Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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Details ( Page:- Murali - 12 - Sep -2018 )
12-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, रूद्र शिवबाबा तुम्हें जो सुनाते हैं वह सुनकर दूसरों को जरूर सुनाना है''
प्रश्नः-
बाप ने भी यज्ञ रचा है और मनुष्य भी यज्ञ रचते हैं - दोनों में कौन सा मुख्य अन्तर है?
उत्तर:-
मनुष्य रूद्र यज्ञ रचते हैं कि शान्ति हो अर्थात् विनाश न हो लेकिन बाप ने रूद्र यज्ञ रचा है कि इस यज्ञ से विनाश ज्वाला निकले और भारत स्वर्ग बनें। बाप के इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से तुम नर से नारायण अर्थात् मनुष्य से देवता बन जाते हो। उस यज्ञ से तो कोई भी प्राप्ति नहीं होती है।
गीत:-
तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है......
ओम् शान्ति।
यह कितना मीठा गीत है और कितना अर्थ सहित है, जो विशाल बुद्धि वाले होंगे वह अच्छी रीति समझ सकेंगे। बुद्धि भी नम्बरवार है ना। उत्तम-मध्यम-कनिष्ट होते हैं। उत्तम बुद्धि वाले इसका अर्थ अच्छी रीति समझ सकते हैं। तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है, यह कौन याद करते हैं? (बच्चे) कौन से बच्चे? बच्चे तो ढेर हैं। जो ब्राह्मण बने हैं, जो देवता थे, जिन्होंने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं उन्होंने ही जास्ती बुलाया है। वही शिव अथवा सोमनाथ के मन्दिर की स्थापना करते हैं। सिद्ध होता है हम जो पूज्य देवी-देवता थे, अभी पुजारी बने हैं। बरोबर हम पूज्य थे फिर पुजारी बने तो सोमनाथ शिव की पूजा करते हैं। रूद्र यज्ञ बहुत रचते हैं, रूद्र ज्ञान यज्ञ कभी नहीं रचते। रूद्र यज्ञ नाम रखते हैं। अभी भी रूद्र यज्ञ रच रहे हैं। तुम बहुत अच्छा समझा सकते हो - रूद्र कौन है? क्या रूद्र ने कभी यज्ञ रचा था? कैसे रचा फिर क्या उसकी सिद्धि हुई? यह तो कोई नहीं जानते। तुमको अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। परमपिता परमात्मा के सिवाए ज्ञान का तीसरा नेत्र कोई दे नहीं सकता। ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा को ही गाया जाता है। मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कह सकते। अभी तुम जानते हो हमको दादे का वर्सा मिल रहा है जिसको ही याद करते हैं कि बाबा आकर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो। फिर हम भी दान लेकर औरों को करेंगे। बहुत सहज है। सिर्फ याद दिलायेंगे कि तुम्हारे दो बाप हैं। भक्ति मार्ग में दो बाप हो जाते हैं। सतयुग-त्रेता में लौकिक बाप ही होता है। वहाँ वर्सा भी तुम इस समय के पुरुषार्थ अनुसार पाते हो। तो तुम बच्चों का माथा फिरना चाहिए। ऐसी-ऐसी जगह जाकर पूछना चाहिए कि रूद्र यज्ञ किसने रचा था? क्या रूद्र ज्ञान यज्ञ है या रूद्र यज्ञ है? असुल नाम है रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र तो है निराकार। वह कैसे यज्ञ रचेगा? जरूर शरीर धारण करना पड़े। दक्ष प्रजापति का यज्ञ भी मनाते आते हैं। दिखाते हैं दक्ष प्रजापति यज्ञ में अश्व को स्वाहा करते हैं। घोड़े को टुकड़े-टुकड़े कर जलाते हैं। उनको दक्ष प्रजापति यज्ञ कहते हैं। यह तुम अभी जानते हो तो वहाँ लिखना चाहिए यह कौन सा यज्ञ है? बड़ा भभके से यज्ञ करते हैं। बहुत पैसे इकट्ठे करते हैं। बड़े-बड़े आदमी दान करते हैं। कोई 100 निकालते, कोई 500 निकालते। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो तुम सारे स्वाहा होते हो। उसमें तो थोड़ा-थोड़ा पैसा निकाल इकट्ठा करते हैं फिर ब्राह्मण को दक्षिणा मिलती है। यहाँ तो तुमको स्वाहा होना पड़ता है। वहाँ स्वाहा होने की बात नहीं। यहाँ बच्चे कहते हैं बाबा तन-मन-धन सहित मैं आता हूँ, वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे। आहुति में कभी ऐसे नहीं डालेंगे। आरती आदि होगी, चंदा चीरा होगा। बड़ों-बड़ों से लेते हैं। तुम बच्चे जानते हो इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से ही विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है। वह यज्ञ रचते हैं शान्ति के लिए, विनाश के लिए नहीं। वहाँ शान्ति का बड़ा आवाज़ करते हैं। शान्ति तो सारी दुनिया में चाहिए ना। परमात्मा है शान्ति का सागर। तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है। अ़खबार पढ़ते हो तो ख्याल चलना चाहिए - कैसे हम सबको समझायें?
