Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali 24th Sep 2018 )
24-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हारा मगज़ (दिमाग) खुशी से सदा भरपूर होना चाहिए क्योंकि तुम अभी बाप के समान मास्टर नॉलेजफुल बने हो''
प्रश्न:
तुम बच्चे 21 जन्मों के लिए किस आधार पर मालामाल बनते हो?
उत्तर:
संगम पर तुम डायरेक्ट बाप को अपना सब कुछ देते हो। सब बाप के हवाले कर देते हो इसके रिटर्न में तुम 21 जन्मों के लिए मालामाल बन जाते हो। बाबा कहते इस समय तुम्हारे पास जो कूड़ा किचड़ा है वह मुझे दे दो, मरने के पहले अपना सब कुछ ट्रान्सफर कर दो तो भविष्य में उसका रिटर्न मिल जायेगा।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए........
ओम् शान्ति।
सालिग्रामों प्रति शिव भगवानुवाच। रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो यहाँ हमको आत्मा समझ बैठना है, न कि शरीर और सारी दुनिया में एक भी ऐसा मनुष्य नहीं है जो यह समझते हों कि आत्मा क्या है। आत्मा को ही नहीं जानते तो फिर परमात्मा को भी कैसे समझेंगे? बाप द्वारा ही आत्मा की समझानी मिलती है। आत्मा और परमात्मा को ही नहीं जानते इसलिए ही मनुष्य दु:खी हैं। अभी तुम बच्चों को यह मालूम हुआ है कि इस ड्रामा की अथवा कल्प वृक्ष की आयु 5 हजार वर्ष है। यह तो समझते हो उन्हों का बीज अगर चैतन्य होता तो बतलाता ना कि मुझ बीज से झाड़ ऐसे पैदा हुआ। अब वह तो है जड़, यह चैतन्य एक ही मनुष्य सृष्टि का वैराइटी झाड़ है। तुम बच्चों को अभी सारी नॉलेज है। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार शुरू से लेकर अन्त तक सारे झाड़ का ज्ञान मिला हुआ है। जैसे बीज में सारे झाड़ का ज्ञान होता है। यह बाप है चैतन्य बीजरूप, गाते भी हैं परमपिता परमात्मा सत-चित-आनंद स्वरूप है। निराकार की महिमा गाई जाती है। उनकी महिमा सबसे बिल्कुल ही न्यारी है। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते हैं। भल देवताओं को यह वर्सा यहाँ से ही मिलता है परन्तु उनको भी वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता। वन्डरफुल बात है ना। यहाँ अभी तुमको सारा ज्ञान मिलता है। बुद्धि में नॉलेज है - यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। बाप आकरके नई राजधानी स्थापन करते हैं। तुम इस ड्रामा के एक्टर्स हो। सिर्फ तुमको ही ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, रचता और रचना का ज्ञान है और किसको है नहीं। न शूद्र वर्ण को यह ज्ञान है, न देवता वर्ण को यह ज्ञान है। कोई सुनेंगे तो वन्डर खायेंगे। मनुष्य कहते हैं यह त्योहार आदि जो मनाते हैं, वह परमपरा से चले आये हैं। परन्तु बाप समझाते हैं सतयुग में तो यह होते ही नहीं। त्योहारों को कोई जानते ही नहीं। अभी तो कहते हैं ना यह दशहरा, दीवाली आदि त्योहार आने हैं। वहाँ तो यह कुछ भी याद नहीं रहता। एकदम निष्फुरने (निश्चिंत) हो राज्य करते रहेंगे।
अभी यहाँ तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है। तुम एक्टर्स हो। इस ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर्स, ड्युरेशन आदि को जानते हो। यह नॉलेज जिसकी बुद्धि में रहेगी, उनको अपार खुशी रहेगी। गॉड फादर को ही नॉलेजफुल ज्ञान सागर कहा जाता है। कौनसी नॉलेज है? सिवाए तुम्हारे यह कोई भी समझ न सके। गॉड को ही नॉलेजफुल, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है। तो नॉलेज किसकी है? सभी वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की। शास्त्रों में यह ज्ञान नहीं है। वह है ही भक्ति मार्ग के शास्त्र, सिर्फ पूजा करते रहो। बाकी रचयिता और रचना की नॉलेज कुछ भी नहीं है। तब तो ऋषि-मुनि आदि भी कहते थे कि हम रचता और रचना को नहीं जानते। समझाने वाला एक ही बाप है। तो जानेंगे फिर कहाँ से। अभी तुम बाप द्वारा सुनते हो फिर यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाती है। यह नॉलेज सिवाए तुम बच्चों के और कोई नहीं जानते। तुमको कितनी बड़ी नॉलेज मिलती है। तो तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए! वह लोग डॉक्टरी आदि पढ़ने के लिए, सीखने के लिए विलायत में जाते हैं। तुमको तो यहाँ ऐसा बनाते हैं जो वहाँ यह डॉक्टर आदि होते ही नहीं। बेहद का बाप जो नॉलेजफुल है, उन द्वारा हम सब कुछ जान जाते हैं। उनकी हम सन्तान हैं। तो ज्ञान से मगज़ (दिमाग) कितना भरपूर रहना चाहिए। कितनी खुशी होनी चाहिए। ऐसी कोई चीज नहीं जिसको हम न जानते हो। वह लोग जो कुछ पढ़ते हैं वह तो कुछ नहीं है। भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि कितने पढ़ते हैं। परन्तु यह तो कोई नहीं जानते कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? तुम बच्चे अभी मास्टर नॉलेजफुल बनते हो। नटशेल में तो सब जान चुके हो। बाकी सिर्फ आत्मा जो तमोप्रधान है उनको सतोप्रधान बनाना है। कोई हैं जो तमोप्रधान से तमो बने होंगे, कोई तमो से रजो बने होंगे, कोई रजो से सतो बने होंगे। सतोप्रधान नहीं कहेंगे। सतोप्रधान जब बन जायेंगे तो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कर्मातीत अवस्था आ जायेगी फिर तो नई दुनिया चाहिए राजाई के लिए इसलिए पुरानी दुनिया का विनाश होता है। जब यह यज्ञ पूरा होगा तो सारी पुरानी दुनिया की आहुति पड़ेगी। यह पढ़ाई पूरी हो जायेगी फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे। जैसे वह भी इम्तहान पास कर फिर ट्रांसफर हो जाते हैं, तुम भी मृत्युलोक से ट्रांसफर हो अमरलोक में चले जायेंगे। हम अमरलोक में थे फिर 84 जन्म लेते-लेते मृत्युलोक में आ गये हैं।
तुम कहते हो अभी हम पढ़ रहे हैं फिर अमरलोक में जाकर देवी-देवता बनेंगे। बाप ही मनुष्य से देवता बनाते हैं। पतितों को पावन देवी-देवता कौन बनायेगा? देवता तो यहाँ कोई है नहीं, जो देवी-देवता बनावे। लक्ष्मी-नारायण चाहिए ना। वह तो यहाँ होते नहीं। तुम बच्चे जानते हो इस समय बाप ही आकर पढ़ाते हैं। स्वर्ग का राज्य भाग्य देते हैं। स्वर्ग था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। इन्हों की यह राजाई किसने स्थापन की? हेविनली गॉड फादर ने ही पैराडाइज सतयुग स्थापन किया, जहाँ देवी-देवता राज्य करते थे। वहाँ दूसरा कोई खण्ड था नहीं। एक ही भारत था। तुम्हारी बुद्धि में है - हम जब राज्य करेंगे तो दूसरा कोई नहीं होगा। तुम्हारी बुद्धि में यह सारा झाड़ है, इसका बीज ऊपर में है। वह सत है, चैतन्य है। आत्मा भी इम्पैरेसिबुल है। बाबा भी इम्पेरेसिबुल है। जो बाबा में ज्ञान है वह तुमको सुनाते हैं। सारा झाड़ खड़ा है, बाबा ऊपर में है। इस