Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 16-Aug- 2018 )
16-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - ज्ञान की धारणा तब होगी जब देही-अभिमानी बनेंगे, देही-अभिमानी बनने वाले बच्चों को ही बाप की याद रहेगी।"
 
प्रश्नः-किस एक भूल के कारण मनुष्यों ने आत्मा को निर्लेप कह दिया है?
 
उत्तर:-
 
मनुष्यों ने आत्मा सो परमात्मा कहा, इसी भूल के कारण आत्मा को निर्लेप मान लिया लेकिन निर्लेप तो एक शिवबाबा है, जिसे दु:-सुख, मीठे-कड़ुवे का अनुभव नहीं। आत्मा तो कहती है फलानी चीज़ खट्टी है। बाप कहते हैं मेरे पर किसी भी चीज़ का असर नहीं होता है, मैं इन लेप-छेप से निर्लेप हूँ, ज्ञान का सागर हूँ, वही ज्ञान तुम्हें सुनाता हूँ।
 
गीत:-
 
तकदीर जगाकर आई हूँ........ 
 
ओम् शान्ति।
 
यह किसने कहा? आत्माओं ने कहा इन आरगन्स द्वारा। आत्मा शान्त स्वरूप है। मुझ आत्मा को यह शरीर मिलता है, तब टॉकी बनती हूँ। शरीर द्वारा अनेक प्रकार का कर्म करती हूँ। पहले-पहले यह निश्चय करना है। और सतसंग में मनुष्य, मनुष्य को सुनाते हैं, देहधारी बोलते हैं। कहेंगे फलाना महात्मा बैठा है। यहाँ यह बातें नहीं हैं। तुम समझते हो हम तो आत्मा हैं, यह शरीर रूपी आरगन्स हैं। आत्मा परमपिता परमात्मा द्वारा सुन रही है, जिसका एक ही नाम है शिव। इस समय बच्चे बैठे हैं सुनने लिए। कौन सुनाते हैं? बेहद का बाप। जब परमपिता परमात्मा कहा जाता है तो बुद्धियोग ऊपर चला जाता है। शिव माना बिन्दी। आत्मा भी बिन्दी है, परमात्मा भी बिन्दी है। परन्तु उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। वह बाप हुआ और आत्मायें बच्चे ठहरे। समझना है कि हम आत्मा इस शरीर द्वारा अपने पारलौकिक बाप की सन्तान बनी हूँ। तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनना पड़े। और सब जगह मनुष्य, मनुष्य को समझाते हैं। कोई गीता पाठी होते हैं वह भी गीता को याद कर कहेंगे गीता में भगवान् ने ऐसे-ऐसे कहा है। समझते हैं भगवान् ने साकार में यह गीता सुनाई थी। कोई बैठ वेद-शास्त्र सुनाते हैं। वेद तो मनुष्यों ने रचे हैं। निराकार भगवान् वेद नहीं बनायेंगे। व्यास तो मनुष्य था। व्यास को परमात्मा नहीं कहेंगे। परमपिता परमात्मा तो बिन्दी है। बच्चे साकार में हैं, साकारी रूप है। बाप तो है निराकार।
 
बाप कहते हैं मुझे तो कभी छोटा-बड़ा नहीं बनना है। तुम छोटे-बड़े होते हो। मुझे तो कहते ही हैं परमपिता। मनुष्य पहले बालक बन फिर बड़े हो बाप बनते हैं, फिर बालक बनते हैं। मैं तो हमेशा पिता ही हूँ, मैं बालक नहीं बनता हूँ। मेरा एक ही नाम शिव है। तुम्हारे 84 नाम पड़ते हैं क्योंकि 84 जन्म लेते हो। मैं परमपिता तो बिन्दी रूप हूँ। सिर्फ पूजा के लिए भक्ति मार्ग वालों ने बड़ा रूप बनाकर रखा है। जैसे कोई का बड़ा चित्र बनाते हैं ना। बुद्ध का बहुत बड़ा चित्र बनाते हैं। इतना लम्बा मनुष्य तो होता नहीं। यह मान देते हैं। समझते हैं बहुत बड़ा था। बाप तो ऊंचे ते ऊंच है, बड़े ते बड़ा परमपिता परम आत्मा। बाप अपना परिचय बैठ देते हैं - मेरे को शिव कहते हैं। बच्चों को समझाया जाता है - तुमको समझना है हम निराकार शिवबाबा के सम्मुख जाते हैं। मुझे तो हमेशा परमपिता परमात्मा ही कहेंगे। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। परम आत्मा बैठ समझाते हैं। आत्मा को ही नॉलेज है। गाते भी हैं परमपिता परम आत्मा (परमात्मा), वह ज्ञान का सागर है। हमको ज्ञान सुना रहे हैं। पहले-पहले आत्म-अभिमानी होना चाहिए। देह-अभिमानी नहीं बनना है। परन्तु ड्रामा अनुसार तुमको देह-अभिमानी बनना ही है। अब फिर बाप देही-अभिमानी बनाते हैं।
 
