Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali - 04-sep-2018 )
04-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - ज्ञान को अग्नि नहीं कहा जाता, योग अग्नि है, योग में रहने से ही तुम्हारे पाप भस्म होंगे, तुम स्वच्छ गोरा बन जायेंगे''
 
प्रश्नः-किन बच्चों की बुद्धि रूपी तरकस में ज्ञान बाण सदा भरे रहते हैं?
उत्तर:-जो रोज़ पढ़ाई अच्छी रीति पढ़ते और पढ़ाते हैं उनकी बुद्धि रूपी तरकस में ज्ञान वाण भरे रहते हैं। वही मात-पिता के समान कांटों को कली और कलियों को फूल बनाने की सेवा कर सकते हैं। जो अच्छी तरह पढ़ते और पढ़ाते हैं वही ऊंच पद पाते हैं।
 
गीत:-कौन आया मेरे मन के द्वारे.......  ओम् शान्ति।
 
बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ तो समझाया हुआ है। ओम् माना अहम् आत्मा। अहम् आत्मा कहती है मेरा स्वधर्म शान्त है और मैं शान्ति देश में रहने वाली हूँ। यहाँ यह आरगन्स मिलता है तो टॉकी बनती हूँ। इनका (शरीर का) आधार ले हम आत्मा कर्म करती हैं। कर्म तो कर्मेन्द्रियों से ही करेंगे ना। आत्मा कहती है यह कौन है, कहाँ से आया है? उनको हम याद करते हैं फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं क्योंकि इस बाप की याद में कभी बैठे ही नहीं हैं। और सतसंगों में तो सामने सन्यासी, विद्वान आदि बैठे होते हैं। वह वेद, उपनिषद, रामायण आदि ही सुनायेंगे। आत्मा की बुद्धि में शास्त्र ही याद रहते हैं। गुरू को देखने लग जाते हैं। यहाँ तो तुम जानते हो - परमपिता परमात्मा आते हैं। है वह भी आत्मा, परन्तु वह सुप्रीम आत्मा है जो आकर इनमें प्रवेश करते हैं। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा इनमें बैठ हमको सहज राजयोग सिखलाते हैं। तुम्हारी बुद्धि शास्त्रों तरफ वा देह तरफ नहीं जाती। तुमको अपने को अशरीरी आत्मा निश्चय करना है। आत्मा है फर्स्ट। आत्मा के आधार से ही शरीर चलता है। आत्मा अविनाशी है। हम आत्मा बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं। बाप अपना और मनुष्य सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का परिचय बैठ देते हैं। उनको ही ज्ञान का सागर कहा जाता है। ईश्वर और उनकी रचना का ज्ञान और कोई में नहीं है। ऋषि-मुनि आदि सब बेअन्त, बेअन्त कहते आये। रचता और रचना बेअन्त है, हम नहीं जानते। कहा जाता है फादर शोज़ सन। बाप अपना परिचय बच्चों को देंगे। बच्चे बाप का परिचय औरों को देंगे। मनुष्य तो उस बाप को जानने कारण कह देते सर्वव्यापी है। अब तुम बच्चों की दिल में बाप की याद आई है। ऐसे नहीं, तुम्हारे में बाप ने प्रवेश किया है। नहीं, बाप की पहचान मिली है। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो। ऐसे नहीं कहते मैं सर्वव्यापी हूँ। नहीं, मुझे याद करो तो योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। बाप तो सर्वशक्तिमान है ना। उनको याद करने से विकर्म विनाश होते हैं। ज्ञान को अग्नि नहीं कहेंगे। योग को अग्नि कहा जाता है जिससे पाप भस्म होते हैं। और कोई की याद से पाप भस्म नहीं होते हैं।
 
यह खेल सारा भारत पर बना हुआ है। भारत हीरे जैसा था अन्त में फिर भारत कौड़ी जैसा बनता है। भारत में हीरे जवाहरों के महल बनते हैं। सोमनाथ के मन्दिर में कितनी मिलकियत थी। भारत जैसा सालवेन्ट कोई धर्म वाले बन नहीं सकते। भारतवासी महान् सुखी थे। तुम बच्चों को अब याद आई है, 5 हजार वर्ष की बात है अथवा क्राइस्ट से तीन हजार वर्ष पहले तुम भारतवासी कितने साहूकार थे। अब बिल्कुल इनसालवेन्ट हैं। गवर्मेन्ट प्रजा से कर्जा लेती रहती है। यह बेहद का बाप बैठ समझाते हैं।
 
