Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 11-Aug- 2018 )
11-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अव्यभिचारी याद से ही तुम्हारी अवस्था अचल-अडोल बनेगी, पुरुषार्थ करो एक बाप के सिवाए दूसरा कुछ भी याद आये"
 
प्रश्नः-शिवबाबा कौन-सी सर्विस करते हैं और तुम बच्चों को क्या करना है?
 
उत्तर:-
संगम पर शिवबाबा सभी आत्माओं को कब्र से निकालते हैं अर्थात् आत्मायें जो देह अभिमान में आकर पतित बन गई हंा उन्हें पतित से पावन बनाने की सर्विस करते हैं। तुम बच्चे भी बाप के साथ-साथ सबको शान्तिधाम और सुखधाम का रास्ता बताने के लिए लाइट हाउस बनो। तुम्हारी एक आंख में मुक्ति और दूसरी आंख में जीवनमुक्ति हो।
 
गीत:-
 
किसने यह सब खेल रचाया........ 
 
ओम् शान्ति।
 
यह वास्तव में भक्ति मार्ग का गीत है। कोई है जरूर, जिसकी यह महिमा है। बच्चे अच्छी रीति समझ सकते हैं कि यह बाप ही है जो सब कुछ करते हैं, करनकरावनहार है। सिक्ख लोग बहुत महिमा गाते हैं क्योंकि नया धर्म है और यह है बहुत पुराना धर्म। गाते हैं एकोअंकार... ओम् का अर्थ भी बाबा ने बहुत अच्छी रीति समझाया है। वह तो बहुत लम्बा-चौड़ा अर्थ कर देते हैं। मैं कहता हूँ मैं परमात्मा परमधाम का रहने वाला हूँ। मैं पुनर्जन्म में नहीं आता हूँ, तुम पुनर्जन्म में आते हो। बाप बच्चों को बैठ परिचय देते हैं। मैं बच्चों के सामने ही प्रत्यक्ष हूँ। इन्हों को समझाया है मैं हूँ परमपिता परमात्मा, जिसको तुम आत्मायें भक्ति मार्ग में याद करती हो - गॉड फादर। उनकी महिमा भी है पतित-पावन, रहमदिल, लिबरेटर। उनको गाइड भी कहते हैं। यह है पाण्डव सेना। पण्डा मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह बताता है। गाते भी हैं ना नईया मेरी पार लगाओ। बरोबर परमात्मा को खिवैया भी कहते हैं, बागवान भी कहते हैं। कहते हैं तुम कितने मस्त थे। सतयुग-त्रेता में बेपरवाह बादशाह थे। कितने वैभव थे! श्रीनाथ द्वारे में कितने वैभव खिलाते हैं, पक्की रसोई बनाते हैं, जगन्नाथ के मन्दिर में दाल-चावल बनाते हैं। वहाँ काले चित्र दिखाते हैं। अभी तुम सब काले हो। श्रीनाथ द्वारे में बहुत फर्स्टक्लास चीजें बनती हैं, फिर जो श्रीनाथ को भोग लगाते हैं, वह पुजारियों को मिलता है। वह फिर दुकान में बेचते हैं। उससे शरीर निर्वाह होता है। तुम बच्चे तो स्वर्ग के मालिक बनते हो। वहाँ जो वैभव तुम खाते हो, वह दास-दासियां भी खाते हैं। 36 प्रकार के वैभव बनते हैं, इतने तो खा नही सकेंगे तो फिर दास-दासियां खाते हैं। परन्तु इसमें ही खुश नहीं होना है। राजधानी तो सारी बननी है। तुम वहाँ बहुत मौज में रहेंगे। वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी का स्थापन किया हुआ स्वर्ग का राज्य-भाग्य तुम बच्चों को मिलता है।
 
