Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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1 | Murali 01-Aug- 2018 | 125037 | 2018-09-07 17:27:03 | |
2 | Murali 02-Aug- 2018 | 115306 | 2018-09-07 17:27:03 | |
3 | Murali 03-Aug- 2018 | 122767 | 2018-09-07 17:27:03 | |
4 | Murali 04-Aug- 2018 | 131649 | 2018-09-07 17:27:03 | |
5 | Murali 05-Aug- 2018 | 122005 | 2018-09-07 17:27:03 | |
6 | Murali 06-Aug- 2018 | 122804 | 2018-09-07 17:27:03 | |
7 | Murali 07-Aug- 2018 | 120104 | 2018-09-07 17:27:03 | |
8 | Murali 08-Aug- 2018 | 127824 | 2018-09-07 17:27:03 | |
9 | Murali 09-Aug- 2018 | 127466 | 2018-09-07 17:27:03 | |
10 | Murali 10-Aug- 2018 | 121746 | 2018-09-07 17:27:03 | |
11 | Murali 11-Aug- 2018 | 122692 | 2018-09-07 17:27:03 | |
12 | Murali 12-Aug- 2018 | 111683 | 2018-09-07 17:27:03 | |
13 | Murali 13-Aug- 2018 | 123920 | 2018-09-07 17:27:03 | |
14 | Murali 14-Aug- 2018 | 111398 | 2018-09-07 17:27:03 | |
15 | Murali 15-Aug- 2018 | 128503 | 2018-09-07 17:27:03 | |
16 | Murali 16-Aug- 2018 | 127280 | 2018-09-07 17:27:03 | |
17 | Murali 17-Aug- 2018 | 107136 | 2018-09-07 17:27:03 | |
18 | Murali 18-Aug- 2018 | 120726 | 2018-09-07 17:27:03 | |
19 | Murali 19-Aug- 2018 | 108991 | 2018-09-07 17:27:03 | |
20 | Murali 20-Aug- 2018 | 124686 | 2018-09-07 17:27:03 | |
21 | Murali 21-Aug- 2018 | 119352 | 2018-09-07 17:27:03 | |
22 | Murali 22-Aug- 2018 | 131894 | 2018-09-07 17:27:03 | |
23 | Murali 23-Aug- 2018 | 124657 | 2018-09-07 17:27:03 | |
24 | Murali 24-Aug- 2018 | 130080 | 2018-09-07 17:27:03 | |
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28 | Murali 28-Aug- 2018 | 119723 | 2018-09-07 17:27:03 | |
29 | Murali 29-Aug- 2018 | 114297 | 2018-09-07 17:27:03 | |
30 | Murali 30-Aug- 2018 | 124625 | 2018-09-07 17:27:04 | |
31 | Murali 31-Aug- 2018 | 109921 | 2018-09-07 17:27:04 |
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Details ( Page:- Murali 01-Aug- 2018 )
01-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ( Hindi )
मीठे बच्चे - निश्चयबुद्धि विजयन्ती, निश्चय के आधार पर ही स्वर्ग की राजाई के लायक बन सकते, पहला निश्चय चाहिए कि भगवान् टीचर बनकर हमें पढ़ा रहे हैं।
प्रश्नः-बाप सर्वशक्तिमान होते भी सब कार्य प्रेरणा से क्यों नहीं करते?
उत्तर:-बाबा कहते - मैं ज्ञान का सागर हूँ, मुझे ज्ञान सुनाने के लिए आना ही पड़ेगा। प्रोफेसर अगर घर में बैठ जाए तो पढ़ा कैसे सकेगा? मुझे तो तुम बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाना है, स्वर्ग का वर्सा देना है इसलिए मैं शरीर का आधार लेकर आता हूँ। इसमें बच्चों को जरा भी संशय नहीं आना चाहिए।
गीत:- जो पिया के साथ है.... ओम् शान्ति।
बाप को पिया कहा जाता है। बाप पानी की बरसात तो नहीं बरसायेंगे। यह तो समझने की बात है। जब कोई बात नहीं समझते हैं तो कहा जाता है तुम तो जैसे पत्थरबुद्धि हो। अब पारसनाथ तो नामीग्रामी है। पारसनाथ पारस बनाते हैं। पत्थर कौन बनाते हैं? पत्थरनाथ बनाने वाला रावण को कहा जाता है। तुम हो राम सम्प्रदाय, तुम नम्बरवार पत्थरबुद्धि से पारसनाथ बनते जाते हो। यथा राजा-रानी तथा प्रजा पारसबुद्धि कैसे बनें? जरूर कोई बनाने वाला है, जिसने पारसबुद्धि तो बनाया परन्तु इसमें कोई सूर्यवंशी घराने में, कोई चन्द्रवंशी घराने में, कोई दास-दासी बनेंगे, कोई फिर प्रजा में साहूकार बनेंगे। है सारा पुरुषार्थ पर। जरूर परमपिता परमात्मा को ही पारसनाथ कहेंगे। कोई मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। निराकार बाप की ही महिमा है। ज्ञान सागर है तो ज्ञान सुनाने के लिए उनको शरीर जरूर चाहिए। जो संस्कार ले जाते हैं उस अनुसार कर्म करने लिए शरीर तो चाहिए ना। वह तो है निराकार परमपिता परमात्मा। उनकी बड़ी भारी महिमा है। सबका बाप एक निराकार परन्तु वह भी तो आत्मा है ना। आत्मा ही आरगन्स द्वारा कहती है यह मेरे बच्चे हैं।
बाप ने समझाया है मनुष्य ब्राह्मणों को खिलाते हैं, उनमें आत्मा को बुलाते हैं फिर उनसे पूछते हैं। अच्छा, न भी पूछें, ब्राह्मण तो खिलाते हैं ना। समझो किसका पति मर जाता है तो कहते हैं मैं पति का श्राद्ध खिलाती हूँ। अच्छा, तुम्हारा पति तो मर गया फिर किसको बुलायेंगी? आत्मा को वा शरीर को? समझ की बात है ना। जरूर आत्मा को बुलायेंगी ना। शरीर तो खत्म हो गया। ब्राह्मण को खिलाते हैं, गोया ब्राह्मण में प्रवेश कर आत्मा खाती है। अब क्या सबूत है जो मर गया उसकी आत्मा आती है? आती तो जरूर है। आत्मा आकर बोलती है, उनसे पूछते हैं फलानी चीज कहाँ रखी है तो बतलाती भी है। तो जरूर समझते हैं कि हम पति की आत्मा को खिलाती हूँ, पति की आत्मा को माथा टेकती हूँ। ब्राह्मण को नहीं देखते। जैसे कि पति के नाम-रूप को देखकर माथा टेकते हैं। वह नाम-रूप तो भस्म हो गया तो वह शरीर भी याद आता है। ब्राह्मणों में आत्मा आती है। दूसरे की आत्मा आई है, यह महसूस होता है। अब आत्मा आई तो जरूर विश्वास