Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 03-Aug- 2018 )
03-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ( Hindi )
"मीठे बच्चे - दूरादेशी और विशालबुद्धि बनो, शिवबाबा के कार्य में कभी डिस्टर्ब नहीं करना, डिस्टर्ब करने वालों को ऊंच पद नहीं मिल सकता"
प्रश्नः-इस दुनिया में मनुष्यों को कौन से ख्यालात रहते हैं जो सतयुगी देवताओं को कभी नहीं आयेंगे?
उत्तर:-यहाँ मनुष्य समझते हैं कि हम कमायेंगे तो हमारे पुत्र और पोत्रे खायेंगे लेकिन यह ख्यालात देवताओं में नहीं होंगे क्योंकि उनके पुत्र और पोत्रे सब यहाँ से ही वर्सा लेकर जाते हैं। वह समझते हैं हमारी अविनाशी राजाई है। यहाँ ही हरेक अपना-अपना पुरुषार्थ कर रहे हैं।
गीत:-माता ओ माता..... ओम् शान्ति।
बच्चों ने माताओं की महिमा सुनी। बच्चे जान चुके हैं किस-किस माता की महिमा होती है। माताओं की इतनी महिमा करते हैं, तो जरूर होकर गयी हैं। अभी तो वह है नहीं। जो जगत अम्बा होकर गई है उनकी भक्ति मार्ग में महिमा होती है। अब वह क्या करके गयी - यह तुम भी नहीं जानते थे। जगत अम्बा के मन्दिर में जाते हैं, जाकर उनसे कुछ न कुछ मांगते हैं। कोई को बच्चे की आश होगी, कोई आशीर्वाद मांगेंगे। अब जड़ चित्र तो कुछ कर नहीं सकते, न वह समझते हैं परन्तु यह है भक्ति। तुम जानते हो वह पास्ट हो गये हैं। जगत अम्बा की महिमा है। एक तो नहीं है, तुम सब ब्राह्मण कुल की पालना करते हो, फिर दैवी कुल की पालना करेंगे। तुम इस समय जैसे कि सारे जगत की पालना करते हो परन्तु कोई जानते नहीं। चण्डिका देवी का भी मेला लगता है। चण्डिका नाम देखो कितना छी-छी है! बाबा कहते हैं जो आश्चर्यवत् भागन्ती हो फ़ारकती देते हैं वह जाकर चण्डाल का जन्म पाते हैं। घर में चंचलता करते हैं तो उनको कहा जाता है ना - तुम तो चण्डी हो, चण्डाल हो। बरोबर तुम देखते हो शिवबाबा का बनकर फिर भी बहुत चंचलता करते हैं, चंचलता अर्थात् अवज्ञा करते हैं, शिवबाबा की सर्विस में डिस्टर्ब करते हैं तो अन्त में चले ही जाते हैं। कोई भी ब्रह्माकुमारी सेन्टर में होगी, कुछ चंचलता करेगी, किसको समझा नहीं सकेगी वा क्रोध करती होगी तो सब कहेंगे इनमें तो बहुत क्रोध है! अब चण्डिका एक तो नहीं, बहुत होती हैं। देवियों की महिमा भी है और फिर ऐसे जो चण्डिका आदि बनते हैं उनका भी गायन है। फिर भी ईश्वर के बने हैं। भल कोई चले जाते हैं फिर भी स्वर्ग में तो आयेंगे ना। मालिक तो बनेंगे ना। भल मालिक तो राजा-रानी ही बनते हैं लेकिन प्रजा भी कहेगी हम मालिक हैं। कांग्रेसी लोग कहते हैं ना हमारा भारत महान् है। आजकल तो गीत में भी गाते रहते हैं - भारत बहुत अच्छा था। आज तो खून की नदियां बह रही हैं।
अभी तुम बेहद के बाप के बच्चे बने हो। गोपी वल्लभ की गोप-गोपियां गाई हुई हैं। वल्लभ बाप को कहा जाता है। गाया भी जाता है एक गोपी वल्लभ की अनेक गोप-गोपियां। सतयुग में तो गोपिकाओं आदि की बात ही नहीं है। अभी तुम बच्चे विशाल दूरांदेशी बुद्धि बने हो। बुद्धि का ताला खुल गया है। इस जन्म की जीवन कहानी को तुम अच्छी रीति जानते हो। हर एक को नशा तो रहता है ना। अभी बिड़ला है, उनको अपने धन का नशा होगा। समझेंगे - मैं सबसे साहूकार हूँ। परन्तु तुम जानते हो - जो आज साहूकार हैं वह फिर गरीब बन जायेंगे। तुम्हारी और अन्य मनुष्यों की बुद्धि में रात-दिन का फ़र्क है। कोई को क्या नशा, कोई को क्या नशा रहता है - मैं फलाना हूँ, ऐसे हूँ. . . . .। इनको (ब्रह्मा को) भी नशा था ना - मैं बड़ा जौहरी हूँ। अभी समझते हैं वह सभी नशे कौड़ी मिसल हैं। तुम बच्चों को कितना नशा चढ़ा हुआ है! वह समझते हैं हम कमायेंगे फिर हमारे पुत्र-पोत्रे खायेंगे। यहाँ तो वह बात नहीं है। तुम जानते हो हम बेहद के बाप को जानकर उनसे वर्सा पा रहे हैं। जिसकी प्रालब्ध हम ही खुद जन्म बाई जन्म पद पायेंगे। पुत्र-पोत्रे आदि सब यहाँ पुरुषार्थ कर रहे हैं। ‘हमारे पौत्रे खायेंगे' - यह ख्यालात वहाँ नहीं रहती। समझते हैं अविनाशी राजाई है। यहाँ तो राजे लोग समझते हैं - पुत्र-पोत्रे खायेंगे। तुम अभी बाप से इतना वर्सा