Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali - 13th Sep - 2018 )
13-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - याद के पुरुषार्थ से ही कर्मातीत बनेंगे इसलिए कभी अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना, याद के बल से अन्दर में जो कमियां हैं, उन्हें निकालते रहना''
 
प्रश्नः-
 
सभी बच्चों की अवस्था को मजबूत बनाने के लिए बाप कौन सी चैलेन्ज करते हैं?
 
उत्तर:-
 
बच्चे, भोजन बनाते हुए पूरा समय याद में रहकर दिखाओ - यह बाप बच्चों को चैलेन्ज करते हैं। शिवबाबा की याद में भोजन बनायेंगे तो ताकत भर जायेगी, अवस्था बहुत अच्छी हो जायेगी। परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। इसके लिए एक-दो को याद दिलाने का पुरुषार्थ करो। डबल सर्विस करनी है। कर्मणा के साथ-साथ नर से नारायण बनाने की भी सेवा करो।
 
गीत:-
 
धीरज धर मनुवा........ 
 
ओम् शान्ति।
 
यह किसने कहा और किसको कहा? बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। भक्ति मार्ग में यह गाया जाता है। जब परमपिता परमात्मा आते हैं, वही आकर धीरज देते हैं, और कोई मनुष्य धीरज दे नहीं सकता। तुम जानते हो अब सुख के दिन आयेंगे। बाप आये हैं सुखधाम ले चलने। यह है दु:खधाम। यह सब भक्ति मार्ग के गीत हैं। यहाँ तो बाप सम्मुख बैठे हैं। बच्चों को कुछ कहने की दरकार नहीं पड़ती। बच्चे जानते हैं हमारे सुख के दिन रहे हैं। हम सुख की राजधानी स्वयं श्रीमत पर स्थापन कर रहे हैं, डिवाइन मत पर चल रहे हैं। एक होती है डिवाइन मत, दूसरी होती है अनडिवाइन मत। डिवाइन मत एक ही होती है जिसे श्रीमत कहा जाता है। अनडिवाइन मत माना आसुरी पतित मत, डिवाइन मत माना दैवी पावन मत। श्रीमत और आसुरी मत को तुम समझते हो। डिवाइन कहा जाता है पावन को। अनडिवाइन कहा जाता है पतित को। यह है ही पतित दुनिया। कोई भी पावन मनुष्य है नहीं। पावन मत देने वाला एक ही पतित-पावन बाप है। उनको सब याद करते हैं। पावन सृष्टि सतयुग को, पतित सृष्टि कलियुग को कहा जाता है। यहाँ सब हैं ही अनडिवाइन। डिवाइन फादर एक होता है। पतित दुनिया में कोई डिवाइन फादर होता नहीं। यह संगम का युग है। यह युग तुम्हारे लिए है, दुनिया के लिए नहीं है। दुनिया तो समझती है संगमयुग आने में बहुत वर्ष पड़े हैं। बाप आते ही हैं पतित कलियुग को पावन सतयुग बनाने। ऐसे तो वे कुमार और कुमारियां भी डिवाइन पावन हैं परन्तु फिर पतित जरूर बनना है। विकार से जन्म लेते हैं इसलिए इस विकारी दुनिया में कोई डिवाइन नहीं होते। डिवाइन निर्विकारी को कहा जाता है। निर्विकारी होते हैं निर्विकारी दुनिया में। वह है ही वाइसलेस, सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया। जबकि सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया है तो सम्पूर्ण विकारी दुनिया भी होगी। यह है सम्पूर्ण अनडिवाइन दुनिया। सम्पूर्ण डिवाइन दुनिया सतयुग को कहा जाता है।
 
