Published by – DILLIP KUMAR BARIK
on behalf of Dillip Tiens
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Bk Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta.
Month -November 2017 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-04-04 01:00:35
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
Rating for Article:– BRAHMA KUMARIS MURALI - NOVEMBER 2017 ( UID: 171101145207 )
* Give score to this article. Writer has requested to give score/ rating to this article.( Select rating from below ).
* Please give rate to all queries & submit to see final grand total result.
SN |
Name Parameters For Grading |
Achievement (Score) |
Minimum Limit for A grade |
Calculation of Mark |
1 |
Count of Raters ( Auto Calculated ) |
0 |
5 |
0 |
2 |
Total Count of Characters in whole Articlein all pages.( Auto Calculated ) |
2663475 |
2500 |
1 |
3 |
Count of Days from Article published date or, Last Edited date ( Auto Calculated ) |
2560 |
15 |
0 |
4 |
Article informative score ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
40% |
0 |
5 |
Total % secured for Originality of Writings for this Article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
60% |
0 |
6 |
Total Score of Article heading suitability to the details description in Pages. ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
50% |
0 |
7 |
Grand Total Score secured on over all article ( Calculated from Rating score Table ) |
NAN% |
55% |
0 |
|
Grand Total Score & Article Grade |
|
|
---
|
SI |
Score Rated by Viewers |
Rating given by (0) Users |
(a) |
Topic Information:- |
NAN% |
(b) |
Writing Skill:- |
NAN% |
(c) |
Grammer:- |
NAN% |
(d) |
Vocabulary Strength:- |
NAN% |
(e) |
Choice of Photo:- |
NAN% |
(f) |
Choice of Topic Heading:- |
NAN% |
(g) |
Keyword or summary:- |
NAN% |
(h) |
Material copied - Originality:- |
NAN% |
|
Your Total Rating & % |
NAN% |
Details ( Page:- Murali 01-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 01.11.17 Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - Shrimat par chal swachh suddh ban dharana kar fir yuktiyukt seva karni hai, ahankar me nahi aana hai, suddh ghamand me rehna hai.
Ques- Kis ek baat ke kaaran Baap ko itni badi knowledge deni padti hai?
Ans- Gita ke rachayita nirakar Parampita Parmatma ko siddh karne ke liye Baap tumhe itni badi knowledge dete hain. Sabse badi bhool yahi hai jo Gita me patit-pawan Baap ki jagah Sri Krishna ka naam dala hai, isi Baap ko siddh karna hai. Iske liye bhinn-bhinn yuktiyan rachni hai. Baap ki mahima aur Sri Krishna ki mahima alag-alag batani hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Har kaam bahut yuktiyukt karna hai. Harshitmukh, achal, sthir aur gyan ki masti me rehkar Baap ka show karna hai._
2)Gyan ki nayi aur nirali baatein siddh karni hai.
Vardaan:-- Manjil ko saamne rakh Brahma Baap ko follow karte huye first number lene wale Tibra Purusharthi bhava.
Slogan:-- Jo baat avastha ko bigadne wali hai - usey soonte huye bhi nahi suno.
HINDI DETAIL MURALI
01/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“
मीठे बच्चे -
श्रीमत पर चल स्वच्छ शुद्ध बन धारणा कर फिर युक्तियुक्त सेवा करनी है,
अहंकार में नहीं आना है,
शुद्ध घमण्ड में रहना है”
प्रश्न:
किस एक बात के कारण बाप को इतनी बड़ी नॉलेज देनी पड़ती है?
उत्तर:
गीता के रचयिता निराकार परमपिता परमात्मा को सिद्ध करने के लिए बाप तुम्हें इतनी बड़ी नॉलेज देते हैं। सबसे बड़ी भूल यही है जो गीता में पतित-
पावन बाप की जगह श्रीकृष्ण का नाम डाला है,
इसी बात को सिद्ध करना है। इसके लिए भिन्न-
भिन्न युक्तियां रचनी है। बाप की माहिमा और श्रीकृष्ण की महिमा अलग-
अलग बतानी है।
गीत:- मरना तेरी गली में ..... ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना,
कहते हैं आये हैं तेरे दर पर जीते जी मरने के लिए। किसके दर पर?