लेते हो, ऐसे कर्म करते हो जो 21 जन्म उसका फल मिलता रहता है, पुत्र-पौत्रों का ख्याल नहीं रहता। वे भी सब यहाँ ही वर्सा पाते हैं। तुमको कितना ज्ञान है, मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते। गॉड फादर, जिनको इतना याद करते हैं, जरूर उनसे इतना भारी सुख मिलता होगा। गाते हैं ना - हे परमपिता परमात्मा रहम करो। उनको परम आत्मा कहा जाता है, वह सुप्रीम है। जन्म-मरण रहित है इसलिए उनको परम आत्मा अर्थात् परमात्मा कहते हैं। सभी आत्माओं का रूप एक जैसा है। जैसा-जैसा पुरुषार्थ करते हैं वैसा पद पाते हैं। इनकी आत्मा अच्छा पढ़ती है तो नारायण बनती है। कोई फिर फेल होंगे तो राम बनेंगे। आत्मा ही बनती है ना। तुम्हारी आत्मा समझती है मैं परमपिता परमात्मा से राजयोग सीख रही हूँ। आत्मा फिर आकर नया चोला पहन पार्ट बजायेगी, नर से नारायण बनेगी। यह तुम बच्चों की बुद्धि में है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जायेगा। वहाँ कोई पतित होगा नहीं। ज्ञान किसको देंगे? पतित-पावन को यहाँ याद करते हैं। अच्छा समझो गंगा पतित-पावनी है तो भी वह राजयोग तो नहीं सिखला सकती है, बाप तो राजयोग सिखलाते हैं ना। यह सारा ड्रामा का राज़ आदि से अन्त तक तुम बच्चों की बुद्धि में है।
तुम सब पढ़ते तो एक ही क्लास में हो, लेकिन नम्बरवार हो। शुरू-शुरू में 300 की भट्ठी थी। गऊशाला में हजारों की अन्दाज़ में गऊयें हों तो कोई सम्भाल भी न सके। भट्ठी भी थोड़ों की बननी थी। उनमें से भी कई तो चल रहे हैं, कई टूट पड़े। कई बच्चे समझते हैं हम पहले से होते तो अच्छा था परन्तु ऐसे भी नहीं है। पुराने-पुराने कितने भागन्ती हो गये! 25-30 वर्ष वाले भी इतना नहीं याद रखते कि वह बेहद का बाप है, जिससे वर्सा पाते हैं। बाबा स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, सेकेण्ड की बात है। बाप कहते हैं तुम मेरा बनने से स्वर्ग के मालिक बनेंगे। जीवनमुक्ति तो राजा-रानी भी पाते हैं, प्रजा भी पाती है। गाया हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। बच्चे जो पूरा पढ़ते नहीं हैं वह क्या करते होंगे? चंचलता। कोई-कोई बच्चे तो बड़े आज्ञाकारी होते हैं। बाप से भी अच्छा मर्तबा पा लेते हैं। बाप 100-200 कमाने वाला होगा, बच्चा लखपति बन जाता है। तो अलौकिक सम्बन्ध में भी ऐसे होता है - 7 रोज वाला बच्चा 25 वर्ष वाले से तीखा चला जाता है। नम्बरवार तो होते ही हैं।
तुम वास्तव में सब सजनियां हो, एक साजन को याद करते हो। तुम जानते हो बाप आकर हमको सुख-धाम का वर्सा देते हैं। लौकिक पति है फिर भी याद उनको करते हैं जो पतियों का पति है। पारलौकिक साज़न अमृत पिलाते हैं इसलिए उनको याद किया जाता है, फिर तुम स्वर्ग के मालिक बन जाते हो, फिर वहाँ कोई को याद नहीं करते। अभी के पुरुषार्थ से तुम 21 जन्म प्रालब्ध पाते हो। तुम्हारी बुद्धि कितनी खुली है! वह भी नम्बरवार, तो बादशाही भी नम्बरवार लेते हो। तुमको सब समझा दिया है। यहाँ अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ने से तुम पद भी इतना ऊंच पायेंगे। नहीं तो अनपढ़े, पढ़े के आगे भरी ढोयेंगे। इसमें पुरुषार्थ बहुत अच्छी रीति करना है। अभी टाइम अच्छा है पुरुषार्थ के लिए। तुम जानते हो - जहाँ जीना है वहाँ ज्ञानामृत पीना है अथवा पढ़ते रहना है। सैपलिंग लगाते रहते हैं। कोई झट समझ जाते हैं तो समझा जाता है इनका पद तो अच्छा देखने में आता है, अच्छा नजदीक का फूल है, तन-मन-धन अर्पण कर बैठा है, सर्विस में अच्छा लग गया है। समझता है अपना समय जितना सर्विस में देंगे, उतना फायदा है। जैसे बाबा हम ज्ञान नेत्रहीन अंधों की लाठी बना है ऐसे हमें भी बनना है। तुम एक-दो की लाठी बनते जाते हो। अंधा बनाया है रावण ने। यह तुमको समझाया जाता है कि इस समय सारी दुनिया लंका है, सब शोक वाटिका में हैं। नाम रखा है अशोका होटल, वहाँ खूब मजे उड़ाते हैं।
