकता।
गीत:-
मुखड़ा देख ले प्राणी........
ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? यहाँ तो है ही बाप और बच्चों का सम्मुख मिलन। बच्चों को अब दिव्य चक्षु, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है - देखने के लिए क्योंकि पतित अथवा पाप आत्मायें तो सब थे। पतितों को पावन बनाने के लिए बाप श्रीमत देते हैं। यह श्रीमत देने वाला कौन है, उनको भी समझना चाहिए। वही बोलते हैं आत्माओं को। आत्मा जानती है मैंने इस शरीर से अच्छे कर्म किये हैं या बुरे कर्म किये हैं। बाबा तुम बच्चों को समझ देते हैं। यह तो जरूर है सब पतित थे। अभी तुम देखो हम कहाँ तक पावन बने हैं और दैवी गुण धारण किये हैं? दैवी गुण धारण कराने वाला है सर्वगुणों का सागर बाप, वह बैठ समझाते हैं। मनुष्य तो गाते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। खुद कहते हैं हमारे में गुण नहीं हैं। अब तुम बच्चों को फिर 100 प्रतिशत सर्वगुण सम्पन्न बनना है। कहते हैं अपने दिल दर्पण में देखो। जब सर्वगुण सम्पन्न बनेंगे तब ही तुम श्री लक्ष्मी वा श्री नारायण को वर सकेंगे। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना चाहिए। ऐसा जो बेहद का बाप है जिसके लिए गाते हैं तुम मात-पिता...... उस परमपिता की बड़ी महिमा है। कहते हैं शिवाए नम:, अब वह तो स्वर्ग का रचयिता है। जरूर हमको बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने का हक है। बेहद के बाप का वर्सा स्वर्ग की बादशाही है जो हमको देते हैं। भारत को स्वर्ग की बादशाही थी, अभी नहीं है। जरूर बाप से ही मिली थी। भारत ही सचखण्ड बनता है। सच शिवबाबा का यह जन्म स्थान है - यह कोई नहीं जानते। शिव रात्रि गाई जाती है वह कौनसी? कृष्ण की भी रात्रि, शिव की भी रात्रि दिखाते हैं। कृष्ण का तो माँ के गर्भ से जन्म हुआ है। शिवबाबा के लिए जन्माष्टमी तो वास्तव में नहीं कहेंगे। शिवबाबा आते ही तब हैं जब ब्रह्मा की रात होती है। रात के बाद दिन अर्थात् कलियुग का अन्त और सतयुग की आदि होती है। इसको कहा जाता है घोर अन्धियारी रात। यह बेहद की बात हो गई। हद की रात तो होती ही है परन्तु कलियुग अन्त को घोर अन्धियारा कहा जाता है। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया......। सतगुरू ज्ञान सूर्य बाप को कहा जाता है। पहले-पहले तो बाप और वर्से का परिचय देना है। समझो कोई बादशाह को बच्चा नहीं है, किसी गरीब के बच्चे को गोद में लेता है तो बच्चा दिल में जानता है ना कि मैं गरीब था, अब मैं बादशाह का बच्चा हूँ। तुम भी जानते हो हम रावण का बनने से बहुत गरीब, कंगाल बन गये थे। अभी हम बेहद के बाप के बने हैं। उनसे हमें स्वर्ग का वर्सा मिलता है। यह अच्छी तरह परिचय देना है और फिर लिखाकर लेना है हमको बेहद बाप से बेहद का वर्सा मिलता है। यह ज्ञान और कोई दे नहीं सकता। सन्यासी तो घरबार छोड़ जाते हैं। वह फिर माँ, बाप, चाचा, मामा आदि कहलाने से निकल गये, ख़लास। यहाँ तो गृहस्थ धर्म की बात है। वह गृहस्थ धर्म का त्याग करते हैं।
तुम बच्चों को बाप समझाते हैं - तुम सो देवी-देवता गृहस्थ धर्म में थे, सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी थे और तुम स्वर्ग के मालिक भी थे। फिर पूज्य से तुम पुजारी बन अपनी पूजा भी करते हो। जब तुम पूज्य सो देवी-देवता हो तो तुमको वहाँ पूजा करने की दरकार नहीं है। वैसे ही भारत देवी-देवताओं का पूज्य कुल था। अभी पूज्य से पुजारी बने हो। फिर तुम बच्चों को पुजारी से पूज्य देवी-देवता बनना है इसलिए ही गाया जाता है आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। बाप पूज्य और पुजारी नहीं बनते। बाप तो सदा पूज्य है ही। भक्ति मार्ग में ब्राह्मण लोग मन्दिर में शिवलिंग रखते हैं फिर बाप की बैठ पूजा करते हैं। हम उनके बच्चे हैं। हे परमपिता परमात्मा, ऐसे कहेंगे ना। वह तो है निराकार, आत्मा भी है निराकार। शिव के पास जाते हैं तो कहते हैं परमपिता परमात्मा निराकार शिव। यह आत्मा ने कहा इन आरगन्स द्वारा। अभी तुम बच्चे यह भी जान गये हो कि जो अच्छे कर्तव्य करके जाते हैं तो उन्हों की महिमा की जाती है। अभी तुम मात-पिता उस निराकार को ही कहते हो। तुम्हारे सहज राजयोग और ज्ञान की शिक्षा से हम सुख घनेरे पायेंगे। उसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। कितनी सहज बात है। तुम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे बी.के. प्रैक्टिकल में हो, सम्मुख बैठे हो। शिवबाबा और ब्रह्मा बाबा दोनों के सम्मुख हो। शिवबाबा को अपना शरीर तो है नहीं। तुम जानते हो शिवबाबा इनके मुख द्वारा राजयोग सिखला रहे हैं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह कैसे कहेगा कि देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो, अपने को आत्मा समझो। यह कृष्ण तो कह न सके। यह तो बाप ही कह सकते हैं। तो यह बड़ी भूल हुई है ना। लक्ष्मी-नारायण से लेकर यथा राजा-रानी तथा प्रजा उन सबको तो सुख मिला हुआ था। वही सब 84 जन्म ले तमोप्रधान बने हैं। मूल लक्ष्मी-नारायण हुए ना। यथा राजा रानी तथा प्रजा। अभी फिर तुम आकर शूद्र से ब्राह्मण बने हो। यह तुम्हारा लीप जन्म है। लीप कहा जाता है धर्माऊ को। तुम जानते हो हमारा यह ईश्वरीय जन्म है।
दिन-प्रतिदिन बाबा नई-नई प्वाइन्ट्स समझाते रहते हैं। जहाँ तक जीना है अन्त तक तुमको पढ़ना है। प्वाइंट्स निकलती रहेंगी, एड होती जायेंगी। ज्ञान यज्ञ भी अन्त तक चलना है। रूद्र यज्ञ रचते हैं, मिट्टी के सालिग्राम बनाकर उनकी बैठ पूजा करते हैं। आत्मा की पूजा होती है। तुम जीव आत्माओं ने ही भारत को सिरताज बनाया है, तो आत्माओं की पूजा करते हैं। परमपिता परमात्मा बाप के साथ तुम भी सर्विस कर रहे हो तो शिवलिंग के साथ सालिग्राम भी बनाते हैं। तो मुख्य पहले-पहले बाप का परिचय देना है। शिवबाबा ने जन्म लिया परन्तु माता के गर्भ से थोड़ेही जन्म लेते हैं। वह है ही निराकार।
जैसे कोई शरीर छोड़ देता है फिर उनकी आत्मा को बुलाते हैं - श्राध खाने के लिए। तो आत्मा को खिलाते हैं ना। आत्मा ही स्वाद लेती है। कडुवा, मीठा, दु:ख-सुख यह आत्मा को भासता है। आत्मा में ही संस्कार हैं। आत्मा को सुख वा दु:ख तब भासता है जबकि शरीर है। बाबा ने समझाया है सज़ा कैसे मिलती है। सूक्ष्म शरीर भी नहीं, स्थूल शरीर धारण कराए सजा देते हैं। गर्भजेल में सज़ा खाते हैं। त्राहि-त्राहि करते हैं। बस, मुझे बाहर निकालो। गर्भ महल का भी मिसाल दिया हुआ है। बाहर निकलने नहीं चाहते थे। यह दृष्टान्त है। सतयुग में गर्भ भी महल बन जाता है। वहाँ कोई पाप होता नहीं।
अभी तुम जानते हो पतित कैसे हुए हैं। नाम ही है अजामिल जैसे पतित। बहुत पाप करते हैं। पावन माना निर्विकारी। मूल बात ही विकार की है इसलिए पावन बनने के लिए सन्यासी घरबार छोड़ देते हैं तो उनको महात्मा कहते हैं। मनुष्य सब पतित हैं इसलिए गाते रहते हैं पतित-पावन सीताराम, रघुपति राघव राजा राम...... अब राजा राम तो शिवबाबा को नहीं कहेंगे। राम परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। राजा राम नहीं। मैं तो राजा-महाराजा बनता नहीं हूँ। श्री लक्ष्मी महारानी, नारायण महाराजा तुम बनते हो, हम नहीं। मैं तो निराकार पुनर्जन्म रहित हूँ। शरीरधारी जो हैं वह सब पुनर्जन्म लेते रहते हैं। बाप कहते हैं मैं हूँ निराकार। मुझे भी प्रकृति का आधार लेना पड़ता है। मैं गर्भ में प्रवेश नहीं करता हूँ, मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।
