Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 01-Aug- 2018 | 125037 | 2018-09-07 17:27:03 | |
2 | Murali 02-Aug- 2018 | 115306 | 2018-09-07 17:27:03 | |
3 | Murali 03-Aug- 2018 | 122767 | 2018-09-07 17:27:03 | |
4 | Murali 04-Aug- 2018 | 131649 | 2018-09-07 17:27:03 | |
5 | Murali 05-Aug- 2018 | 122005 | 2018-09-07 17:27:03 | |
6 | Murali 06-Aug- 2018 | 122804 | 2018-09-07 17:27:03 | |
7 | Murali 07-Aug- 2018 | 120104 | 2018-09-07 17:27:03 | |
8 | Murali 08-Aug- 2018 | 127824 | 2018-09-07 17:27:03 | |
9 | Murali 09-Aug- 2018 | 127466 | 2018-09-07 17:27:03 | |
10 | Murali 10-Aug- 2018 | 121746 | 2018-09-07 17:27:03 | |
11 | Murali 11-Aug- 2018 | 122692 | 2018-09-07 17:27:03 | |
12 | Murali 12-Aug- 2018 | 111683 | 2018-09-07 17:27:03 | |
13 | Murali 13-Aug- 2018 | 123920 | 2018-09-07 17:27:03 | |
14 | Murali 14-Aug- 2018 | 111398 | 2018-09-07 17:27:03 | |
15 | Murali 15-Aug- 2018 | 128503 | 2018-09-07 17:27:03 | |
16 | Murali 16-Aug- 2018 | 127280 | 2018-09-07 17:27:03 | |
17 | Murali 17-Aug- 2018 | 107136 | 2018-09-07 17:27:03 | |
18 | Murali 18-Aug- 2018 | 120726 | 2018-09-07 17:27:03 | |
19 | Murali 19-Aug- 2018 | 108991 | 2018-09-07 17:27:03 | |
20 | Murali 20-Aug- 2018 | 124686 | 2018-09-07 17:27:03 | |
21 | Murali 21-Aug- 2018 | 119352 | 2018-09-07 17:27:03 | |
22 | Murali 22-Aug- 2018 | 131894 | 2018-09-07 17:27:03 | |
23 | Murali 23-Aug- 2018 | 124657 | 2018-09-07 17:27:03 | |
24 | Murali 24-Aug- 2018 | 130080 | 2018-09-07 17:27:03 | |
25 | Murali 25-Aug- 2018 | 132241 | 2018-09-07 17:27:03 | |
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27 | Murali 27-Aug- 2018 | 125337 | 2018-09-07 17:27:03 | |
28 | Murali 28-Aug- 2018 | 119723 | 2018-09-07 17:27:03 | |
29 | Murali 29-Aug- 2018 | 114297 | 2018-09-07 17:27:03 | |
30 | Murali 30-Aug- 2018 | 124625 | 2018-09-07 17:27:04 | |
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Details ( Page:- Murali 20-Aug- 2018 )
20-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - याद की यात्रा में टाइम देते रहो तो विकर्म विनाश होते जायेंगे, सबसे ममत्व मिट जायेगा, बाप के गले का हार बन जायेंगे"
प्रश्नः-गॉड फादर द्वारा तुम बच्चे किन दो शब्दों की पढ़ाई पढ़ते हो? उन दो शब्दों में कौन-सा राज़ समाया हुआ है?
उत्तर:-
गॉड फादर तुम्हें इतना ही पढ़ाता कि - हे आत्मायें, ‘शरीर का भान छोड़ो' और ‘मुझे याद करो' - यह दो शब्दों की पढ़ाई इसीलिए पढ़ाई जाती है क्योंकि अब तुम्हें इस पुरानी दुनिया में पुरानी खाल नहीं लेनी है। तुम्हें नई दुनिया में जाना है। मैं तुम्हें साथ ले चलने आया हूँ इसलिए देह सहित सब कुछ भूलते जाओ।
गीत:-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो........
ओम् शान्ति।
बच्चे सालिग्राम जानते हैं कि कोई मनुष्य द्वारा हम शास्त्र नहीं सुनते हैं। इसको सतसंग नहीं कहा जाता है, पढ़ाई कहा जाता है। अगर मनुष्यों से पूछा जाए तो कहेंगे कि हम सतसंग में जाते हैं वा कहेंगे कि हम कॉलेज में जाते हैं। यह तो जानते हो सतसंग में साधू, सन्त, विद्वान आदि सुनाने वाले होंगे। स्कूल में भी मनुष्य टीचर, प्रोफेसर आदि होंगे, यहाँ मनुष्य नहीं हैं। यह है बेहद का रूहानी बाप, जिसको कहा जाता है - त्वमेव माताश्च पिता. . . . . यह महिमा देवताओं की भी नहीं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी नहीं। यह महिमा है निराकार परमपिता परमात्मा की। अब बच्चे जानते हैं कि निराकार परमपिता परमात्मा यह शरीर धारण कर पार्ट बजा रहे हैं। सिवाए इस निराकार परमपिता परमात्मा के कोई भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों को पढ़ा नहीं सकते। ब्रह्मा को भी ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। इसको प्रजापिता कहेंगे, ज्ञान सागर एक ही निराकार परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वही पतितों को पावन बनाने वाला है क्योंकि ज्ञान सागर से ही सद्गति होती है। यह है नई बात। गीता में कृष्ण का नाम डालने से खण्डन कर दिया है। अब मनुष्यों को कैसे पता पड़े कि नॉलेजफुल परमपिता परमात्मा आकर नॉलेज देते हैं। यह मनुष्य भूल जाते हैं। ऐसे नहीं कि शास्त्र आदि द्वापर के आदि में ही बनते हैं। नहीं, समझाया जाता है पहले बाप का चित्र, मन्दिर आदि बनते हैं, जिससे भक्ति शुरू होती है। भक्ति भी बहुत समय परमात्मा की होनी चाहिए क्योंकि ऊंच ते ऊंच वह है। उनकी पूजा पहले शुरू होती है। पूजा लायक है ही एक शिव। ऐसे नहीं कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर वा जगत अम्बा, जगत पिता पूजा के लिए लायक हैं। इन सबको पूज्य बनाने वाला एक ही बाप है। उनकी भक्ति भी जरूर अधिक होगी। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं। इनमें परमपिता परमात्मा न आये तो इनकी पूजा क्या होगी? सबका सद्गति दाता एक ही बाप है। यह विचार सागर मंथन करना होता है। भक्ति कैसे शुरू होगी? शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। बच्चों को विचार सागर मंथन करना है। सरस्वती, जो ब्रह्मा की मुख वंशावली है, उनको भी विचार सागर मंथन करना है। ऊंच ते ऊंच है एक, अगर वह न आये तो दुनिया को पतित से पावन कौन बनाये? सब मनुष्य मात्र पतित हैं। अब शिवबाबा न आये तो स्वर्ग का वर्सा कौन देवे? निश्चयबुद्धि नहीं हैं तो विजय माला में पिरो न सकें। सपूत बच्चे सदैव गले का हार बनते हैं। बाप भी खुश होते हैं - यह बच्चा बड़ा सपूत आज्ञाकारी है। बहुत माँ-बाप होते हैं जिनको 12-14 बच्चे भी होते हैं, जिनमें कोई कपूत, कोई सपूत भी होते हैं। पतित-पावन बाप के सिवाए पतितों का उद्धार कोई कर नहीं सकते हैं। तुम जानते हो कि गंगा नदी पर भी गंगा का मन्दिर है। तो समझाना चाहिए कि यह गंगा फिर कौन है? क्या यह कोई शक्ति है, जिससे पतित से पावन बनते हैं वा पानी से पावन बनते हैं? बाप कहते हैं कि गंगा पतित-पावनी नहीं। सिवाए योग के कोई भी पावन बन नहीं सकते, इसलिए तुम्हें कोई गंगा स्नान नहीं करना है। योग का अर्थ है याद। बुद्धि का योग लगाना है। वह तो बहुत योग आसन आदि लगाते हैं। अनेक प्रकार के हठयोग करते हैं, उनको योग नहीं कहा जाता है। मातायें-अबलायें हठयोग को क्या जानें?