कहते हैं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। अब वैराग्य दो प्रकार का होता है। सन्यासियों का है हद का वैराग्य। घर-बार छोड़ जाकर जंगल में बैठते हैं फिर वह गुप्त मदद करते हैं। भारत का बहुत फ़ायदा करते हैं। जैसे विनाश के लिए कहा जाता है इनसे स्वर्ग के गेट खुलते हैं। वैसे यह भी पवित्रता की मदद करते हैं, इसलिए ड्रामा में उन्हों की महिमा है। बाप कहते हैं यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। तो उनका है हद का वैराग्य, तुम्हारा है बेहद का। तुम्हें बेहद का बाप वैराग्य दिलाते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ बुद्धि से भूलना है। यह तो पुराना शरीर है, अब 84 जन्म पूरे हुए। देह सहित देह के सब धर्मों, सर्व सम्बन्धों को भूलना है। अपने को देही समझना है। वह तो कह देते कि आत्मा निर्लेप है। कुछ भी खाओ-पियो, लेप-छेप नहीं लगता। अनेक मत-मतान्तर हैं। कैसी रस्म-रिवाज है, जिसने जो मत चलाई चल पड़ती है। जैसे यहाँ कोई आदि देव को महावीर कहते हैं। महावीर फिर हनुमान को भी कहते हैं। वास्तव में तुम सब महावीर-महावीरनियां हो जो माया पर जीत पाते हो। श्रीमत पर पुरुषार्थ करते हो। तुमको अपनी अवस्था ऐसी रखनी है, जैसे अंगद को रावण हिला नहीं सका।
 
तुम महावीरों को भी भल कितना भी माया का तूफान लगे, परन्तु हिलना नहीं है। यह अवस्था अभी नहीं होगी। पिछाड़ी में ऐसी अवस्था होनी है। कितने भी विकल्पों के तूफान आयें लेकिन अडोल रहना है। अव्यभिचारी याद रहे और किसकी याद ना आये, इसमें मेहनत बहुत करनी है। पिछाड़ी में ही अचल-अडोल बनेंगे। अचलघर यादगार है ना। उसके ऊपर गुरूशिखर है। अभी तुम समझते हो ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा, वह है रचयिता। पहले-पहले क्या रचते हैं, वह भी बुद्धि में रखना है। ऊंच ते ऊंच है शिवबाबा फिर हैं ब्रह्मा-विष्णु-शंकर सूक्ष्मवतनवासी, विष्णु को चार भुजायें क्यों देते हैं? इससे यह प्रवृत्ति मार्ग सिद्ध होता है। तुम्हारा है प्रवृत्ति मार्ग। ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं। ब्राह्मण धर्म है ऊंच ते ऊंच, देवताओं से भी तुम ऊंच हो क्योंकि तुम सर्विस करते हो। दैवी धर्म की स्थापना कर फिर तुम विश्व के मालिक बनते हो। ऊंच ते ऊंच है एक बाप अथवा महिमा लायक एक ही शिवबाबा है, दूसरा कोई। बर्थ डे एक शिवबाबा का ही मुख्य है। बाकी तो कोई सर्विस नहीं करते। लक्ष्मी-नारायण भी प्रालब्ध भोगते हैं। अभी तो सबकी कयामत का समय है। पहले-पहले भक्ति भी शुरू होती है एक बाप की। वह है अव्यभिचारी भक्ति। अभी तो बिल्कुल व्यभिचारी बन गये हैं। तुम शिवबाबा से लेकर सभी के आक्यूपेशन को जानते हो। अभी तुम प्रैक्टिकल में बाबा के पास बैठे हो, जानते हो कि हम फिर से भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। जो बनाते हैं, वही फिर राज्य करेंगे। फिर वहाँ लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी चलती है फिर राम की। अब उनकी क्या पूजा करें? उनको तो नीचे उतरना ही है, प्रालब्ध भोग पूरी की, बस। तुम ही पूज्य से पुजारी बनते हो। बाकी सूंढ़ वाला गणेश, पूंछ वाला हनूमान, 8-10 भुजा वाली देवियाँ कहाँ हैं? यह सब भक्ति मार्ग के बखेरे हैं। तुम जानते हो कि भक्ति मार्ग में क्या होता है? 63 जन्म कैसे लेते हैं? अभी तुम ब्राह्मण हो फिर ब्राह्मण से देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्णों मे आयेंगे - यह ड्रामा अनादि बना हुआ है। कोई रोक नहीं सकता। बाजोली खेली जाती है ना। तीर्थों पर बाजोली खेलते जाते हैं। आगे बाजोली का बड़ा प्रभाव था। अभी तो अनेकानेक मतें निकल पड़ी हैं सिवाए एक बाप के और कोई मुक्ति-जीवनमुक्ति दे नहीं सकता। अब तुम्हारी एक आंख में है मुक्ति, दूसरी आंख में है जीवनमुक्ति। बुद्धि कहती है हम लाइट हाउस हैं।
 