तुम श्री श्री शिवबाबा की मत पर चलने से स्वर्ग के श्रेष्ठ देवी-देवता बनेंगे। यहाँ तुम आये हो मनुष्य से देवता बनने। एकोअंकार, सत नाम, कर्ता पुरुष..... यह महिमा सारी उस एक की ही है। उनको कभी काल नहीं खाता। वही मनुष्य से देवता बनाते हैं। मूत पलीती कपड़ धोते हैं। तुम आत्माओं को योग और ज्ञान से सफेद गोरा बनाते हैं। तुमको लक्ष्य मिलता है कि शिवबाबा को याद करो, इससे तुम बहुत गोरे बन जाते हो। आत्मा और शरीर दोनों सुन्दर बन जायेंगे। असुल में तुम्हारा नाम श्याम सुन्दर है। सतयुग में शरीर और आत्मा दोनों सुन्दर हैं। कलियुग में श्याम बनते हो। सुन्दर से श्याम फिर श्याम से सुन्दर बनते हो।
 
तुम जानते हो यह कोई गुरू गोसाई नहीं है। यह तो परमधाम में रहने वाला परमप्रिय बाबा है। कहते हैं जब धर्म ग्लानि हो जाती है, भारतवासी धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन जाते हैं तब मैं आता हूँ। यह भी ड्रामा का खेल है। सालवेन्ट और इनसालवेंट बनते हैं। बाप को कहा जाता है - नॉलेजफुल ज्ञान का सागर। जब भक्ति पूरी हो तब तो ज्ञान सागर आये। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया अज्ञान अन्धेर विनाश। इस समय सब कुम्भकरण वाली अज्ञान नींद में सोये हुए हैं। कहते हैं गॉड फादर परन्तु फादर को जानते ही नहीं। बाप आकर समझाते हैं - अब अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा ही पतित बनती है फिर पावन बनती है। सतयुग में पावन थे फिर 84 जन्म ले पतित बने हैं। यह भी पहले नहीं जानते थे, अब जानते हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। सब बातों का अनुभवी है। जरूर अनुभवी तन चाहिए ना। गुरू आदि किये हुए हैं। कृष्ण को थोड़ेही गुरू-गोसाई करने पड़ते। यह भूल-भूलैया का खेल है। अपनी कल्पनायें बैठ बनाई हैं। तुम ब्राह्मण कुल भूषण ऊंच हो। तुम हो ईश्वरीय सन्तान। यहाँ तुम यज्ञ की सच्ची-सच्ची सेवा करते हो। वास्तव में तुम हो रूहानी सोशल वर्कर, वह हैं जिस्मानी।
 