समय मनुष्य तमोप्रधान कांटे हैं। झाड़ पुराना होने से जैसे सूख जाता है इसलिए इनको कहा जाता है कांटों का जंगल। वहाँ होता है फूलों का बगीचा। बागवान भी है, किसको खिवैया, किसको बागवान, किसको माली कहते हैं। बाप है खिवैया। तुम भी बोट चलाना सीख रहे हो। हरेक की नईया बहुत पुरानी हो गई है। नईया आत्मा और शरीर दोनों की बनी हुई है। गाते भी हैं - नईया मेरी पार लगाओ। अब नईया भी पुरानी तो शरीर भी पुराना। अब पार कैसे हो और कहाँ जायें? तुम जानते हो पार किसको कहा जाता है, मुक्तिधाम, जीवनमुक्तिधाम क्या चीज़ है! बरोबर बाप अभी पार ले जाते हैं, दु:खधाम से सुखधाम अथवा विषय सागर से क्षीरसागर में ले जाते हैं। वह सिर्फ गाते हैं नईया मेरी पार लगाओ, बागवान आओ, कांटों को फूल बनाओ। तुम भी पहले नहीं जानते थे। अभी मूलवतन, सूक्ष्मवतन, सतयुग से लेकर कलियुग तक सब राज़ को जान गये हो। जो जानते हैं वही सुनाते हैं। अन्दर ज्ञान टपकता रहे तो सदैव खुशी में रहेंगे। कोई चिंता की बात ही नहीं रहती, फिक्र से फ़ारिग हो जाते हो।
तुम जानते हो बाबा हमको ले जाते हैं, अब हम बाबा जैसे बन रहे हैं। बच्चा बाप समान बनता है ना। बाबा नॉलेजफुल है, तुमको भी नॉलेजफुल बनाया है। आत्माओं का कनेक्शन है ही परमात्मा बाप से। आत्मा कहती है जो बाबा में नॉलेज है, वह हम आत्माओं को दे रहे हैं। तुम हो रूहानी बाप के रूहानी बच्चे। यह भी नई बात है ना। बाबा बिगर कोई सुना न सके। वह निराकार बाप भी साकार के आधार से सुनाते हैं। नहीं तो तुम सुन न सको। बच्चों को बाप आप समान बनाते हैं। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता वह बाप है। उनकी जो महिमा है वह तुम्हारी भी है, कोई फ़र्क नहीं। बाकी क्या फ़र्क रहता है? हम जन्म-मरण में नहीं आते हैं, तुम जन्म-मरण में आते हो। मुझे ज्ञान सागर कहते हैं तो मैं तुम बच्चों को ज्ञान देता हूँ। मैं सुख का सागर, पवित्रता का सागर, शान्ति का सागर हूँ, तो तुमको भी यह वर्सा देता हूँ।
तुम जानते हो यह सारा चक्र फिर 5 हजार वर्ष बाद फिरेगा। यह नॉलेज है सोर्स आफ इनकम। जितना पढ़ते हैं उतना नॉलेज से इनकम होती है। यह नॉलेज भी है तो धंधा भी है। शर्राफ लोग सट्टा करते हैं, तुम क्या देते हो? कूड़ा-किचड़ा। मरने के बाद करनीघोर को कूड़ा-किचड़ा ही देते हैं। तुमको तो जीते जी देना है। ईश्वर अर्थ देते हैं। अब क्या ईश्वर को पुराना खटिया आदि देंगे? बाप कहते हैं तुम मरने से पहले ही सब दे दो। यह पुरानी चीज़ तुम्हारे काम में ही नहीं आयेगी। भल कोई कितना भी साहूकार हो परन्तु कितने दिन के लिए होगा? एक जन्म के लिए, फिर कर्मों अनुसार पता नहीं कहाँ जाकर जन्म लेंगे। तुम तो बाप से 21 जन्मों के लिए लेते हो पुरुषार्थ अनुसार।
यह है रूहानी सर्विस। सारी दुनिया जानती है जिस्मानी सर्विस को। रूहानी को कोई जानते ही नहीं। सुप्रीम रूह ही आकर नॉलेज देते हैं। उस सुप्रीम का जन्म भी मनाते हैं। उनको ही सुख का सागर, शान्ति का सागर, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहते हैं। शिव नाम है ना। जयन्ती भी मनाते हैं। परन्तु बुद्धि में कुछ नहीं है। बाप ही यह सब राज़ सुनाते हैं। फिर 5 हजार वर्ष बाद सुनायेंगे। यह ज्ञान सतयुग में नहीं होता क्योंकि आत्मायें सतोप्रधान हैं। ज्ञान से ही वह ऐसी बनती हैं। यह नई बातें हैं ना। मन्दिर बनाने वाले भी यह नहीं जानते कि लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर हम क्यों बनाते हैं? उन्हों को यह राज्य किसने दिया? कैसे यह पद पाया? कहते हैं ना कर्मों का फल है। अभी बाप बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गति का राज़ समझाते हैं। उन्हों ने भी यह नॉलेज सुनी होगी। है ही भगवानुवाच - गीता से ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी सारी पुरानी सृष्टि कहाँ गई? जरूर विनाश हुआ होगा। महाभारत लड़ाई भी गाई हुई है। गिरधर कविराज कहते हैं। अब गिरधर तो कहते हैं कृष्ण को। कवि कौन है? शिवबाबा को कवि कहा जाता है। कवि अर्थात् सुनाने वाला।
तुम जानते हो आ़फतें आदि बहुत आनी हैं। पुरानी दुनिया के विनाश लिए क्या-क्या चीजें बना रहे हैं। यह वही महाभारत लड़ाई है जबकि भगवान् ने आकर रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। भगवान् यज्ञ किसलिए रचते हैं? यज्ञ रचा ही जाता है सुख-शान्ति के लिए। बाप सभी का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है। तो इस ज्ञान यज्ञ में सारी पुरानी सृष्टि स्वाहा हो जायेगी। तुम जानते हो हम ब्राह्मण यज्ञ के सर्वेन्ट हैं। हम ब्राह्मण ब्रह्मा के सच्चे मुख वंशावली हैं तो बाबा जो मुख से कहे वह मानना पड़े। श्री श्री की श्रेष्ठ मत से ही हम श्रेष्ठ बन, रूद्र की माला का दाना बनेंगे। सिजरा बनाते हैं - वासवानी सिजरा, कृपलानी सिजरा....। तो ऊपर में है शिवबाबा, उनका है निराकारी सिजरा। निराकारी सिजरा वह फिर साकारी सिजरा होता है। पहले नम्बर में है प्रजापिता। तो वह हुआ जिस्मानी और वह रूहानी। रूहानी बाप आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। उनको बुलाते ही हैं हे पतित-पावन आओ। पुरानी पतित दुनिया को पावन बनाने आओ। नई नहीं बनाते हैं। प्रलय होती नहीं। तो यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। 84 का चक्र फिर से शुरू होता है। बेहद के बाप से बेहद की नॉलेज मिलती है, बेहद का वर्सा मिलता है। बेहद के बाप को सब याद करते हैं - हे भगवान् कहते हैं ना। हे ईश्वर, हे प्रभू कहने से कोई चित्र याद नहीं आता। निराकार याद आता है। कहते भी हैं कि भगवान् को याद करो। फादर है ना। हम सब हैं ब्रदर्स। आत्माओं के लिए कहते हैं सब ब्रदर्स हैं। सब पुकारते हैं - हे पतित-पावन, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, हे लिबरेटर आओ, हमको गाइड करो। घर भूल गया है। याद है परन्तु हम जा नहीं सकते हैं। योग लगाने से जैसे घृत पड़ता जाता है। आत्मा अविनाशी है ना। तो आत्मा की ज्योति सारी उझाई नहीं जाती है। तो अब योगबल का घृत डालना है। सदैव के लिए फिर दीपमाला, सोझरा हो जायेगा। दीपमाला अर्थात् घर-घर में सोझरा। तो दीपमाला कहाँ होगी? सतयुग में। यहाँ नहीं। यह सब राज़ तुम समझते हो, तुम्हारे पास ब्लाइन्डफेथ नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) चिंताओं से फ्री होने के लिए बाप समान नॉलेजफुल बनना है। बुद्धि में सदा ज्ञान का सिमरण करते रहना है।
2) रूहानी सर्विस कर अपनी प्रालब्ध बनानी है। पुराना सब कुछ ट्रांसफर कर देना है।
वरदान:
एक के पाठ द्वारा निराकार, आकार को साकार में अनुभव करने वाले वरदानी मूर्त भव!
