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Rating for Article:– BRAHMA KUMARIS MURALI - FEB- 2018 ( UID: 180210164338 )
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HINGLISH SUMMARY - 15.02.18 Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Baap aaya hai behad shristi ki seva par,nark ko Swarg banana-yah seva kalp-kalp Baap he karte hain..
Q- Sangam ki kaun si rasam sare kalp se nyari hai??
A- Sare kalp me bacche Baap ko namaste karte hain,main tum sikiladhe baccho ki seva par upasthit hua hoon to tum bacche bade thehre na.Baap kalp ke baad baccho ke paas aate hain,sari shristi ke kichde ko saaf kar nark ko Swarg banane.Baap jaisa nirakari,nirahankari aur koi ho nahi sakta.Baap apne thake huye baccho ke paon dabate hain..
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Deha-abhimaan chhod apne se bado ko aagey karna hai.Baap samaan nirahankari banna hai.
2)Charity begins at home...pehle apne grihast byavahar ko kamal phool samaan banana hai.Ghar me rehte huye buddhi se purani duniya ka sanyas karna hai.
Vardan:- Tino kaalo,tino loko ki knowledge ko dharan kar buddhivan banne wale Bighn-Binashak bhava.
Slogan:- Apne chalan aur chehre se satyata ki sabhyata ka anubhav karana he shrestta hai.
English Summary -15-02-2018-
Sweet children, the Father has come to serve the unlimited world and to make hell into heaven.Only the Father does this service every cycle.
Question:Which system of the confluence age is completely different from the rest of the cycle?
Answer:Throughout the whole cycle, children say “Namaste” to the Father. I am now on service of you long-lost-and-now-found, beloved children and so you children are senior to Me. The Father comes to the children after a cycle to cleanse the whole world of all the rubbish and to change hell into heaven. No one else can be incorporeal and egoless in the same way as the Father. The Father massages the feet of His tired children.
Song:Awaken o brides! Awaken! The new age is about to come. Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Renounce body consciousness and keep your elders in front of you. Become egoless like the Father.
2. Charity begins at home. First of all, make your family like a lotus. While living at home, forget the old world from your intellect.
Blessing:May you be a destroyer of obstacles who imbibes the knowledge of the three aspects of time and the three worlds and thereby becomes wise.
Those who are knowledge-full of the three aspects of time and the three worlds are said to be wise, that is, they are called Ganesh (God of Knowledge). “Ganesh” means a destroyer of obstacles. Such souls cannot become obstacles in any situation. Even if someone becomes an obstacle, you become a destroyer of obstacles and, by doing so, your obstacles will finish. Souls who are destroyers of obstacles transform the environment and the atmosphere, they do not just speak about it.
Slogan:To give the experience of truth and manners through your behaviour and face is greatness.
HINDI DETAIL MURALI
15/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“
''मीठे बच्चे - बाप आया है बेहद सृष्टि की सेवा पर, नर्क को स्वर्ग बनाना - यह सेवा कल्प-कल्प बाप ही करते हैं''
प्रश्न:संगम की कौन सी रसम सारे कल्प से न्यारी है?