मनुष्य स्कूल में पढ़ते हैं, उसमें धक्के खाने की कोई बात नहीं रहती है। कोई न कोई इम्तहान पास करते हैं। जानते हैं यह इम्तहान पास करके यह बनेंगे। यहाँ भी तुम जानते हो - यह भी इम्तहान है, गॉड फादर पढ़ाते हैं। वह है पतित-पावन। तुम्हारी है गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ। बाप पतित से पावन कैसे बनाते हैं? कहते हैं - हे आत्मायें, इस शरीर का भान छोड़ो। इस पुराने शरीर को छोड़ना है। पहले-पहले तुम्हारा शरीर गोरा था, अब आइरन एजड हो गया है। अभी तुमको नई खाल तो यहाँ लेनी नहीं है क्योंकि यहाँ तो 5 तत्व ही तमोप्रधान हैं। अभी मैं तुम बच्चों को अपने साथ ले जाऊंगा। कल्प पहले भी ले गया था। मैं कालों का काल हूँ। सबको वापिस ले जाऊंगा। फिर तुमको अमरपुरी में भेज दूँगा। यह है मृत्यु-लोक, छी-छी दुनिया, इसलिए संगमयुग को 100 वर्ष चाहिए। और तो हर एक युग 1250 साल का होता है। इस पिछाड़ी के संगमयुग की आयु बहुत छोटी है। जैसे ब्राह्मणों की चोटी छोटी होती है वैसे संगमयुग की आयु भी छोटी है। फिर यह दुनिया ख़त्म हो जायेगी, तो नये मकान आदि बनाने शुरू करेंगे। उसमें पहले श्रीकृष्ण आता है। वह शौकीन है महल आदि बनवाने का। कोई तो बहुत शौकीन था ना जिसने सोमनाथ का मन्दिर बनवाया। बिरला भी शौकीन है, कैसा अच्छा मन्दिर बनाया है! नम्बरवन में पूज्य है शिवबाबा, फिर भक्ति मार्ग में भी पहले सोमनाथ का मन्दिर बनता है। सो भी कुछ समय बाद में बनता होगा। फिर पूजा शुरू होगी। अभी तो है घोर अन्धियारा। रात पूरी हो फिर दिन आता है।
बाप कहते हैं मैं रात और दिन के बीच में आता हूँ। महाभारी लड़ाई भी है। लिखा हुआ है कि यादवों के पेट से वह चीजें निकली जिससे सारे कुल का विनाश हुआ। तुम देख रहे हो बरोबर विनाश के लिए तैयारी कर रहे हैं। समझते हैं कोई प्रेरक हैं। दोनों ने विनाश के लिए बाम्ब्स बनाकर रखे हैं। आ़फतें भी आनी हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में देख रहे हो - स्थापना भी हो रही है, विनाश भी सामने खड़ा है। समझो, कोई ने विनाश नहीं देखा है, अच्छा, वैकुण्ठ तो देखते हैं ना। अच्छी तरह पढ़कर बाप से पूरा बेहद का वर्सा लेना है। तुमको साकार नहीं पढ़ाते हैं। शास्त्रों आदि की बात नहीं है। यह तो ज्ञान सागर स्वयं पढ़ाते हैं। तुम अपने को देही समझ बाप को याद करते हो। भगवानुवाच - अपने बच्चों प्रति कहते हैं मैं तुम बच्चों के सम्मुख होता हूँ। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनमें से कोई सौतेले हैं, कोई मातेले हैं। मातेले बच्चों को ही वर्से का हक है। संशय बुद्धि को सौतेला कहा जाता है। उनको वर्सा नहीं मिल सकता। वह फिर पुरुषार्थ अनुसार प्रजा में चले जाते हैं। मातेले राजाई में आ जाते हैं। वह बाप को प्यार करते हैं, बाप उनको प्यार करते हैं। गाते भी हैं ना तुम पर बलिहार जाऊंगा, वारी जाऊंगा। बाप कहते हैं मुझे याद करेंगे तो मैं तुमको मदद दूँगा। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा। और सबसे बुद्धियोग तोड़ एक से जोड़ना है। तुम कहते हो हम बाबा के हैं। यह सब कुछ बाबा का है। बाबा को हम कखपन देते हैं और बदले में स्वर्ग के बेहद की बादशाही का वर्सा लेते हैं। इस पुरानी देह से हमारा ममत्व नहीं है। यह तो तमोप्रधान रोगी शरीर है। हमारे पास और क्या है? मनुष्य मरते हैं, सब कुछ छूट जाता है। फिर उनका सब कुछ करनीघोर को दिया जाता है। हम सब कुछ आपको देते हैं। ममत्व मिटाने के लिए हम निरन्तर बाबा को याद करने का पुरुषार्थ करते हैं। माया फिर विघ्न डालती है इसलिए धीरे-धीरे जितना मेरी याद में टाइम देते रहेंगे तो विकर्म विनाश होंगे। वही मेरे गले का हार बनेंगे। कितना सहज समझाते हैं। बाप समझाते हैं यह रथ भी ड्रामा अनुसार मेरा मुकरर किया हुआ है। और किसी में मैं आ भी नहीं सकता हूँ। तुम भी कहते हो - बाबा, कल्प पहले भी हम आपसे इस ही मकान में, इसी ड्रेस में मिले थे और आपसे वर्सा लिया था। तो कितना सहज है।
बाप कहते हैं कि सिर्फ मुझे याद करो और कोई भी तरफ बुद्धि न जाये। याद रखना - अन्तकाल जो पुत्र सिमरे, अगर किसी को भी याद किया तो फिर वहाँ जन्म लेना पड़ेगा। कहाँ भी ममत्व नहीं रहना चाहिए। अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने, उनकी कितनी महिमा करते हैं। एकोअंकार..... उनका एक ही नाम है। उनको दूसरा शरीर मिलता ही नहीं है, जो नाम बदली हो। तुम तो 84 जन्म लेते हो तो नाम भी 84 पड़ते हैं। बाप की महिमा में गाते हैं निर्भय, निर्वैर, अकालमूर्त...... वही कालों का काल है, उन्हें काल खा नहीं सकता। मैं सभी को मुक्तिधाम में ले जाऊंगा। निर्वैर, मेरा कोई से वैर नहीं है। अकालमूर्त, अजोनि, मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। उनकी कितनी महिमा गाते