Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali 28th Sep 2018 )
28-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हारा किसी से भी वैर नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम हो सबके कल्याणकारी, वैर रखने वाले को हाफ कास्ट ब्राह्मण कहेंगे''
प्रश्नः-
कौन सी स्मृति बुद्धि में सदा रहे तो निर्भय बन जायेंगे?
उत्तर:-
सदा स्मृति में रहे कि हम सचखण्ड के मालिक देवी-देवता बन रहे हैं, शरीर को कोई मारता भी है लेकिन आत्मा को मार नहीं सकता। गोली शरीर को लगती है। मैं आत्मा तो जा रही हूँ बाबा के पास, हमको क्या डर है। हम बैठे हैं, छत गिर जाती है, हम बाबा के पास चले जायेंगे। इसमें डरने की कोई बात नहीं। ऐसा निर्भय बनना है।
गीत:-
माता ओ माता........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने जगत अम्बा की महिमा सुनी। अब मनुष्य तो सिर्फ गाते रहते हैं जगत अम्बा के मेले लग रहे हैं। यह फिर है संगम। बच्चों का बाप के साथ मेला। बाप है तो माँ जरूर है। भारत में जगत अम्बा की जीवन कहानी कोई भी जानते नहीं। जगत को रचने वाली अर्थात् जगत अम्बा। जगत अम्बा के मन्दिर भी हैं। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। अभी तुम बच्चे जानते हो, जिसका यादगार बना हुआ है वह जरूर सृष्टि के संगम पर आये होंगे। इनको जगत अम्बा कहा जाता है। जगतपिता, प्रजापिता भी है ना।
इस बेहद ड्रामा का आदि-मध्य-अन्त क्या है और मुख्य एक्टर्स कौन-से हैं - यह कोई नहीं जानते। हीरो-हीरोइन भी एक्टर होते हैं ना। सिर्फ दो नहीं होंगे। जरूर उनकी सेना होगी। जगत अम्बा की भी सेना होगी। उनको शक्तियां भी कहा जाता है। शक्ति सेना नामीग्रामी है। शक्ति कहाँ से आई? जरूर सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा से ही शक्ति ली होगी - यह तो सब मानते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् है। उनको ही सत श्री अकाल कहते हैं। अकाली जो होते हैं वह निराकार को मानने वाले होते हैं। सिक्ख ग्रन्थी गुरुनानक को मानते हैं। कहते हैं गुरुनानक देव हैं। उनकी जो पीढ़ी होती है उनके 10 बादशाहों के नाम भी भिन्न-भिन्न हैं। कोई का सिंह, कोई का दास, कोई का चन्द भी नाम होगा। सबके नाम भिन्न-भिन्न हैं और अकाली जो हैं वह अकालमूर्त को मानते हैं। सत श्री अकाल - यह किसकी महिमा की? परमपिता परमात्मा की। तो सिद्ध करते हैं सत सिर्फ एक श्री श्री अकालमूर्त परमात्मा ही है। तुम कह सकते हो सत श्री अकाल। तुम उनको जानते हो। वह सिर्फ अक्षर कह देते, अर्थ कुछ भी नहीं जानते। तुम तो जानते हो सत श्री अकाल को। उनकी बायोग्राफी को भी तुम जानते हो। विचार सागर मंथन भी तुम बच्चों को करना है। बाप तो ज्ञान का सागर है। उसने कलष माताओं को दिया है। यह है बड़ी मम्मा और फिर तुम अनेक मातायें हो। जगत अम्बा की अनेक बच्चियां और बच्चे हैं। यह जगत अम्बा है फिर पिता भी जरूर है। तुम जानते हो यह जगत अम्बा कौन है, किसकी बच्ची है? हैं तो मनुष्य, 8-10 भुजायें तो नहीं हैं। इतनी भुजायें क्यों दी हैं - यह किसको पता नहीं। तो ऊंच ते ऊंच वह सत परमात्मा है। तुम बच्चों को समझाया गया है - परमपिता परमात्मा जिसको हम रूप-बसन्त कहते हैं, रूप भी है और फिर बसन्त, ज्ञान सागर है। इतना छोटा-सा स्टॉर, वह ज्ञान सागर है। वन्डर है ना। बच्चों को समझाया है - बाप है बिन्दी रूप, उसमें बरोबर सारा पार्ट है। भक्ति मार्ग में भक्तों की भावना पूरी करते हैं। यह सारी ड्रामा में नूँध है। जिस समय जिसकी जो भावना है वह ड्रामा में पहले से ही नूँधी हुई है। तुम्हारी यह पढ़ाई भी ड्रामा में नूँध है, जो पार्ट रिपीट हो रहा है। समझने की बात है ना। तुम अच्छी रीति समझा सकते हो - ऊंच ते ऊंच भगवान् सब कहते हैं। वह है निराकार, निर्भय, निर्वैर.... उनका कोई के साथ वैर नहीं है। तुम्हारा भी कोई के साथ वैर नहीं है। तुम सबके कल्याणकारी हो। अगर किसका वैर है तो उनको हाफ कास्ट कहेंगे। आधा शूद्र, आधा ब्राह्मण। यह विकारों की खाद कम्पलीट निकल जायेगी तब सच्चा ब्राह्मण कहेंगे। अभी तो आधा-आधा है। कलियुगी तमोप्रधान संस्कार भरे हुए हैं, वह निकलने हैं। अभी तुमको न देवता, न शूद्र, बीच का ब्राह्मण कहेंगे। वह भी सम्पूर्ण नहीं बने हो। जगत अम्बा को देवता नहीं कहेंगे। जगत अम्बा जब सम्पूर्ण बन जाती है, उसके बाद देवता बनती है। अभी ब्राह्मण है। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती है। परन्तु यह कोई नहीं जानते। ब्रह्मा कब आया जो मुख-वंशावली रचना रची? उसको ही शिवशक्ति सेना कहा जाता है। तो तुम जानते हो वह ऊंच ते ऊंच बाप परमपिता, परमधाम में रहने वाले हैं। फिर सूक्ष्मवतन में हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। प्रवृत्ति मार्ग होने कारण वह भी युगल दिखाते हैं। विष्णु को पूरा युगल दिखाते हैं। यह सब बुद्धि में रहना चाहिए। मनुष्य कहेंगे हम एक्टर हैं। तो मनुष्यों को ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का मालूम होना चाहिए ना। ऊंच ते ऊंच भगवान् कौन है? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कौन हैं? क्या और भी 8-10-100 भुजा वाला कोई है? नहीं, यह सब चित्र फालतू हैं। ब्रह्मा की 100 भुजा दिखाते हैं। अब यह तो प्रजापिता है, 100 भुजा की तो बात ही नहीं। यह सब रांग है। राइट वास्तव में क्या है, वह भी समझना चाहिए। ऊंच ते ऊंच भगवान् जो परमधाम में रहते हैं, है स्टॉर। विष्णु को भी 4 भुजा दिखाई हैं - दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की। जैसे रावण के 10 शीश दिखाते हैं, 5 स्त्री के विकार और 5 पुरुष के। पहले-पहले मुख्य विकार है देह-अभिमान। फिर और विकार नम्बरवार आते हैं। