Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
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Details ( Page:- Murali - 06-Sep - 2018 )
06-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - देह सहित सबकी याद भूल, बाप जो है जैसा है उसे यथार्थ पहचान स्वयं को बिन्दी समझ बिन्दी रूप से बाप को याद करो''
प्रश्नः-कौन सा ज्ञान इस समय बाप से ही तुम्हें मिलता है और कोई नहीं दे सकते?
उत्तर:-तुम स्त्री-पुरुष साथ में रहते गृहस्थ व्यवहार की सम्भाल करते पवित्र रहो, यह ज्ञान अभी इसी समय बाप तुम्हें देते हैं और कोई यह ज्ञान दे नहीं सकता। तुम्हें दान तो 5 विकारों का करना है लेकिन मुख्य है काम, जिस पर पूरी विजय पानी है। सर्वशक्तिमान बाप की याद और श्रीमत पर चलने से ही यह ताकत मिलती है।
गीत:-दु:खियों पर रहम करो .......
ओम् शान्ति।
वही बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। कौन है यह बाप? यह बच्चे जानते हैं, जिनके सम्मुख बाप बैठे हैं। अब तुम बच्चों की बुद्धि का योग बेहद के बाप तरफ है। बुद्धि का योग अभी हद के बाप से तोड़ना है। सारी दुनिया के जो भी मित्र संबंधी हैं, बल्कि इस देह को, दुनिया को सबको भूलना है। यह बाप के डायरेक्शन मिलते हैं। बाप बच्चों को कभी नहीं भूलते हैं। बाप तो कहते हैं भक्ति मार्ग में भी तुम भक्तों की हम सम्भाल करते आये हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार तुम बच्चों को भूलना ही है। भुलवाती है माया। हम आत्मा हैं - यह भी रावण भुला देते हैं। देह-अभिमानी बना देते हैं। यह तुम बच्चों का पार्ट है। ऐसे नहीं कि तुम वहाँ सिर्फ बाप को भूल जाते हो, परन्तु वह जो है जैसा है उस बाप की याद और सुख देने का ज्ञान भूल जाते हो।
अभी तुम जानते हो बाबा कल्प-कल्प आते हैं। बाबा कैसा है - यह भी बुद्धि में धारण करना है। मनुष्यों ने तो शिवलिंग का बड़ा चित्र बना दिया है। और सभी के चित्र तो ठीक हैं। जैसे ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का चित्र भी ठीक है, मन्दिरों में पूजे जाते हैं। परन्तु परमपिता परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल जो है, वह भूल जाते हैं। चित्र भी भूल जाते हैं। अभी तुम बच्चों को समझाया जाता है कि आत्मा बिन्दी रूप है। स्टॉर मिसल बिन्दी है। भृकुटी के बीच में रहती हैं। बच्चे जानते हैं - हम आत्मा हैं। शरीर की भ्रकुटी के बीच मुझ आत्मा का स्थान है। यह तो सब मानेंगे। बहुत सूक्ष्म बिन्दी जैसी है। यह भी जानते हो परमपिता परमात्मा भी ऐसे बिन्दी रूप ही होगा। खुद आकर समझाते हैं मैं भी बिन्दी हूँ, परन्तु मनुष्यों ने बड़ा रूप ज्योर्तिलिंगम् बना दिया है। जैसे बुद्ध का भी बड़ा लम्बा चौड़ा रूप बनाते हैं। पाण्डवों के शरीर भी भक्ति मार्ग में बहुत लम्बे बनाते हैं। भक्ति मार्ग में लम्बे चित्र होते हैं। ज्ञान मार्ग में छोटी चीज़ होती है। परमात्मा कहते हैं मैं बिन्दी हूँ। कहाँ-कहाँ बहुत बड़ा लिंग भी रखते हैं। नहीं तो बिन्दी की पूजा कैसे हो सके। पूजा तो जरूर बड़ी चीज़ की होगी ना। तुमको अभी बिन्दी रूप समझाया है। इन बातों को मनुष्य तो समझ न सकें। तुम बच्चों को भी पहले यह समझ नहीं थी। अभी जब परिपक्व अवस्था हुई है तो समझते हो यह तो यथार्थ बात है। अगर शुरू से लेकर बाबा भी समझाते तो हम समझ नहीं सकते क्योंकि बिन्दी कोई चीज़ तो है नहीं। हम मानते नहीं। परम्परा से शिवलिंग कहा जाता, यह फिर क्या है? तो बाप समझाते हैं कि वह भी रांग है। मैं जो तुम्हारा बाप हूँ, मैं बिन्दी हूँ। तुम्हारा भी बिन्दी रूप है। परन्तु पूजा आदि के लिए बड़ा शिवलिंग बनाते हैं। आत्माओं का रूप भी सालिग्राम बनाते हैं परन्तु ऐसे है नहीं। आत्मा इतनी बड़ी हो नहीं सकती। आत्मा देखने में भी बड़ा मुश्किल आती है। यह समझने की बड़ी गुह्य बाते हैं। आत्मा भी बिन्दी रूप है। इस छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। एक सेकेण्ड न मिले दूसरे से। 84 जन्मों का पार्ट सारा एक छोटी-सी आत्मा में नूँधा हुआ है। यह बड़ी कुदरत की बात है। सारा पार्ट बिन्दी में रहता है। उस नाटक में भी पार्ट बजाने वालों की बुद्धि में सारा पार्ट रहता है ना। वह है छोटा पार्ट, यह 84 जन्मों का पार्ट भी अच्छी रीति समझना है और फिर समझाने की भी बड़ी युक्ति चाहिए। इतनी छोटी बिन्दी है, कितनी छोटी है, कितनी शक्तिवान है! उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। तुम आत्मायें उनसे योग लगाने से मा. सर्वशक्तिमान बनते हो। माया पर जीत पाकर अटल, अखण्ड, सुख-शान्तिमय राज्य करते हो। कितनी समझने की बातें हैं।
यह है पढ़ाई। है भी बहुत सहज। यह बाप ही समझा सकते हैं, कोई मनुष्य नहीं समझा सकते हैं। बरोबर इतनी छोटी चीज़ परन्तु नाम कितना बड़ा रखते हैं - ज्ञान का सागर। तुम कहते हो मनुष्य सृष्टि का बीज-रूप, चैतन्य है, सत है, अविनाशी है। कहते आते हैं परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं आता है - वह क्या वस्तु है? गुण तो बहुत अथाह गाते हैं। अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो। जान गये हो। आत्मायें तो सम्मुख ही हैं। सब आत्मायें ब्रदर्स ही हैं। कितनी छोटी-छोटी बिन्दी है, विचार करो। मूलवतन का हम जो चित्र बनाते हैं उसमें बिन्दू रूप ही दिखाते हैं। जैसे स्टॉर्स आकाश तत्व में ऊपर खड़े हैं, वैसे ही महतत्व में भी हम ऐसे स्टॉर माफिक अपने-अपने सेक्शन में खड़े होंगे। झाड़ छोटे-छोटे स्टॉर्स का बना हुआ है। वहाँ से फिर आत्मा आती है, शरीर धारण करती है - पार्ट बजाने लिए। कैसे नम्बरवार आत्मायें आती हैं - यह सारी बुद्धि चलनी चाहिए। हर एक धर्म का सेक्शन अलग होगा। बाप दृष्टान्त दे समझाते हैं। बनेन ट्री का भी मिसाल समझाते हैं। हिन्दी बहुत जगह चलती है, तो बच्चों को हिन्दी भाषा में समझाना पड़ेगा। परमपिता परमात्मा भी हिन्दी भाषा में ही समझाते हैं। आजकल जहाँ-तहाँ इसका प्रचार करते रहते हैं। एक भाषा होना तो मुश्किल है। कई समझते हैं परमपिता परमात्मा तो सब भाषायें जानते होंगे। परन्तु ऐसे तो हो न सके। अथाह, अनेकानेक भाषायें हैं। वह तो सीखनी पड़ती हैं। परमपिता परमात्मा को तो कुछ सीखना नहीं है। उन्होंने कल्प पहले जिस भाषा में समझाया है, उसमें ही समझाते हैं। बाकी भाषायें तो हरेक को पढ़नी होती हैं। बाप को पढ़नी होती हैं क्या? तुम देखते हो शुरू से हिन्दी चली है। सब हिन्दी सीखते जाते हैं। भारत में हिन्दी का प्रचार है। बाप भी हिन्दी में समझाते हैं फिर हर एक को अपनी भाषा में ट्रांसलेशन कर औरों को समझाना पड़े। बाप और बाप की रचना का परिचय सबको समझाना है। सभी का सद्गति दाता वह एक बाप है। यह सब जानेंगे बरोबर बाप आया हुआ है। बाप कहते हैं मैं भारत में ही आता हूँ। भारत हमारा बर्थ प्लेस है। शिव के मन्दिर, देवी-देवताओं के मन्दिर भी यहाँ हैं। देवी-देवताओं का राज्य भी भारत में होता है। बाप भी भारत में आते हैं। देवी-देवता धर्म की स्थापना यहाँ ही की है। तो मन्दिर भी जरूर यहाँ चाहिए। औरों के इतने मन्दिर नहीं होंगे। यहाँ तो बहुत मन्दिर हैं। घर-घर में लक्ष्मी-नारायण के चित्र, राधे-कृष्ण के चित्र, राम-सीता के चित्र रखते हैं क्योंकि भारत में होकर गये हैं। परन्तु उन्होंने कैसे राज्य लिया - वह भूल गये हैं। चैतन्य में राज्य करके गये हैं। लक्ष्मी-नारायण वैकुण्ठ के महाराजा-महारानी हैं। उन्हों