अभी तुम जानते हो बाबा आया हुआ है। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। यह तो लगनी है जबकि घर के गेट्स खुलने हैं। द्वापर की तो बात ही नहीं। अभी तो घोर अन्धियारा है ना। ब्राह्मणों की रात अब पूरी हुई है, बाबा आया हुआ है। यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो। स्कूल में पढ़ते हैं, कोई तो बहुत अच्छे मार्क्स लेते हैं, कोई फेल हो जाते हैं। फेल की निशानी है चन्द्रवंशी में चले जायेंगे। राम को क्षत्रिय की निशानी दी है। अर्थ नहीं समझते। लव-कुश की क्या-क्या बातें बैठ सुनाते हैं। कितने झूठे दोष बैठ लगाते हैं। गाते हैं - राम राजा, राम प्रजा, धर्म का उपकार है। फिर यह सब बातें कहाँ से आई? यह सब बातें समझने की हैं। तुम जानते हो यह नॉलेज नम्बरवार हमारी बुद्धि में है। स्टूडेन्ट को बहुत तीखा पुरुषार्थ करना चाहिए। हम गॉड फादरली स्टूडेन्ट हैं। टीचर को कौन नहीं याद करेंगे! हम हैं पतित-पावन गॉड फादरली स्टूडेन्ट। इसमें बाप, टीचर, सतगुरू तीनों ही आ जाते हैं। तुम सब सीतायें हो ना। रावण की शोक वाटिका में पड़े हो। इनकारपोरियल गॉड फादर इज़ ज्ञान सागर नॉलेजफुल। कृष्ण को अथवा लक्ष्मी-नारायण को ऐसे नहीं कहेंगे। उनकी महिमा ही न्यारी है। गीत में भी गाते हैं - उनकी महिमा अपरमअपार है, जो ऐसा बनाते हैं। तुम कहते हो - बाबा, हम आपसे पूरा वर्सा लेंगे। आप कितने मीठे हो, कितने प्यारे हो! लक्ष्मी-नारायण कितने मीठे, कितने प्यारे हैं! लक्ष्मी-नारायण के चित्र देखो, हमेशा मुस्कराहट वाले दिखाते हैं। तुम जानते हो देवतायें इस भारत में ही थे। अभी कहाँ है? तुम सबको बतला सकते हो कि यह उनका अन्तिम जन्म है। फिर से कृष्ण बनना है। अभी कृष्णपुरी स्थापन हो रही है। कृष्ण भी राजयोग सीख रहे हैं। तुम भी कृष्णपुरी में जाना चाहो तो राजयोग सीखो। लक्ष्मी-नारायण कहने से मनुष्य मूंझ जाते हैं। कृष्ण को झूले में झुलाते हैं। पूजा लक्ष्मी-नारायण की करते हैं। उन्हों का बाल चरित्र कुछ भी है नहीं। राधे-कृष्ण फिर कहाँ गये, क्या हुआ - कुछ भी पता नहीं है। राधे-कृष्ण कोई आपस में भाई-बहन नहीं थे। अभी राधे-कृष्ण का राज्य तो है नहीं। द्वापर में भी उन्हों की राजधानी का कुछ पता थोड़ेही है। तो यह सब बातें समझने के लिए बहुत अच्छी बुद्धि चाहिए। लिटरेचर बनाने में भी मेहनत लगती है। विष्णु के अलंकार दिखाते हैं परन्तु वास्तव में विष्णु के यह अलंकार होते नहीं। विष्णु वा लक्ष्मी-नारायण को शंख थोड़ेही है। तो हम क्या लिखें? मनुष्य तो कुछ भी समझ न सकें। शंख तो है तुम्हारे पास। तो अलंकार जरूर ब्राह्मणों को देना पड़े। कहेंगे यह ब्राह्मण फिर कहाँ से आये? समझ नहीं सकेंगे। तुम समझा सकते हो - हम ब्राह्मण स्वदर्शन चक्रधारी हैं। यह सब बातें समझाने में बड़ी ही विशाल बुद्धि चाहिए। प्रजा में जाने वाले मोटी बुद्धि समझ न सकें। समझाने में बड़ी ही डिफीकल्टी लगती है। बाबा लिखते भी हैं सिकीलधे स्वदर्शन चक्रधारी ब्रह्मा मुख वंशावली। परन्तु तुम्हारे पास अलंकार कहाँ हैं। चित्रों में देवियों को तीसरा नेत्र दिया है, लेकिन उनको तो तीसरा नेत्र है नहीं। तुम्हारी अब तीसरी आंख खुली है। तुम शक्तियों की महिमा है। जगत अम्बा है तो बच्चे भी साथ में होंगे। मैजारिटी माताओं की है। माताओं को ही ऊंच उठाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना समय सर्विस में सफल करना है। तन-मन-धन सब अर्पण कर जब तक जीना है पढ़ाई पढ़ते रहना है।
2) आपस में एक-दो की ज्ञान से पालना करनी है। ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जिससे बाप की अवज्ञा हो।
वरदान:-विशेषता के बीज द्वारा सन्तुष्टता रूपी फल प्राप्त करने वाली विशेष आत्मा भव
इस विशेष युग में विशेषता के बीज का सबसे श्रेष्ठ फल है "सन्तुष्टता"। सन्तुष्ट रहना और सर्व को सन्तुष्ट करना - यही विशेष आत्मा की निशानी है इसलिए विशेषताओं के बीज अथवा वरदान को सर्व शक्तियों के जल से सींचो तो बीज फलदायक हो जायेगा। नहीं तो विस्तार हुआ वृक्ष भी समय प्रति समय आये हुए तूफान में हिलते-हिलते टूट जाता है अर्थात् आगे बढ़ने का उमंग, उत्साह, खुशी वा रूहानी नशा नहीं रहता। तो विधिपूर्वक शक्तिशाली बीज को फलदायक बनाओ।
स्लोगन:-अनुभूतियों का प्रसाद बांटकर असमर्थ को समर्थ बना देना - यही सबसे बड़ा पुण्य है।
