Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 07-Sep -2018 )
07-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अभी तुम्हारी ज्योति जगी है, ज्योति जगना अर्थात् बृहस्पति की दशा बैठना, बृहस्पति की दशा बैठने से तुम विश्व के मालिक बन जाते हो''
 
प्रश्नः-
 
सतयुग में हर घर की विशेषता क्या होगी, कलियुग में हर घर क्या बन गये हैं?
 
उत्तर:-
 
सतयुग में हर घर में खुशियां होंगी। सबकी ज्योति जगी हुई होगी। कलियुग में तो घर-घर में ग़मी, चिंता है। हर घर में अंधियारा है। आत्मा की ज्योति उझाई हुई है। बाप आये हैं अपनी ज्योति से सबकी ज्योति जगाने, जिससे फिर घर-घर में दीवाली होगी।
 
गीत:-
 
माता माता....... 
 
ओम् शान्ति।
 
बच्चों ने माँ की महिमा सुनी। यूं वास्तव में उपमा तो एक की ही होती है। माँ को भी जगत अम्बा बनाने वाला, जन्म देने वाला फिर भी कोई और है। ऐसी माँ को भी जन्म किसने दिया? कहेंगे पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव ने दिया। फिर भी महिमा हो जाती है एक ही ज्ञान सागर, पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिवबाबा की। वह बैठ बच्चों को अपना और अपनी रचना के आदि-मध्य-अन्त का और पतितों को पावन बनाने का राज़ समझाते हैं। यह तो बच्चे समझ गये हैं इस समय पतित राज्य है, जिसको रावण राज्य कहा जाता है। अभी दशहरा आता है ना। यह तो समझाया गया है - यह सब अन्धश्रधा के उत्सव हैं। ऐसे तो कोई है नहीं कि एक रावण था, लंका थी। लंका सीलॉन को कहा जाता है। दिखाते हैं वहाँ सागर पर बन्दरों ने पुल बनाई..... वास्तव में यह सब हैं दन्त कथायें। ऐसे तो है नहीं कि 10 शीश वाला कोई रावण था, लंका में राज्य करता था। फिर तो उनकी एफीजी लंका में ही जलानी चाहिए। रावण को जलाने का भारत में ही रिवाज है और कोई जगह नहीं जलाते। अ़खबार में भी यहाँ के लिए ही पड़ता है। सबसे जास्ती उत्सव मैसूर का महाराजा मनाते हैं। उनका शायद इस दन्त कथा से प्रेम दिखाई पड़ता है। अब इस पर समझाना तुम बच्चों का काम है। एफीजी तो दुश्मन का बनाकर जलाया जाता है। जैसे आगे हिटलर का एफीजी बनाकर जलाते थे। दुश्मन तो बहुतों के होते हैं। अब रावण किसका दुश्मन था? भारतवासियों का दुश्मन था। परन्तु दुश्मन को भी एक बार जलाया जाता है। ऐसे तो कोई भी नहीं करते जो हर वर्ष दुश्मन का एफीजी (बुत) बनाकर जलाते। दुश्मन का एफीजी तो बनाते हैं परन्तु वर्ष-वर्ष तो नहीं जलाते। यह रावण फिर कौन है जिसका भारत में बहुत समय से 10 शीश वाला एफीजी बनाकर जलाते रहते हैं? यह दुश्मन कब से हुआ है जो मरता ही नहीं? आखरीन ख़त्म होगा या सदैव रहेगा ही? तुम बच्चे जानते हो भारत ही पवित्र था फिर भारत को ही रावण ने अपवित्र बनाया है। अभी रावण राज्य है। अगर लंका का राजा था तो रानी भी होगी। तुम तो यह बातें मानेंगे नहीं। रावण अभी तक जीता है वा क्या, कुछ भी समझते नहीं। जीता है फिर उनकी एफीजी बनाकर जलाते रहते। एक बार जलाया फिर क्या हुआ? हर वर्ष जलाते रहते हैं तो तुम बच्चों को समझाना चाहिए। कमेटी के बड़े जो बनते हैं जैसे मैसूर का महाराजा है, वह बहुत मनाते हैं। फारेनर्स को भी देखने के लिए बुलाते हैं। समझेंगे शायद ऐसा हुआ होगा। परन्तु ऐसा तो कभी हुआ नहीं है। नाटक बना देते हैं। रावण का भी नाटक बनाते हैं। तो इस रावण की बात पर समझाना है। बड़ी जबरदस्त बात है। अभी तुम रावण राज्य में बैठे हो। पतित दुनिया को ही रावण राज्य कहा जाता है। अभी राम राज्य और रावण राज्य का राज़ तुमको समझाया गया है। रावण 5 विकारों को कहा जाता है और कोई नहीं है।
 