को राज्य किये कितना समय हुआ? यह भी जानते हैं। मुख से कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था। तो क्राइस्ट को 2 हजार वर्ष हुए ना। तो जो ऐसे कहते हैं उन्हें उसी बात पर समझाना चाहिए। कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था अर्थात् स्वर्ग था। ऐसे नहीं कि क्राइस्ट भी उस स्वर्ग में था। पूछेंगे क्रिश्चियन लोग तब कहाँ थे? यानी उन्हों की आत्मायें कहाँ थी? इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि की आत्मायें सब कहाँ थी? यह समझाना तो बड़ा सहज है। वह सब निर्वाणधाम वा निराकारी दुनिया में थी। निराकारी दुनिया भी है, दुनिया में जरूर बहुत रहने वाले होते हैं। सभी आत्माओं का निवास स्थान महतत्व रूपी निराकारी दुनिया में है। तुम बच्चों की बुद्धि में अभी यह है कि इस समय सब देवी-देवताओं की आत्मायें हाजिर हैं, तब बाप आये हैं, फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। समझो, कोई धर्म आता है पहले तो बहुत छोटा होता है। छोटी-छोटी शाखायें निकल जब पूरी होती हैं तब यह तुम्हारा फाउन्डेशन भी पूरा होता है।
बीज और झाड़ का राज़ समझाना तो बहुत सहज है। मनुष्य सृष्टि का झाड़ बहुत धर्मों का है। समझते भी हैं फलाना धर्म था तो फलाना धर्म नहीं था। अभी छोटे-छोटे धर्म निकलते हैं। आगे तो नहीं थे ना। छोटी-छोटी शाखायें तो अभी निकली हैं। यह तुम बच्चे जानते हो और कोई नहीं जानते। आत्मा और परमात्मा का बिन्दी रूप नहीं जानते हैं। अभी बाबा ने तुम बच्चों को आकर समझाया है। तुम कहते हो बाबा हम आपके बच्चे हैं। कल्प पहले भी आपसे मिले थे। आपके बच्चे बने थे। बच्चे बनते हैं, बाप का वर्सा लेने। बाप कहते हैं तुम हमारे हो, गोया एडाप्ट किया, मुख वंशावली बने। तुम सब एडाप्टेड हो। बाबा भी ब्रह्मा मुख से कहते हैं - तुम आत्मायें हमारी हो। तुम आत्मायें भी कहती हो बाबा आपने जो ब्रह्मा तन में आकर अपना परिचय दिया है, हम आपके हैं। बाबा कहने से ही वर्से की खुशबू आनी चाहिए। बच्चे ही कह सकते। यह है प्रवृत्ति मार्ग। सन्यासियों के शिष्य बनते हैं, वह बाप-बच्चे नहीं बनते। वर्सा बाप से जायदाद का मिलता है। वह तो कहेंगे हमने गुरू किया है। गुरू से तो जायदाद का वर्सा नहीं मिलेगा। वह तो जायदाद को छोड़ जंगल में चले जाते हैं। वह जायदाद दे न सकें। वह हैं ही निवृत्ति मार्ग वाले। बाप तो जायदाद देते हैं, उनसे कुछ नहीं मिलता। जंगल में जायेंगे तो सन्यासी कहलायेंगे। तुम भी सन्यासी कहलाते हो। वह हैं हठयोगी सन्यासी। तुम राजयोगी सन्यासी हो। सन्यासी अर्थात् 5 विकारों का त्याग करने वाले। सो तो तुम त्याग करते हो और फिर पवित्र दुनिया में चले जाते हो। वह त्याग करते हैं परन्तु पवित्र दुनिया में नहीं जाते, पतित दुनिया में ही रहते हैं।
तो बाप समझाते हैं आत्मा कितनी छोटी है! इतनी छोटी वस्तु में कितनी ताकत है, अविनाशी भी है। वह बाप इस शरीर द्वारा समझाते हैं, तुम्हारी आत्मा समझती है। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब कलियुग का अन्त है। तमोप्रधान पतित हो जाते हैं। मुझे याद भी तब करेंगे जब संगम होगा तब ही हम आयेंगे, तब ही विनाश के चिन्ह भी देखने में आयेंगे। सो तो बरोबर देखते हो। अभी तुमको समझ मिलती है, वह फिर औरों को देनी है। अभी कलियुग का अन्त जरूर है। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। महाभारत लड़ाई भी है। बरोबर, उस समय राजयोग भी सीखते थे। पाण्डवों ने विजय पाई, यादव-कौरव विनाश हुए। स्वर्ग में तो एक ही धर्म होता है। अनेक धर्म ख़लास हो जाते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं बाबा की इस राजयोग की शिक्षा से हम बरोबर सो देवी-देवता पद पाते हैं। तुम पुरुषार्थ करते हो हम तो नर से नारायण ही बनेंगे। बाप का वारिस जरूर बनेंगे, तख्तनशीन बनेंगे। फिर जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। पुरुषार्थी छिपे नहीं रहते, वह बड़े मस्त होते हैं। पहले-पहले प्रतिज्ञा करते हैं। बाप के जन्म बाद है रक्षाबन्धन। बाप को जानते तो पहले प्रतिज्ञा करनी है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है। दान तो पाचों ही विकारों का करना है परन्तु पहले-पहले मुख्य काम है, इनसे बड़ा ख़बरदार रहना है। भल स्त्री भी साथ हो, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना मेहनत का काम है। सर्वशक्तिमान बाप को याद करने और उनकी श्रीमत पर चलने से ताकत मिलती है। बाप का फ़रमान है - साथ में रहते, इकट्ठे रहते पवित्र रहना है। आगे तो स्त्री पुरूष इकट्ठे रहने से आग लगती थी। बाप कहते हैं इकट्ठे रहो परन्तु आग न लगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दिल से बाप को याद कर जायदाद की खुशी में रहना है। पूरा पावन जरूर बनना है।
2) विचार करना है - ''आत्मा कितनी छोटी है और उसमें कितना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है'', बिन्दू बन बिन्दू बाप की याद में रहना है।
वरदान:-बिन्दू की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगाने वाले सहजयोगी भव
सबसे सरल मात्रा बिन्दी है। बापदादा सिर्फ बिन्दी का हिसाब बताते हैं। स्वयं भी बिन्दु रूप बनो, याद भी बिन्दु को करो और ड्रामा के हर दृश्य को जानने करने के बाद बिन्दु की मात्रा लगा दो। इस बिन्दु की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगा दो, बिन्दू बन जाओ तो सहजयोगी बन जायेंगे। वैसे भी अब बिन्दी बन घर जाना है। घर में सब बिन्दू रूप में रहते जहाँ संकल्प, कर्म, संस्कार सब मर्ज हैं।
स्लोगन:-कर्मयोगी बन कर्म करते भी उपराम स्थिति में रहना अर्थात् उड़ता पंछी बनना।
06/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, stop remembering your own bodies and everyone else and recognise the Father accurately as He is and what He is and consider yourselves to be points and remember the Father in the form of a point.
Question:Which knowledge do you receive only from the Father at this time, knowledge that no one else can give you?
Answer:You live together as husband and wife, look after your household and also remain pure. The Father gives you this knowledge at this time. No one else can give you this knowledge. You have to donate the five vices, but the main one is lust which you have to conquer completely. Only by remembering the Almighty Authority and following His directions do you receive strength for this.
Song:
Have mercy on those who are unhappy.
Om Shanti