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा तो है अव्यक्त। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ चाहिए ना। यह जब सम्पूर्ण बन जाते हैं तो सूक्ष्मवतन में फरिश्ते बन जाते हैं। तुम भी फरिश्ते बन जाते हो। वहाँ तुम्हारा शरीर हड्डी-मास का नहीं होता है। उनको फरिश्ता कहा जाता है। ब्रह्मा तो प्रजापिता यहाँ है। फिर विष्णु दो रूप से पालना करेंगे। शंकर तो है सूक्ष्मवतन में। यह बड़ी समझने की बातें हैं। इतनी दूरांदेशी बुद्धि कोई की है नहीं। तुम्हारी बुद्धि एकदम मूलवतन, सूक्ष्मवतन तक चली गई है। सूक्ष्मवतन अब रचा हुआ है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी रचना हुई है, जहाँ तक आ-जा सकते हो। तो ऊंच ते ऊंच भगवान् फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर यह मनुष्य सृष्टि में देवी-देवतायें। बाकी 8-10 भुजा वाले वा चण्डिका देवी आदि तो हैं नहीं। इतने सब चित्र कहाँ से आये? तुम्हारे पास कोई हथियार थोड़ेही हैं। यह सब हिंसक हथियार बैठ बनाये हैं। देवता तो होते हैं डबल अहिंसक। सूक्ष्मवतन में कोई हथियार आदि होते नहीं। चित्रों में कितने हथियार दिये हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। आक्यूपेशन को कोई जानते नहीं। बाबा आकर ब्रह्मा द्वारा नई रचना रचते हैं। तो खुद बड़ा हो गया ना। तुम हो उनकी सन्तान पोत्रे और पोत्रियां। समझने वाले समझते भी हैं परन्तु फिर यह नहीं समझते कि सबकी मौत होनी है। अभी भी कितने मरते रहते हैं। अ़खबारों आदि में कोई दिखलाते थोड़ेही है, नहीं तो नाम बदनाम हो जाये। भूख बहुत मरते हैं। एक समय मुश्किल से दो रोटी मिलती है। तुम बच्चे जान गये हो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। दो भुजा वाले ही मनुष्य हैं। बाकी सतयुग में कोई 8-10 भुजा वाली देवियाँ नहीं होती हैं। सेकेण्ड नम्बर में हैं राम-सीता। वह भी यहाँ राजयोग से पद पा रहे हैं। कितनी सहज बात है समझने की। बाप कहते हैं तुमने बहुत वेद-शास्त्र पढ़े हैं, अब तुम मेरे से सुनो और जज करो - मैं तुम्हें सत्य सुनाता हूँ या वह सत्य सुनाते हैं? अगर वह सत्य सुनाते हैं तो तुम सत्य नारायण की कथा से सत्य नारायण क्यों नहीं बने हो?
अभी तुम प्रैक्टिकल में सत्य बाबा से सत्य कथा सुन रहे हो - नारी से लक्ष्मी, नर से नारायण बनने की यह कथा है। जरूर प्रजा भी बनेगी कि सिर्फ लक्ष्मी-नारायण जाकर तख्त पर बैठेंगे? यह देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन हो रही है। फिर सतयुग में आकर राज्य करेंगे। वहाँ राजाओं को लश्कर आदि कोई होते नहीं। लश्कर विकारी अनहोली राजाओं को होते हैं। वह तो हैं होली राजायें। सतयुग को होली लैण्ड कहा जाता है, इसको अनहोलीलैण्ड कहते हैं। बहुत पुराने पतित हो गये हैं। नये को पुराना बनना ही है। शरीर भी पहले नया फिर पुराना होता है। यह तो बुद्धि में बैठना चाहिए ना। मनुष्य होते हुए भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते। तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच शिवबाबा मूलवतन में रहते हैं। उसको निराकारी दुनिया कहा जाता है। आत्मायें बिन्दियां भी वहाँ रहती हैं। परन्तु बिन्दी रूप ही दें तो कोई समझ कैसे सके? बिन्दी की पूजा कैसे करेंगे? शिवबाबा के बिन्दी रूप की पूजा कैसे करें? तिलक कैसे लगायें? बाबा अमरनाथ पर भी गये हुए हैं। बाबा सारा देखकर आये थे कि कैसे शिवलिंग बनाते हैं। कहते हैं वहाँ पार्वती को शंकर ने कथा सुनाई। अब पार्वती ने किस दुर्गति को पाया था जो उनको बैठ कथा सुनाई? वास्तव में तुम सब पार्वतियाँ हों। तुम जन्म-मरण में आते हो और सद्गति को पाने के लिये कथा सुन रहे हो। तो वहाँ पूछा शिवलिंग कहाँ है? तो बोला शिवलिंग तो आपेही निकल आता है। अरे, यह कैसे होगा! वहाँ कबूतर भी दिखाते हैं। कबूतर (पिज़न) बात करना कभी सीखते नहीं। तोते को बात करना सिखलाते हैं तो वह बोलते हैं। कण्ठी पड़ जाती है। तुम ज्ञान की कण्ठी पहनते हो। तो बाबा ने समझाया है ऊंच ते ऊंच तो है शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। प्रवृत्ति मार्ग दिखाने लिये विष्णु को 4 भुजायें दिखाते हैं। यहाँ मनुष्य सृष्टि में ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण और उनकी राजधानी फिर राम-सीता की डिनायस्टी। यह होली डिनायस्टी पूरी होती है। फिर रावण राज्य शुरू होता है। फिर सबको पतित बनना ही है। बाकी हाँ, पिछाड़ी में जो नई आत्मायें आती हैं उनका कुछ प्रभाव निकलता है। किसका सतोप्रधानता का, किसका रजो-तमो का पार्ट है। यह बेहद का ड्रामा है। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। बाकी सब है गुड़ियों की पूजा। तुम एक्टर्स हो ना। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। पढ़ाई से मनुष्य कितना ऊंच पद पाते हैं। यह भी पढ़ाई है, जिससे तुम राज्य पद पाते हो। ऐसी पढ़ाई कोई होती नहीं। वह प्रिन्स-प्रिन्सेज तो प्रालब्ध ले आते हैं। तुम यहाँ प्रालब्ध बना रहे हो। भविष्य सतयुग के लिये कितनी ऊंच और फिर सहज नॉलेज है - सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। हम बेहद बाप के बच्चे हैं, ईश्वरीय गोद में बैठे हैं। ईश्वरीय गोद कौन छोड़ेंगे?
