Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
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Details ( Page:- Murali 08-Sep-2018 )
08-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप से वर्सा लेना है तो 20 नाखूनों का जोर देकर भी पढ़ाई जरूर पढ़ो, पढ़ाई से ही राजाई वा जीवनमुक्ति पद प्राप्त होगा''
प्रश्नः-
ज्ञान मार्ग में सदा कायम कौन रह सकता है? ऊंच पद की प्राप्ति का आधार क्या है?
उत्तर:-
जिनका पढ़ाई के सिवाए दूसरा किसी भी बात में शौक नहीं है, ज्ञान की परिपक्व अवस्था है, वही इस ज्ञान मार्ग में कायम रह सकते हैं। बाकी ध्यान दीदार की आश रखना, खेलपाल करना, इससे कोई फ़ायदा नहीं, और ही माया प्रवेश कर लेती है फिर बाप का हाथ वा पढ़ाई छोड़ देते हैं। ऊंच पद के लिए पढ़ाई पर फुल अटेन्शन चाहिए।
गीत:-
तुम्हीं हो माता........
ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्चों को समझाया गया है। जो भी रिलीजस माइन्डेड अथवा धर्मात्मा पुरुष होते हैं, मन्दिर टिकाणें में जाते हैं तो उनके मुख से ओम् शान्ति अक्षर निकलता है। परन्तु वह अर्थ नहीं समझते। हम भी कहते हैं ओम् शान्ति, अहम् आत्मा। आत्मा अक्षर जरूर आता है। सुप्रीम सोल अथवा आत्मा कहती है ओम् शान्ति। मैं जो आत्मा हूँ, मेरा स्वधर्म है शान्त। आत्मा अपना आक्यूपेशन बतलाती है। बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति। हम भी आत्मा हैं परन्तु मुझे परम आत्मा कहते हैं क्योंकि मैं सदैव परमधाम में रहता हूँ। मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। बाप सम्मुख आकर कहते हैं तुम पुनर्जन्म में आते हो, तुम देहधारी हो। सूक्ष्मवतन वाले भी सूक्ष्म देहधारी हैं। मै इनसे भी परे हूँ। मुझे कोई स्थूल शरीर नहीं है। सूक्ष्म शरीरधारी को कहते हैं - यह ब्रह्मा है, यह विष्णु, यह शंकर है। नाम तो शरीर का हुआ ना। आत्मा का तो नहीं है। आत्मा शरीर धारण करती है, तब शरीर पर नाम पड़ता है। कोई मरते हैं तो कहेंगे फलाने का शरीर छूट गया। नाम तो शरीर पर रह जाता है फिर दूसरा शरीर लेते हैं। परमपिता परमात्मा के लिए तो ऐसे नहीं कहेंगे कि वह एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सबका शरीर पर नाम पड़ता है। तुम बच्चे मेरे बनते हो तो तुमको भी दूसरा नाम देता हूँ। जैसे गुरू लोग नाम देते हैं ना। आजकल कन्या शादी करती है तो उनका भी नाम बदलता है। पुरुष का नहीं बदलता क्योंकि पुरुष को तो धन्धा करना है अपने नाम से। माताओं का तो धन्धा है नहीं, इसलिए उनका नाम बदल सकता है। पुरुषों का इन्श्योरेन्स धन्धे आदि में नाम है। अब बाप समझाते हैं - सब याद तो करते हैं तुम मात-पिता हो और साथी हो, खिवैया हो, तुम हमको साथ ले चलते हो। देखो, कितने सम्बन्धों में आते हैं। शरीर छोड़कर फिर आपके साथ चलना है। तुम बच्चे जानते हो - खिवैया हमको साथ में ले जायेंगे।
बाप की कितनी महिमा है! फिर वह कब आयेंगे? कब आकर साथी बनेंगे? यह नहीं जानते। कहते हैं जब भक्ति मार्ग का अन्त होता है तब भक्तों की रक्षा करने मुझे आना पड़ता है। मुझे खिवैया बन वापिस ले जाना है। तुम जानते हो कैसे आकर मात-पिता बने हैं। इनको ही खिवैया, गुरू कहा जाता है। छी-छी दुनिया, जीवनबन्ध से जीवनमुक्ति में ले जाते हैं इसलिए उनको पतित-पावन खिवैया कहा जाता है। नई दुनिया कहा जाता है - सतयुग को। दुनिया तो यही है, सिर्फ पुरानी दुनिया का विनाश होता है। जैसे पुराने घर में रहकर नया बनाए फिर पुराना घर छोड़ना होता है ना, यह भी जब स्थापना हो जाती है तो फिर पुरानी दुनिया का विनाश होता है। त्रिमूर्ति का भी अर्थ समझाया है। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना करना - यह परमपिता परमात्मा का ही काम है। उन्हों द्वारा कराते हैं क्योंकि करनकरावनहार है। बाप आकर सम्मुख समझाते हैं। ब्रह्मा द्वारा सहज राजयोग और ज्ञान तुम ब्रह्मा मुख वंशावली को बैठ सिखलाता हूँ। भविष्य 21 जन्म के लिए तुम सो देवी-देवता पद पायेंगे, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।
तुम जानते हो हम मात-पिता से पढ़ रहे हैं, यह है ही ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। अगर पढ़ाई को छोड़ देंगे तो समझा जायेगा इनकी त़कदीर में नहीं है। स्कूल तो चलना ही है। बाबा आकर इस ब्रह्मा तन द्वारा पढ़ाते हैं। तो बच्चे भल कहाँ भी हों, किसी भी सेन्टर पर हों, जानते हो ज्ञान सागर पारलौकिक परमपिता परमात्मा से हमको जीवनमुक्ति का अथवा राजाई का वर्सा पाना है। अगर हम पढ़ाई छोड़ देंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगे। बाप तो आये हैं साथ ले जाने। नई दुनिया स्थापन हो जायेगी फिर सबको खिवैया ले जायेंगे। तुम खिवैया को भी जानते हो और जिन द्वारा स्थापना, विनाश, पालना कराते हैं उन्हों को भी तुम जानते हो। फिर इस पढ़ाई से जो लक्ष्मी-नारायण बन राज्य करते हैं उनको भी तुम जानते हो। समझते हो हम बरोबर इस पढ़ाई से राजाई पद प्राप्त कर रहे हैं। जितना जो पढ़ेंगे...... पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। यह है राजयोग की पढ़ाई। बहुत बच्चे पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते थक जाते हैं। नहीं पढ़ना माना थक जाना। कहते हैं - बस, आगे हम नहीं पढ़ सकते हैं। इस पढ़ाई में खर्चे की बात तो नहीं है। उस पढ़ाई में गरीब बिचारे पढ़ाई का पैसा नहीं दे सकते हैं तो पढ़ना छोड़ देते हैं। परन्तु जिनको पढ़ाई का अच्छा शौक होता है तो गवर्मेन्ट को अप्लाई करते हैं कि हम पढ़ना चाहते हैं परन्तु पैसा नहीं है। फिर उनको गवर्मेन्ट पैसा देती है। कैसे भी करके रिक्वेस्ट करते हैं कि मैं पढ़ना चाहता हूँ, मेरे बाप के पास पैसा नहीं है, हमें मदद करो। गवर्मेन्ट पास पैसा न होने कारण रिफ्यूज़ कर देती है। समझते हैं हमको पढ़ना तो जरूर है फिर क्या करेंगे? बड़े साहूकार वा दानी पुरुष के पास जायेंगे। हमारे मात-पिता गरीब हैं हम पढ़कर सर्विस करना चाहते हैं, आप हमें मदद कर सकेंगे? रिलीजस माइन्डेड जो होंगे वह मदद दे देंगे। कन्यायें ऐसे रिक्वेस्ट नहीं कर सकती, पुरुष कर सकते हैं। पढ़ाई से इनकम बहुत होती है। यहाँ यह पढ़ाई भी है और यह सौदा भी है। बाप सौदागर, रत्नागर है और फिर ज्ञान सागर है।
मात-पिता बेहद का ज्ञान सागर कहते हैं - मैं कल्प पहले मुआफिक तुमको राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। सब प्वाइन्ट्स धारण करनी हैं। बालिग बुद्धि अच्छी रीति धारण कर सकते हैं। बुद्धि पर ही सारा मदार है। कोई की सतोप्रधान, कोई की सतो, कोई की रजो, तमो, बुद्धि है। उस स्कूल में भी स्टूडेन्ट्स जानते हैं इनकी बुद्धि कैसी है। सतोप्रधान बुद्धि वाले पास विद ऑनर होते हैं। उन्हें ही मॉनीटर आदि बनाते हैं। स्कॉलरशिप भी मिल जाती है। यह फिर बेहद का स्कूल है। इनमें भी सतो, रजो, तमो बुद्धि हैं। यहाँ मर्तबा एक ही है। यह है ही राजयोग। ईश्वरीय पढ़ाई एक ही है। बाप कहते हैं मैं तुम सब बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ। तो जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। ऊंच पद को तो समझ गये हो। नम्बरवार पद पायेंगे। बाप का तो लॅव सब पर है। सबको माया की जंजीरों से छुड़ाने आये हैं। और कोई ऐसे कह नहीं सकेंगे कि कल्प-कल्प हम तुमको राजयोग सिखलाते हैं। यह बाप ही कहते हैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे, युगे आता हूँ। मनुष्यों ने फिर युगे-युगे लिख कितनी भूल कर दी है। बाप कहते हैं मैं पतित-पावन हूँ। मैं आता हूँ तुमको पावन बनाने, कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर। इस समय बाबा आया हुआ है तो अच्छी रीति पढ़ना है, विनाश भी होने वाला है। 