Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 27-Aug- 2018 )
27-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - श्रीमत पर ज्ञान का चन्दन घिसना वा पवित्र बनना ही स्वराज्य लेना है, तुम पवित्रता की प्रतिज्ञा करो तो सूर्यवंशी घराने का तिलक मिलेगा"
 
प्रश्न:
 
तुम बच्चों को राखी कौन बांधता है, तिलक कौन देता है और मुख मीठा कराने की रस्म क्यों है?
 
उत्तर:
 
तुम्हें बड़ी मम्मी (ब्रह्मा माँ) राखी बांधती है, पवित्र बनाती है, जब तुम पवित्र बनने की प्रतिज्ञा कर लेते हो तो बाप स्वराज्य का टीका देते हैं। मुख मीठा कराना अर्थात् सर्व वरदान दे देना। बाप ने स्वराज्य के तिलक के साथ-साथ सर्व वरदान भी दिये हैं, इसी की रस्म यादगार में चली आई है।
 
गीत:-
 
इधर मुहब्बत उधर जमाना........ 
 
ओम् शान्ति।
 
भगवानुवाच। अच्छा, भगवान् का नाम चाहिये क्योंकि भगवान् का एक ही नाम होता है। मनुष्यों के तो अनेक नाम पड़ते हैं। जैसा शरीर धारण करते जाते, नाम बदलता जाता है। शरीर तो जरूर सबको है और जन्म-मरण में भी आते हैं। तो अनेक नाम पड़ते हैं। मुहब्बत भी बहुतों से होती है। चाचा, मामा, काका, गुरू-गोसाई आदि ढेर से मुहब्बत होती है। कितने सम्बन्धी हैं! अब यह सम्बन्ध तो है एक। वह अनेक सम्बन्ध तो नीचे ले जाते हैं, गिराते ही रहते हैं। यह एक ही सम्बन्ध ऊंच ते ऊंच है। यह ऊंच ही ले जाते हैं। अभी तुम जीव आत्माओं की मुहब्बत लगी है परमपिता परमात्मा से। वह तुमको बहुत ऊंच ले जाते हैं। वह है ही परमधाम में रहने वाला। यह तो निश्चय है ना? अगर कहें पता नहीं, तो तुम आये कहाँ से? ऊपर से ही यहाँ आये हो ना। तुम भी असल में ऊंच ते ऊंच परमधाम, मूलवतन में रहने वाले हो, बीच में है सूक्ष्मवतन और यह है स्थूल वतन। बरोबर तुम वहाँ से आये हो। भिन्न-भिन्न नाम-रूप लेते हो। अब 84 जन्म पूरे किये, अब फिर वापिस जाना है। अब तुम्हारी मुहब्बत बाप से है। जानते हो हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। यह भी जानते हो पहले-पहले हमको पवित्रता की राखी बांधते हैं। बाप कहते हैं - हे बच्चे, इस काम महाशत्रु को जीतो वा माया रावण पर जीत पाओ, इसके लिये पुरुषार्थ करना है। अन्धश्रद्धा की बात नहीं। जरूर बाप को ही याद करना पड़े। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा तुमको राखी बांधता हूँ। इसको कहा जाता है राखी बांधने का उत्सव, पवित्रता की प्रतिज्ञा करने का उत्सव। फिर क्या होगा? मैं स्वराज्य पाने का टीका दूँगा। यह बाप तुम्हारे सम्मुख बैठे हैं। तुम जानते हो पवित्रता के लिये ही तकल़ीफ सहन करते हैं। तुम्हारे मित्र-सम्बन्धी आदि सब दुश्मन बन पड़ते हैं। बाप तुम्हें डायरेक्ट कहते हैं - बच्चे, पवित्र बनो। बेहद का बाप शिवबाबा आकर तुमको सच्चा स्वराज्य देते हैं। आत्माओं को राजाई मिलती है। अभी आत्माओं को गदाई है।
 