बाप बैठ समझाते हैं तुम सो देवी-देवता थे, फिर शूद्र बने, अभी तुम सो ब्राह्मण बने हो। मैं तुमको समझाता हूँ। तुम अपने जन्मों को नहीं जानते। जो ब्राह्मण बनेंगे वही आकर समझेंगे। बाप कहते हैं इस प्रकार तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं। कहा जाता है 21 पीढ़ी का वर्सा। बेहद का बाप, बेहद सुख का वर्सा देंगे ना। लौकिक बाप से तो अल्पकाल का सुख मिलता है। अमरलोक में आदि-मध्य-अन्त सुख है। यहाँ आदि-मध्य-अन्त दु:ख है। तुम पार्वतियों को अमरनाथ शिवबाबा अमरकथा सुनाते हैं। सत्य नारायण की कथा भी वह सुनाते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र देने की कथा है। भारतवासी सदा सुखी थे, बहुत पवित्र थे। पवित्रता, हेल्थ, वेल्थ थी। कभी कोई बीमार नहीं पड़ते थे। नाम ही है स्वर्ग। भारत प्राचीन स्वर्ग था और कोई धर्म खण्ड आदि वहाँ नहीं थे। झाड़ का थुर तो होगा ना। थुर में कौन रहते थे? बरोबर देवी-देवताओं के चित्र हैं। वह था फाउन्डेशन। परन्तु अपने को देवी-देवता धर्म वाले कहलाते नहीं। अभी उन्हों की राजधानी स्थापन हो रही है। तुम सतयुग का, राधे कृष्ण का जोड़ा बन सकते हो। आओ तो हम आपको समझायें - तुम सच-सच स्वर्ग का प्रिन्स कैसे बन सकते हो! इस समय तो सब पतित हैं, कोई भी युक्ति से लिख सकते हो। कहते हैं सब धर्म मिलकर एक हो जाएं परन्तु यह कैसे हो सकता? एक धर्म तो सतयुग में ही था, एक मत एक भाषा थी। ताली नहीं बजती थी। विश्व के मालिक थे, और कोई धर्म नहीं था। वह कैसे बने, फिर और धर्म कैसे आये - यह कोई भी बुद्धि नहीं चलाते हैं। जब बिल्कुल ही पतित बन जाते हैं तब ही पतित-पावन बाप आते हैं और धर्मों की पावन आत्मायें ऊपर से आती है। पहले धर्म स्थापक खुद आते हैं फिर अपने पिछाड़ी औरों को बुलाते हैं, आओ। उनको तो सतो, रजो, तमो में आना है। जो भी आते हैं सबको सतो, रजो से फिर तमो बनना ही है। परन्तु अभी तुम पतित से पावन बनते हो। सब बुलाते हैं - गॉड फादर आओ, आकरके हमको हेविन में ले जाओ। वह हेविन कोई मुक्ति को, कोई जीवनमुक्ति को समझते हैं। तुम समझते हो हेविन जीवनमुक्ति को कहा जाता है। तुम्हारा सैपलिंग लग रहा है। वह फिर जंगल के कांटों का सैपलिंग लगा रहे हैं। रात-दिन का फ़र्क है। उनका भी उत्सव मनाते हैं। वनोत्सव, झाड़ उगाने के लिए उत्सव मनाते हैं। तुम दैवी धर्म स्थापना का अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाने का रोज़ उत्सव मनाते हो। रोज़ मनुष्य से देवता बनाने का पुरुषार्थ करते हो। कांटों से फूल बनाना - यह तुम्हारा रोज़ का उत्सव होता है। बागवान फिर जरूर इतना इनाम भी देंगे।
बच्चों ने गीत सुना - हे प्राणी अपने दिल दर्पण में देखो - तुम स्वर्ग के देवी-देवता बनने अथवा लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? कोई अवगुण तो नहीं है? भल त़ूफान तो खूब आयेंगे। माया छोड़ती कोई को नहीं है। बड़े-बड़े दीपकों को भी बुझा देती है। उल्टे-सुल्टे संकल्प तो खूब वार करेंगे। मजबूत रहना है। इसमें मुरझाने की बात नहीं है। बाप से योग तोड़ नहीं देना है। सबका खिवैया वह बाप है। विषय वैतरणी की बड़ी खाड़ी है। उसे तुम योगबल से पार करते हो। विषय सागर से पार होकर तुम क्षीरसागर में चले जायेंगे। विष्णु का राज्य क्षीरसागर में है अर्थात् घी की नदी बहती है। यहाँ तो घासलेट की, रक्त की नदियां बहती हैं।
तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा की श्रीमत से हम शिवालय में जा रहे हैं, जहाँ हम सदैव सुखी रहेंगे। तुम सदा सुखी थे, माया ने दु:खी बनाया है। गृहस्थ व्यवहार को अधर्मी बना दिया है। वहाँ है गृहस्थ व्यवहार धर्मी। अभी तुमको बाप श्रेष्ठाचारी दैवी गृहस्थ धर्म वाला बना रहे हैं। पहले-पहले मुख्य है बाप का परिचय। तुम बाप का बनने से स्वर्ग का मालिक बन सकते हो। यह तो दु:खधाम है। तुम स्वर्ग में जाते हो वाया मुक्तिधाम इसलिए शिवपुरी, विष्णुपुरी को याद करो। याद करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी। यह याद रखो - हमारे 84 जन्म पूरे हुए। फिर हम कल आकर राज्य करेंगे, दिल दर्पण में अपनी शक्ल देखते रहो, कोई अवगुण तो हमारे में नहीं है? अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) योगबल से विषय वैतरणी की बड़ी खाड़ी को पार करना है। उल्टे संकल्पों में मुरझाना नहीं है। मजबूत रहना है।
2) पूज्यनीय बनने के लिए बाप के साथ भारत को सिरताज बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:-
सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को सदा सुख की अनुभूति कराने वाले मास्टर सुखदाता भव
आप सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो इसलिए सुख का खाता जमा करते रहो। सिर्फ यह चेक नहीं करो कि आज सारे दिन में किसी को दु:ख तो नहीं दिया? लेकिन चेक करो कि सुख कितनों को दिया? जो भी सम्पर्क में आये आप मास्टर सुखदाता द्वारा हर कदम में सुख की अनुभूति करे, इसको कहा जाता है दिव्यता वा अलौकिकता। हर समय स्मृति रहे कि इस एक जन्म में 21 जन्मों का खाता जमा करना है।
स्लोगन:-
एक बाप को अपना संसार बना लो तो अविनाशी प्राप्तियाँ होती रहेंगी।
29/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have to become 100% full of all virtues. Look in the mirror of your heart and see to what extent you have become pure.
Question:
What ceremony do you children celebrate every day and what ceremony do people of the world celebrate every day?
Answer:
Every day you celebrate the festival of establishing the deity religion, that is, of making Bharat into heaven. Every day you have to plant the sapling of changing human beings into deities. Those people plant saplings of thorns in a forest and call it a tree-planting ceremony. You celebrate the festival of changing thorns into flowers every day. No one else can celebrate a festival in the same way as you.
Song:
See your face in the mirror of your heart.
Om Shanti
Who said this? Here, it is a personal meeting of the Father and children. You children have now received the divine eye, the third eye of knowledge, with which you can see because all souls are impure and sinful. The Father gives shrimat to make impure ones pure. You have to understand who it is who is giving you shrimat. He is the one who speaks to you souls. Souls know whether they have performed good or bad actions through their bodies. Baba is now giving you children this understanding. It is definite that all of you were impure. You can now see to what extent you have become pure and how many divine virtues you have imbibed. The one who inspires you to imbibe divine virtues is the Father, the Ocean of all Virtues. He sits here and explains to you. People sing: I am without virtue. We have no virtues. They say of themselves that they don't have any virtues. You children now have to become 100% full of all virtues. He says: Look in the mirror of your heart. Only when you become full of virtues will you be able to marry Shri Lakshmi or Shri Narayan. First of all you have to give the Father's introduction. He is the unlimited Father and it is to Him that you sing: You are the Mother and Father. There is great praise of that Supreme Father. People say: Salutations to Shiva. He is the Creator of heaven. We definitely have the right to claim the inheritance from the Father. The inheritance from the unlimited Father is the sovereignty of heaven, which He gives to us. Bharat did have the sovereignty of heaven but doesn't have it now. It definitely did receive it from the Father. Bharat becomes the land of truth. No one knows that this is the birthplace of Shiv Baba, the Truth. Shiv Ratri is remembered. What night is it? They show the night of Krishna and also the night of Shiva. Krishna took birth from his mother's womb. You wouldn't say that there is Janamashtmi for Shiv Baba. Shiv Baba comes when it is the night of Brahma. After the night, the day comes, that is, it is the end of the iron age and the beginning of the golden age. This is called the extremely dark night. This is an unlimited aspect. There are limited nights, but the end of the iron age is called extreme darkness, when the Satguru gives the ointment of knowledge. The Satguru, the Father is called the Sun of Knowledge. First of all, you have to give the introduction of the Father and the inheritance. For instance, when an emperor doesn't have a son, he would adopt the son of a poor person and the child would know in his heart that he was poor and that he has now become the son of an emperor. You too know that you became very poor and poverty-stricken by belonging to Ravan. You now belong to the unlimited Father. You are receiving the inheritance of heaven from Him. You have to give this introduction very clearly and also get them to put it in writing: We are receiving the unlimited inheritance from our unlimited Father. No one else can give this knowledge. Sannyasis leave their homes and families and go away. They have become free from being called father or uncle etc. Here, it is a matter of the household path. They renounce the household path. The Father explains to you children: You were deities on the household path. You were full of all virtues and were viceless and you were also the masters of the world. Then, from being worthy of worship, you became worshippers and also worshipped yourselves. When you are worthy-of-worship deities, you don't need to worship there. In the same way, Bharat was the worthy-of-worship clan of deities. From being worthy of worship you became worshippers. Now, once again, you children have to become worthy-of-worship deities from worshippers. This is why it is remembered: You are worthy of worship and you are worshippers. The Father doesn't become worthy of worship or a worshipper. The Father is always worthy of worship. On the path of devotion, brahmin priests place a Shivalingam in a temple and they sit and worship the Father. We are His children. We would say: O Supreme Father, Supreme Soul! He is incorporeal and souls are also incorporeal. When people go to Shiva, they say: Supreme Father, Supreme Soul, incorporeal Shiva. The soul says this through these organs. You children now know that those who pass away having performed good actions are praised. You only say “Mother and Father” to that incorporeal One. With your easy Raja Yoga and the teachings of knowledge, we will have an abundance of happiness through the teachings of Your Raja Yoga and easy knowledge. You are making effort for that. This is so easy. You are BKs, children of Prajapita Brahma, in a practical way. You are sitting personally in front of Him. You are personally in front of both Shiv Baba and Brahma Baba. Shiv Baba doesn't have a body of His own. You know that Shiv Baba is teaching you Raja Yoga through the mouth of this one. Krishna is a small child. How could he say: Forget your body and bodily relationships and consider yourself to be a soul? Krishna cannot say this. Only the Father can say this. So this is a big mistake that they have made. Everyone, from Lakshmi and Narayan to all the subjects, received happiness. They are the ones who took 84 births and became tamopradhan. The main ones are Lakshmi and Narayan. As are the king and queen, so the subjects. You have now become Brahmins from shudras. This is your leap birth. The leap birth is said to be the righteous birth. You know that this is your Godly birth. Day by day, Baba continues to explain new points to you. You have to study as long as you live, till the end. Points will continue to emerge and will continue to be added. The sacrificial fire of knowledge has to continue till the end. When people create a sacrificial fire of Rudra, they create saligrams of clay and worship them. The souls are worshipped. You embodied souls have made Bharat into the crown on the head. Therefore, you souls are worshipped. You do service with the Supreme Father, the Supreme Soul, and so, along with a Shivalingam, they also create saligrams. So, first of all, the main thing is to give the Father's introduction. Shiv Baba took birth, but He doesn’t take birth from the womb of a mother. He is incorporeal. For instance, when someone sheds his body, they invoke that soul to eat special food made for the departed spirit. Therefore, they feed the soul; it is the soul that tastes the food. It is the soul that feels happiness or sorrow and whether something is bitter or sweet. Sanskars are in the soul. A soul experiences happiness or sorrow when he is in a body. Baba has explained to you how punishment is received. It isn't a subtle body; you are made to adopt a physical body and are then punished. Punishment is experienced in the jail of a womb. That soul cries out in distress: “That’s enough! Let me out!" There is the example of the palace of a womb. The soul didn't want to come out. That is just an example. In the golden age, the womb becomes a palace. There is no sin there. You now know how you became impure. The very saying is: As sinful as Ajamil. He committed a lot of sin. Pure means viceless. The main thing is vice. This is why sannyasis leave their homes and families in order to become pure and why they are called great souls. All human beings are impure and this is why they continue to sing: Rama, who belongs to Sita, is the Purifier. King Rama is the one who belonged to the Raghav (elevated) clan. Shiv Baba would not be called King Rama. The Supreme Father, the Supreme Soul, is called Rama, not King Rama. I do