तुम हो मनुष्यों को रास्ता दिखाने वाले लाइट हाउस। पहले-पहले जाना है स्वीट होम। अभी नाटक पूरा होना है। तुम बच्चे जानते हो कि यह सच्ची गीता आदि क्यों बनाते हैं? जो कच्चे हैं वह पढ़ कर पक्के बनें। बाकी तो यह सब ख़त्म हो जाने हैं। फिर वही गीता आदि निकलेगी। गीता का एक श्लोक उठाकर उसका अर्थ करते जाते हैं। गीता में तो है भगवानुवाच। गीता भगवान् ने सुनाई थी, परन्तु समझते नहीं हैं। बाप कहते हैं मैं इन शास्त्रों से नहीं मिलता हूँ, जब भक्ति पूरी होती है तब मैं आता हूँ। ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। आधाकल्प है रावण का राज्य, रावण देखने में नहीं आता है। बुद्धि से समझ सकते हैं - इनमें काम का भूत, क्रोध का भूत है। यह अशुद्ध अक्षर सतयुग में काम नहीं आते। यहाँ तो एक-दो को गाली देते रहते हैं। यह सब बातें सतयुग में नहीं होती। अभी तुम समझते हो बाप पतित-पावन स्वर्ग का रचयिता है। स्वर्ग रचकर फिर अपने को छिपा लेते हैं। इनको कोई भी जान नहीं सकता। भल शिव का चित्र है परन्तु पता कुछ भी नहीं। शिवबाबा कब आया, कैसे आया? ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का क्या राज़ है, वह कहाँ रहते हैं? लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में इतनी ऊंच राजाई कैसे मिली? कलियुग में तो है नहीं। कैसे वह राजाई पाते हैं - यह अब तुम समझते हो। बच्चों को बाप से अच्छी रीति पढ़कर फिर औरों को पढ़ाना है। बाप सभी बच्चों को कहते हैं कि मेरे सिकीलधे बच्चे, मेरे सालिग्रामों मैं इस शरीर में आकर तुमको समझाता हूँ, इस ब्रह्मा का तन लिया हुआ है। ब्रह्मा से ब्राह्मण पैदा होते हैं। और कोई सतसंग में ऐसे कोई मना नहीं होती है। यहाँ मना करते हैं। विष पर ही झगड़े होते हैं। जिसके लिए ही बाप कहते हैं - यह विष आदि-मध्य-अन्त दु: देते हैं। यह है नम्बरवन दुश्मन, इस काम महाशत्रु को जीतो जिसने तुमको आदि-मध्य-अन्त दु: दिया है इसलिए कहते हैं पतित-पावन आओ। जानते हैं हम पतित हैं तब तो जाकर पावन के आगे माथा टेकते हैं। पवित्रता की कशिश होती है, इसलिए उन्हों का मर्तबा रखते हैं। वह भी समझते हैं, हमारे जैसा ऊंच भारत में कोई है नहीं। उन्हों को भी तुम शक्तियों ने बाण मारे हैं। अगर स्थूल बाणों की बात होती तो ऐसे थोड़ेही कहते कि परमपिता ने बाण मरवाये हैं। यह हैं ज्ञान के बाण। तुम हो ब्रह्माकुमारियाँ, वह फिर ब्रह्म कुमारियाँ कह देते हैं। कहते हैं ब्रह्म ही भगवान् है। बाप कहते हैं यह तुम्हारा भ्रम है। अब तुम्हारे पास सन्यासी लोग भी बहुत आते हैं। बड़े-बड़े आदमी सन्यासियों के पास जाते हैं। बोलते हैं - महात्मा जी, चलिये हम आपको भोजन खिलायें। बहुत उन्हों की ख़ातिरी करते हैं। पवित्रता की निशानी है ना। आजकल तो कई डाकू भी सन्यासी का वेष धारण कर लेते हैं। तुम तो बिल्कुल साफ हो और तुम हो भी राजऋषि। अभी तुम ऊपर से नीचे तक समझ गये हो, जानते हो हम सो देवता लक्ष्मी-नारायण बन प्रालब्ध भोगते हैं। आधाकल्प बाद फिर जब और धर्म आते हैं तब लड़ाइयां आदि लगती हैं। यह भी सब ड्रामा में है। तुम मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूल वतन, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानकर नॉलजेफुल बन गये हो। चक्र को भी जान लिया है चक्रवर्ती राजा बनने के लिए। भारत में डबल सिरताज राजा-रानी यह लक्ष्मी-नारायण ही थे। सिंगल ताज वाले उन्हों को नमन करते हैं। पवित्रता की ताकत थी, सतयुग में वाइसलेस सम्पूर्ण निर्विकारी थे। गाते भी हैं सर्वगुण सम्पन्न...... यह क्यों गाते हैं? खुद पुजारी विकारी हैं। भारत पर ही सारा खेल है। डबल सिरताज और सिंगल सिरताज, अभी तो नो ताज...... तुम सारे सृष्टि चक्र को समझ गये हो। क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर कौन हैं - तुम अभी जानते हो। फिर तुम देवता बन जायेंगे।। माया की जो कीचड़ लगी है वह धोई जाती है। बाप कहते हैं मैं धोबी भी हूँ, बड़े ते बड़ा सुनार भी हूँ। तुम्हारे जेवर को अभी भट्ठी में डालते हैं। तुम सच्चा जेवर बन जायेंगे। बाप बैरिस्टर भी है। तुमको 5 विकारों की जेल से छुड़ाते हैं, लिबरेट करते हैं। तुम रावण की जेल में हो, जेल से छुड़ाने लिए वकालत सिखलाते हैं कि अपने को कैसे छुड़ाओ। बाप कहते हैं मैं अपना कार्य कर तुमको राज्य-भाग्य दे फिर मैं गुम हो जाऊंगा। तुम सुखी बन जायेंगे। तुम राजधानी ले लेंगे फिर मैं वानप्रस्थ में बैठ जाऊंगा।
 