तुम सब बच्चे हो। यह भी बच्चा है। आत्मा परमपिता परमात्मा दादे से वर्सा लेती है। लौकिक सम्बन्ध में सिर्फ बच्चों को ही वर्सा मिलता है, कन्या को नहीं मिलता है। बेहद का बाप कहते हैं तुम सब आत्मायें हो, तुम हर एक को हक है। तुम मुझ परमपिता परमात्मा के थे और हो। कहते हैं ना गॉड फादर, परमपिता परमात्मा। महिमा करते हैं। कौन करते हैं? आत्मा। वह लौकिक फादर तो शरीर का है, यह है आत्माओं का बाप। आत्मा बुलाती है परमपिता परमात्मा। अविनाशी बाप को याद करते ही आये हैं क्योंकि रावण राज्य में दु: ही दु: है। जब से रावण राज्य शुरू होता है तब से याद करना शुरू होता है। याद तो बाप को ही करना है क्योंकि वर्सा बाप से ही मिलता है। यहाँ तो मनुष्यों को बहुतों की याद रहती है। गुरू लोग एक की याद भुला देते हैं। अगर सर्वव्यापी है तो फिर गॉड वा फादर किसको कहें? बाप घड़ी-घड़ी कहते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी बनो, उठते-बैठते मुझ बाप को याद करो। समझो, हम श्रीमत पर चल रहे हैं। मैं आत्मा खा रही हूँ बाबा की याद में। याद से विकर्म विनाश होंगे। मंज़िल है बड़ी भारी। योग कोई मासी का घर नहीं है। मनुष्यों ने तो बाप का नाम ही प्राय:लोप कर दिया है। श्री कृष्ण तो बच्चा ठहरा। इतनी बड़ी प्रालब्ध जरूर बाप ने ही दी है।
 