रखना पड़ता है ना। तुम बच्चों को भी समझाया जाता है कि परमपिता परमात्मा है निराकार, उनको अपना शरीर नहीं है तो वर्सा कैसे देवें? तो जरूर शरीर का आधार लेना पड़े। पहले तो बरोबर निश्चय चाहिए कि परमपिता परमात्मा है, वह इन द्वारा वर्सा देने आया है। प्रेरणा से तो नहीं देंगे। उनको तो आकर पढ़ाना है, ज्ञान सागर है ना। यह समझने की बातें हैं। जिसकी तकदीर में भविष्य ऊंच प्रालब्ध नहीं है तो वह समझ नहीं सकेंगे। इनकी आत्मा कहती है कि मैं ज्ञान सागर नहीं हूँ। वह परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ, परन्तु मैं निराकार ऊपर से बैठ प्रेरणा से कैसे पढ़ाऊं? ऐसे तो कभी पढ़ाई होती नहीं। प्रोफेसर घर बैठ जाए तो प्रेरणा से पढ़ा सकेंगे क्या? जरूर स्कूल में आना पड़े ना। परमपिता परमात्मा भी घर में रहकर तो नहीं पढ़ायेंगे ना। प्रेरणा से चित्र थोड़ेही समझाया जाता है। यह चित्र भी शिवबाबा ने निकलवाया है। फिर खुद ही आकर समझाते हैं कि मैंने ही निकलवाये हैं। यह (ब्रह्मा) तो जानता ही नहीं था। मैंने बच्चों को दिव्य दृष्टि देकर बनवाये हैं। करनकरावनहार बाप है। पहले बाप समझाते हैं कि मैं हूँ तुम आत्माओं का बाप। नहीं तो तुम बच्चों को वर्सा कैसे मिले? मन्दिर भी बरोबर हैं। इनकी आत्मा का मन्दिर है। बाकी सब जीव आत्माओं के मन्दिर हैं क्योंकि जीव आत्मा जन्म-मरण में आती है, परमात्मा नहीं आता है। तो उनका रूप निराकार ही रखा है। तो बाप कहते हैं मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। यह बाबा भी कहते - मैं भी सीख रहा हूँ। अब इसमें प्रेरणा वा शक्ति की तो बात नहीं है। अगर कोई कहे कि शक्ति आती है तो वर्सा कैसे मिलेगा? यह बाप तो कहते हैं मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। भगवानुवाच है तो जरूर शरीर में आना पड़े। ऐसे नहीं कि इनमें शक्ति है। यहाँ तो पढ़ाई की बात है। मैं तुम्हारा बाप हूँ फिर मुझे टीचर भी बनना पड़े। सबको प्रेरणा कैसे दूँ? फिर तो सबको एक जैसा पढ़ाना पड़े। यह तो राजधानी स्थापन हो रही है। कोई को दास-दासी बनना पड़े, कोई को प्रजा बनना पड़े। कोई भी अगर पूछना चाहते हैं तो बाबा से पूछ सकते हैं - हम कहाँ तक लायक बने हैं? सूर्यवंशी वा चन्द्रवंशी वा दास-दासी बनेंगे? अगर हम इस समय शरीर छोड़ें तो क्या पद पायेंगे? बाबा से आकर पढ़ें तो बाबा पढ़ाई के अनुसार बता सकते हैं। स्कूल में बच्चे मास्टर को कहेंगे कि मास्टर जी हम कितने मार्क्स से पास होंगे? मास्टर एबाउट बता देगा कि तुम पूरा पढ़ते नहीं हो इसलिए इतने मार्क्स कैसे मिलेंगे? खुद भी समझेंगे कि बरोबर हम पूरा पढ़ता नहीं हूँ। हरेक की दिल बोलेगी। बेहद का बाप भी बता सकते हैं कोई को तो बाबा कहते हैं तुम बहुत अच्छा फूल हो, विजय माला में तुम इतने नम्बर में आ सकते हो, इस समय के अनुसार क्योंकि चलते-चलते गिर भी पड़ते हैं ना। बाबा के बहुत बच्चे देखो आज हैं नहीं क्योंकि श्रीमत पर न चले और काम के वश वा देह-अभिमान के वश हो गये, कोई लोभ-मोह के वश हो गये। माया ऐसी है जो चोरी भी करा देती है। यह सब माया कराती है। कहते हैं ना कि कख का चोर सो लख का चोर।
कोई-कोई में बुरी आदतें होती हैं, कोई में काम की आदत होती तो यह भागा। वह यहाँ ठहर न सके। लोभ वश चोरी भी कर लेते हैं। माया चोरी कराती है, माया की प्रवेशता है ना। पहले नम्बर देह-अभिमान को छोड़ते नहीं। बाबा कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा इमार्टल है, शरीर मार्टल है। तुम देही-अभिमानी बनो। कोई तो दो-तीन मास में देही-अभिमानी बन जाते हैं, कोई फिर 25 वर्ष में भी नहीं बनते। एक ही कोर्स बहुत बड़ा है जो 50-60 वर्ष चलता है। पढ़ाई के कोर्स और पढ़ाने वाले टीचर को न जाना तो पढ़ेगा क्या? इस बाबा को जानने से तो शिवबाबा को भी जानें, जिसके साथ बुद्धियोग लगाना है। हमें विश्व का मालिक बनना है सो कोई मनुष्य तो नहीं बनायेंगे। जब तक निश्चय नहीं हुआ है तब तक गोया कुछ भी नहीं समझा है। 20-25 वर्ष वालों को भी पूरा निश्चय नहीं बैठा है। हिलते रहते हैं। अभी-अभी निश्चय, अभी-अभी संशय। बाबा समझाते हैं तुम गॉड फादर कहते हो तो तुम आत्मायें उनके बच्चे ठहरे। वह तुम्हारा बाप है। सब लिखो कि हाँ, हमारा एक वही गॉड फादर है। फादर से वर्सा मिलता है स्वर्ग की राजधानी का, तो जरूर राजयोग सिखाया होगा ना। बाप ही सिखलायेंगे। जब तक बाप पर पूरा निश्चय नहीं है तो समझो वह स्वर्ग के लायक नहीं हैं। बाप को ही नहीं जानते तो वर्सा कैसे पायेंगे? बाप तो आते हैं वर्सा देने, परन्तु लेते नहीं क्योंकि भाग्य में नहीं हैं। निश्चयबुद्धि विजयन्ती, संशयबुद्धि विनशन्ती। पहले-पहले बाप को तो जानो। निराकार बाप परमपिता परमात्मा है ना। वह आकर पढ़ाते हैं। वर्सा उनसे मिलता है। उनको राजयोग सिखलाना है, इसमें प्रेरणा की तो कोई बात ही नहीं। टीचर घर में बैठ पढ़ाये - यह तो इम्पासिबुल है। बाबा कहते हैं कि मैं आता हूँ, मेरा मन्दिर भी है। निराकार तो कुछ कर न सके इसलिए शरीर लेना पड़ता है। नहीं तो मेरे में जो सृष्टि चक्र का ज्ञान है वह मैं सिखलाऊं कैसे? जरूर तन में आना पड़े। बच्चे वृद्धि को पाते रहते हैं। एक-दो को लेकर आते रहते हैं। जो देवी-देवता धर्म का होगा उसका ही सैपलिंग लगेगा। जो आकर ब्राह्मण बनते हैं, उन्हों का ही कलम लगता है। ब्राह्मणों का पिता है ब्रह्मा। ब्रह्मा का बाप है शिवबाबा। तो रूहानी बाप और जिस्मानी बाप भी है। तुम शिवबाबा के रूहानी बच्चे हो और ब्रह्मा की आत्मा भी शिवबाबा का बच्चा है। फिर जिस्मानी भी ब्राह्मणों का बाप है, जिससे यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां निकले। तुम ब्रह्मा के बच्चे शिवबाबा के पोत्रे हो। वर्सा उनसे मिलता है। यह भी समझ की बात है। बाबा से कोई भी बच्चा पूछे कि मैं किस पद को पाऊंगा तो बाबा बता देंगे।
