Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 18th Sep -2018 )
18-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - आत्मा और परमात्मा का यथार्थ ज्ञान तुम्हारे पास है, इसलिए तुम्हें ललकार करनी है, तुम हो शिव शक्तियां''
प्रश्नः-
सबसे ऊंची मंज़िल कौन सी है, जिसका ही तुम बच्चे पुरुषार्थ कर रहे हो?
उत्तर:-
निरन्तर याद में रहना - यह है सबसे ऊंची मंजिल। याद से ही कर्मभोग चुक्तू हो कर्मातीत अवस्था होगी। जिस मात-पिता से अपार सुख मिल रहे हैं, उनके लिये बच्चे कहते - बाबा, आपकी याद भूल जाती है! वन्डर है ना। देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ चलता रहे तो याद भूल नहीं सकती।
गीत:-
किसने यह सब खेल रचाया.......
ओम् शान्ति।
भगवानुवाच - बच्चे अपने बाप भगवान् को जानते हैं। अभी बच्चे आकरके बाप द्वारा आस्तिक बने हैं, क्योंकि बाप द्वारा बाप को जाना है इसलिए आस्तिक कहलाते हैं। तुमने जाना है बरोबर हम आत्मा हैं, वह हम आत्माओं का बाप है। भल कोई मनुष्य अपने को आत्मा समझते भी हों परन्तु परमात्मा को कोई नहीं जानते। जब बाप खुद आकर बच्चे पैदा करे और उनको अपना परिचय दे, तब जानें। बाप को ही अपना परिचय देना है। वह है आत्माओं का फादर। सम्मुख आकर बतलाते हैं कि तुम आत्मायें हो, मैं तुम आत्माओं का परमपिता हूँ। तुम निश्चय करते हो। यह तो कॉमन बात है। आत्माओं का बाप जरूर है। गायन भी है आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल.......। बाप को बच्चे ही जानते हैं। बाप 5 हजार वर्ष बाद फिर आये हुए हैं। जब सब बच्चे नास्तिक दु:खी बन जाते हैं, एक भी आस्तिक नहीं रहता है तब बाप आते हैं। आस्तिक बनाकर फिर छिप जाते हैं। फिर कोई भी बाप को जानते नहीं। अब तुम बच्चों में यह निश्चय नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार है। सबको पूरा निश्चय नहीं है। भल यहाँ सम्मुख बैठे हैं, जानते हैं परमपिता परमात्मा, पतित-पावन बाप पतित से पावन देवता बना रहे हैं। देवताओं की तो यहाँ सिर्फ मूर्तियां हैं। खुद तो हैं नहीं। जो भी मनुष्य मात्र हैं, सिवाए तुम ब्राह्मणों के, और कोई भी आत्मा और परमात्मा को नहीं जानते। हम सो परमात्मा कह देने से न आत्मा को, न परमात्मा को जानते। तुम बच्चे जानते हो कि एक भी मनुष्य नहीं जो अपने को यथार्थ रीति आत्मा समझ और परमात्मा को अपना बाप समझें। लेकिन अब यह ललकार कौन करें? शक्तियों ने ही ललकार की थी। परन्तु अभी तक वह शक्ति आई नहीं है जो तुम्हारे में आनी चाहिए। शिव शक्तियां तो मशहूर हैं, नामीग्रामी हैं। जगत अम्बा भी शक्ति है। अब कॉन्फ्रेन्स में रिलीजस हेड्स सब आते हैं, उन्हें भी समझाना है।
बाप समझाते हैं - बच्चे, तुमको तो देही-अभिमानी बनना है। हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा से वर्सा ले रहे हैं - यह निश्चय नहीं है, कोई संशय है तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अच्छे-अच्छे बच्चे भी चलते-चलते माया का तूफान लगने से गिर पड़ते हैं। निश्चयबुद्धि से संशयबुद्धि हो पड़ते हैं। नहीं तो बच्चे कभी भी संशयबुद्धि नहीं होते हैं कि हमारा यह बाप नहीं है। यहाँ यह वन्डर है। कहते भी हैं परमपिता परमात्मा हम सब आत्माओं का बाप है, वह हमको पढ़ाते हैं फिर भी बाप को भूल जाते हैं। रोज़ समझाते रहते हैं - बच्चे, अपने बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। विकर्म तो जन्म-जन्मान्तर के सिर पर बहुत हैं। तुम जानते हो मम्मा-बाबा, जिसको ब्रह्मा-सरस्वती कहते हो, वह नम्बरवन में हैं। वह भी खुद कहते हैं - इतना योग लगाते हैं, मेहनत करते हैं तो भी अनेक जन्मों के पाप कटे नहीं हैं। कुछ न कुछ भोगना पड़ता है। अन्त में इस भोगना से छूट कर्मातीत अवस्था को पाना है। पुरुषार्थ करना है। माया भी कम रुसतम नहीं है, दोनों ही सर्वशक्तिमान हैं। रावण माया ने सब मनुष्य मात्र को पतित बना दिया है। गाते भी हैं पतित-पावन, तालियां बजाते रहते हैं, तो जरूर पतित हैं ना परन्तु अपने को समझते नहीं हैं कि हम पतित हैं। यह समझाना भी जरूरी है कि अब यह पतित दुनिया है। पावन दुनिया सतयुग को कहा जाता है। पावन दुनिया में ऐसे पतित-पावन को नहीं बुलायेंगे। वहाँ तो भारत बहुत सुखी था, एक ही धर्म था। अभी तुम जानते हो परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर है, वह इन सब वेदों-शास्त्रों आदि के राज़ को जानते हैं। वही पढ़ा रहे हैं परन्तु कोई-कोई ऐसे हैं जो यह भी भूल जाते हैं कि हमको परमात्मा पढ़ाते हैं। बेहद का बाप हमें पढ़ाते हैं, वह नशा नहीं चढ़ता। यहाँ से बाहर घर जाने से नशा चकनाचूर हो जाता है। कोई मुश्किल हैं जो युक्तियुक्त पुरुषार्थ करते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। देह-अभिमान तो नम्बरवन है। बाबा ने समझाया है अपने को देही समझो। हम आत्मा हैं, इस शरीर द्वारा हम कर्म करते हैं। अपने को परमात्मा तो कभी नहीं समझना है। बाप कहते हैं मैं तुमको पतित से पावन बनाने आया हूँ। मुझे घड़ी-घड़ी याद करो। परन्तु बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे भी बाप को याद नहीं करते हैं और फिर सच भी नहीं बतलाते हैं। चार्ट जो लिखकर भेजते हैं, उसमें भी झूठ। सच्चा चार्ट लिखते नहीं। बाबा समझाते हैं अपने को आत्मा समझो, हम आत्मा 84 जन्म पूरे कर अब बाबा के पास जाती हूँ। सवेरे उठकर बाबा को याद करो तो उसका नशा सारा दिन रहेगा। मनुष्य धन कमाते हैं तो नशा रहता है ना कि आज इतना कमाया। यह भी धन्धा है, व्यापार है तो उसमें कितनी मेहनत करनी चाहिए। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं, कितनी मेहनत करते हैं। सवेरे उठकर अपने से बातें करनी है। अब पार्ट पूरा हुआ, अभी हम गये कि गये, फिर 21 जन्म राज्य करना है। कितना मीठा, कितना प्यारा वन्डरफुल बाबा है। ऐसे बाप को कोई भी मनुष्य मात्र जानते नहीं हैं। बाप आकर बच्चों को अपने से भी ऊंच ले जाते हैं और बच्चे फिर बाप को सर्वव्यापी कह अपने से भी नीचे ले गये हैं इसलिए बाप कहते हैं तुम बहुत दु:खी बन पड़े हो। मैं तुम बच्चों को ब्रह्माण्ड और विश्व दोनों का मालिक बनाता हूँ और फिर तुम बच्चे मुझ बाप को सर्वव्यापी कह देते हो। यह भी ड्रामा में खेल है। अब बाप डायरेक्शन देते हैं - ऐसे-ऐसे समझाओ।