03/08/18 Morning Murli-Om Shanti - BapDada - Madhuban ( English )
Sweet children, become those who have a far-sighted and broad, unlimited intellects. Don't cause any disturbance in Shiv Baba's task. Those who cause a disturbance cannot receive a high status.
Question:What thoughts do people who live in this world have which golden-aged deities would never have?
Answer:
Here, people think that their sons and grandsons will eat from whatever they earn. The deities would never have such thoughts because their sons and grandsons take their inheritance with them from here. They believe that their kingdom is imperishable. Each one is making his own individual effort here.
Song:Mother, o mother, you are the fortune of tomorrow. ...............Om Shanti
You children heard praise of the mothers. You children know which mothers are praised. Surely, it is the mothers who have been here and gone that are praised so much. They are not here now. On the path of devotion, there is praise of the one who was Jagadamba. You too didn’t know what she did before she went. They go to the Jagadamba Temple and ask for something or other. Some would want a child and others would ask for blessings. Non-living images cannot do or understand anything, but that is devotion! You know that they existed in the past. There is praise of Jagadamba. She isn't the only one. All of you sustain the Brahmin clan and you will then sustain the divine clan. At this time, it is as though you are sustaining the whole world, but no one knows this. There is also a gathering for goddess Chandika, but the name Chandika is not so good. Baba says: Those who were amazed and who then ran away and divorced the Father will then go and take birth as cremators. If children cause mischief at home or are disobedient, they are called cremators. You can really see that some belong to Shiv Baba and yet they cause so much mischief. To make mischief means to be disobedient. Those who cause a disturbance in Shiv Baba's service would eventually leave. A Brahma Kumari at a centre making mischief won't be able to explain to anyone. If she gets angry, everyone would say: She has a lot of anger. Chandika would not be just one; there are many of them. There is praise of the goddesses and there are also memorials of those who become like Chandika. They still belonged to God. Although some leave, they still go to heaven. They would still become the masters. Although only the kings and queens become the masters, the subjects would also say: We are the masters. The Congress Party say: Our Bharat is great. Nowadays, they even sing songs: Bharat was very good. Today, there are rivers of blood flowing. You have now become children of the unlimited Father. The gopes and gopis of Gopi Vallabh have been remembered. Vallabh is the Father. It is remembered that the one Gopi Vallabh has many gopes and gopies. In the golden age, there is no question of gopikas etc. You children now have far-sighted and broad, unlimited intellects. The locks on your intellects have opened. You know very well the life story of this birth. Everyone has that intoxication. There is Birla who would have intoxication of his wealth. He would think that he is the wealthiest of all. However, you know that those who are wealthy today will then become poor. There is the difference of day and night between your intellects