तुम समझ गये हो रावण का राज्य अभी भारत में है। भारत में ही दशहरा, दीपमाला आदि मनाते हैं। तो समझाना पड़े। अगर रावण जीता है तो रावण राज्य ठहरा ना। रावण है पतित बनाने वाला। तुम जानते हो 5 विकार जो कि इस समय सर्वव्यापी हैं, उनको ही रावण कहा जाता है। रावण के चित्र तो आगे दशहरे में निकले थे, इसमें तिथि-तारीख भी डालनी पड़े। इस समय पतित का विनाश और पावन की स्थापना होती है। तुम पतित से पावन बन रहे हो, पावन बन जायेंगे फिर रावण सम्प्रदाय को आग लगेगी। रावण ख़त्म हो जायेगा फिर सतयुग में कोई एफीज़ी नहीं बनानी पड़ेगी। सब पावन बन जायेंगे। आत्मा में सतोप्रधानता की जब ताकत थी तो जागती ज्योत थी। पतित बनने से वह ज्योत उझा गई है। आत्मा ही पतित बनी है, उड़ने की ताकत नहीं है। 5 विकारों से आत्मा आइरन एजड बन गई है। यह जरूर समझाना है। आत्मा को जागृत करने वाला एक बाप है। यह तो सब कहते हैं ज्योति स्वरूप परमपिता परमात्मा आयेगा। अब ज्योति स्वरूप तो तुम आत्मा भी हो, परमपिता परमात्मा भी ज्योति स्वरूप है। तुम्हारी आत्मा की ज्योति बुझ गई है। बाकी जाकर जरा सी रही है। मनुष्य मरते हैं तो रात-दिन उनका दीवा जलाते हैं। दीवे की बहुत सम्भाल करते हैं। घृत ख़त्म हो जाता है फिर और डालते हैं। आत्माओं का भी ऐसे है। बाप आकर सबकी ज्ञान से ज्योति जगाते हैं। ज्योति जगी हुई कितना समय चलती है? वह तो रात को जलाते हैं फिर घृत डालते जाते हैं। तुम्हारी अब ज्योति जग रही है। जगते-जगते फिर जग ही जायेगी। ज्योति बुझने में 5 हजार वर्ष लगता है फिर बाप आकर घृत डालते हैं। तुम्हारी अब ज्योति जगी है फिर धीरे-धीरे कला कम होती जायेगी। ज्योति उझाई जायेगी। तुम जानते हो अभी हमारी ज्योति जगती है फिर सतयुग में घर-घर में सोझरा होगा। भारत की ही बात है। अभी तो घर-घर में अन्धियारा है। खुशी है नहीं। तुम जानते हो सतयुग-त्रेता में हम बहुत खुश थे और खुशी मनाते थे। सभी की ज्योति जगी हुई रहती है फिर थोड़ी-थोड़ी कमती होती जाती है। इस समय तो बिल्कुल उझाई हुई है। खाद पड़ी हुई है। बाप आकर फिर ज्ञान का घृत डालते हैं जिससे तुम फिर जागती ज्योत बन जाते हो। तुम्हारे ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं।
 