अच्छा, सबसे भाग्यशाली कौन है? बाबा कहते हैं कि कन्यायें भाग्यशाली हैं। बाबा कहते मैं तो अपना फ़र्ज पालन करता हूँ। तुम पतित-दु:खी हो, पुकारते हो, तो बाप का फ़र्ज है बच्चों को मुक्ति-जीवनमुक्ति देना। ऐसा मुक्ति दाता और कोई नहीं, बाकी टाइटिल वह लोग बहुत रखवाते हैं परन्तु है बिल्कुल रांग। मनुष्यों की बिल्कुल ही विनाश काले विपरीत बुद्धि है। तुम बच्चे बाबा-बाबा कहते रहते हो, मनुष्य थोड़ेही इस राज़ को समझेंगे। वह समझेंगे शायद इस बाबा को याद करते हैं। तुम बच्चे जानते हो कि अनेक बार बाबा ने हमको स्वर्ग का मालिक बनाया है। यह है ईश्वरीय जन्म। बाप कहते हैं सिर्फ एक मुझे याद करो इसमें ही मेहनत है। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) बाप से अच्छी रीति पढ़कर औरों को पढ़ाना है। लाइट हाऊस बन सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह दिखानी है।
2) एक बाप की अव्यभिचारी याद से अपनी अवस्था एकरस अचल-अडोल बनानी है। महावीर बनना है।
 
