Published by – Bk Ganapati
Category - Philosophy & Subcategory - Story
Summary - Nastik to astik,
Atheist to Theis
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-07-14 01:06:13
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
A |
Article Rating
|
Participate in Rating,
See Result
|
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- ) |
B |
Quiz(
Create, Edit, Delete
) |
Participate in Quiz,
See Result
|
Created/ Edited Time:- 25-05-2018 20:48:20 |
C |
Survey( Create, Edit, Delete) |
Participate in Survey, See Result |
Created Time:- |
D |
|
|
|
Page No |
Photo |
Page Name |
Count of Characters |
Date of Last Creation/Edit |
1 |
|
Medicine Shop keeper |
52754 |
2018-05-25 20:48:20 |
2 |
|
Sant Maluka Das |
34083 |
2018-05-25 20:48:20 |
Rating for Article:– Non-believer become beleiver ( UID: 180522111922 )
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN |
Name Parameters For Grading |
Achievement (Score) |
Minimum Limit for A grade |
Calculation of Mark |
1 |
Count of Raters ( Auto Calculated ) |
0 |
5 |
0 |
2 |
Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) |
86843 |
2500 |
1 |
3 |
Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) |
2375 |
15 |
0 |
4 |
Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
40% |
0 |
5 |
Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
60% |
0 |
6 |
Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
50% |
0 |
7 |
Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
55% |
0 |
|
Grand Total Score & Article Grade |
|
|
---
|
SI |
Score Rated by Viewers |
Rating given by (0) Users |
(a) |
Topic Information:- |
NAN% |
(b) |
Writing Skill:- |
NAN% |
(c) |
Grammer:- |
NAN% |
(d) |
Vocabulary Strength:- |
NAN% |
(e) |
Choice of Photo:- |
NAN% |
(f) |
Choice of Topic Heading:- |
NAN% |
(g) |
Keyword or summary:- |
NAN% |
(h) |
Material copied - Originality:- |
NAN% |
|
Your Total Rating & % |
NAN% |
Details ( Page:- Medicine Shop keeper )
?नास्तिक बना आस्तिक?
.हरिराम नामक आदमी शहर के एक छोटी सी एक मेडिकल दुकान का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई कहाँ रखी है।
.वह इस पेशे को बड़े ही शौक से बहुत ही निष्ठा से करता था। दिन-ब-दिन उसके दुकान में सदैव भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों को सावधानी और इत्मीनान होकर देता था।
.उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था वह एक नास्तिक था,
.खाली वक्त मिलने पर वह अपने दोस्तों के संग मिलकर घर या दुकान में ताश खेलता था।
.एक दिन उसके दोस्त उसका हालचाल पूछने दुकान में आए और अचानक बहुत जोर से बारिश होने लगी, बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था।
.बस फिर क्या, सब दोस्त मिलकर ताश खेलने लगे।
.तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।
.हरिराम ताश खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।
.ठंड़ से ठिठुरते हुए उस लड़के ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए.
.बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि मेरी माँ बच जाएगी। यह दवाई उनके लिए बहुत जरूरी है।
.इस बीच लाइट भी चली गई और सब दोस्त जाने लगे। बारिश भी थोड़ा थम चुकी थी,
.उस लड़के की पुकार सुनकर ताश खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई लेने को उठा,
.ताश के खेल को पूरा न कर पाने के कारण अनमने से अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की उस शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।
.उस लड़के ने दवाई का दाम पूछा और उचित दाम देकर बाकी के पैसे भी अपनी जेब में रख लिया।
.लड़का खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया। वह आज दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था।
.थोड़ी देर बाद लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई की शीशी समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा है,*
.जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था, और ताश खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि ताश की बाजी के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा।*
.अब उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया।*
.उस लड़के के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी।
.लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
.एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब क्या किया जाए ?
.उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार माँ को बचाया जाए ?
.सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था।
.घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने जिद्द करके परमपिता परमात्मा शिव की तस्वीर दुकान के उदघाटन के वक्त लगाई थी,
.
पिता से हुई बहस में पिता जी की कही एक बात उसे याद आयी कि जीवन मे भगवान को एक बार आजमा के जरूर देखना वह है या नही पता पड़ जायेगा।
उन्होंने कहा था कि भगवान सर्वशक्तिमान है और वह सर्वज्ञ अर्थात सब कुछ जानने वाला है कभी कोई बड़ी संकट आये ,जिसका हल आपसे न हो पाए, ऐसा असम्भव कार्य परमात्मा को सौप कर देखना।
हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आज़माना चाहा।
उसने कई बार अपने पिता को परमपिता परमात्मा की तस्वीर के सामने बैठकर ,कई बार मैडिटेशन के दौरान बात करते हुए देखा था।
उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे परमात्मा शिवलिंग की तस्वीर को देखा और सामने बैठकर अपनी दुविधा सुनाकर सौपने लगा तू सच मे है तो वह दवाई उसके माँ तक पहुचने न पाए।
थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। हरिराम को पसीने छूटने लगे। वह बहुत अधीर हो उठा।
पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए
लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी.. बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुँच भी गया था,
बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी ? लड़के ने उदास होकर पूछा।
हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं ? हरिराम ने राहत की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई !
पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं है, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।
.
हरिराम को उस बिचारे पर दया आई। कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना। लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।
.
अब हरिराम की जान में जान आई। भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया।
.
अपने भीतर हुए इस परिवर्तन को वह पहले अपने घरवालों को सुनाना चाहता था।
*जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ। उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह कि प्यास रही ,ताकि परमात्मा से फिर से कुछ नया वार्तालाप कर सकूं।
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.