सिर्फ एक का पाठ पक्का करके वरदाता को राज़ी कर लो तो अमृतवेले से रात तक हर दिनचर्या के कर्म में वरदानों से ही पलते, चलते, उड़ते रहेंगे। वह एक का पाठ है - एक बल एक भरोसा, एकमत, एकरस, एकता और एकान्तप्रिय ...यह ''एक'' शब्द ही बाप को प्रिय है। जो इस एक का पाठ पक्का कर लेते हैं उन्हें कभी मुश्किल का अनुभव नहीं होता। ऐसी वरदानी आत्मा को विशेष वरदान प्राप्त होता है इसलिए वे निराकार-आकार को जैसे साकार अनुभव करते हैं।
स्लोगन:
किसी से किनारा करके अपनी अवस्था बनाने के बजाए सर्व का सहारा बनो।
24/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, your heads should be constantly filled with happiness because you have now become master knowledge-full, like the Father.
Question:
On what basis do you children become prosperous for 21 births?
Answer:
At the confluence age you give everything of yours directly to the Father. You hand over everything to the Father and, in return, you become prosperous for 21 births. Baba says: At this time give whatever rubbish you have to Me. Before you die, transfer everything you have and you will receive the return of that in the future.
Song:
Salutations to Shiva.
Om Shanti
God Shiva speaks to you saligrams. The spiritual Father is explaining to the spiritual children. You children now understand that you have to sit here while considering yourself to be souls and not bodies. There is not a single human being in this world who understands what a soul is. If they don’t know about the soul, how could they know about the Supreme Soul? You are given an explanation of the soul by the Father. Human beings don’t know what a soul is or who the Supreme Soul is. That is why they are unhappy. You children now know how long this drama lasts and that the life cycle of this tree is 5000 years. You understand that if the seeds of those trees were living they would tell you how the tree emerges from the seed. However, all those seeds are non-living; this is the only living Seed of the variety human world tree. You children now have the whole knowledge. You have received the knowledge of the whole tree from its beginning to its end, numberwise, according to your efforts. Just as the knowledge of a whole tree is merged in its seed, so this Father is the living Seed. People sing that the Supreme Father, the Supreme Soul is the Truth, the Living Being and the Embodiment of Bliss. This praise is of the incorporeal One. His praise is completely distinct from that of anyone else. Human beings don’t understand anything. Although deities receive their inheritance here, they do not have this knowledge there. This is a wonderful aspect. You now receive the whole knowledge here. You have in your intellects the knowledge of how the world cycle turns. The Father comes and creates the new kingdom. You are actors in this drama. Only you have the knowledge of the drama from its beginning, through the middle to its end and of the Creator and creation; no one else has this knowledge. Neither the shudra clan nor the deity clan has this knowledge. If they were to hear this, they would be wonder struck. People say that the festivals they celebrate have continued since time immemorial, but the Father says that they do not exist in the golden age. No one knows about the festivals. You now say that the festivals of Dashera, Diwali etc are coming. These things are not remembered there. You rule your kingdom without worrying about anything. The locks on your intellects have now opened. You are actors. You know the Creator of this drama, its duration, the Director and all the main actors etc. Those who retain this knowledge in their intellects will experience limitless happiness. Only God, the Father, is called knowledge-full, the Ocean of Knowledge. What knowledge? No one apart from you can understand this. Only God is called the knowledge-full World Almighty Authority. What knowledge is this? It is the knowledge of all the Vedas, the scriptures and the Granth etc. and the beginning, the middle and the end of the world. This knowledge is not in the scriptures. Those scriptures are of the path of devotion. People just continue to worship; they do not have knowledge of the Creator or His creation. This is why even sages and holy men etc. say that they do not know the Creator or His creation. Only the one Father can explain all of these things. Therefore, how could they know about these things? The knowledge that you receive from the Father will later disappear. No one, except you children, knows this knowledge. You receive such great knowledge. Therefore, how much happiness you children should experience! People go abroad to study medicine etc. Here, you become so healthy that there will be no need for doctors etc. there. We come to know everything from the unlimited Father who is knowledge-full. We are His children. So, your head should remain so full with this knowledge that you continue to experience a great deal of happiness. There is nothing that you don’t know about. Whatever those people study is nothing. They study so many scriptures etc. of the path of devotion but none of them knows how this human world cycle turns. You children are now becoming master knowledge-full. You have come to know everything in a nutshell. You have to make souls that have become tamopradhan become satopradhan. There are some who, from tamopradhan have become tamo, some have become rajo from tamo and some have become sato from rajo, but no one could be said to be satopradhan yet. When you do become satopradhan, you will have reached your karmateet stage, numberwise, according to the effort you made. The new world will then be required for the kingdom. This is why the old world has to be destroyed. When the sacrificial fire of knowledge is about to come to an end, everything of this old world will be sacrificed into it. When your study is completed you will attain your karmateet stage, numberwise, according to your efforts. Just as when students pass an exam and they are transferred, in the same way, you too will be transferred from this land of death to the land of immortality. We were in the land of immortality and, while taking 84 births, we came into the land of death. You say that you are now studying and that you will then go to the land of immortality and become deities. Only the Father changes ordinary human beings into deities. Who else could purify the impure and make them into deities? There are no deities here who could create deities. Lakshmi and Narayan would be needed, but they are not here. You children know that the Father comes at this time to teach you. He gives you your fortune of the kingdom of heaven. There was heaven; there was the kingdom of Lakshmi and Narayan. Who established their kingdom? It was Heavenly God, the Father, who created Paradise, satyug (the age of truth), where the deities ruled. There were no other lands at that time; there was only Bharat. It is in your intellects that, when you rule, no one else will exist there. The whole tree is in your intellects. Its Seed is up above. He is the Truth and the Living Being. Souls are imperishable and Baba is also imperishable. Baba tells you all the knowledge He has. The whole tree is in front of you and Baba is above it at the top. People at this time are completely degraded thorns. Because the tree is old, it has dried up, which is why this world is called the jungle of thorns. There, there is a garden of flowers. Baba is the Master of the Garden. Some call Him the Boatman and some call Him the Gardener. The Father is the Boatman. You are also learning how to sail your boats. Everyone’s boat has become very old. The boat comprises both the soul and the body. People sing: “Take my boat across.” Now that your boat is old, your body is also old. Now, how can it go across and where would it go? You understand what is meant by going across and what is meant by the land of liberation and the land of liberation-in-life. The Father is definitely taking