बाप जानते हैं कैसे बी.के. दुकान सम्भाल रहे हैं। सेठ का कौन सा दुकान अच्छा चलता है, कौन सा मैनेजर अच्छा है, वह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। यह ब्रह्मा है गोथरी। यह बड़ी रमणीक बातें हैं। तो रूद्र ज्ञान यज्ञ के लिए तो लिखा हुआ है इससे विनाश ज्वाला निकली। वह यज्ञ करते हैं शान्ति के लिए। यह है सच्चा-सच्चा यज्ञ। उन ब्राह्मणों के तो अनेक सेठ होते हैं। यह तुम ब्राह्मणों का एक ही सेठ है। बाप है रूद्र। रूद्र बाप कहो, शिव कहो, सोमनाथ कहो, उसने ज्ञान यज्ञ रचा है, जिसमें तुम बैठे हो। वह यज्ञ तो दो-चार दिन चलेगा। तुम्हारा यह रूद्र ज्ञान यज्ञ तो बहुत बड़ा है। उसमें टाइम लगता है। यह है नर से नारायण अथवा मनुष्य से देवता बनने का यज्ञ। वह तो ऐसे नहीं कहेंगे। बाप बैठ समझाते हैं कैसे उन्हों को सावधान करो। बड़ों-बड़ों को बोलो - यह तुम जो यज्ञ रचते हो, उसमें भूल है। परमपिता परमात्मा कल्प-कल्प संगम पर आते हैं। शास्त्रों में युगे-युगे लिख दिया है। यह भूल कर दी है। वैसे ही रूद्र यज्ञ रचते हैं। वास्तव में रूद्र ज्ञान यज्ञ है। शिव का नाम है रूद्र, उसने ही ज्ञान यज्ञ रचा है। जैसे इब्राहम ने अपना इस्लाम धर्म स्थापन किया, बुद्ध ने बौद्धी धर्म स्थापन किया, वैसे रूद्र का है ज्ञान यज्ञ जिससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होगी। तो गोया वो लोग शान्ति के लिए यज्ञ रचते हैं अर्थात् विनाश नहीं चाहते। स्वर्ग की स्थापना के लिए नर्क का विनाश हो, तो अच्छा ही है ना।
भारत है अविनाशी खण्ड। जरूर भारत के मनुष्य सम्प्रदाय बहुत ज्यादा होने चाहिए। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। उनको सारा कल्प हुआ है। शास्त्रों में 33 करोड़ लिख दिया है। परन्तु यह तो समझाना चाहिए - जरूर और धर्म वालों से देवता धर्म की आदमशुमारी जास्ती होगी, लेकिन वह कनवर्ट हो गये हैं तो कैसे निकलें। बौद्धी, क्रिश्चियन, मुसलमान आदि जाकर ढेर बने हैं, इसलिए थोड़ी संख्या हो जाती है। यह भी ड्रामा। इसमें समझने की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। जब तक बुद्धि में ज्ञान नहीं बैठा है तो सिर्फ अर्पणमय होने से क्या फायदा? अर्पणमय तो ढेर बनते हैं परन्तु जो अच्छी रीति धारणा कर और कराते हैं, प्रजा बनाते हैं वही अच्छा पद पा सकते हैं।
तो यह गीत एक्यूरेट है - बुलाने को जी चाहता है.......। सबसे पहले 84 जन्म किसने लिए होंगे? जो पहले-पहले थे, वह थे ही देवी-देवतायें। सो भी भारत में थे। अभी तो कोई कहाँ, कोई कहाँ कनवर्ट हो गये हैं। कई तो भारत से बाहर चले गये हैं। नहीं तो वास्तव में भारत जैसा बड़े ते बड़ा तीर्थ और कोई है नहीं। और सभी धर्म स्थापक जो हैं उन्हों को भी पावन बनाने के लिए भगवान् को भारत में आना पड़ता है क्योंकि सब पतित हैं, सबको पावन बनाने वाला एक है। यह तुम जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार यथार्थ रीति जान सकते हैं। तुम कहेंगे हम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हैं, ऐसा कोई यज्ञ होता है क्या, जिसमें इतना समय बैठे हों? क्या बैठ करते हो? रूद्र जो ज्ञान सुनाते हैं वह सुनते ही रहते हो। जहाँ तक रूद्र बाबा इस शरीर में है, सुनाते ही रहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा भी तो जरूर यहाँ होगा ना। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात गाई हुई है। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा का थोड़ेही दिन और रात बनायेंगे। वह तो सूक्ष्मवतनवासी देवता है। दिन और रात का प्रश्न यहाँ का है। ब्रह्मा की रात माना पतित। फिर वही पावन बनते हैं तो दिन होता है। ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। पहले जरूर बाप के बच्चे होंगे फिर पद टीचर से पायेंगे। नम्बरवार हैं ना। यह भी बुद्धि में रहे तो कितनी खुशी रहे। तुम पहले बेहद के बाप के थे ना। यहाँ आये हो पार्ट बजाने। भक्ति मार्ग में बेहद के बाप को याद करते आये हो क्योंकि वह है स्वर्ग का रचयिता। जरूर स्वर्ग की राजाई देने वाला होगा। यह समझाना तो बड़ा सहज है। सेन्सीबुल ही समझा सकेंगे। वास्तव में सेन्सीबुल तुम ब्राह्मण हो। तुम्हारे में जो अक्लमंद हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। दुनिया के अक्लमंद भी नम्बरवार हैं ना। यहाँ भी जो सेन्सीबुल बनते जायेंगे वह जरूर अच्छा नम्बर पायेंगे। हर एक अपनी दिल से पूछे हम कहाँ तक सेन्सीबुल बना हूँ? जैसे बाबा मुरली चलाते हैं वैसे वहाँ भी तुम्हारी मुरली चल सकती है। तुम उन्हें समझाओ कि रूद्र यज्ञ और रूद्र ज्ञान यज्ञ में रात-दिन का फ़र्क है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो उससे विनाश ज्वाला निकली, भारत स्वर्ग बना और यह फिर यज्ञ रचते हैं विनाश न हो अर्थात् स्वर्ग स्थापन न हो। यह तो उल्टी बात हो गई। तब तो बाबा कहते हैं मैं इन सबका उद्धार करने आता हूँ। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचता हूँ। तो तुम प्रतिज्ञा करते हो - बाबा, हम आपसे सुनकर और सुनायेंगे। अच्छा, औरों को सुनाओ। पहले यहाँ तो रिपीट करो। घड़ी-घड़ी रिपीट करो जो फिर कहाँ समझा सको। फर्स्टक्लास प्वाइंट है। उस यज्ञ में तो जौ-तिल आदि डालते हैं, मेरे रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो सारी पुरानी दुनिया की सामग्री स्वाहा हुई थी। परन्तु यह सब बातें कोई की बुद्धि में अच्छी रीति धारण नहीं होती। बाप को याद नहीं करते हैं तो बुद्धि का ताला नहीं खुलता। बाबा कहते हैं - हम भी क्या करें? इस समय सबकी बुद्धि पतित है, उनको पावन बनाता हूँ। जो मेरे को याद नहीं करते, उनमें धारणा नहीं हो सकती। बुद्धि का ताला कैसे खुले? याद से ही खुलेगा। मोस्ट बिलवेड बाप है, उनकी बड़ी महिमा करते हैं। शिवबाबा की कितनी महिमा है! शिव की पूजा भी होती है, तो जरूर आता होगा ना। बिगर आरगन्स क्या आकर करेंगे? तो अब ब्रह्मा में आया हुआ हूँ। तुम बच्चे बापदादा के सामने बैठे हुए हो परन्तु देह-अभिमान होने कारण इतना लॅव, बाप के लिए रिगार्ड नहीं रहता। डायरेक्शन पर मुश्किल चलते हैं। अहंकार में आ जाते हैं। बाप कहते हैं - मैं निरहंकारी हूँ, तुमको इतना अहंकार क्यों आता है? बस, समझते हैं मैं ही होशियार हूँ। इतना देह-अभिमान आ जाता है।
अब कोई का पति मर जाता है तो उसकी देह ख़त्म हो गई। बाकी आत्मा निकल गई फिर ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं। देह को तो नहीं बुलाते। भावना रखते हैं तो भावना का भाड़ा मिलता है। पति को याद करते रहे तो पति का साक्षात्कार कर लेंगे। बाबा साक्षात्कार तो कराते हैं ना। ऐसे बहुतों का प्यार होता है। आयेगी तो आत्मा ना। कोई का स्त्री में प्यार है तो भावना का भाड़ा मिल जाता है। स्त्री को देख लेते हैं। चीज़ ले आते हैं, खुद उनको पहनाते हैं। ऐसे बहुत कुछ होता आया है। आगे बहुत विधि से खिलाते थे। जैसे गणेश को अथवा नानक आदि को याद करते हैं तो साक्षात्कार हो जाता है, ऐसे बहुतों को हो सकता है। परन्तु वह चाबी एक ही बाप के हाथ में है। बाप कहते हैं यह साक्षात्कार की बातें भी ड्रामा में नूंधी हुई हैं। साक्षात्कार कराया, ड्रामा चला, ठहरता नहीं है। ड्रामा को भी अच्छी रीति जानना होता है। अरे, बाबा का तो अच्छी रीति रिगार्ड रखो। बाप में इतना रिगार्ड प्यार रखना बड़ा मुश्किल समझते हैं, समझते हैं वह तो निराकार है। कहते हैं यह तो उनका रथ है, इनको हम क्या करेंगे? हम तो निराकार को ही याद करेंगे। अच्छा, निराकार की गोद में जाकर दिखाओ? निराकार साथ खाओ, पियो। तुम इनके पास क्यों आते हो? कहते हैं - नहीं बाबा, आप इसमें हो, आपको ही इसमें विराजमान समझ चलते हैं। यह बड़ा मुश्किल किसकी बुद्धि में रहता है। ऐसे बहुत हैं जो गपोड़े लगाते हैं - हमारा बाबा में बहुत प्यार है, हम इतने घण्टे बाबा को याद करते हैं। बाबा कहते हैं मैं भी पूरा याद नहीं करता हूँ। मैं तो एक ही सिकीलधा बच्चा हूँ फिर भी मैं पुरुषार्थ बहुत करता हूँ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अर्पण होने के साथ-साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है। ऊंच पद के लिए अच्छी रीति धारणा करनी और करानी है।
2) बाप समान निरहंकारी बनना है। अहंकार छोड़ बाप से अति लॅव वा रिगार्ड रखना है। देह-अभिमान में नहीं आना है।
वरदान:-
हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले समझदार ज्ञानी तू आत्मा भव
समझदार ज्ञानी तू आत्मा वह है जो पहले सोचता है फिर करता है। जैसे बड़े आदमी पहले भोजन को चेक कराते हैं फिर खाते हैं। तो यह संकल्प बुद्धि का भोजन है इसे पहले चेक करो फिर कर्म में लाओ। संकल्प को चेक कर लेने से वाणी और कर्म स्वत: समर्थ हो जायेंगे। और जहाँ समर्थ है वहाँ कमाई है। तो समर्थ बन हर कदम अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म में पदमों की कमाई जमा करो, यही ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण है।
स्लोगन:-
बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ने वाले ही उड़ता योगी हैं।
12/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you are sitting in the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. You definitely have to listen to whatever Rudra Shiv Baba tells you and relate it to others.
