Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-11-28 23:34:50
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
A |
Article Rating
|
Participate in Rating,
See Result
|
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- ) |
B | Quiz( Create, Edit, Delete ) |
Participate in Quiz,
See Result
|
Created/ Edited Time:- 16-10-2018 21:33:18 |
C | Survey( Create, Edit, Delete) | Participate in Survey, See Result | Created Time:- |
D |
Page No | Photo | Page Name | Count of Characters | Date of Last Creation/Edit |
---|---|---|---|---|
1 | Murali -1st Sep 2018 | 129655 | 2018-10-16 21:33:18 | |
2 | Murali - 02-Sep 2018 | 121564 | 2018-10-16 21:33:18 | |
3 | Murali - 03-Sep-2018 | 120034 | 2018-10-16 21:33:18 | |
4 | Murali - 04-sep-2018 | 110516 | 2018-10-16 21:33:19 | |
5 | Murali - 05-Sep - 2018 | 122260 | 2018-10-16 21:33:19 | |
6 | Murali - 06-Sep - 2018 | 125580 | 2018-10-16 21:33:19 | |
7 | Murali 07-Sep -2018 | 128005 | 2018-10-16 21:33:19 | |
8 | Murali 08-Sep-2018 | 132959 | 2018-10-16 21:33:19 | |
9 | Murali - 09 - Sep - 2018 | 127132 | 2018-10-16 21:33:19 | |
10 | Murali - 10-Sep - 2018 | 130321 | 2018-10-16 21:33:19 | |
11 | Murali - 11th - Sep 2018 | 129133 | 2018-10-16 21:33:19 | |
12 | Murali - 12 - Sep -2018 | 126761 | 2018-10-16 21:33:19 | |
13 | Murali - 13th Sep - 2018 | 130419 | 2018-10-16 21:33:19 | |
14 | Murali - 14th Sep - 2018 | 127925 | 2018-10-16 21:33:19 | |
15 | Murali - 15th Sep - 2018 | 131275 | 2018-10-16 21:33:19 | |
16 | Murali - 16th - Sep - 2018 | 103929 | 2018-10-16 21:33:19 | |
17 | Murali 17th Sep 2018 | 127449 | 2018-10-16 21:33:19 | |
18 | Murali 18th Sep -2018 | 119571 | 2018-10-16 21:33:19 | |
19 | Murali - 19th Sep 2018 | 119647 | 2018-10-16 21:33:19 | |
20 | Murali 20th Sep 2018 | 131848 | 2018-10-16 21:33:19 | |
21 | Murali 21st -Sep 2018 | 127385 | 2018-10-16 21:33:19 | |
22 | Murali 22nd Sep 2018 | 129824 | 2018-10-16 21:33:19 | |
23 | Murali 23rd Sep 2018 | 130405 | 2018-10-16 21:33:19 | |
24 | Murali 24th Sep 2018 | 133292 | 2018-10-16 21:33:19 | |
25 | Murali 25th Sep 2018 | 122986 | 2018-10-16 21:33:19 | |
26 | Murali 26th Sep 2018 | 130096 | 2018-10-16 21:33:19 | |
27 | Murali 27th Sep 2018 | 122276 | 2018-10-16 21:33:19 | |
28 | Murali 28th Sep 2018 | 124394 | 2018-10-16 21:33:19 | |
29 | Murali 29th Sep 2018 | 129214 | 2018-10-16 21:33:19 | |
30 | Murali 30th Sep 2018 | 122421 | 2018-10-16 21:33:19 |
Rating for Article:– Prajapita Brahma kumaris Murali - Sep- 2018 ( UID: 181016101542 )
Rating Module ( How to get good rate? See Tips )
If an article has achieved following standard than it is accepted as a good article to promote. Article Grade will be automatically promoted to A grade. (1) Count of characters: >= 2500
(2) Writing Originality Grand total score: >= 75%
(3) Grand Total score: >= 75%
(4) Count of raters: >= 5 (including all group member (mandatory) of specific group)
(5) Language of Article = English
(6) Posted/ Edited date of Article <= 15 Days
(7) Article Heading score: >=50%
(8) Article Information Score: >50%
If the article scored above rate than A grade and also if it belongs to any of the below category of article than it is specially to made Dotted underlined "A Grade". This Article Will be chosen for Web Award.
Category of Article: Finance & banking, Insurance, Technology, Appliance, Vehicle related, Gadgets, software, IT, Income, Earning, Trading, Sale & purchase, Affiliate, Marketing, Medicine, Pharmaceuticals, Hospital, Money, Fashion, Electronics & Electricals, Jobs & Job work, Real estate, Rent Related, Advertising, Travel, Matrimonial, Marriage, Doctor, Food & beverages, Dining, Furniture & assets, Jewellery, ornaments, Gold, Diamond, Silver, Computer, Men Wear, Women’s wear, Dress, style, movie, film, entertainment.
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN | Name Parameters For Grading | Achievement (Score) | Minimum Limit for A grade | Calculation of Mark |
---|---|---|---|---|
1 | Count of Raters ( Auto Calculated ) | 0 | 5 | 0 |
2 | Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) | 3768276 | 2500 | 1 |
3 | Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) | 2240 | 15 | 0 |
4 | Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 40% | 0 |
5 | Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 60% | 0 |
6 | Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 50% | 0 |
7 | Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) | NAN% | 55% | 0 |
Grand Total Score & Article Grade | --- |
SI | Score Rated by Viewers | Rating given by (0) Users |
---|---|---|
(a) | Topic Information:- | NAN% |
(b) | Writing Skill:- | NAN% |
(c) | Grammer:- | NAN% |
(d) | Vocabulary Strength:- | NAN% |
(e) | Choice of Photo:- | NAN% |
(f) | Choice of Topic Heading:- | NAN% |
(g) | Keyword or summary:- | NAN% |
(h) | Material copied - Originality:- | NAN% |
Your Total Rating & % | NAN% |
Show/ Hide Rating Result
Details ( Page:- Murali - 02-Sep 2018 )
02-09-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 12-01-84 मधुबन
सदा समर्थ सोचो तथा वर्णन करो।