बाप समझाते हैं - देह सहित देह के सब धर्म भूल जाओ। यह नाम तो सब बाद में रखे गये हैं। तो यह समझना है कि परमपिता परमात्मा द्वारा हम यह नॉलेज पढ़ रहे हैं। और कोई ऐसे स्कूल नहीं हैं जहाँ समझें कि हम आत्मा हैं। तुम जानते हो पहले सतोप्रधान थे फिर सतो, रजो, तमो में आते हैं। खाद आत्मा में पड़ती है। मेरे में तो कभी खाद नहीं पड़ती। मैं एवर सच्चा सोना हूँ। तुम्हारी आत्मायें सब इस समय आइरन एजेड बन गई हैं। मम्मा भी कहेगी - हमने शिवबाबा से जो सुना है, वही सुनाते हैं। शिवबाबा तो खुद ज्ञान का सागर है। यह बड़ी समझ की बातें हैं। बरोबर हम बाबा के बने हैं, वह हमें पढ़ाते हैं। बाबा से पढ़कर हम जीवनमुक्त बनते हैं। जीवनमुक्त माना इस शरीर में तो आना है, परन्तु सुख भोगना है। मुक्ति सबको मिलती है परन्तु जीवनमुक्ति में तो नम्बरवार आते हैं। मुक्त तो सब आत्मायें होती हैं। दु: से आधाकल्प के लिए मुक्त कर देते हैं। कहते हैं तुमको लिबरेट कर जीवनमुक्त बनाता हूँ। फिर कोई कितने जन्म लेते, कोई कितने जन्म लेते हैं। जीवनमुक्त तो सब बनते हैं। सद्गति दाता है ही एक। जो भी धर्म स्थापक हैं, सब पुनर्जन्म लेते-लेते अब तमोप्रधान बने हैं। मैं आकर सबको इन दु:खों से छुड़ाता हूँ इसलिए मुझे लिबरेटर कहते हैं, मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता कहते हैं। मुक्ति अर्थात् अपने घर साइलेन्स धाम में जाना। बाप भी परमधाम से आते हैं, जिसको परलोक कहा जाता है। तुम निर्वाणधाम और स्वर्गधाम दोनों को याद करते हो। स्वर्ग और नर्क यहाँ ही होता है। इस समय सब समझते हैं - यह नर्क है। कितना दु: पाते रहते हैं। गरूड़ पुराण में तो बहुत रोचक बातें लिख दी हैं जिससे मनुष्यों को डर हो और पाप करने से बच जायें इसलिए ऐसी-ऐसी बातें बैठ बनाई हैं। द्वापर से यह शास्त्र बनाना शुरू करते हैं। बाप कहते हैं मैं आकर ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण धर्म रचता हूँ। वह फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनते हैं। दो युग में कोई धर्म स्थापन करने वाला नहीं आता है, फिर एक-दो के पीछे सब नम्बरवार आते हैं और अपने-अपने धर्म को जानते हैं। यह देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जायेगा फिर अपने को देवता कहला नहीं सकेंगे। पतित कैसे श्री श्री अथवा श्रेष्ठ कहलायेंगे? बाप ही श्रेष्ठ बनाते हैं। देवी-देवताओं को श्रेष्ठ कहा जाता है। उनके चित्र भी हैं परन्तु समझते नहीं कि देवी-देवता धर्म कब था, किसने स्थापन किया? सतयुग की आयु ही लम्बी कर दी है।
 
अब बाबा कहते हैं - बच्चे, अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो। अब खेल पूरा होता है। देखते नहीं हो अब मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खुल रहे हैं? मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता तो एक ही है। यहाँ तो देखो जगत माता का टाइटिल भी कोई-कोई को देते रहते हैं। वास्तव में जगत अम्बा यह है ना। ऐसे कोई भी नहीं होगा जो जगत पिता भी हो, शिक्षक भी हो, जगत गुरू भी हो। भल मनुष्य अपने पर नाम बहुत रखाते हैं, परन्तु हैं नहीं। कहाँ वह लक्ष्मी-नारायण, कहाँ यह विकारी भी अपने ऊपर टाइटिल रख देते हैं। मनुष्य कितने बुद्धू बन गये हैं! आदि सनातन देवी-देवता धर्म को भूल उन्हों के टाइटल फिर अपने को दे देते हैं। वास्तव में ऊंच ते ऊंच मर्तबा तो एक का ही है, सद्गति दाता एक ही है। राम कहो तो भी वह एक ही निराकार ठहरा।
 