you across. He takes you from the land of sorrow to the land of happiness, that is, from the ocean of poison to the ocean of milk. Those people simply sing: Take my boat across. O Master of the Garden, come and change us thorns into flowers. You too didn’t understand this before. You have now come to know all the secrets of the supreme region, the subtle region and the golden age to the end of the iron age. Only the One who knows these secrets can tell you. If the knowledge continually trickles into you, you will always remain happy. Nothing remains for you to worry about. You become free from worry. You understand that Baba is taking us back with Him. We are now becoming like Baba. A child becomes like his father, does he not? Baba is knowledge-full and He has also made you knowledge-full. Souls have a connection with the Father, the Supreme Soul. You souls say: Whatever knowledge Baba has, He is giving it to us souls. You are the spiritual children of the spiritual Father. This too is a new aspect. No one except Baba can say this. The incorporeal Father says this with the support of a corporeal body. Otherwise, you wouldn’t be able to hear Him. The Father makes the children similar to Himself. That Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. His praise is also your praise; there is no difference. So, what other difference remains? I do not enter the cycle of birth and death, whereas you come into the cycle of birth and death. I am called the Ocean of Knowledge and so I give you children this knowledge. I am the Ocean of Happiness, the Ocean of Purity and the Ocean of Peace and so I give you these as your inheritance. You know that this whole cycle is going to turn again after 5000 years. This knowledge is your source of income. The more you study, the more income you will earn through knowledge. This is knowledge as well as a business. Money lenders make deals. What do you give? Rubbish! A person’s rubbish is given to a karnighor (special brahmin priest) after he dies, whereas you have to give everything you have while you are still alive. People give in the name of God. Now, would you give your old bed etc to God? The Father says: Give everything to Me before you die. All of those old things will be of no use to you. No matter how wealthy someone may be, for how long does that last? Just for one birth. After that, who knows where he would go and take birth according to his karma. You receive from the Father for 21 births according to the effort you make. This is spiritual service. Everyone in the world knows about physical service, but no one knows about spiritual service. It is the Supreme Spirit who comes and gives this knowledge. People celebrate the birth of that Supreme. Only He is called the Ocean of Happiness, the Ocean of Peace, the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. His name is Shiva. His birthday is also celebrated, but they don't have anything in their intellects. Only the Father can reveal all of these secrets and He will reveal them to you again after 5000 years. This knowledge does not exist in the golden age, because souls there are satopradhan. It is only by having this knowledge that souls can become that. These are new aspects. Even those who built the temples to Lakshmi and Narayan don’t know why they built those temples to them. Who gave them that kingdom? How did they attain that status? It is said that that is the fruit of their karma. The Father now sits here and explains the secrets of the philosophy of pure action, neutral action and sinful action. They too must have heard this knowledge. These are the versions of God. It was through the Gita that the original, eternal, deity religion was established. There were very few people there, so where did the rest of the old world go? Surely, destruction must have taken place. The Mahabharat war is also remembered. It is said that the poet Girdhar said this. However, it is Krishna whom they refer to as Girdhar. Who is that poet? It is Shiv Baba who is called the Poet. A poet is someone who narrates something to you. You understand that there are going to be many calamities etc. Just look how they are preparing for the destruction of the old world! This is the time of the Mahabharat war when God comes and creates the sacrificial fire of knowledge of Rudra. For what does God create this sacrificial fire? A sacrificial fire is usually created for peace and happiness. The Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness for all. Therefore, the whole of this old world will be sacrificed into this sacrificial fire of knowledge. You know that you Brahmins are the servants of this yagya (sacrificial fire). Since you Brahmins are the real mouth-born children of Brahma, you have to accept everything that Baba says through this mouth. By following the elevated directions of Shri, Shri we will become elevated and then become beads of the rosary of Rudra. Just as there is a genealogical tree of the Vaswanis and a genealogical tree of the Kirpalanis, so, too, Baba is up above and His genealogical tree is incorporeal. That incorporeal genealogical tree then becomes the corporeal genealogical tree. Brahma, the Father of Humanity, is first in this. So this one is physical and the other is spiritual. The spiritual Father comes and creates His creation through Brahma, the Father of Humanity. People call out to Him: O Purifier come! Come and purify this old and impure world. He does not create a new world, because annihilation can never take place. Therefore, the world history and geography repeat and the cycle of 84 births starts again from the beginning. You receive unlimited knowledge from the unlimited Father and you also receive an unlimited inheritance. Everyone remembers the unlimited Father and says: O God! When they say, “O Ishwar! O Prabhu!” they do not remember an image. It is the incorporeal One that they remember. People also say: “Remember God. He is the Father.” We are all brothers. It is said of souls that they are all brothers. Everyone calls out: O Purifier! O Bestower of Happiness and Remover of Sorrow! O Liberator, come and guide us back home. We have forgotten our home. We do remember our home, but we don’t know how to get there. When you have yoga, it is as though oil is being poured into the soul. Soul are imperishable. The lamp of each soul is not completely extinguished but you now have to add more oil of the power of yoga. Then, there will forever be the festival of lights (Deepmala); there will be light everywhere. Deepmala means that there is light in every home. Where will this Deepmala be? In the golden age, not here. You understand all of these secrets; you don’t have blind faith. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to become free from all worry, become knowledge-full like the Father. Make your intellect continually churn this knowledge.
2. Do spiritual service and create your future reward. Transfer all your old things.
Blessing:
May you be an image that grants and experience the Incorporeal and the subtle in the corporeal form with the lesson of One (ek).
Simply make the lesson of “One” firm and please the Bestower of Blessings. Then, from amrit vela until night time you will continue to be sustained as you move along and fly with blessings in every act you perform in your daily timetable. The lesson of “One” is: One strength (ek bal) and one support (ek bharosa), to follow one direction (ek mat), to be constant and stable (ekras), to have unity (ekta) and to have love for solitude (ekantpriya). The Father loves this word “one”. Those who make this lesson of “one” firm never experience anything to be difficult. Specially blessed souls receive special blessings and this is why it is as though they experience the Incorporeal and the subtle in the corporeal.
Slogan:
Instead of stepping away from others and creating your stage, become a support for everyone.