वरदान:-ऊंची स्टेज पर रह प्रकृति की हलचल के प्रभाव से परे रहने वाले प्रकृतिजीत भव
 
मायाजीत तो बन रहे हो लेकिन अब प्रकृतिजीत भी बनो क्योंकि अभी प्रकृति की हलचल बहुत होनी है। कभी समुद्र का जल अपना प्रभाव दिखायेगा, तो कभी धरनी अपना प्रभाव दिखायेगी। अगर प्रकृतिजीत होंगे तो प्रकृति की कोई भी हलचल हिला नहीं सकेगी। सदा साक्षी होकर सब खेल देखेंगे। जैसे फरिश्तों को सदा ऊंची पहाड़ी पर दिखाते हैं, ऐसे आप फरिश्ते सदा ऊंची स्टेज पर रहो तो जितना ऊंचें होंगे उतना हलचल से स्वत: परे हो जायेंगे।
 
स्लोगन:-अपने श्रेष्ठ वायब्रेशन से सर्व आत्माओं को सहयोग की अनुभूति कराना भी तपस्या है।
 
 
 
11/08/18              Morning Murli   Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, only by having unadulterated remembrance will your stage become unshakeable and immovable. Make such effort that you remember nothing but the one Father.
 
Question:
 
What service does Shiv Baba do and what is that you children have to do?
 
Answer:
 
At the confluence age, Shiv Baba removes all souls from the graveyard, that is, He does the service of purifying souls who, having come into body consciousness, have become impure. You children have to become lighthouses and, along with the Father, show everyone the way to the land of peace and land of happiness. Let there be liberation in one eye and liberation-in-life in the other.
 
Song:
 
Who created this play and then hid Himself away? 
 