not become a king or an emperor. You become Shri Lakshmi, the empress, and Shri Narayan, the emperor; I don’t become that. I am incorporeal, beyond rebirth. All bodily beings continue to take rebirth. The Father says: I am incorporeal. I too have to take the support of matter. I do not enter a womb. I enter this one. This one doesn't know about his own births. The Father sits here and explains: You were deities and you then became shudras and have now become Brahmins. I explain this to you. You do not know your own births. Only those who become Brahmins will come and understand. The Father says: You have completed 84 births in this way. It is said: The inheritance of 21 generations. The unlimited Father would give you the inheritance of unlimited happiness. You receive temporary happiness from physical fathers. In the land of immortality, you have happiness from the beginning through the middle to the end. Here, there is sorrow from the beginning through the middle to the end. Shiv Baba, the Lord of Immortality, is telling you Parvatis the story of immortality. He is also the One who tells you the story of the true Narayan. This is the story of giving you the third eye of knowledge. The people of Bharat were constantly happy. They were very pure. They had purity, health and wealth. No one was ever ill. The very name is heaven. Ancient Bharat was heaven and there were no other religions or lands there. The tree would definitely have a trunk. Who used to be the trunk? There are in fact images of the deities. That was the foundation, but they didn't call themselves those who belong to the deity religion. Their kingdom is now being established. You can become a couple like Radhe and Krishna of the golden age. Come and we will explain to you how you can truly become princes of heaven. At this time, all are impure. You can write this tactfully. They say that all religions should unite and become one, but how is that possible? Only in the golden age was there just the one religion. There was one direction and one language. There wasn't any conflict there. They were the masters of the world. There was no other religion. No one uses his intellect to find out how they became that or how the other religions came into existence. When the pure souls of other religions have come down from up above and have become completely impure, it is then that the Purifier Father comes. First of all, the founders of religions come and then they ask others to come. They have to go through the stages of sato, rajo and tamo. Everyone who comes has to become tamo by passing through the sato and rajo stages. However, you are now becoming pure from impure. Everyone calls out: God, the Father, come! Come and take us to heaven. Some consider liberation to be heaven and others consider liberation-in-life to be heaven. You understand that heaven is liberation-in-life. Your sapling is being planted. Those people are now planting saplings of thorns in forests. There is the difference of day and night. They have ceremonies of that too, they have tree planting ceremonies. Every day you celebrate the ceremony of establishing the deity religion, that is, of making Bharat into heaven. You make effort every day to change human beings into deities. It is your everyday ceremony to change thorns into flowers. The Master of the Garden will then definitely give you such a reward too. You children heard in the song: O soul, look in the mirror of your heart! Have you become worthy of becoming a deity of heaven, that is, of marrying Lakshmi or Narayan? You don't have any defects, do you? Many storms will come; Maya doesn't leave anyone alone. She even extinguishes the big lamps. Wrong types of thought will attack you a great deal. You have to remain strong. There is no question of wilting in this. You mustn't break your intellect's yoga away from the Father. That Father is everyone’s Boatman. This is a big canal of poison. You cross it with the power of yoga. You go across the ocean of poison and go to the ocean of milk. The kingdom of Vishnu is in the ocean of milk, that is, rivers of ghee flow there. Here, rivers of kerosene and blood flow. You children know that by following Shiv Baba's shrimat, you are going to Shivalaya where you will remain constantly happy. You were constantly happy and then Maya made you unhappy. The household path has been made unrighteous. There, the household path is righteous. The Father is now making you into beings who belong to the elevated divine household path. First of all, the main thing is to give the Father's introduction. By belonging to the Father you can become the masters of heaven. This is the land of sorrow. You go to heaven via the land of liberation and this is why you have to remember the land of Shiva and the land of Vishnu. By remembering them, your final thoughts will lead you to your destination. Remember that your 84 births are now coming to an end. Then, tomorrow, we will come and rule. Continue to look at your face in the mirror of your heart: Do I have any defects in me? Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Cross the big channel of poison with the power of yoga. Don't wilt with wrong thoughts. Remain strong.
2. In order to become worthy of worship, serve with the Father to make Bharat into the crown.
Blessing:
May you be a master bestower of happiness and constantly give the experience of happiness to all souls who come into connection with you.
You are master bestowers of happiness, children of the Bestower of Happiness, and so you have to continue to accumulate in your account of happiness. Do not just check whether you caused anyone sorrow throughout the day, but check as to how many you gave happiness to. Let whoever comes into connection with you master bestowers of happiness experience happiness at every step. This is known as divinity and spirituality. Let there be the awareness at every step that you have to accumulate enough for 21 births in this one birth.
Slogan:
Make the one Father your world and you will continue to have imperishable attainments.
''मीठे बच्चे - तुम्हें 100 परसेन्ट सर्वगुणों में सम्पन्न बनना है, दिल दर्पण में देखना है कि हम कहाँ तक पावन बने हैं''
प्रश्नः-
तुम बच्चे कौनसा उत्सव रोज़ मनाते हो और मनुष्य कौनसा उत्सव मनाते हैं?
