Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 31-Aug- 2018 )
31-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अपनी स्थिति साक्षी तथा हर्षित रखने के लिए स्मृति में रहे कि हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है, बनी बनाई बन रही"
 
प्रश्नः-
 
तुम बच्चे किस एक पुरुषार्थ द्वारा अपनी अवस्था जमा सकते हो?
 
उत्तर:-
 
माया के तूफानों को डोन्टकेयर करो और बाप जो श्रीमत देते हैं उसे कभी भी डोन्टकेयर करो, इससे तुम्हारी अवस्था अचल-अडोल हो जायेगी, स्थिति सदा साक्षी और हर्षित रहेगी। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कभी भी रोना आये। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना.....
 
गीत:-
 
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो..... 
 
ओम् शान्ति।
 
बच्चों ने गीत सुना। अक्सर करके भक्ति मार्ग वाले मन्दिरों में जाते हैं, चाहे शिव के, चाहे लक्ष्मी-नारायण के, चाहे राधे-कृष्ण के या अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों में जायेंगे। सबके आगे यही महिमा करेंगे - त्वमेव माता--पिता..... फिर कहते हैं - त्वमेव विद्या द्रविणम्...... माना तुम मात-पिता भी हो, पढ़ाने वाले भी हो। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण वा राम-सीता को त्वमेव माता--पिता नहीं कहेंगे क्योंकि उन्हों को तो अपने ही बच्चे होंगे। वह ऐसी महिमा नहीं गायेंगे। वास्तव में महिमा एक शिव की है। वह महिमा गाते हैं देव-देव महादेव। माना तुम ब्रह्मा, विष्णु, शंकर से भी ऊंच हो। भक्ति मार्ग में तो कोई अर्थ समझ सके। अब बाप कहते हैं तुमने भक्ति बहुत की है, अब तुम मेरे से समझो और इस पर गौर करो कि सच क्या है, झूठ क्या है? तुम बच्चे अब समझते हो - बाप के बारे में और देवताओं के बारे में जो भी महिमा करते हैं वह सारी रांग है। अभी जो तुमको मैं समझाता हूँ वही राइट है।
 
बच्चों को समझाते हैं यह उल्टा वृक्ष है, इसका बीज है परमपिता परमात्मा। वह ऊपर में रहते हैं। वह तो चैतन्य बीज है ना। तुम ठहरे बच्चे। कई कहते हैं कि सब बीज आदि में भी आत्मा है। लेकिन वह तो जड़ है ना। बाप को कहा ही जाता है मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीजरूप। अब मनुष्य गाते हैं - गॉड फादर। अच्छा, झाड़ को तुम चैतन्य ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। मनुष्य में यह ज्ञान है कि यह बीज है। बीज में जरूर झाड़ का ज्ञान होना चाहिए। परन्तु जड़ होने के कारण बता नहीं सकते। मनुष्य तो समझ जाते हैं कि बीज नीचे है, उनसे झाड़ निकला हुआ है। कल्प वृक्ष और बनेन ट्री की भेंट करते हैं। वह जड़ है, यह चैतन्य है। कलकत्ते में बड़ का बहुत बड़ा झाड़ है। उनका थुर सारा निकल गया है, सिर्फ झाड़ खड़ा है। फाउण्डेशन है नहीं, वन्डर है ना। बाप समझाते हैं इस झाड़ का भी फाउण्डेशन है नहीं। देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है, बाकी सारा झाड़ खड़ा है। कितने मठ-पंथ हैं! यह है बेहद का झाड़। बेहद का बाप बैठ समझाते हैं। बाबा लिखते भी हैं शिवबाबा का बर्थ डे हीरे जैसा है क्योंकि शिवबाबा ही कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं, स्वर्ग बनाते हैं। अभी तो भारत कितना कंगाल बन गया है। मनुष्य हम सो, सो हम कहते हैं परन्तु समझते तो कुछ नहीं। हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा - यह ढिंढोरा सन्यासियों ने पिटवाया है। तुम अर्थ सहित जानते हो। हम सो ब्राह्मण बने हैं फिर हम सो देवता बनेंगे फिर हम सो क्षत्रिय..... वर्ण में आयेंगे। आत्मा कहती है हम इन वर्णों में जायेंगे। हम शूद्र थे, अभी हम ब्राह्मण कुल में आये हैं। परमपिता परमात्मा ही सबको रचने वाला है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देवताओं को भी रचने वाला वह है। अभी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। तुम कहते हो त्वमेव माता--पिता.... तो माता भी यह बरोबर है। बाप बैठ बच्चों को बहलाते हैं। भक्ति मार्ग में मीरा भक्तिन थी। वह है भक्त माला। ज्ञान माला भी है। ज्ञान माला का नाम है रुद्र माला। रावण माला नहीं कहेंगे। रावण की भक्ति तो नहीं करते। राम माला है। भल अभी रावण राज्य है परन्तु रावण की माला नहीं होती। भक्त माला होती है, असुरों की माला तो नहीं होती। भक्त शिरोमणी में एक तो मीरा है उनको कृष्ण का साक्षात्कार होता था। लोक लाज सारी खोई थी। सेकेण्ड नम्बर में शिरोमणी भक्त कौन है? नारद। हाँ, उनका गायन है, दृष्टान्त दिया जाता है। यह तो सब बातें बैठ बनाई हैं। रीयल नहीं है।
 