कोई नये-नये को ले आते हैं, बात मत पूछो। एक बार मिलने से ही तीर लग जाता है। कैसे अच्छे-अच्छे पत्र लिखते हैं - बाबा फलाने ने ऐसी अच्छी बातें सुनाई जो पक्का निश्चय हो गया है, अब आप आये हो, आपसे हम पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। बाबा से कभी मिले भी नहीं हैं तो भी ऐसे-ऐसे पत्र लिखते हैं तो समझा जाता है यह सिकीलधा बच्चा है। सैपलिंग अच्छा है, झट समझ जाते हैं। श्रीनगर का सेन्टर खुला, वहाँ के नये-नये बच्चों ने पत्र लिखा है - बस, अब तो मिलने लिए अट्रैक्शन रहती है। सिर्फ यह बन्धन है। कारण भी लिख देते हैं। जो देवता धर्म के होंगे वही आयेंगे। जो श्रीकृष्ण पुरी में आने वाले होंगे वही ब्रह्मापुरी में आयेंगे। ब्रह्मपुरी नहीं। कोई-कोई ब्रह्मकुमारी लिखते हैं। यह तो रांग है। ब्रह्म तो तत्व है। उसकी कुमारी कैसे होगी? प्रजापिता ब्रह्मा तो मशहूर है। प्रजापिता तो यहाँ ही होगा ना। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियां अर्थात् परमपिता परमात्मा शिव की शक्तियां। शक्ति मिलती है शिवबाबा से, इनकी (ब्रह्मा की) आत्मा से नहीं। तो याद शिवबाबा को करना है। इससे ही हम पतित से पावन होंगे। इस समय तो सभी पाप आत्मायें हैं। सभी का जन्म विकार से होता है। यह बातें कोई झट समझ जाते हैं, कोई तो कुछ भी समझते नहीं। यह नॉलेज बड़ी वन्डरफुल है। भगवान् को भक्ति का फल देने के लिए आना पड़ता है। बच्चों को पढ़ाते हैं, कहते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी और सतगुरू भी हूँ। सभी को वापिस ले जाने के लिए आया हूँ इसलिए लिबरेटर भी कहते हैं। सो प्रेरणा से थोड़ेही लिबरेट करेंगे। स्कूल में भी वृद्धि होती है। लेकिन पुरानी दुनिया को याद किया तो बाप को भूले। आखिर भूलते-भूलते पुरानी दुनिया में ही चले जाते हैं। फिर ज्ञान का कुछ भी नहीं रहता है। बस, सौदा कैंसिल। बाप को जो दिया वह वापिस ले लेते हैं। बुद्धि का ताला एकदम बन्द हो जाता है। बाप बुद्धिवानों की बुद्धि है ना। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। सुनने वालों के नैन-चैन से ही मालूम पड़ जाता है - इनको कहाँ तक धारणा होती है? ऊंच पद पा सकेंगे वा नहीं? बाबा झट समझ जाते हैं कि यह समझने वाला है या नहीं? या बुद्धियोग कहाँ भटकता रहता है? नब्ज देखी जाती है। नब्ज देखने वाला भी होशियार चाहिए। मंजिल है बहुत भारी। तुम झट समझ जायेंगे - यह उठ सकेगा वा नहीं? नम्बरवार तो हैं ना।
भल यह ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा (बड़ी नदी) है, परन्तु अपनी महिमा तो नहीं करेंगे। सरस्वती भी होशियार है। उस पढ़ाई में तो यहाँ ही इम्तहान हो जाता है। इस पढ़ाई का इम्तहान अभी नहीं होना है। जब तक जियेंगे तब तक ज्ञानामृत पियेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी पुरानी आदत के वशीभूत हो उल्टा कर्म नहीं करना है। देह-अभिमान की आदत को छोड़ देही-अभिमानी रहने का कोर्स पूरा करना है।
2) निश्चय में कभी भी हिलना नहीं है। जब तक जीना है, पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
वरदान:- उड़ती कला द्वारा बाप समान आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले चक्रवर्ती भव
जैसे बाप आलराउन्ड पार्टधारी है, सखा भी बन सकते तो बाप भी बन सकते। ऐसे उड़ती कला वाले जिस समय जिस सेवा की आवश्यकता होगी उसमें सम्पन्न पार्ट बजा सकेंगे। इसको ही कहा जाता है आलराउन्ड उड़ता पंछी। वे ऐसे निर्बन्धन होंगे जो जहाँ भी सेवा होगी वहाँ पहुंच जायेंगे। हर प्रकार की सेवा में सफलतामूर्त बनेंगे। उन्हें ही कहा जाता है चक्रवर्ती, आलराउन्ड पार्टधारी।
स्लोगन:- एक दो की विशेषताओं को स्मृति में रख फेथफुल बनो तो संगठन एकमत हो जायेगा।
01/08/18 Morning Murli -Om Shanti - BapDada -Madhuban ( English )
Sweet children, become victorious by having faith in the intellect. Only on the basis of your faith can you become worthy of the kingdom of heaven. The first faith you need to have is that God has become the Teacher and is teaching you.
Question:Although the Father is the Almighty Authority, why does He not do everything through inspiration?
Answer:Baba says: I am the Ocean of Knowledge. I have to come to speak knowledge. If a professor were to sit at home, how would he be able to teach? I have to educate you children and make you worthy and give you the inheritance of heaven. This is why I come and take the support of a body. You children should not have the slightest doubt about this.
Song:The rain of knowledge is for those who are with the Beloved.