Question:
What is the main difference between the sacrificial fire created by the Father and those created by human beings?
Answer:
Human beings create sacrificial fires of Rudra for there to be peace, that is, so that destruction is prevented from taking place. However, the Father has created this sacrificial fire of the knowledge of Rudra for the flames of destruction to emerge so that Bharat can become heaven. Through this sacrificial fire of the knowledge of Rudra created by the Father, you become Narayan from an ordinary man, that is, you become deities from human beings. You don’t gain anything from those other sacrificial fires.
Song:
My heart desires to call out to You.
Om Shanti
This is such a sweet song! It is so meaningful! Those who have unlimited and broad intellects will be able to understand it very well. Intellects too are numberwise; there are the highest, the middle and the lowest. Those who have elevated intellects can understand the meaning of this song very well. “My heart desires to call out to You”. Who is remembering this? (Children) Which children? There are many children. It is those who were deities and who have now become Brahmins, those who have taken the full 84 births who are the ones who have been calling out a great deal. They are also the ones who built the Shiva Temple, that is, the Temple to Somnath. It proves that we, who were worthy-of-worship deities, have now become worshippers. We truly were worthy of worship and we then became worshippers. So we worshipped Somnath, Shiva. Many create sacrificial fires of Rudra, but no one creates the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. They call it a Rudra Yagya. Even now, they are creating a sacrificial fire of Rudra. You can explain to them very clearly who Rudra is. Did Rudra ever create a sacrificial fire? How did He create it, was it successful and what was the result of it? No one knows this. You have now each received a third eye of knowledge. No one, except the Supreme Father, the Supreme Soul, can bestow the third eye of knowledge. The Supreme Father, the Supreme Soul, is remembered as the Ocean of Knowledge. Human beings cannot be called the Ocean of Knowledge. You know that you are now receiving your inheritance from the Grandfather, the One whom you have been remembering and saying: Baba, come and bestow the imperishable jewels of knowledge on us. We will take this donation and then donate it to others. It is very easy. Simply remind them that they have two fathers. On the path of devotion, you have two fathers. In the golden and silver ages, you only have a physical father. The inheritance you receive there is according to the efforts you make here at this time. So, the heads of you children should work on how to go to such places where you can ask them: Who created the sacrificial fire of Rudra? Is it the sacrificial fire of the knowledge of Rudra or the sacrificial fire of Rudra? Its real name is: Sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Rudra is incorporeal. How can He create a sacrificial fire? He would definitely have to adopt a body. People also have a sacrificial fire for Daksh Prajapati. They have shown (in the scriptures) Daksh Prajapati sacrificing a horse in the sacrificial fire. They cut a horse into pieces and burn it and they call that a Daksh Prajapati Yagya. It is now that you understand this and so you should write what type of sacrificial fire this is. People hold sacrificial fires with great pomp and splendour. They collect a lot of money. Eminent and wealthy people donate money. Some donate 100 whereas others donate 500. You sacrifice yourselves completely into this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. In other yagyas, they accumulate money bit by bit and then brahmin priests are given alms from that. Here, you have to sacrifice yourselves completely. There, there is no question of sacrificing oneself. Here, children say: Baba, I am coming with my mind, body and wealth. No one would say this there. They do not put such offerings into a sacrificial fire. They perform arti (worship ritual with lamps) and they ask for donations. They take from important people. You children understand that the flames of destruction emerged from this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Those people create sacrificial fires for peace, not for destruction. There, they make a great deal of noise for peace. Peace is needed throughout the whole world. The Supreme Soul is the Ocean of Peace. The meaning is explained to you children. When you read newspapers, you should think about how to explain to everyone. The Father knows how the Brahma Kumaris are looking after the shops. Only the jaggery and its bag know which of the Businessman’s shops are running well and which of the managers are good. This Brahma is the bag. These are very entertaining things! Therefore, it is written of the sacrificial fire of the knowledge of Rudra that the flames of destruction emerged from that. People create sacrificial fires for peace. This is the real sacrificial fire. Those brahmins have many patrons whereas you Brahmins only have the one Patron and that is the Father, Rudra. Whether you call Him the Father, Rudra or Shiva or Somnath (Lord of Nectar), it is He who creates this sacrificial fire of the knowledge of Rudra in which you are now sitting. Those sacrificial fires last from two to four days, whereas your sacrificial fire of the knowledge of Rudra is huge and so it takes time. This is the sacrificial fire in which you become Narayan from an ordinary man, that is, you become deities from human beings. Those people would not say this. The Father sits here and explains how you should caution them. Tell the important people that there is a mistake in the sacrificial fires they create. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes at the confluence age of every cycle. They have made a mistake in the scriptures and said that He comes in every age. In any case, they say that they create a sacrificial fire of Rudra, whereas it is really the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Shiva’s name is Rudra and He is the One who creates the sacrificial fire of knowledge. Just as Abraham established his Islam religion and Buddha established the Buddhist religion, so, in the same way, Rudra establishes the sacrificial fire of knowledge through which the flames of destruction emerge. In fact, those people create sacrificial fires for peace, that is, they do not want destruction. It is good to destroy hell for the sake of creating heaven. Bharat is the imperishable land. Surely, the human community of Bharat should be very large. There was the original eternal deity religion and that began a whole cycle ago. It is mentioned in the scriptures that there were 330 million deities in Bharat. However, it has to be explained that the population of the deity religion would surely be the largest of all the religions, but many were converted. So, how can they emerge? Many left and became Buddhists, Christians and Muslims etc. This is why the population has decreased. This too is in the drama. You need an unlimited and broad intellect to understand this. Until this knowledge sits in their intellects, what benefit is there in them just surrendering? Many surrender themselves, but only those who imbibe this knowledge well and inspire others to imbibe it very well and who create subjects are able to claim a good status. So, this song, “My heart desires to call out to You”, is accurate. Who were the first ones to take 84 births? The ones who