लक्ष्मी-नारायण आदि देवी-देवतायें 100 परसेन्ट सालवेन्ट बुद्धि थे, अभी नहीं हैं। फ़र्क देखो कितना है - कहाँ भारत स्वर्ग था, अभी नर्क है। यह ज्ञान कोई भी मनुष्य में नहीं है। तुम बच्चों में भी वह ताकत नहीं है। देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी को तो धारणा होनी चाहिए। बाप डायरेक्शन देते हैं - ऐसे-ऐसे ललकार करो। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है - कोई को पता नहीं है। तुम जानते हो हम आत्मा बिन्दी हैं, हमारा बाप परमपिता परमात्मा भी बिन्दी है। वह नॉलेजफुल, पतित-पावन है। जन्म-मरण में नहीं आते हैं। हम आत्मायें जन्म-मरण में आती हैं। परमपिता परमात्मा कहते हैं मेरा भी पार्ट है, मैं आता हूँ, तुम सबको सुखी बनाकर फिर निर्वाणधाम में बैठ जाता हूँ। मनुष्य बूढ़े होते हैं तो वानप्रस्थ में चले जाते हैं, परन्तु अर्थ नहीं समझते। वानप्रस्थ माना वाणी से परे स्थान। वह थोड़ेही वाणी से परे बैठते हैं। अभी वानप्रस्थी तो सब हैं। हम आत्मायें वाणी से परे रहने वाली हैं। परन्तु उस स्थान को भी जानते नहीं। तुम्हारे में भी कोई-कोई की बुद्धि में यह बातें हैं। देह-अभिमान बहुत है। बाप को फालो नहीं करते हैं। माया भी बहुत प्रबल है। आत्मा और परमात्मा के संबंध को कोई भी नहीं जानते हैं। बाप के संबंध को ही नहीं जानते। तुम भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। बाप का बनकर बाप को पूरा याद करना चाहिए ना। कहते हैं - बाबा, घड़ी-घड़ी याद करना भूल जाता हूँ। अरे, तुम मात-पिता को याद करना भूल जाते हो! निरन्तर याद करने की ही मंजिल है, जिस मात-पिता से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हो, तुम उनको भूल जाते हो! वन्डर है। मात-पिता तो एक ही है। बाप कहते हैं मैं ही तुम्हारा मात-पिता हूँ। यह हैं बड़ी गुह्य बातें। कई समझते हैं जगत अम्बा माता है, परन्तु नहीं वह तो साकारी है ना। तुम मात-पिता गाते हो निराकार को। यह सब बातें पहले नहीं बतलाते थे। दिन-प्रतिदिन गुह्य बातें सुनाई जाती हैं। कोई भी बात न समझा सको तो बोलो - बाबा ने अजुन सुनाया नहीं है, बाप से पूछेंगे। दिन-प्रतिदिन बहुत नई-नई प्वाइंट्स मिलती रहती हैं। नॉलेज तो बहुत बड़ी है। समझने वाले कोई समझें। पढ़ते-पढ़ते थक जाते हैं। बाबा को लिखते हैं - मैं नहीं चल सकूंगा, तंग हो गया हूँ। तंग होकर पढ़ाई को छोड़ देते हैं। विकार में जाते हैं तो पढ़ाई छूट जाती है। यह पढ़ाई ब्रह्मचर्य की धारणा से ही होगी। अगर ब्रह्मचर्य को तोड़ा तो धारणा नहीं हो सकेगी। दूसरे को कह नहीं सकेंगे कि काम महाशत्रु है। बुद्धि का ताला ही बन्द हो जाता है। मंज़िल बहुत ऊंची है।
सन्यासी तो गृहस्थ धर्म को छोड़ भाग जाते हैं। वो हैं हठयोगी सन्यासी, यह है राजयोग। बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। हठयोगी कभी राजयोग नहीं सिखला सकेंगे। यह बात पूरा समझाने का ढंग नहीं आया है। उन्हों का है हठयोग सन्यास। वह पतित को पावन बना नहीं सकते। तुम्हारा है बेहद का सन्यास, वह है हद का सन्यास। तुम्हारी बुद्धि में है कि हमारे 84 जन्म पूरे हुए, अब हम वापिस जाते हैं। यह बेहद का सन्यास बुद्धि से किया जाता है। उनका है हठयोग कर्म सन्यास। तुम्हारा है राजयोग, कर्मयोग, जो भगवान् ने सिखलाया है। अभी तुम अच्छी रीति समझा सकते हो कि वह है हठयोग और यह है राजयोग। शिव को भी कोई समझते नहीं हैं। जैसे आत्मा बिन्दी है, वैसे शिव भी बिन्दी है। बिन्दी का निशान भी भ्रकुटी में ही दिया जाता है और कोई जगह बिन्दी नहीं देंगे। भ्रकुटी में ही बिन्दी दी जाती है। आत्मा भी यहाँ ही निवास करती है - यह किसको पता नहीं है। इतनी छोटी बिन्दी में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है, यह कितनी डीप बातें हैं। कोई को समझाने नहीं आयेंगी। रीयल्टी में समझाना है। जैसे आत्मा बिन्दी है, वैसे परमात्मा भी बिन्दी है। अगर दूसरी आत्मा आयेगी तो वह भी बाजू में आकर बैठेगी ना। ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं, आत्मा आकर बोलती है - हमने फलानी जगह जन्म लिया है, तो वह आत्मा कहाँ आकर बैठेगी? क्या माथे में? उनमें अपनी भी आत्मा है ना। बाप कहते हैं मैं भी बिन्दी हूँ, मुझे परमपिता परम आत्मा कहते हैं। उनकी महिमा बड़ी भारी है। शिवाए नम: .... यह किसने महिमा की? आत्मा सालिग्राम ने, तो जरूर वह अलग है। दुनिया इन बातों को नहीं जानती, तुम जानते हो उनका एक ही नाम शिव है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: कहेंगे। उनको शिव परमात्माए नम: कहेंगे। तो शिव ऊंच ठहरा ना। यह बातें तुम समझ सकते हो। यह नॉलेज भी तुमको अभी है। तुम्हारा यह हीरे जैसा जन्म है। देवतायें तो प्रालब्ध भोगते हैं। यह प्रालब्ध देने वाला बाप वन्डरफुल है। ऐसे पारलौकिक बाप का कितना रिगॉर्ड रखना चाहिए। बुद्धियोग इस ब्रह्मा में नहीं, उनमें रखना है। वह बाप पढ़ाते हैं इस द्वारा, यह शरीर लोन लिया है। सारी सृष्टि में कितना बड़ा मेहमान है। शिवबाबा परमधाम से आते हैं। कितना बड़ा भारत का मेहमान है। कहाँ से आया हुआ है? उन मिनिस्टर आदि की कितनी इज्जत होती है। यह गुप्त वेश में कितना बड़ा मेहमान पतित को पावन बनाने आया है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सवेरे-सवेरे उठ याद में बैठ कमाई जमा करनी है। अपने आप से बातें करनी हैं। देही-अभिमानी रहना है।
2) राजयोग, कर्मयोग सीखना और सिखलाना है। कभी भी तंग होकर पढ़ाई नहीं छोड़नी है। बाप का रिगार्ड जरूर रखना है।
वरदान:-
महावीर बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले वाहनधारी सो अलंकारधारी भव
महावीर अर्थात् शस्त्रधारी। शक्तियों वा पाण्डवों को सदा वाहन में दिखाते हैं और शस्त्र भी दिखाते हैं। शस्त्र अर्थात् अलंकार। वाहन है श्रेष्ठ स्थिति और अलंकार हैं सर्व शक्तियां। ऐसे वाहनधारी और अलंकारधारी ही साक्षात्कार मूर्त बन बाप का साक्षात्कार करा सकते हैं। यही महावीर बच्चों का कर्तव्य है। महावीर उसे ही कहा जाता है जो अपनी उड़ती कला द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार कर ले।
स्लोगन:-
एकरस पुरुषार्थ द्वारा ऊंची स्थिति बना लो तो हिमालय जैसा बड़ा पेपर भी रूई हो जायेगा।
18/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you have accurate knowledge of the soul and the Supreme Soul. Therefore, you have to issue the challenge that you are the Shiv Shaktis.
Question:
What is the highest destination of all for which you children are making effort?
Answer:
To stay constantly in remembrance is the highest destination of all. It is only by having remembrance that your suffering of karma will be settled and you will reach your karmateet stage. Children say to the Mother and Father from whom they receive limitless happiness: Baba, we forget to remember You. This is a wonder. If you make effort continuously to remain soul conscious, you cannot forget Baba.
Song:
Who created this play and hid Himself away?