Om Shanti
 
In fact, this song belongs to the path of devotion. There is definitely someone this praise belongs to. You children understand very clearly that it is the Father who does everything. He is Karankaravanhar. Sikh people sing His praise a great deal because their religion is new, whereas that religion is very old. They remember ‘Ek Om Kar’ (God is one, an oval image). Baba has also explained the meaning of ‘Om’ very clearly, whereas they give a very long and complicated explanation. I tell you that I, the Supreme Soul, am the Resident of the supreme abode. I do not take rebirth; you take rebirth. The Father sits here and introduces Himself to you children. I reveal Myself to only you children. It has been explained to you that I am the Supreme Father, the Supreme Soul, the One you souls have been remembering on the path of devotion as God, the Father. He is praised as the Purifier, the Merciful One and the Liberator. He is also called the Guide. This is the Pandava Army. The Guide shows the path to liberation and liberation-in-life. People sing: Take our boat across. God is definitely called the Boatman as well as the Master of the Garden. He says: You used to be very intoxicated. You were carefree emperors in the golden and silver ages. You had so many riches. At Shrinathdware, they cook rich food for the bhog they offer. They cook very rich, nourishing food there, whereas they only cook rice and dal at the Jagadnath Temple. Dirty images of deities are displayed there. All of you are now dirty. At the Shrinathdware Temple, they make first- class food, which they offer to Shrinath as bhog. It is then taken by priests who sell it at their stalls. They earn their livelihood through that. You children are becoming the masters of heaven. Your maids and servants also eat the same rich food that you eat there. Thirty six varieties of food are prepared, but you couldn’t eat that much, and so the maids and servants eat it as well. However, you mustn’t simply be content with that. A whole kingdom is being created. You will live there in great pleasure and comfort. You children receive your fortune of the kingdom of heaven that is established by the World Almighty Authority. It is said: Knowledge, devotion and disinterest. Now, there are two types of disinterest. The disinterest of sannyasis is limited; they leave their homes and businesses and go and live in the jungles. They help to bring a lot of benefit to Bharat in an incognito way. It is said that the gates of heaven open through destruction. In the same way, sannyasis help through their purity. This is why their praise is sung in the drama. The Father says: This knowledge will later disappear. So, their disinterest is limited, whereas yours is unlimited. The unlimited Father inspires you to have unlimited disinterest: Stay in your households and simply remove everything from your intellects. These are old bodies; your 84 births are now complete. Forget your bodies and all your bodily religions and relationships and consider yourself to be souls. They say that souls are immune to the effect of action, that you can eat and drink whatever you want and you will not be affected in any way. There are many different opinions and many different systems and customs. Whatever idea someone starts it just carries on. For instance, some refer to Adi Dev as Mahavir, but then they also call Hanuman Mahavir. In fact, all of you are mahavirs (great warriors) who gain victory over Maya. You make effort based on shrimat. You have to create a stage like that of Angad, whom Ravan wasn’t able to shake. No matter how many storms of Maya come, you great warriors must not shake. You cannot have this stage at this time, but it will be like that at the end. No matter how many storms of vicious thoughts come, you must remain unshakeable. You should have unadulterated remembrance; no one else should be remembered. A great deal of effort is required for this. Only at the end will you be completely unshakeable and immovable. There is a memorial of Achalghar (home of the unshakeable one). Above that is Guru Shikhar. You now understand that Shiv Baba is the Highest on High; He is the Creator. What does He create first? This too should remain in your intellects. Shiv Baba is the Highest on High. Then there are Brahma, Vishnu and Shankar, the residents of the subtle region. Why is Vishnu shown with four arms? This is the proof of the household path they follow. Your path is the household path. Establishment takes place through Brahma. The Brahmin religion is the highest of all; you are even more elevated than the deities because you do service. You carry out the establishment of the deity religion and you then become the masters of the world. The one Father is the highest of all, that is, only Shiv Baba and no one else is worthy of praise. The principal birthday is Shiv Baba’s, because no one else does as much service. Lakshmi and Narayan just experience their reward. It is now the time of settlement for everyone. Initially, it is the Father who is worshipped. That worship is unadulterated. Worship has now become completely adulterated. Starting with Shiv Baba, you know everyone’s occupation. You are now sitting with Baba in practice. You understand that you are once again making Bharat into heaven. Those who create it will then go and rule there. There, there will be the dynasty of Lakshmi and Narayan and then that of Rama. Now, what benefit is there in worshipping them? They have to descend. They simply experienced their reward, that’s all! You are now becoming worthy of worship from worshippers. Where is Ganesh with a trunk and Hanuman with a tail and the goddesses with eight to ten arms? All of that is the expansion of the path of devotion. You understand what happens on the path of devotion and how you take 63 births. You are now Brahmins. Then, from Brahmins, you go through the deity, warrior, merchant and shudra castes. This drama is eternally fixed; no one can stop it. This is a game of somersaulting. People go on a pilgrimage while somersaulting. Previously, the game of somersaulting while on a pilgrimage was considered very important. Now, so many different opinions have emerged. No one except the one Father can grant liberation or liberation-in-life. You now have liberation in one eye and liberation-in-life in the other. Your intellects say: We are lighthouses. You are the lighthouses who show human beings the path. First of all, you have to return to your sweet home. This play is now about to end. You children understand that this true Gita is being created so that