existed at the beginning were actually the deities and they existed in Bharat. Many have now been converted; some went to one place and others to another; some even left Bharat completely. However, there is truly no other pilgrimage place as elevated as Bharat was. God has to come into Bharat and purify everyone, even all the founders of religions, because everyone is now impure and there is only the One who purifies everyone. You know this, but, among you too, the accuracy of your understanding is numberwise. You say that you are sitting in the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Can there be a sacrificial fire like this in which people sit for so long? What do you sit and do? You continue to listen to the knowledge that Rudra explains. As long as Rudra Baba is in this body, He will continue to explain. Surely, Prajapita Brahma would also be here. “The day of Brahma and the night of Brahma”, has been remembered. It cannot be the day and night of the Brahma who resides in the subtle region. He is the deity who resides in the subtle region. The question of day and night applies here. The night of Brahma means the time he is impure and, when he becomes pure. it becomes the day. It is the one Satguru who purifies Brahma. He is the true Baba, the true Teacher and the Satguru - all three combined. Firstly, you are the children of the Father and then, you attain your status from the Teacher. This is numberwise. If you even retained this in your intellects, you would remain very happy. Originally, you belonged to the unlimited Father. You came down here to play your parts. You have been remembering the unlimited Father from the beginning of the path of devotion, because He is the Creator of heaven. Surely, He must be the One who gives us the kingdom of heaven. It is very easy to explain this. Only sensible ones are able to explain. In fact, it is you Brahmins who are sensible. Those among you who are intelligent are also numberwise. The people who are intelligent in the world are numberwise too. Here, those who continue to become more sensible will also definitely claim a good number. Each one of you should ask your own heart: To what extent have I become sensible? Just as Baba speaks the murli here, in the same way, it is possible for you to speak the murli there. You should explain to them that there is the difference of day and night between the sacrificial fire of Rudra and the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. When the sacrificial fire of the knowledge of Rudra was created, the flames of destruction emerged and Bharat became heaven, whereas those people create sacrificial fires so that destruction doesn’t take place, so that heaven is not established. That is completely the opposite thing. This is why Baba says: I come to uplift all of those people. I come and create the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Therefore, you make a promise: Baba, whatever we hear from You, we will relate that to others. Achcha, relate it to others, but repeat it here first. Repeat it as often as possible so that you can explain it anywhere. These are first-class points. In other sacrificial fires people offer barley and sesame seeds, whereas the material of the whole of the old world is sacrificed into My sacrificial fire of the knowledge of Rudra. However, not all of these aspects are imbibed very well by the intellects of some. If you do not remember the Father, the lock on your intellect doesn’t open. Baba says: What can I do even? At this time, the intellect of everyone is impure. I come and purify them. Those who do not remember Me are not able to imbibe this knowledge, and so, how would the locks on their intellects open? It is only by having remembrance that they can open. The Father is the most beloved One, and so people praise Him a great deal. There is a great deal of praise of Shiv Baba. Shiva is also worshipped, so He must surely have come, but what could He do without organs? Therefore, I have now entered Brahma. You children are sitting in front of BapDada but, because of body consciousness, you are not able to maintain that much love and regard for the Father; you hardly follow His directions and you become arrogant. The Father says: I am completely egoless. So, why do you have so much arrogance? You think that only you are very clever. You become so body conscious! Now, when someone’s husband dies, the soul leaves and the body is destroyed. Then, that soul is invoked into a brahmin priest. It is not the body that is invoked. They have that feeling of love and devotion and thereby receive the return for it. If a wife continues to remember her husband, she receives a vision of him. It is Baba who grants visions; many have such love. However, it is the soul that comes. When a man is so devoted to his dead wife, he too would receive the return for his devoted feelings; he would see his wife. He would bring something and would adorn her with it himself. Many such things used to take place in the past. Previously, they used to feed the soul with great ceremony. When people remember Ganesh or Nanak etc., they have a vision of them. This can happen to many but only the one Father holds the key to it. The Father says: These things about visions are also fixed in the drama. You are granted visions and the drama continues; it doesn’t wait! You have to understand the drama very well. Ah, you must also have very good regard for Baba. Some find it very difficult to have that much love and regard for the Father; they think that He is incorporeal. When they are told that this one is His chariot, they think: What have I got to do with him? I’m only going to remember the incorporeal One. Achcha, see if you are able to go into the lap of the incorporeal One or eat and drink with the incorporeal One. Why do you come to this one? Then they say: But Baba, You are in this one; we move along believing that You are present in this one. It is difficult for the intellects of some to retain this. There are many who tell lies when they say: I have a great deal of love for Baba. I stay in remembrance of Baba for so many hours. This Baba says: Even I am not able to stay in complete remembrance. I am the only specially loved, long-lost and now-found child, nevertheless, I make a lot of effort. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Along with surrendering yourself, you must also broaden your intellect. In order to claim a high status, imbibe this knowledge very well and inspire others to imbibe it.
2. Become egoless like the Father. Let go of arrogance and have deep love and regard for the Father. Do not become body conscious.
Blessing:
May you be a knowledge-full and sensible soul who accumulates an income of multimillions at every step.
A sensible and knowledge-full soul is one who first considers everything before he acts. Eminent people first have their food checked before they eat it. Similarly, thoughts are food for the intellect and so first of all check them and then put them into practice. By checking your thoughts, your words and deeds automatically become powerful. Where there is power, there is an income. So, become powerful and accumulate an income of multimillions at every step, that is, from every thought, word and deed. This is the qualification of a knowledge-full soul.
Slogan:Only those who fly in the aeroplane of blessings from the Father and everyone are flying yogis.
''मीठे बच्चे - तुम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हो, रूद्र शिवबाबा तुम्हें जो सुनाते हैं वह सुनकर दूसरों को जरूर सुनाना है''
प्रश्नः-
बाप ने भी यज्ञ रचा है और मनुष्य भी यज्ञ रचते हैं - दोनों में कौन सा मुख्य अन्तर है?