हैं। गाया भी जाता है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता..... कलियुग के दु:ख हरते हैं। सतयुग के सुख देते हैं। बच्चे जानते हैं भारत में सतयुग में जीवनमुक्ति थी। बाकी सभी आत्मायें शान्तिधाम में थी, याद पड़ता है ना। तो जरूर बाप जब संगम पर आये, तब सभी को शान्तिधाम ले जाये और तुमको फिर सुखधाम भेज दे। कितनी सहज बात है। परन्तु माया ऐसी है जो यहाँ से बाहर गया तो भूल जायेंगे। जैसे गर्भ जेल में धर्मराज के द्वारा तुमको सजा दिलाता हूँ, त्राहि-त्राहि करते हो कि हम म़ाफी मांगते हैं फिर ऐसे पाप नहीं करेंगे। बाहर निकलने से फिर भी पाप करने लग पड़ते हैं। यह है ही माया का राज्य। सतयुग-त्रेता में माया होती नहीं। वहाँ तो सुख ही सुख रहता है। अभी तुम पढ़ रहे हो। इसमें घरबार छोड़ने की बात नहीं। बाप कहते हैं - देह सहित सब कुछ भूल जाओ। तुम्हारा यह बेहद का सन्यास है। उन सन्यासियों का है हद का सन्यास। जंगल में जाकर फिर लौट आते हैं शहर में। नाम कितने बड़े-बड़े रखवाते हैं। बाप कहते हैं मैं कितना सहज समझाता हूँ। बुढ़ियायें कितनी हैं, कहती हैं हमको धारणा नहीं होती। अच्छा, यह तो जानती हो कि परमात्मा पढ़ाते हैं? वह कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। इसमें तो कोई तकल़ीफ नहीं है। अभी हमने 84 का चक्र पूरा किया है। यह हुआ स्वदर्शन पा। आत्मा को चक्र का दर्शन होता है। यहाँ ही निरोगी काया बनती है। चक्र को जानने से तुम ऊंच पद पायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं कि स्वदर्शन चक्रधारी बनो। कितना सहज समझाते हैं! सहज याद, सहज सृष्टि पा, कोई तकल़ीफ नहीं। यह है सच्ची कमाई। बाकी धन माल तो सब ख़त्म हो जाना है, सब छूट जाता है। सागर को उथल खानी है। नैचुरल कैलेमिटीज भी आनी है। भारत सचखण्ड था, और कोई भी खण्ड नहीं था। भारत है शिवबाबा की जन्म भूमि। बड़े ते बड़ा तीर्थ है। भारत में ही सोमनाथ का मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है! अभी तो ढेर के ढेर बनाते हैं।
बाबा कहते हैं कि इस समय की शादी पूरी बरबादी है। शिवबाबा से सगाई पूरी आबादी है। शिवबाबा साजन भी है, स्वर्ग में भेज देते हैं। तुम यहाँ आये हो, जानते हो हम यहाँ बरोबर नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। ऐसे नहीं कि पुरुष जाकर पुरुष ही बनेंगे। बदलते रहते हैं। कोई चोला पुरुष का, कोई स्त्री का। फिर सतयुग से त्रेता कैसे बनता है - वह भी समझाया गया है। अभी तुम बच्चों को नॉलेजफुल गॉड फादर पढ़ाते हैं। मनुष्य तो फादर, टीचर, सतगुरू हो न सकें। फादर और टीचर हो सकते हैं, गुरू हो नहीं सकते हैं। सो भी वह जिस्मानी विद्या। यह बाबा तो एकदम स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। कोई भी बात न समझो तो हजार बार पूछो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सपूत आज्ञाकारी बन विजय माला में पिरोना है। बाप को अपना कखपन दे, बलिहार हो, सबसे ममत्व मिटा देना है।
2) अंतकाल में एक बाप ही याद रहे उसके लिए और सबसे बुद्धियोग तोड़ निरन्तर बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:-स्वयं को बाप हवाले कर बुद्धि से भी सरेन्डर होने वाले डबल लाइट भव
अपनी जिम्मेवारी बाप को देकर, स्वयं को बाप हवाले कर दो अर्थात् अपने सब बोझ बाप को दे दो तो डबल लाइट बन जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ तो और कोई भी बात बुद्धि में नहीं आयेगी, बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं, जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी, बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इस रास्ते से सहज मंजिल पर पहुंच जायेंगे।
स्लोगन:-अडोलता के तख्त पर विराजमान हो, साक्षी दृष्टा बन पार्ट बजाने वाले ही श्रेष्ठ पार्टधारी हैं।
20/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, continue to give time to the pilgrimage of remembrance and your sins will continue to be absolved. Attachment to everyone will end and you will become the garland around the Father's neck.
Question:
Which few words do you study with God, the Father? What secrets are merged in those few words?
Answer:
God, the Father, is just teaching you this much: O souls, renounce the consciousness of the body and remember Me. This is why this study of just few words is taught to you because you are not going to take an old skin (costume) in the old world now. You have to go to the new world. I have come to take you back with Me. Therefore, continue to forget everyone as well as your body.
Song:
You are the Mother and the Father.
