Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 07-Aug- 2018 )
07-08-2018 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन
"मीठे बच्चे - बाप आये हैं सुख-शान्ति की मनोकामना पूरी करने, तुम शान्ति चाहते हो तो इन आरगन्स से डिटैच हो जाओ, अपने स्वधर्म में टिको"
प्रश्न:पूज्य बनने का पुरुषार्थ क्या है? तुम्हारी पूजा क्यों होती है?
उत्तर:पूज्य बनने के लिये विश्व को पावन बनाने की सेवा में मददगार बनो। जो जीव की आत्मायें बाप को मदद करती हैं उनकी बाप के साथ-साथ पूजा होती है। तुम बच्चे शिवबाबा के साथ सालिग्राम रूप में भी पूजे जाते हो, तो फिर साकार में लक्ष्मी-नारायण वा देवी-देवता के रूप में भी पूजे जाते हो। तुमने पूज्य और पुजारी के रहस्य को भी समझा है।
गीत:-माता ओ माता........ ओम् शान्ति।
माताओं को सौभाग्यशाली बनाने वाला जरूर पिता ही है। महिमा तो एक की ही गाई जाती है। सभी का सद्गति दाता एक है। याद भी उस एक को करना पड़ता है। यह तो तुम बच्चों की महिमा है। तुम जानते हो हमको दुर्भाग्यशाली से सौभाग्यशाली बनाने वाला बाप है। भारत सौभाग्यशाली था फिर भारत 100 प्रतिशत दुर्भाग्यशाली बना है। भारत पर ही कहानी है। इन माताओं को सौभाग्यशाली बनाने वाला बाप ठहरा, जिसको तुम बच्चे जानते हो। उनके साथ तुम्हारा योग है। तुम जानते हो उनकी यह सारी रचना है। दूसरा कोई मनुष्य इस रचना और रचता को नहीं जानते। यह चित्र आदि किसने बनवाये हैं? तुम कहेंगे शिवबाबा ने। किस द्वारा? फिर भी माता वा साकार पिता द्वारा कहेंगे। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में सारा सृष्टि रूपी झाड़ है। सृष्टि कितनी बड़ी है! वास्कोडिगामा ने सारी धरती का चक्र लगाया, पिछाड़ी में सागर ही सागर है, आकाश ही आकाश है और कुछ नहीं। यह सब तुमने स्कूल में भी पढ़ा होगा। बाप फिर सब बातें नटशेल में समझाते हैं। तुम जानते हो भारत में 5000 वर्ष पहले बरोबर सतयुग था। सतयुग में सिर्फ भारत था। भारत में भी कितने थोड़े होंगे। अभी तुम कहेंगे हम सूर्यवंशी राजधानी के थे। जमुना के कण्ठे पर कृष्ण की राजधानी थी, ऐसा गाया जाता है। दिल्ली को ही परिस्तान कहते हैं। पहले-पहले जरूर कोई की राजधानी होगी। तुम कहेंगे हम सूर्यवंशी राजधानी के थे। बाद में अलग-अलग हो जाते हैं। तो प्रभाव वास्तव में, जहाँ राज्य करते हैं वहाँ होता है। भारत का बहुत प्रभाव है। यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में टपकनी चाहिये। धारण करना होता है।
शिवबाबा को ही फिर सोमनाथ, ज्ञान का सागर कहते हैं। सोमनाथ नाम पुजारियों ने रखा है। असुल नाम है शिवबाबा। शिव किसको कहा जाता है? आत्माओं के बाप को। आत्मा तो बिन्दी है। गाया जाता है परमपिता परम आत्मा, सुप्रीम सोल। सोल अर्थात् आत्मा। आत्मा बड़ी-छोटी नहीं होती है। बाप कहते हैं मैं भी इसमें प्रवेश करता हूँ तो कोई को मालूम नहीं पड़ता है। परन्तु समझते हैं भ्रकुटी के बीच में वह छोटा सा स्टॉर है ना। तो कहेंगे मस्तकमणी, मस्तक में मणी है। मणी आत्मा को कहा जाता है। कहते हैं सर्प के मस्तक में भी मणी होती है। यह सब बातें वास्तव में इस समय की हैं। आत्मा रूपी मणी प्रकाश करती है। वह भ्रकुटी के बीच में रहती है। बाप तो तुम बच्चों को रोज़ नई-नई बातें समझाते रहते हैं। मुख्य बात समझनी है - मैं स्वदर्शनचक्रधारी हूँ। बाप कहते हैं मेरी जो आत्मा है जिसको परम आत्मा कहते हैं, मैं जन्म-मरण रहित हूँ। मैं आता जरूर हूँ। निराकार का मन्दिर बना हुआ है। आगे यह ज्ञान नहीं था। जरूर निराकार ने आकर कुछ किया है। निराकार आते ही फैमिली में हैं। लक्ष्मी-नारायण की आत्मा भी आती है। उनको भी शरीर दिखाते हैं। लिंग रूप एक ही शिव का दिखाते हैं। शिव के मन्दिर में शिवलिंग के साथ फिर सालिग्राम भी है। ऐसे नहीं, कृष्ण के वा लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में सालिग्राम दिखाते हैं। तो सिद्ध होता है एक बाप के यह सब बच्चे हैं। आत्मा की भी पूजा होती है, तो देवताओं की भी पूजा