That Father sits here and explains to you children. Who is that Father? You children, in front of whom the Father is personally sitting, know this. The intellects’ yoga of you children is with the unlimited Father. You have to break your intellect’s yoga away from limited fathers. You have to forget all the friends and relatives, your own bodies and bodily relations of this whole world. You receive this direction from the Father. The Father never forgets the children. The Father says: Even on the path of devotion, I have been looking after you devotees. However, according to the drama, you children had to forget this. It is Maya that makes you forget this. Ravan also makes you forget that you are souls and makes you body conscious. This is in the parts of you children. It isn't that you simply forget the Father there. You also forget to remember the Father, who He is and what He is and also the knowledge of Him giving you happiness. You now know that the Father comes here every cycle. Your intellects also have to imbibe what Baba is like. People have made large images of Shivalingams. The pictures of all the others are fine, just as the picture of Brahma, Vishnu and Shankar is fine and they are worshipped in the temples. However, they forget the name, form, place and time of the Supreme Father, the Supreme Soul. They even forget His image. It has been explained to you children that a soul is a point. It is a point, like a star; it resides in the centre of the forehead. You children know that you are souls. The place of residence of myself, the soul, is in the body, in the centre of the forehead. Everyone would accept this. It is very subtle, like a point. You also know that the Supreme Father, the Supreme Soul, would also be a point in the same way. He Himself comes and explains to you: I too am a point. However, people have made His form big, like a jyotilingam, in the same way as they have made a big form of Buddha. On the path of devotion, they have portrayed the Pandavas with very tall bodies. On the path of devotion, they have big images, whereas on the path of knowledge, they have smaller things. God says: I am a point. In some places they keep large images of a lingam. How would a point be worshipped? It would definitely be something large that is worshipped. The form of a point has now been explained to you. People do not understand these things. You children also did not have this understanding previously. Now that your stage has matured, you understand that this is accurate. If Baba had explained this at the beginning, we would not have understood, because a point is really nothing. We would not have accepted that. They speak of the Shivalingam from time immemorial, so what is that? The Father explains: That too is wrong. I, your Father, am a point. You too have the form of a point, but they create large Shivalingams for worshipping etc. They make the form of souls like saligrams, but they are not like that. A soul cannot be that big. It is very difficult to see a soul. These are very deep things and have to be understood. A soul too is the form of a point. The part of 84 births is recorded in such a tiny soul. One second cannot be the same as the next. The whole part of 84 births is recorded in such a tiny soul. These things are nature. The whole part is in the point. In other plays, the whole roles remain in the intellects of those who are to play their parts. Those are small roles, but you have to understand this role of 84 births very well and you also need clever ways of explaining to others. Each soul is such a tiny point. It is so tiny and yet it is so powerful. He is called the Supreme Father, the Supreme Soul. You souls become master almighty authorities by having yoga with Him. You conquer Maya and then rule the unshakeable, immovable, peaceful and happy kingdom. These matters have to be understood. This is your study. It is very easy. Only the Father can explain this; no human being can explain it. He is truly such a tiny thing, but He is given such a big name: the Ocean of Knowledge. You say that He is the Seed of the human world tree. He is Living, He is the Truth, He is imperishable. People have been saying this but it doesn't enter anyone's intellect what He is. They praise His virtues a great deal. You children are now sitting personally in front of the Father. You know that souls are personally in front of Him. All souls are brothers. Just think about it: souls are such tiny points. When we draw a picture of the incorporeal world, we show the form of points. Just as stars hang in the sky, in the same way we souls will be hanging in our own section in the great element. The tree has been made up of tiny stars. Souls come from there and adopt bodies to play their parts. Your intellects should work on how souls come down, numberwise. The section of each religion would be separate. The Father explains to you with examples. He also explains to you the example of the banyan tree. The Hindi language is used in many places and so children have to explain in that language. The Supreme Father, the Supreme Soul, also explains using the Hindi language. Nowadays, they continue to spread this widely everywhere. It is difficult for there to be just one language. Some people think that the Supreme Father, the Supreme Soul, knows all languages, but it cannot be like that. There are so many different languages. They would have to be learnt. The Supreme Father, the Supreme Soul, doesn't need to learn anything. He explains in the same language that He used in the previous cycle. However, everyone has to study their own language. Would the Father have to learn it? You can see that the Hindi language has been used from the beginning. Everyone continues to learn Hindi. The Hindi language is widely used in Bharat. The Father also explains using Hindi and then everyone has to translate it into their own language and explain to others. The introduction of the Father and His creation has to be explained to everyone. That one Father is the Bestower of Salvation for All. Everyone will come to know that the Father truly has come. The Father says: I only come in Bharat. Bharat is My birthplace. The temples to Shiva and the temples to the deities are also here (in Bharat). The kingdom of the deities is also in Bharat. The Father too comes in Bharat. The establishment of the deity religion takes place here. Therefore, the temples also definitely need to be here. Others wouldn't have as many temples. Here, there are many temples. They have pictures of Lakshmi and Narayan, Radhe and Krishna, Rama and Sita in every home because they existed in Bharat. However, they have forgotten how they claimed the kingdom. They ruled the kingdom in the