Om Shanti
The Father is called the Beloved. The Father would not shower rain of water. This is something to be understood. When someone doesn't understand anything, it is said: You have a stone intellect. Now, the Lord of Divinity is very well known. The Lord of Divinity makes you divine. Who makes you into stone? Ravan is called the lord who makes you into stone. You belong to the community of Rama. From having stone intellects you continue to become lords of divinity, numberwise. How do the king, queen and subjects all become those with divine intellects? There must definitely be someone who makes them into those with divine intellects. However, some will go into the sun dynasty, some into the moon dynasty, some will become maids and servants and some will become wealthy subjects; it all depends on effort. It is surely the Supreme Father, the Supreme Soul, who is called the Lord of Divinity. No human being is called the Ocean of Knowledge. This praise is only of the incorporeal Father. He is the Ocean of Knowledge and He therefore definitely needs a body to speak the knowledge. A soul definitely needs a body to perform actions according to the sanskars that he carries. The Father is the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, and He is praised a great deal. The Father of all is incorporeal; He too is just a soul. The soul says through these organs: These are my children. The Father has explained that human beings feed a brahmin priest. Achcha, they invite that soul to come into the brahmin priest and they ask that soul questions. Even if they don't ask questions, they at least feed the brahmin. When someone's husband has died, his widow would say: I am feeding the departed soul of my husband. Achcha. Your husband has died, so whom are you going to call? The soul or the body? It is a matter of understanding that you would definitely call the soul; the body is no more. They feed the brahmin priest, that is, the departed soul enters the brahmin and eats the food. What is the proof that that dead person's soul comes? He definitely comes. The soul comes and speaks. When you ask that soul where a particular thing has been placed, the soul tells you. Therefore, she definitely believes that she is feeding the soul of her husband and that she is bowing down to her husband. She doesn’t see the brahmin at that time. It is as though she sees the name and form of her husband and bows down to him. That name and form (of the husband) has been burnt, but she still remembers that body. Souls enter brahmins. It can be felt that another soul has entered. The soul has come and so they definitely have to have that faith. It has been explained to you children that the Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. He doesn't have a body of His own, so how can He give the inheritance? Surely this is why He has to take the support of a body. First of all, there definitely has to be the faith that there is the Supreme Father, the Supreme Soul, and that He has come to give the inheritance through this one. He would not do that through inspiration. He has to come and teach you. He is the Ocean of Knowledge. These matters have to be understood. Those who don't have the future elevated reward in their fortune won't be able to understand. This one's soul says: I am not the Ocean of Knowledge. That Supreme Father, the Supreme Soul, says: I am the Ocean of Knowledge, but how could I, the incorporeal One, sit up above and teach through inspiration? Education never takes place in that way. If a professor were to sit at home, would he be able to teach through inspiration? He would definitely have to go to the school. The Supreme Father, the Supreme Soul, too, would not teach you while sitting at home. Pictures can't be explained through inspiration. Shiv Baba has had these pictures made. He Himself then comes and says: I have had these pictures made. This one (Brahma) didn't even know this. I had them made by giving divine visions to the children. The Father is Karankaravanhar. First of all, the Father explains: I am the Father of you souls. How else would you children receive the inheritance? There definitely are temples. There is also the temple to that One's soul. All the rest are temples to living beings (embodied souls) because living beings come into birth and death, whereas God doesn't. Therefore, He has only been shown as incorporeal. The Father says: I teach you Raja Yoga. This Baba also says: I too am studying. Now, there is no question of inspiration or power in this. If someone says that there is some power, how could he receive the inheritance? That Father says: I teach you Raja Yoga. If God speaks, He surely has to enter a body. It isn't that this one has some power in him. Here, it is a question of studying. I am your Father and I also have to become your Teacher. How could I inspire everyone? I would then have to teach everyone in the same way. However, a kingdom is being established. Some have to become maids and servants and others have to become subjects. If any of you want to ask, you can ask Baba to what extent you have become worthy and whether you will become the sun or moon dynasty or maids and servants. What status would I claim if I were to shed my body at this time? If you come and study with Baba, Baba can tell you that, according to how you study. Would a student in a school ask his teacher: Masterji, with how many marks will I pass? The master would tell you approximately: You have not studied fully and so how can you claim many marks? You yourself can understand if you are not truly studying fully. Each one's heart would tell the self. The unlimited Father can also tell you. To some, Baba would say: You are a very good flower. You can come in this number in the rosary of victory, according to the present time. This is because, while moving along, some also fall. Many of Baba’s children are no longer here today because they didn't follow shrimat and are now influenced by lust and body consciousness. Some are influenced by greed or attachment. Maya is such that she even makes you steal. Maya makes you do all of that. It is said: One who steals a straw can also steal a hundred thousand. Some have bad habits. Those who have the habit of lust would run away from here. They wouldn’t be able to remain here. Some would even steal under the influence of greed. Maya makes them steal. Maya enters them. They don't let go of the first number body consciousness. Baba says: Have the faith that you are a soul. Souls are immortal and bodies are mortal. Become soul conscious. Some become soul conscious in two to three months and some don't become that in even 25 years. This one course is very long and it continues for 50 to 60 years. If you don't know the course of the study and the teacher who teaches you, what would you study? By knowing this Baba, you can also know Shiv Baba, the One to whom you have to connect your intellects in yoga. We have to become the masters of the world, and it wouldn't be a human being who makes us that. Until you have faith, you haven't understood anything. Even some of those who have been here for 20 to 25 years don't have full faith; they continue to fluctuate. One minute, they have faith and the next minute, they have doubt. Baba explains: You speak of God, the Father, and so you souls are His children. He is your Father. Everyone should write: Yes, He is our one and only God, the Father. You received your inheritance of the kingdom of heaven from the Father and He would therefore have definitely taught you Raja Yoga. Only the Father would teach you that. Until someone has firm faith in the Father, you can understand that that one is not worthy of heaven. They don't know the Father, so how could they receive the inheritance? The Father comes to give the inheritance, but some don’t take it because it is not in their fortune. Those whose intellects have faith become victorious whereas those whose intellects have doubt are led to destruction. First of all, know the Father. The incorporeal Father is the Supreme Father, the Supreme Soul. He comes and teaches you. You receive the inheritance from Him. He has to teach you Raja Yoga. There is no question of inspiration in this. It is impossible that a teacher would teach you from his home. Baba says: I come. There is also a temple built to Me. The incorporeal One cannot do anything alone and this is why He has to take a body. Otherwise, how would I teach you the knowledge of the world cycle that I have? I definitely have to enter a body. The number of children continues to grow; they continue to bring others. The sapling of those who belong to the deity religion will be planted. The sapling is planted of those who come and become Brahmins. The Father of Brahmins is Brahma and the Father of Brahma is Shiv Baba. So, there is the spiritual Father and also the physical father. You are the spiritual children of Shiv Baba and the Brahma soul is also a child of Shiv Baba. Then he is also the father of physical Brahmins. It is through him that the Brahma Kumars and Kumaris emerge. You are the children of Brahma and the grandchildren of Shiv Baba. You receive the inheritance from Him. This too is something to be understood. If any child asks Baba what status he would claim, Baba would tell him. Some bring new ones, don't even ask! Sometimes, the arrow strikes the target the first time they meet. Children write very good letters: Baba, So-and-so related such good things that I had firm faith that You have now come; I will definitely claim my full inheritance from You. When children who have never even met Baba write such letters, it is understood that they are long-lost and now-found children, that that one is a good sapling and able to understand quickly. When the Shrinagar centre opened, the new children there wrote letters: Now, there is the attraction to meet You, but there are these bondages. They even write their reasons. Only those who belong to the deity religion will come. Only those who are to go to the land of Shri Krishna will come on to the land of Brahma, not the land of brahm (brahmpuri). Some people write, "Brahm Kumaris", but that is wrong. Brahm is the element of light. How could there be a kumari of the element of light? Prajapita Brahma is well known. The Father of Humanity would exist here, would he not? The children of Prajapita Brahma, the Brahma Kumars and Kumaris, means the Shaktis of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. You receive power from Shiv Baba, not from the soul of this one (Brahma). Therefore, you have to remember Shiv Baba. It is by doing this that we will become pure from impure. At this time, all are sinful souls. Everyone takes birth through vice. Some understand these things very quickly whereas others don't understand these things at all. This knowledge is so wonderful. God has to come to give you the fruit of your devotion. He teaches you children. He says: I am your Father, Teacher and also the Satguru. I have come to take all of you back home. Therefore, He is also called the Liberator. He will not liberate anyone through inspiration. Growth takes place in schools too. However, if you remember the old world, you forget the Father. By gradually forgetting, you will eventually go back to the old world. Then, nothing of knowledge will remain. The deal will be cancelled. That’s it! They take back whatever they gave to the Father; the intellects become completely locked. The Father is the Intellect of the Wise. He explains to you so clearly. You can tell from the eyes and features of those listening to what extent they are imbibing this and whether they will be able to claim a high status or not. Baba quickly understands whether they will understand or not and whether their intellects’ yoga is wandering somewhere. Their pulses are felt. Someone who feels the pulse of others has to be clever. The destination is very high. You will quickly understand whether someone will be able to be uplifted or not; it is numberwise. Although this one (Brahma) is Brahmaputra (big river), he will not praise himself. Saraswati is also clever. In those studies, the examinations take place here. The examination of this study will not take place now. Continue to drink the nectar of knowledge for as long as you live. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Don’t be influenced by any old habits and thereby perform wrong actions. Renounce the habit of body consciousness and complete the course of remaining soul conscious.