20 नाखून का जोर देकर पढ़ना है, हिम्मत दिखानी है। पढ़ाई नहीं छोड़नी है। जो पढ़ाई छोड़ देते हैं वह नापास हो गिर पड़ते हैं। बच्चों को सावधानी मिलती है। कोई भी काम वा क्रोध का वा लोभ, मोह का भूत नहीं आना चाहिए। दिल दर्पण में अपने को देखते रहो - मैं लायक हूँ लक्ष्मी को वरने? नारद का भी एक मिसाल लगा दिया है। भक्त तो तुम सब हो ना। भक्ति मार्ग में मेल्स में नारद उत्तम गाया हुआ है और फीमेल्स में मीरा। वह है भक्ति मार्ग। ज्ञान मार्ग में फिर देखते हो - मम्मा-बाबा का नाम बाला है। फिर उनकी विजय माला भी बनी हुई है। सिमरण उनको किया जाता है जो सुख देते हैं। उसका यादगार बनाते हैं। अभी उन्हों ने क्या किया? कोई ने करके कॉलेज खोल, दान-पुण्य बहुत किया, और क्या करेंगे? अभी फिरंगियों से (अंग्रेजों से) राज्य ले कांग्रेस ने राज्य किया। बाप कहते हैं यह तो रुण्य के पानी (मृगतृष्णा) मिसल राज्य है। भल कितने भी सुख हैं परन्तु यह हैं सब रुण्य के पानी मिसल। बाहर का भभका बहुत है। यह साइन्स भी 100 वर्ष चलती है। यह दादा जब बाम्बे में सर्विस पर था तो यह बिजली-टेलीफोन आदि कुछ नहीं था। अभी साइन्स ने कितना कमाल किया है। अभी बाकी थोड़े वर्ष हैं। साइन्स का घमण्ड 100 वर्ष से शुरू हुआ है। सतयुग के 100 वर्ष में तो पता नहीं क्या कर देंगे। वहाँ इन सब चीज़ों में बल रहता है जो तुम यहाँ से ले जाते हो। अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य करने के लिए तुम बल ले जाते हो। तो पढ़ाई पर इतना अटेन्शन देना चाहिए, इतना पुरुषार्थ करना चाहिए।
तुम जानते हो इस मात-पिता से सुख घनेरे मिलते हैं फिर अगर चलते-चलते छोड़ देते हैं तो गोया सुनते ही नहीं। न सुना जाकर अपने धन्धे-धोरी में लगा तो ख़लास। जो पाया सो पाया। हाथ छोड़ने बाद फिर माया एकदम हप कर लेती है। गज को माया ग्राह ने हप कर लिया। यह तो होना ही है। तुम देखते भी हो - कैसे अच्छे-अच्छे, बड़े-बड़े निमंत्रण देने वाले, सेन्टर खोलने वाले भी पढ़ाई को छोड़ देते हैं। कहेंगे - ड्रामा अनुसार इनकी त़कदीर में इतना ही था। फिर उनका क्या हाल होगा? माया एकदम खा लेती है। कितने ख़त्म हुए। बहुत ध्यान में जाने वाले, खेल-पाल करने वाले आज हैं नहीं। यह ध्यान-दीदार की आशायें कभी नहीं रखनी चाहिए। आशा रखते हैं तो आशा में विघ्न पड़ जाते हैं। माया के भूत भी प्रवेश कर लेते हैं। ध्यान का कितना पार्ट बजाते थे। जो 5-7 रोज़ ध्यान में बचपन के पार्ट में रहते थे, महारानी बन जाते थे, आज वह हैं नहीं। इससे कोई फ़ायदा नहीं। ज्ञान की परिपक्व अवस्था वाले ही कायम रह सकते हैं। कभी भी ध्यान में जाने की आशा नहीं रखनी चाहिए। बाबा जो पढ़ाते हैं वह धारण करना है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तुम बच्चों को भी याद रखना है हमको परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। हम पढ़कर 21 जन्म के लिए ऊंच पद पाते हैं फिर हम ही पूज्य से पुजारी बनते हैं। जो ब्राह्मण कुल के बनते हैं वही ऐसे कह सकते हैं। दूसरा कोई कह न सके। भारत का ही खेल बना हुआ है। तुम कहेंगे हम पूज्य सो देवी-देवता बनते हैं। पूज्य ही फिर गिरकर पूरे 84 जन्म लेते हैं। बच्चों को यह सब मालूम है। शिवबाबा का आक्यूपेशन भी तुम जानते हो। सेकेण्ड में निश्चय से तुम वर्सा ले सकते हो। कहते हैं हम ईश्वर के बने हैं फिर ईश्वर को फारकती देना - वन्डर है ना। स्कूल में पढ़ते हैं, अच्छे नम्बर में पास हुआ तो उनको सपूत समझा जायेगा। स्टूडेन्ट अपने को भी सपूत समझेगा। बाप और टीचर भी कहेंगे यह सपूत है। यह तो बाप, टीचर, गुरू एक ही है। बाप भी है फिर टीचर बन हमको पढ़ाते हैं फिर साथ भी ले जायेंगे। बाप कहते हैं हम साथ इकट्ठे चलेंगे। तुम्हारी ज्योति बुझ गई थी, अब जग रही है। हमारी ज्योति सदैव जगी हुई है। है सारी आत्मा की ही बात। तुम जानते हो हम आत्मा अशरीरी आई फिर अशरीरी हो जाना है। हमारा खेल पूरा होकर फिर रिपीट होना है। यह तुम बच्चों को बुद्धि में समझ है।
तुम मात-पिता....... तुम्हारी पढ़ाई की कृपा से हमको कितने सुख घनेरे मिलते हैं। ऐसे मात-पिता को कभी भूलना, छोड़ना नहीं चाहिए। बाप कहते हैं ऐसे मात-पिता, बापदादा को, जो तुमको इतना वर्सा देते हैं, चिट्ठी लिखते रहेंगे तो बाबा समझेंगे - याद करते हैं। बाबा की तो रोज़ याद-प्यार जाती ही है मुरली में। बच्चों की चिट्ठी देरी से आयेगी तो समझेंगे पूरा याद नहीं करते हैं। बाप को तो लिखने की दरकार नहीं है। बाप की तो रोज़ मुरली जाती है। याद-प्यार बाबा देते ही हैं। वह तो जागती ज्योत है। बच्चों को समझाते हैं पत्र जरूर लिखते रहो। अनन्य बच्चों की फिक्र नहीं रहती है। हिलने वालों को सावधानी दी जाती है - भूल नहीं जाना, पढ़ते रहना। समाचार तो बाबा के पास सब आते हैं ना। रजिस्टर में नाम दाखिल रहता है। पूछते हैं यह बच्चा अबसेन्ट क्यों है? रोज़ अबसेन्ट रहते तो समझा जाता - मर गया। बाबा पूछते हैं - फलाने बच्चे का कोई समाचार नहीं आया है? तो लिखते हैं फलाना अभी आता ही नहीं है, संशयबुद्धि हो गया है। अच्छा, आगे चलकर शायद निश्चयबुद्धि हो जाये। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विजय माला में आने की हिम्मत दिखानी है। सिमरण लायक बनने के लिए सबको सुख देना है।
2) सपूत स्टूडेन्ट बन बाप-टीचर का नाम बाला करना है। कभी भी काम व क्रोध के भूत के वश हो उल्टा काम नहीं करना है।
वरदान:-
सर्व रूहानी खजानों से सम्पन्न बन सदा सन्तुष्ट रहने वाले आलराउण्ड सेवाधारी भव
आलराउण्ड सेवाधारी अर्थात् मास्टर सुख दाता, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर ज्ञान दाता। दाता सदा सम्पन्न मूर्त होते हैं। जैसा स्वयं होंगे वैसा औरों को बनायेंगे। रूहानी सेवाधारी अर्थात् एवररेडी और आलराउन्ड। आलराउन्डर वही बन सकते जो सम्पन्न हैं, सम्पन्न ही सन्तुष्ट होंगे और सबको सन्तुष्ट करेंगे। किसी भी प्रकार की अप्राप्ति असन्तुष्टता पैदा करती है। सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने की विधि है सम्पन्न और दाता बनना।
स्लोगन:-
शुभ भावना, शुभ कामना की गोल्डन गिफ्ट साथ हो तो किसी भी आत्मा का परिवर्तन कर सकते हो।
08/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, in order to claim your inheritance from the Father, the Ocean of Knowledge, definitely study with the full force of 20 nails. It is only by studying that you will claim the kingdom and receive the status of liberation-in-life.
Question:Who can constantly follow the path of knowledge? What is the basis of a high status?
Answer:Those who have no interest in anything other than the study and who have a mature stage of knowledge are the ones who can constantly follow this path of knowledge. There is no benefit in wanting to go into trance or having visions or playing games. Maya interferes even more and then you let go of the Father's hand and stop studying. In order to claim a high status, you have to pay full attention to this study.
Song:
You are the Mother and Father.
Om Shanti