Om Shanti
You saligram children know that you are not listening to any scriptures from human beings. This is not called a spiritual gathering (satsang), but a study. If you ask people, they would say that they go to a spiritual gathering or to a college. You know that there would be scholars, sages and holy men in a spiritual gathering giving them knowledge. At school, human beings are professors and teachers etc. Here, it is not a human being. That One is the unlimited spiritual Father to whom you say: You are the Mother and the Father. This cannot be the praise of deities or even of Brahma, Vishnu or Shankar. This is the praise of the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. You children now know that, having adopted a body, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is playing a part. No one, except this incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, can teach you Brahma Kumars and Kumaris. Even Brahma cannot be called the Ocean of Knowledge. He is called Prajapita (Father of humanity). Only the one incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is called the Ocean of Knowledge. He alone is the One who makes impure ones pure, for salvation can only be received from the Ocean of Knowledge. These are new things. By writing Krishna's name in the Gita, they have falsified the Gita. How can human beings know that the knowledge-full Supreme Father, the Supreme Soul, comes and enters a human body and gives knowledge? People forget this. It isn't that the scriptures are written at the beginning of the copper age; no! It is explained that they first create the Father's image and the temples etc. through which devotion begins. The devotion of the Supreme Soul should last for a long time because He is the Highest on High. Worship of Him begins first. Shiva alone is worthy of worship. It isn't that Brahma, Vishnu or Shankar, Jagadamba or Jagadpita are worthy of worship. It is just the one Father who makes all of them worthy of worship. He would definitely be worshipped a lot more. This one (Brahma) is nothing; how could he be worshipped unless the Supreme Father, the Supreme Soul, entered him? The Bestower of Salvation for All is just the one Father. These things have to be churned. How does devotion begin? Shiv Baba doesn't churn the ocean of knowledge. Children have to churn the ocean of knowledge. Saraswati, who is a mouth-born creation of Brahma, also has to churn the ocean of knowledge. The Highest on High is the One and if He didn't come, who would make the world pure from impure? All human beings are impure. If Shiv Baba didn't come, who would give you the inheritance of heaven? If your intellects don't have faith, you cannot be threaded in the rosary of victory. Worthy children always become the garland around the neck. A father would also be pleased if his child is very worthy and obedient. Many parents have 12 to 14 children and some are worthy and others are unworthy. No one, apart from the Purifier Father, can uplift impure ones. You know that there is a temple to the Ganges on the banks of the River Ganges. So, you should explain what the Ganges is. Is it some power through whom you become pure from impure or do you become pure through water? The Father says: The Ganges is not the Purifier. No one can become pure without yoga. This is why you don't have to bathe in the Ganges. Yoga means remembrance. You have to connect your intellects in yoga. Those people have many different yoga positions etc. They perform many different types of hatha yoga. That is not called yoga. What would mothers and poor innocent women know about hatha yoga? When people are studying at school, there is no question of stumbling around in that. They pass one examination or another and they know what they will become after passing that examination. Here, too, you know that this is an examination and that God, the Father, is teaching you. He is the Purifier. Yours is a Godfatherly student life. How does the Father make you pure from impure? He says: O souls, renounce the consciousness of those bodies. You have to renounce those old bodies. First of all, your bodies were beautiful, but they have now become iron aged. You are not going to receive a new skin (body) here because the five elements here are tamopradhan. I will now take you children back with Me. I also took you back in the previous cycle. I am the Death of all Deaths. I will take everyone back. Then, I will send you to the land of immortality. This is the land of death, the dirty world. This is why the confluence age has to have a duration of 100 years. All the other ages have a duration of 1250 years. The duration of this confluence age at the end is very short. Just as the topknots of brahmins are very short, in the same way, the duration of the confluence age is also very short. Then, this world will end and you will then begin to construct new buildings etc. Shri Krishna comes first in that. He is very keen and interested to have palaces etc. built. There must have been someone who was very keen and therefore had the Somnath Temple built. Birla was also so keen that he built such a beautiful temple. The foremost worthy-of-worship One is Shiv Baba. On the path of devotion, the first temple to be built is the Somnath Temple (Temple to the Lord of Nectar). It must have been built after a little time (into the copper age), when worshipping began. Now, there is extreme darkness. The night will end and then the day will come. The Father says: I come in-between the night and the day. There is also the great war. It is written: Such things will emerge from their stomachs that they will destroy the whole clan. You can see that they are really making preparations for destruction. They believe that someone is inspiring them. Both sides have manufactured bombs for destruction. Calamities too will come. You see in a practical way that establishment is taking place and that destruction is also just ahead. If someone has not seen destruction, no matter, he can still see Paradise. Study well and claim the full unlimited inheritance from the Father. This isn't a corporeal being teaching you. There is no question of scriptures etc. This is the Ocean of Knowledge, Himself, who is teaching you. Consider yourselves to be bodiless souls and remember the Father. God speaks. He says to His children: I am personally in front of you children. Out of those who become My children, some are stepchildren and others are real children. Only real children have a right to the inheritance. Those who have intellects with doubt are called stepchildren; they cannot receive the inheritance. They then become part of the subjects according to their efforts. Real ones go into the kingdom. They love the Father and the Father loves them. You sing: I will sacrifice myself to You. I will surrender myself to You. The Father says: If you remember Me, I will help you. When children maintain courage, God helps. Break your intellects’ yoga away from everyone else and connect it to the One alone. You say that you belong to Baba and that all of this belongs to Baba. Everything we give to Baba is worth straws and we claim our inheritance of the unlimited sovereignty of heaven in return. We don't have attachment to these old bodies. These are tamopradhan, diseased bodies. What else do we have? When a person dies, everything is left behind. Then, everything of his is given to a Karnighor (brahmin priest): We are giving you everything. In order to end our attachment, we constantly make effort to remember Baba. Maya then creates obstacles. Therefore, by your gradually continuing to give time to remembering Me, your sins are absolved. They are the ones who will become the garland around My neck. Baba explains so easily. The Father says: According to the drama, this chariot is also fixed for Me. I cannot enter anyone else. You say: Baba, we also met You in this building, in this dress and claimed our inheritance from You in the previous cycle. Therefore, this is so easy. Baba says: Simply remember Me alone. Let your intellects not go to anyone else. Remember: Those who remember their sons at the end…. If you remember anyone, you will have to take birth to them. Let there not be attachment to anyone.Those who remember a woman at the end….The Father comes to purify the impure.
He is praised so much: The One Oval Image ("Ek Omkar"). He has just the one name. He doesn't take any other body that His name could change. You take 84 births and so you also have 84 names. The praise sung of Baba is: Fearless, free from animosity, the Immortal Image. He is the Death of all Deaths. Death cannot come to Him. I will take everyone back to the land of liberation. I am free from animosity. I don’t hold a grudge against anyone. I am the Immortal Image, I am beyond birth, I don't enter the cycle of birth and death. He is praised so much. It is remembered: He is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. He removes the sorrow of the iron age and gives the happiness of the golden age. You children know that there was liberation-in-life in Bharat in the golden age. All the rest of the souls were in the land of peace. Do you remember this? So, it surely is only at the confluence age when the Father comes that He can take everyone back to the land of peace and then send you to the land of happiness. These things are so easy, but Maya is such that, as soon as you go out from here, you forget. I inspire punishment to be given by Dharamraj in the jail of a womb, and you cry out in distress and ask for forgiveness and say: I will not commit such sin again. Then, as soon as you come out of the womb, you begin to commit sin again. This is the kingdom of Maya. Maya doesn't exist in the golden and silver ages. There, there is nothing but happiness. You are now studying. There is no question of leaving your home and family in this. Baba says: Forget everything including your body. This is your unlimited renunciation. Those sannyasis have limited renunciation. They go to the forests and then return to the cities. They give themselves such big names. The Father says: I explain everything so easily. There are so many old mothers who say: We are unable to imbibe anything. Achcha, you know that God is teaching you, do you not? He says: Simply remember Me. There is no difficulty in this. We have now completed the cycle of 84 births. This is the discus of self-realisation. The soul receives a vision of the cycle. The body becomes free from disease here. By knowing the cycle, you will claim a high status. This is why Baba says: Become a spinner of the discus of self-realisation. He explains to you so easily. Remembrance is easy. Spinning the world cycle is easy. There is no difficulty. This is the true income. All the wealth and possessions are going to finish. Everything is to be left behind. There will be tidal waves from the oceans and natural calamities will also come. Bharat was the land of truth; there were no other lands. Bharat is the birthplace of Shiv Baba. It is the greatest pilgrimage place. Such a beautiful temple to Somnath is built in Bharat. Now they build so many temples. Baba says: To get married at this time is to ruin yourself completely, whereas to get married to Shiv Baba is to make yourself successful. Shiv Baba is also the Bridegroom. He sends you to heaven. You have come here and you know that you will truly become Narayan from an ordinary man and Lakshmi from an ordinary woman. It isn't that souls in male costumes will always be in male costumes; they continue to change: sometimes they have male costumes and sometimes female costumes. It has also been explained to you how the golden age changes into the silver age. Knowledge-full, God, the Father, is teaching you children. A human being can’t be a father, teacher and satguru. He could be a father and teacher, but not a guru at the same time. However, that too is only a worldly education that he gives. This Baba makes you into the complete masters of heaven. If you don't understand something, then ask a thousand times. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become worthy and obedient and be threaded in the rosary of victory. Give everything worth straws that you have to the Father, surrender yourself and end your attachment to everyone.