उत्तर:-
तुम दैवी धर्म की स्थापना का अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाने का उत्सव रोज़ मनाते हो। रोज़ तुम्हें मनुष्य को देवता बनाने की सैपलिंग लगानी है। वे मनुष्य तो जंगल के कांटों की सैपलिंग लगाते और नाम देते हैं वनोत्सव। तुम कांटों से फूल बनाने का उत्सव रोज़ मनाते हो। तुम्हारे जैसा उत्सव और कोई मना नहीं सकता।
गीत:-
मुखड़ा देख ले प्राणी........
ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? यहाँ तो है ही बाप और बच्चों का सम्मुख मिलन। बच्चों को अब दिव्य चक्षु, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है - देखने के लिए क्योंकि पतित अथवा पाप आत्मायें तो सब थे। पतितों को पावन बनाने के लिए बाप श्रीमत देते हैं। यह श्रीमत देने वाला कौन है, उनको भी समझना चाहिए। वही बोलते हैं आत्माओं को। आत्मा जानती है मैंने इस शरीर से अच्छे कर्म किये हैं या बुरे कर्म किये हैं। बाबा तुम बच्चों को समझ देते हैं। यह तो जरूर है सब पतित थे। अभी तुम देखो हम कहाँ तक पावन बने हैं और दैवी गुण धारण किये हैं? दैवी गुण धारण कराने वाला है सर्वगुणों का सागर बाप, वह बैठ समझाते हैं। मनुष्य तो गाते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। खुद कहते हैं हमारे में गुण नहीं हैं। अब तुम बच्चों को फिर 100 प्रतिशत सर्वगुण सम्पन्न बनना है। कहते हैं अपने दिल दर्पण में देखो। जब सर्वगुण सम्पन्न बनेंगे तब ही तुम श्री लक्ष्मी वा श्री नारायण को वर सकेंगे। पहले-पहले तो बाप का परिचय देना चाहिए। ऐसा जो बेहद का बाप है जिसके लिए गाते हैं तुम मात-पिता...... उस परमपिता की बड़ी महिमा है। कहते हैं शिवाए नम:, अब वह तो स्वर्ग का रचयिता है। जरूर हमको बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने का हक है। बेहद के बाप का वर्सा स्वर्ग की बादशाही है जो हमको देते हैं। भारत को स्वर्ग की बादशाही थी, अभी नहीं है। जरूर बाप से ही मिली थी। भारत ही सचखण्ड बनता है। सच शिवबाबा का यह जन्म स्थान है - यह कोई नहीं जानते। शिव रात्रि गाई जाती है वह कौनसी? कृष्ण की भी रात्रि, शिव की भी रात्रि दिखाते हैं। कृष्ण का तो माँ के गर्भ से जन्म हुआ है। शिवबाबा के लिए जन्माष्टमी तो वास्तव में नहीं कहेंगे। शिवबाबा आते ही तब हैं जब ब्रह्मा की रात होती है। रात के बाद दिन अर्थात् कलियुग का अन्त और सतयुग की आदि होती है। इसको कहा जाता है घोर अन्धियारी रात। यह बेहद की बात हो गई। हद की रात तो होती ही है परन्तु कलियुग अन्त को घोर अन्धियारा कहा जाता है। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया......। सतगुरू ज्ञान सूर्य बाप को कहा जाता है। पहले-पहले तो बाप और वर्से का परिचय देना है। समझो कोई बादशाह को बच्चा नहीं है, किसी गरीब के बच्चे को गोद में लेता है तो बच्चा दिल में जानता है ना कि मैं गरीब था, अब मैं बादशाह का बच्चा हूँ। तुम भी जानते हो हम रावण का बनने से बहुत गरीब, कंगाल बन गये थे। अभी हम बेहद के बाप के बने हैं। उनसे हमें स्वर्ग का वर्सा मिलता है। यह अच्छी तरह परिचय देना है और फिर लिखाकर लेना है हमको बेहद बाप से बेहद का वर्सा मिलता है। यह ज्ञान और कोई दे नहीं सकता। सन्यासी तो घरबार छोड़ जाते हैं। वह फिर माँ, बाप, चाचा, मामा आदि कहलाने से निकल गये, ख़लास। यहाँ तो गृहस्थ धर्म की बात है। वह गृहस्थ धर्म का त्याग करते हैं।
तुम बच्चों को बाप समझाते हैं - तुम सो देवी-देवता गृहस्थ धर्म में थे, सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी थे और तुम स्वर्ग के मालिक भी थे। फिर पूज्य से तुम पुजारी बन अपनी पूजा भी करते हो। जब तुम पूज्य सो देवी-देवता हो तो तुमको वहाँ पूजा करने की दरकार नहीं है। वैसे ही भारत देवी-देवताओं का पूज्य कुल था। अभी पूज्य से पुजारी बने हो। फिर तुम बच्चों को पुजारी से पूज्य देवी-देवता बनना है इसलिए ही गाया जाता है आपेही पूज्य, आपेही पुजारी। बाप पूज्य और पुजारी नहीं बनते। बाप तो सदा पूज्य है ही। भक्ति मार्ग में ब्राह्मण लोग मन्दिर में शिवलिंग रखते हैं फिर बाप की बैठ पूजा करते हैं। हम उनके बच्चे हैं। हे परमपिता परमात्मा, ऐसे कहेंगे ना। वह तो है निराकार, आत्मा भी है निराकार। शिव के पास जाते हैं तो कहते हैं परमपिता परमात्मा निराकार शिव। यह आत्मा ने कहा इन आरगन्स द्वारा। अभी तुम बच्चे यह भी जान गये हो कि जो अच्छे कर्तव्य करके जाते हैं तो उन्हों की महिमा की जाती है। अभी तुम मात-पिता उस निराकार को ही कहते हो। तुम्हारे सहज राजयोग और ज्ञान की शिक्षा से हम सुख घनेरे पायेंगे। उसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। कितनी सहज बात है। तुम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे बी.के. प्रैक्टिकल में हो, सम्मुख बैठे हो। शिवबाबा और ब्रह्मा बाबा दोनों के सम्मुख हो। शिवबाबा को अपना शरीर तो है नहीं। तुम जानते हो शिवबाबा इनके मुख द्वारा राजयोग सिखला रहे हैं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह कैसे कहेगा कि देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो, अपने को आत्मा समझो। यह कृष्ण तो कह न सके। यह तो बाप ही कह सकते हैं। तो यह बड़ी भूल हुई है ना। लक्ष्मी-नारायण से लेकर यथा राजा-रानी तथा प्रजा उन सबको तो सुख मिला हुआ था। वही सब 84 जन्म ले तमोप्रधान बने हैं। मूल लक्ष्मी-नारायण हुए ना। यथा राजा रानी तथा प्रजा। अभी फिर तुम आकर शूद्र से ब्राह्मण बने हो। यह तुम्हारा लीप जन्म है। लीप कहा जाता है धर्माऊ को। तुम जानते हो हमारा यह ईश्वरीय जन्म है।
दिन-प्रतिदिन बाबा नई-नई प्वाइन्ट्स समझाते रहते हैं। जहाँ तक जीना है अन्त तक तुमको पढ़ना है। प्वाइंट्स निकलती रहेंगी, एड होती जायेंगी। ज्ञान यज्ञ भी अन्त तक चलना है। रूद्र यज्ञ रचते हैं, मिट्टी के सालिग्राम बनाकर उनकी बैठ पूजा करते हैं। आत्मा की पूजा होती है। तुम जीव आत्माओं ने ही भारत को सिरताज बनाया है, तो आत्माओं की पूजा करते हैं। परमपिता परमात्मा बाप के साथ तुम भी सर्विस कर रहे हो तो शिवलिंग के साथ सालिग्राम भी बनाते हैं। तो मुख्य पहले-पहले बाप का परिचय देना है। शिवबाबा ने जन्म लिया परन्तु माता के गर्भ से थोड़ेही जन्म लेते हैं। वह है ही निराकार।
जैसे कोई शरीर छोड़ देता है फिर उनकी आत्मा को बुलाते हैं - श्राध खाने के लिए। तो आत्मा को खिलाते हैं ना। आत्मा ही स्वाद लेती है। कडुवा, मीठा, दु:ख-सुख यह आत्मा को भासता है। आत्मा में ही संस्कार हैं। आत्मा को सुख वा दु:ख तब भासता है जबकि शरीर है। बाबा ने समझाया है सज़ा कैसे मिलती है। सूक्ष्म शरीर भी नहीं, स्थूल शरीर धारण कराए सजा देते हैं। गर्भजेल में सज़ा खाते हैं। त्राहि-त्राहि करते हैं। बस, मुझे बाहर निकालो। गर्भ महल का भी मिसाल दिया हुआ है। बाहर निकलने नहीं चाहते थे। यह दृष्टान्त है। सतयुग में गर्भ भी महल बन जाता है। वहाँ कोई पाप होता नहीं।
अभी तुम जानते हो पतित कैसे हुए हैं। नाम ही है अजामिल जैसे पतित। बहुत पाप करते हैं। पावन माना निर्विकारी। मूल बात ही विकार की है इसलिए पावन बनने के लिए सन्यासी घरबार छोड़ देते हैं तो उनको महात्मा कहते हैं। मनुष्य सब पतित हैं इसलिए गाते रहते हैं पतित-पावन सीताराम, रघुपति राघव राजा राम...... अब राजा राम तो शिवबाबा को नहीं कहेंगे। राम परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। राजा राम नहीं। मैं तो राजा-महाराजा बनता नहीं हूँ। श्री लक्ष्मी महारानी, नारायण महाराजा तुम बनते हो, हम नहीं। मैं तो निराकार पुनर्जन्म रहित हूँ। शरीरधारी जो हैं वह सब पुनर्जन्म लेते रहते हैं। बाप कहते हैं मैं हूँ निराकार। मुझे भी प्रकृति का आधार लेना पड़ता है। मैं गर्भ में प्रवेश नहीं करता हूँ, मैं इनमें प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते हैं।