living form. Lakshmi and Narayan are the empress and emperor of Paradise. You also know how long it has been since they ruled the kingdom. You say: Three thousand years before Christ, there was the kingdom of deities. So, it is now 2000 years since Christ existed. Therefore, explain these particular points to those who say this. They say that there was the kingdom of deities 3000 years before Christ, that is, there was heaven. They don't say that Christ was in that heaven. You should ask: Where were the Christians at that time? That is, where were their souls? Where were the souls of all of those of Islam, the Buddhists and the Christians? It is very easy to explain these things. They were all in the land of nirvana, the incorporeal world. There is the incorporeal world. There must definitely be many living in the world. The place of residence of all souls is the incorporeal world, the great element. It is now in the intellects of you children that the souls of all the deities are present here at this time. This is when the Father comes and once again carries out establishment of the deity religion. For example, when a new religion begins, it is very small at first. When the small branches emerge and come to an end, your foundation will also be complete. It is very easy to explain the secret of the Seed and the tree. The tree of the human world is that of many religions. They understand that when such-and-such a religion existed, such-and-such a religion didn't exist. Now, smaller religions are emerging; they didn't exist previously. The small branches have emerged now. Only you children know this. No one else knows it. They don't know the point-form of souls and the Supreme Soul. Baba has now come and explained to you children. You say: Baba, we are Your children. We also met you in the previous cycle; we became Your children. You become the children to claim the Father's inheritance. The Father says: You belong to Me, that is, you have become the mouth-born adopted creation. All of you are adopted. Baba says through the mouth of Brahma: You souls are Mine. You souls also say: Baba, You have entered the body of Brahma and given us Your introduction, and so we belong to You. As soon as you say, “Baba”, you should receive the fragrance of the inheritance. Only the children can say this. This is the family path. Sannyasis have disciples; they are not father and children. Only from their father is the inheritance of property received. Those people say that they have adopted a guru. The inheritance of property cannot be received from a guru. They renounce their property and go away to the forests. They cannot give any property. They belong to the path of isolation. The Father gives you property, whereas you don't receive anything from them. When they go to a forest, they are called sannyasis. You too are called sannyasis. They are hatha yoga sannyasis whereas you are Raja Yogi sannyasis. ‘Sannyasis’, means those who renounce the five vices. You renounce them and then go to the pure world. They have renunciation, but they don't go to the pure world, they only remain in the impure world. The Father explains: A soul is so tiny. Such a tiny thing has so much strength. It is also imperishable. That Father explains through this body. You souls understand it. The Father says: I come when it is the end of the iron age and everyone is tamopradhan and impure. It is then that you remember Me. I come when it is the confluence age. It is then that the signs of destruction are visible. You truly can see them. You have now received understanding which you have to give to others. It is now definitely the end of the iron age. There are also the Yadavas, Kauravas and Pandavas. There is also the Mahabharat War. Truly, they studied Raja Yoga at that time. The Pandavas gained victory and the Yadavas and Kauravas were destroyed. There is just the one religion in heaven. All the innumerable religions end. The Father sits here and explains this. You children know that we claim the deity status from the Father through these teachings of Raja Yoga. Definitely you make effort to become Narayan from an ordinary man: We will definitely become the Father's heirs and be seated on the heart-throne. Then you will claim a status according to how much effort you made. Effort-makers cannot remain hidden; they are very intoxicated. First of all, you make a promise. After the Father's birth, there is the festival of Raksha Bandhan. So, having come to know the Father, you have to make a promise to Him. The Father says: Lust is the greatest enemy. All the five vices have to be donated. The main one is lust. You have to remain very cautious about it. Although you live with your wife and family, to remain pure is something that requires effort. By remembering and following the directions of the Almighty Authority Father, you receive strength. The Father's orders are: While living together, you have to remain pure. Previously, when husband and wife lived together, there used to be fire. The Father says: Live together, but there must be no fire. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Keep the Father in your heart and maintain the happiness of receiving the property. You definitely have to become completely pure.
2. Just think about how tiny a soul is and how it has such an imperishable part recorded in it. Become a point and stay in remembrance of the Father, a point.
Blessing:
May you become an easy yogi by putting a full stop to the past knowing the importance of the full stop.
The easiest punctuation is the full stop. BapDada simply tells us about the account of the full stop. Become a point yourself, remember the Point and, knowing about every scene of the drama, apply a full stop. Know the importance of the full stop and put a full stop to the past and become a point and you will become an easy yogi. In any case, we now have to become points and return home. Everyone resides in the home in the point form where thoughts, actions and sanskars are all merged.
Slogan:Be a karma yogi and while performing actions, remain beyond, that is, become a flying bird.