राखी पर्व को राखी उत्सव नहीं कहेंगे। उत्सव में तो बहुत शादमाना करते हैं। इस पवित्रता की राखी बांधने में कोई खर्चे आदि की बात नहीं। बाप खुद कहते हैं - बच्चे, मेरे से प्रतिज्ञा करो फिर तुम स्वराज्य पायेंगे। स्वराज्य का टीका खुद बैठ देते हैं। बच्चों को बाबा ने साक्षात्कार भी कराया था - वहाँ कैसे बाप ही बच्चों को तिलक देकर अपने तख्त पर बिठाते हैं। तो जो सूर्यवंशी बनेंगे वही गद्दी पर बैठेंगे। माँ-बाप ही बच्चे को राज्य-भाग्य देते हैं। समझते हैं बच्चा ही गद्दी-नशीन होगा। यह बाप भी खुद आकर तुम आत्माओं को ज्ञान-अमृत से साफ करते हैं। ज्ञान-अमृत कोई जल नहीं है। बाप कहते हैं तुमने 63 जन्म विषय सागर में गोते खाये हैं। सिकीलधे बच्चे, अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, अब यह अन्तिम जन्म तुम पवित्र बनो। मेरी मत पर चलो। तुम स्वराज्य पाने के लिये बाप के पास आये हो ना। राजा के पास बच्चा आता है, समझता है मैं राजाई पाऊंगा। परन्तु उसको कोई स्वराज्य नहीं कहा जाता। स्व माना आत्मा। तो आत्मा को राज्य मिलता है। परन्तु ज्ञान नहीं है कि हम आत्मा ने प्रिन्स का शरीर धारण किया है महाराजा-महारानी बनने के लिये। टीके का भी उत्सव गाया जाता है। बच्चे ज्ञान चन्दन घिसें, पवित्र बनें, श्रीमत पर चलें तो बाप टीका लगायेंगे। बाप खुद तो राज्य नहीं लेते हैं, खुद गद्दी पर नहीं बैठते हैं। ऐसा बाप कभी देखा, जो बच्चों को गद्दी पर बिठाते हैं, खुद नहीं बैठते?
 
यह ब्रह्मा भी पुरुषार्थी है। शिवबाबा है पुरुषार्थ कराने वाला। यह अपनी बड़ाई कुछ भी नहीं करते हैं। शिवबाबा आकर इनको भी हीरे जैसा बनाते हैं। तो मुख्य बात है पवित्र रहना। भल घर में इकट्ठे रहते हो लेकिन पवित्र रहो। बाप ने यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। यज्ञ हमेशा ब्राह्मणों द्वारा रचा जाता है। श्रीकृष्ण कहे कि मैं यज्ञ रचता हूँ, यह हो नहीं सकता। तुम हो ब्राह्मण, ब्रह्मा के मुख वंशावली। तुम श्रीमत पर चल रहे हो। ब्रह्मा को श्री नहीं कह सकते हैं। यहाँ तो आत्मा और शरीर दोनों पतित हैं। तुम श्री बन रहे हो। अभी तुमको श्री नहीं कहेंगे। अभी तुम श्रेष्ठ बन रहे हो। ऊंचे ते ऊंच बाप ही आकर तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं, लक्ष्मी-नारायण जैसा। ऐसा श्रेष्ठ 16 कला सम्पूर्ण तुमको बनना है। बाप पूछते हैं तुमको लक्ष्मी-नारायण बनने का नशा है या राम-सीता का नशा है? कहेंगे लक्ष्मी-नारायण का नशा है। हम तो सूर्यवंशी बनेंगे। दो कला कम हम चन्द्रवंशी क्यों बनें? हम तो नारायण को अथवा लक्ष्मी को वरेंगे। तुम्हारे मम्मा और बाबा भी सूर्यवंशी बनेंगे। जगत अम्बा और जगत पिता दोनों सूर्यवंशी बनते हैं तो तुम उनके बच्चे जो बाबा-मम्मा कहते हो तुमको भी पुरुषार्थ करना चाहिये। बाबा टीका भी लगाते हैं और मुख भी मीठा कराते हैं अर्थात् तुमको वरदान देते हैं ना। विजय का टीका लगाकर वरदान देते हैं कि तुम सदा ऐसा स्वराज्य पायेंगे। यथा राजा-रानी तथा प्रजा राज्य-भाग्य भोगते हैं। परमपिता परमात्मा द्वारा एक ही बार राज्य स्थापन होता है। यह है ऑलमाइटी अथॉरिटी राज्य। वाइसलेस दुनिया भी गाई हुई है। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम देवतायें कभी काम कटारी से हिंसा नहीं करते हैं। 63 जन्म तो तुम एक-दो पर काम कटारी चलाते आये हो। अमरलोक में काम कटारी नहीं होती। यहाँ काम कटारी से तुम पतित होते-होते तमोप्रधान बन पड़े हो।
 