उत्तर:-
मनुष्य रूद्र यज्ञ रचते हैं कि शान्ति हो अर्थात् विनाश न हो लेकिन बाप ने रूद्र यज्ञ रचा है कि इस यज्ञ से विनाश ज्वाला निकले और भारत स्वर्ग बनें। बाप के इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से तुम नर से नारायण अर्थात् मनुष्य से देवता बन जाते हो। उस यज्ञ से तो कोई भी प्राप्ति नहीं होती है।
गीत:-
तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है......
ओम् शान्ति।
यह कितना मीठा गीत है और कितना अर्थ सहित है, जो विशाल बुद्धि वाले होंगे वह अच्छी रीति समझ सकेंगे। बुद्धि भी नम्बरवार है ना। उत्तम-मध्यम-कनिष्ट होते हैं। उत्तम बुद्धि वाले इसका अर्थ अच्छी रीति समझ सकते हैं। तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है, यह कौन याद करते हैं? (बच्चे) कौन से बच्चे? बच्चे तो ढेर हैं। जो ब्राह्मण बने हैं, जो देवता थे, जिन्होंने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं उन्होंने ही जास्ती बुलाया है। वही शिव अथवा सोमनाथ के मन्दिर की स्थापना करते हैं। सिद्ध होता है हम जो पूज्य देवी-देवता थे, अभी पुजारी बने हैं। बरोबर हम पूज्य थे फिर पुजारी बने तो सोमनाथ शिव की पूजा करते हैं। रूद्र यज्ञ बहुत रचते हैं, रूद्र ज्ञान यज्ञ कभी नहीं रचते। रूद्र यज्ञ नाम रखते हैं। अभी भी रूद्र यज्ञ रच रहे हैं। तुम बहुत अच्छा समझा सकते हो - रूद्र कौन है? क्या रूद्र ने कभी यज्ञ रचा था? कैसे रचा फिर क्या उसकी सिद्धि हुई? यह तो कोई नहीं जानते। तुमको अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। परमपिता परमात्मा के सिवाए ज्ञान का तीसरा नेत्र कोई दे नहीं सकता। ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा को ही गाया जाता है। मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कह सकते। अभी तुम जानते हो हमको दादे का वर्सा मिल रहा है जिसको ही याद करते हैं कि बाबा आकर अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करो। फिर हम भी दान लेकर औरों को करेंगे। बहुत सहज है। सिर्फ याद दिलायेंगे कि तुम्हारे दो बाप हैं। भक्ति मार्ग में दो बाप हो जाते हैं। सतयुग-त्रेता में लौकिक बाप ही होता है। वहाँ वर्सा भी तुम इस समय के पुरुषार्थ अनुसार पाते हो। तो तुम बच्चों का माथा फिरना चाहिए। ऐसी-ऐसी जगह जाकर पूछना चाहिए कि रूद्र यज्ञ किसने रचा था? क्या रूद्र ज्ञान यज्ञ है या रूद्र यज्ञ है? असुल नाम है रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र तो है निराकार। वह कैसे यज्ञ रचेगा? जरूर शरीर धारण करना पड़े। दक्ष प्रजापति का यज्ञ भी मनाते आते हैं। दिखाते हैं दक्ष प्रजापति यज्ञ में अश्व को स्वाहा करते हैं। घोड़े को टुकड़े-टुकड़े कर जलाते हैं। उनको दक्ष प्रजापति यज्ञ कहते हैं। यह तुम अभी जानते हो तो वहाँ लिखना चाहिए यह कौन सा यज्ञ है? बड़ा भभके से यज्ञ करते हैं। बहुत पैसे इकट्ठे करते हैं। बड़े-बड़े आदमी दान करते हैं। कोई 100 निकालते, कोई 500 निकालते। इस रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो तुम सारे स्वाहा होते हो। उसमें तो थोड़ा-थोड़ा पैसा निकाल इकट्ठा करते हैं फिर ब्राह्मण को दक्षिणा मिलती है। यहाँ तो तुमको स्वाहा होना पड़ता है। वहाँ स्वाहा होने की बात नहीं। यहाँ बच्चे कहते हैं बाबा तन-मन-धन सहित मैं आता हूँ, वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे। आहुति में कभी ऐसे नहीं डालेंगे। आरती आदि होगी, चंदा चीरा होगा। बड़ों-बड़ों से लेते हैं। तुम बच्चे जानते हो इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से ही विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है। वह यज्ञ रचते हैं शान्ति के लिए, विनाश के लिए नहीं। वहाँ शान्ति का बड़ा आवाज़ करते हैं। शान्ति तो सारी दुनिया में चाहिए ना। परमात्मा है शान्ति का सागर। तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है। अ़खबार पढ़ते हो तो ख्याल चलना चाहिए - कैसे हम सबको समझायें?
बाप जानते हैं कैसे बी.के. दुकान सम्भाल रहे हैं। सेठ का कौन सा दुकान अच्छा चलता है, कौन सा मैनेजर अच्छा है, वह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। यह ब्रह्मा है गोथरी। यह बड़ी रमणीक बातें हैं। तो रूद्र ज्ञान यज्ञ के लिए तो लिखा हुआ है इससे विनाश ज्वाला निकली। वह यज्ञ करते हैं शान्ति के लिए। यह है सच्चा-सच्चा यज्ञ। उन ब्राह्मणों के तो अनेक सेठ होते हैं। यह तुम ब्राह्मणों का एक ही सेठ है। बाप है रूद्र। रूद्र बाप कहो, शिव कहो, सोमनाथ कहो, उसने ज्ञान यज्ञ रचा है, जिसमें तुम बैठे हो। वह यज्ञ तो दो-चार दिन चलेगा। तुम्हारा यह रूद्र ज्ञान यज्ञ तो बहुत बड़ा है। उसमें टाइम लगता है। यह है नर से नारायण अथवा मनुष्य से देवता बनने का यज्ञ। वह तो ऐसे नहीं कहेंगे। बाप बैठ समझाते हैं कैसे उन्हों को सावधान करो। बड़ों-बड़ों को बोलो - यह तुम जो यज्ञ रचते हो, उसमें भूल है। परमपिता परमात्मा कल्प-कल्प संगम पर आते हैं। शास्त्रों में युगे-युगे लिख दिया है। यह भूल कर दी है। वैसे ही रूद्र यज्ञ रचते हैं। वास्तव में रूद्र ज्ञान यज्ञ है। शिव का नाम है रूद्र, उसने ही ज्ञान यज्ञ रचा है। जैसे इब्राहम ने अपना इस्लाम धर्म स्थापन किया, बुद्ध ने बौद्धी धर्म स्थापन किया, वैसे रूद्र का है ज्ञान यज्ञ जिससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होगी। तो गोया वो लोग शान्ति के लिए यज्ञ रचते हैं अर्थात् विनाश नहीं चाहते। स्वर्ग की स्थापना के लिए नर्क का विनाश हो, तो अच्छा ही है ना।
भारत है अविनाशी खण्ड। जरूर भारत के मनुष्य सम्प्रदाय बहुत ज्यादा होने चाहिए। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। उनको सारा कल्प हुआ है। शास्त्रों में 33 करोड़ लिख दिया है। परन्तु यह तो समझाना चाहिए - जरूर और धर्म वालों से देवता धर्म की आदमशुमारी जास्ती होगी, लेकिन वह कनवर्ट हो गये हैं तो कैसे निकलें। बौद्धी, क्रिश्चियन, मुसलमान आदि जाकर ढेर बने हैं, इसलिए थोड़ी संख्या हो जाती है। यह भी ड्रामा। इसमें समझने की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। जब तक बुद्धि में ज्ञान नहीं बैठा है तो सिर्फ अर्पणमय होने से क्या फायदा? अर्पणमय तो ढेर बनते हैं परन्तु जो अच्छी रीति धारणा कर और कराते हैं, प्रजा बनाते हैं वही अच्छा पद पा सकते हैं।
तो यह गीत एक्यूरेट है - बुलाने को जी चाहता है.......। सबसे पहले 84 जन्म किसने लिए होंगे? जो पहले-पहले थे, वह थे ही देवी-देवतायें। सो भी भारत में थे। अभी तो कोई कहाँ, कोई कहाँ कनवर्ट हो गये हैं। कई तो भारत से बाहर चले गये हैं। नहीं तो वास्तव में भारत जैसा बड़े ते बड़ा तीर्थ और कोई है नहीं। और सभी धर्म स्थापक जो हैं उन्हों को भी पावन बनाने के लिए भगवान् को भारत में आना पड़ता है क्योंकि सब पतित हैं, सबको पावन बनाने वाला एक है। यह तुम जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार यथार्थ रीति जान सकते हैं। तुम कहेंगे हम रूद्र ज्ञान यज्ञ में बैठे हैं, ऐसा कोई यज्ञ होता है क्या, जिसमें इतना समय बैठे हों? क्या बैठ करते हो? रूद्र जो ज्ञान सुनाते हैं वह सुनते ही रहते हो। जहाँ तक रूद्र बाबा इस शरीर में है, सुनाते ही रहेंगे। प्रजापिता ब्रह्मा भी तो जरूर यहाँ होगा ना। ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात गाई हुई है। सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा का थोड़ेही दिन और रात बनायेंगे। वह तो सूक्ष्मवतनवासी देवता है। दिन और रात का प्रश्न यहाँ का है। ब्रह्मा की रात माना पतित। फिर वही पावन बनते हैं तो दिन होता है। ब्रह्मा को भी पावन बनाने वाला वह एक सतगुरू है। सत बाबा, सत टीचर, सतगुरू तीनों इकट्ठे हैं। पहले जरूर बाप के बच्चे होंगे फिर पद टीचर से पायेंगे। नम्बरवार हैं ना। यह भी बुद्धि में रहे तो कितनी खुशी रहे। तुम पहले बेहद के बाप के थे ना। यहाँ आये हो पार्ट बजाने। भक्ति मार्ग में बेहद के बाप को याद करते आये हो क्योंकि वह है स्वर्ग का रचयिता। जरूर स्वर्ग की राजाई देने वाला होगा। यह समझाना तो बड़ा सहज है। सेन्सीबुल ही समझा सकेंगे। वास्तव में सेन्सीबुल तुम ब्राह्मण हो। तुम्हारे में जो अक्लमंद हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। दुनिया के अक्लमंद भी नम्बरवार हैं ना। यहाँ भी जो सेन्सीबुल बनते जायेंगे वह जरूर अच्छा नम्बर पायेंगे। हर एक अपनी दिल से पूछे हम कहाँ तक सेन्सीबुल बना हूँ? जैसे बाबा मुरली चलाते हैं वैसे वहाँ भी तुम्हारी मुरली चल सकती है। तुम उन्हें समझाओ कि रूद्र यज्ञ और रूद्र ज्ञान यज्ञ में रात-दिन का फ़र्क है। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा तो उससे विनाश ज्वाला निकली, भारत स्वर्ग बना और यह फिर यज्ञ रचते हैं विनाश न हो अर्थात् स्वर्ग स्थापन न हो। यह तो उल्टी बात हो गई। तब तो बाबा कहते हैं मैं इन सबका उद्धार करने आता हूँ। रूद्र ज्ञान यज्ञ रचता हूँ। तो तुम प्रतिज्ञा करते हो - बाबा, हम आपसे सुनकर और सुनायेंगे। अच्छा, औरों को सुनाओ। पहले यहाँ तो रिपीट करो। घड़ी-घड़ी रिपीट करो जो फिर कहाँ समझा सको। फर्स्टक्लास प्वाइंट है। उस यज्ञ में तो जौ-तिल आदि डालते हैं, मेरे रूद्र ज्ञान यज्ञ में तो सारी पुरानी दुनिया की सामग्री स्वाहा हुई थी। परन्तु यह सब बातें कोई की बुद्धि में अच्छी रीति धारण नहीं होती। बाप को याद नहीं करते हैं तो बुद्धि का ताला नहीं खुलता। बाबा कहते हैं - हम भी क्या करें? इस समय सबकी बुद्धि पतित है, उनको पावन बनाता हूँ। जो मेरे को याद नहीं करते, उनमें धारणा नहीं हो सकती। बुद्धि का ताला कैसे खुले? याद से ही खुलेगा। मोस्ट बिलवेड बाप है, उनकी बड़ी महिमा करते हैं। शिवबाबा की कितनी महिमा है! शिव की पूजा भी होती है, तो जरूर आता होगा ना। बिगर आरगन्स क्या आकर करेंगे? तो अब ब्रह्मा में आया हुआ हूँ। तुम बच्चे बापदादा के सामने बैठे हुए हो परन्तु देह-अभिमान होने कारण इतना लॅव, बाप के लिए रिगार्ड नहीं रहता। डायरेक्शन पर मुश्किल चलते हैं। अहंकार में आ जाते हैं। बाप कहते हैं - मैं निरहंकारी हूँ, तुमको इतना अहंकार क्यों आता है? बस, समझते हैं मैं ही होशियार हूँ। इतना देह-अभिमान आ जाता है।
अब कोई का पति मर जाता है तो उसकी देह ख़त्म हो गई। बाकी आत्मा निकल गई फिर ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं। देह को तो नहीं बुलाते। भावना रखते हैं तो भावना का भाड़ा मिलता है। पति को याद करते रहे तो पति का साक्षात्कार कर लेंगे। बाबा साक्षात्कार तो कराते हैं ना। ऐसे बहुतों का प्यार होता है। आयेगी तो आत्मा ना। कोई का स्त्री में प्यार है तो भावना का भाड़ा मिल जाता है। स्त्री को देख लेते हैं। चीज़ ले आते हैं, खुद उनको पहनाते हैं। ऐसे बहुत कुछ होता आया है। आगे बहुत विधि से खिलाते थे। जैसे गणेश को अथवा नानक आदि को याद करते हैं तो साक्षात्कार हो जाता है, ऐसे बहुतों को हो सकता है। परन्तु वह चाबी एक ही बाप के हाथ में है। बाप कहते हैं यह साक्षात्कार की बातें भी ड्रामा में नूंधी हुई हैं। साक्षात्कार कराया, ड्रामा चला, ठहरता नहीं है। ड्रामा को भी अच्छी रीति जानना होता है। अरे, बाबा का तो अच्छी रीति रिगार्ड रखो। बाप में इतना रिगार्ड प्यार रखना बड़ा मुश्किल समझते हैं, समझते हैं वह तो निराकार है। कहते हैं यह तो उनका रथ है, इनको हम क्या करेंगे? हम तो निराकार को ही याद करेंगे। अच्छा, निराकार की गोद में जाकर दिखाओ? निराकार साथ खाओ, पियो। तुम इनके पास क्यों आते हो? कहते हैं - नहीं बाबा, आप इसमें हो, आपको ही इसमें विराजमान समझ चलते हैं। यह बड़ा मुश्किल किसकी बुद्धि में रहता है। ऐसे बहुत हैं जो गपोड़े लगाते हैं - हमारा बाबा में बहुत प्यार है, हम इतने घण्टे बाबा को याद करते हैं। बाबा कहते हैं मैं भी पूरा याद नहीं करता हूँ। मैं तो एक ही सिकीलधा बच्चा हूँ फिर भी मैं पुरुषार्थ बहुत करता हूँ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अर्पण होने के साथ-साथ अपनी बुद्धि को विशाल बनाना है। ऊंच पद के लिए अच्छी रीति धारणा करनी और करानी है।
2) बाप समान निरहंकारी बनना है। अहंकार छोड़ बाप से अति लॅव वा रिगार्ड रखना है। देह-अभिमान में नहीं आना है।
वरदान:-
हर कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले समझदार ज्ञानी तू आत्मा भव
समझदार ज्ञानी तू आत्मा वह है जो पहले सोचता है फिर करता है। जैसे बड़े आदमी पहले भोजन को चेक कराते हैं फिर खाते हैं। तो यह संकल्प बुद्धि का भोजन है इसे पहले चेक करो फिर कर्म में लाओ। संकल्प को चेक कर लेने से वाणी और कर्म स्वत: समर्थ हो जायेंगे। और जहाँ समर्थ है वहाँ कमाई है। तो समर्थ बन हर कदम अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म में पदमों की कमाई जमा करो, यही ज्ञानी तू आत्मा का लक्षण है।
स्लोगन:-
बाप और सर्व की दुआओं के विमान में उड़ने वाले ही उड़ता योगी हैं।
12/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you are sitting in the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. You definitely have to listen to whatever Rudra Shiv Baba tells you and relate it to others.
Question:
What is the main difference between the sacrificial fire created by the Father and those created by human beings?
Answer:
Human beings create sacrificial fires of Rudra for there to be peace, that is, so that destruction is prevented from taking place. However, the Father has created this sacrificial fire of the knowledge of Rudra for the flames of destruction to emerge so that Bharat can become heaven. Through this sacrificial fire of the knowledge of Rudra created by the Father, you become Narayan from an ordinary man, that is, you become deities from human beings. You don’t gain anything from those other sacrificial fires.
Song:
My heart desires to call out to You.
Om Shanti
This is such a sweet song! It is so meaningful! Those who have unlimited and broad intellects will be able to understand it very well. Intellects too are numberwise; there are the highest, the middle and the lowest. Those who have elevated intellects can understand the meaning of this song very well. “My heart desires to call out to You”. Who is remembering this? (Children) Which children? There are many children. It is those who were deities and who have now become Brahmins, those who have taken the full 84 births who are the ones who have been calling out a great deal. They are also the ones who built the Shiva Temple, that is, the Temple to Somnath. It proves that we, who were worthy-of-worship deities, have now become worshippers. We truly were worthy of worship and we then became worshippers. So we worshipped Somnath, Shiva. Many create sacrificial fires of Rudra, but no one creates the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. They call it a Rudra Yagya. Even now, they are creating a sacrificial fire of Rudra. You can explain to them very clearly who Rudra is. Did Rudra ever create a sacrificial fire? How did He create it, was it successful and what was the result of it? No one knows this. You have now each received a third eye of knowledge. No one, except the Supreme Father, the Supreme Soul, can bestow the third eye of knowledge. The