उत्तर:सारे कल्प में बच्चे बाप को नमस्ते करते हैं, मैं तुम सिकीलधे बच्चों की सेवा पर उपस्थित हुआ हूँ तो तुम बच्चे बड़े ठहरे ना। बाप कल्प के बाद बच्चों के पास आते हैं, सारी सृष्टि के किचड़े को साफ कर नर्क को स्वर्ग बनाने। बाप जैसा निराकारी, निरहंकारी और कोई हो नहीं सकता। बाप अपने थके हुए बच्चों के पांव दबाते हैं।
ओम् शान्ति।
आने से ही पहले-पहले बाप बच्चों को नमस्ते करें या बच्चे बाप को नमस्ते करें? (बच्चे बाप को नमस्ते करें) नहीं, पहले बाप को नमस्ते करना पड़े। संगमयुग की रसम-रिवाज ही सबसे न्यारी है। बाप खुद कहते हैं मैं तुम सबका बाप तुम्हारी सर्विस में आकर उपस्थित हुआ हूँ। तो जरूर बच्चे बड़े ठहरे ना। दुनिया में तो बच्चे बाप को नमस्ते करते हैं। यहाँ बाप नमस्ते करते हैं बच्चों को। गाया भी हुआ है निराकारी, निरहंकारी तो वह भी दिखलाना पड़े ना। वह तो सन्यासियों के चरणों में झुकते हैं। चरणों को चूमते हैं। समझते कुछ भी नहीं। बाप आते ही हैं बच्चों से मिलने - कल्प के बाद। बहुत सिकीलधे बच्चे हैं, इसलिए कहते हैं - मीठे बच्चे थके हो। द्रोपदी के भी पांव दबाये हैं ना। तो सर्वेन्ट हुआ ना। वन्दे मातरम् किसने उच्चारा है? बाप ने। बच्चे समझते हैं बाप आया हुआ है सारी सृष्टि की बेहद सेवा पर। सृष्टि पर कितना किचड़ा है। यह है ही नर्क तो बाप को आना पड़ता है, नर्क को स्वर्ग बनाने - बहुत उकीर (प्यार-उमंग) से आते हैं। जानते हैं मुझे बच्चों की सेवा में आना है। कल्प-कल्प सेवा पर उपस्थित होना है। जब वह खुद आते हैं तब बच्चे समझते हैं बाप हमारी सेवा में उपस्थित हुए हैं। यहाँ बैठे सभी की सेवा हो जाती है। ऐसे नहीं सबके पास जाता होगा। सर्वव्यापी का अर्थ भी नहीं जानते। सारी सृष्टि का कल्याणकारी दाता तो एक है ना। उनकी भेंट में मनुष्य कोई सेवा कर न सकें। उनकी है बेहद की सेवा।
गीत:-जाग सजनियां जाग...
ओम् शान्ति। देखो कितना अच्छा गीत है। नव युग और पुराना युग.... युगों पर भी समझाना चाहिए। युग भारतवासियों के लिए ही हैं। भारतवासियों से वह सुनते हैं कि सतयुग, त्रेता होकर गये हैं क्योंकि वह तो आते हैं द्वापर में। तो औरों से सुनते हैं प्राचीन खण्ड भारत था, उसमें देवी-देवतायें राज्य करते थे। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, अभी नहीं है। गाया जाता है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना कराते हैं। करते नहीं हैं, कराते हैं। तो यह है उनकी महिमा। वास्तव में उनको पहले रचना रचनी है सूक्ष्मवतन की क्योंकि क्रियेटर है। गीता के लिए तो सब कहते हैं सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमद् भगवत गीता। परन्तु भगवान का नाम नहीं जानते, कौन सा भगवान? व्यास आदि शास्त्र बनाने वालों ने कृष्ण का नाम डाल दिया है। गीता तो देवी-देवता धर्म की माई बाप है। बाकी सब बाद में आये। तो यह हुई प्राचीन। अच्छा भगवान ने गीता कब सुनाई? जरूर सभी धर्म होने चाहिए। सभी धर्मों के लिए वास्तव में एक गीता है मुख्य। सब धर्म वालों को मानना चाहिए। परन्तु मानते कहाँ हैं। मुसलमान, क्रिश्चियन आदि बड़े कट्टर हैं। वह अपने धर्म शास्त्र को