अभी तुम बच्चे समझते हो - बरोबर, बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। भारत में ही जन्म लेते हैं। बाप ने वैकुण्ठ की सौगात लाई है। आधाकल्प रड़ियाँ मारी है - गॉड फादर, रहम करो, मेहर करो। भक्ति मार्ग में गाते हैं ना। सतयुग में थोड़ेही रड़ियां मारेंगे। वहाँ तो सदैव सुख है। दु: में सिमरण सब करे, सुख में करे कोई। अनेक प्रकार के दु: होते हैं ना। देवाला मारते हैं तो कितना दु: होता है। बीमारी आदि होती है तो दु: होता है ना। स्वर्ग में दु: का नाम-निशान नहीं। बाप आकर तुम बच्चों को राज्य-भाग्य का टीका देते हैं। यह है दु:खधाम, वह है सुखधाम। शान्तिधाम में तो आत्मा कुछ बोलती नहीं है। यहाँ फिर टॉकी बनती है। तुम्हारा स्वधर्म ही है शान्ति। अभी तुमको सुख-शान्ति का स्वराज्य मिलता है। तो बाप का बच्चा बनकर उनकी श्रीमत पर चलना चाहिये। पढ़ाई के समय सारा अटेन्शन पढ़ाई में देना होता है। पढ़ाई के समय और व्यर्थ बातों का वर्णन नहीं चलता। अगर कोई उल्टा-सुल्टा बोलते हैं तो कहेंगे - अटेन्शन प्लीज़। तो बाप बच्चों को कहते हैं तुम्हारी बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए। बाहर धक्के खाने वालों के ख्यालात इधर-उधर दौड़ते रहेंगे। समझेंगे कहाँ छुट्टी हो तो घर जायें। अब तुम बच्चों को पढ़ना और पढ़ाना है। ब्राह्मणों का धन्धा ही है गीता सुनाना। वह ब्राह्मण भी गीता सुनाते हैं, शरीर निर्वाह भी करते हैं। तुमको भी ऐसे कहा जाता है गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान पवित्र रहना है। प्रतिज्ञा करनी है - यह अन्तिम जन्म पवित्र रहेंगे। यह अपवित्र दुनिया विनाश होनी है। विनाश की तैयारी भी देख रहे हो। होलिका जलेगी। वास्तव में यह सब उत्सव इस समय के हैं। बाप तुमको तिलक देते हैं। तुम्हारी बुद्धि कहती है - बाबा हमको सतयुग का, विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं अथवा स्वराज्य का तुम तिलक पाते हो। बाप ही तिलक देते हैं। यहाँ तो तुम सम्मुख बैठे हो। राज्य-भाग्य वह लेंगे जो पवित्र रहेंगे। राखी का महत्व बड़ा भारी है। कहते हैं - बहन भाई को टीका लगाकर राखी बांधती हैं। तो बहनें तुम भाइयों को तिलक लगायेंगी, राखी बांधेंगी और मुख मीठा करायेंगी। यह उत्सव कहाँ से शुरू हुआ? संगमयुग से, जबकि परमपिता परमात्मा पवित्र रहने की प्रतिज्ञा कराते हैं। शिवरात्रि का भी उत्सव है, फिर राखी का उत्सव, फिर है दशहरा, फिर दीपावली का उत्सव, नवरात्रि का उत्सव - यह सब उत्सव चलते आये हैं। तुमको तो खुशी होती है। दशहरा अर्थात् विनाश के बाद फिर दीपावली आयेगी। घर-घर में स्वर्ग होगा।
 