2. In order that you only have remembrance of the one Father at the end, break your intellect's yoga away from everyone else and make effort to stay constantly in remembrance of the Father.
Blessing:
May you hand over yourself and also surrender yourself to the Father with your intellect and remain double light.
Hand over your responsibilities to the Father and hand yourself over to the Father, that is, give all your burdens to the Father and you will become double light. Surrender yourself with your intellect and nothing else will then enter your intellect; everything belongs to the Father, everything is in the Father and so nothing else remains. Since nothing else remains, where would the intellect go? Simply remember the one Father, with the one method of remembrance and you will easily reach your destination on this path.
Slogan:
Those who are seated on an unshakeable throne and play a part of detached observers are elevated actors.
"मीठे बच्चे - याद की यात्रा में टाइम देते रहो तो विकर्म विनाश होते जायेंगे, सबसे ममत्व मिट जायेगा, बाप के गले का हार बन जायेंगे"
प्रश्नः-गॉड फादर द्वारा तुम बच्चे किन दो शब्दों की पढ़ाई पढ़ते हो? उन दो शब्दों में कौन-सा राज़ समाया हुआ है?
उत्तर:-
गॉड फादर तुम्हें इतना ही पढ़ाता कि - हे आत्मायें, ‘शरीर का भान छोड़ो' और ‘मुझे याद करो' - यह दो शब्दों की पढ़ाई इसीलिए पढ़ाई जाती है क्योंकि अब तुम्हें इस पुरानी दुनिया में पुरानी खाल नहीं लेनी है। तुम्हें नई दुनिया में जाना है। मैं तुम्हें साथ ले चलने आया हूँ इसलिए देह सहित सब कुछ भूलते जाओ।
गीत:-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो........
ओम् शान्ति।
बच्चे सालिग्राम जानते हैं कि कोई मनुष्य द्वारा हम शास्त्र नहीं सुनते हैं। इसको सतसंग नहीं कहा जाता है, पढ़ाई कहा जाता है। अगर मनुष्यों से पूछा जाए तो कहेंगे कि हम सतसंग में जाते हैं वा कहेंगे कि हम कॉलेज में जाते हैं। यह तो जानते हो सतसंग में साधू, सन्त, विद्वान आदि सुनाने वाले होंगे। स्कूल में भी मनुष्य टीचर, प्रोफेसर आदि होंगे, यहाँ मनुष्य नहीं हैं। यह है बेहद का रूहानी बाप, जिसको कहा जाता है - त्वमेव माताश्च पिता. . . . . यह महिमा देवताओं की भी नहीं, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की भी नहीं। यह महिमा है निराकार परमपिता परमात्मा की। अब बच्चे जानते हैं कि निराकार परमपिता परमात्मा यह शरीर धारण कर पार्ट बजा रहे हैं। सिवाए इस निराकार परमपिता परमात्मा के कोई भी ब्रह्माकुमार-कुमारियों को पढ़ा नहीं सकते। ब्रह्मा को भी ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। इसको प्रजापिता कहेंगे, ज्ञान सागर एक ही निराकार परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। वही पतितों को पावन बनाने वाला है क्योंकि ज्ञान सागर से ही सद्गति होती है। यह है नई बात। गीता में कृष्ण का नाम डालने से खण्डन कर दिया है। अब मनुष्यों को कैसे पता पड़े कि नॉलेजफुल परमपिता परमात्मा आकर नॉलेज देते हैं। यह मनुष्य भूल जाते हैं। ऐसे नहीं कि शास्त्र आदि द्वापर के आदि में ही बनते हैं। नहीं, समझाया जाता है पहले बाप का चित्र, मन्दिर आदि बनते हैं, जिससे भक्ति शुरू होती है। भक्ति भी बहुत समय परमात्मा की होनी चाहिए क्योंकि ऊंच ते ऊंच वह है। उनकी पूजा पहले शुरू होती है। पूजा लायक है ही एक शिव। ऐसे नहीं कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर वा जगत अम्बा, जगत पिता पूजा के लिए लायक हैं। इन सबको पूज्य बनाने वाला एक ही बाप है। उनकी भक्ति भी जरूर अधिक होगी। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं। इनमें परमपिता परमात्मा न आये तो इनकी पूजा क्या होगी? सबका सद्गति दाता एक ही बाप है। यह विचार सागर मंथन करना होता है। भक्ति कैसे शुरू होगी? शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। बच्चों को विचार सागर मंथन करना है। सरस्वती, जो ब्रह्मा की मुख वंशावली है, उनको भी विचार सागर मंथन करना है। ऊंच ते ऊंच है एक, अगर वह न आये तो दुनिया को पतित से पावन कौन बनाये? सब मनुष्य मात्र पतित हैं। अब शिवबाबा न आये तो स्वर्ग का वर्सा कौन देवे? निश्चयबुद्धि नहीं हैं तो विजय माला में पिरो न सकें। सपूत बच्चे सदैव गले का हार बनते हैं। बाप भी खुश होते हैं - यह बच्चा बड़ा सपूत आज्ञाकारी है। बहुत माँ-बाप होते हैं जिनको 12-14 बच्चे भी होते हैं, जिनमें कोई कपूत, कोई सपूत भी होते हैं। पतित-पावन बाप के सिवाए पतितों का उद्धार कोई कर नहीं सकते हैं। तुम जानते हो कि गंगा नदी पर भी गंगा का मन्दिर है। तो समझाना चाहिए कि यह गंगा फिर कौन है? क्या यह कोई शक्ति है, जिससे पतित से पावन बनते हैं वा पानी से पावन बनते हैं? बाप कहते हैं कि गंगा पतित-पावनी नहीं। सिवाए योग के कोई भी पावन बन नहीं सकते, इसलिए तुम्हें कोई गंगा स्नान नहीं करना है। योग का अर्थ है याद। बुद्धि का योग लगाना है। वह तो बहुत योग आसन आदि लगाते हैं। अनेक प्रकार के हठयोग करते हैं, उनको योग नहीं कहा जाता है। मातायें-अबलायें हठयोग को क्या जानें?