अब तुम बच्चों को डिवाइन फादर ने धैर्यवत बनाया है। डिवाइन जीव आत्मा कहा जाता है, सिर्फ आत्मा को डिवाइन नहीं कह सकते। आत्मायें तो निराकारी दुनिया में रहती हैं। डिवाइन मनुष्य होते हैं पवित्र दुनिया में। यह है ही अपवित्र दुनिया। अपवित्र दुनिया को पवित्र दुनिया बनाना - यह निराकार डिवाइन फादर का ही काम है। तुम बच्चों को अब धीरज मिलता है - बच्चे, अब सतयुग रहा है। सुखधाम स्थापन करने में समय तो लगता है। फट से तो दु:खधाम विनाश हो सुखधाम स्थापन नहीं हो जायेगा। तुमको भी देखो, कितना टाइम लगा है! पतित सृष्टि कितनी बड़ी है! तुम भी जब लायक बनो ना। तुम खुद ही कहेंगे हम अभी स्वर्ग में जाने के लिए पूरे लायक नहीं बने हैं। पूरे लायक बन जायें फिर तो कर्मातीत अवस्था हो जाए। परन्तु देह-अभिमान बहुतों में होने के कारण समझते हैं हम तो सम्पूर्ण बन गये हैं। हमको श्रीमत की दरकार ही नहीं इसलिए याद नहीं करते। बाप की याद से ही तो श्रेष्ठ बनेंगे। कोई कह सके कि हम निरन्तर बाप को याद करते हैं। अन्दर में कोई यह समझे कि हम तो निरन्तर याद में रहते हैं। याद में रहते रहे तो बाकी क्या चाहिए। सारा दिन भी कोई याद में रहे तो कर्मातीत अवस्था हो जाए। बड़ा मुश्किल है बाबा की याद में रहना। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - सुखधाम में राज्य-भाग्य लेने लिए। अपने को देखना है अगर हमारे में बहुत विकार हैं, कमियां हैं तो हम इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। निरन्तर याद की दौड़ी लगा नहीं सकेंगे। अपने को मियां मिट्ठू नहीं समझना है कि मैं तो सम्पूर्ण हूँ। सम्पूर्ण होते ही हैं शिवालय सतयुग में। सारा भारत शिवालय बन जाता है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। मन्दिर में राज्य तो नहीं करते हैं ना। शिवालय सतयुग में सब देवी-देवतायें राज्य करते हैं फिर पूजा के लिए मुख्य लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाए उनका मन्दिर बनाते हैं। पहले नम्बर वाले की ही पूजा होती है। अभी उन्हों के जड़ मन्दिर हैं। चैतन्य में जब राज्य करते हैं तो विश्व के मालिक हैं। भल हैं भारत में ही परन्तु हैं तो विश्व के मालिक ना। और कोई राजाई ही नहीं। हम अभी फिर से अपना डिवाइन राज्य स्थापन कर रहे हैं।
 
पावन दुनिया में जाने लिए पहले जरूर पावन बनना पड़े। मेहनत लगती है। जहाँ तक जीना है, याद में रहना है और ज्ञान की वर्षा तो होती ही रहती है। भिन्न-भिन्न प्रकार से समझाया जाता है। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण के सिवाए डिवाइन अथवा पवित्र किसको कह नहीं सकते। बाप स्वर्ग स्थापन करते हैं फिर भी नर्क बन ही जाता है। ड्रामा ही सुख और दु: का बना हुआ है। शंकराचार्य आकर अपने धर्म की स्थापना करते हैं फिर भी डाल-डालियां पुरानी तो होंगी ना। सन्यासियों की महिमा है। रामतीर्थ, विवेकानंद आदि गाये जाते हैं क्योंकि शंकराचार्य के पिछाड़ी वाले हैं। नये-नये आते हैं तो वह अपना शो करते हैं। परन्तु इनको शिवालय तो नहीं कहेंगे। शिव का स्थापन किया हुआ सतयुग एक ही है। मनुष्य इन बातों को बिल्कुल नहीं जानते। ऐसे ही सिर्फ सुनने से कोई समझ सकें। पहले तो 7 रोज़ आकर एम आब्जेक्ट को समझना है। और कोई पढ़ाई के लिए ऐसे नहीं कहा जाता कि पहले 7 रोज़ समझो। यह एक ही पाठशाला है जहाँ लक्ष्य दिया जाता है। पहले-पहले तो फादर को समझो।
 