तुम शिवबाबा की, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की, लक्ष्मी-नारायण की - सबकी जीवन कहानी बता सकते हो। सारे चक्र को तुम जानते हो। राम-सीता को भी तुम जानते हो, नापास हुए इसलिये मार्क्स कम मिली। बाकी 8-10 भुजायें कोई को हैं नहीं। कितने चित्र बैठकर बनाये हैं। इसको कहा जाता है वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी, वेस्ट ऑफ इनर्जी। अभी तुम जानते हो - हम आये हैं स्वराज्य का वर्सा लेने। हम श्रीमत पर क्यों नहीं चलेंगे, जैसे मात-पिता चल रहे हैं। यह तो समझने की बात है। बाप है मनुष्य सृष्टि का रचयिता। बेहद का बाप है ना। कितने बच्चे एडाप्ट करते हैं। प्रजापिता है ना। वह लौकिक बाप तो करके एक बच्चे को गोद में लेते हैं। उनको प्रजापिता तो नहीं कहेंगे ना। कई ऐसे भी होते हैं, एडाप्ट करते हैं फिर बच्चा हो जाता है तो उस बच्चे पर जास्ती प्यार हो जाता है। गोद में लिये हुए बच्चे को फिर कम प्यार करते हैं। अब तुम तो समझते हो हम ईश्वरीय गोद में जाते हैं। ईश्वर हमको टीका लगायेंगे - पवित्रता का। तुम दिल अन्दर प्रतिज्ञा करते हो - बाबा, आप आये हो, हम आपका सपूत बच्चा बन, पवित्र बन आपसे वर्सा लेंगे।
 
अभी सबकी कयामत का समय है। पापों का हिसाब-किताब चुक्तू कर पुण्य का जमा करना है। बाप की याद से ही जमा होता है। जितना याद करते जायेंगे और अविनाशी ज्ञान-रत्नों का दान करते जायेंगे तो ख़ाता जमा होगा। जितना सर्विस करेंगे उतना जमा होगा। जमा होते-होते राजधानी बन जायेगी। 8 हैं मुख्य रत्न। 8 रत्न का जेवर भी बनाते हैं ना। देवियों के साथ देवतायें भी होंगे ना। परन्तु मैजारिटी माताओं की होने के कारण अधिकतर देवियों की पूजा होती है। अच्छा, राखी कौन बांधते हैं? शिवबाबा खुद तुम्हारे सम्मुख बैठे हैं। तो शिवबाबा राखी भी बांधेंगे, तिलक भी देंगे, मुख भी मीठा करायेंगे। इसका मतलब तुम भविष्य में सदा सुखी रहेंगे। तुम फिर बाबा को सौगात देते हो ना। क्या सौगात देते हो? अपना सब कुछ। तो बाबा कहते हैं - मैं फिर तुमको 21 जन्म का वर्सा देता हूँ, लेन-देन का हिसाब है ना। बाबा सौदागर है। लेते क्या हैं और देते क्या है? कहते हैं ईश्वर अर्थ दान दिया क्योंकि जानते हैं ईश्वर भाड़ा देगा। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में भी मैं तुमको भाड़ा देता हूँ। अभी फिर डायरेक्ट आया हूँ। तुमको कितना अविनाशी रत्नों का दान देता हूँ। तुम भी फिर औरों को दान करते हो। तुम तो सब भाई-भाई हो, तुमको फिर यह बड़ी मम्मी राखी बांधती है। बाप तिलक लगाते हैं। यह मात-पिता दोनों इकट्ठे हैं। माँ राखी बांधे, बाप तिलक दे तो तुम राजा-रानी बन जायेंगे। तुम्हारी मुहब्बत परमात्मा से है, जो भारतवासियों को तिलक देने आया है। भारत को स्वर्ग किसने बनाया? बाप आया है ना। श्रीकृष्ण तो है रचना नम्बरवन और शिवबाबा है रचयिता नम्बरवन। तो तुम बच्चों को खुशी का पारा नाखून से चोटी तक रहना चाहिये। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
 
1) दिल की मुहब्बत एक बाप से रखनी है, देहधारियों से नहीं क्योंकि सर्व सम्बन्धी एक बाप है।
 
2) पढ़ाई के समय अपना फुल अटेन्शन पढ़ाई में देना है, व्यर्थ बातों का वर्णन-चिन्तन नहीं करना है। बुद्धि को भटकाना नहीं है।
 
वरदान:अपने शुभ चिंतन द्वारा वातावरण को शक्तिशाली बनाने वाले सदा सहयोगी सन्तुष्ट आत्मा भव!
 