रूहों को ही बाप पढ़ाते हैं। आत्मा पढ़ती है ना। आत्मा सुनती है। आत्मा कहती है मैं बैरिस्टर बना हूँ.. अभी आत्मा कहती है हम सो नर से नारायण बन रहा हूँ। बाबा बनाते हैं। वह बेहद का बाबा, सबका बाबा है। वह हमको राजयोग सिखलाते हैं। वह है निराकार। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भगवान् नहीं कहेंगे। वह तो देवतायें हैं। ब्रह्मा देवताए नम: कहा जाता है ना। यह साकार जब सूक्ष्मवतनवासी अव्यक्त बनते हैं तब फिर इन्हें देवता कहेंगे। तो यह सब समझने और समझाने की बातें हैं। दिन-प्रतिदिन गुह्य ते गुह्य सुनाते हैं तो वह भी सुनना चाहिए। अगर कहते हैं फुर्सत नहीं, सुनेंगे नहीं तो नये-नये ज्ञान बाण बुद्धि रूपी तरकस में कैसे भरेंगे। जो अच्छी रीति पढ़कर पढ़ाते हैं, वही ऊंच पद पायेंगे। बाबा-मम्मा भी पढ़कर और पढ़ाते हैं ना। तो जो कांटों को कलियां और फूल बनाते रहेंगे, वही ऊंच पद पायेंगे। यह तो बहुत सहज है। इसमें डरना भी नहीं है। बहुत लोग कहते हैं यह तो बड़ा मुश्किल है, असम्भव है। अरे, तब यह लक्ष्मी-नारायण कैसे बने! कोई को पता नहीं है। बाप कहते हैं मैंने इसमें प्रवेश किया है। इसने पूरे 84 जन्म लिये हैं। यह नहीं जानता है, मैं बताता हूँ - तुम कृष्णपुरी के मालिक थे। अभी वह पास्ट हो गया। अभी वह जैसे स्वप्न हो गया। जैसे नेहरू मर गया, वह भी स्वप्न हो गया, जो एक्ट की वह पास्ट हो गयी। तुम ब्रह्माण्ड, मूलवतन, सूक्ष्मवतन को, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की बायोग्राफी को जानते हो। शिवबाबा, लक्ष्मी-नारायण आदि सबकी बायोग्राफी को जानते हो। तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है। ब्राह्मण वर्ण है सबसे ऊंचा। चोटी ब्राह्मणों की निशानी है। ब्राह्मणों से ऊपर है शिवबाबा। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। तुम यह चक्र लगाते हो। हम सो, सो हम - यह तुम्हारे से ही लगता है। हम सो शूद्र थे, फिर हम सो ब्राह्मण बने हैं, फिर हम सो देवता बनेंगे। कितनी सहज बात है! बाकी हम आत्मा सो परमात्मा कहना, बाप को सर्वव्यापी कहना, यह तो बाप की ग्लानी है। अब बाप आये हैं, बाप समझाते हैं यह रावण तुम्हारा सबसे जास्ती पुराना शत्रु है। जिसने तुमको ऐसा पतित कौड़ी जैसा बनाया है। माया जीते जगतजीत कहा जाता है। माया बड़े तूफान लाती है, बहुत हैरान करती है। इसमें डरना नहीं है। ऐसे नहीं, बाबा कृपा करो। बाप कहेंगे तुम पढ़कर अपने पर आपेही कृपा करो। ऐसे नहीं, हमारी कृपा से आप चिरन्जीवी बन जायेंगे। बड़ी आयु वाले तो देवतायें ही होते हैं। तुम यहाँ स्कूल में बैठे हो। तुम कहेंगे हम ईश्वरीय कॉलेज में जाते हैं। स्वर्ग का रचयिता जरूर देवी-देवता ही बनायेंगे। भगवानुवाच - तुमको अपना और सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ। यह दुनिया का जो चक्र है, उनको समझना है। इस स्वदर्शन चक्र को चलाने से तुम चक्रवर्ती राजा-रानी बनेंगे। पवित्र तो जरूर बनना है। बाप से प्रतिज्ञा करनी है। नहीं तो काल के मुँह में चले जायेंगे, फिर इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। काम चिता से काले बन पड़ेंगे। ज्ञान चिता पर बैठने से तुम गोरे बनते हो। बच्चों को गोरा बनाना, यह बाप का ही काम है, इसके लिए जरूर संगम पर ही आना पड़े। यह है सबसे उत्तम युग, जबकि आत्मा और परमात्मा का मेला लगता है। निराकार बाप ने इस शरीर का लोन लिया है क्योंकि उनको अपना शरीर तो है नहीं। यह ज्ञान चक्षु सिवाए उस एक ज्ञानेश्वर के और कोई खोल सके। पावन आत्मायें जो भी आती हैं वह फिर पतित बन पड़ती हैं। सतो, रजो, तमो में तो सबको आना ही है। इस समय सब पतित हैं और सब यहाँ ही हैं। वापिस कोई भी गये नहीं हैं। अब तुम बच्चे विश्व के मालिक बन रहे हो। शिवबाबा कहते हैं मैं तो निष्कामी हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। मुझे फल की कोई इच्छा नहीं। तो निष्कामी हुआ ना।
 