बाप कहते हैं मैं बच्चों की सेवा करने आया हूँ। जो कल्प पहले वाले हैं, वही आयेंगे। जब तक निश्चयबुद्धि नहीं बने हैं, तब तक बुद्धि में आयेगा नहीं इसलिए बाबा पूछते हैं कहाँ तक निश्चय हुआ है? यह कोई गांवड़े का सतसंग नहीं है। और सतसंगों में तो कहेंगे फलाना महात्मा गीता सुनाते हैं, फलाना वेद सुनाते हैं। यहाँ कोई महात्मा आदि नहीं है। यहाँ तो बाप बैठ समझाते हैं। पहले जब तक निश्चय नहीं तब तक क्या समझें। वहाँ सतसंगों आदि में समझेंगे यह तो फलाना वेद सुनाते हैं, राज-विद्या पढ़ाते हैं। यहाँ तो वेदों-शास्त्रों अथवा राज-विद्या की कोई बात नहीं। तुम जानते हो बाबा इन द्वारा पढ़ा रहे हैं। जब तक यह नहीं समझा है तो क्या करेंगे? और ही वायुमण्डल को खराब कर देंगे। यहाँ तुम्हारे में भी ऐसे नहीं है कि सब शिवबाबा की याद में सुनते हैं और समझते हैं शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं। नहीं, शिवबाबा की पढ़ाई है.... यह कुछ भी समझते नहीं। बड़ा मुश्किल कोई यथार्थ रीति समझते हैं। पढ़ाने वाला शिवबाबा है - यह याद हो और सारा दिन बुद्धि में रहे कि हम स्टूडेन्ट हैं तो नम्बरवन चले जायें। परन्तु तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। बाबा कहते हैं मुझ पढ़ाने वाले को याद करो। मैं ही बाप, टीचर, गुरू हूँ। तीनों को इकट्ठा याद करना है। लौकिक संबंध में तो बाप अलग, टीचर अलग, गुरू अलग होते हैं। यहाँ एक को ही याद करना है और है बहुत सहज। परन्तु माया याद रहने नहीं देती। घड़ी-घड़ी बुद्धियोग तोड़ देती है। तुम बच्चे आपस में बैठते होंगे। समझो, कोई मशीन चलाते हैं अथवा मक्खन निकालते हैं तो शिवबाबा को याद कर मशीन चलाते हैं? शिवबाबा की याद में बाबा के यज्ञ के लिए मक्खन निकाल रहा हूँ। कितनी खुशी की बात है। यज्ञ के लिए भोजन बनाता हूँ। खुशी होती है ना। परन्तु फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं फिर पुरुषार्थ करना पड़े खुद का। एक-दो को याद कराने का पुरुषार्थ कराने वाला चाहिए। फिर भी शिवबाबा को याद कर भोजन बनायेंगे तो ताकत भर जायेगी। तुम्हारी अवस्था बहुत अच्छी हो जाए परन्तु ऐसे होता नहीं है। ब्रह्मा भोजन की तो बहुत महिमा है, परन्तु जब आत्मा शिवबाबा की याद में रह बनाये। शक्तियों का ऐसा भण्डारा हो। याद में रह भोजन बनायें तब तो शक्ति मिले। वह भी शक्तियों की बुद्धि में नहीं आता है। नहीं तो पुरुषार्थ करें। बाबा को तो दिल होती है अपने हाथ से शिवबाबा को याद करते भोजन बनाऊं। प्रैक्टिस करनी है। देखें, याद ठहर सकती है? बाबा चैलेन्ज देते हैं जो भी भण्डारे में हैं, कोशिश करो। बाबा जानते हैं कि एक घण्टा भी याद नहीं कर सकते। याद वाले ज्ञानवान हों तो डबल सर्विस में लग जाएं। जब तक कांटे को फूल बनायें तो कुछ काम के नहीं हैं। राजाई के लायक वह बनते जो नर को नारायण बनाने की सर्विस करते। जितना तकदीर में है वह अपने पुरुषार्थ से तकदीर को पाते रहते हैं। बाप तो सबको कहते हैं जितना करेंगे, जो करेंगे, सो पायेंगे।
 