आज आवाज से परे रहने वाले बाप आवाज की दुनिया में आये हैं सभी बच्चों को आवाज से परे स्थिति में ले जाने के लिए क्योंकि आवाज से परे स्थिति में अति सुख और शान्ति की अनुभूति होती है। आवाज से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने से सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न स्थिति में अनुभव करते हैं। आज के मानव आवाज से परे सच्ची शान्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करते रहते हैं। कितने साधन अपनाते रहते हैं। लेकिन आप सभी शान्ति के सागर के बच्चे शान्त स्वरूप, मास्टर शान्ति के सागर हो। सेकण्ड में अपने शान्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित हो जाते हो। ऐसे अनुभवी हो ना। सेकण्ड में आवाज में आना और सेकण्ड में आवाज से परे स्वधर्म में स्थित हो जाना - ऐसी प्रैक्टिस है? इन कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना! जब चाहो कर्म में आओ, जब चाहो कर्म से परे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ। इसको कहा जाता है अभी-अभी न्यारे और अभी-अभी कर्म द्वारा सर्व के प्यारे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर अनुभव होती है ना। जिन बातों को दुनिया के मानव मुश्किल कहते वह मुश्किल बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए सहज नहीं लेकिन अति सहज हैं क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो। दुनिया के मानव तो समझते यह कैसे होगा! इसी उलझन में बुद्धि द्वारा, शरीर द्वारा भटकते रहते हैं और आप क्या कहेंगे? कैसे होगा - यह संकल्प कभी आ सकता है? कैसे अर्थात् क्वेश्चन मार्क। तो कैसे के बजाए फिर से यही आवाज निकलता कि ऐसे होता है। ऐसे अर्थात् फुलस्टाप। क्वेश्चन मार्क बदलकर फुलस्टाप लग गया है ना। कल क्या थे और आज क्या हो! महान अन्तर है ना। समझते हो कि महान अन्तर हो गया। कल कहते थे ओ गाड और आज ओ के बजाए ओहो कहते हो। ओहो मीठे बाबा! गाड नहीं लेकिन बाबा। दूर से नजदीक में बाप मिल गया। आपने बाप को ढूँढा तो बाप ने भी आप बच्चों को कोने-कोने से ढूँढ लिया। लेकिन बाप को मेहनत नहीं करनी पड़ी। आपको बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि बाप को परिचय था, आपको परिचय नहीं था। आप सभी भी स्नेह के गीत गाते हो। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के गीत गाते हैं। सबसे बड़े ते बड़ा स्नेह का गीत रोज़ बापदादा गाते हैं। जिस गीत को सुन-सुन सभी स्नेही बच्चों का मन खुशी में नाचता रहता है। रोज़ गीत गाते इसीलिए यादगार में भी गीत का महत्व श्रेष्ठ रहा है। बाप के गीत का यादगार ''गीता'' बना दी। और बच्चों के गीत सुन खुशी में नाचने और खुशी में, आनन्द में, सुख में भिन्न-भिन्न अनुभवों के यादगार - भागवत बना दिया है। तो दोनों का यादगार हो गया ना। ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान अपने को समझते हो वा अनुभव करते हो! समझने वाले अनेक होते हैं लेकिन अनुभव करने वाले कोटों में कोई होते हैं। अनुभवी मूर्त बाप समान सम्पन्न अनुभवी मूर्त हैं। हर बोल का, हर सम्बन्ध का अनुभव हो। सम्बन्ध द्वारा भिन्न-भिन्न प्राप्ति का अनुभव हो। हर शक्ति का अनुभव हो। हर गुण का अनुभव हो। जब चाहे तब गुणों के गहने को धारण कर सकते हो। यह सर्वगुण वैराइटी ज्वैलरी है। जैसा समय, जैसा स्थान हो वैसे गुणों के गहनों से स्वयं को सजा सकते हो। न सिर्फ स्वयं को लेकिन औरों को भी गुणों का दान दे सकते हो। ज्ञान दान के साथ-साथ गुण दान का भी बहुत महत्व है। गुणों की महादानी आत्मा कभी भी किसी के अवगुण को देखते हुए, धारण नहीं करेगी। किसी के अवगुण के संगदोष में नहीं आयेगी और ही गुणदान द्वारा दूसरे का अवगुण, गुण में परिवर्तन कर देंगी। जैसे धन के भिखारी को धन दे सम्पन्न बना देते हैं, ऐसे अवगुण वाले को गुण दान दे, गुणवान मूर्त बना दो। जैसे योग दान, शक्तियों का दान, सेवा का दान प्रसिद्ध है, तो गुण दान भी विशेष दान है। गुणदान द्वारा आत्मा में उमंग-उत्साह की झलक अनुभव करा सकते हो। तो ऐसे सर्व महादानी मूर्त अर्थात् अनुभवी मूर्त बने हो?
आज विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों की विशेषता तो बापदादा ने सुनाई है। फिर भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों को दूरादेशी बुद्धि वाले बच्चे कहते हैं। दूर होते भी बुद्धि द्वारा बाप को पहचान अधिकारी बन गये हैं। ऐसे दूरादेशी बुद्धि वाले बच्चों पर विशेषता प्रमाण बापदादा का विशेष स्नेह है। सभी परवाने बन अपने-अपने देशों से उड़ते-उड़ते शमा पर जलने वाले हो वा कोई सिर्फ चक्र लगाने वाले भी हो। जलना अर्थात् समान बनना। तो जलने वाले हो वा चक्र लगाने वाले हो? ज्यादा संख्या कौन-सी है? जो भी हो, जैसे भी हो लेकिन बापदादा को पसन्द हो। फिर भी देखो कितनी मेहनत कर पहुँच तो गये ना इसलिए सदा अपने को समझो कि बाप के हैं और सदा ही बाप के रहेंगे। यह दृढ़ संकल्प सदा ही आगे बढ़ाता रहेगा। ज्यादा कमजोरियों को सोचो नहीं। कमजोरियों को सोचते-सोचते भी और कमजोर हो जाते हैं। मैं बीमार हूँ, बीमार हूँ, कहने से डबल बीमार हो जाते हैं। मैं इतनी शक्तिशाली नहीं हूँ, मेरा योग इतना अच्छा नहीं है, मेरी सेवा इतनी अच्छी नहीं है। मैं बाबा की प्यारी हूँ वा नहीं हूँ। पता नहीं आगे चल सकूँगी वा नहीं - यह सोच भी ज्यादा कमजोर बनाता है। पहले माया हल्के रूप में ट्रायल करती है और आप उसको बड़ा रूप कर देते हो तो माया को आपका साथी बनने का चाँस मिल जाता है। वह सिर्फ ट्रायल करती है लेकिन उसकी ट्रायल को न जानकर समझते हो कि मैं हूँ ही ऐसी, इसलिए वह भी साथी बन जाती है। कमजोरों की साथी माया है। कभी भी कमजोर संकल्पों को बार-बार न वर्णन करो, न सोचो। बार-बार सोचने से भी स्वरूप बन जाते हैं। सदा यह सोचो कि मैं बाबा का नहीं बनूँगा तो और कौन बनेगा! मैं ही था वा मैं ही थी। मैं ही हूँ। कल्प-कल्प मैं ही बनूँगी - यह संकल्प तन्दरूस्त, मायाजीत बना देंगे। कमजोरी पीछे आती है। आप उसको न पहचान सत्य समझ लेते हो तो माया अपना बना देती है। जैसे सीता का ड्रामा दिखाते हो ना। भिखारी था नहीं लेकिन सीता ने भिखारी समझ लिया। वह तो सिर्फ ट्रायल करने आया और उसे सच समझ लिया इसलिए उसने उनका भोलापन देख अपना बना लिया। यह भी व्यर्थ संकल्प, कमजोर संकल्प माया का रूप बन आते हैं, ट्रायल करने के लिए। लेकिन भोले बन जाते हो इसलिए वह अपना बना देती है। ''मैं हूँ ही ऐसी'', ऐसे करते-करते माया अपना स्थान बना देती है। ऐसे कमजोर हो नहीं। समर्थ हो। मास्टर सर्वशक्तिवान हो। बापदादा के चुने हुए कोटों में कोई हो। ऐसे कमजोर कैसे हो सकते! यह सोचना ही माया को स्थान देना है। स्थान देकर फिर-फिर यह कहते हो - अब निकालो। स्थान देते ही क्यों हो। कोई कमजोर नहीं। सब मास्टर हो। सदा बहादुर, सदा के महावीर हो। यही श्रेष्ठ संकल्प रखो। सदा बाप के साथी हैं। जहाँ बाप के साथी हैं वहाँ माया साथी बना नहीं सकती। मधुबन में किसलिए आये हो? (माया को छोड़ने) मधुबन महायज्ञ है ना। तो यज्ञ में स्वाहा करने आये हो लेकिन बापदादा कहते हैं सभी अपनी विजय अष्टमी मनाने आये हो। विजय के तिलक की सेरीमनी मनाने आये हो। विजयी बन करके विजय के तिलक की सेरीमनी मनाने आये हो ना। जी हाँ, कापी करने में सब होशियार हैं। यह भी गुण है। यहाँ भी बाप को कापी ही करना है। फालो करना अर्थात् कापी करना। यह तो सहज है ना। आप अपना देश छोड़कर आते हो तो बापदादा भी अपना देश छोड़कर आते हैं।
बापदादा की प्रवृत्ति नहीं है क्या! सारे विश्व के कार्य को छोड़ यहाँ आते हैं। विश्व की प्रवृत्ति बाप की प्रवृत्ति है ना। बाप के लिए तो सभी बच्चे हैं। अंचली तो सबको देनी है। वर्सा नहीं देते, अंचली तो देते हैं ना! अच्छा !