The meaning of “Om shanti” has been explained to you children. Those who are religious-minded, righteous men who go to a temple etc. always say "Om shanti". However, they don't understand its meaning. We too say, "Om shanti", which means "I am a soul." The word “soul” is definitely used. The Supreme Soul, who is a soul, says: Om shanti. The original religion of myself, the soul, is peace. The soul tells you his occupation. The Father too says "Om shanti." I too am a soul but I am called the Supreme Soul because I always reside in the supreme abode. I do not enter the cycle of birth and death. The Father personally comes here and tells you: You come into rebirth; you are bodily beings. Those who are in the subtle region are beings with subtle bodies. I am also beyond that; I do not have a physical body. It is said of those with subtle bodies: this one is Brahma, this one is Vishnu and this one is Shankar. It is the name of the body, not the soul. Each soul adopts a body and then a name is given to the body. When someone dies, it is said: That one left his body. The name of the body still remains and that soul then takes another body. You wouldn't say of the Supreme Father, the Supreme Soul, that He leaves a body and takes another. Everyone’s body is given a name. When you children belong to Me, I give you another name, just as gurus give you another name. Nowadays, when a kumari gets married her name is changed. The names of the men don't change because they have to use their name in their business. Mothers don't have businesses and so their names can be changed. Men have their names etc. in their insurance and businesses etc. The Father now explains: You all remember and say You are the Mother and Father; You are the Companion and the Boatman. You take us with You. Look how many relationships You come into! We will shed our bodies and go back with You. You children know that the Boatman will take you back with Him. There is so much praise of the Father. So, when will He come again? When will He come and become your Companion? No one knows. It is said: When it is the end of the path of devotion, I have to come to protect the devotees. I have to become the Boatman and take everyone back. You know how He has come and become the Mother and Father. That One alone is called the Boatman and the Guru. He takes you from the dirty world, from a life of bondage, to liberation-in-life and that is why He is called the Purifier and the Boatman. The golden age is called the new world. It is the same world, it is just that the old one is destroyed. It is the same as when you build a new home while staying in the old one; you then leave the old home. Here, too, when establishment has taken place, the old world is destroyed. The meaning of ‘Trimurti’ has also been explained. To carry out establishment of heaven through Brahma is the task of the Supreme Father, the Supreme Soul, alone. He carries it out through him because He is Karankaravanhar. The Father personally comes here and explains to you face to face. I sit here and teach you mouth-born creation of Brahma easy Raja Yoga and knowledge through Brahma. You will claim the future deity status for 21 births, numberwise, according to your efforts. You know that you are studying with the Mother and Father. This is the Godly University. If you stop studying, it would be understood that it is not in your fortune. This school has to continue. Baba comes and teaches you through the body of this Brahma. So, no matter where you children are or whatever centre you are at, you know that you have to claim your inheritance of liberation-in-life, that is, the kingdom, from the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul from beyond. If we stop studying, we won't be able to receive the inheritance. The Father has come to take us back with Him. When the new world is established, the Boatman will take everyone back. You know the Boatman and you also know the ones through whom establishment, destruction and sustenance take place. Then, you also know those who become Lakshmi and Narayan and who then rule the kingdom by studying this. You understand, to the extent you study, that you are truly claiming a royal status through this study. If you don't study, your status will be destroyed. This is the study of Raja Yoga. Many children become tired while studying. Not to study means to become tired. They say: That’s it! I’m unable to study any further! There is no question of any expense in this study. In those studies, when poor people are unable to pay the fees, they stop studying. However, those who are very interested in studying apply to the Government: I want to study but I don't have the money. The Government then gives them some money. In one way or another, they make a request: I want to study, but my father doesn't have any money, so please help me! Because the Government doesn't have the money, it refuses the students. They think: I have to study, so what shall I do now? They then approach wealthy people or philanthropists: My parents are poor, but I want to study and work, so will you be able to help me? Those who are religious -minded will give that help. Kumaris cannot make such requests, but men can. There is a lot of income earned by studying. Here, you have to study and also make a bargain. The Father is the Businessman, the Jewel Merchant and the Ocean of Knowledge. The Mother and Father, the unlimited Ocean of Knowledge, says: I teach you Raja Yoga and make you into kings of kings as I did in the previous cycle. All of these points have to be imbibed. Those who have mature intellects are able to imbibe well. Everything depends on the intellect. Some have satopradhan intellects, whereas others have sato, rajo or tamo intellects. In those schools too, students know what each one's intellect is like. Those who have satopradhan intellects pass with honours. They are appointed monitors. Some also receive a scholarship. This is an unlimited school. Here, there are those with sato, rajo and tamo intellects. Here, there is just the one status. This is Raja Yoga. There is just the one Godly study. The Father says: I teach all of you children Raja Yoga. To the extent that you make effort, so you will accordingly claim a high status. You have understood about the elevated status. You will claim a status, numberwise. The Father loves everyone. He has come to liberate everyone from the chains of Maya. No one else can say: I teach you Raja Yoga every cycle. Only the Father says: I come at the confluence age of every cycle. People have made such a mistake by writing that He comes in every age. The Father says: I am the Purifier. I come to purify you at the confluence of the end of the iron age and the beginning of the golden age. Baba has come at this time, so study well. Destruction is going to take place. Study with the force of 20 nails and show courage. You mustn't stop studying. Those who stop studying fail and fall. Children receive cautions. There should be no evil spirits of lust, anger, greed or attachment. Continue to look in the mirror of your heart: Am I worthy