and those of people outside. Some have intoxication of one thing and others have intoxication of another thing: I am so-and-so, I am like this. This one (Brahma) also had the intoxication of being a big jewel-merchant. You now understand that all of those types of intoxication are worth shells. The intoxication of you children is so high. Those people think that they will earn something and that their sons and grandsons will eat from that. It is not like that here. You know that by knowing the unlimited Father, we are claiming our inheritance from Him, and that we ourselves will receive the reward of that status for birth after birth. All the sons and grandsons are making effort here. There, they don't think: Our grandsons will eat from this. They understand that that is the imperishable kingdom. Here, royal people think that their sons and grandsons will eat from their earnings. You are now claiming so much inheritance from the Father and performing such actions that you continue to receive the fruit of that for 21 births. You are not concerned about your sons and grandsons. All of them also claim their inheritance here. You have so much knowledge. People don't know anything. People would definitely receive so much happiness from God, the Father, whom everyone remembers so much. It is sung: O Supreme Father, Supreme Soul, have mercy! He is called the Supreme Soul. He is the Supreme. He is beyond birth and death and this is why He is called the Supreme Soul, that is, God. The form of all souls is the same. Whatever effort each of you makes, so accordingly is the status you claim. This one's soul studies well and thus becomes Narayan. Someone who fails will become Rama. It is the soul that becomes that. You souls understand that you are studying Raja Yoga with the Supreme Father, the Supreme Soul. The soul then comes and wears a new costume and plays his part. He will change from an ordinary man into Narayan. This is in the intellects of you children, numberwise, according to the effort you make. This knowledge will then disappear. There won't be anyone impure there. Whom would you give knowledge to? The Purifier is remembered here. OK, just think that the Ganges is the Purifier. However, the Ganges would not be able to teach you Raja Yoga. The Father teaches you Raja Yoga. All the secrets of the drama, from the beginning to the end, are in the intellects of you children. All of you are studying in the one class, but you are numberwise. At the beginning, there was a bhatthi of 300. If there were thousands of cows in a cowshed to be looked after, no one would be able to look after all of them. A bhatthi of only a few had to be created. Of those, too, some are still continuing to move along and some have broken away. Some children think that it would have been better if they had been here from the beginning, but that is not so; so many of the old ones run away. Even those who have been here for 25 to 30 years don't even remember that He is the unlimited Father from whom they receive the inheritance. Baba makes you into the masters of heaven; it is a matter of a second. The Father says: By belonging to Me, you will become the masters of heaven. Kings and queens and also the subjects receive liberation-in-life. ‘Liberation-in-life in a second’ has been remembered. What would the children who do not study fully be doing? Making mischief. Some