बाप कहते हैं भारतवासियों को अपने धर्म का पता नहीं - कब और किसने स्थापन किया? कोई किस देवी को याद करते, कोई कृष्ण को, कोई गुरू को याद करते। गुरू का फोटो भी लगा देते हैं। तुम्हारा चित्र से काम नहीं। जिसका कोई चित्र नहीं, वह है विचित्र। आत्मा विचित्र है। जैसे बाप विचित्र है वैसे बच्चे भी विचित्र हैं। आत्मा ही सुनती है। बाबा ने यह तन लोन लिया है। कहते हैं प्रकृति के आधार बिगर मैं ज्ञान कैसे दूँ? राजयोग कैसे सिखलाऊं? भगवान् निराकार को ही कहा जाता है। उनको आना ही है पतित दुनिया में। कृष्ण को दिखाते हैं कि पीपल के पत्ते पर सागर में आया, ऐसी कोई बात नहीं है। कृष्ण तो फर्स्ट प्रिन्स है विश्व का। वहाँ और कोई धर्म नहीं। अद्वेत राज्य है, फिर द्वेत हो जाती है, फिर अनेक प्रकार के धर्म स्थापन होते जाते हैं। तो बच्चों को यह समझना है कि बाबा इस शरीर में आकर हमको पढ़ाते हैं। बाबा कहते हैं मैं अशरीरी हूँ, इस शरीर द्वारा तुमको ज्ञान देता हूँ। मैं हूँ ज्ञान का सागर। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। सिर्फ ईश्वर वा परमात्मा कहने से बाप का सम्बन्ध भूल जाता है। परमात्मा बाप है, उनसे वर्सा मिलता है - यह भूल जाते हैं। वह हमारा बाप है, क्रियेटर है, हम उनकी रचना हैं। उसने क्रियेट किया है। कोई तो रचता होगा ना। बाबा ने समझाया है - पुरुष हद का ब्रह्मा है। बच्चों को क्रियेट करते हैं। पहले स्त्री को एडाप्ट करते हैं फिर उनके द्वारा बच्चे क्रियेट करते हैं। बाबा भी कहते हैं मैं इन द्वारा क्रियेट करता हूँ। स्त्री तो जरूर चाहिए ना। बाबा को कहते ही हैं तुम मात-पिता, तो यह (ब्रह्मा) माता हो गई, इन द्वारा एडाप्ट करते हैं। तो तुमको ब्रह्मा मुख वंशावली कहेंगे। तुम बाप के बने हो इन द्वारा। यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं। शास्त्रों में यह नहीं है। मुझे कहते हैं नॉलेजफुल, जानीजाननहार। मनुष्य समझते हैं परमात्मा सबके अन्दर की बातें जानते हैं, थॉट रीडर हैं। लेकिन इतने सबका थॉट रीडर कैसे बनेगा? बाप कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ। मैं चैतन्य हूँ, सत हूँ। आत्मा भी चैतन्य है। शरीर असत है, घड़ी-घड़ी बदलता रहता है। आत्मा तो नहीं मरती। आत्मा यह नॉलेज ग्रहण करती है।
 
बाप समझाते हैं मैं परमपिता परमात्मा निर्लेप हूँ अर्थात् दु:-सुख का अथवा कड़ुवी-मीठी चीज़ का मुझे कोई असर नहीं होता है। मैं इन लेप-छेप से निर्लेप हूँ। ज्ञान का सागर हूँ। मनुष्य फिर कहते हैं कि आत्मा निर्लेप है क्योंकि आत्मा सो परमात्मा एक है। एक ने कहा - बस, उसके पीछे फॉलो करते रहते। बाप कहते हैं मैं निर्लेप हूँ। मुझे कोई खट्टा खारा नहीं लगता। यह इनकी आत्मा कहती है - फलानी चीज़ खट्टी है। मेरे में सारे सृष्टि का ज्ञान है जो आत्माओं को पढ़ाता हूँ। तुम हर एक को समझना है - हम आत्मा परमपिता परमात्मा द्वारा सुन रहे हैं। यहाँ तो बरोबर भगवानुवाच है। निश्चय करना चाहिए - गॉड क्रियेटर इज़ वन।
 
पहले-पहले मुख्य बात है भारत की। भारत को अविनाशी खण्ड कहा जाता है। यह भारत है बर्थ प्लेस पतित-पावन बाप का। यह बहुत ऊंच खण्ड है। यहाँ लक्ष्मी-नारायण की राजधानी होगी। यह तुम जानते हो कि बाप फिर से देवी-देवता धर्म की सैपलिंग लगा रहे हैं। जो इस धर्म के होंगे वही आकर वर्सा लेंगे। इसको सैपलिंग कहा जाता है। बाबा ने समझाया - देही-अभिमानी बनना है। बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। हम इन कानों से सुनते हैं, पढ़ते हैं, पढ़ाते हैं। अच्छा!-
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) चित्र को भूल विचित्र बन विचित्र बाप को याद करना है। देह सहित देह के सब धर्मों को बुद्धि से भूलना है, देही-अभिमानी हो रहने का अभ्यास करना है।
 
2) देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लग रहा है, इसलिए पावन जरूर बनना है। दैवीगुण धारण करने हैं।
 