मनुष्य स्कूल में पढ़ते हैं, उसमें धक्के खाने की कोई बात नहीं रहती है। कोई न कोई इम्तहान पास करते हैं। जानते हैं यह इम्तहान पास करके यह बनेंगे। यहाँ भी तुम जानते हो - यह भी इम्तहान है, गॉड फादर पढ़ाते हैं। वह है पतित-पावन। तुम्हारी है गॉड फादरली स्टूडेन्ट लाइफ। बाप पतित से पावन कैसे बनाते हैं? कहते हैं - हे आत्मायें, इस शरीर का भान छोड़ो। इस पुराने शरीर को छोड़ना है। पहले-पहले तुम्हारा शरीर गोरा था, अब आइरन एजड हो गया है। अभी तुमको नई खाल तो यहाँ लेनी नहीं है क्योंकि यहाँ तो 5 तत्व ही तमोप्रधान हैं। अभी मैं तुम बच्चों को अपने साथ ले जाऊंगा। कल्प पहले भी ले गया था। मैं कालों का काल हूँ। सबको वापिस ले जाऊंगा। फिर तुमको अमरपुरी में भेज दूँगा। यह है मृत्यु-लोक, छी-छी दुनिया, इसलिए संगमयुग को 100 वर्ष चाहिए। और तो हर एक युग 1250 साल का होता है। इस पिछाड़ी के संगमयुग की आयु बहुत छोटी है। जैसे ब्राह्मणों की चोटी छोटी होती है वैसे संगमयुग की आयु भी छोटी है। फिर यह दुनिया ख़त्म हो जायेगी, तो नये मकान आदि बनाने शुरू करेंगे। उसमें पहले श्रीकृष्ण आता है। वह शौकीन है महल आदि बनवाने का। कोई तो बहुत शौकीन था ना जिसने सोमनाथ का मन्दिर बनवाया। बिरला भी शौकीन है, कैसा अच्छा मन्दिर बनाया है! नम्बरवन में पूज्य है शिवबाबा, फिर भक्ति मार्ग में भी पहले सोमनाथ का मन्दिर बनता है। सो भी कुछ समय बाद में बनता होगा। फिर पूजा शुरू होगी। अभी तो है घोर अन्धियारा। रात पूरी हो फिर दिन आता है।
बाप कहते हैं मैं रात और दिन के बीच में आता हूँ। महाभारी लड़ाई भी है। लिखा हुआ है कि यादवों के पेट से वह चीजें निकली जिससे सारे कुल का विनाश हुआ। तुम देख रहे हो बरोबर विनाश के लिए तैयारी कर रहे हैं। समझते हैं कोई प्रेरक हैं। दोनों ने विनाश के लिए बाम्ब्स बनाकर रखे हैं। आ़फतें भी आनी हैं। तुम तो प्रैक्टिकल में देख रहे हो - स्थापना भी हो रही है, विनाश भी सामने खड़ा है। समझो, कोई ने विनाश नहीं देखा है, अच्छा, वैकुण्ठ तो देखते हैं ना। अच्छी तरह पढ़कर बाप से पूरा बेहद का वर्सा लेना है। तुमको साकार नहीं पढ़ाते हैं। शास्त्रों आदि की बात नहीं है। यह तो ज्ञान सागर स्वयं पढ़ाते हैं। तुम अपने को देही समझ बाप को याद करते हो। भगवानुवाच - अपने बच्चों प्रति कहते हैं मैं तुम बच्चों के सम्मुख होता हूँ। जो मेरे बच्चे बनते हैं उनमें से कोई सौतेले हैं, कोई मातेले हैं। मातेले बच्चों को ही वर्से का हक है। संशय बुद्धि को सौतेला कहा जाता है। उनको वर्सा नहीं मिल सकता। वह फिर पुरुषार्थ अनुसार प्रजा में चले जाते हैं। मातेले राजाई में आ जाते हैं। वह बाप को प्यार करते हैं, बाप उनको प्यार करते हैं। गाते भी हैं ना तुम पर बलिहार जाऊंगा, वारी जाऊंगा। बाप कहते हैं मुझे याद करेंगे तो मैं तुमको मदद दूँगा। हिम्मते मर्दा, मददे खुदा। और सबसे बुद्धियोग तोड़ एक से जोड़ना है। तुम कहते हो हम बाबा के हैं। यह सब कुछ बाबा का है। बाबा को हम कखपन देते हैं और बदले में स्वर्ग के बेहद की बादशाही का वर्सा लेते हैं। इस पुरानी देह से हमारा ममत्व नहीं है। यह तो तमोप्रधान रोगी शरीर है। हमारे पास और क्या है? मनुष्य मरते हैं, सब कुछ छूट जाता है। फिर उनका सब कुछ करनीघोर को दिया जाता है। हम सब कुछ आपको देते हैं। ममत्व मिटाने के लिए हम निरन्तर बाबा को याद करने का पुरुषार्थ करते हैं। माया फिर विघ्न डालती है इसलिए धीरे-धीरे जितना मेरी याद में टाइम देते रहेंगे तो विकर्म विनाश होंगे। वही मेरे गले का हार बनेंगे। कितना सहज समझाते हैं। बाप समझाते हैं यह रथ भी ड्रामा अनुसार मेरा मुकरर किया हुआ है। और किसी में मैं आ भी नहीं सकता हूँ। तुम भी कहते हो - बाबा, कल्प पहले भी हम आपसे इस ही मकान में, इसी ड्रेस में मिले थे और आपसे वर्सा लिया था। तो कितना सहज है।
बाप कहते हैं कि सिर्फ मुझे याद करो और कोई भी तरफ बुद्धि न जाये। याद रखना - अन्तकाल जो पुत्र सिमरे, अगर किसी को भी याद किया तो फिर वहाँ जन्म लेना पड़ेगा। कहाँ भी ममत्व नहीं रहना चाहिए। अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... बाप आते हैं पतितों को पावन बनाने, उनकी कितनी महिमा करते हैं। एकोअंकार..... उनका एक ही नाम है। उनको दूसरा शरीर मिलता ही नहीं है, जो नाम बदली हो। तुम तो 84 जन्म लेते हो तो नाम भी 84 पड़ते हैं। बाप की महिमा में गाते हैं निर्भय, निर्वैर, अकालमूर्त...... वही कालों का काल है, उन्हें काल खा नहीं सकता। मैं सभी को मुक्तिधाम में ले जाऊंगा। निर्वैर, मेरा कोई से वैर नहीं है। अकालमूर्त, अजोनि, मैं जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। उनकी कितनी महिमा गाते हैं। गाया भी जाता है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता..... कलियुग के दु:ख हरते हैं। सतयुग के सुख देते हैं। बच्चे जानते हैं भारत में सतयुग में जीवनमुक्ति थी। बाकी सभी आत्मायें शान्तिधाम में थी, याद पड़ता है ना। तो जरूर बाप जब संगम पर आये, तब सभी को शान्तिधाम ले जाये और तुमको फिर सुखधाम भेज दे। कितनी सहज बात है। परन्तु माया ऐसी है जो यहाँ से बाहर गया तो भूल जायेंगे। जैसे गर्भ जेल में धर्मराज के द्वारा तुमको सजा दिलाता हूँ, त्राहि-त्राहि करते हो कि हम म़ाफी मांगते हैं फिर ऐसे पाप नहीं करेंगे। बाहर निकलने से फिर भी पाप करने लग पड़ते हैं। यह है ही माया का राज्य। सतयुग-त्रेता में माया होती नहीं। वहाँ तो सुख ही सुख रहता है। अभी तुम पढ़ रहे हो। इसमें घरबार छोड़ने की बात नहीं। बाप कहते हैं - देह सहित सब कुछ भूल जाओ। तुम्हारा यह बेहद का सन्यास है। उन सन्यासियों का है हद का सन्यास। जंगल में जाकर फिर लौट आते हैं शहर में। नाम कितने बड़े-बड़े रखवाते हैं। बाप कहते हैं मैं कितना सहज समझाता हूँ। बुढ़ियायें कितनी हैं, कहती हैं हमको धारणा नहीं होती। अच्छा, यह तो जानती हो कि परमात्मा पढ़ाते हैं? वह कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो। इसमें तो कोई तकल़ीफ नहीं है। अभी हमने 84 का चक्र पूरा किया है। यह हुआ स्वदर्शन पा। आत्मा को चक्र का दर्शन होता है। यहाँ ही निरोगी काया बनती है। चक्र को जानने से तुम ऊंच पद पायेंगे इसलिए बाबा कहते हैं कि स्वदर्शन चक्रधारी बनो। कितना सहज समझाते हैं! सहज याद, सहज सृष्टि पा, कोई तकल़ीफ नहीं। यह है सच्ची कमाई। बाकी धन माल तो सब ख़त्म हो जाना है, सब छूट जाता है। सागर को उथल खानी है। नैचुरल कैलेमिटीज भी आनी है। भारत सचखण्ड था, और कोई भी खण्ड नहीं था। भारत है शिवबाबा की जन्म भूमि। बड़े ते बड़ा तीर्थ है। भारत में ही सोमनाथ का मन्दिर कितना अच्छा बना हुआ है! अभी तो ढेर के ढेर बनाते हैं।
बाबा कहते हैं कि इस समय की शादी पूरी बरबादी है। शिवबाबा से सगाई पूरी आबादी है। शिवबाबा साजन भी है, स्वर्ग में भेज देते हैं। तुम यहाँ आये हो, जानते हो हम यहाँ बरोबर नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनेंगे। ऐसे नहीं कि पुरुष जाकर पुरुष ही बनेंगे। बदलते रहते हैं। कोई चोला पुरुष का, कोई स्त्री का। फिर सतयुग से त्रेता कैसे बनता है - वह भी समझाया गया है। अभी तुम बच्चों को नॉलेजफुल गॉड फादर पढ़ाते हैं। मनुष्य तो फादर, टीचर, सतगुरू हो न सकें। फादर और टीचर हो सकते हैं, गुरू हो नहीं सकते हैं। सो भी वह जिस्मानी विद्या। यह बाबा तो एकदम स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। कोई भी बात न समझो तो हजार बार पूछो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सपूत आज्ञाकारी बन विजय माला में पिरोना है। बाप को अपना कखपन दे, बलिहार हो, सबसे ममत्व मिटा देना है।
2) अंतकाल में एक बाप ही याद रहे उसके लिए और सबसे बुद्धियोग तोड़ निरन्तर बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:-स्वयं को बाप हवाले कर बुद्धि से भी सरेन्डर होने वाले डबल लाइट भव
अपनी जिम्मेवारी बाप को देकर, स्वयं को बाप हवाले कर दो अर्थात् अपने सब बोझ बाप को दे दो तो डबल लाइट बन जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ तो और कोई भी बात बुद्धि में नहीं आयेगी, बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं, जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी, बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इस रास्ते से सहज मंजिल पर पहुंच जायेंगे।
स्लोगन:-अडोलता के तख्त पर विराजमान हो, साक्षी दृष्टा बन पार्ट बजाने वाले ही श्रेष्ठ पार्टधारी हैं।