अपने मोस्ट बिलवेड बाप को याद करना है। याद की ही मेहनत है। बाबा भी बतलाते हैं मैं बहुत उपाय करता हूँ परन्तु हो नहीं सकता। बहुत मेहनत है। मेहनत करते-करते अन्त में कर्मातीत अवस्था होगी। फिर साक्षात्कार करते रहेंगे। माया नहीं आयेगी। यहाँ बैठे-बैठे सब दिव्य दृष्टि में देखते रहेंगे। अभी तो टेलीवीज़न में देखते हैं। टेलीवीज़न कोई दिव्य दृष्टि नहीं है। विनाश का साक्षात्कार, वैकुण्ठ का साक्षात्कार टेलीवीज़न में नहीं देख सकेंगे। जितना जो ज्ञानी और योगी है उनको तो वैकुण्ठ की राजधानी देखने में आती रहेगी। बिगर टेलीवीजन रखे तुम जर्मनी, लण्डन आदि देखते रहेंगे। टेलीवीज़न से यह दिव्य चक्षु का साक्षात्कार वन्डरफुल है। सच्ची दिल से बाप की सर्विस में लगना है तब मज़ा है। बुद्धि भी कहती है बाबा अन्त में बहुत ख़ातिरी करेंगे। घुमाना, फिराना, बहलाना यह ख़ातिरी है ना। ऐसा बनने के लिए लायक भी बनना चाहिए ना। लायक बनाने वाले को याद करने से ही लायक बनते जाते हैं। जितना याद करेंगे और स्वदर्शन चक्र फिरता रहेगा तो फ़ायदा है। बीज को याद करने से झाड़ भी याद आयेगा। यह बातें सिवाए तुम्हारे कोई भी समझ सके। इस याद और ज्ञान से हम इतना जमा करते हैं। वहाँ यह पता नहीं होगा कि यह कहाँ से वर्सा मिला है। यह थोड़ेही समझते हैं कि यह हमारे संगम की कमाई है। बादशाही मिल जाती है। तुम सदा सुखी रहते हो। बड़ी भारी मंज़िल है। अभी तुम डिवाइन बनते हो। सारी दुनिया अनडिवाइन है। तुम मनुष्य से देवता डिवाइन बन रहे हो। मनुष्य को देवता बनाने वाला एक ही गॉड फादर है। फादर अक्षर कहना बड़ा सहज है। कोई भी बूढ़ा बुजुर्ग देखेंगे तो उनको बाबा वा पिता जी कहेंगे। बूढ़ा, बूढ़े को देखेंगे तो भाई समझेंगे। छोटे, बड़े को देखेंगे तो बाप समझेंगे। निराकार बाप का तो कोई को पता नहीं है। सिर्फ कह देते हैं गॉड फादर। यह नहीं समझते हैं कि हम आत्मा हैं, हमारा बाप वह है। बाप जरूर वर्सा देता होगा। अभी तुम जानते हो हमारा बाप हमको वर्सा दे रहे हैं। इस वर्से के लिए ही हम बार-बार पुकारते थे, प्रार्थना करते थे। अब वही पढ़ा रहे हैं। अभी हम प्रार्थना अथवा भक्ति करने से छूटे। बड़े मजे की नॉलेज है। कहते हैं आप हमारे बेहद के बाप हो फिर हमको छोड़ लौकिक बाप के पास बुद्धि क्यों जाती है? परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो बुद्धि में बैठता नहीं। खुद ही कहते हैं हमारी तकदीर में राजयोग की बादशाही नहीं है, तो बाबा क्या करे? क्यों नहीं तकदीर बनाते हो? तकदीर बनाने में तो कोई को मना नहीं है। तकदीर में नहीं है तो बाबा को छोड़ देते। फिर माया बिल्ली बुद्धि में घोटाला डाल देती है। बाप भी क्या करे? माया बिल्ली पर जीत पानी है। काम-काज करते शिवबाबा की याद रहे तो बहुत फ़ायदा हो जाए। एक मिनट भी याद करने से बड़ा फ़ायदा हो सकता है। एक-दो को सावधान करो। फिर कोई माने या माने। बाबा युक्तियां बहुत बतलाते हैं। अच्छा।
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) एक-दो को बाप की याद दिलाने का पुरुषार्थ करना है। बाप, टीचर, सतगुरू तीनों को साथ-साथ याद करना है। भोजन बनाते वा खाते समय याद में जरूर रहना है।
 