बाबा ने समझाया है - यहाँ अपने को आत्मा समझ अशरीरी होकर बैठो। अभी हम वापिस जाते हैं फिर स्वर्ग में राज्य करने आयेंगे। यह शरीर छोड़ अशरीरी बनकर जाना है। शरीर पुराना हुआ है। अब फिर हम वापिस घर जाते हैं। कल्प-कल्प हम राज्य लेते हैं फिर गँवाते हैं। बाबा तो सुख-दु: नहीं देते हैं। वह है ही सदैव सुख दाता। बाबा ने समझाया है यह विनाश ज्वाला इस रूद्र ज्ञान यज्ञ से प्रज्जवलित हुई है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है। जिस चीज़ का साक्षात्कार किया है वह फिर इन आंखों से भी देखेंगे। जो दिव्य दृष्टि से देखा है फिर प्रैक्टिकल में तुम जाकर स्वर्ग में विराजमान होंगे। अभी तुम कृष्णपुरी में जाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। भगवान् आते हैं भक्तों का कल्याण करने, गति सद्गति करने। तो तुम भगवान् द्वारा स्वर्ग का वर्सा ले रहे हो। ज्ञान और भक्ति दो बातें हैं। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई पढ़कर स्वयं पर आपेही कृपा करनी है। बाप से कृपा मांगनी नहीं है। श्री श्री की श्रीमत पर चलते रहना है।
2) स्वदर्शन चक्रधारी बन मायाजीत जगतजीत बनना है। माया से डरना वा घबराना नहीं है। अशरीरी होने का अभ्यास करना है।
 
वरदान:-तीर्थ स्थान की स्मृति द्वारा सर्व पापों से मुक्त होने वाले पुण्य आत्मा भव
 
मधुबन महान तीर्थ है। भक्ति मार्ग में मानते हैं कि तीर्थ स्थान पर जाने से पाप खत्म हो जाते हैं लेकिन इसका प्रैक्टिकल अनुभव तुम बच्चे अभी करते हो कि इस महान तीर्थ स्थान पर आने से पुण्य आत्मा बन जाते हैं। यह तीर्थ स्थान की स्मृति अनेक समस्याओं से पार कर देती है। यह स्मृति भी एक ताबीज़ का काम करती है। कोई भी बात हो यहाँ के वातावरण को याद करने से सुख-शान्ति के झूले में झूलने लगेंगे। तो इस धरनी पर आना भी बहुत बड़ा भाग्य है।
 
स्लोगन:-रमता योगी बनना है तो नॉलेज और अनुभव की डबल अथॉरिटी वाले बनो।
 
 
04/09/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, knowledge is not called a fire. Yoga is said to be the fire. It is only by staying in yoga that your sins are burnt away and you become clean and beautiful.
 
Question:Which children's quivers (arrow bag) of the intellect are always filled with the arrows of knowledge?
 
Answer:The quivers of the intellect of those who study very well every day and also teach others are always full of the arrows of knowledge. They are the only ones who can serve in the same way as the Mother and Father and change thorns into buds and buds into flowers. Those who study well and also teach others are the ones who claim a high status.
 
Song:Who has come to the door of my mind with the sound of ankle bells? 
Om Shanti
 