तो इस ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को समझना है। बाप तो यथार्थ रीति बैठ समझाते हैं। जो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप गाया जाता है। सत-चित-आनन्द स्वरूप कहा जाता है। जरूर जब आयेंगे तब तो वर्सा देंगे ना। तुम सचखण्ड के मालिक देवी-देवता बनते हो। कोई डर की बात नहीं है। यहाँ तो कितना डर रहता है - कोई चढ़ाई न करे। तुमको तो बिल्कुल निर्भय रहना है। शरीर को कोई मारता है, आत्मा को थोड़ेही मार सकते हैं जो डरना चाहिए। निर्भय होने की बड़ी समझ चाहिए। बाप भी निर्भय तो बच्चे भी निर्भय। गोली शरीर को लगती है, मैं आत्मा तो जा रहा हूँ बाबा के पास, हमको क्या डर है। हम बैठे हैं, छत गिर जाती है, हम बाबा के पास चले जायेंगे। निर्भय होने में टाइम लगता है। तुम हो जगत अम्बा के बच्चे शिव शक्ति सेना। एक की तो महिमा नहीं है। तुम भी साथ हो। यह कमान्डर है। तुमको रूहानी ड्रिल सिखलाते हैं। तुम उनके बच्चे हो। तुम हो लक्की सितारे। यह सरस्वती भी लक्की सितारा है। ब्रह्मा की बेटी है ना। उस ज्ञान सूर्य का चन्द्रमा तो यह (ब्रह्मा) है ना। परन्तु यह मेल होने कारण माता पर कलष रखा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) कलियुगी तमोप्रधान संस्कारों को निकाल सच्चा ब्राह्मण बनना है। किसी से भी वैर नहीं रखना है।
2) निर्भय बनने के लिये आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। हम शिव शक्ति सेना हैं, हमें तो सचखण्ड का मालिक बनना है - इसी नशे में रहना है।
वरदान:-
सूर्यमुखी पुष्प के समान ज्ञान सूर्य के प्रकाश से चमकने वाले सदा सम्मुख और समीप भव
जैसे सूर्यमुखी पुष्प सदा सूर्य की सकाश से घिरा हुआ रहता है। उसका मुख सूर्य की तरफ होता है, पंखुड़ियां सूर्य की किरणों के समान सर्किल में होती हैं। ऐसे जो बच्चे सदा ज्ञान सूर्य के समीप और सम्मुख रहते हैं, कभी दूर नहीं होते - वे सूर्यमुखी पुष्प के समान ज्ञान सूर्य के प्रकाश से स्वयं भी चमकते और दूसरों को भी चमकाते हैं।
स्लोगन:-
सदा हिम्मतवान बनो और सर्व को हिम्मत दिलाओ तो परमात्म मदद मिलती रहेगी।
28/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you should not hold any grudges against anyone, because you are benefactors for everyone. Those who hold grudges against anyone are said to be half-caste Brahmins.
Question:
Which awareness should your intellects always have so that you become fearless?
Answer:
Always have the awareness that you are becoming deities, the masters of the land of truth. Someone can kill a body, but no one can kill a soul. A bullet would hit the body. I, the soul, am going to Baba. Why should I have any fear? While I am sitting here, if the ceiling falls on me, I will go to Baba. There is nothing to be afraid of in this. Become fearless to this extent.
Song:
Mother, o mother, you are bestower of fortune for the world.
Om Shanti
You children heard the praise of Jagadamba. People simply sing this and there are melas to Jagadamba. This is the confluence age; this is the meeting of the children and the Father. Since there is the Father, there is surely also the mother. No one in Bharat knows the life story of Jagadamba, the one who creates the world, that is, the World Mother (Jagadamba). There are also temples to Jagadamba. You children have now received understanding; you have each received a third eye of knowledge. You children know that the one whose memorial is built would definitely have come on to this earth at the confluence age. That one is called Jagadamba. Prajapita is Jagadpita (World Father). No one knows the beginning, middle or end of this unlimited drama or who the main actors are. The hero and heroine are also actors. There wouldn't just be two of them; there would definitely be their army. There would also be the army of Jagadamba; they are called Shaktis. The Shakti Army is well known. Where did they receive power from? They would surely have taken power from the Almighty Authority, the Supreme Father, the Supreme Soul. Everyone believes this. The Highest on High is God. He is called Sat Shri Akal. Akaali people (Sikhs) believe in the incorporeal One. Sikhs study the Granth and believe in Guru Nanak. They say that Guru Nanak is a deity. The names of each generation of their ten successive gurus are all different. Some are called Singh, some are calls Das, and some are called Chand. The names of all of them are different and the Akaalis believe in the Immortal Image. Whose praise is Sat Shri Akal (Truth, Elevated, Immortal)? That of the Supreme Father, the Supreme Soul. So, this proves that the Truth is only One, Shri Shri God, the Immortal Image. You can say: Sat Shri Akal. You know Him. Those people simply say these words but they don't know the meaning of them. You know the One who is Sat Shri Akal. You know His biography. It is you children who have to churn the ocean of knowledge. The Father is the Ocean of Knowledge anyway and He has given the urn to the mothers. This one is the senior mother and then there are you innumerable mothers, you innumerable daughters and sons of Jagadamba. That one is Jagadamba and there is definitely the father as well. You know who Jagadamba is and whose daughter she is. She too is a human being; she doesn't have eight or ten arms. No one knows why she has been shown with so many arms. So the Highest on High is God, the Truth. It has been explained to you children that the Supreme Father, the Supreme Soul, whom we call Rup Basant, is Rup and also Basant, the Ocean of Knowledge. Such a tiny star and yet He is the Ocean of Knowledge! It is a wonder! It has been explained to you children that the Father is a point and that He truly has a whole part in Him. He fulfils the desires of the devotees on the path of devotion. All of this is fixed in the drama. Whatever feelings someone has at whatever time, that is fixed in the drama in advance. This study of yours is also fixed in the drama and this part is now being repeated. This is something to be understood. You can explain very clearly: Everyone says that God is the Highest on High. He is the incorporeal One, the fearless One and the One with no grudges. He doesn't hold any grudges against anyone. You too don't hold grudges against anyone. You are benefactors for everyone. If someone holds a grudge, he would be called a half-caste: half a shudra and half a Brahmin. When this alloy of the vices is completely removed, you will be called true Brahmins. Now you are half and half. Souls are still filled with iron-aged, tamopradhan sanskars and those now have to be removed. At present, you are neither deities nor shudras; you are said to be Brahmins in the middle, and you haven't become complete in that either. Jagadamba cannot be called a deity. When Jagadamba becomes complete she will then become a deity. She is now a Brahmin, the daughter of Brahma: Saraswati. However, no one knows this. When did Brahma come and create the mouth-born creation? They are called the Shiv Shakti Army. You know that He is the highest-on-high Father, the Supreme Father, the Resident of the supreme abode. Then there are Brahma, Vishnu and Shankar in the subtle region. Because of it being the family path, the form of a couple is shown. They show Vishnu as a complete couple. All of this should remain in your intellect. Human beings say that they are actors. So, human beings should know the beginning, the middle and the end of the drama. Who is God, the Highest on High? Who are Brahma, Vishnu and Shankar? Is there anyone else who has eight, ten or a hundred arms? No, all of those pictures are useless. They show Brahma with a hundred arms. This one is the Father of People; there is no question of a hundred arms. All of that is wrong. In fact, you should understand what is truly right. God, the Highest on High, who resides in the supreme abode is a star. Vishnu has been shown with four arms - two arms of Lakshmi and two of Narayan – just as they also show ten heads of Ravan: five vices of woman and five vices of man. The first and foremost vice is body consciousness. Then the other vices enter, numberwise. Brahma, the resident of the subtle region, is avyakt (subtle). Prajapita Brahma (the Father of