फिर भी यही बात निकलती कि अगर गीता का भगवान कृष्ण को कहें तो यह सब बातें हो न सकें। वह है सतयुग का प्रिन्स। गीता कृष्ण ने नहीं सुनाई। गीता परमपिता परमात्मा ने सुनाई। सारा मदार इस बात पर है। एक बात को समझ जाएं तो भारत के जो इतने शास्त्र हैं -
सब झूठे सिद्ध हो जाएं। यह हैं सब भक्तिमार्ग के,
इनमें कर्मकान्ड तीर्थ यात्रा,
जप-
तप आदि की कहानियां लिखी हुई हैं। भक्ति मार्ग में तुम इतनी मेहनत करते आये हो,
वह तो दरकार नहीं। यह तो सेकेण्ड की बात है। सिर्फ यह एक बात सिद्ध करने के लिए भी बाप को कितनी नॉलेज देनी पड़ती है। प्राचीन नॉलेज जो भगवान ने ही दी है,
वही नॉलेज है। सारी बात गीता पर है। परमपिता परमात्मा ने ही आकर देवी-
देवता धर्म की स्थापना अर्थ सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाया है,
जो अब प्राय:
लोप है। मनुष्य समझते हैं कृष्ण फिर आकर गीता सुनायेगा। परन्तु अब तुमको यह अच्छी तरह सिद्ध करना है कि गीता परमपिता परमात्मा ने,
जो ज्ञान का सागर है,
उसने सुनाई है। कृष्ण की महिमा और परमपिता परमात्मा की महिमा अलग-
अलग है। वह है सतयुग का प्रिन्स,
जिसने सहज राजयोग से राज्य-
भाग्य पाया है। पढ़ते समय नाम रूप और है फिर जब राज्य पाया है तब और है। पहले पतित है फिर पावन बना है,
यह सिद्ध कर बताना है। पतित-
पावन कृष्ण को कभी नहीं कहेंगे। पतित-
पावन है ही एक बाप। अब वही श्रीकृष्ण की आत्मा जो काली अर्थात् श्याम बन गई है। अब फिर से पतित-
पावन द्वारा राजयोग सीख भविष्य पावन दुनिया का प्रिन्स बन रही है। यह सिद्ध कर समझाने में युक्तियां चाहिए। फारेनर्स को सिद्धकर बताना है। नम्बरवन है ही गीता सर्वशास्त्रमई श्रीमत भगवत गीता माता। अब माता को जन्म किसने दिया?
बाप ही माता को एडाप्ट करते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कि क्राइस्ट ने बाइबिल को एडाप्ट किया। क्राइस्ट ने जो शिक्षा दी उनका बाइबिल बनाकर पढ़ते रहते हैं। अब गीता की शिक्षा किसने दी जो पुस्तक बनाकर पढ़ते रहते हैं। यह किसको पता नहीं और सबके शास्त्रों का पता है। यह जो सहज राजयोग की शिक्षा है वह किसने दी,
यह सिद्ध करना है। दुनिया तो दिन-
प्रतिदिन तमोप्रधान होती जाती है। यह सब ख्यालात स्वच्छ बुद्धि में ही बैठ सकते हैं। जो श्रीमत पर नहीं चलते उनको धारणा भी नहीं हो सकती। श्रीमत कहेगी तुम बिल्कुल समझा नहीं सकते हो। बाबा फट से कह देंगे -
मुख्य बात यह है कि गीता का भगवान परमपिता परमात्मा है। वही पतित-
पावन है। मनुष्य तो सर्वव्यापी कह देते हैं वा ब्रह्म तत्च कह देते। जो आता है वह कह देते हैं -
बिगर समझ। भूल सारी गीता से निकली है,
जो गीता का रचयिता कृष्ण को कह दिया है। तो समझाने के लिए युक्तियां रचनी पड़े। गुप्ता जी को भी कहते थे कि बनारस में यह सिद्धकर समझाओ कि गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं।
अब देहली में सम्मेलन होता है। सब रिलीज़स मनुष्यों को बुला रहे हैं क्या उपाय करें जो शान्ति हो जाए?
अब शान्ति स्थापन करना इनके हाथ में तो है नहीं। कहते भी हैं पतित-
पावन आओ। फिर यह पतित कैसे शान्ति स्थापन कर सकते?