2. Never fluctuate in your faith. For as long as you live, you have to study and teach others.
Blessing:May you play an all-round part, the same as the Father, with your flying stage as a ruler of the globe.
Just as the Father is an all-round actor - He can be the Friend and also the Father, in the same way, those with a flying stage will be able to play their parts perfectly any time there is a need for any type of service. This is called being an all-round flying bird. They would be free from bondage to such an extent that they would go to wherever there is service to be done. They will be successful in every type of service. They are called rulers of the globe, all-round actors.
Slogan:Be faithful and keep the specialities of one another in your awareness and the gathering will then be united.
मीठे बच्चे - निश्चयबुद्धि विजयन्ती, निश्चय के आधार पर ही स्वर्ग की राजाई के लायक बन सकते, पहला निश्चय चाहिए कि भगवान् टीचर बनकर हमें पढ़ा रहे हैं।
प्रश्नः-बाप सर्वशक्तिमान होते भी सब कार्य प्रेरणा से क्यों नहीं करते?
उत्तर:-बाबा कहते - मैं ज्ञान का सागर हूँ, मुझे ज्ञान सुनाने के लिए आना ही पड़ेगा। प्रोफेसर अगर घर में बैठ जाए तो पढ़ा कैसे सकेगा? मुझे तो तुम बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाना है, स्वर्ग का वर्सा देना है इसलिए मैं शरीर का आधार लेकर आता हूँ। इसमें बच्चों को जरा भी संशय नहीं आना चाहिए।
गीत:- जो पिया के साथ है.... ओम् शान्ति।
बाप को पिया कहा जाता है। बाप पानी की बरसात तो नहीं बरसायेंगे। यह तो समझने की बात है। जब कोई बात नहीं समझते हैं तो कहा जाता है तुम तो जैसे पत्थरबुद्धि हो। अब पारसनाथ तो नामीग्रामी है। पारसनाथ पारस बनाते हैं। पत्थर कौन बनाते हैं? पत्थरनाथ बनाने वाला रावण को कहा जाता है। तुम हो राम सम्प्रदाय, तुम नम्बरवार पत्थरबुद्धि से पारसनाथ बनते जाते हो। यथा राजा-रानी तथा प्रजा पारसबुद्धि कैसे बनें? जरूर कोई बनाने वाला है, जिसने पारसबुद्धि तो बनाया परन्तु इसमें कोई सूर्यवंशी घराने में, कोई चन्द्रवंशी घराने में, कोई दास-दासी बनेंगे, कोई फिर प्रजा में साहूकार बनेंगे। है सारा पुरुषार्थ पर। जरूर परमपिता परमात्मा को ही पारसनाथ कहेंगे। कोई मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। निराकार बाप की ही महिमा है। ज्ञान सागर है तो ज्ञान सुनाने के लिए उनको शरीर जरूर चाहिए। जो संस्कार ले जाते हैं उस अनुसार कर्म करने लिए शरीर तो चाहिए ना। वह तो है निराकार परमपिता परमात्मा। उनकी बड़ी भारी महिमा है। सबका बाप एक निराकार परन्तु वह भी तो आत्मा है ना। आत्मा ही आरगन्स द्वारा कहती है यह मेरे बच्चे हैं।
बाप ने समझाया है मनुष्य ब्राह्मणों को खिलाते हैं, उनमें आत्मा को बुलाते हैं फिर उनसे पूछते हैं। अच्छा, न भी पूछें, ब्राह्मण तो खिलाते हैं ना। समझो किसका पति मर जाता है तो कहते हैं मैं पति का श्राद्ध खिलाती हूँ। अच्छा, तुम्हारा पति तो मर गया फिर किसको बुलायेंगी? आत्मा को वा शरीर को? समझ की बात है ना। जरूर आत्मा को बुलायेंगी ना। शरीर तो खत्म हो गया। ब्राह्मण को खिलाते हैं, गोया ब्राह्मण में प्रवेश कर आत्मा खाती है। अब क्या सबूत है जो मर गया उसकी आत्मा आती है? आती तो जरूर है। आत्मा आकर बोलती है, उनसे पूछते हैं फलानी चीज कहाँ रखी है तो बतलाती भी है। तो जरूर समझते हैं कि हम पति की आत्मा को खिलाती हूँ, पति की आत्मा को माथा टेकती हूँ। ब्राह्मण को नहीं देखते। जैसे कि पति के नाम-रूप को देखकर माथा टेकते हैं। वह नाम-रूप तो भस्म हो गया तो वह शरीर भी याद आता है। ब्राह्मणों में आत्मा आती है। दूसरे की आत्मा आई है, यह महसूस होता है। अब आत्मा आई तो जरूर विश्वास रखना पड़ता है ना। तुम बच्चों को भी समझाया जाता है कि परमपिता परमात्मा है निराकार, उनको अपना शरीर नहीं है तो वर्सा कैसे देवें? तो जरूर शरीर का आधार लेना पड़े। पहले तो बरोबर निश्चय चाहिए कि परमपिता परमात्मा है, वह इन द्वारा वर्सा देने आया है। प्रेरणा से तो नहीं देंगे। उनको तो आकर पढ़ाना है, ज्ञान सागर है ना। यह समझने की बातें हैं। जिसकी तकदीर में भविष्य ऊंच प्रालब्ध नहीं है तो वह समझ नहीं सकेंगे। इनकी आत्मा कहती है कि मैं ज्ञान सागर नहीं हूँ। वह परमपिता परमात्मा कहते हैं मैं ज्ञान का सागर हूँ, परन्तु मैं निराकार ऊपर से बैठ प्रेरणा से कैसे पढ़ाऊं? ऐसे तो कभी पढ़ाई होती नहीं। प्रोफेसर घर बैठ जाए तो प्रेरणा से पढ़ा सकेंगे क्या? जरूर स्कूल में आना पड़े ना। परमपिता परमात्मा भी घर में रहकर तो नहीं पढ़ायेंगे ना। प्रेरणा से चित्र थोड़ेही समझाया जाता है। यह चित्र भी शिवबाबा ने निकलवाया है। फिर खुद ही आकर समझाते हैं कि मैंने ही निकलवाये हैं। यह (ब्रह्मा) तो जानता ही नहीं था। मैंने बच्चों को दिव्य दृष्टि देकर बनवाये हैं। करनकरावनहार बाप है। पहले बाप समझाते हैं कि मैं हूँ तुम आत्माओं का बाप। नहीं तो तुम बच्चों को वर्सा कैसे मिले? मन्दिर भी बरोबर हैं। इनकी आत्मा का मन्दिर है। बाकी सब जीव आत्माओं के मन्दिर हैं क्योंकि जीव आत्मा जन्म-मरण में आती है, परमात्मा नहीं आता है। तो उनका रूप निराकार ही रखा है। तो बाप कहते हैं मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। यह बाबा भी कहते - मैं भी सीख रहा हूँ। अब इसमें प्रेरणा वा शक्ति की तो बात नहीं है। अगर कोई कहे कि शक्ति आती है तो वर्सा कैसे मिलेगा? यह बाप तो कहते हैं मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। भगवानुवाच है तो जरूर शरीर में आना पड़े। ऐसे नहीं कि इनमें शक्ति है। यहाँ तो पढ़ाई की बात है। मैं तुम्हारा बाप हूँ फिर मुझे टीचर भी बनना पड़े। सबको प्रेरणा कैसे दूँ? फिर तो सबको एक जैसा पढ़ाना पड़े। यह तो राजधानी स्थापन हो रही है। कोई को दास-दासी बनना पड़े, कोई को प्रजा बनना पड़े। कोई भी अगर पूछना चाहते हैं तो बाबा से पूछ सकते हैं - हम कहाँ तक लायक बने हैं? सूर्यवंशी वा चन्द्रवंशी वा दास-दासी बनेंगे? अगर हम इस समय शरीर छोड़ें तो क्या पद पायेंगे? बाबा से आकर पढ़ें तो बाबा पढ़ाई के अनुसार बता सकते हैं। स्कूल में बच्चे मास्टर को कहेंगे कि मास्टर जी हम कितने मार्क्स से पास होंगे? मास्टर एबाउट बता देगा कि तुम पूरा पढ़ते नहीं हो इसलिए इतने मार्क्स कैसे मिलेंगे? खुद भी समझेंगे कि बरोबर हम पूरा पढ़ता नहीं हूँ। हरेक की दिल बोलेगी। बेहद का बाप भी बता सकते हैं कोई को तो बाबा कहते हैं तुम बहुत अच्छा फूल हो, विजय माला में तुम इतने नम्बर में आ सकते हो, इस समय के अनुसार क्योंकि चलते-चलते गिर भी पड़ते हैं ना। बाबा के बहुत बच्चे देखो आज हैं नहीं क्योंकि श्रीमत पर न चले और काम के वश वा देह-अभिमान के वश हो गये, कोई लोभ-मोह के वश हो गये। माया ऐसी है जो चोरी भी करा देती है। यह सब माया कराती है। कहते हैं ना कि कख का चोर सो लख का चोर।