बाप बैठ समझाते हैं तुम सो देवी-देवता थे, फिर शूद्र बने, अभी तुम सो ब्राह्मण बने हो। मैं तुमको समझाता हूँ। तुम अपने जन्मों को नहीं जानते। जो ब्राह्मण बनेंगे वही आकर समझेंगे। बाप कहते हैं इस प्रकार तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं। कहा जाता है 21 पीढ़ी का वर्सा। बेहद का बाप, बेहद सुख का वर्सा देंगे ना। लौकिक बाप से तो अल्पकाल का सुख मिलता है। अमरलोक में आदि-मध्य-अन्त सुख है। यहाँ आदि-मध्य-अन्त दु:ख है। तुम पार्वतियों को अमरनाथ शिवबाबा अमरकथा सुनाते हैं। सत्य नारायण की कथा भी वह सुनाते हैं। ज्ञान का तीसरा नेत्र देने की कथा है। भारतवासी सदा सुखी थे, बहुत पवित्र थे। पवित्रता, हेल्थ, वेल्थ थी। कभी कोई बीमार नहीं पड़ते थे। नाम ही है स्वर्ग। भारत प्राचीन स्वर्ग था और कोई धर्म खण्ड आदि वहाँ नहीं थे। झाड़ का थुर तो होगा ना। थुर में कौन रहते थे? बरोबर देवी-देवताओं के चित्र हैं। वह था फाउन्डेशन। परन्तु अपने को देवी-देवता धर्म वाले कहलाते नहीं। अभी उन्हों की राजधानी स्थापन हो रही है। तुम सतयुग का, राधे कृष्ण का जोड़ा बन सकते हो। आओ तो हम आपको समझायें - तुम सच-सच स्वर्ग का प्रिन्स कैसे बन सकते हो! इस समय तो सब पतित हैं, कोई भी युक्ति से लिख सकते हो। कहते हैं सब धर्म मिलकर एक हो जाएं परन्तु यह कैसे हो सकता? एक धर्म तो सतयुग में ही था, एक मत एक भाषा थी। ताली नहीं बजती थी। विश्व के मालिक थे, और कोई धर्म नहीं था। वह कैसे बने, फिर और धर्म कैसे आये - यह कोई भी बुद्धि नहीं चलाते हैं। जब बिल्कुल ही पतित बन जाते हैं तब ही पतित-पावन बाप आते हैं और धर्मों की पावन आत्मायें ऊपर से आती है। पहले धर्म स्थापक खुद आते हैं फिर अपने पिछाड़ी औरों को बुलाते हैं, आओ। उनको तो सतो, रजो, तमो में आना है। जो भी आते हैं सबको सतो, रजो से फिर तमो बनना ही है। परन्तु अभी तुम पतित से पावन बनते हो। सब बुलाते हैं - गॉड फादर आओ, आकरके हमको हेविन में ले जाओ। वह हेविन कोई मुक्ति को, कोई जीवनमुक्ति को समझते हैं। तुम समझते हो हेविन जीवनमुक्ति को कहा जाता है। तुम्हारा सैपलिंग लग रहा है। वह फिर जंगल के कांटों का सैपलिंग लगा रहे हैं। रात-दिन का फ़र्क है। उनका भी उत्सव मनाते हैं। वनोत्सव, झाड़ उगाने के लिए उत्सव मनाते हैं। तुम दैवी धर्म स्थापना का अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाने का रोज़ उत्सव मनाते हो। रोज़ मनुष्य से देवता बनाने का पुरुषार्थ करते हो। कांटों से फूल बनाना - यह तुम्हारा रोज़ का उत्सव होता है। बागवान फिर जरूर इतना इनाम भी देंगे।
बच्चों ने गीत सुना - हे प्राणी अपने दिल दर्पण में देखो - तुम स्वर्ग के देवी-देवता बनने अथवा लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? कोई अवगुण तो नहीं है? भल त़ूफान तो खूब आयेंगे। माया छोड़ती कोई को नहीं है। बड़े-बड़े दीपकों को भी बुझा देती है। उल्टे-सुल्टे संकल्प तो खूब वार करेंगे। मजबूत रहना है। इसमें मुरझाने की बात नहीं है। बाप से योग तोड़ नहीं देना है। सबका खिवैया वह बाप है। विषय वैतरणी की बड़ी खाड़ी है। उसे तुम योगबल से पार करते हो। विषय सागर से पार होकर तुम क्षीरसागर में चले जायेंगे। विष्णु का राज्य क्षीरसागर में है अर्थात् घी की नदी बहती है। यहाँ तो घासलेट की, रक्त की नदियां बहती हैं।
तुम बच्चे जानते हो शिवबाबा की श्रीमत से हम शिवालय में जा रहे हैं, जहाँ हम सदैव सुखी रहेंगे। तुम सदा सुखी थे, माया ने दु:खी बनाया है। गृहस्थ व्यवहार को अधर्मी बना दिया है। वहाँ है गृहस्थ व्यवहार धर्मी। अभी तुमको बाप श्रेष्ठाचारी दैवी गृहस्थ धर्म वाला बना रहे हैं। पहले-पहले मुख्य है बाप का परिचय। तुम बाप का बनने से स्वर्ग का मालिक बन सकते हो। यह तो दु:खधाम है। तुम स्वर्ग में जाते हो वाया मुक्तिधाम इसलिए शिवपुरी, विष्णुपुरी को याद करो। याद करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी। यह याद रखो - हमारे 84 जन्म पूरे हुए। फिर हम कल आकर राज्य करेंगे, दिल दर्पण में अपनी शक्ल देखते रहो, कोई अवगुण तो हमारे में नहीं है? अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) योगबल से विषय वैतरणी की बड़ी खाड़ी को पार करना है। उल्टे संकल्पों में मुरझाना नहीं है। मजबूत रहना है।
2) पूज्यनीय बनने के लिए बाप के साथ भारत को सिरताज बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:-
सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को सदा सुख की अनुभूति कराने वाले मास्टर सुखदाता भव
आप सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो इसलिए सुख का खाता जमा करते रहो। सिर्फ यह चेक नहीं करो कि आज सारे दिन में किसी को दु:ख तो नहीं दिया? लेकिन चेक करो कि सुख कितनों को दिया? जो भी सम्पर्क में आये आप मास्टर सुखदाता द्वारा हर कदम में सुख की अनुभूति करे, इसको कहा जाता है दिव्यता वा अलौकिकता। हर समय स्मृति रहे कि इस एक जन्म में 21 जन्मों का खाता जमा करना है।
स्लोगन:-
एक बाप को अपना संसार बना लो तो अविनाशी प्राप्तियाँ होती रहेंगी।
29/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have to become 100% full of all virtues. Look in the mirror of your heart and see to what extent you have become pure.
Question:
What ceremony do you children celebrate every day and what ceremony do people of the world celebrate every day?
Answer:
Every day you celebrate the festival of establishing the deity religion, that is, of making Bharat into heaven. Every day you have to plant the sapling of changing human beings into deities. Those people plant saplings of thorns in a forest and call it a tree-planting ceremony. You celebrate the festival of changing thorns into flowers every day. No one else can celebrate a festival in the same way as you.
Song:
See your face in the mirror of your heart.
Om Shanti
Who said this? Here, it is a personal meeting of the Father and children. You children have now received the divine eye, the third eye of knowledge, with which you can see because all souls are impure and sinful. The Father gives shrimat to make impure ones pure. You have to understand who it is who is giving you shrimat. He is the one who speaks to you souls. Souls know whether they have performed good or bad actions through their bodies. Baba is now giving you children this understanding. It is definite that all of you were impure. You can now see to what extent you have become pure and how many divine virtues you have imbibed. The one who inspires you to imbibe divine virtues is the Father, the Ocean of all Virtues. He sits here and explains to you. People sing: I am without virtue. We have no virtues. They say of themselves that they don't have any virtues. You children now have to become 100% full of all virtues. He says: Look in the mirror of your heart. Only when you become full of virtues will you be able to marry Shri Lakshmi or Shri Narayan. First of all you have