of marrying Lakshmi? They have also written about the example of Narad. All of you are devotees. On the path of devotion, Narad is remembered as the highest devotee among the males, and Meera is remembered as the highest among the females. That is the path of devotion. On the path of knowledge, you can see that the names of Mama and Baba are glorified. Then, their rosary of victory is also created. Those who give happiness are remembered; memorials are created of such people. What did they do? Someone may have perhaps opened a college or made many donations and performed a lot of charity. What else would they do? The Congress Party took over from the British and ruled here. The Father says: This is the kingdom that is like a mirage. No matter how much happiness there is, it is all like a mirage. There is a lot of external show. This science continues for about 100 years. When this Dada was working in Bombay, there was no electricity or telephones etc. Now, science has created so many wonders. Now, only a few more years remain. The arrogance of science started about 100 years ago. You can't tell what they would do in 100 years of the golden age! There, all of these things which you take from here have power. You carry that power with you to rule the unshakeable, immovable kingdom of happiness and peace. So, you have to pay that much attention to the study. You should also make that much effort. You know that you receive a lot of happiness from this Mother and Father. Then, if while moving along you leave this study, it means you don't listen to them. If you don't listen to them and just go and engage yourself in your business, everything finishes. You will then only have whatever you attained. After you let go of Baba's hand, Maya completely swallows you. Maya, the alligator, ate the elephant. This has to happen. You can see how very good ones, those who gave very good invitations and who opened centres also stopped studying. It would be said that, according to the drama, they only had that much in their fortune. Then, what would their condition be? Maya completely eats them up. So many were finished. Many who went into trance, who used to play those games, are no longer here today. You should never have any desire to go into trance or have visions. When you have desires, there are obstacles in those desires. The evil spirits of Maya also enter. They used to play such parts of going into trance. Those who used to stay in trance for five to seven days, either in childhood parts or even as empresses, are no longer here today. There is no benefit in that. Only those who have a mature stage of knowledge can stay here permanently. Never have any desire to go into trance. Imbibe what Baba is teaching you. To the extent that you study, accordingly, you will claim a high status. You children also have to remember that the Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching you. We are studying and attaining a high status for 21 births and we will then change from being worthy of worship to worshippers. Only those who belong to the Brahmin clan can say this. No one else can say this. The play is based on Bharat. You would say that you are becoming worthy-of-worship deities. Only those who are worthy of worship continue to fall as they take the full 84 births. You children know all of this. You also know the occupation of Shiv Baba. By having faith, you can claim your inheritance in a second. They say that they belong to God. Therefore, to divorce God after saying that is also a wonder. In a school, those who claim a good number are said to be worthy and obedient. Students too would consider themselves to be worthy. The father and teacher would also say: This one is worthy and obedient. Here, the Father, Teacher and Guru are the same. He is the Father, then He becomes our Teacher and teaches us and He will then take us back with Him. The Father says: We will all go back together. Your lights have been extinguished and are now being ignited. My light is always ignited. All of this refers to souls. You know that you souls came bodiless and that you now have to return bodiless. Our play has to end and then repeat. You children have this understanding in your intellects. “You are the Mother and Father and with the mercy of Your study we receive so much happiness.” You should never leave or forget such a Mother and Father. The Father says: If you continue to write letters to such a Mother and Father, to BapDada who gives you such an inheritance, Baba would understand that you remember Him. You receive love and remembrance from Baba every day in the murli. When children's letters arrive after a long time, it is understood that you don't remember Baba fully. The Father doesn't need to write to you. The murli of the Father is sent every day. Baba gives love and remembrance anyway. He is the ignited Light. He tells you children: Definitely continue to write letters. Baba is not worried about His special children. He cautions those who fluctuate: Don’t forget, continue to study. Baba receives all the news. The names are noted in the register. He asks: Why is this child absent? If a child is absent every day, it would be understood that he has died. Baba asks: Have you received any news from such-and-such a child? The teacher would write: So-and-so doesn't come at all. His intellect now has doubt. Achcha. Perhaps in the future his intellect will have faith. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Show courage to come in the rosary of victory. In order to become worthy of being remembered, give everyone happiness.
2. Be an obedient student and glorify the name of the Father and Teacher. Never perform wrong actions by being influenced by the evil spirits of lust or anger.
Blessing:May you be an all-round server and remain constantly content by being full of all spiritual treasures.
“An all-round server”, means a master bestower of happiness, a master bestower of peace and a master bestower of knowledge. A bestower is always an image that is full. As is the self, so he would make others. “A spiritual server”, means one who is ever ready and all-rounder. Only those who are full can become all-rounders. Those who are full will be content and make everyone content. A lack of any kind will create discontentment. The way to be content and make others content is to be full and a bestower.
Slogan:Keep the golden gift of good wishes and pure feelings with you and you will be able to transform any soul.
''मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप से वर्सा लेना है तो 20 नाखूनों का जोर देकर भी पढ़ाई जरूर पढ़ो, पढ़ाई से ही राजाई वा जीवनमुक्ति पद प्राप्त होगा''
प्रश्नः-
ज्ञान मार्ग में सदा कायम कौन रह सकता है? ऊंच पद की प्राप्ति का आधार क्या है?
उत्तर:-
जिनका पढ़ाई के सिवाए दूसरा किसी भी बात में शौक नहीं है, ज्ञान की परिपक्व अवस्था है, वही इस ज्ञान मार्ग में कायम रह सकते हैं। बाकी ध्यान दीदार की आश रखना, खेलपाल करना, इससे कोई फ़ायदा नहीं, और ही माया प्रवेश कर लेती है फिर बाप का हाथ वा पढ़ाई छोड़ देते हैं। ऊंच पद के लिए पढ़ाई पर फुल अटेन्शन चाहिए।
गीत:-
तुम्हीं हो माता........
ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्चों को समझाया गया है। जो भी रिलीजस माइन्डेड अथवा धर्मात्मा पुरुष होते हैं, मन्दिर टिकाणें में जाते हैं तो उनके मुख से ओम् शान्ति अक्षर निकलता है। परन्तु वह अर्थ नहीं समझते। हम भी कहते हैं ओम् शान्ति, अहम् आत्मा। आत्मा अक्षर जरूर आता है। सुप्रीम सोल अथवा आत्मा कहती है ओम् शान्ति। मैं जो आत्मा हूँ, मेरा स्वधर्म है शान्त। आत्मा अपना आक्यूपेशन बतलाती है। बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति। हम भी आत्मा हैं परन्तु मुझे परम आत्मा कहते हैं क्योंकि मैं सदैव परमधाम में रहता हूँ। मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। बाप सम्मुख आकर कहते हैं तुम पुनर्जन्म में आते हो, तुम देहधारी हो। सूक्ष्मवतन वाले भी सूक्ष्म देहधारी हैं। मै इनसे भी परे हूँ। मुझे कोई स्थूल शरीर नहीं है। सूक्ष्म शरीरधारी को कहते हैं - यह ब्रह्मा है, यह विष्णु, यह शंकर है। नाम तो शरीर का हुआ ना। आत्मा का तो नहीं है। आत्मा शरीर धारण करती है, तब शरीर पर नाम पड़ता है। कोई मरते हैं तो कहेंगे फलाने का शरीर छूट गया। नाम तो शरीर पर रह जाता है फिर दूसरा शरीर लेते हैं। परमपिता परमात्मा के लिए तो ऐसे नहीं कहेंगे कि वह एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सबका शरीर पर नाम पड़ता है। तुम बच्चे मेरे बनते हो तो तुमको भी दूसरा नाम देता हूँ। जैसे गुरू लोग नाम देते हैं ना। आजकल कन्या शादी करती है तो उनका भी नाम बदलता है। पुरुष का नहीं बदलता क्योंकि पुरुष को तो धन्धा करना है अपने नाम से। माताओं का तो धन्धा है नहीं, इसलिए उनका नाम बदल सकता है। पुरुषों का इन्श्योरेन्स धन्धे आदि में नाम है। अब बाप समझाते हैं - सब याद तो करते हैं तुम मात-पिता हो और साथी हो, खिवैया हो, तुम हमको साथ ले चलते हो। देखो, कितने सम्बन्धों में आते हैं। शरीर छोड़कर फिर आपके साथ चलना है। तुम बच्चे जानते हो - खिवैया हमको साथ में ले जायेंगे।
बाप की कितनी महिमा है! फिर वह कब आयेंगे? कब आकर साथी बनेंगे? यह नहीं जानते। कहते हैं जब भक्ति मार्ग का अन्त होता है तब भक्तों की रक्षा करने मुझे आना पड़ता है। मुझे खिवैया बन वापिस ले जाना है। तुम जानते हो कैसे आकर मात-पिता बने हैं। इनको ही खिवैया, गुरू कहा जाता है। छी-छी दुनिया, जीवनबन्ध से जीवनमुक्ति में ले जाते हैं इसलिए उनको पतित-पावन खिवैया कहा जाता है। नई दुनिया कहा जाता है - सतयुग को। दुनिया तो यही है, सिर्फ पुरानी दुनिया का विनाश होता है। जैसे पुराने घर में रहकर नया बनाए फिर पुराना घर छोड़ना होता है ना, यह भी जब स्थापना हो जाती है तो फिर पुरानी दुनिया का विनाश होता है। त्रिमूर्ति का भी अर्थ समझाया है। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना करना - यह परमपिता परमात्मा का ही काम है। उन्हों द्वारा कराते हैं क्योंकि करनकरावनहार है। बाप आकर सम्मुख समझाते हैं। ब्रह्मा द्वारा सहज राजयोग और ज्ञान तुम ब्रह्मा मुख वंशावली को बैठ सिखलाता हूँ। भविष्य 21 जन्म के लिए तुम सो देवी-देवता पद पायेंगे, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।
तुम जानते हो हम मात-पिता से पढ़ रहे हैं, यह है ही ईश्वरीय विश्व-विद्यालय। अगर पढ़ाई को छोड़ देंगे तो समझा जायेगा इनकी त़कदीर में नहीं है। स्कूल तो चलना ही है। बाबा आकर इस ब्रह्मा तन द्वारा पढ़ाते हैं। तो बच्चे भल कहाँ भी हों, किसी भी सेन्टर पर हों, जानते हो ज्ञान सागर पारलौकिक परमपिता परमात्मा से हमको जीवनमुक्ति का अथवा राजाई का वर्सा पाना है। अगर हम पढ़ाई छोड़ देंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगे। बाप तो आये हैं साथ ले जाने। नई दुनिया स्थापन हो जायेगी फिर सबको खिवैया ले जायेंगे। तुम खिवैया को भी जानते हो और जिन द्वारा स्थापना, विनाश, पालना कराते हैं उन्हों को भी तुम जानते हो। फिर इस पढ़ाई से जो लक्ष्मी-नारायण बन राज्य करते हैं उनको भी तुम जानते हो। समझते हो हम बरोबर इस पढ़ाई से राजाई पद प्राप्त कर रहे हैं। जितना जो पढ़ेंगे...... पढ़ाई नहीं पढ़ेंगे तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। यह है राजयोग की पढ़ाई। बहुत बच्चे पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते थक जाते हैं। नहीं पढ़ना माना थक जाना। कहते हैं - बस, आगे हम नहीं पढ़ सकते हैं। इस पढ़ाई में खर्चे की बात तो नहीं है। उस पढ़ाई में गरीब बिचारे पढ़ाई का पैसा नहीं दे सकते हैं तो पढ़ना छोड़ देते हैं। परन्तु जिनको पढ़ाई का अच्छा शौक होता है तो गवर्मेन्ट को अप्लाई करते हैं कि हम पढ़ना चाहते हैं परन्तु पैसा नहीं है। फिर उनको गवर्मेन्ट पैसा देती है। कैसे भी करके रिक्वेस्ट करते हैं कि मैं पढ़ना चाहता हूँ, मेरे बाप के पास पैसा नहीं है, हमें मदद करो। गवर्मेन्ट पास पैसा न होने कारण रिफ्यूज़ कर देती है। समझते हैं हमको पढ़ना तो जरूर है फिर क्या करेंगे? बड़े साहूकार वा दानी पुरुष के पास जायेंगे। हमारे मात-पिता गरीब हैं हम पढ़कर सर्विस करना चाहते हैं, आप हमें मदद कर सकेंगे? रिलीजस माइन्डेड जो होंगे वह मदद दे देंगे। कन्यायें ऐसे रिक्वेस्ट नहीं कर सकती, पुरुष कर सकते हैं। पढ़ाई से इनकम बहुत होती है। यहाँ यह पढ़ाई भी है और यह सौदा भी है। बाप सौदागर, रत्नागर है और फिर ज्ञान सागर है।
मात-पिता बेहद का ज्ञान सागर कहते हैं - मैं कल्प पहले मुआफिक तुमको राजयोग सिखाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। सब प्वाइन्ट्स धारण करनी हैं। बालिग बुद्धि अच्छी रीति धारण कर सकते हैं। बुद्धि पर ही सारा मदार है। कोई की सतोप्रधान, कोई की सतो, कोई की रजो, तमो, बुद्धि है। उस स्कूल में भी स्टूडेन्ट्स जानते हैं इनकी बुद्धि कैसी है। सतोप्रधान बुद्धि वाले पास विद ऑनर होते हैं। उन्हें ही मॉनीटर आदि बनाते हैं। स्कॉलरशिप भी मिल जाती है। यह फिर बेहद का स्कूल है। इनमें भी सतो, रजो, तमो बुद्धि हैं। यहाँ मर्तबा एक ही है। यह है ही राजयोग। ईश्वरीय पढ़ाई एक ही है। बाप कहते हैं मैं तुम सब बच्चों को राजयोग सिखाता हूँ। तो जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। ऊंच पद को तो समझ गये हो। नम्बरवार पद पायेंगे। बाप का तो लॅव सब पर है। सबको माया की जंजीरों से छुड़ाने आये हैं। और कोई ऐसे कह नहीं सकेंगे कि कल्प-कल्प हम तुमको राजयोग सिखलाते हैं। यह बाप ही कहते हैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे, युगे आता हूँ। मनुष्यों ने फिर युगे-युगे लिख कितनी भूल कर दी है। बाप कहते हैं मैं पतित-पावन हूँ। मैं आता हूँ तुमको पावन बनाने, कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर। इस समय बाबा आया हुआ है तो अच्छी रीति पढ़ना है, विनाश भी होने वाला है। 