''मीठे बच्चे - देह सहित सबकी याद भूल, बाप जो है जैसा है उसे यथार्थ पहचान स्वयं को बिन्दी समझ बिन्दी रूप से बाप को याद करो''
प्रश्नः-कौन सा ज्ञान इस समय बाप से ही तुम्हें मिलता है और कोई नहीं दे सकते?
उत्तर:-तुम स्त्री-पुरुष साथ में रहते गृहस्थ व्यवहार की सम्भाल करते पवित्र रहो, यह ज्ञान अभी इसी समय बाप तुम्हें देते हैं और कोई यह ज्ञान दे नहीं सकता। तुम्हें दान तो 5 विकारों का करना है लेकिन मुख्य है काम, जिस पर पूरी विजय पानी है। सर्वशक्तिमान बाप की याद और श्रीमत पर चलने से ही यह ताकत मिलती है।
गीत:-दु:खियों पर रहम करो .......
ओम् शान्ति।
वही बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। कौन है यह बाप? यह बच्चे जानते हैं, जिनके सम्मुख बाप बैठे हैं। अब तुम बच्चों की बुद्धि का योग बेहद के बाप तरफ है। बुद्धि का योग अभी हद के बाप से तोड़ना है। सारी दुनिया के जो भी मित्र संबंधी हैं, बल्कि इस देह को, दुनिया को सबको भूलना है। यह बाप के डायरेक्शन मिलते हैं। बाप बच्चों को कभी नहीं भूलते हैं। बाप तो कहते हैं भक्ति मार्ग में भी तुम भक्तों की हम सम्भाल करते आये हैं। परन्तु ड्रामा अनुसार तुम बच्चों को भूलना ही है। भुलवाती है माया। हम आत्मा हैं - यह भी रावण भुला देते हैं। देह-अभिमानी बना देते हैं। यह तुम बच्चों का पार्ट है। ऐसे नहीं कि तुम वहाँ सिर्फ बाप को भूल जाते हो, परन्तु वह जो है जैसा है उस बाप की याद और सुख देने का ज्ञान भूल जाते हो।
अभी तुम जानते हो बाबा कल्प-कल्प आते हैं। बाबा कैसा है - यह भी बुद्धि में धारण करना है। मनुष्यों ने तो शिवलिंग का बड़ा चित्र बना दिया है। और सभी के चित्र तो ठीक हैं। जैसे ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का चित्र भी ठीक है, मन्दिरों में पूजे जाते हैं। परन्तु परमपिता परमात्मा का नाम, रूप, देश, काल जो है, वह भूल जाते हैं। चित्र भी भूल जाते हैं। अभी तुम बच्चों को समझाया जाता है कि आत्मा बिन्दी रूप है। स्टॉर मिसल बिन्दी है। भृकुटी के बीच में रहती हैं। बच्चे जानते हैं - हम आत्मा हैं। शरीर की भ्रकुटी के बीच मुझ आत्मा का स्थान है। यह तो सब मानेंगे। बहुत सूक्ष्म बिन्दी जैसी है। यह भी जानते हो परमपिता परमात्मा भी ऐसे बिन्दी रूप ही होगा। खुद आकर समझाते हैं मैं भी बिन्दी हूँ, परन्तु मनुष्यों ने बड़ा रूप ज्योर्तिलिंगम् बना दिया है। जैसे बुद्ध का भी बड़ा लम्बा चौड़ा रूप बनाते हैं। पाण्डवों के शरीर भी भक्ति मार्ग में बहुत लम्बे बनाते हैं। भक्ति मार्ग में लम्बे चित्र होते हैं। ज्ञान मार्ग में छोटी चीज़ होती है। परमात्मा कहते हैं मैं बिन्दी हूँ। कहाँ-कहाँ बहुत बड़ा लिंग भी रखते हैं। नहीं तो बिन्दी की पूजा कैसे हो सके। पूजा तो जरूर बड़ी चीज़ की होगी ना। तुमको अभी बिन्दी रूप समझाया है। इन बातों को मनुष्य तो समझ न सकें। तुम बच्चों को भी पहले यह समझ नहीं थी। अभी जब परिपक्व अवस्था हुई है तो समझते हो यह तो यथार्थ बात है। अगर शुरू से लेकर बाबा भी समझाते तो हम समझ नहीं सकते क्योंकि बिन्दी कोई चीज़ तो है नहीं। हम मानते नहीं। परम्परा से शिवलिंग कहा जाता, यह फिर क्या है? तो बाप समझाते हैं कि वह भी रांग है। मैं जो तुम्हारा बाप हूँ, मैं बिन्दी हूँ। तुम्हारा भी बिन्दी रूप है। परन्तु पूजा आदि के लिए बड़ा शिवलिंग बनाते हैं। आत्माओं का रूप भी सालिग्राम बनाते हैं परन्तु ऐसे है नहीं। आत्मा इतनी बड़ी हो नहीं सकती। आत्मा देखने में भी बड़ा मुश्किल आती है। यह समझने की बड़ी गुह्य बाते हैं। आत्मा भी बिन्दी रूप है। इस छोटी सी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। एक सेकेण्ड न मिले दूसरे से। 84 जन्मों का पार्ट सारा एक छोटी-सी आत्मा में नूँधा हुआ है। यह बड़ी कुदरत की बात है। सारा पार्ट बिन्दी में रहता है। उस नाटक में भी पार्ट बजाने वालों की बुद्धि में सारा पार्ट रहता है ना। वह है छोटा पार्ट, यह 84 जन्मों का पार्ट भी अच्छी रीति समझना है और फिर समझाने की भी बड़ी युक्ति चाहिए। इतनी छोटी बिन्दी है, कितनी छोटी है, कितनी शक्तिवान है! उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। तुम आत्मायें उनसे योग लगाने से मा. सर्वशक्तिमान बनते हो। माया पर जीत पाकर अटल, अखण्ड, सुख-शान्तिमय राज्य करते हो। कितनी समझने की बातें हैं।
यह है पढ़ाई। है भी बहुत सहज। यह बाप ही समझा सकते हैं, कोई मनुष्य नहीं समझा सकते हैं। बरोबर इतनी छोटी चीज़ परन्तु नाम कितना बड़ा रखते हैं - ज्ञान का सागर। तुम कहते हो मनुष्य सृष्टि का बीज-रूप, चैतन्य है, सत है, अविनाशी है। कहते आते हैं परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं आता है - वह क्या वस्तु है? गुण तो बहुत अथाह गाते हैं। अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो। जान गये हो। आत्मायें तो सम्मुख ही हैं। सब आत्मायें ब्रदर्स ही हैं। कितनी छोटी-छोटी बिन्दी है, विचार करो। मूलवतन का हम जो चित्र बनाते हैं उसमें बिन्दू रूप ही दिखाते हैं। जैसे स्टॉर्स आकाश तत्व में ऊपर खड़े हैं, वैसे ही महतत्व में भी हम ऐसे स्टॉर माफिक अपने-अपने सेक्शन में खड़े होंगे। झाड़ छोटे-छोटे स्टॉर्स का बना हुआ है। वहाँ से फिर आत्मा आती है, शरीर धारण करती है - पार्ट बजाने लिए। कैसे नम्बरवार आत्मायें आती हैं - यह सारी बुद्धि चलनी चाहिए। हर एक धर्म का सेक्शन अलग होगा। बाप दृष्टान्त दे समझाते हैं। बनेन ट्री का भी मिसाल समझाते हैं। हिन्दी बहुत जगह चलती है, तो बच्चों को हिन्दी भाषा में समझाना पड़ेगा। परमपिता परमात्मा भी हिन्दी भाषा में ही समझाते हैं। आजकल जहाँ-तहाँ इसका प्रचार करते रहते हैं। एक भाषा होना तो मुश्किल है। कई समझते हैं परमपिता परमात्मा तो सब भाषायें जानते होंगे। परन्तु ऐसे तो हो न सके। अथाह, अनेकानेक भाषायें हैं। वह तो सीखनी पड़ती हैं। परमपिता परमात्मा को तो कुछ सीखना नहीं है। उन्होंने कल्प पहले जिस भाषा में समझाया है, उसमें ही समझाते हैं। बाकी भाषायें तो हरेक को पढ़नी होती हैं। बाप को पढ़नी होती हैं क्या? तुम देखते हो शुरू से हिन्दी चली है। सब हिन्दी सीखते जाते हैं। भारत में हिन्दी का प्रचार है। बाप भी हिन्दी में समझाते हैं फिर हर एक को अपनी भाषा में ट्रांसलेशन कर औरों को समझाना पड़े। बाप और बाप की रचना का परिचय सबको समझाना है। सभी का सद्गति दाता वह एक बाप है। यह सब जानेंगे बरोबर बाप आया हुआ है। बाप कहते हैं मैं भारत में ही आता हूँ। भारत हमारा बर्थ प्लेस है। शिव के मन्दिर, देवी-देवताओं के मन्दिर भी यहाँ हैं। देवी-देवताओं का राज्य भी भारत में होता है। बाप भी भारत में आते हैं। देवी-देवता धर्म की स्थापना यहाँ ही की है। तो मन्दिर भी जरूर यहाँ चाहिए। औरों के इतने मन्दिर नहीं होंगे। यहाँ तो बहुत मन्दिर हैं। घर-घर में लक्ष्मी-नारायण के चित्र, राधे-कृष्ण के चित्र, राम-सीता के चित्र रखते हैं क्योंकि भारत में होकर गये हैं। परन्तु उन्होंने कैसे राज्य लिया - वह भूल गये हैं। चैतन्य में राज्य करके गये हैं। लक्ष्मी-नारायण वैकुण्ठ के महाराजा-महारानी हैं। उन्हों को राज्य किये कितना समय हुआ? यह भी जानते हैं। मुख से कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था। तो क्राइस्ट को 2 हजार वर्ष हुए ना। तो जो ऐसे कहते हैं उन्हें उसी बात पर समझाना चाहिए। कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था अर्थात् स्वर्ग था। ऐसे नहीं कि क्राइस्ट भी उस स्वर्ग में था। पूछेंगे क्रिश्चियन लोग तब कहाँ थे? यानी उन्हों की आत्मायें कहाँ थी? इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन आदि की आत्मायें सब कहाँ थी? यह समझाना तो बड़ा सहज है। वह सब निर्वाणधाम वा निराकारी दुनिया में थी। निराकारी दुनिया भी है, दुनिया में जरूर बहुत रहने वाले होते हैं। सभी आत्माओं का निवास स्थान महतत्व रूपी निराकारी दुनिया में है। तुम बच्चों की बुद्धि में अभी यह है कि इस समय सब देवी-देवताओं की आत्मायें हाजिर हैं, तब बाप आये हैं, फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करते हैं। समझो, कोई धर्म आता है पहले तो बहुत छोटा होता है। छोटी-छोटी शाखायें निकल जब पूरी होती हैं तब यह तुम्हारा फाउन्डेशन भी पूरा होता है।