जबकि बुलाते रहते हैं। परन्तु पतित-
पावन को जानते नहीं। कह देते हैं रघुपति राघो राजाराम। वह तो है नहीं। झूठा बुलावा करते हैं,
जानते कुछ भी नहीं। अब यह कौन जाकर बताये। बड़े अच्छे बच्चे चाहिए। ऐसे बहुत हैं जो अपने को बहुत ज्ञानी समझते हैं। परन्तु है कुछ भी नहीं। मिसाल है चूहे को मिली हल्दी की गांठ..
नम्बरवार हैं। इसमें बड़ी युक्ति चाहिए,
जिससे सिद्ध हो जाए -
गीता भगवान ने रची है। वह कह देते कोई भी हो,
हैं तो सब भगवान। बाबा कहते हैं -
भगवानुवाच,
मैं उस कृष्ण की आत्मा,
जो 84
जन्म पूरे कर अन्तिम जन्म में है,
उनको एडाप्ट कर ब्रह्मा बनाए उन द्वारा गीता ज्ञान देता हूँ। वह ब्रह्मा फिर इस सहज राजयोग से फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का बन जाता है। यह समझानी और कोई की बुद्धि में नहीं है। तुम बच्चों में भी यथार्थ रीति अभी वह शुद्ध घमण्ड आया नहीं है। इतनी प्रदर्शनी आदि करते हैं -
अजुन सिद्ध नहीं करते। पहले यह भूल सिद्धकर बतानी है कि श्रीमत भगवत गीता है सब शास्त्रों की माई बाप। उसका रचयिता कौन था?
जैसे क्राइस्ट ने बाइबिल को जन्म दिया। वह है क्रिश्चियन धर्म का शास्त्र। अच्छा बाइबिल का बाप कौन?
क्राइस्ट। उनको माई बाप नहीं कहेंगे। मदर की तो वहाँ बात नहीं। यह तो यहाँ माता पिता है। क्रिश्चियन ने रीस की है कृष्ण के धर्म से। वह क्राइस्ट को मानने वाले हैं। अब गीता किसने सुनाई?
उससे कौन सा धर्म स्थापन हुआ?
यह कोई नहीं जानते। कभी नहीं कहते कि पतित-
पावन परमपिता परमात्मा ने यज्ञ रचा। गोले के चित्र से समझ सकेंगे कि बरोबर परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। राधे कृष्ण तो सतयुग में बैठे हैं,
उन्होंने अपने को ज्ञान नहीं दिया। ज्ञान देने वाला दूसरा चाहिए। कोई ने तो उसको पास कराया होगा ना। यह राजाई प्राप्त करने का ज्ञान किसने दिया?
किस्मत आपेही तो नहीं बनती। किस्मत बनाने वाला बाप या टीचर होता है। गुरू तो गति देते,
परन्तु गति सद्गति का भी कोई अर्थ नहीं समझते। सद्गति प्रवृत्ति मार्ग वालों की होती है। गति माना सब बाप के पास जाते हैं। यह बातें कोई समझते नहीं हैं। वह तो भक्ति के बड़े-
बड़े दुकान खोल बैठे हैं। सच्चे ज्ञान का एक भी दुकान नहीं। सब हैं भक्ति के। बाप कहते हैं यह वेद शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। यह जप तप आदि करने से मैं नहीं मिलता हूँ। मैं तो बच्चों को ज्ञान देकर पावन बनाता हूँ। सारे सृष्टि की सद्गति करता हूँ। वाया गति में जाकर सद्गति में आना है। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे,
यह ड्रामा बना हुआ है। जो कल्प पहले तुमको सिखाया था,
जो चित्र बनाये थे,
वह अब भी बनवा रहे हैं। यह जो बड़ी भूल है,
वह सिद्ध हो जाए फिर युक्ति से चित्र बनायेंगे। कहते हैं 3
धर्मो की टांगों पर सृष्टि खड़ी है। एक देवता धर्म की टांग टूटी हुई है,
इसलिए हिलती रहती है। पहले एक टांग पर सृष्टि बड़ी फर्स्टक्लास रहती। एक ही धर्म था,
जिसको अद्वैत राज्य कहा जाता है। फिर वह एक टांग गुम हो 3
टांगे निकली हैं,
जिसमें कुछ भी ताकत नहीं रहती। आपस में ही लड़ाई झगड़ा चलता रहता है। धनी को जानते ही नहीं। निधनके बन पड़े हैं। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में भी मुख्य यह बात समझानी है कि गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं,
परमपिता परमात्मा है,
जिसका बर्थ प्लेस भारत है। कृष्ण है साकार,
वह है निराकार। उनकी महिमा अलग है। ऐसे युक्ति से कार्टून बनाना चाहिए जो सिद्ध हो जाए कि गीता परमात्मा ने गाई और कृष्ण को ऐसा बनाया। कहते हैं ब्रह्मा का दिन ज्ञान और ब्रह्मा की रात भक्ति। अभी है रात। सतयुग स्थापन करने वाला कौन?