20 नाखून का जोर देकर पढ़ना है, हिम्मत दिखानी है। पढ़ाई नहीं छोड़नी है। जो पढ़ाई छोड़ देते हैं वह नापास हो गिर पड़ते हैं। बच्चों को सावधानी मिलती है। कोई भी काम वा क्रोध का वा लोभ, मोह का भूत नहीं आना चाहिए। दिल दर्पण में अपने को देखते रहो - मैं लायक हूँ लक्ष्मी को वरने? नारद का भी एक मिसाल लगा दिया है। भक्त तो तुम सब हो ना। भक्ति मार्ग में मेल्स में नारद उत्तम गाया हुआ है और फीमेल्स में मीरा। वह है भक्ति मार्ग। ज्ञान मार्ग में फिर देखते हो - मम्मा-बाबा का नाम बाला है। फिर उनकी विजय माला भी बनी हुई है। सिमरण उनको किया जाता है जो सुख देते हैं। उसका यादगार बनाते हैं। अभी उन्हों ने क्या किया? कोई ने करके कॉलेज खोल, दान-पुण्य बहुत किया, और क्या करेंगे? अभी फिरंगियों से (अंग्रेजों से) राज्य ले कांग्रेस ने राज्य किया। बाप कहते हैं यह तो रुण्य के पानी (मृगतृष्णा) मिसल राज्य है। भल कितने भी सुख हैं परन्तु यह हैं सब रुण्य के पानी मिसल। बाहर का भभका बहुत है। यह साइन्स भी 100 वर्ष चलती है। यह दादा जब बाम्बे में सर्विस पर था तो यह बिजली-टेलीफोन आदि कुछ नहीं था। अभी साइन्स ने कितना कमाल किया है। अभी बाकी थोड़े वर्ष हैं। साइन्स का घमण्ड 100 वर्ष से शुरू हुआ है। सतयुग के 100 वर्ष में तो पता नहीं क्या कर देंगे। वहाँ इन सब चीज़ों में बल रहता है जो तुम यहाँ से ले जाते हो। अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य करने के लिए तुम बल ले जाते हो। तो पढ़ाई पर इतना अटेन्शन देना चाहिए, इतना पुरुषार्थ करना चाहिए।
तुम जानते हो इस मात-पिता से सुख घनेरे मिलते हैं फिर अगर चलते-चलते छोड़ देते हैं तो गोया सुनते ही नहीं। न सुना जाकर अपने धन्धे-धोरी में लगा तो ख़लास। जो पाया सो पाया। हाथ छोड़ने बाद फिर माया एकदम हप कर लेती है। गज को माया ग्राह ने हप कर लिया। यह तो होना ही है। तुम देखते भी हो - कैसे अच्छे-अच्छे, बड़े-बड़े निमंत्रण देने वाले, सेन्टर खोलने वाले भी पढ़ाई को छोड़ देते हैं। कहेंगे - ड्रामा अनुसार इनकी त़कदीर में इतना ही था। फिर उनका क्या हाल होगा? माया एकदम खा लेती है। कितने ख़त्म हुए। बहुत ध्यान में जाने वाले, खेल-पाल करने वाले आज हैं नहीं। यह ध्यान-दीदार की आशायें कभी नहीं रखनी चाहिए। आशा रखते हैं तो आशा में विघ्न पड़ जाते हैं। माया के भूत भी प्रवेश कर लेते हैं। ध्यान का कितना पार्ट बजाते थे। जो 5-7 रोज़ ध्यान में बचपन के पार्ट में रहते थे, महारानी बन जाते थे, आज वह हैं नहीं। इससे कोई फ़ायदा नहीं। ज्ञान की परिपक्व अवस्था वाले ही कायम रह सकते हैं। कभी भी ध्यान में जाने की आशा नहीं रखनी चाहिए। बाबा जो पढ़ाते हैं वह धारण करना है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तुम बच्चों को भी याद रखना है हमको परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। हम पढ़कर 21 जन्म के लिए ऊंच पद पाते हैं फिर हम ही पूज्य से पुजारी बनते हैं। जो ब्राह्मण कुल के बनते हैं वही ऐसे कह सकते हैं। दूसरा कोई कह न सके। भारत का ही खेल बना हुआ है। तुम कहेंगे हम पूज्य सो देवी-देवता बनते हैं। पूज्य ही फिर गिरकर पूरे 84 जन्म लेते हैं। बच्चों को यह सब मालूम है। शिवबाबा का आक्यूपेशन भी तुम जानते हो। सेकेण्ड में निश्चय से तुम वर्सा ले सकते हो। कहते हैं हम ईश्वर के बने हैं फिर ईश्वर को फारकती देना - वन्डर है ना। स्कूल में पढ़ते हैं, अच्छे नम्बर में पास हुआ तो उनको सपूत समझा जायेगा। स्टूडेन्ट अपने को भी सपूत समझेगा। बाप और टीचर भी कहेंगे यह सपूत है। यह तो बाप, टीचर, गुरू एक ही है। बाप भी है फिर टीचर बन हमको पढ़ाते हैं फिर साथ भी ले जायेंगे। बाप कहते हैं हम साथ इकट्ठे चलेंगे। तुम्हारी ज्योति बुझ गई थी, अब जग रही है। हमारी ज्योति सदैव जगी हुई है। है सारी आत्मा की ही बात। तुम जानते हो हम आत्मा अशरीरी आई फिर अशरीरी हो जाना है। हमारा खेल पूरा होकर फिर रिपीट होना है। यह तुम बच्चों को बुद्धि में समझ है।
तुम मात-पिता....... तुम्हारी पढ़ाई की कृपा से हमको कितने सुख घनेरे मिलते हैं। ऐसे मात-पिता को कभी भूलना, छोड़ना नहीं चाहिए। बाप कहते हैं ऐसे मात-पिता, बापदादा को, जो तुमको इतना वर्सा देते हैं, चिट्ठी लिखते रहेंगे तो बाबा समझेंगे - याद करते हैं। बाबा की तो रोज़ याद-प्यार जाती ही है मुरली में। बच्चों की चिट्ठी देरी से आयेगी तो समझेंगे पूरा याद नहीं करते हैं। बाप को तो लिखने की दरकार नहीं है। बाप की तो रोज़ मुरली जाती है। याद-प्यार बाबा देते ही हैं। वह तो जागती ज्योत है। बच्चों को समझाते हैं पत्र जरूर लिखते रहो। अनन्य बच्चों की फिक्र नहीं रहती है। हिलने वालों को सावधानी दी जाती है - भूल नहीं जाना, पढ़ते रहना। समाचार तो बाबा के पास सब आते हैं ना। रजिस्टर में नाम दाखिल रहता है। पूछते हैं यह बच्चा अबसेन्ट क्यों है? रोज़ अबसेन्ट रहते तो समझा जाता - मर गया। बाबा पूछते हैं - फलाने बच्चे का कोई समाचार नहीं आया है? तो लिखते हैं फलाना अभी आता ही नहीं है, संशयबुद्धि हो गया है। अच्छा, आगे चलकर शायद निश्चयबुद्धि हो जाये। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विजय माला में आने की हिम्मत दिखानी है। सिमरण लायक बनने के लिए सबको सुख देना है।
2) सपूत स्टूडेन्ट बन बाप-टीचर का नाम बाला करना है। कभी भी काम व क्रोध के भूत के वश हो उल्टा काम नहीं करना है।
वरदान:-
सर्व रूहानी खजानों से सम्पन्न बन सदा सन्तुष्ट रहने वाले आलराउण्ड सेवाधारी भव
आलराउण्ड सेवाधारी अर्थात् मास्टर सुख दाता, मास्टर शान्ति दाता, मास्टर ज्ञान दाता। दाता सदा सम्पन्न मूर्त होते हैं। जैसा स्वयं होंगे वैसा औरों को बनायेंगे। रूहानी सेवाधारी अर्थात् एवररेडी और आलराउन्ड। आलराउन्डर वही बन सकते जो सम्पन्न हैं, सम्पन्न ही सन्तुष्ट होंगे और सबको सन्तुष्ट करेंगे। किसी भी प्रकार की अप्राप्ति असन्तुष्टता पैदा करती है। सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने की विधि है सम्पन्न और दाता बनना।
स्लोगन:-
शुभ भावना, शुभ कामना की गोल्डन गिफ्ट साथ हो तो किसी भी आत्मा का परिवर्तन कर सकते हो।
08/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, in order to claim your inheritance from the Father, the Ocean of Knowledge, definitely study with the full force of 20 nails. It is only by studying that you will claim the kingdom and receive the status of liberation-in-life.
Question:Who can constantly follow the path of knowledge? What is the basis of a high status?
Answer:Those who have no interest in anything other than the study and who have a mature stage of knowledge are the ones who can constantly follow this path of knowledge. There is no benefit in wanting to go into trance or having visions or playing games. Maya interferes even more and then you let go of the Father's hand and stop studying. In order to claim a high status, you have to pay full attention to this study.
Song:
You are the Mother and Father.
Om Shanti