Supreme Father, the Supreme Soul, is remembered as the Ocean of Knowledge. Human beings cannot be called the Ocean of Knowledge. You know that you are now receiving your inheritance from the Grandfather, the One whom you have been remembering and saying: Baba, come and bestow the imperishable jewels of knowledge on us. We will take this donation and then donate it to others. It is very easy. Simply remind them that they have two fathers. On the path of devotion, you have two fathers. In the golden and silver ages, you only have a physical father. The inheritance you receive there is according to the efforts you make here at this time. So, the heads of you children should work on how to go to such places where you can ask them: Who created the sacrificial fire of Rudra? Is it the sacrificial fire of the knowledge of Rudra or the sacrificial fire of Rudra? Its real name is: Sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Rudra is incorporeal. How can He create a sacrificial fire? He would definitely have to adopt a body. People also have a sacrificial fire for Daksh Prajapati. They have shown (in the scriptures) Daksh Prajapati sacrificing a horse in the sacrificial fire. They cut a horse into pieces and burn it and they call that a Daksh Prajapati Yagya. It is now that you understand this and so you should write what type of sacrificial fire this is. People hold sacrificial fires with great pomp and splendour. They collect a lot of money. Eminent and wealthy people donate money. Some donate 100 whereas others donate 500. You sacrifice yourselves completely into this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. In other yagyas, they accumulate money bit by bit and then brahmin priests are given alms from that. Here, you have to sacrifice yourselves completely. There, there is no question of sacrificing oneself. Here, children say: Baba, I am coming with my mind, body and wealth. No one would say this there. They do not put such offerings into a sacrificial fire. They perform arti (worship ritual with lamps) and they ask for donations. They take from important people. You children understand that the flames of destruction emerged from this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Those people create sacrificial fires for peace, not for destruction. There, they make a great deal of noise for peace. Peace is needed throughout the whole world. The Supreme Soul is the Ocean of Peace. The meaning is explained to you children. When you read newspapers, you should think about how to explain to everyone. The Father knows how the Brahma Kumaris are looking after the shops. Only the jaggery and its bag know which of the Businessman’s shops are running well and which of the managers are good. This Brahma is the bag. These are very entertaining things! Therefore, it is written of the sacrificial fire of the knowledge of Rudra that the flames of destruction emerged from that. People create sacrificial fires for peace. This is the real sacrificial fire. Those brahmins have many patrons whereas you Brahmins only have the one Patron and that is the Father, Rudra. Whether you call Him the Father, Rudra or Shiva or Somnath (Lord of Nectar), it is He who creates this sacrificial fire of the knowledge of Rudra in which you are now sitting. Those sacrificial fires last from two to four days, whereas your sacrificial fire of the knowledge of Rudra is huge and so it takes time. This is the sacrificial fire in which you become Narayan from an ordinary man, that is, you become deities from human beings. Those people would not say this. The Father sits here and explains how you should caution them. Tell the important people that there is a mistake in the sacrificial fires they create. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes at the confluence age of every cycle. They have made a mistake in the scriptures and said that He comes in every age. In any case, they say that they create a sacrificial fire of Rudra, whereas it is really the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Shiva’s name is Rudra and He is the One who creates the sacrificial fire of knowledge. Just as Abraham established his Islam religion and Buddha established the Buddhist religion, so, in the same way, Rudra establishes the sacrificial fire of knowledge through which the flames of destruction emerge. In fact, those people create sacrificial fires for peace, that is, they do not want destruction. It is good to destroy hell for the sake of creating heaven. Bharat is the imperishable land. Surely, the human community of Bharat should be very large. There was the original eternal deity religion and that began a whole cycle ago. It is mentioned in the scriptures that there were 330 million deities in Bharat. However, it has to be explained that the population of the deity religion would surely be the largest of all the religions, but many were converted. So, how can they emerge? Many left and became Buddhists, Christians and Muslims etc. This is why the population has decreased. This too is in the drama. You need an unlimited and broad intellect to understand this. Until this knowledge sits in their intellects, what benefit is there in them just surrendering? Many surrender themselves, but only those who imbibe this knowledge well and inspire others to imbibe it very well and who create subjects are able to claim a good status. So, this song, “My heart desires to call out to You”, is accurate. Who were the first ones to take 84 births? The ones who existed at the beginning were actually the deities and they existed in Bharat. Many have now been converted; some went to one place and others to another; some even left Bharat completely. However, there is truly no other pilgrimage place as elevated as Bharat was. God has to come into Bharat and purify everyone, even all the founders of religions, because everyone is now impure and there is only the One who purifies everyone. You know this, but, among you too, the accuracy of your understanding is numberwise. You say that you are sitting in the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Can there be a sacrificial fire like this in which people sit for so long? What do you sit and do? You continue to listen to the knowledge that Rudra explains. As long as Rudra Baba is in this body, He will continue to explain. Surely, Prajapita Brahma would also be here. “The day of Brahma and the night of Brahma”, has been remembered. It cannot be the day and night of the Brahma