People) has to be here. When this one becomes perfect, he becomes an angel, a resident of the subtle region. You too become angels. There, your bodies are not of flesh and bone. They are called angels. Brahma is the Father of People here. Then Vishnu will carry out the sustenance through the two forms. Shankar is in the subtle region. These deep matters have to be understood. No one has that far-sighted an intellect. Your intellects have gone right to the incorporeal world and the subtle region. The subtle region where you can go up and come down from has now been created. There has also been the creation of Brahma, Vishnu and Shankar. So the Highest on High is God and then there are Brahma, Vishnu and Shankar and then there are the deities of the human world. However, there aren't any human beings with eight to ten arms or goddesses such as Chandika (cremator goddess). Where did all of those pictures come from? You don't have any weapons. They have sat and created all of those violent weapons. Deities are doubly non-violent. There are no weapons etc. in the subtle region. They have shown so many weapons in those pictures. That is called the worship of dolls. No one knows the occupation of any of them. Baba comes and creates the new creation through Brahma and so He Himself is the Senior. You are his children, grandsons and granddaughters. Those who are to understand, will understand this, but they don't then understand that everyone is to die. Even now, so many continue to die, but no one puts this in the newspapers because, otherwise, their names would be spoilt. So many starve to death. They are hardly able to get two chapattis to eat for a meal. You children know that the kingdom of Lakshmi and Narayan continues in the golden age. They are beings with two arms each. It isn't that there are goddesses with eight or ten arms in the golden age. Rama and Sita are the second number. They too are claiming their status here through Raja Yoga. This is such an easy matter to understand! The Father says: You have studied many Vedas and scriptures. Now, listen to Me and judge for yourself whether I am telling the truth or they tell the truth. If they tell the truth, why have you not become true Narayan by listening to the story of the true Narayan? You are now listening to the true story from the true Baba in a practical way. This story is for you to become Lakshmi from an ordinary woman and Narayan from an ordinary man. Subjects too will definitely be created. Or, is it that just Lakshmi and Narayan will go and sit on the throne? A kingdom of deities is being established. Then, you will go and rule in the golden age. The kings there don't have armies etc. Armies are part of vicious, unholy kings. Those others are holy kings. The golden age is called the holy land and this is called the unholy land; it has become very old and impure. The new definitely has to become old. The body too is new at first and it then becomes old. This should sit in your intellects. Although they are human beings, they don't know the beginning, the middle or the end of the drama. You know that the Highest on High, Shiv Baba, resides in the supreme abode. That is called the incorporeal world. Souls, points also reside there. However, if just the point form is shown, how could anyone understand? How would they worship a point? How would they worship Shiv Baba, a point? How would they apply a tilak? Baba has been to Amarnath. Baba went and saw how they make the Shivalingam there. They say that Shankar told the story to Parvati up on the mountains. What state of degradation did she reach that he sat and told her the story? In fact, all of you are Parvatis. You come into the cycle of birth and death and are listening to the story in order to attain salvation. So, there, he (Brahma) asked: Where is the Shivalingam? He was told: The Shivalingam is self-creating. Oh! but how is that possible? They also show pigeons there. Pigeons never learn how to speak. Parrots are taught how to speak and so they speak. They are able to memorize and repeat things they hear. You wear bead necklaces of knowledge. Baba has explained that the Highest on High is Shiv Baba and that there are then Brahma, Vishnu and Shankar. They show Vishnu with four arms in order to portray the family path. Here, in the human world, the highest on high are Lakshmi and Narayan and their kingdom, and then there is the dynasty of Rama and Sita. That holy dynasty comes to an end and then the kingdom of Ravan begins. Then, everyone has to become impure. However, there is some influence of the new souls that come down at the end. Some have satopradhan parts, some have rajo parts and others tamo parts. This is an unlimited drama. Human beings are human beings. All the rest is the worship of dolls. You are actors. You are now changing from human beings into deities. Human beings attain such a high status by studying. This too is a study through which you attain a royal status. There is no other study like this one. Those princes and princesses brought their reward with them. You are creating your reward here for the future golden age. This is such elevated and easy knowledge: liberation-in-life in a second. We are the children of the unlimited Father and we are sitting in God's lap. Who would leave God's lap? So, the beginning, middle and end of this drama have to be understood. The Father sits here and explains everything correctly to you. He is remembered as the Seed of the human world tree. He is also called the Truth, the Living Being and the Embodiment of Bliss. He would definitely give you the inheritance when He comes. You are becoming deities, the masters of the land of truth. There is no question of fear. Here, there is so much fear that someone may attack you. You have to remain completely fearless. Someone can kill a body, but no one can kill a soul that you should be afraid. Very good understanding is required in order to be fearless. The Father is fearless and the children are also fearless. The bullet would hit the body and I, the soul, would go to Baba. I am not afraid. I am sitting here and, if the ceiling falls in, I will go to Baba. It takes time to become fearless. You are the Shiv Shakti Army, the children of Jagadamba. There isn't praise of just one. You are also with her. That One is the Commander. He teaches you spiritual drill. You are His children. You are lucky stars. This Saraswati is also a lucky star. She is the daughter of Brahma. This one (Brahma) is the moon of the Sun of Knowledge but, because he is male, the urn is placed on the mother. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found, mouth-born creation of Brahma, the decoration of the Brahmin clan, the children who are spinners of the discus of self-realisation, love, remembrance and good morning from the depths of the heart with deep love from the Mother, the Father, BapDada, numberwise, according to the efforts you make, the spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Remove the iron-aged, tamopradhan sanskars and become true Brahmins. Don't hold grudges against anyone.
2. In order to become fearless, practise being soul conscious. Maintain the intoxication: We are the Shiv Shakti Army and we have to become masters of the land of truth.
Blessing:
Like a sunflower facing the sun, may you always be facing and be close to the Father by shinning like the sun of knowledge.
A sunflower is always surrounded by the light of the sun, and it always faces the sun with its petals in a circle like rays of the sun. In the same way, the children who always remain close and facing the sun of knowledge like a sunflower and are never distant shine constantly like a sunflower with the light of the sun of knowledge, and also enable others to shine.
Slogan:
Be constantly courageous and give courage to everyone and you will continue to receive God’s help.