बाप कहते हैं कि मेल-फीमेल सब सीतायें हैं। सब रावण की शोकवाटिका में है। लंका की बात नहीं, भारत की ही बात है। एक ही बाप सर्व का सद्गति दाता है। वह एक हो तो भारत कुछ काम का नहीं है। सबसे जास्ती पतित और सबसे जास्ती पावन भारत ही बनता है। भारत ही सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। भल अपने-अपने पैगम्बरों के तीर्थों पर जाते हैं परन्तु सबका सद्गति दाता एक बाप है। भारत ही अविनाशी खण्ड है। बाप कहते हैं मैं यहाँ आकर भारत को जीवनमुक्ति देता हूँ, बाकी सबको मुक्ति देता हूँ, सबका सद्गति दाता मैं हूँ। सचखण्ड स्थापन करने वाला बाप एक ही है। सचखण्ड में राज्य करने के लिए बच्चों को लायक बनाते हैं, खुद राज्य नहीं करते। बाप बैठ समझाते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ भारत को सद्गति देने। बाकी सबको गति में वापस ले जाता हूँ। हर एक मनुष्य मात्र की जो आत्मा है, हर एक में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इसको कहा जाता है बनी बनाई बन रही..... समझो, किसका बाप मर गया, उसने जाकर दूसरा जन्म लिया, अब रोने से क्या होगा? साक्षी होकर देखना है। यह ड्रामा है, इसमें रोने की दरकार नहीं है। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना है। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाओ, बीबी मरे तो भी हलुआ खाओ। यह उन्हों के लिए है जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कुछ भी दु: हो। बेहद के बाप को याद करते रहना है। इतनी अडोल अवस्था होनी चाहिए जैसे अंगद को रावण हिला नहीं सका। माया है बड़ी जबरदस्त। तुम स्थेरियम रहते हो। माया के कितने भी तूफान लगे, डोंटकेयर, घबराना नहीं है, फंक नहीं होना है। पुरुषार्थ करके अवस्था को जमाना है। बातें तो बहुत अच्छी समझाते हैं। तुम समझते हो हम पार्वतियां हैं, शिवबाबा अमरकथा सुनाते हैं। अमरलोक में है आदि-मध्य-अन्त सुख। इस मृत्युलोक में तो आदि-मध्य-अन्त दु: ही दु: है। त्योहार आदि सब इस समय के हैं। लक्ष्मी-नारायण आदि का कोई त्योहार नहीं। वह क्या सर्विस करते हैं। तुम ब्राह्मण बहुत सर्विस करते हो। देवताओं की आत्मा को सोशल वर्कर नहीं कहेंगे - जिस्मानी, रूहानी। तुम हो रूहानी-जिस्मानी डबल सोशल वर्कर।
 