वरदान:-ज्ञान को रमणीकता से सिमरण कर आगे बढ़ने वाले सदा हर्षित, खुशनसीब भव
 
यह सिर्फ आत्मा, परमात्मा का सूखा ज्ञान नहीं है। बहुत रमणीक ज्ञान है, सिर्फ रोज़ अपना नया-नया टाइटिल याद रखो - मैं आत्मा तो हूँ लेकिन कौन सी आत्मा हूँ, कभी आर्टिस्ट की आत्मा हूँ, कभी बिजनेसमैन की आत्मा हूँ... ऐसे रमणीकता से आगे बढ़ते रहो। जैसे बाप भी रमणीक है देखो कभी धोबी बन जाता तो कभी विश्व का रचयिता, कभी ओबीडियन्ट सर्वेन्ट...तो जैसा बाप वैसे बच्चे....ऐसे ही इस रमणीक ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहो, तब कहेंगे खुशनसीब।
 
स्लोगन:-सच्चे सेवाधारी वह हैं जिनकी हर नस अर्थात् संकल्प में सेवा के उमंग-उत्साह का खून भरा हुआ है।
 
 
 
16/08/18 Morning Murli                Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, you will be able to imbibe knowledge when you become soul conscious. Only the children who become soul conscious will be able to remember the Father.
 
Question:
 
Due to which one mistake have human beings said that souls are immune to the effect of actions?
 
Answer:
 
Human beings have said that each soul is the Supreme Soul and this is why they have understood souls to be immune to the effect of action. However, only Shiv Baba is immune to the effect of action. He doesn't experience happiness or sorrow, sweetness or bitterness. A soul says: Such-and-such a thing is sour. The Father says: I am not affected by anything. I am beyond the effect of these things. I am the Ocean of Knowledge and I speak that same knowledge to you.
 
Song:
 
I have come having awakened my fortune. 
 