तुम जानते हो अभी हमारी सारी काया ख़लास हो गई है, राहू का ग्रहण लग गया है। तुमको काला होने में कितना समय लगता है? शुरू से लेकर थोड़ा-थोड़ा होते फिर माया का प्रवेश होने से ही बहुत काले बन जाते हो। अभी तुम्हारे ऊपर राहू की दशा है। सबसे कड़ी है राहू की दशा। अभी फिर बृहस्पति की दशा बैठती है क्योंकि अभी विश्व का मालिक बनने के लिए तुम वृक्षपति गुरू द्वारा पुरुषार्थ कर रहे हो। वह है अविनाशी गुरू। किसका? अविनाशी आत्माओं का। वह मनुष्य लोग आत्माओं का गुरू नहीं बनते हैं। वह मनुष्य का गुरू बनते हैं। अभी बाप तुम्हारी आत्माओं का गुरू आकर बने हैं। वृक्षपति परमपिता परमात्मा है। तुम समझते हो अब हमारे ऊपर बृहस्पति की दशा है। स्वर्ग के मालिक तो बनेंगे। अविनाशी सुख रहता है, परन्तु उसके लिए पुरुषार्थ अब करना है कि हम सुखधाम के महाराजा-महारानी बनें। पुरुषार्थ तो हर एक का अपना चलता है। यह है रुद्र शिव की पाठशाला। वह है ज्ञान सागर। तुम उनकी पाठशाला में पढ़ रहे हो। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। अविनाशी आत्माओं का अविनाशी बाप मैं हूँ। एक है जिस्मानी बाप, एक है रूहानी बाप। दोनों कान्ट्रास्ट भी बताना है। रूहानी बाप कब मिलते हैं, जिसको भक्ति मार्ग में सभी रूहें याद करती हैं। जिस्मानी बाप तो है विनाशी। आत्मायें तो विनाशी नहीं होती हैं। तुम जानते हो हमारा जो लौकिक बाप है वह तो जन्म बाई जन्म हम बदलते आये। बाप बिगर तो बच्चे का जन्म हो नहीं सकता। तुम बच्चों को अब विशालबुद्धि मिली है। तुम समझ सकते हो कि कब से हम दो बाप वाले बनते हैं। सतयुग में तो एक ही लौकिक बाप होता है उनको ही याद करते हैं। आत्माओं को उस रूहानी बाप को याद करने की दरकार नहीं रहती। आत्माओं को सतयुग में तो एक ही लौकिक बाप होता है। वहाँ शरीर भी गोरा मिलता है, प्रालब्ध भोगते हैं ना इसलिए वहाँ बाप को याद नहीं करते। तो तुमको यह समझाना है। भक्ति मार्ग में एक है विनाशी लौकिक बाप, वह तो हर जन्म में दूसरा मिलता है। तुम आत्मा तो अविनाशी हो, अविनाशी बाप को याद करती हो। कहते भी हैं परमपिता परमधाम में रहने वाले पिता। लौकिक पिता को कभी परमपिता नहीं कहेंगे। यह दो बाप का राज़ समझाना बहुत जरूरी है। रावण का राज़ भी समझाना है। रावण राज्य अर्थात् पतित राज्य अभी है इसलिए पतित-पावन बाप को बुला रहे हैं। वह अविनाशी बाप है। दो बाप जरूर सिद्ध करने हैं। आत्माओं का भी बाप है इसलिए पारलौकिक परमपिता परमात्मा को याद करते हैं। हर जन्म में लौकिक बाप और और मिलता है फिर भी उस रूहानी बाप को जरूर याद करते हैं। वह कभी बदलता नहीं। बाप भी कहते हैं बरोबर तुम मुझे याद करते थे - हे परमपिता परमात्मा। कब तक तुमको याद करना है, फिर बाप कब मिलता है? यह तुम अभी जान गये हो। जब भक्ति का अन्त होता है तब भक्तों को फल देने बाप आते हैं। बाप ने समझाया है - सभी भक्तों को मुक्ति-जीवनमुक्ति देता हूँ। तुम जानते हो सतयुग में एक ही धर्म होता है, उसको वननेस कहेंगे। कहते हैं सभी मिलकर एक हो जाएं। परन्तु सभी धर्म तो एक हो नहीं सकते। जब एक राज्य हो जाता है तो पवित्रता, सुख, शान्ति रहती है। भारत में रामराज्य था जरूर। अभी यह रावण राज्य है, इसलिए रावण को जलाते रहते हैं। तो दो बाप का राज़ समझाने से झट समझ जायेंगे। अविनाशी बाप तो जरूर है, नई दुनिया रचने वाला बाप ही है। नई दुनिया में बरोबर देवी-देवतायें ही थे फिर वही दुनिया नई से पुरानी होती है। नई दुनिया में कितने जन्म लेते, पुरानी दुनिया में कितने जन्म लेते यह तुम जानते हो। ऐसे भी नहीं कि 84 जन्मों के आधा होने चाहिए, 42 जन्म पुरानी दुनिया में, 42 जन्म नई दुनिया में। नहीं। भारतवासियों की आयु पहले 100 वर्ष, 125 वर्ष थी, अभी तो 40-50 वर्ष भी मुश्किल चलती है। तो आधा-आधा हो सके। 84 जन्मों का हिसाब तो चाहिए ना। बाप कहते हैं तुम्हारा 84 जन्मों का चक्र अब पूरा हुआ। तुम नहीं जानते हो, हम समझाते हैं, 84 जन्मों का राज़ सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई समझा सके। तुम बाप से सुनकर खुश होते हो और फिर नई दुनिया के लिए पुरुषार्थ करते हो।
 