ब्रह्मा आया कहाँ से?
सूक्ष्मवतन में भी कहाँ से आया?
प्रजापिता ब्रह्मा को परमात्मा एडाप्ट करते हैं। परमपिता परमात्मा ही पहले-
पहले सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं। वहाँ ब्रह्मा दिखाते हैं। वहाँ प्रजापिता होता नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ से आया?
यह बातें कोई समझ न सकें। कृष्ण के अन्तिम जन्म में इनको परमपिता परमात्मा ने अपना रथ बनाया है। यह किसकी बुद्धि में नहीं है। यह बड़ा भारी क्लास है। टीचर जानते हैं यह स्टूडेण्ट कौन सा है?
तो क्या बाप नहीं समझते होंगे?
यह बेहद के बाप का बेहद का क्लास है। यहाँ की बात ही निराली है। शास्त्रों में प्रलय दिखाकर रोला कर दिया है।
तुम जानते हो कृष्ण ने गीता नहीं सुनाई। उसने तो गीता का ज्ञान सुनकर राज्य पद पाया है। तुमको सिद्ध कर बताना है -
गीता का भगवान निराकार शिव है,
उनके गुण यह हैं। इस भूल के कारण ही भारत कौड़ी जैसा बना है। अभी परमापिता परमात्मा ने ज्ञान का कलष माताओं पर रखा है। मातायें ही स्वर्ग का द्वार खोलती हैं। यह सब बातें नोट कर समझानी चाहिए। भक्ति वास्तव में गृहस्थियों के लिए है। ये है प्रवृत्ति मार्ग का सहज राजयोग। हम सिद्ध कर समझाने के लिए आये हैं। बच्चों को युक्तियुक्त काम करना है। बच्चों को ही बाप का शो करना है। सदैव हर्षित मुख,
अचल,
स्थेरियम,
मस्त रहना है,
आगे चलकर ऐसे बच्चे निकलते जरूर हैं। ब्रह्माकुमार कुमारी वह जो 21
जन्म के लिए बाप से वर्सा दिलाये। कुमारियों की महिमा भारी है,
मुख्य मम्मा है। वह ज्ञान सूर्य है,
यह है गुप्त मम्मा (
ब्रह्मा)
। इस राज़ को मुश्किल ही कोई समझते हैं। मन्दिर भी उस मम्मा के हैं। इस गुप्त बूढ़ी मम्मा का कोई मन्दिर नहीं। यह माता-
पिता कम्बाइन्ड है। कृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स है। कृष्ण में भगवान आ न सके। गीता के भगवान की महिमा अलग है। वह पतित-
पावन,
लिबरेटर,
गाइड है। तो परमात्मा की महिमा बिल्कुल अलग है। एक कैसे हो सकते। मुख्य बात ही यह है कि गीता किसने सुनाई?
वेद शास्त्र आदि सब गीता के बाल बच्चे हैं और सब भक्ति की सामग्री है,
ज्ञान मार्ग में कुछ होता नहीं। अच्छा!
मीठे-
मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-
पिता बापदादा का याद-
प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1)
हर काम बहुत युक्तियुक्त करना है। हर्षितमुख,
अचल,
स्थिर और ज्ञान की मस्ती में रहकर बाप का शो करना है।
2)
ज्ञान की नई और निराली बातें सिद्ध करनी है।
वरदान:मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए फर्स्ट नम्बर लेने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव!