The meaning of “Om shanti” has been explained to you children. Those who are religious-minded, righteous men who go to a temple etc. always say "Om shanti". However, they don't understand its meaning. We too say, "Om shanti", which means "I am a soul." The word “soul” is definitely used. The Supreme Soul, who is a soul, says: Om shanti. The original religion of myself, the soul, is peace. The soul tells you his occupation. The Father too says "Om shanti." I too am a soul but I am called the Supreme Soul because I always reside in the supreme abode. I do not enter the cycle of birth and death. The Father personally comes here and tells you: You come into rebirth; you are bodily beings. Those who are in the subtle region are beings with subtle bodies. I am also beyond that; I do not have a physical body. It is said of those with subtle bodies: this one is Brahma, this one is Vishnu and this one is Shankar. It is the name of the body, not the soul. Each soul adopts a body and then a name is given to the body. When someone dies, it is said: That one left his body. The name of the body still remains and that soul then takes another body. You wouldn't say of the Supreme Father, the Supreme Soul, that He leaves a body and takes another. Everyone’s body is given a name. When you children belong to Me, I give you another name, just as gurus give you another name. Nowadays, when a kumari gets married her name is changed. The names of the men don't change because they have to use their name in their business. Mothers don't have businesses and so their names can be changed. Men have their names etc. in their insurance and businesses etc. The Father now explains: You all remember and say You are the Mother and Father; You are the Companion and the Boatman. You take us with You. Look how many relationships You come into! We will shed our bodies and go back with You. You children know that the Boatman will take you back with Him. There is so much praise of the Father. So, when will He come again? When will He come and become your Companion? No one knows. It is said: When it is the end of the path of devotion, I have to come to protect the devotees. I have to become the Boatman and take everyone back. You know how He has come and become the Mother and Father. That One alone is called the Boatman and the Guru. He takes you from the dirty world, from a life of bondage, to liberation-in-life and that is why He is called the Purifier and the Boatman. The golden age is called the new world. It is the same world, it is just that the old one is destroyed. It is the same as when you build a new home while staying in the old one; you then leave the old home. Here, too, when establishment has taken place, the old world is destroyed. The meaning of ‘Trimurti’ has also been explained. To carry out establishment of heaven through Brahma is the task of the Supreme Father, the Supreme Soul, alone. He carries it out through him because He is Karankaravanhar. The Father personally comes here and explains to you face to face. I sit here and teach you mouth-born creation of Brahma easy Raja Yoga and knowledge through Brahma. You will claim the future deity status for 21 births, numberwise, according to your efforts. You know that you are studying with the Mother and Father. This is the Godly University. If you stop studying, it would be understood that it is not in your fortune. This school has to continue. Baba comes and teaches you through the body of this Brahma. So, no matter where you children are or whatever centre you are at, you know that you have to claim your inheritance of liberation-in-life, that is, the kingdom, from the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul from beyond. If we stop studying, we won't be able to receive the inheritance. The Father has come to take us back with Him. When the new world is established, the Boatman will take everyone back. You know the Boatman and you also know the ones through whom establishment, destruction and sustenance take place. Then, you also know those who become Lakshmi and Narayan and who then rule the kingdom by studying this. You understand, to the extent you study, that you are truly claiming a royal status through this study. If you don't study, your status will be destroyed. This is the study of Raja Yoga. Many children become tired while studying. Not to study means to become tired. They say: That’s it! I’m unable to study any further! There is no question of any expense in this study. In those studies, when poor people are unable to pay the fees, they stop studying. However, those who are very interested in studying apply to the Government: I want to study but I don't have the money. The Government then gives them some money. In one way or another, they make a request: I want to study, but my father doesn't have any money, so please help me! Because the Government doesn't have the money, it refuses the students. They think: I have to study, so what shall I do now? They then approach wealthy people or philanthropists: My parents are poor, but I want to study and work, so will you be able to help me? Those who are religious -minded will give that help. Kumaris cannot make such requests, but men can. There is a lot of income earned by studying. Here, you have to study and also make a bargain. The Father is the Businessman, the Jewel Merchant and the Ocean of Knowledge. The Mother and Father, the unlimited Ocean of Knowledge, says: I teach you Raja Yoga and make you into kings of kings as I did in the previous cycle. All of these points have to be imbibed. Those who have mature intellects are able to imbibe well. Everything depends on the intellect. Some have satopradhan intellects, whereas others have sato, rajo or tamo intellects. In those schools too, students know what each one's intellect is like. Those who have satopradhan intellects pass with honours. They are appointed monitors. Some also receive a scholarship. This is an unlimited school. Here, there are those with sato, rajo and tamo intellects. Here, there is just the one status. This is Raja Yoga. There is just the one Godly study. The Father says: I teach all of you children Raja Yoga. To the extent that you make effort, so you will accordingly claim a high status. You have understood about the elevated status. You will claim a status, numberwise. The Father loves everyone. He has come to liberate everyone from the chains of Maya. No one else can say: I teach you Raja Yoga every cycle. Only the Father says: I come at the confluence age of every cycle. People have made such a mistake by writing that He comes in every age. The Father says: I am the Purifier. I come to purify you at the confluence of the end of the iron age and the beginning of the golden age. Baba has come at this time, so study well. Destruction is going to take place. Study with the force of 20 nails and show courage. You mustn't stop studying. Those who stop studying fail and fall. Children receive cautions. There should be no evil spirits of lust, anger, greed or attachment. Continue to look in the mirror of your heart: Am I worthy of marrying Lakshmi? They have also written about the example of Narad. All of you are