The meaning of ‘Om shanti’ has been explained to you children. ‘Om’ means I am a soul. I, the soul, say: My original religion is peace and I am a resident of the land of peace. I receive these organs here and so I become ‘talkie’. I, the soul, act by taking the support of this (the body). Actions have to be performed through the physical organs. The soul asks: Who is that and where has He come from? We remember Him and then we repeatedly forget Him because we don’t sit in remembrance of that Father. In other spiritual gatherings, sannyasis and scholars etc. sit in front of you. They would only relate the Vedas, the Upanishads and the Ramayana etc. Intellects of souls would only remember the scriptures. They would start looking at the guru. Here, you know that the Supreme Father, the Supreme Soul, comes. He too is a soul, but He is the Supreme Soul and He comes and enters this one. You know that the Supreme Father, the Supreme Soul, sits in this one and teaches us easy Raja Yoga. Your intellects don’t go towards the scriptures or towards bodies. You have to have the faith that you are bodiless souls. The soul is first. A body functions on the basis of a soul. Souls are imperishable. We souls are claiming our inheritance from our unlimited Father. The Father sits here and gives you His own introduction and the introduction of the beginning, the middle and the end of the human world. He alone is called the Ocean of Knowledge. No one else has the knowledge of God or His creation. Rishis and munis etc. have been saying that God is infinite. They say that the Creator and creation are infinite and that they do not know them. It is said: Father shows son. The Father would give His introduction to His children. Children would give the Father's introduction to others. Because of not knowing that Father, people say that He is omnipresent. The remembrance of the Father has entered the hearts of you children. It isn't that the Father has entered you. No, you have received the Father's introduction. The Father says: Now remember Me. He doesn't say that He is omnipresent; no. Remember Me and your sins will be absolved by the fire of yoga. The Father is the Almighty Authority. By remembering Him, your sins are absolved. Knowledge is not called a fire. Yoga is said to be a fire in which your sins are burnt away. Sins cannot be burnt away by having the remembrance of anyone else. This whole play is based on Bharat: Bharat was like a diamond and Bharat by the end becomes like a shell. Palaces of diamonds and jewels are built in Bharat. There was so much wealth in the Somnath Temple. None of those of other religions can become as solvent as Bharat was. The people of Bharat were very happy. You children have now remembered everything. It is a matter of 5000 years, that is, you people of Bharat were so wealthy 3000 years before Christ. Now you are completely insolvent. The Government continues to take loans from people. The unlimited Father sits here and explains this. By following the directions of Shri Shri Shiv Baba, you will become elevated deities of heaven. You have come here to change from human beings into deities. The praise ‘Ek Omkar, Sat Naam Karta Purush’ (The Incorporeal, the Truth who does everything is only One) belongs to just that One. Death never comes to Him. He is the One who changes human beings into deities. He washes the dirty, impure clothes. He makes you souls fair and beautiful with knowledge and yoga. You receive the aim to remember Shiv Baba and you become very beautiful through this. Both the soul and the body will become beautiful. In fact, Shyam Sundar is your name. In the golden age, both the soul and the body are beautiful. In the iron age, you become ugly. You become ugly from beautiful and then beautiful from ugly. You know that that One is not a guru. That One is our supremely beloved Baba who resides in the supreme abode. He says: When there is defamation of religion and the people of Bharat become corrupt in their religion and action, it is then that I come. This too is the playing of the drama. You become solvent and insolvent. The Father is called knowledge-full, the Ocean of Knowledge. The Ocean of Knowledge can only come when devotion comes to an end. When the Satguru gives the ointment of knowledge, the darkness of ignorance is dispelled. At this time, all are sleeping in the sleep of ignorance, the sleep of Kumbhakarna. They say: “O God, the Father!” but they don't know the Father. The Father comes and explains: Now have the faith that you are souls. Souls become impure and then pure. In the golden age, souls are pure and then they take 84 births and become impure. This one didn't know it before, but he now knows that this is the last of his many births. He has experienced everything. Surely, an experienced body is needed. He has had many gurus etc. Krishna doesn't need to adopt gurus etc. This is a maze. They have sat and made up stories with their imagination. You are the elevated decoration of the Brahmin clan. You are God’s children. You are doing true service of the yagya here. In fact, you are spiritual social workers whereas those people are physical. The Father only teaches the spirits. It is the soul that studies, the soul that listens. The soul says: I have become a barrister. The soul says: I am now once again becoming Narayan from an ordinary man. Baba is making me that. That unlimited Baba is everyone's Baba. He is teaching us Raja Yoga. He is incorporeal. Brahma, Vishnu and Shankar cannot be called God; they are deities. It is said: Salutations to the deity Brahma. When this corporeal one becomes avyakt, a resident of the subtle region, he is called a deity. All of these matters have to be understood and explained. Day by day, you