2) सच्चे दिल से बाप की सर्विस में लगना है। कांटों को फूल, मनुष्य को देवता बनाने की सेवा करनी है।
 
वरदान:-
 
कर्मक्षेत्र पर कमल पुष्प समान रहते हुए माया की कीचड़ से सेफ रहने वाले कर्मयोगी भव
 
कर्मयोगी को ही दूसरे शब्दों में कमल पुष्प कहा जाता है। कर्मयोगी अर्थात् कर्म और योग दोनों कम्बाइन्ड हों, किसी भी कर्म का बोझ अनुभव हो। किसी भी प्रकार का कीचड़ अर्थात् माया का वायब्रेशन टच करे। आत्मा की कमजोरी से माया को जन्म मिलता है। कमजोरी को समाप्त करने का साधन है रोज़ की मुरली। यही शक्तिशाली ताजा भोजन है। मनन शक्ति द्वारा इस भोजन को हज़म कर लो तो माया की कीचड़ से सेफ रहेंगे।
 
स्लोगन:-
 
सफलता की चाबी द्वारा सर्व खजानों को सफल करना ही महादानी बनना है।
 
13/09/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, only by making effort for remembrance will you become karmateet. Therefore, never consider yourself to be too clever. With the power of remembrance, continue to remove the weaknesses from within yourself.
 
Question:
 
What challenge does the Father give you in order to make the stage of all of you children strong?
 
Answer:
 
Children, while cooking, show that you stay in yoga the whole time. This is the challenge that the Father gives you children. If you cook food in remembrance of Shiv Baba, it becomes filled with power and your stage becomes very good. However, children forget. For this, make effort to remind one another to stay in remembrance. Do double service. Together with serving through actions, also do the service of changing others from ordinary men into Narayan.
 
Song:
 
Have patience, o mind! Your days of happiness are about to come. 
 