होती है। रुद्र यज्ञ कहते हैं। बाप ने यह यज्ञ रचा है जीव आत्माओं द्वारा। जैसे बाप की पूजा होती है वैसे तुम्हारी आत्मा की भी पूजा जरूर होनी चाहिए। फिर साकार में जो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, उनकी पूजा होती है। वही नाम चला आता है। यहाँ तुम आत्मायें सर्विस कर रही हो इस शरीर द्वारा इसलिए तुम आत्माओं की पूजा होती है। शिवबाबा कहते हैं मैं भी इनसे बहुत भारी सर्विस करता हूँ इसलिए पहले-पहले मेरी पूजा होती है। फिर जिन आत्माओं द्वारा सर्विस करता हूँ, सारे विश्व को पवित्र बनाता हूँ, उन्हों की भी पूजा जरूर होनी चाहिये। सबकी पूजा करते हैं। कम से कम लाख सालिग्राम बनाते हैं। सेठ लोग रुद्र यज्ञ रचवाते हैं तो कोई 5 हजार, कोई 10 हजार, कोई लाख सालिग्राम भी बनवाते हैं। यह है परमात्मा और आत्माओं की पूजा। बाप समझाते हैं - तुम आत्मायें इस पतित शरीर द्वारा सेवा कर रही हो। सबसे जास्ती सर्विस शिवबाबा करते हैं और फिर तुम्हारे द्वारा कराते हैं तो तुम आत्माओं की पूजा होती है। बाप के साथ पहले-पहले तुम्हारी महिमा आनी चाहिए। जानते कोई भी नहीं हैं। न रुद्र को, न सालिग्रामों को जानते हैं, जिन्होंने राज्य पाया। अभी तुम राज्य पा रहे हो। पूजा मुख्य की होती है, वह है लक्ष्मी-नारायण, जिनकी डिनायस्टी गाई हुई है। उन्होंने यह भी राज्य कोई की मदद से लिया होगा ना। तुम बच्चों की मदद से राजधानी स्थापन होती है। बड़ी मीठी बातें हैं। नटशेल में बाबा समझाते रहते हैं ताकि धारण भी कर सको। मुख्य धारणा की बात है - मुझ बाप को याद करो।
तुम्हारी आत्मा में भी झाड़ और चक्र की नॉलेज है। नम्बरवन सबसे पूज्य शिवबाबा आत्माओं का बाप है, जो तुमको बैठ ऐसा लायक बनाते हैं। तुम आत्माओं की पूजा होती है। हम पूज्य और पुजारी कैसे बनते हैं सो अब समझते हो। भारतवासी ही पूज्य और पुजारी बनते हैं। अभी सब पुजारी हैं फिर पूज्य होंगे। वहाँ फिर कोई पुजारी भक्त नहीं होगा। उन्हों को भगवती भगवान् जरूर भगवान् ने ही बनाया होगा। अब भगवान् निराकार है या साकार? साकार में ऊंच ते ऊंच लक्ष्मी-नारायण हैं, उन्हों को ऐसा बनाने वाला है निराकार, इसलिए निराकार की पूजा होती है। यह सब बातें तुम बच्चों को समझाई जाती हैं। पहले-पहले बाप में निश्चय रखना है। बरोबर हम आत्माओं का बाप वह है। कोई कहे - हे भगवान, हे परमपिता तो बोलो यह किसने याद किया और किसको? एकदम पकड़ना चाहिए। तुमको कितने बाप हैं? तुम किसको पुकारते हो? भगवान किसको कहते हो? कहेंगे गॉड फादर। तो जरूर दो फादर हैं। आत्मा याद करती है गॉड फादर को। तुम्हारी आत्मा भी है और शरीर भी है। शरीर का तो लौकिक बाप है। आत्मा का बाप कौन है? जिसको कहते हैं परमपिता परमात्मा। यह किसने और किसको पुकारा? उस बेहद के बाप का परिचय देना है। उनसे ही वर्सा मिलता है। यह भी उनको याद करते हैं। भिन्न-भिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न नाम भी रख दिये हैं। कोई गॉड कहते हैं, कोई परमात्मा, कोई खुदा कहते हैं। सभी धर्म वाले याद जरूर एक को ही करते हैं। वह है सभी आत्माओं का बाप। वर्सा बाप से ही मिलता है। तुम आत्मा उनको पुकारती हो। दो बाप का परिचय देना है - हद का बाप और बेहद का बाप। भक्ति मार्ग में भक्त भगवान को याद करते हैं तो भगवान कहते हैं - मैं आता हूँ, आकर तुमको शान्ति-सुख देता हूँ। फिर मुझे कभी याद करने की भी दरकार नहीं रहेगी। तो पूज्य-पुजारी, पावन-पतित भारतवासी ही बनते हैं। बाकी बीच में और धर्म स्थापन होते हैं। फिर वृद्धि को पाते-पाते पिछाड़ी में वह भी सब तमोप्रधान बन जाते हैं। पिछाड़ी में सारा झाड़ आ जायेगा। वहाँ खाली होगा तब तो फिर वापिस जायेंगे। तो अभी है पतित दुनिया। गाते हैं पतित-पावन...... तो जरूर पतित हैं ना। भारत पावन था, अभी पतित है। शिवबाबा आते जरूर हैं, परन्तु कब आया, कैसे आया - वह भूल गये हैं। कृष्ण नहीं कहते कि मैं शरीर धारण कर तुमको समझाता हूँ। यह तो निराकार बाप कहते हैं मैं इस द्वारा तुमको समझाता हूँ, तो वह अलग हो गया। कृष्ण को तुम खुद ही गीता का भगवान मानते हो। यह तो कहते हैं मैं साधारण वानप्रस्थ वाले तन में प्रवेश करता हूँ। बाप कहते हैं - मैं तुम्हारे जन्मों को जानता हूँ। शिवबाबा इसमें प्रवेश करते हैं। कृष्ण को भगवान, पतित-पावन, ज्ञान सागर कह नहीं सकते। भल गीता हाथ में उठाते हैं फिर भी कहते हैं पतित-पावन सब सीताओं का राम, राधे का कृष्ण नहीं कहते।