कोई-कोई में बुरी आदतें होती हैं, कोई में काम की आदत होती तो यह भागा। वह यहाँ ठहर न सके। लोभ वश चोरी भी कर लेते हैं। माया चोरी कराती है, माया की प्रवेशता है ना। पहले नम्बर देह-अभिमान को छोड़ते नहीं। बाबा कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्मा इमार्टल है, शरीर मार्टल है। तुम देही-अभिमानी बनो। कोई तो दो-तीन मास में देही-अभिमानी बन जाते हैं, कोई फिर 25 वर्ष में भी नहीं बनते। एक ही कोर्स बहुत बड़ा है जो 50-60 वर्ष चलता है। पढ़ाई के कोर्स और पढ़ाने वाले टीचर को न जाना तो पढ़ेगा क्या? इस बाबा को जानने से तो शिवबाबा को भी जानें, जिसके साथ बुद्धियोग लगाना है। हमें विश्व का मालिक बनना है सो कोई मनुष्य तो नहीं बनायेंगे। जब तक निश्चय नहीं हुआ है तब तक गोया कुछ भी नहीं समझा है। 20-25 वर्ष वालों को भी पूरा निश्चय नहीं बैठा है। हिलते रहते हैं। अभी-अभी निश्चय, अभी-अभी संशय। बाबा समझाते हैं तुम गॉड फादर कहते हो तो तुम आत्मायें उनके बच्चे ठहरे। वह तुम्हारा बाप है। सब लिखो कि हाँ, हमारा एक वही गॉड फादर है। फादर से वर्सा मिलता है स्वर्ग की राजधानी का, तो जरूर राजयोग सिखाया होगा ना। बाप ही सिखलायेंगे। जब तक बाप पर पूरा निश्चय नहीं है तो समझो वह स्वर्ग के लायक नहीं हैं। बाप को ही नहीं जानते तो वर्सा कैसे पायेंगे? बाप तो आते हैं वर्सा देने, परन्तु लेते नहीं क्योंकि भाग्य में नहीं हैं। निश्चयबुद्धि विजयन्ती, संशयबुद्धि विनशन्ती। पहले-पहले बाप को तो जानो। निराकार बाप परमपिता परमात्मा है ना। वह आकर पढ़ाते हैं। वर्सा उनसे मिलता है। उनको राजयोग सिखलाना है, इसमें प्रेरणा की तो कोई बात ही नहीं। टीचर घर में बैठ पढ़ाये - यह तो इम्पासिबुल है। बाबा कहते हैं कि मैं आता हूँ, मेरा मन्दिर भी है। निराकार तो कुछ कर न सके इसलिए शरीर लेना पड़ता है। नहीं तो मेरे में जो सृष्टि चक्र का ज्ञान है वह मैं सिखलाऊं कैसे? जरूर तन में आना पड़े। बच्चे वृद्धि को पाते रहते हैं। एक-दो को लेकर आते रहते हैं। जो देवी-देवता धर्म का होगा उसका ही सैपलिंग लगेगा। जो आकर ब्राह्मण बनते हैं, उन्हों का ही कलम लगता है। ब्राह्मणों का पिता है ब्रह्मा। ब्रह्मा का बाप है शिवबाबा। तो रूहानी बाप और जिस्मानी बाप भी है। तुम शिवबाबा के रूहानी बच्चे हो और ब्रह्मा की आत्मा भी शिवबाबा का बच्चा है। फिर जिस्मानी भी ब्राह्मणों का बाप है, जिससे यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां निकले। तुम ब्रह्मा के बच्चे शिवबाबा के पोत्रे हो। वर्सा उनसे मिलता है। यह भी समझ की बात है। बाबा से कोई भी बच्चा पूछे कि मैं किस पद को पाऊंगा तो बाबा बता देंगे।
कोई नये-नये को ले आते हैं, बात मत पूछो। एक बार मिलने से ही तीर लग जाता है। कैसे अच्छे-अच्छे पत्र लिखते हैं - बाबा फलाने ने ऐसी अच्छी बातें सुनाई जो पक्का निश्चय हो गया है, अब आप आये हो, आपसे हम पूरा वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। बाबा से कभी मिले भी नहीं हैं तो भी ऐसे-ऐसे पत्र लिखते हैं तो समझा जाता है यह सिकीलधा बच्चा है। सैपलिंग अच्छा है, झट समझ जाते हैं। श्रीनगर का सेन्टर खुला, वहाँ के नये-नये बच्चों ने पत्र लिखा है - बस, अब तो मिलने लिए अट्रैक्शन रहती है। सिर्फ यह बन्धन है। कारण भी लिख देते हैं। जो देवता धर्म के होंगे वही आयेंगे। जो श्रीकृष्ण पुरी में आने वाले होंगे वही ब्रह्मापुरी में आयेंगे। ब्रह्मपुरी नहीं। कोई-कोई ब्रह्मकुमारी लिखते हैं। यह तो रांग है। ब्रह्म तो तत्व है। उसकी कुमारी कैसे होगी? प्रजापिता ब्रह्मा तो मशहूर है। प्रजापिता तो यहाँ ही होगा ना। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियां अर्थात् परमपिता परमात्मा शिव की शक्तियां। शक्ति मिलती है शिवबाबा से, इनकी (ब्रह्मा की) आत्मा से नहीं। तो याद शिवबाबा को करना है। इससे ही हम पतित से पावन होंगे। इस समय तो सभी पाप आत्मायें हैं। सभी का जन्म विकार से होता है। यह बातें कोई झट समझ जाते हैं, कोई तो कुछ भी समझते नहीं। यह नॉलेज बड़ी वन्डरफुल है। भगवान् को भक्ति का फल देने के लिए आना पड़ता है। बच्चों को पढ़ाते हैं, कहते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी और सतगुरू भी हूँ। सभी को वापिस ले जाने के लिए आया हूँ इसलिए लिबरेटर भी कहते हैं। सो प्रेरणा से थोड़ेही लिबरेट करेंगे। स्कूल में भी वृद्धि होती है। लेकिन पुरानी दुनिया को याद किया तो बाप को भूले। आखिर भूलते-भूलते पुरानी दुनिया में ही चले जाते हैं। फिर ज्ञान का कुछ भी नहीं रहता है। बस, सौदा कैंसिल। बाप को जो दिया वह वापिस ले लेते हैं। बुद्धि का ताला एकदम बन्द हो जाता है। बाप बुद्धिवानों की बुद्धि है ना। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। सुनने वालों के नैन-चैन से ही मालूम पड़ जाता है - इनको कहाँ तक धारणा होती है? ऊंच पद पा सकेंगे वा नहीं? बाबा झट समझ जाते हैं कि यह समझने वाला है या नहीं? या बुद्धियोग कहाँ भटकता रहता है? नब्ज देखी जाती है। नब्ज देखने वाला भी होशियार चाहिए। मंजिल है बहुत भारी। तुम झट समझ जायेंगे - यह उठ सकेगा वा नहीं? नम्बरवार तो हैं ना।
भल यह ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा (बड़ी नदी) है, परन्तु अपनी महिमा तो नहीं करेंगे। सरस्वती भी होशियार है। उस पढ़ाई में तो यहाँ ही इम्तहान हो जाता है। इस पढ़ाई का इम्तहान अभी नहीं होना है। जब तक जियेंगे तब तक ज्ञानामृत पियेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी पुरानी आदत के वशीभूत हो उल्टा कर्म नहीं करना है। देह-अभिमान की आदत को छोड़ देही-अभिमानी रहने का कोर्स पूरा करना है।
2) निश्चय में कभी भी हिलना नहीं है। जब तक जीना है, पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
वरदान:- उड़ती कला द्वारा बाप समान आलराउन्ड पार्ट बजाने वाले चक्रवर्ती भव
जैसे बाप आलराउन्ड पार्टधारी है, सखा भी बन सकते तो बाप भी बन सकते। ऐसे उड़ती कला वाले जिस समय जिस सेवा की आवश्यकता होगी उसमें सम्पन्न पार्ट बजा सकेंगे। इसको ही कहा जाता है आलराउन्ड उड़ता पंछी। वे ऐसे निर्बन्धन होंगे जो जहाँ भी सेवा होगी वहाँ पहुंच जायेंगे। हर प्रकार की सेवा में सफलतामूर्त बनेंगे। उन्हें ही कहा जाता है चक्रवर्ती, आलराउन्ड पार्टधारी।
स्लोगन:- एक दो की विशेषताओं को स्मृति में रख फेथफुल बनो तो संगठन एकमत हो जायेगा।
01/08/18 Morning Murli -Om Shanti - BapDada -Madhuban ( English )
Sweet children, become victorious by having faith in the intellect. Only on the basis of your faith can you become worthy of the kingdom of heaven. The first faith you need to have is that God has become the Teacher and is teaching you.
Question:Although the Father is the Almighty Authority, why does He not do everything through inspiration?
Answer:Baba says: I am the Ocean of Knowledge. I have to come to speak knowledge. If a professor were to sit at home, how would he be able to teach? I have to educate you children and make you worthy and give you the inheritance of heaven. This is why I come and take the support of a body. You children should not have the slightest doubt about this.
Song:The rain of knowledge is for those who are with the Beloved.
Om Shanti