बीज और झाड़ का राज़ समझाना तो बहुत सहज है। मनुष्य सृष्टि का झाड़ बहुत धर्मों का है। समझते भी हैं फलाना धर्म था तो फलाना धर्म नहीं था। अभी छोटे-छोटे धर्म निकलते हैं। आगे तो नहीं थे ना। छोटी-छोटी शाखायें तो अभी निकली हैं। यह तुम बच्चे जानते हो और कोई नहीं जानते। आत्मा और परमात्मा का बिन्दी रूप नहीं जानते हैं। अभी बाबा ने तुम बच्चों को आकर समझाया है। तुम कहते हो बाबा हम आपके बच्चे हैं। कल्प पहले भी आपसे मिले थे। आपके बच्चे बने थे। बच्चे बनते हैं, बाप का वर्सा लेने। बाप कहते हैं तुम हमारे हो, गोया एडाप्ट किया, मुख वंशावली बने। तुम सब एडाप्टेड हो। बाबा भी ब्रह्मा मुख से कहते हैं - तुम आत्मायें हमारी हो। तुम आत्मायें भी कहती हो बाबा आपने जो ब्रह्मा तन में आकर अपना परिचय दिया है, हम आपके हैं। बाबा कहने से ही वर्से की खुशबू आनी चाहिए। बच्चे ही कह सकते। यह है प्रवृत्ति मार्ग। सन्यासियों के शिष्य बनते हैं, वह बाप-बच्चे नहीं बनते। वर्सा बाप से जायदाद का मिलता है। वह तो कहेंगे हमने गुरू किया है। गुरू से तो जायदाद का वर्सा नहीं मिलेगा। वह तो जायदाद को छोड़ जंगल में चले जाते हैं। वह जायदाद दे न सकें। वह हैं ही निवृत्ति मार्ग वाले। बाप तो जायदाद देते हैं, उनसे कुछ नहीं मिलता। जंगल में जायेंगे तो सन्यासी कहलायेंगे। तुम भी सन्यासी कहलाते हो। वह हैं हठयोगी सन्यासी। तुम राजयोगी सन्यासी हो। सन्यासी अर्थात् 5 विकारों का त्याग करने वाले। सो तो तुम त्याग करते हो और फिर पवित्र दुनिया में चले जाते हो। वह त्याग करते हैं परन्तु पवित्र दुनिया में नहीं जाते, पतित दुनिया में ही रहते हैं।
तो बाप समझाते हैं आत्मा कितनी छोटी है! इतनी छोटी वस्तु में कितनी ताकत है, अविनाशी भी है। वह बाप इस शरीर द्वारा समझाते हैं, तुम्हारी आत्मा समझती है। बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब कलियुग का अन्त है। तमोप्रधान पतित हो जाते हैं। मुझे याद भी तब करेंगे जब संगम होगा तब ही हम आयेंगे, तब ही विनाश के चिन्ह भी देखने में आयेंगे। सो तो बरोबर देखते हो। अभी तुमको समझ मिलती है, वह फिर औरों को देनी है। अभी कलियुग का अन्त जरूर है। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। महाभारत लड़ाई भी है। बरोबर, उस समय राजयोग भी सीखते थे। पाण्डवों ने विजय पाई, यादव-कौरव विनाश हुए। स्वर्ग में तो एक ही धर्म होता है। अनेक धर्म ख़लास हो जाते हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। बच्चे जानते हैं बाबा की इस राजयोग की शिक्षा से हम बरोबर सो देवी-देवता पद पाते हैं। तुम पुरुषार्थ करते हो हम तो नर से नारायण ही बनेंगे। बाप का वारिस जरूर बनेंगे, तख्तनशीन बनेंगे। फिर जितना जो पुरुषार्थ करेंगे उतना पद पायेंगे। पुरुषार्थी छिपे नहीं रहते, वह बड़े मस्त होते हैं। पहले-पहले प्रतिज्ञा करते हैं। बाप के जन्म बाद है रक्षाबन्धन। बाप को जानते तो पहले प्रतिज्ञा करनी है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है। दान तो पाचों ही विकारों का करना है परन्तु पहले-पहले मुख्य काम है, इनसे बड़ा ख़बरदार रहना है। भल स्त्री भी साथ हो, गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना मेहनत का काम है। सर्वशक्तिमान बाप को याद करने और उनकी श्रीमत पर चलने से ताकत मिलती है। बाप का फ़रमान है - साथ में रहते, इकट्ठे रहते पवित्र रहना है। आगे तो स्त्री पुरूष इकट्ठे रहने से आग लगती थी। बाप कहते हैं इकट्ठे रहो परन्तु आग न लगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दिल से बाप को याद कर जायदाद की खुशी में रहना है। पूरा पावन जरूर बनना है।
2) विचार करना है - ''आत्मा कितनी छोटी है और उसमें कितना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है'', बिन्दू बन बिन्दू बाप की याद में रहना है।
वरदान:-बिन्दू की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगाने वाले सहजयोगी भव
सबसे सरल मात्रा बिन्दी है। बापदादा सिर्फ बिन्दी का हिसाब बताते हैं। स्वयं भी बिन्दु रूप बनो, याद भी बिन्दु को करो और ड्रामा के हर दृश्य को जानने करने के बाद बिन्दु की मात्रा लगा दो। इस बिन्दु की मात्रा के महत्व को जान बीती को बिन्दी लगा दो, बिन्दू बन जाओ तो सहजयोगी बन जायेंगे। वैसे भी अब बिन्दी बन घर जाना है। घर में सब बिन्दू रूप में रहते जहाँ संकल्प, कर्म, संस्कार सब मर्ज हैं।
स्लोगन:-कर्मयोगी बन कर्म करते भी उपराम स्थिति में रहना अर्थात् उड़ता पंछी बनना।
06/09/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, stop remembering your own bodies and everyone else and recognise the Father accurately as He is and what He is and consider yourselves to be points and remember the Father in the form of a point.
Question:Which knowledge do you receive only from the Father at this time, knowledge that no one else can give you?
Answer:You live together as husband and wife, look after your household and also remain pure. The Father gives you this knowledge at this time. No one else can give you this knowledge. You have to donate the five vices, but the main one is lust which you have to conquer completely. Only by remembering the Almighty Authority and following His directions do you receive strength for this.
Song:
Have mercy on those who are unhappy.
Om Shanti