राम अर्थात् परमपिता परमात्मा। त्रेता का राम कहें तो उनसे ऊंच तो लक्ष्मी-नारायण हैं फिर उनका नाम क्यों नहीं लेते? परन्तु नहीं। है बात परमात्मा की। हेविनली गॉड फादर निराकार को ही कहेंगे। लिबरेटर, गाइड बाप को ही कहते हैं। क्राइस्ट थोड़ेही सबको लिबरेट करेगा। किसी का भी नाम नहीं ले सकते हैं। बाप ही आकर दु:ख से लिबरेट करते हैं। वही फिर गाइड बनते हैं, कहते हैं मैं तुमको रास्ता बताता हूँ। तुमको बाप ने आकर अपना बनाया है। तुम्हारा यह है ईश्वरीय जन्म। तुमको शिवबाबा से शक्ति मिलती है। तुम्हारा है साइलेन्स बल, उनका है साइन्स बल। वह बुद्धि से काम लेते हैं, उन्हें साइन्स घमण्डी कहा जाता है, जिससे विनाश करते हैं। सुख भी साइन्स बहुत देती है फिर विनाश भी कर देती है। तुमको तो वहाँ एरोप्लेन आदि सब होंगे। हुनर तो रहता है ना। यह सब चीजें फिर तुमको काम में आयेंगी। विलायत में बत्तियां ऐसी हैं जो बत्ती दिखाई नहीं पड़ेगी, सिर्फ रोशनी दिखाई पड़ेगी। सतयुग में भी ऐसे रोशनी रहती है। वैभव जो अभी यहाँ हैं वह तुमको वहाँ भी रहते हैं। तुमने साक्षात्कार किया हुआ है। वहाँ तो एक्सीडेन्ट आदि की बात नहीं रहती है। दु:ख की बात नहीं होती। बाप आकर तुम्हारी सुख और शान्ति की मनोकामना पूरी करते हैं।
मनुष्य शान्ति के लिए भटकते हैं, उनसे पूछना है तुमको अशान्त किसने किया है? यह तुम जानते हो। अशान्त यह 5 विकार ही करते हैं। परन्तु यह समझते नहीं, यह भूल गये हैं। आत्मा शान्त स्वरूप है। हे आत्मा, तुम आई हो शान्ति देश से फिर यह आरगन्स लिए हैं। अभी तुम उनसे अलग हो जाओ, डिटैच हो जाओ। इसमें और कुछ प्राणायाम आदि करने की बात नहीं। कहाँ तक गुफा में बैठेंगे। आत्मा कहती है मैं इन आरगन्स से डिटैच हो जाती हूँ क्योंकि मैं थक गई हूँ। अभी इस शरीर को भूल जाती हूँ। अभी बाप कहते हैं तुम अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद करो। तुम असुल वहाँ के रहने वाले हो। अपने घर को याद करो। कर्म तो करना ही है। कर्म बिना रह नहीं सकते। वह समझते हैं हम भोजन अपने हाथ से नहीं पकाते हैं इसलिए कर्म सन्यासी नाम है। परन्तु कर्म का सन्यास तो हो नहीं सकता। उनका तो धर्म ही ऐसा है। गृहस्थियों के पास उनको खाना पड़ता है इसलिए फिर गृहस्थियों के पास जन्म ले निवृत्ति मार्ग में जाना है क्योंकि भारत को पवित्र बनाना है। भारत में ही प्योरिटी थी। सब प्योर थे। अब सब पतित हैं। बाप बैठ यह राज़ समझाते हैं। फिर कहते हैं - बच्चे, और कुछ न करो, सिर्फ बाप को याद करते रहो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे और तुम मेरे पास चले आयेंगे। ड्रामा पूरा होना है। सतो, रजो, तमो से पास होकर अभी सबको वापिस जाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
स्वयं को इस शरीर में भ्रकुटी के बीच चमकती हुई मणी समझना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
अपने स्वधर्म और स्वदेश को याद कर शान्ति का अनुभव करना है। बुद्धि को भटकाना नहीं है। इस शरीर से डिटैच होने का अभ्यास करना है।
वरदान:सदा हर दिन स्व उत्साह में रहने और सर्व को उत्साह दिलाने वाले रूहानी सेवाधारी भव
बापदादा सभी रूहानी सेवाधारी बच्चों को स्नेह की यह सौगात देते हैं कि "बच्चे हर रोज़ स्व उत्साह में रहो और सर्व को उत्साह दिलाने का उत्सव मनाओ।" इससे संस्कार मिलाने की, संस्कार मिटाने की जो मेहनत करनी पड़ती है वह छूट जायेगी। यह उत्सव सदा मनाओ तो सारी समस्यायें खत्म हो जायेंगी। फिर समय भी नहीं देना पड़ेगा, शक्तियां भी नहीं लगानी पड़ेगी। खुशी में नाचने, उड़ने वाले फरिश्ते बन जायेंगे।