Om Shanti
God speaks. You children know your Father, God. You children have now been made theists by the Father. You have come to know the Father from the Father and this is why you are called theists. You know that you really are souls and that He is the Father of you souls. Although people consider themselves to be souls, no one knows the Supreme Soul. Only when the Father Himself comes and creates children and gives them His introduction can they know Him. The Father Himself has to give His own introduction. He is the Father of all souls. He comes here face to face and says: You are souls and I am the Supreme Father of you souls. You have this faith. This is something common. There is definitely the Father of souls. It is sung that souls and the Supreme soul remained separated for a long time. Only you children know the Father. Once again, after 5000 years, the Father has come. When all the children have become atheists and sorrowful and not a single soul remains a theist, the Father comes. He makes you into theists and then hides away. Then, no one knows the Father. You children now have faith, numberwise, according to the effort you make. Although you may be sitting here personally and you do know that the Supreme Father, the Supreme Soul, the Purifier Father, is making you into pure deities from impure beings, not all of you have full faith. There are just the images of the deities here; they are not here themselves. No human beings, apart from you Brahmins, knows about the soul and the Supreme Soul. When souls say that they are the Supreme Soul, they neither know the soul nor the Supreme Soul. You children know that not a single human being considers himself to be a soul and God to be his Father accurately. However, who would issue this challenge? It was you Shaktis who issued this challenge, but you still haven't taken the power you should have taken. Shiv Shaktis are very well known. Jagadamba is also a Shakti. All the religious heads now come to conferences and you have to explain to them too. The Father explains: Children, you have to become soul conscious. You are souls and you are claiming your inheritance from the Supreme Father, the Supreme Soul. So long as you don't have this faith and have doubts, you won't be able to claim a high status. Even good children experience storms of Maya while moving along and fall. From having faithful intellects, they become those who have doubt in their intellects. Otherwise, children would never have doubt in their intellects about whether someone is their father. Here, this is a wonder. They say that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Father of all of us souls. He is teaching us and yet we forget the Father. He continues to explain every day: Children, remember your Father and your sins will be absolved. You have a lot of sins of many births on your heads. You know that Mama and Baba, who are called Saraswati and Brahma, are number one. They themselves say: We have so much yoga and make so much effort and yet our sins of many births have not been cut away; there is one suffering or another to be settled. At the end, you will reach your karmateet stage and become free from this suffering. You have to make effort. Maya, too, is no less powerful. Both are almighty authorities. Maya, Ravan has made all human beings impure. They sing: Oh! Purifier! They continue to clap. So they are surely impure, but they don't consider themselves to be impure. You definitely have to explain that this world is now impure. The golden age is called the pure world. You would not call out to the Purifier in this way in the pure world. There, when there was just the one religion, Bharat was very happy. You now know that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Ocean of Knowledge and that He knows all the secrets of the Vedas and scriptures etc. He Himself is teaching us, but some are such that they forget that the Supreme Soul is teaching them, that the unlimited Father is teaching them. That intoxication doesn't rise. When you leave here and go home, that intoxication is completely crushed. It is with difficulty that anyone makes accurate effort. Maya is very powerful. Body consciousness is number one. Baba has explained: Consider yourself to be a soul. We are souls and we act through these bodies. You must never consider yourself to be the Supreme Soul. The Father says: I have come to make you pure from impure. Repeatedly remember Me. However, many very good children don't remember the Father and they don't even tell the truth. The chart they write and send to Baba also has lies. They don't write honest charts. Baba says: Consider yourself to be a soul. We souls have completed our 84 births and are now going to Baba. Wake up early in the morning and remember Baba and that intoxication will then remain throughout the day. When people earn money, they have the intoxication of how much they earned on that day. This too is a business and so you should make so much effort in this. Baba tells you his own experience of how much effort he makes. You have to wake up early in the morning and talk to yourself: Our parts have now ended and we are about to go back and then rule the kingdom for 21 births. Baba is so sweet, so lovely and so wonderful. No human being knows such a Father. The Father comes and makes you children even higher than Himself and yet some children then say that the Father is omnipresent and bring Him down even further than themselves. This is why the Father says: You have become very unhappy. I make you children into the masters of Brahmand and the world and then you say that I, your Father, am omnipresent! This is also a play within the drama. The Father is now giving you directions on how to explain. Lakshmi and Narayan, the first deities, had one hundred percent solvent intellects, but they are not like that any more. Look how much difference there is. At first Bharat was heaven and now it is hell. No human being has this knowledge. You children do not have strength; there is a lot of body consciousness. Those who are soul conscious should have dharna. The Father gives you directions: Challenge them in this way. No one knows what a soul is or what the Supreme Soul is. You