अच्छा, मनुष्यों को नष्टोमोहा बनने में मेहनत लगती है क्योंकि उनके पास कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। यहाँ तो तुमको प्राप्ति बहुत है तो बहुत नष्टोमोहा होना चाहिए ना। एक बाबा के साथ योग लगाना है - बाबा, मीठे-मीठे बाबा, आपको हमने पूरा जान लिया है, आगे तो सिर्फ कहने मात्र गॉड फादर कहते थे, अभी तो आप आये हो फिर से स्वर्ग की राजाई देने, यह कलियुग तो कब्रिस्तान होने वाला है इसलिए हम इसको क्यों याद करें। बाप कहते हैं इस कब्रिस्तान में, गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे याद करो। यह तो बहुत सहज है। जैसे भक्ति मार्ग में मनुष्य कृष्ण की पूजा करते रहते हैं, बुद्धि धन्धे धोरी में भागती रहती है। मन का घोड़ा कहाँ कहाँ भागता रहेगा, तवाई के मुआफिक। बाप कहते हैं कि शरीर निर्वाह करते बुद्धि का योग मेरे साथ लगाओ। मेरी याद से तुम्हें बहुत प्राप्ति होगी। और सबसे तो अल्पकाल की प्राप्ति होती है। कितनी नौधा भक्ति की, अच्छा, फिर क्या हुआ? साक्षात्कार किया, बस ना। मुक्ति-जीवन-मुक्ति तो नहीं मिली। अब बाप कहते हैं कि तुम 21 जन्मों के लिए विश्व के मालिक बनते हो। स्वर्ग में गर्भ भी महल होता है। यहाँ तो गर्भ जेल है। कृष्ण जन्माष्टमी आदि का तुमको कुछ भी मनाना करना नहीं है। तुमको सिर्फ समझाना है कि कृष्ण का जन्म कब हुआ? कृष्ण अभी कहाँ है? तुम जानते हो अभी हम कृष्णपुरी का मालिक बनने के लिए पढ़ रहे हैं। बाप के पास बैठे हैं। बाप को हाथ जोड़े जाते हैं क्या? टीचर पढ़ाते हैं तो क्या उनको हाथ जोड़ना होता है, महिमा करनी होती है? टीचर से तो पढ़ना है। बच्चे बाप को घड़ी-घड़ी हाथ जोड़ते हैं क्या? इस समय तो तुम घर में हो। तुमको भासना आती है यह बाप भी है, पतित-पावन भी है। इस समय 5 विकारों का ग्रहण लगने के कारण तुम बिल्कुल ही काले बन गये हो। 5 विकारों ने काला कर दिया है। सतयुग में तुम गोरे सुन्दर थे, अभी श्याम हो। श्रीकृष्ण सुन्दर था, अभी श्याम है। कितने बारी श्याम और सुन्दर बना होगा! कंसपुरी ही कृष्णपुरी बन जाती है। कृष्णपुरी फिर कंसपुरी बन जाती है।
 