कभी किसी बात के कारण वातावरण नीचे ऊपर होता है तो सहयोगी आत्माओं का काम है हलचल में आने के बजाए वातावरण को शक्तिशाली बनाने में सहयोगी बनना। सदा सहयोगी अर्थात् सदा सन्तुष्ट। एक बाप दूसरा कोई। कोई भी संकल्प आये तो ऊपर देकर स्वयं नि:संकल्प हो जाओ। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति में बिजी रहो। शुभ भावना से जो शुभ सकंल्प रखेंगे वह पूरा अवश्य होगा लेकिन उसके लिए अवस्था एकरस हो और चिंतन शुभ हो।
 
स्लोगन:सबसे बड़े धनवान वह हैं जिनके पास पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ खजाना है।
 
 
 
27/08/18 Morning Murli                Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, to apply knowledge like sandalwood (create the fragrance) according to shrimat and become pure is to claim the kingdom of self-sovereignty. Make a promise to remain pure and you will receive the tilak of the sun-dynasty kingdom.
 
Question:
 
Who ties a rakhi on you children? Who puts this tilak on you? Why is there the custom of offering sweets to sweeten your mouth?
 
Answer:
 
Your senior mummy (Mother Brahma), ties the rakhi on you to purify you. Then, when you make a vow to remain pure, the Father puts the tilak of self-sovereignty on you. “To sweeten your mouth” means to bestow all blessings. Along with the tilak of self-sovereignty, the Father has also given you all blessings. The memorial of this custom has continued.
 
Song:
 
There is love on this side and the world on the other side. Which way should I go? 
 