That Father sits here and explains to you children. Who is that Father? You children, in front of whom the Father is personally sitting, know this. The intellects’ yoga of you children is with the unlimited Father. You have to break your intellect’s yoga away from limited fathers. You have to forget all the friends and relatives, your own bodies and bodily relations of this whole world. You receive this direction from the Father. The Father never forgets the children. The Father says: Even on the path of devotion, I have been looking after you devotees. However, according to the drama, you children had to forget this. It is Maya that makes you forget this. Ravan also makes you forget that you are souls and makes you body conscious. This is in the parts of you children. It isn't that you simply forget the Father there. You also forget to remember the Father, who He is and what He is and also the knowledge of Him giving you happiness. You now know that the Father comes here every cycle. Your intellects also have to imbibe what Baba is like. People have made large images of Shivalingams. The pictures of all the others are fine, just as the picture of Brahma, Vishnu and Shankar is fine and they are worshipped in the temples. However, they forget the name, form, place and time of the Supreme Father, the Supreme Soul. They even forget His image. It has been explained to you children that a soul is a point. It is a point, like a star; it resides in the centre of the forehead. You children know that you are souls. The place of residence of myself, the soul, is in the body, in the centre of the forehead. Everyone would accept this. It is very subtle, like a point. You also know that the Supreme Father, the Supreme Soul, would also be a point in the same way. He Himself comes and explains to you: I too am a point. However, people have made His form big, like a jyotilingam, in the same way as they have made a big form of Buddha. On the path of devotion, they have portrayed the Pandavas with very tall bodies. On the path of devotion, they have big images, whereas on the path of knowledge, they have smaller things. God says: I am a point. In some places they keep large images of a lingam. How would a point be worshipped? It would definitely be something large that is worshipped. The form of a point has now been explained to you. People do not understand these things. You children also did not have this understanding previously. Now that your stage has matured, you understand that this is accurate. If Baba had explained this at the beginning, we would not have understood, because a point is really nothing. We would not have accepted that. They speak of the Shivalingam from time immemorial, so what is that? The Father explains: That too is wrong. I, your Father, am a point. You too have the form of a point, but they create large Shivalingams for worshipping etc. They make the form of souls like saligrams, but they are not like that. A soul cannot be that big. It is very difficult to see a soul. These are very deep things and have to be understood. A soul too is the form of a point. The part of 84 births is recorded in such a tiny soul. One second cannot be the same as the next. The whole part of 84 births is recorded in such a tiny soul. These things are nature. The whole part is in the point. In other plays, the whole roles remain in the intellects of those who are to play their parts. Those are small roles, but you have to understand this role of 84 births very well and you also need clever ways of explaining to others. Each soul is such a tiny point. It is so tiny and yet it is so powerful. He is called the Supreme Father, the Supreme Soul. You souls become master almighty authorities by having yoga with Him. You conquer Maya and then rule the unshakeable, immovable, peaceful and happy kingdom. These matters have to be understood. This is your study. It is very easy. Only the Father can explain this; no human being can explain it. He is truly such a tiny thing, but He is given such a big name: the Ocean of Knowledge. You say that He is the Seed of the human world tree. He is Living, He is the Truth, He is imperishable. People have been saying this but it doesn't enter anyone's intellect what He is. They praise His virtues a great deal. You children are now sitting personally in front of the Father. You know that souls are personally in front of Him. All souls are brothers. Just think about it: souls are such tiny points. When we draw a picture of the incorporeal world, we show the form of points. Just as stars hang in the sky, in the same way we souls will be hanging in our own section in the great element. The tree has been made up of tiny stars. Souls come from there and adopt bodies to play their parts. Your intellects should work on how souls come down, numberwise. The section of each religion would be separate. The Father explains to you with examples. He also explains to you the example of the banyan tree. The Hindi language is used in many places and so children have to explain in that language. The Supreme Father, the Supreme Soul, also explains using the Hindi language. Nowadays, they continue to spread this widely everywhere. It is difficult for there to be just one language. Some people think that the Supreme Father, the Supreme Soul, knows all languages, but it cannot be like that. There are so many different languages. They would have to be learnt. The Supreme Father, the Supreme Soul, doesn't need to learn anything. He explains in the same language that He used in the previous cycle. However, everyone has to study their own language. Would the Father have to learn it? You can see that the Hindi language has been used from the beginning. Everyone continues to learn Hindi. The Hindi language is widely used in Bharat. The Father also explains using Hindi and then everyone has to translate it into their own language and explain to others. The introduction of the Father and His creation has to be explained to everyone. That one Father is the Bestower of Salvation for All. Everyone will come to know that the Father truly has come. The Father says: I only come in Bharat. Bharat is My birthplace. The temples to Shiva and the temples to the deities are also here (in Bharat). The kingdom of the deities is also in Bharat. The Father too comes in Bharat. The establishment of the deity religion takes place here. Therefore, the temples also definitely need to be here. Others wouldn't have as many temples. Here, there are many temples. They have pictures of Lakshmi and Narayan, Radhe and Krishna, Rama and Sita in every home because they existed in Bharat. However, they have forgotten how they claimed the kingdom. They ruled the kingdom in the living form. Lakshmi and Narayan are the empress and emperor of Paradise. You also know how long