तुम आत्मायें ही तो ब्रह्माण्ड की रहने वाली हो। ब्रह्म तत्व कहा जाता है। अहम् ब्रह्म कहना भी भ्रम है। तुम ब्रह्माण्ड के मालिक हो। तुम्हारा सिंहासन ब्रह्माण्ड है। बाप कहते हैं मैं तो ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ ही। तुम आत्मायें भी कहती हो - हमारा देश वास्तव में ब्रह्माण्ड है। वहाँ तुम्हारी आत्मायें पवित्र हैं। तुम ब्रह्माण्ड के मालिक हो तो फिर विश्व के भी मालिक हो। मैं तो सिर्फ ब्रह्माण्ड का ही मालिक हूँ। मुझे इस पुराने तन में आना पड़ता है, जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं। बच्चों को मुरली अच्छी तरह 5-6 बार पढ़ना वा सुनना चाहिए तब ही बुद्धि में बैठेगी और खुशी का पारा चढ़ेगा। माया घड़ी-घड़ी याद भुला देती है। इसमें कोई हठ आदि करने की बात नहीं। फुर्सत मिली, अच्छा, बाबा को याद करना है कछुए मिसल। सबसे अच्छा है - अमृतवेले का टाइम। उसका असर सारे दिन रहेगा। यह भी बच्चों को समझाया गया है कि पहले खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाना है। शिवबाबा के यज्ञ से खाते हैं तो पहले उनको भोग लगाना पड़े। यह सब सूक्ष्मवतन में साक्षात्कार होते हैं। ड्रामा में नूंध है। तुमको भोग लगाना है शिवबाबा को। वह तो निराकार है। गाया भी जाता है देवताओं के लिए - उनको ब्रह्मा भोजन की आश थी क्योंकि तुम ब्रह्मा भोजन खाकर ब्राह्मण से देवता बनते हो। सूक्ष्मवतन में देवतायें आते हैं, महफिल लगती है, यह सब खेल-पाल है। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) बुद्धि में पूरी एम ऑब्जेक्ट रख नष्टोमाहा बनना है। इस कब्रिस्तान को भूल बाप को याद करना है। रूहानी जिस्मानी सेवा करनी है।
 
2) खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाना है। अमृतवेले का समय अच्छा है इसलिए उस समय उठकर बाप को याद करना है। मुरली 5-6 बार सुननी वा पढ़नी जरूर है।
 
वरदान:-रूहानी नशे द्वारा दु:-अशान्ति के नाम निशान को समाप्त करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव
 
रूहानी नशे में रहना अर्थात् चलते-फिरते आत्मा को देखना वा आत्म-अभिमानी रहना। इस नशे में रहने से सर्व प्राप्तियों का अनुभव होता है। प्राप्ति स्वरूप रूहानी नशे में रहने वाली आत्मा के सब दुख दूर हो जाते हैं। दुख-अशान्ति का नाम निशान भी नहीं रहता क्योंकि दुख और अशान्ति की उत्पत्ति अपवित्रता से होती है। जहाँ अपवित्रता नहीं वहाँ दु: अशान्ति कहाँ से आई! जो पावन आत्मायें हैं उनके पास सुख और शान्ति स्वत: ही है।
 
स्लोगन:-जो सदा एक की लगन में मगन हैं वही निर्विघ्न हैं।
  
31/08/18              Morning Murli   Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, in order to make your stage that of a detached observer and cheerful, remain aware that each soul has his own part and that that which is predestined is taking place.
 
Question:
 
By making which one effort can you children create your stage?
 
Answer:
 
Don't care about the storms of Maya but never have a “don't care” attitude towards the shrimat that the Father gives you. By doing this, your stage will become unshakeable and immovable and it will also be cheerful and that of a detached observer. Your stage should be such that you never have to cry. Even if your mother dies, eat halva!
 
Song:
 
You are the Mother and the Father. 
 