know that we souls are points and that our Father, the Supreme Father, the Supreme Soul, is also a point. He is knowledge-full and the Purifier. He doesn't enter the cycle of birth and death. We souls enter the cycle of birth and death. The Supreme Father, the Supreme Soul, says: I too have a part. I come and make all of you happy and I then go and sit in the land of nirvana. When people become old, they retire, but they don't understand the meaning of that. To retire means to go to the land beyond sound. They don't sit beyond sound. Now, all are in the stage of retirement. We souls reside beyond sound, but people don't know about that place. Among you too, only some of you have these things in your intellects. There is a lot of body consciousness. You don't follow the Father. Maya is also very powerful. No one knows about the relationship between souls and the Supreme Soul. They don't know about the relationship with the Father. You too repeatedly forget it. After belonging to the Father, you should remember Him fully. You say: Baba, I repeatedly forget to remember You. Oh really! You forget to remember the Mother and Father! The destination is to stay constantly in remembrance. You forget the Mother and Father from whom you are claiming your inheritance of heaven! It is a wonder! The Mother and Father are only the One. The Father says: I alone am your Mother and Father. These are very deep things. Some think that Jagadamba is the Mother, but no; she is a corporeal being. You used to sing to the incorporeal One: You are the Mother and Father. Baba didn't tell you all of these things in the beginning. Day by day, you are told deep things. If you are unable to explain something, then tell them: Baba hasn't yet explained these things to us, and so we will ask Him. Day by day, you receive many new points. Knowledge is vast. Those who are to understand will understand. Some become tired while studying. They write to Baba: I am unable to continue here. I am fed up! They become fed up and stop studying. When they indulge in vice, they stop studying. This study can only take place in celibacy. If you break celibacy, you aren't able to imbibe anything. You wouldn't be able to tell others that lust is the greatest enemy. The intellect becomes locked. The destination is very high. Sannyasis leave their household religion and run away. They are hatha yogi sannyasis whereas this is Raja Yoga. The Father alone comes and teaches you Raja Yoga. Hatha yogis can never teach Raja Yoga. You haven't yet learnt the art of how to explain this fully. Theirs is hatha yoga renunciation. They cannot make impure ones pure. Yours is unlimited renunciation whereas theirs is limited renunciation. It is in your intellects that your 84 births have now ended and that you are now to return home. You have this unlimited renunciation in your intellects. Theirs is hatha yoga, renunciation of karma. Yours is Raja Yoga and karma yoga which God is teaching you. You can now explain very well that that is hatha yoga and that this is Raja Yoga. No one understands about Shiva. Just as a soul is a point, so Shiva too is a point. The sign of the point is applied to the forehead. The point would not be applied anywhere else. The point (tilak) is only applied to the forehead. That is where each soul resides, but no one knows this. Such a tiny soul has an imperishable part of 84 births fixed within him. These are such deep matters. No one else would know how to explain these things. You have to explain the reality. Just as a soul is a point, so the Supreme Soul is also a point. If another soul enters a body, he would come and sit next to this one. When a departed soul is invoked into a brahmin priest, that soul comes and says: I have taken birth at such-and-such a place. So, where would that soul come and sit? Would it sit in his head? He (the brahmin) already has his own soul. The Father says: I too am a point. I am called the Supreme Father, the Supreme Soul. His praise is great. Who sang the praise: Salutations to Shiva? Souls, the saligrams. So, surely, souls are separate. The world doesn't know these things. You know that He only has the one name, Shiva. You would say to Brahma, Vishnu and Shankar: “Salutations to the deity Brahma, Salutations to the deity Vishnu”, whereas to Him you would say, “Salutations to the Supreme Soul, Shiva.” Therefore, Shiva is higher. You can understand these things. It is now that you have this knowledge. This birth of yours is as valuable as a diamond. Deities simply experience their reward. That Father, who gives you the reward, is wonderful. You should have so much regard for the Father from beyond. Your intellects’ yoga should not be connected to Brahma, but to that One. That Father is teaching you through this one. He has taken this body on loan. He is such a great Guest of the whole world. Shiv Baba comes from the supreme abode. He is such an important Guest of Bharat. Where has He come from? They honour those Ministers etc. so much. Such an important Guest has come in an incognito form to make impure ones pure. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Wake up early in the morning, sit in remembrance and accumulate an income. Talk to yourself. Remain soul conscious.
2. Study and teach others Raja Yoga and karma yoga. Never become fed up and thereby stop studying. Definitely have regard for the Father.
Blessing:
May you be seated on a vehicle, holding the ornaments and grant a vision of the Father by becoming a mahavir.
A mahavir means one who hold a weapon. Shaktis and Pandavas are always shown seated on a vehicle of something and they are also shown holding a weapon. The weapon is their ornament. The vehicle is the elevated stage and the ornaments are all the powers. Only those who are seated on their vehicle and are holding their ornaments can become images that grant visions and grant a vision of the Father. This is the duty of the mahavir children. A mahavir is one who with his flying stage is able to overcome all adverse situations.
Slogan:Make your stage elevated with your steady and constant efforts and a paper as big as the Himalayan mountains will become like cotton wool.
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