Om Shanti
 
Who said this and to whom? The Father sits here and explains to you children. This is remembered on the path of devotion. When the Supreme Father, the Supreme Soul, comes, He alone comes and gives you patience. No other human beings can give you patience. You know that your days of happiness are now to come. The Father has come to take you to the land of happiness. This is the land of sorrow. All of these songs belong to the path of devotion. The Father is personally sitting here in front of you. You children don’t need to say anything. You children know that your days of happiness are now coming. We ourselves are establishing the kingdom of happiness by following shrimat. We are following divine directions. One is divine directions and the other is undivine directions. Only one kind is divine and that is called shrimat. Undivine directions means devilish, impure directions. Divine directions means deity-like and pure directions. You understand about shrimat and devilish directions. Those who are pure are said to be divine and those who are impure are said to be undivine. This is the impure world. There are no pure human beings here. There is only the one Purifier Father who gives you pure directions. Everyone remembers Him. The golden age is called the pure world and the iron age is called the impure world. Here, all are undivine. There is only the one divine Father. There are no divine fathers in the impure world. This is the confluence age. This age is only for you, not for the world. The world thinks that there are still many years before the confluence age comes. The Father comes to make the impure iron age into the pure golden age. In fact, even kumars and kumaris are divine and pure, but they definitely have to become impure. They take birth through vice and this is why there is no one divine in this impure world. Those who are viceless are said to be divine. Viceless ones exist in the viceless world. That is the viceless, the completely viceless, world. Since there is the completely viceless world, there would also be the completely vicious world. This is the completely undivine world. The golden age is called the completely divine world. The divine Father has now given you patience. It is said: Divine living soul (embodied soul). A soul by himself cannot be called divine. Souls reside in the incorporeal world. Divine people exist in the pure world. This is the impure world. It is the task of the incorporeal divine Father alone to make the impure world pure. You children are being given patience: Children, the golden age is now coming. It takes time for the land of happiness to be established. It isn’t that the land of sorrow will be destroyed and the land of happiness established instantly. Look how much time it has taken you too! The impure world is so big. You also have to become worthy. You yourselves say that you have not yet become completely worthy of going to heaven. When you become completely worthy, you will reach your karmateet stage. However, because many have body consciousness in them, they think that they have become perfect and that they don’t need shrimat. This is why they don’t stay in remembrance. It is only by having remembrance of the Father that you will become elevated. No one can say that he remembers the Father constantly. Internally, none of you should feel that you constantly stay in remembrance. What else would be needed if they continued to stay in remembrance? If someone were to stay in remembrance the whole day, he would reach the karmateet stage. It is very difficult to stay in remembrance of Baba. You are making effort to claim your fortune of the kingdom in the land of happiness. You have to check yourself - if you have many vices or weaknesses, you won’t be able to claim such a high status; you won’t be able to run the race of constant remembrance. You mustn’t consider yourself to be too clever and think that you are perfect. It is only in Shivalaya, the golden age, that you become perfect. The whole of Bharat will become Shivalaya. The kingdom of Lakshmi and Narayan continues. No one rules in a temple. In Shivalaya, the golden age, the deities rule. Later, they make an image of the main Lakshmi and Narayan and build a temple to them in order to worship them. Only those of the first number are worshipped. Their temple is non-living. When they rule in the living form, they are the masters of the world. Although they are only in Bharat, they are the masters of the world. There is no other kingdom. We are now once again establishing our divine kingdom. In order to go to the pure world, we first of all definitely need to become pure. This takes effort. For as long as you live, you have to stay in remembrance. The rain of knowledge continues all the time. Everything is explained to you in different ways. In fact, no one except Lakshmi and Narayan can be called pure or divine. The Father establishes heaven but, even then, it changes into hell. The drama itself consists of happiness and sorrow. Shankaracharya comes and establishes his own religion but, even then, the twigs and branches would be old. There is praise of the sannyasis. Ramatirth and Vivekananda have been remembered because they came after Shankaracharya. When new ones come, they show themselves (stand out). However, this cannot be called Shivalaya. There is just the one golden age that is established by Shiva. People don’t know about these things at all. No one would be able to understand anything by just listening to this. First of all, you have to come here for seven days and understand the aim and objective. You are not asked to come and understand for seven days in any other study. This is the only school where you are given an aim and objective. First of all, you have to understand the Father. The Father says: I have come to serve you children. Those who belonged to Me in the previous cycle are the ones who will come here again. Until you have faithful intellects, this will not enter your intellects and this is why Baba asks: To what extent do you have faith? This is not a village spiritual gathering. In other spiritual gatherings, they say: Such-and-such a mahatma is relating the Gita or So-and-so is relating the Vedas. There are no mahatmas etc. here. The Father sits here and explains to you. What would you understand until you first had faith? In other spiritual gatherings, they would think: This one is relating the Vedas and teaching the knowledge to become kings. Here, there is no question of Vedas, scriptures or knowledge for kings. You know that Baba is teaching you through this one. Until they understand this, what would they do? They would spoil the atmosphere even more. Here, even among you, it isn’t that everyone sitting here is listening while in remembrance of Shiv Baba with the understanding that Shiv Baba is teaching through Brahma, no. Hardly anyone understands accurately that it is Shiv Baba who is