अब यह बच्चों को सिद्ध कर बताना है कि हम अभी बेहद के पारलौकिक बाप से बेहद का वर्सा ले रहे हैं। वह बाप आते ही तब हैं जब स्वर्ग की स्थापना करते हैं। उनको कहा ही जाता है हेविनली गॉड फादर। जब नये घर की स्थापना होती है तब पुराने घर को तोड़ा जाता है। लिखा हुआ भी है स्थापना फिर विनाश। स्थापना जब पूरी हो जायेगी तब विनाश होगा। स्थापना करने वाला है परमपिता परमात्मा, इस ब्रह्मा द्वारा। यह भी बाबा ने समझाया है सूक्ष्मवतनवासी को तो प्रजापिता नहीं कहेंगे। वहाँ प्रजा होती नहीं, तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ होगा। वही फिर अव्यक्त सम्पूर्ण बनेगा। वह तो है अव्यक्त, जरूर व्यक्त भी चाहिए जो फिर अव्यक्त होना है। दोनों अभी दिखाई पड़ते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ भी है, सूक्ष्मवतन में भी है। प्रजापिता तो यहाँ चाहिए, जरूर प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भी यहाँ ही हैं। प्रदर्शनी में दो बाप का राज़ समझाना है। कायदा तो है एक-एक को अलग-अलग समझाया जाता है। अब वहाँ किसको कैसे समझायेंगे? समझाने के लिए तो एकान्त चाहिए। वहाँ तो बहुत हंगामा होता है। यहाँ तो तुमको एक डेढ घण्टा लग जाता है समझाने में। वहाँ इतनी भीड़ में तो समझाना बड़ा मुश्किल हो जायेगा। अनेक प्रकार के धर्म वाले हैं। कोई क्या कहेंगे, कोई क्या। चुपकर तो बैठेंगे नहीं। तुम सुनायेंगे एक लौकिक जिस्मानी बाप है, दूसरा पारलौकिक रूहानी बाप है। वह है परमपिता परमात्मा। अब ब्रह्मा द्वारा स्थापना कर रहे हैं स्वर्ग की। नर्क का विनाश भी सामने खड़ा है। महाभारी लड़ाई है ना। बरोबर यह राजयोग भी है, राजाई प्राप्त करने की गीता पाठशाला है। भगवानुवाच - सभी को दो बाप हैं। कृष्ण को सभी आत्माओं का बाप नहीं कहेंगे। आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा कहते हैं कि मामेकम् याद करो। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) स्वयं में ज्ञान का घृत डालते सदा जागती ज्योत रहना है। बाप की याद में रह राहू का ग्रहण उतार देना है।
 
2) रूहानी और जिस्मानी दो बाप हैं, यह पहचान हर एक को देकर बेहद के वर्से का अधिकारी बनाना है।
 