स्लोगन:ड्रामा के राज़ को समझ नथिंगन्यु का पाठ पक्का करने वाले ही बेफिक्र बादशाह हैं।
07/08/18 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, the Father has come to fulfil your desire for peace and happiness. If you want peace, detach yourself from your bodily organs and stabilize yourself in your original religion.
Question:
What effort do you have to make in order to become worthy of worship? Why are you worshipped?
Answer:
In order to become worthy of worship, become helpers in the service of purifying the world. The human souls who help the Father are worshipped together with the Father. You children are worshipped with Shiv Baba in the form of saligrams. Then your corporeal forms of the deities Lakshmi and Narayan are worshipped. You have understood the deep significance between worshippers and those who become worthy of worship.
Song:
Mother, o mother, you are the bestower of fortune for the world.
Om Shanti
It is definitely the Father who makes the mothers a hundred times fortunate. The praise is sung of only the One. The Bestower of Salvation for All is One. It is that One who has to be remembered. This is the praise of you children. You know that it is the Father who makes you fortunate from unfortunate. Bharat was 100% fortunate and then became 100% unfortunate. The story is based on Bharat. It is the Father, the One you children know, who makes you mothers 100% fortunate. Your yoga is connected to Him. You understand that all of this is His creation. No other human beings know the Creator or creation. Who had these pictures etc. made? You would say: Shiv Baba. Through whom? You would say: Through the corporeal mother and father. You children now have the whole world tree in your intellects. How large the world is! Vasco de Gama sailed round the whole earth. All around, there is just the ocean and the sky everywhere; there is nothing else. You must have studied all of this at school. However, the Father explains everything in a nutshell. You know that 5000 years ago it definitely became the golden age in Bharat. In the golden age, there was only Bharat and the population must have been very small. You would now say that you belonged to the kingdom of the sun dynasty. It is remembered that the kingdom of Krishna existed by the banks of the River Jamuna. Delhi was also called Paristhan (the land of angels). It definitely must initially have been someone’s kingdom. You say that you belonged to the kingdom of the sun dynasty. The kingdoms become separate later. In fact, the impact would be where the kingdom is ruled. Bharat has a lot of influence. All of these things should trickle into your intellects. You have to imbibe these aspects. Shiv Baba, the Ocean of Knowledge, is also called Somnath. It was the worshippers who gave Him the name ‘Somnath’. His real name is Shiv Baba. Who is the One called Shiva? The Father of all souls. A soul is a dot. It is remembered that the Supreme Father, the Supreme Soul, is God. A soul is a soul. Souls cannot be bigger or smaller. The Father says: No one realizes it when I enter this one. However, they do understand that there is a tiny star sparkling in the centre of the forehead. They say: The jewel on the forehead. There is a jewel on the forehead. The soul is called the jewel. It is said that there is a jewel on the forehead