''मीठे बच्चे - तुम्हारा मगज़ (दिमाग) खुशी से सदा भरपूर होना चाहिए क्योंकि तुम अभी बाप के समान मास्टर नॉलेजफुल बने हो''
प्रश्न:
तुम बच्चे 21 जन्मों के लिए किस आधार पर मालामाल बनते हो?
उत्तर:
संगम पर तुम डायरेक्ट बाप को अपना सब कुछ देते हो। सब बाप के हवाले कर देते हो इसके रिटर्न में तुम 21 जन्मों के लिए मालामाल बन जाते हो। बाबा कहते इस समय तुम्हारे पास जो कूड़ा किचड़ा है वह मुझे दे दो, मरने के पहले अपना सब कुछ ट्रान्सफर कर दो तो भविष्य में उसका रिटर्न मिल जायेगा।
गीत:-
ओम् नमो शिवाए........
ओम् शान्ति।
सालिग्रामों प्रति शिव भगवानुवाच। रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप समझा रहे हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो यहाँ हमको आत्मा समझ बैठना है, न कि शरीर और सारी दुनिया में एक भी ऐसा मनुष्य नहीं है जो यह समझते हों कि आत्मा क्या है। आत्मा को ही नहीं जानते तो फिर परमात्मा को भी कैसे समझेंगे? बाप द्वारा ही आत्मा की समझानी मिलती है। आत्मा और परमात्मा को ही नहीं जानते इसलिए ही मनुष्य दु:खी हैं। अभी तुम बच्चों को यह मालूम हुआ है कि इस ड्रामा की अथवा कल्प वृक्ष की आयु 5 हजार वर्ष है। यह तो समझते हो उन्हों का बीज अगर चैतन्य होता तो बतलाता ना कि मुझ बीज से झाड़ ऐसे पैदा हुआ। अब वह तो है जड़, यह चैतन्य एक ही मनुष्य सृष्टि का वैराइटी झाड़ है। तुम बच्चों को अभी सारी नॉलेज है। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार शुरू से लेकर अन्त तक सारे झाड़ का ज्ञान मिला हुआ है। जैसे बीज में सारे झाड़ का ज्ञान होता है। यह बाप है चैतन्य बीजरूप, गाते भी हैं परमपिता परमात्मा सत-चित-आनंद स्वरूप है। निराकार की महिमा गाई जाती है। उनकी महिमा सबसे बिल्कुल ही न्यारी है। मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते हैं। भल देवताओं को यह वर्सा यहाँ से ही मिलता है परन्तु उनको भी वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता। वन्डरफुल बात है ना। यहाँ अभी तुमको सारा ज्ञान मिलता है। बुद्धि में नॉलेज है - यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। बाप आकरके नई राजधानी स्थापन करते हैं। तुम इस ड्रामा के एक्टर्स हो। सिर्फ तुमको ही ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, रचता और रचना का ज्ञान है और किसको है नहीं। न शूद्र वर्ण को यह ज्ञान है, न देवता वर्ण को यह ज्ञान है। कोई सुनेंगे तो वन्डर खायेंगे। मनुष्य कहते हैं यह त्योहार आदि जो मनाते हैं, वह परमपरा से चले आये हैं। परन्तु बाप समझाते हैं सतयुग में तो यह होते ही नहीं। त्योहारों को कोई जानते ही नहीं। अभी तो कहते हैं ना यह दशहरा, दीवाली आदि त्योहार आने हैं। वहाँ तो यह कुछ भी याद नहीं रहता। एकदम निष्फुरने (निश्चिंत) हो राज्य करते रहेंगे।
अभी यहाँ तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है। तुम एक्टर्स हो। इस ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर्स, ड्युरेशन आदि को जानते हो। यह नॉलेज जिसकी बुद्धि में रहेगी, उनको अपार खुशी रहेगी। गॉड फादर को ही नॉलेजफुल ज्ञान सागर कहा जाता है। कौनसी नॉलेज है? सिवाए तुम्हारे यह कोई भी समझ न सके। गॉड को ही नॉलेजफुल, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता है। तो नॉलेज किसकी है? सभी वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की। शास्त्रों में यह ज्ञान नहीं है। वह है ही भक्ति मार्ग के शास्त्र, सिर्फ पूजा करते रहो। बाकी रचयिता और रचना की नॉलेज कुछ भी नहीं है। तब तो ऋषि-मुनि आदि भी कहते थे कि हम रचता और रचना को नहीं जानते। समझाने वाला एक ही बाप है। तो जानेंगे फिर कहाँ से। अभी तुम बाप द्वारा सुनते हो फिर यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाती है। यह नॉलेज सिवाए तुम बच्चों के और कोई नहीं जानते। तुमको कितनी बड़ी नॉलेज मिलती है। तो तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए! वह लोग डॉक्टरी आदि पढ़ने के लिए, सीखने के लिए विलायत में जाते हैं। तुमको तो यहाँ ऐसा बनाते हैं जो वहाँ यह डॉक्टर आदि होते ही नहीं। बेहद का बाप जो नॉलेजफुल है, उन द्वारा हम सब कुछ जान जाते हैं। उनकी हम सन्तान हैं। तो ज्ञान से मगज़ (दिमाग) कितना भरपूर रहना चाहिए। कितनी खुशी होनी चाहिए। ऐसी कोई चीज नहीं जिसको हम न जानते हो। वह लोग जो कुछ पढ़ते हैं वह तो कुछ नहीं है। भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि कितने पढ़ते हैं। परन्तु यह तो कोई नहीं जानते कि यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? तुम बच्चे अभी मास्टर नॉलेजफुल बनते हो। नटशेल में तो सब जान चुके हो। बाकी सिर्फ आत्मा जो तमोप्रधान है उनको सतोप्रधान बनाना है। कोई हैं जो तमोप्रधान से तमो बने होंगे, कोई तमो से रजो बने होंगे, कोई रजो से सतो बने होंगे। सतोप्रधान नहीं कहेंगे। सतोप्रधान जब बन जायेंगे तो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कर्मातीत अवस्था आ जायेगी फिर तो नई दुनिया चाहिए राजाई के लिए इसलिए पुरानी दुनिया का विनाश होता है। जब यह यज्ञ पूरा होगा तो सारी पुरानी दुनिया की आहुति पड़ेगी। यह पढ़ाई पूरी हो जायेगी फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे। जैसे वह भी इम्तहान पास कर फिर ट्रांसफर हो जाते हैं, तुम भी मृत्युलोक से ट्रांसफर हो अमरलोक में चले जायेंगे। हम अमरलोक में थे फिर 84 जन्म लेते-लेते मृत्युलोक में आ गये हैं।
तुम कहते हो अभी हम पढ़ रहे हैं फिर अमरलोक में जाकर देवी-देवता बनेंगे। बाप ही मनुष्य से देवता बनाते हैं। पतितों को पावन देवी-देवता कौन बनायेगा? देवता तो यहाँ कोई है नहीं, जो देवी-देवता बनावे। लक्ष्मी-नारायण चाहिए ना। वह तो यहाँ होते नहीं। तुम बच्चे जानते हो इस समय बाप ही आकर पढ़ाते हैं। स्वर्ग का राज्य भाग्य देते हैं। स्वर्ग था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था ना। इन्हों की यह राजाई किसने स्थापन की? हेविनली गॉड फादर ने ही पैराडाइज सतयुग स्थापन किया, जहाँ देवी-देवता राज्य करते थे। वहाँ दूसरा कोई खण्ड था नहीं। एक ही भारत था। तुम्हारी बुद्धि में है - हम जब राज्य करेंगे तो दूसरा कोई नहीं होगा। तुम्हारी बुद्धि में यह सारा झाड़ है, इसका बीज ऊपर में है। वह सत है, चैतन्य है। आत्मा भी इम्पैरेसिबुल है। बाबा भी इम्पेरेसिबुल है। जो बाबा में ज्ञान है वह तुमको सुनाते हैं। सारा झाड़ खड़ा है, बाबा ऊपर में है। इस समय मनुष्य तमोप्रधान कांटे हैं। झाड़ पुराना होने से जैसे सूख जाता है इसलिए इनको कहा जाता है कांटों का जंगल। वहाँ होता है फूलों का बगीचा। बागवान भी है, किसको खिवैया, किसको बागवान, किसको माली कहते हैं। बाप है खिवैया। तुम भी बोट चलाना सीख रहे हो। हरेक की नईया बहुत पुरानी हो गई है। नईया आत्मा और शरीर दोनों की बनी हुई है। गाते भी हैं - नईया मेरी पार लगाओ। अब नईया भी पुरानी तो शरीर भी पुराना। अब पार कैसे हो और कहाँ जायें? तुम जानते हो पार किसको कहा जाता है, मुक्तिधाम, जीवनमुक्तिधाम क्या चीज़ है! बरोबर बाप अभी पार ले जाते हैं, दु:खधाम से सुखधाम अथवा विषय सागर से क्षीरसागर में ले जाते हैं। वह सिर्फ गाते हैं नईया मेरी पार लगाओ, बागवान आओ, कांटों को फूल बनाओ। तुम भी पहले नहीं जानते थे। अभी मूलवतन, सूक्ष्मवतन, सतयुग से लेकर कलियुग तक सब राज़ को जान गये हो। जो जानते हैं वही सुनाते हैं। अन्दर ज्ञान टपकता रहे तो सदैव खुशी में रहेंगे। कोई चिंता की बात ही नहीं रहती, फिक्र से फ़ारिग हो जाते हो।