20/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, continue to give time to the pilgrimage of remembrance and your sins will continue to be absolved. Attachment to everyone will end and you will become the garland around the Father's neck.
Question:
Which few words do you study with God, the Father? What secrets are merged in those few words?
Answer:
God, the Father, is just teaching you this much: O souls, renounce the consciousness of the body and remember Me. This is why this study of just few words is taught to you because you are not going to take an old skin (costume) in the old world now. You have to go to the new world. I have come to take you back with Me. Therefore, continue to forget everyone as well as your body.
Song:
You are the Mother and the Father.
Om Shanti
You saligram children know that you are not listening to any scriptures from human beings. This is not called a spiritual gathering (satsang), but a study. If you ask people, they would say that they go to a spiritual gathering or to a college. You know that there would be scholars, sages and holy men in a spiritual gathering giving them knowledge. At school, human beings are professors and teachers etc. Here, it is not a human being. That One is the unlimited spiritual Father to whom you say: You are the Mother and the Father. This cannot be the praise of deities or even of Brahma, Vishnu or Shankar. This is the praise of the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul. You children now know that, having adopted a body, the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is playing a part. No one, except this incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, can teach you Brahma Kumars and Kumaris. Even Brahma cannot be called the Ocean of Knowledge. He is called Prajapita (Father of humanity). Only the one incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is called the Ocean of Knowledge. He alone is the One who makes impure ones pure, for salvation can only be received from the Ocean of Knowledge. These are new things. By writing Krishna's name in the Gita, they have falsified the Gita. How can human beings know that the knowledge-full Supreme Father, the Supreme Soul, comes and enters a human body and gives knowledge? People forget this. It isn't that the scriptures are written at the beginning of the copper age; no! It is explained that they first create the Father's image and the temples etc. through which devotion begins. The devotion of the Supreme Soul should last for a long time because He is the Highest on High. Worship of Him begins first. Shiva alone is worthy of worship. It isn't that Brahma, Vishnu or Shankar, Jagadamba or Jagadpita are worthy of worship. It is just the one Father who makes all of them worthy of worship. He would definitely be worshipped a lot more. This one (Brahma) is nothing; how could he be worshipped unless the Supreme Father, the Supreme Soul, entered him? The Bestower of Salvation for All is just the one Father. These things have to be churned. How does devotion begin? Shiv Baba doesn't churn the ocean of knowledge. Children have to churn the ocean of knowledge. Saraswati, who is a mouth-born creation of Brahma, also has to churn the ocean of knowledge. The Highest on High is the One and if He didn't come, who would make the world pure from impure? All human beings are impure. If Shiv Baba didn't come, who would give you the inheritance of heaven? If your intellects don't have faith, you cannot be threaded in the rosary of victory. Worthy children always become the garland around the neck. A father would also be pleased if his child is very worthy and obedient. Many parents have 12 to 14 children and some are worthy and others are unworthy. No one, apart from the Purifier Father, can uplift impure ones. You know that there is a temple to the Ganges on the banks of the River Ganges. So, you should explain what the Ganges is. Is it some power through whom you become pure from impure or do you become pure through water? The Father says: The Ganges is not the Purifier. No one can become pure without yoga. This is why you don't have to bathe in the Ganges. Yoga means remembrance. You have to connect your intellects in yoga. Those people have many different yoga positions etc. They perform many different types of hatha yoga. That is not called yoga. What would mothers and poor innocent women know about hatha yoga? When people are studying at school, there is no question of stumbling around in that. They pass one examination or another and they know what they will become after passing that examination. Here, too, you know that this is an examination and that God, the Father, is teaching you. He is the Purifier. Yours is a Godfatherly student life. How does the Father make you pure from impure? He says: O souls, renounce the consciousness of those bodies. You have to renounce those old bodies. First of all, your bodies were beautiful, but they have now become iron aged. You are not going to receive a new skin (body) here because the five elements here are tamopradhan. I will now take you children back with Me. I also took you back in the previous cycle. I am the Death of all Deaths. I will take everyone back. Then, I will send you to the land of immortality. This is the land of death, the dirty world. This is why the confluence age has to have a duration of 100 years. All the other ages have a duration of 1250 years. The duration of this confluence age at the end is very short. Just as the topknots of brahmins are very short, in the same way, the duration of the confluence age is also very short. Then, this world will end and you will then begin to construct new buildings etc. Shri Krishna comes first in that. He is very keen and interested to have palaces etc. built. There must have been someone who was very keen and therefore had the Somnath Temple built. Birla was also so keen that he built such a beautiful temple. The foremost worthy-of-worship One is Shiv Baba. On the path of devotion, the first temple to be built is the Somnath Temple (Temple to the Lord of Nectar). It must have been built after a little time (into the copper age), when worshipping began. Now, there is extreme darkness. The night will end and then the day will come. The Father says: I come in-between the night and the day. There is also the great war. It is written: Such things will emerge from their stomachs that they will destroy the whole clan. You can see that they are really making preparations for destruction. They believe that someone is inspiring them. Both sides have manufactured bombs for destruction. Calamities too will come. You see in a practical way that establishment is taking place and that destruction is also just ahead. If someone has not seen destruction, no matter, he can still see Paradise. Study well and claim the full unlimited inheritance from the Father. This isn't a corporeal being teaching you. There is no question of scriptures etc. This is the Ocean of Knowledge, Himself, who is teaching you. Consider yourselves