ही मानते हैं। जब मालूम पड़ता है कि गीता प्राचीन है तब मंगाते हैं। परन्तु यह तो जानते नहीं कि भगवान ने गीता कब सुनाई? चिन्मयानंद कहते हैं 3500 वर्ष बिफोर क्राइस्ट, गीता के भगवान ने गीता सुनाई। अब 3500 वर्ष पहले तो यह धर्म थे ही नहीं। फिर सभी धर्मों का वह शास्त्र कैसे हो सकता। इस समय तो सभी धर्म हैं। सभी धर्मों की गीता द्वारा सद्गति करने बाप आया हुआ है। गीता बाप की उच्चारी हुई है। उसमें बाप के बदले बच्चे का नाम डाल मुश्किलात कर दी है। इससे सिद्ध नहीं होता कि शिवरात्रि कब मनाये? शिव जयन्ती और कृष्ण जयन्ती लगभग हो जाती। शिव जयन्ती समाप्त होती और कृष्ण का जन्म हो जाता। कभी भी श्रीकृष्ण ज्ञान यज्ञ नहीं गाया जाता। रूद्र ज्ञान यज्ञ गाया जाता है, उनसे ही विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई। सो तो बरोबर देख रहे हो। आदि सनातन देवी-देवता धर्म की फिर से स्थापना हो रही है। फिर और धर्म रहेंगे नहीं। कृष्ण भी तब आये जबकि सभी धर्म न हो। यह भी समझ की बात है ना। सतयुग में सूर्यवंशी देवी-देवताओं का राज्य था तो जरूर थोड़े मनुष्य होंगे। बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम में रहती हैं। भगवान से तो सबको मिलना होता है ना। बाप को सलाम तो करेंगे ना। बाप भी फिर से आकर सलाम करते हैं बच्चों को। बच्चे फिर बाप को करते हैं। इस समय बाप चैतन्य में आया हुआ है। फिर वहाँ सभी आत्मायें बाप से मिलेगी जरूर। सबको भगवान से मिलना जरूर है। कहाँ मिले? यहाँ तो मिल न सकें क्योंकि कोटों में कोई, कोई में भी कोई ही आयेंगे। तो सब भक्त कब और कहाँ मिलेंगे? जहाँ से भगवान से बिछुड़े हैं, वहाँ ही जाकर मिलेंगे। भगवान का निवास स्थान है ही परमधाम। बाप कहते हैं मैं सभी बच्चों को परमधाम ले जाता हूँ - दु:ख से लिबरेट कर। यह काम उनका ही है। अभी तो देखो अनेक भाषायें हैं। अगर संस्कृत भाषा शुरू करें तो इतने यह सब कैसे समझें। आजकल गीता संस्कृत में कण्ठ करा देते हैं। बहुत अच्छी गीता गाते हैं संस्कृत में। अब अहिल्यायें, कुब्जायें, अबलायें... संस्कृत कहाँ जानती। हिन्दी भाषा तो कॉमन है। हिन्दी का प्रचार जास्ती है। भगवान भी हिन्दी में सुना रहे हैं। वह तो गीता के अध्याय बतलाते हैं, इनके अध्याय कैसे बना सकेंगे। यह तो शुरू से लेकर मुरली चलती रहती है। बाप को आना ही है पतित सृष्टि को पावन बनाने। हेविनली गॉड फादर तो जरूर स्वर्ग ही क्रियेट करेगा। नर्क थोड़ेही रचेगा, नर्क की स्थापना रावण करते हैं। स्वर्ग की स्थापना बाप करते, उनका राइट नाम शिव ही है। शिव अर्थात् बिन्दी। आत्मा ही बिन्दी है ना। स्टार क्या है? कितना छोटा है? ऐसे थोड़ेही आत्मायें ऊपर जायेंगी तो बड़ी हो जायेंगी। यह तो भ्रकुटी के बीच में निशानी दिखाते हैं। कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा। तो जरूर भ्रकुटी में इतनी छोटी आत्मा ही रह सकेगी। तो जैसे आत्मा है वैसे परमात्मा। परन्तु वन्डर यह है जो हर एक इतनी छोटी आत्मा में सभी जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। जो कभी घिसता नहीं है, फार एवर चलता रहेगा। कितनी गुह्य बातें हैं। आगे कब यह