''मीठे बच्चे - तुम्हारा किसी से भी वैर नहीं होना चाहिए क्योंकि तुम हो सबके कल्याणकारी, वैर रखने वाले को हाफ कास्ट ब्राह्मण कहेंगे''
प्रश्नः-
कौन सी स्मृति बुद्धि में सदा रहे तो निर्भय बन जायेंगे?
उत्तर:-
सदा स्मृति में रहे कि हम सचखण्ड के मालिक देवी-देवता बन रहे हैं, शरीर को कोई मारता भी है लेकिन आत्मा को मार नहीं सकता। गोली शरीर को लगती है। मैं आत्मा तो जा रही हूँ बाबा के पास, हमको क्या डर है। हम बैठे हैं, छत गिर जाती है, हम बाबा के पास चले जायेंगे। इसमें डरने की कोई बात नहीं। ऐसा निर्भय बनना है।
गीत:-
माता ओ माता........
ओम् शान्ति।
बच्चों ने जगत अम्बा की महिमा सुनी। अब मनुष्य तो सिर्फ गाते रहते हैं जगत अम्बा के मेले लग रहे हैं। यह फिर है संगम। बच्चों का बाप के साथ मेला। बाप है तो माँ जरूर है। भारत में जगत अम्बा की जीवन कहानी कोई भी जानते नहीं। जगत को रचने वाली अर्थात् जगत अम्बा। जगत अम्बा के मन्दिर भी हैं। अभी तुम बच्चों को समझ मिली है, ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। अभी तुम बच्चे जानते हो, जिसका यादगार बना हुआ है वह जरूर सृष्टि के संगम पर आये होंगे। इनको जगत अम्बा कहा जाता है। जगतपिता, प्रजापिता भी है ना।
इस बेहद ड्रामा का आदि-मध्य-अन्त क्या है और मुख्य एक्टर्स कौन-से हैं - यह कोई नहीं जानते। हीरो-हीरोइन भी एक्टर होते हैं ना। सिर्फ दो नहीं होंगे। जरूर उनकी सेना होगी। जगत अम्बा की भी सेना होगी। उनको शक्तियां भी कहा जाता है। शक्ति सेना नामीग्रामी है। शक्ति कहाँ से आई? जरूर सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा से ही शक्ति ली होगी - यह तो सब मानते हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान् है। उनको ही सत श्री अकाल कहते हैं। अकाली जो होते हैं वह निराकार को मानने वाले होते हैं। सिक्ख ग्रन्थी गुरुनानक को मानते हैं। कहते हैं गुरुनानक देव हैं। उनकी जो पीढ़ी होती है उनके 10 बादशाहों के नाम भी भिन्न-भिन्न हैं। कोई का सिंह, कोई का दास, कोई का चन्द भी नाम होगा। सबके नाम भिन्न-भिन्न हैं और अकाली जो हैं वह अकालमूर्त को मानते हैं। सत श्री अकाल - यह किसकी महिमा की? परमपिता परमात्मा की। तो सिद्ध करते हैं सत सिर्फ एक श्री श्री अकालमूर्त परमात्मा ही है। तुम कह सकते हो सत श्री अकाल। तुम उनको जानते हो। वह सिर्फ अक्षर कह देते, अर्थ कुछ भी नहीं जानते। तुम तो जानते हो सत श्री अकाल को। उनकी बायोग्राफी को भी तुम जानते हो। विचार सागर मंथन भी तुम बच्चों को करना है। बाप तो ज्ञान का सागर है। उसने कलष माताओं को दिया है। यह है बड़ी मम्मा और फिर तुम अनेक मातायें हो। जगत अम्बा की अनेक बच्चियां और बच्चे हैं। यह जगत अम्बा है फिर पिता भी जरूर है। तुम जानते हो यह जगत अम्बा कौन है, किसकी बच्ची है? हैं तो मनुष्य, 8-10 भुजायें तो नहीं हैं। इतनी भुजायें क्यों दी हैं - यह किसको पता नहीं। तो ऊंच ते ऊंच वह सत परमात्मा है। तुम बच्चों को समझाया गया है - परमपिता परमात्मा जिसको हम रूप-बसन्त कहते हैं, रूप भी है और फिर बसन्त, ज्ञान सागर है। इतना छोटा-सा स्टॉर, वह ज्ञान सागर है। वन्डर है ना। बच्चों को समझाया है - बाप है बिन्दी रूप, उसमें बरोबर सारा पार्ट है। भक्ति मार्ग में भक्तों की भावना पूरी करते हैं। यह सारी ड्रामा में नूँध है। जिस समय जिसकी जो भावना है वह ड्रामा में पहले से ही नूँधी हुई है। तुम्हारी यह पढ़ाई भी ड्रामा में नूँध है, जो पार्ट रिपीट हो रहा है। समझने की बात है ना। तुम अच्छी रीति समझा सकते हो - ऊंच ते ऊंच भगवान् सब कहते हैं। वह है निराकार, निर्भय, निर्वैर.... उनका कोई के साथ वैर नहीं है। तुम्हारा भी कोई के साथ वैर नहीं है। तुम सबके कल्याणकारी हो। अगर किसका वैर है तो उनको हाफ कास्ट कहेंगे। आधा शूद्र, आधा ब्राह्मण। यह विकारों की खाद कम्पलीट निकल जायेगी तब सच्चा ब्राह्मण कहेंगे। अभी तो आधा-आधा है। कलियुगी तमोप्रधान संस्कार भरे हुए हैं, वह निकलने हैं। अभी तुमको न देवता, न शूद्र, बीच का ब्राह्मण कहेंगे। वह भी सम्पूर्ण नहीं बने हो। जगत अम्बा को देवता नहीं कहेंगे। जगत अम्बा जब सम्पूर्ण बन जाती है, उसके बाद देवता बनती है। अभी ब्राह्मण है। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती है। परन्तु यह कोई नहीं जानते। ब्रह्मा कब आया जो मुख-वंशावली रचना रची? उसको ही शिवशक्ति सेना कहा जाता है। तो तुम जानते हो वह ऊंच ते ऊंच बाप परमपिता, परमधाम में रहने वाले हैं। फिर सूक्ष्मवतन में हैं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। प्रवृत्ति मार्ग होने कारण वह भी युगल दिखाते हैं। विष्णु को पूरा युगल दिखाते हैं। यह सब बुद्धि में रहना चाहिए। मनुष्य कहेंगे हम एक्टर हैं। तो मनुष्यों को ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का मालूम होना चाहिए ना। ऊंच ते ऊंच भगवान् कौन है? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कौन हैं? क्या और भी 8-10-100 भुजा वाला कोई है? नहीं, यह सब चित्र फालतू हैं। ब्रह्मा की 100 भुजा दिखाते हैं। अब यह तो प्रजापिता है, 100 भुजा की तो बात ही नहीं। यह सब रांग है। राइट वास्तव में क्या है, वह भी समझना चाहिए। ऊंच ते ऊंच भगवान् जो परमधाम में रहते हैं, है स्टॉर। विष्णु को भी 4 भुजा दिखाई हैं - दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की। जैसे रावण के 10 शीश दिखाते हैं, 5 स्त्री के विकार और 5 पुरुष के। पहले-पहले मुख्य विकार है देह-अभिमान। फिर और विकार नम्बरवार आते हैं। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा तो है अव्यक्त। प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ चाहिए ना। यह जब सम्पूर्ण बन जाते हैं तो सूक्ष्मवतन में फरिश्ते बन जाते हैं। तुम भी फरिश्ते बन जाते हो। वहाँ तुम्हारा शरीर हड्डी-मास का नहीं होता है। उनको फरिश्ता कहा जाता है। ब्रह्मा तो प्रजापिता यहाँ है। फिर विष्णु दो रूप से पालना करेंगे। शंकर तो है सूक्ष्मवतन में। यह बड़ी समझने की बातें हैं। इतनी दूरांदेशी बुद्धि कोई की है नहीं। तुम्हारी बुद्धि एकदम मूलवतन, सूक्ष्मवतन तक चली गई है। सूक्ष्मवतन अब रचा हुआ है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी रचना हुई है, जहाँ तक आ-जा सकते हो। तो ऊंच ते ऊंच भगवान् फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर यह मनुष्य सृष्टि में देवी-देवतायें। बाकी 8-10 भुजा वाले वा चण्डिका देवी आदि तो हैं नहीं। इतने सब चित्र कहाँ से आये? तुम्हारे पास कोई हथियार थोड़ेही हैं। यह सब हिंसक हथियार बैठ बनाये हैं। देवता तो होते हैं डबल अहिंसक। सूक्ष्मवतन में कोई हथियार आदि होते नहीं। चित्रों में कितने हथियार दिये हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। आक्यूपेशन को कोई जानते नहीं। बाबा आकर ब्रह्मा द्वारा नई रचना रचते हैं। तो खुद बड़ा हो गया ना। तुम हो उनकी सन्तान पोत्रे और पोत्रियां। समझने वाले समझते भी हैं परन्तु फिर यह नहीं समझते कि सबकी मौत होनी है। अभी भी कितने मरते रहते हैं। अ़खबारों आदि में कोई दिखलाते थोड़ेही है, नहीं तो नाम बदनाम हो जाये। भूख बहुत मरते हैं। एक समय मुश्किल से दो रोटी मिलती है। तुम बच्चे जान गये हो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। दो भुजा वाले ही मनुष्य हैं। बाकी सतयुग में कोई 8-10 भुजा वाली देवियाँ नहीं होती हैं। सेकेण्ड नम्बर में हैं राम-सीता। वह भी यहाँ राजयोग से पद पा रहे हैं। कितनी सहज बात है समझने की। बाप कहते हैं तुमने बहुत वेद-शास्त्र पढ़े हैं, अब तुम मेरे से सुनो और जज करो - मैं तुम्हें सत्य सुनाता हूँ या वह सत्य सुनाते हैं? अगर वह सत्य सुनाते हैं तो तुम सत्य नारायण की कथा से सत्य नारायण क्यों नहीं बने हो?
अभी तुम प्रैक्टिकल में सत्य बाबा से सत्य कथा सुन रहे हो - नारी से लक्ष्मी, नर से नारायण बनने की यह कथा है। जरूर प्रजा भी बनेगी कि सिर्फ लक्ष्मी-नारायण जाकर तख्त पर बैठेंगे? यह देवी-देवताओं की राजधानी स्थापन हो रही है। फिर सतयुग में आकर राज्य करेंगे। वहाँ राजाओं को लश्कर आदि कोई होते नहीं। लश्कर विकारी अनहोली राजाओं को होते हैं। वह तो हैं होली राजायें। सतयुग को होली लैण्ड कहा जाता है, इसको अनहोलीलैण्ड कहते हैं। बहुत पुराने पतित हो गये हैं। नये को पुराना बनना ही है। शरीर भी पहले नया फिर पुराना होता है। यह तो बुद्धि में बैठना चाहिए ना। मनुष्य होते हुए भी ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते। तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच शिवबाबा मूलवतन में रहते हैं। उसको निराकारी दुनिया कहा जाता है। आत्मायें बिन्दियां भी वहाँ रहती हैं। परन्तु बिन्दी रूप ही दें तो कोई समझ कैसे सके? बिन्दी की पूजा कैसे करेंगे? शिवबाबा के बिन्दी रूप की पूजा कैसे करें? तिलक कैसे लगायें? बाबा अमरनाथ पर भी गये हुए हैं। बाबा सारा देखकर आये थे कि कैसे शिवलिंग बनाते हैं। कहते हैं वहाँ पार्वती को शंकर ने कथा सुनाई। अब पार्वती ने किस दुर्गति को पाया था जो उनको बैठ कथा सुनाई? वास्तव में तुम सब पार्वतियाँ हों। तुम जन्म-मरण में आते हो और सद्गति को पाने के लिये कथा सुन रहे हो। तो वहाँ पूछा शिवलिंग कहाँ है? तो बोला शिवलिंग तो आपेही निकल आता है। अरे, यह कैसे होगा! वहाँ कबूतर भी दिखाते हैं। कबूतर (पिज़न) बात करना कभी सीखते नहीं। तोते को बात करना सिखलाते हैं तो वह बोलते हैं। कण्ठी पड़ जाती है। तुम ज्ञान की कण्ठी पहनते हो। तो बाबा ने समझाया है ऊंच ते ऊंच तो है शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। प्रवृत्ति मार्ग दिखाने लिये विष्णु को 4 भुजायें दिखाते हैं। यहाँ मनुष्य सृष्टि में ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण और उनकी राजधानी फिर राम-सीता की डिनायस्टी। यह होली डिनायस्टी पूरी होती है। फिर रावण राज्य शुरू होता है। फिर सबको पतित बनना ही है। बाकी हाँ, पिछाड़ी में जो नई आत्मायें आती हैं उनका कुछ प्रभाव निकलता है। किसका सतोप्रधानता का, किसका रजो-तमो का पार्ट है। यह बेहद का ड्रामा है। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। बाकी सब है गुड़ियों की पूजा। तुम एक्टर्स हो ना। अभी तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। पढ़ाई से मनुष्य कितना ऊंच पद पाते हैं। यह भी पढ़ाई है, जिससे तुम राज्य पद पाते हो। ऐसी पढ़ाई कोई होती नहीं। वह प्रिन्स-प्रिन्सेज तो प्रालब्ध ले आते हैं। तुम यहाँ प्रालब्ध बना रहे हो। भविष्य सतयुग के लिये कितनी ऊंच और फिर सहज नॉलेज है - सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। हम बेहद बाप के बच्चे हैं, ईश्वरीय गोद में बैठे हैं। ईश्वरीय गोद कौन छोड़ेंगे?