The Father is called the Beloved. The Father would not shower rain of water. This is something to be understood. When someone doesn't understand anything, it is said: You have a stone intellect. Now, the Lord of Divinity is very well known. The Lord of Divinity makes you divine. Who makes you into stone? Ravan is called the lord who makes you into stone. You belong to the community of Rama. From having stone intellects you continue to become lords of divinity, numberwise. How do the king, queen and subjects all become those with divine intellects? There must definitely be someone who makes them into those with divine intellects. However, some will go into the sun dynasty, some into the moon dynasty, some will become maids and servants and some will become wealthy subjects; it all depends on effort. It is surely the Supreme Father, the Supreme Soul, who is called the Lord of Divinity. No human being is called the Ocean of Knowledge. This praise is only of the incorporeal Father. He is the Ocean of Knowledge and He therefore definitely needs a body to speak the knowledge. A soul definitely needs a body to perform actions according to the sanskars that he carries. The Father is the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, and He is praised a great deal. The Father of all is incorporeal; He too is just a soul. The soul says through these organs: These are my children. The Father has explained that human beings feed a brahmin priest. Achcha, they invite that soul to come into the brahmin priest and they ask that soul questions. Even if they don't ask questions, they at least feed the brahmin. When someone's husband has died, his widow would say: I am feeding the departed soul of my husband. Achcha. Your husband has died, so whom are you going to call? The soul or the body? It is a matter of understanding that you would definitely call the soul; the body is no more. They feed the brahmin priest, that is, the departed soul enters the brahmin and eats the food. What is the proof that that dead person's soul comes? He definitely comes. The soul comes and speaks. When you ask that soul where a particular thing has been placed, the soul tells you. Therefore, she definitely believes that she is feeding the soul of her husband and that she is bowing down to her husband. She doesn’t see the brahmin at that time. It is as though she sees the name and form of her husband and bows down to him. That name and form (of the husband) has been burnt, but she still remembers that body. Souls enter brahmins. It can be felt that another soul has entered. The soul has come and so they definitely have to have that faith. It has been explained to you children that the Supreme Father, the Supreme Soul, is incorporeal. He doesn't have a body of His own, so how can He give the inheritance? Surely this is why He has to take the support of a body. First of all, there definitely has to be the faith that there is the Supreme Father, the Supreme Soul, and that He has come to give the inheritance through this one. He would not do that through inspiration. He has to come and teach you. He is the Ocean of Knowledge. These matters have to be understood. Those who don't have the future elevated reward in their fortune won't be able to understand. This one's soul says: I am not the Ocean of Knowledge. That Supreme Father, the Supreme Soul, says: I am the Ocean of Knowledge, but how could I, the incorporeal One, sit up above and teach through inspiration? Education never takes place in that way. If a professor were to sit at home, would he be able to teach through inspiration? He would definitely have to go to the school. The Supreme Father, the Supreme Soul, too, would not teach you while sitting at home. Pictures can't be explained through inspiration. Shiv Baba has had these pictures made. He Himself then comes and says: I have had these pictures made. This one (Brahma) didn't even know this. I had them made by giving divine visions to the children. The Father is Karankaravanhar. First of all, the Father explains: I am the Father of you souls. How else would you children receive the inheritance? There definitely are temples. There is also the temple to that One's soul. All the rest are temples to living beings (embodied souls) because living beings come into birth and death, whereas God doesn't. Therefore, He has only been shown as incorporeal. The Father says: I teach you Raja Yoga. This Baba also says: I too am studying. Now, there is no question of inspiration or power in this. If someone says that there is some power, how could he receive the inheritance? That Father says: I teach you Raja Yoga. If God speaks, He surely has to enter a body. It isn't that this one has some power in him. Here, it is a question of studying. I am your Father and I also have to become your Teacher. How could I inspire everyone? I would then have to teach everyone in the same way. However, a kingdom is being established. Some have to become maids and servants and others have to become subjects. If any of you want to ask, you can ask Baba to what extent you have become worthy and whether you will become the sun or moon dynasty or maids and servants. What status would I claim if I were to shed my body at this time? If you come and study with Baba, Baba can tell you that, according to how you study. Would a student in a school ask his teacher: Masterji, with how many marks will I pass? The master would tell you approximately: You have not studied fully and so how can you claim many marks? You yourself can understand if you are not truly studying fully. Each one's heart would tell the self. The unlimited Father can also tell you. To some, Baba would say: You are a very good flower. You can come in this number in the rosary of victory, according to the present time. This is because, while moving along, some also fall. Many of Baba’s children are no longer here today because they didn't follow shrimat and are now influenced by lust and body consciousness. Some are influenced by greed or attachment. Maya is such that she even makes you steal. Maya makes you do all of that. It is said: One who steals a straw can also steal a hundred thousand. Some have bad habits. Those who have the habit of lust would run away from here. They wouldn’t be able to remain here. Some would even steal under the influence of greed. Maya makes them steal. Maya enters them. They don't let go of the first number body consciousness. Baba says: Have the faith that you are a soul. Souls are immortal and bodies are mortal. Become soul conscious. Some become soul conscious in two to three months and some don't become that in even 25 years. This one course is very long and it continues for 50 to 60 years. If you don't know the course of the study and the teacher who teaches you, what would you study? By knowing this Baba, you can also know Shiv Baba, the One to whom you have to connect your intellects in yoga. We have to become the masters of the world, and it wouldn't be a human being who makes us that. Until you have