of a snake. In fact, all of those things belong to this time. A soul in the form of a jewel sparkles and resides in the centre of the forehead. The Father explains new aspects to you children every day. The main thing to understand is: I am a spinner of the discus of self-realisation. The Father says: I, the soul, am the Supreme Soul and I am beyond birth and death. I definitely do come. Temples are built to the incorporeal One. Previously, you did not have this knowledge. Surely, the incorporeal One came and did something. The incorporeal One comes into a family. The souls of Lakshmi and Narayan also come. They are shown with bodies. Only Shiva is shown in the form of a lingam. In the Shiva temples, together with a Shivalingam, there are also saligrams. Saligrams are not shown in the temples to Krishna or Lakshmi and Narayan. This proves that all are the children of the one Father. You are worshipped as souls and you are also worshipped as deities. People speak of the sacrificial fire of Rudra. The Father created this sacrificial fire through human souls. Just as the Father is worshipped, in the same way, you souls should also be worshipped. Then the corporeal form of those who become Lakshmi and Narayan are worshipped. Those names continue. You children are doing service here, through your bodies. This is why you souls are worshipped. Shiv Baba says: I also carry out a lot of important service through this one. This is why I am worshipped first. Then the souls through whom I do the service of making the whole world pure should also definitely be worshipped. Every one of you is worshipped. At least 100,000 saligrams are made. When businessmen create a sacrificial fire of Rudra, some have 5,000 saligrams made, some 10,000 and some have 100,000 made. That worship is of souls and the Supreme Soul. The Father explains: You souls do service with your impure bodies. Shiv Baba does the most service and He also inspires you to do service, so you souls are also worshipped. Together with the Father's praise, there should also be your praise. No one knows anything. Neither do they know Rudra nor do they know the saligrams who attained the kingdom. You are now attaining that kingdom. The main ones worshipped are Lakshmi and Narayan and their dynasty is also remembered. They must have claimed that kingdom with someone’s help. That kingdom is established with the help of you children. These are very sweet things. Baba continues to explain everything in a nutshell so that you are able to imbibe it. The main aspect you have to imbibe is to remember Me, the Father. The knowledge of the tree and the cycle is within you souls. The number one worthy-of-worship one is Shiv Baba, the Father of all souls, the One who sits here and makes you souls so worthy. You souls are worshipped. You now understand how you become worthy of worship and how you become worshippers. It is the people of Bharat who become worthy of worship and worshippers. Now all are worshippers and they will then become worthy of worship. There, there will be no devotees or worshippers. It must definitely have been God who made them into gods and goddesses. Now, is God incorporeal or corporeal? In the corporeal form, the highest of all are Lakshmi and Narayan. It is the incorporeal One who made them like that. This is why the Incorporeal is