Om Shanti
 
Children heard the song. Generally, people of the path of devotion go to the temples of Shiva, Lakshmi and Narayan, Radhe and Krishna or any of the other gods and goddesses. They sing the same praise in front of all of them: You are the Mother and the Father. Then they say: You are the One who gives knowledge, which means: You are the Mother and the Father and You are also the One who teaches us. In fact, you cannot say, "You are the Mother and the Father" to Lakshmi and Narayan or to Rama and Sita because they would have their own children who would not sing such praise. In fact, praise is of the one Shiva. Those people sing the praise, “Dev, Dev, Mahadev”, which means “You are greater than Brahma, Vishnu and Shankar.” They can't understand the meaning of anything on the path of devotion. The Father now says: You have performed a lot of devotion. Now understand what I say and think about what is true and what is false. You children now understand that the praise that is sung of the Father and the deities is all wrong. Only that which I explain to you now is right. He explains to you children: This is an inverted tree and its Seed is the Supreme Father, the Supreme Soul. He lives up above. He is the Living Seed, whereas you are the children. Some people say that there is a soul in all seeds. However, those are non-living. The Father is called the Living Seed of the human world tree. People sing: O God, the Father! Achcha, you would not call a tree the Living Ocean of Knowledge. People have knowledge that that is a seed. The seed should definitely have knowledge of the tree. However, because it is non-living, it cannot say anything. Human beings understand that the seed is down below and that the tree emerges from it. The kalpa tree is compared to the banyan tree. That (kalpa tree) is living and this is non-living. There is a very big banyan tree in Calcutta. Its foundation has decayed but the tree is still standing. The wonder is that it doesn't have a foundation. The Father explains: This tree doesn't have a foundation either. The deity religion has disappeared but the rest of the tree exists. There are so many sects and cults. This is the unlimited tree. The unlimited Father sits here and explains. Baba writes that the birthday of Shiv Baba is like a diamond because Shiv Baba is the only One who changes us from shells into diamonds and creates heaven. Bharat has now become so poverty-stricken. People say, "Hum so, so hum", but they don't understand anything. Sannyasis have been beating drums, saying "I, the soul, am the Supreme Soul and the Supreme Soul is the soul." You now know the meaning of everything. We have become Brahmins, then we will become deities and we will then go through the castes of warriors, merchants etc. The soul says: I will go through these castes. I was a shudra and have now come into the Brahmin caste. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the One who has created everyone. He is also the One who created the deities Brahma, Vishnu and Shankar. The Father now sits here and explains to you children. You say: You are the Mother and the Father. Therefore, this one is truly the mother. The Father sits here and entertains you children. Meera was a devotee on the path of devotion. That is the rosary of devotees. There is also the rosary of knowledge. The name of the rosary of knowledge is the rosary of Rudra. "The rosary of Ravan" wouldn’t be said. People don't perform devotion of Ravan. There is the rosary of Rama. Although it is now the kingdom of Ravan, there is no rosary of Ravan. There is the rosary of devotees, but there cannot be a rosary of devils. One of the highest devotees was Meera who had visions of Shri Krishna. She completely let go of the opinion of society. Who is the second highest devotee? Narad. He is praised and his example is given. People have sat and made up those stories, because they are not real. The Father says: All males and females are Sita. All are in Ravan’s cottage of sorrow. It is not a question of Lanka, but of Bharat. Only the one Father is the Bestower of Salvation for All. If that One didn't exist, Bharat would be of no use. It is Bharat that becomes the most impure and the most pure. Bharat is the greatest pilgrimage place of all. Although people go to the pilgrimages places of their own prophets, the Bestower of Salvation for All is the one Father. Bharat alone is the imperishable land. The Father says: I come here and give liberation-in-life to Bharat and liberation to all the rest. I am the Bestower of Salvation for All. There is only the one Father who establishes the land of truth. He makes you children worthy of ruling in the land of truth, but He Himself doesn't rule. The Father sits here and explains: I come here every cycle to give Bharat salvation. I take all the rest back with Me to liberation. The soul of every human being has an imperishable part recorded in him. This means that that which is predestined is taking place. For instance, when a person’s father has died and taken another birth, what would be achieved by that person crying? You just have to observe everything as a detached observer. This is the drama. There is no need to cry. You have to live at home with your family. If your mother dies, eat halva, or if your wife dies, eat halva. This is said for those who live at home with their families. Your stage should be such that you don't experience any sorrow. You have to continue to remember your unlimited Father. Your stage should be as unshakeable as when Ravan was unable to shake Angad. Maya is very powerful. You remain stable. No matter how many storms of Maya come, don't care about them. You mustn't be afraid or confused by them. Make effort and make your stage