बातें सुनाई थी क्या? आगे तो कहते थे लिंग रूप है, अंगुष्ठाकार है। पहले ही अगर यह बातें सुनाते तो तुम समझ नहीं सकते। अभी बुद्धि में बैठता है। स्टार तो सब कहेंगे। साक्षात्कार भी स्टार का होता है। तुमको साक्षात्कार किस चीज़ का चाहिए? नई दुनिया का। नई दुनिया स्वर्ग रचते हैं बाप। वही सबको भेज देंगे। खुद एक ही बार आते हैं। अब मनुष्य मांगते हैं शान्ति क्योंकि सभी शान्ति में ही जाने वाले हैं। कहते हैं सुख काग विष्टा समान है। गीता में तो है राजयोग.... जिससे राजाओं का राजा बनते हैं। जो कहते हैं सुख काग विष्टा समान है तो उनको राजाई कैसे मिले। यह तो प्रवृत्ति मार्ग की बात है। सन्यासी तो गीता को भी उठा न सके। बाप कहते हैं सन्यास दो प्रकार के हैं। यूँ तो सन्यासियों में भी बहुत प्रकार के हैं। यहाँ तो एक ही प्रकार का सन्यास है। तुम बच्चे पुरानी दुनिया का सन्यास करते हो। गृहस्थ व्यवहार में रहते, कमल फूल समान रहना है। कैसे रहते हैं, सो इन्हों से पूछो। बहुत हैं जो ऐसे रहते हैं। सन्यासियों का यह काम नहीं है। नहीं तो खुद क्यों घरबार छोड़ते। चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले-पहले तो स्त्री को सिखलायें। शिवबाबा भी कहते हैं पहले-पहले मैं अपनी स्त्री (साकार ब्रह्मा) को समझाता हूँ ना। चैरिटी बिगन्स एट होम। शिवबाबा का यह चैतन्य होम है। पहले-पहले यह स्त्री सीखती फिर उनसे एडाप्टेड चिल्ड्रेन नम्बरवार सीख रहे हैं। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। सभी शास्त्रों में मुख्य शास्त्र है गीता। परन्तु गीता शास्त्र से कोई प्रेरणा नहीं करते हैं। वह तो यहाँ आते हैं, यादगार भी हैं। शिव के अनेक मन्दिर हैं। खुद कहते हैं मैं साधारण ब्रह्मा तन में आता हूँ। यह अपने जन्मों को नहीं जानते। एक की बात तो है नहीं। सभी ब्रह्मा मुख वंशावली बैठे हैं। सिर्फ इस एक को ही बाप समझाये, परन्तु नहीं। ब्रह्मा मुख द्वारा तुम ब्राह्मण रचे गये सो तो ब्राह्मणों को ही समझाते हैं। यज्ञ हमेशा ब्राह्मणों द्वारा ही चलता है। उन गीता सुनाने वालों के पास ब्राह्मण हैं नहीं, इसलिए वह यज्ञ भी नहीं ठहरा। यह तो बड़ा भारी यज्ञ है। बेहद के बाप का बेहद का यज्ञ है। कब से डेगियां चढ़ती आई हैं। अभी तक भण्डारा चलता ही रहता है। समाप्त कब होगा? जब सारी राजधानी स्थापन हो जायेगी। बाप कहते हैं तुमको वापिस ले जायेंगे। फिर नम्बरवार पार्ट बजाने भेज देंगे। ऐसे और तो कोई कह न सके कि हम तुम्हारा पण्डा हूँ, तुमको ले जाऊंगा। जो भी पतित मनुष्य हैं, सबको पावन बनाकर ले जाते हैं। फिर अपने-अपने धर्म स्थापन करने समय पावन आत्मायें आना शुरू करती हैं। अनेक धर्म अभी हैं। बाकी एक धर्म नहीं है, फिर आधाकल्प कोई शास्त्र नहीं रहता। तो गीता सब धर्मो की, सब शास्त्रों की शिरोमणी है क्योंकि इससे ही सबकी गति सद्गति होती है। तो समझाना चाहिए - सद्गति है भारतवासियों की, बाकी गति तो सबकी होती है। भारतवासियों में भी ज्ञान वह लेते हैं जो पहले-पहले परमात्मा से अलग हुए हैं, वही पहले ज्ञान लेंगे। वही फिर पहले-पहले जाना शुरू करेंगे। नम्बरवार फिर सबको आना है। सतो रजो तमो से तो सबको