worshipped. All of these things are being explained to you children. First of all, you have to have faith in the Father. He is truly the Father of us souls. When someone says “O God! O Supreme Soul!” ask him: Who is remembering and whom are you remembering? You should catch them out and ask them: How many fathers do you have? Whom are you calling out to? Whom are you calling God? They would say: God the Father. So, you definitely have two fathers. Souls remember God the Father. You are a soul and you have a body. Each body has a physical father. Who is the Father of you, the soul, the One whom you call the Supreme Father, the Supreme Soul? Who is calling out and to whom? You have to give the introduction of that unlimited Father, the One from whom you receive your inheritance. This one also remembers Him. Many different names are given in many different languages. Some say “God”, some say “Supreme Soul” and some say “Khuda”. People of all religions definitely remember the One. He is the Father of all souls. It is from the Father that you receive the inheritance. You souls call out to Him. You have to give the introduction of the two fathers: the limited father and the unlimited Father. On the path of devotion, devotees remember God. Therefore, God says: I come and give you peace and happiness. Then you will no longer have any need to remember Me again. It is the people of Bharat who become worshippers and worthy of worship, pure and impure. Other religions are established in between. Then, as the population grows, everyone gradually becomes tamopradhan. By the end, the whole tree will have come down. Only when it becomes empty up there will everyone go back. So, this world is now impure. They sing: O Purifier! Therefore, surely, they must be impure. Bharat was pure and it has now become impure. Shiv Baba definitely comes, but people have forgotten how He comes and when He comes. Krishna doesn’t say: I adopt a body in order to explain to you. It is the incorporeal Father who says: I explain to you through this one. Therefore, He is separate. You yourselves used to believe that Krishna was the God of the Gita. That One says: I enter the ordinary body of this one in his stage of retirement. The Father says: I know your births. Shiv Baba enters this one. Krishna cannot be called God, the Purifier or the Ocean of Knowledge. Although people hold a Gita in their hand, they still say: The Purifier is the Rama of all Sitas. They do not say that it is the Krishna of Radhe. Rama means the Supreme Father, the Supreme Soul. If they are referring to the Rama of the silver age, then Lakshmi and Narayan are higher than he, so why do they not mention their names? However they don’t, because they are referring to the Supreme Soul. Only the incorporeal One is called Heavenly God, the Father. The Father is called the Liberator and the Guide. Christ cannot liberate everyone. You cannot call anyone else this. Only the Father comes and liberates everyone from sorrow. He becomes your Guide and says: I show you the path. The Father has come and made you belong to Him. This is your Godly birth. You receive power from Shiv Baba. You have the power of silence and they have the power of science. They do everything with their intellects. Therefore, they have a lot of arrogance of science and it is through that that destruction