वरदान:-
 
बिन्दू रूप में स्थित रह सारयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप का अनुभव करने वाले सदा समर्थ भव
 
क्वेश्चन मार्क के टेढ़े रास्ते पर जाने के बजाए हर बात में बिन्दी लगाओ। बिन्दू रूप में स्थित हो जाओ तो सारयुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त स्वरूप का अनुभव करेंगे। स्मृति, बोल और कर्म सब समर्थ हो जायेंगे। बिना बिन्दू बने विस्तार में गये तो क्यों, क्या के व्यर्थ बोल और कर्म में समय और शक्तियां व्यर्थ गवां देंगे क्योंकि जंगल से निकलना पड़ेगा इसलिए बिन्दू रूप में स्थित रह सर्व कर्मेन्द्रियों को आर्डर प्रमाण चलाओ।
 
स्लोगन:-
 
''बाबा'' शब्द की डायमण्ड चाबी साथ रहे तो सर्व खजानों की अनुभूति होती रहेगी।
 
 
07/09/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, your lights have now ignited. For the lights to ignite means that there are now the omens of Jupiter. When there are the omens of Jupiter, you become the masters of the world.
 
Question:
 
What is the speciality of every home in the golden age? What has every home become in the iron age?
 
Answer:
 
In the golden age, there is happiness in every home; the light of everyone is ignited. In the iron age, there is sorrow and worry in every home; there is darkness in every home. The lights of souls have extinguished. The Father has come to ignite everyone's light with His own light through which there will be Diwali in every home.
 
Song:
 
Mother, o Mother, you are the Bestower of Fortune for all. 
 