Om Shanti
 
God speaks. Achcha. God definitely has to have a name. God only has one name. Human beings have many names. Each time you take a new body, your name also changes. Everyone definitely has a body and enters the cycle of birth and death and they are also given many different names. People have love for many: maternal uncles, paternal uncles, gurus and holy men etc. They have love for so many. They have many different relations. There is now only the one Relation. All other relations have been pulling you down and making you fall. Only that one Relation is the Highest-on-High and He takes you to the highest destination. You human souls now have love for the Supreme Father, the Supreme Soul. He takes you very high up. You have the faith that He resides in the supreme region. If you say: “I don’t know”, then where did you come from? You have come here from up above. You too are originally residents of the highest on high, the supreme abode, the soul world. This is the physical region and in between the two is the subtle region. You definitely came here from there. You then adopted various forms and names. You have now completed your 84 births; it is now time to go back. Your love is now for the Father. You understand that you are now sitting in front of the Mother and Father. You also know that, first of all, a rakhi of purity is tied on each of you. The Father says: O children, conquer lust, your greatest enemy, that is, conquer Maya, Ravan. You have to make effort for this. This is not a question of blind faith. You definitely have to remember the Father. The Father says: I tie a rakhi on you through Brahma. This is called the festival of tying rakhi, the festival of making the vow of purity. What will happen then? I will give you the tilak of gaining self-sovereignty. This Father is sitting personally in front of you. You understand that you have to tolerate many difficulties because of purity. All your friends and relations etc. become your enemies. The Father tells you directly: Children, become pure! Shiv Baba, the unlimited Father, comes and gives you true self-sovereignty. Souls receive a kingdom; souls now have ‘donkeyship’. The Festival of Rakhi cannot really be called a celebration of rakhi, because people spend a great deal on external splendour for a celebration, whereas there is no question of incurring any expense in having a rakhi of purity tied. The Father Himself says: Children, make a promise to Me and you will then claim self-sovereignty. Baba Himself puts the tilak of self-sovereignty on you. Baba also granted children visions in which they saw how, in the golden age, the father puts a tilak on his son and sits him on the throne. Those who become the sun dynasty will sit on the throne. It is the mother and father who give their son his fortune of the kingdom. They understand that their son will claim the throne. This Father Himself comes and cleans you souls with the nectar of knowledge. The nectar of knowledge is not water. The Father says: You have been floundering in the ocean of poison for 63 births. Long-lost and now-found children, your 84 births are now complete. Now remain pure in this last birth and follow My directions. You have come to the Father in order to claim self-sovereignty. When a son is born to a king, he knows that he will inherit the kingdom. However, that is not called self-sovereignty. ‘Self’ means the soul and it is the soul that receives a kingdom. However, they don’t have the knowledge that the soul has adopted the body of a prince in order to become an emperor or empress. The celebration of applying a tilak has been remembered. The Father will also put a tilak on you children when you rub the sandalwood of knowledge, when you become pure and follow shrimat. The Father does not rule the kingdom Himself. He does not sit on the throne. Have you ever seen such a father who doesn’t sit on the throne himself, but hands it to his children? This Brahma too is an effort-maker. Shiv Baba is the One who inspires you to make effort. This one doesn’t praise himself at all. Shiv Baba comes and makes this one become like a diamond. Therefore, the main thing is to remain pure. Although you live together at home, you have to remain pure. The Father has created this sacrificial fire of knowledge. It is always brahmin priests who create sacrificial fires. It is not possible that Shri Krishna would say: I create the sacrificial fire. You are Brahmins, the mouth-born children of Brahma. You are now following shrimat. Brahma cannot be called ‘Shri’ because both the soul and the body are impure here. You are becoming Shri (elevated). You cannot be called ‘Shri’ now. You are now becoming elevated again. The highest-on-high Father comes and makes you as elevated as Lakshmi and Narayan. You have to become this elevated, 16 celestial degrees full. The Father asks: Do you have the intoxication of becoming like Lakshmi and Narayan or that of becoming like Rama and Sita? You say you have the intoxication of becoming like Lakshmi and Narayan. We will become part of the sun dynasty. Why should we become part of the moon dynasty with two degrees less? We will marry Narayan or Lakshmi. Your Mama and Baba will also be part of the sun dynasty. Both Jagadamba and Jagadpita become part of the sun dynasty and you children call them Mama and Baba, so you too should make effort. Baba puts this tilak on you and also sweetens your mouth, that is, He gives you blessings. Baba puts the tilak of victory on you and gives you the blessing: May you always claim your kingdom of self-sovereignty. The king, the queen and the subjects all experience the fortune of the kingdom there. The kingdom is only established once by the Supreme Father, the Supreme Soul. That is the Almighty Authority Kingdom. The viceless world has been remembered: Full of all virtues, 16 celestial degrees full. The deities with the highest code of conduct never become violent by using the sword of lust. For 63 births you have been causing sorrow for each other by using the sword of lust. The sword of lust doesn’t exist in the land of immortality. Here, because of the sword of lust, you have become completely impure and tamopradhan. You children now understand that the Father is truly establishing heaven again. It is in Bharat that He takes birth. The Father has brought the gift of Paradise for you. For half a cycle you have been crying out: O God, the Father, have mercy on us! Have mercy! They sing this on the path of devotion. You will not cry out in distress in the golden age. There, there is constant happiness. Everyone remembers God at the time of sorrow; no one remembers Him when there is happiness. There are many different types of sorrow. When someone goes bankrupt, there is so much sorrow. When someone falls ill that, too, causes sorrow. There is no name or trace of sorrow in the golden age. The Father comes and puts