to give the Father's introduction. He is the unlimited Father and it is to Him that you sing: You are the Mother and Father. There is great praise of that Supreme Father. People say: Salutations to Shiva. He is the Creator of heaven. We definitely have the right to claim the inheritance from the Father. The inheritance from the unlimited Father is the sovereignty of heaven, which He gives to us. Bharat did have the sovereignty of heaven but doesn't have it now. It definitely did receive it from the Father. Bharat becomes the land of truth. No one knows that this is the birthplace of Shiv Baba, the Truth. Shiv Ratri is remembered. What night is it? They show the night of Krishna and also the night of Shiva. Krishna took birth from his mother's womb. You wouldn't say that there is Janamashtmi for Shiv Baba. Shiv Baba comes when it is the night of Brahma. After the night, the day comes, that is, it is the end of the iron age and the beginning of the golden age. This is called the extremely dark night. This is an unlimited aspect. There are limited nights, but the end of the iron age is called extreme darkness, when the Satguru gives the ointment of knowledge. The Satguru, the Father is called the Sun of Knowledge. First of all, you have to give the introduction of the Father and the inheritance. For instance, when an emperor doesn't have a son, he would adopt the son of a poor person and the child would know in his heart that he was poor and that he has now become the son of an emperor. You too know that you became very poor and poverty-stricken by belonging to Ravan. You now belong to the unlimited Father. You are receiving the inheritance of heaven from Him. You have to give this introduction very clearly and also get them to put it in writing: We are receiving the unlimited inheritance from our unlimited Father. No one else can give this knowledge. Sannyasis leave their homes and families and go away. They have become free from being called father or uncle etc. Here, it is a matter of the household path. They renounce the household path. The Father explains to you children: You were deities on the household path. You were full of all virtues and were viceless and you were also the masters of the world. Then, from being worthy of worship, you became worshippers and also worshipped yourselves. When you are worthy-of-worship deities, you don't need to worship there. In the same way, Bharat was the worthy-of-worship clan of deities. From being worthy of worship you became worshippers. Now, once again, you children have to become worthy-of-worship deities from worshippers. This is why it is remembered: You are worthy of worship and you are worshippers. The Father doesn't become worthy of worship or a worshipper. The Father is always worthy of worship. On the path of devotion, brahmin priests place a Shivalingam in a temple and they sit and worship the Father. We are His children. We would say: O Supreme Father, Supreme Soul! He is incorporeal and souls are also incorporeal. When people go to Shiva, they say: Supreme Father, Supreme Soul, incorporeal Shiva. The soul says this through these organs. You children now know that those who pass away having performed good actions are praised. You only say “Mother and Father” to that incorporeal One. With your easy Raja Yoga and the teachings of knowledge, we will have an abundance of happiness through the teachings of Your Raja Yoga and easy knowledge. You are making effort for that. This is so easy. You are BKs, children of Prajapita Brahma, in a practical way. You are sitting personally in front of Him. You are personally in front of both Shiv Baba and Brahma Baba. Shiv Baba doesn't have a body of His own. You know that Shiv Baba is teaching you Raja Yoga through the mouth of this one. Krishna is a small child. How could he say: Forget your body and bodily relationships and consider yourself to be a soul? Krishna cannot say this. Only the Father can say this. So this is a big mistake that they have made. Everyone, from Lakshmi and Narayan to all the subjects, received happiness. They are the ones who took 84 births and became tamopradhan. The main ones are Lakshmi and Narayan. As are the king and queen, so the subjects. You have now become Brahmins from shudras. This is your leap birth. The leap birth is said to be the righteous birth. You know that this is your Godly birth. Day by day, Baba continues to explain new points to you. You have to study as long as you live, till the end. Points will continue to emerge and will continue to be added. The sacrificial fire of knowledge has to continue till the end. When people create a sacrificial fire of Rudra, they create saligrams of clay and worship them. The souls are worshipped. You embodied souls have made Bharat into the crown on the head. Therefore, you souls are worshipped. You do service with the Supreme Father, the Supreme Soul, and so, along with a Shivalingam, they also create saligrams. So, first of all, the main thing is to give the Father's introduction. Shiv Baba took birth, but He doesn’t take birth from the womb of a mother. He is incorporeal. For instance, when someone sheds his body, they invoke that soul to eat special food made for the departed spirit. Therefore, they feed the soul; it is the soul that tastes the food. It is the soul that feels happiness or sorrow and whether something is bitter or sweet. Sanskars are in the soul. A soul experiences happiness or sorrow when he is in a body. Baba has explained to you how punishment is received. It isn't a subtle body; you are made to adopt a physical body and are then punished. Punishment is experienced in the jail of a womb. That soul cries out in distress: “That’s enough! Let me out!" There is the example of the palace of a womb. The soul didn't want to come out. That is just an example. In the golden age, the womb becomes a palace. There is no sin there. You now know how you became impure. The very saying is: As sinful as Ajamil. He committed a lot of sin. Pure means viceless. The main thing is vice. This is why sannyasis leave their homes and families in order to become pure and why they are called great souls. All human beings are impure and this is why they continue to sing: Rama, who belongs to Sita, is the Purifier. King Rama is