सर्व श्रेष्ठ अधिकारी बाप समान सदा महादानी, वरदानी आत्माओं को, सदा महान अन्तर द्वारा स्वयं को महान अनुभव करने वाले, सदा माया को पहचान मायाजीत, सर्व शक्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के देश-विदेश के, लगन में मगन रहने वाले, बाप से रूहरिहान करने वाले, बाप से मिलन मनाने वाले, यादप्यार देने और पत्रों द्वारा भेजने वाले, कुछ मीठे-मीठे समाचार और स्व के स्नेह के पुरुषार्थ के समाचार देने वाले सर्व बच्चों को बापदादा सम्मुख देख याद-प्यार दे रहे हैं। साथ-साथ परवाने बन शमा के ऊपर जलने वाले अर्थात् हर कदम में बाप समान बनने वाले बच्चों को स्नेह सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।
महारथी भाई-बहनों प्रति उच्चारे हुए अव्यक्त महावाक्य:-
सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों की भी तो माला है ना। सभी विशेष रत्न निमित्त बने हुए हो। निमित्त बनने की विशेषता निमित्त बनाती है। ब्रह्मा बाप को आप सबके ऊपर एक बात का नाज़ है। कौन-सी बात का विशेष नाज़ है? सभी बच्चों ने एक दो में विचार मिलाते हुए आदि से युनिटी का जो रूप दिखाया है इस पर ब्रह्मा बाप को विशेष नाज़ है। युनिटी इस ब्राह्मण परिवार का फाउन्डेशन है इसलिए ब्रह्मा बाप को अव्यक्त वतन में रहते भी बच्चों पर नाज़ है। देखते तो हैं ना कारोबार।
लण्डन ग्रुप से:- सदा रूहानी गुलाब बन औरों को भी खुशबू देने वाले अविनाशी बगीचे के पुष्प हो ना। सभी रूहानी गुलाब हो। जिस रूहानी गुलाब को देख सारी विश्व आकर्षित होती है। एक-एक रूहानी गुलाब कितना वैल्युबुल है। अमूल्य है। जो अभी तक भी आप सबके जड़ चित्रों की भी वैल्यु है। एक-एक जड़ चित्र कितनी वैल्यु से लेते वा देते हैं। हैं तो साधारण पत्थर या चांदी या सोना लेकिन वैल्यु कितनी है। सोने की मूर्ति कितनी वैल्यु में देंगे। इतने वैल्युबुल कैसे बने! क्योंकि बाप का बनने से सदा ही श्रेष्ठ बन गये। इसी भाग्य के गीत सदा गाते रहो। वाह मेरा भाग्य और वाह भाग्य विधाता और वाह संगमयुग। वाह मीठा ड्रामा। सबमें वाह-वाह आता है ना। वाह-वाह के गीत गाते रहते हो ना! बापदादा को लण्डन निवासियों पर नाज़ है, सेवा के वृक्ष का बीज जो है वह लण्डन है। तो लण्डन निवासी भी बीजरूप हो गये। यू.के. वाले अर्थात् सदा ओ.के. रहने वाले, सदा पढ़ाई और सेवा दोनों का बैलेन्स रखने वाले। सदा हर कदम में स्वयं की उन्नति को अनुभव करने वाले। जब बाप के बने तो सदा बाप का साथ और बाप का हाथ है, हर बच्चे के ऊपर - ऐसे अनुभव करते हो ना। जिनके ऊपर बाप का हाथ है, वह सदा ही सेफ हैं। सदा सेफ रहने वाले हो ना। ओ.के. ग्रुप के पास माया तो नहीं आती है ना। माया भी सदा के लिए ओ.के., ओ.के. करके विदाई करके चली जाती है। यू.के. अर्थात् ओ.के. ग्रुप को संग भी तो बहुत श्रेष्ठ है ना। संग अच्छा, वायुमण्डल शक्तिशाली तो माया आ कैसे सकती। सदा ही सेफ होंगे। ओ.के. ग्रुप अर्थात् मायाजीत ग्रुप।
मॉरीशियस पाटी:- सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान समझते हो? भाग्य में क्या मिला? भगवान ही भाग्य में मिल गया! स्वयं भाग्य विधाता भगवान भाग्य में मिल गया, इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है? तो सदा ये खुशी रहती है कि विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान हम आत्मायें हैं। हम नहीं, हम आत्मायें। आत्मायें कहेंगे तो कभी भी उल्टा नशा नहीं आयेगा। देही-अभिमानी बनने से श्रेष्ठ नशा - ईश्वरीय नशा रहेगा। भाग्यवान आत्मायें हैं, जिन्हों के भाग्य का अब भी गायन हो रहा है। ‘भागवत' - आपके भाग्य का यादगार है। ऐसा अविनाशी भाग्य जो अब तक भी गायन है, इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। कुमारियाँ तो निर्बन्धन, तन से भी निर्बन्धन, मन से भी निर्बन्धन। ऐसे निर्बन्धन ही उड़ती कला का अनुभव कर सकते हैं। अच्छा। ओम शान्ति।
वरदान:-सेवा का पार्ट बजाते पार्ट से न्यारे और बाप के प्यारे रहने वाले सहज योगी भव
कई बच्चे कहते हैं योग कभी लगता है कभी नहीं लगता, इसका कारण है - न्यारे पन की कमी। न्यारे न होने के कारण प्यार का अनुभव नहीं होता और जहाँ प्यार नहीं वहाँ याद नहीं। जितना ज्यादा प्यार उतनी सहज याद, इसलिए संबंध के आधार पर पार्ट नहीं बजाओ, सेवा के संबंध से पार्ट बजाओ तो न्यारे रहेंगे। कमल पुष्प समान पुरानी दुनिया के वातावरण से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन:-ज्ञानी वह है जो कारण शब्द को मर्ज कर हर बात का निवारण कर दे।
02/09/18- Madhuban Avyakt BapDada- Om Shanti 12/01/84
Always have powerful thoughts and speak powerful words.