पार करना है। अभी कल्प की आयु पूरी हुई है। सभी आत्मायें हाजिर हैं। बाप भी आ गया है। हरेक को अपना पार्ट बजाना है। नाटक में सभी एक्टर्स इकट्ठे तो नहीं आते, अपने-अपने टाइम पर आते हैं। बाप ने समझाया है नम्बरवार कैसे आते हैं। वर्णों का राज़ भी समझाया है। चोटी तो ब्राह्मणों की है। परन्तु ब्राह्मणों को भी रचने वाला कौन है? शूद्र तो नहीं रचेंगे। चोटी के ऊपर फिर ब्राह्मणों का बाप ब्रह्मा। ब्रह्मा का बाप फिर है शिवबाबा। तो तुम हो शिव वंशी ब्रह्मा मुख वंशावली। तुम ब्राह्मण फिर सो देवता बनेंगे। वर्णों का हिसाब समझाना है। बच्चों को राय भी दी जाती है। यह तो जानते हैं सब एक जैसे होशियार तो नहीं हैं। कोई नये के आगे विद्वान पण्डित आदि डिबेट करेंगे तो वह समझा नहीं सकेंगे। तो कह देना चाहिए कि मैं नई हूँ। आप फलाने टाइम पर आना फिर हमारे से बड़े आपको आकर समझायेंगे, मेरे से तीखे और हैं। क्लास में नम्बरवार होते हैं ना। देह-अभिमान में नहीं आना चाहिए। नहीं तो आबरू (इज्जत) चली जाती है। कहते हैं बी.के. तो पूरा समझा नहीं सकते, इसलिए देह-अभिमान छोड़ रेफर करना चाहिए और तरफ। बाबा भी कहते हैं ना हम ऊपर से पूछेंगे। पण्डित लोग तो बड़ा माथा खराब करेंगे। तो उनको कहना चाहिए - मैं सीख रही हूँ, माफ करिये। आप कल आना तो हमारे बड़े भाई-बहिनें आपको समझायेंगे। महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे तो हैं ना। किन्हों की शेर पर सवारी भी है। शेर सबसे तीखा होता है। जंगल में अकेला रहता है। हाथी हमेशा झुण्ड में रहता है। अकेला होगा तो कोई मार भी दे। शेर तीखा होता है। शक्तियों की भी शेर पर सवारी है।
तुम्हारी मिशन भी बाहर निकलनी है। परन्तु बाबा देखते हैं पान का बीड़ा उठाने वाला कौन है? प्राचीन देवता धर्म किसने स्थापन किया - वह सिद्ध कर बताना है। बहुत तो गॉड गॉडेज भी कहते हैं। वह समझते हैं गॉड-गॉडेज अलग हैं, ईश्वर अलग है। लक्ष्मी-नारायण को भगवान भगवती कहते हैं। परन्तु लॉ के विरुद्ध है। वह तो हैं देवी-देवतायें। अगर लक्ष्मी-नारायण को भगवान भगवती कहते तो ब्रह्मा विष्णु शंकर को पहले भगवान कहना पड़े। समझ भी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान छोड़ अपने से बड़ों को आगे करना है। बाप समान निरहंकारी बनना है।
2) चैरिटी बिगेन्स एट होम... पहले अपने गृहस्थ व्यवहार को कमल फूल समान बनाना है। घर में रहते हुए बुद्धि से पुरानी दुनिया का सन्यास करना है।
वरदान:तीनों कालों, तीनों लोकों की नॉलेज को धारण कर बुद्धिवान बनने वाले विघ्न-विनाशक भव
जो तीनों कालों और तीनों लोकों के नॉलेजफुल हैं उन्हें ही बुद्धिवान अर्थात् गणेश कहा जाता है। गणेश अर्थात् विघ्न-विनाशक। वह किसी भी परिस्थिति में विघ्न रूप नहीं बन सकते। यदि कोई विघ्न रूप बनें भी तो आप विघ्न-विनाशक बन जाओ, इससे विघ्न खत्म हो जायेंगे। विघ्न-विनाशक आत्मायें वातावरण, वायुमण्डल को भी परिवर्तन कर देती हैं, उसका वर्णन नहीं करती।
स्लोगन:अपने चलन और चेहरे से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराना ही श्रेष्ठता है।
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