the one who belonged to the Raghav (elevated) clan. Shiv Baba would not be called King Rama. The Supreme Father, the Supreme Soul, is called Rama, not King Rama. I do not become a king or an emperor. You become Shri Lakshmi, the empress, and Shri Narayan, the emperor; I don’t become that. I am incorporeal, beyond rebirth. All bodily beings continue to take rebirth. The Father says: I am incorporeal. I too have to take the support of matter. I do not enter a womb. I enter this one. This one doesn't know about his own births. The Father sits here and explains: You were deities and you then became shudras and have now become Brahmins. I explain this to you. You do not know your own births. Only those who become Brahmins will come and understand. The Father says: You have completed 84 births in this way. It is said: The inheritance of 21 generations. The unlimited Father would give you the inheritance of unlimited happiness. You receive temporary happiness from physical fathers. In the land of immortality, you have happiness from the beginning through the middle to the end. Here, there is sorrow from the beginning through the middle to the end. Shiv Baba, the Lord of Immortality, is telling you Parvatis the story of immortality. He is also the One who tells you the story of the true Narayan. This is the story of giving you the third eye of knowledge. The people of Bharat were constantly happy. They were very pure. They had purity, health and wealth. No one was ever ill. The very name is heaven. Ancient Bharat was heaven and there were no other religions or lands there. The tree would definitely have a trunk. Who used to be the trunk? There are in fact images of the deities. That was the foundation, but they didn't call themselves those who belong to the deity religion. Their kingdom is now being established. You can become a couple like Radhe and Krishna of the golden age. Come and we will explain to you how you can truly become princes of heaven. At this time, all are impure. You can write this tactfully. They say that all religions should unite and become one, but how is that possible? Only in the golden age was there just the one religion. There was one direction and one language. There wasn't any conflict there. They were the masters of the world. There was no other religion. No one uses his intellect to find out how they became that or how the other religions came into existence. When the pure souls of other religions have come down from up above and have become completely impure, it is then that the Purifier Father comes. First of all, the founders of religions come and then they ask others to come. They have to go through the stages of sato, rajo and tamo. Everyone who comes has to become tamo by passing through the sato and rajo stages. However, you are now becoming pure from impure. Everyone calls out: God, the Father, come! Come and take us to heaven. Some consider liberation to be heaven and others consider liberation-in-life to be heaven. You understand that heaven is liberation-in-life. Your sapling is being planted. Those people are now planting saplings of thorns in forests. There is the difference of day and night. They have ceremonies of that too, they have tree planting ceremonies. Every day you celebrate the ceremony of establishing the deity religion, that is, of making Bharat into heaven. You make effort every day to change human beings into deities. It is your everyday ceremony to change thorns into flowers. The Master of the Garden will then definitely give you such a reward too. You children heard in the song: O soul, look in the mirror of your heart! Have you become worthy of becoming a deity of heaven, that is, of marrying Lakshmi or Narayan? You don't have any defects, do you? Many storms will come; Maya doesn't leave anyone alone. She even extinguishes the big lamps. Wrong types of thought will attack you a great deal. You have to remain strong. There is no question of wilting in this. You mustn't break your intellect's yoga away from the Father. That Father is everyone’s Boatman. This is a big canal of poison. You cross it with the power of yoga. You go across the ocean of poison and go to the ocean of milk. The kingdom of Vishnu is in the ocean of milk, that is, rivers of ghee flow there. Here, rivers of kerosene and blood flow. You children know that by following Shiv Baba's shrimat, you are going to Shivalaya where you will remain constantly happy. You were constantly happy and then Maya made you unhappy. The household path has been made unrighteous. There, the household path is righteous. The Father is now making you into beings who belong to the elevated divine household path. First of all, the main thing is to give the Father's introduction. By belonging to the Father you can become the masters of heaven. This is the land of sorrow. You go to heaven via the land of liberation and this is why you have to remember the land of Shiva and the land of Vishnu. By remembering them, your final thoughts will lead you to your destination. Remember that your 84 births are now coming to an end. Then, tomorrow, we will come and rule. Continue to look at your face in the mirror of your heart: Do I have any defects in me? Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Cross the big channel of poison with the power of yoga. Don't wilt with wrong thoughts. Remain strong.
2. In order to become worthy of worship, serve with the Father to make Bharat into the crown.
Blessing:
May you be a master bestower of happiness and constantly give the experience of happiness to all souls who come into connection with you.
You are master bestowers of happiness, children of the Bestower of Happiness, and so you have to continue to accumulate in your account of happiness. Do not just check whether you caused anyone sorrow throughout the day, but check as to how many you gave happiness to. Let whoever comes into connection with you master bestowers of happiness experience happiness at every step. This is known as divinity and spirituality. Let there be the awareness at every step that you have to accumulate enough for 21 births in this one birth.
Slogan:
Make the one Father your world and you will continue to have imperishable attainments.
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