Today, the Father who lives beyond sound has come into the world of sound in order to take all the children into the stage of being beyond sound, because there is the experience of deep happiness and peace in the stage of beyond sound. By becoming stable in the elevated stage of being beyond sound, you experience yourself to be equal to the Father in your perfect stage. People of today try many different things in order to attain the true peace of being beyond sound. They continue to adopt so many different methods. However, all of you are embodiments of peace, children of the Ocean of Peace, master oceans of peace. You stabilise in your stage of being an embodiment of peace in a second. You are experienced in this way, are you not? Do you practise coming into sound in a second and then going beyond and stabilising in your original religion beyond sound in a second? You are masters of your physical senses, are you not? You can come and perform actions whenever you want and then stabilise yourself in the karmateet stage of being beyond actions whenever you want. This is known as being detached one moment and being loving to all through action the next moment. You experience such controlling power and ruling power, do you not? Things that people of the world say are difficult are not only easy for you elevated souls, but they are extremely easy, because you are master almighty authorities. People of the world think: How can this be possible? They continue to wander around with their intellects and their bodies in that confusion, whereas what do you say? Can you have the thought: How will this happen? To ask how means a question mark. So, instead of saying, "How?", the sound that emerges from you once again is, "This is how it happens". To say, "This is how" means a “full stop”. So, the question mark changed and you put a full stop. What were you yesterday and what have you become today? There is a great difference, is there not? Do you believe that there is a great difference? Yesterday, you used to say, "Oh God!", and today, instead of saying "OK!” you say, "Oho!". Oho, sweet Baba! Not God, but Baba. From Him being far-away, you found the Father to be close to you. You searched for the Father and the Father found you in different corners. However, the Father didn’t have to work hard. You had to make a lot of effort. The Father had your introduction, but you didn't have it. All of you sing songs of love. BapDada also sings songs of love for the children. BapDada sings the greatest song of love of all every day and, when you hear this song, the minds of all you loving children continue to dance in happiness. He sings these songs every day and this is why, as a memorial, a lot of importance is given to songs. The memorial of the Father's song has been made into the Gita. From hearing the songs of the children and seeing the memorials of the different experiences of dancing in happiness, of being in happiness, bliss and joy, they created the Bhagawad. So, there is the memorial of both. Do you consider yourselves and experience yourselves to be such elevated, fortunate ones? There are many who consider themselves to be this, but only a handful out of multi-millions who experience themselves to be this. To be an image of experience means to be an experienced image who is complete and equal to the Father. Let there be the experience of every word and every relationship. Let there be the experience of the different attainments from each relationship. Let there be the experience of every power. Let there be the experience of every virtue. You can adopt the jewellery of virtues whenever you want. All of these virtues are the variety jewellery. According to the time and place, you can decorate yourself with the jewellery of virtues. Not only can you decorate yourself, but you can also donate virtues to others. Together with the donation of knowledge, the donation of virtues also has great importance. A soul who is a great donor of virtues will not imbibe the defects of others, even whilst seeing them. Such a soul will not be influenced by the defects of others but instead, by donating virtues, will transform the defects of others into virtues. Just as you give money to beggars and make them rich, in the same way, donate virtues to those who have defects and make them into images of virtues. Just as the donations of yoga, powers and service are very well known, the donation of virtues is also a special donation. By donating virtues to souls, you are able to make souls experience the sparkle of zeal and enthusiasm. So, have you become images who are the great donors of everything, that is, have you become images of experience?
Today, Baba has especially come to meet the double-foreign children. BapDada has already told you the speciality of the double-foreign children. Nevertheless, BapDada calls double-foreign children those with far-sighted intellects. Even from far away, you recognised the Father with your intellects and claimed all rights. BapDada has special love for the children who have far-sighted intellects, numberwise, according to their specialities. Are all of you those who have become moths and have come flying from your country to surrender yourselves to the Flame, or do some of you simply circle around? To surrender means to become equal. So, are you those who surrender yourselves or those who simply circle around? Which type is greater in number? Whoever you are and whatever you are like, BapDada likes you. Anyway, you have at least reached here having made such a lot of effort. So, always consider yourself to belong to the Father and you will always belong to the Father. This determined thought will constantly enable you to move forward. Don't think about your weaknesses too much. By thinking about your weaknesses, you become even weaker. By saying that you are ill, you become doubly ill. "I am not that powerful. I am not able to have such good yoga. The service I do is not that good. Am I loved by Baba or not? I don’t know whether I will be able to continue or not." These thoughts make you even weaker. Maya first tries in a very light form, and you then give it a bigger form and Maya takes her chance to become your companion. She is simply trying you out, but you don't recognise this and think that you are like that and this is why she becomes your companion. Maya is the companion of the weak. Don't repeatedly voice your weak thoughts or even think weak thoughts. By your thinking about it again and again, it becomes your form. Always think: If I don't belong to Baba, who else will? I belonged to Baba. It was I who belonged to Baba... I will belong to Him every cycle. This thought makes you healthy and a conqueror of Maya. Weaknesses come later. You don't recognise this and consider that to be the truth and so Maya makes you belong to her. They put on a play about Sita. He (Ravan) wasn't a beggar, but Sita thought he was a beggar. He had simply come to test her and she thought he really was that. This is how, seeing her innocence, he made her belong to him. Here, too, wasteful and weak thoughts take on the form of Maya in order to test you. However, it is because you become innocent that she makes you belong to her. "I am like that!" Then, by making you say that, Maya creates a place for herself. You are not weak like that. You are powerful. You are master almighty authorities. You are the handful out of multi-millions who have been selected by BapDada. How could such souls be weak? To think in that way is to give a place to Maya. You give her a place and then you say that you have to get rid of her. But, why do you give her a place in the first place? None of you is weak. You are all masters. You are always courageous and always mahavirs. Have this elevated thought. You are constantly the Father's companions. When you are a companion of the Father, Maya cannot make you her companion. Why have you come to Madhuban? (To leave Maya behind.) Madhuban is the great sacrificial fire, is it not? So, you have come to sacrifice everything in the great sacrificial fire. However, BapDada says: All of you have come to celebrate Vijaya Ashthmi (Dashera). You have come to celebrate the ceremony of applying the tilak of victory. You have become victorious and have come to celebrate the ceremony of applying the tilak of victory. All of you are clever at copying and saying, "Ji ha". This too is a virtue. Here, too, all you have to do is copy the Father. To follow him means to copy him. This is easy, is it not? You have come here having left your country and so BapDada also leaves His land behind and comes here.
Does BapDada not have a family? He puts aside the task of the whole world and comes here. The household of the whole family is the Father's family, is it not? For the Father, all are His children. He has to give a drop to everyone. He doesn't give them the inheritance, but He does give them at least a drop. Achcha.
To the most elevated souls who have all rights and are equal to the Father, to those who are constantly great donors, the bestowers of blessings, to those who constantly experience themselves to be great by knowing the great difference, to those who are conquerors of Maya by constantly recognising Maya, to the elevated souls who are embodiments of all powers, to all the children in this land and abroad who remain lost in love, who have heart-to-heart conversations with the Father, who celebrate meeting the Father, who give their love and remembrance and also send it through letters, to all the children who write very sweet news and also give news of their loving efforts for the self, BapDada is seeing all of you personally in front of Him and giving love and remembrance. Together with this, He is also giving love-filled remembrance and saying namaste to the children who become moths and surrender themselves to the Flame, that is, to those children who become equal to the Father at every step.
Seeing all the maharathi brothers and sisters:
There is also a rosary of the children who are instruments for service. All of you special jewels have become instruments. The speciality of an instrument makes you an instrument. Brahma Baba has great pride in all of you because of one thing. What is he especially proud of? Brahma Baba has special pride in the form of unity that you children have demonstrated from the beginning by harmonising one another's thoughts. Unity is the foundation of this Brahmin family. Therefore, Brahma Baba is proud of you children. Even though he lives in the subtle region, he sees all the activities.