strong. Very good things are explained. You understand that you are Parvatis. Shiv Baba is telling you the story of immortality. In the land of immortality, there is happiness from its beginning through the middle to its end. In this land of death, there is nothing but sorrow from its beginning through the middle to the end. All the festivals etc. refer to this time. There are no festivals of Lakshmi and Narayan etc. What service do they do? You Brahmins do a lot of service. The souls of deities are not called social workers: they are neither physical nor spiritual social workers. You are double social workers: physical and spiritual. OK, people find it difficult to become conquerors of attachment because they don't have any aim or objective. Here, you have a lot of attainment and so you should have totally destroyed your attachment. Have yoga with the one Baba. Baba, o sweet Baba, we now know You fully! Previously, we used to say "God, the Father" just for the sake of saying it. You have now come here to give us the sovereignty of heaven once again. This iron age is going to become a graveyard, so why should we remember it? The Father says: While living at home with your family in this graveyard, remember Me. This is very easy. People continue to worship Krishna on the path of devotion, and their intellects continue to wander to their businesses etc. The horse of the mind constantly runs somewhere or other like a madman. The Father says: While earning your physical livelihood, connect your intellects in yoga to Me. You will receive a lot of attainment by remembering Me. You receive temporary attainment from everyone else. OK, you performed so much intense devotion, but what happened then? You had visions and that was all! You didn't receive liberation or liberation-in-life. The Father now says: You are to become the masters of the world for 21 births. In heaven, even the womb is like a palace. Here, the womb is a jail. You don't have to celebrate the birthday of Krishna at all. You just have to explain when it was the birth of Krishna. Where is Krishna now? You know that you are now studying to become the masters of the land of Krishna. You are sitting with the Father. Would you salute your father by putting your palms together in front of Him? When a teacher is teaching you, do you put your palms together in front of him? Do you have to praise him? You have to study with the teacher. Do children repeatedly put their palms together in front of their father? At this time, you are at home. You have the feeling that that One is the Father and also the Purifier. At this time, because there is the eclipse of the five vices, you have become absolutely ugly. The five vices have made you ugly. In the golden age, you were beautiful and you are now ugly. Shri Krishna was beautiful and is now ugly. How many times would he have become ugly and beautiful? The land of Kans, the devil, becomes the land of Krishna, and the land of Krishna then becomes the land of Kans. You souls are residents of Brahmand. It is called the brahm element. To say "I am brahm" is also an illusion. You are the masters of Brahmand. Your throne is the brahm element. The Father says: I am the Master of Brahmand. You souls also say: Actually, our land is Brahmand. There, you souls are pure. You are the masters of Brahmand and then also the masters of the world. I am only the Master of Brahmand. I have to enter this old body of the one who has taken the full 84 births. You children should read or listen to the murli very well five or six times, for only then will it sit in your intellects and your mercury of happiness rise. Maya repeatedly makes you forget to have remembrance. There is no question of forcing yourself in this. When you have time, just remember Baba and become like a tortoise. The best time is in the early morning hours. The effect of that time would last throughout the whole day. It has also been explained to you children that you first have to feed the One who is feeding you and then eat it yourself. You are eating from Shiv Baba's sacrificial fire and so you first have to offer Him bhog. You have all those visions in the subtle region. It is fixed in the drama. You have to offer bhog to Shiv Baba. He is incorporeal. It is remembered that the deities desired to have Brahma Bhojan because you become deities from Brahmins by eating Brahma Bhojan. Deities come to the subtle region and a happy gathering takes place there. All of that is fun and games. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Keep your aim and objective fully in your intellect and become a conqueror of attachment. Forget this graveyard and remember the Father. Do spiritual and physical service.
 
2. First of all, feed the One who is feeding you and then eat. The time of the early morning hours is good. Therefore, wake up at that time and remember the Father. You definitely have to read or listen to the murli five or six times.
 
Blessing:
 
May you be an embodiment of all attainments and finish all name and trace of sorrow and peacelessness with your spiritual intoxication.
 
To have spiritual intoxication means to see souls while walking and moving around and to be soul conscious. By having this intoxication you experience all attainments. All sorrow is removed from a soul who is an embodiment of attainments and has spiritual intoxication. There is then no name or trace of sorrow or peacelessness because sorrow and peacelessness arise from impurity. Where there is no impurity, how could there be sorrow or peacelessness? Pure souls have natural happiness and peace within them.
 
Slogan:
 

Those who are constantly absorbed in the love of One are free from obstacles.

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