तुम जानते हो बाबा हमको ले जाते हैं, अब हम बाबा जैसे बन रहे हैं। बच्चा बाप समान बनता है ना। बाबा नॉलेजफुल है, तुमको भी नॉलेजफुल बनाया है। आत्माओं का कनेक्शन है ही परमात्मा बाप से। आत्मा कहती है जो बाबा में नॉलेज है, वह हम आत्माओं को दे रहे हैं। तुम हो रूहानी बाप के रूहानी बच्चे। यह भी नई बात है ना। बाबा बिगर कोई सुना न सके। वह निराकार बाप भी साकार के आधार से सुनाते हैं। नहीं तो तुम सुन न सको। बच्चों को बाप आप समान बनाते हैं। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता वह बाप है। उनकी जो महिमा है वह तुम्हारी भी है, कोई फ़र्क नहीं। बाकी क्या फ़र्क रहता है? हम जन्म-मरण में नहीं आते हैं, तुम जन्म-मरण में आते हो। मुझे ज्ञान सागर कहते हैं तो मैं तुम बच्चों को ज्ञान देता हूँ। मैं सुख का सागर, पवित्रता का सागर, शान्ति का सागर हूँ, तो तुमको भी यह वर्सा देता हूँ।
तुम जानते हो यह सारा चक्र फिर 5 हजार वर्ष बाद फिरेगा। यह नॉलेज है सोर्स आफ इनकम। जितना पढ़ते हैं उतना नॉलेज से इनकम होती है। यह नॉलेज भी है तो धंधा भी है। शर्राफ लोग सट्टा करते हैं, तुम क्या देते हो? कूड़ा-किचड़ा। मरने के बाद करनीघोर को कूड़ा-किचड़ा ही देते हैं। तुमको तो जीते जी देना है। ईश्वर अर्थ देते हैं। अब क्या ईश्वर को पुराना खटिया आदि देंगे? बाप कहते हैं तुम मरने से पहले ही सब दे दो। यह पुरानी चीज़ तुम्हारे काम में ही नहीं आयेगी। भल कोई कितना भी साहूकार हो परन्तु कितने दिन के लिए होगा? एक जन्म के लिए, फिर कर्मों अनुसार पता नहीं कहाँ जाकर जन्म लेंगे। तुम तो बाप से 21 जन्मों के लिए लेते हो पुरुषार्थ अनुसार।
यह है रूहानी सर्विस। सारी दुनिया जानती है जिस्मानी सर्विस को। रूहानी को कोई जानते ही नहीं। सुप्रीम रूह ही आकर नॉलेज देते हैं। उस सुप्रीम का जन्म भी मनाते हैं। उनको ही सुख का सागर, शान्ति का सागर, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता कहते हैं। शिव नाम है ना। जयन्ती भी मनाते हैं। परन्तु बुद्धि में कुछ नहीं है। बाप ही यह सब राज़ सुनाते हैं। फिर 5 हजार वर्ष बाद सुनायेंगे। यह ज्ञान सतयुग में नहीं होता क्योंकि आत्मायें सतोप्रधान हैं। ज्ञान से ही वह ऐसी बनती हैं। यह नई बातें हैं ना। मन्दिर बनाने वाले भी यह नहीं जानते कि लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर हम क्यों बनाते हैं? उन्हों को यह राज्य किसने दिया? कैसे यह पद पाया? कहते हैं ना कर्मों का फल है। अभी बाप बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गति का राज़ समझाते हैं। उन्हों ने भी यह नॉलेज सुनी होगी। है ही भगवानुवाच - गीता से ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हुई। वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी सारी पुरानी सृष्टि कहाँ गई? जरूर विनाश हुआ होगा। महाभारत लड़ाई भी गाई हुई है। गिरधर कविराज कहते हैं। अब गिरधर तो कहते हैं कृष्ण को। कवि कौन है? शिवबाबा को कवि कहा जाता है। कवि अर्थात् सुनाने वाला।
तुम जानते हो आ़फतें आदि बहुत आनी हैं। पुरानी दुनिया के विनाश लिए क्या-क्या चीजें बना रहे हैं। यह वही महाभारत लड़ाई है जबकि भगवान् ने आकर रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। भगवान् यज्ञ किसलिए रचते हैं? यज्ञ रचा ही जाता है सुख-शान्ति के लिए। बाप सभी का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है। तो इस ज्ञान यज्ञ में सारी पुरानी सृष्टि स्वाहा हो जायेगी। तुम जानते हो हम ब्राह्मण यज्ञ के सर्वेन्ट हैं। हम ब्राह्मण ब्रह्मा के सच्चे मुख वंशावली हैं तो बाबा जो मुख से कहे वह मानना पड़े। श्री श्री की श्रेष्ठ मत से ही हम श्रेष्ठ बन, रूद्र की माला का दाना बनेंगे। सिजरा बनाते हैं - वासवानी सिजरा, कृपलानी सिजरा....। तो ऊपर में है शिवबाबा, उनका है निराकारी सिजरा। निराकारी सिजरा वह फिर साकारी सिजरा होता है। पहले नम्बर में है प्रजापिता। तो वह हुआ जिस्मानी और वह रूहानी। रूहानी बाप आकर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। उनको बुलाते ही हैं हे पतित-पावन आओ। पुरानी पतित दुनिया को पावन बनाने आओ। नई नहीं बनाते हैं। प्रलय होती नहीं। तो यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। 84 का चक्र फिर से शुरू होता है। बेहद के बाप से बेहद की नॉलेज मिलती है, बेहद का वर्सा मिलता है। बेहद के बाप को सब याद करते हैं - हे भगवान् कहते हैं ना। हे ईश्वर, हे प्रभू कहने से कोई चित्र याद नहीं आता। निराकार याद आता है। कहते भी हैं कि भगवान् को याद करो। फादर है ना। हम सब हैं ब्रदर्स। आत्माओं के लिए कहते हैं सब ब्रदर्स हैं। सब पुकारते हैं - हे पतित-पावन, दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, हे लिबरेटर आओ, हमको गाइड करो। घर भूल गया है। याद है परन्तु हम जा नहीं सकते हैं। योग लगाने से जैसे घृत पड़ता जाता है। आत्मा अविनाशी है ना। तो आत्मा की ज्योति सारी उझाई नहीं जाती है। तो अब योगबल का घृत डालना है। सदैव के लिए फिर दीपमाला, सोझरा हो जायेगा। दीपमाला अर्थात् घर-घर में सोझरा। तो दीपमाला कहाँ होगी? सतयुग में। यहाँ नहीं। यह सब राज़ तुम समझते हो, तुम्हारे पास ब्लाइन्डफेथ नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) चिंताओं से फ्री होने के लिए बाप समान नॉलेजफुल बनना है। बुद्धि में सदा ज्ञान का सिमरण करते रहना है।
2) रूहानी सर्विस कर अपनी प्रालब्ध बनानी है। पुराना सब कुछ ट्रांसफर कर देना है।
वरदान:
एक के पाठ द्वारा निराकार, आकार को साकार में अनुभव करने वाले वरदानी मूर्त भव!