BapDada meeting the London group:
All of you are those who become spiritual roses and, as flowers of the imperishable garden, give fragrance to others, are you not? All of you are spiritual roses and, seeing you spiritual roses, the whole world is attracted to you. Each of you spiritual roses is so valuable. You are invaluable and this is why, even now, the non-living images of all of you have value too. They give or receive each non-living image with so much value. It is just ordinary stone, silver or gold, and yet it has so much value. How much value would they place on a golden idol? How did it become so valuable? By belonging to the Father, you became constantly elevated. Constantly continue to sing songs of this fortune. Wah, my fortune! Wah, the Bestower of Fortune! And, wah, the confluence age! Wah, sweet drama! You know how to say, "Wah, wah!" for everything, do you not? You constantly sing songs of "Wah, wah!" do you not? BapDada is proud of the residents of London. London is the seed of the tree of service. Therefore, the residents of London are also the seed. Those from the UK means those who always remain OK; those who constantly keep a balance of studying and doing service; those who constantly experience progress at every step. Since you belong to the Father, you constantly have His company and His hand; every child has this over them. Do you experience this? Those who have the Father's hand over them are always safe. You are those who are always safe, are you not? Maya cannot come to the group that is OK. Maya also says, "OK! OK!" for all time and bids you farewell and goes away. The UK, that is, the OK group has very elevated company. You have very good company and a powerful atmosphere and so how could Maya come? You remain constantly safe. The OK group means the group of those who are conquerors of Maya.
Speaking to the Mauritius group:
Do you always consider yourselves to be greatly fortunate? What did you receive as your fortune? You attained God as your fortune. You received the Bestower of Fortune Himself as your fortune - what can be greater fortune than this? So, you constantly have this happiness: We souls are the most fortunate souls in the world with the greatest fortune. Not just “we” but “we souls”. When you say “souls”, you will not have the wrong type of intoxication. By being soul conscious, you will have elevated intoxication – spiritual, Godly intoxication. Souls are fortunate and, even today, their fortune is being remembered. The Bhagwad is the memorial of your fortune. It is such imperishable fortune that it is remembered even today. Continue to move constantly forward in this happiness. Kumaris are free from bondage - free from the bondage of the body, free from the bondage of the mind. Only those who are free from bondage are able to experience the flying stage. Achcha.
Blessing:May you remain detached from your part and loving to the Father, while playing your part in service, and become an easy yogi.
Some children say that they are sometimes able to have yoga but not at other times. The reason for this is a lack of detachment. Because you are not detached, you do not experience and, where there is no love, there is no remembrance. The greater the love, the easier the remembrance. Therefore, do not play your part on the basis of your relationship but play your part in terms of service and you will remain detached. Be like a lotus and remain detached from the atmosphere of the old world and be loving to the Father, and you will become an easy yogi.
Slogan:A gyani soul is one who merges the word “excuse” and finds a solution for every situation.
सदा समर्थ सोचो तथा वर्णन करो।
आज आवाज से परे रहने वाले बाप आवाज की दुनिया में आये हैं सभी बच्चों को आवाज से परे स्थिति में ले जाने के लिए क्योंकि आवाज से परे स्थिति में अति सुख और शान्ति की अनुभूति होती है। आवाज से परे श्रेष्ठ स्थिति में स्थित होने से सदा स्वयं को बाप समान सम्पन्न स्थिति में अनुभव करते हैं। आज के मानव आवाज से परे सच्ची शान्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करते रहते हैं। कितने साधन अपनाते रहते हैं। लेकिन आप सभी शान्ति के सागर के बच्चे शान्त स्वरूप, मास्टर शान्ति के सागर हो। सेकण्ड में अपने शान्ति स्वरूप की स्थिति में स्थित हो जाते हो। ऐसे अनुभवी हो ना। सेकण्ड में आवाज में आना और सेकण्ड में आवाज से परे स्वधर्म में स्थित हो जाना - ऐसी प्रैक्टिस है? इन कर्मेन्द्रियों के मालिक हो ना! जब चाहो कर्म में आओ, जब चाहो कर्म से परे कर्मातीत स्थिति में स्थित हो जाओ। इसको कहा जाता है अभी-अभी न्यारे और अभी-अभी कर्म द्वारा सर्व के प्यारे। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर अनुभव होती है ना। जिन बातों को दुनिया के मानव मुश्किल कहते वह मुश्किल बातें आप श्रेष्ठ आत्माओं के लिए सहज नहीं लेकिन अति सहज हैं क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो। दुनिया के मानव तो समझते यह कैसे होगा! इसी उलझन में बुद्धि द्वारा, शरीर द्वारा भटकते रहते हैं और आप क्या कहेंगे? कैसे होगा - यह संकल्प कभी आ सकता है? कैसे अर्थात् क्वेश्चन मार्क। तो कैसे के बजाए फिर से यही आवाज निकलता कि ऐसे होता है। ऐसे अर्थात् फुलस्टाप। क्वेश्चन मार्क बदलकर फुलस्टाप लग गया है ना। कल क्या थे और आज क्या हो! महान अन्तर है ना। समझते हो कि महान अन्तर हो गया। कल कहते थे ओ गाड और आज ओ के बजाए ओहो कहते हो। ओहो मीठे बाबा! गाड नहीं लेकिन बाबा। दूर से नजदीक में बाप मिल गया। आपने बाप को ढूँढा तो बाप ने भी आप बच्चों को कोने-कोने से ढूँढ लिया। लेकिन बाप को मेहनत नहीं करनी पड़ी। आपको बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि बाप को परिचय था, आपको परिचय नहीं था। आप सभी भी स्नेह के गीत गाते हो। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के गीत गाते हैं। सबसे बड़े ते बड़ा स्नेह का गीत रोज़ बापदादा गाते हैं। जिस गीत को सुन-सुन सभी स्नेही बच्चों का मन खुशी में नाचता रहता है। रोज़ गीत गाते इसीलिए यादगार में भी गीत का महत्व श्रेष्ठ रहा है। बाप के गीत का यादगार ''गीता'' बना दी। और बच्चों के गीत सुन खुशी में नाचने और खुशी में, आनन्द में, सुख में भिन्न-भिन्न अनुभवों के यादगार - भागवत बना दिया है। तो दोनों का यादगार हो गया ना। ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान अपने को समझते हो वा अनुभव करते हो! समझने वाले अनेक होते हैं लेकिन अनुभव करने वाले कोटों में कोई होते हैं। अनुभवी मूर्त बाप समान सम्पन्न अनुभवी मूर्त हैं। हर बोल का, हर सम्बन्ध का अनुभव हो। सम्बन्ध द्वारा भिन्न-भिन्न प्राप्ति का अनुभव हो। हर शक्ति का अनुभव हो। हर गुण का अनुभव हो। जब चाहे तब गुणों के गहने को धारण कर सकते हो। यह सर्वगुण वैराइटी ज्वैलरी है। जैसा समय, जैसा स्थान हो वैसे गुणों के गहनों से स्वयं को सजा सकते हो। न सिर्फ स्वयं को लेकिन औरों को भी गुणों का दान दे सकते हो। ज्ञान दान के साथ-साथ गुण दान का भी बहुत महत्व है। गुणों की महादानी आत्मा कभी भी किसी के अवगुण को देखते हुए, धारण नहीं करेगी। किसी के अवगुण के संगदोष में नहीं आयेगी और ही गुणदान द्वारा दूसरे का अवगुण, गुण में परिवर्तन कर देंगी। जैसे धन के भिखारी को धन दे सम्पन्न बना देते हैं, ऐसे अवगुण वाले को गुण दान दे, गुणवान मूर्त बना दो। जैसे योग दान, शक्तियों का दान, सेवा का दान प्रसिद्ध है, तो गुण दान भी विशेष दान है। गुणदान द्वारा आत्मा में उमंग-उत्साह की झलक अनुभव करा सकते हो। तो ऐसे सर्व महादानी मूर्त अर्थात् अनुभवी मूर्त बने हो?