children are very obedient; they claim an even better status than their father. Their father would be earning a 100 or 200 and the child would become a millionaire. So, it is the same with spiritual relations. A child who is seven days old would quickly go ahead of someone who has been here for 25 years. It is numberwise. In fact, all of you are brides and you remember the one Bridegroom. You know that the Father comes and gives us the inheritance of the land of happiness. Women all have their physical husbands, and yet everyone remembers the Husband of all husbands. The Bridegroom from beyond gives you nectar to drink and this is why He is remembered. Then you become the masters of heaven. You don't remember anyone there. Through your efforts of the present time, you claim a reward for 21 births. Your intellects have opened up so much. That is numberwise and so the sovereignty you claim is also numberwise. Everything has been explained to you. By studying well here, you will also claim a high status. Otherwise, uneducated ones will have to bow down in front of educated ones. You have to make very good effort in this. The time now is very good for making effort. You know that you have to drink the nectar of knowledge while you are alive, that is, you have to continue to study. Saplings continue to be planted. For those who understand quickly, it is obvious that they will receive a good status. He is a flower who is very close and has surrendered himself in body, mind and wealth and has become engaged in service very well. He understands that however much time he gives for service, it is beneficial. Just as Baba became the Stick for all of us who were blind, without the eye of knowledge, so we also have to become the same. You continue to become the sticks for one another. It was Ravan who made you blind. It is explained to you that, at this time, the whole world is Lanka; all are in the cottage of sorrow. They have the name ‘Ashoka (without sorrow) Hotel’, and they have great pleasure there. You know that Baba has now come. The Mahabharat War is just ahead. It has to take place because the gates to the home have to open. There is no question of this happening in the copper age. There is extreme darkness now. The night of Brahmins has now come to an end and Baba has come. Only you children know these things. When studying at school, some claim very good marks whereas others fail. The sign of failing is to become part of the moon dynasty. Rama has been given the symbol of a warrior. They don't understand the meaning of that. They sit and relate so many stories about Luv and Kush (children of Rama). They make so many false allegations. It is sung: The King is Rama and the people are those who belong to Rama; there is mercy because of righteousness. So, where did all those things come from? All of these things have to be understood. You know that this knowledge is in your intellects, numberwise. Students have to make very good, intense effort. We are Godfatherly students. Who would not remember their teacher? We are the students of God, the Father, the Purifier. The Father, Teacher and Satguru are all included in this. All of you are Sitas. You are sitting in Ravan’s cottage of sorrow. Incorporeal God, the Father, is the Ocean of Knowledge, knowledge-full. You would not say this of Krishna or Lakshmi and Narayan. Their praise is completely different. In