तो इस ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को समझना है। बाप तो यथार्थ रीति बैठ समझाते हैं। जो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप गाया जाता है। सत-चित-आनन्द स्वरूप कहा जाता है। जरूर जब आयेंगे तब तो वर्सा देंगे ना। तुम सचखण्ड के मालिक देवी-देवता बनते हो। कोई डर की बात नहीं है। यहाँ तो कितना डर रहता है - कोई चढ़ाई न करे। तुमको तो बिल्कुल निर्भय रहना है। शरीर को कोई मारता है, आत्मा को थोड़ेही मार सकते हैं जो डरना चाहिए। निर्भय होने की बड़ी समझ चाहिए। बाप भी निर्भय तो बच्चे भी निर्भय। गोली शरीर को लगती है, मैं आत्मा तो जा रहा हूँ बाबा के पास, हमको क्या डर है। हम बैठे हैं, छत गिर जाती है, हम बाबा के पास चले जायेंगे। निर्भय होने में टाइम लगता है। तुम हो जगत अम्बा के बच्चे शिव शक्ति सेना। एक की तो महिमा नहीं है। तुम भी साथ हो। यह कमान्डर है। तुमको रूहानी ड्रिल सिखलाते हैं। तुम उनके बच्चे हो। तुम हो लक्की सितारे। यह सरस्वती भी लक्की सितारा है। ब्रह्मा की बेटी है ना। उस ज्ञान सूर्य का चन्द्रमा तो यह (ब्रह्मा) है ना। परन्तु यह मेल होने कारण माता पर कलष रखा जाता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिये मुख्य सार :-
1) कलियुगी तमोप्रधान संस्कारों को निकाल सच्चा ब्राह्मण बनना है। किसी से भी वैर नहीं रखना है।
2) निर्भय बनने के लिये आत्म-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। हम शिव शक्ति सेना हैं, हमें तो सचखण्ड का मालिक बनना है - इसी नशे में रहना है।
वरदान:-
सूर्यमुखी पुष्प के समान ज्ञान सूर्य के प्रकाश से चमकने वाले सदा सम्मुख और समीप भव
जैसे सूर्यमुखी पुष्प सदा सूर्य की सकाश से घिरा हुआ रहता है। उसका मुख सूर्य की तरफ होता है, पंखुड़ियां सूर्य की किरणों के समान सर्किल में होती हैं। ऐसे जो बच्चे सदा ज्ञान सूर्य के समीप और सम्मुख रहते हैं, कभी दूर नहीं होते - वे सूर्यमुखी पुष्प के समान ज्ञान सूर्य के प्रकाश से स्वयं भी चमकते और दूसरों को भी चमकाते हैं।
स्लोगन:-
सदा हिम्मतवान बनो और सर्व को हिम्मत दिलाओ तो परमात्म मदद मिलती रहेगी।
28/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you should not hold any grudges against anyone, because you are benefactors for everyone. Those who hold grudges against anyone are said to be half-caste Brahmins.
Question:
Which awareness should your intellects always have so that you become fearless?
Answer:
Always have the awareness that you are becoming deities, the masters of the land of truth. Someone can kill a body, but no one can kill a soul. A bullet would hit the body. I, the soul, am going to Baba. Why should I have any fear? While I am sitting here, if the ceiling falls on me, I will go to Baba. There is nothing to be afraid of in this. Become fearless to this extent.
Song:
Mother, o mother, you are bestower of fortune for the world.
Om Shanti
You children heard the praise of Jagadamba. People simply sing this and there are melas to Jagadamba. This is the confluence age; this is the meeting of the children and the Father. Since there is the Father, there is surely also the mother. No one in Bharat knows the life story of Jagadamba, the one who creates the world, that is, the World Mother (Jagadamba). There are also temples to Jagadamba. You children have now received understanding; you have each received a third eye of knowledge. You children know that the one whose memorial is built would definitely have come on to this earth at the confluence age. That one is called Jagadamba. Prajapita is Jagadpita (World Father). No one knows the beginning, middle or end of this unlimited drama or who the main actors are. The hero and heroine are also actors. There wouldn't just be two of them; there would definitely be their army. There would also be the army of Jagadamba; they are called Shaktis. The Shakti Army is well known. Where did they receive power from? They would surely have taken power from the Almighty Authority, the Supreme Father, the Supreme Soul. Everyone believes this. The Highest on High is God. He is called Sat Shri Akal. Akaali people (Sikhs) believe in the incorporeal One. Sikhs study the Granth and believe in Guru Nanak. They say that Guru Nanak is a deity. The names of each generation of their ten successive gurus are all different. Some are called Singh, some are calls Das, and some are called Chand. The names of all of them are different and the Akaalis believe in the Immortal Image. Whose praise is Sat Shri Akal (Truth, Elevated, Immortal)? That of the Supreme Father, the Supreme Soul. So, this proves that the Truth is only One, Shri Shri God, the Immortal Image. You can say: Sat Shri Akal. You know Him. Those people simply say these words but they don't know the meaning of them. You know the One who is Sat Shri Akal. You know His biography. It is you children who have to churn the ocean of knowledge. The Father is the Ocean of Knowledge anyway and He has given the urn to the mothers. This one is the senior mother and then there are you innumerable mothers, you innumerable daughters and sons of Jagadamba. That one is Jagadamba and there is definitely the father as well. You know who Jagadamba is and whose daughter she is. She too is a human being; she doesn't have eight or ten arms. No one knows why she has been shown with so many arms. So the Highest on High is God, the Truth. It has been explained to you children that the Supreme Father, the Supreme Soul, whom we call Rup Basant, is Rup and also Basant, the Ocean of Knowledge. Such a tiny star and yet He is the Ocean of Knowledge! It is a wonder! It has been explained to you children that the Father is a point and that He truly has a whole part in Him. He fulfils the desires of the devotees on the path of devotion. All of this is fixed in the drama. Whatever feelings someone has at whatever time, that is fixed in the drama in advance. This study of yours is also fixed in the drama and this part is now being repeated. This is something to be understood. You can explain very clearly: Everyone says that God is the Highest on High. He is the incorporeal One, the fearless One and the One with no grudges. He doesn't hold any grudges against anyone. You too don't hold grudges against anyone. You are benefactors for everyone. If someone holds a grudge, he would be called a half-caste: half a shudra and half a Brahmin. When this alloy of the vices is completely removed, you will be called true Brahmins. Now you are half and half. Souls are still filled with iron-aged, tamopradhan sanskars and those now have to be removed. At present, you are neither deities nor shudras; you are said to be Brahmins in the middle, and you haven't become complete in that either. Jagadamba cannot be called a deity. When Jagadamba becomes complete she will then become a deity. She is now a Brahmin, the daughter of Brahma: Saraswati. However, no one knows this. When did Brahma come and create the mouth-born creation? They are called the Shiv Shakti Army. You know that He is the highest-on-high Father, the Supreme Father, the Resident of the supreme abode. Then there are Brahma, Vishnu and Shankar in the subtle region. Because of it being the family path, the form of a couple is shown. They show Vishnu as a complete couple. All of this should remain in your intellect. Human beings say that they are actors. So, human beings should know the beginning, the middle and the end of the drama. Who is God, the Highest on High? Who are Brahma, Vishnu and Shankar? Is there anyone else who has eight, ten or a hundred arms? No, all of those pictures are useless. They show Brahma with a hundred arms. This one is the Father of People; there is no question of a hundred arms. All of that is wrong. In fact, you should understand what is truly right. God, the Highest on High, who resides in the supreme abode is a star. Vishnu has been shown with four arms - two arms of Lakshmi and two of Narayan – just as they also show ten heads of Ravan: five vices of woman and five vices of man. The first and foremost vice is body consciousness. Then the other vices enter, numberwise. Brahma, the resident of the subtle region, is avyakt (subtle). Prajapita Brahma (the Father of People) has to be