Om Shanti
 
Who said this? The soul said this through these organs. The soul is an embodiment of peace. I, the soul, receive this body and that is when I become "talkie". I perform many types of action through the body. First of all, you have to have this faith. In other spiritual gatherings, it is human beings who speak to human beings; it is bodily beings who speak there. They would say: Such -and-such a great soul is sitting there. Those things don't exist here. You understand that you are souls and that those bodies are your organs . Souls are listening to the Supreme Father, the Supreme Soul, and He only has the one name, Shiva. At this time, you children are sitting here listening to Him. Who is speaking to you? The unlimited Father. When you say, "The Supreme Father, the Supreme Soul", your intellects’ yoga goes up above. Shiva means ‘point’. A soul is a point and God is also a point. However, He is called the Supreme Father, the Supreme Soul. He is the Father and souls are the children. You have to understand: "I, the soul, have become a child of the Father from beyond this body." You children have to become soul conscious. At all other places, it is human beings who explain to human beings. At any place where they study the Gita, they remember the Gita and also say that God said this and that in the Gita. They believe that God spoke the Gita in a corporeal form. Some sit and relate the Vedas and scriptures. Human beings wrote the Vedas. Incorporeal God did not write the Vedas. Vyas was a human being. Vyas cannot be called the Supreme Soul. The Supreme Father, the Supreme Soul, is a point. Children are in corporeal forms; they have corporeal forms, whereas the Father is incorporeal. The Father says: I never have to become big or small. You become big or small. I am called the Supreme Father. Human beings are at first children and then, when they grow up, they become parents and then become children again. I am always the Father. I do not become a child. I only have the one name, Shiva. You receive 84 names because you take 84 births. I, the Supreme Father, am the form of a point. It is just that people on the path of devotion have made My form very large in order to worship Me. Sometimes they make a very big image of someone. They make a very big image of Buddha. There cannot be such a tall human being. They simply give regard in that way. They believe that he was very big. The Father is the Highest on High. The greatest of all is the Supreme Father, the Supreme Soul. The Father sits here and gives His own introduction. You call Me Shiva. It is explained to you children: You have to understand that you have come personally in front of incorporeal Shiv Baba. I am always called the Supreme Father, the Supreme Soul. I am the Seed of the human world tree. The Supreme Soul sits here and explains. The soul has the knowledge. It is sung: The Supreme Father, the Supreme Soul, God. He is the Ocean of Knowledge. He is speaking this knowledge to us. First of all, you have to become soul conscious. You mustn't become body conscious. However, according to the drama, you had to become body conscious. The Father is now making you soul conscious. All of you are children. This one is also a child. Souls are receiving the inheritance from the Supreme Father, the Supreme Soul, the Grandfather. In worldly relationships, only sons receive an inheritance; daughters don't receive it. The unlimited Father says: All of you are souls. Each one of you has a right. You used to belong to Me, the Supreme Father, the Supreme Soul, and you belong to Me now. You say: O God, the Father, Oh Supreme Father, Supreme Soul! You sing His praise. Who sings it? Souls. These are the physical fathers of bodies whereas this One is the Father of souls. The soul calls out: O Supreme Father, Supreme Soul! You have been remembering the imperishable Father because there is nothing but sorrow in the kingdom of Ravan. You began remembering when the kingdom of Ravan began. You only have to remember the Father because it is only from the Father that you receive the inheritance. Here, human beings remember many. Gurus make you forget remembrance of the One. If God is omnipresent, then whom should we call God or Father? The Father repeatedly says: Children, become soul conscious! While sitting and moving about, remember Me, your Father! Understand that you are following shrimat. I, the soul, am eating in remembrance of Baba. Your sins will be absolved by having remembrance. The destination is very high. Yoga is not like going to your aunty’s home! However, the Father's name has been made to disappear. Shri Krishna is just a child. It was definitely the Father who gave you such a huge reward. The Father explains: Forget your body and all bodily religions. All of those names were given later on. Therefore, you should understand that you are studying this knowledge with the Supreme Father, the Supreme Soul. There isn't any other school where they would understand that they are souls. You know that you are at first satopradhan and that you then go through the stages of sato, rajo and tamo. Alloy is mixed into souls. I never have alloy in Me. I am ever real gold. You souls have all become iron aged at this time. Mama would also say: I am telling you what I have heard from Shiv Baba. Shiv Baba Himself is the Ocean of Knowledge. These matters have to be understood very clearly. We truly now belong to Baba. He is teaching us. We are being liberated in life by studying with Baba. To be liberated in life means you have to enter a body, but also experience happiness. Everyone does receive liberation but everyone goes into liberation-in-life numberwise. All souls become liberated. He liberates you from sorrow for half the cycle. He says: I liberate you and make you liberated-in-life. Then, some take this many births and others take that many births. Everyone becomes liberated-in-life. There is only the One who is the Bestower of Salvation. All the founders of religions have now become tamopradhan while taking rebirth. I come and liberate everyone from this sorrow and this is why I am called the Liberator and the Bestower of Liberation and Liberation-in-Life. “Liberation” means to go to your home in the land of silence. The Father also comes here from the supreme abode which is also called the world beyond (Parlok). You remember both the land of nirvana and the land of heaven. Heaven and hell exist here. At this time, everyone understands that this is hell. They continue to receive so much sorrow. They have written very fearsome stories in the Garuda Purana (Hindu scripture) through which people would become afraid and thereby be saved from committing sin. This is why they sat and made up such stories. They begin to write such scriptures in