takes place. Science gives a great deal of happiness but it then also brings about destruction. There, you will have aeroplanes etc. These skills will also exist there. All of these things will be useful to you later on. Abroad, they have such lighting that you can’t even see the light bulbs, just light is visible everywhere. The lighting in the golden age is also like that. All the physical comforts you have here will also exist there. You have also had visions of all of that. There is no question of accidents etc. there. There is no question of sorrow there. The Father comes and fulfils your desire for peace and happiness. Human beings wander around searching for peace. Therefore, you should ask them: Who made you peaceless? You know that it is the five vices that make you peaceless. However, they do not understand this. They have forgotten that a soul is an embodiment of peace. O souls, you came from the land of silence and adopted those physical organs. Now separate yourselves from those physical organs; detach yourselves! There is no question of doing breathing exercises etc. in this. For how long would you remain sitting in a cave? The soul says: I am detaching myself from these organs because I am tired. I am now forgetting this body. The Father now says: Remember your original religion and your original land. Originally, you were residents of that place. Remember your home. You have to perform actions. You cannot live without performing actions. Sannyasis think that they are renunciates of karma because they don’t prepare their food with their own hands. However, it is not possible to renounce karma. Their religion dictates that they have to eat food provided by householders. This is why they take birth again to householders and then leave to go onto the path of isolation in order to purify Bharat. Only in Bharat was there purity. Everyone was pure, whereas everyone is now impure. The Father sits here and explains this secret. He says: Children, if you don’t do anything else, just simply continue to remember the Father and your sins will be absolved and you will return with Me. This drama is about to end. Everyone has passed through the stages of sato, rajo and tamo and everyone now has to go back. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Consider yourself to be a jewel sparkling in the centre of the forehead. Spin the discus of self-realisation.
2. Remember your original religion and original land and experience peace. Do not allow your intellect to wander. Practise becoming detached from your body.
Blessing:
May you be a spiritual server who maintains enthusiasm within yourself and who also enthuses everyone every day.
BapDada gives all the spiritual server children this gift of love: “Children, maintain your own enthusiasm daily and celebrate the festival of giving enthusiasm to everyone else.” By doing this, you will be liberated from any effort required for harmonising sanskars or finishing sanskars. Constantly celebrate this festival and all problems will finish. You will not then have to give any time or have to use your powers for that. You will become flying angels who dance in happiness.
Slogan:Those who understand the secrets of the drama and make the lesson of “nothing new” firm are carefree emperors.
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