आज विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने आये हैं। डबल विदेशी बच्चों की विशेषता तो बापदादा ने सुनाई है। फिर भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों को दूरादेशी बुद्धि वाले बच्चे कहते हैं। दूर होते भी बुद्धि द्वारा बाप को पहचान अधिकारी बन गये हैं। ऐसे दूरादेशी बुद्धि वाले बच्चों पर विशेषता प्रमाण बापदादा का विशेष स्नेह है। सभी परवाने बन अपने-अपने देशों से उड़ते-उड़ते शमा पर जलने वाले हो वा कोई सिर्फ चक्र लगाने वाले भी हो। जलना अर्थात् समान बनना। तो जलने वाले हो वा चक्र लगाने वाले हो? ज्यादा संख्या कौन-सी है? जो भी हो, जैसे भी हो लेकिन बापदादा को पसन्द हो। फिर भी देखो कितनी मेहनत कर पहुँच तो गये ना इसलिए सदा अपने को समझो कि बाप के हैं और सदा ही बाप के रहेंगे। यह दृढ़ संकल्प सदा ही आगे बढ़ाता रहेगा। ज्यादा कमजोरियों को सोचो नहीं। कमजोरियों को सोचते-सोचते भी और कमजोर हो जाते हैं। मैं बीमार हूँ, बीमार हूँ, कहने से डबल बीमार हो जाते हैं। मैं इतनी शक्तिशाली नहीं हूँ, मेरा योग इतना अच्छा नहीं है, मेरी सेवा इतनी अच्छी नहीं है। मैं बाबा की प्यारी हूँ वा नहीं हूँ। पता नहीं आगे चल सकूँगी वा नहीं - यह सोच भी ज्यादा कमजोर बनाता है। पहले माया हल्के रूप में ट्रायल करती है और आप उसको बड़ा रूप कर देते हो तो माया को आपका साथी बनने का चाँस मिल जाता है। वह सिर्फ ट्रायल करती है लेकिन उसकी ट्रायल को न जानकर समझते हो कि मैं हूँ ही ऐसी, इसलिए वह भी साथी बन जाती है। कमजोरों की साथी माया है। कभी भी कमजोर संकल्पों को बार-बार न वर्णन करो, न सोचो। बार-बार सोचने से भी स्वरूप बन जाते हैं। सदा यह सोचो कि मैं बाबा का नहीं बनूँगा तो और कौन बनेगा! मैं ही था वा मैं ही थी। मैं ही हूँ। कल्प-कल्प मैं ही बनूँगी - यह संकल्प तन्दरूस्त, मायाजीत बना देंगे। कमजोरी पीछे आती है। आप उसको न पहचान सत्य समझ लेते हो तो माया अपना बना देती है। जैसे सीता का ड्रामा दिखाते हो ना। भिखारी था नहीं लेकिन सीता ने भिखारी समझ लिया। वह तो सिर्फ ट्रायल करने आया और उसे सच समझ लिया इसलिए उसने उनका भोलापन देख अपना बना लिया। यह भी व्यर्थ संकल्प, कमजोर संकल्प माया का रूप बन आते हैं, ट्रायल करने के लिए। लेकिन भोले बन जाते हो इसलिए वह अपना बना देती है। ''मैं हूँ ही ऐसी'', ऐसे करते-करते माया अपना स्थान बना देती है। ऐसे कमजोर हो नहीं। समर्थ हो। मास्टर सर्वशक्तिवान हो। बापदादा के चुने हुए कोटों में कोई हो। ऐसे कमजोर कैसे हो सकते! यह सोचना ही माया को स्थान देना है। स्थान देकर फिर-फिर यह कहते हो - अब निकालो। स्थान देते ही क्यों हो। कोई कमजोर नहीं। सब मास्टर हो। सदा बहादुर, सदा के महावीर हो। यही श्रेष्ठ संकल्प रखो। सदा बाप के साथी हैं। जहाँ बाप के साथी हैं वहाँ माया साथी बना नहीं सकती। मधुबन में किसलिए आये हो? (माया को छोड़ने) मधुबन महायज्ञ है ना। तो यज्ञ में स्वाहा करने आये हो लेकिन बापदादा कहते हैं सभी अपनी विजय अष्टमी मनाने आये हो। विजय के तिलक की सेरीमनी मनाने आये हो। विजयी बन करके विजय के तिलक की सेरीमनी मनाने आये हो ना। जी हाँ, कापी करने में सब होशियार हैं। यह भी गुण है। यहाँ भी बाप को कापी ही करना है। फालो करना अर्थात् कापी करना। यह तो सहज है ना। आप अपना देश छोड़कर आते हो तो बापदादा भी अपना देश छोड़कर आते हैं।
बापदादा की प्रवृत्ति नहीं है क्या! सारे विश्व के कार्य को छोड़ यहाँ आते हैं। विश्व की प्रवृत्ति बाप की प्रवृत्ति है ना। बाप के लिए तो सभी बच्चे हैं। अंचली तो सबको देनी है। वर्सा नहीं देते, अंचली तो देते हैं ना! अच्छा !