the copper age. The Father says: I come and create the Brahmin religion through Brahma. They then become the sun and moon dynasties. In those two ages, no one comes to establish a religion. Then, one after another, they all continue to come down, numberwise, and know their own religion. This deity religion will disappear and they will then no longer be able to call themselves deities. How could impure ones be called Shri Shri or elevated? Only the Father makes you elevated. Deities are called elevated. There are many images of them, but people don't understand when the deity religion existed or who established it. They have elongated the duration of the golden age. Baba now says: Children, consider yourselves to be souls. Remember the Father. The play is now coming to an end. Can't you see that the gates to liberation and liberation-in -life are opening? The Bestower of Liberation and Liberation-in-Life is only the One. You can see that here (in the world) the title of World Mother is given to someone or other. In fact, it is this one who is Jagadamba, the World Mother. There isn't a person who could be the World Father, Teacher and also the Jagadguru. Although people give themselves many names, they are not that. There is such a vast difference between Lakshmi and Narayan and those vicious ones who give themselves those titles. Human beings have become such buddhus (fools). They have forgotten the original eternal, deity religion and taken those titles for themselves. In fact, only the One has the highest-on-high status. There is only the one Bestower of Salvation. Even if you call Him Rama, He is the same incorporeal One. The Father says: The people of Bharat do not know their own religion, when it was established or who established it. Some remember a goddess, some would remember Krishna and others would remember their guru. They even put up a photograph of their guru. You have nothing to do with pictures. The One who doesn't have an image (is without a form) is Vichitra (without an image). A soul is without an image. Just as the Father is without an image, in the same way, children are also without an image. It is souls that listen. Baba has taken this body on loan. He says: How could I give knowledge without the support of matter? How could I teach you Raja Yoga? Only the incorporeal One is called God. He has to come into the impure world. They show Krishna floating on a pipal leaf in the ocean. There isn't anything like that. Krishna is the first prince of the world. There are no other religions there. That is the undivided kingdom and then there is duality. Then, many types of religion continue to be established. Therefore, you children have to understand that Baba enters this body and teaches us. Baba says: I am bodiless. I give you knowledge through this body. I am the Ocean of Knowledge. The Father sits here and explains all of these things. When you simply say “God” or “Supreme Soul”, you forget the relationship of the Father. You forget that God is the Father and that you receive the inheritance from Him. He is our Father, the Creator, and we are His creation; He has created us. Someone has to be the Creator. Baba has explained that men are limited Brahmas: they create children. First, a female is adopted. Then children are created with her. Baba says: I also create with this one. A female is definitely needed. You say to Baba: You are the Mother and Father. Therefore, He adopts you children through this one. This one becomes the mother and He adopts you through him. So you are called the mouth-born creation of Brahma. You belong to the Father through this one. These are very wonderful things. They are not mentioned in the scriptures. I am called knowledge-full, Janijananhar. People think that God knows what is inside everyone and that He is a thought reader. How could He become the thought reader of so many people? The Father says: I am the Seed of the human world tree. I am the Living Being, the Truth. Souls too are living. Bodies are false; they repeatedly continue to change. Souls do not die. You souls imbibe this knowledge. The Father explains: I am the Supreme Father, the Supreme Soul, immune to the effect of action. That is, I am not at all affected by happiness or sorrow, or by bitter or sweet things. I am free from any effect of those. I am the Ocean of Knowledge. People then say that souls are immune to the effect of action because souls and the Supreme Soul are one and the same. One person said something and everyone began to follow him. The Father says: I am immune to the effect of action. I don't find anything sour or salty. This one's soul says such-and-such a thing is sour. I have the knowledge of the whole world which I then teach souls. Each one of you has to understand: I, the soul, am listening to the Supreme Father, the Supreme Soul. Here, these are truly the versions of God. You should have the faith: God, the Creator, is One. First and foremost is Bharat. Bharat is called the imperishable land. This Bharat is the birthplace of the Purifier Father. This is a very elevated land. There is to be the kingdom of Lakshmi and Narayan here. You know that the Father is once again planting the sapling of the deity religion. Those who belong to this religion will come and claim their inheritance. This is called the sapling. Baba has explained: You have to become soul conscious. Baba is teaching us. We are listening through these ears. We are studying and teaching. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Forget the image, become one without an image and remember the Father who is without an image. Remove your body and all bodily religions from your intellect. Practise remaining soul conscious.
 
2. The sapling of the deity religion is being planted. Therefore, you definitely have to become pure. You have to imbibe divine virtues.
 
Blessing:
 
May you always be cheerful and have the fortune of happiness and move forward by churning knowledge in an entertaining way.
 
This is not just dry knowledge of the soul and the Supreme Soul; this is very entertaining knowledge. Every day, simply remember your new titles. I am a soul, but what type of soul? Sometimes, I am an artist’s soul, sometimes a businessman’s soul. Continue to move forward in an entertaining way in this way. Just as the Father is entertaining: He sometimes becomes the Laundryman, sometimes the World Creator, sometimes the Obedient Servant; as is the Father so are the children. Churn this entertaining knowledge in this way and remain cheerful and you will be said to have the fortune of happiness.
 
Slogan:
 

A true server is one whose every vein, that is, whose every thought is filled with the blood of zeal and enthusiasm for service.

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