those who are weak can study and become strong. Everything else is to be destroyed. The same Gita will be created again. They quote a verse from the Gita and then explain the meaning of it. It says in the Gita: “God speaks”. It was God who spoke the Gita, but people don’t understand that. The Father says: I cannot be found by studying those scriptures. I come when devotion ends. Knowledge is the day and devotion is the night. For half a cycle it is the kingdom of Ravan. Ravan is not visible. It can be understood with the intellect when someone has the evil spirit of lust and someone has the evil spirit of anger. These words of impurity are not used in the golden age. Here, people continue to insult one another. None of these things exist in the golden age. You now understand that the Father, the Purifier, is the Creator of heaven. He creates heaven and then hides Himself away. No one is able to know Him. Even though there is the image of Shiva, people don’t understand anything about when or how Shiv Baba came, what the significance of Brahma, Vishnu and Shankar is or where they reside. How did Lakshmi and Narayan claim such an elevated kingdom in heaven? They do not exist in the iron age. You now understand how they claimed the kingdom. You children have to study very well with the Father and then teach others. The Father says to all His children: My long-lost and now-found children, o My saligrams, I enter this body in order to explain to you. I have adopted this body of Brahma. Brahmins are created through Brahma. People don’t object when you go to other satsangs, but they do object when you come here. Quarrels take place due to poison. It is about this that the Father says: This poison causes you sorrow from its beginning through the middle to the end. This is the number one enemy. Conquer this enemy of lust, the enemy that has caused you sorrow from its beginning through the middle to the end. This is why people call out: O Purifier come. They know that they are impure. That is why they go and bow their heads in front of pure ones. Sannyasis attract others with their purity and this is why they are given a high status. They also think that no one throughout the whole of Bharat is as elevated as they are. You Shaktis also shot the arrows at them. If it had been a question of physical arrows, it would not have been said that it was God who inspired them to shoot those arrows. Those arrows were knowledge. You are Brahma Kumaris but they call you ‘brahm kumaris’. They say that the brahm (element of light) is God. The Father says: That is their brahm (imagination). Many sannyasis now come to you. Many eminent people also go to the sannyasis. They say: Mahatmaji, come, we will offer you food. They offer them very good hospitality; they are a symbol of purity. Nowadays, many robbers dress up as sannyasis. You are completely honest and you are also Raj Rishis. You now understand everything from the top to the bottom. You understand that you will become deities like Lakshmi and Narayan and claim your reward. Half way through the cycle, when other religions come, wars begin. All of that is fixed in the drama. You have become knowledge -full, having come to know the supreme region, the subtle region and the physical world, and the beginning, the middle and the end of the world. You also understand the cycle in order to become rulers of the globe. Lakshmi and Narayan were the king and queen with a double crown in Bharat. Those with a single crown bow down to them. They had the power of purity. In the golden age they were completely viceless. People sing: You are completely viceless, full of all divine virtues. Why do they sing this praise? Because they themselves are vicious worshippers. The whole play rests on Bharat. There was a double crown and then a single crown and now there is no crown. You have come to understand the whole world cycle. You now understand who the Creator, the Director and the principal Actor is. You will then become deities. The dirt of Maya is being washed off you. The Father says: I am the Laundryman and also the greatest Goldsmith. You ornaments are now put in a furnace. You will then become real ornaments. The Father is also the Barrister who releases you from the jail of the five vices. He liberates you. You are in the jail of Ravan. Baba gives you legal advice on how you can free yourself from this jail. The Father says: I carry out My task, give you the fortune of the kingdom and then I disappear. You become happy. Once you have claimed your kingdom, I will go into retirement. Achcha, who are the most fortunate ones? Baba says: The kumaris are the most fortunate. Baba says: I fulfil My duty. You are impure and unhappy and you cry out. Therefore, the Father’s duty is to grant the children liberation and liberation-in-life. There is no one else who can grant liberation. Those people give themselves many titles, but they are all completely wrong. The intellects of human beings are completely without love at the time of destruction. You children continue to say: Baba, Baba. However, people don’t understand the significance of this. They think that you are perhaps remembering this Baba. You children know that Baba has made you into the masters of heaven innumerable times. This is your Godly birth. The Father says: Remember Me alone. It is this that requires effort. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Study well with the Father and teach others. Become a lighthouse and show everyone the path to liberation and liberation-in-life.
 
2. Stay in unadulterated remembrance of the one Father, and thereby create an unshakeable and immovable stage for yourself. Become a great warrior.
 
Blessing:
 
May you be a conqueror of matter and remain beyond any influence of the upheaval of matter by staying in a high stage.
 
You are becoming conquerors of Maya, but you now also have to become conquerors of matter because there is now going to be a lot of upheaval of matter. Sometimes, the water of the oceans will show its influence and sometimes, the earth will show its influence. If you are a conqueror of matter, none of the upheaval of matter will be able to shake you. You will always be a detached observer and observe all the games. Just as angels are always shown on a high mountain, similarly, you angels have to stay constantly in a high stage and the higher you are, the more you will automatically remain beyond any upheaval.
 
Slogan:

To give all souls the experience of co-operation with your elevated vibrations is tapasya.

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