सिर्फ एक का पाठ पक्का करके वरदाता को राज़ी कर लो तो अमृतवेले से रात तक हर दिनचर्या के कर्म में वरदानों से ही पलते, चलते, उड़ते रहेंगे। वह एक का पाठ है - एक बल एक भरोसा, एकमत, एकरस, एकता और एकान्तप्रिय ...यह ''एक'' शब्द ही बाप को प्रिय है। जो इस एक का पाठ पक्का कर लेते हैं उन्हें कभी मुश्किल का अनुभव नहीं होता। ऐसी वरदानी आत्मा को विशेष वरदान प्राप्त होता है इसलिए वे निराकार-आकार को जैसे साकार अनुभव करते हैं।
स्लोगन:
किसी से किनारा करके अपनी अवस्था बनाने के बजाए सर्व का सहारा बनो।
24/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, your heads should be constantly filled with happiness because you have now become master knowledge-full, like the Father.
Question:
On what basis do you children become prosperous for 21 births?
Answer:
At the confluence age you give everything of yours directly to the Father. You hand over everything to the Father and, in return, you become prosperous for 21 births. Baba says: At this time give whatever rubbish you have to Me. Before you die, transfer everything you have and you will receive the return of that in the future.
Song:
Salutations to Shiva.
Om Shanti
God Shiva speaks to you saligrams. The spiritual Father is explaining to the spiritual children. You children now understand that you have to sit here while considering yourself to be souls and not bodies. There is not a single human being in this world who understands what a soul is. If they don’t know about the soul, how could they know about the Supreme Soul? You are given an explanation of the soul by the Father. Human beings don’t know what a soul is or who the Supreme Soul is. That is why they are unhappy. You children now know how long this drama lasts and that the life cycle of this tree is 5000 years. You understand that if the seeds of those trees were living they would tell you how the tree emerges from the seed. However, all those seeds are non-living; this is the only living Seed of the variety human world tree. You children now have the whole knowledge. You have received the knowledge of the whole tree from its beginning to its end, numberwise, according to your efforts. Just as the knowledge of a whole tree is merged in its seed, so this Father is the living Seed. People sing that the Supreme Father, the Supreme Soul is the Truth, the Living Being and the Embodiment of Bliss. This praise is of the incorporeal One. His praise is completely distinct from that of anyone else. Human beings don’t understand anything. Although deities receive their inheritance here, they do not have this knowledge there. This is a wonderful aspect. You now receive the whole knowledge here. You have in your intellects the knowledge of how the world cycle turns. The Father comes and creates the new kingdom. You are actors in this drama. Only you have the knowledge of the drama from its beginning, through the middle to its end and of the Creator and creation; no one else has this knowledge. Neither the shudra clan nor the deity clan has this knowledge. If they were to hear this, they would be wonder struck. People say that the festivals they celebrate have continued since time immemorial, but the Father says that they do not exist in the golden age. No one knows about the festivals. You now say that the festivals of Dashera, Diwali etc are coming. These things are not remembered there. You rule your kingdom without worrying about anything. The locks on your intellects have now opened. You are actors. You know the Creator of this drama, its duration, the Director and all the main actors etc. Those who retain this knowledge in their intellects will experience limitless happiness. Only God, the Father, is called knowledge-full, the Ocean of Knowledge. What knowledge? No one apart from you can understand this. Only God is called the knowledge-full World Almighty Authority. What knowledge is this? It is the knowledge of all the Vedas, the scriptures and the Granth etc. and the beginning, the middle and the end of the world. This knowledge is not in the scriptures. Those scriptures are of the path of devotion. People just continue to worship; they do not have knowledge of the Creator or His creation. This is why even sages and holy men etc. say that they do not know the Creator or His creation. Only the one Father can explain all of these things. Therefore, how could they know about these things? The knowledge that you receive from the Father will later disappear. No one, except you children, knows this knowledge. You receive such great knowledge. Therefore, how much happiness you children should experience! People go abroad to study medicine etc. Here, you become so healthy that there will be no need for doctors etc. there. We come to know everything from the unlimited Father who is knowledge-full. We are His children. So, your head should remain so full with this knowledge that you continue to experience a great deal of happiness. There is nothing that you don’t know about. Whatever those people study is nothing. They study so many scriptures etc. of the path of devotion but none of them knows how this human world cycle turns. You children are now becoming master knowledge-full. You have come to know everything in a nutshell. You have to make souls that have become tamopradhan become satopradhan. There are some who, from tamopradhan have become tamo, some have become rajo from tamo and some have become sato from rajo, but no one could be said to be satopradhan yet. When you do become satopradhan, you will have reached your karmateet stage, numberwise, according to the effort you made. The new world will then be required for the kingdom. This is why the old world has to be destroyed. When the sacrificial fire of knowledge is about to come to an end, everything of this old world will be sacrificed into it. When your study is completed you will attain your karmateet stage, numberwise, according to your efforts. Just as when students pass an exam and they are transferred, in the same way, you too will be transferred from this land of death to the land of immortality. We were in the land of immortality and, while taking 84 births, we came into the land of death. You say that you are now studying and that you will then go to the land of immortality and become deities. Only the Father changes ordinary human beings into deities. Who else could purify the impure and make them into deities? There are no deities here who could create deities. Lakshmi and Narayan would be needed, but they are not here. You children know that the Father comes at this time to teach you. He gives you your fortune of the kingdom of heaven. There was heaven; there was the kingdom of Lakshmi and Narayan. Who established their kingdom? It was Heavenly God, the Father, who created Paradise, satyug (the age of truth), where the deities ruled. There were no other lands at that time; there was only Bharat. It is in your intellects that, when you rule, no one else will exist there. The whole tree is in your intellects. Its Seed is up above. He is the Truth and the Living Being. Souls are imperishable and Baba is also imperishable. Baba tells you all the knowledge He has. The whole tree is in front of you and Baba is above it at the top. People at this time are completely degraded thorns. Because the tree is old, it has dried up, which is why this world is called the jungle of thorns. There, there is a garden of flowers. Baba is the Master of the Garden. Some call Him the Boatman and some call Him the Gardener. The Father is the Boatman. You are also learning how to sail your boats. Everyone’s boat has become very old. The boat comprises both the soul and the body. People sing: “Take my boat across.” Now that your boat is old, your body is also old. Now, how can it go across and where would it go? You understand what is meant by going across and what is meant by the land of liberation and the land of liberation-in-life. The Father is definitely taking you across. He takes you from the