who resides in the subtle region. He is the deity who resides in the subtle region. The question of day and night applies here. The night of Brahma means the time he is impure and, when he becomes pure. it becomes the day. It is the one Satguru who purifies Brahma. He is the true Baba, the true Teacher and the Satguru - all three combined. Firstly, you are the children of the Father and then, you attain your status from the Teacher. This is numberwise. If you even retained this in your intellects, you would remain very happy. Originally, you belonged to the unlimited Father. You came down here to play your parts. You have been remembering the unlimited Father from the beginning of the path of devotion, because He is the Creator of heaven. Surely, He must be the One who gives us the kingdom of heaven. It is very easy to explain this. Only sensible ones are able to explain. In fact, it is you Brahmins who are sensible. Those among you who are intelligent are also numberwise. The people who are intelligent in the world are numberwise too. Here, those who continue to become more sensible will also definitely claim a good number. Each one of you should ask your own heart: To what extent have I become sensible? Just as Baba speaks the murli here, in the same way, it is possible for you to speak the murli there. You should explain to them that there is the difference of day and night between the sacrificial fire of Rudra and the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. When the sacrificial fire of the knowledge of Rudra was created, the flames of destruction emerged and Bharat became heaven, whereas those people create sacrificial fires so that destruction doesn’t take place, so that heaven is not established. That is completely the opposite thing. This is why Baba says: I come to uplift all of those people. I come and create the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Therefore, you make a promise: Baba, whatever we hear from You, we will relate that to others. Achcha, relate it to others, but repeat it here first. Repeat it as often as possible so that you can explain it anywhere. These are first-class points. In other sacrificial fires people offer barley and sesame seeds, whereas the material of the whole of the old world is sacrificed into My sacrificial fire of the knowledge of Rudra. However, not all of these aspects are imbibed very well by the intellects of some. If you do not remember the Father, the lock on your intellect doesn’t open. Baba says: What can I do even? At this time, the intellect of everyone is impure. I come and purify them. Those who do not remember Me are not able to imbibe this knowledge, and so, how would the locks on their intellects open? It is only by having remembrance that they can open. The Father is the most beloved One, and so people praise Him a great deal. There is a great deal of praise of Shiv Baba. Shiva is also worshipped, so He must surely have come, but what could He do without organs? Therefore, I have now entered Brahma. You children are sitting in front of BapDada but, because of body consciousness, you are not able to maintain that much love and regard for the Father; you hardly follow His directions and you become arrogant. The Father says: I am completely egoless. So, why do you have so much arrogance? You think that only you are very clever. You become so body conscious! Now, when someone’s husband dies, the soul leaves and the body is destroyed. Then, that soul is invoked into a brahmin priest. It is not the body that is invoked. They have that feeling of love and devotion and thereby receive the return for it. If a wife continues to remember her husband, she receives a vision of him. It is Baba who grants visions; many have such love. However, it is the soul that comes. When a man is so devoted to his dead wife, he too would receive the return for his devoted feelings; he would see his wife. He would bring something and would adorn her with it himself. Many such things used to take place in the past. Previously, they used to feed the soul with great ceremony. When people remember Ganesh or Nanak etc., they have a vision of them. This can happen to many but only the one Father holds the key to it. The Father says: These things about visions are also fixed in the drama. You are granted visions and the drama continues; it doesn’t wait! You have to understand the drama very well. Ah, you must also have very good regard for Baba. Some find it very difficult to have that much love and regard for the Father; they think that He is incorporeal. When they are told that this one is His chariot, they think: What have I got to do with him? I’m only going to remember the incorporeal One. Achcha, see if you are able to go into the lap of the incorporeal One or eat and drink with the incorporeal One. Why do you come to this one? Then they say: But Baba, You are in this one; we move along believing that You are present in this one. It is difficult for the intellects of some to retain this. There are many who tell lies when they say: I have a great deal of love for Baba. I stay in remembrance of Baba for so many hours. This Baba says: Even I am not able to stay in complete remembrance. I am the only specially loved, long-lost and now-found child, nevertheless, I make a lot of effort. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Along with surrendering yourself, you must also broaden your intellect. In order to claim a high status, imbibe this knowledge very well and inspire others to imbibe it.
2. Become egoless like the Father. Let go of arrogance and have deep love and regard for the Father. Do not become body conscious.
Blessing:
May you be a knowledge-full and sensible soul who accumulates an income of multimillions at every step.
A sensible and knowledge-full soul is one who first considers everything before he acts. Eminent people first have their food checked before they eat it. Similarly, thoughts are food for the intellect and so first of all check them and then put them into practice. By checking your thoughts, your words and deeds automatically become powerful. Where there is power, there is an income. So, become powerful and accumulate an income of multimillions at every step, that is, from every thought, word and deed. This is the qualification of a knowledge-full soul.
Slogan:Only those who fly in the aeroplane of blessings from the Father and everyone are flying yogis.
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