सर्व श्रेष्ठ अधिकारी बाप समान सदा महादानी, वरदानी आत्माओं को, सदा महान अन्तर द्वारा स्वयं को महान अनुभव करने वाले, सदा माया को पहचान मायाजीत, सर्व शक्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के देश-विदेश के, लगन में मगन रहने वाले, बाप से रूहरिहान करने वाले, बाप से मिलन मनाने वाले, यादप्यार देने और पत्रों द्वारा भेजने वाले, कुछ मीठे-मीठे समाचार और स्व के स्नेह के पुरुषार्थ के समाचार देने वाले सर्व बच्चों को बापदादा सम्मुख देख याद-प्यार दे रहे हैं। साथ-साथ परवाने बन शमा के ऊपर जलने वाले अर्थात् हर कदम में बाप समान बनने वाले बच्चों को स्नेह सम्पन्न याद-प्यार और नमस्ते।
महारथी भाई-बहनों प्रति उच्चारे हुए अव्यक्त महावाक्य:-
सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों की भी तो माला है ना। सभी विशेष रत्न निमित्त बने हुए हो। निमित्त बनने की विशेषता निमित्त बनाती है। ब्रह्मा बाप को आप सबके ऊपर एक बात का नाज़ है। कौन-सी बात का विशेष नाज़ है? सभी बच्चों ने एक दो में विचार मिलाते हुए आदि से युनिटी का जो रूप दिखाया है इस पर ब्रह्मा बाप को विशेष नाज़ है। युनिटी इस ब्राह्मण परिवार का फाउन्डेशन है इसलिए ब्रह्मा बाप को अव्यक्त वतन में रहते भी बच्चों पर नाज़ है। देखते तो हैं ना कारोबार।
लण्डन ग्रुप से:- सदा रूहानी गुलाब बन औरों को भी खुशबू देने वाले अविनाशी बगीचे के पुष्प हो ना। सभी रूहानी गुलाब हो। जिस रूहानी गुलाब को देख सारी विश्व आकर्षित होती है। एक-एक रूहानी गुलाब कितना वैल्युबुल है। अमूल्य है। जो अभी तक भी आप सबके जड़ चित्रों की भी वैल्यु है। एक-एक जड़ चित्र कितनी वैल्यु से लेते वा देते हैं। हैं तो साधारण पत्थर या चांदी या सोना लेकिन वैल्यु कितनी है। सोने की मूर्ति कितनी वैल्यु में देंगे। इतने वैल्युबुल कैसे बने! क्योंकि बाप का बनने से सदा ही श्रेष्ठ बन गये। इसी भाग्य के गीत सदा गाते रहो। वाह मेरा भाग्य और वाह भाग्य विधाता और वाह संगमयुग। वाह मीठा ड्रामा। सबमें वाह-वाह आता है ना। वाह-वाह के गीत गाते रहते हो ना! बापदादा को लण्डन निवासियों पर नाज़ है, सेवा के वृक्ष का बीज जो है वह लण्डन है। तो लण्डन निवासी भी बीजरूप हो गये। यू.के. वाले अर्थात् सदा ओ.के. रहने वाले, सदा पढ़ाई और सेवा दोनों का बैलेन्स रखने वाले। सदा हर कदम में स्वयं की उन्नति को अनुभव करने वाले। जब बाप के बने तो सदा बाप का साथ और बाप का हाथ है, हर बच्चे के ऊपर - ऐसे अनुभव करते हो ना। जिनके ऊपर बाप का हाथ है, वह सदा ही सेफ हैं। सदा सेफ रहने वाले हो ना। ओ.के. ग्रुप के पास माया तो नहीं आती है ना। माया भी सदा के लिए ओ.के., ओ.के. करके विदाई करके चली जाती है। यू.के. अर्थात् ओ.के. ग्रुप को संग भी तो बहुत श्रेष्ठ है ना। संग अच्छा, वायुमण्डल शक्तिशाली तो माया आ कैसे सकती। सदा ही सेफ होंगे। ओ.के. ग्रुप अर्थात् मायाजीत ग्रुप।
मॉरीशियस पाटी:- सदा अपने को श्रेष्ठ भाग्यवान समझते हो? भाग्य में क्या मिला? भगवान ही भाग्य में मिल गया! स्वयं भाग्य विधाता भगवान भाग्य में मिल गया, इससे बड़ा भाग्य और क्या हो सकता है? तो सदा ये खुशी रहती है कि विश्व में सबसे बड़े ते बड़े भाग्यवान हम आत्मायें हैं। हम नहीं, हम आत्मायें। आत्मायें कहेंगे तो कभी भी उल्टा नशा नहीं आयेगा। देही-अभिमानी बनने से श्रेष्ठ नशा - ईश्वरीय नशा रहेगा। भाग्यवान आत्मायें हैं, जिन्हों के भाग्य का अब भी गायन हो रहा है। ‘भागवत' - आपके भाग्य का यादगार है। ऐसा अविनाशी भाग्य जो अब तक भी गायन है, इसी खुशी में सदा आगे बढ़ते रहो। कुमारियाँ तो निर्बन्धन, तन से भी निर्बन्धन, मन से भी निर्बन्धन। ऐसे निर्बन्धन ही उड़ती कला का अनुभव कर सकते हैं। अच्छा। ओम शान्ति।
वरदान:-सेवा का पार्ट बजाते पार्ट से न्यारे और बाप के प्यारे रहने वाले सहज योगी भव
कई बच्चे कहते हैं योग कभी लगता है कभी नहीं लगता, इसका कारण है - न्यारे पन की कमी। न्यारे न होने के कारण प्यार का अनुभव नहीं होता और जहाँ प्यार नहीं वहाँ याद नहीं। जितना ज्यादा प्यार उतनी सहज याद, इसलिए संबंध के आधार पर पार्ट नहीं बजाओ, सेवा के संबंध से पार्ट बजाओ तो न्यारे रहेंगे। कमल पुष्प समान पुरानी दुनिया के वातावरण से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन:-ज्ञानी वह है जो कारण शब्द को मर्ज कर हर बात का निवारण कर दे।
02/09/18- Madhuban Avyakt BapDada- Om Shanti 12/01/84
Always have powerful thoughts and speak powerful words.
Today, the Father who lives beyond sound has come into the world of sound in order to take all the children into the stage of being beyond sound, because there is the experience of deep happiness and peace in the stage of beyond sound. By becoming stable in the elevated stage of being beyond sound, you experience yourself to be equal to the Father in your perfect stage. People of today try many different things in order to attain the true peace of being beyond sound. They continue to adopt so many different methods. However, all of you are embodiments of peace, children of the Ocean of Peace, master oceans of peace. You stabilise in your stage of being an embodiment of peace in a second. You are experienced in this way, are you not? Do you practise coming into sound in a second and then going beyond and stabilising in your original religion beyond sound in a second? You are masters of your physical senses, are you not? You can come and perform actions whenever you want and then stabilise yourself in the karmateet stage of being beyond actions whenever you want. This is known as being detached one moment and being loving to all through action the next moment. You experience such controlling power and ruling power, do you not? Things that people of the world say are difficult are not only easy for you elevated souls, but they are extremely easy, because you are master almighty authorities. People of the world think: How can this be possible? They continue to wander around with their intellects and their bodies in that confusion, whereas what do you say? Can you have the thought: How will this happen? To ask how means a question mark. So, instead of saying, "How?", the sound that emerges from you once again is, "This is how it happens". To say, "This is how" means a “full stop”. So, the question mark changed and you put a full stop. What were you yesterday and what have you become today? There is a great difference, is there not? Do you believe that there is a great difference? Yesterday, you used to say, "Oh God!", and today, instead of saying "OK!” you say, "Oho!". Oho, sweet Baba! Not God, but Baba. From Him being far-away, you found the Father to be close to you. You searched for the Father and the Father found you in different corners. However, the Father didn’t have to work hard. You had to make a lot of effort. The Father had your introduction, but you didn't have it. All of you sing songs of love. BapDada also sings songs of love for the children. BapDada sings the greatest song of love of all every day and, when you hear this song, the minds of all you loving children continue to dance in happiness. He sings these songs every day and this is why, as a memorial, a lot of importance is given to songs. The memorial of the Father's song has been made into the Gita. From hearing the songs of the children and seeing the memorials of the different experiences of dancing in happiness, of being in happiness, bliss and joy, they created the Bhagawad. So, there is the memorial of both. Do you consider yourselves and experience yourselves to be such elevated, fortunate ones? There are many who consider themselves to be this, but only a handful out of multi-millions who experience themselves to be this. To be an image of experience means to be an experienced image who is complete and equal to the Father. Let there be the experience of every word and every relationship. Let there be the experience of the different attainments from each relationship. Let there be the experience of every power. Let there be the experience of every virtue. You can adopt the jewellery of virtues whenever you want. All of these virtues are the variety jewellery. According to the time and place, you can decorate yourself with the jewellery of virtues. Not only can you decorate yourself, but you can also donate virtues to others. Together with the donation of knowledge, the donation of virtues also has great importance. A soul who is a great donor of virtues will not imbibe the defects of others, even whilst seeing them. Such a soul will not be influenced by the defects of others but instead, by donating virtues, will transform the defects of others into virtues. Just as you give money to beggars and make them rich, in the same way, donate virtues to those who have defects and make them into images of virtues. Just as the donations of yoga, powers and service are very well known, the donation of virtues is also a special donation. By donating virtues to souls, you are able to make souls experience the sparkle of zeal and enthusiasm. So, have you become images who are the great donors of everything, that is, have you become images of experience?