Om Shanti
 
You children heard praise of the mother. In fact, this is praise of only one. Nevertheless, it is someone who makes the mother into the World Mother (Jagadamba) and someone else who gives birth to her. Who gave birth to such a mother? It would be said: The Purifier, the Supreme Soul, Shiva, gave her birth. So then, the praise is of the one Ocean of Knowledge, the Purifier, the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiv Baba. He sits here and explains to you children the secrets of Himself, the beginning, middle and end of His own creation and the secrets of making impure ones pure. You children understand that, at this time, it is the impure kingdom which is called the kingdom of Ravan. Dashera is now coming. It has been explained that all of those festivals are of blind faith. There are no such things as Ravan and Lanka. Ceylon is called Lanka. They show that monkeys built a bridge across the sea. In fact, all of those are tall stories. It isn't that there was a Ravan with ten heads who ruled Lanka. If that were the case, they should burn his effigy in Lanka. The system of burning Ravan is only in Bharat. They don't burn his effigy anywhere else. In the newspapers too, they only write about it here. The Maharaja of Mysore celebrates this festival the most. Perhaps he has a lot of love for all those tall stories. It is the duty of you children to explain them. An effigy of an enemy is made and burnt. Previously, they used to make an effigy of Hitler and burn that. Many people have enemies. Whose enemy was Ravan? He was the enemy of the people of Bharat. However, an enemy is burnt once. There isn't anyone who makes an effigy of his enemy every year and burns it. They make an effigy of their enemy, but they don't burn that every year. Who is that Ravan whose effigy with ten heads has been created and burnt in Bharat for a long time? When did he become your enemy? He doesn't even die. Will he eventually die or will he always live? You children know that Bharat was pure and that it was Ravan that made Bharat impure. It is now the kingdom of Ravan. If there had been a king of Lanka, there must also have been a queen. You do not believe those things. People don't understand anything about whether Ravan is still living or not. He is still living and yet they create an effigy of him and burn that. Once he was burnt, what happened then? They continue to burn it every year and so you children should explain to them. Those who become the seniors of the Committee, such as the Maharaja of Mysore, celebrate this festival a lot. They even invite foreigners to come and watch. They believe that such things did perhaps happen. However, nothing like that ever happened. They create plays. They even create a play about Ravan. Therefore, you have to explain about this Ravan. This is something very important. You are now sitting in the kingdom of Ravan. The impure world is called the kingdom of Ravan. The secrets of the kingdom of Rama and the kingdom of Ravan have been explained to you. The five vices are called Ravan; it isn't anyone else. You have understood that Ravan's kingdom is now in Bharat. It is only in Bharat that they celebrate Dashera and Deepmala etc. So you have to explain that if Ravan is living, it is Ravan's kingdom. Ravan is the one who makes people impure. You know that the five vices which are now omnipresent are called Ravan. The pictures of Ravan were also made previously at Dashera, but they also have to write a date etc. on them. At this time, the impure is destroyed and the pure is established. You are becoming pure from impure. When you have become pure, the community of Ravan will be set on fire. When Ravan is destroyed, there won't be any need to create effigies in the golden age. Everyone will become pure. When souls had the power of their satopradhan stage, they were ignited lights. When they became impure, those lights were extinguished. Souls have become impure and don't have the strength to fly. Souls have become iron aged due to the five vices. This definitely has to be explained. It is the one Father who awakens souls. Everyone says that the Supreme Father, the Supreme Soul, the form of Light, God, will come. You souls are forms of light and the Supreme Father, the Supreme Soul, is also a form of light. The lights of you souls have been extinguished. Only a little light now remains. When a person dies, people keep an earthenware lamp burning for that soul day and night. They look after that lamp very carefully. When the oil is used up, they pour in more oil. It is the same with souls too: the Father comes and ignites everyone's light with knowledge. For how long would an ignited lamp last? They burn it at night and then continue to pour oil into it. Your lights are now igniting. By gradually being ignited, they will be fully ignited. It takes 5000 years for the lights to extinguish and then the Father comes and pours in oil. Your lights are now being ignited and then your degrees will later gradually continue to decrease. The lights will become dim. You know that your lights are now being ignited and that then, in the golden age, there will be light in every home. This only refers to Bharat. Now, there is darkness in every home; there is no happiness. You know that, in the golden and silver ages, you were very happy and that you used to celebrate in happiness. Everyone’s light remains ignited and it then decreases little by little. At this time it is completely dim; there is alloy mixed into it. The Father comes and pours in the oil of knowledge through which you become ignited lights. Your eyes of knowledge are being opened. You know that your bodies have now completely finished; there are the omens of Rahu. How long does it take for you to become ugly? It decreases little by little from the beginning and then, as soon as Maya enters, you become very ugly. There are now the omens of Rahu over you. The most severe omens are those of Rahu. There are now the omens of Jupiter because you are now making effort with the Lord of the Tree, the Guru, in order to become the masters of the world. He is the imperishable Guru. Whose? The imperishable souls. Those human beings don’t become gurus of souls; they become gurus of human beings. The Father has now come and become the Guru of you souls. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the Lord of the Tree. You understand that you now have the omens of Jupiter over you. You will become the masters of heaven. There is imperishable happiness, but you have to make effort for that at this time so that you become the emperors and empresses of the land of happiness. Everyone’s efforts are their own. This is the pathshala of Rudra Shiva. He is the Ocean of Knowledge. You are studying in His school. God speaks: I teach you Raja Yoga. I am the imperishable Father of imperishable souls. One is a physical father and the other is the spiritual Father. You have to show the contrast of the two. When do you meet the spiritual Father whom all the spirits remember on the path of devotion? A physical father is perishable. Souls are not perishable. You know that you have been changing your physical fathers for birth after birth. A child cannot be born without a father. You children have now received broad and unlimited intellects. You can understand from when it is that you become those with two fathers. In the golden age, there is the one physical father and you only remember him. There is no need for souls to remember that spiritual Father. In the golden age, souls only have the one physical father. There, you receive beautiful bodies; you experience your reward. This is why you don’t remember the Father there. So you have to explain this. On the path of devotion, one is your perishable physical father. He is a different one in every birth. You souls are imperishable. You remember the imperishable Father. You even say: The Supreme Father is the Father who lives in the supreme abode. A physical father would never be called the Supreme Father. It is most essential to explain the secrets of the two fathers. You also have to explain the secrets of Ravan. It is now the kingdom of Ravan. This is the impure kingdom. This is why they call out to the Purifier Father. He is the imperishable Father. You definitely have to prove the two fathers. Souls too have the Father, so this is why you remember the, Supreme Father, the Supreme Soul from beyond. In every birth, you receive different physical parents but, nevertheless, you definitely remember that spiritual Father. He never changes. The Father also says: You truly used to remember Me and say: O Supreme Father, Supreme Soul! For how long do you have to remember the Father and when do you meet the Father? You have now understood this. When it is the end of devotion, the Father has to come and give the devotees the fruit of their devotion. The Father has explained: I give all the devotees liberation and liberation-in-life. You know that there is just the one religion in the golden age. That is called oneness. They say that all should unite and become one. However, all religions cannot become one. When there is one kingdom, there is purity, happiness and peace. There definitely was the kingdom of Rama in Bharat. It is now the kingdom of Ravan. This is why they continue to burn Ravan. When you explain the secrets of the two fathers, they will quickly understand. There is definitely the imperishable Father. It is only the Father who creates the new world. In the new world, there truly were just the deities, and then that world changed from new to old. You know how many births you take in the new world and how many births you take in the old world. It isn’t half of 84 births, that you take 42 births in the old world and 42 births in the new world; no. The lifespan of the people of Bharat is at first 150 years, then 125 years and it is now hardly 40 to 50 years. It cannot be half and half; there has to be the accurate calculation of 84 births. The Father says: Your cycle of 84 births has now ended. You did not know this. I explain it to you. No one except the Supreme Father, the Supreme Soul can explain the secrets of 84 births to you. You listen to the Father and become happy and you then make effort for the new world. You children have to prove and tell others that you are now claiming your unlimited inheritance from the unlimited Father from beyond. That Father only comes when He has to establish heaven. He is called Heavenly God, the Father. When a new home has been constructed, the old one is demolished. It is written that there is establishment and then destruction. When establishment has taken place, destruction will take place. It is the Supreme Father, the Supreme Soul, who carries out establishment through Brahma. Baba has also explained that the resident of the subtle region cannot be called Prajapita (the Father of Humanity). There are no people there, and so surely Prajapita Brahma has to exist here. He will then become angelic and complete. That one (in the subtle region) is Angelic. The physical is also definitely needed so that he can become angelic. Both are now visible. Prajapita Brahma is here and also in the subtle region. Prajapita is needed here. The children of Prajapita are also definitely here. You have to explain the significance of the two fathers at the exhibition. It is the system that it has to be explained to each one individually. How can you explain to everyone there? Solitude is needed to explain to them. There is a lot of chaos there. Here, it takes you an hour to an hour and a half to explain. It would be very difficult to explain to such a crowd. There are those of all types of religion. Some would say one thing and others would say something else. They would not just sit quietly. You explain that that one is a worldly, physical father and that the other is the, spiritual Father from beyond. He is the Supreme Father, the Supreme Soul. He is now establishing heaven through Brahma. Destruction of hell is also just ahead. There is to be the great war. Truly, this is Raja Yoga and also the Gita Pathshala where you attain the kingdom. God speaks: Everyone has two fathers. Krishna would not be called the Father of all souls. The Father of souls, the Supreme Father, the Supreme Soul, says: Constantly remember Me alone. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Remain a constantly ignited light by pouring the oil of knowledge into yourself. Stay in remembrance of the Father and remove the omens of Rahu.
 
2. Give everyone the recognition of the two fathers, the spiritual and the physical, and enable them to claim a right to the unlimited inheritance.
 
Blessing:
 
May you be constantly powerful and experience the form of being essence-full, yogyukt and yuktiyukt by remaining stable in the point form.
 
Instead of going on the crooked path of a question mark, apply a full stop to every situation. Stabilise yourself in the point form and you will experience the essence-full, yogyukt and yuktiyukt form. Your awareness, words and deeds will all become powerful. If you go into expansion without first becoming a point, you would then waste your time and powers in wasteful words and deeds of “Why?” and “What?” because you would have to come out of that jungle. Therefore, remain stable in the point form and make sure all your physical senses work according to your orders.
 
Slogan: 

Keep the diamond key of the word “Baba” with you and you will continue to experience all treasures.

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