it has been since they ruled the kingdom. You say: Three thousand years before Christ, there was the kingdom of deities. So, it is now 2000 years since Christ existed. Therefore, explain these particular points to those who say this. They say that there was the kingdom of deities 3000 years before Christ, that is, there was heaven. They don't say that Christ was in that heaven. You should ask: Where were the Christians at that time? That is, where were their souls? Where were the souls of all of those of Islam, the Buddhists and the Christians? It is very easy to explain these things. They were all in the land of nirvana, the incorporeal world. There is the incorporeal world. There must definitely be many living in the world. The place of residence of all souls is the incorporeal world, the great element. It is now in the intellects of you children that the souls of all the deities are present here at this time. This is when the Father comes and once again carries out establishment of the deity religion. For example, when a new religion begins, it is very small at first. When the small branches emerge and come to an end, your foundation will also be complete. It is very easy to explain the secret of the Seed and the tree. The tree of the human world is that of many religions. They understand that when such-and-such a religion existed, such-and-such a religion didn't exist. Now, smaller religions are emerging; they didn't exist previously. The small branches have emerged now. Only you children know this. No one else knows it. They don't know the point-form of souls and the Supreme Soul. Baba has now come and explained to you children. You say: Baba, we are Your children. We also met you in the previous cycle; we became Your children. You become the children to claim the Father's inheritance. The Father says: You belong to Me, that is, you have become the mouth-born adopted creation. All of you are adopted. Baba says through the mouth of Brahma: You souls are Mine. You souls also say: Baba, You have entered the body of Brahma and given us Your introduction, and so we belong to You. As soon as you say, “Baba”, you should receive the fragrance of the inheritance. Only the children can say this. This is the family path. Sannyasis have disciples; they are not father and children. Only from their father is the inheritance of property received. Those people say that they have adopted a guru. The inheritance of property cannot be received from a guru. They renounce their property and go away to the forests. They cannot give any property. They belong to the path of isolation. The Father gives you property, whereas you don't receive anything from them. When they go to a forest, they are called sannyasis. You too are called sannyasis. They are hatha yoga sannyasis whereas you are Raja Yogi sannyasis. ‘Sannyasis’, means those who renounce the five vices. You renounce them and then go to the pure world. They have renunciation, but they don't go to the pure world, they only remain in the impure world. The Father explains: A soul is so tiny. Such a tiny thing has so much strength. It is also imperishable. That Father explains through this body. You souls understand it. The Father says: I come when it is the end of the iron age and everyone is tamopradhan and impure. It is then that you remember Me. I come when it is the confluence age. It is then that the signs of destruction are visible. You truly can see them. You have now received understanding which you have to give to others. It is now definitely the end of the iron age. There are also the Yadavas, Kauravas and Pandavas. There is also the Mahabharat War. Truly, they studied Raja Yoga at that time. The Pandavas gained victory and the Yadavas and Kauravas were destroyed. There is just the one religion in heaven. All the innumerable religions end. The Father sits here and explains this. You children know that we claim the deity status from the Father through these teachings of Raja Yoga. Definitely you make effort to become Narayan from an ordinary man: We will definitely become the Father's heirs and be seated on the heart-throne. Then you will claim a status according to how much effort you made. Effort-makers cannot remain hidden; they are very intoxicated. First of all, you make a promise. After the Father's birth, there is the festival of Raksha Bandhan. So, having come to know the Father, you have to make a promise to Him. The Father says: Lust is the greatest enemy. All the five vices have to be donated. The main one is lust. You have to remain very cautious about it. Although you live with your wife and family, to remain pure is something that requires effort. By remembering and following the directions of the Almighty Authority Father, you receive strength. The Father's orders are: While living together, you have to remain pure. Previously, when husband and wife lived together, there used to be fire. The Father says: Live together, but there must be no fire. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Keep the Father in your heart and maintain the happiness of receiving the property. You definitely have to become completely pure.
2. Just think about how tiny a soul is and how it has such an imperishable part recorded in it. Become a point and stay in remembrance of the Father, a point.
Blessing:
May you become an easy yogi by putting a full stop to the past knowing the importance of the full stop.
The easiest punctuation is the full stop. BapDada simply tells us about the account of the full stop. Become a point yourself, remember the Point and, knowing about every scene of the drama, apply a full stop. Know the importance of the full stop and put a full stop to the past and become a point and you will become an easy yogi. In any case, we now have to become points and return home. Everyone resides in the home in the point form where thoughts, actions and sanskars are all merged.
Slogan:Be a karma yogi and while performing actions, remain beyond, that is, become a flying bird.
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