devotees. On the path of devotion, Narad is remembered as the highest devotee among the males, and Meera is remembered as the highest among the females. That is the path of devotion. On the path of knowledge, you can see that the names of Mama and Baba are glorified. Then, their rosary of victory is also created. Those who give happiness are remembered; memorials are created of such people. What did they do? Someone may have perhaps opened a college or made many donations and performed a lot of charity. What else would they do? The Congress Party took over from the British and ruled here. The Father says: This is the kingdom that is like a mirage. No matter how much happiness there is, it is all like a mirage. There is a lot of external show. This science continues for about 100 years. When this Dada was working in Bombay, there was no electricity or telephones etc. Now, science has created so many wonders. Now, only a few more years remain. The arrogance of science started about 100 years ago. You can't tell what they would do in 100 years of the golden age! There, all of these things which you take from here have power. You carry that power with you to rule the unshakeable, immovable kingdom of happiness and peace. So, you have to pay that much attention to the study. You should also make that much effort. You know that you receive a lot of happiness from this Mother and Father. Then, if while moving along you leave this study, it means you don't listen to them. If you don't listen to them and just go and engage yourself in your business, everything finishes. You will then only have whatever you attained. After you let go of Baba's hand, Maya completely swallows you. Maya, the alligator, ate the elephant. This has to happen. You can see how very good ones, those who gave very good invitations and who opened centres also stopped studying. It would be said that, according to the drama, they only had that much in their fortune. Then, what would their condition be? Maya completely eats them up. So many were finished. Many who went into trance, who used to play those games, are no longer here today. You should never have any desire to go into trance or have visions. When you have desires, there are obstacles in those desires. The evil spirits of Maya also enter. They used to play such parts of going into trance. Those who used to stay in trance for five to seven days, either in childhood parts or even as empresses, are no longer here today. There is no benefit in that. Only those who have a mature stage of knowledge can stay here permanently. Never have any desire to go into trance. Imbibe what Baba is teaching you. To the extent that you study, accordingly, you will claim a high status. You children also have to remember that the Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching you. We are studying and attaining a high status for 21 births and we will then change from being worthy of worship to worshippers. Only those who belong to the Brahmin clan can say this. No one else can say this. The play is based on Bharat. You would say that you are becoming worthy-of-worship deities. Only those who are worthy of worship continue to fall as they take the full 84 births. You children know all of this. You also know the occupation of Shiv Baba. By having faith, you can claim your inheritance in a second. They say that they belong to God. Therefore, to divorce God after saying that is also a wonder. In a school, those who claim a good number are said to be worthy and obedient. Students too would consider themselves to be worthy. The father and teacher would also say: This one is worthy and obedient. Here, the Father, Teacher and Guru are the same. He is the Father, then He becomes our Teacher and teaches us and He will then take us back with Him. The Father says: We will all go back together. Your lights have been extinguished and are now being ignited. My light is always ignited. All of this refers to souls. You know that you souls came bodiless and that you now have to return bodiless. Our play has to end and then repeat. You children have this understanding in your intellects. “You are the Mother and Father and with the mercy of Your study we receive so much happiness.” You should never leave or forget such a Mother and Father. The Father says: If you continue to write letters to such a Mother and Father, to BapDada who gives you such an inheritance, Baba would understand that you remember Him. You receive love and remembrance from Baba every day in the murli. When children's letters arrive after a long time, it is understood that you don't remember Baba fully. The Father doesn't need to write to you. The murli of the Father is sent every day. Baba gives love and remembrance anyway. He is the ignited Light. He tells you children: Definitely continue to write letters. Baba is not worried about His special children. He cautions those who fluctuate: Don’t forget, continue to study. Baba receives all the news. The names are noted in the register. He asks: Why is this child absent? If a child is absent every day, it would be understood that he has died. Baba asks: Have you received any news from such-and-such a child? The teacher would write: So-and-so doesn't come at all. His intellect now has doubt. Achcha. Perhaps in the future his intellect will have faith. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Show courage to come in the rosary of victory. In order to become worthy of being remembered, give everyone happiness.
2. Be an obedient student and glorify the name of the Father and Teacher. Never perform wrong actions by being influenced by the evil spirits of lust or anger.
Blessing:May you be an all-round server and remain constantly content by being full of all spiritual treasures.
“An all-round server”, means a master bestower of happiness, a master bestower of peace and a master bestower of knowledge. A bestower is always an image that is full. As is the self, so he would make others. “A spiritual server”, means one who is ever ready and all-rounder. Only those who are full can become all-rounders. Those who are full will be content and make everyone content. A lack of any kind will create discontentment. The way to be content and make others content is to be full and a bestower.
Slogan:Keep the golden gift of good wishes and pure feelings with you and you will be able to transform any soul.
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