the tilak of the fortune of the kingdom on you. This is the land of sorrow and that is the land of happiness. Souls don’t speak in the land of silence. When they come here, they come into ‘talkie’ (sound). Your original religion is peace. You are now receiving the self-sovereignty of happiness and peace. Therefore, you have to become a child of the Father and follow His shrimat. At the time of studying, you have to pay full attention to the study. At the time of studying, you don’t speak of wasteful matters. Those who do say wrong things are told: Attention please! Therefore, the Father tells the children: Your intellects shouldn’t wander in any other direction. The thoughts of those who stumble around outside wander here and there. They can’t wait for the holidays so that they can go home. You children now have to study and teach others. The business of Brahmins is to relate the Gita. Those brahmin priests also relate the Gita to earn their livelihood. You are told that, while living at home with your family, you have to remain as pure as a lotus flower. You should make a promise that you will remain pure in this last birth. This impure world is about to be destroyed. You can also see preparations for destruction. The Holika will be burnt. In fact, all of these festivals refer to the present time. The Father puts a tilak on each of you. Your intellects say: Baba is teaching us in order to make us into the masters of the world, of the golden age. This means that you receive the tilak of self-sovereignty. It is the Father who puts this tilak on you. You are now sitting here personally in front of Him. Only those who remain pure can claim the fortune of the kingdom. The significance of Rakhi is very great. They say: A sister ties a rakhi on her brother and puts a tilak on him. Therefore, sisters, you will tie a rakhi on the brothers, put a tilak on them and sweeten their mouths. How did this festival originate? It was at the confluence age, when the Supreme Father, the Supreme Soul, made you make a vow of purity. There is the festival of the birth of Shiva; then there is the festival of Rakhi, then the festival of Dashera and then the festival of Deepavali. There is also the festival of the nine nights worship of the goddesses (Navratri). People continue to celebrate those festivals. You experience happiness. After Dashera, that is, after destruction, Deepavali will come. There will be heaven in every home. You can tell the life story of Shiv Baba, Brahma, Vishnu and Shankar and Lakshmi and Narayan. You know the whole cycle. You also know about Rama and Sita. They received fewer marks and that is why they failed. However, there is no one with eight to ten arms. They have sat and created so many images. All of that is called: Waste of time, waste of money and waste of energy. You now understand that you have come to claim your inheritance of self-sovereignty. Why should we not follow shrimat just as the mother and father follow it? These things have to be understood. The father is the creator of the human world. He is an unlimited father; he adopts so many children. He is the Father of Humanity, is he not? A physical father might adopt one child so he would not be called the Father of Humanity. There are some who adopt a child, but when they have a baby of their own, they have more love for that child, and less love for the adopted child. You understand that you have now come into God’s lap. God will put a tilak of purity on each of you. You make a promise in your heart: Baba, now that You have come, I will be Your worthy child. I will remain pure and claim my inheritance from You. It is now the time of settlement for all. You have to settle all the accounts of sin and accumulate an account of charity. It is by having remembrance of the Father that you accumulate. The more remembrance you continue to have and the more you donate the eternal jewels of knowledge, the more you will be able to accumulate. The more service you do, the more you will accumulate. While you are accumulating, your kingdom will be created. There are eight main jewels. They also make jewellery of eight jewels. Together with the goddesses, there will also be gods. However, because the mothers are in the majority, it is the goddesses that are worshipped the most. Achcha. Who ties a rakhi on you? Shiv Baba Himself is personally sitting in front you. Therefore, Shiv Baba ties a rakhi on you, He puts a tilak on you and also sweetens your mouths. This means that you will remain constantly happy in the future. You then give a gift to Baba. What gift do you give? You give everything you have. Therefore, Baba says: I give you the inheritance for 21 births. There is an account of give and take. Baba is the Businessman. What do you take and what do you give? They say that they donate something in the name of God because they believe that God will give them the return of everything. The Father says: I give you the return of everything on the path of devotion too. I have now come directly and I give you the donation of these imperishable jewels of knowledge. You then donate these to others. You are all brothers. The senior mummy ties a rakhi on you and the Father puts a tilak on you. This mother and Father are combined. The mother ties the rakhi and the Father gives the tilak and you become kings and queens. Your love is for the Supreme Soul, the One who has come to put the tilak on the people of Bharat. Who made Bharat into heaven? It was the Father who came and did this. Shri Krishna is the number one creation, and Shiv Baba is the number one Creator. Therefore, the mercury of happiness of you children should extend from the tip of your toes to the top of your head. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Let the love of your heart be for the one Father and for no bodily being because all your relations are now with the one Father.
 
2. At the time of studying this study, pay full attention. Don't speak or even think of wasteful things. Do not allow your intellect to wander around.
 
Blessing:
 
May you be a constantly co-operative and contented soul and make the atmosphere powerful with your pure and positive thoughts.
 
When the atmosphere changes due to any situation, it is the duty of co-operative souls to be co-operative in making the atmosphere powerful and not adding to the upheaval. To be constantly co-operative means to be constantly content. Belong to the one Father and none other. If you have any thoughts, hand them over up above and become free from any thoughts. Remain busy with your own progress and with the growth of service. Whatever pure thoughts you have they will definitely be fulfilled with pure feelings, but your stage has to be stable and your thinking has to be pure for that.
 
Slogan:
 

The wealthiest are those who have the most elevated treasure of purity.

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