are told deep things and so you should listen to them. If you say that you don't have time and you don't listen to them, how would the quiver of your intellect be filled with new arrows of knowledge? Those who study very well and also teach others will claim a high status. Baba and Mama also study and teach others. Those who continue to change thorns into buds and then flowers are the ones who claim a high status. This is very easy. You mustn't be afraid of this. Many people say that this is very difficult or that it is impossible. Ah, but how did they become Lakshmi and Narayan? No one knows this. The Father says: I have entered this one. This one has taken the full 84 births. This one didn't know, but I am telling him that he was a master of the land of Krishna. That is now the past. It is as though that was a dream, just as when Nehru died; that too became a dream. Whatever act was enacted has become the past. You know Brahmand, the incorporeal world, the subtle region and the biography of Brahma, Vishnu and Shankar. You know the biography of Shiv Baba, Lakshmi and Narayan and everyone else. You have all the knowledge in your intellects. The Brahmin clan is the highest of all. The topknot is a symbol of Brahmins. Shiv Baba is higher than Brahmins. You go through the cycle as Brahmins, deities, warriors, merchants and shudras. “Hum so, so hum” (That which I was, so I will become) applies to you. We were shudras, then we became Brahmins and then we will become deities. These are such easy matters. However, to say that I, the soul, am the Supreme Soul and to call the Father omnipresent is defamation of the Father. The Father has now come and He explains: Ravan is your oldest enemy of all and he has made you impure, worth shells. It is said: Those who conquer Maya conquer the world. Maya brings many storms and troubles you a lot. You mustn't be afraid of this. You mustn't say: Baba, have mercy! The Father would say: Just study and have mercy on yourself. Don't think that you will have a long life through My mercy. It is only the deities who have long lives. You are sitting here in school. You would say that you are going to a Godly college. The Creator of heaven would definitely make you into deities. God speaks: I explain to you the secrets of Myself and the beginning, the middle and the end of the whole world. You have to understand the cycle of the world. By spinning the discus of self-realisation, you will become kings and queens, rulers of the globe. You definitely have to become pure. Make a promise to the Father. Otherwise, you will enter the jaws of death. You won't then be able to claim such a high status. You have become ugly by sitting on the pyre of lust. By sitting on the pyre of knowledge you become beautiful. It is the task of the Father alone to make you children beautiful. He definitely has to come at the confluence age for this. This is the most elevated age when the meeting between souls and the Supreme Soul takes place. The incorporeal Father has taken this body on loan because He doesn't have a body of His own. No one, apart from that God of Knowledge (Gyaneshwar) can open this eye of knowledge. All the pure souls who come then become impure. Everyone has to go through the stages of sato, rajo and tamo. At this time, all are impure and all are here. No one has gone back home. You children are now becoming masters of the world. Shiv Baba says: I am altruistic. I make you into the masters of the world. I have no desire for any fruit and so I am altruistic. Baba has explained: Consider yourselves to be souls and sit here in the bodiless stage. We are now going back home and we will then come back to rule in the golden age. We will shed our bodies, become bodiless and return home. The bodies have become old. We are now going back home. We claim the kingdom every cycle and then lose it. Baba doesn't give happiness and sorrow. He is always the Bestower of Happiness. Baba has explained that the flames of destruction emerged from this sacrificial fire of the knowledge of Rudra. Some children have also had visions. You will then see with those eyes the things that you have had a vision of. You will see in a practical way whatever you have seen in a divine vision. You will then become present in heaven. You are now making effort to go to the land of Krishna. God comes to benefit the devotees and to give you liberation and salvation. So, you are receiving the inheritance of heaven from God. There are the two things: knowledge and devotion. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Study knowledge and have mercy on yourself. Don't ask the Father for mercy. Continue to follow the shrimat of the doubly-elevated One (Shri Shri).
 
2. Become a spinner of the discus of self-realisation and a conqueror of Maya and a conqueror of the world. Don't be afraid of or confused about Maya. Practise being bodiless.
 
Blessing:May you become a charitable soul and become freed from all your sins by having the awareness of the pilgrimage place.
 
Madhuban is the greatest pilgrimage place. On the path of devotion, people believe that by going to a pilgrimage place their sins are absolved. However, you children have the practical experience of this now. You come to this great pilgrimage place and you become charitable souls. This awareness of the pilgrimage place takes you beyond all problems. This awareness works like a lucky charm. Whenever any situation arises, remember the atmosphere here and you will begin to swing in the swing of happiness of peace. So, to come to this land is also a huge fortune.
 

Slogan:In order to become an entertaining yogi, become one with the double authority of knowledge and experience.

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