to be bodiless souls and remember the Father. God speaks. He says to His children: I am personally in front of you children. Out of those who become My children, some are stepchildren and others are real children. Only real children have a right to the inheritance. Those who have intellects with doubt are called stepchildren; they cannot receive the inheritance. They then become part of the subjects according to their efforts. Real ones go into the kingdom. They love the Father and the Father loves them. You sing: I will sacrifice myself to You. I will surrender myself to You. The Father says: If you remember Me, I will help you. When children maintain courage, God helps. Break your intellects’ yoga away from everyone else and connect it to the One alone. You say that you belong to Baba and that all of this belongs to Baba. Everything we give to Baba is worth straws and we claim our inheritance of the unlimited sovereignty of heaven in return. We don't have attachment to these old bodies. These are tamopradhan, diseased bodies. What else do we have? When a person dies, everything is left behind. Then, everything of his is given to a Karnighor (brahmin priest): We are giving you everything. In order to end our attachment, we constantly make effort to remember Baba. Maya then creates obstacles. Therefore, by your gradually continuing to give time to remembering Me, your sins are absolved. They are the ones who will become the garland around My neck. Baba explains so easily. The Father says: According to the drama, this chariot is also fixed for Me. I cannot enter anyone else. You say: Baba, we also met You in this building, in this dress and claimed our inheritance from You in the previous cycle. Therefore, this is so easy. Baba says: Simply remember Me alone. Let your intellects not go to anyone else. Remember: Those who remember their sons at the end…. If you remember anyone, you will have to take birth to them. Let there not be attachment to anyone.Those who remember a woman at the end….The Father comes to purify the impure.
He is praised so much: The One Oval Image ("Ek Omkar"). He has just the one name. He doesn't take any other body that His name could change. You take 84 births and so you also have 84 names. The praise sung of Baba is: Fearless, free from animosity, the Immortal Image. He is the Death of all Deaths. Death cannot come to Him. I will take everyone back to the land of liberation. I am free from animosity. I don’t hold a grudge against anyone. I am the Immortal Image, I am beyond birth, I don't enter the cycle of birth and death. He is praised so much. It is remembered: He is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. He removes the sorrow of the iron age and gives the happiness of the golden age. You children know that there was liberation-in-life in Bharat in the golden age. All the rest of the souls were in the land of peace. Do you remember this? So, it surely is only at the confluence age when the Father comes that He can take everyone back to the land of peace and then send you to the land of happiness. These things are so easy, but Maya is such that, as soon as you go out from here, you forget. I inspire punishment to be given by Dharamraj in the jail of a womb, and you cry out in distress and ask for forgiveness and say: I will not commit such sin again. Then, as soon as you come out of the womb, you begin to commit sin again. This is the kingdom of Maya. Maya doesn't exist in the golden and silver ages. There, there is nothing but happiness. You are now studying. There is no question of leaving your home and family in this. Baba says: Forget everything including your body. This is your unlimited renunciation. Those sannyasis have limited renunciation. They go to the forests and then return to the cities. They give themselves such big names. The Father says: I explain everything so easily. There are so many old mothers who say: We are unable to imbibe anything. Achcha, you know that God is teaching you, do you not? He says: Simply remember Me. There is no difficulty in this. We have now completed the cycle of 84 births. This is the discus of self-realisation. The soul receives a vision of the cycle. The body becomes free from disease here. By knowing the cycle, you will claim a high status. This is why Baba says: Become a spinner of the discus of self-realisation. He explains to you so easily. Remembrance is easy. Spinning the world cycle is easy. There is no difficulty. This is the true income. All the wealth and possessions are going to finish. Everything is to be left behind. There will be tidal waves from the oceans and natural calamities will also come. Bharat was the land of truth; there were no other lands. Bharat is the birthplace of Shiv Baba. It is the greatest pilgrimage place. Such a beautiful temple to Somnath is built in Bharat. Now they build so many temples. Baba says: To get married at this time is to ruin yourself completely, whereas to get married to Shiv Baba is to make yourself successful. Shiv Baba is also the Bridegroom. He sends you to heaven. You have come here and you know that you will truly become Narayan from an ordinary man and Lakshmi from an ordinary woman. It isn't that souls in male costumes will always be in male costumes; they continue to change: sometimes they have male costumes and sometimes female costumes. It has also been explained to you how the golden age changes into the silver age. Knowledge-full, God, the Father, is teaching you children. A human being can’t be a father, teacher and satguru. He could be a father and teacher, but not a guru at the same time. However, that too is only a worldly education that he gives. This Baba makes you into the complete masters of heaven. If you don't understand something, then ask a thousand times. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Become worthy and obedient and be threaded in the rosary of victory. Give everything worth straws that you have to the Father, surrender yourself and end your attachment to everyone.
2. In order that you only have remembrance of the one Father at the end, break your intellect's yoga away from everyone else and make effort to stay constantly in remembrance of the Father.
Blessing:
May you hand over yourself and also surrender yourself to the Father with your intellect and remain double light.
Hand over your responsibilities to the Father and hand yourself over to the Father, that is, give all your burdens to the Father and you will become double light. Surrender yourself with your intellect and nothing else will then enter your intellect; everything belongs to the Father, everything is in the Father and so nothing else remains. Since nothing else remains, where would the intellect go? Simply remember the one Father, with the one method of remembrance and you will easily reach your destination on this path.
Slogan:
Those who are seated on an unshakeable throne and play a part of detached observers are elevated actors.
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