the song, it is sung: The praise is limitless of the One who makes us like that. You say: Baba, I will claim the full inheritance from You. You are so sweet! You are so lovely! Lakshmi and Narayan are so sweet and lovely. Look at the picture of Lakshmi and Narayan. They are always shown smiling. You know that deities used to stay in this Bharat. Where are they now? You can tell everyone: This is your final birth and you have to become like Krishna once again. The land of Krishna is now being established. The Krishna soul is also studying Raja Yoga. If you want to go to the land of Krishna, then study Raja Yoga. When you speak of Lakshmi and Narayan, they become confused. Krishna is rocked in a cradle and they worship Lakshmi and Narayan. They are not shown in any childhood activities. Where did Radhe and Krishna go and what happened to them? They don’t know anything. Radhe and Krishna were not brother and sister. Now, there is no kingdom of Radhe and Krishna. No one in the copper age knows about their kingdom. A very good intellect is needed to understand all of these things. It takes effort to write literature. They portray the ornaments on Vishnu but, in fact, Vishnu doesn't have those ornaments. Neither Vishnu nor Lakshmi and Narayan have the conch shell. So, what should we write? People cannot understand anything. You have the conch shell, so the ornaments surely have to be given to Brahmins. They would say: Where did these Brahmins come from? They wouldn’t be able to understand anything. You can explain that we Brahmins are the spinners of the discus of self-realisation. A very broad and unlimited intellect is needed to explain all of these things. Those who have gross intellects and are to become subjects won't be able to understand anything. They find it very difficult to explain. Baba writes: Sweetest, beloved, long-lost and now-found spinners of the discus of self-realisation, mouth-born creation of Brahma. However, you don't have those ornaments. In the pictures, they have shown the goddesses with a third eye, but they don't have a third eye. Your third eyes have now opened. There is praise of you Shaktis. Since there is Jagadamba, the children would also be with her. Mothers are in the majority. The mothers are raised up high. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Use your time in a worthwhile way for service. Surrender your body, mind and wealth and continue to study for as long as you live.
2. Sustain one another with knowledge. Don't perform any task through which you would disobey the Father.
Blessing:May you be a special soul who receives the fruit of the seed of your speciality in the form of contentment.
In this special age, the most elevated fruit of the seed of speciality is contentment. To remain content and to make everyone content is the sign of a special soul. Therefore, water the seed of your speciality, your blessing, with the water of all powers and the seed will be fruitful. Otherwise, even a fully grown tree will shake from time to time and fall in storms that come. This means that there would not be the zeal, enthusiasm, happiness or spiritual intoxication to move forward. So, using the right method, make the powerful seed fruitful.
Slogan:To share the holy food (prasad) of experiences and make weak ones powerful is a very great act of charity.
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