तीव्र पुरुषार्थी के सामने सदा मंजिल होती है। वे कभी यहाँ वहाँ नहीं देखते। फर्स्ट नम्बर में आने वाली आत्मायें व्यर्थ को देखते हुए भी नहीं देखती,
व्यर्थ बातें सुनते हुए भी नहीं सुनती। वे मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप ने अपने को करनहार समझकर कर्म किया,
कभी करावनहार नहीं समझा,
इसलिए जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के रहे। ऐसे फालो फादर करो।
स्लोगन: जो बात अवस्था को बिगाड़ने वाली है - उसे सुनते हुए भी नहीं सुनो।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
1- आत्मा परमात्मा में अन्तर, भेद:-
आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरु मिला दलाल...
जब अपन यह शब्द कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है कि आत्मा,
परमात्मा से बहुतकाल से बिछुड़ गई है। बहुतकाल का अर्थ है बहुत समय से आत्मा परमात्मा से बिछुड़ गई है,
तो यह शब्द साबित (
सिद्ध)
करते हैं कि आत्मा और परमात्मा अलग-
अलग दो चीज़ हैं,
दोनों में आंतरिक भेद है परन्तु दुनियावी मनुष्यों को पहचान न होने के कारण वो इस शब्द का अर्थ ऐसा ही निकालते हैं कि मैं आत्मा ही परमात्मा हूँ,
परन्तु आत्मा के ऊपर माया का आवरण चढ़ा हुआ होने के कारण अपने असली स्वरूप को भूल गये हैं,
जब वो माया का आवरण उतर जायेगा फिर आत्मा वही परमात्मा है। तो वो आत्मा को अलग इस मतलब से कहते हैं और दूसरे लोग फिर इस मतलब से कहते हैं कि मैं आत्मा सो परमात्मा हूँ परन्तु आत्मा अपने आपको भूलने के कारण दु:
खी बन पड़ी है। जब आत्मा फिर अपने आपको पहचान कर शुद्ध बनती है तो फिर आत्मा परमात्मा में मिल एक ही हो जायेंगे। तो वो आत्मा को अलग इस अर्थ से कहते हैं परन्तु अपन तो जानते हैं कि आत्मा परमात्मा दोनों अलग चीज़ है। न आत्मा,
परमात्मा हो सकती और न आत्मा परमात्मा में मिल एक हो सकती है और न फिर परमात्मा के ऊपर आवरण चढ़ सकता है।
2- “कर्म बन्धन टूटने से ही मन की शान्ति अर्थात् जीवनमुक्त स्थिति को पा सकते हैं”
वास्तव में हरेक मनुष्य की यह चाहना अवश्य रहती है कि हमको मन की शान्ति प्राप्त हो जावे इसलिए अनेक प्रयत्न करते आये हैं मगर मन को शान्ति अब तक प्राप्त नहीं हुई,
इसका यथार्थ कारण क्या है?
अब पहले तो यह सोच चलना जरुरी है कि मन के अशान्ति की पहली जड़ क्या है?
मन की अशान्ति का मुख्य कारण है -
कर्मबन्धन में फंसना। जब तक मनुष्य इन पाँच विकारों के कर्मबन्धन से नहीं छूटे हैं तब तक मनुष्य अशान्ति से छूट नहीं सकते। जब कर्मबन्धन टूट जाता है तब मन की शान्ति अर्थात् जीवनमुक्त स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। अब सोच करना है -
यह कर्मबन्धन टूटे कैसे?
और उसे छुटकारा देने वाला कौन है?
यह तो हम जानते हैं कोई भी मनुष्य आत्मा किसी भी मनुष्य आत्मा को छुटकारा दे नहीं सकती। यह कर्मबन्धन का हिसाब-
किताब तोड़ने वाला सिर्फ एक परमात्मा है,
वही आकर इस ज्ञान योगबल से कर्मबन्धन से छुड़ाते हैं इसलिए ही परमात्मा को सुख दाता कहा जाता है। जब तक पहले यह ज्ञान नहीं है कि मैं आत्मा हूँ,
असुल में मैं किसकी सन्तान हूँ,
मेरा असली गुण क्या है?
जब यह बुद्धि में आ जाए तब ही कर्मबन्धन टूटे। अब यह नॉलेज हमें परमात्मा द्वारा ही प्राप्त होती है गोया परमात्मा द्वारा ही कर्मबन्धन टूटते हैं। ओम् शान्ति।
******************************************************************
End of Page
Please select any one of the below options to give a LIKE, how do you know this unit.