here. When this one becomes perfect, he becomes an angel, a resident of the subtle region. You too become angels. There, your bodies are not of flesh and bone. They are called angels. Brahma is the Father of People here. Then Vishnu will carry out the sustenance through the two forms. Shankar is in the subtle region. These deep matters have to be understood. No one has that far-sighted an intellect. Your intellects have gone right to the incorporeal world and the subtle region. The subtle region where you can go up and come down from has now been created. There has also been the creation of Brahma, Vishnu and Shankar. So the Highest on High is God and then there are Brahma, Vishnu and Shankar and then there are the deities of the human world. However, there aren't any human beings with eight to ten arms or goddesses such as Chandika (cremator goddess). Where did all of those pictures come from? You don't have any weapons. They have sat and created all of those violent weapons. Deities are doubly non-violent. There are no weapons etc. in the subtle region. They have shown so many weapons in those pictures. That is called the worship of dolls. No one knows the occupation of any of them. Baba comes and creates the new creation through Brahma and so He Himself is the Senior. You are his children, grandsons and granddaughters. Those who are to understand, will understand this, but they don't then understand that everyone is to die. Even now, so many continue to die, but no one puts this in the newspapers because, otherwise, their names would be spoilt. So many starve to death. They are hardly able to get two chapattis to eat for a meal. You children know that the kingdom of Lakshmi and Narayan continues in the golden age. They are beings with two arms each. It isn't that there are goddesses with eight or ten arms in the golden age. Rama and Sita are the second number. They too are claiming their status here through Raja Yoga. This is such an easy matter to understand! The Father says: You have studied many Vedas and scriptures. Now, listen to Me and judge for yourself whether I am telling the truth or they tell the truth. If they tell the truth, why have you not become true Narayan by listening to the story of the true Narayan? You are now listening to the true story from the true Baba in a practical way. This story is for you to become Lakshmi from an ordinary woman and Narayan from an ordinary man. Subjects too will definitely be created. Or, is it that just Lakshmi and Narayan will go and sit on the throne? A kingdom of deities is being established. Then, you will go and rule in the golden age. The kings there don't have armies etc. Armies are part of vicious, unholy kings. Those others are holy kings. The golden age is called the holy land and this is called the unholy land; it has become very old and impure. The new definitely has to become old. The body too is new at first and it then becomes old. This should sit in your intellects. Although they are human beings, they don't know the beginning, the middle or the end of the drama. You know that the Highest on High, Shiv Baba, resides in the supreme abode. That is called the incorporeal world. Souls, points also reside there. However, if just the point form is shown, how could anyone understand? How would they worship a point? How would they worship Shiv Baba, a point? How would they apply a tilak? Baba has been to Amarnath. Baba went and saw how they make the Shivalingam there. They say that Shankar told the story to Parvati up on the mountains. What state of degradation did she reach that he sat and told her the story? In fact, all of you are Parvatis. You come into the cycle of birth and death and are listening to the story in order to attain salvation. So, there, he (Brahma) asked: Where is the Shivalingam? He was told: The Shivalingam is self-creating. Oh! but how is that possible? They also show pigeons there. Pigeons never learn how to speak. Parrots are taught how to speak and so they speak. They are able to memorize and repeat things they hear. You wear bead necklaces of knowledge. Baba has explained that the Highest on High is Shiv Baba and that there are then Brahma, Vishnu and Shankar. They show Vishnu with four arms in order to portray the family path. Here, in the human world, the highest on high are Lakshmi and Narayan and their kingdom, and then there is the dynasty of Rama and Sita. That holy dynasty comes to an end and then the kingdom of Ravan begins. Then, everyone has to become impure. However, there is some influence of the new souls that come down at the end. Some have satopradhan parts, some have rajo parts and others tamo parts. This is an unlimited drama. Human beings are human beings. All the rest is the worship of dolls. You are actors. You are now changing from human beings into deities. Human beings attain such a high status by studying. This too is a study through which you attain a royal status. There is no other study like this one. Those princes and princesses brought their reward with them. You are creating your reward here for the future golden age. This is such elevated and easy knowledge: liberation-in-life in a second. We are the children of the unlimited Father and we are sitting in God's lap. Who would leave God's lap? So, the beginning, middle and end of this drama have to be understood. The Father sits here and explains everything correctly to you. He is remembered as the Seed of the human world tree. He is also called the Truth, the Living Being and the Embodiment of Bliss. He would definitely give you the inheritance when He comes. You are becoming deities, the masters of the land of truth. There is no question of fear. Here, there is so much fear that someone may attack you. You have to remain completely fearless. Someone can kill a body, but no one can kill a soul that you should be afraid. Very good understanding is required in order to be fearless. The Father is fearless and the children are also fearless. The bullet would hit the body and I, the soul, would go to Baba. I am not afraid. I am sitting here and, if the ceiling falls in, I will go to Baba. It takes time to become fearless. You are the Shiv Shakti Army, the children of Jagadamba. There isn't praise of just one. You are also with her. That One is the Commander. He teaches you spiritual drill. You are His children. You are lucky stars. This Saraswati is also a lucky star. She is the daughter of Brahma. This one (Brahma) is the moon of the Sun of Knowledge but, because he is male, the urn is placed on the mother. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found, mouth-born creation of Brahma, the decoration of the Brahmin clan, the children who are spinners of the discus of self-realisation, love, remembrance and good morning from the depths of the heart with deep love from the Mother, the Father, BapDada, numberwise, according to the efforts you make, the spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Remove the iron-aged, tamopradhan sanskars and become true Brahmins. Don't hold grudges against anyone.
2. In order to become fearless, practise being soul conscious. Maintain the intoxication: We are the Shiv Shakti Army and we have to become masters of the land of truth.
Blessing:
Like a sunflower facing the sun, may you always be facing and be close to the Father by shinning like the sun of knowledge.
A sunflower is always surrounded by the light of the sun, and it always faces the sun with its petals in a circle like rays of the sun. In the same way, the children who always remain close and facing the sun of knowledge like a sunflower and are never distant shine constantly like a sunflower with the light of the sun of knowledge, and also enable others to shine.
Slogan:
Be constantly courageous and give courage to everyone and you will continue to receive God’s help.
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