faith, you haven't understood anything. Even some of those who have been here for 20 to 25 years don't have full faith; they continue to fluctuate. One minute, they have faith and the next minute, they have doubt. Baba explains: You speak of God, the Father, and so you souls are His children. He is your Father. Everyone should write: Yes, He is our one and only God, the Father. You received your inheritance of the kingdom of heaven from the Father and He would therefore have definitely taught you Raja Yoga. Only the Father would teach you that. Until someone has firm faith in the Father, you can understand that that one is not worthy of heaven. They don't know the Father, so how could they receive the inheritance? The Father comes to give the inheritance, but some don’t take it because it is not in their fortune. Those whose intellects have faith become victorious whereas those whose intellects have doubt are led to destruction. First of all, know the Father. The incorporeal Father is the Supreme Father, the Supreme Soul. He comes and teaches you. You receive the inheritance from Him. He has to teach you Raja Yoga. There is no question of inspiration in this. It is impossible that a teacher would teach you from his home. Baba says: I come. There is also a temple built to Me. The incorporeal One cannot do anything alone and this is why He has to take a body. Otherwise, how would I teach you the knowledge of the world cycle that I have? I definitely have to enter a body. The number of children continues to grow; they continue to bring others. The sapling of those who belong to the deity religion will be planted. The sapling is planted of those who come and become Brahmins. The Father of Brahmins is Brahma and the Father of Brahma is Shiv Baba. So, there is the spiritual Father and also the physical father. You are the spiritual children of Shiv Baba and the Brahma soul is also a child of Shiv Baba. Then he is also the father of physical Brahmins. It is through him that the Brahma Kumars and Kumaris emerge. You are the children of Brahma and the grandchildren of Shiv Baba. You receive the inheritance from Him. This too is something to be understood. If any child asks Baba what status he would claim, Baba would tell him. Some bring new ones, don't even ask! Sometimes, the arrow strikes the target the first time they meet. Children write very good letters: Baba, So-and-so related such good things that I had firm faith that You have now come; I will definitely claim my full inheritance from You. When children who have never even met Baba write such letters, it is understood that they are long-lost and now-found children, that that one is a good sapling and able to understand quickly. When the Shrinagar centre opened, the new children there wrote letters: Now, there is the attraction to meet You, but there are these bondages. They even write their reasons. Only those who belong to the deity religion will come. Only those who are to go to the land of Shri Krishna will come on to the land of Brahma, not the land of brahm (brahmpuri). Some people write, "Brahm Kumaris", but that is wrong. Brahm is the element of light. How could there be a kumari of the element of light? Prajapita Brahma is well known. The Father of Humanity would exist here, would he not? The children of Prajapita Brahma, the Brahma Kumars and Kumaris, means the Shaktis of the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. You receive power from Shiv Baba, not from the soul of this one (Brahma). Therefore, you have to remember Shiv Baba. It is by doing this that we will become pure from impure. At this time, all are sinful souls. Everyone takes birth through vice. Some understand these things very quickly whereas others don't understand these things at all. This knowledge is so wonderful. God has to come to give you the fruit of your devotion. He teaches you children. He says: I am your Father, Teacher and also the Satguru. I have come to take all of you back home. Therefore, He is also called the Liberator. He will not liberate anyone through inspiration. Growth takes place in schools too. However, if you remember the old world, you forget the Father. By gradually forgetting, you will eventually go back to the old world. Then, nothing of knowledge will remain. The deal will be cancelled. That’s it! They take back whatever they gave to the Father; the intellects become completely locked. The Father is the Intellect of the Wise. He explains to you so clearly. You can tell from the eyes and features of those listening to what extent they are imbibing this and whether they will be able to claim a high status or not. Baba quickly understands whether they will understand or not and whether their intellects’ yoga is wandering somewhere. Their pulses are felt. Someone who feels the pulse of others has to be clever. The destination is very high. You will quickly understand whether someone will be able to be uplifted or not; it is numberwise. Although this one (Brahma) is Brahmaputra (big river), he will not praise himself. Saraswati is also clever. In those studies, the examinations take place here. The examination of this study will not take place now. Continue to drink the nectar of knowledge for as long as you live. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Don’t be influenced by any old habits and thereby perform wrong actions. Renounce the habit of body consciousness and complete the course of remaining soul conscious.
2. Never fluctuate in your faith. For as long as you live, you have to study and teach others.
Blessing:May you play an all-round part, the same as the Father, with your flying stage as a ruler of the globe.
Just as the Father is an all-round actor - He can be the Friend and also the Father, in the same way, those with a flying stage will be able to play their parts perfectly any time there is a need for any type of service. This is called being an all-round flying bird. They would be free from bondage to such an extent that they would go to wherever there is service to be done. They will be successful in every type of service. They are called rulers of the globe, all-round actors.
Slogan:Be faithful and keep the specialities of one another in your awareness and the gathering will then be united.
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