land of sorrow to the land of happiness, that is, from the ocean of poison to the ocean of milk. Those people simply sing: Take my boat across. O Master of the Garden, come and change us thorns into flowers. You too didn’t understand this before. You have now come to know all the secrets of the supreme region, the subtle region and the golden age to the end of the iron age. Only the One who knows these secrets can tell you. If the knowledge continually trickles into you, you will always remain happy. Nothing remains for you to worry about. You become free from worry. You understand that Baba is taking us back with Him. We are now becoming like Baba. A child becomes like his father, does he not? Baba is knowledge-full and He has also made you knowledge-full. Souls have a connection with the Father, the Supreme Soul. You souls say: Whatever knowledge Baba has, He is giving it to us souls. You are the spiritual children of the spiritual Father. This too is a new aspect. No one except Baba can say this. The incorporeal Father says this with the support of a corporeal body. Otherwise, you wouldn’t be able to hear Him. The Father makes the children similar to Himself. That Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. His praise is also your praise; there is no difference. So, what other difference remains? I do not enter the cycle of birth and death, whereas you come into the cycle of birth and death. I am called the Ocean of Knowledge and so I give you children this knowledge. I am the Ocean of Happiness, the Ocean of Purity and the Ocean of Peace and so I give you these as your inheritance. You know that this whole cycle is going to turn again after 5000 years. This knowledge is your source of income. The more you study, the more income you will earn through knowledge. This is knowledge as well as a business. Money lenders make deals. What do you give? Rubbish! A person’s rubbish is given to a karnighor (special brahmin priest) after he dies, whereas you have to give everything you have while you are still alive. People give in the name of God. Now, would you give your old bed etc to God? The Father says: Give everything to Me before you die. All of those old things will be of no use to you. No matter how wealthy someone may be, for how long does that last? Just for one birth. After that, who knows where he would go and take birth according to his karma. You receive from the Father for 21 births according to the effort you make. This is spiritual service. Everyone in the world knows about physical service, but no one knows about spiritual service. It is the Supreme Spirit who comes and gives this knowledge. People celebrate the birth of that Supreme. Only He is called the Ocean of Happiness, the Ocean of Peace, the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. His name is Shiva. His birthday is also celebrated, but they don't have anything in their intellects. Only the Father can reveal all of these secrets and He will reveal them to you again after 5000 years. This knowledge does not exist in the golden age, because souls there are satopradhan. It is only by having this knowledge that souls can become that. These are new aspects. Even those who built the temples to Lakshmi and Narayan don’t know why they built those temples to them. Who gave them that kingdom? How did they attain that status? It is said that that is the fruit of their karma. The Father now sits here and explains the secrets of the philosophy of pure action, neutral action and sinful action. They too must have heard this knowledge. These are the versions of God. It was through the Gita that the original, eternal, deity religion was established. There were very few people there, so where did the rest of the old world go? Surely, destruction must have taken place. The Mahabharat war is also remembered. It is said that the poet Girdhar said this. However, it is Krishna whom they refer to as Girdhar. Who is that poet? It is Shiv Baba who is called the Poet. A poet is someone who narrates something to you. You understand that there are going to be many calamities etc. Just look how they are preparing for the destruction of the old world! This is the time of the Mahabharat war when God comes and creates the sacrificial fire of knowledge of Rudra. For what does God create this sacrificial fire? A sacrificial fire is usually created for peace and happiness. The Father is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness for all. Therefore, the whole of this old world will be sacrificed into this sacrificial fire of knowledge. You know that you Brahmins are the servants of this yagya (sacrificial fire). Since you Brahmins are the real mouth-born children of Brahma, you have to accept everything that Baba says through this mouth. By following the elevated directions of Shri, Shri we will become elevated and then become beads of the rosary of Rudra. Just as there is a genealogical tree of the Vaswanis and a genealogical tree of the Kirpalanis, so, too, Baba is up above and His genealogical tree is incorporeal. That incorporeal genealogical tree then becomes the corporeal genealogical tree. Brahma, the Father of Humanity, is first in this. So this one is physical and the other is spiritual. The spiritual Father comes and creates His creation through Brahma, the Father of Humanity. People call out to Him: O Purifier come! Come and purify this old and impure world. He does not create a new world, because annihilation can never take place. Therefore, the world history and geography repeat and the cycle of 84 births starts again from the beginning. You receive unlimited knowledge from the unlimited Father and you also receive an unlimited inheritance. Everyone remembers the unlimited Father and says: O God! When they say, “O Ishwar! O Prabhu!” they do not remember an image. It is the incorporeal One that they remember. People also say: “Remember God. He is the Father.” We are all brothers. It is said of souls that they are all brothers. Everyone calls out: O Purifier! O Bestower of Happiness and Remover of Sorrow! O Liberator, come and guide us back home. We have forgotten our home. We do remember our home, but we don’t know how to get there. When you have yoga, it is as though oil is being poured into the soul. Soul are imperishable. The lamp of each soul is not completely extinguished but you now have to add more oil of the power of yoga. Then, there will forever be the festival of lights (Deepmala); there will be light everywhere. Deepmala means that there is light in every home. Where will this Deepmala be? In the golden age, not here. You understand all of these secrets; you don’t have blind faith. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to become free from all worry, become knowledge-full like the Father. Make your intellect continually churn this knowledge.
2. Do spiritual service and create your future reward. Transfer all your old things.
Blessing:
May you be an image that grants and experience the Incorporeal and the subtle in the corporeal form with the lesson of One (ek).
Simply make the lesson of “One” firm and please the Bestower of Blessings. Then, from amrit vela until night time you will continue to be sustained as you move along and fly with blessings in every act you perform in your daily timetable. The lesson of “One” is: One strength (ek bal) and one support (ek bharosa), to follow one direction (ek mat), to be constant and stable (ekras), to have unity (ekta) and to have love for solitude (ekantpriya). The Father loves this word “one”. Those who make this lesson of “one” firm never experience anything to be difficult. Specially blessed souls receive special blessings and this is why it is as though they experience the Incorporeal and the subtle in the corporeal.
Slogan:
Instead of stepping away from others and creating your stage, become a support for everyone.
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