teaching us this study. You have to remember that it is Shiv Baba who is teaching you. If your intellects have the awareness throughout the day that you are students, you can claim number one. However, it is numberwise among you too. Baba says: Remember Me, the One who is teaching you. I alone am the Father, Teacher and Guru. You have to remember all three together. In worldly relationships, the father is separate, the teacher is separate and the guru is separate. Here, you only have to remember one and it is very easy. However, Maya doesn’t allow you to remember. She repeatedly breaks your intellect’s yoga. You children must sit with each other together. When someone is using a machine or churning butter, he would use the machine while in remembrance of Shiv Baba. “I am extracting butter for Shiv Baba’s yagya in remembrance of Shiv Baba.” This is a matter of great happiness. “I am cooking food for the yagya.” There is happiness. However, you then repeatedly forget and you have to make your own effort. There have to be some who inspire one another to make effort for remembrance. Nevertheless, if you prepare food in remembrance of Shiv Baba, it will be filled with power and your stage will become very good. However, it doesn’t happen like that. There is a lot of praise of Brahma bhojan, but souls first have to stay in remembrance of Shiv Baba while preparing it. There should be such a kitchen of Shaktis. It is only when you prepare food while in remembrance that you will receive power. Even this doesn’t enter the intellects of the Shaktis, because if it did they would make effort. Baba has the desire to prepare food with his own hands in remembrance of Shiv Baba. You have to practise seeing whether your remembrance is able to stay. Baba challenges you: All of you who are in the kitchen, try this! He knows that children are unable to remember Him for even an hour. If those who stay in remembrance are knowledgeable, they would engage themselves in double service. Until you change thorns into flowers, you are of no use. Only those who do the service of changing an ordinary man into Narayan are worthy of a kingdom. However much you have in your fortune, you continue to attain that through your efforts. The Father tells everyone: However much you do, whatever you do, you will receive the reward of that. You have to remember your most beloved Father. Only in having remembrance is there effort. This Baba too says: I try a great deal, but it is not possible. It requires a lot of effort. By making effort, you will reach your karmateet stage at the end. Then, you will continue to have visions. Maya will not come. While sitting here, everyone will continue to see everything in divine visions. Now you see everything on the television. Television is not divine vision. You won’t be able to have visions of destruction and Paradise on television. To the extent that someone is yogi and gyani, accordingly he would see the kingdom of Paradise. You will continue to see Germany and London etc. without a television. The visions received through divine vision are more wonderful than watching something on television. When you remain engaged in the Father’s service with an honest heart, there is pleasure. Your intellect also says: At the end, Baba will offer you great hospitality. To take you around on a tour and to entertain you is called hospitality. You also have to be worthy of that. By remembering the One who makes everyone worthy, you continue to become worthy. To the extent that you remember Baba and continue to spin the discus of self-realisation, accordingly there is benefit. By remembering the Seed, you will also remember the tree. No one except you can understand these things. We are accumulating so much through this remembrance and knowledge. There, you won’t know where you received your inheritance from. There, you won’t understand that that is the income from the confluence age. You just receive the sovereignty. You remain constantly happy. The destination is very high. You are now becoming divine. The whole world is undivine. You change from human beings into deities; you are becoming divine. It is only the one God, the Father, who changes human beings into deities. It is very easy to say the word ‘Father’. When you see an elderly person you would call him ‘Baba’ or ‘Pitaji’ (father). When an elderly person sees another elderly person, he would consider that one to be his brother. When young ones see older ones, they consider them to be like their father. No one knows about the incorporeal Father. They simply say: God, the Father. They don’t understand that they are souls and that He is their Father. The Father must definitely be giving you the inheritance. You now know that your Father is giving you the inheritance. We were repeatedly calling out and praying for this inheritance. He Himself is now teaching us. We have now become free from praying and performing devotion. This knowledge is very enjoyable. Baba says: You say that I am your unlimited Father, so why do you leave Me and let your intellects go to your physical fathers? However, if it is not in someone’s fortune, it doesn’t sit in his intellect. They themselves say: I don’t have the sovereignty of Raja Yoga in my fortune. Therefore, what can Baba do? Why are you not making your fortune? None of you are forbidden to make your fortune. If it is not in their fortune, they leave Baba. Then Maya, the cat, creates confusion in their intellects. What can the Father do? You have to conquer Maya, the cat. If you have remembrance of Shiv Baba while doing your work etc., there would be great benefit. There can be great benefit by remembering Baba for even a minute. Continue to caution one another, and then, whether they accept it or not is up to them. Baba gives you many wise methods. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Make effort to remind one another of the Father. Remember all three together, the Father, Teacher and Satguru. While preparing food and eating it, you definitely have to stay in remembrance.
 
2. Remain engaged in the Father’s service with an honest heart. Do the service of changing thorns into flowers and human beings into deities.
 
Blessing:
 
May you be a karma yogi who remains safe from Maya’s rubbish by living like a lotus on the field of action.
 
A karma yogi, is known in other words as a lotus. To be a karma yogi means that your karma and yoga are combined and that you do not experience any bondage of karma. Let no type of rubbish, that is, no vibration of Maya touch you. Maya takes birth through weakness in the soul and the way to finish any weakness in the soul is to listen to the murli daily. This is fresh, nourishing food. Digest this food with churning power and you will remain safe from rubbish.
 
Slogan:
 
To use all treasures in a worthwhile way with the key of success is to be a great donor.

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