Today, Baba has especially come to meet the double-foreign children. BapDada has already told you the speciality of the double-foreign children. Nevertheless, BapDada calls double-foreign children those with far-sighted intellects. Even from far away, you recognised the Father with your intellects and claimed all rights. BapDada has special love for the children who have far-sighted intellects, numberwise, according to their specialities. Are all of you those who have become moths and have come flying from your country to surrender yourselves to the Flame, or do some of you simply circle around? To surrender means to become equal. So, are you those who surrender yourselves or those who simply circle around? Which type is greater in number? Whoever you are and whatever you are like, BapDada likes you. Anyway, you have at least reached here having made such a lot of effort. So, always consider yourself to belong to the Father and you will always belong to the Father. This determined thought will constantly enable you to move forward. Don't think about your weaknesses too much. By thinking about your weaknesses, you become even weaker. By saying that you are ill, you become doubly ill. "I am not that powerful. I am not able to have such good yoga. The service I do is not that good. Am I loved by Baba or not? I don’t know whether I will be able to continue or not." These thoughts make you even weaker. Maya first tries in a very light form, and you then give it a bigger form and Maya takes her chance to become your companion. She is simply trying you out, but you don't recognise this and think that you are like that and this is why she becomes your companion. Maya is the companion of the weak. Don't repeatedly voice your weak thoughts or even think weak thoughts. By your thinking about it again and again, it becomes your form. Always think: If I don't belong to Baba, who else will? I belonged to Baba. It was I who belonged to Baba... I will belong to Him every cycle. This thought makes you healthy and a conqueror of Maya. Weaknesses come later. You don't recognise this and consider that to be the truth and so Maya makes you belong to her. They put on a play about Sita. He (Ravan) wasn't a beggar, but Sita thought he was a beggar. He had simply come to test her and she thought he really was that. This is how, seeing her innocence, he made her belong to him. Here, too, wasteful and weak thoughts take on the form of Maya in order to test you. However, it is because you become innocent that she makes you belong to her. "I am like that!" Then, by making you say that, Maya creates a place for herself. You are not weak like that. You are powerful. You are master almighty authorities. You are the handful out of multi-millions who have been selected by BapDada. How could such souls be weak? To think in that way is to give a place to Maya. You give her a place and then you say that you have to get rid of her. But, why do you give her a place in the first place? None of you is weak. You are all masters. You are always courageous and always mahavirs. Have this elevated thought. You are constantly the Father's companions. When you are a companion of the Father, Maya cannot make you her companion. Why have you come to Madhuban? (To leave Maya behind.) Madhuban is the great sacrificial fire, is it not? So, you have come to sacrifice everything in the great sacrificial fire. However, BapDada says: All of you have come to celebrate Vijaya Ashthmi (Dashera). You have come to celebrate the ceremony of applying the tilak of victory. You have become victorious and have come to celebrate the ceremony of applying the tilak of victory. All of you are clever at copying and saying, "Ji ha". This too is a virtue. Here, too, all you have to do is copy the Father. To follow him means to copy him. This is easy, is it not? You have come here having left your country and so BapDada also leaves His land behind and comes here.
Does BapDada not have a family? He puts aside the task of the whole world and comes here. The household of the whole family is the Father's family, is it not? For the Father, all are His children. He has to give a drop to everyone. He doesn't give them the inheritance, but He does give them at least a drop. Achcha.
To the most elevated souls who have all rights and are equal to the Father, to those who are constantly great donors, the bestowers of blessings, to those who constantly experience themselves to be great by knowing the great difference, to those who are conquerors of Maya by constantly recognising Maya, to the elevated souls who are embodiments of all powers, to all the children in this land and abroad who remain lost in love, who have heart-to-heart conversations with the Father, who celebrate meeting the Father, who give their love and remembrance and also send it through letters, to all the children who write very sweet news and also give news of their loving efforts for the self, BapDada is seeing all of you personally in front of Him and giving love and remembrance. Together with this, He is also giving love-filled remembrance and saying namaste to the children who become moths and surrender themselves to the Flame, that is, to those children who become equal to the Father at every step.
Seeing all the maharathi brothers and sisters:
There is also a rosary of the children who are instruments for service. All of you special jewels have become instruments. The speciality of an instrument makes you an instrument. Brahma Baba has great pride in all of you because of one thing. What is he especially proud of? Brahma Baba has special pride in the form of unity that you children have demonstrated from the beginning by harmonising one another's thoughts. Unity is the foundation of this Brahmin family. Therefore, Brahma Baba is proud of you children. Even though he lives in the subtle region, he sees all the activities.
BapDada meeting the London group:
All of you are those who become spiritual roses and, as flowers of the imperishable garden, give fragrance to others, are you not? All of you are spiritual roses and, seeing you spiritual roses, the whole world is attracted to you. Each of you spiritual roses is so valuable. You are invaluable and this is why, even now, the non-living images of all of you have value too. They give or receive each non-living image with so much value. It is just ordinary stone, silver or gold, and yet it has so much value. How much value would they place on a golden idol? How did it become so valuable? By belonging to the Father, you became constantly elevated. Constantly continue to sing songs of this fortune. Wah, my fortune! Wah, the Bestower of Fortune! And, wah, the confluence age! Wah, sweet drama! You know how to say, "Wah, wah!" for everything, do you not? You constantly sing songs of "Wah, wah!" do you not? BapDada is proud of the residents of London. London is the seed of the tree of service. Therefore, the residents of London are also the seed. Those from the UK means those who always remain OK; those who constantly keep a balance of studying and doing service; those who constantly experience progress at every step. Since you belong to the Father, you constantly have His company and His hand; every child has this over them. Do you experience this? Those who have the Father's hand over them are always safe. You are those who are always safe, are you not? Maya cannot come to the group that is OK. Maya also says, "OK! OK!" for all time and bids you farewell and goes away. The UK, that is, the OK group has very elevated company. You have very good company and a powerful atmosphere and so how could Maya come? You remain constantly safe. The OK group means the group of those who are conquerors of Maya.
Speaking to the Mauritius group:
Do you always consider yourselves to be greatly fortunate? What did you receive as your fortune? You attained God as your fortune. You received the Bestower of Fortune Himself as your fortune - what can be greater fortune than this? So, you constantly have this happiness: We souls are the most fortunate souls in the world with the greatest fortune. Not just “we” but “we souls”. When you say “souls”, you will not have the wrong type of intoxication. By being soul conscious, you will have elevated intoxication – spiritual, Godly intoxication. Souls are fortunate and, even today, their fortune is being remembered. The Bhagwad is the memorial of your fortune. It is such imperishable fortune that it is remembered even today. Continue to move constantly forward in this happiness. Kumaris are free from bondage - free from the bondage of the body, free from the bondage of the mind. Only those who are free from bondage are able to experience the flying stage. Achcha.
Blessing:May you remain detached from your part and loving to the Father, while playing your part in service, and become an easy yogi.
Some children say that they are sometimes able to have yoga but not at other times. The reason for this is a lack of detachment. Because you are not detached, you do not experience and, where there is no love, there is no remembrance. The greater the love, the easier the remembrance. Therefore, do not play your part on the basis of your relationship but play your part in terms of service and you will remain detached. Be like a lotus and remain detached from the atmosphere of the old world and be loving to the Father, and you will become an easy yogi.
Slogan:A gyani soul is one who merges the word “excuse” and finds a solution for every situation.
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.